Thursday, 8 September 2016

ब्राह्मण क्षत्रिय और बनियाँ लोग अपने बेटा बेटियों के विवाह दलितों के यहाँ करें तो किंतु ऐसा दबाव क्यों ?

  कौन अभागा पिता चाहेगा कि वो अपनी बेटी का विवाह ऐसे लड़के से करे जो पढ़ने में पीछे हो !कमाने में पीछे हो !तरक्की करने के लिए उसका अपना कोई लक्ष्य न हो !कुछ बनने का उसका अपना कोई सपना न हो, केवल सरकार की कृपा पर जीना चाहता हो ! नौकरी आरक्षण से पाना चाहता हो!अपनी असफता की जिम्मेदारी हमेंशा सवर्णों पर डालकर बच निकलने की फिराक में रहता हो ऐसे किसी भी परिवार में शादी करने के लिए किसी  कर्मठ होनहार संघर्षशील एवं अपने पुरुषार्थ से तरक्की चाहने वाले सवर्णों के बेटा बेटी को शादी करने के लिए कैसे तैयार किया जाए !
     अपने पूर्वज कहा करते थे कि शादी विवाह कोई गुड़िया गुड्डे का खेल नहीं है जो जहाँ और जिसके यहाँ चाहो वहाँ कर दोगे ! अतएव शादी विवाह बहुत सोच विचार कर ऐसी जगह करे जहाँ निर्वाह भी हो सके इसलिए शादी विवाह आदि काम काज बराबरी में ही करने चाहिए ! दलितों और सवर्णों के बीच  यदि शादी विवाह आदि पवित्र  संबंध  होने  भी लग जाएँ तो चलेंगे कितने दिन !सवर्ण लोग कहते हैं कि हम तरक्की करने के लिए मेहनत करेंगे जबकि दलित लोग कहते हैं कि अपनी तरक्की के लिए हम तो आरक्षण मांगेंगे !दोनों लोगों का चिंतन आपस में यदि इतना परस्पर विरोधी है तो उनकी संतानें आपस में शादी विवाह करके कितने दिन गुजारा  कर सकेंगी । 
    मनुस्मृति महानजातिवैज्ञानिक महर्षि मनु की वो अमरकृति है जिसमें पूर्वजों के चेहरे देखकर उसी युग में ये समझ लिया गया था हजारों वर्षों बाद की पीढ़ियों का भविष्य ! लाखों वर्ष पहले ही लिख दिया गया था कि ये मनुस्मृति जलाने की भावना रखने वाले कायर लोग बातें चाहें जितनी बड़ी बड़ी करें किंतु जब मेहनत करने की बात  आएगी तब अपने पूर्वजों की तरह ही साफ साफ कह देंगे कि हमतो आरक्षण के बिना तरक्की नहीं कर सकते।उस दिन भाग्यप्रदत्त  चुनौती स्वीकार करने की इनकी हिम्मत नहीं पड़ेगी !इनमें सवर्णों की तरह आत्म सम्मान की भावना क्यों नहीं होनी चाहिए कि यदि सवर्ण बिना आरक्षण के तरक्की कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते !उसके लिए प्रयास करना चाहिए पहली बार में सवर्ण भी नहीं सफल होते हैं इसलिए आरक्षण के भिखारी बनकर जीने से अच्छा है भाग्य के भाल पर बार बार परिश्रम की चोट करो कर्मवाद कभी बाँझ नहीं हुआ है । 
      इनकी पीढ़ियाँ अपनी असफलताओं का दोष हमेंशा सवर्णों के मत्थे मढ़ती रहेंगी इसी लिए महर्षि मनु ने सवर्णों को हमेंशा  इनसे दूर रहने की सलाह दी थी!उन्हें पता था कि ये गलतियाँ खुद करेंगे और दोष सवर्णों का लगा देंगे !अगर इनकी एक रोटी खा लेंगे तो ये चिल्लाते घूमेंगे कि सवर्ण लोगों ने हमारी रोटी न खाई होती तो हम गरीब नहीं होते !इसीलिए मनु महाराज ने कहा कि बदनाम होने से अच्छा है कि इनका छुआ कुछ भी मत खाओ पियो !इनसे दूर ही रहो उसी में भलाई है !
    उस युग में महर्षि मनु  ने समस्त प्रजा से पूछा विद्याओं का अध्ययन जो करेगा उसे ब्राह्मण कहा जाएगा !जिन्होंने पढने लिखने की हिम्मत बाँध कर हाँ किया वे ब्राह्मण हो गए !दूसरे नंबर पर आया जो रक्षा करेगा उसे क्षत्रिय कहा जाएगा !जिन जिन लोगों ने हिम्मत बाँध कर हाँ की वो लोग क्षत्रिय मान लिए गए !इसके बाद कहा कि व्यापार करेंगे वे बैश्य माने जाएँगे !जिन्होंने साहस करके ये चुनौती स्वीकारी वे वैश्य हो गए !जिन्होंने कोई चुनौती स्वीकार करने की हिम्मत ही नहीं की उनसे कह दिया गया कि कमजोर वर्ग जो कर पावे वो कर लेना देना लोग मान गए !तब से ये बचे खुचे काम करते चले आ रहे हैं । 
  गरीब सवर्ण भी अपने बच्चों को छोटेपर से ही ये तीन बातें बार बार समझाते  रहते  हैं -
  1. बच्चों से साफ कह देता है पढ़ोगे  लिखोगे तो कुछ बनोगे और नहीं भी बने तो भी कमा खाओगे अन्यथा आरक्षण के कारण तुम्हें सरकारी नौकरियाँ मिलना आसान नहीं होगा !
  2. दूसरीबात बच्चों से कहता है कि यदि तुम पढ़े भी नहीं और मेहनत भी करना नहीं सीखा और सोचा कि चोरी बदमाशी लूटपाट  आदि करके रईस बन जाओगे तो याद रखना दलितों को एक बार माफ भी हो जाएगा इन कठोर कानूनों से सवर्णों का बचना मुश्किल होगा !
  3.  तीसरीबात किसी के साथ  गुंडागर्दी मत करना दलितों और महिलाओं से तो बिलकुल ही मत करना इन्हें अफीम समझकर इनसे दूर ही रहना । ना नशेपत्ती की लत मत पड़ने देना। 
    इस सीख से और कुछ होता हो न होता हो सवर्णों के बच्चे अक्सर पढ़ जाते हैं जो नहीं पढ़ पाते वो भी गिड़गिड़ाते रहते हैं सबके सामने !दूसरी ओर दलित लोगों को न कानून से भय होता है और न बेरोजगारी का !सारी  जिम्मेदारी सरकार की !पढ़ें या न पढ़ें नौकरी पक्की !
   दलित लोग सवर्णों को बदनाम न करें सवर्णों ने इनका शोषण तो दूर इनसे एक कौड़ी भी नहीं ली है कभी ! और था ही इनके पास क्या जो कोई शोषण करेगा अपनी दाल रोटी के लिए तो आरक्षण के बिना गुजारा  नहीं होता तो फिर सवर्णों ने इनका शोषण करके ले आखिर क्या लिया होगा इनसे !  दलितों का शोषण न उस युग में हुआ था और न ही इस युग में हो रहा है ये लोग तरक्की न उस युग में कर पा रहे थे और न इस युग में कर पा रहे हैं उस युग में लोगों की कृपा पर गुजर बसर होती रही थी इस युग में सरकारी कृपा आरक्षण आदि के रूप में सहायक हो रही है परंतु किसी के कृपा पूर्वक किए गए अनुग्रह से दिन तो काटे जा सकते हैं किंतु तरक्की,सम्मान और स्वाभिमान नहीं बचाया जा सकता वो अपने परिश्रम से ही बचेगा !ये बात तो हमारे दलित बंधुओं को भी समझनी होगी !
     सवर्णों ने उस युग में किसी का शोषण किया  होगा यदि ये कल्पित बात मान भी ली जाए तो आजादी मिलने के बाद से आज तक के 67 वर्ष कम तो नहीं होते विकास करने के लिए !आखिर तब से तो बहुत दुलराए जा रहे हैं दलित !आरक्षण से लेकर सारी सुविधाएँ  दी जा रही हैं दलितों को !और हर पार्टी दलितों मुस्लिमों और महिलाओं का रोना धोना लेकर ही तो उतरती है चुनाओं में ,सवर्णों का तो कोई नाम भी नहीं लेता है और जो लेता भी है वो निंदा ही करता है सवर्णों की !फिर भी सवर्ण न केवल जिंदा हैं अपितु परिश्रम पूर्वक अपनी   तरक्की भी किए जा रहे हैं । इस प्रकार से सवर्ण लोग अपने पूर्वजों की ईमानदार परिश्रम शीलता का परिचय देते जा रहे हैं कि न शोषण उन्होंने किया था न हमने किया है उन्होंने भी परिश्रम पूर्वक कमाया था और हम भी परिश्रम पूर्वक ही  कर रहे हैं अपनी अपनी तरक्की !किंतु जो लोग हमारे पूर्वजों को तरक्की करते देख उस युग में उनसे ईर्ष्या कर रहे थे उन्हीं की संतानें आज हमारी तरक्की पर भी उसी प्रकार का शक कर रही हैं !राजनैतिक दल चुनाव जीतने के लालच में इन्हें वोट बैंक समझ बैठे हैं वो मिला रहे हैं इनकी हाँ में हाँ !किंतु सच्चाई कुछ और ही है इसीलिए अन्ना जी भी कह रहे हैं कि "आरक्षण देश के लिए बड़ा खतरा -अन्ना हजारे"
  बंधुओ ! देश के कुछ लोग मानते हैं कि वे तरक्की कर ही नहीं सकते इभी तो वे उसके लिए कोई प्रयास भी नहीं कर रहे हैं इसीलिए नेता उन्हें तरक्की कराने के नाम पर खुद भोग रहे हैं उनके हिस्से का आरक्षण और जीतते जा रहे हैं चुनाव !किन्तु जो लोग अपने बल पर तरक्की करना चाह रहे हैं उन्हें रोकने के लिए नेताओं ने  आरक्षण का बाँध बना रखा है ! आखिर आरक्षण को आगे करके देश को प्रतिभाविहीन बनाने का षड्यंत्र क्यों ?
    बंधुओ !अन्ना जी का कहना कहाँ तक सही है जानिए आप भी ! 
     आखिर तरक्की के पथ पर बढ़ती सवर्ण प्रतिभाओं के पैर क्यों बाँधे जा रहे हैं आरक्षण की रस्सियों से ! यदि सवर्ण बच्चे देश का गौरव बढ़ाएँ तो वर्तमान राजनेताओं को उनसे घृणा क्यों है देश की प्रतिभाओं को कोसना कहाँ का न्याय है उन्हें पकड़ कर रखना कितना उचित है !
क्या ये सही है ?
    यदि दलितों में दम नहीं है संघर्ष पूर्वक तरक्की करने की और सवर्ण कर लेते हैं तो उनकी प्रतिभा का सम्मान होना चाहिए न कि उन्हें रोकने के लिए आरक्षण की लगाम लगाई जाए !सवर्ण कहीं आगे न बढ़ जाएँ !ऐसी सोच ही गलत है !संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
प्रतिभा संपन्न सवर्ण भी देश की संपत्ति हैं उनकी उपेक्षा क्यों की जाए ?
    आरक्षण देश के सवर्णों के लिए खुली चुनौती है चूँकि देश के दलितों पिछड़ों के साथ सवर्णों के पूर्वजों ने जो कल्पित गद्दारी की है उसका दंड सवर्णों को भोगना  ही पड़ेगा !कहने का मतलब ये कि इस दकियानूसी भावना के कारण सवर्णों को विकास के पथ पर आगे बढ़ने से रोका जाता रहेगा!ऐसे अंधविश्वास की उपज है आरक्षण ,संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
संख्या में बहुत कम सवर्णों ने दलितों का शोषण कैसे किया होगा दलितों ने सहा क्यों होगा !इसलिए सवर्णों पर लगाया जाने वाला ये आरोप झूठा है !
    किंतु सवर्णों की संख्या दलितों से हमेंशा कम रही फिर वे दलितों का शोषण कैसे कर सकते थे और वे करते भी तो दलित सह  क्यों लेते !इतने बड़े जूठ की बुनियाद पर टिका है संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
"सवर्णों ने दलितों का शोषण किया था " इस झूठे जुमले की कमाई आखिर कब तक खाई जाएगी ? 
   बंधुओ !नक़ल करते हुए पकड़े जाने के कारण फेल हो जाने वाले विद्यार्थी जैसे अपने असफल होने का सारा दोष परीक्षा हाल में साथ बैठे विद्यार्थी पर मढ़ देते हैं ऐसी ही हरकत का शिकार हुए हैं सवर्ण !अन्यथा ऐसे विद्यार्थियों को दूसरे साल की परीक्षा में तो पास होना चाहिए था किंतु साठ साल से आरक्षण लेने के बाद भी फेल फिर भी दोषी हैं सवर्ण ! धिक्कार है ऐसी गिरी हुई सोच को !आखिर जिम्मेदार लोगों को अपनी कमी क्यों नहीं स्वीकार करनी चाहिए !संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
 'दालित्य' बीमारी के लिए पेनकिलर है आरक्षण !क्यों न खोजा  जाए इसका स्थाई इलाज !
    बंधुओ ! दलितों में ऐसी क्या बीमारी है कि वे सवर्णों की अपेक्षा कमजोर ही रहते हैं कितना भी आरक्षण रूपी घी पिला लो ! इसीलिए ये लोग अपनी तरक्की स्वयं नहीं कर सकते जबकि सवर्णवर्ग के गरीब लोग भी अपनी तरक्की स्वयं करते हैं साठ वर्ष आरक्षण भोगने के बाद भी यदि ये पिछड़े ही रहे तो अब आरक्षण की समीक्षा हो साथ ही सरकार को इस विषय पर विश्व के वैज्ञानिकों को आमंत्रित करके स्वतंत्र रिसर्च करवाना चाहिए और पता लगाना चाहिए कि वास्तव में इनमें बीमारी क्या है ?और उसका इलाज क्या  होना चाहिए अन्यथा विश्व के विकसित देश कहीं बोझ समझ कर इनका प्रवेश ही अपने यहाँ न बंद कर दें !इसलिए समय से इस बीमारी का प्रापर इलाज होना चाहिए अन्यथा आरक्षण रूपी पेनकिलर देकर टाली गई बीमारी कहीं नासूर न बन जाए !संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
आरक्षण की आड़ में बढ़ा है भ्रष्टाचार !कौड़ी कौड़ी के नेता करोड़पति हो गए !
      दलितों के अधिकारों के लिए हो हुल्लड़ मचाने वाले नेताओं की संपत्ति की जाँच किसी सक्षम एजेंसी से करवानी चाहिए कि जब ये दलित हितैषी लोग राजनीति में आए थे तब इनके पास संपत्ति कितनी  थी उसके बाद इन्होंने ऐसा क्या धंधा व्यापार किया अर्थात इनकी आय के स्रोत क्या रहे जो आज अरबों खरबों की संपत्ति उनके पास बनी कैसे !कहीं ये दलितों के नाम पर हुल्लड़ मचा मचा कर अपने घरों को ही तो नहीं भरते रहे !और यदि ऐसा है तो उनसे छीन कर दलितों के हक़ दलितों को दिलाए  जाने  चाहिए !इसी प्रकार से आरक्षण के नाम पर दलितों के हमदर्द नेता आगे भी कर सकते हैं धोखाधड़ी !संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
आरक्षण दलितों की क्षमता पर सबसे बड़ा प्रश्नचिन्ह  !
     जो दलित वर्ग अपने बल पर अपना घरबार नहीं चला सकते अपनी रसोई और परिवार चलाने के लिए आरक्षण माँगा करते हैं ऐसे लोगों की क्षमता पर प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं लोग सोच सकते हैं कि इन्हें चुनाव लड़ाने का क्या औचित्य !यदि ये जीत भी जाएँगे तो अपने दायित्व का सम्यक निर्वाह कर पाएँगे इस पर भरोसा कैसे किया जाए !जो घर नहीं चला सकते वे विधान सभा लोक सभा अपना दायित्व कैसे निबाह पाएँगे !संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
आरक्षण किसी भीख से कहाँ अलग है और भिक्षुक का सम्मान कहाँ रह जाता है !
     आरक्षण दान तो है नहीं जो हमेंशा चलता रहे !ये तो बिना माँगे मिले तो सहयोग और माँगने पर मिले तो भिक्षा !किंतु सहयोग हो या भिक्षा लेने की भी तो कोई सीमा होनी चाहिए अन्यथा रोज रोज मुख उठाए सरकार के  दरवाजे पर खड़े रहोगे तो सम्मान नहीं रह जाता !इस प्रकार से आरक्षण जितने दिन आगे बढ़ाया जा रहा है उतने दिन दलितों का सम्मान दाँव पर लगाया  जा रहा है !संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
दलितों को आत्म सम्मान के लिए जागरूक क्यों न किया जाए !
     सुना है कि दलितों को पहले कभी वेद नहीं पढ़ने दिए गए इसलिए उनका विकास नहीं हो सका या उन्हें अछूत माना जाता रहा इसलिए उनका विकास नहीं हो सका !इस विषय में दलित बंधुओं से मेरा विनम्र निवेदन है कि अब आप वेद पढ़िए और कीजिए अपना विकास साथ ही सवर्णों को अछूत घोषित कर दीजिए और मत रखिए सवर्णों से अपनी रोटी बेटी के संबंध !आखिर कुछ स्वाभिमान तो अपना भी होना चाहिए ।मित्रो !किसी भी प्रकार का आरक्षण स्वाभिमान नहीं रहने देता है ,संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
आरक्षण को चुनावजीतने का साधन क्यों बनाया जाए ?
     बंधुओ !  जो नेता लोग किसी लायक नहीं होते बिलकुल कामचोर मक्कार लोग भी चुनाव जीतने के लिए सवर्णों को गालियाँ देना शुरू कर देते हैं और दलितों की हमदर्दी दिखाते हुए सवर्णों से लड़ने को तैयार दिखते हैं किंतु अपनी राजनैतिक पार्टियों में या सरकारों में दलितों को कोई सम्मान मिलने लायक या निर्णायक पद कभी नहीं देते हैं और चुनाव जीतने के बाद दलितों के हित  के नाम पर जो भी संपत्ति पास करवा पाते हैं वो सब अपने एवं अपने नाते रिश्तेदारों में बाँट लेते हैं ऐसे कामचोर मक्कार नेताओं के निठल्ले लड़के तक बिना कुछ किए धरे करोड़ों अरबों पति हो जाते हैं और दलित जहाँ के तहाँ बने रहते हैं !संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
      किसी को दलित क्यों कहा जाए ?
  आनाज के किसी दाने के दो टुकड़े हो जाएँ तो वो 'दाल' कहे जाते हैं किंतु जब उसी दाने के छोटे छोटे बहुत टुकड़े कर दिए जाएँ तो उन्हें 'दलिया' कहा जाता है इसी 'दलिया' को 'दलित' कहा जाता है !बंधुओ !क्या ये सही है कि किसी हँसते खेलते स्वस्थ शरीरों वाले किसी परिश्रमी वर्ग को दलित कहा जाए !ऐसा कहने के पीछे का भाव क्या रहा होगा !दलिया का मतलब कुचला हुआ आनाज या टुकड़े किया हुआ आनाज !
   भारत के एक सम्मानित वर्ग को ऐसे अशुभ सूचक नामों से बुलाया जाए उसकी ऐसी पहचान बनाई जाए ये कहाँ का न्याय है !मेरी समझ में तो ये समस्त मनुष्य जाति  का अपमान है कि उसे जीते जी टुकड़ों में विभाजित बता दिया जाए !ऐसे कल्पित दालित्य को आरक्षण का आधार बनाया जाना वास्तव में देश के लिए खतरा है !

   अन्ना हजारे जैसे बड़े समाज सुधारक को भी अब लगने लगा है कि आजादी के समय गरीब तबके को आगे लाने के लिए आरक्षण की आवश्यकता थी किंतु आरक्षण की भूमिका अब समाप्त हो गई है इतने दिन तक आरक्षण के सहयोग से जिन्हें आगे बढ़ना था वे बढ़ गए किंतु जो लोग आरक्षण का भोग करने की भावना से इसे आजीवन बनाए  रखना चाहते हैं वो ठीक नहीं हैं संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !

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