हम धार्मिकों के शास्त्रीय व्यवहार विरोधी पाप में समाज बराबर का दोषी है आखिर वो धर्म के नाम पर हमसे क्यों खरीद रहा है अशास्त्रीय डालडा !हमें दुदकार क्यों नहीं देता ! हमारी उपेक्षा क्यों नहीं कर देनी चाहिए उसे !
ऐ ! समाज के प्रबुद्ध और जिम्मेदार नागरिको ! हम धार्मिकों को मानने की आपकी मजबूरी क्या है ?जब हम आपके बच्चों को सदाचरण नहीं सिखा पा रहे हैं संस्कार नहीं दे पा रहे हैं त्याग वैराग आत्म संयम सेवा भावना,शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान आदि कुछ भी तो नहीं सिखा पा रहे हैं फिर भी आप हमारी गैर जिम्मेदारी अकर्मण्यता अशास्त्रीय बात व्यवहारों में हमारा साथ क्यों देते हैं आप ! ये पाप आप से भी हो रहा है !हम धार्मिकों का जो काम आपको अशास्त्रीय लगे उसका विरोध आपको हमारे मुख पर करने का अभ्यास करना चाहिए !
पहले हमारे शास्त्रीय संस्कारों का ही प्रभाव था माता पिता आदि पूर्वजों को लोग उनके मरने के बाद भी पिंडदान के माध्यम से भोजन पहुंचते थे किंतु आज तो जीते जी भोजन देना मुश्किल होता जा रहा है इसके लिए न सरकार दोषी है न कानून अपितु ये हम धार्मिकों की गैर जिम्मेदारी के दुष्परिणाम हैं !
पहले हमारे शास्त्रीय संस्कारों का ही प्रभाव था कि पड़ोसियों के सहारे लोग अपनी बहन बेटियाँ अपने घरों में छोड़कर चले जाते थे अपनी नाते रिश्तेदारियों में निपटा आते थे कामकाज ! किंतु अब तो पड़ोसियों से भी बचाकर रखनी होती हैं बधू बेटियाँ अन्यथा किसी मजबूरी में पड़ोसी की गलत हरकतों के सामने विवश होकर मान लें तो प्यार न माने तो बलात्कार ! आखिर जाएँ तो जाएँ कहाँ !
प्यार नामक दुराचरण से परिवार टूट रहे हैं संस्कार समाप्त हो रहे हैं आपसी अविश्वास और विश्वास घात में हत्याएँ हो रही हैं पूरे देश और समाज में प्यार के साइड इफेक्ट हत्याओं में तब्दील होते जा रहे हैं फिर भी मीडिया ,फ़िल्म एवं विदेशों में घूमे फिर लोग प्यार के इतने दीवाने हैं कि उसका समर्थन करते करते वो उनके माता पिता की भावनाओं को भी कुचलने को तैयार हैं जिसका दुष्परिणाम है आनरकिलिंग !आखिर अपने पैदा किए हुए बच्चों को भूल कैसे जाएँ वो लोग !उनके सामने आत्म समर्पण कैसे कर दें फिर भी जो सह जाते हैं वो ऐसे बच्चों के या तो साथ रहते हैं या उन से किनारा कर लेते हैं और जो नहीं सह पाते हैं वो भावावेश में कर बैठते हैं अपराध हत्याएँ !आदि आदि और भी बहुत कुछ !जो गलत है किंतु इन्हें रोकने के लिए हम धार्मिका समुदायों के लोग आखिर क्यों नहीं कर पा रहे है कुछ !
शिक्षा में मटुकनाथ पैदा होने लगे हैं धार्मिकों में निर्मल बाबाओं ने गन्दगी फैला रखी है नेताओं में बदनाम आदमी पार्टी के लोगों ने टीवी चैनलों में ज्योतिष एवं धर्म से जुड़े अधार्मिक कार्यक्रम दिखने वाले लोगों ने
माननीय न्यायालयों की भूमिका धार्मिक क्षेत्रों में भी अभिनंदनीय !
धार्मिक निर्मल बाबाओं से बचाया जाना चाहिए धर्म !
धर्म के क्षेत्र में अभी और भी भ्रष्टाचारी कचरा बहुत है उसे भी हटना चाहिए !धीरे धीरे धर्म का स्वरूप ही विलुप्त होता जा रहा है वेदों शास्त्रों पुराणों रामायणों सहित समस्त धर्म शास्त्रों की भूमिका ही समाप्त होती जा रही है धर्म के नाम पर जिसे जो मन आ रहा है सो बक रहा है समाज भ्रमित है कि वो किसे और किसकी माने या न माने धर्म का चोला पहने घूम रहे लोगों की किस बात को शास्त्रीय मान कर उस पर अमल करें किस पर न करें।
केवल चंदा जुटाने के लिए हमने 'भागवत' को भगवत बना डाला ! हमें धिक्कार है !
भागवत कथाएँ केवल कामियों को खुश करने के लिए !हम भूल गए कि भागवत मनोरंजन का नहीं अपितु आत्मरंजन का ग्रन्थ है ! भागवत वक्ता महिलाएँ यदि शास्त्र को मानती हैं तो मासिक अशुद्धि में क्या उन्हें करनी चाहिए भागवत ?क्या महीनों वर्षों पहले बुक की जाने वाली कथाओं में संभव है धर्मनिर्वाह !क्या हमारी माताएँ बहनें अशुद्धिकल बचाती नहीं रही हैं आखिर क्यों आया ये अशास्त्रीय परिवर्तन !और जब हम ही धर्मशास्त्रों को नहीं मानते तो हमें समाज क्यों मानता है इसके लिए समाज दोषी नहीं है क्या ?
समाज को भागवत वक्ताओं से आज भागवत नहीं मिल रही है इसमें एक तो वक्ता अयोग्य होने के कारण भागवत जानते नहीं हैं दूसरा उनके अपने आचारण इतने निंदनीय होते जा रहे हैं कि यदि वो भागवत वास्तव में कहने लगें तो उसे सुनकर श्रोतालोग इनसे घृणा करने लगेंगे !इसीलिए वास्तविक भागवत से समाज को दूर रखने का षड्यंत्र चल रहा है अन्यथा भागवत में नाच गाना यदि इतना ही जरूरी होता तो शुकदेव जी ने भी ठोंका होता तबला और नचाई होती अबलाएँ !वर्तमान अशास्त्रीय भागवत वक्ताओं का ध्यान रामियों श्यामियों से तो पूरी तरह हट चुका है इनका टार्गेट केवल कमियों को खुश करना दिखता है इसीलिए आज की भागवत में सुंदरता बिकती है श्रृंगार बिकता है संगीत बिकता है संपन्नता बिकती है कामुकता बिकती है टैक्स बचाने के कुछ धनी लोग खेलते हैं भागवत नाम का खेल और उसी पैसे के बल पर भडुवे भागवत नाम की भगदड़ काटते हैं सात दिन! केवल संपत्ति का प्रदर्शन होता है केवल केवल करके केवल इसलिए समय पास किया जा रहा है कि यदि भागवत भागवत केवल इसलिए नहीं कहते हैं
आज कोई भी अपने को शंकराचार्य कहने लगता है कोई भी जगद्गुरु बन जाता है कोई भी महंत श्री महंत मण्डलेश्वर महामंडलेश्वर आदि बन बैठता है जबकि उसमें उसके शास्त्रीय लक्षण होते ही नहीं है और न ही वो शास्त्रों की परवाह ही करता है
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