दो. व्यास कहाँ शुकदेव कहँ कहाँ भागवत 'शेष' ।
कथा कहत किन्नर फिरहिं धरि बहुरुपिया वेष ॥
भागवत कथा कहने वाले लोग पहले भागवत कथाएँ कहकर आत्म रंजन किया करते थे
तो फिल्मों से जुड़े लोग नाच गाकर समाज का मनोरंजन कर लिया करते थे तब तक
सब कुछ ठीक चल रहा था ,किंतु आध्यात्मिक ज्ञान विज्ञान रूपी भागवत कथा के
परं पवित्र क्षेत्र में अचानक कुछ अकर्मण्य एवं आलसी लोगों की दृष्टि पड़ी
उन्होंने इस सुशांत क्षेत्र को भी नहीं बक्सा और जगह जगह भागवत कथाओं के बड़े बड़े बैनर लगा लगाकर नाचने कूदने लगे भागवत के सुशांत मंचों पर ये भागवती मल्ल ! इस प्रकार भागवत में ऐसी भगदड़ हुई कि भागवत कथाओं में नचैया गवैया लोगों के समूह तेजी कूदने लगे !
इस प्रकार से कथाओं की कमान किन्नरों के हाथ में पहुँचते ही फिल्मों से
जुड़े लोग बेरोजगार होने लगे क्योंकि मनोरंजन वाला उनका काम भागवत वीरों ने
छीन लिया था तो उन्होंने एक नया तरीका खोज निकाला और फिल्मों में बोल्ड
सीन, सुपर बोल्ड सीन ,सेक्सी सीन आदि जितने नंगपन के खेल थे जिन्हें गाँव
वाले तक फूहड़ मानते थे वे सब फिल्मों के बहाने खुले तौर पर परोसे जाने लगे
समाज में !धीरे धीरे फिल्मों का स्वरूप भी बदलने लगा और फिल्मों से कला गायब होने लगी मांसल सौंदर्य का प्रचलन बढ़ने लगा !इससे समाज में तो भयंकर विकृति आई किन्तु फिल्मी जगत बेरोजगार होने से बच गया !
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