Friday, 18 April 2014

दलित

आरक्षण और सम्मान साथ साथ नहीं मिल सकते! इसके लिए चाहिए त्याग ! !

जो लोग जिस पद की योग्यता रखते हों उन्हें उस हक़ से बंचित किए जाने को न्याय कैसे कहा जा सकता है ?

   जाति  के आधार पर आरक्षण क्यों ?  आरक्षण और सम्मान दोनों एक साथ नहीं मिल सकते!क्योंकि दोनों एक दूसरे के विरोधी हैं।त्याग करने से सम्मान होता है और जातिsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2013/03/blog-post_2501.html


दलितों के लिए आरक्षण या सम्मान?दोनों किसी को नहीं मिलते !

दलित शब्द का अर्थ कहीं दरिद्र या गरीब तो नहीं है ?

   समाज के एक परिश्रमी वर्ग का नाम पहले तो दलित अर्थात दबा, कुचला टुकड़ा,भाग,खंड आदि रखने की साजिश हुई। ऐसे अशुभ सूचक नाम कहीं मनुष्यों के होने चाहिए क्या?  वो भी भारत वर्ष की जनसंख्या के बहुत बड़े वर्ग को दलित जैसे अपमानित करने वाले कुशब्दों से संबोधित किया जाने लगा है। आखिर क्या ऐसा दोष या दुर्गुण या कमजोरी दिखाई दी दलितों में ?क्या वो लाचार हैं, अपाहिज हैं

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आरक्षण बचाओ संघर्ष आखिर क्या है ? और किससे ?

         4 घंटे  अधिक काम करने का ड्रामा !

     आरक्षणबचाओसंघर्ष या बुद्धुओं को बुद्धिमान बताने का संघर्ष आखिर क्या है ?ये संघर्ष उससे है जिसका हिस्सा हथियाने की तैयारी है।ये अत्यंत निंदनीय है !
    
     जिसमें  चार घंटे अधिक काम करने की हिम्मत होगी वो आरक्षण माँगेगा ही क्यों ?उसे अपनी कमाई और योग्यता का भरोसा होगा  किसी और की कमाई की ओरsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_3571.html 

अथ श्री आरक्षण कथा !

    गरीब सवर्णों को भी आरक्षण की भीख  मिलेगी ?

     चूँकि किसी भी प्रकार का आरक्षण कुछ गरीबों, असहायों को दाल रोटी की व्यवस्था करने के लिए दिया जाने वाला सहयोग है इससे जिन लोगों का हक मारा जाता है वे इस आरक्षण को भीख एवं जिन्हें दिया जाता है उसे भिखारी समझते हैं।इस दृष्टि से भीख में दाल रोटी तो मिल सकती है किन्तु कोई  घी लगा लगा कर रोटी दे ऐसा उसे कैसे बाध्य किया जा सकता है।इसी प्रकार शर्दी में ठिठुरते देखकर किसी को कुछ कपड़े तो भीख या सहयोग में मिल सकते हैं किन्तु कोटपैंट जैसी शौक शान की चीजें देने केsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_3184.html

 

modi

 यदि मोदी जी दोषी हैं तो काँग्रेस सरकार ने क्यों नहीं कराई  उनकी जाँच ?और निर्दोष हैं तो बदनाम क्यों किया जा रहा है ?
           गुजरात की घटनाओं में कितने दोषी हैं मोदी जी और कितने हैं अन्य दलों के नेता ?
अपने लोकतान्त्रिक प्रशासकों से यह प्रश्न जानने का हक़ तो  हमें भी है कि आखिर गोदरा और गुजरात में मारे गए लोगों का सच क्या है ! आखिर उनके लिए जिम्मेदार  कौन है !और चुनावों के समय ही नेताओं को क्यों seemore...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/04/blog-post_2.html
 गुजरात दंगों के लिए कितने दोषी हैं मोदी जी !
लालू प्रसाद जी,मुलायम सिंह जी ,मायावती जी जैसे मनमोहन सरकार के सशक्त समर्थकों ने केंद्र सरकार को समर्थन देते समय अपनी प्रथम शर्त के रूप में ही क्यों नहीं कह दिया था कि आपको गोदरा और गुजरात की घटनाओं पर जाँच एवं दोषियों को दण्डित करना होगा ! ऐसा न होने पर वे केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले सकते थे किन्तु उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया? 
           गुजरात की घटनाओं में कितने दोषी हैं मोदी जी और कितने हैं अन्य दलों के नेता ?
अपने लोकतान्त्रिक प्रशासकों से यह प्रश्न जानने का हक़ तो  हमें भी है कि आखिर गोदरा और गुजरात में मारे गए लोगों का सच क्या है ! आखिर उनके लिए जिम्मेदार  कौन है !और चुनावों के समय ही नेताओं को क्यों seemore...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/04/blog-post_2.html


 गुजरात के दंगों का सच  सामने लाने के लिए अभी तक राहुल ही क्यों नहीं बन गए प्रधान मंत्री और करा लेते अपने मन की जाँच !
गुजरात की घटनाओं में कितने दोषी हैं मोदी जी और कितने हैं अन्य दलों के नेता ?
अपने लोकतान्त्रिक प्रशासकों से यह प्रश्न जानने का हक़ तो  हमें भी है कि आखिर गोदरा और गुजरात में मारे गए लोगों का सच क्या है ! आखिर उनके लिए जिम्मेदार  कौन है !और चुनावों के समय ही नेताओं को क्यों seemore...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/04/blog-post_2.html


मोदी जी दोषी होते तो काँग्रेस कराती उनकी जाँच !जाँच न होने का मतलब है वो दोषी नहीं हैं और दोषी है काँग्रेस जो उन पर आरोप तो लगाती है किन्तु जाँच नहीं करवाती है ! 
गुजरात की घटनाओं में कितने दोषी हैं मोदी जी और कितने हैं अन्य दलों के नेता ?अपने लोकतान्त्रिक प्रशासकों से यह प्रश्न जानने का हक़ तो  हमें भी है कि आखिर गोदरा और गुजरात में मारे गए लोगों का सच क्या है ! आखिर उनके लिए जिम्मेदार  कौन है !और चुनावों के समय ही नेताओं को क्यों seemore...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/04/blog-post_2.html

 

आखिर काँग्रेस समेत वो सभी पार्टियाँ और नेता जो मोदी जी के नाम से डरते  हैं  किन्तु क्यों डरते हैं इस बात की जाँच मोदी जी को जरूर करवानी चाहिए ! 

गुजरात की घटनाओं में कितने दोषी हैं मोदी जी और कितने हैं अन्य दलों के नेता ?अपने लोकतान्त्रिक प्रशासकों से यह प्रश्न जानने का हक़ तो  हमें भी है कि आखिर गोदरा और गुजरात में मारे गए लोगों का सच क्या है ! आखिर उनके लिए जिम्मेदार  कौन है !और चुनावों के समय ही नेताओं को क्यों seemore...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/04/blog-post_2.html



 


Sunday, 13 April 2014

ज्योतिष वैज्ञानिकों जैसी बोल चाल वेष भूषा वाले पाखंडियों को पहचानों !

आखिर ऐसे लोगों का उद्देश्य क्या है ?ज्योतिष शास्त्र का प्रयोग केवल फँसने फँसाने के लिए तीर तुक्का मात्र बन कर रह गया है ज्योतिष शास्त्र !

       ज्योतिष की जिन किताबों का ज्योतिष के विश्व विद्यालयीय स्लेबस में या प्राचीन ज्योतिष में कहीं  कोई उल्लेख ही नहीं है ऐसी कोई किताब है भी या नहीं, किन्तु कुछ लोगों ने सीधे साधे भारतीय समाज को केवल भ्रमित करने ही कलरों पर किताबें न केवल लिखी लिखाई  हैं अपितु अपनी सुविधानुसार बनाई या बनवाई भी हैं।जैसे लाल किताब ऐसे ही नीली,पीली,हरी ,गुलाबी आदि किताबें लोगों ने अपने अपने मन से हर कलर में एक एक किताब बनाकर अपने अपने पास रख ली है।सबकी अलग अलग किताबें हैं इसीलिए किसी एक की किताब का किसी दूसरे की किताब से कोई मेल नहीं खाता है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि किसी को  कुछ पढ़ना लिखना नहीं पड़ता है ज्योतिष के नाम पर जो मन आवे सो बोलो या बको जब प्रमाण देने की बात आवे तो तथाकथित अपनी अपनी किताबों या पोथियों का नाम बता दो बचाव हो  जाएगा।

   ऐसे जो भी किताब रूपी ड्रामे होते हैं प्रायः उनकी  एक पहिचान होती है| इनके जो भी उत्पाद होते हैं  केवल उन  नामों के पीछे अमृत या मणि या यन्त्र लिखना बहुत जरूरी होता है। ये अमृत आदि शब्द इतने अधिक आकर्षक होते हैं कि इनसे किसी परेशान व्यक्ति को फाँसने में बड़ा सहयोग मिलता है क्योंकि इन नामों के प्रति भारतीय समाज में असीम आस्था होती है।कितना भी बिना पढ़ा लिखा हो अमृत के महत्त्व को वो भी मानता है क्योंकि इसकी प्रशंसा वह जीवन में अनेकों बार सुन चुका होता है।संसार में लोगों को जितने प्रकार की आवश्यकता होती है उन सारी बातों के आगे अमृत या मणि या यन्त्र तथा कवच आदि  लिखना बहुत जरूरी होता है।समाज में जैसी जैसी जरूरतें दिखाई पड़ती हैं अपने उत्पादों के  वैसे वैसे नाम रख लिए जाते हैं।जैसे -कब्ज दूर करने करने के लिए  कब्ज निरोधक मणि अथवा कब्ज हर यन्त्र  या  कब्ज हर अमृत या कब्ज हर कवच आदि ।इसी प्रकार  यदि आप कुंडलियों के धंधे में कूदना चाहते हैं तो कंप्यूटर से कुंडली बनाकर  उसके आगे भी अमृत, मणि,यन्त्र या कवच आदि कोई भी समाज को प्रभावित करने वाला शब्द लिख सकते हैं।

    जैसे -गुलाबी  किताब अमृत ,हरी  किताब मणि ,या पीली किताब यन्त्र अथवा काली किताब कवच आदि नामों से वही पाँच-दस रूपए की लागत वाले  कंप्यूटर से निकाले गए कुंडली के प्रिंटआउट तीन हजार 3100या पाँच हजार5100 रूपए में आराम से बिक जाते  हैं। यद्यपि  वैसे  ये  प्रिंटआउट पचास  रूपये के भी बेचने मुश्किल हो जाएँ किन्तु एक बार टेलीविजन पर जाकर अपने विषय में,अपनी विद्वता के विषय में, अपनी कुंडली के विषय में किसी को फँसाने के लिए जितना झूठ बोला जाता है उसकाअसर समाज पर  जितनी  देर रहता है उतनी देर में वो फँस चुका होता है।उससे जो लेना देना होता है वह ले चुके होते हैं हजारों से लेकर लाखों रुपए तक के नग नगीने यन्त्र तंत्र ताबीज बेंच लेते हैं।

    भविष्य में जब कभी खरीद कर लाए गए उस कंप्यूटर कुंडली से निकाले गए  प्रिंटआउटों की बातें गलत होकर सामने आने लगती हैं और उनके दिए या बताए हुए नग नगीने यन्त्र तंत्र ताबीज निष्फल हो चुके होते हैं तब तक वो तथाकथित ज्योतिषी उनसे या तो सम्बन्ध बिगाड़ लेते हैं और या फिर दुबारा उतने ही पैसे माँगते हैं जिनके पास काला धन होता है वो देते भी हैं। इसप्रकार कलर फुल लाल आदि किताबें ऐसे ही लाल आदि कमाई करने वाले  खरीदा बेचा करते हैं।

      एक दिन किसी से मैंने पूछा कि इन लाल पीली आदि कलर वाली किताबों  का मतलब क्या होता है उन्होंने हमें बताया कि काली किताब का मतलब तंत्र मंत्र आदि हर तरह का आडम्बर करके बिना किसी जवाब देही के सामने वाले से धन निकालना होता है।लाल किताब में काली किताब वालों की अपेक्षा कुछ दस पाँच प्रतिशत ईमानदारी भी होती है किन्तु शास्त्रीय समाज चूँकि इन्हें भी  ईमानदार नहीं मानता है इसलिए अपने एवं अपने काम को ईमानदार सिद्ध करने के लिए ऐसे लोग कुछ नेता अभिनेताओं या अन्य प्रतिष्ठा प्राप्त लोगों के साथ अपनी फोटो बनवाकर कर रख लेते हैं।इसके साथ ही अपने विषय में झूठ मूठ की प्रशंसा करने वाली एक बनी ठनी सुन्दर सी चंचल सी चुलबुली सी लड़की बैठा लेते हैं और उसे उनकी प्रशंसा में जो बोलना होता है वो स्वयं लिख कर दे देते हैं और वह पढ़ पढ़ कर बोला करती है।इस तरीके से जो अधिक धन इकट्ठा कर चुके होते हैं वो नेता अभिनेताओं के साथ फोटो की जगह उनकी फीस देकर उनसे ही अपनी प्रशंसा करवाते हैं।इन बातों का शास्त्रीय विद्वानों पर कोई प्रभाव पड़ता हो न पड़ता हो किन्तु समाज पर असर पड़ता ही है । इसी प्रकार नीली,पीली,हरी ,गुलाबी आदि जैसी जिसकी कमाई वैसी उसकी किताबें होती  हैं ।इनमें सच्चाई न होने के कारण ही ऐसी कलर वाली किताबें किसी भी संस्कृत विश्व विद्यालय के ज्योतिष सम्बन्धी पाठ्यक्रम में सम्मिलित ही नहीं की गई हैं। 

     हमें भी तो अब लगने लगा है कि पढ़े लिखे शास्त्रीय ज्योतिषियों के पास भी मटक मटक कर झूठी तारीफों के पुल बाँधने वाली एक सुन्दर सी लड़की नहीं होती थी उसी झुट्ठी के बिना पिट गए बेचारे ! क्योंकि उसे देखने के चक्कर में बड़े बड़े फँसने के बाद होश में आते हैं तब  ज्योतिषशास्त्र  को गाली  दे रहे होते हैं उन्हें यह होश ही नहीं होता है कि वो जिसके चक्कर में पड़े थे वो वह ज्योतिष नहीं थी,अब  जिसे वे गाली दे रहे हैं वो वह ज्योतिष है ।जिस चक्कर में विश्वामित्र पराशर आदि बड़े बड़े ऋषि फँस  गए वहाँ हम जैसे लोग क्या हैं ?वैसे भी ज्योतिषी के पास उस तरह की लड़की का काम ही क्या है?

   इसी प्रकार उपायों के नाम पर आधारहीन मनगढ़न्त बातों की बकवास होती है। कुत्ते, चींटी, चमगादड़, उल्लू,तीतर,बटेर, मुर्गी, मछली, हल्दी, सिन्दूर, नींबू, मिर्ची, काले उड़द, तिल, कोयला, घास गोबर,नग,नगीने,यन्त्र तन्त्र ताबीजों, तथा लकड़ियों, जड़ों आदि के नए नए नाम लेकर इन्हीं चीजों को ऐसे तथाकथित कुशल कारीगर लोग खाना, पहनना, ओढ़ना, बिछाना, जेब में रखने आदि बातों के लिए प्रेरित किया करते हैं। ऐसी थोथी बातों का शास्त्र में न तो कहीं आधार है और न ही प्रमाण?

     वहाँ तो ग्रह शान्ति नाम की वैदिक मन्त्रों की प्रमाणित पुस्तक है, किन्तु  ये सब मानने वाले सोचते हैं कि आखिर इन बातों को बताने वाले का स्वार्थ क्या है और कर लेने में हमारा नुकसान ही क्या है?क्या आपने कभी विचार किया कि आपके पूर्व जन्म के कर्म ही भाग्य का रूप लेते हैं। वही कर्म अच्छे होते हैं तो सौभाग्य और बुरे होते हैं तो दुर्भाग्य के रूप में इस जन्म में भोगने पड़ते हैं। पूर्व जन्म के अच्छे बुरे कर्मों की सूचना देने का आधार ग्रह और ज्योतिष  है। जिस ग्रह से सम्बन्धित अपराध हम पिछले जन्म में करते हैं इस जन्म में वही ग्रह प्रतिकूल हो जाता है। इसी प्रकार अच्छा करने से ग्रह अनुकूल होते हैं। बुरे फल की सूचना देने वाले ग्रहों को शान्त  करने के लिए वेदों में मन्त्र लिखे होते हैं जिन्हें जपने से संकट का वेग कम हो जाता है किन्तु नष्ट नहीं होता अपितु कम होकर  लम्बे समय तक किस्तों की तरह चलता रहता  है। क्योंकि गीता में लिखा है ‘‘अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्’’ अपने किए हुए शुभाशुभ कर्म अवश्य  भोगने पड़ते हैं।
    अब आप स्वयं सोचिए कौवे-कुत्ते, चींटी-चमगादड़  गोबर कोयला, आदि आपका भाग्य कैसे सँभाल सकते हैं? जहाँ तक दान की बात है दान तो शास्त्र सम्मत है। दान पाने वाले का लाभ होता है जिसको लाभ होता है वह आशीर्वाद देता है। उससे पुण्य का निर्माण होता है। जो आड़े-तिरछे समय में रक्षा कर लेता है। कई बार एक गाड़ी का एक्सीडेंट होता है। कुछ लोग बच जाते हैं कुछ मर जाते हैं। यह पुण्यों का ही खेल है । क्योंकि जहाँ आपका वश  नहीं चलता वहाँ भी पुण्यों की पहुँच होती है।कई बार लोग कोढियों या विकलांगों को जो धन देते हैं वह दान न होकर सहयोग होता है।दान हमेशा अपने से श्रेष्ठ एवं सुखी को दिया जाता है।जहाँ तक बात नग-नगीनों की है। यद्यपि ज्योतिष  के ग्रन्थों में ग्रहों की मणियों का वर्णन मिलता है, किन्तु इन्हें धारण करने से भाग्य लाभ में क्या सहयोग मिलता है?यह स्पष्ट नहीं है। वेद में इस विषय में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता। इतना अवश्य है कि आयुर्वेद स्वीकार करता है कि जिस रोग के लिए जो औषधि आयुर्वेद में कही गई है उसे पहनने से, उसे दवा के रूप में खाने से एवं उसकी भस्मादि का हवन करने से रोगों से मुक्ति मिलती है। कम से कम भाग्य की दृष्टि से तो इतना उतना स्पष्ट प्रभाव नहीं दीख पड़ता जितना मन्त्रों का है। मन्त्र जप तथा देवता की आराधना का अत्यन्त फल होता है। यह सर्व विदित,तर्क संगत एवं स्पष्ट है। वैदिक विधा में तो ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए उनका वेद मंत्र जपना ही एकमात्र विकल्प है।
     उपर्युक्त ऐसे लोगों में भ्रम का कारण समाज में एक बड़ा वर्ग है जिसका कोई सदाचरण नहीं मिलता, यह वर्ग अध्ययन, साधना आदि योग्यता से विहीन है। इनमें केवल नकल करने की कला होती है। ऐसे कलाकार ज्योतिष वेत्ताओं की तरह अपना रंग रूप सजा कर उन्हीं की देखी सुनी कही भाषा तथा वेष भूषा की नकल करने लगे हैं। ऐसे लोगों ने न कुछ पढ़ा है न किसी के शिष्य हैं न ज्योतिष की कोई किताब देखी है। उसका भी कारण है कि ज्योतिष ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हैं वो इन्हें आती नहीं है।इसी लिए ये बेचारे दो चार शब्द इंग्लिश के तो अपनी बातों में बोल जाएँगे संस्कृत बोलने में जबान नहीं लौटती है बात-बात में कहते हैं कि मैंने ज्योतिष में के तो  रिसर्च की है। जो संस्कृत पढ़ा ही नहीं वो ज्योतिष में रिसर्च क्या करेगा खाक?संस्कृत न जानने के कारण ही इनके बताए हुए मंत्र भी आधार हीन, प्रमाण विहीन अत्यंत ऊटपटांग बकवास होते हैं। शब्द को शबद  कहते हैं मंत्रों की इनसे आशा ही क्यों?

कुंडली बनाना नहीं सीखा इसलिए कम्प्यूटर रख लिया। वेद मन्त्र पढ़ना नहीं आता इसलिए कुत्ते पूजना अर्थात इनके उपाय सिखाते हैं। क्या यही  रिसर्च कही जाती है?

    बड़े भाग्य से मिले सुर दुर्लभ मानव जीवन का भाग्य कौआ, कुत्ता, चीटी-चमगादड़ों में  ढूँढ़ना सिखा रहे हैं। ये कागजी शेर धन बल से विज्ञापनों में छाए हुए हैं।ढोंगी जोगी की तरह ये तब तक फूलते फलते रहेंगे जब तक सरकार से पंगा नहीं लेते। समाज इनसे छला जा रहा है पवित्र ज्योतिष शास्त्र को अंध विश्वास कहा जा रहा है।आखिर ये अन्याय क्यों ? ऐसे कलाकारों और ज्योतिष के विद्वानों में उतना ही अन्तर है जितना चमड़ा सिलने वाले मोची और हार्ट सर्जन में है। काटना सिलना तो दोनों जानते हैं किन्तु प्राण रक्षा तो कुशल सर्जन की हर सकता है मोची नहीं। सर्जन और मोची का अन्तर तो समाज को स्वयं ही करना होगा।

     ऐसे वायरस डेंगू मच्छर की तरह हर क्षेत्र में सक्रिय हैं। डेंगू मच्छर मैंने इसलिए कहा जैसे ये मच्छर साफ पानी में ही पाए जाते हैं। उसी प्रकार ऐसे पाखण्डी लोग धार्मिक गतिविधियों के आस-पास ही पाए जाते हैं। जैसे गंदगी के मच्छरों की अपेक्षा डेंगू मच्छर अधिक घातक होते हैं। उसी प्रकार आतंकवाद आदि अपराधों से जुड़े लोगों की अपेक्षा धार्मिक मिस गाइड करने वाले लोग अधिक घातक होते हैं।
    जैसे नकली घी में असली घी से अधिक सुगंध होती है उसी प्रकार ये लोग विद्वानों की अपेक्षा ज्यादा अच्छा वेष धारण करते हैं। भड़काऊ वेष-भूषा, गाना बजाना, महँगे विज्ञापनों के माध्यम से बड़े-बड़े दावे करना आदि इन डेंगुओं के लक्षण हैं। इनके चेहरे से, गाने-बजाने, बोली भाषा से कहीं ज्ञान वैराग्य नहीं झलकते लेकिन ये लोग कहीं तो भागवत बाँच रहे हैं, कहीं ज्योतिष और उपाय बता रहे हैं, कहीं मन्त्रदीक्षा दे रहे हैं। कहीं अपने को ब्रह्म ज्ञानी सिद्ध करने में लगे हैं। कोई कोई अपने को योगी या सिद्ध कह रहा है। जो योग क्रियाएँ एकान्त में जंगल में एवं ब्रह्मचारियों के द्वारा ही करने योग्य कही गई हैं वे ही चैनलों पर देखने को मिलेंगी ये कल्पना ही नहीं करनी चाहिए लेकिन इस युग में पैसे देकर मीडिया में कुछ भी बोला जा सकता है। मीडिया से अपने विषय में कुछ भी बुलवाया जा सकता है। ये कलियुग है सब कुछ चलता है।
    सत्संगों के नाम पर जितनी बड़ी-बड़ी रैलियाँ आज हो रही हैं। उनका यदि थोड़ा भी असर होता तो कन्या भ्रूण-हत्या, देहज के लिए हत्या, धन के लिए हत्या, जहरीले कैमिकल मिलाकर दूषित किए जा रहे फल आदि अन्य भोज्य पदार्थ, अपहरण, बलात्कार, आदि की दुर्घटनाओं में कुछ तो कमी आती, किन्तु ये  कलाकार बोलकर अपना समय पास करते हैं तो समाज सुनकर। लेकिन धर्म-कर्म को न तो ये लोग मानते हैं और ही सुनने वाले मानते हैं। दोनों ही दोनों को समझ रहे हैं। लेकिन दोनों के दोनों ने किसी जन्म के पापों के कारण एक दूसरे के साथ समझौता किया   हुआ है।
       ऐसी विषम परिस्थितियों  में धर्म का ही एकमात्र सहारा बचता है वो भी आज दूषित किया जा रहा है अब समाज किसकी ओर देखे ?


ज्योतिष विज्ञान का परिचय एवं प्रभाव जानिए copy

           ज्योतिष विज्ञान की प्रभाव शैली !

    ज्योतिष विज्ञान है इसे बिना किसी अहंकार के कई क्षेत्रों में सिद्ध किया जा सकता है !इसका लाभ  शारीरिक दृष्टि से ,पारिवारिक दृष्टि से ,व्यापारिक दृष्टि से ,सामाजिक दृष्टि से एवं प्राकृतिक दृष्टि से उठाया जा सकता है !इसलिए प्रबुद्ध समाज से मेरा निवेदन मात्र इतना है कि भविष्य का ज्ञान करने वाली कोई और विधा जब  तक विकसित नहीं कर ली जाती है तब तक ज्योतिष पर विश्वास कर लेने में क्या बुराई भी क्या है !

       ज्योतिष  एक बहुत बडा विज्ञान है।हर क्षेत्र में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।आकाश  के वर्षा  आँधीतूफान से लेकर पाताल की परिस्थितियों का वर्णन,सामाजिक विप्लव से लेकर सामाजिक महामारी आदि का भी इससे पता लगाया जा सकता है।व्यक्ति गत जीवन से जुड़ी छोटी से लेकर बड़ी से बड़ी तक सभी बातों से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी,बीमारी तथा भविष्य में होने वाली बीमारियों का भी ज्योतिष  से पता लगाया जा सकता है।

       प्राचीन भारत में आखिर लोग कैसे रहते थे? उस समय में मौसम की जानकारी कैसे की जाती थी आज इस पर कोई काम नहीं किया जा रहा है।उस समय न केवल वायुमंडल के अध्ययन का सूक्ष्म अनुभव था अपितु उस अनुभव को सूत्रों में बॉंधकर उन्हें सिद्धांत रूप दे देना ये बहुत बड़ा काम था।
      जैसे उन्होंने कहा कि शुक्रवार को यदि बादल आकाश  में दिखाई पड़ जाएँ  और वो शनिवार को भी बने रहें तो समझ लेना चाहिए कि पानी जरूर बरसेगा।
       यदि पूरब दिशा  में बिजली चमकती हो और उत्तरदिशा  में हवा चलने लगे तो समझ लेना  चाहिए कि वर्षा अवश्य  होगी।
       इसी प्रकार वायुमंडल के अध्ययन के और बहुत सारे सूक्ष्म अनुभव हैं जिनसे यह पता चलता है कि इस सप्ताह ,महीने या वर्ष में कहॉं कितना पानी बरसेगा।आँधी,तूफान,ओले,पाला,कोहरा,ठंड,गर्मीआदि कब कहॉं और कितनी पड़ेगी?
      किस वर्ष  कौन फसल कितनी होगी ? कौन फसल प्रकृति के प्रकोप के कारण कितनी मारी जाएगी इसका भी आकलन इसी वायुमंडल से कर पाना संभव है।
      वायुमंडल में किस तरह का वातावरण बनने पर  किस प्रकार की बीमारी या महामारी आदि फैलने की संभावना बन सकती है इसके भी काफी मजबूत सूत्र प्राचीन विज्ञान में मिलते हैं।
       आयुर्वेद में इस प्रकार के प्राचीन  वैज्ञानिक विवेचन का स्पष्ट विवरण है। वहॉं एक प्रसंग में स्पष्ट रूप से  समझाया गया है कि कोई महामारी या सामूहिक बीमारी फैलने से पहले वायु मंडल में एक अजीब सा परिवर्तन आ जाता है जैसे जिसप्रकार की बीमारी होनी होती है उसे रोकने में सक्षम जो बनौषधियॉं अर्थात जंगली जड़ी बूटियॉं होती थीं सबसे पहले वो या तो सूखने लगती थीं या उनमें कोई कीड़ा लग जाता था या किसी अन्य प्रकार से वे नष्ट  होने लगती थीं। इस प्रकार का प्राकृतिक उत्पात जहॉं जहॉं दिखाई पड़ता था वहॉं वहॉं उस प्रकार की बीमारी या महामारी होने या बढ़ने की संभावना विशेष होती है।इन  बनौषधियों में बीमारी रोकने का जो विशेष गुण होता है। वह बीमारी पैदा होने से पहले ही नष्ट  हो जाता है। इस दुष्प्रभाव से ही महामारी फैलने पर वह दवा लाभ नहीं करने लगती है।
       अतएव बनस्पतियों में परिवर्तन आता देखकर उस युग के कुशल स्वास्थ्य वैज्ञानिक बड़ी मात्रा में बनौषधियों का संग्रह कर लेते थे।जहॉं की बनौषधियॉं रोगी न हुई हों वहॉं की तथा बीमारी से पूर्व संग्रह की गई औषधियॉं उस बीमारी से निपटने में  पूर्णतः सक्षम होती थीं। उन्हीं के बल पर उस युग के कुशल स्वास्थ्य वैज्ञानिक उन महामारियों पर विजय पा लिया करते थे।
 

स्वास्थ्य-

आयुर्वेद आत्मा ,मन और शरीर इन तीन रूपों में स्वास्थ्य को देखता है।इस शरीर से जन्म जन्मांतर के कर्म संबंधों को स्वीकार करता है अच्छी बुरी परिस्थिति भी जीवन में हमें इसी कारण भोगनी पड़ती है।बड़ी एवं लंबे समय तक चलने वाली स्वास्थ्य संबंधी परेशानियॉं भी इसी प्रकार घटित होती हैं।ऐसी परिस्थितियों में पहली बात बीमारियों का पता लगा पाना कठिन होता है और यदि पता लग भी जाए तो उन पर दवा असर नहीं करती या बहुत देर से करती है।यहॉ कुशल ज्योतिषी परिश्रम पूर्वक कारण और निवारण दोनों ढूँढ़ सकता है जिसका पालन करने के बाद दवा का प्रभाव होना प्रारंभ होगा।
      आयुर्वेद और ज्योतिष  भूत प्रेत दोष  भी मानता है इसी लिए आयुर्वेद के कई ग्रंथों में भूत प्रेत हटाने के मंत्र भी मिलते हैं।चूँकि ये हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति है इसलिए इसे भूल जाना भी उचित नहीं होगा।कुछ परिस्थितियॉं ऐसी पैदा हो जाती हैं जब कोई व्यक्ति भ्रमित हो जाता है ऐसे में उसे यह बात समझ में नहीं आती है कि वह व्यक्ति क्या करे कहॉं जाए?जो चिकित्सा क्षेत्र की तरह पारदर्शी एवं जवाब देय हो।

  उदाहरण- 

जैसे किसी की जन्मपत्री में शनि और राहु की परस्पर दशा अंतर दशा  हो कुंडली में कष्ट प्रद स्थलों में शनि और राहु के होने के कारण उस व्यक्ति के पेट में  लंबे समय से दर्द चल रहा है। दवा फायदा नहीं कर रही है तो ज्योतिषी  उसे शनि राहु का मंत्र जप बताएगा तांत्रिक उसे भूत प्रेत दोष बताएगा और चिकित्सक बीमारी बताएगा और तीनों ठीक करने का दावा ठोंक रहे होते हैं अब वो व्यक्ति किस पर विश्वास करे?यद्यपि धनवान लोग तो ज्योतिषी ,तांत्रिक और चिकित्सक तीनों के बताए उपाय कर लेंगे किंतु गरीब आदमी कहॉं जाए?
     यदि वो किसी तांत्रिक के पास जाए तो वो कितने बहम डालेगा कितना लूटेगा क्या करेगा कुछ पता नहीं वो पढ़ा लिखा अर्थात इन विद्याओं को जानता भी है कि नहीं उसे कैसे पता चले ?यही स्थिति ज्योतिष  में भी होती है।वो जिसके पास भी जाएगा वो हो सकता है कि पहले वाले से ज्यादा पैसे मॉंगे और ज्यादा बहम डाले अब उसके पास चिकित्सा की तरह  पारदर्शिता रखने वाला जवाबदेय कोई दूसरा विकल्प नहीं है।चिकित्सा में एक एक बीमारी के कई कई छोटे बड़े डाक्टर एवं एक से बढ़कर एक अस्पताल मिल जाते हैं वो कानूनी दृष्टि से भी जवाबदेय होते हैं किंतु ज्योतिष  और तंत्र के क्षेत्र में इस प्रकार की सुविधा नहीं पाई जाती है। आज की तो ये हालत है कि जिसे जो मन आवे सो बके,जिससे जितने पैसे चाहे लूटे,अपने नाम के साथ जो चाहे सो डिग्री लगावे,और अपनी प्रशंसा में जितना चाहे झूठ बोले या किसी ओर से बोलवावे। 
    इसीलिए ऐसे समय हमारा संस्थान न केवल यह निर्णय करके देगा कि उस रोगी की बीमारी ज्योतिषी,तांत्रिक और चिकित्सक किससे ठीक होगी अपितु शास्त्रीय एवं कानूनी पारदर्शिता रखते हुए उसे शास्त्रीय ज्योतिषी एवं शास्त्रीय तांत्रिक उचित खर्च में उपलब्ध करा दिए जाएँगे जिन्हें समाज के प्रति विश्वसनीय व्यवहार के लिए बाध्य किया जाएगा।

  धर्मशास्त्र-

हमारी सनातन संस्कृति अत्यंत प्राचीन है यहॉं जन्म से मृत्यु तक हर कुछ कैसे कैसे करना है। ये सब पहले ही लिखकर रख दिया गया है उसी के अनुशार हमारे सारे संस्कार एवं तिथि त्योहार आदि मनाए जाते हैं।आज आज शास्त्रीय घुसपैठियों के कारण विद्वानों की शिक्षा का उचित सम्मान न होने से उनकी शास्त्रों से रुचि घट रही है प्रायः पंडित पुजारी तो पढ़ना ही नहीं चाहते हैं वे बड़े बड़े कठिन ग्रंथ। उनका काम विवाह पद्धति,गरुड़पुराण,सत्यनारायण व्रतकथा और पंचांग इन चार किताबों से चल जा रहा है वो क्यों पढ़ें धर्मशास्त्र के भारी भरकम ग्रंथ ?
      इन विषयों के जो वास्तविक विद्वान हैं एक तो उनकी संख्या बहुत कम है दूसरे उनकी इस विशेषज्ञता के विषय में समाज को समझावे कौन?ऐसे विद्वानों से संपर्क करके और उनके धर्मशास्त्रीय ज्ञान का समाजहित में प्रचार प्रसार करने के लिए संस्थान प्रयास रत है।जिससे आम आदमी उनके धर्मशास्त्रीय ज्ञान का लाभ ले सकेगा।
  वेद, पुराण, उपनिषद,योग,रामायण,वास्तु,हस्तरेखा आदि जो भी प्राचीन विद्याओं से संबंधित प्रश्न  हैं उनके उत्तर देने के लिए व्यवस्था की गई है। ऐसे सभी बड़े ग्रंथों को अपने पास रखना या पढ़ पाना या पढ़कर समझ पाना आम आदमी के लिए संभव नहीं हो पाता है वह विद्वान कहॉं ढूँढ़े? ऐसे में उसे जो कुछ गलत सही पता है वही बकने बोलने लगता है। ऐसे लोगों के लिए भी संस्थान की ओर व्यवस्था की गई है।ऐसे लोगों बहुत महॅंगे एवं भारी भरकम ग्रंथ रखने खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ती है वो संस्थान के नंबरों पर फोन करके मॉंग सकते हैं संबंधित बिषय की जानकारी ।
      इस प्रकार से और भी धर्म से जुड़े प्रश्न जो भी उचित लगें उनका डाक या फैक्स द्वारा भी लिखित और प्रमाणित उत्तर प्राप्त कर सकते हैं।इन सभी कार्यों के लिए वार्षिक, मासिक,आजीवन आदि संस्थान संचालनार्थ सदस्यता शुल्क रखा गया  है। कुंडली , वास्तु आदि निजी जीवन से जुड़ी जानकारी मॉंगने पर उसकी सदस्यता शुल्क सामान्य प्रश्नों की अपेक्षा अधिक जमा करनी होती है। आप कभी भी संस्थान के नंबरों पर फोन करके संपर्क कर सकते हैं।                    

     ज्योतिष कहाँ कितना सच हो  सकता है ?

     ( अंक विद्या,क्रिस्टल, प्लेइंग कार्ड,शकुन अपशकुन,दो दो त्योहार होने लगे,ज्योतिष और मौसम!)

   ज्योतिष शब्द का अर्थ ही ज्योति अर्थात् नक्षत्रों ग्रहों की किरणों के प्रकाश से संबंधित है। इसी का या इसके भले बुरे प्रभाव का ज्ञान कराने की विद्या ही ज्योतिष शास्त्र है। वास्तु, शकुन, अपशकुन प्रश्न फल आदि प्राचीन ऋषियों के अनंत अनुभव आदि हैं, जो परंपरा से प्राप्त अक्सर सही एवं सटीक होते देखे गए हैं। 

अंक विद्या

 जहाँ तक अंक विद्या की बात है ये ग्रह ज्योतिष से जुड़ी हुई विद्या है। 9 ग्रह तथा 9 ही अंक होते हैं। इन्हीं का आपस में ताल मेल बैठाकर बिना पढ़े लिखे लोगों द्वारा कुछ तीर तुक्के लगाए जाते हैं जो कभी-कभी सच लगने लगते हैं, किन्तु ग्रहों का स्वरूप, स्वभाव, दृष्टि, दशा आदि  का वृहद् विवेचन तो ज्योतिष शास्त्र से ही किया जा सकता है । इसके अलावा भविष्य जानने की सारी विद्याएँ अधूरी, अज्ञानजन्य, तीर-तुक्के या बकवास हैं । बाकी फिर भी देखी सुनी जा सकती हैं।
    बकवासः 

 लाल, काली, पीली नीली हरी गुलाबी किताब आदि नाम से  किसी प्रमाणित पुस्तक का जिक्र तक ज्योतिष शास्त्र के किसी भी ग्रंथ में नहीं मिलता । विश्वविद्यालयों के ज्योतिष शास्त्रीय पाठ्यक्रम में भी ऐसी कलर फुल किताबें  नहीं सम्मिलित की गई हैं। विद्वानों की वाणी से भी कभी ऐसी किसी पुस्तक का नाम नहीं सुना गया है।कुछ बिना पढ़े लिखे लोगों द्वारा अप्रमाणित बात को प्रमाणित सिद्ध करने के लिए ऐसी कलर वाली किताबें काम में लाई जाती हैं ।ऐसी लाल पीली किताबों  की जानकारी एवं उपाय भी तर्क संगत नहीं होते हैं। 

                         क्रिस्टल, प्लेइंग कार्ड

 आदि की विधाएँ भी कुछ ऐसी ही हैं। संकेत साफ ही है निर्णय आप स्वयं लें ज्योतिर्विद होने के नाते मैं इतना अवश्य कह सकता हूँ कि ये सब विधाएँ न तो ज्योतिष हैं और न ही ज्योतिष से संबंधित।
   
शकुन अपशकुनः 

 बिल्ली के रास्ता काट देने से अशुभ नहीं होता अपितु  अशुभ होना होता है तब बिल्ली रास्ता काटती है। इस प्रकार हर शकुन अपशकुन को केवल सूचक अर्थात् अच्छे बुरे की सूचना देने वाला मानना चाहिए। इसी प्रकार शरीर के विभिन्न अंगों के फड़कने का फल, स्वप्न का फल, पशु-पक्षियों की बोली एवं चेष्टा (आचरण) आदि का फल जानना चाहिए। 

    दो दो त्योहार होने लगेः 

      योग्य और अयोग्य लोगों के द्वारा बनाए गए पंचांग जब दो प्रकार के हो सकते हैं तो त्योहार दो  दिन क्यों नहीं होंगे? ज्योतिष विद्वान और ज्योतिष कलाकर दोनों की जानकारी में अंतर होने के कारण तिथि-त्योहारों में भी अंतर आना स्वाभाविक है। दो दिन होली, दो दिन दिवाली आदि सब त्योहार दो दो दिन होने लगे।
2. ज्योतिष और मौसमः 

ज्योतिष के द्वारा वर्षा, शर्दी, गर्मी, पाला, कोहरा आदि का सटीक अनुमान  लगाया जा सकता है। केवल ग्रहयोगों से आने वाले भूकंपों के बारे में  भविष्यवाणी करने का ज्योतिषशास्त्र  को अधिकार मात्र 25 प्रतिशत ही है। देवताओं के कोप से,वायु के टकराने से,जमीन के अंदर की हलचल से भी भूकंप आते  हैं। जिनकी भविष्यवाणी ज्योतिष से नहीं की  जा सकती। 3. ज्योतिष और राजनीतिः 

ज्योतिष के द्वारा राजनैतिक भविष्यवाणी करना कठिन ही नहीं असंभव भी है। कौन प्रधानमंत्री बनेगा, कौन नहीं बनेगा, कौन चुनाव जीतेगा कौन नहीं जीतेगा आदि।

         इसी प्रकार खेलों के विषय में भी भविष्यवाणी करना असंभव होता है। जो ज्योतिष कलाकार करते रहते हैं उसे मनोरंजन मानकर सुनना चाहिए।
4. ज्योतिष शास्त्र का स्वास्थ्य के साथ गहरा संबंध होने के कारण जन्मपत्री देखकर इस विषय में बहुत कुछ पता लगाया जा सकता है ।
5. ज्योतिष के द्वारा विदेश यात्रा करने की भविष्यवाणी करना तर्क संगत नहीं है क्योंकि पहले पाकिस्तान स्वदेश था आज विदेश है। वैसे ग्रहों के लिए विशाल भूमंडल तिनके के समान है उसमें स्वदेश और विदेश का क्या महत्त्व?
ऐसे अनेकों प्रश्नों शंकाओं के समाधान के लिए आप कर सकते हैं हमारे संस्थान में संपर्क जहाँ मिलेगी आपको सही जानकारी और ले सकेंगे आप शास्त्रों का लाभ ।  

 ज्योतिष सेवा सुविधा की आवश्यक शर्तें !http://snvajpayee.blogspot.in/2014/04/blog-post_12.html

     नाम के पहले अक्षर के ज्योतिषीय प्रभाव से बर्बाद हुए कितने लोग, परिवार ,संगठन और पार्टियाँ !http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/04/blog-post_12.html

  


 

Saturday, 12 April 2014

ज्योतिष एवं ज्योतिष वैज्ञानिकों की पहचान !

       ज्योतिष वैज्ञानिकों को पहचाना कैसे जाए !

     कुछ उच्च कोटि के विद्वान ज्योतिषियों के विचारों एवं अनुभवों पर आधारित निम्न लिखित प्रश्नोत्तर हैं उनकी पीड़ा ही समाज के सामने रखने का प्रयास किया जा रहा है उनके प्रति लोगों के उदासीनता एवं दरिद्रता पूर्ण व्यवहार ने गंभीर ज्योतिष वैज्ञानिकों को अपने विषय में भी सोचने पर मजबूर कर दिया है जिसके  दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं आज परिवार बिखर रहे हैं संस्कार नष्ट हो रहे हैं वैवाहिक सम्बन्ध टूट रहे हैं।प्राकृतिक आपदाओं की सूचना समय से पहले नहीं मिल पा रही है उत्तराखंड जैसी आपदाएँ इसका ही परिणाम हैं आदि आदि! 

प्रश्न -क्या ज्योतिष एक विज्ञान है ?

उत्तर-जिस  ज्ञान से मुहूर्त, वास्तु ,वर्षा,बाढ़ ,सूखा, बीमारी, महामारी, आकाश, पाताल, आदि से सम्बंधित भूत,  भविष्य एवं वर्त्तमान काल के विषयों की जानकारी मिलती हो वह शास्त्र विज्ञान ही  हो सकता है। इसके अलावा भविष्य सम्बन्धी  जानकारी देने   वाला कोई दूसरा शास्त्र या आधुनिक विज्ञान में कुछ और हो भी नहीं सकता है और न है ही विज्ञान ने भविष्य जानने के लिए अभी तक किसी नई विधा का अन्वेषण ही किया है! 

प्रश्न-क्या ज्योतिषी को वैज्ञानिक मानाजानाचाहिए ?

उत्तर-अवश्य,जो विद्वान् आकाश,पाताल, आदि से सम्बंधित भूत, भविष्य एवं वर्त्तमान काल के विषयों की खोज  बिना किसी लौकिक पदार्थ के कर लेता हो वो वैज्ञानिक ही हो सकता है उसे सामान्य पंडित पुजारी समझने की भूल करने वाले लोग उसकी विद्या का लाभ कभी नहीं ले पाते हैं। 

प्रश्न-सामान्य पंडित पुजारियों और ज्योतिष वैज्ञानिकों में अंतर क्या होता है?

उत्तर- जिसने कुछ पढ़ा लिखा ही न हो अपितु केवल पंडितों जैसी वेष भूषा बनाकर अपने बच्चों का भरण पोषण करता हो ऐसे स्वरूपतः ब्राह्मणों से या मंदिरों के पुजारियों से ज्योतिष जैसे गंभीर विषय में किसी सच्चाई की आशा ही क्यों करनी ?जहाँ तक ज्योतिष वैज्ञानिकों की  बात है वो किन्हीं प्रमाणित सरकारी विश्व विद्यालयों से ज्योतिष का  कोर्स करके उच्च डिग्रियाँ लेते हैं।ऐसे प्रबुद्ध लोग ही वास्तव में ज्योतिष पर यथार्थ वक्तव्य दे सकते हैं। बाकी जो जैसे लोगों के पास पूछने जाएगा उसके साथ वैसा व्यवहार  होगा इसके लिए ज्योतिष शास्त्र  को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए।

प्रश्न-क्या कारण है कि सौ प्रतिशत सच मानी जाने वाली भविष्य वाणियाँ गलत हो रही हैं ? 

उत्तर- आज कुछ घुस पैठियों ने ज्योतिष जैसे गंभीर विषय को घायल कर रखा है जिनके जवाबों का सामना ज्योतिष वैज्ञानिकों को करना पड़ रहा है!कुछ लोग ऐसे भी हैं जो ज्योतिष पढ़ तो नहीं पाए किन्तु चंचल, चापलूस, चाटुकार, शर्महीन,झूठे एवं नकलची होने के कारण न केवल ज्योतिषियों जैसी बातें करने लगे अपितु अपनी हर भविष्य वाणी की गारंटी लेने लगे,इसी प्रकार हर किसी के काम होने की गारंटी लेने लगे,ऐसी थोथी गारंटियों का भाड़े के प्रशंसा कर्मियों  से पैसे दे दे कर प्रचार प्रसार करवाने लगे पैसे के बल पर ही टी.वी.चैनलों तक पहुँचने लगे किन्तु था ये सब कुछ झूठ !इन लोगों का मानना होता है कि यदि हम सौ लोगों  की भविष्य वाणी गारंटी पूर्वक करेंगे तो दस बीस जितने पर भी सही हो जाएगी वो न केवल पैसे देंगे अपितु प्रचार प्रसार भी करते घूमेंगे बाकी लोग भाग जाएँ तो जाने दो नए आ जाएँगे! बंधुवर, ये सब तो ठीक है किन्तु जिनके विषय में इनका तुक्का सही लगा होता है वो सबसे अधिक खतरे से खेल रहे होते हैं!इन्हें सँभलना चाहिए।वैसे ऐसे भविष्य भौंकने वाले लोग न कुछ पढ़ते हैं और न ही पढ़ना चाहते हैं या जो लोग पढ़े लिखे हैं भी वे ज्योतिष नहीं पढ़े होते  हैं,कोई बैंक में काम करता है कोई रेलवे में ये बेचारे सरकारी कर्मचारी होने के कारण आफिस में काम करते नहीं हैं तो घर में ही ज्योतिष नाम का झूठ बोलने लगते हैं ऐसे लप्फाजों से  ज्योतिष जैसे विज्ञान की आशा ही क्यों रखनी?

     कुछ और लोग भी हैं जो यद्यपि पंडित नहीं होते हैं किन्तु लंगड़े, लूले,काने ,कैंचे,टेढ़े ,मेढ़े अर्थात बिकलांग या धनहीन शराबी कबाबी या किसी और प्रकार के नशा या लत के शिकार जब रोजी रोटी कमाने लायक नहीं रह जाते हैं तब पंडिताई बेचने लगते हैं।ऐसी ही कुछ महिलाएँ भी इस क्षेत्र में कूद पड़ी हैं वो भी बेंच रही हैं ज्योतिष!ऐसे किसी भी व्यक्ति से ज्योतिष या किसी भी प्रकार के ज्ञान विज्ञान की आशा ही क्यों करनी?जिसके विषय में आपको पता ही नहीं है की यह ज्योतिष पढ़ा भी है या नहीं !

पंडित-जो अपने विद्या बल से एवं परिश्रम पूर्वक परिवार पालना चाहते हैं।यह वर्ग पंडितों का होने के कारण थोड़ा थोड़ा काम चलाऊ कुछ पढ़ जाता है और धीरे धीरे कुछ कढ़ जाता है जो हो जीविको पाजर्न विद्या के बल पर करने लगता है । इनकी पढ़ाई की कोई सीमा रेखा यद्यपि नहीं होती है फिर भी ये कम ज्यादा कुछ भी पढ़े हो सकते हैं किन्तु ये बेशर्म,लप्फाज एवं धोखे बाज कम होते हैं जितना जानते हैं उतना ही बोलते हैं।विद्वान होना इनके लिए अनिवार्य नहीं होता है,किन्तु ये लोग सदाचरण का ध्यान रखना चाहते हैं।

    ये लोग स्वाभिमान पूर्वक परिश्रम करके अपने बच्चे पाल लेते  हैं इनके बीबी बच्चे इनके ही आधीन रहते हैं।यद्यपि कई जगह इस वर्ग के लोग भी स्वाभिमान पूर्वक परिश्रम करके पुजारियों का काम भी करते हैं किन्तु पुजारी रहते हुए भी  इनका सम्मान सुरक्षित बना रहता है। इनमें पवित्रता के संस्कार बने रहते हैं । 

 प्रश्न- भ्रष्टाचार के कारण क्या ज्योतिष का भी नुकसान हुआ है?

उत्तर -सामान्य अपराधियों की तरह ज्योतिष के क्षेत्र में भी अपराधियों का बोलबाला है।जहाँ एक दिन बीस मिनट एक टी.वी. चैनल पर झूठी ज्योतिषीय बकवास करने के लिए किसी एक टी.वी. चैनल को दस से बीस हजार रुपए  देने होते हैं। जो लोग एक साथ ही कई कई टेलीविजन चैनलों पर घंटों तक बकवास किया करते हैं और वर्षों से यह सब करते चले आ रहे हैं उनके द्वारा टी.वी. चैनलों को दिया जाने वाला महीने का बिल हो सकता है कि करोड़ों में हो!आखिर यह पैसा कहाँ से आता होगा?खैर जहाँ से भी आता होगा वो साधन पवित्र नहीं होंगे अगर जाँच हो जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा !उस पर भी जिसके पास ज्योतिष की शिक्षा बिलकुल हो ही न और ज्योतिष शिक्षा की डिग्री भी न हो!फिर भी यदि ये कहते हैं कि मैं ज्योतिष जानता हूँ तो अपने को विश्व का नंबर वन ज्योतिषी कहने वाले ये शास्त्रीय लुटेरे उत्तराखंड के इतने बड़े जन संहार से अनजान कैसे बने रहे!और नहीं तो इस घटना को पहले पता लगा लेने  का प्रमाण क्या है और सबूत क्या है ?इसके बिषय में पहले कहा क्या और किया क्या है ?इन सब बातों को सामने रखकर समाज में व्याप्त ज्योतिषीय  भ्रष्टाचार का अनुमान सहज ही लगाया जा  सकता है। यह सबको पता है फिर भी सबकुछ चल रहा है।ऐसे किसी भी व्यक्ति से ज्योतिष या अन्य किसी  प्रकार के ज्ञान विज्ञान की आशा ही क्यों करनी?

ज्योतिष वैज्ञानिक- इन सबसे ऊपर शास्त्रीय एवं संवैधानिक सीमाओं से बँधा हुआ यह वह वर्ग है जो ज्योतिष विद्या के विषय में समाज के प्रति जवाब देय होता है यह वर्ग ज्योतिष विद्या का न केवल सम्पूर्ण रूप से अध्ययन करता है अपितु ज्योतिषीय भ्रष्टाचारियों के कारण पवित्र ज्योतिष विद्या पर होने वाले हमलों को झेलता भी है।इनके लिए ज्योतिष विद्या की सर्वोच्च शिक्षा न केवल अनिवार्य है,अपितु किसी सरकार द्वारा प्रमाणित संस्कृत विश्व विद्यालय से ज्योतिष विषय में एम.ए.पी.एच.डी. जैसी उच्च डिग्रियाँ भी ये लोग हासिल करते हैं।इनके सामने कम पढ़ाई करने  का कोई विकल्प ही नहीं होता है इन्हें न केवल अपने विषय(Subject) की सम्पूर्ण जानकारी रखनी होती है अपितु इसके लिए उसके ही सिद्धांतों के अनुशार चलना भी होता  है। जिस बात का प्रमाण शास्त्र से नहीं दिया जा सकता ऐसी झूठ बात ज्योतिष वैज्ञानिक लोग बोलते  ही नहीं हैं। 

     आजकल कहीं भी सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों में ज्योतिष विषय में एम. ए.,पी .एच. डी.आदि की पढ़ाई एवं परीक्षाएँ होती हैं।जिनकी सर्वोच्च पढ़ाई करके उच्च डिग्री हासिल करने वाले ऐसे विद्वान् लोग ही  ज्योतिष वैज्ञानिक कहलाने के  अधिकारी होते हैं जो डाक्टर इंजीनियरों की तरह ही किसी की श्रृद्धा के गुलाम नहीं होते!

प्रश्न -ऐसे डिग्रीहोल्डर विद्वान ज्योतिष वैज्ञानिकों की भविष्य वाणियाँ क्या पूरी तरह सच होती हैं!

 उत्तर -ऐसा नहीं है सच्चाई यह है कि एक डाक्टर इंजीनियर या बड़े बड़े अफसरों  की पढ़ाई  के परिश्रम से ज्योतिष शिक्षा में इनका परिश्रम किसी भी प्रकार से कम नहीं होता है इसलिए इनके खर्चे भी उसी स्तर के होते हैं और मानसिकता भी वैसी ही होती है।इसलिए जो श्रद्धावान लोग इनके साथ धन खर्चा करने में दरिद्रता नहीं करते हैं  उन्हीं के लिए ही ये परिश्रम भी करते हैं हर किसी के लिए नहीं ! वस्तुतः ये राज ज्योतिषियों की परंपरा या मानसिकता के विद्वान होते हैं !इसका तात्पर्य यह है राजा लोग इनका सम्मान भी वैज्ञानिकों की तरह का ही किया करते थे इसीलिए इनके लिए राजोचित सुख सुविधाएँ जुटाया करते थे अपनी योग्यता का अपेक्षित सम्मान होते देखकर ये शास्त्रीय विद्वान भी इनके लिए अपनी सम्पूर्ण योग्यता का न केवल उपयोग करते थे अपितु भी पूरा करते थे उसके बाद उनके भविष्य भाषण में सत्तर से अस्सी प्रतिशत तक सच्चाई आ ही जाती है !

  प्रश्न - इसका मतलब जो राजा या रईस नहीं है उसका कल्याण ज्योतिष वैज्ञानिकों के पास पहुँच कर भी नहीं हो पाता है ? 

  उत्तर -बिजली कैसी भी हो किन्तु बल्ब जितने बाद का   होता है प्रकाश तो वैसा ही होता है इसी प्रकार से कोई प्यासा व्यक्ति यदि एक लीटर पा पात्र लिए है तो उसे कुएँ से भरेगा तो एक लीटर पानी आएगा और यदि समुद्र से जाकर भरे तो भी एक लीटर पानी ही आएगा ठीक इसीप्रकार से दरिद्र आदमी को विद्वान ज्योतिषी लोग मुख नहीं लगाते हैं और किसी दबाव में लगा भी लें तो भी उनके प्रश्नों के जवाब खोजने के लिए परिश्रम क्यों करेंगे !

  


Tuesday, 8 April 2014

देश समाज एवं प्रमुख राजनेताओं की भविष्यवाणियाँ !

 देश समाज एवं  प्रमुख राजनेताओं  की भविष्यवाणियाँ

                               समाज  सुधा

                               परिवार अमृत

                               सहज चिकित्सा 

                                  शुभ विचार

                          समाज  और   शिष्टाचार              

                     सत्यानाश से संन्यास की ओर

                               भारत और भ्रष्टाचार

                                 नारियों का नेतृत्व

                               बासना और उपासना

                       ज्योतिष का जीवन से सम्बन्ध 

                                जगत और ज्योतिष