Saturday, 11 October 2014

करवाचौथ की शॉपिंग में विवाहिताओं पर भारी पड़ती हैं प्रेमिकाएँ आखिर क्यों ?

        करवा चौथ की शॉपिंग इतनी महँगी क्यों ?

      विवाहित  संबंधों  में कुछ दिखावा करना नहीं होता है !इसलिए यहाँ धन महत्वपूर्ण नहीं होता है यहाँ मन का महत्त्व होता है जो सामान मिल पाया उसी से श्रद्धा पूर्वक पूर्ण निष्ठा से पूजा की जाती है ।

     लव मैरिज में धन और मन दोनों से पूजा की जाती है

वस्त्र आभूषण  आदि शौक शान में जितना धन लगाया जाएगा वैसी पूजा होती है और जो धन नहीं लगा सकता  उसकी लम्बी आयु माँगने में मन कहाँ लगता है वैसे भी ऐसे लोगों की  दीर्घायु माँगकर भी क्या करना !

   बिना मैरिज वाले केवल लवलबाते हुए संबंधों की करवाचौथ तो  धन से ही होती है वहाँ  मन कहाँ लगता है ऐसी प्रेमिकाएँ अधिक से अधिक धन खर्च करवाने के पक्ष में होती हैं वो मेंहदी भी लगवाने जाती हैं तो जितने माँगता है उससे अधिक देकर आती हैं और देखा करती हैं अपने प्रेमी का मुख जितने तक खर्च करने में उसकी हँसी बंद होने लगती है और मुख बनने लगता है वो समझ लेती हैं की इसकी औकात इतनी ही है यदि अगली करवाचौथ में उससे अधिक खर्चा करने वाला कोई दूसरा प्रेमी मिलता है तो अगली करवा चौथ उसके नाम की !अन्यथा इसी से काम चलेगा !

   यही कारण है कि यह पता होते हुए भी कि सौभाग्यवती स्त्रियाँ ही इस व्रत को रखती हैं हमें नहीं रखना चाहिए फिर भी रखती हैं केवल इसलिए कि साल भर में पटाए गए प्रेमी की परीक्षा आखिर कैसे की जाए ! अबकी बार करवाचौथ में कौन चीज कितनी महँगी रही वो इन्हीं लोगों की शॉपिंग से आँका जाता है  क्योंकि सौभाग्यवती स्त्रियों को घर देखकर चलना पड़ता है किन्तु जिनका घर ही न बसा हो सबकुछ हवा में ही हो वो क्यों देखें घर ?वहाँ तो न खाता न बही जो प्रेमिका कहे सो सही !

     प्रेमिकाओं की शॉपिंग देख देखकर अब विवाहिताएँ भी लड़ने लगी हैं अपने पतियों से कि जो अपनी पत्नी को प्रेम करते हैं वो इतनी महँगी शॉपिंग करवाते हैं लगता है कि तुम हमें प्रेम ही नहीं करते हो ! 

 


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