Friday, 9 October 2015

सरकारी आफिसों से AC हटाओ ,बिजली बचाओ ,गाँव गरीबों के यहाँ भी कम से कम एक बल्ब और एक पंखा तो चलाओ !

हमसे कहा जाता है कि " CFL जलाओ बिजली बचाओ !" और रोड लाइटें अक्सर दिन में भी जलती रहती हैं !सरकारी आफिसों में सबसे ज्यादा फुँकती है ब्यर्थ की बिजली !

     सरकारी आफिसों में AC की क्या जरूरत और जिन्हें जरूरत है वहाँ क्यों नहीं ध्यान जाता है तुम्हारा !केवल इसीलिए कि आम जनता तुम्हारी  अपनी नहीं है !जनता से आपका कोई सम्बन्ध नहीं है ! आफिसों को आरामगाह बनाने के पीछे का उद्देश्य क्या है कि वो काम न करें आलसी हो जाएं कमरे बंद कर के बैठे रहें ताकि आम जनता उनसे मिल न सके नहीं उनकी ठंडी हवा निकल जायेगी ! ऐसे सुख सुविधाभोगी अफसरों से ये उम्मीद कैसे की जाए कि वो फील्ड पर जाकर जनता की समस्याएँ सुनेंगे जो आफिसों में ही आम आदमी से मिलना पसंद नहीं करते !आज दस पांच हजार रुपए की सैलरी देकर प्राइवेट प्राइमरी  स्कूल अच्छी शिक्षा दे लेते हैं किंतु साठ हजार सैलरी देकर सरकार नहीं पढ़वा  पाती है अपने स्कूलों में !सरकार के लगभग हर विभाग का यही हाल है क्योंकि सरकारी काम करने की किसी की जिम्मेदारी नहीं होती है नीचे से ऊपर तक हर कोई केवल जवाब तैयार रखता है कि हमसे जब कोई पूछेगा काम क्यों नहीं हो रहा है तो सरकार की कोई छोटी सी कमी बताकर बच जाएँगे ! और वैसे भी लाख पचास हजार पाने वाले सरकारी कर्मचारी काम के प्रति समर्पित  क्यों हों जब दो दो लाख रूपए सैलरी पाने वाले सुविधा भोगी उनके अधिकारी अपने अपने कमरों से नहीं निकलते हैं निकलेंगे तो एयर कंडीसण्ड गाड़ियों में ! आखिर उनके कर्मचारियों ने मक्कारी करना उन्हीं से तो सीखा है आज वो भी इतने चालाक हो गए हैं कि जब रेस्ट करना होता है तो यूनिटी बनाकर कह देते हैं कि नेट नहीं आ रहा है उनका क्या बिगाड़ लेगी आम जनता !और उन्हें किसी अधिकारी का भय ही नहीं है क्योंकि उन्हें पता होता है कि अधिकारी पहली बात तो आएँगे नहीं और आ भी गए तो कुछ पूछेंगे नहीं क्योंकि काम होने से उनका अपना कुछ बिगड़ नहीं रहा है और काम  होने से उन्हें कोई तमगा नहीं मिल जाएगा !वो कोई नेता तो हैं नहीं कि चुनाव जीतने की चिंता हो ! और यदि अधिकारी पूछ भी देगा तो कोई आफिस में चीज सामानों की कोई छोटी मोटी  कमी या फिर शर्दी जुकाम आदि कुछ भी बता दिया जाएगा वो भी हर कोई 
    ऐ भारत वर्ष के प्रतिष्ठा प्राप्त नेताओ ! कभी तुमने उन किसानों मजदूरों ग़रीबों के विषय में सोचा है क्या  जो एक दीपक जलाकर जीवन जीते हैं खर पतवार के बने घर ,छप्पर छानियों से टपक रहा पानी और पानी के भय से भयभीत सर्प बिच्छू छिप कर बैठ जाते हैं कत्थर गुद्दरी बिस्तरों में पैरों के नीचे बड़ी बड़ी घासों के बीच भगवान भरोसे चलना होता है कहीं भी डस सकता है साँप !कई बार गाँव किनारे की बढ़ी फसलों में छिपकर बैठ जाते हैं हिंसक जानवर और मौका मिलते ही घात लगाकर उठा ले जाते हैं बच्चे !

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