भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही करने की हिम्मत कोई नेता कैसे कर सकता है ! ऐसे में नेताओं से ईमानदारी की आशा क्यों करना !
चुनावों से पहले सत्ता पक्ष के नेताओं को भ्रष्टाचारी बताने वाले विपक्षी नेता खुद सत्ता में आने के बाद पूर्व सरकारों के भ्रष्टाचारियों से ही सीखने लगते हैं भ्रष्टाचार करने के गुर !उन्हीं के चेले बन जाते हैं और खुद नोचने लगते हैं देश की बहुमूल्य संपत्ति ! यदि ऐसा न होता तो जिन्हें पहले चोर कहा करते थे उन पर क्यों नहीं की कोई कार्यवाही ! अपितु उनके साथ पार्टियाँ मनाते घूमते हैं वही लोग जो कभी उन्हें चोर कहा करते थे ! इसका मतलब या तो उन्होंने चुनाव जीतने के लिए ही पूर्व सरकार को चोर झूठ ही कहा था और या भी खुद चोर हो गए अन्यथा उनके विरुद्ध कार्यवाही करने में हिचक क्यों ?
राजनीति प्रचार पर डिपेंड करती है और प्रचार पैसे पर डिपेंड करता है पैसा पैसेवालों के पास होता है वो अपनी खून पसीने की कमाई किसी को विधायक सांसद मंत्री आदि बनने के लिए क्यों दे देंगे ?
पैसे वाले लोगों के पास राजनीति करने का समय नहीं होता गरीब एवं ईमानदार आदमी राजनीति करे तो कैसे ! सामान्य वर्ग के लोग राजनेताओं को चंदा देंगे नहीं , घर खेत बेचकर कोई राजनीति करता नहीं है और न ही सूत ब्याज पर पैसे लेकर करता है और न ही सरकार से लोन लेकर कोई राजनीति करता है राजनीति करने के लिए लोग फ्री का पैसा चाहते हैं इस पैसे के बदले वो न तो सूत ब्याज देना चाहते हैं और न ही मूल चुकाना चाहते हैं इन्हें तो फ्री का चाहिए जो देना न पड़े लौटाना न पड़े ऐसे नेताओं को बिना स्वार्थ के कोई क्यों दे देगा !
नेता यदि भ्रष्टाचार में साथ न दें तो इन्हें राजनीति करने के लिए कोई चंदा क्यों देगा ?
ये नेता लोग भिखारी जैसे नहीं लगते फिर कोई भीख समझकर इन्हें कैसे धन दे ? ,देखने में गरीब नहीं लगते जो देने वाला दया भावना से द्रवित होकर कृपा पूर्वक इन्हें धन दे दे !ये धार्मिक भी नहीं दिखते ! जो देने वाला धर्म भावना से ही इन्हें दान दे दे !ये परोपकारी भी नहीं दिखते जो देने वाला जन सेवा की पुण्य भावना से ही दे दे !आखिर नेताओं को कोई क्यों दे धन !
ये नेता लोग भिखारी जैसे नहीं लगते फिर कोई भीख समझकर इन्हें कैसे धन दे ? ,देखने में गरीब नहीं लगते जो देने वाला दया भावना से द्रवित होकर कृपा पूर्वक इन्हें धन दे दे !ये धार्मिक भी नहीं दिखते ! जो देने वाला धर्म भावना से ही इन्हें दान दे दे !ये परोपकारी भी नहीं दिखते जो देने वाला जन सेवा की पुण्य भावना से ही दे दे !आखिर नेताओं को कोई क्यों दे धन !
विधायक सांसद मंत्री आदि तो खुद बनेंगे और धन माँगेंगे औरों से किंतु जो धन दें उन्हें बदले में क्या मिलेगा ! आजकल बिना स्वार्थ के तो कोई बाप को एक पैसा नहीं देना चाहता फिर किसी नेता को कोई क्यों देगा वो भी बिना स्वार्थ के !वो भी व्यापारी जो पाई पाई जोड़ता है वो अपनी खून पसीने की कमाई इन्हें फ्री में क्यों दे देगा !वो रातोरात करोड़ों अरबों पति बन जाना चाहता है इसके लिए उसे भ्रष्टाचार का सहारा लेना होता है इसमें सरकारी आफीसरों से उसे भय होता है उस भय को समाप्त करने के लिए वो नेता जी को पैसा देता है और बदले सभी प्रकार के सहयोग का बचन ले लेता है । ऐसे भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही करने की हिम्मत कोई भ्रष्ट नेता कैसे कर सकता है !उसके लिए नेता ईमानदार चाहिए वो कहाँ से मिले !
राजनैतिक पार्टियाँ ईमानदारी के भाषण तो देना चाहती हैं किंतु उनके नेता लोग पढ़े लिखे ईमानदार लोगों को पसंद नहीं करते !आप कभी भी देखेंगे नेता लोग अपने ही लड़के नातियों को चुनाव लड़ाया जिताया करते हैं बाक़ी केवल वोट लेने के लिए ही ग़रीबों के यहाँ चक्कर मारने जाते हैं इसके अलावा गरीबों को वो किसी लायक नहीं समझते हैं यदि समझते ही होते तो मुझमें और क्या कमी थी हमारे जैसे और लोग भी केवल ईमानदारी पूर्वक राजनीति करना चाहते हैं इसीलिए तो बेईमानी पसंद लोग उन्हें नहीं देना चाहते हैं राजनीति के माध्यम से जनसेवा करने के अवसर !
हर पार्टी के लोगों को मैंने यह कहते सुना है कि वो राजनैतिक शुद्धि के लिए पढ़े लिखे ईमानदार लोगों को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं।जिससे देश में ईमानदार राजनीति का वातावरण बनाया जा सके। यह सुनकर मैंने सोचा कि मैंने भी तीन विषय से आचार्य (एम.ए.) दो विषय से अलग से एम.ए. एवं बी.एच.यू. से पीएच.डी की है।करीब150 किताबें लिखी हैं यद्यपि सारी प्रकाशित नहीं हैं,कई काव्य ग्रंथ भी हैं।प्रवचन भाषण आदि करने ही होते हैं।आरक्षण आंदोलन से आहत होकर मैंने आजीवन सरकार से नौकरी न मॉंगने का व्रत लिया हुआ है। वैसे भी ईमानदारीपूर्वक जीवन यापन करने का प्रयास करता रहा हूँ। फिलहाल अभी तक निष्कलंक जीवन है यह कहने में हमें कोई संकोच नहीं हैं।
इस प्रकार से अपनी शैक्षणिक सामर्थ्य का राजनैतिक दृष्टि से देशहित में सदुपयोग करना चाहता था, इसी दृष्टि से मैंने लगभग हर पार्टी से संपर्क करने के लिए सबको पत्र लिखे अपनी पुस्तकें भेजीं अपने डिग्री प्रमाणपत्र भेजे फोन पर भी संपर्क करने का प्रयास किया,किंतु कहीं किसी ने हमसे मिलने के लिए रुचि नहीं ली।किसी ने हमें पत्रोत्तर देना भी ठीक नहीं समझा।कई जगह तो दो दो बार पत्र डाले किंतु कहीं कोई चर्चा न हो सकी किसी ने मुझे पत्र लिखने लायक या फोन करने लायक नहीं समझा मिलने की बात तो बहुत दूर की है।
हमारे राष्ट्रपति जी दुर्गा जी के भक्त हैं यह सुनकर उन्हें अपनी दोहा चौपाई में लिखी दुर्गा सप्तशती की पुस्तकें भेंट करके अपनी कुछ बात निवेदन करने का मन बनाया किंतु वहॉं पुस्तकें एवं पत्र भेजने के बाद भी उसके उत्तर में कोई पत्र नहीं मिला।
इसके बाद कुछ हिंदू संगठनों से इसलिए संपर्क किया कि मेरी धार्मिक शिक्षा विशेष रूप से है शायद वहीं हमारा या हमारी शिक्षा का जनहित में शैक्षणिक सदुपयोग हो सके तो अच्छा होगा तो वहॉं के बड़े बड़े लोगों ने हमसे मिलना ठीक नहीं समझा,उनसे छोटे लोगों को हमारी शिक्षा में कोई प्रत्यक्ष रुचि नहीं हुई, यद्यपि वहॉ मुझे इसलिए उन्होंने संपर्क में रहने को कहा ताकि हमारी समाज में जो गुडबिल है उसे संगठन के हित में आर्थिक रूप से कैस किया जा सके ऐसा उन्होंने कहा भी!यहॉं से इसी प्रकार के यदा कदा फोन भी आये जिनमें मैंने पैसे के कारण रुचि नहीं ली। इसके बाद निष्कलंक जीवन बेदाग चारि़त्र का राग अलापने वाले एक सामाजिक संगठन से जुड़ने के लिए मैंने वहाँ के मुखिया को अपना साहित्य भेजा और मिलने के लिए पत्र के माध्यम से समय माँगा किंतु वहाँ भी मुझे घास नहीं डाली गई।इसके बाद चुपचाप बैठकर ब्लाग पर मैं अपने बिचार लिखने लगा।
इस प्रकार से अपनी शैक्षणिक सामर्थ्य का राजनैतिक दृष्टि से देशहित में सदुपयोग करना चाहता था, इसी दृष्टि से मैंने लगभग हर पार्टी से संपर्क करने के लिए सबको पत्र लिखे अपनी पुस्तकें भेजीं अपने डिग्री प्रमाणपत्र भेजे फोन पर भी संपर्क करने का प्रयास किया,किंतु कहीं किसी ने हमसे मिलने के लिए रुचि नहीं ली।किसी ने हमें पत्रोत्तर देना भी ठीक नहीं समझा।कई जगह तो दो दो बार पत्र डाले किंतु कहीं कोई चर्चा न हो सकी किसी ने मुझे पत्र लिखने लायक या फोन करने लायक नहीं समझा मिलने की बात तो बहुत दूर की है।
हमारे राष्ट्रपति जी दुर्गा जी के भक्त हैं यह सुनकर उन्हें अपनी दोहा चौपाई में लिखी दुर्गा सप्तशती की पुस्तकें भेंट करके अपनी कुछ बात निवेदन करने का मन बनाया किंतु वहॉं पुस्तकें एवं पत्र भेजने के बाद भी उसके उत्तर में कोई पत्र नहीं मिला।
इसके बाद कुछ हिंदू संगठनों से इसलिए संपर्क किया कि मेरी धार्मिक शिक्षा विशेष रूप से है शायद वहीं हमारा या हमारी शिक्षा का जनहित में शैक्षणिक सदुपयोग हो सके तो अच्छा होगा तो वहॉं के बड़े बड़े लोगों ने हमसे मिलना ठीक नहीं समझा,उनसे छोटे लोगों को हमारी शिक्षा में कोई प्रत्यक्ष रुचि नहीं हुई, यद्यपि वहॉ मुझे इसलिए उन्होंने संपर्क में रहने को कहा ताकि हमारी समाज में जो गुडबिल है उसे संगठन के हित में आर्थिक रूप से कैस किया जा सके ऐसा उन्होंने कहा भी!यहॉं से इसी प्रकार के यदा कदा फोन भी आये जिनमें मैंने पैसे के कारण रुचि नहीं ली। इसके बाद निष्कलंक जीवन बेदाग चारि़त्र का राग अलापने वाले एक सामाजिक संगठन से जुड़ने के लिए मैंने वहाँ के मुखिया को अपना साहित्य भेजा और मिलने के लिए पत्र के माध्यम से समय माँगा किंतु वहाँ भी मुझे घास नहीं डाली गई।इसके बाद चुपचाप बैठकर ब्लाग पर मैं अपने बिचार लिखने लगा।
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