Saturday, 17 September 2016

ज्योतिष (copy)

ज्योतिष बहुत बड़ा विज्ञान है (Book)
     
 बंधुओ ! हम आप जो भी काम करते हैं वो एक दिन के लिए तो होता नहीं है वो भविष्य का अनुमान लगाकर  चलना पड़ता है किंतु भविष्य के विषय में पूर्वानुमान लगाया कैसे जाए आधुनिक विज्ञान के पास अभी तक इसका कोई उत्तर नहीं है ! केवल वो लोग ये कह देते हैं कि मैं ज्योतिष नहीं मानता !क्या उनके इतना कह देने मात्र से समय संबंधी पूर्वानुमान की आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है क्या ?यदि नहीं तो आम  जनता कहाँ जाए भविष्य में उसके साथ क्या होगा यह जानना उसकी आवश्यक आवश्यकता है ।जिनके पास धन है और हानि लाभ सहने की ताकत भी है वो भविष्य संबंधी हानि लाभ यदि नहीं सोचते  हैं तो भी उनका काम तो चल जाएगा उस घाटे को मैनेज कर लेंगे पति  या पत्नी का तलाक होगा या और कोई दुर्घटना घटती है तो दूसरी शादी कर लेंगे !बीमारी होगी तो अच्छी से अच्छी दवा करवाने के बाद भी यदि रोगी को बचाया न जा सका तो सोच लेंगे कि जितनी दवा कराई जा सकती है उतनी तो करवा ली है आदि बातें सोचकर संतोष कर लेंगे !उनके बच्चे नहीं होगें तो एक से एक महँगे इलाज उपलब्ध हैं जो करवाकर उनका काम हो या न हो किंतु वो अपने मन को संतोष दे लेंगे कि जितना किया जा सकता था उतना तो कर लिया भाग्य में यही बदा ऐसा मान कर सह जाते हैं किंतु माध्यम और सामान्य वर्ग की सोचिए वो ये सब कर सकते हैं क्या ! उनके पास ये सब साधन होते हैं क्या !आखिर वो अपनी आत्मा को संतोष कैसे दें या ऐसे ही घुट घुट कर मरते रहें !ऐसे में उनके पूर्वज जिस ज्योतिष को हजारों वर्ष पहले से परखते रहे हैं और सही घटित होती रही है वो उसे क्यों न मानें !उन्हें सरकार विद्वान ज्योंतिषियों की सेवा उपलब्ध नहीं करवा पा रही है पाखंडी लोगों को रोकने की व्यवस्था सरकार करे और सरकारी विश्वविद्यालयों में पढ़े डिग्रीहोल्डर  ज्योतिषियों को अवसर दे तो मैं विश्वास से कह सकता हूँ कि भविष्य बताने और उसे बनाने बिगाड़ने संबंधी सारी धोखा धड़ी समाप्त हो जाएगी ।समाज को ज्योतिष की स्वच्छ सेवाएँ मिलने लगेंगी ।ऐसा कर देने के बाद समाज को भी यह निर्णय करना आसान हो जाएगा कि ज्योतिष सही है या गलत ! ये तो वोही बता सकता है जो ज्योतिष या तो जानता है या ज्योतिष विद्वानों की कही हुई बातों का अनुभव करता है ।
      वर्तमान समय में समाज को जो लोग समझा रहे हैं कि ज्योतिष गलत है या अंधविश्वास है !ऐसी बातें करते अक्सर वो लोग सुने जाते हैं जिन्होंने ज्योतिष पढ़ी ही नहीं होती है ज्योतिष विद्वानों के संपर्क में ही नहीं रहे होते हैं वो जिन्हें ज्योतिषी मान बैठे हैं अगर उनकी ज्योतिष क्वालीफिकेशन चेक की जाए !तो उनके पास किसी भी विश्वविद्यालय से  प्राप्त ज्योतिष की कोई डिग्री नहीं होती है । ऐसे लोगों को ज्योतिषी मान कर उन्होंने जो अनुभव किए उसके आधार पर वो ज्योतिष को गलत कहने लगे हैं किंतु किसी भी सब्जेक्ट के विषय में मूल्यांकन का ये ढंग ठीक है क्या ? जो जिस विषय को जानता ही न हो उससे  उस विषय को गलत कहलाना कितना आसान है। ऐसी दिक्कतें तो आधुनिक विज्ञान के साथ भी हैं किसी भी विषय को कोई गलत कह सकता है । जो भी विषय किसी को समझ में न आवे उसे गलत कह दिया जाए ऐसे तो सारा साइंस गलत है सारी चिकित्सा आदि समस्त ज्ञान विज्ञान गलत कहा जा सकता है । 
      इसी प्रकार से ज्योतिष को गलत मानने वालों का एक तर्क और यह होता है कि हमारे विषय में उस ज्योतिषी को वो भविष्यवाणी गलत हुई इसलिए ज्योतिष शास्त्र गलत है !किंतु ऐसे मूल्यांकन करना इसलिए गलत है कि इसमें भविष्यवाणी गलत होने के तीन प्रमुख कारण हैं पहला जन्म समय ही सही न रहा हो ,दूसरा ज्योतिषी ही विद्वान न रहा हो, तीसरा आपकी कुंडली ही गलत रही हो और विद्वान होने के बाद भी  ज्योतिषी ने उस पर ध्यान ही न दिया हो क्योंकि कुंडली बनाने में बड़ा परिश्रम करना होता है वो अकारण वो क्यों करें रास्ते चलते भविष्य जानने का आजकल फैशन चल गया है ।पाखंडी लोगों ने झूठ बोल बोलकर भविष्यविज्ञान को इतना हलका बना दिया है कि लोग वास्तविक ज्योतिषियों के परिश्रम को समझने के लिए तैयार ही हैं ।ऐसी उपेक्षा के कारण ज्योतिषविद्वान  भी जरूरी परिश्रम नहीं करते और करें भी क्यों ? उनसे ही ऐसी अपेक्षा क्यों की जाए ! समुद्र में बहुत पानी होता है किंतु किसी को मिलता तो उतना ही है जितना बड़ा उसके पास बर्तन होता है । ई प्रकार से बिजली पर्याप्त होने पर भी प्रकाश तो उतना ही देती है जितने बॉड का जो बल्व लगाता है अधिक तो नहीं दे देती !फिर ज्योतिषी ही क्यों अपना बलिदान दे और किस किस के लिए दे !डाक़्टर इंजीनियर वकील आदि भी तो बिना पर्याप्त पारिश्रमिक मिले एक कदम भी आगे नहीं बढ़ते ज्योतिषी यदि ऐसा नहीं करते हैं इस कारण उनकी कोई भविष्यवाणी गलत हो जाती है तो उससे ज्योतिष कैसे गलत हो गई !
      ज्योतिष हो या चिकित्सा  या कोई  और विज्ञान हर किसी में तीन पक्ष होते ही हैं इनमें से कोई भी पक्ष सौ प्रतिशत सच कोई हो ही नहीं सकता !जिसकी चिकित्सा की जाती है वो ठीक हो  सकता है नहीं भी हो सकता है और चिकित्सा के समय ही मर भी सकता है इसका मतलब चिकित्साशास्त्र  गलत हो गया क्या ? विज्ञान के कई अविष्कार ऐसे होते हैं जो जब बनाए गए थे तब उनके साइड इफेक्ट नहीं थे बाद में पता लगते हैं कई बार कई विषयों में उनके आकलन बाद में गलत सिद्ध होते हैं और वे उनका खंडन स्वयं करते हैं !किंतु उन्हें कोई गलत नहीं कहता है फिर ज्योतिष  गलत कैसे हो गई !
      मौसम के विषय में हो या वर्षा के विषय में या भूकंप के विषय में हमारे आधुनिक विज्ञान की भविष्यवाणियाँ कितने प्रतिशत सच होती हैं वर्षा के विषय में भविष्यवाणियाँ कभी कभी सच भले ही हो जाएँ बाकी अधिकाँश तो गलत ही होती हैं फिर भी वो मौसम विज्ञान ही है !भूकंप के पूर्वानुमान के नाम पर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय अरबों रूपए खर्च करने के बाद भी आज तक खाली हाथ है भूकंपसंबंधी पूर्वानुमान के विषय में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया है फिर भी वो विज्ञान है और भूकंपविज्ञानविभाग में प्रतिदिन केवल  हाजिरी लगाने और के लिए आने वाले लोग वैज्ञानिक हैं।  
          
         विषय -  ज्योतिष के द्वारा रोगों पर की जाने वाली रिसर्च के विषय में अनुदान हेतु 
 महोदय ,
        मैंने संपूर्णानंद संस्कृत विश्व विद्यालय वाराणसी से ज्योतिषाचार्य (एम.ए.)किया है और काशी हिंदू विश्व विद्यालय से Ph. D. की है ।ज्योतिष एवं आयुर्वेद के महत्त्वपूर्ण ग्रंथों के अध्ययन से पता लगा कि रोगों के निदान तथा रोगों के पूर्वानुमान  के साथ साथ प्रिवेंटिव चिकित्सा एवं मनोरोगों में स्वभावों को समझने में ज्योतिष की बड़ी भूमिका सिद्ध हो सकती है ।कई बार किसी को कोई छोटी बीमारी चोट या फुंसी प्रारंभ होती है और बाद में वो भयंकर रूप ले लेती है।  प्रारंभ में छोटी बीमारी दिखने के कारण चिकित्सा में लापरवाही कर दी जाती है और बाद में नियंत्रण से बाहर हो जाती है ऐसी परिस्थिति में किसी भी छोटी बड़ी बीमारी का पूर्वानुमान ज्योतिष के द्वारा प्रारम्भ में ही लगा लिया जा सकता है और उसी समय चिकित्सा में सतर्कता बरत लेने से बीमारी पर नियंत्रण किया जा सकता है । 
      आयुर्वेद के बड़े ग्रंथों में  भी समय का महत्त्व समझने के लिए ज्योतिष का उपयोग किया गया है । महोदय !मैंने बनारस  यूनिवर्सिटी से ज्योतिष से Ph D की है मैं ज्योतिष के द्वारा रोगों का निदान एवं उपचार लगभग पिछले 15 वर्षों से करता आ रहा हूँ । जिसमें अन्य
     आयुर्वेद का उद्देश्य शरीर को निरोग बनाना एवं आयु की रक्षा करना है जीवनके लिए हितकर  द्रव्य,गुण और कर्मों के उचित  मात्रा  में सेवन से आरोग्य मिलता है एवं अनुचित सेवन से मिलती हैं बीमारियाँ ! यही हितकर और अहितकर द्रव्य गुण और  कर्मों के सेवन और त्याग का विधान आयुर्वेद में किया गया है । ' चिकित्सा शास्त्र में समय  का विशेष महत्त्व  है ।
    आरोग्य लाभ के लिए हितकर द्रव्य गुण और  कर्मों का सेवन करने का विधान करता है आयुर्वेद ये सत्य है किंतु हितकर द्रव्य गुण और  कर्मों का सेवन करके भी स्वास्थ्य लाभ तभी होता है जब  रोगी का अपना समय भी रोगी के अनुकूल हो !अन्यथा अच्छी से अच्छी औषधि लेने पर भी अपेक्षित लाभ नहीं होता है । कई बार एक चिकित्सक एक जैसी बीमारी के लिए एक जैसे कई रोगियों का उपचार एक साथ करता है किंतु उसमें कुछ को लाभ होता कुछ को नहीं भी होता हो उसी दवा के कुछ को साइड इफेक्ट होते भी देखे जाते हैं !ये परिणाम में अंतर होने का कारण  उन रोगियों का अपना अपना समय है अर्थात चिकित्सक एक चिकित्सा एक जैसी किंतु रोगियों के अपने अपने समय के अनुसार ही औषधियों का परिणाम होता है कई बार एक जैसी औषधि होते हुए भी किन्हीं एक जैसे दो रोगियों पर परस्पर विरोधी परिणाम देखने को मिलते हैं !
      जिस व्यक्ति का जो समय अच्छा होता है उसमें उसे बड़े रोग नहीं होते हैं आयुर्वेद की भाषा में उसे साध्य रोगी माना जाता है ऐसे रोगियों को तो ठीक होना ही होता है उसकी चिकित्सा  हो या न हो चिकित्सा करने पर जो घाव 10 दिन में भर जाएगा !चिकित्सा न होने से महीने भर में भरेगा बस !यही कारण  है कि जिन लोगों को गरीबी या संसाधनों के अभाव में चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती है जैसे जंगल में रहने वाले बहुत से आदिवासी लोग या पशु पक्षी आदि भी बीमार होते हैं या लड़ते झगड़ते हैं चोट लग जाती है बड़े बड़े घाव हो जाते हैं फिर भी जिन जिन का समय अच्छा होता है वो सब बिना चिकित्सा के भी समय के साथ साथ धीरे धीरे स्वस्थ हो जाते हैं !
     जिसका जब समय मध्यम होता है ऐसे समय होने वाले रोग कुछ कठिन होते हैं ऐसे समय से पीड़ित रोगियों को कठिन रोग होते हैं इन्हें आयुर्वेद की भाषा में कष्टसाध्य रोगी माना जाता है । इसी प्रकार से जिनका जो समय ख़राब होता हैं उन्हें ऐसे समय में जो रोग होते हैं वे किसी भी प्रकार की चिकित्सा से ठीक न होने के लिए ही होते हैं इन्हें आयुर्वेद की भाषा में 'असाध्य रोग' कहा जाता है !ये चिकित्सकों चिकित्सापद्धतियों एवं औषधियों के लिए चुनौती होते हैं । ऐसे रोगियों पर योग आयुर्वेद आदि किसी भी विधा का कोई असर नहीं होता है ऐसे समय में गरीब और साधन विहीन लोगों की तो छोड़िए बड़े बड़े राजा महराजा तथा सेठ साहूकार आदि धनी वर्ग के लोग जिनके पास चिकित्सा के लिए उपलब्ध बड़ी बड़ी व्यवस्थाएँ हो सकती हैं किंतु उनका भी वैभव काम नहीं आता है और उन्हें भी गम्भीर बीमारियों से बचाया नहीं जा पाता है !ऐसे समय कई बार प्रारम्भ में दिखाई पड़ने वाली छोटी छोटी बीमारियाँ   इलाज चलते रहने पर भी बड़े से बड़े रूप में बदलती चली जाती हैं छोटी छोटी सी फुंसियाँ कैंसर का रूप ले लेती हैं ये समय का ही प्रभाव है । 
          अतएव आपसे निवेदन है कि ज्योतिष के द्वारा स्वास्थ्य संबंधी विषयों पर रिसर्च करने हेतु हमारा सहयोग करें !
Swasthy mantralay

  • 'समयशास्त्र' (ज्योतिष) के बिना अधूरा है चिकित्साशास्त्र !

  •     सुश्रुत संहिता में भगवान धन्वंतरि कहते हैं कि आयुर्वेद का उद्देश्य है रोगियों की रोग से मुक्ति और स्वस्थ पुरुषों के स्वास्थ्य की रक्षा !अर्थात रोगों के पूर्वानुमान के आधार पर द्वारा भविष्य में होने वाले रोगों की रोक थाम ! 'स्वस्थस्यरक्षणंच'आदि आदि ! किंतु भविष्य में होने वाले रोगों का पूर्वानुमान लगाकर रोग होने से पूर्व सतर्कता कैसे वरती जाए !अर्थात 'समयशास्त्र' (ज्योतिष) के बिना ऐसे पूर्वानुमानों की कल्पना कैसे की जा सकती है ! इसके लिए भगवान धन्वंतरि कहते हैं कि इस आयुर्वेद में ज्योतिष आदि शास्त्रों से संबंधित विषयों का वर्णन जगह जगह जो आवश्यकतानुसार आया है उसे ज्योतिष आदि शास्त्रों  से  ही पढ़ना  और समझना चाहिए !क्योंकि एक शास्त्र में ही सभी शास्त्रों का समावेश करना असंभव है ।'अन्य शस्त्रोपपन्नानां चार्थानां' आदि ! दूसरी बात उन्होंने कही है कि किसी भी विषय में किसी एक शास्त्र को पढ़कर शास्त्र के निश्चय को नहीं जाना जा सकता इसके लिए जिस चिकित्सक ने बहुत से शास्त्र पढ़े हों वही  चिकित्सक शास्त्र के निश्चय को समझ सकता है । 
  •                  " तस्मात् बहुश्रुतः शास्त्रं विजानीयात्चिकित्सकः ||"
  •                                                                                     -सुश्रुत संहिता
  •         'आयुर्वेद ' में दो शब्द  होते हैं 'आयु' और 'वेद' ! 'आयु ' का अर्थ है शरीर और प्राण का संबंध ! 
  • 'शरीर प्राणयोरेवं संयोगादायुरुच्यते !' 'वेद' का अर्थ है 'जानो ' अर्थात शरीर और प्राणों के संबंध को समझो ! ये है आयुर्वेद शब्द का अर्थ ।  प्राणों की चर्चा पूरे आयुर्वेद में अनेकों स्थलों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर देखी जा सकती है चूँकि आयु की दृष्टि से शरीर सबसे कमजोर कड़ी है ये इतना नाजुक है कि कभी भी कहीं भी कैसे भी बीमार आराम नष्ट  आदि कुछ भी हो सकता है इसलिए प्रत्यक्ष तौर पर शरीर की चिंता ही सबसे ज्यादा दिखती है !यहाँ प्राणों की भूमिका बड़ी होते हुए उसकी चर्चा कुछ कम और शरीर की चर्चा अधिक की गई है !फिर भी जीवन के लिए हितकर  द्रव्य,गुण और कर्मों के उचित  मात्रा  में सेवन से आरोग्य मिलता है एवं अनुचित सेवन से मिलती हैं बीमारियाँ ! यही हितकर और अहितकर द्रव्य गुण और  कर्मों के सेवन और त्याग का विधान आयुर्वेद में किया गया है । ' 
  •                                चिकित्सा शास्त्र में समयशास्त्र का महत्त्व 
  •      आरोग्य लाभ के लिए हितकर द्रव्य गुण और  कर्मों का सेवन करने का विधान करता है आयुर्वेद ये सत्य है किंतु हितकर द्रव्य गुण और  कर्मों का सेवन करके भी स्वास्थ्य लाभ तभी होता है जब  रोगी का समय भी रोगी के अनुकूल हो !अन्यथा अच्छी से अच्छी औषधि लेने पर भी अपेक्षित लाभ नहीं होता है । कई बार एक चिकित्सक एक जैसी बीमारी के लिए एक जैसे कई रोगियों का उपचार एक साथ करता है किंतु उसमें कुछ को लाभ होता कुछ को नहीं भी होता हो उसी दवा के कुछ को साइड इफेक्ट होते भी देखे जाते हैं !ये परिणाम में अंतर होने का कारण  उन रोगियों का अपना अपना समय है अर्थात चिकित्सक एक चिकित्सा एक जैसी किंतु रोगियों के अपने अपने समय के अनुसार ही औषधियों का परिणाम होता है कई बार एक जैसी औषधि होते हुए भी दो एक जैसे रोगियों पर परस्पर विरोधी परिणाम देखने को मिलते हैं !
  •      जिस व्यक्ति का जो समय अच्छा होता है उसमें उसे बड़े रोग नहीं होते हैं आयुर्वेद की भाषा में उसे साध्य रोगी माना जाता है ऐसे रोगियों को तो ठीक होना ही होता है उसकी चिकित्सा  हो या न हो चिकित्सा करने पर जो घाव 10 दिन में भर जाएगा !चिकित्सा न होने से महीने भर में भरेगा बस !यही कारण  है कि जिन लोगों को गरीबी या संसाधनों के अभाव में चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती है जैसे जंगल में रहने वाले बहुत से आदिवासी लोग या पशु पक्षी आदि भी बीमार होते हैं या लड़ते झगड़ते हैं चोट लग जाती है बड़े बड़े घाव हो जाते हैं फिर भी जिन जिन का समय अच्छा होता है वो सब बिना चिकित्सा के भी समय के साथ साथ धीरे धीरे स्वस्थ हो जाते हैं !
  •        जिसका जब समय मध्यम होता है ऐसे समय होने वाले रोग कुछ कठिन होते हैं ऐसे समय से पीड़ित रोगियों को कठिन रोग होते हैं इन्हें आयुर्वेद की भाषा में कष्टसाध्य रोगी माना जाता है इन्हें सतर्क चिकित्सा से आयु पर्यंत यथा संभव के  सुरक्षित किया जा सकता है अर्थात आयु अवशेष होने के कारण मरते नहीं हैं और सतर्क चिकित्सा के कारण घसिटते नहीं हैं अस्वस्थ होते हुए भी औषधियों के बल पर काफी ठीक जीवन बिता लिया करते हैं किंतु जब तक समय अच्छा नहीं होता तब तक पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पाते हैं !कई बार वह मध्यम समय बीतने के बाद कुछ रोगियों का अच्छा समय भी आ जाता है जिसमें वे पूरी तरह स्वस्थ होते देखे जाते हैं ऐसे समय वो जिन जिन औषधियों उपचारों या चिकित्सकों के संपर्क में होते हैं अपने स्वस्थ होने का श्रेय उन्हें देने लगते हैं कई कोई इलाज नहीं कर रहे होते हैं वो भगवान को श्रेय देने लगते हैं !
  •            इसी प्रकार से जिनका जो समय ख़राब होता हैं उन्हें ऐसे समय में जो रोग होते हैं वे किसी भी प्रकार की चिकित्सा से ठीक न होने के लिए ही होते हैं इन्हें आयुर्वेद की भाषा में 'असाध्य रोग' कहा जाता है !ये चिकित्सकों चिकित्सापद्धतियों एवं औषधियों के लिए चुनौती होते हैं । ऐसे रोगियों पर योग आयुर्वेद आदि किसी भी विधा का कोई असर नहीं होता है ऐसे समय में गरीब और साधन विहीन लोगों की तो छोड़िए बड़े बड़े राजा महराजा तथा सेठ साहूकार आदि धनी वर्ग के लोग जिनके पास चिकित्सा के लिए उपलब्ध बड़ी बड़ी व्यवस्थाएँ हो सकती हैं किंतु उनका भी वैभव काम नहीं आता है और उन्हें भी गम्भीर बीमारियों से बचाया नहीं जा पाता है !ऐसे समय कई बार प्रारम्भ में दिखाई पड़ने वाली छोटी छोटी बीमारियाँ   इलाज चलते रहने पर भी बड़े से बड़े रूप में बदलती चली जाती हैं छोटी छोटी सी फुंसियाँ कैंसर का रूप ले लेती हैं । 
  •          ऐसी परिस्थिति में इस बात पर विश्वास  किया जाना चाहिए कि जिस रोगी का जब जैसा अच्छा बुरा समय होता है तब तैसी बीमारियाँ होती हैं और उस पर औषधियों का असर भी उसके समय के अनुसार ही होता है । जिसका समय ठीक होता है ऐसे रोगी का इलाज करने पर उसे आसानी से रोग से मुक्ति मिल जाती है इसलिए ऐसे डॉक्टरों को आसानी से यश लाभ हो जाता है !
  •          इसलिए चिकित्सा में सबसे अधिक महत्त्व रोगी के समय का होता है जिसका समय अच्छा होता है ऐसे लोगों पर रोग भी छोटे होते हैं इलाज का असर भी जलदी होता है इसके साथ साथ ऐसे लोग यदि किसी दुर्घना का भी शिकार हों तो अन्य लोगों की अपेक्षा इन्हें चोट कम आती है या फिर बिलकुल नहीं आती है एक कर पर चार लोग बैठे हों तो और एक्सीडेंट हों टी कई बार देखा जाता है कि तीन लोग नहीं बचे किंतु एक को खरोंच भी नहीं आती है क्योंकि उसका समय अच्छा चल  रहा होता है । 
  •  भूतविद्या -आयुर्वेद के 6 अंगों में से चौथे अंग का नाम है भूत विद्या !इसी भूत विद्या के अंतर्गत महर्षि सुश्रुत कहते हैं कि देव असुर गन्धर्व यक्ष राक्षस पिटर पिशाच नाग ग्रह आदि के आवेश से दूषित मन वालों की  शांति कर्म ही भूत विद्या है । इसमें ग्रहों का वर्णन भी आया है !
  •        जिनका समय मध्यम होता है ऐसे लोग इस तरह के विकारों से  तब तक ग्रस्त रहते हैं जब तक  समय मध्यम रहता है ऐसे रोगी इन आवेशों के  कारण ही अचानक कभी बहुत बीमार हो जाते हैं और कभी ठीक हो जाते हैं जाँच होती है तो इनकी छाया हट जाती है और फिर पीड़ित करने लगती है ऐसे में जाँच रिपोर्टों में कुछ आता नहीं है और बीमारी बढ़ती चली जाती है दूसरी बात ऐसे लोग जहाँ जहाँ इलाज के लिए जाते हैं वहाँ वहाँ इन्हें एक बार एक दो बार फायदा मिल जाता है फिर वहीँ पहुँच जाते हैं इसीलिए ऐसे लोगों का चिकित्सा की सभी पद्धतियों पर भरोसा जमता चला जाता है किंतु पूरा लाभ कहीं से नहीं होता है यहाँ तक कि तांत्रिकों आदि पर भी ऐसी परिस्थिति में ही लोग भरोसा करने लगते हैं !जबकि सारा दोष इनके समय की खराबी का होता है । 
  •        समय स्वयं ही  सबसे बड़ी औषधि है -
  •        किसी को कोई बीमारी हो जाए और उसे कितनी भी अच्छी दवा क्यों न दे दी जाए किंतु लोग समय से ही स्वस्थ होते देखे जाते हैं चिकित्सा न होने पर स्वस्थ होने में समय कुछ अधिक लगता है और चिकित्सा होने पर  समय कुछ कम लग जाता है ।विशेष बात ये भी है कि औषधि किसी को कितनी भी अच्छी क्यों न दे दी जाए किंतु ठीक वही होते हैं जिन्हें ठीक होना होता है यदि  ऐसा न होता तो बड़े बड़े राजा महाराजा सेठ साहूकार आदि सुविधा सम्पन्न बड़े बड़े धनी लोग हमेंशा हमेंशा के लिए स्वस्थ अर्थात अमर हो जाते !इससे सिद्ध होता है कि जीवनरक्षा की दृष्टि से चिकित्सा बहुत कुछ है किंतु सबकुछ नहीं है ।इसमें समय की भी बहुत बड़ी भूमिका है इसलिए समय का भी अध्ययन किया जाना चाहिए ।


  • महामारी आदि सामूहिक बीमारियाँ होने के कारण -
  •         जब अश्विनी आदि नक्षत्र चन्द्र सूर्य आदि ग्रहों के विकार से समय दूषित हो जाता है उससे  ऋतुओं में विकार आने लगते हैं और समय में विकार आते ही देश और समाज पर उसका दुष्प्रभाव दिखने लगता है इससे वायु प्रदूषित होने लगती है और वायु प्रदूषित  होते ही जल दूषित होने लगता है और जब इन चारों चीजों में प्रदूषण फैलने लगता है तब विभिन्न प्रकृति वाले स्त्री पुरुषों को एक समय में एक जैसा  रोग हो जाता है । यथा -"वायुरुदकं देशः  काल इति "-चरक संहिता
  •      वायु से जल और जल से देश और देश से काल अर्थात समय सबसे अधिक बलवान होता है !
  •   " वाताज्जलं जलाद्देशं देषात्कालं स्वभावतः "-चरक संहिता  
  •  महामारियाँ फैलते समय बनौषधियाँ भी गुणहीन हो जाती हैं !
  •      इसीलिए समय के विपरीत होने पर प्रकृति में दिखने वाले उत्पातों के फल जब प्रकट होते हैं तो सामूहिक रूप से बीमारियाँ फैलने लगती हैं कई बार तो यही बीमारियाँ महामारियों तक का रूप ले जाती हैं !जब नक्षत्र चन्द्र सूर्य आदि ग्रहों के विकारों के फल स्वरूप फल स्वरूप समाज में महामारियाँ फैलती हैं तो इनमें लाभ करने वाली बनौषधियाँ भी ग्रह विकारों के दुष्प्रभावों से इतना प्रभावित होती हैं कि महामारियों में लाभ करने वाले गुणों से हीन  हो जाती हैं अर्थात वो बनौषधियाँ अपने जिन गुणों के कारण जिन रोगों से मुक्ति दिलाने में सक्षम होने के कारण प्रसिद्ध होती हैं किंतु महामारी फैलते समय उन औषधियों से भी उन गुणों का लोप हो जाता है ।इसलिए  ऐसी महामारियाँ फैलने का समय आने से पहले यदि बनौषधियों  का संग्रह कर लिया जाए तो वो बनौषधियाँ  महामारी फैलने के समय भी बीमारियों से लड़ने में सक्षम होती हैं क्योंकि प्राकृतिक उत्पातों का समय प्रारम्भ होने से पहले ही उनका संग्रह कर लिया जा चुका होता है ।
  •          यहाँ सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि महामारी फैलने से पहले ये पता कैसे चले ?
  •         कब महामारी फैलने वाली है और बिना पता चले ऐसे किन किन बनौषधियों  का कितना संग्रह किया जा सकता है !इसका उत्तर देते समय चरक संहिता में कहा गया है कि भगवान पुनर्वसुआत्रेय आषाढ़ के महीने में गंगा के किनारे बनों में घूमते हुए अपने शिष्य पुनर्वसु से बोले "देखो -स्वाभाविक अवस्था में स्थित अश्विनी आदि नक्षत्र चन्द्र सूर्य आदि ग्रह ऋतुओं में विकार करने वाले देखे जाते हैं इस समय शीघ्र ही पृथ्वी भी औषधियों के रस वीर्य विपाक तथा प्रभाव को यथावत उत्पन्न न करेगी इससे रोगों का होना अवश्यंभावी है अतएव जनपद विनाश से पूर्व भूमि के रस रहित होने से पूर्व औषधियों के रस,वीर्य,विपाक और प्रभाव के नष्ट होने से पूर्व बनौषधियों का संग्रह कर लो समय अाने पर हम इनके रस वीर्य विपाक तथा प्रभाव का उपयोग करेंगे !इससे जनपद नाशक विकारों को रोकने में कुछ कठिनाई नहीं होगी !"यथा -
  •   " दृश्यंते हि खलु सौम्य नक्षत्र ग्रह चंद्रसूर्यानिलानलानां दिशां च प्रकृति भूतानामृतु  वैकारिकाः भावाः "-चरक संहिता          
  •  मेरे कहने का आशय  यह है कि भगवान पुनर्वसुआत्रेय जी को  'समय शास्त्र (ज्योतिष)' का ज्ञान होने के कारण ही तो पता लग पाया कि आगे जनपद विद्ध्वंस  होने जैसी परिस्थिति पैदा  होने वाली है तभी संबंधित बीमारियों में लाभ करने वाली बनौषधियों के संग्रह के विषय में वे निर्णय ले सके ! सुश्रुत संहिता में तो ऐसे खराब ग्रह योगों को काटने के लिए प्रायश्चित्त एवं ग्रहों की शांति करने का विधान कहा गया है -
  •                                             प्रायश्चित्तं प्रशमनं चिकित्सा शांतिकर्म  च  । 
  •                                                                                                    -  सुश्रुत संहिता          

  • इसलिए चिकित्सा शास्त्र के लिए बहुत आवश्यक है 'समय शास्त्र (ज्योतिष)' का अध्ययन ! इसके बिना चिकित्सा शास्त्र  का सम्यक निर्वाह कर पाना कठिन ही नहीं अपितु असम्भव भी है । 

  • मनोरोग -
  •   सुश्रुत संहिता में शारीरिक रोगों के लिए तो औषधियाँ बताई गई हैं  किंतु मनोरोग के लिए किसी औषधि का वर्णन न करते हुए उन्होंने कहा कि इसके लिए शब्द स्पर्श रूप रस गंध आदि का सुखकारी प्रयोग करना चाहिए !
  •     यथा -  "मानसानां तु शब्दादिरिष्टो वर्गः सुखावहः |'
  •      कुल मिलाकर विश्व की किसी  भी चिकित्सा पद्धति में मनोरोगियों को स्वस्थ करने की कोई दवा नहीं होती नींद लाने के लिए दी जाने वाली औषधियाँ  मनोरोग की दवा नहीं अपितु नशा  हैं उन्हें मनोरोग की दवा नहीं कहा जा सकता है ! अब बात आती है  काउंसलिंग अर्थात परामर्श चिकित्सा की !
  •     काउंसलिंग अर्थात परामर्श चिकित्सा - 
  •         काउंसलिंग के नाम पर चिकित्सावैज्ञानिक मनोरोगी को जो बातें समझाते हैं उनमें उस मनोरोगी के लिए कुछ नया और कुछ अलग से नहीं होता है क्योंकि स्वभावों के अध्ययन के लिए उनके पास कोई ठोस आधार नहीं हैं और बिना उनके किसी को कैसे समझा सकते हैं आप !कुछ मनोरोगियों पर किए गए कुछ अनुभव कुछ अन्य लोगों पर अप्लाई किए जा रहे होते हैं किंतु ये विधा कारगर है ही नहीं  हर किसी की परिस्थिति मनस्थिति सहनशीलता स्वभाव साधन और समस्याएँ आदि अलग अलग होती हैं उसी हिसाब से स्वभावों के अध्ययन की भी कोई तो प्रक्रिया होनी चाहिए !इस विषय में मैं ऐसे कुछ समझदार लोगों से मिला भी उनसे चर्चा की किंतु वे कहने को तो मनोचिकित्सक  थे किंतु मनोचिकित्सा के   विषय में  बिलकुल कोरे और खोखले थे !मैंने उनसे पूछा कि मन के आप चिकित्सक है तो मन होता क्या है तो उन्होंने कई बार हमें जो समझाया उसमें मन बुद्धि आत्मा विवेक आदि सबका घालमेल था किंतु मनोचिकित्सा की ये प्रक्रिया ठीक है ही नहीं क्योंकि इसके लिए हमें मन बुद्धि आत्मा आदि को अलग अलग समझना पड़ेगा और चोट कहाँ है ये खोजना होगा तब वहाँ लगाया जा सकता है प्रेरक विचारों का मलहम ! इसलिए ऐसी आधुनिक काउंसलिंग से केवल सहारा दे दे कर मनोरोगी का  कुछ समय तो  पास किया जा सकता है बस इससे ज्यादा कुछ नहीं !
     'समयशास्त्र' (ज्योतिष) -के द्वारा मनोचिकित्सा के क्षेत्र में किसी मनोरोगी का विश्लेषण करने के लिए उसके जन्म समय तारीख़ महीना वर्ष आदि पर रिसर्च कर के सबसे पहले उस मनोरोगी का स्थाई स्वभाव खोजना होता है इसके बाद उसी से उसका वर्तमान स्वाभाव निकालना होता है फिर देखना होता है कि रोगी का दिग्गज फँसा कहाँ है ये सारी चीजें समय शास्त्रीय स्वभाव विज्ञान के आधार पर तैयार करके इसके बाद मनोरोगी से करनी होती है बात और उससे पूछना कम और बिना  बताना ज्यादा होता है उसमें उसे बताना पड़ता है कि आप अमुक वर्ष के अमुक महीने से इस इस प्रकार की समस्या से जूझ रहे हैं उसमें कितनी गलती आपकी है और कितनी किसी और की ये सब अपनी आपसे बताना होता है उसके द्वारा दिया गया डिटेल यदि सही है तो ये प्रायः साठ से सत्तर प्रतिशत तक सही निकल आता है जो रोगी और उसके घरवालों ने बताया नहीं होता है इस कारण मनोरोगी को इन बातों पर भरोसा होने लगता है इसलिए उसका मन मानने को तैयार हो जाता है फिर वो जानना चाहता है कि ये तनाव घटेगा कब और घटेगा या नहीं !ऐसे समय इसी विद्या से इसका उत्तर खोजना होता है यदि घटने लायक संभावना निकट भविष्य में है तब तो वो बता दी जाती है और विश्वास दिलाने के लिए रोगी से कह  दिया जाता है कि मैं आपके बीते हुए जीवन से अनजान था मेरा बताया हुआ आपका पास्ट जितना सही है उतने प्रतिशत फ्यूचर भी सही निकलेगा !इस बात से रोगी को बड़ा भरोसा मिल जाता है और वह इसी सहारे बताया हुआ समय बिता लेता है !
     दूसरी बात इससे विपरीत अर्थात निकट भविष्य में या भविष्य में जैसा वो चाहता है वैसा होने की सम्भावना नहीं लगती है तो भी उसका पास्ट बताकर पहले तो विश्वास में ले लिया जाता है फिर फ्यूचर के विषय  में न बताकर  अपितु  घुमा फिरा कर कुछ ऐसा समझा दिया जाता है जिससे तनाव घटे और वो धीरे धीरे भूले इसके लिए कईबार उसके साथ बैठना होता है । आदि 
     इस प्रकार से   मनोचिकित्सा के   विषय में भी  'समयशास्त्र' (ज्योतिष)की बड़ी भूमिका है  

 मनोरोगियों में पनप जाते हैं कई प्रकार के शारीरिक रोग -   
      मनोरोग के कारण  शारीरिक बीमारियाँ भी पैदा होने लगती हैं उसी के साथ एक एक पर एक जुड़ती चली जाती हैं धीरे धीरे मनोरोग तो पीछे पड़ बाक़ी शारीरिक बीमारियों का समूह बन जाता है मनोरोगी  !ऐसे रोगों का इलाज शारीरिक  चिकित्सा पद्धति की दृष्टि से अत्यंत कठिन एवं काम चलाऊ  होता है ऐसे लोगों को समयशास्त्र  (ज्योतिष)की पद्धति से कुछ समय तक यदि लगातार काउंसलिंग दी जाए और उसके बाद चिकित्सा की जाए तो घट सकती हैं जीवन से जुडी अनेकों बीमारियाँ !

  • 'समयशास्त्र' (ज्योतिष) के बिना अधूरा है चिकित्साशास्त्र !
   आजकल मानसिक तनाव बहुत बढ़ता जा रहा है असहिष्णुता इतनी की छोटी छोटी बातों पर तलाक हो रहे हैं किसी को किसी की बात बर्दाश्त ही नहीं है पति पत्नी में आपसी तनाव के कारण एक दूसरे को देखकर ख़ुशी नहीं होती ! जीवन साथी की बुरी बातें, बुरी आदतें,बुरे आचार व्यवहार आदि हमेंशा याद बने रहने के कारण लोग मानसिक नपुंसकता के शिकार होते जा रहे हैं ऐसे लोग अपने जीवन साथी के साथ खुश नहीं हैं इसलिए उनके शारीरिक संबंध प्रभावित हो रहे हैं इससे  दिमागी तनाव बढ़ता है उससे नींद नहीं आती है नींद न आने से पेट ख़राब रहता है पेट खराब रहने से भूख नहीं लगती है कुछ खाने का मन नहीं होता है जब तीन सप्ताह ऐसा रह जाता है तो गैस बनने लगती है ये गंदी गैस ऊपर को चढ़ कर हृदय में पहुँचती है इससे घबड़ाहट बेचैनी हार्टबीट आदि बढ़ने लगती है ब्लड प्रेशर जैसी दिक्कतें बढ़ने लगती हैं ! जब यही गैस और ऊपर जाकर मस्तिष्क में चढ़ती है तो शिर में दर्द होना चक्कर आना ,आँखों में जलन या आँखों के आगे अचानक धुँधला दिखाई पड़ना या अँधेरा छा जाना,शरीर में अचानक झटका सा लग जाना,ऐसा समझ में आना जैसे कोई अपने ऊपर बैठ गया हो या पास से निकल गया हो इससे भूतों का भ्रम होना ,यही गैस कान में पहुँच कर कर्ण निनाद अर्थात कानों में आवाजें आने लगना तैयार कर देती है बाल फटना ,सफेद होना ,झड़ना, उलटी लगना,त्वचा ढीली पड़ने लगना,झुर्रियाँ पड़ने लगना,आँखों के आसपास काले घेरे होने लगना आँखों के नीचे गड्ढे पड़ने लगना,गर्दन और कंधों में जकड़न होने लगना,सीने एवं कंधों पर मांस बढ़ने लगना पेट के ऊपरी भाग में जलन होते होते गले तक पहुँचने लगना , 6 महीने तक यदि ऐसा ही चलता रहा तो मांस बढ़ने लगना पेट लटकने लगना,कमर चौड़ी तथा जाम होने लगना ,जाँघें भारी होने लगना,घुटने जाम होने लगना ,हड्डियों के जोड़ बजने लगना, तलवों सहित पूरे शरीर में जलन होने लगना आदि दिक्कतें होने लगती हैं !ऐसी दिक्कतें बढ़ने पर पीड़ित स्त्री-पुरुष थर्मामीटर से नापते हैं तो बुखार नहीं होता वैसे शरीर जला करता है शरीर में दिन भर टूटन होती है उठकर कहीं चलने का मन नहीं होता किसी से मिलने बोलने का मन नहीं होता है किसी शादी विवाह उत्सव आदि में जाने  मन नहीं होता किसी से आँख मिलाने की हिम्मत नहीं पड़ती ! ऐसे स्त्री-पुरुष मेडिकली चेकअप करवाते हैं तो प्रारम्भ में तो कोई खास बीमारी नहीं निकलती है किंतु इन परिस्थितियों पर यदि समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इन्हीं कारणों से बीमारियाँ धीरे धीरे बनने और बढ़ने लगती हैं !ऐसे लोग अपने को असमय में बूढ़ा होने का अनुभव करने लगते हैं किंतु इस अनचाहे बुढ़ापे को रोकने के लिए या इसे न सह पाने के कारण ये बचे खुचे बाल काले करने लगते एवं भारी भरकर मेकअप करने लगते हैं किंतु उससे और कुछ तो होता नहीं वो श्रृंगार और चिढ़ाने सा लगता है क्योंकि उसमें सजीवता नहीं आ पाती है धीरे धीरे अपने को भी झेंप लगने लगती है !   कुल मिलाकर ऐसी सभी परेशानियाँ दिनोंदिन बढ़ती चली जाती हैं इसमें चिकित्सकीय इलाज से काम चलाऊ  सहयोग तो मिलता है किंतु वो स्थाई नहीं होता है थोड़े दिन बाद फिर वैसा ही हो जाता है दूसरी बात छोटी छोटी बीमारियाँ इतनी अधिक हो जाती हैं कि दवा किस किस की लें साथ ही बहुत सी बीमारियों का भ्रम बहुत अधिक बढ़ जाता है बड़ी से बड़ी बीमारी किसी के मुख से या न्यूज में सुनने पर ऐसे लोग उस बड़ी से बड़ी बीमारी के लक्षण अपने अंदर खोजने लगते हैं मानसिक दृष्टि से ये इतने अधिक कमजोर हो जाते हैं कई बार बात बात में या बिना बात के सकारण या अकारण रोने लग जाते हैं ऐसे स्त्री पुरुष !
       ऐसे लोगों पर कोई भी इलाज बहुत अधिक कारगर नहीं होते हैं इलाज की प्रक्रिया तो ऐसी है कि आप गैस बताएँगे तो वो गैस की गोली दे देंगे ,दाँत दर्द बताएँगे तो दाँत दर्द की गोली दे देंगे किंतु ये पर्याप्त इलाज नहीं है धीरे धीरे वो भी यही बताने लगेंगे कि सलाद खाओ,पानी अधिक पियो ,सैर करो,कहीं घूमने फिरने जाया करो मौज मस्ती  करो आदि आदि ! इससे आंशिक लाभ तो होता है किंतु वो स्थाई नहीं होता और बहुत अधिक कारगर नहीं रहता है थोड़े दिन बाद फिर वैसे ही हो जाते हैं क्योंकि ये सब उपाय बहुत अधिक कारगर नहीं रहते !
     चिकित्सा करते समय ऐसे लोगों का मानसिक तनाव सर्व प्रथम कम करना चाहिए जब  मानसिक तनाव घटकर चिंतन सामान्य हो जाए!ऐसे लोगों की चिकित्सा में धीरे धीरे कुछ महीना  या अधिक दिक्कत हुई तो वर्ष भी लग सकते हैं ठीक ढंग से सविधि चिकित्सा करने में समय तो लगता है किंतु धीरे धीरे सब कुछ नार्मल होता चला जाता है !कंडीशन पर डिपेंड करता है ! सबसे पहले तो हमें ऐसे लोगों के विषय में गंभीर रिसर्च इस बात के लिए करनी होती है कि ये परिस्थिति पैदा क्यों हुई !दिमागी तनाव बढ़ा क्यों और कब से बढ़ा तथा रहेगा कब तक और उसे ठीक करने के लिए क्या कुछ उपाय किए जा सकते हैं !
      दूसरी स्टेज वो आती है जब पता करना होता है कि इतने दिनों तक तनाव बना रहने से सम्बंधित व्यक्ति के शरीर में किस प्रकार से कितना नुक्सान हुआ और उसे रिकवर कैसे किया जाए !ये खान पान औषधि टॉनिक आदि  चीजों के साथ साथ उचित आहार व्यवहार से उचित समय से उचित मात्रा में देना होता है । इन सबके साथ साथ अपने विरुद्ध सोचने की आदत ऐसे लोगों की इतनी जल्दी नहीं छूटती है ये डर हमेंशा बना रहता है कि ये कहीं पुरानी स्थिति में फिर न लौट जाएँ इसलिए ऐसे लोगों समय समय पर आवश्यकतानुशार उचित काउंसेलिंग करनी होती है ।
     योगासन करने से लाभ -   ऐसे में ये निरुत्साही लोग योगासन भी नहीं कर पाते करें तो थोड़ा डैमेज कंट्रोल हो सकता है किन्तु अधिक नहीं कुछ पाखंडी लोग ऐसे सपने दिखाते हैं कि योगासनों से मनोरोग दूर हो जाएंगे ये सच नहीं हैं इसमें एकमात्र भूमिका निभा सकता है तो समयशास्त्र  (ज्योतिष)इसकी पद्धति  ही मनोरोग में सबसे अधिक प्रभावी है । 
मानसिक तनाव और बढ़ते मनोरोगों को नियंत्रित करने में सक्षम है 'समयविज्ञान " !
मानसिक शारीरिक आदि रोगों से बचाव के लिए बहुत बड़ा विकल्प है समय विज्ञान ।  
     मैंने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से "तुलसी साहित्य और ज्योतिष" सब्जेक्ट से Ph.D.की है!मैंने मानसिक तनाव से शांति के विषय में योग आयुर्वेद आधुनिक चिकित्सा पद्धति से लेकर ज्योतिष शास्त्र तक गहन शोध किया है !इन सबके अनुसंधान के आधार पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि मनोरोग हों या सामान्य रोग या अन्य प्रकार के सुख दुःख उनके घटने बढ़ने में समयविज्ञान की बहुत बड़ी भूमिका होती है।अपने इस चिकित्सकीय रिसर्च वर्क के आधार पर मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि चिकित्सा की अन्य पद्धतियों के साथ साथ  चिकित्सा के क्षेत्र में समयवैज्ञानिकी रिसर्च को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ।  समयविज्ञान के बिना चिकित्सा शास्त्र अपूर्ण है ऐसा महर्षि चरक ,सुश्रुत आदि ने चिकित्सा विज्ञान में अनेकों स्थलों पर स्वीकार किया है  जिसका वर्णन सुश्रुत और चरक संहिता  आदि ग्रंथों में मिलता है ।
समय विज्ञान के द्वारा जीवन के सभी क्षेत्रों की सीमाएँ समझकर उसी दायरे में अपना जीवन व्यवस्थित करके समाप्त की जा सकती है जीवन की अनिश्चितता !
    समय विज्ञान के महत्त्व को इस प्रकार से समझा जा सकता है कि जिस रोगी का समय ही प्रतिकूल अर्थात बुरा हो उसे बड़े से बड़े बैद्य डॉक्टर महँगी से महँगी दवाएँ देकर भी बचा नहीं सकते !समय प्रभावी होता है दवाएँ नहीं !अच्छे अच्छे चिकित्सकों को कहते सुना जाता है कि समय ही ऐसा आ गया था !इसी प्रकार से जिसका समय अनुकूल अर्थात अच्छा हो उन्हें समय स्वयं ठीक कर लेता है समय सबसे बड़ी औषधि है । इसीकारण तो जंगलों में रहने वाले लोग भी बीमार तो होते ही होंगे जंगली पशु आपस में लड़ झगड़ कर एक दूसरे को घायल भी कर देते होंगे किंतु बिना किसी चिकित्सा के ही वे धीरे धीरे समय के साथ स्वतः स्वस्थ होते देखे जाते हैं और जिनका समय साथ न दे वे राजमहलों में भी बचाए नहीं जा पाते !इसलिए समय के महत्त्व को स्वीकार करते हुए समय विज्ञान संबंधी रिसर्च कार्यों को सरकार के द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए !
    समय विज्ञान के आधार पर किसी व्यक्ति के बारे में भविष्य में होने वाली संभावित बीमारियों के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है कि कब होंगी कितने समय के लिए होंगी और उनका स्तर क्या होगा और उनसे भय कितना होगा !इसी प्रकार से किसी को कोई बीमारी हो चुकी हो या कोई चोट चभेट लग गई हो तो उसके संभावित परिणामों के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है कई बार शुरू में सामान्य सी दिखने वाली बीमारियाँ बड़ा भयानक स्वरूप ले लेती हैं लोगों को यह पता नहीं होता है कि ये बीमारी जिस समय में हुई थी वो समयविंदु ही विषैला था इसलिए इसमें तो बीमारियों को तिल का ताड़ बनने में देर नहीं लगती है इसलिए ऐसे समयविंदुओं का अध्ययन करके पहले से ही सतर्कता बरतते हुए सभावित दुर्घटनाओं को एक सीमा तक नियंत्रित किया जा सकता है । 
       समय विज्ञान के द्वारा मानसिक समस्याओं पर नियंत्रण किया जा सकता है !
    समय विज्ञान के द्वारा की गई रिसर्च में ये भी पता लगा है कि मनोरोग,तनाव या मानसिक अशांति का कारण भी समय ही होता है हमारा समय जब अनुकूल अर्थात अच्छा होता है तो हमारे लिए हितकर सुखकर स्वार्थ साधक आदि जैसा वातावरण हम चाहते हैं वैसा ही बनता चला जाता है सब लोग हमारी बात मानने लगते हैं उससे हमें सुख और शांति प्रसन्नता आनंद आदि सबकुछ मिलता है ,किंतु हमारा समय जब प्रतिकूल अर्थात ख़राब हो तो सारी बातें उलटी होते चली जाती हैं हमारी कही हुई बात सबको बुरी लगने लगती है उससे हमारा तनाव बढ़ चला जाता है और तनाव के कारण नींद नहीं आती है उससे बीमारियाँ होने लगती हैं ।पेट ख़राब रहने लगता है  गैस बनने लगती है उससे घबड़ाहट बेचैनी हार्टबीट आदि बढ़ने लग जाती है ब्लड प्रेशर जैसी दिक्कतें बढ़ने लगती हैं !अतएव समय वैज्ञानिकी चिकित्सा के द्वारा पारिवारिक सामाजिक वैवाहिक आदि तनाव का स्तर घटाया जा सकता है और तनाव से होने वाली बीमारियों पर भी काफी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है ।
       समय विज्ञान का असर संबंधों के क्षेत्र में -
    समय विज्ञान का महत्त्व इससे भी पता लगता है कि जिस स्त्री पुरुष आदि को देखकर एक समय हमें ख़ुशी मिलती है उसी स्त्री पुरुष आदि को देखकर दूसरे समय घृणा होने लगती है । यहाँ ध्यान देने लायक बात तो ये है कि स्त्री - पुरुष आदि तो वही हैं केवल समय बदला होता है किंतु  लोगों  का ध्यान अच्छाई बुराई के कारण भूत समय की ओर नहीं जाता है वो संबंधित स्त्री पुरुषों  से घृणा करने लगते हैं उन्हें अच्छा बुरा मानकर उनसे सम्बन्ध बनाते बिगाड़ते रहते हैं वो यदि समय के महत्त्व को समझने लगें तो आपसी बैर विरोध गृह कलह तलाक जैसे मामलों में काफी कमी लाई जा सकती है समाज में  बढ़ते असंतोष को काफी घटाया जा सकता है !
         कई बार ऐसा विपरीत समय मात्र कुछ महीनों या एक आध वर्ष के लिए ही आता है जिसमें अपने को कहीं शांति नहीं मिलने लगती है उसका दोषारोपण हम किसी और पर न केवल करने लगते हैं अपितु उससे संबंध बिगाड़ लेते या तलाक ले लेते हैं और उस बिगाड़ के पथ पर इतना आगे बढ़ चुके होते हैं कि बुरा समय निकलने के बाद भी हम एक दूसरे के साथ फिर से जुड़ने लायक नहीं रह जाते हैं कई बार छोटे छोटे बच्चे होते हैं वो भटकते घूमने लगते हैं । ऐसे लोगों को यदि पता होता है कि ये सब बुरे समय के कारण हो रहा है तो वो उतने दिन सहकर निकाल लेते हैं समय और सब कुछ सुरक्षित बचाकर चला जा सकता है !
         वैवाहिक आदि विषयों में भी जिन्हें विवाह का सुख जन्म समय विंदु के आधार पर जितना  निश्चित होता है वो यदि उससे अधिक विवाह सुख वाले जीवन साथी से जुड़ते हैं तो जीवन साथी हमेंशा असंतुष्ट रहता है या विवाहेतर संबंधों से अपना स्तर बराबर करता है और यदि अपने से कम विवाह सुख वाले जीवन साथी से जुड़ते हैं तो उसी समस्या का सामना स्वयं को करना पड़ता है !
       कुछ समय विंदु ऐसे होते हैं जिनमें जन्म लेने वाले लोग बिना तनाव के रह ही नहीं सकते !ऐसे लोग अच्छी से अच्छी एवं अनुकूल से अनुकूल बातों व्यवहारों से भी अपने लिए मानसिक तनाव खोज ही लेते हैं ऐसे लोगों को नमस्ते करने और न करने दोनों से ही तनाव होता है । ऐसे समय बहुत लोगों के जीवन में कुछ महीनों वर्षों आदि के लिए आते रहते हैं उनकी जानकारी यदि पहले से हो तो संतुलन बनाते हुए अधिक बिगाड़ से बचा भी जा सकता है। 
          कुछ लड़के लड़कियों के जन्म समय विंदु के अनुसार जब विवाह होने लायक समय होता है तब तो वो कैरियर बनाने आदि को लेकर विवाह नहीं करते और जब विवाह का समय निकल जाता है तब विवाह के लिए तनाव करते घूमते हैं तब विवाह नहीं हो रहा होता है यही स्थिति संतान के क्षेत्र में भी है जब तक संतान होती है तब तक संतान होने नहीं देना चाहते और जब संतान होने का समय निकल जाता है तब तनाव करते घूमते हैं ।इसी प्रकार कई बार विवाह सुख प्रदान करने वाला कोई अच्छा समय आया तो जो लड़के लड़की उसमें विवाह न करके प्रेम प्यार के नाम पर उस समय किसी से भी वैवाहिक सुख प्राप्त कर लेते हैं इसी से उनका विवाह सुखयोग कट जाता है और विवाह होने में कठिनाई आने लगती है उससे उन्हें तनाव होता है । कई बार विवाह सुखयोग की दृष्टि से जितने समय के लिए अनुकूल समय आया उतने समय के लिए कोई प्रेमी या प्रेमिका तो मिल जाएगी और वह समय बहुत आनंद पूर्वक बीतेगा किंतु जैसे ही वो समय बीत जाएगा वैसे ही उनके आपसी संबंध बिगड़ने लगते हैं और दोनों एक दूसरे से घृणा करने लगते हैं कई बार ये घृणा मरने और मारने जैसी भयावह स्थिति तक पहुँच जाती है । ऐसी सभी परिस्थितियों में समयविज्ञान मानव जीवन को कठिन से कठिन समस्याओं से निकालकर सरल बनाने में हमारी बड़ी मदद कर सकता है ।

      यही स्थिति संपत्ति व्यवसाय आदि क्षेत्रों में भी है समय प्रतिकूलता के कारण इच्छाएँ अपूर्ण रहने पर तनाव होता ही है किंतु समय अनुकूल होने पर  इच्छाएँ अपूर्ण रहें तो भी  विपरीत परिस्थितियाँ सहकर भी वस्तुओं साधनों और सम्पत्तियों के अभाव में भी कैसा भी गरीब आदमी केवल संतोष करके प्रसन्न रह लेता है  वो कितना भी गरीब क्यों न हो !उसी व्यक्ति के पास विरुद्ध समय में कितनी भी वस्तुएँ साधन और सम्पत्तियाँ आदि क्यों न संचित हों किंतु समय की प्रतिकूलता के कारण संतोष नहीं हो पाता है वो वस्तुएँ सुख नहीं दे पाती हैं।इसी असंतोष के कारण ही तो बड़े बड़े सम्पत्तिवान लोग भी संपत्ति प्राप्ति के लिए तमाम पाप पूर्ण ब्यवहार करते हैं किंतु संतुष्टि फिर भी नहीं होती है । इसी असंतोष के कारण तो चौदह हजार स्त्रियाँ होने के बाद भी रावण की बासना शांत नहीं हुई जबकि समय की अनुकूलता में ऐसा संतोष होता है कि सबकुछ होते हुए भी लोग विरक्त होते देखे जाते हैं । इसलिए सुख दुःख का कारण असंतोष और असंतोष का कारण अपना बुरा समय होता है ।  
       महोदय ! इस प्रकार से समय का अध्ययन जन्म और कर्म दो प्रकार से किया जाता है जिस समय जन्म होता है अथवा जिस समय कोई काम प्रारम्भ किया जाता है इन दोनों समय विन्दुओं का अनुसंधान करके पता लगाया जा सकता है कि इस समय पैदा हुए स्त्री पुरुषों को जीवन के किस वर्ष में किस प्रकार के कितने समय के लिए सुख दुःख आदि सहने पड़ेंगे !इसी प्रकार से जिस क्षण में कोई काम प्रारम्भ किया जाता है उस क्षण का अनुसन्धान करके ये पता लगाया जा सकता है कि ये कार्य बनेगा या बिगड़ेगा और किस स्तर पर या कितना समय बीतने पर समय का अच्छा बुरा प्रभाव पड़ेगा !इसका भी पता समय विज्ञान के द्वारा लगाया जा सकता है ।  
      अतएव आपसे विनम्र निवेदन है कि मानव जीवन को निरोग और तनाव मुक्त बनाने के लिए समय विज्ञान जैसे हमारे रिसर्च कार्य में भी सरकारी प्रोत्साहन मिलना चाहिए !
                                     

Prasannata...... 

समयविज्ञान के बिना चिकित्सा शास्त्र अपूर्ण है ऐसा महर्षि चरक ,सुश्रुत आदि ने चिकित्सा विज्ञान में अनेकों स्थलों पर स्वीकार किया है  जिसका वर्णन सुश्रुत और चरक संहिता  आदि ग्रंथों में मिलता है ।
समय विज्ञान के द्वारा जीवन के सभी क्षेत्रों की सीमाएँ समझकर उसी दायरे में अपना जीवन व्यवस्थित करके समाप्त की जा सकती है जीवन की अनिश्चितता !
    समय विज्ञान के महत्त्व को इस प्रकार से समझा जा सकता है कि जिस रोगी का समय ही प्रतिकूल अर्थात बुरा हो उसे बड़े से बड़े बैद्य डॉक्टर महँगी से महँगी दवाएँ देकर भी बचा नहीं सकते !समय प्रभावी होता है दवाएँ नहीं !अच्छे अच्छे चिकित्सकों को कहते सुना जाता है कि समय ही ऐसा आ गया था !इसी प्रकार से जिसका समय अनुकूल अर्थात अच्छा हो उन्हें समय स्वयं ठीक कर लेता है समय सबसे बड़ी औषधि है । इसीकारण तो जंगलों में रहने वाले लोग भी बीमार तो होते ही होंगे जंगली पशु आपस में लड़ झगड़ कर एक दूसरे को घायल भी कर देते होंगे किंतु बिना किसी चिकित्सा के ही वे धीरे धीरे समय के साथ स्वतः स्वस्थ होते देखे जाते हैं और जिनका समय साथ न दे वे राजमहलों में भी बचाए नहीं जा पाते !इसलिए समय के महत्त्व को स्वीकार करते हुए समय विज्ञान संबंधी रिसर्च कार्यों को सरकार के द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए !
    समय विज्ञान के आधार पर किसी व्यक्ति के बारे में भविष्य में होने वाली संभावित बीमारियों के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है कि कब होंगी कितने समय के लिए होंगी और उनका स्तर क्या होगा और उनसे भय कितना होगा !इसी प्रकार से किसी को कोई बीमारी हो चुकी हो या कोई चोट चभेट लग गई हो तो उसके संभावित परिणामों के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है कई बार शुरू में सामान्य सी दिखने वाली बीमारियाँ बड़ा भयानक स्वरूप ले लेती हैं लोगों को यह पता नहीं होता है कि ये बीमारी जिस समय में हुई थी वो समयविंदु ही विषैला था इसलिए इसमें तो बीमारियों को तिल का ताड़ बनने में देर नहीं लगती है इसलिए ऐसे समयविंदुओं का अध्ययन करके पहले से ही सतर्कता बरतते हुए सभावित दुर्घटनाओं को एक सीमा तक नियंत्रित किया जा सकता है । 
       समय विज्ञान के द्वारा मानसिक समस्याओं पर नियंत्रण किया जा सकता है !
    समय विज्ञान के द्वारा की गई रिसर्च में ये भी पता लगा है कि मनोरोग,तनाव या मानसिक अशांति का कारण भी समय ही होता है हमारा समय जब अनुकूल अर्थात अच्छा होता है तो हमारे लिए हितकर सुखकर स्वार्थ साधक आदि जैसा वातावरण हम चाहते हैं वैसा ही बनता चला जाता है सब लोग हमारी बात मानने लगते हैं उससे हमें सुख और शांति प्रसन्नता आनंद आदि सबकुछ मिलता है ,किंतु हमारा समय जब प्रतिकूल अर्थात ख़राब हो तो सारी बातें उलटी होते चली जाती हैं हमारी कही हुई बात सबको बुरी लगने लगती है उससे हमारा तनाव बढ़ चला जाता है और तनाव के कारण नींद नहीं आती है उससे बीमारियाँ होने लगती हैं ।पेट ख़राब रहने लगता है  गैस बनने लगती है उससे घबड़ाहट बेचैनी हार्टबीट आदि बढ़ने लग जाती है ब्लड प्रेशर जैसी दिक्कतें बढ़ने लगती हैं !अतएव समय वैज्ञानिकी चिकित्सा के द्वारा पारिवारिक सामाजिक वैवाहिक आदि तनाव का स्तर घटाया जा सकता है और तनाव से होने वाली बीमारियों पर भी काफी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है ।
       समय विज्ञान का असर संबंधों के क्षेत्र में -
    समय विज्ञान का महत्त्व इससे भी पता लगता है कि जिस स्त्री पुरुष आदि को देखकर एक समय हमें ख़ुशी मिलती है उसी स्त्री पुरुष आदि को देखकर दूसरे समय घृणा होने लगती है । यहाँ ध्यान देने लायक बात तो ये है कि स्त्री - पुरुष आदि तो वही हैं केवल समय बदला होता है किंतु  लोगों  का ध्यान अच्छाई बुराई के कारण भूत समय की ओर नहीं जाता है वो संबंधित स्त्री पुरुषों  से घृणा करने लगते हैं उन्हें अच्छा बुरा मानकर उनसे सम्बन्ध बनाते बिगाड़ते रहते हैं वो यदि समय के महत्त्व को समझने लगें तो आपसी बैर विरोध गृह कलह तलाक जैसे मामलों में काफी कमी लाई जा सकती है समाज में  बढ़ते असंतोष को काफी घटाया जा सकता है !
         वैवाहिक आदि विषयों में भी जिन्हें विवाह का सुख जन्म समय विंदु के आधार पर जितना  निश्चित होता है वो यदि उससे अधिक विवाह सुख वाले जीवन साथी से जुड़ते हैं तो जीवन साथी हमेंशा असंतुष्ट रहता है या विवाहेतर संबंधों से अपना स्तर बराबर करता है और यदि अपने से कम विवाह सुख वाले जीवन साथी से जुड़ते हैं तो उसी समस्या का सामना स्वयं को करना पड़ता है !

         जा सकती है आदि कोई   हमें ठीक लगता है वही कल बुरा लगने लगता है इसका कारण उस व्यक्ति की उतनी अच्छाई बुराई नहीं है जितनी उसके और अपने समय  की होती है कई बार ऐसा विपरीत समय मात्र कुछ महीनों या एक आध वर्ष का ही होता है जिसमें अपने को कहीं शांति नहीं मिलने लगती है उसका दोषारोपण हम किसी और पर न केवल करने लगते हैं अपितु उससे किनारा करने लगते हैं तलाक ले लेते हैं और उस पथ पर इतना आगे बढ़ चुके होते हैं कि बुरा समय निकलने के बाद भी एक दूसरे के साथ फिर से जुड़ने लायक नहीं रह जाते हैं तब तक इतनी दूरियाँ आ चुकी होती हैं कई बार छोटे छोटे बच्चे होते हैं वो भटकते घूमने लगते हैं । ऐसे लोगों को यदि पता होता कि ये सब बुरे समय के कारण हो रहा है तो वो उतने दिन सहकर निकाल लेते और सब कुछ सुरक्षित बचाकर रखा जा सकता था !
      वैवाहिक आदि विषयों में भी जिन्हें विवाह का सुख जन्म समय विंदु के आधार पर निश्चित होता है वो यदि उससे अधिक विवाह सुख वाले जीवन साथी से जुड़ते हैं तो जीवन साथी हमेंशा असंतुष्ट रहता है या विवाहेतर संबंधों से अपना स्तर बराबर करता है और यदि अपने से कम विवाह सुख वाले जीवन साथी से जुड़ते हैं तो उसी समस्या का सामना स्वयं को करना पड़ता है ! 
     कुछ समय विंदु ऐसे होते हैं जिनमें जन्म लेने वाले लोग बिना तनाव के रह ही नहीं सकते !ऐसे लोग अच्छी से अच्छी एवं अनुकूल से अनुकूल बातों व्यवहारों से भी अपने लिए मानसिक तनाव खोज ही लेते हैंऐसे मनोरोगी धीरे धीरे गंभीर शारीरिक बीमारियों से ग्रसित होते चले जाते हैं । इन्हें
      यही स्थिति संपत्ति व्यवसाय आदि क्षेत्रों में भी है किसी भी प्रकार का अभाव जब तक रहेगा  तब तक उसे कोई दूसरा व्यक्ति प्रसन्न नहीं कर सकता है वो स्वयं चाहे तो संतोष पूर्वक विपरीत परिस्थितियाँ सहकर अपने को प्रसन्न  रख सकता है। वस्तुओं साधनों और सम्पत्तियों के अभाव में भी  जो व्यक्ति समय अनुकूल होने के कारण केवल संतोष करके प्रसन्न रह लेता है वो कितना भी गरीब क्यों न हो !उसी व्यक्ति के पास विरुद्ध समय में कितनी भी वस्तुएँ साधन और सम्पत्तियाँ आदि क्यों न संचित हों किंतु संतोष न होने के कारण उसे वो वस्तुएँ सुख नहीं दे पाती हैं।इसी असंतोष के कारण ही तो बड़े बड़े सम्पत्तिवान लोग भी संपत्ति प्राप्ति के लिए तमाम पाप पूर्ण ब्यवहार करते हैं किंतु संतुष्टि फिर भी नहीं होती है । इसी असंतोष के कारण तो चौदह हजार स्त्रियाँ होने के बाद भी रावण की बासना शांत नहीं हुई जबकि समय की अनुकूलता में ऐसा संतोष होता है कि सबकुछ होते हुए भी लोग विरक्त होते देखे जाते हैं । इसलिए सुख दुःख का कारण असंतोष और असंतोष का कारण अपना बुरा समय होता है 


 वहाँ चिकित्सा की व्यवस्थाएँ  समय साथ न दे  !
         
         महोदय ! समय का अध्ययन जन्म और कर्म दो प्रकार से किया जाता है जिस समय जन्म होता है अथवा जिस समय कोई काम प्रारम्भ किया जाता है इन दोनों समय विन्दुओं का अनुसंधान करके पता लगाया जा सकता है कि इस समय पैदा हुए स्त्री पुरुषों को जीवन के किस वर्ष में किस प्रकार के कितने समय के लिए सुख दुःख आदि सहने पड़ेंगे !इसी प्रकार से जिस क्षण में कोई काम प्रारम्भ किया जाता है उस क्षण का अनुसन्धान करके ये पता लगाया जा सकता है कि ये कार्य बनेगा या बिगड़ेगा और किस स्तर पर या कितना समय बीतने पर समय का अच्छा बुरा प्रभाव पड़ेगा !इसका भी पता लगाया जा सकता है ।        
       समय का अध्ययन करके के लिए शकुन सामुद्रिक आदि विधाएँ भी हैं किंतु ज्योतिष शास्त्र इन सब में प्रमुख है। पिछले कुछ समय से ज्योतिष शास्त्र के विषय में हो हल्ला मचाने वाले पंडितों पुजारियों में टीवी चैनलों पर बैठकर ज्योतिष के बारे में निराधार लोगों ने ज्योतिष शास्त्र के साथ बहुत धोखा किया है इसलिए ज्योतिष के वैज्ञानिक पक्ष के माध्यम से चिकित्सा को सरल बनने के प्रयास किए जाने चाहिए इसके लिए उचित है कि सरकारी विश्व विद्यालयों से ज्योतिष सब्जेक्ट में एम.ए. पीएच.डी.आदि किए हुए योग्य लोगों की आवष्यकता होगी ।
समयविज्ञान मानसिक तनावों के कारण विषम परिस्थितियों से जूझ रहे समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों पर  इसका न केवल परीक्षण किया है अपितु काफी बड़ा वर्ग हमारे इस शोध से लाभान्वित भी हुआ है समय विज्ञान की मदद से यह खोजपूर्ण रिसर्च संभव हो सकी है । इसके द्वारा मानव जीवन से जुड़े कई जटिल पहलू सरल होते देखे जा सकते हैं इस अनुसंधान से एक बड़ी बात सामने आई है कि तनाव हो या प्रसन्नता  ये केवल वस्तुओं साधनों और सम्पत्तियों से ही संबंधित नहीं होती अपितु इसमें समय की भी बहुत बड़ी भूमिका होती है।       
     ऐसे समय विन्दुओं का अध्ययन करके ये पता किया जा सकता है कि यह तनावी मानसिकता किसमें कितने समय के लिए है जिसके जीवन में कुछ वर्षों के लिए है वो किस उम्र या किस  वर्ष में होगी  साथ ही इससे बचने के लिए क्या कुछ सावधानी बरती जानी चाहिए आदि पर व्यापक रिसर्च की आवश्यकता है । इन्हें कोई नमस्ते करे तो तनाव न करे तो तनाव ।किसी के नमस्ते करने से इस बात का तनाव कि कोई स्वार्थ होगा तभी ऐसा कर रहा है और नमस्ते न करने से इन्हें लगता है वो घमंडी  हो गया है। आफिस में या घर में इनकी आज्ञा लेकर कोई काम करे तो इन्हें चमचा गिरी लगती है और इनसे बिना पूछे करे तो इन्हें लापरवाह घमंडी आदि वो सब कुछ लगता है जिससे अपना तनाव बढ़ाया जा सके !

      ऐसे लोग अपने इतने बड़े शत्रु स्वयं होते हैं कि ये अपनों पर तो शक करते ही रहते  हैं साथ ही इन्हें अपनी कार्यक्षमता पर भी हमेंशा शक बना रहता है किंतु ऐसी बातें ये मन खोलकर कभी किसी के सामने रखते नहीं हैं केवल अंदर ही अंदर सहते रहते हैं ऐसे लोग अपने  गलत चिंतन से तैयार हुआ दिमागी कूड़ा कचरा खुद ढोया करते हैं । ऐसे मनोरोगी धीरे धीरे गंभीर शारीरिक बीमारियों से ग्रसित होते चले जाते हैं । 

       ऐसे लोग सुखों एवं अपनेपन  के अभाव में आजीवन तड़पते रहते हैं ऐसे सभी तनाव ग्रस्त लोगों की मदद के लिए समय विज्ञान महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है बशर्ते सरकार की ओर से इससे संबंधित शोध कार्य को प्रोत्साहन मिले !तो ऐसे तनाव ग्रस्त लोगों को भी सामान्य जीवन की सुख सुविधाओं का एहसास करवाया  जा सकता है । 
     अतएव आपसे विनम्र निवेदन है कि तनाव मुक्ति के ऐसे किसी भी प्रयास में समय विज्ञान की सेवाओं का भी सदुपयोग  किया जाना चाहिए !
 

No comments:

Post a Comment