लोकसभा के 91 घंटे 59 मिनट बर्बाद हुए ! इसके लिए दोषी कौन ? नेता क्या इतने स्वतंत्र होते हैं संसद चर्चा का मंच है तो चर्चा होनी ही चाहिए किंतु हो कैसे!
राजनैतिकदलों
में चर्चा करने समझने तथा अपनी बात कहने और दूसरों के विचार सहने योग्य
विचारवान कई लोग राजनैतिक दलों में किन्नरों जैसा उपेक्षित जीवन जीने के
लिए मजबूर कर दिए गए हैं हैं वे शिक्षित समझदार अनुभवी एवं जीवंत नेता लोग
हैं !किंतु वे अपने इमानधर्म को भी महत्त्व देना चाहते हैं वे अपनी आत्मा
की आवाज भी सुनना चाहते हैं इसलिए उनकी उपेक्षा करके राजनैतिक दलों के
मालिकों की पहली पसंद होते हैं नेताओं की बीबी बहन बेटियाँ बच्चे एवं नाते
रिस्तेदार आदि दूसरी पसंद होते हैं पैसे वाले वे लोग जो पार्टी के मालिक की
जेब भर सकते हैं तीसरी पसंद होते हैं पार्टी मालिकों के इशारे पर सदनों
में हुल्लड़ मचाने वाले लोग !चर्चा करने की योग्यता रखने वाले लोगों को पसंद
कौन करता है उन्हें चुनावी टिकट या पार्टी का पदाधिकार देना कौन चाहता है
पार्टी के पदों और चुनावी प्रत्याशियों के रूप में तो अपने और अपनों को ही
देखना चाहते हैं नेता लोग !
संसद चर्चा का मंच है किंतु अशिक्षा अल्पशिक्षा अयोग्यता या अनुभव
हीनता के कारण जो सदस्य लोग उस चर्चा में चाह कर भी भाग न ले पा रहे हों वे
सदन में शांत कब तक बैठे रहें वे कुर्सी छोड़कर समय पास करने बाहर निकल
जाएँ ! या कुर्सी पर बैठे बैठे सोवें या मोबाईल फोन में वीडियो देखें या
अपनी पार्टी के मालिक का इशारा पाकर तब तक हुल्लड़ मचाते रहें जब तक मालिक
चुप रहने को न कहे आखिर वे क्या करें !सदन की सार गर्भित चर्चाओं में जो
बोलने और समझने की योग्यता न रखते हों सदनों की कार्यवाही न चलने के लिए वे
कितने दोषी माने जाएँ उनमें जितनी योग्यता है उससे अधिक अपेक्षा उनसे कैसे
की जा सकती है और चाह कर भी उस पर वे खरे कैसे उतरें !
अयोग्य लोग सदनों में जाकर वहाँ की कार्यवाही रोक ही सकते हैं चलाना तो उनके बश का होता नहीं है कार्यवाही चलाने अर्थात चर्चा के लिए जो शिक्षा समझ अनुभव चाहिए वो उनके पास होता नहीं है और दूसरों के अच्छे विचारों को मानने एवं अपने विचारों को विनम्रता पूर्वक औरों को मना लेने की प्रतिभा नहीं होती है वो बेचारे ज्ञानदुर्बल लोग चर्चा कैसे करें !सदनों में चर्चा करना आसान होता है क्या ?
जिस राजनीति में शिक्षा की अनिवार्यता न हो समझ सदाचरण एवं अनुभव का महत्त्व ही न हो केवल अपनों को या पैसे वालों को या प्रसिद्ध लोगों को पद प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकट बाँटे जाने लगे हों वो संसद में आवें या न आवें ! चर्चा करने और समझने की योग्यता रखते हों या न रखते हों वो कुर्सियों पर बैठ के सोवें या समय पास करने के लिए बाहर चले जाएँ या संसद की कार्यवाही के समय ही अपने मोबाईल पर वीडियो देखने लगें या अपने पार्टी मालिकों का आदेश पाकर हुल्लड़ मचाने लगें !किंतु संसद में चर्चा करने और समझने की योग्यता यदि उनमें नहीं है तो वो संसद कीsee more.... http://samayvigyan.blogspot.in/2016/12/blog-post.html
No comments:
Post a Comment