आजकल राजनैतिक दल मछुआरों के गिरोह की तरह हैं ,मछुआरों की तरह ही उनके बड़े बड़े नेता देश रूपी समुद्र में जनता रूपी मछलियों को फँसाने के लिए हर चुनावों से पहले लोकतंत्र की नाव में बैठकर निकलते हैं , अच्छे अच्छे वायदे आश्वासनों जातियों सम्प्रदायों से बुने भाषणों के जाल फेंकते हैं सभा सम्मेलनी समुद्रों में !
जो नेता अपने भाषणों से जितने अधिक लोगों को खुश कर पाता है वो उतना बड़ा नेता ! और जो जितना अधिक झूठे आश्वासन दे पाता है उससे उतने अधिक लोग खुश होंगे । कुल मिलाकर जितने अधिक झूठे भाषणों के जाल में जितनी ज्यादा जन मछलियाँ(जनता)फँस जाए वो उतना बड़ा नेता मान लिया जाता है जबकि जाल फेंकने वाले मछुआरे को ये पता भी नहीं होता है कि उसने ऐसी क्या कलाकारी की थी कि जिससे फँस गईं इतनी सारी मछलियाँ और जिस बार नहीं फँसती हैं उस बार कोसा जाता है वो बेचारा !जबकि जाल फेंकना तो उसके बश में है किंतु मछलियाँ फँसाना उसके बश में नहीं होता है । आम चुनावों में नेताओं की निगाह जनता के प्रति उस मछुआरे जैसी होती है जो अधिक से अधिक मछलियाँ फँसाने के लिए समुद्र में जाल फेंकता है जनता की कीमत उन मछलियों से ज्यादा नहीं होती है उसके दिमाग में जो मछुआरों के जाल में फँसती हैं इसीप्रकार से जनता केवल वोट डाल सकती है इसके अलावा आम आदमियों की परवाह कहाँ होती है किसी राजनैतिक पार्टी या नेता को !जैसे मछलियाँ पकड़ने के बाद जाल को भूल जाते हैं मछुआरे वैसे ही वोट लेने के बाद लोकतंत्र को भूल जाते हैं नेता !जिस नेता की जाँच होती है उसकी खुलती चली जाती हैं बड़ी बड़ी घटनाएँ किंतु जिनकी जाँच ही नहीं होती वो सौ टका ईमानदार माने जाते हैं किंतु ईमानदार और बेईमान नेताओं के बीच अंतर करने वाली जाँच एजेंसियाँ होती तो सरकारों के ही अंदर में हैं ।
नेताओं की प्रजाति बहुत निर्मम होती है ये केवल अपनी छाया देखते हैं अपनी प्रशंसा सुनते हैं सत्ता का उपयोग केवल अपने सुख साधन जुटाने के लिए करते हैं अपने धन संग्रह करने के लिए बड़े बड़े घपले घोटाले करते हैं अपने बच्चों को ही राजनीति में आगे बढ़ाते हैं उन्हें ही बड़े बड़े पद प्रतिष्ठा आदि प्रदान करते हैं देश के बड़े बड़े पढ़े लिखे प्रतिभा संपन्न लोग जो ईमानदारी पूर्वक देश की सेवा करना चाहते भी हैं उन्हें ये लोग मुख ही नहीं लगाते हैं क्योंकि अच्छे लोग यदि राजनीति में आ जाएँगे तो इन लोगों का क्या होगा जो सारे दोषों दुर्गुणों से लैस हैं अयोग्य हैं अशिक्षित या स्वल्प शिक्षित हैं वो कैसे टिक पाएँगे भले और ईमानदार लोगों के सामने और वो ऐसे लोगों का सम्मान भी नहीं करेंगे इस लिए ये जानबूझ कर चयन ही अपराधियों का करते हैं ताकि वो भ्रष्टाचार के द्वारा चार पैसे कमाएँ दो अपने राजनैतिक आकाओं को दें दो अपने पास रखें भले ईमानदार शालीन शिक्षित लोगों से नेताओं को क्या लाभ !ऐसे लोग भ्रष्टाचार के द्वारा पार्टी का फंड नहीं इकठ्ठा कर सकेंगे अपने अयोग्य नेतृत्व की सलाह के सामने अपना भी मत रखना चाहेंगे और गाली गलौच मार पीट आदि नहीं करेँगे ! जैसे जमीन के अंदर पानी हर जगह होता है किंतु जहाँ खोदा जाए वहीँ से निकलने लगता है वैसे ही राजनीति में भ्रष्टाचार हर जगह है किंतु जिसकी जाँच होती है प्रकट वहीँ होता है और जिसकी जाँच न हो तो वो ईमानदार !जाँच शुरू होते ही भ्रष्टाचार निकलने लगता है ।हर प्रकार के अपराधी राजनीति में मिल जाएँगे अभी फर्जी डिग्री वाले पकड़े जाने लगे तो उठने कई बड़े लोगों पर अँगुलियाँ !राजनीति तो अपराधों की मंडी है हर बरायटी का अपराधी कानून से बचने के लिए राजनीति के झँगोले में छिपा बैठा है और राजनीति ही एक ऐसी जगह है जहाँ पहुँचकर लोग कानून से ऊपर उठ जाते हैं ।किंतु खोदाई के बिना पानी नहीं मिलता और जाँच के बिना भ्रष्टाचार !
राजनीति में ईमानदारी ,चरित्र और सिद्धांतों की बातें अपनी बात मनवाने के लिए हथियार रूप में केवल दूसरों को उदाहरण और उपदेश देने के लिए होती हैं !बाकी इनका कोई महत्त्व नहीं है !
सरकारी नौकरी पाने के लिए तो शिक्षा और डिग्री चाहिए किंतु मंत्री बनने के लिए नहीं !आखिर क्यों ?
एक शिक्षक बनने के लिए तो ट्रेनिंग किंतु मंत्री बनने के लिए कुछ नहीं !आखिर क्यों ?
भारत का लोकतंत्र मजबूरी में ढो रहा है गरीब और उसको भोग रहे हैं रईस नेता खूँटा और सरकारी कर्मचारी !
बंधुओ ! जनतंत्र में केवल शिर गिने जाते हैं लोकतंत्र तो भीड़ के कन्धों पर स्थापित है वह भीड़ कैसे लोगों की है इसका कोई महत्त्व नहीं है भीड़ मक्खियों की तरह है मक्खियाँ दो ही जगह भिनभिनाने के लिए भीड़ लगाती हैं एक तो मिठाई पर दूसरा गंदगी पर !मिठाई बनाने में समय लगता है सामान लगता है परिश्रम लगता है उसे बनाना सीखना होता है आदि आदि बड़े बलिदान करने होते हैं ये है सेवा भाव की राजनीति जिस पथ पर चमकने के लिए केवल कुर्वानी करने पर ध्यान होता है यहाँ चमकने की तो चाह ही नहीं होती है।फिर भी समय रहते यदि समाज उन्हें भी पहचान पाया तो चमक जाते हैं अन्यथा उनके बलिदान का आदर्श उदाहरण प्रचारित नहीं हो पाता है।
इसी प्रकार गंदगी फैलाने में कितना समय लगता है कहीं भी खखार कर थूक दिया उस पर तुरत मक्खियाँ भिनभिनाने लगेंगी !यही सॉर्टकट राजनीति है जो पनपती ही गंदगी में है जहाँ आपराधिक बलगम की गंदगी पेशाब करके बहानी होती है जो देखने में तो लगे कि साफ हो गया है किंतु वास्तविकता में तो उससे अधिक गंदा हो गया होता है !इस पथपर तो लोग महीनों वर्षों में न केवल चमक जाते हैं अपितु विधायक सांसद मंत्री मुख्य मंत्री क्या प्रधानमंत्री तक बनते देखे जाते हैं
ऐसे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सरकार स्वामियों के बयानों पर बवाल करके चरित्रों पर सवाल करके उनकी संपत्ति को भ्रष्टाचारी बताकर आप अपनी ऊर्जा नष्ट कर रहे हैं मीडिया का समय बर्बाद कर रहे हैं जनता के धन से चलने वाली बहु खर्चीली विधान सभा और लोक सभा का कीमती समय यह जानते हुए भी आप बर्बाद कर रहे हैं कि इन्हें ठीक करने का जनता के पास कोई विकल्प नहीं है ।
नेताओं के अपराध तो अपराध नहीं अपितु उन पर लगे मिथ्या आरोप होते हैं उनकी फर्जी का क्या मतलब वो बिना पढेलिखे सबपर भारी होते हैं
कोई पढ़ालिखा और ईमानदार व्यक्ति यदि राजनीति में सफल हुआ हो तो समझ लेना वो बहुत भाग्यशाली है ये उसके जन्म जन्मान्तरों के पुण्यों का ही प्रभाव है कि किसी पार्टी के राजनेताओं ने उसे अपने यहाँ घुसने दिया !अन्यथा अपराध के बिना राजनीति और राजनीति के बिना अपराध चलना बहुत कठिन है कोई पार्टी किसी ईमानदार और किसी पढ़े लिखे व्यक्ति को अपनी पार्टी में घुसने नहीं देना चाहती जब तक उसने दो चार कायदे के काम किए न हों बाकी जो बहुत भाग्यशाली होते हैं
सेवाभाव विहीन नेतागिरी का शार्टकट रास्ता अपराधों से होकर ही गुजरता है यह सबको पता है !इसलिए नेताओं के चरित्रों बयानों बवालों एवं उनके घोटालों पर सवाल क्यों ?जो जितने बड़े अधिकारी को जितना अधिक बेइज्जत कर सकें उतनी जल्दी चमक उठते हैं ! उसके लिए वो कितने भी पाप क्यों न करें !
बंधुओ !कई बड़े दलों के नेताओं यहाँ जा जाकर मैंने भी धक्के खाए हैं कि वो मुझे भी अपने दल में सम्मिलित करके मुझे भी अपनी प्रतिभा प्रस्तुत करने का अवसर दें किंतु उन्हें मैं इसलिए नहीं पसंद आया कि मैं शिक्षित हूँ ईमानदार और सिद्धांतवाद की राजनीति करने का पक्षधर हूँsee more...http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html बंधुओ !इस घोषित मूल्य विहीन राजनैतिक युग में अलग से किसी को भ्रष्टाचारी कहना क्या उसका अतिरिक्त अपमान नहीं है ऐसा करने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए ।
कम समय में नेता बनने के लिए सरल साधन आप जितने बड़े व्यक्ति को चोर घोटालेबाज भ्रष्टाचारी अपराधी लुटेरा आदि कुछ भी कह दें और समाज को समझा दें कि तुम्हारी गरीबत का कारण यही नेता जी हैं जनता चूँकि परेशान है ही इसलिए उनके झूठ को भी सच मान लेती है इतने में ही नए नए नेता जी चमक उठते हैं ।
नेता जी किसी इतिहास पुरुष या सर्व सम्माननीय स्त्रीपुरुष धर्म संप्रदाय आदि को जितनी भद्दी गालियाँ दे जाएँ और खेद प्रकट करने में जितना अधिक समय खींच ले जाएँ उनकी उतनी राजनैतिक पॉपुलैरिटी बढ़ती रहती है ।
जितने अधिक मीडिया में दिखाई पढ़ें उतनी जल्दी चमक उठते हैं क्योंकि हर क्षेत्र में गधों को घोड़ा बनाने का काम मीडिया आज बहुत अच्छी तरह से कर रहा है इसीलिए जो भी लोग अपने को गधा समझते हैं और बनना घोड़ा चाहते हैं किंतु उसके लिए जो ताकत चाहिए वो उनके पास होती नहीं है तब वो मीडिया की शरण पहुंचते हैं मीडिया उनका उद्धार कर देता है भले ही ये ज्योतिष और धर्म से जुड़े लोग ही क्यों न हों उनके पास भी अपनी कोई योग्यता नहीं होती अपने पास कोई डिग्री प्रमाण पत्र नहीं होते फिर भी मीडिया उन्हें केवल उनकी बकवास के बलपर घोषित कर देता है ज्योतिषी !इसीलिए वो टीवी चैनलों पर दिन भर किया करते हैं बकवास ! खैर !!ये मीडिया का महत्त्व है ।
इसीप्रकार से राजनैतिक क्षेत्र में भी गधों को घोड़ा बना देता है मीडिया किंतु उसके लिए उसे देना होता है धन !क्योंकि टीवी चैनलों पर आने के लिए पैसा चाहिए वो ब्याज पर लेकर नौसिखिया नेता लोग राजनीति करेंगे क्या या उसके लिए लोन पास कराएँगे सरकार से ! स्वाभाविक है कि या तो वो अपराध से पैसे संग्रह करके अपना राजनैतिक जीवन डबलप करें और या फिर किसी अपराधी या अपराधी ग्रुप से इस कमिटमेंट के साथ अपने लिए फाइनेंस करवावें कि हम सत्ता में आएँगे तब सरकार तुम्हारे अनुशार चलेगी !
राजनेता ईमानदार भी हों ये अच्छी बात है किंतु मेरे विचार से इस युग में किसी नेता से ईमानदारी की आशा करना ठीक नहीं है । बंधुओ ! एक किसान मजदूर ईमानदारी पूर्वक दिन भर परिश्रम करता है फिर भी परिवार पालना उसके लिए मुश्किल हो रहा है इसीलिए कई किसान घबड़ाकर आत्महत्या तक करते देखे जा रहे हैं वहीँ दूसरी ओर राजनीति वाले लोगों का काम क्या है वो करते क्या हैं करते कब हैं फिर भी उनकी अपार सम्पत्तियों के स्पष्ट स्रोत क्या हैं यह सब कुछ बारामूडा ट्रायंगल की तरह रहस्य ही बने हुए हैं इनके जाँच की प्रक्रिया अंतरिक्ष के किसी ब्लैक होल से कम नहीं है !राजनीति की इस अनसुलझी पहेली में सम्मिलित सभी दलों के लोग न इसे कभी सुलझने देंगे और न ही सुलझाएँगे इसी में उन सबकी भलाई है । केवल पक्ष विपक्ष की भूमिका निभाने एवं अपनी जीवंतता प्रदर्शित करने के लिए कभी कभी शोर मचाते रहेंगे ! इसलिए जनता भी इसे रहस्य ही बना रहने दे इसी में उसकी अपनी भलाई है ।
ईमानदार राजनीति के लिए या तो पारदर्शिता पूर्वक सभी नेताओं की अकूत संपत्ति की जाँच शुरू से की जाए !जब उन लोगों का राजनीति में प्रवेश हुआ था तब वो क्या थे और आज क्या हैं सभी दलों के सभी नेताओं की सारी संपत्ति का ब्यौरा जनता के सामने रखा जाए नेट पर डाल दिया जाए जनता जनता जैसा उचित समझेगी वैसा अगले चुनावों उन नेताओं के पक्ष विपक्ष में फैसला सुनाएगी लोकतंत्र में वही मान लेना चाहिए !
ये किसी के फोटो किसी के साथ दिखाकर किसी की चिट्ठी दिखाकर किसी का स्टिंग करके दिखाना यह सब करने वाले पर भरोसा कैसे किया जाए कि उसने किस स्वार्थ के लिए किया है या कोई ब्लैक मेलिंग तो नहीं हो रही है आदि आदि !
इसके लिए विपक्ष को जनता को विश्वास में लेना होगा किन्तु वातानुकूलित भवनों को छोड़कर निकलना वे भी नहीं चाहते हैं अच्छा आचरण वे भी नहीं करना चाहते हैं जनता से आँख मिला कर बात करने में डर उनको भी लगता है इसलिए विधान सभा और लोक सभा में ही हुल्लड़ काट कर सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार के साथ साथ समाज के लिए यदि कुछ करना चाहता था वो विपक्ष नहीं करने दिया !इसमें नुक्सान जनता का है जिसको उसने बहुमत दिया है वो पाँच वर्ष तक तो अपनी कुर्सी पर रहेगा ही इसमें जिसको अपना घर भरना होगा वो भरेगा ही यही तो राजनीति है किंतु जनता का काम होगा या नहीं ये आप्सनल है हो भी सकता है नहीं भी विपक्ष ने हुल्लड़ मचाया तो नहीं ही होगा !अगले चुनावों में विपक्ष अपने सेवा कार्यों को गिनाकर चुनाव नहीं जीतना चाहता है अपितु सरकार की नाकामियों को गिनाकर लड़ता है चुनाव !हर पार्टी यही करती है ।
नेतागिरी के प्रारंभिक काल में तो नेताओं को भी कानून के अनुशार ही चलना होता है किंतु जैसे जैसे उनकी पद प्रतिष्ठा बढ़ने लगती है लोग जुड़ने लगते हैं वैसे वैसे वो नेता शक्तिशाली होने लगते हैं इसप्रकार से नेताओं की शक्ति जैसे जैसे आगे बढ़ने लगती है कानून वैसे वैसे पीछे छूटने लगता है धीरे धीरे एक समय आता है जब कानून बहुत पीछे छूट जाता है और नेता तेजी से आगे निकल जाता है । यहाँ पहुँचकर उसे या तो कोई राजनैतिक पड़ाव मिल जाता है या फिर मजबूत मंजिल ही मिल जाती है जहाँ उसकी अपनी पहचान ऐसी हो जाती है कि जिसे अपने गुणों का सम्मान तो मिलता ही है दुर्गुणों का सम्मान भी मिलने लगता है जिसकी एक आवाज पर उसके समर्थन में लाखों लोग निकल पड़ते हैं ऐसी परिस्थिति में महाबली नेता अपने को कानून से ऊपर समझने लगता है लोग भी उसके विषय में ऐसा ही समझने लगते हैं ऐसी अवस्था में बड़े बड़े आरोपों में आरोपी नेता जिन्हें वर्षों की सजा सुनाई जा चुकी होती है वो बड़े धूम धाम से महोत्सव पूर्वक जेल जाते हैं जब तक मन आता है तब तक वहाँ अपने हिसाब से रहते हैं इसके बाद बाहर आकर संपूर्ण राजनीति करते हैं मंत्री मुख्यमंत्री आदि सबकुछ अपनी सुविधानुशार बन जाते हैं इस प्रकार से संविधान को ठेंगा दिखा दिया जाता है । ऐसे नेता जेल से बाहर निकलते हैं तो चहरे चमक रहे होते हैं कपड़े दमक रहे होते हैं बड़ी भीड़भाड़ आदि जुलूसों के साथ निकलते हैं जेल से नारे लगाते हुए लोग दौड़ रहे होते हैं । मीडिया वाले नेता जी से मिलने को बेताब होते हैं नेता जी को देखते ही घेर लेते हैं सबसे पहले नेता जी देश की कानून व्यवस्था पर प्रश्न उठाते हैं कि हमको गलत फँसाया गया था मेरे साथ षड्यंत्र हुआ था मुझे विश्वास था कि सत्य की विजय होगी सो हुई और मैं छूट गया !
जो नेता अपने भाषणों से जितने अधिक लोगों को खुश कर पाता है वो उतना बड़ा नेता ! और जो जितना अधिक झूठे आश्वासन दे पाता है उससे उतने अधिक लोग खुश होंगे । कुल मिलाकर जितने अधिक झूठे भाषणों के जाल में जितनी ज्यादा जन मछलियाँ(जनता)फँस जाए वो उतना बड़ा नेता मान लिया जाता है जबकि जाल फेंकने वाले मछुआरे को ये पता भी नहीं होता है कि उसने ऐसी क्या कलाकारी की थी कि जिससे फँस गईं इतनी सारी मछलियाँ और जिस बार नहीं फँसती हैं उस बार कोसा जाता है वो बेचारा !जबकि जाल फेंकना तो उसके बश में है किंतु मछलियाँ फँसाना उसके बश में नहीं होता है । आम चुनावों में नेताओं की निगाह जनता के प्रति उस मछुआरे जैसी होती है जो अधिक से अधिक मछलियाँ फँसाने के लिए समुद्र में जाल फेंकता है जनता की कीमत उन मछलियों से ज्यादा नहीं होती है उसके दिमाग में जो मछुआरों के जाल में फँसती हैं इसीप्रकार से जनता केवल वोट डाल सकती है इसके अलावा आम आदमियों की परवाह कहाँ होती है किसी राजनैतिक पार्टी या नेता को !जैसे मछलियाँ पकड़ने के बाद जाल को भूल जाते हैं मछुआरे वैसे ही वोट लेने के बाद लोकतंत्र को भूल जाते हैं नेता !जिस नेता की जाँच होती है उसकी खुलती चली जाती हैं बड़ी बड़ी घटनाएँ किंतु जिनकी जाँच ही नहीं होती वो सौ टका ईमानदार माने जाते हैं किंतु ईमानदार और बेईमान नेताओं के बीच अंतर करने वाली जाँच एजेंसियाँ होती तो सरकारों के ही अंदर में हैं ।
नेताओं की प्रजाति बहुत निर्मम होती है ये केवल अपनी छाया देखते हैं अपनी प्रशंसा सुनते हैं सत्ता का उपयोग केवल अपने सुख साधन जुटाने के लिए करते हैं अपने धन संग्रह करने के लिए बड़े बड़े घपले घोटाले करते हैं अपने बच्चों को ही राजनीति में आगे बढ़ाते हैं उन्हें ही बड़े बड़े पद प्रतिष्ठा आदि प्रदान करते हैं देश के बड़े बड़े पढ़े लिखे प्रतिभा संपन्न लोग जो ईमानदारी पूर्वक देश की सेवा करना चाहते भी हैं उन्हें ये लोग मुख ही नहीं लगाते हैं क्योंकि अच्छे लोग यदि राजनीति में आ जाएँगे तो इन लोगों का क्या होगा जो सारे दोषों दुर्गुणों से लैस हैं अयोग्य हैं अशिक्षित या स्वल्प शिक्षित हैं वो कैसे टिक पाएँगे भले और ईमानदार लोगों के सामने और वो ऐसे लोगों का सम्मान भी नहीं करेंगे इस लिए ये जानबूझ कर चयन ही अपराधियों का करते हैं ताकि वो भ्रष्टाचार के द्वारा चार पैसे कमाएँ दो अपने राजनैतिक आकाओं को दें दो अपने पास रखें भले ईमानदार शालीन शिक्षित लोगों से नेताओं को क्या लाभ !ऐसे लोग भ्रष्टाचार के द्वारा पार्टी का फंड नहीं इकठ्ठा कर सकेंगे अपने अयोग्य नेतृत्व की सलाह के सामने अपना भी मत रखना चाहेंगे और गाली गलौच मार पीट आदि नहीं करेँगे ! जैसे जमीन के अंदर पानी हर जगह होता है किंतु जहाँ खोदा जाए वहीँ से निकलने लगता है वैसे ही राजनीति में भ्रष्टाचार हर जगह है किंतु जिसकी जाँच होती है प्रकट वहीँ होता है और जिसकी जाँच न हो तो वो ईमानदार !जाँच शुरू होते ही भ्रष्टाचार निकलने लगता है ।हर प्रकार के अपराधी राजनीति में मिल जाएँगे अभी फर्जी डिग्री वाले पकड़े जाने लगे तो उठने कई बड़े लोगों पर अँगुलियाँ !राजनीति तो अपराधों की मंडी है हर बरायटी का अपराधी कानून से बचने के लिए राजनीति के झँगोले में छिपा बैठा है और राजनीति ही एक ऐसी जगह है जहाँ पहुँचकर लोग कानून से ऊपर उठ जाते हैं ।किंतु खोदाई के बिना पानी नहीं मिलता और जाँच के बिना भ्रष्टाचार !
राजनीति में ईमानदारी ,चरित्र और सिद्धांतों की बातें अपनी बात मनवाने के लिए हथियार रूप में केवल दूसरों को उदाहरण और उपदेश देने के लिए होती हैं !बाकी इनका कोई महत्त्व नहीं है !
सरकारी नौकरी पाने के लिए तो शिक्षा और डिग्री चाहिए किंतु मंत्री बनने के लिए नहीं !आखिर क्यों ?
एक शिक्षक बनने के लिए तो ट्रेनिंग किंतु मंत्री बनने के लिए कुछ नहीं !आखिर क्यों ?
भारत का लोकतंत्र मजबूरी में ढो रहा है गरीब और उसको भोग रहे हैं रईस नेता खूँटा और सरकारी कर्मचारी !
बंधुओ ! जनतंत्र में केवल शिर गिने जाते हैं लोकतंत्र तो भीड़ के कन्धों पर स्थापित है वह भीड़ कैसे लोगों की है इसका कोई महत्त्व नहीं है भीड़ मक्खियों की तरह है मक्खियाँ दो ही जगह भिनभिनाने के लिए भीड़ लगाती हैं एक तो मिठाई पर दूसरा गंदगी पर !मिठाई बनाने में समय लगता है सामान लगता है परिश्रम लगता है उसे बनाना सीखना होता है आदि आदि बड़े बलिदान करने होते हैं ये है सेवा भाव की राजनीति जिस पथ पर चमकने के लिए केवल कुर्वानी करने पर ध्यान होता है यहाँ चमकने की तो चाह ही नहीं होती है।फिर भी समय रहते यदि समाज उन्हें भी पहचान पाया तो चमक जाते हैं अन्यथा उनके बलिदान का आदर्श उदाहरण प्रचारित नहीं हो पाता है।
इसी प्रकार गंदगी फैलाने में कितना समय लगता है कहीं भी खखार कर थूक दिया उस पर तुरत मक्खियाँ भिनभिनाने लगेंगी !यही सॉर्टकट राजनीति है जो पनपती ही गंदगी में है जहाँ आपराधिक बलगम की गंदगी पेशाब करके बहानी होती है जो देखने में तो लगे कि साफ हो गया है किंतु वास्तविकता में तो उससे अधिक गंदा हो गया होता है !इस पथपर तो लोग महीनों वर्षों में न केवल चमक जाते हैं अपितु विधायक सांसद मंत्री मुख्य मंत्री क्या प्रधानमंत्री तक बनते देखे जाते हैं
ऐसे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सरकार स्वामियों के बयानों पर बवाल करके चरित्रों पर सवाल करके उनकी संपत्ति को भ्रष्टाचारी बताकर आप अपनी ऊर्जा नष्ट कर रहे हैं मीडिया का समय बर्बाद कर रहे हैं जनता के धन से चलने वाली बहु खर्चीली विधान सभा और लोक सभा का कीमती समय यह जानते हुए भी आप बर्बाद कर रहे हैं कि इन्हें ठीक करने का जनता के पास कोई विकल्प नहीं है ।
नेताओं के अपराध तो अपराध नहीं अपितु उन पर लगे मिथ्या आरोप होते हैं उनकी फर्जी का क्या मतलब वो बिना पढेलिखे सबपर भारी होते हैं
कोई पढ़ालिखा और ईमानदार व्यक्ति यदि राजनीति में सफल हुआ हो तो समझ लेना वो बहुत भाग्यशाली है ये उसके जन्म जन्मान्तरों के पुण्यों का ही प्रभाव है कि किसी पार्टी के राजनेताओं ने उसे अपने यहाँ घुसने दिया !अन्यथा अपराध के बिना राजनीति और राजनीति के बिना अपराध चलना बहुत कठिन है कोई पार्टी किसी ईमानदार और किसी पढ़े लिखे व्यक्ति को अपनी पार्टी में घुसने नहीं देना चाहती जब तक उसने दो चार कायदे के काम किए न हों बाकी जो बहुत भाग्यशाली होते हैं
सेवाभाव विहीन नेतागिरी का शार्टकट रास्ता अपराधों से होकर ही गुजरता है यह सबको पता है !इसलिए नेताओं के चरित्रों बयानों बवालों एवं उनके घोटालों पर सवाल क्यों ?जो जितने बड़े अधिकारी को जितना अधिक बेइज्जत कर सकें उतनी जल्दी चमक उठते हैं ! उसके लिए वो कितने भी पाप क्यों न करें !
बंधुओ !कई बड़े दलों के नेताओं यहाँ जा जाकर मैंने भी धक्के खाए हैं कि वो मुझे भी अपने दल में सम्मिलित करके मुझे भी अपनी प्रतिभा प्रस्तुत करने का अवसर दें किंतु उन्हें मैं इसलिए नहीं पसंद आया कि मैं शिक्षित हूँ ईमानदार और सिद्धांतवाद की राजनीति करने का पक्षधर हूँsee more...http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html बंधुओ !इस घोषित मूल्य विहीन राजनैतिक युग में अलग से किसी को भ्रष्टाचारी कहना क्या उसका अतिरिक्त अपमान नहीं है ऐसा करने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए ।
कम समय में नेता बनने के लिए सरल साधन आप जितने बड़े व्यक्ति को चोर घोटालेबाज भ्रष्टाचारी अपराधी लुटेरा आदि कुछ भी कह दें और समाज को समझा दें कि तुम्हारी गरीबत का कारण यही नेता जी हैं जनता चूँकि परेशान है ही इसलिए उनके झूठ को भी सच मान लेती है इतने में ही नए नए नेता जी चमक उठते हैं ।
नेता जी किसी इतिहास पुरुष या सर्व सम्माननीय स्त्रीपुरुष धर्म संप्रदाय आदि को जितनी भद्दी गालियाँ दे जाएँ और खेद प्रकट करने में जितना अधिक समय खींच ले जाएँ उनकी उतनी राजनैतिक पॉपुलैरिटी बढ़ती रहती है ।
जितने अधिक मीडिया में दिखाई पढ़ें उतनी जल्दी चमक उठते हैं क्योंकि हर क्षेत्र में गधों को घोड़ा बनाने का काम मीडिया आज बहुत अच्छी तरह से कर रहा है इसीलिए जो भी लोग अपने को गधा समझते हैं और बनना घोड़ा चाहते हैं किंतु उसके लिए जो ताकत चाहिए वो उनके पास होती नहीं है तब वो मीडिया की शरण पहुंचते हैं मीडिया उनका उद्धार कर देता है भले ही ये ज्योतिष और धर्म से जुड़े लोग ही क्यों न हों उनके पास भी अपनी कोई योग्यता नहीं होती अपने पास कोई डिग्री प्रमाण पत्र नहीं होते फिर भी मीडिया उन्हें केवल उनकी बकवास के बलपर घोषित कर देता है ज्योतिषी !इसीलिए वो टीवी चैनलों पर दिन भर किया करते हैं बकवास ! खैर !!ये मीडिया का महत्त्व है ।
इसीप्रकार से राजनैतिक क्षेत्र में भी गधों को घोड़ा बना देता है मीडिया किंतु उसके लिए उसे देना होता है धन !क्योंकि टीवी चैनलों पर आने के लिए पैसा चाहिए वो ब्याज पर लेकर नौसिखिया नेता लोग राजनीति करेंगे क्या या उसके लिए लोन पास कराएँगे सरकार से ! स्वाभाविक है कि या तो वो अपराध से पैसे संग्रह करके अपना राजनैतिक जीवन डबलप करें और या फिर किसी अपराधी या अपराधी ग्रुप से इस कमिटमेंट के साथ अपने लिए फाइनेंस करवावें कि हम सत्ता में आएँगे तब सरकार तुम्हारे अनुशार चलेगी !
राजनेता ईमानदार भी हों ये अच्छी बात है किंतु मेरे विचार से इस युग में किसी नेता से ईमानदारी की आशा करना ठीक नहीं है । बंधुओ ! एक किसान मजदूर ईमानदारी पूर्वक दिन भर परिश्रम करता है फिर भी परिवार पालना उसके लिए मुश्किल हो रहा है इसीलिए कई किसान घबड़ाकर आत्महत्या तक करते देखे जा रहे हैं वहीँ दूसरी ओर राजनीति वाले लोगों का काम क्या है वो करते क्या हैं करते कब हैं फिर भी उनकी अपार सम्पत्तियों के स्पष्ट स्रोत क्या हैं यह सब कुछ बारामूडा ट्रायंगल की तरह रहस्य ही बने हुए हैं इनके जाँच की प्रक्रिया अंतरिक्ष के किसी ब्लैक होल से कम नहीं है !राजनीति की इस अनसुलझी पहेली में सम्मिलित सभी दलों के लोग न इसे कभी सुलझने देंगे और न ही सुलझाएँगे इसी में उन सबकी भलाई है । केवल पक्ष विपक्ष की भूमिका निभाने एवं अपनी जीवंतता प्रदर्शित करने के लिए कभी कभी शोर मचाते रहेंगे ! इसलिए जनता भी इसे रहस्य ही बना रहने दे इसी में उसकी अपनी भलाई है ।
ईमानदार राजनीति के लिए या तो पारदर्शिता पूर्वक सभी नेताओं की अकूत संपत्ति की जाँच शुरू से की जाए !जब उन लोगों का राजनीति में प्रवेश हुआ था तब वो क्या थे और आज क्या हैं सभी दलों के सभी नेताओं की सारी संपत्ति का ब्यौरा जनता के सामने रखा जाए नेट पर डाल दिया जाए जनता जनता जैसा उचित समझेगी वैसा अगले चुनावों उन नेताओं के पक्ष विपक्ष में फैसला सुनाएगी लोकतंत्र में वही मान लेना चाहिए !
ये किसी के फोटो किसी के साथ दिखाकर किसी की चिट्ठी दिखाकर किसी का स्टिंग करके दिखाना यह सब करने वाले पर भरोसा कैसे किया जाए कि उसने किस स्वार्थ के लिए किया है या कोई ब्लैक मेलिंग तो नहीं हो रही है आदि आदि !
इसके लिए विपक्ष को जनता को विश्वास में लेना होगा किन्तु वातानुकूलित भवनों को छोड़कर निकलना वे भी नहीं चाहते हैं अच्छा आचरण वे भी नहीं करना चाहते हैं जनता से आँख मिला कर बात करने में डर उनको भी लगता है इसलिए विधान सभा और लोक सभा में ही हुल्लड़ काट कर सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार के साथ साथ समाज के लिए यदि कुछ करना चाहता था वो विपक्ष नहीं करने दिया !इसमें नुक्सान जनता का है जिसको उसने बहुमत दिया है वो पाँच वर्ष तक तो अपनी कुर्सी पर रहेगा ही इसमें जिसको अपना घर भरना होगा वो भरेगा ही यही तो राजनीति है किंतु जनता का काम होगा या नहीं ये आप्सनल है हो भी सकता है नहीं भी विपक्ष ने हुल्लड़ मचाया तो नहीं ही होगा !अगले चुनावों में विपक्ष अपने सेवा कार्यों को गिनाकर चुनाव नहीं जीतना चाहता है अपितु सरकार की नाकामियों को गिनाकर लड़ता है चुनाव !हर पार्टी यही करती है ।
नेतागिरी के प्रारंभिक काल में तो नेताओं को भी कानून के अनुशार ही चलना होता है किंतु जैसे जैसे उनकी पद प्रतिष्ठा बढ़ने लगती है लोग जुड़ने लगते हैं वैसे वैसे वो नेता शक्तिशाली होने लगते हैं इसप्रकार से नेताओं की शक्ति जैसे जैसे आगे बढ़ने लगती है कानून वैसे वैसे पीछे छूटने लगता है धीरे धीरे एक समय आता है जब कानून बहुत पीछे छूट जाता है और नेता तेजी से आगे निकल जाता है । यहाँ पहुँचकर उसे या तो कोई राजनैतिक पड़ाव मिल जाता है या फिर मजबूत मंजिल ही मिल जाती है जहाँ उसकी अपनी पहचान ऐसी हो जाती है कि जिसे अपने गुणों का सम्मान तो मिलता ही है दुर्गुणों का सम्मान भी मिलने लगता है जिसकी एक आवाज पर उसके समर्थन में लाखों लोग निकल पड़ते हैं ऐसी परिस्थिति में महाबली नेता अपने को कानून से ऊपर समझने लगता है लोग भी उसके विषय में ऐसा ही समझने लगते हैं ऐसी अवस्था में बड़े बड़े आरोपों में आरोपी नेता जिन्हें वर्षों की सजा सुनाई जा चुकी होती है वो बड़े धूम धाम से महोत्सव पूर्वक जेल जाते हैं जब तक मन आता है तब तक वहाँ अपने हिसाब से रहते हैं इसके बाद बाहर आकर संपूर्ण राजनीति करते हैं मंत्री मुख्यमंत्री आदि सबकुछ अपनी सुविधानुशार बन जाते हैं इस प्रकार से संविधान को ठेंगा दिखा दिया जाता है । ऐसे नेता जेल से बाहर निकलते हैं तो चहरे चमक रहे होते हैं कपड़े दमक रहे होते हैं बड़ी भीड़भाड़ आदि जुलूसों के साथ निकलते हैं जेल से नारे लगाते हुए लोग दौड़ रहे होते हैं । मीडिया वाले नेता जी से मिलने को बेताब होते हैं नेता जी को देखते ही घेर लेते हैं सबसे पहले नेता जी देश की कानून व्यवस्था पर प्रश्न उठाते हैं कि हमको गलत फँसाया गया था मेरे साथ षड्यंत्र हुआ था मुझे विश्वास था कि सत्य की विजय होगी सो हुई और मैं छूट गया !
आम आदमी जेल से निकलता है तो महीनों लग जाते हैं रूटीन में आने में लोगों से
आँखें मिलाने की हिम्मत नहीं कर पाता है ! चेहरा उदास शर्म के मारे पानी
पानी होता है जनता उसे देखती है और नेता जी को देखती तो समझ जाती है कि ये
सब ड्रामा है सजा कितने भी वर्ष की क्यों न हुई हो किंतु ये नेता लोग हैं
अभी छूट आएँगे और जनता अनुमान लगभग ठीक होता है नेता जी छूट भी आते हैं ।ये
नेताओं का महाबली अवतार होता है जब इन्हें सब डरने लगते हैं ये किसी को
कुछ भी बोल सकते हैं किसी को गाली गलौच कर सकते हैं मारपीट भी कर सकते हैं
कुछ भी करें वो सर्वसक्षम कैटेगरी में आ जाते हैं !
इस राजनैतिक कौशल से न्याय को जीत लेने वाले उस महाबली को तब इस बात की चिंता ही नहीं रहती है कि वो
किसी से कैसे बात व्यवहार करे या उसकी कमाई लीगल है या अनलीगल इसके बाद तो
वो किसी को कुछ भी बोले और किसी के साथ कैसा भी गंदा व्यवहार करे कैसे भी
धन संग्रह करे किंतु उसके बातों और व्यवहारों को सही एवं संविधान सम्मत
सिद्ध करने के लिए भाड़े के सलाह कार,वकीलादि लगे होते हैं जिन्हें फीस ही
एक बात की मिल रही होती है कि नेता जी के हर गैरकानूनी काम को ,व्यवहार को
,बयान को कानून सम्मत सिद्ध करना होता है ।
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