क्या आम आदमी की हिम्मत है कि वो इतने बड़े बड़े लोगों को 'बेईमान' बोल जाए !
केजरीवाल और उनसे जुड़े लोग नेता हैं या अभिनेता ? या कुछ और !कैसे बनी आम आदमी पार्टी और और कैसे ठगा गया आम आदमी का आम आदमीपन ?
इस लेख का मूल उद्देश्य यह देखना है कि केजरीवाल आम आदमियों के नेता हैं या आम आदमीयत्व के अभिनेता ! तीसरा सबसे प्रमुख विन्दु इस लेख के माध्यम से इस बात की खोज करना है कि केजरीवाल जी या उनके साथियों को आम आदमी बनने की प्रेरणा कब और कहाँ से मिली? कैसे बने ये आम आदमी और क्यों बने ये आम आदमी ?या ये पहले भी आम आदमी ही थे !पहले कभी क्या आम आदमियों की बस्तियों में कुमार विश्वास को कविताएँ सुनाने जाते आपने देखा सुना है या प्रशांत भूषण जी आम आदमियों की शुल्कमुक्त सहायता करते देखे गए हैं या आम आदमियों का मनोबल बढ़ाने के लिए अरविन्द जी या उनके अन्य साथी किसी क्षेत्र में कोई प्रभावी भूमिका निभाने में सफल हो सके हैं यदि हाँ तो कहाँ और यदि नहीं तो क्यों !ये जितने लोग आज आम आदमियों की टोपी पहने घूम रहे हैं या इनमें से किसी को पहले कभी आपने देखा है ग़रीबों को गले से लगाते ! क्या सत्ता के बिना आम आदमी की मदद नहीं की जा सकती है तो गरीबों को गले भी नहीं लगाया जा सकता था ? लोग कह रहे हैं कि केजरीवाल जी ने पहले ही एक अच्छा बँगला रहने के लिए माँगा था ऐसे आम आदमीयत्व के विसर्जन के और भी कई प्रकरण चर्चा में रहे किन्तु बड़ी बात यह है कि फिल्मी अभिनेताओं की तरह इन आम आदमियों में भी आम आदमीपन ढुलमुल ही होता रहा !बार बार व्यवहार बदलने से लगने लगा कि ये इनकी मूल भावना नहीं थी ये तो आम आदमी का अभिनय मात्र कर रहे थे वस्तुतः इसकी स्क्रिप्ट तो किसी और ने लिखी थी जिसने लिखी होगी उसमें होगी आम आदमी की मूल भावना, वह है आखिर कौन यह भी पता लगेगा इसी लेख के लिंक से !
केजरीवाल जी और उनके साथी आम आदमी होने का यदि अभिनय नहीं वास्तविक आचरण कर रहे होते तो यह तथाकथित आम आदमियत्व बचपन से ही इनके स्वभावों में होता और सत्ता का कितना भी लालच दिया जाता ये उधर जाते ही नहीं ये जन सेवा ही करते !जैसे भुने हुए दाने में अंकुर नहीं निकलता है जैसे विरक्त संत में बासना नहीं जगती है उसी प्रकार से आम आदमी बनकर रहना भी आसान नहीं होता ये भी बहुत बड़ी साधना है वहाँ भी सत्ता की बासना नहीं होती है वहाँ सबको साथ लेकर चलना , सबके सम्मान एवं सबके हित के लिए निःस्वार्थ रूप से कर्तव्य पालन करना होता है सबको चोर बेईमान कहने से बात नहीं बनती है यहाँ अपने आचरण सुधारने पर विशेष जोर होता है ऐसे संस्कार बचपन से ही स्वभाव एवं व्यवहार में देखे जाते हैं और ऐसे आचरणों से प्रभावित होकर लोग धीरे धीरे ऐसे लोगों का अनुगमन करने लगते हैं जो जुड़ते हैं उनमें भी बचपन से ही ये स्वाभाविक सहजता के संस्कार दिखाई देने लगते हैं ऐसे जन नेता महापुरुष पहले भी अनंत बार अवतार लेकर भटकते हुए समाज को सँवारते रहे हैं किन्तु उन्होंने कभी किसी और के लिए अपशब्द या कटुशब्दों के प्रयोग नहीं किए होंगे क्योंकि उनका उद्देश्य समाज को सुधारना होता है और समाज के सुधरते ही राजनीति आदि सारे विभाग स्वयं शुद्ध हो जाते हैं!समाज के सुधरते ही अपराध स्वयं घटने लगते हैं अन्यथा सरकारों में ईमानदार लोग आ भी जाएँ तो वो कितने अपराधियों को कितना कठोर दंड देकर ठीक कर लेंगे !बनाया तो गया है महिलाओं की सुरक्षा के लिए कठोर कानून और बड़े बड़े लोग जेल भी भेजे गए हैं किन्तु अपराधों की संख्या घटी है क्या ?इसलिए आचरणात्मक परिवर्तन सबसे अधिक जरूरी है !अभिनय से काम नहीं चलेगा केजरीवाल जी !
किसी पार्टी का टिकट न मिलने या अपनी नौकरी आदि किसी कार्यक्षेत्र में अपनी उपेक्षा के कारण या अपनी राजनैतिक महत्वाकाँक्षा के कारण जो लोग अपनी पार्टियाँ या नौकरियाँ छोड़ छोड़ कर आपकी पार्टी में सम्मिलित हो रहे हैं वे भी किसी न किसी महत्वाकाँक्षा की पूर्ति के लिए ही आ रहे हैं जिसके लिए वे किसी भी श्रेणी तक गिरने में संकोच नहीं करेंगे आपके टोपी पहना देने से वो आम आदमी नहीं हो जाएँगे क्योंकि स्वभाव तो वही रहेगा। इसलिए ऐसे काया कल्पित आपके सारे आम आदमी अपनी अपनी महत्वाकाँक्षा की आग को आदमियत्व की रुई में लपेट कर दूसरों को दिखाने के लिए कुछ समय के लिए ढक भले लें किन्तु वो और विशाल रूप लेकर जब प्रकट होगी तब सँभाली नहीं जा सकेगी जैसे आज आपके कुछ बनावटी आम आदमी धधक रहे हैं बहुत और लोग भी धधकने की तैयारी में होंगे जो अभी अपनी अपनी आत्माएँ आशा और आश्वासनों में दबाए बैठे हुए हैं !
अब देखना ये है कि केजरीवाल जी या उनके सत्ता सहभोगी या भोगेच्छु लोग क्या पहले भी आम आदमी की तरह से सादगी पूर्ण ढंग से ही रहते रहे हैं या संयोगवश अचानक आम आदमी हो गए हैं! यदि देखा जाए तो इन आम आदमियों में उन आम आदमियों की अपेक्षा बहुत बड़ा अंतर है जिनके ये मसीहा बनने का अभिनय करते हैं ये लोग ठहरे शाही आम आदमी !
इनके पास अच्छे मकान भी है गाड़ियाँ भी हैं बच्चे भी अच्छे स्कूलों में पढ़ते हैं शादी कामकाम काज भी बड़े लोगों में ही करते हैं इलाज भी महँगे प्राइवेट नर्सिंग होम में ही कराते हैं इस प्रकार से बिलासिता के सारे संसाधन भोगते रहते हैं फिर भी इन्होंने अपने नाम आम आदमी ही रख रखे हैं ये इनकी अभूत्पूर्व सादगी है फिर वो न जाने क्या हैं जो ऐसे समस्त संसाधनों से विहीन हैं !खैर, पहले किसी को क्यों नहीं आई आम आदमी की याद ?
सरकार में आने के बाद लालबत्ती छोड़कर धीरे धीरे सब कुछ अन्य सरकारों की तरह ही हो गया है !कहाँ खो गया वो आम आदमियत्व जिसके सपने दिखाए गए थे ? मुख्य मंत्री या मंत्री पद आप ने गरीबों में तो नहीं बाँट दिए हैं जिन्हें कुर्सी पर बैठाकर उनसे आज्ञा ले लेकर आप लोग काम कर रहे हों! रहने को आवास अन्य लोग लेते रहे हैं वो ये भी ले रहे हैं गाड़ी से आप भी चलते हैं सुरक्षा आपने भी भले ली न हो किन्तु दी तो गई है! जैसी सब सरकारें या उनमें बैठे लोग अपने को पाक साफ एवं दूसरों को गन्दा कहते रहे हैं वैसा ही आप भी कर रहे हैं बल्कि आप तो उनसे अधिक कर रहे हैं यदि आप आम आदमी के प्रतिनिधित्व का दावा करते हैं तो आप ही बताइए कि क्या आम आदमी की हिम्मत है कि वो इतने बड़े बड़े लोगों को 'बेईमान' बोल जाए !वो तो बहुत छोटे छोटे लोगों को भी बाबू जी कहकर अपना जीवन काटा करते हैं क्योंकि उनके जीवन में जो अभाव होता है वही उन्हें दीन बना देता है और आपकी सम्पन्नता आदि आपके सारे संचित संसाधनों का उत्साह और ओज आपकी वाणी एवं भाल पर साफ साफ दमक रहा होता है जब आप बड़े बड़े लोगों को 'बेईमान' कह रहे होते हैं !
आप एवं आपके लोगों के इन्हीं सारे संदेहास्पद आम आदमियत्व पर मैंने जब गम्भीर चिंतन किया तो देखा कि आम आदमी और आधुनिक राजनेताओं के रहन सहन के अंतर को दर्शाने के लिए जो स्क्रिप्ट 31 October 2012 को स्वयं मैंने अपने ब्लॉग पर लिखी थी उसी का अभिनय सा करते हुए उसके ठीक 26 दिन बाद 26 नवम्बर 2012 को इन लोगों ने "आम आदमी पार्टी " को न केवल जन्म दिया अपितु उसके वो सारे प्रभावी विचार और नारे लेकर अपने और अपनी पार्टी के नाम से समाज में उछालने शुरू कर दिए और टोपियाँ लगा लगाकर आप लोग तो जुट गए अपने को आम आदमियों का मसीहा सिद्ध करने में किन्तु एक लेखक होने के नाते मैं आप से ही जानना चाहता हूँ कि वास्तव में जब आप हमारी लिखित स्क्रिप्ट सामग्री का राजनैतिक उपयोग करने ही लगे थे तो हमसे पूछना तो दूर क्या हमें बताया जाना भी जरूरी नहीं था ! आखिर हमारे ब्लॉग पर हमारा लेख प्रकाशित होने से पूर्व कहाँ था आपका यह तथाकथित आम आदमियत्व ?यहाँ तक कि अन्ना आंदोलन में भी आपके रहन सहन या बोली भाषा पर आम आदमियत्व हावी नहीं था जैसा कि हमारा लेख प्रकाशित होने के बाद दिखा ! आम आदमी की चर्चा से भरा पूरा हमारा वह लेख है हमारे उस आम आदमी का !उस आम आदमी में ही आपने पार्टी शब्द जोड़ दिया है बस बन गई "आम आदमी पार्टी" !
"आप" एवं आपके आम आदमियों ने हमारी स्क्रिप्ट का कितना राजनैतिक उपयोग किया है इस बात का निर्णय तो हमारा वह लेख पढ़कर स्वयं समाज का आम आदमी ही करेगा मैं समाज के सभी वर्गों समुदायों के सामने अपने उस लेख का लिंक भेज रहा हूँ जिसमें लिखने के बाद कभी कोई एडिटिंग नहीं की गई है जिसे पता लगाने के लिए यदि कोई जाँच होती हो तो मैं विनम्रता पूर्वक उसके लिए भी तैयार हूँ इसलिए इस सच्चाई पर विश्वास करते हुए हमारे पाठक परिवार के जो लोग भी पढ़ें कृपा पूर्वक अपनी राय से हमें अवगत अवश्य करावें - यह लेख पढ़कर समाज को आम आदमी पार्टी के अभिनेता नेताओं का अंदाजा आसानी से लग जाएगा कि केजरीवाल जी की सादगी उनकी मूल विचारधारा बिलकुल नहीं है यदि ऐसा होता तो इतनी जल्दी इस पार्टी में इतनी भगदड़ न मची होती जो पार्टी आम आदमी के नाम पर सादगी के लिए बनी हो उसमें कुछ तो त्याग भावना होती!
मैं विश्वास से कह सकता हूँ कि यह आम आदमीपन का केवल एक अभिनय मात्र था जो वास्तविक जीवन में उतार पाना कठिन होता जा रहा है अपने किए हुए वायदे बोझ बनते जा रहे हैं । यदि इन नेताओं के अतीत के रहन सहन की शैली को खंगाला जाए तो इस सच्चाई की पोल भी स्वयं ही खुल जाएगी ! आप सभी बंधुओं से प्रार्थना है कि आप लोग मेरा निम्न लिखित लेख अवश्य पढ़ें कि कैसे बनी आम आदमी पार्टी ?
Wednesday, 31 October 2012
ऐ मेरे देश के शासको! अब तो विश्वास भी टूट रहा है!
आम आदमी और नेताओं में इतनी दूरी आश्चर्य !
इस देश का आम आदमी कहॉं जाए अपनी पीड़ा किसे सुनावे ?जो न हिंदू और न ही मुशलमान है न हरिजन और न ही सवर्ण है।न स्त्री न ही पुरुष है। न बच्चा न बूढ़ा है।वो केवल इंसान है। अब तो उसका भी जीना मुश्किल है।गरीब हो या अमीर, भूखप्यास, सुख दुख, बीमारी आरामी, शिक्षा दीक्षा आदि सभी प्रकार की सुख सुविधाएँ तो सबको चाहिए किंतु ये आज भारतवर्ष की सच्चाई नहीं है seemore....http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/blog-post_4683.html
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