अशास्त्रीय साईँ पूजा का समर्थन शास्त्रीय संत कैसे कर सकते हैं !
चूँकि साईं पूजा का प्रमाण धर्म शास्त्रों में नहीं मिलता है अतः
शास्त्र प्रमाणित न होने के कारण साईं पूजा पूर्ण रूप से अशास्त्रीय है और
शास्त्र मान्यताओं के विरुद्ध कोई कार्य शास्त्रीय संत कैसे और किस लोभ में
स्वीकार कर लेंगे ।
सभी साधू संतों को भी कुछ पढ़ा लिखा तो होना ही चाहिए , जिन बाबाओं में कम पढ़े लिखे होने के कारण शास्त्रीय समझ नहीं होती है, या जिन्हें श्री राम और श्री कृष्ण तथा श्री शिव ,श्री दुर्गा ,श्री गणेश जी आदि देवी देवताओं के विषय में शास्त्रीय जानकारी ही नहीं है और इनकी कृपा का एहसास भी नहीं है इनके प्रति श्रद्धा विश्वास नहीं है तथा शिक्षा साधना एवं तपस्या आदि न होने के कारण जिन्हें साईं एवं देवी देवताओं में अंतर नहीं पता है , अज्ञान और अशिक्षा के कारण जिन्हें प्राण प्रतिष्ठा की विधि का ज्ञान नहीं है ऐसे लोग साईंराम, कांशीराम जैसे आम मनुष्यों की मूर्तियों को और भगवानों की मूर्तियों को एक समान समझने लगते हैं जो गलत है । इसी प्रकार से गरीबत के कारण घर छोड़कर अर्थलाभ या लोभ की भावना से सधुअई करने वाले कुछ अकर्मण्य लोग साईंयों के धन दिखाते ही अपना मन बदल लेते हैं और श्री राम छोड़कर साईँराम साईँराम करने लगते हैं धन के कारण सधुअई करने के कारण ऐसे लोग न श्री राम को मानते हैं और न ही साईँराम को ये तो जो धन दे उसी को भगवान मान लेते हैं ! ये तो सधुअई के नाम पर केवल तिलक लगाते हैं जो धन दे उसके नाम का तिलक लगा लेंगे । इसलिए ऐसे लोगों की ढुलमुल बातों को प्रमाण कैसे माना जा सकता है ? ऐसे लोग साईंं का समर्थन भी करने लगें तो क्या इनके कह देने मात्र से शास्त्रीय मर्यादाएँ छोड़ कैसे दी जाएँगी ? शास्त्रों का पालन हर संभव प्रयास करके किया जाएगा
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