गधों को घोड़ा सिद्ध करने की आदत छोड़ दे मीडिया !
मीडिया के आचरणों से अक्सर झलकने लगता है पक्षपात !जहाँ स्वार्थ वहाँ शुभ समाचार बाक़ी सब भ्रष्टाचार !
मीडिया को राजनैतिक मोहमाया से दूर रहना चाहिए ज्ञानवान होना चाहिए हर समाचार पर तर्क और प्रमाणों की तह तक जाना चाहिए ! जिम्मेदार मीडिया को स्वधर्म पालन पर खरा उतरना चाहिए अन्यथा जिनके घर शीशे के बने होते हैं उन्हें दूसरे के घरों में कंकड़ नहीं फेंकने चाहिए किंतु यदि आप मीडिया से जुड़े हैं तो आपको कंकड़ फेंकने ही दूसरों के घरों में होते हैं इसलिए अपने घर तो ठीक रखने ही चाहिए !
मीडियागाँधी जी के तीनों बंदरों का अनुगामी होकर चुप नहीं बैठ सकता !उसे तो बुराई सुननी भी पड़ेगी करनी भी पड़ेगी और देखनी भी पड़ेगी इसलिए अपने को ठीक रखना चाहिए ।
मीडिया अंततः देश की आम समाज का अघोषित प्रतिनिधि होता है उसे चाहिए कि वो सच और हितकर बचनों को स्वीकारे और असत्य एवं अहितकर बचनों को नकारे !देशहित एवं जनहित के बिचारों को सर्वोपरि महत्त्व दे !वह बात कोई छोटा कहे या बड़ा किंतु महत्त्व इस बात का नहीं होना चाहिए अपितु महत्त्व बिचारों का महत्व होना चाहिए !
पिछले कुछ दशकों में बढ़े भ्रष्टाचार के लिए मीडिया कम जिम्मेदार नहीं रहा है इसका मुख्यकारण तर्क और निष्पक्षताविहीन मीडिया नेताओं और अभिनेताओं की दृष्टि से अपने देश और समाज को देखने लगा उसने अपनी दृष्टि की परवाह नहीं की ।
मीडिया की विज्ञापन नीति तो इतनी तथ्यहीन तर्क विहीन एवं अर्थ लोलुप है कि पैसे देकर कोई कितना भी बड़ा दावा कर सकता है कसरतें सिखाने वाले नट नागरों ने अपने को योगी कहना शुरू कर दिया और टीवी चैनलों पर बैठ बैठ कर सारी बड़ी बीमारियों की लिस्टों को पढ़ पढ़कर सारी बड़ी बीमारियों को ठीक करने के दावे ठोकने लगे लोग ,वो भी कसरतों से !किंतु यदि उनके दावों में दस प्रतिशत भी दम होता तो अबतक अस्पतालों में ताले लग जाते !मीडिया उनसे ये पूछने की हिम्मत नहीं जुटा सका कि यदि ये योग है तो कसरत और व्यायाम क्या होते हैं या उन्हीं की पदोन्नति हो गई है !
टीवी पर बकवास करने वाले 99 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो न तो ज्योतिष जानते हैं और न ही ज्योतिष पढ़ने कभी किसी सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालय में ही गए !जिन्होंने ज्योतिष पढ़ी ही नहीं उन्हें ज्योतिष के विषय में ब्यर्थ की बकवास करने का अवसर ही क्यों देता है मीडिया !
ज्योतिष में कालसर्प दोष से लेकर प्रतिदिन बताए जाने वाले राशिफल एवं वास्तु के विषय में बके जाने वाले तरह तरह के हथकंडे एवं उपायों के नाम पर कौवे कुत्ते तीतर बटेर हल्दी चावल कोयले कंकणों आदि के उपायों की ज्योतिष शास्त्र में कहीं कोई चर्चा ही नहीं है किंतु जब ऐसी बातें टीवी चैनलों से बोली और अखवारों में लिखी जाती हैं तब आम जनता उसे सच मानने लगती है ये मीडिया पर जनता के भरोसे को दर्शाता है !किंतु ये भरोसा टूटने से पहले मीडिया को सुधर जाना चाहिए !
ज्योतिष एवं धर्म कर्म के क्षेत्र में प्रचलित प्रत्येक सब्जेक्ट सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों में पढ़ाया जाता है इनके स्वतंत्र डिपार्टमेंट हैं सिलेबस है रीडर प्रोफेसर हैं सबकुछ बिलकुल सामान्य विषयों की तरह परीक्षाएँ और डिग्रियाँ भी होती हैं किंतु मीडिया को जब जब इन विषयों से जुड़े विद्वानों की आवश्यकता होती है तब तब मीडिया उन्हीं 99 प्रतिशत अनपढ़ों को बैठाकर बकवास करवा लेता है किंतु विद्वानों के पास तक नहीं पहुँचता है आखिर ये लापरवाही क्यों ?यदि यही करना था तो किस लिए बनाए गए हैं ये सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालय क्यों इन पर खर्च किए जाते हैं करोड़ों रूपए !
इसी प्रकार से अबकी बार योगदिवस से दो दिन पहले एक अघोषित सरकारी बाबा ने ज्योतिषियों एवं ज्योतिषशास्त्र को पाखंडी एवं पाखंड बताया ग्रहों एवं वास्तु आदि की मान्यताओं की निंदा की नग नगीनों को कोसा आदि आदि !उसकी ऐसी हरकतों को अधिकाँश टीवीचैनलों ने दिखाया और अखवारों में भी खबरें छपीं किंतु ज्योतिष मेरा सब्जेक्ट है दसों वर्ष मैंने इसे पढ़ने में लगाए हैं काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से Ph D की है बाबा के विवादित बयान पर सफाई देना हमारा धर्म था अधिकार था और समाज के लिए भी आवश्यक था किंतु मैंने हर चैनल से संपर्क किया लिखकर भेजा अखवारों में भेजा किंतु कहीं कोई महत्त्व नहीं दिया गया !आखिर क्यों ?क्या ये मीडिया का धर्म नहीं था जिसके द्वारा जिस विषय में एक गलत सन्देश समाज में फैलाया जा चुका था आखिर उसकी सफाई देने की जिम्मेदारी भी मीडिया की ही थी ।
हमें या किसी ज्योतिष के विद्वान को अपनी बात रखने का अवसर क्यों नहीं दिया गया ?
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