प्राकृतिक घटनाओं को समझ पाने में कितना सफल हुआ है विज्ञान ?
विज्ञान -
विज्ञान के विषय में कहा जाता है कि विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान या विद्या है जो विचार, अवलोकन, अध्ययन और प्रयोग से मिलती है, जो प्रयास किसी अध्ययन के विषय की प्रकृति या सिद्धान्तों को जानने के लिये किये जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिये भी करते हैं, जो तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों को प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करती है।किसी भी विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान कह सकते है।
माना जाता है कि विज्ञान, प्रकृति का विशेष ज्ञान है।किसी भी चीज के बारे में यों ही कुछ बोलने व तर्क-वितर्क करने के बजाय बेहतर है कि उस पर कुछ प्रयोग किये जायें और उसका सावधानी पूर्वक निरीक्षण किया जाय।
जिस प्राकृतिक वस्तु या घटना का अध्ययन करना हो, सबसे पहले उसका ध्यानपूर्वक निरीक्षण आवश्यक है। कभी-कभी किसी वस्तु के विषय में मस्तिष्क में पहले से कुछ धारणा बनी रहती है, जो निष्पक्ष निरीक्षण में बहुत बाधक होती है। निरीक्षण के समय इस प्रकार की धारणाओं से उन्मुक्त होकर कार्य करना चाहिए। ब्रह्माण्ड के किसी घटक या घटना का निरीक्षण किया जाए फिर एक संभावित परिकल्पना की जाए जो प्राप्त आकडों से मेल खाती हो इस परिकल्पना के आधार पर कुछ भविष्यवाणियाँ की जाएँ !प्रयोग से प्राप्त आँकडों से वे भविष्यवाणियाँ यदि सत्य सिद्ध होती हैं तो ठीक और यदि नहीं होती हैं तो आँकडे और प्राक्कथन में कुछ असहमति तो परिकल्पना को तदनुसार परिवर्तित किया जा सकता है !जब तक सिद्धान्त और प्रयोग से प्राप्त आँकडों में पूरी सहमति न हो जाय तब तक उसे सच न माना जाए !
विचारणीय विषय यह है कि भूकंप वर्षा आँधी तूफ़ान हो या वायु प्रदूषण इन विषयों से संबंधित विज्ञान के नाम पर जो कारण बताए जा रहे हैं या उनके आधार पर जो भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं प्रायः उनका सच्चाई से कोई संबंध नहीं होता है !यदि कुछ तीर तुक्के सही हो भी जाते हैं तो उनमें विज्ञान के किसी सिद्धांत का कोई योग दान न होकर अपितु भविष्यवाणी करने के केवल तीर तुक्के बैठा लिए जाते हैं कहीं आँधी तूफ़ान उठा देखकर किसी दूसरे स्थान पर आँधी तूफ़ान आने की घोषणा कर देना !कहीं के बादल उठे देखकर किसी दूसरे स्थान पर वर्षा होने की भविष्यवाणी कर देना !कहीं भूकंप आया देखकर पृथ्वी के अंदर की प्लेटों के टकराने की कहानियाँ सुनाने लगना !धरती के अंदर बढ़े गैसों के दबाव की के कारण किसी बड़े भूकंप के आने का अंधविश्वास फ़ैलाने लगना !किसी क्षेत्र में भूकंप आने के बाद अभी और झटके लगेंगे जैसे तीर तुक्के लगाने लगना !लोगों से घरों से निकलकर खुले स्थान में आ जाने की सलाहें देने लगना जैसी बातों में विज्ञान कहाँ है !खोज क्या है अनुसंधान किस बात का किया गया है और खोजने से मिला क्या है कुछ भी तो पारदर्शी नहीं है सारा कुछ गोलमाल है !
वर्षा होने लगे तो पीछे पीछे कहने लगना अभी और वर्षा होगी अभीदो दिन बरसेगा चार दिन और बरसेगा इसी बीच धूप निकल आवे तो कहने लगना अब गर्मी पड़ेगी तापमान बढ़ जाएगा आदि !आँधी तूफ़ान आवे तो अभी और आँधी तूफ़ान आने जैसी रट लगाने लगना !वायु प्रदूषण बढ़ने लगे तो अभी और बढ़ने की भविष्यवाणियाँ करने लगना और घटने लगे तो घटने की भविष्यवाणियाँ करने लगना !ऐसी काल्पनिक बातों में विज्ञान के तो दर्शन भी नहीं होते और न ही इनका कोई सिद्धांत होता है और न ही सच्चाई से कोई संबंध होता है !
वस्तुतः ऐसी बातों को विज्ञान तो तब माना जा सकता है जब वर्षा आँधी तूफ़ान आदि बिषयों पर एक बार भविष्यवाणी करके शांत हो जाए इसके बाद दूर बिना किसी पूर्वाग्रह के उनके सही या गलत होने का अनुसंधान किया जाए !इन दोनों में तारतम्य बनाया जाए तब तो विज्ञान अन्यथा कहीं भविष्यवाणियाँ जा रही हैं तो कहीं घटनाएँ घट रही हैं बीच में भविष्यवक्ता लोग उछल कूद करके गैप को रफू करने में लगे हैं ऐसी परिस्थिति में इस बात का अंदाजा ही नहीं लगता है कि भविष्यवाणी की आखिर क्या गई थी और वो सही कितनी हुई है !विज्ञान के क्षेत्र में ऐसा घालमेल नहीं चलता है !
भूमिका -
प्राकृतिक घटनाओं के विषय में कहाँ खड़ा है विज्ञान ?
वस्तुतः जिस विषय के रहस्यों को खोल सकने में जो विषय सक्षम हो वही उस विषय का विज्ञान माना जाना चाहिए !इसके अलावा और किसी प्रकार का पूर्वाग्रह इसमें स्वीकार्य नहीं होना चाहिए !जैसे चिकित्सा के क्षेत्र में कई किसी रोगी को स्वस्थ करने के लिए जादू टोना करने वाले बाबा लोग,झाड़ फूँक करने वाले लोग,मुल्ला मौलवी लोग एवं और बहुत सारे टोने टोटके करने वाले लोग बड़े बड़े रोगों से मुक्ति दिलाने का दावा करते देखे जाते हैं किंतु रोग बढ़ने पर हर किसी रोगी को चिकित्सावैज्ञानिकों के पास ही जाना पड़ता है !चूँकि उनके काम में पारदर्शिता है उनकी औषधियों एवं आपरेशन आदि प्रक्रियाओं के परिणाम विश्वसनीय हैं !इसीलिए इसे चिकत्सा की इस प्रक्रिया को विज्ञान मानने में कहीं किसी को कोई आपत्ति नहीं होती है !चिकित्सा पर सबका भरोसा है !इसके अलावा जादू टोना आदि जो अन्य प्रक्रियाएँ हैं उनमें पारदर्शिता का अभाव है इसीलिए उसे अंधविश्वास बताया जाता है !
इसलिए सच यही है कि जो ज्ञान सिद्धांत सूत्र या प्रक्रिया आदि जिस विषय को समझने में सफलता दिला सके वही उस विषय का विज्ञान होता है !इसके अतिरिक्त किसी विषय को विज्ञान कह देने या मान लेने मात्र से वो विज्ञान नहीं हो जाता है वो तो अंधविश्वास है !यदि उस माने हुए काल्पनिक विज्ञान से संबंधित विषय को समझने में उसका रहस्य खोलने में सफलता मिल जाती है तब वो विषय विज्ञान की श्रेणी में स्थापित हो जाता है और उस विषय को जानने वाले लोग उस विषय के वैज्ञानिक मान लिए जाते हैं !
इसके अतिरिक्त भूकंप जैसे जो ऐसे प्राकृतिक विषय हैं जिनके रहस्य खोलने के लिए विद्वानों ने अनेकों प्रकार की प्रक्रियाएँ अपना रखी हैं तमाम प्रकार के तीर तुक्के लगाए जा चुके हैं तरह तरह की काल्पनिक विधियाँ अपनाई जा रही हैं तरह तरह की संभावनाएँ बताई जा रही हैं !धरती के अंदर की गैसों का दबाव हो या फिर पृथ्वी के अंदर लावा पर तैरती बारह टैक्टॉनिक प्लेटों के टकराने की काल्पनिक कहानियों को तब तक विज्ञान कैसे माना जा सकता है जबतक ऐसी कल्पनाएँ भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होने का निश्चित कारण खोजने में सहायक न हों ! इससे भी बड़ी बात यह है कि उसके आधार पर भावी भूकंपों का पूर्वानुमान लगाने में सफलता न मिल सके !यदि ऐसी शर्त नहीं होगी तब तो भूकंप आने के कारण बताने वाले लोग तरह तरह की अनगिनत कहानियाँ गढ़ते सुनाते रहेंगे और सभी लोग अपनी कल्पनाओं कहानियों को विज्ञान बताते रहेंगे !इसलिए शर्त यही है कि भूकंपों का पूर्वानुमान लगाने के लिए प्रक्रिया कोई भी क्यों न हो किंतु उसके द्वारा लगाया गया भूकंपों का पूर्वानुमान सही सिद्ध हो उसे ही भूकंपविज्ञान की श्रेणी में स्थापित किया जाना चाहिए !ऐसी प्रक्रिया से सफलता प्राप्त करने वाले भूकंपवैज्ञानिक कहलाने के अधिकारी हो सकेंगे तब तक न तो भूकंप विज्ञान है और न ही भूकंप वैज्ञानिक !!
इसी प्रकार से सूखा वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं के विषय में जब जैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं तब तैसी भविष्यवाणियाँ की जाने लगती हैं !जिस प्रकार से किसी सूखी पड़ी हुई नदी में अचानक बाढ़ आ गई हो तो उस बाढ़ के पानी की गति के आधार पर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह बाढ़ का पानी किस दिन कहाँ पहुँच पाएगा और प्रायः यह अंदाजा लगभग सही बैठता है !किंतु इसका अंदाजा लगाने वाली काल्पनिक प्रक्रिया को बाढ़ विज्ञान या नदी विज्ञान तो नहीं ही माना जा सकता है और न ही ऐसा अंदाजा लगाने वाले लोगों को नदी वैज्ञानिक या बाढ़ वैज्ञानिक ही माना जा सकता है !क्योंकि जिस विषय का विज्ञान सिद्ध होना ही अभी बाकी है उस विषय से संबंधित कल्पनाएँ करने वाले लोगों को वैज्ञानिक कैसे माना जा सकता है !
इसी नदी बाढ़ प्रक्रिया की तरह ही रडारों उपग्रहों आदि के माध्यम से मौसम संबंधी घटनाएँ आगे से आगे देख ली जाती हैं इसके बाद वो जिस दिशा की ओर जाती हुई दिखाई पड़ती हैं उसी दिशा में बादलों हवाओं आदि की सघनता, उपस्थिति, गति आदि देखकर इस बात का अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये बादल या आँधी तूफान आदि किस दिन किस दिशा के किस देश प्रदेश या शहर आदि में पहुँच सकते हैं !इसी आधार पर मौसम संबंधी घटनाओं का अनुमान लगा लिया जाता है !एक ओर घटनाएँ घटित होती जा रही होती हैं तो दूसरी ओर साथ साथ अनुमान बताते चलते हैं लोग !जिन्हें वो लोग भविष्यवाणियाँ कहते हैं जबकि वो भविष्यवाणियाँ नहीं होती हैं अपितु यह उस विषय का अत्यंत सामान्य अनुमान होता है जो घटना के आरंभ हो जाने के बाद ही लगाया जा सकता है ! घटना घटित होना जब तक प्रारंभ नहीं हुआ होगा तब तक ऐसे पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सकते हैं !मौसम संबंधी ऐसे अनुमानों का चूँकि कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है इसीलिए इस प्रक्रिया को विज्ञान नहीं माना जा सकता है और न ही इनका अंदाजा लगाने वालों को वैज्ञानिक माना जा सकता है !
इसी प्रकार से वायु प्रदूषण की स्थिति है जब जहाँ वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है तब वहाँ वायुप्रदूषण और अधिक बढ़ने का अनुमान लगा लिया जाता है इसी प्रकार से जब घटते दिखाई पड़ता है तब वायु प्रदूषण घटने का अनुमान लगा लिया जाता है !इसके अतिरिक्त जिस भी क्रिया से धूल धुआँ आदि उड़ता हुआ दिखाई देता है उस सबको प्रदूषण फ़ैलाने वाला मान लिया जाता है !ऐसी परिस्थिति में इसमें विज्ञान कहाँ है और इसका अनुमान कैसे लगाया जा सकता है और इसका अनुमान लगाने वालों को वैज्ञानिक कैसे माना जा सकता है जब तक कि वे वायु प्रदूषण से संबंधित पूर्वानुमान लगाने में अपनी क्षमता सिद्ध न कर सकें !
भूकंप वर्षा आँधी तूफान से लेकर वायु प्रदूषण तक के विषय में कभी किसी विज्ञान का प्रवेश ही नहीं हुआ है जिस दिन इसमें कोई भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण उचित बैठ जाएगा उस दिन इन विषयों से संबंधित सभी संशय समाप्त हो जाएँगे !सभी प्रश्नों के वैज्ञानिक और विश्वसनीय उत्तर मिल जाएँगे !सभी को भूकंप वर्षा आँधी तूफान से लेकर वायु प्रदूषण आदि के घटित होने का न केवल कारण पता लग जाएगा अपितु महीनों वर्षों पहले ऐसी घटनाएँ घटित होने का पूर्वानुमान लगाने में सफलता प्राप्त होगी !विशेष बात यह है कि ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का कारण पता लगते ही उनके निवारण के विषय में भी सोचा जा सकेगा !
वस्तुतः विज्ञान का उद्देश्य भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं के केवल कारण या पूर्वानुमान खोजना ही नहीं है क्योंकि कारण और पूर्वानुमान खोज लेने मात्र से जनधन की हानि को रोकने में मात्र आंशिक सफलता ही मिल पाएगी पूर्ण सफलता मिलना तो तभी संभव है जब प्राकृतिक आपदाओं के वेग को घटाया या रोका जा सके ! इस क्षेत्र में विज्ञान की सफलता तभी मानी जा सकती है !
चिकित्सा के क्षेत्र में विद्वानों ने केवल रोगों का पता ही नहीं लगाया है अपितु गंभीर से गंभीर रोगों की सशक्त ,पारदर्शी एवं प्रभावी प्रक्रियाएँ भी खोजी हैं !केवल इतना ही नहीं प्रिवेंटिव चिकित्सा के द्वारा टीकाकरण आदि करके पोलियो जैसी कई बड़े बड़े रोगों को जड़ से उखाड़ फेंका है !चिकित्सा व्यवस्था को सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाने के कारण ही आज उन्हें समाज न केवल वैज्ञानिक ही नहीं अपितु लोग उन्हें श्रद्धा से भगवान का दूसरा स्वरूप भी मानते हैं !
कुल मिलाकर चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं जबकि भूकंप वर्षा आँधी तूफान से लेकर वायु प्रदूषण आदि सभी क्षेत्रों में अभी तक अनुसंधान के नाम पर विज्ञान विज्ञान करके शोर बहुत मचाया गया है 'भूकंपविज्ञान' 'मौसमविज्ञान'जैसे शब्द गढ़ लिए गए हैं किंतु इस बात का किसी के पास कोई उत्तर नहीं है कि इन विषयों में अभी तक विज्ञान है कहाँ !कुछ तीर तुक्कों को छोड़कर इस क्षेत्र में ऐसी कौन सी उपलब्धि हासिल की गई है जिसको देखकर कहा जा सके कि यह सफलता विज्ञान के बिना मिल पाना संभव न था !
इसलिए इस क्षेत्र से संबंधित विज्ञान का खोजा जाना अभी अवशेष है जो चिकित्सा विज्ञान की तरह ही मौसम और भूकंप आदि क्षेत्रों में भी अत्यंत उन्नत कीर्तिमान स्थापित कर सके !
वायु प्रदूषण -
विज्ञान -
विज्ञान के विषय में कहा जाता है कि विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान या विद्या है जो विचार, अवलोकन, अध्ययन और प्रयोग से मिलती है, जो प्रयास किसी अध्ययन के विषय की प्रकृति या सिद्धान्तों को जानने के लिये किये जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिये भी करते हैं, जो तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों को प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करती है।किसी भी विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान कह सकते है।
माना जाता है कि विज्ञान, प्रकृति का विशेष ज्ञान है।किसी भी चीज के बारे में यों ही कुछ बोलने व तर्क-वितर्क करने के बजाय बेहतर है कि उस पर कुछ प्रयोग किये जायें और उसका सावधानी पूर्वक निरीक्षण किया जाय।
जिस प्राकृतिक वस्तु या घटना का अध्ययन करना हो, सबसे पहले उसका ध्यानपूर्वक निरीक्षण आवश्यक है। कभी-कभी किसी वस्तु के विषय में मस्तिष्क में पहले से कुछ धारणा बनी रहती है, जो निष्पक्ष निरीक्षण में बहुत बाधक होती है। निरीक्षण के समय इस प्रकार की धारणाओं से उन्मुक्त होकर कार्य करना चाहिए। ब्रह्माण्ड के किसी घटक या घटना का निरीक्षण किया जाए फिर एक संभावित परिकल्पना की जाए जो प्राप्त आकडों से मेल खाती हो इस परिकल्पना के आधार पर कुछ भविष्यवाणियाँ की जाएँ !प्रयोग से प्राप्त आँकडों से वे भविष्यवाणियाँ यदि सत्य सिद्ध होती हैं तो ठीक और यदि नहीं होती हैं तो आँकडे और प्राक्कथन में कुछ असहमति तो परिकल्पना को तदनुसार परिवर्तित किया जा सकता है !जब तक सिद्धान्त और प्रयोग से प्राप्त आँकडों में पूरी सहमति न हो जाय तब तक उसे सच न माना जाए !
विचारणीय विषय यह है कि भूकंप वर्षा आँधी तूफ़ान हो या वायु प्रदूषण इन विषयों से संबंधित विज्ञान के नाम पर जो कारण बताए जा रहे हैं या उनके आधार पर जो भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं प्रायः उनका सच्चाई से कोई संबंध नहीं होता है !यदि कुछ तीर तुक्के सही हो भी जाते हैं तो उनमें विज्ञान के किसी सिद्धांत का कोई योग दान न होकर अपितु भविष्यवाणी करने के केवल तीर तुक्के बैठा लिए जाते हैं कहीं आँधी तूफ़ान उठा देखकर किसी दूसरे स्थान पर आँधी तूफ़ान आने की घोषणा कर देना !कहीं के बादल उठे देखकर किसी दूसरे स्थान पर वर्षा होने की भविष्यवाणी कर देना !कहीं भूकंप आया देखकर पृथ्वी के अंदर की प्लेटों के टकराने की कहानियाँ सुनाने लगना !धरती के अंदर बढ़े गैसों के दबाव की के कारण किसी बड़े भूकंप के आने का अंधविश्वास फ़ैलाने लगना !किसी क्षेत्र में भूकंप आने के बाद अभी और झटके लगेंगे जैसे तीर तुक्के लगाने लगना !लोगों से घरों से निकलकर खुले स्थान में आ जाने की सलाहें देने लगना जैसी बातों में विज्ञान कहाँ है !खोज क्या है अनुसंधान किस बात का किया गया है और खोजने से मिला क्या है कुछ भी तो पारदर्शी नहीं है सारा कुछ गोलमाल है !
वर्षा होने लगे तो पीछे पीछे कहने लगना अभी और वर्षा होगी अभीदो दिन बरसेगा चार दिन और बरसेगा इसी बीच धूप निकल आवे तो कहने लगना अब गर्मी पड़ेगी तापमान बढ़ जाएगा आदि !आँधी तूफ़ान आवे तो अभी और आँधी तूफ़ान आने जैसी रट लगाने लगना !वायु प्रदूषण बढ़ने लगे तो अभी और बढ़ने की भविष्यवाणियाँ करने लगना और घटने लगे तो घटने की भविष्यवाणियाँ करने लगना !ऐसी काल्पनिक बातों में विज्ञान के तो दर्शन भी नहीं होते और न ही इनका कोई सिद्धांत होता है और न ही सच्चाई से कोई संबंध होता है !
वस्तुतः ऐसी बातों को विज्ञान तो तब माना जा सकता है जब वर्षा आँधी तूफ़ान आदि बिषयों पर एक बार भविष्यवाणी करके शांत हो जाए इसके बाद दूर बिना किसी पूर्वाग्रह के उनके सही या गलत होने का अनुसंधान किया जाए !इन दोनों में तारतम्य बनाया जाए तब तो विज्ञान अन्यथा कहीं भविष्यवाणियाँ जा रही हैं तो कहीं घटनाएँ घट रही हैं बीच में भविष्यवक्ता लोग उछल कूद करके गैप को रफू करने में लगे हैं ऐसी परिस्थिति में इस बात का अंदाजा ही नहीं लगता है कि भविष्यवाणी की आखिर क्या गई थी और वो सही कितनी हुई है !विज्ञान के क्षेत्र में ऐसा घालमेल नहीं चलता है !
भूमिका -
प्राकृतिक घटनाओं के विषय में कहाँ खड़ा है विज्ञान ?
वस्तुतः जिस विषय के रहस्यों को खोल सकने में जो विषय सक्षम हो वही उस विषय का विज्ञान माना जाना चाहिए !इसके अलावा और किसी प्रकार का पूर्वाग्रह इसमें स्वीकार्य नहीं होना चाहिए !जैसे चिकित्सा के क्षेत्र में कई किसी रोगी को स्वस्थ करने के लिए जादू टोना करने वाले बाबा लोग,झाड़ फूँक करने वाले लोग,मुल्ला मौलवी लोग एवं और बहुत सारे टोने टोटके करने वाले लोग बड़े बड़े रोगों से मुक्ति दिलाने का दावा करते देखे जाते हैं किंतु रोग बढ़ने पर हर किसी रोगी को चिकित्सावैज्ञानिकों के पास ही जाना पड़ता है !चूँकि उनके काम में पारदर्शिता है उनकी औषधियों एवं आपरेशन आदि प्रक्रियाओं के परिणाम विश्वसनीय हैं !इसीलिए इसे चिकत्सा की इस प्रक्रिया को विज्ञान मानने में कहीं किसी को कोई आपत्ति नहीं होती है !चिकित्सा पर सबका भरोसा है !इसके अलावा जादू टोना आदि जो अन्य प्रक्रियाएँ हैं उनमें पारदर्शिता का अभाव है इसीलिए उसे अंधविश्वास बताया जाता है !
इसलिए सच यही है कि जो ज्ञान सिद्धांत सूत्र या प्रक्रिया आदि जिस विषय को समझने में सफलता दिला सके वही उस विषय का विज्ञान होता है !इसके अतिरिक्त किसी विषय को विज्ञान कह देने या मान लेने मात्र से वो विज्ञान नहीं हो जाता है वो तो अंधविश्वास है !यदि उस माने हुए काल्पनिक विज्ञान से संबंधित विषय को समझने में उसका रहस्य खोलने में सफलता मिल जाती है तब वो विषय विज्ञान की श्रेणी में स्थापित हो जाता है और उस विषय को जानने वाले लोग उस विषय के वैज्ञानिक मान लिए जाते हैं !
इसके अतिरिक्त भूकंप जैसे जो ऐसे प्राकृतिक विषय हैं जिनके रहस्य खोलने के लिए विद्वानों ने अनेकों प्रकार की प्रक्रियाएँ अपना रखी हैं तमाम प्रकार के तीर तुक्के लगाए जा चुके हैं तरह तरह की काल्पनिक विधियाँ अपनाई जा रही हैं तरह तरह की संभावनाएँ बताई जा रही हैं !धरती के अंदर की गैसों का दबाव हो या फिर पृथ्वी के अंदर लावा पर तैरती बारह टैक्टॉनिक प्लेटों के टकराने की काल्पनिक कहानियों को तब तक विज्ञान कैसे माना जा सकता है जबतक ऐसी कल्पनाएँ भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होने का निश्चित कारण खोजने में सहायक न हों ! इससे भी बड़ी बात यह है कि उसके आधार पर भावी भूकंपों का पूर्वानुमान लगाने में सफलता न मिल सके !यदि ऐसी शर्त नहीं होगी तब तो भूकंप आने के कारण बताने वाले लोग तरह तरह की अनगिनत कहानियाँ गढ़ते सुनाते रहेंगे और सभी लोग अपनी कल्पनाओं कहानियों को विज्ञान बताते रहेंगे !इसलिए शर्त यही है कि भूकंपों का पूर्वानुमान लगाने के लिए प्रक्रिया कोई भी क्यों न हो किंतु उसके द्वारा लगाया गया भूकंपों का पूर्वानुमान सही सिद्ध हो उसे ही भूकंपविज्ञान की श्रेणी में स्थापित किया जाना चाहिए !ऐसी प्रक्रिया से सफलता प्राप्त करने वाले भूकंपवैज्ञानिक कहलाने के अधिकारी हो सकेंगे तब तक न तो भूकंप विज्ञान है और न ही भूकंप वैज्ञानिक !!
इसी प्रकार से सूखा वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं के विषय में जब जैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं तब तैसी भविष्यवाणियाँ की जाने लगती हैं !जिस प्रकार से किसी सूखी पड़ी हुई नदी में अचानक बाढ़ आ गई हो तो उस बाढ़ के पानी की गति के आधार पर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह बाढ़ का पानी किस दिन कहाँ पहुँच पाएगा और प्रायः यह अंदाजा लगभग सही बैठता है !किंतु इसका अंदाजा लगाने वाली काल्पनिक प्रक्रिया को बाढ़ विज्ञान या नदी विज्ञान तो नहीं ही माना जा सकता है और न ही ऐसा अंदाजा लगाने वाले लोगों को नदी वैज्ञानिक या बाढ़ वैज्ञानिक ही माना जा सकता है !क्योंकि जिस विषय का विज्ञान सिद्ध होना ही अभी बाकी है उस विषय से संबंधित कल्पनाएँ करने वाले लोगों को वैज्ञानिक कैसे माना जा सकता है !
इसी नदी बाढ़ प्रक्रिया की तरह ही रडारों उपग्रहों आदि के माध्यम से मौसम संबंधी घटनाएँ आगे से आगे देख ली जाती हैं इसके बाद वो जिस दिशा की ओर जाती हुई दिखाई पड़ती हैं उसी दिशा में बादलों हवाओं आदि की सघनता, उपस्थिति, गति आदि देखकर इस बात का अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये बादल या आँधी तूफान आदि किस दिन किस दिशा के किस देश प्रदेश या शहर आदि में पहुँच सकते हैं !इसी आधार पर मौसम संबंधी घटनाओं का अनुमान लगा लिया जाता है !एक ओर घटनाएँ घटित होती जा रही होती हैं तो दूसरी ओर साथ साथ अनुमान बताते चलते हैं लोग !जिन्हें वो लोग भविष्यवाणियाँ कहते हैं जबकि वो भविष्यवाणियाँ नहीं होती हैं अपितु यह उस विषय का अत्यंत सामान्य अनुमान होता है जो घटना के आरंभ हो जाने के बाद ही लगाया जा सकता है ! घटना घटित होना जब तक प्रारंभ नहीं हुआ होगा तब तक ऐसे पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सकते हैं !मौसम संबंधी ऐसे अनुमानों का चूँकि कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है इसीलिए इस प्रक्रिया को विज्ञान नहीं माना जा सकता है और न ही इनका अंदाजा लगाने वालों को वैज्ञानिक माना जा सकता है !
इसी प्रकार से वायु प्रदूषण की स्थिति है जब जहाँ वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है तब वहाँ वायुप्रदूषण और अधिक बढ़ने का अनुमान लगा लिया जाता है इसी प्रकार से जब घटते दिखाई पड़ता है तब वायु प्रदूषण घटने का अनुमान लगा लिया जाता है !इसके अतिरिक्त जिस भी क्रिया से धूल धुआँ आदि उड़ता हुआ दिखाई देता है उस सबको प्रदूषण फ़ैलाने वाला मान लिया जाता है !ऐसी परिस्थिति में इसमें विज्ञान कहाँ है और इसका अनुमान कैसे लगाया जा सकता है और इसका अनुमान लगाने वालों को वैज्ञानिक कैसे माना जा सकता है जब तक कि वे वायु प्रदूषण से संबंधित पूर्वानुमान लगाने में अपनी क्षमता सिद्ध न कर सकें !
भूकंप वर्षा आँधी तूफान से लेकर वायु प्रदूषण तक के विषय में कभी किसी विज्ञान का प्रवेश ही नहीं हुआ है जिस दिन इसमें कोई भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण उचित बैठ जाएगा उस दिन इन विषयों से संबंधित सभी संशय समाप्त हो जाएँगे !सभी प्रश्नों के वैज्ञानिक और विश्वसनीय उत्तर मिल जाएँगे !सभी को भूकंप वर्षा आँधी तूफान से लेकर वायु प्रदूषण आदि के घटित होने का न केवल कारण पता लग जाएगा अपितु महीनों वर्षों पहले ऐसी घटनाएँ घटित होने का पूर्वानुमान लगाने में सफलता प्राप्त होगी !विशेष बात यह है कि ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का कारण पता लगते ही उनके निवारण के विषय में भी सोचा जा सकेगा !
वस्तुतः विज्ञान का उद्देश्य भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं के केवल कारण या पूर्वानुमान खोजना ही नहीं है क्योंकि कारण और पूर्वानुमान खोज लेने मात्र से जनधन की हानि को रोकने में मात्र आंशिक सफलता ही मिल पाएगी पूर्ण सफलता मिलना तो तभी संभव है जब प्राकृतिक आपदाओं के वेग को घटाया या रोका जा सके ! इस क्षेत्र में विज्ञान की सफलता तभी मानी जा सकती है !
चिकित्सा के क्षेत्र में विद्वानों ने केवल रोगों का पता ही नहीं लगाया है अपितु गंभीर से गंभीर रोगों की सशक्त ,पारदर्शी एवं प्रभावी प्रक्रियाएँ भी खोजी हैं !केवल इतना ही नहीं प्रिवेंटिव चिकित्सा के द्वारा टीकाकरण आदि करके पोलियो जैसी कई बड़े बड़े रोगों को जड़ से उखाड़ फेंका है !चिकित्सा व्यवस्था को सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाने के कारण ही आज उन्हें समाज न केवल वैज्ञानिक ही नहीं अपितु लोग उन्हें श्रद्धा से भगवान का दूसरा स्वरूप भी मानते हैं !
कुल मिलाकर चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं जबकि भूकंप वर्षा आँधी तूफान से लेकर वायु प्रदूषण आदि सभी क्षेत्रों में अभी तक अनुसंधान के नाम पर विज्ञान विज्ञान करके शोर बहुत मचाया गया है 'भूकंपविज्ञान' 'मौसमविज्ञान'जैसे शब्द गढ़ लिए गए हैं किंतु इस बात का किसी के पास कोई उत्तर नहीं है कि इन विषयों में अभी तक विज्ञान है कहाँ !कुछ तीर तुक्कों को छोड़कर इस क्षेत्र में ऐसी कौन सी उपलब्धि हासिल की गई है जिसको देखकर कहा जा सके कि यह सफलता विज्ञान के बिना मिल पाना संभव न था !
इसलिए इस क्षेत्र से संबंधित विज्ञान का खोजा जाना अभी अवशेष है जो चिकित्सा विज्ञान की तरह ही मौसम और भूकंप आदि क्षेत्रों में भी अत्यंत उन्नत कीर्तिमान स्थापित कर सके !
वायु प्रदूषण -
वायु
प्रदूषण बहुत बड़ी समस्या है !यह अनेकों प्रकार से जीवन को क्षति पहुँचा
रहा है!इसीलिए इसके बढ़ने से सारा विश्व परेशान है माना जा रहा है कि जितने
बड़े बड़े रोग हैं उनमें से अधिकाँश रोग वायु प्रदूषण के
कारण ही होते हैं !इस बात से प्रदूषण को लेकर अधिकाँश
लोग भयभीत हैं !3 अप्रैल 2019 में एक रिसर्च के हवाले से कहा गया कि "दुनिया
भर के करीब 3.6 अरब लोग घरों में रहते हुए वायु प्रदूषण की चपेट में
आए।"दूसरी एक रिसर्च में कहा गया "भारत में स्वास्थ्य संबंधी खतरों से होने
वाली मौतों का तीसरा सबसे बड़ा कारण वायु प्रदूषण है !एक रिपोर्ट में दावा
किया गया है कि "वर्ष 2017 के दौरान वायु प्रदूषण से
पूरी दुनिया में 50 लाख लोगों की मौत हुई है। इनमें 12 लाख भारत के और इतनी
ही
संख्या में चीन के थे।"
ऐसी डरावनी बातें सुनकर वैश्विक समाज का परेशान होना स्वाभाविक है !प्रदूषण को कम करने के लिए लोग
स्वतः ही प्रयत्नशील हैं !अब तो सबको लगने लगा है कि जैसे भी हो वायु
प्रदूषण को घटाया जाए !किंतु वायु प्रदूषण बढ़ता कैसे है और घटेगा कैसे
?इसका ज्ञान हुए बिना कोई चाहकर भी कैसे घटा सकता है वायु प्रदूषण !
प्रदूषण जब बढ़ता है तब उसे कम करने या रोकने के लिए सरकार आखिर क्या
करे!कार्यवाही के नामपर सरकार कुछ लोगों का चालान कर देती है कुछ फैक्ट्रियाँ सील करवा देती है ऑड इवेन लागू कर देती है पराली जलाने वाले
किसानों का चालान कर देती हैं !किसी का मकान बनना बंद
करवा देती है !किंतु इन सभी बातों का असर वायु
प्रदूषण पर कितना पड़ता है या नहीं पड़ता है इसपर विश्वास पूर्वक अभी कुछ
नहीं कहा जा सकता है !कुलमिलाकर सरकारें भी परेशान हैं आखिर प्रदूषण से निपटने के लिए सरकारें और क्या करें !जनता
भी सरकार से जानना चाहती है कि प्रदूषण घटाने के लिए उसे क्या करना चाहिए
और क्या नहीं करना चाहिए !जनता को विश्वासपूर्वक अभी तक ये नहीं बताया जा
सका है कि वो क्या क्या करना छोड़ दे तो वायुप्रदूषण घट ही जाएगा !जनता का
दोष क्या है उसे बताया भी नहीं जा रहा है और उसके विरुद्ध कार्यवाही भी की
जा रही है !
ऐसी परिस्थिति में जनता तीन प्रकार से प्रताड़ित हो रही होती है एक तो वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण दूसरे वायु प्रदूषण रोकने के नाम पर सरकार उन्हें प्रताड़ित करती है तीसरा प्रदूषण के लिए जिम्मेदार गिनाए जाने वाले अधिकाँश कारण जनता यदि मानना भी चाहे तो वे इतने ज्यादा हैं उससे उनकी दिनचर्या का संकट खड़ा हो जाता है!इसलिए सरकारों को चाहिए इस विषय पर वो जनता का साथ दें और वायु प्रदूषण बढ़ने के निश्चित कारणों का अनुसंधान करवाया जाना चाहिए इसके बाद जनता को विश्वास में लिया जाना चाहिए और सहयोगात्मक रुख अपनाया जाना चाहिए !जनता स्वयं ही वायु प्रदूषण घटाने का प्रयास करेगी !
वायु प्रदूषण के विषय में सबसे महत्वपूर्ण बात ये है पहले तो वे मुख्यकारण खोजे जाएँ जिनसे प्रदूषण बढ़ता है इसके बाद जनता से अपेक्षा की जाए कि प्रदूषण रोकने में जनता अपने अपने हिस्से की भूमिका अदा करे !ऐसा जनता स्वयं करेगी क्योंकि जनता को भी पता है कि स्वाँस लिए बिना जीवन कैसे चल सकता है और प्रदूषित हवा में स्वाँस लेंगे तो रोग बढ़ेंगे आयु घटेगी !बच्चों का स्वास्थ्य और भविष्य दोनों बर्बाद हो जाएँगे !ऐसी परिस्थिति में शरीर अस्वस्थ हो बच्चों का स्वास्थ्य बिगड़े आयु घटे परेशानियाँ बढ़ें ऐसा कोई क्यों चाहेगा आखिर समाज के जिन लोगों को वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है वे लोग भी तो अपने बच्चों के लिए ही जीते हैं बच्चों के लिए ही रोजी रोजगार कामकाज आदि करते हैं जो काम अपने और अपने बच्चों के विरुद्ध होगा उसे वे स्वप्न में भी नहीं करना चाहेंगे !बशर्ते उन्हें इस बात पर विश्वास हो कि हम जो कर रहे हैं वायु प्रदूषण उसी से बढ़ रहा है !
इसी प्रकार से सरकारें भी वायु प्रदूषण घटाने के लिए हर संभव प्रयास करती आ रही हैं भारी भरकम बजट पास करती हैं वो धन प्रदूषण बढ़ने के कारणों का पता लगाने एवं उसे रोकने के उपाय खोजने और रोकने के लिए प्रयास करने में खर्च होता है !ये धन जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से प्राप्त टैक्स होता है जो सरकार प्रदूषण के कारणों की खोज में एवं उसे रोकने के प्रयास करने के लिए खर्च करती है !
ऐसी परिस्थिति में प्रदूषण के कारण और निवारण के उपाय खोजने के लिए सरकार जनता से प्राप्त धन को जिन लोगों पर खर्च करती है सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि उनसे पूछे कि वे उन निश्चित कारणों को खोजकर क्यों नहीं बता पा रहे हैं जिनके कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है और वे उपाय निश्चित करके क्यों नहीं बता पा रहे हैं जिनके कारण से वायु प्रदूषण घट सकता है !यदि वे लोग कारण और निवारण बताने में सक्षम नहीं हैं तो जनता के धन का व्यय उन लोगों की सैलरी सुख सुविधाओं और उनके तथाकथित अनुसंधानों पर सरकार किस उद्देश्य से खर्च कर सकती है !
ऐसे विषय विज्ञान हैं या नहीं जो अपने अपने क्षेत्रों में अपने अनुसंधानों से अपनी उपस्थिति ही नहीं दर्ज कर पा रहे हैं !विज्ञान में तो पारदर्शिता होती है उसमें तो हर प्रकार के तर्कों का प्रमाणित जवाब होता है !किंतु जिन विषयों में विज्ञान की भूमिका है भी या नहीं इसका निश्चय अभी तक नहीं हो पाया है जिन प्रक्रियाओं को विज्ञान समझकर उन्हें हम प्रकृति के रहस्यों को खोलने की चाभी समझ बैठे हैं कहीं ऐसा तो नहीं है कि ये उन लोगों की केवल कोरी कल्पना ही हो जिसका मुख्य विषय से कोई संबंध ही न हो !अन्यथा ऐसे अनुसंधानों के परिणाम निकलने में इतना समय क्यों लग रहा है !समय बीतता चला जा रहा है अनुसन्धान होते जा रहे हैं परिणाम कुछ निकल नहीं रहा है केवल वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जनता को जिम्मेदार मान कर उसके विरुद्ध सरकारें कार्यवाही करने लगती हैं उसे ये बताया भी नहीं जा रहा है की जनता की गलती क्या है अऊर दंड देने लगती है सरकार आखिर क्यों ?परिणामशून्य रिसर्च भी कोई रिसर्च होता है क्या ?
जनता और सरकार दोनों ही जब अपनी अपनी भूमिका अदा करने को तैयार हैं तो प्रदूषण कम क्यों नहीं हो पा रहा है ये चिंता का विषय है !इसलिए सरकार और जनता दोनों ही अपने वायु प्रदूषण पर अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों से जानना चाहते हैं !
वैज्ञानिकों के द्वारा वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए बताए जाने वाले जिम्मेदार कारण -
ऐसी परिस्थिति में जनता तीन प्रकार से प्रताड़ित हो रही होती है एक तो वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण दूसरे वायु प्रदूषण रोकने के नाम पर सरकार उन्हें प्रताड़ित करती है तीसरा प्रदूषण के लिए जिम्मेदार गिनाए जाने वाले अधिकाँश कारण जनता यदि मानना भी चाहे तो वे इतने ज्यादा हैं उससे उनकी दिनचर्या का संकट खड़ा हो जाता है!इसलिए सरकारों को चाहिए इस विषय पर वो जनता का साथ दें और वायु प्रदूषण बढ़ने के निश्चित कारणों का अनुसंधान करवाया जाना चाहिए इसके बाद जनता को विश्वास में लिया जाना चाहिए और सहयोगात्मक रुख अपनाया जाना चाहिए !जनता स्वयं ही वायु प्रदूषण घटाने का प्रयास करेगी !
वायु प्रदूषण के विषय में सबसे महत्वपूर्ण बात ये है पहले तो वे मुख्यकारण खोजे जाएँ जिनसे प्रदूषण बढ़ता है इसके बाद जनता से अपेक्षा की जाए कि प्रदूषण रोकने में जनता अपने अपने हिस्से की भूमिका अदा करे !ऐसा जनता स्वयं करेगी क्योंकि जनता को भी पता है कि स्वाँस लिए बिना जीवन कैसे चल सकता है और प्रदूषित हवा में स्वाँस लेंगे तो रोग बढ़ेंगे आयु घटेगी !बच्चों का स्वास्थ्य और भविष्य दोनों बर्बाद हो जाएँगे !ऐसी परिस्थिति में शरीर अस्वस्थ हो बच्चों का स्वास्थ्य बिगड़े आयु घटे परेशानियाँ बढ़ें ऐसा कोई क्यों चाहेगा आखिर समाज के जिन लोगों को वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है वे लोग भी तो अपने बच्चों के लिए ही जीते हैं बच्चों के लिए ही रोजी रोजगार कामकाज आदि करते हैं जो काम अपने और अपने बच्चों के विरुद्ध होगा उसे वे स्वप्न में भी नहीं करना चाहेंगे !बशर्ते उन्हें इस बात पर विश्वास हो कि हम जो कर रहे हैं वायु प्रदूषण उसी से बढ़ रहा है !
इसी प्रकार से सरकारें भी वायु प्रदूषण घटाने के लिए हर संभव प्रयास करती आ रही हैं भारी भरकम बजट पास करती हैं वो धन प्रदूषण बढ़ने के कारणों का पता लगाने एवं उसे रोकने के उपाय खोजने और रोकने के लिए प्रयास करने में खर्च होता है !ये धन जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से प्राप्त टैक्स होता है जो सरकार प्रदूषण के कारणों की खोज में एवं उसे रोकने के प्रयास करने के लिए खर्च करती है !
ऐसी परिस्थिति में प्रदूषण के कारण और निवारण के उपाय खोजने के लिए सरकार जनता से प्राप्त धन को जिन लोगों पर खर्च करती है सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि उनसे पूछे कि वे उन निश्चित कारणों को खोजकर क्यों नहीं बता पा रहे हैं जिनके कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है और वे उपाय निश्चित करके क्यों नहीं बता पा रहे हैं जिनके कारण से वायु प्रदूषण घट सकता है !यदि वे लोग कारण और निवारण बताने में सक्षम नहीं हैं तो जनता के धन का व्यय उन लोगों की सैलरी सुख सुविधाओं और उनके तथाकथित अनुसंधानों पर सरकार किस उद्देश्य से खर्च कर सकती है !
ऐसे विषय विज्ञान हैं या नहीं जो अपने अपने क्षेत्रों में अपने अनुसंधानों से अपनी उपस्थिति ही नहीं दर्ज कर पा रहे हैं !विज्ञान में तो पारदर्शिता होती है उसमें तो हर प्रकार के तर्कों का प्रमाणित जवाब होता है !किंतु जिन विषयों में विज्ञान की भूमिका है भी या नहीं इसका निश्चय अभी तक नहीं हो पाया है जिन प्रक्रियाओं को विज्ञान समझकर उन्हें हम प्रकृति के रहस्यों को खोलने की चाभी समझ बैठे हैं कहीं ऐसा तो नहीं है कि ये उन लोगों की केवल कोरी कल्पना ही हो जिसका मुख्य विषय से कोई संबंध ही न हो !अन्यथा ऐसे अनुसंधानों के परिणाम निकलने में इतना समय क्यों लग रहा है !समय बीतता चला जा रहा है अनुसन्धान होते जा रहे हैं परिणाम कुछ निकल नहीं रहा है केवल वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जनता को जिम्मेदार मान कर उसके विरुद्ध सरकारें कार्यवाही करने लगती हैं उसे ये बताया भी नहीं जा रहा है की जनता की गलती क्या है अऊर दंड देने लगती है सरकार आखिर क्यों ?परिणामशून्य रिसर्च भी कोई रिसर्च होता है क्या ?
जनता और सरकार दोनों ही जब अपनी अपनी भूमिका अदा करने को तैयार हैं तो प्रदूषण कम क्यों नहीं हो पा रहा है ये चिंता का विषय है !इसलिए सरकार और जनता दोनों ही अपने वायु प्रदूषण पर अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों से जानना चाहते हैं !
वैज्ञानिकों के द्वारा वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए बताए जाने वाले जिम्मेदार कारण -
समय
समय पर वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जो जिम्मेदार कारण बताए जाते हैं वो पत्र
पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं !मैंने उनमें से कुछ का संग्रह किया
है जिसे पढ़ने के बाद ऐसा नहीं लगता कि ये कारण बताने के पीछे कोई
वैज्ञानिक सोच है उन्हें देखकर तो यही लगता है कि जैसे आम आदमी धुएँ और धूल
को वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण मानता है उसी आम धारणा की पुष्टि यहाँ भी हो
रही है ! इसमें कहीं कोई वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं दिखाई देता है !
दशहरा में प्रदूषण बढ़ता है तो उसके लिए रावण के पुतले जलाए जाने को प्रदूषण बढ़ने का कारण बताया जाता है !दिवाली में प्रदूषण बढ़ता है तो पटाखों को फोड़ने के कारण प्रदूषण बढ़ना बताया जाता है !होली में प्रदूषण बढ़ने के लिए होली जलने को कारण बता दिया जाता है !
दशहरा में प्रदूषण बढ़ता है तो उसके लिए रावण के पुतले जलाए जाने को प्रदूषण बढ़ने का कारण बताया जाता है !दिवाली में प्रदूषण बढ़ता है तो पटाखों को फोड़ने के कारण प्रदूषण बढ़ना बताया जाता है !होली में प्रदूषण बढ़ने के लिए होली जलने को कारण बता दिया जाता है !
वस्तुतः ये तीनों एक एक दिन के त्यौहार होते हैं यदि प्रदूषण बढ़ने के
कारण ये होते तो त्यौहार बीतने के बाद प्रदूषण घट जाना चाहिए था ! किंतु
ऐसा होते नहीं देखा जाता है !
इसी प्रकार से फसलों के अवशेष जलाने को या पराली जलाने को वायु प्रदूषण
बढ़ने का कारण बताया जाता है यदि इस बात में सच्चाई हो तो फसलों के अवशेष
जलाने का समय बीत जाने के बाद तो प्रदूषण घट जाना चाहिए था किंतु ऐसा होते
तो नहीं देखा जाता है !
सर्दी में हवाएँ रुक जाने को प्रदूषण बढ़ने का कारण बताया जाता है किंतु
यदि ऐसा होता तो सर्दी बीतने के बाद प्रदूषण घटना चाहिए किंतु गर्मियों
में भी प्रदूषण बढ़ते देखा जाता है जबकि उस समय तो हवाएँ तेज चल रही होती
हैं !गर्मी में हवाएँ तेज
चलने आदि को वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बता दिया जाता है !
किसी एक वैज्ञानिक ने दिल्ली
की भौगोलिक स्थिति को वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण बताया है किंतु ये बात
यदि सच होती तो दिल्ली के अलावा दूसरी जगहों पर वायु प्रदूषण नहीं होना
चाहिए था किंतु प्रदूषण तो बहुत देशों शहरों में बढ़ता है जबकि वहाँ दिल्ली जैसा भौगोलिक कारण तो नहीं है !
कुछ लोग ईंट
भट्ठों को वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण मानते हैं किंतु ईंट भट्ठे जहाँ नहीं
होते हैं प्रदूषण तो वहाँ भी बढ़ता है दूसरी बात जिन महीनों में ईंट भट्ठे नहीं चलते हैं प्रदूषण तो उन महीनों में भी बढ़ता है इसलिए ये तर्क भी ठीक नहीं है !
हुक्का पीने को भी प्रदूषण बढ़ने का कारण बताया गया है !किंतु
ये जरूरी नहीं कि जहाँ जहाँ वायु प्रदूषण बढ़ता हो वहाँ वहाँ हुक्का पिया
ही जाता हो !दूसरी बात जहाँ हुक्का पीने के आद ती जितने भी लोग होते हैं और
वो प्रतिदिन जितने भी बार पीते हैं उतना पीते हैं उसमें कम ज्यादा तो नहीं
करते हैं फिर प्रदूषण घटता बढ़ता क्यों रहता है !
कुछ लोगों ने कहा है कि महिलाएँ स्प्रे करती हैं उससे प्रदूषण बढ़ता है
किंतु ऐसा सभी जगहों पर तो नहीं होता फिर वो तो अपना श्रृंगार हमेंशा एक
जैसा करती हैं इसलिए वायु प्रदूषण कम ज्यादा क्यों होता रहता है !
निर्माण कार्यों को ,फैक्ट्रियों
को,वाहनों को वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण बताया जाता है !किंतु ये तो
बारहों महीने एक जैसी चलती रहती हैं इनके कारण वायु प्रदूषण बढ़ता हो तो
हमेंशा एक जैसा रहना चाहिए ये घटता बढ़ता क्यों रहता है !
कुछ रिसर्च इस प्रकार के भी देखने को मिले जिनमें कहा गया है कि सऊदी अरब में आने वाली आँधी के कारण बढ़ता है दिल्ली में वायु प्रदूषण !किंतु यह वायु प्रदूषण केवल दिल्ली में ही तो नहीं बढ़ता है देश के अन्य भागों के साथ साथ विदेशों में भी बढ़ता है !दूसरी बात इसके लिए जिम्मेदार केवल यदि यही एक कारण होता तो जब जब वहाँ आँधी आती तभी दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ता उसके अतिरिक्त तो नहीं बढ़ना चाहिए था किंतु ऐसा तो नहीं होता है वायु प्रदूषण तो उसके अतिरिक्त भी बढ़ता घटता रहता है !
कुलमिलाकर ये सब देख सुनकर ऐसा लगता है कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार किसी निश्चित कारण को अभी तक चिन्हित नहीं किया जा सका है !ऐसी परिस्थिति में वायु प्रदूषण फ़ैलाने के लिए दोषी मानकर किसी के विरुद्ध यदि कार्यवाही भी जाती है तो उसके लिए वास्तविक आधार क्या होगा !ऐसी भ्रम की स्थिति में यदि कुछ प्रकार के कामों को प्रदूषण फैलाने वाला मानकर उनके विरुद्ध कार्यवाही की भी जाए और वे उस प्रकार के कामों को करना बंद भी कर दें जिनसे धुआँ या धूल उड़ती हो यदि उसके बाद भी वायु प्रदूषण का बढ़ना बंद नहीं होता है तो ऐसी परिस्थिति में उन्हें अकारण क्यों परेशान किया गया और इसके लिए दोषी किसे माना जाना चाहिए ?
इसलिए उचित तो ये होगा कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारणों की खोज की जाए इसके बाद उन कारणों का निवारण करने की प्रक्रिया प्रारंभ की जाए !उसके बाद इस बात का परीक्षण किया जाए कि वायु प्रदूषण बढ़ने के कारणों में कमी लाने से उससे वायु प्रदूषण को बढ़ने से रोकने में कुछ सफलता मिली है क्या ?यदि ऐसा लगता है तब तो उन कारणों को चिन्हित करके उनके निवारण के लिए प्रयास तेज किए जाएँ यदि ऐसा नहीं है तो अन्यकारणों पर अनुसंधान किया जाए और उनके लिए भी यही प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए !यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार जो जो भी कारण बताए जाते हैं उन सबका एक साथ परीक्षण किया जाना संभव नहीं है और वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए संदिग्ध सभी कामों को एक साथ बंद करके अकारण इतने बड़े समुदाय की रोजी रोटी दिनचर्या आवागमन आदि को रोककर खड़ा हो जाना ठीक नहीं होगा !फिर भी यदि सभी उपाय एक साथ किए भी जाएँ तो भी इस बात का पूर्वानुमान लगाना तब भी कठिन ही बना रहेगा कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण आखिर हैं कौन ?
वायुप्रदूषण मनुष्यकृत है या प्राकृतिक ?
वायु प्रदूषण यदि मनुष्यकृत है तो उन निश्चित कारणों को बताया जाना चाहिए जिनसे प्रदूषण बढ़ता है उनमें से एक एक को रोककर वायु प्रदूषण से संबंधित परीक्षण किया जाना चाहिए कि किस कारण को रोकने से वायु प्रदूषण में कितनी कमी आती है ऐसे परीक्षण के बाद ही वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार निश्चित कारणों तक पहुँचा जा सकता है !
इसी प्रकार से वायुप्रदूषण को यदि प्राकृतिक माना जाए तो मौसम संबंधी अन्य घटनाओं की तरह ही वायु प्रदूषण के बढ़ने घटने के विषय में भी सही सही पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए !यदि वो सही घटित होता है इसका मतलब है कि वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए स्वयं प्रकृति ही जिम्मेदार है !ऐसी परिस्थिति में जैसे सूखा वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि की घटनाओं को रोक पाना संभव नहीं है उसी प्रकार से वायुप्रदूषण को भी रोकपाना किसी मनुष्य के बश की बात नहीं होगी ! इसलिए उसके बाद वायु प्रदूषण बढ़ाने के लिए किसी को दोषी मानकर उसके विरुद्ध अकारण ही कोई कार्यवाही करना ठीक नहीं होगा !
वायुप्रदूषण से संबंधित पूर्वानुमान -
मैं प्राकृतिक विषयों पर पिछले लगभग 25 वर्षों से अनुसंधान करता चला आ रहा हूँ विषय से संबंधित में पूर्वानुमान भी लगाता हूँ जो काफी सही और सटीक निकलते हैं! इस अनुसंधान के आधार पर हमारे अनुभव में जो आया है वो यह है कि वायुप्रदूषण जितना मनुष्यकृत है उतना ही प्राकृतिक भी है!इसलिए केवल मनुष्यकृत प्रयासों से वायु प्रदूषण कुछ घट तो सकता है किंतु पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता है !
मनुष्यकृत वायुप्रदूषण हमेंशा लगभग एक जैसा ही रहता है क्योंकि लोगों के द्वारा किए जाने वाले जो कार्य प्रदूषण बढ़ने वाले मने जाते हैं ऐसे सभी कार्य लगभग एक जैसे ही हमेंशा चला करते हैं !फिर भी मनुष्यकृत वायुप्रदूषण भी कभी कभी थोड़ा बहुत घटता बढ़ता रहता है किंतु अधिक नहीं !जबकि प्राकृतिक वायुप्रदूषण क्रमिक रूप से घटता भी है और बढ़ता भी है उसमें एक ले होती है वह क्रमिक होता है चंद्रमा के आकार की तरह ही वायु प्रदूषण भी क्रमशः थोड़ा थोड़ा बढ़ता है उसी प्रकार से क्रमशः थोड़ा थोड़ा घटता जाता है !जैसे बादल आने पर पूर्णिमा का चंद्रमा भी अचानक दिखाई देना बंद हो जाता है इसका मतलब यह नहीं होता कि उस दिन चंद्र का आकार पूरा नहीं निकला होगा अर्थात चंद्र उस दिन भी पूर्ण रूप से निकला होता है किंतु उसके उस दिन न दिखाई पढ़ने का कारण चंद्र को ढक लेने वाले बादल होते हैं!
ठीक इसीप्रकार से वायु प्रदूषण बढ़ने घटने की प्रक्रिया प्रकृति की ओर से तो पूरे वर्ष चला करती है अपने निश्चित समय पर वायु प्रदूषण बढ़ता है और निश्चित समय पर घटता है ये क्रम सर्दी गर्मी वर्षा आदि सभी ऋतुओं में एक जैसा ही चलता रहता है जैसे पूर्णिमा के चंद्र को बादल ढककर उसका दिखाई देना बंद कर देते हैं ठीक उसी प्रकार से क्रमिक रूप से बढ़े या बढ़ाते हुए प्रदूषण को भी हवा अपने साथ उड़ा ले जाती है और बर्षा अपने पानी में बहा ले जाती है !इसलिए उस समय प्रदूषण का स्तर बढ़ा हुआ होने पर भी प्रदूषण होते हुए भी दिखाई नहीं पढ़ता है !कई बार प्रदूषण के बढ़ते हुए क्रम में यदि अचानक वर्षा का या हवा का वेग आकर निकल जाता है तो ऐसे समय में झटके से एक बार प्रदूषण घटकर पुनः बढ़ने लग जाता है और अपना समय पूरा होने तक बढ़ता है उसके बाद ही घटना प्रारंभ होता है और क्रमशः घटते चला जाता है !
वायु प्रदूषण बढ़ने घटने की प्रक्रिया वर्ष में लगभग 22-26 बार तक होती है !अंतर केवल इतना पड़ता है कि वर्ष के जिन ऋतुओं या महीनों में हवाएँ धीमी चलती हैं और वर्षा होना बंद हो जाता है उस समय इस बढ़े हुए वायु प्रदूषण का स्वरूप अधिक डरावना दिखाई पड़ता है !जिससे लगने लगता है कि वायु प्रदूषण केवल इसी समय में बढ़ता है जो कि भ्रम है !
इसलिए मनुष्यकृत वायु प्रदूषण तो हमेंशा रहता है ही कि वायु वेग और वर्षा होने से वो भी घट जाता है धीरे धीरे फिर बढ़ जाता है वो तो मनुष्य की दिनचर्या के साथ जुड़ा हुआ है गाड़ियाँ फैक्ट्रियाँ आदि हमेंशा चलती हैं मकान हमेंशा बना करते हैं फसलों के कोई न कोई अवशेष हमेंशा जलाए जाते हैं इसलिए उसमें अधिक अंतर नहीं पड़ता है इसका स्वरूप विकराल तब होता है जब उसी समय में उसके साथ साथ प्राकृतिक वायु प्रदूषण भी बढ़ जाता है उस समय दोनों प्रकार के वायु प्रदूषण मिलकर भयानक स्वरूप धारण कर लेते हैं तब साँस लेना मुश्किल हो जाता है !
कुल मिलाकर प्रदूषण की प्रक्रिया हमेंशा एक जैसी चलती रहती है !मनुष्यकृत वायु प्रदूषण हमेंशा एक जैसा रहता है ही जबकि प्राकृतिक वायुप्रदूषण क्रमिक रूप से अपने समय से घटता भी है और बढ़ता भी है यह क्रिया अपने क्रम से वर्ष में 22 से 26 बार तक होती है यह क्रिया एक बार में लगभग पाँच दिन चलती है!इसके बाद घटने लग जाता है !ऐसे समय में वायु प्रदूषण बढ़ता ही है और जितने बार बढ़ता है उतने ही बार घटता भी है !यह वायु प्रदूषण के घटने बढ़ने का क्रम वर्ष के बारहों महीने में स्वतः चला करता है !इसी क्रम में जो समय वायु प्रदूषण के बढ़ने का होता है उस समय वायु प्रदूषण तो अपने क्रम से बढ़ता है ही किंतु यदि उस समय वर्षा होने लगे या हवाओं का वेग अधिक बढ़ा हो तो वायु प्रदूषण बढ़े होने के बाद भी ऐसे समय में उसका असर विशेष दिखाई नहीं पड़ता है बाकी बढ़ता अवश्य है !
इसके अलावा भी कई बार खगोलीय कुछ अन्य कारण भी होते हैं जिनके प्रभाव से वायु प्रदूषण कुछ समय तक लगातार बना रहता है !उसका भी पूर्वानुमान लगा लिया जाता है !इसके अलावा किसी क्षेत्र विशेष में कोई बड़ी अप्रिय घटना घटित होनी होती है उसकी अग्रिम सूचना देने के लिए भी आकाश से धूल बरस रही होती है जो उस प्रकार की घटना घटित हो जाने या उस प्रकार की घटना घटित होने के कारण समाप्त हो जाने के बाद ही आसमान साफ होता है !ये सब कुछ विशेष परिस्थितियों में ही होता है !सामान्यतौर पर तो वही क्रम रहता है जो हमेंशा के लिए सुनिश्चित है !
ब्रह्मांड भी साँस लेता और छोड़ता है !
वस्तुतः ब्रह्मांड साँस लेने और साँस छोड़ने की प्रक्रिया का पालन करता है संपूर्ण प्रकृति ही इस प्रक्रिया में सम्मिलित होती है वो साँस लेते और छोड़ते दिखाई न पड़ती हो ये और बात है! पेड़ पौधे भी साँस लेते है और छोड़ते हैं !जिस प्रकार से माँ के गर्भ में रहने वाले जीव की सभी चेष्टाएँ उसकी माँ की तरह की होती हैं उसी प्रकार से प्रकृति की कोख में पल रहे संपूर्ण चराचर जगत का स्वभाव प्रकृति के अनुशार ही होना स्वाभाविक है !इसीलिए स्वाँस लेने और छोड़ने की जिस प्रक्रिया को हम केवल सजीव लोगों के साथ ही जोड़कर देखते हैं और मानकर चलते हैं कि स्वाँस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया केवल सजीवों तक ही सीमित है किंतु ऐसा नहीं है !
ब्रह्मांड में की की भी आयु का आकलन उसकी स्वाँसों से किया जाता है किसकी आयु कितनी बीत चुकी है और कितनी आगे बीतनी है इसका निर्णय उसकी स्वाँसों के आधार पर होता है !कुल मिलाकर जिसका जब स्वाँस कोष समाप्त हो जाता है तब उसका अंत होता है!स्वाँसों के क्षय के साथ ही शरीर का क्षय होता जाता है!किसी मनुष्य की स्वाँसें समाप्त होती हैं तब उसकी आयु समाप्त होती है तब वो प्राण विहीन होकर शव बन जाता है!शव की भी अपनी आयु होती है जिसके बाद वो भी बिना किसी प्रयास के नष्ट हो जाता है! सनातन धर्मदर्शन में माना जाता है कि सर्व शरीर में व्याप्त धनंजय नाम का वायु तो मृत शरीर को भी नहीं छोड़ता है !
कोई बीज उस रूप में अपनी आयु का भोग करता है उसके बाद वो किसी वृक्ष को जन्म देकर स्वयं नष्ट हो जाता है वह वृक्ष अपनी तरह से आयु का भोग करता है !उसकी स्वाँसें समाप्त होती हैं तो वृक्ष स्वयं सूख कर लकड़ी को जन्म दे जाता है उस लकड़ी से कोई सामान बनाया जाए या केवल लकड़ी ही पड़ी रहे उसकी भी एक निश्चित आयु होती है जिसके बीतने के बाद उस लकड़ी को भी नष्ट होना पड़ता है !
कुलमिलाकर जिस व्यक्ति वस्तु स्थान परिस्थिति भावना संबंध अवस्था आकार प्रकारादि आदि का जब निर्माण होता है वहीँ से उसकी आयु प्रारंभ हो जाती है और धीरे धीरे आयु क्षय होते रहती है !उन सबकी अपनी अपनी निश्चित आयु होती है वह आयु बीत जाने के बाद सबका बिनाश होते देखा जाता है !
इसी प्रकार से ब्रह्मांड की भी अपनी आयु और अवस्थाएँ होती हैं !उसकी भी अपनी स्वाँस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया है !कोई मनुष्य जिस प्रकार की वायु में साँस लेता है और जब वो साँस छोड़ता है तब साँस लेते समय की वायु की अपेक्षा साँस के द्वारा छोड़ी जाने वाली वायु कुछ अधिक प्रदूषित होती है !इसीलिए प्राणायाम की प्रक्रिया की तरह ही ब्रह्मांड के स्वाँस छोड़ते समय में प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक बढ़ा होता है !ऐसी परिस्थिति में सारी चराचर प्रकृति में ही प्रदूषण का स्तर क्रमशः बढ़ता चला जाता है !ऐसी परिस्थिति में आकाश वायु जल आदि सभी में प्रदूषण की मात्रा अचानक बढ़ जाती है !
इस समय में ब्रह्मांडीय प्रदूषण का असर सारे वायु मंडल में छाया हुआ होता है !यह प्रदूषण संपूर्ण चराचर जगत में व्याप्त होता है ऐसे समय में सभी जीव जंतु व्याकुल हो उठते हैं!पशुओं पक्षियों आदि में उन्माद की भावना पैदा हो जाती है !मानव जाति में उन्माद एवं मानसिक शून्यता पनपने लगाती है इसीलिए ऐसे समय में चित्त स्थिर न रहने के कारण सामाजिक आंदोलन पारस्परिक विवाद दो देशों या व्यक्तियों के आपसी संबंधों में तनाव ! बाहन दुर्घटनाएँ ,विमान दुर्घटनाएँ,वाहनों का खाई में गिरना आदि अनेकों प्रकार की दुर्घटनाएँ ऐसे समय में मानसिक संतुलन बिगड़ने के कारण घटित होते देखी जाती हैं !इस समय में भूकंप सुनामी जैसे उत्पातों एवं सामाजिक अपराधों के बढ़ने की घटनाएँ भी देखने को मिलती हैं !
वायु प्रदूषण बढ़ने का पूर्वानुमान -
मैं मौसम के विषय में लगभग पिछले 25 वर्षों से काम करता चला आ रहा हूँ !अब विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि इस विधा के द्वारा लगाए जाने वाले मौसम संबंधी पूर्वानुमान प्रायः सटीक घटित होते हैं !इसकी एक और विशेषता है कि ऐसे पूर्वानुमान वायु प्रदूषण से संबंधित कोई घटना घटित होने से बहुत पहले लगाए जा सकते हैं !
मेरे यहाँ प्रत्येक महीने का मौसम पूर्वानुमान महीना प्रारंभ होने के एक दो दिन पहले ही लगा लिया जाता है !इसमें वर्षा आँधी तूफ़ान वायु प्रदूषण आदि घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान होता है जो हर महीने के प्रारंभ में अनेकों पत्र पत्रिकाओं में भेज दिया जाता है !इसके साथ साथ ही प्रमाण के लिए कोई महीना प्रारंभ होने से एक दो दिन पहले ही प्रधानमंत्री और कुछ मुख्यमंत्रियों के ईमेल पर भेज दिया जाता है !जो प्रमाण रूप में अभी भी हमारे पास संग्रहीत हैं जो उन लोगों के ईमेल पर भी चेक की जा सकती हैं !
ईमेल पर भेजे गए उन्हीं पूर्वानुमानों का वायु प्रदूषण से संबंधित अंश नवंबर दिसंबर जनवरी फरवरी आदि महीनों का यहाँ उद्धृत करता हूँ -
वायु प्रदूषण के विषय में पहले से की गई भविष्यवाणियाँ -
"वायुप्रदूषण की दृष्टि से दिसंबर का संपूर्ण महीना ही विशेष डरावना
होगा !उसमें भी 7,8,9,10,11 एवं 22 ,23,24 तारीखों में वायु प्रदूषण काफी
अधिक बढ़ जाएगा ! आकाश से गिरी हुई धूल के कारण वातावरण इतना अधिक प्रदूषित
होगा ! इसलिए सूर्य की किरणें बहुत धूमिल दिखाई देंगी! इस दृष्टि से विशेष
अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है !
इसी आधार पर मैं आगे के भी कुछ वर्षों के कुछ महीनों के कुछ वायु प्रदूषण से संबंधित पूर्वानुमान यहाँ प्रकाशित करूँगा !जिसके आधार पर समयविज्ञान के द्वारा लगाए जाने वाले वायु प्रदूषण से संबंधी पूर्वानुमानों का परीक्षण करना हर किसी के लिए आसान होगा !"
जनवरी-2019
'समयविज्ञान' और 'प्रकृतिविज्ञान' के संयुक्त अनुसंधान के आधार पर भविष्य में कितने भी पहले के वायुप्रदूषण
से संबंधित पूर्वानुमानों को प्राप्त किया जा सकता है !जो 70 -80 प्रतिशत
तक सही घटित होंगे ही !ये भविष्य में जितने अधिक पहले के प्राप्त करने
होंगे अनुसंधान कार्य में उतने अधिक परिश्रम की आवश्यकता होगी !
वर्तमान समय में वायुप्रदूषण का पूर्वानुमान लगाने के विषय में बड़े बड़े अनुसंधान किए जा रहे हैं इसके लिए बहुत परिश्रम किया जा रहा है बहुत यंत्र लगाए जा रहे हैं इनसे संबंधित अनुसंधान संसाधनों एवं अनुसंधान कर्ताओं की सैलरी आदि सुख सुविधाओं पर बहुत भारी भरकम धन खर्च किया जा रहा है !जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से टैक्सरूप में प्राप्त धन ऐसे अनुसंधानों के लिए खर्च किया जाता है ! वायुप्रदूषण के कारण होने वाले बड़े बड़े रोगों की लिस्ट सुन सुन कर भयभीत समाज ऐसे अनुसंधानों से बहुत बड़ी आशा लगाए बैठा है !किंतु उन अनुसंधानों से प्राप्त परिणामों के प्रतिफल स्वरूप अभी तक न तो वायु प्रदूषण बढ़ने के निश्चित कारणों का पता लगाया जा सका है और न ही 24, 48 और 72 घंटे पहले भी पूर्वानुमान प्राप्त करना ही संभव हो पाया है !
ऐसी परिस्थिति में 'समयविज्ञान' और 'प्रकृतिविज्ञान' के संयुक्त अनुसंधान के आधार पर विश्वास पूर्वक यह कहा जा सकता है कि 24, 48 और 72 घंटे पहले की बात क्या अपितु 2400, 4800 और 7200 वर्ष पहले का भी वायु प्रदूषण से संबंधित पूर्वानुमान लगाने में हमें कोई बढ़ी कठिनाई नहीं होगी ! हमें लिए प्रसन्नता की सबसे बड़ी बात यह है कि हमारी यह अनुसंधानिक प्रक्रिया सरकार या समाज के एक पैसे की भी गुनहगार नहीं है !
सन 2019 में वायु प्रदूषण बढ़ने के कुछ दिनों का पूर्वानुमान -
सन 2020 में वायु प्रदूषण बढ़ने के कुछ दिनों का पूर्वानुमान -
विज्ञान के नाम पर वायु प्रदूषण के विषय में भ्रम-
वास्तव में यदि मौसम के विषय में कोई ऐसा विज्ञान है जिसके द्वारा वायु प्रदूषण बढ़ने का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !तो उस विषय के वैज्ञानिकों के द्वारा इस बिषय से संबंधित पूर्वानुमान अवश्य उपलब्ध कराए जाने चाहिए !जिसमें वायु प्रदूषण कब बढ़ेगा और कितने समय तक बढ़ा हुआ रहेगा आदि की भविष्यवाणी आगे से आगे उपलब्ध करवाते रहना चाहिए !
वैज्ञानिक यदि मानते हैं कि वायु प्रदूषण मनुष्यकृत है तो वैज्ञानिकों के द्वारा सरकार और जनता को बताया जाए कि सरकार क्या करे और जनता को क्या करना चाहिए जिससे वायु प्रदूषण घटेगा ?सरकार और जनता उसका पालन करके वायु प्रदूषण घटाने का प्रयास कर लेंगे !किंतु इस विषय में वैज्ञानिक अभी तक निश्चय पूर्वक ऐसा कुछ भी बता नहीं पाए हैं कि जिससे सरकार और जनता का मन मजबूत हो सके कि जब जब प्रदूषण बढ़ेगा तब तब ऐसे प्रयास करके वायु प्रदूषण को नियंत्रित कर लिया जाएगा !
कुछ रिसर्च इस प्रकार के भी देखने को मिले जिनमें कहा गया है कि सऊदी अरब में आने वाली आँधी के कारण बढ़ता है दिल्ली में वायु प्रदूषण !किंतु यह वायु प्रदूषण केवल दिल्ली में ही तो नहीं बढ़ता है देश के अन्य भागों के साथ साथ विदेशों में भी बढ़ता है !दूसरी बात इसके लिए जिम्मेदार केवल यदि यही एक कारण होता तो जब जब वहाँ आँधी आती तभी दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ता उसके अतिरिक्त तो नहीं बढ़ना चाहिए था किंतु ऐसा तो नहीं होता है वायु प्रदूषण तो उसके अतिरिक्त भी बढ़ता घटता रहता है !
कुलमिलाकर ये सब देख सुनकर ऐसा लगता है कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार किसी निश्चित कारण को अभी तक चिन्हित नहीं किया जा सका है !ऐसी परिस्थिति में वायु प्रदूषण फ़ैलाने के लिए दोषी मानकर किसी के विरुद्ध यदि कार्यवाही भी जाती है तो उसके लिए वास्तविक आधार क्या होगा !ऐसी भ्रम की स्थिति में यदि कुछ प्रकार के कामों को प्रदूषण फैलाने वाला मानकर उनके विरुद्ध कार्यवाही की भी जाए और वे उस प्रकार के कामों को करना बंद भी कर दें जिनसे धुआँ या धूल उड़ती हो यदि उसके बाद भी वायु प्रदूषण का बढ़ना बंद नहीं होता है तो ऐसी परिस्थिति में उन्हें अकारण क्यों परेशान किया गया और इसके लिए दोषी किसे माना जाना चाहिए ?
इसलिए उचित तो ये होगा कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारणों की खोज की जाए इसके बाद उन कारणों का निवारण करने की प्रक्रिया प्रारंभ की जाए !उसके बाद इस बात का परीक्षण किया जाए कि वायु प्रदूषण बढ़ने के कारणों में कमी लाने से उससे वायु प्रदूषण को बढ़ने से रोकने में कुछ सफलता मिली है क्या ?यदि ऐसा लगता है तब तो उन कारणों को चिन्हित करके उनके निवारण के लिए प्रयास तेज किए जाएँ यदि ऐसा नहीं है तो अन्यकारणों पर अनुसंधान किया जाए और उनके लिए भी यही प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए !यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार जो जो भी कारण बताए जाते हैं उन सबका एक साथ परीक्षण किया जाना संभव नहीं है और वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए संदिग्ध सभी कामों को एक साथ बंद करके अकारण इतने बड़े समुदाय की रोजी रोटी दिनचर्या आवागमन आदि को रोककर खड़ा हो जाना ठीक नहीं होगा !फिर भी यदि सभी उपाय एक साथ किए भी जाएँ तो भी इस बात का पूर्वानुमान लगाना तब भी कठिन ही बना रहेगा कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण आखिर हैं कौन ?
वायुप्रदूषण मनुष्यकृत है या प्राकृतिक ?
वायु प्रदूषण यदि मनुष्यकृत है तो उन निश्चित कारणों को बताया जाना चाहिए जिनसे प्रदूषण बढ़ता है उनमें से एक एक को रोककर वायु प्रदूषण से संबंधित परीक्षण किया जाना चाहिए कि किस कारण को रोकने से वायु प्रदूषण में कितनी कमी आती है ऐसे परीक्षण के बाद ही वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार निश्चित कारणों तक पहुँचा जा सकता है !
इसी प्रकार से वायुप्रदूषण को यदि प्राकृतिक माना जाए तो मौसम संबंधी अन्य घटनाओं की तरह ही वायु प्रदूषण के बढ़ने घटने के विषय में भी सही सही पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए !यदि वो सही घटित होता है इसका मतलब है कि वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए स्वयं प्रकृति ही जिम्मेदार है !ऐसी परिस्थिति में जैसे सूखा वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि की घटनाओं को रोक पाना संभव नहीं है उसी प्रकार से वायुप्रदूषण को भी रोकपाना किसी मनुष्य के बश की बात नहीं होगी ! इसलिए उसके बाद वायु प्रदूषण बढ़ाने के लिए किसी को दोषी मानकर उसके विरुद्ध अकारण ही कोई कार्यवाही करना ठीक नहीं होगा !
वायुप्रदूषण से संबंधित पूर्वानुमान -
मैं प्राकृतिक विषयों पर पिछले लगभग 25 वर्षों से अनुसंधान करता चला आ रहा हूँ विषय से संबंधित में पूर्वानुमान भी लगाता हूँ जो काफी सही और सटीक निकलते हैं! इस अनुसंधान के आधार पर हमारे अनुभव में जो आया है वो यह है कि वायुप्रदूषण जितना मनुष्यकृत है उतना ही प्राकृतिक भी है!इसलिए केवल मनुष्यकृत प्रयासों से वायु प्रदूषण कुछ घट तो सकता है किंतु पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता है !
मनुष्यकृत वायुप्रदूषण हमेंशा लगभग एक जैसा ही रहता है क्योंकि लोगों के द्वारा किए जाने वाले जो कार्य प्रदूषण बढ़ने वाले मने जाते हैं ऐसे सभी कार्य लगभग एक जैसे ही हमेंशा चला करते हैं !फिर भी मनुष्यकृत वायुप्रदूषण भी कभी कभी थोड़ा बहुत घटता बढ़ता रहता है किंतु अधिक नहीं !जबकि प्राकृतिक वायुप्रदूषण क्रमिक रूप से घटता भी है और बढ़ता भी है उसमें एक ले होती है वह क्रमिक होता है चंद्रमा के आकार की तरह ही वायु प्रदूषण भी क्रमशः थोड़ा थोड़ा बढ़ता है उसी प्रकार से क्रमशः थोड़ा थोड़ा घटता जाता है !जैसे बादल आने पर पूर्णिमा का चंद्रमा भी अचानक दिखाई देना बंद हो जाता है इसका मतलब यह नहीं होता कि उस दिन चंद्र का आकार पूरा नहीं निकला होगा अर्थात चंद्र उस दिन भी पूर्ण रूप से निकला होता है किंतु उसके उस दिन न दिखाई पढ़ने का कारण चंद्र को ढक लेने वाले बादल होते हैं!
ठीक इसीप्रकार से वायु प्रदूषण बढ़ने घटने की प्रक्रिया प्रकृति की ओर से तो पूरे वर्ष चला करती है अपने निश्चित समय पर वायु प्रदूषण बढ़ता है और निश्चित समय पर घटता है ये क्रम सर्दी गर्मी वर्षा आदि सभी ऋतुओं में एक जैसा ही चलता रहता है जैसे पूर्णिमा के चंद्र को बादल ढककर उसका दिखाई देना बंद कर देते हैं ठीक उसी प्रकार से क्रमिक रूप से बढ़े या बढ़ाते हुए प्रदूषण को भी हवा अपने साथ उड़ा ले जाती है और बर्षा अपने पानी में बहा ले जाती है !इसलिए उस समय प्रदूषण का स्तर बढ़ा हुआ होने पर भी प्रदूषण होते हुए भी दिखाई नहीं पढ़ता है !कई बार प्रदूषण के बढ़ते हुए क्रम में यदि अचानक वर्षा का या हवा का वेग आकर निकल जाता है तो ऐसे समय में झटके से एक बार प्रदूषण घटकर पुनः बढ़ने लग जाता है और अपना समय पूरा होने तक बढ़ता है उसके बाद ही घटना प्रारंभ होता है और क्रमशः घटते चला जाता है !
वायु प्रदूषण बढ़ने घटने की प्रक्रिया वर्ष में लगभग 22-26 बार तक होती है !अंतर केवल इतना पड़ता है कि वर्ष के जिन ऋतुओं या महीनों में हवाएँ धीमी चलती हैं और वर्षा होना बंद हो जाता है उस समय इस बढ़े हुए वायु प्रदूषण का स्वरूप अधिक डरावना दिखाई पड़ता है !जिससे लगने लगता है कि वायु प्रदूषण केवल इसी समय में बढ़ता है जो कि भ्रम है !
इसलिए मनुष्यकृत वायु प्रदूषण तो हमेंशा रहता है ही कि वायु वेग और वर्षा होने से वो भी घट जाता है धीरे धीरे फिर बढ़ जाता है वो तो मनुष्य की दिनचर्या के साथ जुड़ा हुआ है गाड़ियाँ फैक्ट्रियाँ आदि हमेंशा चलती हैं मकान हमेंशा बना करते हैं फसलों के कोई न कोई अवशेष हमेंशा जलाए जाते हैं इसलिए उसमें अधिक अंतर नहीं पड़ता है इसका स्वरूप विकराल तब होता है जब उसी समय में उसके साथ साथ प्राकृतिक वायु प्रदूषण भी बढ़ जाता है उस समय दोनों प्रकार के वायु प्रदूषण मिलकर भयानक स्वरूप धारण कर लेते हैं तब साँस लेना मुश्किल हो जाता है !
कुल मिलाकर प्रदूषण की प्रक्रिया हमेंशा एक जैसी चलती रहती है !मनुष्यकृत वायु प्रदूषण हमेंशा एक जैसा रहता है ही जबकि प्राकृतिक वायुप्रदूषण क्रमिक रूप से अपने समय से घटता भी है और बढ़ता भी है यह क्रिया अपने क्रम से वर्ष में 22 से 26 बार तक होती है यह क्रिया एक बार में लगभग पाँच दिन चलती है!इसके बाद घटने लग जाता है !ऐसे समय में वायु प्रदूषण बढ़ता ही है और जितने बार बढ़ता है उतने ही बार घटता भी है !यह वायु प्रदूषण के घटने बढ़ने का क्रम वर्ष के बारहों महीने में स्वतः चला करता है !इसी क्रम में जो समय वायु प्रदूषण के बढ़ने का होता है उस समय वायु प्रदूषण तो अपने क्रम से बढ़ता है ही किंतु यदि उस समय वर्षा होने लगे या हवाओं का वेग अधिक बढ़ा हो तो वायु प्रदूषण बढ़े होने के बाद भी ऐसे समय में उसका असर विशेष दिखाई नहीं पड़ता है बाकी बढ़ता अवश्य है !
इसके अलावा भी कई बार खगोलीय कुछ अन्य कारण भी होते हैं जिनके प्रभाव से वायु प्रदूषण कुछ समय तक लगातार बना रहता है !उसका भी पूर्वानुमान लगा लिया जाता है !इसके अलावा किसी क्षेत्र विशेष में कोई बड़ी अप्रिय घटना घटित होनी होती है उसकी अग्रिम सूचना देने के लिए भी आकाश से धूल बरस रही होती है जो उस प्रकार की घटना घटित हो जाने या उस प्रकार की घटना घटित होने के कारण समाप्त हो जाने के बाद ही आसमान साफ होता है !ये सब कुछ विशेष परिस्थितियों में ही होता है !सामान्यतौर पर तो वही क्रम रहता है जो हमेंशा के लिए सुनिश्चित है !
ब्रह्मांड भी साँस लेता और छोड़ता है !
वस्तुतः ब्रह्मांड साँस लेने और साँस छोड़ने की प्रक्रिया का पालन करता है संपूर्ण प्रकृति ही इस प्रक्रिया में सम्मिलित होती है वो साँस लेते और छोड़ते दिखाई न पड़ती हो ये और बात है! पेड़ पौधे भी साँस लेते है और छोड़ते हैं !जिस प्रकार से माँ के गर्भ में रहने वाले जीव की सभी चेष्टाएँ उसकी माँ की तरह की होती हैं उसी प्रकार से प्रकृति की कोख में पल रहे संपूर्ण चराचर जगत का स्वभाव प्रकृति के अनुशार ही होना स्वाभाविक है !इसीलिए स्वाँस लेने और छोड़ने की जिस प्रक्रिया को हम केवल सजीव लोगों के साथ ही जोड़कर देखते हैं और मानकर चलते हैं कि स्वाँस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया केवल सजीवों तक ही सीमित है किंतु ऐसा नहीं है !
ब्रह्मांड में की की भी आयु का आकलन उसकी स्वाँसों से किया जाता है किसकी आयु कितनी बीत चुकी है और कितनी आगे बीतनी है इसका निर्णय उसकी स्वाँसों के आधार पर होता है !कुल मिलाकर जिसका जब स्वाँस कोष समाप्त हो जाता है तब उसका अंत होता है!स्वाँसों के क्षय के साथ ही शरीर का क्षय होता जाता है!किसी मनुष्य की स्वाँसें समाप्त होती हैं तब उसकी आयु समाप्त होती है तब वो प्राण विहीन होकर शव बन जाता है!शव की भी अपनी आयु होती है जिसके बाद वो भी बिना किसी प्रयास के नष्ट हो जाता है! सनातन धर्मदर्शन में माना जाता है कि सर्व शरीर में व्याप्त धनंजय नाम का वायु तो मृत शरीर को भी नहीं छोड़ता है !
कोई बीज उस रूप में अपनी आयु का भोग करता है उसके बाद वो किसी वृक्ष को जन्म देकर स्वयं नष्ट हो जाता है वह वृक्ष अपनी तरह से आयु का भोग करता है !उसकी स्वाँसें समाप्त होती हैं तो वृक्ष स्वयं सूख कर लकड़ी को जन्म दे जाता है उस लकड़ी से कोई सामान बनाया जाए या केवल लकड़ी ही पड़ी रहे उसकी भी एक निश्चित आयु होती है जिसके बीतने के बाद उस लकड़ी को भी नष्ट होना पड़ता है !
कुलमिलाकर जिस व्यक्ति वस्तु स्थान परिस्थिति भावना संबंध अवस्था आकार प्रकारादि आदि का जब निर्माण होता है वहीँ से उसकी आयु प्रारंभ हो जाती है और धीरे धीरे आयु क्षय होते रहती है !उन सबकी अपनी अपनी निश्चित आयु होती है वह आयु बीत जाने के बाद सबका बिनाश होते देखा जाता है !
इसी प्रकार से ब्रह्मांड की भी अपनी आयु और अवस्थाएँ होती हैं !उसकी भी अपनी स्वाँस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया है !कोई मनुष्य जिस प्रकार की वायु में साँस लेता है और जब वो साँस छोड़ता है तब साँस लेते समय की वायु की अपेक्षा साँस के द्वारा छोड़ी जाने वाली वायु कुछ अधिक प्रदूषित होती है !इसीलिए प्राणायाम की प्रक्रिया की तरह ही ब्रह्मांड के स्वाँस छोड़ते समय में प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक बढ़ा होता है !ऐसी परिस्थिति में सारी चराचर प्रकृति में ही प्रदूषण का स्तर क्रमशः बढ़ता चला जाता है !ऐसी परिस्थिति में आकाश वायु जल आदि सभी में प्रदूषण की मात्रा अचानक बढ़ जाती है !
इस समय में ब्रह्मांडीय प्रदूषण का असर सारे वायु मंडल में छाया हुआ होता है !यह प्रदूषण संपूर्ण चराचर जगत में व्याप्त होता है ऐसे समय में सभी जीव जंतु व्याकुल हो उठते हैं!पशुओं पक्षियों आदि में उन्माद की भावना पैदा हो जाती है !मानव जाति में उन्माद एवं मानसिक शून्यता पनपने लगाती है इसीलिए ऐसे समय में चित्त स्थिर न रहने के कारण सामाजिक आंदोलन पारस्परिक विवाद दो देशों या व्यक्तियों के आपसी संबंधों में तनाव ! बाहन दुर्घटनाएँ ,विमान दुर्घटनाएँ,वाहनों का खाई में गिरना आदि अनेकों प्रकार की दुर्घटनाएँ ऐसे समय में मानसिक संतुलन बिगड़ने के कारण घटित होते देखी जाती हैं !इस समय में भूकंप सुनामी जैसे उत्पातों एवं सामाजिक अपराधों के बढ़ने की घटनाएँ भी देखने को मिलती हैं !
वायु प्रदूषण बढ़ने का पूर्वानुमान -
मैं मौसम के विषय में लगभग पिछले 25 वर्षों से काम करता चला आ रहा हूँ !अब विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि इस विधा के द्वारा लगाए जाने वाले मौसम संबंधी पूर्वानुमान प्रायः सटीक घटित होते हैं !इसकी एक और विशेषता है कि ऐसे पूर्वानुमान वायु प्रदूषण से संबंधित कोई घटना घटित होने से बहुत पहले लगाए जा सकते हैं !
मेरे यहाँ प्रत्येक महीने का मौसम पूर्वानुमान महीना प्रारंभ होने के एक दो दिन पहले ही लगा लिया जाता है !इसमें वर्षा आँधी तूफ़ान वायु प्रदूषण आदि घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान होता है जो हर महीने के प्रारंभ में अनेकों पत्र पत्रिकाओं में भेज दिया जाता है !इसके साथ साथ ही प्रमाण के लिए कोई महीना प्रारंभ होने से एक दो दिन पहले ही प्रधानमंत्री और कुछ मुख्यमंत्रियों के ईमेल पर भेज दिया जाता है !जो प्रमाण रूप में अभी भी हमारे पास संग्रहीत हैं जो उन लोगों के ईमेल पर भी चेक की जा सकती हैं !
ईमेल पर भेजे गए उन्हीं पूर्वानुमानों का वायु प्रदूषण से संबंधित अंश नवंबर दिसंबर जनवरी फरवरी आदि महीनों का यहाँ उद्धृत करता हूँ -
वायु प्रदूषण के विषय में पहले से की गई भविष्यवाणियाँ -
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Tue, Oct 30, 2018, 11:07 PM
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"वायुप्रदूषण की दृष्टि से संपूर्ण महीना ही विशेष डरावना होगा !वायु प्रदूषण के कारण कई दशकों के रिकार्ड टूटेंगे इसका स्वरूप इतना अधिक डरावना होगा आकाश से गिरी हुई धूल से वातावरण इतना अधिक प्रदूषित होगा !इसलिए सूर्य की किरणें बहुत धूमिल दिखाई देंगी! इस दृष्टि से विशेष अधिक सावधान रहने के लिए नवंबर महीने की 9, 10, 11,12,13,14,23,24,25,26 की तारीखें होंगी!"
दिसंबर-2018
| Sat, Dec 1, 2018, 12:00 AM |
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इसी आधार पर मैं आगे के भी कुछ वर्षों के कुछ महीनों के कुछ वायु प्रदूषण से संबंधित पूर्वानुमान यहाँ प्रकाशित करूँगा !जिसके आधार पर समयविज्ञान के द्वारा लगाए जाने वाले वायु प्रदूषण से संबंधी पूर्वानुमानों का परीक्षण करना हर किसी के लिए आसान होगा !"
जनवरी-2019
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Mon, Dec 31, 2018, 5:05 PM
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" वायुप्रदूषण 3 जनवरी से 7 तक ,17 से 21 तक एवं 30,31 आदि तारीखों में बढ़ेगा !इस महीने वायुवेग अधिक होगा एवं वर्षा की अधिक संभावनाएँ होने के कारण आकाश की गिरी हुई वायु का दुष्प्रभाव बहुत अधिक विकराल स्वरूप नहीं धारण कर पाएगा !जिन क्षेत्रों में वर्षा कम हुई या वायु का वेग कम रहा संभव है वहाँ कुछ अधिक बढ़ जाए फिर भी इस महीने वायु प्रदूषण बहुत भयानक स्वरूप नहीं धारण कर पाएगा ! |
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वर्तमान समय में वायुप्रदूषण का पूर्वानुमान लगाने के विषय में बड़े बड़े अनुसंधान किए जा रहे हैं इसके लिए बहुत परिश्रम किया जा रहा है बहुत यंत्र लगाए जा रहे हैं इनसे संबंधित अनुसंधान संसाधनों एवं अनुसंधान कर्ताओं की सैलरी आदि सुख सुविधाओं पर बहुत भारी भरकम धन खर्च किया जा रहा है !जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से टैक्सरूप में प्राप्त धन ऐसे अनुसंधानों के लिए खर्च किया जाता है ! वायुप्रदूषण के कारण होने वाले बड़े बड़े रोगों की लिस्ट सुन सुन कर भयभीत समाज ऐसे अनुसंधानों से बहुत बड़ी आशा लगाए बैठा है !किंतु उन अनुसंधानों से प्राप्त परिणामों के प्रतिफल स्वरूप अभी तक न तो वायु प्रदूषण बढ़ने के निश्चित कारणों का पता लगाया जा सका है और न ही 24, 48 और 72 घंटे पहले भी पूर्वानुमान प्राप्त करना ही संभव हो पाया है !
ऐसी परिस्थिति में 'समयविज्ञान' और 'प्रकृतिविज्ञान' के संयुक्त अनुसंधान के आधार पर विश्वास पूर्वक यह कहा जा सकता है कि 24, 48 और 72 घंटे पहले की बात क्या अपितु 2400, 4800 और 7200 वर्ष पहले का भी वायु प्रदूषण से संबंधित पूर्वानुमान लगाने में हमें कोई बढ़ी कठिनाई नहीं होगी ! हमें लिए प्रसन्नता की सबसे बड़ी बात यह है कि हमारी यह अनुसंधानिक प्रक्रिया सरकार या समाज के एक पैसे की भी गुनहगार नहीं है !
सन 2019 में वायु प्रदूषण बढ़ने के कुछ दिनों का पूर्वानुमान -
सन 2020 में वायु प्रदूषण बढ़ने के कुछ दिनों का पूर्वानुमान -
विज्ञान के नाम पर वायु प्रदूषण के विषय में भ्रम-
वास्तव में यदि मौसम के विषय में कोई ऐसा विज्ञान है जिसके द्वारा वायु प्रदूषण बढ़ने का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !तो उस विषय के वैज्ञानिकों के द्वारा इस बिषय से संबंधित पूर्वानुमान अवश्य उपलब्ध कराए जाने चाहिए !जिसमें वायु प्रदूषण कब बढ़ेगा और कितने समय तक बढ़ा हुआ रहेगा आदि की भविष्यवाणी आगे से आगे उपलब्ध करवाते रहना चाहिए !
वैज्ञानिक यदि मानते हैं कि वायु प्रदूषण मनुष्यकृत है तो वैज्ञानिकों के द्वारा सरकार और जनता को बताया जाए कि सरकार क्या करे और जनता को क्या करना चाहिए जिससे वायु प्रदूषण घटेगा ?सरकार और जनता उसका पालन करके वायु प्रदूषण घटाने का प्रयास कर लेंगे !किंतु इस विषय में वैज्ञानिक अभी तक निश्चय पूर्वक ऐसा कुछ भी बता नहीं पाए हैं कि जिससे सरकार और जनता का मन मजबूत हो सके कि जब जब प्रदूषण बढ़ेगा तब तब ऐसे प्रयास करके वायु प्रदूषण को नियंत्रित कर लिया जाएगा !
दिशा बिहीनता की स्थिति ये है वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए दोषी मानकर कुछ
लोगों के चालान किए जा रहे होते हैं और कुछ लोगों पर जुर्माना
लगाया जाता है कुछ लोगों की फैक्ट्रियाँ सील की जाती हैं कुछ लोगों का
मकान बनना बंद कराया जाता है तो कुछ का पराली जलाना बंद करा रहे होते हैं
!ऐसे ही आधार विहीन आरोप लगाकर
लोगों को दोषी मान लिया जाता है और दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही कर दी
जाती है !किंतु मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा आज तक इस बात का निर्णय नहीं किया जा
सका कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण क्या हैं ?
वैसे भी जहाँ कहीं धूल या धुआँ दिखाई पड़ता है उसे ही प्रदुषण बढ़ने का कारण बता दिया जाता है ! इस प्रकार से इतने ज्यादा कारण गिना दिए गए हैं कि जनता चाहकर भी इन्हें कैसे रोक सकती है दूसरी बात ये इतने अधिक भ्रामक हैं कि इन पर विश्वास नहीं हो पाता है ! दशहरा दीपावली होली और फसलों के अवशेष जलाना जैसे कार्य यदि इसके लिए जिम्मेदार होते तो इनका एक निश्चित समय होता है उसके बाद वायु प्रदूषण घट जाना चाहिए था किंतु ऐसा होते नहीं देखा जाता है !दूसरी बात भवननिर्माण एवं ईंटभट्ठों,वाहनों,फैक्ट्रियों आदि के कार्य तो लगभग एक जैसे ही लगातार चलते हैं भौगोलिक कारण भी एक जैसे ही रहते हैं !इसलिए यदि ये कारण होते तो लगातार वायु प्रदूषण बढ़ना चाहिए था ! एक और बात है ये जो कारण गिनाए जाते हैं वो न्यूनाधिक रूप में बहुत सारे देशों में पाए जाते हैं किंतु प्रदूषण से परेशान देशों की संख्या लगभग निश्चित है इसका कारण क्या है !इसके अतिरिक्त एक और ध्यान देने की बात है कि वायुप्रदूषण के कारण जो भी हों किंतु ये बढ़ता तो धीरे धीरे ही है और घटता भी धीरे धीरे ही है ऐसी परिस्थिति में इसके बढ़ने घटने का पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सकता है !
वैसे भी जहाँ कहीं धूल या धुआँ दिखाई पड़ता है उसे ही प्रदुषण बढ़ने का कारण बता दिया जाता है ! इस प्रकार से इतने ज्यादा कारण गिना दिए गए हैं कि जनता चाहकर भी इन्हें कैसे रोक सकती है दूसरी बात ये इतने अधिक भ्रामक हैं कि इन पर विश्वास नहीं हो पाता है ! दशहरा दीपावली होली और फसलों के अवशेष जलाना जैसे कार्य यदि इसके लिए जिम्मेदार होते तो इनका एक निश्चित समय होता है उसके बाद वायु प्रदूषण घट जाना चाहिए था किंतु ऐसा होते नहीं देखा जाता है !दूसरी बात भवननिर्माण एवं ईंटभट्ठों,वाहनों,फैक्ट्रियों आदि के कार्य तो लगभग एक जैसे ही लगातार चलते हैं भौगोलिक कारण भी एक जैसे ही रहते हैं !इसलिए यदि ये कारण होते तो लगातार वायु प्रदूषण बढ़ना चाहिए था ! एक और बात है ये जो कारण गिनाए जाते हैं वो न्यूनाधिक रूप में बहुत सारे देशों में पाए जाते हैं किंतु प्रदूषण से परेशान देशों की संख्या लगभग निश्चित है इसका कारण क्या है !इसके अतिरिक्त एक और ध्यान देने की बात है कि वायुप्रदूषण के कारण जो भी हों किंतु ये बढ़ता तो धीरे धीरे ही है और घटता भी धीरे धीरे ही है ऐसी परिस्थिति में इसके बढ़ने घटने का पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सकता है !
आश्चर्य की बात तो यह है कि वैज्ञानिक अनुसंधान होते इतने वर्ष बीत गए
अभी तक इस बात का भी निर्णय नहीं हो सका है कि वायुप्रदूषण बढ़ने के कारण
प्राकृतिक हैं या मनुष्यकृत हैं!प्राकृतिक हैं तो पूर्वानुमान लगाना कठिन
क्यों है और मनुष्यकृत हैं तो वायु प्रदूषण बढ़ने के कारणों के विषय में
इतना भ्रम क्यों है ?
इस विषय में सरकारों के द्वारा अभीतक की गई वैज्ञानिक तैयारियाँ से
बहुत दूर रही हैं !ऐसी परिस्थिति में सरकार जनता से कोई उम्मींद कैसे कर
सकती है !यदि तीर
तुक्के ही लगाने हैं तो ऐसे संसाधनों पर जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से
प्राप्तधन को इस प्रकार से बहाया क्यों जा रहा है ?
जनता अपने खून पसीने की कमाई से जो धन टैक्स रूप में सरकार को देती है
जिससे सैलरी समेत समस्त सुख सुविधाएँ एवं शोधसंसाधन सरकार मौसम पर
अनुसंधान करने वालों को उपलब्ध करवाती है!ऐसे में लोगों पर भारी भरकम धनराशि खर्च करने
का जनता का केवल इतना उद्देश्य होता है कि वो लोग इतना बता दें कि वायु
प्रदूषण बढ़ेगा कब से कब तक !दूसरी बात वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण क्या है ?
दुर्भाग्य से अनुसंधान करने वालों पर धन तो पूरा खर्च होता है किंतु
उस प्रकार के परिणाम जनता को प्राप्त नहीं हो पाते हैं ! जिसकारण ये भयावह स्थिति पैदा हुई है !
वायु प्रदूषण के कारण और निवारण की प्रक्रिया -
बताया जाता है कि जिस प्रकार से स्वाँस लेते समय वायु में मिले हुए धूलकण भी नाक के अंदर
जाने लगते हैं किंतु नाक में मौजूद छोटे-छोटे बाल उन धूलकणों को रोक लेते
हैं एवं नाक में स्थित चिपचिपा पदार्थ उन्हें अपने में चिपका लेता है और
हवा शुद्ध होकर अंदर जाती है !इसी प्रकार से प्राकृतिक वातावरण में विद्यमान वायु
में व्याप्त धूल कणों को वृक्ष लताएँ झाड़ आदि अपनी पत्तियों में
फँसाकर रोक लेते हैं जिससे वायु की सफाई हुआ करती है !इसी प्रकार से नदियाँ
नहरें झीलें तालाब आदि अपनी नमी में वायु में विद्यमान कणों को चिपका कर वायु शोधन किया
करते हैं !नदियों नहरों तालाबों झीलों आदि में जल की मात्रा घटने से तथा
पेड़ पौधों के अधिक काटे जाने के कारण इनसे वायु शोधन में उस प्रकार का
सहयोग नहीं मिल पाता है जितना कि आवश्यक होता है !वायु प्रदूषण बढ़ने का एक कारण यह भी बताया जाता है !
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