Monday, 28 September 2015

सांसदों,विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी तय करे जनता, कराया जाए जनमत संग्रह !

"अंधा बाँटे रेवड़ी अपने अपने को देय !"बारी सरकारें बारी सरकारी नीतियाँ धिक्कार है ऐसी गिरी हुई सोच को !  
    जो सांसद विधायक नहीं हैं और सरकारी कर्मचारी भी नहीं हैं उन्हें जीने का अधिकार नहीं है क्या या वे इंसान नहीं हैं !वो गरीब ग्रामीण किसान मजदूर ऐसी महँगाई में कैसे जी रहे होंगें !कभी उनके विषय में भी सोचिए !केवल अपना और अपनों का ही पेट भरने के लिए नेता बने थे क्या !किसी बेतन आयोग की सिफारिशें हों या कुछ और बहाना बनाकर सैलरी बढ़ाने की बात हो किंतु ऐसे निर्णय सरकार और सरकारी कर्मचारी ही मिलकर क्यों  ले लेते हैं इसमें जनता को सम्मिलित क्यों नहीं किया जाता है ! 
   राजनीति हो या सरकारी नौकरी यदि ये सर्विस अर्थात सेवा है तो सैलरी क्यों और सैलरी है तो सेवा कैसी !सेवा  और सैलरी साथ साथ नहीं चल सकते !और यदि ऐसा है तो धोखा है !सांसद विधायक या सरकारी सर्विस करने वाले लोग सेवा करने के लिए गए और आज हजारों लाखों की सैलरी उठा रहे हैं फिर भी अपने को सेवक बताते हैं! देश वासियों के साथ इतना बड़ा कपट !धिक्कार है ऐसी सरकारों को जो केवल अपनी और अपने कर्मचारियों की ही चिंता रखती हों बाकी देशवासियों को इंसान ही न समझती हों !बारेलोकतंत्र !!
   सरकारों में सम्मिलित नेताओं और सरकारी कर्मचारियों की आपसी  मिली भगत से एक दूसरे की या फिर अपनी अपनी सैलरी बढ़ाने का ड्रामा सहना आम जनता के लिए अब  दिनों दिन मुश्किल होता जा रहा है जानिए क्यों ?
     प्रजा प्रजा में भेद भाव का तांडव अब नहीं चलने दिया जाएगा !जनता तय करेगी सरकारों एवं सरकारी कर्मचारियों की जिम्मेदारियाँ ! काम करने के बदले जो सरकारी कर्मचारी जनता से घूस लेकर उसका कुछ हिस्सा सरकारों को भी देते हैं बदले में सरकारें उनकी सैलरी सुविधाओं का ध्यान रखती हैं ।इसलिए ऐसे किसी भी प्रकार के आदान प्रदान का विरोध किया जाएगा !कोई  बेतन आयोग बने या कुछ और इनमें आम जनता तो सम्मिलित नहीं की जाती है वो सब सरकारी लोग  होने के कारण सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ा लेते हैं और किसानों को दिखाते हैं पैंतीस पैंतीस रूपए के चेक ! बारे लोक तंत्र !
   सांसदों ,विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों का बेतन बढ़ाकर गरीबों को अब और अधिक जलील नहीं होने दिया जाएगा !
       भारत माता को जितने दुलारे सांसद विधायक एवं अन्य सरकारी कर्मचारी हैं उससे कम दुलारे देश के किसान और मजदूर नहीं हैं । जो किसान भारत माता के सपूतों के पेट भरता है उसे जलील करना कहाँ तक ठीक है जो मजदूर देश वासियों की सेवा के लिए अपना खून पसीना  बहाता है बिल्डिंगें बनाता है रोड बनाता है नदी नहरें बनाता है भारत माता के आँचल को स्वच्छ और पवित्र रखने के लिए देश की साफ सफाई में लगा रहता है पेड़ पौधे लगाकर खेतों में फसलें उगाकर देश को हरा भरा बनाता है वातावरण को शुद्ध बनाने का प्रयास करता है । भारत माता को सजा सँवारकर देश का सम्मान बढ़ाता है देश को गौरव प्रदान करता है देश को रोग मुक्त बनाता है सांसदों ,विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों का बेतन बढ़ाकर ऐसे किसानों मजदूरों को जलील किया जाना कहाँ तक ठीक है ! 
    यह जानते हुए भी कि अधिकाँश सांसद ,विधायक एवं सरकारी कर्मचारी अपने अपने दायित्वों का निर्वाह ठीक से नहीं कर रहे हैं ,काम न करने, हुल्लड़ मचाने, हड़ताल करने , धरना प्रदर्शन करने तथा अपनी माँगें मनवाने एवं विरोधियों से माँफी मँगवाने की जिद में अपना समय सबसे अधिक बर्बाद करते हैं वे !वो भी सरकारी सैलरी भोगते हुए सरकारी सुख सुविधाएँ लेते हुए भी ड्यूटी टाइम में इस प्रकार के मनोरंजन में सबसे अधिक समय बर्बाद करते हैं कुछ तो सरकारी सुरक्षा के घेरे में रहते हुए भी ऐसे आडम्बर करते हैं ! ये कहाँ तक उचित है ?
आम जनता की आय के आस पास आवश्यकतानुशार रखी जाए सांसदों विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी !
      आम जनता की मासिक आय यदि दो हजार है सरकारी अफसरों कर्मचारियों की सैलरी भी अधिक से अधिक दो गुनी चौगुनी कर दी जाए किंतु उसे सौ गुनी कर देना आम जनता के साथ सरासर अन्याय है !
     यदि किसी ने शिक्षा के लिए परिश्रम किया है तो उसका सम्मान होना ही चाहिए इससे इंकार नहीं किया जा सकता किंतु किसी का सम्मान करने के लिए औरों को अपमानित करना कहाँ तक ठीक है !उसमें भी उस वर्ग पर क्या बीतती होगी जो IAS,PCS जैसी परीक्षाओं में बैठता रहा किंतु बहुत प्रयास करने पर भी सफल नहीं हो पाया !या Ph.D.की किंतु नौकरी नहीं लग पाई जबकि उसके साथी की लग गई उसकी तो सैलरी लाखों में और दूसरे को हजारों नसीब नहीं होते !आखिर उसकी गलती क्या है !वो भी तब जबकि सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार का बोलबाला है जिसे रोकने में अब तक की सरकारें नाकामयाब रही हैं उसका दंड भोग रहे हैं पढ़े लिखे बेरोजगार लोग !आखिर उनकी पीड़ा कौन समझे ! 
कुछ बड़े संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को छोड़ कर सिक्योरिटी किसी को क्यों मिले और मिले तो हर किसी को मिले ! 
      वर्षा ऋतु में छै छै  फिट ऊँची बढ़ी फसलें में छिपे हिंसक जीवों से , आसमान से कड़कती बिजली से , पैरों के नीचे बड़ी बड़ी घासों में छिपे बैठे बिशाल सांपों से भयंकर भय होते हुए भी रात के घनघोर अँधेरे में खेत से  पानी निकालने के लिए कंधे पे फरुहा रख कर निकल पड़ते हैं किसान ! जहाँ हर पल मौत से सामना हो रहा होता है जिनके परिश्रम से देश के अमीर गरीब सबका पेट पलता  है !उनकी कोई सुरक्षा नहीं दूसरी ओर साफ सुथरे रोडों  के बीच सरकारी आवासों में आराम फरमा रहे नेताओं को दी जा रही है सिक्योरिटी इसे क्या कहा जाए !वैसे भी जिन शरीरों को रखाने के लिए जनता को इतनी भारी भरकम धनराशि खर्च करने पड़ रही हो ऐसे बहुमूल्य शरीरों का बोझ जनता पर डालने की अपेक्षा इन्हें भगवान को वापस करने के लिए ही प्रार्थना क्यों न की जाए !
 अब बात सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ने बढ़ाने की !
    आज थोड़ी भी महँगाई बढ़ी या त्यौहार पास आए तो महँगाई भत्ता केवल उनके लिए बाकी देशवासियों को बता देते हैं कि तुम्हारा शोषण ब्राह्मणों ने किया है तुम उन्हीं के शिर में शिर दे मारो !
    भारत माता के परिश्रमी एवं ईमानदार सपूत अकर्मण्य सरकारों एवं सरकारी कर्मचारियों का बेतन बोझ आखिर कब तक ढोते रहेंगे ?
    गरीब किसान मजदूर या गैर सरकारी लोग जो दो हजार रूपए महीने भी कठिनाई से कमा  पाते हैं वो भी दो दो  पैसे बचा कर अपने एवं अपने बच्चों के पालन पोषण से लेकर उनकी   दवा आदि की सारी व्यवस्था करते ही हैं उनके काम काज भी करते हैं और ईमानदारी पूर्ण जीवन भी जी लेते हैं ।जिन्हें नौकरी नहीं सैलरी नहीं उन्हें पेंशन भी नहीं !
   अफसरों को एलियनों की तरह दूसरी दुनियाँ का जीव बनाकर क्यों परोसा जा रहा है समाज में ?आखिर उन्हें आम जनता से घुलमिल कर क्यों नहीं रहना चाहिए !
  अफसर AC वाले कमरों में बिलकुल पैक होकर रहते हैं जिन्हें खोल कर नहीं रखा जा सकता इससे आम जनता अफसरों के कमरों में घुसने से डरा करती है और यदि घुस भी पाई तो वो आफिस उनके प्राइवेट रूम की तरह सजा सँवरा होता है जहाँ पहुँच कर आम जनता को अपराध बोध सा हुआ करता है उस पर  भी किसी ने थोड़ा भी कुछ कह दिया तो बेचारे  डरते हुए बाहर आ जाते हैं क्या सरकारी अफसरों का रोल केवल इतना है कि जनता को झिड़क झिड़क कर भगाते रहें बश !आखिर उनका चेंबर अलग करने की जरूरत क्या है आम जनता से घुल मिल कर काम करने में उनकी बेइज्जती क्यों समझी जाती है ?
    देश की जनसँख्या के एक बहुत बड़े बर्ग को आज तक एक पंखा नसीब नहीं है ,सरकारी आफिसों के AC रोककर उन तक क्यों न पहुँचाई जाए बिजली आखिर वो भी तो इसी लोकतंत्र के अंग हैं उनके भी पूर्वजों ने  तो लड़ी होगी आजादी की लड़ाई !उस आजादी को देश की मुट्ठी भर आवादी भोग रही है आखिर क्यों ?ऊपर से सैलरी बढ़ाने का फरमान !बारे लोकतंत्र !!
 सामाजिक सुरक्षा की आशा पुलिस विभाग से कैसे की जाए !आखिर वो भी तो सरकारी कर्मचारी ही हैं !
      आखिर पुलिस से ही ईमानदार सेवाओं की उम्मीद क्यों ? वे क्यों और कैसे बंद करें अपराध और बलात्कार ! 
     जब सरकारी शिक्षक अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते हैं तो मदद कर रहे हैं प्राइवेट प्राथमिक स्कूल !अन्यथा उनकी संख्या दिनोंदिन बढ़ती क्यों जा रही है ! इसीप्रकार से सरकारी अस्पतालों के बदले चिकित्सा सेवाएँ सँभाल रहे हैं प्राइवेट नर्सिंग होम !सरकारी डाक विभाग की इज्जत बचा रहे हैं कोरिअर वाले ! दूर संचार विभाग विभाग की मदद कर रही हैं प्राइवेट मोबाईल कंपनियाँ !जबकि पुलिस विभाग को तो खुद ही जूझना पड़ता है आखिर उन्हें भी तो सरकारी कर्मचारी होने का गौरव प्राप्त है वो क्यों सँभालें अपने सरकारी नाजुक कन्धों पर !प्राइवेट क्षेत्रों में सरकारी की अपेक्षा सैलरी भी बहुत कम है फिर भी वे सरकारी विभागों की अपेक्षा बहुत अच्छी सेवाएँ देते हैं!फिर भी सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ानी जरूरी है आखिर क्यों ? 
    सुविधाओं के अभाव की आड़ में काम न करने वाले सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाने का औचित्य क्या है ? 
    सरकारी विभागों में एक छोटी सी कमी का बहाना ढूँढ़ कर लोग दिन दिन भर के लिए अघोषित छुट्टी मार लिया करते हैं ऐसे लोगों की सैलरी बढ़ाई जाती है क्यों ?आज सरकार का कोई विभाग अपनी जिम्मेदारी निभाने को तैयार नहीं है फिर भी सरकारें बढ़ाती जाती हैं उनकी सैलरी आखिर क्यों ?
   जनता से कहा जाता है कि CFL जलाओ बिजली बचाओ !जबकि सरकारी आफिसों में AC लगाने का प्रयोजन क्या है ?
 सरकारीविभागों के आफिस काम करने के लिए हैं या कि सुख भोगने के लिए ! 
     सरकारी आफिसों के AC जितनी बिजली चबा जाते हैं उतने में पूरे देश को प्रकाशित किया जा सकता है और सबको पंखे की सुविधा उपलब्ध कराई  जा सकती है आखिर ग़रीबों को पंखा क्यों नहीं चाहिए वो भी अखवार पढ़ते होंगे उन्हें भी डेंगू का भय सताता होगा ! किंतु बेचारे क्या करें देश की बेशर्म मल्कियत भोग रही है आजादी !सरकारी विभागों के AC नहीं बंद किए जा सकते आम आदमी से कहा जाता है CFL जलाओ बिजली बचाओ !दूसरी रोड लाइट कहो दिन भर जलती रहे !आखिर वो सरकारी कर्मचारी होने के नाते देश के मालिक हैं सब कुछ कर सकते हैं ग़रीबों पर ऐसा अत्याचार आखिर कैसे सहा जाए !
   ACमें रहने वाले लोग आलसी हो जाते हैं काम करना उनके बश का नहीं रह जाता आयुर्वेद के अनुशार ठंडा खान पान रहन सहन आलस्य बढ़ाता है और निद्रा लाता है । AC वाले विभागों में कर्मचारियों से जनता गिड़गिड़ाया करती है लंबी लंबी लाइनें लगी रहती हैं अफसर कैमरे में सब कुछ देख रहे होते हैं किंतु अपने कमरे का दरवाजा खोलकर आम जनता से उसकी समस्याएँ पूछने में तौहीन समझते हैं ऐसे लोग फील्ड पर जाकर सरकारी कामों की क्वालिटी अच्छी करने का प्रयास करेंगे इसकी तो उम्मींद भी नहीं की जानी चाहिए !
     कुल मिलाकर सरकारी कर्मचारियों की पचासों हजार की सैलरी ऊपर से प्रमोशन उसके ऊपर महँगाई भत्ता आदि आदि और उसके बाद बुढ़ापा बिताने के लिए बीसों हजार की पेंसन ! इतने सबके बाबजूद सरकारी कर्मचारियों के एक वर्ग का पेट नहीं भरता है तो वो काम करने के बदले घूँस भी लेते हैं इतना सब होने के बाद भी सरकारी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक पढ़ाते  नहीं हैं अस्पतालों में डाक्टर सेवाएँ  नहीं देते हैं डाक विभाग कोरिअर से पराजित है दूर संचार विभाग मोबाईल आदि प्राइवेट विभागों से पराजित है जबकि प्राइवेट क्षेत्रों में सरकारी की अपेक्षा सैलरी बहुत कम है फिर भी वे सरकारी विभागों की अपेक्षा बहुत अच्छी सेवाएँ देते हैं। ऐसी परिस्थिति में सरकारी लोगों एवं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाते रहना कहाँ तक न्यायोचित है !

Sunday, 27 September 2015

हे लालू जी ! जिसने पशुओं तक का चारा न छोड़ा हो उसने दलितों को बक्स दिया होगा क्या ?

   लालू जी !जब आप राजनीति में आए थे तब आपके  पास कितनी संपत्ति थी और आज कितनी है आपके  पास आखिर ये विशाल धनराशि आई कहाँ से  किस व्यापार से हुई इतनी मोटी कमाई !ऐसा कौन सा काम किया आपने ?और यदि नहीं तो ये पिछड़ों , दलितों , वंचितों , गरीबों , पीड़ितों  का हक़ ही तो नहीं है आखिर दलितों के हिस्से का धन गया कहाँ ! जिस पर ऐश कर रहे हैं नेता जी !

 

Thursday, 17 September 2015

बिहार के सियासी घमासान में शिवसेना भी दिखाएगी दम, 50 सीटों पर लड़ने की तैयारी -एक खबर 
   किंतु यदि हार गई शिव सेना तो मुंबई फिर भगाए जाएँगे बिहारी !क्या ये सच है !


सीट बंटवारे से नाराज हैं मांझी, मनाने में जुटी

 बीजेपी!-एक खबर 

       किंतु माँझी क्या यहाँ भी चाह रहे हैं जातिगत आरक्षण ! कहीं ऐसा तो नहीं महादलित का मतलब सबसे ज्यादा सीटें !

चपरासी की नौकरी के लिए पीएचडी वाले भी क़तार में - आखिर क्यों ?

 घूस और सोर्स के बल पर योग्य लोगों का रास्ता रोक कर खड़े हो जाते हैं अयोग्य लोग !जब  पीएचडी  वालों की नौकरियाँ खा जाते हैं चपरासी होने लायक लोग !   तब पीएचडी वालों को खड़ा होना पड़ता है चपरासी की नौकरी वालों की कतार में !
     आज शिक्षा की हालत इतनी खराब है कि जो शिक्षक जिन कक्षाओं में पढ़ाते हैं उन्हीं कक्षाओं की परीक्षाओं में यदि बैठा दिया जाए उन्हें तो कितने लोग पास हो पाएँगे कहना अत्यंत कठिन है ! 
   जिन पढ़े लिखे ईमानदार लोगों के पास पैसा नहीं होता है सोर्स नहीं होता है छल छद्म नहीं होता है इस भ्रष्टाचार के युग में उन्हें कौन देता है नौकरी !और यदि हुए भी तो कितने लोग सलेक्ट हो पाते हैं !
    दूसरी ओर जो लोग पढ़े नहीं हैं किंतु चालाक हैं और पैसे खर्च करने  की क्षमता है वो  प्रोफेसरों के द्वारा अलाट किए जा रहे पीएचडी से लेकर लेच्चरसिप तक का पैकेज ले लेते हैं और तयशुदा अमाउंट कुछ पहले दे देते हैं कुछ नौकरी लगने के बाद अथवा साल भर की सैलरी देने की बात तय कर ली जाती है ऐसे पीएचडी से लेकर नौकरी दिलाने तक का ठेका उठ  जाता है इसके बाद सारी  जिम्मेदारी उस प्रोफेसर के कन्धों पर होती है ऐसी थीसिस प्रोफेसर लोग विद्वान छात्रों को कुछ पैसे देकर   भाड़े पर लिखवा लिया करते हैं  और वायवा से लेकर नौकरी के इंटरव्यू में जो इक्जामनर आएगा वो सब पूर्व नियोजित होता है । प्रोफेसर साहब उसी सब्जेक्ट के होने के कारण जो इक्जामनर आएगा वो उनका परिचित होगा ही !
     ऐसे जुगाड़ से लिखवा ली जाती है थीसिस और पास भी करवा ली जाती है और हाथ में आ जाती है डॉक्टरेड की उपाधि !ऐसे ही जुगाड़ों से लग जाती हैं नौकरियाँ भी वही बनते हैं भविष्य में प्रोफेसर ! जिनमें शर्म लिहाज होती है वे नौकरी लगने के बाद ही गाइड वाइड से कुछ पढ़ व कर धीरे धीरे थोड़ा बहुत कुछ पढ़ा लेने लगते हैं !और कुछ नहीं भी पढ़ा लेते हैं तो भी सैलरी कहाँ मारी जाती है उनकी और पूछने कौन आता है उनसे कि तुम पढ़ा लेते हो या नहीं !वैसे भी यदि वो नहीं भी पढ़ा पते हैं तो उससे सरकारों में सम्मिलित लोगों का क्या नुक्सान होता है नुक्सान तो बेचारे उन विद्यार्थियों का होता है जो उन लोगों का कुछ बिगाड़ नहीं सकते !धन्य है हमारे देश के सरकारी काम काज की सरकारी प्रक्रिया !

Wednesday, 16 September 2015

डेंगू फैलाने वाले निगम या सरकारी कर्मचारियों की आत्मा जगाए बिना कैसे रुके डेंगू किंतु इन निष्प्राण लोगों को जगाएगा कौन !

  सरकारी कर्मचारियों और डेंगू मच्छरों की मिली भगत से फैलता है डेंगू !
   EDMC  हो या दिल्ली सरकार  डेंगू मच्छरों का धूम धाम से स्वागत कर रही है अबकी बार !अभी तक मच्छर भगाने वाली दवा या फागिंग की जरूरत नहीं समझी गई !सोचते होंगे कि बेकार में  डेंगू मच्छरों से क्यों बिगाड़े जाएँ अपने सम्बन्ध !वो जनता के लिए जिससे अपना कोई लेना देना ही नहीं है !अब जब मौतों का सिलसिला शुरू हुआ है तब सरकार भी कुछ हिली डुली है दिल्ली के मालिक लोग कुछ बेड वेड  मँगवाने का बिचार बना रहे हैं तब तक शर्दी आ ही जाएगी !
    "मनीष सिसोदिया जी ने स्वास्थ्य अधिकारियों को भी निर्देश दिया कि वे उन स्कूलों का चालान काटें जहां मच्छर प्रजनन या पानी का जमाव मिले"किंतु गन्दगी का कारण यदि चालान करने वाले सरकारी लोग ही हों तो उनका चालान कौन करे !बारे सिसोदिया जी !आप ही बताओ कि अपराध करने वाला अपराधी होता है या अपराधी की मदद करने वाला ! क्योंकि कोई अपराधी अपने संरक्षक के बल पर ही अपराध करता है तो बड़ा अपराधी कौन हुआ ! 
     डेंगू रोकने के लिए सरकार और निगम कुछ करना भी चाहता है या मात्र कुछ करते दिखना चाहता है डेंगू के नाम पर मच्छर बता बता कर समाज को डरा धमका कर समय पास करना चाहता है या केवल विज्ञापन करना चाहता है ! डेंगू  का जितना हो हल्ला मचा हुआ है क्या सरकार या निगम उसके प्रति गंभीर भी हैं !
       चौराहों पर रेड़ी वाले फल और सब्जी बेचते हैं सारा कूड़ा नाली में डालते हैं नालियाँ  जाम होती हैं पानी भरता है रोडों पर आ जाता है ! इसे जनता कैसे रोके ?
     आज सब्जी वालों से मैंने पूछा कि यहाँ रेड़ी किससे  पूछ कर खड़ी करते हो तो उसने कहा पुलिस वाला रोज बीस रुपए लेता है रेड़ी खड़ी करने के ! निगम वाले रोज 25 रुपए लेते हैं और सफाई वाला रोज पाँच  रुपए लेता है प्रत्येक रेड़ी वाले से ! अब ये रेड़ीवाला तो अपने हिसाब से कानूनी हो गया किंतु जो कानून बेचते हैं उनको क्या माना जाए ?
       दिल्ली कृष्णानगर में एक बिल्डिंग है जिसमें 16 फ्लैट हैं सोलहो बिक चुके हैं और छत सामूहिक है जहाँ बत्ती चले जाने पर लोग अपने बच्चों को लेकर खुले में बैठ जाया करते थे कभी कपड़े सुखा लिया करते थे कभी धूप सेक लिया करते थे वहीँ पर पानी की टंकियाँ लगी हुई हैं !जिनके ढक्कन अक्सर बन्दर फ़ेंक जाते हैं !उन्हें ठीक कर लिया करते थे इसी बीच कुछ शरारती तत्वों की नजर छत पर पड़ी उन्होंने EDMC में  अपनी पहचान बनाई और EDMC के भिखारी अफसरों को रुपए ले देकर छत में मोबाइल कम्पनी का टावर लगा दिया गया ! जिसका किराया जो खा रहा है उसका बिल्डिंग से कोई लेना देना नहीं है । अब टावर के नाम पर उनके कर्मचारी छत पर कभी भी चढ़ जाते हैं जिन्हें रोका  नहीं जा सकता कभी कोई आपराधिक वारदात हो सकती है जो बिल्डिंग में रहने वालों को भुगतनी पड़ेगी !पुलिस से कहो तो वो कहते हैं कि EDMC से कहो और EDMC पुलिस पर डालती है किंतु टावर हटाने के लिए दिए गए सैकड़ों एप्लीकेशन कहीं धूल चाट रहे होंगे !और तो और छत की चाभी भी उन्हीं लोगों के पास रहती है !आज पानी की टंकियों में ढक्कन हैं या नहीं वो साफ हैं या गंदी अगर बिल्डिंग वाले देखना भी चाहें तो कैसे देखें !डेंगू हो तो हो ! EDMC की बला से !
       दिल्ली कृष्णानगर में ही EDMC की डिस्पेंसरी है जहाँ  पैसे दो तो दवा देंगे अन्यथा चाचा नेहरू जाने को कह देंगे ये समझ में नहीं आता  है कि लाखों रूपयों  की सैलरी लेने वाले EDMC की डिस्पेंसरी के डाक्टर क्या केवल चाचा नेहरू अस्पताल का पता बताने के लिए ही बैठाए गए हैं !और यदि यही करना है तो सरकार दवाओं के फ्री वितरण का ड्रामा क्यों कर रही है !ऐसे कामचोर लोग क्या डेंगू नियंत्रण में सहायक नहीं हो सकते हैं किंतु सरकार सोचे तब न !और सरकार क्यों सोचे उनका अपना क्या नुक्सान है !आम जनता क्या करे !मनीष सिसोदिया इनसे कह रहे हैं कहीं पानी भरा तो चालान करो किंतु गन्दगी का कारण यदि चालान करने वाले लोग ही हों तो इनका चालान कौन करे !पढ़ें आप भी …http://samayvigyan.blogspot.in/2015/09/edmc.html
    



  

Tuesday, 15 September 2015

http://khabar.ibnlive.com/blogs/dr-praveen/a-blog-on-debate-gets-violent-written-by-anchor-dr-praveen-tiwari-409113.html

EDMC की डिस्पेंसरी में पैसे दो तो दवाई मिले अन्यथा चले जाओ चाचा नेहरू में ये कहना है यहाँ के डॉक्टरों का !

 जनता को जलील करने वाले ऐसे लोगों का जनता आखिर क्या कर ले !कहाँ से लावे इतने कैमरे और कैसे टेप करे इनकी हरकतें !फिर सुनावे किसे !फिर ऐसे लोगों के कहर से बचे कैसे !आमआदमी को तो सब कुछ सोचना पड़ता है । सरकार का निगरानी तंत्र बिलकुल फेल है और जनता की कहीं सुनी नहीं जाती ,दावे कोई कितने भी क्यों न करे !
     जनता की सेवा के लिए बने जिन सरकारी विभागों से जनता ही संतुष्ट नहीं हैं उन्हें बंद क्यों नहीं कर दिया जाता ऐसे अधिकारियों कर्मचारियों की हमेंशा हमेंशा के लिए छुट्टी क्यों नहीं कर दी जाती है !जिससे ऐसे लोगों से काम लेने के लिए जनता का उत्साह बढ़े !
    जब दिल्ली में EDMC की डिस्पेंसरियों में स्वास्थ्य सेवाओं का इतना बुरा हाल है तो सुदूर गाँवों में क्या बीतती होगी मरीजों पर !
     जब  सरकारी कर्मचारियों से काम लेना सरकार के बश में ही नहीं है तो सरकार क्यों बढ़ाती जा रही है उनकी सैलरी !आखिर सैलरी भी तो जनता के पैसों से दी जाती है तो ये लोग जनता के कामों में क्यों करते हैं मक्कारी ?
    जनता को काम लेना पड़ता है और जनता की बात वो लोग सुनते नहीं हैं ऐसे लोगों को ठीक करने के अधिकार जनता को क्यों नहीं दिए जाते अन्यथा बंद कर दिए जाएँ ऐसे विभाग जो काम न करने के लिए या फिर  घूस लेकर काम करने वाले लोगों को सैलरी देने के लिए बदनाम हों !ऐसे लोगों पर गुस्सा होकर भी जनता क्या बिगाड़ लेगी उनका !
    सरकार का ऐसा कौन सा विभाग या हेल्प लाइन नंबर है जिसमें जनता की समस्याएँ सीधे सुनी जाती हों और दोषियों पर कार्यवाही भी की जाती हो !
    सरकारी डिस्पेंसरियों में भी इतना भ्रष्टाचार !
   बंधुओ ! हमारी दोनों बेटियाँ सरकारी स्कूलों में पढ़ती हैं एक पूर्वी दिल्ली नगर निगम का है तो दूसरा दिल्ली सरकार का है !एक कक्षा 5 में है तो दूसरी कक्षा 6 में है । हमारी दोनों बेटियों के पैर गाँठों के पास से अचानक बाहर की ओर तेजी से मुड़ने लगे ! हम लोग घबरा गए और स्कूल वालों के कहने पर स्कूल में ही चलने वाली नगर निगम की डिस्पेंसरी में ले जाकर बच्चों को दिखाया जो केंद्रीय मंत्री डॉ.हर्ष बर्धन के क्लीनिक के सामने चलती है । जहाँ डॉ.अजय ने सारी रिपोर्टें देखीं और इसे बिटामिन 'डी' की कमी से होने वाली बीमारी बताया जिससे बचाव के लिए उन्होंने Calton  D Fort और calcitas अपनी डिस्पेंसरी से दिलवाए और इसे बिना नागा तीन महीने तक लगातार  खिलाने के लिए कहा और बोले कि जब ख़त्म हो जाए तब यहीं से ले जाना किंतु खिलाते रहना हमने कहा ठीक है ।
    उनके बगल के कमरे में जो सज्जन दवा दे रहे थे  उन्होंने 200 रुपए माँगे और साफ कहा कि ये सबको देने होते हैं ऐसा डॉक्टर साहब का आदेश है मैंने कहा किंतु यहाँ तो दवाएँ फ्री मिलती हैं इस पर उसने कहा कि ऐसा नहीं है जब मैं डॉक्टर साहब के पास कहने जाने लगा तो उन्होंने हमें यह कहते हुए मना कर दिया कि आज आप पैसे मत दो और ले जाओ !यह सुनकर मैं चला आया ! जब दवा ख़त्म हुई तो मैंने मार्केट में ट्राई किया तो सेम स्पेलिंग की दवा नहीं मिली अंत में फिर डिस्पेंसरी गया वहाँ डॉ अजय मिले जिन्होंने पहले देखा था किंतु आज वो नाराज थे (संभवतः 200रुपए न देने के कारण) उन्होंने बात भी ठीक से नहीं की और हमसे कहा कि आप चाचा नेहरू में जाकर दिखा लो वहीँ मिल सकती हैं तुम्हें मुफ्त दवाएँ  ! 
    मैंने कहा वहाँ लाइन बहुत लम्बी होती है इतनी जल्दी दवा नहीं मिल पाएगी और आपने तो कहा था कि ये दवा तीन महीने लगातार चलनी है नागा  मत करना जबकि हमारे पास अब दवा बिलकुल नहीं है नागा  हो जाएगा ये दवा बाजार में मिल भी नहीं रही है तो उन्होंने कहा इसके लिए मैं क्या करूँ ! तो मैंने कहा आप इसकी जगह कोई दूसरी दवा लिख दो जो बाजार में मिल जाए ! ऐसा मैंने उनसे विशेष निवेदन किया तो उन्होंने कहा ये दवा बच्चों के लिए विशेष हार्मफुल है इसलिए हम नहीं दे सकते !आप बारह बजे आकर डॉक्टर रत्नाकर से बात करो !जबकि डॉक्टर रत्नाकर उस समय भी उन्हीं के साथ बैठे थे बातें चल रही थीं इसलिए मुझे दोपहर में बुलाया गया था !खैर ,मैं डॉक्टर रत्नाकर के पास बारह बजे गया तो वो कुर्सी पर बैठे सो रहे थे मैंने जैसे ही बुलाया तो वो झल्ला उठे और हमें डाँटते हुए उन्होंने कहा कि सुबह जब तुमसे कह दिया गया था कि चाचा नेहरू जाओ तो फिर चले आए हमारा शिर खाने !यहाँ कोई दवा नहीं है आप यहाँ से निकल जाओ !आदि आदि !!
   इस पर डॉक्टर अजय एवं स्टॉप ने भी उन्हीं का साथ दिया हम अपनी बेटी का हाथ पकड़े अपमानित निराश एवं किंकर्तव्य विमूढ़ होकर वापस लौट आए !रास्ते में लँगड़ाती हुई हमारी बिटिया हमसे बार बार पूछ रही थी कि पापा अब क्या करोगे !हमारा पैर अब ठीक नहीं होगा क्या ?तो मैंने कहा कि बेटा प्राइवेट में चलकर दिखाएँगे तुम क्यों परेशान  हो और मैंने प्राइवेट में दिखाया जहाँ का इलाज अभी भी चल रहा है ! 
        हमारे प्रश्नों का उत्तर कौन देगा ?   
  • आखिर हमसे दो सौ रुपए क्यों माँगे गए थे जबकि  दवाएँ सरकारी तौर पर निशुल्क देने की योजना है ? 
  •  डॉक्टर हमें चाचा नेहरू  भेजने की जिद क्यों कर रहे थे क्या वे इतने अयोग्य हैं कि उन्हें बिटामिन डी और कैल्शियम की गोलियाँ  भी देने की जानकारी नहीं है !और यदि हाँ तो ऐसे अयोग्य डाक्टरों एवं असक्षम डिस्पेंसरियों पर करोड़ों रुपए क्यों बर्बाद किए जा रहे हैं और ऐसे अयोग्य एवं अकर्मण्य डाक्टरों को क्यों दी जा रही है लाखों रुपए की सैलरी ? 
  • डॉक्टर अजय एक सप्ताह तक बच्चों को दवा खिलाने के बाद ऐसा क्यों कह रहे थे कि ये बच्चों के लिए विशेष हार्मफुल है और यदि ऐसा था तो उन्होंने चिकित्सा प्रारम्भ ही क्यों की थी ? 
  • डिस्पेंसरी से हमें भगाने का अधिकार इन्हें किसने दिया है ?और उनके इसी व्यवहार का परिणाम है कि डिस्पेंसरी सूनी पड़ी रहती है आखिर ऐसे डॉक्टरों के पास लोग आकर क्या करें ! 
  •  महिलाओं की चिकित्सा का भी यही हाल है उनकी बीमारी आरामी पर तो ध्यान होता नहीं है अपितु उनका आपरेशन करने में पूरी ऊर्जा लगाई जा रही होती है ! 
  •  EDMC की ऐसी डिस्पेंसरियों पर जनता की कमाई के करोड़ों रुपए क्यों बर्बाद किए जाते हैं जहाँ जनसेवाओं को बोझ समझा जाता हो ! 
  •  यदि यहाँ कुछ जिम्मेदारी भी निभाई जाती होती तो आस पास तक के लोगों को आखिर क्यों नहीं पता होता है कि यहाँ कोई डिस्पेंसरी भी चलती  है । 
  • यहाँ के अफसरों की क्यों नहीं है कोई जिम्मेदारी कि वो देखें तो सही कि आखिर ये लोग करते क्या हैं कभी कभी किसी स्कूल में चक्कर मार आए  बस !केवल खाना पूर्ति के लिए रखे गए हैं ये !आश्चर्य !जनता के पैसे की इतनी बर्बादी !और नहीं है कोई देखने वाला !क्या हुआ बेकार में केजरीवाल और मोदी जी जैसे कर्मठ लोगों को लेन का लाभ यदि वो सरकारी विभागों की मक्कारी ही नहीं दूर कर सके !तब तो कांग्रेस क्या बुरी थी !





Friday, 11 September 2015

EDMC की डिस्पेंसरियों में स्वास्थ्य सेवाओं का इतना बुरा हाल और नहीं है कोई देखने वाला !

  जनता की सेवा के लिए बने जिन सरकारी विभागों से जनता ही संतुष्ट नहीं हैं उन्हें बंद क्यों नहीं कर दिया जाता ऐसे अधिकारीयों कर्मचारियों की हमेंशा हमेंशा के लिए छुट्टी क्यों नहीं कर दी जाती है !जिससे ऐसे लोगों से काम लेने के लिए जनता का उत्साह बढ़े !
     पूर्वी दिल्ली कीEDMC की डिस्पेंसरियों में स्वास्थ्य सेवाओं का इतना बुरा हाल है तो सुदूर गाँवों में क्या बीतती होगी मरीजों पर !
     जब  सरकारी कर्मचारियों से काम लेना सरकार के बश में ही नहीं है तो सरकार क्यों बढ़ाती जा रही है उनकी सैलरी !आखिर सैलरी भी तो जनता के पैसों से दी जाती है तो ये लोग जनता के कामों में क्यों करते हैं मक्कारी ?
    जनता को काम लेना पड़ता है और जनता की बात वो लोग सुनते नहीं हैं ऐसे लोगों को ठीक करने के अधिकार जनता को क्यों नहीं दिए जाते अन्यथा बंद कर दिए जाएँ ऐसे विभाग जो काम न करने के लिए या फिर  घूस लेकर काम करने वाले लोगों को सैलरी देने के लिए बदनाम हों !ऐसे लोगों पर गुस्सा होकर भी जनता क्या बिगाड़ लेगी उनका !
    सरकार का ऐसा कौन सा विभाग या हेल्प लाइन नंबर है जिसमें जनता की समस्याएँ सीधे सुनी जाती हों और दोषियों पर कार्यवाही भी की जाती हो !
    सरकारी डिस्पेंसरियों में भी इतना भ्रष्टाचार !
   बंधुओ ! हमारी दोनों बेटियाँ सरकारी स्कूलों में पढ़ती हैं एक पूर्वी दिल्ली नगर निगम का है तो दूसरा दिल्ली सरकार का है !एक कक्षा 5 में है तो दूसरी कक्षा 6 में है । हमारी दोनों बेटियों के पैर गाँठों के पास से अचानक बाहर की ओर तेजी से मुड़ने लगे ! हम लोग घबरा गए और स्कूल वालों के कहने पर स्कूल में ही चलने वाली नगर निगम की डिस्पेंसरी में ले जाकर बच्चों को दिखाया जो केंद्रीय मंत्री डॉ.हर्ष बर्धन के क्लीनिक के सामने चलती है । जहाँ डॉ.अजय ने सारी रिपोर्टें देखीं और इसे बिटामिन 'डी' की कमी से होने वाली बीमारी बताया जिससे बचाव के लिए उन्होंने Calton  D Fort और calcitas अपनी डिस्पेंसरी से दिलवाए और इसे बिना नागा तीन महीने तक लगातार  खिलाने के लिए कहा और बोले कि जब ख़त्म हो जाए तब यहीं से ले जाना किंतु खिलाते रहना हमने कहा ठीक है ।
    उनके बगल के कमरे में जो सज्जन दवा दे रहे थे  उन्होंने 200 रुपए माँगे और साफ कहा कि ये सबको देने होते हैं ऐसा डॉक्टर साहब का आदेश है मैंने कहा किंतु यहाँ तो दवाएँ फ्री मिलती हैं इस पर उसने कहा कि ऐसा नहीं है जब मैं डॉक्टर साहब के पास कहने जाने लगा तो उन्होंने हमें यह कहते हुए मना कर दिया कि आज आप पैसे मत दो और ले जाओ !यह सुनकर मैं चला आया ! जब दवा ख़त्म हुई तो मैंने मार्केट में ट्राई किया तो सेम स्पेलिंग की दवा नहीं मिली अंत में फिर डिस्पेंसरी गया वहाँ डॉ अजय मिले जिन्होंने पहले देखा था किंतु आज वो नाराज थे (संभवतः 200रुपए न देने के कारण) उन्होंने बात भी ठीक से नहीं की और हमसे कहा कि आप चाचा नेहरू में जाकर दिखा लो वहीँ मिल सकती हैं तुम्हें मुफ्त दवाएँ  ! 
    मैंने कहा वहाँ लाइन बहुत लम्बी होती है इतनी जल्दी दवा नहीं मिल पाएगी और आपने तो कहा था कि ये दवा तीन महीने लगातार चलनी है नागा  मत करना जबकि हमारे पास अब दवा बिलकुल नहीं है नागा  हो जाएगा ये दवा बाजार में मिल भी नहीं रही है तो उन्होंने कहा इसके लिए मैं क्या करूँ ! तो मैंने कहा आप इसकी जगह कोई दूसरी दवा लिख दो जो बाजार में मिल जाए ! ऐसा मैंने उनसे विशेष निवेदन किया तो उन्होंने कहा ये दवा बच्चों के लिए विशेष हार्मफुल है इसलिए हम नहीं दे सकते !आप बारह बजे आकर डॉक्टर रत्नाकर से बात करो !जबकि डॉक्टर रत्नाकर उस समय भी उन्हीं के साथ बैठे थे बातें चल रही थीं इसलिए मुझे दोपहर में बुलाया गया था !खैर ,मैं डॉक्टर रत्नाकर के पास बारह बजे गया तो वो कुर्सी पर बैठे सो रहे थे मैंने जैसे ही बुलाया तो वो झल्ला उठे और हमें डाँटते हुए उन्होंने कहा कि सुबह जब तुमसे कह दिया गया था कि चाचा नेहरू जाओ तो फिर चले आए हमारा शिर खाने !यहाँ कोई दवा नहीं है आप यहाँ से निकल जाओ !आदि आदि !!
   इस पर डॉक्टर अजय एवं स्टॉप ने भी उन्हीं का साथ दिया हम अपनी बेटी का हाथ पकड़े अपमानित निराश एवं किंकर्तव्य विमूढ़ होकर वापस लौट आए !रास्ते में लँगड़ाती हुई हमारी बिटिया हमसे बार बार पूछ रही थी कि पापा अब क्या करोगे !हमारा पैर अब ठीक नहीं होगा क्या ?तो मैंने कहा कि बेटा प्राइवेट में चलकर दिखाएँगे तुम क्यों परेशान  हो और मैंने प्राइवेट में दिखाया जहाँ का इलाज अभी भी चल रहा है ! 
        हमारे प्रश्नों का उत्तर कौन देगा ?   
  • आखिर हमसे दो सौ रुपए क्यों माँगे गए थे जबकि  दवाएँ सरकारी तौर पर निशुल्क देने की योजना है ? 
  •  डॉक्टर हमें चाचा नेहरू  भेजने की जिद क्यों कर रहे थे क्या वे इतने अयोग्य हैं कि उन्हें बिटामिन डी और कैल्शियम की गोलियाँ  भी देने की जानकारी नहीं है !और यदि हाँ तो ऐसे अयोग्य डाक्टरों एवं असक्षम डिस्पेंसरियों पर करोड़ों रुपए क्यों बर्बाद किए जा रहे हैं और ऐसे अयोग्य एवं अकर्मण्य डाक्टरों को क्यों दी जा रही है लाखों रुपए की सैलरी ? 
  • डॉक्टर अजय एक सप्ताह तक बच्चों को दवा खिलाने के बाद ऐसा क्यों कह रहे थे कि ये बच्चों के लिए विशेष हार्मफुल है और यदि ऐसा था तो उन्होंने चिकित्सा प्रारम्भ ही क्यों की थी ? 
  • डिस्पेंसरी से हमें भगाने का अधिकार इन्हें किसने दिया है ?और उनके इसी व्यवहार का परिणाम है कि डिस्पेंसरी सूनी पड़ी रहती है आखिर ऐसे डॉक्टरों के पास लोग आकर क्या करें ! 
  •  महिलाओं की चिकित्सा का भी यही हाल है उनकी बीमारी आरामी पर तो ध्यान होता नहीं है अपितु उनका आपरेशन करने में पूरी ऊर्जा लगाई जा रही होती है ! 
  •  EDMC की ऐसी डिस्पेंसरियों पर जनता की कमाई के करोड़ों रुपए क्यों बर्बाद किए जाते हैं जहाँ जनसेवाओं को बोझ समझा जाता हो ! 
  •  यदि यहाँ कुछ जिम्मेदारी भी निभाई जाती होती तो आस पास तक के लोगों को आखिर क्यों नहीं पता होता है कि यहाँ कोई डिस्पेंसरी भी चलती  है । 
  • यहाँ के अफसरों की क्यों नहीं है कोई जिम्मेदारी कि वो देखें तो सही कि आखिर ये लोग करते क्या हैं कभी कभी किसी स्कूल में चक्कर मार आए  बस !केवल खाना पूर्ति के लिए रखे गए हैं ये !आश्चर्य !जनता के पैसे की इतनी बर्बादी !और नहीं है कोई देखने वाला !क्या हुआ बेकार में केजरीवाल और मोदी जी जैसे कर्मठ लोगों को लेन का लाभ यदि वो सरकारी विभागों की मक्कारी ही नहीं दूर कर सके !तब तो कांग्रेस क्या बुरी थी !





Sunday, 6 September 2015

संघ मुख्यालय में है मोदी सरकार का ‘रिमोट कंट्रोल’: मायावती -एक खबर

संघ मुख्यालय में है मोदी सरकार का ‘रिमोट कंट्रोल’: मायावती -एक खबर
    किंतु ये तो अच्छी बात है सरकार पर लगाम लगाने वाला कम से कम कोई तो है अन्यथा जो पार्टियाँ वन मैं शो बन कर चलती हैं वो अगर सरकार में आकर भ्रष्टाचार करती हैं तो उन्हें कौन रोके ! हो न हो यहाँ संघ संस्कारों का ही असर हो कि सरकार चलते सवा साल हो गए किन्तु सवा रूपए के भ्रष्टाचार का भी आरोप कोई नहीं लगा सका ! 


मुलायम ने मंच पर की अखिलेश की खिंचाई -एक खबर 

    किंतु घर में बैठकर बेटे को अपने अनुभव सिखाने समझाने में डर लगता है क्या ? या अखिलेश सुनते नहीं हैं इसलिए उन्हें  समाज में शर्मिंदा किया जाता है !अन्यथा ये अफवाहें तो अक्सर उड़ा करती हैं कि नेता जी अखिलेश सरकार के काम काज से संतुष्ट नहीं हैं किंतु बार बार समझाने पर भी यदि समझ में बात नहीं आती है तो  मुख्यमंत्री तो बदला भी जा सकता है आखिर सरकार में सम्मिलित दो दो अनुज पार्टी के और किस काम आएँगे !

Thursday, 3 September 2015

जीवित विचारों

जो जीवित विचारों वाले सजीव लोग सरकारों से जातिगत आरक्षण या अन्य सुविधाएँ नहीं चाहते हैं मेहनत करके कमा खा सकते हैं ऐसे हर ईमानदार देशवासी को नेताओं के स्वेच्छाचार का विरोध करना चाहिए !