Wednesday, 16 September 2015

डेंगू फैलाने वाले निगम या सरकारी कर्मचारियों की आत्मा जगाए बिना कैसे रुके डेंगू किंतु इन निष्प्राण लोगों को जगाएगा कौन !

  सरकारी कर्मचारियों और डेंगू मच्छरों की मिली भगत से फैलता है डेंगू !
   EDMC  हो या दिल्ली सरकार  डेंगू मच्छरों का धूम धाम से स्वागत कर रही है अबकी बार !अभी तक मच्छर भगाने वाली दवा या फागिंग की जरूरत नहीं समझी गई !सोचते होंगे कि बेकार में  डेंगू मच्छरों से क्यों बिगाड़े जाएँ अपने सम्बन्ध !वो जनता के लिए जिससे अपना कोई लेना देना ही नहीं है !अब जब मौतों का सिलसिला शुरू हुआ है तब सरकार भी कुछ हिली डुली है दिल्ली के मालिक लोग कुछ बेड वेड  मँगवाने का बिचार बना रहे हैं तब तक शर्दी आ ही जाएगी !
    "मनीष सिसोदिया जी ने स्वास्थ्य अधिकारियों को भी निर्देश दिया कि वे उन स्कूलों का चालान काटें जहां मच्छर प्रजनन या पानी का जमाव मिले"किंतु गन्दगी का कारण यदि चालान करने वाले सरकारी लोग ही हों तो उनका चालान कौन करे !बारे सिसोदिया जी !आप ही बताओ कि अपराध करने वाला अपराधी होता है या अपराधी की मदद करने वाला ! क्योंकि कोई अपराधी अपने संरक्षक के बल पर ही अपराध करता है तो बड़ा अपराधी कौन हुआ ! 
     डेंगू रोकने के लिए सरकार और निगम कुछ करना भी चाहता है या मात्र कुछ करते दिखना चाहता है डेंगू के नाम पर मच्छर बता बता कर समाज को डरा धमका कर समय पास करना चाहता है या केवल विज्ञापन करना चाहता है ! डेंगू  का जितना हो हल्ला मचा हुआ है क्या सरकार या निगम उसके प्रति गंभीर भी हैं !
       चौराहों पर रेड़ी वाले फल और सब्जी बेचते हैं सारा कूड़ा नाली में डालते हैं नालियाँ  जाम होती हैं पानी भरता है रोडों पर आ जाता है ! इसे जनता कैसे रोके ?
     आज सब्जी वालों से मैंने पूछा कि यहाँ रेड़ी किससे  पूछ कर खड़ी करते हो तो उसने कहा पुलिस वाला रोज बीस रुपए लेता है रेड़ी खड़ी करने के ! निगम वाले रोज 25 रुपए लेते हैं और सफाई वाला रोज पाँच  रुपए लेता है प्रत्येक रेड़ी वाले से ! अब ये रेड़ीवाला तो अपने हिसाब से कानूनी हो गया किंतु जो कानून बेचते हैं उनको क्या माना जाए ?
       दिल्ली कृष्णानगर में एक बिल्डिंग है जिसमें 16 फ्लैट हैं सोलहो बिक चुके हैं और छत सामूहिक है जहाँ बत्ती चले जाने पर लोग अपने बच्चों को लेकर खुले में बैठ जाया करते थे कभी कपड़े सुखा लिया करते थे कभी धूप सेक लिया करते थे वहीँ पर पानी की टंकियाँ लगी हुई हैं !जिनके ढक्कन अक्सर बन्दर फ़ेंक जाते हैं !उन्हें ठीक कर लिया करते थे इसी बीच कुछ शरारती तत्वों की नजर छत पर पड़ी उन्होंने EDMC में  अपनी पहचान बनाई और EDMC के भिखारी अफसरों को रुपए ले देकर छत में मोबाइल कम्पनी का टावर लगा दिया गया ! जिसका किराया जो खा रहा है उसका बिल्डिंग से कोई लेना देना नहीं है । अब टावर के नाम पर उनके कर्मचारी छत पर कभी भी चढ़ जाते हैं जिन्हें रोका  नहीं जा सकता कभी कोई आपराधिक वारदात हो सकती है जो बिल्डिंग में रहने वालों को भुगतनी पड़ेगी !पुलिस से कहो तो वो कहते हैं कि EDMC से कहो और EDMC पुलिस पर डालती है किंतु टावर हटाने के लिए दिए गए सैकड़ों एप्लीकेशन कहीं धूल चाट रहे होंगे !और तो और छत की चाभी भी उन्हीं लोगों के पास रहती है !आज पानी की टंकियों में ढक्कन हैं या नहीं वो साफ हैं या गंदी अगर बिल्डिंग वाले देखना भी चाहें तो कैसे देखें !डेंगू हो तो हो ! EDMC की बला से !
       दिल्ली कृष्णानगर में ही EDMC की डिस्पेंसरी है जहाँ  पैसे दो तो दवा देंगे अन्यथा चाचा नेहरू जाने को कह देंगे ये समझ में नहीं आता  है कि लाखों रूपयों  की सैलरी लेने वाले EDMC की डिस्पेंसरी के डाक्टर क्या केवल चाचा नेहरू अस्पताल का पता बताने के लिए ही बैठाए गए हैं !और यदि यही करना है तो सरकार दवाओं के फ्री वितरण का ड्रामा क्यों कर रही है !ऐसे कामचोर लोग क्या डेंगू नियंत्रण में सहायक नहीं हो सकते हैं किंतु सरकार सोचे तब न !और सरकार क्यों सोचे उनका अपना क्या नुक्सान है !आम जनता क्या करे !मनीष सिसोदिया इनसे कह रहे हैं कहीं पानी भरा तो चालान करो किंतु गन्दगी का कारण यदि चालान करने वाले लोग ही हों तो इनका चालान कौन करे !पढ़ें आप भी …http://samayvigyan.blogspot.in/2015/09/edmc.html
    



  

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