Sunday, 30 November 2014

नेपाल में दूध देने वाले पशुओं का इतना बड़ा संहार !

गढ़ीमाई के नाम पर मनाया जाता है त्यौहार

  मेरे अहिंसा प्रिय बंधुओ !  दया करुणा आदि भावों का निर्वाह करने वाले हिंदू धर्मपर गर्व करने वाला कुछ वर्ष पूर्व तक विश्व में एक मात्र हिन्दूराष्ट्र कहला चुका नेपाल  ऐसे भीषण पशु संहारों को  कैसे सह रहा है !          त्योहारों और उत्सवों के नाम पर यदि इसीप्रकार से पशुओं की हत्या का सिलसिला चलता रहा तो कहाँ से आएगा दूध,दही, घी, मक्खन,पनीर ,मिठाई आदि  !  कोई बकड़ी काटे कोई भैंस कोई गाय आखिर मानव क्यों दुश्मन बनता जारहा है मानवता का !अपने अपने देवी देवताओं से क्षमा याचना करके उन्हीं की आज्ञा से ऐसी प्रथाओं पर पुनर्विचार की आवश्यकता है !

   ऐसी सामूहिक पशु हत्याओं को त्यौहार या उत्सव नहीं माना जा सकता वो किसी भी धर्म के क्यों न हों !मानवता के रक्षक संगठनों को इधर भी  चाहिए ! क्योंकि मानव जाति को स्वस्थ एवं निरोग बने रखने के लिए पशु हमारे जीवन रक्षा के लिए अभिन्न अंग हैं!यदि हमारे यहाँ लुप्त हो रही पशु पक्षियों की प्रजातियों के संरक्षण पर काम चल रहा है उन्हें चिड़ियाघरों में सुरक्षित रखने की कोशिश की जा रही है !बंधुओ !वो पशु पक्षी तो हम चिड़िया घरों में देख कर काम चला सकते हैं किन्तु गायों भैंसों बकरियों को यदि ये लोग ऐसे ही खाते पीते रहेंगे दो ये समाप्त हो जाएँगे फिर कुछ गायों भैंसों बकरियों आदि को यदि चिड़ियाघरों में सुरक्षित रख भी लिया गया तो वो दर्शन भले ही देती रहें किंतु दूध नहीं दे पाएँगी और जितना दूध वो देंगी वो किसको  नसीब हो पाएगा ! जिन्हें पशुओं का गला काटने में दया नहीं आती वो मौका मिलने पर मनुष्यों पर क्यों दया करेंगे ! जिनके त्यौहार पशु संहारों से शुरू होते हों उनके आम दिन  कैसे बीतते  होंगे ईश्वर ही जाने!

    ऐसे पशुसंहारोँ पर रोक लगाई जाए ! आखिर भविष्य में कहाँ से आएगा दूध दही घी मक्खन खोआ मिठाइयाँ आदि ! क्या पीकर जिएँगे अपने छोटे छोटे बच्चे !बीमारों को दूध की जरूरत पड़ेगी कहाँ से लाया जाएगा दूध ! शरीरों में शक्ति का संचार करने वाला अमृतमय  दूध कैसे मिल पाएगा ! अरे पशु हत्यारो यदि पशु ही खा जाओगे तो कहाँ से मिल पाएगा दूध ! वस्तुतः ये केवल पशुओं की हत्या ही नहीं है अपितु अप्रत्यक्ष रूप से सम्पूर्ण मानवता को कमजोर करने की ओर बढ़ते कदम हैं अरे ! जरा सोचो तो कि यदि पेड़ ही काट डालोगे तो कहाँ से मिलेंगे फल फूल आदि ! जो जीव बोल नहीं पाते हैं उनकी हत्या करना क्या अपराध नहीं है क्या उनके कोई अधिकार नहीं होते !उनकी आवाज मनुष्य  या मनुष्यों की अदालतें भले ही न सुनें किन्तु ईश्वर तो उनकी भी मौन वाणी सुनेगा ही !उस अदालत में सबकी सुनी जाती है !पशुओं की भी सुनी जाएगी !आप भी  पढ़िए ये समाचार -

रविवार, 30 नवम्बर, 2014 | 08:52 | IST

काठमांडू, एजेंसी First Published:29-11-14 11:45 PMLast Updated:29-11-14 11:45 PM

  नेपाल में पशुओं की बलि देने के एक बड़े उत्सव में पांच हजार से अधिक भैंसों की बलि दे दी गई। यह दुनिया में इस तरह की सबसे बड़ी प्रथा मानी जाती है। पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के इस बर्बर प्रथा को खत्म करने के तमाम प्रयासों के बावजूद इन जानवरों की बलि दी गई।दक्षिणी नेपाल के बारा जिले के बरियारपुर गांव के गढ़ीमाई मंदिर में हर पांच साल बाद इस उत्सव का आयोजन होता है। इसमें इस बार हजारों श्रद्धालु शामिल हुए जिनमें भारत से आए श्रद्धालु भी हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि पशुओं की बलि से हिन्दू देवी गढ़ीमाई प्रसन्न होती हैं और इससे उनके लिए अच्छी किस्मत और समृद्धि आती है। पुलिस के अनुसार उत्सव के पहले दिन शुक्रवार को करीब 5,000 भैंसों की बलि दी गई। उत्सव के खत्म होने से पहले हजारों बकरियों, सूअरों और मुर्गियों की भी बलि दी जाएगी।

 


 

 

 


 


 



 


 


 

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