कौन छूत है और कौन अछूत ये प्रश्न ही क्यों और कितना प्रासंगिक है ? आज हर कोई होटल में खाता है बाजार का नमकीन बिस्कुट खाता है पार्टियों में हलवाई खाना बनाते हैं कोई उनकी जाति पूछकर खाना खाता है क्या !
दूसरी बात किसी को अछूत कहकर अपमान किया गया हो या किसी महिला का शीलहरण किया गया हो इनका परिमार्जन आरक्षण एवं धन से हो ही नहीं सकता है फिर आरक्षण क्यों !
जो आपके साथ जैसा व्यवहार कर रहा है आप उसके साथ वैसा ही व्यवहार कीजिए जो आपको अछूत मानता है आप भी उसे अछूत मानिए मत खाइए उसका छुआ हुआ किन्तु उसके बदले में आरक्षण माँग या लेकर आप अपने अपमान को हल्का मत बनाइए !आखिर इसमें आरक्षण किस बात का ?
कोई आपके यहाँ अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहता है तो आप अपनी बेटी उसके यहाँ देने के लिए लालायित क्यों हैं आप भी मत दीजिए उसे अपनी बेटी आखिर आपका भी अपना स्वाभिमान होना चाहिए ! किन्तु उसके बदले में आपको आरक्षण क्यों चाहिए !
आपको लगता है कि आपको वेद नहीं पढ़ने दिए गए इसलिए आप गरीब हो गए तो आप वेद पढ़िए कौन रोक रहा है आपको किन्तु इसमें आरक्षण किस बात का ?
बंधुओ ! किसी भी अपमान का सौदा नहीं किया जा सकता है किसी सम्मानित महिला का शील हरण हो जाए तो वह अपने अपमान का बदला लेना चाहेगी न कि उसके बदले में धन क्योंकि सम्मान की पूर्ति धन से कभी नहीं हो सकती ।
इसलिए प्रश्न ये नहीं होना चाहिए कि आपको कोई क्या मानता है अपितु प्रश्न ये होना चाहिए कि आप अपने को क्या मानते हो यदि आप अपने को अछूत नहीं मानते तो दूसरा कोई आप को अछूत कैसे मान सकता है उसकी अवकात क्या है कि आपकी स्थिति का मूल्यांकन कोई और करे !
हर परिस्थिति में अपना सम्मान हमें स्वयं ही बनाना पड़ता है कि हम हैं क्या इसके बाद हमारी शर्तों पर किसी को हमसे जुड़ना है तो जुड़े नहीं जुड़ना है तो मत जुड़े और जब अपना कमाना अपना खाना तो परवाह किसी और की करी भी क्यों जाए !
सवर्ण लोग ऐसा ही कर रहे हैं किन्तु जो लोग ऐसा नहीं कर रहे हैं वो भोग रहे हैं सामाजिक अपमान ! राजनैतिक दलों और लोगों ने अच्छे भले स्वस्थ एवं परिश्रमी वर्ग को आरक्षण के नाम पर सरकारी भिखारी सिद्ध कर रखा है ! दलितों के साथ अपाहिजों सा व्यवहार किया जा रहा है आज और आश्चर्य इस बात का है कि दलित लोग उनका साथ देते जा रहे हैं उन्हें जहाँ स्वाभिमान करना चाहिए वहाँ तो कर नहीं पाते हैं और सवर्णों को अपना शत्रु समझते रहते हैं !आरक्षण देने की बात करने वाले नेताओं को मुख क्यों लगाते हैं इन्हें दरवाजे से फटकार लगाकर भगा क्यों नहीं देते ! साफ साफ क्यों नहीं कह देते हैं कि यदि गरीब सवर्ण लोग संघर्ष और परिश्रम करके अपनी तरक्की कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते !
हमारे दलित बंधुओं में जब तक इसप्रकार का स्वाभिमान नहीं जगेगा तब तक कोई किसी को अछूत कहे तो कहे ये शब्द तो एक गाली है और गालियों पर देश में प्रतिबन्ध तो है नहीं यदि होता तो कोई किसी को क्यों दे रहा होता गालियाँ !इसलिए इसके मूलकारणों पर जाना बहुत आवश्यक है ।
एक दलित डॉक्टर साहब सर्जन थे उन्होंने अपने विषय में बताया कि हम आरक्षण से आए हैं योग्यता से नहीं इसलिए सवर्ण लोगों की कौन कहे दलित लोग भी हमसे आपरेशन नहीं करवाना चाहते हैं जबकि वो योग्य थे उन जैसों की पीड़ा का क्या समाधान है नेताओं के पास !आज कोई अछूत कह दे तो उसके पीछे पड़ जाओ कल कोई किसी दलित सर्जन से आपरेशन न करवावे उसके पीछे पड़ जाओ क्या कानून बश इतने लिए ही है अपनी कुछ जिम्मेदारियाँ हमें स्वयं भी उठानी चाहिए इस लोकतंत्र में सबको समान अधिकार हैं इसलिए आरक्षण का लोभ अलोकतांत्रिक है ये लोगों के पारस्परिक व्यवहार में भेदभाव उत्पन्न करता है !अतः इसे बंद किया जाना चाहिए ।
किसी भी जाति क्षेत्र धर्म वर्ग आदि के लोग हों यदि वो स्वस्थ हैं सहज हैं परिश्रम कर सकते हैं व्यापार कर सकते हैं तो उन्हें आरक्षण किस बात का !अजीब सी अंधेर है ये कि आप मंत्री बन जाएँ तो भी आरक्षण और कोई अछूत कह दे तो पिनक लगती है आखिर क्यों ?कोई तो सिद्धांत बनाकर चलना ही होगा !
इसी प्रकार से जो सुविधाएँ किसी और को मिल रही हैं वही दलितों को मिल रही हैं जो काम कोई और कर सकता है वही दलित कर सकते हैं जो व्यापार कोई और कर सकता है वही दलित कर सकते हैं राजनीति कोई और कर सकता है तो दलित भी कर सकते हैं अपने परिश्रम के बलपर बड़े से बड़े पदों पर कोई और पहुँच सकता है तो दलित भी पहुँच सकते हैं बड़ा से बड़ा व्यापार दलित भी कर सकते हैं फिर एक देश में रहने वाले एक जैसी परिस्थिति के सभी लोगों में से केवल कुछ जाति के लोगों की उन्नति करने के लिए आरक्षण की व्यवस्था अलग से क्यों ?क्या वे बीमार हैं विकलांग हैं आखिर उनके शरीरों में ऐसी कौन सी कमी है क्या रोग है कि वे बिना आरक्षण के आगे नहीं बढ़ सकते हैं ?
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