भाजपा ने अपने शीर्ष नेता
से उत्तराधिकार लिया है या उन्होंने दिया है !और यदि अपनी इच्छा से दिया
है तो उनकी आँखों में आँसू क्यों ? उनकी सीटों का निर्णय भी उनसे बिना पूछे लिया
जाने लगा !क्या भाजपा के बूढ़े इतने लाचार हो गए हैं कि बेचारे अपनी सीटों
का निर्णय भी स्वयं नहीं ले सकते !
भाजपा कहते ही श्री अटल जी
श्री अडवाणी जी का चित्र मानस पटल पर सहज ही उभर आता है माना जा सकता है
कि आज अटल जी का स्वास्थ्य अनुकूल नहीं है किन्तु ईश्वर कृपा से श्री
अडवाणी जी भाजपा की द्वितीय पंक्ति के नेताओं की अपेक्षा कम सक्रिय नहीं
हैं उन्होंने भाजपा को आगे बढ़ाने के लिए श्रम भी कम नहीं किया है फिर
भी यदि उन्हें उनके पदों या प्राप्त प्रतिष्ठा से हिलाया जाएगा तो भाजपा
की पहचान किसके बल पर बनेगी ?वैसे भी घरों की तरह ही दलों में भी क्रमिक
उत्तराधिकार की व्यवस्था है अच्छा होता कि उसका क्रमिक अनुपालन होता रहता
किन्तु मीडिया तक पहुँचने से अच्छा नहीं रहा !खैर ,जो भी हो किन्तु भाजपा
के हाईकमान में ऐसे कितने सदस्य हैं जिनका निजी व्यक्तित्व जनाकर्षक हो
!जबकि राजनैतिक दलों का विकास ही जनाकर्षण से जुड़ा होता है ऐसी परिस्थिति
में लोका-कर्षक नेताओं का यदि वजूद बरकार नहीं रखा जाएगा तो संगठन चलेगा
किसके बल पर ?जिसमें माननीय अडवाणी जी तो निष्कलंक ,सदाचारी एवं स्पष्ट
वक्ता हैं उन्हें अपनी कही हुई बातों की सफाई नहीं देनी पड़ती है वो इस उम्र
में भी हलकी टिप्पणियाँ कभी नहीं करते हैं उन्हें यह
नहीं कहना पड़ता है कि हमारी बात को मीडिया ने गलत छाप दिया होगा, वैसे भी
वो
अप्रमाणित बात नहीं बोलते शिथिल बात नहीं बोलते हैं सम्भवतः ऐसी ही तमाम
उनकी अच्छाइयों के कारण उनका सामाजिक राजनैतिक आदि गौरव सुरक्षित बना हुआ
है कुछ दलों के कुछ छिछोरे नेताओं को छोड़कर बाकी लोग आज भी उनका नाम बड़े
सम्मान पूर्वक ढंग से लेते हैं वैसे भी यदि हम अटल जी का सम्मान करते हैं
तो
हमें यह भी याद रखना चाहिए कि अटल जी भी उनसे स्नेह करते हैं इसलिए अडवाणी
जी की लोकप्रिय अच्छाइयाँ स्पष्ट हैं न जाने क्यों उनका गौरव सुरक्षित रखने
में
जाने अनजाने बाहर की अपेक्षा अंदर से इस उम्र में उतना गम्भीर सहयोग नहीं
मिल पा रहा है जितना मिलना चाहिए !
भाजपा
के कुछ जवानों का बर्चस्व ऐसा बना हुआ है कि उनमें से कौन कब तक किस पद पर
है ये उन्हें भी नहीं पता है किन्तु अपने स्थापित नेतृत्व को इस लालच में
हिला रहे हैं कि शायद उनकी कहीं कोई लाटरी अचानक ही लग जाए ! इसी सत्ता
लोलुपता के कारण दूसरी बाँबियों से लाकर काले कबरे मनियारे आदि बड़े बड़े
बिषैले बिषधर भाजपाई बाँबी में छोड़े जा रहे हैं जिससे कि आजकल यमुना के
काली कुंड की तरह दहकने लगी है भाजपा ।
यह स्थिति उनकी है
जिन्होंने अपनी पार्टी एवं पार्टी कार्यकर्ताओं को बहुमूल्य अपनापन दिया है
सम्पूर्ण समर्पण के साथ अपनी पार्टी को खड़ा किया है मैंने चर्चाओं में
सुना है कि श्रद्धेय अटल जी को प्रधान मंत्री पद के लिए न केवल उन्होंने
सहर्ष स्वीकार किया था अपितु उन्होंने ही उनके नाम को प्रस्तावित किया था
!उस समय अडवाणी जी की लोकप्रियता कम नहीं थी यदि उनमें पद लोलुपता होती तो
अटल जी को प्रधानमंत्री बनाकर वे प्रसन्न न हुए होते! अटल जी के
प्रधानमंत्री बनने के बाद कृतकार्यता का कितना उत्साह था उनके मुखमंडल पर
!इस युग में कहाँ पाए जाते हैं ऐसे राजनेता ! जो किसी और को कुछ बनाकर
प्रसन्न होते देखे जाते हों !उन्होंने अपने स्तर पर बंशवाद को भी बढ़ावा
नहीं दिया है !वो आंदोलन से उपजे नेता हैं अपने त्याग तपस्या संयम साधना से
देदीप्यमान व्यक्तित्व के स्वामी हैं सत्ता में रहकर भी उन पर भ्रष्टाचार
सम्बन्धी किसी प्रकार कोई आरोप नहीं लगा सका, लाखों विरोधियों की कलम कुंद
हो गई किन्तु खोज नहीं पाए कोई दाग जिनका व्यक्तित्व ही इतना निर्मल
है!विरोधी भी जिनकी प्रशंसा करते हों उस महापुरुष की आँखों के आँसू अकारण
और निरर्थक नहीं कहे जा सकते हैं और न ही इन आँसुओं के पीछे उनका कोई निजी
कारण लगता है यदि ऐसा होता तो उनकी यह पीड़ा सार्वजनिक मंचों पर प्रकट नहीं
होती जहाँ की पीड़ा है वहीँ प्रकट होगी स्वाभाविक है !अतएव इन आँसुओं की
भाषा पढ़ा जाना भाजपा की भलाई के लिए बहुत जरूरी है अभी समय है अभी बहुत कुछ
बिगड़ा नहीं है।निजी तौर पर मैं उनके तपस्वी जीवन एवं विराट व्यक्तित्व को
नमन करता हूँ और आशा करता हूँ आज की युवा पीढ़ी अटल जी एवं अडवाणी जी जैसे
राजनैतिक ऋषियों की पारदर्शी एवं कर्मठ जीवन शैली से पवित्र प्रेरणा ले !
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