Saturday, 2 May 2015

सरकारी शिक्षा है या भिक्षा ?आखिर बच्चों के भविष्य की इतनी उपेक्षा क्यों करते हैं वहाँ के शिक्षक ?

    सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के साथ तो सारी सरकार किंतु अभिभावक अकेला होता है !उसे कोई कुछ भी बोल सकता है किंतु वो किसी को कुछ बोलने लायक ही नहीं होता है वो ऐसे डाँट दिया जाता है कि जैसे शिक्षक अपनी जेब से उसे सरकारी सुविधाएँ दे रहे हों !
      सरकारी प्राइमरी स्कूलों के शिक्षकों का साथ देने के लिए अधिकारी हैं सरकारें हैं धन है अधिकार है धमक है किंतु केवल अभिभावक अकेला होता है जिसे लोग बार बार समझाते हैं  कि अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में मत पढ़ावो वहाँ भविष्य बिगड़ जाएगा यहाँ तक कि वहाँ के शिक्षक भी यही समझाते हैं और बच्चा भी अपने पापा की अंगुली पकड़ कर प्राइवेट स्कूल में जाने की जिद  है किंतु मजबूर  पिता  छोड़ आता है लोक तिरस्कृत सरकारी स्कूलों में ।जब शिक्षक छोटे छोटे बच्चों के सामने क्लास में बैठकर चपरासियों से मँगवा कर  फ्रूटी पी रहे होते हैं या अन्य चीजें खा रहे होते हैं वो बच्चे उनकी ओर टुकुर टुकुर देख रहे होते हैं किंतु उनसे माँग नहीं सकते !ये कैसा गुरु का शिष्य का संबंध है जहाँ नैतिकता आत्मीयता वात्सल्यता आदर्श आदि बिलकुल मर चुके हों ! मैं विभिन्न स्कूलों में जा कर बच्चों से मिला करता हूँ ऐसी बातें सुनकर भर आते हैं हमारी आँखों में आँसू कई बार अपने छोटे छोटे हाथों से पोछने लगते हैं बच्चे उनके उस अपनेपन  पर  न्योछावर हो जाता है मन !                                      
   एकांत में मैं सोचा करता हूँ कि सरकारी स्कूलों में शिक्षाकार्य इतना उपेक्षित क्यों होता जा रहा है नैतिक आदर्श घटते क्यों जा रहे हैं !शिक्षा के लिए मीटिंगें  समय पर हो सकती हैं बार बार भी  हो सकती हैं ,शिक्षा के लिए विज्ञापन हो सकते हैं,भोजन दिया जा सकता वस्त्र पुस्तकें यहाँ तक कि पैसे भी दिए जा सकते हैं किन्तु शिक्षा क्यों नहीं ?पूर्वी दिल्ली कृष्णा नगर के  सरकारी स्कूल में मुझे बच्ची के कारण सुबह मीटिंग में अक्सर जाना पड़ता है जहाँ शिक्षिकाएँ या तो कुछ खा रही होती हैं या फिर आपस में झुंड बनाए घर गृहस्थी की बातें किया करती हैं या स्वजनों को फोन मिला लेती हैं चला करती हैं बातें ! आखिर यह कैसी शिक्षा ? और यदि कोई अभिभावक बच्चे की शिक्षा से संबंधित उनसे अपना कोई काम बताना चाहें  तो वो बेझिझक कह देती हैं कि वो व्यस्त हैं ये कैसे शिक्षकों के संस्कार हैं इन शिक्षकों को ट्रेंड कहकर क्यों महत्त्व मिलता है जबकि प्राइवेट स्कूलों के अनट्रेंड शिक्षकों की सैलरी इनसे बहुत कम होती है और शिक्षा की क्वालिटी बहुत अच्छी होती है इसीलिए तो उसमें धनी लोग नेता लोग अधिकारी लोग यहाँ तक कि सरकारी या निगम स्कूलों के शिक्षक लोग भी अपने बच्चों को प्राइवेट में ही पढ़ाना चाहते हैं फिर सरकारी शिक्षकों की ट्रेनिंग का समाज को क्या लाभ ?दूसरी बात जब सरकारी शिक्षकों की अपेक्षा चौथाई सैलरी में प्राइवेट स्कूलों को अपने शिक्षणकार्य से समाज का विश्वास जीतने वाले शिक्षक मिल सकते हैं तो सरकार जनता के विश्वास की परवाह ही न करने वाले सरकारी शिक्षकों की सेवाएँ लेने के लिए मजबूर क्यों है और क्यों देती है उन्हें अधिक सैलरी ! खुले मार्केट रेट  से अधिक सैलरी देने का रहस्य क्या है जबकि प्राइवेट की तरह ही खुले मार्केट में जगहें निकाली जाएँ और भर्ती हो उससे कम फंड में अधिक लोगों को रोजगार मिल सकता है शिक्षकों की संख्या बढ़ेगी शिक्षा की गुणवत्ता में भी सुधार होना स्वाभाविक है अन्यथा वर्त्तमान में सरकारी स्कूलों में शिक्षा गौण होती जा रही है बाकी सबकुछ ठीक है । सरकारी स्कूल के ही एक ईमानदार  एवं  कर्मठ शिक्षक ने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि हमें बड़ी बड़ी मीटिंगों में बुलाया जाता है वहाँ सारे विषय लिए जाते हैं किंतु शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने एवं सरकारी शिक्षा के प्रति समाज का विश्वास जीतने के प्रति कोई चर्चा नहीं की जाती है आखिर क्यों ?
    परसों अर्थात 30 अप्रैल के दिन पूर्वी दिल्ली कृष्णा नगर के  सरकारी स्कूल में मैंने एक शिक्षिका से अपनी बच्ची के नाम में हुए स्पेलिंग मिस्टेक को ठीक करने को कहा तो उन्होंने कहा आप देख रहे हैं कि मैं व्यस्त हूँ जबकि ऐसा कुछ नहीं था ।साथ ही उन्होंने कहा कि वैसे भी मैं किसी की नौकर नहीं हूँ ।जब मैंने उनसे कहा कि आजकल मनीष सिसोदिया जी अचानक भी स्कूल में आ जाते हैं यदि आ गए तब क्या होगा !तो उन्होंने कहा आजतक तो ऐसा कुछ हुआ नहीं अब क्या हो जाएगा !वो अभी नए नए हैं धीरे धीरे भारतीय शिक्षा व्यवस्था का ज्ञान उन्हें भी हो जाएगा !ऐसा कहने में उन्हें न कोई डर था न सँकोच !प्रेंसिपल साहिबा  के संज्ञान में लाने पर वे भी उन्हीं का पक्ष लेते दिखीं ! इसका मतलब सरकारी शिक्षा व्यवस्था में अभिभावक अकेला है ।  
      मैं सामाजिक चिंतक होने के नाते आपसे केवल निवेदन कर सकता हूँ कि ऐसी लापरवाही के लिए जिम्मेदार अाखिर कौन है ?इसमें अभिभावक एवं बच्चियों का क्या दोष है जिनके भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है आखिर जनता की कमाई से प्राप्त धन से सरकार जब इन शिक्षकों  को सैलरी दे सकते हैं तो इनसे काम क्यों नहीं लिया जा सकता है । ये मैं इस लिए भी कह रहा हूँ कि यदि ऐसे स्कूलों में ईमानदारी पूर्वक कर्तव्य निर्वाह होता ही तो क्यों लोग प्रतिभा स्कूलों या प्राइवेट स्कूलों में धक्के खाते होते ।
                                                                      

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