Wednesday, 5 February 2014

सपा सरकार की मौज ही मौज!पहले सैफई महोत्सव फिर भैंसों की खोज !

आखिर कब जागेगी उत्तर प्रदेश की जनता और सरकार से माँगेगी  अपने धन का हिसाब एवं लेगी ऐसी सरकारों से  अपने अपमान का बदला ?

       क्या मुलायम सिंह को बनना चाहिए प्रधानमंत्री ? किन्तु जिन  पर प्रदेश की जनता ने भरोसा किया और वे  उसके नहीं हो सके तो देश उन  पर भरोसा  कैसे करे ?

    सरकारों में बैठे लोगों को क्या जनता के प्रति  इतना भी जवाबदेय  नहीं होना चाहिए ! आखिर क्यों उन्हें इस बात का संकोच नहीं  होना चाहिए कि वो  जो कर रहे हैं उसका असर उस जनता पर क्या पड़ेगा जिसने उन्हें सत्ता सौंपी है !केवल सैफई वालों के वोट से तो वे मुख्यमंत्री बन नहीं गए! ऐसा भी नहीं है कि केवल आजम खान को खुश करना ही सरकार का केवल लक्ष्य हो !

       मुलायम सिंह जी को समझना चाहिए कि अगर आप वास्तव में समाजवादी हैं तो आपका समाजवाद इतना संकीर्ण क्यों है जो आपको परिवारवादी ,जातिवादी ,सैफईवादी बना देता है और कभी कदाचित मुश्किल से आप यदि इन दीवारों से बाहर  निकले भी तो आपको पार्टीवादी बना देता है।आखिर क्या कारण है कि आप प्रदेश और देशवादी नहीं बन पाए !मान्यवर !क्या यही आपका समाजवाद है क्या मुख्यमंत्री बनने की आपकी यही योग्यता है इसी के बल पर बनना चाहते हैं प्रधानमंत्री !

       काँग्रेस की कमजोरी ,भाजपा की कलह,बसपा की संकीर्णता से ऊभ चुकी प्रदेश की जनता ने अपना समझ कर आपको सत्ता सौंपी थी किन्तु आप उस जनता के अपने नहीं हो सके मात्र कुछ लोगों के होकर रह गए !कितना बुरा तब लगता है जब उत्तर प्रदेश की सरकारी मशीनरी कोई काम न करके अपितु किसी परेशान व्यक्ति की मदद नहीं कर रही होती है और वह निराश हताश आदमी उस जिले के डी.एम.को लिखित अप्लिकेशन देता है महीनों बीत जाने पर भी जब कोई सुनवाई नहीं होती है तो दुबारा वो जब डी.एम. के यहाँ जाता है तो उनका पी.ए. उस प्रार्थी के कान में कहता है कि इस समय साहब किसी और का कोई काम नहीं सुन रहे हैं केवल मुलायम सिंह जी के घर और पार्टी वालों की ही बात सुनते हैं और उन्हीं का काम करते हैं बाक़ी किसी की नहीं! वो कहते है कि जब चलनी ही सपा की और उनके लोगों की है तो पंगा लेकर अपनी बेइज्जती क्यों करवाना !यह सुनकर निराश हताश प्रार्थी वहाँ से वापस लौट आता है। ये कोई  कल्पना नहीं अपितु वास्तविक घटना है। 

      ऐसे ही अन्य प्रश्न भी हैं धन तो पूरे प्रदेश की जनता का खर्च हो किन्तु महोत्सव सैफई में हो आखिर क्यों ?क्योंकि सैफई नेता जी की है तो बाकी प्रदेश किसका है और वहाँ का मुख्यमंत्री क्या कोई दूसरा है ?

    इसीप्रकार से किसी का बेटा बेटी अपहृत हो जाता या और कोई नुक्सान हो जाता तो भी प्रशासन इतना ही मुस्तैद होता क्या?जितना भैंसें खोजने में था उन भैंसों को खोजने के लिए क्या कुछ नहीं किया गया फिर भी बेचारे पुलिस वाले …!

      आजम की  भैंसों की तलाश के लिए पुलिस की चार टीमों का गठन किया गया.खोजी कुत्ते, क्राइम ब्रांच और पुलिसकर्मियों ने कई बूचड़खानों और मांस की दुकानों पर छापेमारी की.  पड़ोस के कई जिलों में सर्च ऑपरेशन चलाया गया.और भैंसें मिल गईं । 

       इससे सिद्ध भी यही होता है कि ये सरकार सपा और केवल सपा के लोगों के लिए ही है उसके अलावा सारा प्रदेश जाए जहन्नुम में !इससे एक बात और सिद्ध होती है कि यदि प्रयास पूर्वक भैंसे खोजी जा सकती हैं तो और अपराधी क्यों नहीं !इसका सीधा सा अर्थ है कि जो अपराध सपा के छोटे बड़े सभी कार्यकर्ताओं के विरुद्ध होगा वो तो अपराध माना जाएगा और उसी को रोकने का भी प्रयास होगा बाकी लोग परेशान रहें तो रहें ये सरकार तो सपाइयों की है सपाइयों की ही रहेगी, प्रदेश वा देश की जनता का इससे क्या लेना देना !

      

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