जिन नेताओं और बाबाओं की सरकारों से बात बिगड़ी वो तो पकड़ गए और जो सरकारों के साथ दुम हिलाते रहे वो तो पक्के ईमानदार बाक़ी सब बेईमान !बारे कानून बारे संविधान बारे लोकतान्त्रिक अधिकार !
बाबाओं और नेताओं के पास कहाँ से और कैसे इकट्ठी हो जाती है इतनी भारी भरकम संपत्ति ?
प्रायः किसानों गरीबोंग्रामीणों के यहाँ सामान्य परिवारों से निकले बाबाओं और नेताओं के पास कहाँ से और कैसे इकट्ठी हुईं हजारों करोड़ की संपत्तियाँ !क्या वो इतने अधिक शिक्षित समझदार योग्य परिश्रमी और ईमानदार होने कारण बन गए हैं अरबोंपति !क्या वे इतने अधिक मेहनती और देशसेवा की भावना से भावित थे !
बाबाओं और नेताओं के पास कहाँ से और कैसे इकट्ठी हो जाती है इतनी भारी भरकम संपत्ति ?
प्रायः किसानों गरीबोंग्रामीणों के यहाँ सामान्य परिवारों से निकले बाबाओं और नेताओं के पास कहाँ से और कैसे इकट्ठी हुईं हजारों करोड़ की संपत्तियाँ !क्या वो इतने अधिक शिक्षित समझदार योग्य परिश्रमी और ईमानदार होने कारण बन गए हैं अरबोंपति !क्या वे इतने अधिक मेहनती और देशसेवा की भावना से भावित थे !
संपत्तियाँ छिपाकर टैक्स कम देने वाले व्यापारियों को पापी कहा जाए उनके धन को कालाधन कहा जाए और उनके व्यापार की वस्तुओं को मिलावटी बता बताकर बड़े बड़े विज्ञापनों के माध्यम से दुष्प्रचार किया जाए ऐसा करने वाले बाबाओं और नेताओं के अपने दामन में कितने दाग हैं वे कभी उनका भी जिक्र करेंगे क्या ?आखिर उन सामान्य घरों से निकले बाबाओं और नेताओं के पास कैसे लगा करोड़ों अरबों का अंबार !
टैक्स चोरी करने वाले व्यापारी हों या मिलावटी सामान बेचने वाले व्यापारी आज उन्हें रोकने उनकी निंदा करने उन्हें पापी चोर बेईमान आदि कहकर अपमानित करने से अच्छा है कि जब वे ऐसा कर रहे थे उन्हें तभी क्यों नहीं रोका और पकड़ा गया !इसकी जिम्मेदारी तो तत्कालीन उन सरकारी कर्मचारियों की थी जिन्हें ऐसा करने की सैलरी सरकार दे रही थी वो कर्मचारी यदि अपने दायित्व का निर्वाह ठीक ढंग से नहीं कर रहे थे तो उस समय की सरकार किस बात की सैलरी दे रही थी उन्हें !इसके लिए उस सरकार के जिम्मेदार मंत्री भी दोषी थे !इसके बाद जब सरकार बदली तब उन भूतपूर्व मंत्रियों एवं दोषी अधिकारियों कर्मचारियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही क्यों नहीं की जानी चाहिए थी ?सीधे व्यापारियों को ही दोषी ठहरा देना कहाँ तक न्यायाचित है !
ब्यापारी बाबा और नेतालोगों के पास जब भ्रष्टाचार के द्वारा करोड़ों अरबों इकठ्ठा हो चुके होते हैं तब ये लोग अपने को ईमानदार सिद्ध करने के लिए सबको बेईमान बताने लगते हैं सरकारी सिस्टम की भद्द पीटते रहते हैं विज्ञापनों में कहते सुने जाते हैं कि बाजार में सारा सामान मिलावटी मिलता है अब केवल बाबा लोग ही ईमानदार बचे हैं बाकी सब बेईमान हैं इसलिए ईश्वर ने उन्हें पैदा किया है इसलिए बाबाओं से ही सामान खरीदो !अब बाबा करेंगे व्यापार और ब्यापारी जाएँगे हरिद्वार !बाबालोगों के मिलावट वाले सारे आरोप सहती रहती हैं सरकारें !वैसे भी मिलावटी सामानों की जाँच करने और उन्हें रोकने की जिम्मेदारी सरकारों की है ऐसे आरोप और विज्ञापन सीधे सीधे तौर पर सरकारों को कटघरे में खड़ा करते हैं न कि व्यापारियों को !ऐसे दुष्प्रचारी विज्ञापनों का खंडन सरकारों को करना होता है !
टैक्स चोरी करने वाले व्यापारी हों या मिलावटी सामान बेचने वाले व्यापारी आज उन्हें रोकने उनकी निंदा करने उन्हें पापी चोर बेईमान आदि कहकर अपमानित करने से अच्छा है कि जब वे ऐसा कर रहे थे उन्हें तभी क्यों नहीं रोका और पकड़ा गया !इसकी जिम्मेदारी तो तत्कालीन उन सरकारी कर्मचारियों की थी जिन्हें ऐसा करने की सैलरी सरकार दे रही थी वो कर्मचारी यदि अपने दायित्व का निर्वाह ठीक ढंग से नहीं कर रहे थे तो उस समय की सरकार किस बात की सैलरी दे रही थी उन्हें !इसके लिए उस सरकार के जिम्मेदार मंत्री भी दोषी थे !इसके बाद जब सरकार बदली तब उन भूतपूर्व मंत्रियों एवं दोषी अधिकारियों कर्मचारियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही क्यों नहीं की जानी चाहिए थी ?सीधे व्यापारियों को ही दोषी ठहरा देना कहाँ तक न्यायाचित है !
ब्यापारी बाबा और नेतालोगों के पास जब भ्रष्टाचार के द्वारा करोड़ों अरबों इकठ्ठा हो चुके होते हैं तब ये लोग अपने को ईमानदार सिद्ध करने के लिए सबको बेईमान बताने लगते हैं सरकारी सिस्टम की भद्द पीटते रहते हैं विज्ञापनों में कहते सुने जाते हैं कि बाजार में सारा सामान मिलावटी मिलता है अब केवल बाबा लोग ही ईमानदार बचे हैं बाकी सब बेईमान हैं इसलिए ईश्वर ने उन्हें पैदा किया है इसलिए बाबाओं से ही सामान खरीदो !अब बाबा करेंगे व्यापार और ब्यापारी जाएँगे हरिद्वार !बाबालोगों के मिलावट वाले सारे आरोप सहती रहती हैं सरकारें !वैसे भी मिलावटी सामानों की जाँच करने और उन्हें रोकने की जिम्मेदारी सरकारों की है ऐसे आरोप और विज्ञापन सीधे सीधे तौर पर सरकारों को कटघरे में खड़ा करते हैं न कि व्यापारियों को !ऐसे दुष्प्रचारी विज्ञापनों का खंडन सरकारों को करना होता है !
कालेधन के लिए केवल ब्यापारियों की निंदा क्यों ?
इतना अपमान सहकर कैसे जी पाएँगे व्यापारी और कैसेबच पाएगा ब्यापार!उन पर इतना अत्याचार क्यों ?
आखिर सम्मान और स्वाभिमान से जीने का हक़ तो ब्यापारियों को भी है वो अपने कर्मचारियों और परिवार के लोगों से कैसे आँखें मिलावें उन्हें देश के शीर्ष लोग या दो दो कौड़ी के बाबा लोग भरी सभा में पापी बेईमान कहें कहें तो वो व्यापारी लोग कैसे सहें और कैसे जिएँ !
इतना अपमान सहकर कैसे जी पाएँगे व्यापारी और कैसेबच पाएगा ब्यापार!उन पर इतना अत्याचार क्यों ?
आखिर सम्मान और स्वाभिमान से जीने का हक़ तो ब्यापारियों को भी है वो अपने कर्मचारियों और परिवार के लोगों से कैसे आँखें मिलावें उन्हें देश के शीर्ष लोग या दो दो कौड़ी के बाबा लोग भरी सभा में पापी बेईमान कहें कहें तो वो व्यापारी लोग कैसे सहें और कैसे जिएँ !
यदि अपमानित और हैरान परेशान होकर तनावग्रस्त व्यापारी लोग अपना व्यापार बंद करने लगें तो क्या अकेले सँभाल लेगी सरकार या फिर केवल ट्रस्ट वाले बाबा ही करेंगे व्यापार और सारे व्यापारी भेज दिए जाएँगे हरिद्वार !या वो गरीब लोग व्यापार सँभाल लेंगे जो आज तक अपनी रसोई अपने बल पर सँभालने की हिम्मत नहीं जुटा सके उनकी जिंदगी की जरूरतें पूरी करने के लिए सरकारें उन्हें हमेंशा कुछ न कुछ बाँटती रहती हैं ! यदि वो लोग व्यापार करने की कठिन परिस्थितियाँ सह पाने की हिम्मत ही जुटा पाते तो व्यापार कर क्यों न लेते !आखिर उन्हें व्यापार करने से अभी तक किसने रोक रखा है सरकारें तो उन्हें भी प्रोत्साहित करती रहती हैं !
नेताओंऔरबाबाओं की संपत्तियाँकालाधननहीं हैंक्या ?
नेताओंऔरबाबाओं की संपत्तियाँकालाधननहीं हैंक्या ?
नेताओं और बाबाओं के पास इतनी संपत्तियों का अंबार कैसे लगा यदि इसमें काले धन की मदद लेने के लिए कानूनों का दुरुपयोग नहीं किया जाता है तो !
नेता हों या बाबा इन दोनों का उद्देश्य अपने को सुधारना और दूसरे लोगों को राष्ट्रभक्ति एवं देशभक्ति के लिए प्रेरित करना होता है !जिससे सारा देश और सारा समाज बदले !अन्यथा कुछ बाबा और नेता लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए माँग माँग कर धन इकठ्ठा करते हैं और धन इकठ्ठा करने के लिए उन्हें कोई सामाजिक या सेवा कार्य शुरू करना पड़ता है और सेवाकार्यों के नाम पर कितना भी धन किसी से भी माँगने में शर्म और संकोच नहीं होता है वो काला पीला हरा गुलाबी कैसा भी क्यों न हो !एक ट्रस्ट बना लेते हैं जिससे वो अपना धन तो शुद्धकर लेते हैं इसके बाद जिन्होंने उन्हें चंदा नहीं दिया होता है उनसे खुंदक निकालते हैं और उनके धन को कालाधन बता बताकर उन्हें डराने धमकाने के लिए उनके विरुद्ध हो हल्ला किया करते हैं उनके धन को काला धन बताते हैं यदि वो व्यापारी लोग अपना तथाकथित कालाधन इन नेताओं और बाबाओं को सौंप दें तब तो वो भी तुरंत सफेद हो जाएगा यदि वो इनके डराने धमकाने से नहीं डरते हैं और नहीं देते हैं इन्हें और अपने पास रखते हैं तो उनका वही धन कालाधन हो जाता है आखिर क्यों ?
सरकारों की गैर जिम्मेदारियों और नाकामियों को ढकने के लिए ब्यापारियों को रखना पड़ता है कालाधन !
सरकारी मशीनरी बिना घूस लिए एक कदम आगे चलने को तैयार नहीं होती है और यदि चलेगी भी तो समय से नहीं चलेगी !सरकार अभी तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं कर पाई है जिसमें सरकारी कर्मचारियों से भ्रष्टाचार मुक्त सरकारी सेवाएँ समय से ली जा सकें या उनकी शिकायत समय से कहीं सुनी जा सकती हो और उसका रेस्पांस जल्दी मिल सके !
इसलिए समय से काम करवाना ब्यापारियों की मजबूरी होती है उसके लिए सरकारी इतंजामों पर उन्हें उतना विश्वास नहीं होता है जितना भरोसा उन्हें घूस देकर काम करवाने पर होता है ।
सरकारी कर्मचारियों से पूछो कि तुम घूस क्यों लेते हो तुम्हें सैलरी नहीं मिलती है क्या तो वो कहते हैं कि ये पैसा ऊपर तक अर्थात मंत्रियों तक जाता है !
इसका मतलब ये है कि मंत्री लोग यदि घूस लेने के लिए सरकारी कर्मचारियों को मजबूर न करते होते तो शायद वो घूस न लेते इसीप्रकार से यदि मंत्री जी घूस लेने के बजाए कर्मचारियों को काम करने के लिए प्रेरित कर रहे होते तो वो काम करते ! जब वे ही काम करने लगते तो ब्यापारी लोगों को क्यों देनी पड़ती घूस और जब घूस ही नहीं देनी पड़ती तो ब्यापारियों को काला धन रखने की आवश्यकता ही क्या थी !
सरकारों की गैर जिम्मेदारियों और नाकामियों को ढकने के लिए ब्यापारियों को रखना पड़ता है कालाधन !
सरकारी मशीनरी बिना घूस लिए एक कदम आगे चलने को तैयार नहीं होती है और यदि चलेगी भी तो समय से नहीं चलेगी !सरकार अभी तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं कर पाई है जिसमें सरकारी कर्मचारियों से भ्रष्टाचार मुक्त सरकारी सेवाएँ समय से ली जा सकें या उनकी शिकायत समय से कहीं सुनी जा सकती हो और उसका रेस्पांस जल्दी मिल सके !
इसलिए समय से काम करवाना ब्यापारियों की मजबूरी होती है उसके लिए सरकारी इतंजामों पर उन्हें उतना विश्वास नहीं होता है जितना भरोसा उन्हें घूस देकर काम करवाने पर होता है ।
सरकारी कर्मचारियों से पूछो कि तुम घूस क्यों लेते हो तुम्हें सैलरी नहीं मिलती है क्या तो वो कहते हैं कि ये पैसा ऊपर तक अर्थात मंत्रियों तक जाता है !
इसका मतलब ये है कि मंत्री लोग यदि घूस लेने के लिए सरकारी कर्मचारियों को मजबूर न करते होते तो शायद वो घूस न लेते इसीप्रकार से यदि मंत्री जी घूस लेने के बजाए कर्मचारियों को काम करने के लिए प्रेरित कर रहे होते तो वो काम करते ! जब वे ही काम करने लगते तो ब्यापारी लोगों को क्यों देनी पड़ती घूस और जब घूस ही नहीं देनी पड़ती तो ब्यापारियों को काला धन रखने की आवश्यकता ही क्या थी !
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