भारत में राजनेताओं की पार्टियाँ अलग अलग भले ही हों किंतु जनता का शोषण करने एवं झूठ बोलने की संस्कृति सबकी लगभग एक जैसी है परंतु जनता की मजबूरी है आखिर जाएँ तो जाएँ कहाँ !
राजनैतिक दलों के पास ऐसे ईमानदार और समझदार नेता बहुत कम होते हैं जिनकी योग्यता ,सेवा ,समर्पण पर जनता भरोसा करके जनता उन्हें वोट दे !संभवतः ऐसा वो भी मानते होंगे इसीलिए वो ऐसे सम सामयिक उत्तेजना फैलाने वाले मुद्दों को हवा देने लगते हैं यदि सुलगने लगे तब तो ठीक है अन्यथा तलाशते हैं कोई और मुद्दा !
बी.पी.सिंह जी की सरकार के समय में राजनेताओं के आधारहीन अदूरदर्शी फैसलों से सारा समाज आहत था आरक्षण से लेकर श्री राम मंदिर आन्दोलन तक उसी समय की उपज थे और दोनों में निरपराध लोग मारे गए!उस समय के बाद राज नीति धीरे धीरे प्रदूषित होती चली जा रही है।बहुत दिन बाद जब अटल जी की सरकार आई उसमें तो देश वासियों के प्रति अपनापन दिखा जिसमें जनता को सुख सुविधाएँ मिलती दिखीं भी जनता की जरूरत की चीजें जनता की आर्थिक क्षमता के अनुशार उपलब्ध कराने का प्रयास हुआ।इसके अलावा तो आँकड़ों और आश्वासनों का खेल चलता रहता है जनता मरे मरती रहे,महँगाई बढ़े बढ़ती रहे अपराध बढ़ें बढ़ते रहें, सरकारें बड़ी बेशर्मी से पूरे देश में सुख चैन के आँकड़े लेकर प्रेस कांफ्रेंस करती रहती हैं ये जनता की पीड़ा से अपरिचित सरकारें या यूँ कह लें कि जनता से दूर रहकर केवल चुनावी खेल खेलने वाली सरकारें कभी भी समाज एवं देश हित में नहीं हो सकती हैं इन्हें अपने काम पर भरोसा ही नहीं होता है इसलिए हर चुनाव केवल उन्माद फैलाकर जीतना चाहती हैं!
बी.पी.सिंह जी की सरकार के समय में राजनेताओं के आधारहीन अदूरदर्शी फैसलों से सारा समाज आहत था आरक्षण से लेकर श्री राम मंदिर आन्दोलन तक उसी समय की उपज थे और दोनों में निरपराध लोग मारे गए!उस समय के बाद राज नीति धीरे धीरे प्रदूषित होती चली जा रही है।बहुत दिन बाद जब अटल जी की सरकार आई उसमें तो देश वासियों के प्रति अपनापन दिखा जिसमें जनता को सुख सुविधाएँ मिलती दिखीं भी जनता की जरूरत की चीजें जनता की आर्थिक क्षमता के अनुशार उपलब्ध कराने का प्रयास हुआ।इसके अलावा तो आँकड़ों और आश्वासनों का खेल चलता रहता है जनता मरे मरती रहे,महँगाई बढ़े बढ़ती रहे अपराध बढ़ें बढ़ते रहें, सरकारें बड़ी बेशर्मी से पूरे देश में सुख चैन के आँकड़े लेकर प्रेस कांफ्रेंस करती रहती हैं ये जनता की पीड़ा से अपरिचित सरकारें या यूँ कह लें कि जनता से दूर रहकर केवल चुनावी खेल खेलने वाली सरकारें कभी भी समाज एवं देश हित में नहीं हो सकती हैं इन्हें अपने काम पर भरोसा ही नहीं होता है इसलिए हर चुनाव केवल उन्माद फैलाकर जीतना चाहती हैं!
आज राजनेताओं का उद्देश्य ही जन सेवा न
होकर अपितु सत्ता में बने रहना होता है सत्ता से हटते ही इनके चेहरों की चमक
चली जाती है।
ये भावना ठीक नहीं है हर राजनेता के मनमें समाज के लिए स्थाई
सेवा भाव तो चाहिए ही जो अधिकांश नेताओं में नहीं दिखता ऐसे में उन्माद
फैलाकर चुनाव जीतने के अलावा और दूसरा कोई विकल्प दिखता भी नहीं है जातिगत
आरक्षण के रूप में बी.पी.सिंह जी ने भी उसी शार्टकट का ही सहारा लिया जो
समाज के लिए दुखद साबित हुआ!
इसी राजनैतिक कुचाल से आहत होकर बेरोजगारी के भय से युवा वर्ग न केवल घबड़ा
गया अपितु आरक्षण के समर्थन और विरोध में संघर्ष पूर्ण आन्दोलनों में कूद
पड़ा !जिस प्रकार से एक साथ एक कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों के समूह भी एक
दूसरे से लड़ रहे थे जाति व्यूहों में बँट चुका था सारा देश !कितना दारुण
दृश्य था वह! जब बड़ी संख्या में छात्र आत्म दाह करने पर मजबूर हो रहे थे!
उसी समय में पटना में आरक्षण विरोधी छात्रों पर सरकारी मशीनरी ने गोली चलाई
जिसमें कई छात्र घायल हुए थे इसी में एक छात्र श्री शैलेन्द्र सिंह जी
मारे गए थे जिनका दाह संस्कार वाराणसी के हरिश्चंद घाट पर किया गया था उस
समय वहाँ बहुत भीड़ उमड़ी थी जिसमे बहुत सारे लोग रो रहे थे बड़ा भावुक
वातावरण था मैं भी उसी भीड़ में खड़े रो रहा था !
वह विद्यार्थी जीवन था मैंने भी उसी भावुकता वश अपने मन में ही एक व्रत ले लिया कि अब मैं कभी सरकार से नौकरी नहीं मागूँगा !!!उसके बाद ईश्वर की कृपा से इतना पढ़ने के बाद भी आज तक सरकारी नौकरी के लिए मैंने किसी प्रपत्र पर कभी साइन तक भी नहीं किए हैं ये बात हमारे सैकड़ों मित्रों को पता है। मुझे लगा कि मैं भी तो उसी सवर्ण जाति से हूँ जिस पर दबाने कुचलने एवं शोषण करने के आरोप लगाए जा रहे हैं! हम सवर्णों के अधिकारों की रक्षा के लिए ही तो शैलेन्द्र सिंह जी का बलिदान हुआ है!
वह विद्यार्थी जीवन था मैंने भी उसी भावुकता वश अपने मन में ही एक व्रत ले लिया कि अब मैं कभी सरकार से नौकरी नहीं मागूँगा !!!उसके बाद ईश्वर की कृपा से इतना पढ़ने के बाद भी आज तक सरकारी नौकरी के लिए मैंने किसी प्रपत्र पर कभी साइन तक भी नहीं किए हैं ये बात हमारे सैकड़ों मित्रों को पता है। मुझे लगा कि मैं भी तो उसी सवर्ण जाति से हूँ जिस पर दबाने कुचलने एवं शोषण करने के आरोप लगाए जा रहे हैं! हम सवर्णों के अधिकारों की रक्षा के लिए ही तो शैलेन्द्र सिंह जी का बलिदान हुआ है!
इसके बाद आर्थिक तंगी और धनाभाव से होने वाली बहुत सारी समस्याओं का
सामना तो हमें करना ही था जो सपरिवार मैं आज तक कर भी रहा हूँ !बचपन में पिता
जी का देहांत हो गया था संघर्ष पूर्ण जीवन जीते जीते माता जी भी असमय में
ही चल बसीं ! कुल मिलाकर परिस्थितियाँ अच्छी नहीं थीं।केवल विद्या का साथ
था। हमारा शैक्षणिक शोषण भी समाज के अर्थ संपन्न लोगों ने करने में कोई कोर कसर
नहीं छोड़ी परिस्थितियों का लाभ तो चालाक या सक्षम लोग उठा ही लेते हैं!
मुझे लगा कि जब अब नौकरी करनी नहीं है तो शिक्षा का समाज हित में ही
सदुपयोग किया जाए और जन जागरण किया जाए कि किसी जाति के पीछे रह जाने में
सवर्णों का कोई हाथ नहीं है ये राजनेताओं के द्वारा गढ़े गए किस्से हैं। इस
प्रकार आपसी भाईचारे की भावना भरना हमारा लक्ष्य था जिसके लिए कुछ
प्राइवेट संगठनों से जुड़ा तो देखा वो समाज सेवा तो कहाँ वो लोग समाज से
केवल धन इकट्ठा करने की बात किया करते और सोचते भी यही थे!मुझे लगा कि यही
करना है तो किसी राजनैतिक दल से जुड़ जाता हूँ सभी दलों और यथासंभव यथा सुलभ
नेताओं से संपर्क किया किन्तु किसी ने मुझमें समाज सेवा के वो गुण नहीं
पाए जो एक राजनेता में होने चाहिए!मेरे व्रती,शिक्षित ,सदाचारी,त्याग पूर्ण
समाजसेवी जीवन की बातें कहाँ पसंद की जाती हैं राजनीति में? वहाँ तो ऐसी
बातें लिखकर भाषणों में पढ़ने के काम आती हैं।
इस प्रकार से सब जगह एवं सभी दलों से निराश अंततः अब मैं राजेश्वरी
प्राच्य विद्या शोध संस्थान नामक संस्थान के तत्वावधान में यथा संभव जन हित
के कार्य करने का प्रयत्न करता रहता हूँ।
बंधुओ !यहॉं यह अपनी निजी कहानी लिखने का अभिप्राय केवल यह है कि इन राजनेताओं को अपने दलों में हमारे जैसों को अपने साथ जोड़ने में न जाने किस शैक्षणिक या और प्रकार की योग्यता की आवश्यकता होती है जिन ईमानदार कार्यकर्ताओं के नाम पर वे जिनकी तलाश किया करते हैं न जाने वे कौन से भाग्यशाली लोग होते हैं,और वे अपनी किस योग्यता से अपनी ओर राजनैतिक समाज को प्रभावित किया करते हैं?मुझे तो केवल इतना पता है कि हमारे जैसा शिक्षा से जुड़ा हुआ व्यक्ति इन राजनैतिक लोगों के यदि किसी काम का नहीं है तो आम ग्रामीण या सामान्य शिक्षित ईमानदार कोई आदमी इन राजनैतिक या सामाजिक संगठनों से क्या आशा रखे?अगर उसे अपनी कोई समस्या कहनी ही हो तो किससे कहे ?और यदि राजनैतिक क्षेत्र में जुड़कर कोई काम करना ही हो तो कैसे करे ?
बंधुओ !यहॉं यह अपनी निजी कहानी लिखने का अभिप्राय केवल यह है कि इन राजनेताओं को अपने दलों में हमारे जैसों को अपने साथ जोड़ने में न जाने किस शैक्षणिक या और प्रकार की योग्यता की आवश्यकता होती है जिन ईमानदार कार्यकर्ताओं के नाम पर वे जिनकी तलाश किया करते हैं न जाने वे कौन से भाग्यशाली लोग होते हैं,और वे अपनी किस योग्यता से अपनी ओर राजनैतिक समाज को प्रभावित किया करते हैं?मुझे तो केवल इतना पता है कि हमारे जैसा शिक्षा से जुड़ा हुआ व्यक्ति इन राजनैतिक लोगों के यदि किसी काम का नहीं है तो आम ग्रामीण या सामान्य शिक्षित ईमानदार कोई आदमी इन राजनैतिक या सामाजिक संगठनों से क्या आशा रखे?अगर उसे अपनी कोई समस्या कहनी ही हो तो किससे कहे ?और यदि राजनैतिक क्षेत्र में जुड़कर कोई काम करना ही हो तो कैसे करे ?
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