Thursday, 17 September 2015

चपरासी की नौकरी के लिए पीएचडी वाले भी क़तार में - आखिर क्यों ?

 घूस और सोर्स के बल पर योग्य लोगों का रास्ता रोक कर खड़े हो जाते हैं अयोग्य लोग !जब  पीएचडी  वालों की नौकरियाँ खा जाते हैं चपरासी होने लायक लोग !   तब पीएचडी वालों को खड़ा होना पड़ता है चपरासी की नौकरी वालों की कतार में !
     आज शिक्षा की हालत इतनी खराब है कि जो शिक्षक जिन कक्षाओं में पढ़ाते हैं उन्हीं कक्षाओं की परीक्षाओं में यदि बैठा दिया जाए उन्हें तो कितने लोग पास हो पाएँगे कहना अत्यंत कठिन है ! 
   जिन पढ़े लिखे ईमानदार लोगों के पास पैसा नहीं होता है सोर्स नहीं होता है छल छद्म नहीं होता है इस भ्रष्टाचार के युग में उन्हें कौन देता है नौकरी !और यदि हुए भी तो कितने लोग सलेक्ट हो पाते हैं !
    दूसरी ओर जो लोग पढ़े नहीं हैं किंतु चालाक हैं और पैसे खर्च करने  की क्षमता है वो  प्रोफेसरों के द्वारा अलाट किए जा रहे पीएचडी से लेकर लेच्चरसिप तक का पैकेज ले लेते हैं और तयशुदा अमाउंट कुछ पहले दे देते हैं कुछ नौकरी लगने के बाद अथवा साल भर की सैलरी देने की बात तय कर ली जाती है ऐसे पीएचडी से लेकर नौकरी दिलाने तक का ठेका उठ  जाता है इसके बाद सारी  जिम्मेदारी उस प्रोफेसर के कन्धों पर होती है ऐसी थीसिस प्रोफेसर लोग विद्वान छात्रों को कुछ पैसे देकर   भाड़े पर लिखवा लिया करते हैं  और वायवा से लेकर नौकरी के इंटरव्यू में जो इक्जामनर आएगा वो सब पूर्व नियोजित होता है । प्रोफेसर साहब उसी सब्जेक्ट के होने के कारण जो इक्जामनर आएगा वो उनका परिचित होगा ही !
     ऐसे जुगाड़ से लिखवा ली जाती है थीसिस और पास भी करवा ली जाती है और हाथ में आ जाती है डॉक्टरेड की उपाधि !ऐसे ही जुगाड़ों से लग जाती हैं नौकरियाँ भी वही बनते हैं भविष्य में प्रोफेसर ! जिनमें शर्म लिहाज होती है वे नौकरी लगने के बाद ही गाइड वाइड से कुछ पढ़ व कर धीरे धीरे थोड़ा बहुत कुछ पढ़ा लेने लगते हैं !और कुछ नहीं भी पढ़ा लेते हैं तो भी सैलरी कहाँ मारी जाती है उनकी और पूछने कौन आता है उनसे कि तुम पढ़ा लेते हो या नहीं !वैसे भी यदि वो नहीं भी पढ़ा पते हैं तो उससे सरकारों में सम्मिलित लोगों का क्या नुक्सान होता है नुक्सान तो बेचारे उन विद्यार्थियों का होता है जो उन लोगों का कुछ बिगाड़ नहीं सकते !धन्य है हमारे देश के सरकारी काम काज की सरकारी प्रक्रिया !

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