Thursday, 30 June 2016

सरकारी कर्मचारियों की हड़ताल का मतलब सरकार को सीधी चुनौती हमारी माँगें मानो नहीं खोल देंगे तुम्हारे भ्रष्टाचार की पोल !

     सरकार यदि  झुक जाए तो जानो भ्रष्टाचारी न झुके तो ईमानदार !निडर सरकार यदि हड़ताली कर्मचारियों की जगह नई नियुक्तियाँ कर ले तो कर्मठ सरकार !उन्हें निकाल बाहर करे और नौकरी की तलाश में भटक रहे पढ़े लिखे बेरोजगारों को रोजगार दे तो देश भक्त सरकार ! 

        सरकारों में सम्मिलित नेताओं के भ्रष्टाचार के सारे रहस्य इन्हीं सरकारी कर्मचारियों के दिमागों में दबे हैं इसी बल पर ये सैलरी भी लेते हैं काम भी कैसे करते हैं कितना करते हैं वो इनकी आत्मा ही जानती होगी जनता को तो इनके विषय में केवल एक बात पता है घूस दोगे तो काम होगा !नहीं दोगे तो सरकारी आफिसों से कुत्तों की तरह खदेड़  दिए जाओगे !विधायकों सांसदों मंत्रियों के पास कम्प्लेन करोगे तो अपना काम बिगाड़ोगे प्रायः वे सभी लोग इन सरकारी कर्मचारियों के ही ऋणी हैं यही लोग तो उनके अन्नदाता हैं अन्यथा सरकारी सैलरी में नेताओं के घर चल पाते क्या !   
         सरकारों में सम्मिलित लोगों को सरकारी कर्मचारियो से काम करवाना नहीं आता या फिर मंत्री संत्री लोग  इन्हें काम बताकर इनकी नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते आखिर अतिरिक्त कमाई के लिए तो उन्हें भी इन्हीं पर डिपेंड रहना होता है उन्हें यदि चोर कहेंगे तो अपनी भी तो चोरी पकड़ी जाएगी सारी  पोल खोल देंगे ये ! इन्हें साड़ी बातें पता तो होती ही हैं कभी भी खोल सकते हैं भूतपूर्व गरीब नेताओं के अरबोंपति बनने के राज ! वो भी बिना किसी रोजगार व्यापार के !
      हड़ताल  सिस्टम बिलकुल बंद होना चाहिए जिसे  समझ में आवे सो नौकरी करे अन्यथा जगह खाली करें  बोझ हटे ! नई भर्ती हो नए लोगों को रोजगार मिले !सरकारी नौकरियों में खुली छूट और भारी लूट है इसी लूट खसोट के लिए तो हर किसी का सपना है सरकारी नौकरी !यदि सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार न होता और काम करना पड़ता तो कौन  माँगता सरकारी नौकरी ! 
     सरकारी प्राइमरी स्कूलों को बर्बाद करने का सारा दिमागीबारूद वहाँ के शिक्षकों और शिक्षा अधिकारियों ने लगा रखा है सरकारी स्कूलों में ! इसीलिए सरकारी स्कूलों की विश्वसनीयता दिनोंदिन दम तोड़ती जा रही है किंतु सरकारों में सम्मिलित नेता अपने बच्चे वहाँ नहीं पढ़ाते हैं प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा लेते हैं किंतु सरकारी शिक्षकों से कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ती है !ये कहेंगे तो वे इनके भ्रष्टाचार की पोल खोल देंगे !यही मंत्री लोग कौन दूध के धुले हैं !
    10 -15 हजार रूपए महीने के प्राइवेट शिक्षक एक सरकारी शिक्षक की सैलरी में 4 मिलते हैं और पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं किंतु सरकारी शिक्षकों की सारी नौटंकी सहती है सरकार ! वो हड़ताल करके ब्लैकमेल करते हैं सरकार माँगती है उनकी माँगें !हिम्मत हो तो न मानें !वो जैसा नचाते हैं सरकार वैसा नाचती है ,यदि सरकार ईमानदार होती तो शिक्षा की शर्तों पर रखती उन्हें !थोड़ी भी लापरवाही होती तो खदेड़ बाहर करती इन्हें और पढ़ाने वाले परिश्रमी शिक्षक एक एक की सैलरी में 4 -4 रख लेती किंतु डर तो ये भी है कि इन्होंने पोल खोल दिया तो ! इसलिए सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के आगे इन भ्रष्टाचारी मंत्रियों की जबान नहीं खुलती उन्हें पता है कि ये भी तो हमारे भ्रष्टाचार की पोल खोल देंगे इससे अच्छा है ही चुप रहो !
    नेता और कर्मचारी लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाते हैं क्योंकि वहाँ के शिक्षकों में वे सारे  दुर्गुण घोषित तौर पर होते हैं जो स्कूलों को बर्बाद करने के लिए जरूरी होते  हैं वो लोग इसी बात की ट्रेनिंग ले के आते हैं सारा समाज परिचित है उनके इस संकल्प से !तभी तो अपने बच्चों को कोई  नहीं पढ़ाना चाहता है सरकारी स्कूलों में । 
        हे सरकारी कर्मचारियो ! तुम चाहते तो भ्रष्टाचार मिटा सकते थे ! सैलरी भी और घूस भी पाँचों अँगुली घी में !! बारी जनसेवा !!
    गंगानदी  भगवान के चरणों से निकलती है किंतु भ्रष्टाचार की नदी अधिकारियों कर्मचारियों के आचरणों से निकलती है ! भ्रष्टाचार न रोक पाने वाले लोग किस मुख से करते हैं सैलरी बढ़ाने की बात !
        भ्रष्टाचार करने वाले सरकारी कर्मचारी ही तो हैं !कुछ भ्रष्टाचार करते हैं कुछ हिस्सा लेते हैं कुछ केवल भ्रष्टाचारी कमाई की पार्टियाँ खाते हैं कुछ घूस नहीं लेते हैं तो पता उन्हें भी सबकुछ होता है कि हमारी आफिस में सरकार का बनाया हुआ कौन सा कानून तोड़ने का रेट क्या है !और अपनी आफिस में कितने का कारोबार हो रहा है प्रतिदिन !जानते सबकुछ हैं कब कब कौन कौन कितनी कितनी कर रहा है कमाई !ऐसे सभी लोग सम्मिलित माने जाएँगे भ्रष्टाचार में !
   अरे सरकारी कर्मचारियो ! आप लोग जिम्मेदारी निभाना देश के श्रद्धेय सैनिकों से सीखिए !उन्हें जो  जिम्मेदारी सौंपी जाती है उसे पूरी करके ही लौटते हैं न कोई मजबूरी न कोई बहाना न कोई किंतु परंतु !उनके दृढ निश्चयी स्वभाव से देश के दुश्मनों के दिल थर्राते हैं हिम्मत नहीं पड़ती है भारत की ओर ताकने की !उन्हें पता है कि ये मर मिटेंगे किंतु पीछे नहीं हटेंगे !हमारे सैनिक केवल कर्मचारी ही नहीं अपितु देश के सेवक भी हैं वे सैलरी के लिए नहीं अपितु वे देश के लिए शहीद होते हैं !
      दूसरी ओर सरकारी आफिसों के अधिकारी कर्मचारी !जनता दिन दिन भर आफिसों में दौड़ते रहते हैं काम न करना पड़े इसलिए एक दूसरे का नाम और फोन नंबर बता बता कर दिन  करते हैं जनता को !अगर कोई कुछ ज्यादा टाइट पड़ा तो सब मिलकर उसका  देते हैं जो उस दिन गैरहाजिर होता है ! अब कोई क्या कर लेगा इनका !इंटरनेट नहीं आ रहा है बता कर कभी उठ जाते हैं कुर्सियाँ छोड़कर !कई बार काम के लिए आए लोगों के मुख सुबह से पनि नहीं गया होता है इनका नास्ता लंच सब कुछ हो चुका होता है फिर भी चाय पीने चले जाते हैं जनता से कहते हैं कल आना !कंप्यूटर प्रिंटर खराब बता बता कर कई कई दिन मस्ती मार लेते हैं ये !यही कारण है दस हजार रूपए पाने वाले प्राइवेट स्कूलों के शिक्षक पढ़ाते हैं और साथ हजार सैलरी लेने वाले सरकारी शिक्षक नाक कटाते हैं देश के सैनिक इतनी बेइज्जती सहने से पहले मर मिटते किंतु जिन कर्मचारियों को शर्म नहीं है उनसे क्या आशा !दस हजार रूपए पाने वालेकोरियर कर्मी ,प्राइवेट मोबाईल कंपनियों के कर्मचारी नाक काट रहे हैं साठ साठ हजार लेने वाले सरकारियों की !  
         अरे कर्मचारियो !तुम्हें धिक्कार है तुम्हारे विभागों के  भ्रष्टाचार, कामचोरी, गैरजिम्मेदारी से जनता तंग है फिर भी इतनी सारी सैलरी और फिर भी असंतोष ! सारा  भ्रष्टाचार जब सरकारी आफिसों में होता है उसे रोकने की जिम्मेदारी सरकारी लोगों की है भ्रष्ट लोगों को पकड़ने और पकड़वाने की जिम्मेदारी सरकारी लोगों की है जनता के काम करने की जिम्मेदारी सरकारी लोगों की है अपनी जिम्मेदारी निभाने में कहाँ खरे उतर पा रहे हैं सरकारी अधिकारी कर्मचारी!
    सरकार जो कानून बनाती है वो कानून सरकारी कर्मचारी बेचने  लगते हैं उनसे अपराधी खरीदते हैं और ठाठ से करते हैं अपराध ! दिन दोपहर में बीच चौराहे पर लूट लिए जाते हैं लोग  हो रहे हैं अपराध ! किए जा रहे हैं मर्डर आदि !  
भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी तो भ्रष्टाचार से कमा ही रहे हैं उन्हें सैलरी क्यों ?सरकार उनकी पहचान क्यों नहीं करती क्यों नहीं छेड़ती है कोई "भ्रष्टाचार मिटाओ अभियान!"
      सरकार जो नियम बनाती है सरकारी मशीनरी का एक बड़ा वर्ग उन्हें बेच कर पैसे कमाता  है भारी भरकम सैलरी भी उठाता है ।सरकारी निगरानी तंत्र इतना लचर या भ्रष्ट है कि नियमों कानूनों को तोड़ने जोड़ने बेचने खरीदने की मंडी बन गया  है सरकारी कामकाज !लगभग हर आफिस में अलग अलग काम के हिसाब से घूस के पैसे फिक्स हैं !भ्रष्टाचार की भारत बहुत बड़ीमंडी है !जहाँ भ्रष्ट लोग नित्यप्रति करोड़ों का कारोबार उस भ्रष्टाचार के बल पर चला रहे हैं जिसे सरकारी नियम कानून गलत मानते हैं ।जिन्हें पकड़ने की जिम्मेदारी सरकार की है ये सरकारों का फेलियर नहीं तो क्या है !फिर भी सैलरी !
  सरकारी आफिसों में भ्रष्टाचार के जन्मदाता सरकार के भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी ही तो होते हैं जिनसे गलत काम करवाकर दलाल लोग काली कमाई करने वालों से करोड़ों रूपए कमीशन कमा लेते हैं तो कल्पना कीजिए कितनी कमाई होगी उन भ्रष्ट अधिकारीकर्मचारियों की !ऊपर से हजारों लाखों की सैलरी !उसके ऊपर वेतन आयोगों की सरकारी कृपा !बारी सरकारी नौकरी !इनकी इतनी सुख सुविधाएँ और अपना इतना संघर्ष पूर्ण जीवन देखकर किसान आत्म हत्या न करें तो क्या करें !
    अपराधीलोग, गुंडेलोग और काली कमाई करने वाले धनीलोगों को इन्हीं सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से वो अघोषित  रेटलिस्ट मिलती है कि सरकार के द्वारा बनाया गया कौन सा नियम कितने पैसे में तोड़ा जा सकता है ।यही कारण  है कि अपराधियों में कानून का खौफ नहीं है । जिस अपराधी की जेब में जितना पैसा है सो कर रहा है उतना बड़ा अपराध !
     मोदी जी !  किसानों गरीबों मजदूरों का भी कोई वेतन आयोग बनाइए आखिए वे भी देश सेवा का ही काम कर रहे हैं उनकी उपेक्षा क्यों ?किसान आत्महत्या करते जा रहे हैं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाई जा रही है !दाल और टमाटर महँगे होने की चिंता तो है किंतु किसानों की रक्षा के लिए पहले उठाए जाएँ कठोर कदम !बाद में बढ़ाई जाए कर्मचारियों की सैलरी !वे सैलरी बढ़ाए बिना मरे नहीं जा रहे उन्हें आलरेडी इतना मिल रहा है पहले किसानों मजदूरों गरीबों की ओर देखिए मोदी जी !
   किसानों गरीबों मजदूरों की आमदनी की कितने गुने सैलरी होनी चाहिए सरकारी कर्मचारियों की इसकी भी कोई नीति बनाइए !एक तरफ हजारों का ठिकाना नहीं एक तरफ लाखों बढ़ाए जा रहे हैं ये कुंठा ही गरीबों के अंदर  आपराधिक प्रवृत्ति को जन्म देती है ।
   आम जनता के टैक्स दी जाने वाली सैलरी कब बढ़ाई जाए कितनी बढ़ाई जाए इसके लिए जनता से क्यों नहीं पूछा जाता जनता के बीच सर्वे क्यों नहीं कराया जाता !सारे फैसले सरकार खुद ले लेती है तभी तो सरकारी आफिसों के लोग आम जनता को कुछ समझते नहीं हैं सरकारी आफिसों में काम के लिए जाने वाली जनता को खदेड़ कर भगा देते हैं सरकारी लोग !कोई सीधे मुख बात नहीं करता है वहाँ । जनता की कोई सुनने वाला नहीं होता है !
   सरकार में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी यदि  जनता का ध्यान नहीं रखते तो ये लोकतंत्र के नाम पर कलंक है कि जनता आज भी सरकारी अधिकारियों को अपनी समस्या बताने में डरती है उसके चार प्रमुख कारण हैं पहली बात वो सुनेंगे नहीं !दूसरी बात वो कुछ करेंगे नहीं ! तीसरी बात वो पैसे माँगेंगे !चौथी बात वो समस्या बढ़ा देंगे !
   कई बार लोगों को जो तंग कर रहा होता है उसके विरुद्ध किए गए कम्प्लेन की सूचना सरकारी विभाग से उस अपराधी को दी जाती है जाती है जो तंग कर रहा होता है फिर अपराधी ही कम्प्लेनर पर करता है अत्याचार !ये सारी कमियाँ दूर किए बिना सैलरी बढ़ाए जा रही है सरकार !अफसोस !ये सरकारें आम जनता के लिए चुनी जाती हैं पेट केवल अपना और अपनों का भरा करती हैं ।
    मोदी  सरकार के दो वर्ष होने का पर्व जनता भी मना रही है क्या ?या केवल सरकार में सम्मिलित लोग और केवल पार्टी के पदाधिकारी ही !कोशिश ऐसी होनी चाहिए कि जनता को भी विश्वास में लिया जाए और जनता भी मोदी सरकार के वर्षद्वय पर में भावनात्मक रूप से सम्मिलित हो !अन्यथा वर्तमान खुशफहमी कहीं अटल जी की सरकार का फीलगुड बन कर न रह जाए !

   मोदी जी ! जनता का बहुत बड़ा वर्ग भ्रष्टअधिकारियों और भ्रष्टनेताओं की धोखाधड़ी का शिकार हो रहा है उसे बचने के लिए कुछ कीजिए !ये दोनों लोग ही करवा रहे हैं सभी प्रकार के अपराध !अन्यथा अपराधियों में इतनी हिम्मत कहाँ होती है कि वो अपने बल पर अपराध करें और उनके पास इतना धन कहाँ होता है कि वे घूस देकर बच जाएँ किंतु मददगारों के बल पर वो उठा जाते हैं बड़े बड़े कदम !इस लिए उन मदद गारों की पहचान करके उन पर अंकुश लगाना होगा !इन लोगों पर अंकुश लगाए बिना 2019 की वैतरणी पार कर पाना आसान नहीं होगा !
 
  इसके अलावा मोदी जी आखिर कैसे बंद हों अपहरण हत्या बलात्कार जैसे अपराध ! अपराधियों को गले लगाते हैं गुंडे और गुंडों को गले लगाती हैं राजनैतिक पार्टियाँ !इसी प्रकार से अपराध के कारोबार से कमाई करते हैं अपराधी और अपराधियों से कमाई करते हैं भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी !यदि सरकारी अधिकारी ,कर्मचारी ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ होते तो न हत्याएँ होतीं न होते बलात्कार !इसलिए अपराधियों पर अंकुश लगाने से पहले भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों पर काबू पावे सरकार !उसके पहले विकास संबंधी सारी बातें बेकार ! 
    प्रधानमंत्री जी ! सरकार के हाथ पैर तो सरकारी अधिकारी और कर्मचारी ही होते हैं जिनके अच्छे बुरे व्यवहार के आधार पर ही सरकार के काम काज का मूल्यांकन  होता है क्योंकि अधिकारियों और कर्मचारियों से ही जनता को जूझना पड़ता है वो ही यदि भ्रष्टाचारी हैं तो आप कितने भी अच्छे बने रहें किंतु जनता के मन में आपकी छवि भ्रष्टाचार समर्थक के रूप में  ही बनी रहेगी !अपराधों पर अंकुश लगाने के नाम पर भाषण चाहें जितने हों किंतु काम बिलकुल नहीं हो रहा है ! 
   जेल में बैठकर  मीटिंगें कर रहे हैं अपराधी !एक साधारण किसान की गारंटी पर हजारों करोड़ का लोन मिल जाता है ऐसे असंख्य अपराध कर रहे हैं सरकारी अधिकारी ,कर्मचारी इन्हें कोई देखने रोकने वाला ही नहीं है तभी तो अंकुश नहीं लग पा रहा है अपराधों पर !        सरकारी नीतियाँ इतनी अंधी हैं कि अधिकारियों कर्मचारियों से काम लेना तो सरकार के बश का ही नहीं है इनके  भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना भी सरकार के बश का नहीं है फिर भी इनकी सैलरी बढ़ाए जा रही है सरकार जबकि सरकारी हर काम काज का भट्ठा बैठा रखा  है इन्होंने !आखिर सरकार अपने  कर्मचारियों से इतनी खुश क्यों है!
    सरकारी शिक्षा विभाग ,डाकविभाग दूरसंचार विभाग चिकित्साविभाग चौपट तो इन्हीं सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों ने कर  रखा है इनसे बहुत कम सैलरी पाकर भी प्राइवेट टीचर, कोरियरकर्मी, प्राइवेटदूर संचार कर्मी,चिकित्साकर्मी अपने अपने क्षेत्र में कितनी अच्छी अच्छी सेवाएँ दे रहे हैं । 
    सरकार के कर्मचारी तो इतने कामचोर हैं कि जिस आफिस के कर्मचारियों की एक एक महीने की सैलरी पर पचासों लाख रूपए खर्च हो रहे होते हैं उस आफिस के कर्मचारी अपना कम्प्यूटर और प्रिंटर बिगाड़ कर उसी बहाने कई कई दिन काम न करके जनता को टरकाया करते हैं ऊपर से जनता के साथ मिलकर वो लोग  भी सरकार तथा सरकारी व्यवस्थाओं को गालियाँ देते हैं !         इनके काउंटरों पर नंबर की तलाश में खड़ी जनता को जानवरों की तरह कभी भी खदेड़ देते हैं ये इटरनेट न आने का बहाना बनाकर!कई कई दिन बीत जाने पर भी काम  न होने पर घूस देने को मजबूर कर दी जाती है जनता !उसके पास इसके अलावा और कोई दूसरा विकल्प ही नहीं होता है । सरकारी तंत्र की ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जहाँ जनता इस विश्वास के साथ शिकायत करे कि उसका काम समय से हो जाएगा !
       सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से काम कराने के लिए घूस देने के अलावा जनता के पास कोई अधिकार नहीं हैं जिस अधिकारी से शिकायत की जाती है वो उलटे जनता को ही काटने दौड़ता है सरकार तक जनता की पहुँच नहीं होती है !
     कुल मिलाकर अपराध छोटे हों या बड़े इसे करने वाला किसी न किसी कोने में मूर्ख होता है तभी तो ऐसा  रास्ता चुनता है ।अपराधी केवल यंत्र की भाँति होता है इसी कारण ऐसे लोगों का ऊपरी कमाई के लालच में उपयोग करते हैं भ्रष्टअधिकारी कर्मचारी और गुंडेनेता !जहाँ अधिकारियों कर्मचारियों की ऊपरी कमाई का साधन बने हैं अपराधी वहीँ भ्रष्टनेताओं  का दबदबा बनाने में सहायक होते हैं  अपराधी !यही अधिकारी और यही नेता उन अपराधियों की हर समय हर प्रकार से रक्षा करते रहते हैं इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता है इसलिए  ऐसे लोगों पर अंकुश लगाए बिना अपराधों पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता है । 
   

Saturday, 25 June 2016

'योग' भी 'ज्योतिष' के बिना ढोंग है ! जिसका समय ख़राब हो उसे कैसे ठीक कर देगा योग और आयुर्वेद !

     'योग' दिव्य विद्या है किंतु योग के नाम पर नाचने कूदने वाले कुछ बाबालोग समय का महत्त्व न समझने के कारण मूर्खताबश ज्योतिषशास्त्र की निंदा करने  लगे  हैं !
     योग आयुर्वेद समेत समस्त चिकित्सा पद्धतियों का मनना है कि साध्य रोगी ही ठीक हो सकता है कष्ट साध्य रोगी मुश्किल से ठीक होता है और असाध्य रोगी बिलकुल नहीं ठीक होता किंतु साध्य रोगी  कौन !जिसका समय ठीक होता है वो !किंतु समय किसका ठीक इसका निर्णयतोज्योतिषशास्त्र ही करेगा !
     जो निरक्षर बाबा लोग ज्योतिष को गालियाँ देने लगे हैं इसका सीधा सा मतलब है कि ऐसे पाखंडियों ने न कुछ पढ़ा है और न ही इन्हें कुछ पता है जबकि सारा संसार जनता है कि जिसका समय सही है वही स्वस्थ हो सकता है जिसकी जब तक आयु है और वही बचाया जासकता है !
     ज्योतिष शास्त्र समय संबंधी पूर्वानुमान का सबसे बड़ा विज्ञान है !ये अगर पेट पिचका कर पैसे कमाने वाले नट नागरों को न समझ में आए तो इसके लिए ज्योतिष शास्त्र और ज्योतिष विद्वान क्या करें !कैसे घुसाएँ उन दिमागी अपाहिजों की घमंडी खोपड़ी में! 
     जिस ज्योतिष शास्त्र को आयुर्वेद केवल मानता ही नहीं है अपितु आयुर्वेद अधूरा है ज्योतिष शास्त्र के बिना !आयुर्वेद के बड़े बड़े ग्रंथों में ज्योतिष शास्त्र संबंधित बातों को उद्धृत किया गया है  गया है !यदि कोई व्यक्ति ज्योतिष शास्त्र न भी पढ़ा हो केवल आयुर्वेद भी पढ़ा हो तो उसे भी पता होगा ज्योतिष शास्त्र का महत्त्व किंतु जिसने कुछ पढ़ा ही न हो उसके लिए बेकार है ज्योतिष क्या कोई भी शास्त्र ! वो जिस विषय में जितनी चाहे उतनी बकवास करे स्वतंत्र है वो !जितनी योग के नाम पर कसरत करने के लिए हाथ पैर तो कोई भी हिला  डुला सकता है पढ़ा हो या अनपढ़ किंतु ज्योतिष शास्त्र वेदों का नेत्र है !ये उसी को समझ में आएगा जिसके पास दिमाग होगा !ज्योतिष जैसे शास्त्र के विषय में मुख उठा के ऐसे ऐसे लोग बकवास करने लगते हैं जिनमें शास्त्रों को समझने की क्षमता ही नहीं है । 
    आयुर्वेद के शीर्ष ग्रंथों में भी औषधि आहरण से लेकर औषधि निर्माण एवं औषधि दान तक की विधि में ज्योतिष शास्त्र का भरपूर उपयोग किया गया है !औषधि आहरण में स्थान विशेष की चर्चा सुश्रुत संहिता में वास्तु के आधार पर ही की गई है की तक की विधि थ भी कहते हैं !ज्योतिषशास्त्र जन्मपत्री विज्ञान वास्तु विज्ञान को यदि वे गलत कहते हैं तो इधर उधर योग शिविरों कहते क्यों घूम रहे हैं सीधे शास्त्रार्थ करें और गलत सिद्ध करके दिखावें ज्योतिष को !साधू संतों जैसा वेष धारण करके शास्त्रों की निंदा करना निंदनीय है कोई बात यदि किसी को समझ में न आवे इसका मतलब ये नहीं कि वो गलत है !रिओं यदि उन्हें गलत की सत्यता पर यदि संदेह हो तो बाबा जी करें शास्त्रार्थ !सरकार व्यवस्था करे !
    योग शिविरों में ज्योतिष की बुराई करना ठीक नहीं है यदि ज्योतिष की पद्धति गलत सिद्ध होगी तो बंद कर दी जाएगी !दूध का दूध पानी का जाएगा !यदि सही होगी तो ज्योतिष की बुराई बंद हो जाएगी !ऐसे कोई भी कभी भी ज्योतिष की निंदाकरने लगता आखिर ज्योतिष एक विषय है !कोई ज्योतिषी गलत हो सकता है किंतु शास्त्र नहीं !केवल ज्योतिष ही नहीं संपूर्ण धर्म क्षेत्र ही आज भ्रष्टाचार का शिकार है योग्य और सदाचारी लोगों को खोज पाना दिनोंदिन कठिन होता जा रहा है !धर्म की जितनी विधाएँ हैं सब फेल होती जा रही हैं समाज में बढ़ते अपराध इस बात के सुदृढ़ प्रमाण हैं !पैसे के बल पर भीड़ कहीं कोई कितनी भी इकट्ठी कर ले किंतु समाज सिरे से ख़ारिज करता जा रहा है !ज्योतिष शास्त्र के क्षेत्र में जो ज्योतिष पढ़े नहीं हैं वो भी ज्योतिष की निंदा करते हैं अरे !जिस विषय को आप जानते ही नहीं हैं उसके सही गलत होने का फैसला आप कैसे कर सकते हैं ! आखिर ज्योतिष भी एक शास्त्र है कोई व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए वो शास्त्र से बड़ा कभी नहीं हो सकता !वैसे भी शास्त्रार्थ अपनी पुरानी परंपरा है इसमें कोई बुराई भी नहीं है ! शंका समाधान हो जाए तो क्या बुरा है !
" ग्रहों की मान्यता को पाखंड बताने वाला कोई भी व्यक्ति यदि ज्योतिष पढ़ा हो तो उसे शास्त्रार्थ की खुली चुनौती !"
     जिसने ज्योतिष पढ़ी हो उसी से हो सकता है शास्त्रार्थ !और जिसने जिस विषय को पढ़ा ही न हो वो उस विषय को सही या गलत कैसे कह सकता है ।बिना पढ़े लोग तो सारी दुनियाँ को अपने जैसा ही अनपढ़ समझते हैं इसलिए मुख उठाकर कभी किसी को भी कुछ भी बोल देते हैं ऐसे लोगों से शास्त्रार्थ कर पाना कैसेsee more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2016/06/blog-post_20.html "

'योग' सिखाने के लिए लगाए जाएँ गरीबों मजदूरों और किसानों के बच्चे ! सच्चे कर्मयोगी हैं वे !!उनकी उपेक्षा क्यों ?

   खेतों खलिहानों में उलटे खड़े हो हो कर दिन भर रिकार्ड तोड़ते हैं गरीबों के बच्चे !इसी उलटे खड़े होने की शरारतों के कारण दिन में कई कई बार पिट जाते हैं बेचारे !शहरों में वही हरकतें शीर्षासन कही जाती हैं जिनके बल पर लोग कहते  हैं कि हमने रिकार्ड तोड़ दिए हैं !    
     कैसे कैसे बेवकूप बनाते हैं लोग !वास्तव में मूर्ख बनाने का धंधा बना लिया है कुछ लोगों ने !और कहते हैं हम तो योगी हैं ऐसे तथा कथित योगगुरु गाँव में जाएँ न योग सिखाने देखो कैसे खदेड़े जाते हैं ।ऐसे लोगों के पास भीड़ अन्य कारणों से भले इकट्ठी हो जाए वो लोग जैसे बंदरों का नाच देखने के लिए इकट्ठे हो जाते हैं वैसे ही इन्हें देख देख कर भी हँस लेंगे थोड़ी देर उनका भी मनोरंजन हो जाएगा ! किंतु इस योग के कारण  तो नहीं ही होगी भीड़ !
   गरीबों मजदूरों और किसानों के बच्चे जब काम करते करते थक जाते हैं तो थोड़ी देर मस्ती मारने के नाम पर खेलने कूदने लग जाते हैं वे ऊँचे ऊँचे पेड़ों पर चढ़ लेते हैं बड़ी बड़ी ऊँचाई से कूद लेते हैं तेजधार नदियों में तैर लेते हैं भारी बोझा उठा लेते हैं दिन दिन भर लगातार परिश्रम कर लेते हैं !भैंसों की पीठ पर बैठ कर दौड़ा लेते हैं !उस बढ़ी स्पीड में कूद जाते हैं उसके ऊपर से !ताजा जुता हुआ खेत देख कर दौड़ने कूदने और सिर के भल खड़े होने का किसका मन नहीं करता है ये मस्ती वही समझ सकते हैं जिन्होंने  ग्रामीण जीवन के स्वर्ग को भोगा  हो !अब शहर के लोग उसे योग कहने लगें तो कहें !योग के नाम पर की जाने वाली इन पाखंडियों की हरकतों का जब ग्रामीण जीवन से मिलान करते हैं तो वहाँ का तो सुबह उठने से लेकर रात्रि में सोने तक का  हर काम ही योग है । चार चार पाँच पाँच सौ
हजार हजार बोरे आलू मीलों में कई कई कई मंजिल तक उठाकर ले जाते हैं पल्लेदार !यदि यही सबकुछ करना योग है तो वो पल्लेदार कर्म योगी क्यों नहीं ये कामचोर हाथ पैर हिलाने डुलाने वाले योग गुरु कैसे !
     रस्सी बाल्टी से कुएँ से पानी निकालना !फरूहे से खेतों की गुड़ाई करना,कई कई गट्ठे चारा काटना ये सब सार्थक काम 'योग' क्यों नहीं हो सकते ! किसान हैं इसलिए उन्हें योगी नहीं कहा जा सकता वो भी निरर्थक बैठ कर हाथ पैर हिला रहे होते तो बेचारे वो किसान लोग भी योगी कहे जाते !
     घरेलू कामों से भी मुख चुराने वाले नौकरों के आधीन जिंदगी जीने वाले लोगों के पेट बड़े बड़े हो गए हैं वो चाहें तो घरेलू काम कर लें घर की साफ सफाई कर लें बाहरी लोगों को घरेलू काम के लिए नौकर न रखें! इससे घर की प्राइवेसी भंग नहीं होगी बाहरी लोगों का घर गृहस्थी में प्रवेश बंद होगा !इससे घरों में घरेलू नौकरों के द्वारा घटित होने वाले तमाम प्रकार के अपराध रुकेंगे !
    अपने घर में पोछा लगाना,कपड़े धोना,बैठकर बर्तन माँजना , रसोई बाथ रूम की टाइल साफ करना !बैठकर परिश्रम पूर्वक आटा गूँथना !बैठकर रोटी बनाना !ऐसे परिश्रम पूर्वक  सार्थक शारीरिक कार्यों में लगे स्त्रीपुरुषों के कर्मयोगी होने का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है !
     शहरों में जिनके पेट निकले हैं उसे अंदर कराने के लिए जिस योग की आवश्यकता है वो कला  ग्रामीणों किसानों मजदूरों के बच्चे बच्चे को आती है उसके लिए योग को बदनाम करना ठीक नहीं है !ये कल सिखाने के लिए योगाटीचर का उत्तम रोल प्ले कर सकते हैं वो बच्चे ! पेड़ों से कूदने लभ्भा लैया खेलने वाले।,नदियों में तैरने नहाने वाले,खेतों खलिहानों में परिश्रम करने वाले,
 योग या उद्योग !या सत्ता का दुरुपयोग !!गरीबों का पेट भरना ज्यादा जरूरी है या अमीरों का पेट खाली करना ! !
    हमें ये सीधी सी बात समझनी होगी कि बिना शारीरिक श्रम किए यदि हम पूरा भोजन करते हैं तो हमारे लिए हानिकारक है उसे पचाने के लिए हमें हर हाल में पसीना बहाना होगा कोई काम करके या फिर बदरों की तरह निरर्थक  उछल कूद कर !
      किसानों ,मजदूरों या घरों में काम करने वाली महिलाओं के कभी पेट निकलते देखे हैं क्या ? सीधी बात वो काम करते हैं इसीलिए  तो !इसलिए उन्हीं से सीख लीजिए कर्म योग अन्यथा बाबाओं से सीखोगे तो ये तुम्हें हाथ पैर हिलाना डुलाना बताकर कोई न कोई अपना प्रोडक्ट बेच देंगे आपको !ऊपर से कहते हैं चैरिटी करते हैं चैरिटी में कहीं कमाई होती है क्या !करोड़ों रूपए के विज्ञापन ये चैरिटी है क्या !आजकल लोग इतना अधिक झूठ बोलने लगे हैं ।

 'योग' मुट्ठी भर आलसी लोगों के लिए है जबकि भुखमरी गरीबी का शिकार देश का बहुत बड़ा वर्ग है ! कर्ज पीड़ित आत्महत्या करते किसान !महँगाई की मार !दाल सब्जी पेट भरने के लिए नहीं मिल पा रही है ग़रीबों के बच्चों को !सरकार के लिए पहले जरूरी क्या है ये सरकार सोचे !समाज में जिन लोगों ने ग़रीबों के हिस्से का भोजन खुद खा लिया है और उसे पचाने के लिए परिश्रम नहीं किया है उस पाप से पेट निकल आए हैं !  विश्व के उन मुट्ठी भर लोगों के लिए इतना बड़ा आडम्बर और इतना भारी खर्च दूसरी ओर वो बहुत बड़ा वर्ग है जिसे दोनों समय भोजन नहीं मिल पा रहा है दाल सब्जी खाए बिना महीनों बीत जाते हैं दूध घी का पता नहीं उन बच्चों के लिए क्या है ?         
    राहु केतु शनि और वास्तु जैसे शास्त्रीय विषयों की निंदाकरने वाले बाबाओं को शास्त्रार्थ की चुनौती !see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2016/06/blog-post_23.html

Friday, 24 June 2016

  महोदय , 
  मैंने  भारतसरकार  के  प्रमाणित सपूर्णानंद संस्कृत विश्व विद्यालय से ज्योतिष शास्त्र में आचार्य अर्थात (M. A.)किया है इसके बाद "बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी"  से Ph.D की है ।ज्योतिष आयुर्वेद सहित वेदों और पुराणोंआदि में वर्णित  प्राचीनविज्ञान के आधार पर समयविज्ञान की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण शोधकार्य किए हैं| 
   विश्व की सभी चिकित्सा पद्धतियों का मानना है कि जिसका समय खराब होगा उसे योग या आयुर्वेद के द्वारा स्वस्थ नहीं किया जा सकता आयुर्वेद भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस सच्चाई को स्वीकार करता है यही सही है ।
     अभी कुछ दिन पूर्व फरीदाबाद के एक योगशिविर में योगगुरु रामदेव ने अपने योग की प्रशंसा करते हुए राहु, केतु, शनि ,साढ़ेसाती, रत्नधारण आदि विषयों की न केवल निंदा की है अपितु ज्योतिषियों को पाखंडी भी कहा है जिसका प्रसारण बहुत सारे टीवी चैनलों में हुआ अखवारों में भी ये खबर प्रकाशित की गई। चूँकि रामदेव प्रिद्धि प्राप्त बाबा हैं इसलिए उनकी बातों का समाज पर असर पड़ना स्वाभाविक है । 
        महोदय !काशी  हिंदू विश्व विद्यालय जैसे बड़े शिक्षण संस्थानों में ज्योतिष के डिपार्टमेन्ट हैं जहाँ अन्य विषयों की तरह ही छात्र सरकारी पाठ्यक्रम के रूप में ज्योतिष  पढ़कर छात्र ज्योतिषाचार्य (MA ) Ph .D. आदि  डिग्रियाँ हासिल करते हैं !उसी के आधार पर उन्हें नौकरी मिलती है । 
         श्रीमान जी !वेदों का नेत्र कहे जाने वाले ज्योतिष जैसे सम्मानित विषय की निंदा रामदेव अपने अज्ञान के कारण कर रहे हैं या फिर जैसे अपने उत्पाद बेचने के लिए दूसरे के उत्पादों की निंदा करने के आदती रामदेव ने अपने व्यायामी योग का विज्ञापन करने की दुर्भावना से ज्योतिष शास्त्र की निंदा की है । 
        महोदय ! मेरा निवेदन है कि रामदेव के ऐसे उपदेशात्मक गलत एवं भ्रामक विज्ञापनों पर अंकुश लगाया जाए !

 का दिवस की तैयारी के शिविर में  

तीक्षा इसके आधार पर   समय ही जिसका खराब हो उसे कैसे स्वस्थ कर लगा   आयुर्वेद या विश्व की कोई भी चिकित्सा पद्धति !समय जिसका पूरा  हो चुका हो उसे कैसे बचा लेगी विश्व की कोई भी चिकित्सा पद्धति !समय अच्छा है या बुरा इसे बताने वाला आयुर्वेद नहीं अपितु ज्योतिष है व्यायाम और आयुर्वेद की सामर्थ्य अत्यंत सीमित है चिकित्सा पद्धति स्वस्थ होने लायक रोगी को ही स्वस्थ कर सकती है हर रोगी को नहीं किंतु स्वस्थ होने लायक रोगी और न स्वस्थ होने लायक रोगियों के अंतर को स्पष्ट तो ज्योतिष ही करेगा !ये आयुर्वेद के बश की बात ही नहीं है !
      जिन पाखंडियों ने आयुर्वेद भी नहीं पढ़ा है वे ज्योतिष की निंदा करके मूर्ख  समाज को !आयुर्वेद ही पढ़ा होता तो भी पता होता ज्योतिष एवं वास्तु आदि का महत्त्व !मैं 'सुश्रुतसंहिता' और और 'चरकसंहिता' जैसे ग्रंथों में दिखा दूँगा ज्योतिषशास्त्र का खुला प्रयोग ! ज्योतिष शास्त्र के बिना विकलांग है आयुर्वेद !
    ज्योतिष शास्त्र समय संबंधी पूर्वानुमान का सबसे बड़ा विज्ञान है !

Thursday, 23 June 2016

राहु केतु शनि और वास्तु जैसे शास्त्रीय विषयों की निंदाकरने वाले बाबाओं को शास्त्रार्थ की चुनौती !

    ज्योतिष शास्त्र समय संबंधी पूर्वानुमान का सबसे बड़ा विज्ञान है !ये अगर पेट पिचका कर पैसे कमाने वाले नट नागरों को न समझ में आए तो इसके लिए ज्योतिष शास्त्र और ज्योतिष विद्वान क्या करें !कैसे घुसाएँ उन दिमागी अपाहिजों की घमंडी खोपड़ी में! 
     जिस ज्योतिष शास्त्र को आयुर्वेद केवल मानता ही नहीं है अपितु आयुर्वेद अधूरा है ज्योतिष शास्त्र के बिना !आयुर्वेद के बड़े बड़े ग्रंथों में ज्योतिष शास्त्र संबंधित बातों को उद्धृत किया गया है  गया है !यदि कोई व्यक्ति ज्योतिष शास्त्र न भी पढ़ा हो केवल आयुर्वेद भी पढ़ा हो तो उसे भी पता होगा ज्योतिष शास्त्र का महत्त्व किंतु जिसने कुछ पढ़ा ही न हो उसके लिए बेकार है ज्योतिष क्या कोई भी शास्त्र ! वो जिस विषय में जितनी चाहे उतनी बकवास करे स्वतंत्र है वो !जितनी योग के नाम पर कसरत करने के लिए हाथ पैर तो कोई भी हिला  डुला सकता है पढ़ा हो या अनपढ़ किंतु ज्योतिष शास्त्र वेदों का नेत्र है !ये उसी को समझ में आएगा जिसके पास दिमाग होगा !ज्योतिष जैसे शास्त्र के विषय में मुख उठा के ऐसे ऐसे लोग बकवास करने लगते हैं जिनमें शास्त्रों को समझने की क्षमता ही नहीं है । 
    आयुर्वेद के शीर्ष ग्रंथों में भी औषधि आहरण से लेकर औषधि निर्माण एवं औषधि दान तक की विधि में ज्योतिष शास्त्र का भरपूर उपयोग किया गया है !औषधि आहरण में स्थान विशेष की चर्चा सुश्रुत संहिता में वास्तु के आधार पर ही की गई है की तक की विधि थ भी कहते हैं !ज्योतिषशास्त्र जन्मपत्री विज्ञान वास्तु विज्ञान को यदि वे गलत कहते हैं तो इधर उधर योग शिविरों कहते क्यों घूम रहे हैं सीधे शास्त्रार्थ करें और गलत सिद्ध करके दिखावें ज्योतिष को !साधू संतों जैसा वेष धारण करके शास्त्रों की निंदा करना निंदनीय है कोई बात यदि किसी को समझ में न आवे इसका मतलब ये नहीं कि वो गलत है !रिओं यदि उन्हें गलत की सत्यता पर यदि संदेह हो तो बाबा जी करें शास्त्रार्थ !सरकार व्यवस्था करे !
    योग शिविरों में ज्योतिष की बुराई करना ठीक नहीं है यदि ज्योतिष की पद्धति गलत सिद्ध होगी तो बंद कर दी जाएगी !दूध का दूध पानी का जाएगा !यदि सही होगी तो ज्योतिष की बुराई बंद हो जाएगी !ऐसे कोई भी कभी भी ज्योतिष की निंदाकरने लगता आखिर ज्योतिष एक विषय है !कोई ज्योतिषी गलत हो सकता है किंतु शास्त्र नहीं
!केवल ज्योतिष ही नहीं संपूर्ण धर्म क्षेत्र ही आज भ्रष्टाचार का शिकार है योग्य और सदाचारी लोगों को खोज पाना दिनोंदिन कठिन होता जा रहा है !धर्म की जितनी विधाएँ हैं सब फेल होती जा रही हैं समाज में बढ़ते अपराध इस बात के सुदृढ़ प्रमाण हैं !पैसे के बल पर भीड़ कहीं कोई कितनी भी इकट्ठी कर ले किंतु समाज सिरे से ख़ारिज करता जा रहा है !ज्योतिष शास्त्र के क्षेत्र में जो ज्योतिष पढ़े नहीं हैं वो भी ज्योतिष की निंदा करते हैं अरे !जिस विषय को आप जानते ही नहीं हैं उसके सही गलत होने का फैसला आप कैसे कर सकते हैं ! आखिर ज्योतिष भी एक शास्त्र है कोई व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए वो शास्त्र से बड़ा कभी नहीं हो सकता !वैसे भी शास्त्रार्थ अपनी पुरानी परंपरा है इसमें कोई बुराई भी नहीं है ! शंका समाधान हो जाए तो क्या बुरा है !
" ग्रहों की मान्यता को पाखंड बताने वाला कोई भी व्यक्ति यदि ज्योतिष पढ़ा हो तो उसे शास्त्रार्थ की खुली चुनौती !"

जिसने ज्योतिष पढ़ी हो उसी से हो सकता है शास्त्रार्थ !और जिसने जिस विषय को पढ़ा ही न हो वो उस विषय को सही या गलत कैसे कह सकता है ।बिना पढ़े लोग तो सारी दुनियाँ को अपने जैसा ही अनपढ़ समझते हैं इसलिए मुख उठाकर कभी किसी को भी कुछ भी बोल देते हैं ऐसे लोगों से शास्त्रार्थ कर पाना कैसेsee more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2016/06/blog-post_20.html "

Wednesday, 22 June 2016

दलित राजनीति का गंगाजल सूँड़ में भरभर कर बसपा का हाथी अब किसके ऊपर उड़ेलेगा !

"तिलक तराजू औ तलवार ,सब कोई देखौ भ्रष्टाचार "! उत्तरप्रदेश  के हाथी तोड़ने लगे हैं अनुशासन कीरस्सी !
ये तो  राजनीति है यहाँ कोई किसी का नहीं होता है इसमें जिसका जैसा आपराधिक कद उसको उतना बड़ा पद !साफ सी बात है किसी को बुरा लगे तो क्या ? दलितों के शोषण के नाम पर सवर्णों को गालियाँ देकर दो दो कौड़ी के लोग विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री आदि बहुत कुछ बन जाते हैं !ये है सवर्णों का गौरव !राजनीति ऐसा तालाब है जहाँ गधे नहाएँ तो घोड़े बनकर निकलते हैं बगुले  हंस बन जाते हैं !दो दो चार  रूपए किराए के लिए तरसने वाले लोग कब अरबपति बन जाते हैं ये उन्हें भी अखवारों से पता चलता है !हर दल का हर नेता दलितों का विकास करने पर आमादा है किंतु कर नहीं पा रहे हैं बेचारे ! उनके जीवन की सबसे बड़ी पीड़ा या दुविधा ये है कि नेता अपना घर भरें या दलितों का !इसलिए घर तो अपना भरते हैं गालियाँ सवर्णों को देते हैं जबकि सवर्ण तो वर्षों से भारत में प्रवासियों जैसा जीवन व्यतीत कर रहे हैं कहीं पूछ लिया जाता है तो चले जाते हैं बाक़ी चौपट तो वही कर रहे हैं जिनके पूर्वज सिखा कर गए हैं कि सवर्ण न होते तो हम तीर मार देते !खैर देखो इस गलतफहमी में कब तक जीते हैं वो लोग !

  नेताओं की नीलामी  सीटों की नीलामी पदों की नीलामी बारी राजनीति !  अब  अनुशासन की रस्सी तोड़ तोड़ कर भागने लगे हैं कहते महावत को मायामोह हो रहा है !
 राजनीति में यदि खरीद फरोख्त  और बंशवाद की प्रथा न होती गुंडागर्दी का बोलबाला न होता और अपराधियों का आदर न होता तो शिक्षित सेवक सदाचारी और ईमानदार लोगों को भी राजनीति में स्थान मिल सकता था किंतु भले लोगों के पास जो नहीं होता है उसी की जरूरत पड़ती है राजनीति में !

      राजनैतिक पार्टियों में भी किन्नरों जैसा जीवन जी रहे हैं कई प्रतिभा संपन्न बहुमूल्य अच्छे खासे लोग !अपने को पार्टी के अनुशासित सिपाही बता बता कर अपना दिल बहलाया करते हैं पार्टियों में उपेक्षित जिंदगी जीने के लिए मजबूर लोग !नारे रिस्तेदारों के बीच उपहास करवाया करते हैं बहुमूल्य जीवन का एक एक स्वाँस पार्टी कार्यक्रमों के नाम पर ब्यर्थ में बिताया करते हैं कुछ लोगों से माँगे हुए पैसों का नास्ता कर जाते हैं कुछ लोग !मीटिंग का मतलब किसी की चाय फोकट में पीने के लिए इकठ्ठा होना यही तो हैं पार्टी के कार्यक्रम !कभी कभी जिंदाबाद मुर्दाबाद हैजाबाद फैजाबाद हो जाता है कभी कभी मुट्ठी भर पुआल में आग लगाकर पुतला जला दिया जाता है ऐसी ही ऊटपटाँग हरकतों को कहा जाता है पार्टी कार्यक्रम !उसमें कुछ न नया सोचना होता है और न होना होता है बस अपना  अपना परिचय देना होता है इस समय बड़ी शालीन भाषा बोलते हैं नेता !चाय की चुसकियों के साथ सारा डिसकस पूरी तरह इंसानी  भाषा में होता है । उपेक्षित नेताओं के विषय में हर कोई जानना चाहता है कि आपके अंदर ऐसा कौन सा दुर्गुण है कि आपकी पार्टी आपको कोई पद नहीं देती !किंतु बेचारे वे भले लोग ये कैसे बतावें कि कोई दुर्गुण ही तो नहीं हैं तभी तो पार्टी ने हासिए पर धकेल रखा है अन्यथा एक दो दर्जन यदि दबंगई टाइप के मुकदमे होते तो छोटे मोटे पद छोड़िए प्रदेश का अध्यक्ष बना देतीं !

    अध्यक्ष बनते ही अतीत की सारी गुंडागर्दी के केस राजनैतिक केस कहे जाने लगते हैं और प्रशासन कार्यवाही करता है तो बदले की कार्यवाही मानी जाती है !  यही तो  राजनीति का आनंद है । 

        अरे बन्धुओ !राजनैतिक पार्टी में किन्नर बनकर रहने से अच्छा है कि आप जनसेवा व्रती बनें और अपनी जीवंतता सिद्ध करें !see more... http://sahjchintan.blogspot.in/2016/06/blog-post_1.html


Wednesday, 15 June 2016

21 संसदीय सचिव बनाए क्यों गए थे ? इसका कारण कहीं ज्योतिषीय भय ही तो नहीं है ! देखिए आप भी !

     ये है ज्योतिष !  
बंधुओ !14 -2-2015 को जब केजरी वाल सरकार बनी तो इस सरकार में आम आदमी पार्टी के लगभग 13 विधायक ऐसे थे जिनके नाम 'अ' अक्षर से प्रारंभ होते हैं इसका मतलब ये होता है कि ये  एक साथ शान्ति पूर्वक नहीं रह पाएँगे ये कभी भी कोई क्रांति का विगुल फूँक सकते हैं और ये सरकार गिर सकती है जैसे अन्ना आंदोलन 4 'अ ' अक्षरों के ईगो के कारण  ही टूटा था !अन्ना ,अरविंद ,अग्निवेश और अमित त्रिवेदी इसी प्रकार से हमने कई और उदाहरण लिख कर इसी ब्लॉग पर प्रकाशित किए जिनमें मेरे कहने का उद्देश्य था कि 'अ' अक्षर वाले इतने लोग एक साथ नहीं रह पाएँगे और ये सरकार गिर जाएगी !ऐसे लेख बार बार प्रकाशित करने पर एक दिन आम आदमी पार्टी के ही किसी व्यक्ति ने इसका उपाय जानने के लिए करीब आधा घंटे तक हमारे साथ फेस बुक पर चैट की जिन्हें मैं पहचान नहीं पाया था किंतु उन्होंने अपना परिचय आम आदमी पार्टी से संबंधित ही दिया था ये मुझे याद है !उनसे मैंने साफ साफ कह दिया था कि ये लोग पार्टी और सरकार के लिए कभी भी समय बन सकते हैं इसलिए इन्हें खुश रखा जाना नितांत आवश्यक है उधर इसी बात से संबंधित आर्टिकल बनाकर हमने मार्च के पूर्वार्द्ध में ही अपने ब्लॉग पर डाल दिया था !सम्भवतः इसीकारण से 13 मार्च 2015 को ही बनाए गए थे 21 संसदीय सचिव !
     ब्लॉग पर वो लेख प्रकाशित करने के बाद अभी तक पुनः खोला नहीं गया है  प्रमाण रूप में उसकी जाँच करवाई जा सकती है ! पढ़ें आप भी उस मूल लेख का ये अंश -     
" आम आदमी पार्टी हो या रविन्द केजरी वाल 'अ 'अक्षर ने कर रखा है सबका बुरा हाल !
आप स्वयं देखिए - शुतोष ,जीत झा,  अलकालांबा,शीष खेतान,अंजलीदमानियाँ ,आनंद जी,दर्शशास्त्री,सीम अहमद इसी प्रकार से जेश,वतार ,जय,खिलेश,निल,अमान उल्लाह खान  आदि और भी जो लोग हों 'अ' से प्रारम्भ नाम वाले वो कब किस बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर  पार्टी के कितने बड़े भाग को प्रभावित करके कितनी बड़ी समस्या तैयार कर दें कहना कठिन होगा !इससे पार्टी तो प्रभावित होगी ही सरकार भी प्रभावित होगी क्योंकि ये छोटी समस्या नहीं तैयार करेंगे !
     अभी भी आम आदमी पार्टी को सुरक्षित रखने का पहला रास्ता तो ये है कि सहनशीलता पूर्वक अ नाम वाले आम आदमी पार्टी के सभी महापुरुष एक दूसरे की टाँग खिंचाई करना बंद कर  दें और  सबके क्षेत्र बाँटे जाएँ तथा किसी एक का महिमा मंडन न किया जाए ,सभी अ वालों के काम अलग अलग बाँटे जाएँ और सभी 'अ' से प्रारम्भ नाम वालों को समान रूप से पूजा जाए !सबको महत्त्व देने का प्रयास किया जाए और जिसको कुछ कम सम्मान भी मिले तो  वो पार्टीहित को ऊपर रखकर उतने से ही काम चलाने की आदत डालें तो अभी भी एक सीमा तक टाले जा सकते हैं कई  प्रकार के विवाद !दूसरा रास्ता एक और है जिसमें कुछ ज्योतिषीय सावधानियाँ बरतनी होंगी और भी कुछ बात व्यवहार बदलने होंगे जो यहाँ लिखना संभव नहीं है अन्यथा यदि सबको पता लग ही गया तो उसका उतना प्रभाव उन लोगों पर पड़ना संभव नहीं होगा जिन पर पड़ना चाहिए "!
यह पूरा मूल लेख पढ़ने के लिए खोलें यह लिंक seemore...http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2015/03/blog-post_61.html  

Tuesday, 14 June 2016

पार्टी के पदों पर अपनों को बैठाकर वोटर को बेवकूफ बनाने निकलते हैं नेता वोट माँगने या झख मराने !

   अरेपार्टीपतियो!आम जनता में आपकी पार्टी के पदाधिकारी और प्रत्याशी बनने लायक समझदार लोग नहीं होते हैं क्या ?आखिर टिकटें बेचनी जरूरी क्यों हैं और यदि ऐसा नहीं है तो जो नेता और पार्टियाँ वास्तव में ईमानदार हैं वो आम जनता से क्यों नहीं माँगती हैं अपने क्षेत्र का पार्टी पदाधिकारी और प्रत्याशी ?
     इसीलिए तो पार्टियों के प्रत्याशी और पदाधिकारी आम जनता को कुछ समझने मानने को तैयार नहीं हैं क्योंकि जनता को बेवकूफ समझने की ट्रेनिंग से ही तो उनकी कमाई होती है जनता से अच्छा बोले और उसके साथ बुरा करे यही तो पार्टी वर्कर की पहचान है आम जनता को ये बेईमानी शूट नहीं करती इसलिए वो राजनैतिक पार्टियों को शूट नहीं करते हैं !
   अपने  चुनावी क्षेत्रों में दामाद बनकर जाते हैं जनसेवक होने का मुखौटा ओढ़े नेता लोग !
   जैसे बड़े लोग अपने अपने कार्यस्थलों पर एक कटोरी में फुटकर पैसे रख लेते हैं कि कोई भिखारी आवे तो एक उठाकर पकड़ा दिया जाएगा !ऐसे ही नेता सांसदों विधायकों के यहाँ महीने या हफते में एक बार एक दो किलो लेटर बना कर रख दिए जाते हैं दुःख तकलीफ से व्यथित व्याकुल जनता विविध आफिसों के भ्रष्टाचार से पीड़ित होकर पहुँचती है नेता जी से मदद माँगने !तो भिखारियों की तरह उसी से एक लेटर निकालकर उन्हें पकड़ा दिया जाता है काम हो न हो उनकी बला से ।
    ऐसे नेताओं के लेटरों की सरकारी आफिसों में कोई मान्यता नहीं होती आखिर वहाँ के अधिकारी कर्मचारी भी तो नेताओं के लेटर देने की मजबूरी को समझते हैं । 
    बंधुओ !ईमानदार और जवाबदेय राजनेताओं की कमी से जूझ रहा है देश !
   इसके लिए सबसे ज्यादा दोषी है जनता !ये बेईमान भ्रष्ट नेताओं को मुख लगाती  क्यों है अपने अपने क्षेत्रों से ईमानदार निर्दलीय उमींदवारों को जनता आपसी सहमति से चुनावों में क्यों नहीं उतारती है !उसी का दण्ड भोग रहा है सारा समाज !
   हे देशवासियो ! यदि तुम अभी भी नहीं सुधरे तो तुम्हारी पीढ़ियाँ इन्हीं नेताओं के बेटा बेटियों की गुलामी करेंगे और इन्हीं की जूठन खिलाकर अपने बच्चे पालने पर मजबूर हो जाएँगे !तब तक देश की सारी संपत्ति पर केवल नेताओं की संतानों का ही अधिकार हो जाएगा !
     बंधुओ ! कभी हिसाब लगाकर तो देखिए जो लोग जब राजनीति में आए थे तब जिनके पास  बस  का किराया देने को पैसे नहीं होते थे ऐसे गरीब गुरवा बेरोजगार लोग जब नेता बने तब बिना कुछ कार्य व्यापार किए ही अरबो खरबोपति हो गए !
   किसी ने दलितों के नाम पर लूटा किसी ने मुशलमानों के नाम पर किसी ने महिलाओं वृद्धों विकलांगों के नाम पर तो कोई चारा के नाम पर लूट ले गया !उसी बलपर तो आज उनकी अनपढ़ औलादें राजकर रही हैं देशों प्रदेशों पर आखिर और क्या विशेषता है उनमें यही न कि आपके पिता आदि पूर्वजों में राजनैतिक माफिया बनने और देश वासियों को धोखा देने की काबिलियत नहीं थी अन्यथा तुम भी आज मंत्री होते !
   देखो उत्तर प्रदेश जहाँ ऐसे भी नेता परिवार हैं जिनके यहाँ बच्चा गर्भ में बाद में आता है उसके लिए सांसद विधायक मंत्री मुन्त्री आदि बनाने के लिए सीट पहले खाली करके रख दी जाती है !
   ऐसे सभी संदिग्ध नेताओं की आय के स्रोतों की जाँच करने वाला कोई ईमानदार साहसी ईश्वरवादी व्यक्ति यदि  इस देश का शासक बने तो संभव है दूर हो ये राजनैतिक गंदगी !या फिर जनता जागे और जनता ही खदेड़े लुटेरे नेताओं को जनता ही पूछे इनसे कि तुम्हारे पास कहाँ से आता है इतना धन !हम काम करते करते मरे जा रहे हैं तो भी हमें तो रोटी दाल पूरी करना मुश्किल होता जा रहा है तुम हमारे हिस्से के पैसों से जहाजों पर चढ़े घूमते हो तुम्हें धिक्कार है !ऐसा कहकर इन पाखंडी जन सेवकों का बहिष्कार करे जनता !राजनीति  का शुद्धीकरण अब अपरिहार्य हो गया है ।    
     इसके लिए हम आप लोगों को ये करना चाहिए कि जो नेता वोट माँगने आवे जनता को उससे पूछना चाहिए कि आखिर तुम्हें ही वोट क्यों दें जिसे मन आएगा उसे देंगे नहीं मन आएगा तो किसी को नहीं देंगे आखिर तुम्हें वोट क्यों दें तुममें ऐसी अच्छाई क्या है ? और हममें ऐसी खराबी क्या है कि जब टिकट मिलनी थी या पद बँट रहे थे तब आपने हमारा नाम आगे क्यों नहीं किया अपना क्यों कर लिया !तुम अपने को ज्यादा काबिल समझते हो और जनता को मूर्ख !जनता से अपेक्षा करते हो कि वो तुम्हें अपना विधायक सांसद बनाकर अपने शिर पर बैठा ले !ऐसा कहकर ऐसे प्रत्याशियों को दुत्कार देना चाहिए  जिनकी सेवाभावना पर थोड़ा भी संदेह लगे !
   जिन्हें पार्टियों ने पैसा लेकर टिकट दिया उनके पिठलग्गू बनकर कर उन्हें हम अपना बहुमूल्य वोट क्यों दें !इस प्रकार से जनता जिस दिन अपने बहुमूल्य वोट की कीमत समझने लगेगी उसी दिन से सुधार होना शुरू हो जाएगा !
    लोकतंत्र में अब तो जनता के अधिकार जीरो हैं वोट देते समय मतदाता कुआँ और खाई के बीच खड़ा होकर करता है मतदान !उसके ऊपर क्या बीतती है ये वही जानता है पार्टी प्रत्याशी समझकर किसी भ्रष्ट नेता के लिए बटन दबाने में मतदाता के हाथ काँप रहे होते हैं वोटर को भ्रष्ट और महाभ्रष्ट के बीच संतुलन बनाकर करना होता है मतदान ! 
   ईमानदार नेता कहाँ और कितने रह गए हैं समाज में !और जिन पार्टियों में हैं भी वहाँ सुनता उनकी कौन है चलती उनकी कितनी है ! 
     आम जनता के बीच भी बहुत बड़ा वर्ग शिक्षित है सदाचारी है  ईमानदार है  अनुभवी है समाजसेवी है कर्मठ है  देश के गौरव के प्रति समर्पित है मातृभूमि पर मर मिटने के भाव वो भी सँजोए हुए है किंतु उस सदाचारी वर्ग के लिए इन भ्रष्ट राजनैतिक पार्टियों सरकारों में कोई पद इसलिए खाली नहीं है क्योंकि वो भ्रष्ट नहीं हैं मूर्ख नहीं है धूर्त नहीं है वो गाली गलौच नहीं कर सकते वो घपले घोटाले नहीं कर सकते !वो फिरौती नहीं माँग सकते वो भ्रष्टाचार में सहायक नहीं हो सकते !
       समाज में कई लोग तो बहुत योग्य होते है उनके बहुमूल्य अनुभवों से जनता में मरती संवेदनाएँ फिर से जगाई जा सकती हैं किंतु वे अपने अपने स्तर से सीमित दायरे में जो कर पा रहे हैं सो कर रहे हैं जबकि कि देश और समाज हित  में उनका बड़ा लाभ लिया जा सकता था ।
       ऐसे भले लोगों के पास धन होता नहीं हैं राजनीति में भले लोगों को पूछता कौन है !
    ऐसी  परिस्थिति में जनता के बीच जो भी नेता वोट माँगने जाए जनता को चाहिए कि उसका बहिष्कार करे उसे खदेड़ कर भगा दे अपने दरवाजे से !उसे इस बात के लिए धिक्कारे कि जब आपकी पार्टी में अध्यक्ष उपाध्यक्ष आदि बनाए जा रहे थे तब तुम खुद बन बैठे तब जनता की याद क्यों नहीं आई आज क्यों मरने आए हो हमें दरवाजे पर !ऐसा कहकर जनता को चाहिए कि ऐसे कुटिल नेताओं का सामूहिक बहिष्कार करे !
   ऐसे विधान सभा लोकसभा क्षेत्रों की जनता अपने अपने क्षेत्रों में आपसी सहमति के आधार पर अपने पराए की भावना से ऊपर उठकर भले इंसानियत और सादगी पसंद शिक्षित एवं राजनीति से विरक्त लोगों को निर्दलीय प्रत्याशी बनावे और उनकी अगुआई उस क्षेत्र की जनता मिलजुलकर स्वयं करे । वही उन्हें निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़ा करे और वही जनता उन्हें विजयी बनावे !तब होगा असली लोकतंत्र आखिर उनके उठने बैठने बोलने चालने में जानवरपन तो नहीं होगा !कम से कम वो आपको भी इंसान तो समझेंगे आपके सुख दुःख में आपके साथ हृदय से खड़े होंगे आपके सुख दुःख की संवेदनाएँ उनके चेहरों पर भी झलकेंगी तो ! ऐसे तो किसी के परिजन के जीवन के साथ कोई हादसा हो जाता है तो ये नेता मुआबजा बोलने जाते हैं जैसे वो मुआबजे के लिए ही मरा हो !उनके चेहरों पर दुःख की कोई संवेदनाएँ नहीं होती हैं !
  लोकतंत्र के नाम पर हृदय विहीन जिन प्लास्टिक के आर्टीफीशियल नेताओं को आप पर थोप रही हैं पार्टियाँ आप उनका बहिष्कार कीजिए !उनका आपसे और आपके क्षेत्र से कोई लगाव नहीं दिखता है और न ही आपके विकास से उनका कोई लेना देना ही नहीं होता है ये तो केवल अपने और अपनों को राजनैतिक ऊँचाइयों पर पहुँचाने एवं आपके क्षेत्र के विकास के लिए पास किए गए धन से अपना घर भरने के लिए आते हैं राजनीति में !
   राजनैतिकपार्टी मालिकों के मुख फटे पड़े हैं वो जितने माँगते हैं ये उतने भर देते हैं उनके मुख में  ये टिकट दे देते हैं उन्हें !अरबों खरबों की प्रापर्टियाँ बना लेते हैं बाद में वो !  
 विशेष - राजनीति के आरोपों प्रत्यारोपों के माध्यम से भ्रष्टाचारी चालाक नेता अपनी चोरी छिपाना चाहते हैं इसीलिए किया करते हैं बिना सिर पैर की बकवास !और ज्यादा बकवास करने वाले नेता प्रायः ईमानदार नहीं होते !








Saturday, 11 June 2016

अधिकारी बेंच रहे हैं अपराध और अपराधी खरीद रहे हैं यही भ्रष्टाचार न होता तो कैसे होते अपराध ?

    सरकारों में सम्मिलित लोग ,सरकारी कर्मचारी और अपराधी ही सभी प्रकार के अपराधों के जन्मदाता हैं !इसके अलावा अपराध की गुंजाइस ही बहुत कम रह जाती है ! 
    सरकार ने अपने अधिकारियों कर्मचारियों के लिए तो आफिसों में AC लगा रखे हैं लाखों रूपए महीने की सैलरी उसके ऊपर दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोत्तरी, ऊपर से सातवें वेतन आयोग की सुविधाएँ इतनी सारी दौलत उड़ेले जा  रही है सरकार !फिर भी सरकार उन अपने दुलारों को अपराध करने से रोक नहीं पा रही है देखिए बिहार का टॉपरकांड या मथुरा का महाभारत बिना अधिकारियों की मिली भगत के घटित हो सकते हैं ऐसे कांड क्या ?सरकार इन्हें रोकती नहीं है इसमें सरकार का होगा कोई स्वार्थ भगवान जाने !अपराध करना सरकारी कर्मचारियों की मजबूरी नहीं है किंतु अपराधियों की तो मजबूरी है!
      सरकार उन अपराधियों पर अंकुश लगाने की बात  किस मुख से करती है जिन्हें सैलरी नहीं देती है क्या उनके पेट नहीं हैं क्या उन्हें भूख नहीं लगती है क्या वे इस देश के नागरिक नहीं हैं क्या उनका पेट भरना सरकार की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिेए क्या !आखिर वे लोग अपराधी क्यों और घूसखोर सरकारी अधिकारी कर्मचारी अपराधी क्यों नहीं !
    सरकारी अधिकारी कर्मचारी तो सरकार के अधिकाँश विभागों में काम करने की योग्यता न होने के कारण बेइज्जती करवा रहे हैं  अधिक क्या कहें ये सरकारी अधिकारी कर्मचारी भ्रष्टाचारयुग में ही तो नियुक्त हुए हैं इसलिए ये जिन जिन पदों पर बैठे या बैठाए गए हैं या जो जो जिम्मेदारी इन्हें सौंपी गई है किसी का तो निर्वाह नहीं कर पा रहे हैं!सरकारी डॉक्टर ,डाक कर्मचारी ,दूरसंचार विभाग ,शिक्षा विभाग आदि से जुड़े लोगों की थू थू मची हुई है वहीँ उनसे चौथाई या उससे भी कम सैलरी लेकर भी प्राइवेट वाले डॉक्टर, कोरियर ,मोबाईलकंपनियाँ  और शिक्षक कितनी अच्छी सेवाएँ देते हैं कितने प्रेम से बातें करते हैं ।
  ये इसी रेट पर मार्केट में आसानी से उपलब्ध भी हैं इनके मन में इनके काम की कदर भी है फिर भी इनके सारे  गुण नजरंदाज करके सरकार उन लोगों पर ही अंधाधुंध सैलरी क्यों लुटाती जा रही है उतने पैसों में ये अधिक कर्मचारी क्यों नहीं रख लेती और अपने पुराने वालों की परीक्षा ले वो जिन पदों पर बैठे हैं उस लायक हैं भी या नहीं न हों तो उनसे अभी तक की सैलरी वसूले और निकाल बाहर करे !
   अजीब सी अंधेर है कि जो जनता के लिए रखे गए हैं किंतु जनता ही उनसे संतुष्ट नहीं है फिर भी सरकार उनसे खुश है न जाने क्यों ?जबकि उन्होंने आज तक अपने काम की जिम्मेदारी समझी ही नहीं है और समझें भी क्यों ?जनता का मन जीतने की उन्हें जरूरत भी क्या है जब सरकार ऐसे ही उन पर मेहरवान है!ये जानते हुए भी कि काम करना उनकेवश का है ही नहीं !
      घूस लेने का उनका अपना स्वैच्छिक अधिकार है !ये लाखों रूपए पाकर भी घूस लेने का अपराध करते हैं तो वो अपराधी यदि अपराध करते हैं तो इसमें गलत क्या है ! पेट तो उनके भी लगा है और धंधा उनके पास क्या है !
    अपराधों पर अंकुश लगाना सरकारों के बश का ही नहीं है क्योंकि सरकार अपने जिन अधिकारियों कर्मचारियों को  इतनी मोटी मोटी सैलरी देती है फिर भी यदि उन अधिकारियों कर्मचारियों के पेट नहीं भरते और वो घूस लेकर अपराध करवाते हैं तो जिन अपराधियों को सरकार कोई सैलरी नहीं देती है उनसे ये उम्मींद कैसे करती है कि वे अपराध न करें क्या वे इस देश के नागरिक नहीं हैं क्या उनका पेट भरने की जिम्मेदारी सरकारों की नहीं होनी चाहिए !
      आम जनता  यदि अपराध करना भी चाहे तो इतना महँगा अपराध अफोर्ट ही नहीं कर सकती है आम जनता! इन सरकारी अधिकारियों  कर्मचारियों के लटकों झटकों से परेशान आम जनता इनसे लीगल काम करवाने की तो हिम्मत नहीं कर पाती है उस जनता के अनलीगल काम ये अधिकारी आखिर कैसे कर देंगे !
       सरकारों में सम्मिलित नेताओं की अत्यधिक कमाई का स्रोत है अपराध ! पैतृकसंपत्ति + आमदनी - खर्च के  बराबर होनी चाहिए नेताओं की वर्तमान संपत्ति किंतु उससे कई गुना अधिक हैं वो अधिक वाली आती कहाँ से है उसके स्रोत क्या हैं इसका कोई हिसाब किताब ही नहीं है वो पता लग जाए तो सारी पोल खुल जाए ये सार रहस्य अधिकारियों को पता होता है तो उनका मुख बंद करे के लिए या तो उन्हें भी कमाई करवाते हैं या फिर उनकी सैलरी बढ़ा दी जाती है सब कुछ मिलजुल कर सलाह पूर्वक चल रहा नेताओं और सरकारी कर्मचारियों की कमाई का काला बाजार !
        सरकारी अधिकारी कर्मचारियों की  सैलरी इतनी भारी भारी !ऊपर से सातवाँ बेतन आयोग ! इतने  भी जिसे सैलरी कम लगती है सो भ्रष्टाचार का सहारा ले रहे हैं !केवल जनता पिस रही है उसकी चिंता किसी को नहीं है ,बारी सरकार ! बारे लोकतंत्र !
    लोकतंत्र के नाम पर सरकारों में सम्मिलित लोगों का और सरकारी अधिकारी कर्मचारियों को देश और देश की संपत्ति भोगने के सारे अधिकार प्राप्त हैं और काम की जिम्मेदारी जीरो परसेंट भी नहीं है !
      ये लोग आफिसों में जाएँ या न जाएँ या कितनी भी देर के लिए जाएँ जाकर भी काम करें या न करें कभी भी बता दें नेट नहीं आ रहा है कम्प्यूटर खराब है प्रिंटर काम नहीं कर रहा है जुकाम है घर से फोन आ रहा है सब्जी लेकर जाना है साढ़ू आ गए हैं कुत्ता बीमार है पड़ोसी के बच्चे का जन्म दिन है अमेरिका में भूकम्प आया है बच्चे घबा रहे हैं इसलिए घर जाना है आदि आदि कभी भी कुछ भी बोलकर आफिस छोड़कर चल दें और बता दें कि आफिस के काम से कहीं भेजा जा रहा है या मीटिंग में जा रहे हैं कुल मिलाकर आफिसों में काम न करने के हजार बहाने खोज लिए  जाते हैं और बहाने कोई न कोई मिल ही जाते हैं !कुछ नहीं तो आफिस में चूहा मर मिल जाता है तो वोमिटिंग लगने का बहाना बंद सारी  आफिस का काम काज !हाँ ,केवल घूस देने वालों के काम तो महीने के तीसों दिन चैबीसो घंटे कभी भी हो सकते हैं।  कम्प्यूटरों पर नाचती अँगुलियों की गति बता देती है कि ये काम प्राइवेट घूस की ताकत से चल रहा है या सरकारी सैलरी के बलपर !
     लगता है कि जैसे भ्रष्टाचार और  अपराध भी सरकारी योजनाओं के अंग हों !क्योंकि ईमानदार सरकारें अपनी ईमानदारी प्रचारित करने के लिए पोस्टर नहीं छपवाती हैं अपितु भ्रष्टाचार समाप्त करती हैं और भ्रष्टाचार घटते ही अपराध मुक्त हो जाता है समाज !किंतु भारत के भाग्य में ईमानदार  सरकारें लगता है लिखी ही नहीं है जो अपने शासन से जनता को एहसास करा सकें कि वे ईमानदार हैं !
      जब एक बात निश्चित है कि सारे भ्रष्टाचार की जड़ सरकार और उसके अधिकारी कर्मचारी ही हैं हो सकता है कि कुछ लोग उनमें  ईमानदार भी हों किंतु उनकी संख्या बहुत ही कम होगी ये बात इसलिए विश्वास पूर्वक कही जा सकती है कि यदि सरकारों और सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों में ईमानदार लोग अधिक होते तो अपराधों पर अंकुश लगता दिखता किंतु अभी तक ऐसा कुछ कहीं होता दिख नहीं रहा है जबकि अपराध दिनोंदिन बढ़ते जरूर देखे जा रहे हैं इसका सीधा सा मतलब है कि सरकार और उसके अधिकारी कर्मचारी अपनी सैलरियों से संतुष्ट नहीं हैं तभी तो भ्रष्टाचारके माध्यम से उस कमी को पूरा  करने का प्रयास करते रहते हैं ।
   ऊपर से सातवाँ वेतन आयोग सरकार सरकारी लोगों को तो भोगवा रही है सारे राजभोग !जनता का भला करने का केवल भाषण केवल ढोंग !
       जनता से पर्दा करके योजनाबद्ध ढंग से लूटा जा रहा है देश ! वर्तमान पक्षपात पूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया में किसी की कोई जवाबदेही नहीं है ! सरकार के हर विभाग में भ्रष्टाचार है इसीलिए हर विभाग अपने अपने विभागों से संबंधित अपराध एवं अपराधियों के प्रोडक्सन के लिए जिम्मेदार है !


Friday, 10 June 2016

मोदी जी के सामने अमेरिकी सांसदों ने खूब की उठक बैठक देश के मोदी विरोधी नेता भी उनसे सभ्यता सीखें !

     अरे  काँग्रेसियो !केजरीवालो !लालूप्रसादो !अब तो बंद कर दीजिए मोदी जी की निंदा उन्होंने विदेशों में भी अब अपनी पात्रता सिद्ध कर दी है सत्ता के लिए देश की प्रतिभा को दाँव पर लगाना ठीक नहीं है ।
    सब कुछ देखकर इससे इतना तो सिद्ध हो ही गया है कि मोदी जी का बीजा  अमेरिका ने नहीं अपितु काँग्रेस ने रोक रखा था ! कांग्रेसी और कांग्रेस सहयोगी सरकार के लगभग 65 सांसदों ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को पत्र लिखकर मोदी जी को अमेरिकी वीज़ा ना देने का अनुरोध किया था| इन बेशर्म नेताओं ने भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि की भी परवाह नहीं की थी !
  केजरीवालजी अक्सर मोदी जी की निंदा किया करते हैं किंतु आतंकवादियों नकसलियों से केजरीवाल को उतनी समस्या नहीं है जितनी मोदी जी से है किसी ने कभी केजरीवाल के मुख से आतंकवादियों नकसलियों देश द्रोहियों की निंदा आलोचना सुनी हो तो बताओ यदि नहीं तो मोदी जी की झूठी आलोचना राष्ट्रविरोधी शक्तियों को प्रसन्न करने के प्रयास में क्यों लगे रहते हैं केजरीवाल !
     लोकसभा चुनावों में देश के सामने PM प्रत्याशी के रूप में एक मात्र मोदी जी ही थे ! भाजपा को छोड़कर किसी भी पार्टी के पास नहीं था कोई PM प्रत्याशी !होता तो सामने लाया जाता। 
     इसलिए मोदी सभी नेताओं से मेरा निवेदन है किनरेंद्र मोदी जी की सरकार के विरुद्ध  हुल्लड़ करना ठीक नहीं है !उन्हें अभी कुछ करने भी तो दीजिए !!अन्यथा तीनवर्ष का लंबा समय क्या अविश्वास पूर्वक ही बिताया जाएगा ?

   प्रधानमंत्री सारे देश का प्रतिनिधत्व करता है इसलिए उसे कमजोर करके प्रस्तुत करना ठीक नहीं होगा !

  यदि मोदी जी पर विश्वास नहीं था तो इतना बहुमत क्यों दिया और यदि विश्वास किया है तो थोड़ा धैर्य भी करना चाहिए हो न हो उन्होंने भी कुछ अच्छा ही सोचा हो !

अभी वर्षों के कार्यकाल में इस सरकार में कोई घपला घोटाला नहीं मिला है जनहित के कई कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया गया है विदेशी शाख बनाई एवं बढ़ाई गई है सबके बाद हर किसी की शंकाओं के समाधान करने के पारदर्शी प्रयास किए जाते हैं इतने के बाद भी कुछ लोगों के द्वारा बात बात में मोदी जी को सामाजिक तौर पर सीधे चुनौती देने लगना इसलिए ठीक नहीं है कि चुने हुए प्रधानमंत्री को भी कुछ अधिकार तो देने पड़ेंगे यदि मोदी जी गुजरात का विकास करने में सफल हुए हैं तो देश का विकास करने में भी सफल होंगे वो PM के रूप में पूरी तरह नौसिखिया नहीं हैं चूँकि वो CM के रूप में कई वर्ष तक लोकप्रिय शासन चला चुके हैं और दो वर्ष से PMपद का सफल दायित्व निर्वहन कर रहे हैं । 
कांग्रेसी और कांग्रेस सहयोगी सरकार के लगभग 65 सांसदों ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को मोदी जी को अमेरिकी वीज़ा ना देने का अनुरोध किया था | इन बेशर्म नेताओं ने भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि की परवाह कि ....

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कांग्रेसी और कांग्रेस सहयोगी सरकार के लगभग 65 सांसदों ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को मोदी जी को अमेरिकी वीज़ा ना देने का अनुरोध किया था | इन बेशर्म नेताओं ने भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि की परवाह कि ....

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कांग्रेसी और कांग्रेस सहयोगी सरकार के लगभग 65 सांसदों ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को मोदी जी को अमेरिकी वीज़ा ना देने का अनुरोध किया था | इन बेशर्म नेताओं ने भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि की परवाह कि ....

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कांग्रेसी और कांग्रेस सहयोगी सरकार के लगभग 65 सांसदों ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को मोदी जी को अमेरिकी वीज़ा ना देने का अनुरोध किया था | इन बेशर्म नेताओं ने भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि की परवाह कि ....

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Tuesday, 7 June 2016

पर्दा पृथा का विरोध करने वाले लोग इस पृथा का विकल्प अभी तक तो खोज नहीं पाए !

               पर्दा होने और न होने का अंतर !  
  हमें यह भी याद रखना चाहिए कि रसगुल्लों से भरा थाल लेकर हम कितनी भी देर चौराहे पर बैठे रहें  किंतु यदि उन पर पर्दा पड़ा है तो उन्हें खाने के लिए न कोई ललचाता है न  उनका भाव पूछता है और न ही उनकी कीमत लगाने की ही हिम्मत करता है किंतु यदि उन पर से पर्दा हटा लिया जाए तो देखने वालों की लार भी  बहने लगती है लोग भाव भी पूछने लगते हैं और कीमत भी लगाने लगते हैं ! 
    पर्दा पृथा के पीछे का भाव महिलाओं से शत्रुता न होकर अपितु महिलाओं की सुरक्षा था !पर्दापृथा हटी सुरक्षा संकट में आखिर कोई तो जिम्मेदारी ले महिलाओं की सुरक्षा की !पुलिस के बश की नहीं है महिला सुरक्षा और न ही सरकार से उम्मींद की जानी  चाहिए इन्हें कुछ करना होता तो अब तक कर चुके होते और जो करना था वो कर चुके !अब तो खुद ही करना है जो करना है । सुरक्षा कम स्वरक्षा का अभ्यास करना चाहिए !
     हमारे शारीरिक भूगोल का सबसे बड़ा अनुभव हमें होता है कि हमारे शरीर के दर्शनीय स्थल कौन कौन से हैं और पर्यटकों के लिए किन्हें खुला छोड़ना है किन्हें बंद रखना है !नदी नाले पहाड़ उपवन सरोवर रूपी तीर्थों के कपाट कब खोलने हैं कब बंद रखने हैं किसके सामने खोलने हैं किसके सामने बंद रखने हैं कौन दिखाने हैं कौन छिपाने हैं ये सारा निर्णय उस शरीर के मालिक का अपना होना चाहिए जो उस शरीर को धारण करता है किंतु उसका निर्णय फैशन बनाने वाले लोगों और कपड़े बनाने वाले दर्जियों पर नहीं छोड़ देना चाहिए !अन्यथा वो ऐसी ऐसी जगह कपडे काट देंगे कि कपड़े पहनने की प्रासंगिकता ही समाप्त हो जाएगी !इसलिए हमारी वेषभूषा का निर्णय हमारा अपना होना चाहिए !
     यदि हम अपने को मूल्यवान समझते हैं तो हमें अपने को उनसे बचाकर चलना चाहिए जिनसे हमारी सुरक्षा को खतरा है हमें वैसे नहीं रहना चाहिए जैसे  रहने से हमारी सुरक्षा पर संशय हो !
     फैशन के नाम  पर किसका कौन सा कपड़ा दरजी ने कहाँ कहाँ काट दिया हो पता नहीं किंतु इतना होश तो पहनने वाले को भी रखना चाहिए कि हमारे शरीर में ऐसा कौन सा दर्शनीय स्थल है जिसे दरजी ने जिसे पर्यटकों के लिए खुला छोड़ना इतना जरूरी समझा है । 
     महिलाओं के दिमाग में खुलेपन और फैशन की  हवा वो लोग भरा करते हैं जिनका महिलाओं की सुरक्षा से कोई लेना देना ही नहीं होता वे महिलाओं को केवल एक मशीन समझते हैं ऐसे भटके हुए विचारकों को खुले मंच पर चुनौती है कि वो उपाय भी तो सुझाएँ कि महिलाओं की सुरक्षा के बारे में वे क्या सोचते हैं !सभी महिलाओं को पुलिस कैसे और कहाँ तक रखावे !अगर पुलिस के बश का होता तो ठीक हो जाता अबतक किंतु सारे उपाय करने के बाद भी महिलाओं के प्रति हो रही हिंसात्मिका घटनाएँ चिंतनीय हैं !यदि पर्दा पृथा बंद हुई और महिलाओं के खुलेपन का समर्थन किया गया तो इसका लाभ क्या हुआ !
    कुछ दिमागी दिवालिया लोगों की सीख में आकर फैशन के नाम पर आए दिन हो रही हैं महिलाओं की हत्याएँ आखिर पर्दा पृथा बंद करवाने वाले महिला शरीरों के खुलेपन  के समर्थक लोग सरकारों को कोसने के अलावा महिलाओं की सुरक्षा के लिए खुद क्यों नहीं करते हैं कुछ !
    भाई-बहनों, पिता-पुत्रियों, मामा-भांजियों, चाचा -भतीजियों,  देवर- भाभियों , ससुर और बहुओं के संबंध पहले तो नहीं सुने जाते थे इतने किंतु आज कल तो अक्सर सुनने को मिल जाते हैं ये पर्दा पृथा को बंद कराने के साइड इफेक्ट हैं । मजे की बात ये है कि पर्दाविरोधियों के पास इस बात के जवाब भी नहीं हैं  और न ही महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई प्रभावी चिंतन केवल अपनी बासनात्मिका दृष्टि का चारा तैयार करने के लिए किया करते हैं पर्दा पृथा का विरोध !
     आज महिलाओं की सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती है समाज में राक्षसी वृत्तियाँ महिला शरीरों को देखकर जिस तरह से पागल होती देखी जा रही हैं उसमें फैशन जैसी चीजों की उपेक्षा करके सबसे पहली प्राथमिकता सुरक्षा को दी जानी चाहिए जिसके लिए पर्दा पृथा और सतर्कता दोनों आवश्यक हैं सरकारी सुरक्षा तो होनी ही चाहिए किंतु रोड पर निकलने वाली हर महिला को सिक्योरिटी नहीं दी जा सकती !ये आम लोगों की बात है रही बात बड़े लोगों की वे कोठी से निकले गाड़ी में बैठ गए कई के पास तो सिक्योरिटी भी होती है वे जैसे चाहें वैसे रहें किंतु उनकी नक़ल आम महिला नहीं कर सकती !इसलिए मुख ढकना पड़े तो ढकें किंतु अपने बहुमूल्य जीवन की सुरक्षा का लक्ष्य सर्वोपरि रखें !
      यदि पर्दा नहीं तो कोई और रास्ता भी नहीं है खुली समाज में खुलेपन में रहने वाली महिलाओं की सुरक्षा का ! जैसे बहुत बड़ा बहुमूल्य खजाना लेकर वो भी खुला कंगलों की बस्तियों से निकलना बुद्धिमानी नहीं होती उसी प्रकार से महिला शरीरों के भुक्खड खुले शरीरों को देखकर कब कहाँ आपा खो बैठें किसको पता !कोई दुर्घटना घटने से पहले कम्प्लेन कैसा और घटना घटने के बाद कम्प्लेन का लाभ क्या ? जो कुछ होना था वो हो गया अब अपराधी को फाँसी भी हो जाए तो पीड़ित को क्या लाभ !इसलिए समाज के कुछ नासमझ थोथे लोग महिला समाज में खुलेपन के नामपर हवा भरा करते हैं किंतु सुरक्षा की बात कर दो तो वो लोग दाँत चिआर देते हैं !

अफसरों और नेताओं की मिली भगत से होता है मथुरा जैसा महाभारत और बिहार जैसा टॉपरकांड !!

    भ्रष्ट अफसरों को कोई ईमानदार व्यक्ति घूस क्यों देगा और भ्रष्ट नेताओं को ईमानदार लोगों की आवश्यकता क्या है ?ईमानदार आदमी बातें तो बना सकता है किंतु ऊपरी कमाई नहीं करवा सकता !ईमानदार लोग तो बोझ हैं लोकतंत्र पर !
     सभी प्रकार के अपराध नेताओं और अफसरों की साँठ गाँठ से ही होते हैं ! दुर्भाग्य ये है कि जब उन अपराधों की जाँच की बारी आती है तो सरकारों में सम्मिलित वही नेता जाँच करवाते हैं और वही अफसर जाँच करते हैं वही पूर्व परिचित अपराधी होते हैं !इस प्रकार से जहाँ सभी अपने होते हैं वहाँ दूध का दूध और पानी का पानी की तो कहावत है बाक़ी यहाँ होना तो पानी का भी दूध ही दूध होता है ।अपराधियों के निडर होने का यही तो रहस्य है ।सरकारी अधिकारी हों या कर्मचारी आम जनता से नहीं मिलते और न ही आम जनता ही उनसे मिलना चाहती है क्योंकि सच पूछो तो अफसर लोग जनता के किसी काम के होते ही नहीं हैं ! अफसरों  पर अंकुश लगावे सरकार और सरकारों पर अंकुश लगावें अफसर तब तो हो सकता समाज में कुछ सुधार !क्योंकि अफसरों की असफलता के प्रमाण हैं अपराध ! अफसर सतर्क हों तो बंद हो जाएँ अपराध ! नेताओं को चुनाव जीतने के लिए चाहिए होती है अपराधियों की मदद ! उसका एहसान पाँच साल तक चुकाया करते हैं नेता !उन्हीं नेताओं के बल पर अपराधी ठाठ से करते हैं अपराध !
    जितने कानून बनते हैं उनमें से पालन कितने का होता है बाकी सारे कानून तोड़ना जनता की अपनी मजबूरियाँ हैं सरकारी मशीनरी उन मजबूरियों की कीमत वसूलती है यही तो उनकी कमाई का साधन है इसे कैसे कोई रोक सकता है !ईमानदारी का पालन ईमानदारी से होता हो न होता हो किंतु बेईमानों के बीच ईमानदारी का पालन बड़ी ईमानदारी से होता है ।अपराधियों में आपसी विश्वास बहुत मजबूत होता है किंतु अपराधियों के ऐसे मकड़जाल का भेदन कौन करे !इसलिए अपराध सहने का अभ्यास जनता को ही कर लेना चाहिए !लाचार लोकतंत्र में अपराधियों से बचने का यही एक मात्र उपाय है । 

घूस हमेंशा गलत आदमी देता है घूसखोरी का मतलब है अपराध को बढ़ावा !

            शिक्षित  सजीव  एवं समझदार स्त्री पुरुष अगर चाहें तो अभी भी हो सकता है समाज में बड़ासुधार ! 

 किस अपराध को करके बचने के लिए कितने पैसे लगते हैं !नेताओं अधिकारियों कर्मचारियों पर ये सबसे बड़ा आरोप है इसके विरुद्ध उन्हें स्वयं देना होगा कठोर संदेश !
   घूस खोरी रोकने के लिए कठोर से कठोर सजा का प्रावधान किया जाए !सभी प्रकार के अपराधों की जड़ में है घूस !
      सरकारों और प्रशासन से समाज सुधार की उम्मींद तब तक नहीं की जा सकती जब तक घूसखोरी , भ्रष्टाचार आदि बिलकुल बंद न हो !क्योंकि सरकार हो या सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार से मिला पैसा उनकी पहली पसंद बन चुका है सैलरी तो उन्हें और उनके घरवालों को जन्म सिद्ध अधिकार दिखती है जैसे बरसात में पानी बरसेगा ही ,ठंड में शर्दी पड़ेगी ही ,गरमी में मौसम गर्म होगा ही  उसी तरह लोग सोचते हैं सैलरी तो मिलेगी उसके लिए क्या खुश होना !घर वालों में भी सैलरी के प्रति कोई उत्साह ही नहीं होता है साथ ही सरकारी नौकरियों में आराम ज्यादा है कि घर वाले कभी ये मानते भी नहीं हैं कि ये कुछ काम करके आए हैं उनसे ज्यादा घरों में वो अपने को बिजी समझते हैं घर के काम के लिए नौकर रखे हुए हैं और आफिस में क्या काम !वहां तो दस किलो बोझा उठाना हो तो करें विभाग को एप्लीकेशन भेज दी जाएगी !इसलिए वो आफिस में खाली वो घर में शाम को  या तो पिकनिक या फिर आखिर शाम पर कैसे हो !इसीलिए और भी तमाम प्रकार के सूझते हैं खुराफात !आत्म ह्त्या की घटनाएँ नशाखोरी या आराम पसंदगी की देन  है ! 


ज्योतिष की जरूरतें कैसे पूरी हों !
     विवाह, संतान, व्यापार, मकान, दुकान या बीमारी आदि से संबंधित नैतिक जरूरतों के लिए तो ज्योतिष जरूरी है ही

Sunday, 5 June 2016

बिहार के शिक्षा विभाग के अधिकारी जिन पदों पर बैठे हैं वो उस लायक हैं भी या नहीं पहले इसकी भी जाँच कराई जाए !

   परीक्षा लेना और कॉपी जाँचना जिन्हें नहीं आता है वे टॉपर बच्चों की परीक्षा रद्द करवा रहे हैं देखो तो अंधेर !उलटा चोर कोतवाल को डांटे !
   घूस देकर नौकरियाँ पाने वाले शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारियों कर्मचारियों की योग्यता का पुनः परीक्षण हो जो उसमें पास हों वे रखे जाएँ अन्यथा खदेड़ बाहर किए जाएँ !जनता के टैक्स से सैलरी पाने वाले लोग यदि जनता के काम न आ सकें जनता का भरोसा न जीत सकें तो ऐसे लोग देश के किस काम के !
    सरकार निकाल बाहर करे उन्हें नौकरियों से और उनसे वसूली जाए अब तक की सारी सैलरी ऊपर से  चलाया जाए धोखाधड़ी का मुक़दमा !बिहार सरकार यदि ईमानदार है तो अपनी न्याय प्रियता का परिचय दे !
    वैसे तो पूरे देश में ही अधिकारियों कर्मचारियों का पुनः योग्यता परिक्षण हो क्योंकि देश के किसी विभाग के अधिकारी कर्मचारी अपनी सेवाओं से समाज को संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं इन की जिम्मेदारी है ये या तो जनता का विश्वास जीतें और यदि ऐसी योग्यता सेवा भावना न्यायप्रियता नहीं है तो वो जिस लायक हैं जाकर वो करें सरकारी पदों को छेककर न बैठें !सरकारी विभागों के घपले घोटाले भ्रष्टाचार घूसखोरी और बढ़ते अपराध उन विभागों से जुड़े अधिकारियों कर्मचारियों की अयोग्यता को दर्शाते हैं यदि योग्यता होती तो कंट्रोल कर लेते !
  मूर्खों भ्रष्टों और बेशर्मों का समुद्र है शिक्षा विभाग !अधिकारी स्कूलों में झांकने तक नहीं जाते हैं शिक्षक पंचायतें किया करते हैं । सरकार ने आफिसों में लगवा रखे हैं AC निकलने का मन किसका होता है वैसे भी गरीबों के बच्चे यदि पढ़ भी जाएंगे तो अधिकारीयों को कौन कमाकर खिलाएंगे ! 
    शिक्षा विभाग में घूस और सोर्स के बिना कहीं बात ही नहीं बनती है इसीलिए तो पढ़ेलिखे ईमानदार लोग आज बेरोजगार हैं! बेचारे बच्चों के लिए ईमानदारी की बातें !वैसे भी अनपढ़ गँवार लोग मंत्री बनें तो ठीक और टॉपर बनें तो गलत क्यों ?पढ़े लिखे लोग ईमानदार लोगों को राजनीति में कोई नहीं पूछता है न सरकारी नौकरियों में और व्यापार वो कर नहीं सकते सरकारों को समझ नहीं है कि उनका उपयोग कहाँ करें !

टॉपर के लिए चित्र परिणाम
बिहारसरकारकेशिक्षास्वाभिमान 
     शिक्षाबोर्ड  में ही यदि पढ़े लिखे कर्तव्य निष्ठ लोग होते और उन्हें ही सैलरी लेने की थोड़ी भी शर्म होती तो ये परिस्थितियाँ पैदा ही क्यों  होतीं !आखिर इन बच्चों को टॉपरबनायाकिसने !             शिक्षकों अधिकारियों कर्मचारियों की भी योग्यता का परीक्षण क्यों न हो !क्या वो उन पदों के लायक हैं जहाँ  जमे बैठे हैं आज !हो सकता है उन्हें परीक्षा लेना और कॉपी जाँचना ही न आता हो ! या फिर खरीद ही लिए गए हों !क्योंकि पढ़े लिखे ईमानदार लोगों को नौकरियाँ मिलती कहाँ हैं जिनका भाग्य बहुत अच्छा हो उनकी तो बात ही और है बाकी तो नौकरियों के लिए परीक्षा कम नीलामी ज्यादा होती है वैसे तो सरकारी नौकरी पाने के लिए शिक्षा हो न हो घूस और    सोर्स हो तो आप हो सकते हैं सरकारी कर्मचारी !
      शिक्षकों में बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है कि वो जिन कक्षाओं को पढ़ाने के लिए स्कूलों पर थोपा गया है उन्हें खुद उन कक्षाओं की परीक्षाओं में बैठा दिया जाए तो वो बड़े गर्व से फेल हो जाएँगे !वहीँ दूसरी ओर बहुत पढ़े लिखे होनहार लोग जलालत की जिंदगी जी रहे हैं उनके पास घूस देने के लिए पैसे नहीं थे सोर्स नहीं था इसलिए !मेरी बात पर यदि भरोसा न हो तो सरकार अपने नियुक्त शिक्षकों से उन विषयों में खुली बहस करवाकर देख ले धूल चाटते फिरेंगे ये सरकारी भ्रष्टाचार के प्रोडक्ट !
       सरकार के ऐसे अधिकारियों कर्मचारियों ने न जाने कितने बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ किया होगा कितने अनपढ़ों को टॉपर  बनाया होगा !कितने होनहार बच्चों को फेल किया होगा !अब उनके साथ न्याय कैसे हो ! किंतु इस बीमारी को दूर करने की जिम्मेदारी सरकारों की होती है सरकारों में शिक्षित लोग होते कितने हैं शिक्षित लोगों को राजनीति में पसंद कौन करता है जो शिक्षित होते भी हैं वो भी लगभग उन्हीं की भाषा बोलने लगते हैं उन्हीं के जैसा बात व्यवहार !इसलिए नेताओं से क्या उम्मींद की जाए !
     समय समय पर अधिकारियों कर्मचारियों की योग्यता का परीक्षण और इनके काम का मूल्यांकन होता रहे तो पता लगे कि वो जिन पदों पर काम कर रहे हैं उस लायक हैं भी क्या ? घूस और सिफारिस के नाम पर नौकरियाँ पाने वाले सरकारी अधिकारी कर्मचारियों का बहुत बड़ा वर्ग फेल हो जाएगा ऐसी योग्यतापरीक्षण परीक्षाओं में ! रही बात मूल्यांकन में उसमें तो वैसे भी फेल ही हैं उसमें पास इन्हें मान कौन रहा है सारे अपराधों भ्रष्टाचारों के जनक हैं ये !सरकारों में सम्मिलित लोगों की कमाई करवाते रहते हैं इसलिए सरकार इनकी सैलरी बढ़ाती और पीठ थपथपाती रहती है !बाकी और पसंद कौन करता है इन्हें !
   आज 10 -15 हजार रुपए देकर प्राइवेट स्कूल इतनी अच्छी शिक्षा दे रहे हैं कि सारे सरकारी कर्मचारी और सरकारों में सम्मिलित लोग और धनी लोग  उन्हीं स्कूलों में पढ़वा रहे हैं अपने बच्चे !फिर भी सरकारी स्कूलों में पचासों हजार सैलरियाँ उन्हें देते हैं जिन्हें उठने बैठने बोलने चालने का भी ढंग नहीं होता वो पढ़ाएँगे क्या ?वो तो छोटे बच्चों की तरह स्कूलों कक्षाओं से इतना डरते हैं कि बहाने बना बना कर भाग आते हैं कक्षाओं से स्कूलों से सरकार उन्हें सैलरी बढ़ाने का लालच दे देकर घेर घेर कर बैठाती है स्कूलों में ऐसे कहीं होती है पढ़ाई !      
    वैसे भी वो पढ़े हों तो पढ़ाने में मन लगे जिस गाय के पास दूध होगा वही तो पेन्हाएगी ठठुआ गायों से दूध की उम्मीद लगाए बैठी है सरकार !वैसे भी प्राइमरी स्कूलों के शिक्षक तो ढो रहे हैं अपनी अध्यापकी !उन्हें पढ़ने के अलावा सबकुछ आता है ये मीटिंग बहुत अच्छी कर लेते हैं इन्हें जुकाम भी हो गया हो और जुकाम की चर्चा करते करते गुजार देते हैं पूरा दिन !
    अधिकारी इतने गैर जिम्मेदार हैं कि वो शिक्षा के प्रति अपना दायित्व ही भूल चुके हैं शिक्षा की क्वालिटी क्या सुधारेंगे !
      संस्कृत पढ़ाने वाले शिक्षकों के नाम पर ऐसे लोग रखे जाते हैं जिनमें 99 प्रतिशत लोग तो संस्कृत बोल ही नहीं पाते हैं संस्कृत पढ़ाएँगे क्या ख़ाक !फिर भी सरकार इतनी दयालु है कि उन्हें भी 50-60 हजार सैलरी देती है संस्कृत पढ़ाने की ! दूसरी ओर संस्कृत बोलने समझने और पढ़ने पढ़ाने वाले लोग घूम  रहे हैं बेरोजगार उनके पास घूस देने के पैसे नहीं हैं !ऐसे ही अधिकारी कर्मचारी कर रहे हैं शिक्षा का सत्यानाश !
    मजे की बात ये है कि कम पैसों में प्राइवेट स्कूलों को शिक्षक आराम से मिल जाने पर भी सरकार महँगे शिक्षक रखती है अपना अपना शौक !अन्यथा उतनी सैलरी में एक की जगह चार शिक्षक रखकर बेरोजगारों की बेरोजगारी दूर की जा सकती है और स्कूलों को अधिक शिक्षक उपलब्ध कराए जा सकते हैं अधिक संख्या होने पर सरकारी शिक्षक होने के नाते शिक्षा की उम्मींद तो नही जा सकती फिर भी सुरक्षा की उम्मींद तो की ही जा सकती है ! उन्हें बातें ही तो करनी होती हैं जैसे आफिस में बैठ के करते हैं वैसे गेट के सामने बैठ के करेंगे !
   बच्चों ने कर्तव्यभ्रष्ट सरकार के मुख पर तमाचा मारा है ! मेरी ओर से तो टॉपर बच्चों को बधाई उनकी मूर्खता  बिहार के काम तो आई !पढ़ लिखकर वो देश और समाज की इतनी मदद नहीं कर सकते थे !मूर्खों को महत्त्व  देती हैं सरकारें तो टॉपर  बनाने से ज्यादा खतरनाक है मूर्खों को मंत्री बनाना !मूर्ख मंत्री कब किससे क्या बोल बैठे क्या कर बैठे क्या भरोस !  नितीश कुमार की नकलनीति जिन्हें टॉपर बनाया उन बच्चों को जलील क्यों किया जा रहा है !
  सरकारी कर्मचारी खुद काम करना नहीं चाहते सरकार उनसे काम लेना नहीं चाहती !बच्चों का दोष देते हैं । सरकारी कर्मचारियों का एक बड़ा वर्ग समाज से कमा कर उसका कुछ हिस्सा सरकार को देता है सरकार खुश होकर उनकी सैलरी बढ़ा देती है !सरकार भी खुश वो भी खुश !सरकार के हर विभाग में भ्रष्टाचार है किंतु उसे पकड़े कौन !उस पर एक्सन लेने का मतलब है सरकार और सरकारी कर्मचारियों दोनों का नुक्सान !
   कुल मिलाकर टॉपर होकर  बेचारे किसी को सताते तो नहीं हैं !मूर्ख मंत्रियों को तो कोई कुछ नहीं कहता फिर मूर्ख टॉपरों को क्यों जलील किया जा रहा है
बिहार के टॉपरों को कुछ नहीं आता इसमें उनका क्या दोष ?
 शिक्षक कापियाँ ही न जाँच पाए हों उनका क्या भरोस !
या उपमुख्यमंत्री जी की अशिक्षा का इन टापरों से कोई नाता हो । 
हो सकता है कि बिहार सरकार को ही परीक्षा लेना न आता हो ॥ 

बिहार की परीक्षाओं में नक़ल के नज़ारे !

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