Wednesday, 16 September 2020

बिषय :कोरोना जैसी महामारियों से संबंधित वैज्ञानिकअनुसंधानों को उपयोगी बनाने के बिषय में -

 आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी
                                       आपको सादर नमस्कार !

 बिषय :कोरोना जैसी महामारियों से संबंधित वैज्ञानिकअनुसंधानों को उपयोगी बनाने के बिषय में -
    महोदय,
    जहाँ एक ओर कोरोना महामारी से प्रभावित देशवासियों को आत्मीयता पूर्वक खाद्यान्नों की मदद पहुँचाने में आपकी संवेदनशीलता की प्रशंसा की जा रही है |वहीं इसी महामारी से कई ऐसे प्रश्न भी खड़े हुए हैं जिनका उत्तर खोजा जाना भी अतीव आवश्यक है | 
    ये सभी को अच्छी तरह से पता है कि कोरोना महामारी को समझने एवं इससे निपटने आदि में वैज्ञानिकअनुसंधानों की कोई भूमिका नहीं रही है | कोरोना जैसे अपने  शुरू हुआ था उसी प्रकार से अपने समय से ही 24 सितंबर के बाद स्वतः समाप्त होने लग जाएगा !जिसमें किसी औषधि या वैक्सीन आदि की कोई भूमिका नहीं होगी | 
     मान्यवर!वैज्ञानिकअनुसंधानों के असहयोग के कारण ही महामारी से संबंधित प्रत्येक बिषय में केवल कल्पनाएँ की जा रही हैं अंदाजे लगाए जा रहे हैं आशंकाएँ व्यक्त की जा रही हैं |जिनके गलत होने की पर्याप्त संभावनाएँ हैं इसके बाद भी उन्हीं के आधार पर सरकारों का ध्यान भटकाने के लिए उन्हें लॉकडाउन सोशलडिस्टेंसिंग और मास्क लगवाने  की प्रक्रिया में ठीक उसी तरह उलझा कर रख दिया गया है जैसे डेंगू से ध्यान भटकाने के लिए सरकारों को सफाई करवाने एवं मच्छर मुक्त मेदिनी बनाने में व्यस्त कर दिया जाता है | 
    श्रीमान जी !कई देश समूह घनीबस्तियाँ या भारत में श्रमिकों का पलायन जैसे ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जहाँ सोशलडिस्टेंसिंग मास्क सैनिटाइजिंग या तो संभव नहीं था और या फिर किया ही नहीं गया इसके बाद भी उन क्षेत्रों में भी उस अनुपात में कोरोना संक्रमण बढ़ते नहीं देखा गया है ऐसा होने के पीछे का कारण नहीं खोजा जा सका है | 
     वैज्ञानिकअनुसंधानों से इतना भी सहयोग नहीं मिल सका है कि महामारी प्रारंभ होने से पूर्व इसके बिषय में पूर्वानुमान ही लगाया जा सका होता |संक्रमण की संख्या तथा रिकवरी आदि कब कितनी बढ़ने या घटने की संभावना है !यह महामारी समाप्त कब होगी आदि बातों का पूर्वानुमान लगा लिया गया होता |
     कोरोनामहामारी का जन्म प्राकृतिक है या मनुष्यकृत है !कोरोना स्पर्श से होता है या हवा में व्याप्त है ?संक्रमण केवल मनुष्यों में है या पशुओं पक्षियों पेड़पौधों आदि सभी जगह व्याप्त है !इसका प्रभाव पृथ्वी के केवल बाहरीतल पर ही है या पृथ्वी की गहराई और आकाश की सुदूर ऊँचाई में भी है | फलों सब्जियों के केवल बाहरी हिस्से में है या उसके अंदर भी है !एक मार्च से आठ सितंबर तक 413 बार भारत में भूकंप आये !जून महीने तक वर्षात होती रही !टिड्डियों का प्रकोप बढ़ा एवं देश की सीमाओं पर तनाव बढ़ता रहा आदि हर वर्ष न घटित होने वाली घटनाओं का भी कोरोना संक्रमण के साथ कोई संबंध था या नहीं ! ऐसे आवश्यक प्रश्नों के उत्तर अभी तक नहीं खोजे जा सके हैं | वैज्ञानिकअनुसंधानों के नाम पर जिसे जो समझ में आ रह है वो बोल दे रहा है |
    कोरोना संक्रमित  रोगियों में उभरने वाले लक्षण न खोज पाने के कारण कोरोना को स्वरूप बदलने वाला बता दिया गया है!इसका संदेश है कि ऐसे मायावी कोरोना की वैक्सीन बनाना संभव नहीं है |इस महामारी को कुछ समय बाद उसीतरह जलवायुपरिवर्तन से जोड़कर अपना पीछा छुड़ा लिया जाएगा !
     महामारियों और मौसम संबंधी प्राकृतिक विषयों से संबंधित वैज्ञानिकअनुसंधानों की असफलता के लिए प्रायः जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहराकर अपने को बचा लिया जाता है |
       मानसून आने जाने की तारीखों  का अनुमान लगातार गलत होते जाने का कारण हो या आँधी तूफान वर्षा बाढ़ आदि का पूर्वानुमान न लगा पाने या पूर्वानुमानों के गलत हो जाने पर जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार दिया जाता है | 
    जलवायु परिवर्तन के लिए बढ़ते प्रदूषण को जिम्मेदार बता दिया जाता है बढ़ते प्रदूषण के लिए जीवन से जुड़े आवश्यक अनेकों कार्यों को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है जिन्हें पूरी तरह रोक पाना सरकार के लिए संभव ही नहीं है यदि ऐसा कर भी दिया जाए तो भी प्रदूषण रुकेगा क्या इसकी कोई गारंटी नहीं है न रुका तो कुछ और कारण बता दिए जाएँगे कुछ और रडार स्थापित करने की बातें कर दी जाएँगी कुछ सुपर कंप्यूटर और मँगाने की सलाह दी जाएगी !कुछ और पेड़ पौधे लगवाने में सरकारों को व्यस्त कर दिया जाएगा !आदि किंतु ये नहीं बताया जाएगा कि इनसे समय पास करने के अतिरिक्त और होगा क्या ?क्योंकि महामारियों और मौसम के स्वभाव को समझने की प्रक्रिया विकसित किए बिना ऐसे यंत्रों का ढेर लगाने से क्या होगा ?
       महोदय !आपसे मेरा विनम्र निवेदन है कि मैं भी पिछले 25 वर्षों से ऐसे ही प्राकृतिक बिषयों पर अनुसंधान करता आ रहा हूँ मेरी अनुसंधान प्रक्रिया बिलकुल अलग है मैंने महामारी के बिषय में जो पूर्वानुमान बिस्तार आदि लगाए थे वे बिलकुल सही हुए हैं जिसके मेरे पास पर्याप्त प्रमाण हैं | आगे भी 24 सितंबर तक कोरोना बढ़ेगा उसके बाद यह संख्या घटने और कोरोना क्रमशः समाप्त होने लगेगा !समाप्त होने की इस प्रक्रिया में 25सितंबर से 50 दिनों का समय लगेगा !मैं विश्वास से कह सकता हूँ कि मेरा यह पूर्वानुमान भी सच होगा !
       मेरा सुझाव है कि बादलों की जासूसी को मौसम विज्ञान मानने की अपेक्षा महामारी एवं प्राकृतिक घटनाओं के स्वभाव के समझने के विज्ञान की खोज की जाए उस सक्षम विज्ञान से ही मौसम एवं महामारियों से संबंधित सार्थक अनुसंधानों को प्रोत्साहित किया जा सकता है !इसमें मेरी भी अनुसंधान विधा काफी सहयोगी सिद्ध हो  सकती है |

Sunday, 13 September 2020

कोरोनावैक्सीन

कोरोना के बिषय में 16जून को मैंने प्रधानमंत्रीजीको मेल भेजा था जिसमें "9 अगस्त से 24 सितंबर तक कोरोना संक्रमण बढ़ने के बिषय में लिखा गया है!यदि 25सितंबर के बाद समय बदलने के कारण कोरोना समाप्त होने लग ही जाएगा!" फिर कोरोनावैक्सीन का परीक्षण कैसे संभव होगा ?@narendramodi @AmitShah
@drharshvardhan  
@KGopalRSS
@Ramlal


Friday, 11 September 2020

सरकार

     कोरोना जैसी महामारी के बिषय में वास्तविक वैज्ञानिककारण खोजने के बजाए सरकार कभी मन की बात करती है तो कभी तन की बात करती है और कभी धन की बात करती है |कोरोना से निपटने के लिए तरह तरह के उपाय बताए जाते हैं जो किसी जादू टोने की तरह लगते हैं |ऐसा कर लो तो कोरोना नहीं होगा वैसा कर लो तो कोरोना नहीं होगा आदि आदि !जबकि ऐसा वैसा करने को बताने वालों के पास ऐसी कोई वैज्ञानिक रिसर्च नहीं थी जिसके बलपर उसे प्रमाणित किया जा सके कि कैसा कर लेने से कोरोना नहीं होगा !
      मध्यप्रदेश में एक साधूबाबा बाहर से आए उनके आश्रम से जुड़े होने के कारण उनके अनुयायी काफी थे साधू बन जाने के कारण लोग उनका सम्मान भी करते थे !एक दिन वहाँ के किसी स्कूल का कोई उत्सव था उसमें साधू बाबा को बुलाकर सम्मान किया गया उनकी तारीफ में एक से एक बढ़ चढ़ कर बातें विभिन्न वक्ताओं के द्वारा बोली गईं अंत में बाबा जी से आशीर्बचन बोलने को कहा गया वे कुछ पढ़े नहीं थे न कुछ बोल पाते थे और न साधू ही थे मुख्यमहंत जी की मृत्यु हो जाने के कारण उन्हें आश्रम सौंप दिया गया था तो उन्होंने भी साधुओं जैसा वेषबना लिया था यद्यपि सज्जन थे |बोलने की बात सुनते ही बाबा जी धर्म संकट में पढ़ गए कुछ देर वे मौन बैठे रहे समाज उनके मुख की ओर बड़ी आशा से ताकता रहा !वे लज्जित होकर चुप बैठे रहे उन्हें अचानक याद आया कि कार में कुछ इलायची दाने रखे हैं तो बड़ी ठसक में चिल्लाते हुए बोले बचवा गाड़ी से प्रसाद लेते आऊं इन लोगों को बाँट दो किसी तरह बाबा जी पीछा छोड़ाकर बनारस वापस लौटे !मैं भी उनके साथ था | कोरोना काल में मुझे वो घटना याद आ गई कि इतनी बड़ी महामारी से निपटने के लिए सरकार को अपनी वैज्ञानिक अक्षमताओं की चिंता करनी चाहिए थी इतनी बड़ी महामारी के कारण निवारण लक्षण और पूर्वानुमान खोजवाने चाहिए थे !ऐसा न कर पाने के कारण सरकार ताली थाली बजवाती रही उन्हीं बाबा जी की तरह सरकार कुछ लोगों को पैसे देती रही कुछ को राशन उपलब्ध करवाती रही कुछ को भोजन पैकेट दिलवाती रही किंतु इतनी महामारी पैदा होने से पूर्व इसके बिषय में पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका !इसपर कोई काम नहीं किया जा सका !थोड़े दिन बाद महामारी स्वयं ही समाप्त हो जाएगी !लोग भूल भाल जाएँगे !यही वैज्ञानिक अपनी वैक्सीन के द्वारा महामारी को कंट्रोल कर लेने का दावा ठोंकने लगेंगे ! 

वास्तविक समस्याओं से निपटने के लिए कितनी गंभीर है को कभी तन की बात कभी मन की बात कभी धन की बात करके अपना समय तो पास कर लेती है किंतु जनता क्या करे क्योंकि बातों से पेट नहीं भरता !

     विपक्ष न होने के कारण किसी एक पक्ष की सरकार बनाना जनता हैं की मजबूरी है किंतु सत्तासीन नेता लोग ऐसा न समझें कि जनता हमेंशा उन्हीं के हाथ जोड़ती रहेगी !मजबूर होकर जनता भी नया नेतृत्व खड़ा कर सकती है | 

      भारत सरकार कोरोना महामारी से निपटने के लिए गंभीर क्यों नहीं है ?

 
जनता जूझ रही थी कोरोना से और सरकार ताली और थाली बजाने की सलाह देती रह गई !

आखिर किस काम आएँगे
       

 कोरोना से जूझती रही जनता अफवाहें फैलाते रहे वैज्ञानिक और ताली थाली बजवाती रही सरकार !

कोरोना जैसी इतनी बड़ी महामारी की मुसीबत से जूझती जनता को उन वैज्ञानिक अनुसंधानों से नहीं मिल सकी कोई मदद !
       ऐसे अनुसंधानों पर क्यों खर्च की जाती है टैक्स के नाम पर जनता से नोची गई खून पसीने की कमाई !देश और समाज की मुसीबत में जो काम न आ सकें ऐसे वैज्ञानिकअनुसंधान किस काम के ?इन पर क्यों खर्च किया जाता है  जनता के खून पसीने की कमाई से टैक्स रूप में लिया गया धन !पाई पाई और पल पल का हिसाब देने की कसमें खाने वाली सरकार क्या इस बिषय में भी किसी की जवाब देही तय करेगी !
      वैज्ञानिकअनुसंधानों के अभाव में कोरोना को समझा ही नहीं जा सका कि ये है क्या बला !कोरोना के खतरों और सावधानियों के बिषय में पूर्वानुमानों के बिषय में उपायों के बिषय में औषधियों वैक्सीनों के बिषय में जिसे जो मन आया सो बकता रहा !चतुर लोग महामारी को भुनाने में लगे रहे !सरकार मूकदर्शक बनी रही और उन वैज्ञानिक लोगों की निराधार अवैज्ञानिक बातों को मानने के लिए जनता को बाध्य करती रही !
     वैज्ञानिक सलाहों के नाम पर केवल अफवाहें फैलाई जाती रहीं !पहले कहा गया कि कोरोना छूने से फैलता है इसे लेकर ऐसी अफवाहें फैलाई गईं ये न छुएँ वो न छुएँ किसी  को न छुएँ कहीं न जाएँ किसी से न मिलें किसी का छुआ न खाएँ !किंतु घनी बस्तियों में फैक्ट्रियों में एक एक कमरे में कई कई लोग रहते रहे सोते जागते खाते पीते रहे !गरीब लोगों के लिए बच्चे पालना मुश्किल था वे सैनिटाइजर और मास्क कैसे खरीद पाते !मजबूरी में खाने उन्हें का इंतजाम करने के लिए दर दर भटकते रहे !
उन्हें कोरोना नहीं हुआ !जिनके पास पैसा था उन्होंने घर से निकलना बंद कर दिया नौकरों से सामान मँगाने खाने लगे फिर भी उनमें से बहुतों को कोरोना हुआ किंतु सभी जगह घूमने वाले सभी से मिलने जुलने वाले नौकरों सब्जी वालों ग़रीबों को नहीं हुआ !यहाँ तक कि दिल्ली मुंबई सूरत आदि से लाखों श्रमिक अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ अपने अपने घरों के लिए पैदल ही निकल पड़े छोटे छोटे बच्चे भी साथ थे कई महिलाओं को रास्ते में प्रसव भी हुए !उनके द्वारा कोई सावधानी नहीं बरती जा सकी जहाँ जिसने जैसे हाथों से जो कुछ जैसा भी दे दिया वही खुद कहते रहे बच्चों को खिलाते रहे सभी लोग साथ साथ रहते रहे सोते जागते खाते पीते रहे !उन्हें किसी को कुछ नहीं हुआ !इसी प्रकार पहले कहा गया कि अधिक उम्रवालों को कोरोना से ज्यादा खतरा है बाद में एक से एक बूढ़े लोग भी स्वस्थ होते देखे गए कुछ ऐसे स्त्री पुरुष भी थे जिनकी उम्र 100 वर्ष से भी अधिक थी वे भी स्वस्थ हुए !
    यह देखकर कोरोना की अफवाहें फैलाने वाले लोगों ने कहना शुरू कर दिया  कि उनका इम्युनिटी सिस्टम मजबूत था इसलिए उन्हें कोरोना नहीं हुआ या वे स्वस्थ हो गए !अरे !जो रईस लोग जीवन भर काजू बादाम खाते  रहे सारे टीके समय पर लगवाते रहे जिनके अपने खुद के फैमिली डाक्टर हैं उनके कहने पर  टैंकरों टानिकें  पी गए होंगे !न जाने कितनी आयरन और बिटामिन की गोलियाँ खा गए होंगे | उनका इम्युनिटी सिस्टम कैसे कमजोर बना रहा ?अमितशाह, अमिताभबच्चन, दिल्ली के स्वास्थ्यमंत्री और भी केंद्रीय या प्रांतीय कई मंत्री लोग तथा कई और भी बड़े बड़े धनवान लोग कोरोना संक्रमित हुए आखिर क्या कमी थी इनके पास !जिसके कारण इन्हें  कोरोना हुआ अनुसंधानों के अभाव में ऐसा होने के पीछे का कारण पता नहीं लगाया जा सका ! 
     पहले कहा गया कहा गया कि हृदयरोगियों को कोरोना से ज्यादा खतरा है बाद में एक खबर प्रकाशित हुई कि कोरोनाकाल में 60 प्रतिशत कम हार्टअटैक हुए हैं !
     पहले कहा गया कि शुगर रोगियों को कोरोना से ज्यादा खतरा है बाद में कहा गया कोरोना होने के बाद बढ़ जाता है शुगर !इसीप्रकार  कोरोना काल में अधिकाँश प्रसव घरों में हुए जच्चा बच्चा दोनों स्वस्थ बने रहे !
    पहले कहा गया कोरोना के कारण बहुत मौतें हो रहीं हैं !एक दिन दिल्ली के बिषय में खबर छपी कि इन तीन महीनों में पिछले वर्ष 37हजार लोगों की  थी जबकि इस वर्ष की तिमाही में मात्र 31 हजार लोगों की ही मृत्यु हुई है  पिछले वर्ष से 6 हजार कम !ऐसी और भी बहुत सारी घटनाएँ घटित हुई हैं |जिनका कारण  नहीं जा सका ! व्यंगकार ने  कहा कि कोरोना के कारण लोग अस्पतालों में नहीं जा सके अपने फैमिली डॉक्टर से नहीं मिल सके इसलिए हुआ ऐसा चमत्कार !
      कहा गया फल और सब्जियों को अच्छे ढंग से धोकर खाओ नहीं कोरोना संक्रमण फैलेगा !दूसरी खबर आई कि तंजानियाँ में फलों को काटकर उनका परीक्षण किया गया तो उसके अंदर भी कोरोना निकला !
     परीक्षण संसाधनों की बात की जाए तो जो लोग कोरोना जाँच कई जगहों से करवा लेते थे उनमें से कुछ की रिपोर्टों में वह व्यक्ति कोरोना संक्रमित निकलता था और कुछ में संक्रमण मुक्त होता था !दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री के साथ भी ऐसा ही हुआ था !इससे वैज्ञानिक तैयारियों का अनुमान लगाया जा सकता है कि महामारी से निपटने की हमारी वैज्ञानिक तैयारियाँ कितनी दमदार थीं !
     यहाँ तक कि पशुओं में कोरोना पक्षियों में कोरोना नदी के पानी में कोरोना हवा में कोरोना फिर सभी जगह कोरोना ही कोरोना संक्रमण होने के समाचार मिलने लगे !स्पेन जैसे देशों ने तो बड़ी संख्या में पशुओं का बध  करने का भी बिचार बना डाला किंतु संक्रमित पशु केवल उतने ही तो नहीं थे और केवल एक देश में ही नहीं थे !
      जो सरकारें सोशल डिस्टेंसिंग सैनिटाइजर मॉस्क एवं लॉकडाउन लगाने के बलपर कोरोना को नियंत्रित कर लेने का दंभ भरती हैं !उन्हें सोचना चाहिए कि ऐसे सभी नियमों का पालन पशु पक्षियों ने तो नहीं किया और न ही संभव था !इसलिए उनमें कोरोना संक्रमण घटने की उम्मींद ही नहीं की जानी चाहिए थी | पाकिस्तान जैसे कुछ देशों में परिस्थितिबशात उतनी सावधानी नहीं बरती जा सकी फिर भी वहाँ संक्रमण पर आसानी से नियंत्रण हो गया | 
     चिकित्सा संबंधित संसाधनों सावधानियों से यदि कोरोना जैसी महामारी पर नियंत्रण करना संभव होता तो अमेरिका जैसे चिकित्सकीय संसाधनों से संपन्न देशों में कोरोना संक्रमण इतना बढ़ने नहीं पाता !  
    कुल मिलाकर वैज्ञानिक अनुसंधानों के बलपर कोरोना महामारी से निपटने की कोई मदद नहीं मिल सकी ! महामारी के प्रारंभ होने का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका और न ही ये बताया जा सका कि कोरोना संक्रमण कब कितना बढ़ेगा और कब कम होगा न ये बताया जा सका कि कोरोना प्राकृतिक है या मनुष्यकृत !यह भी नहीं बताया जा सका कि कोरोना हवा में है या नहीं !कोरोना महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए वैक्सीन बनाते भी रहे और बार बार खंडन भी करते रहे कि वैक्सीन बनाना कठिन है क्योंकि कोरोना स्वरूप बदल रहा है | दोनों बातें बोलते रहे कोई तो  निकलेगी ही |

Thursday, 10 September 2020

मजबूत स्वास्थ्य प्रणाली विकसित करने की जरूरत !

https://bharatjagrana.blogspot.com/2020/11/blog-post.html
 
    कोरोना जैसी महामारियाँ क्यों होती हैं कब कब होती हैं कितने समय तक रहती हैं क्या इनके विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है यदि हाँ तो लगाया क्यों नहीं जाता है और यदि नहीं लगाया जा सकता है तो क्यों ?आखिर चिकित्सकीय अनुसंधानों के लिए सरकारें जो धन खर्च करती हैं वो जिस जनता के द्वारा दिए गए टैक्स के पैसों से इस आशा में खर्च किया जाता है कि ये अनुसंधान चिकित्सकीय आवश्यकता पड़ने पर हमारे काम आएँगे किंतु जब कोरोना जैसी महामारियाँ अचानक आकर जनता पर जान घातक हमला करती हैं | इतनी बड़ी महामारी के विषय में जनता को पहले कभी कोई पूर्वानुमान नहीं बताया गया होता है इसके समाप्त होने के विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं बताया गया होता है | उसकी चिकित्सा प्रक्रिया नहीं खोजी गई होती है उसके लिए किसी औषधि को नहीं चिन्हित किया जा सका होता है | ऐसी महामारियों से जनता को स्वयं जूझना पड़ता है सारा संकट स्वयं सहना पड़ता है तब तक सहना पड़ता है जब तक कि वो महामारी रहती है | 
        कुल मिलाकर कोरोना जैसी महामारियों से जूझते समय अपनी प्राण रक्षा के लिए जब जनता को अपने चिकित्सकीय अनुसंधानों के सहयोग की सबसे अधिक आवश्यकता होती है उस समय वे अनुसंधान हाथ खड़े कर देते हैं तो ऐसे अनुसंधान जनता के किस काम के !सामान्य बीमारियाँ तो वैसे भी ठीक हो ही जाती हैं | चिकित्सामीय अनुसंधानों की अग्नि परीक्षा तो महामारियों के समय ही होती है जिससे ये पता लग पाता है कि हमारे अनुसंधान किस बिषय में कितने सही सिद्ध हो पा रहे हैं और जिन महामारियों के विषय में सही नहीं सिद्ध हो पा रहे हैं उनके लिए क्या किया जाना चाहिए | किसी महामारी के फैलने के समय समाज को घरों में कैद कर दिया जाना किसी वैज्ञानिक अनुसंधान की उपलब्धि कैसे मानी जा सकती है | 
     ये महामारी अभी महीने भर और चलेगी दो महीने या छै महीने और चलेगी इसका सरकारी तौर पर कोई विश्वसनीय उत्तर न मिल पाने के कारण जनता स्वयं अनुमान लगाने लगती है आपस में उसकी चर्चा करने लगती हैं |अपनी संभावित आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सामान जुटाने लगती है | जिनके सामने ऐसी कोई समस्या नहीं होती हैं उन्हें जनता के द्वारा घबड़ाहट में उठाए जाने वाले कदम अफवाह फैलाने जैसे लगते हैं तो इसमें जनता को दोषी नहीं माना जा सकता है | यदि कुछ लोग ऐसी गतिविधियाँ कर भी रहे हों तो इसके लिए उन्हें ही दोषी माना जाना चाहिए | ऐसी समस्याओं के संपूर्ण समाधान के लिए प्रकृति और जीवन से संबंधित पूर्वानुमान लगाने के विषय में ऐसे गंभीर अनुसंधानों की आवश्यकता है जिससे समय रहते वर्षा बाढ़ आँधी तूफान आदि घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता हो | इस विषय में अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं खोजा  जा सका है जो प्राकृतिक घटनाओं या आपदाओं या रोगों और महामारियों से संबंधित किसी पूर्वानुमान की कोई प्रक्रिया खोजी जा सकी हो !ये सबसे अधिक चिंता की बात है |

    
         सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि महामारी के शुरू होने या उसके समाप्त होने के विषय में पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाए जा सकते हैं ?ये आवश्यक नहीं माने जा रहे हैं या इनका पूर्वानुमान लगा पाना संभव ही नहीं है | आखिर समस्या क्या है जनता जानना चाहती है |
    'समयविज्ञान' के आधार पर मेरे द्वारा इस प्रकार के जो पूर्वानुमान लगाए जाते हैं उन्हें वर्तमान वैज्ञानिक प्रक्रिया में विज्ञान नहीं माना जाता और जिसे विज्ञान माना जाता है पूर्वानुमान लगाना उसके बश की बात नहीं है यदि होती तो कोरोना जैसी महामारी के विषय में  पूर्वानुमान जनता को बताए गए होते और ये महामारी समाप्त कब होगी इसके विषय में भी कुछ भविष्यवाणी की गई होती किंतु ऐसा नहीं किया जा सका ऐसी परिस्थिति में समय विज्ञान के आधार पर मैंने कोरोना को समाप्त होने के विषय में जो पूर्वानुमान लगाए हैं वे यहाँ उद्धृत किए जा रहे हैं |
    कोरोना जैसी महामारी के इतने बड़े संकट से निपटने में कुछ समय तो लगेगा किंतु अधिक घबड़ाने की आवश्यकता इसलिए नहीं है क्योंकि इस दृष्टि से जो समय अधिक बिषैला था वो 11 फरवरी तक ही निकल चुका था | इसलिए महामारी का केंद्र रहे वुहान में यहीं से इस रोग पर अंकुश लगना प्रारंभ हो गया था | उसके बाद इस  महामारी के वुहान से दक्षिणी और पश्चिमी देशों प्रदेशों में फैलने का समय चल रहा है | जो  24 मार्च 2020 तक चलेगा | उसके बाद इस महामारी का समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा जो क्रमशः 6 मई तक चलेगा | |उसके बाद समय में पूरी तरह सुधार हो जाने के कारण संपूर्ण विश्व अतिशीघ्र इस महामारी से मुक्ति पा सकेगा | 
    ऐसी महामारियों को सदाचरण स्वच्छता उचित आहार विहार आदि धर्म कर्म ,ईश्वर आराधन एवं ब्रह्मचर्य आदि के अनुपालन से जीता जा सकता है |इसमें चिकित्सकीय प्रयासों का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा | क्योंकि महामारियों में होने वाले रोगों का न कोई लक्षण होता है न निदान और न ही कोई औषधि होती है | किसी भी महामारी की शुरुआत समय के बिगड़ने से होती है और समय के सुधरने पर ही महामारी की समाप्ति होती है | समय से पहले इस पर नियंत्रण करने के लिए अपनाए जाने वाले प्रयास उतने अधिक प्रभावी नहीं होते हैं |
      किसी महामारी पर नियंत्रण न हो पाने का कारण यह है कि  कोई भी महामारी तीन चरणों में फैलती है और तीन चरणों में ही समाप्त होती है | महामारी फैलते समय सबसे बड़ी भूमिका समय की होती है | सबसे पहले समय की गति बिगड़ती  है  ऋतुएँ समय के आधीन हैं इसलिए अच्छे या बुरे समय का प्रभाव सबसे पहले ऋतुओं पर पड़ता है ऋतुओं का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है उसका प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर भी पड़ता है इससे वहाँ के कुओं नदियों तालाबों  आदि का जल प्रदूषित हो जाता है | इन परिस्थितियों का प्रभाव जीवन पर पड़ता है इसलिए शरीर ऐसे रोगों से पीड़ित होने लगते हैं जिनमें चिकित्सा का प्रभाव बहुत कम पड़ पाता है |
     विशेष बात यह है जो औषधियाँ बनस्पतियाँ आदि ऐसे रोगों में लाभ पहुँचाने के लिए जानी जाती रही हैं बुरे समय का प्रभाव उन पर भी पड़ने से वे उतने समय के लिए निर्वीर्य अर्थात गुण रहित हो जाती हैं जिससे उनमें रोगनिवारण की क्षमता नष्ट हो जाती है | 
      महामारी समय के बिगड़ने से प्रारम्भ होती है और समय के सुधरने से ही समाप्त होती है प्रयत्नों का बहुत अधिक लाभ नहीं मिल पाता है |पहले समय की गति सँभलती है उस प्रभाव से ऋतुविकार नष्ट होते हैं उससे पर्यावरण सँभलता है |उसका प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर पड़ता है |कुओं नदियों तालाबों  आदि का जल प्रदूषण मुक्त होकर जीवन के लिए हितकारी होने लग जाता है | 
        इसमें कोई संशय नहीं है कि वर्तमान विश्व का जो चिकित्सा विज्ञान अपने अनुसंधानों की अच्छाई के कारण  नित्य नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है वही विज्ञान इतनी बड़ी कोरोना जैसी महामारी का पूर्वानुमान लगाने में सफल नहीं हो सका !यह स्वीकार करने में भी कोई संकोच नहीं होना चाहिए |
     इस महामारी के होने का कारण क्या है इसके लक्षण क्या हैं और इससे मुक्ति पाने के लिए उचित औषधि क्या है इसके साथ ही यह कोरोना अभी कब तक और परेशान करेगा !इस विषय में कुछ काल्पनिक बातों के अतिरिक्त वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर कुछ भी कह पाना संभव नहीं हो पाया है |
    यह स्थिति केवल कोरोना जैसी इसी महामारी की नहीं है अपितु जब भी कोई महामारी आती है तब इसी प्रकार की ऊहापोह की स्थिति का सामना उसे करना पड़ता है इस विषय में हजार वर्ष पहले जो स्थिति थी वही स्थिति आज भी बनी हुई है |
     किसी महामारी के फैलने के समय जब वर्तमान समय के अत्यंत विकसित चिकित्सा विज्ञान की सबसे अधिक आवश्यकता समाज को होती है तब जनता को केवल भाग्य के सहारे ही नियति को स्वीकार करना पड़ता है | इस क्षेत्र में विज्ञान की विशेषता का कोई विशेष लाभ नहीं लिया जा सका है | महामारी पनपने पर जनता को केवल भाग्य के भरोसे ही रहना पड़ता है | ऐसा एक दो बार नहीं अपितु अनेकों बार अनुभव किया जा चुका है जैसा कि आज हो रहा है |
     ऐसी परिस्थिति में किसी भी महामारी का संकट समाज को तब तक सहना पड़ता है जब तक कि वह महामारी रहती है जब वह महामारी समाप्त होना शुरू होती है तब धीरे धीरे स्वयं ही समाप्त होती है इसमें मनुष्यकृत प्रयासों की बहुत अधिक भूमिका नहीं होती है फिर भी महामारी समाप्त होने के समय में जो  प्रकार के उपाय कर रहा होता है उसे लगता है कि वह उसी उपाय से स्वस्थ हुआ है इसी प्रकार से सरकारों को लगता है कि उन्होंने जो जितने प्रयास किए हैं उसी से इस महामारी से मुक्ति मिली है जबकि ऐसा दवा करने का मतलब सच्चाई से मुख मोड़ना होता है |
      हमें हमेंशा याद रखना चाहिए कि जो रोग हमारे खान पान रहन सहन आचार व्यवहार आदि के बिगड़ जाने के कारण होते हैं ऐसे रोग खान पान रहन सहन आचार व्यवहार आदिके सँभालने से ही पीछा छोड़ते हैं | विशेष बात यह है कि महामारी जैसे जो रोग बुरे समय के कारण प्रारंभ होते हैं ऐसे रोगों की समाप्ति भी अच्छे समय के आने पर ही होती है इनमें प्रयास प्रायः निरर्थक होते देखे जाते हैं | जहाँ तक महामारी पनपने की बात है तो समय के प्रभाव से ही पैदा होती है और समय के प्रभाव से ही समाप्त होती है इसमें खान पान आदि को दोष नहीं दिया जा सकता है | क्योंकि इतनी  बड़ी संख्या में लोगों का खानपान एक साथ नहीं बिगड़ सकता है |
      ऐसी महामारियों से सबसे अधिक पीड़ित वे लोग होते हैं जिनका इसी समय में ही अपना व्यक्तिगत समय भी ख़राब आ गया होता है अन्यथा जिन क्षेत्रों में महामारी के कारण बहुत सारे लोगों की मृत्यु होते देखी जाती है उन्हीं क्षेत्रों में बहुत सारे लोग ऐसे भी होते हैं को जीवन लीला उन्हीं क्षेत्रों में बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी होता है कि वह बिल्कुल स्वस्थ बना रहता है उसे किसी प्रकार का कोई रोग पीड़ा परेशानी आदि नहीं होने पाती है और वह बिलकुल स्वस्थ बना रहता है |क्योंकि उसका अपना समय अच्छा चल रहा होता है | इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को इस बात की जानकारी आगे से आगे रखनी चाहिए कि उसका समय कब कैसा चल रहा है | जिसका समय अच्छा न चल रहा हो उसे महामारियों के समय में विशेष अधिक सतर्कता बरतनी होती है अन्यथा उनमें से बहुत लोगों के जीवन की रक्षा होना कठिन होते देखा जाता है |
     इसीलिए आयुर्वेद की चरक और सुश्रुत आदि संहिताओं में महामारी फैलने तथा उनके समाप्त होने से संबंधित पूर्वानुमान लगाने की जो विधि बताई गई है उसे आधुनिकविज्ञान के क्षेत्र में विज्ञान नहीं मानने की सरकारी परंपरा है | इस कारण ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए सरकारी तौर पर अधिकृत लोग ये काम स्वयं इसलिए नहीं कर पाते हैं क्योंकि आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में जब रोगों का पूर्वानुमान लगाने की ही कोई विज्ञान विधा नहीं है तो पूर्वानुमान लगाया भी कैसे जाए |
       ऐसी परिस्थिति में सरकारी तौर पर जिसे विज्ञान मानने का रिवाज है वो पूर्वानुमान लगाने में सक्षम नहीं है और जो विज्ञान पूर्वानुमान लगाने में सक्षम हैआधुनिक विज्ञान के विद्वान् लोग उसे विज्ञान नहीं मानते भले ही उससे अर्जित किए गए पूर्वानुमान कितने भी सही एवं सटीक क्यों न हों | जिस विषय को वे विज्ञान नहीं मानते हैं उन्हीं के चश्मे से झांकने वाली सरकारों का आत्मबल इतना मजबूत नहीं होता कि वे ऐसी परिस्थिति में दोनों विज्ञान विधाओं का परीक्षण करके जो सच लगे जनहित में उसे स्वीकार करें | सरकारों की इस दुर्बलता का दंड जनता को भोगना पड़ता है |
      मौसम समेत किसी भी क्षेत्र से संबंधित पूर्वानुमान लगाने में अक्षम आधुनिक विज्ञान की इस अयोग्यता का दंड समाज को प्रत्येक क्षेत्र में भोगना पड़ा रहा है | दूर की बातें न की जाएँ तो भी पिछले दस वर्षों में जितनी भी बड़ी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं उनमें से किसी का भी पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका है जो बताए भी जाते हैं वे अक्सर गलत ही होते देखे जाते हैं |
      भूकंप के विषय में तो अयोग्यता स्वीकार भी की जाती है किंतु वर्षा बाढ़ आँधी तूफानों आदि का पूर्वानुमान लगाने के लिए रडारों उपग्रहों से प्राप्त चित्रों के द्वारा ऐसी घटनाओं की जासूसी कर ली जाती है कि कौन बादल या तूफ़ान कितनी गति से कब किधर जा रहे हैं उसी हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है यदि हवा का रुख नहीं बदला तो कभी कभी तुक्का सही भी हो जाता है अन्यथा अक्सर गलत ही होता है |मौसम पूर्वानुमान से संबंधित ऐसे तीर तुक्के जब जब गलत निकल जाते हैं तो वो अपने द्वारा की गई तथाकथित भविष्यवाणी के गलत हो जाने की बात को न स्वीकार करके अपितु ग्लोबल वार्मिंग जलवायुपरिवर्तन अलनीनों ला नीना जैसी काल्पनिक बातें बोलकर इतनी बड़ी गलती को हवा में उड़ा दिया जाता है |
      इसलिए इतना तो तय है कि पूर्वानुमान लगाने की पद्धति अभीतक खोजी नहीं जा सकी है इसीलिए मौसम संबंधी पूर्वानुमान प्रायः गलत होते देखे जाते हैं |जिनके विषय में अनुसंधान की कोई तकनीक यदि खोजी जा सकी होती तो मौसम के साथ साथ प्रकृति एवं जीवन से जुड़े सभी विषयों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता था |उसी तकनीक से कोरोना जैसी महामारी होने से पूर्व एवं इसके होने तथा समाप्त होने संबंधी पूर्वानुमान लगाया जा सकता था |
   प्रकृति और जीवन से संबंधित अच्छी और बुरी सभी प्रकार की घटनाऍं समय के साथ साथ घटित होती रहती हैं अच्छा समय आता है तब अच्छी घटनाएँ घटित होती हैं और बुरा समय आता है तब भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ जैसी प्राकृतिक दुर्घटनाएँ घटित हुआ करती हैं जब समय बहुत अधिक बुरा होता है तब बड़ी दुर्घटनाओं के साथ साथ समय समय पर होने वाले रोग महामारियों का रूप ले लिया करते हैं और वे तब तक रहते हैं जब तक बुरे समय का प्रभाव रहता है और समय बदलते ही ही वे स्वयं ही समाप्त हो जाया करते हैं | जिस पर मैं विगत लगभग तीस वर्षों से अनुसंधान करता चला आ रहा हूँ | उसी 'समयविज्ञान' के आधार पर मैंने कोरोना जैसी महामारी के विषय में भी प्रयास किया है |
         
    कोरोना जैसी महामारी के विषय में लिखा गया यह लेख मूल रूप से हिंदी में है जिसे गूगल के द्वारा इंग्लिश  में अनुवाद किया गया है इसलिए यदि इसमें कहीं किसी शब्द का भाव स्पष्ट न हो पा  रहा हो तो उसके लिए इसका हिंदी भाषा में लिखा गया मूल लेख भी देखा जा सकता है उसका लिंक यह है !


Saturday, 5 September 2020

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