योग्य, सुशिक्षित ईमानदार और प्रतिभा सम्पन्न कार्यकर्ताओं से दूर क्यों भागती हैं राजनैतिक पार्टियाँ ?आखिर सदाचरण सहने का अभ्यास उन्हें क्यों नहीं करना चाहिए ! यदि ऐसा नहीं कर सकते तो भ्रष्टाचार का विरोध वो करते आखिर किस मुख से हैं !केवल अपने को ईमानदार दिखाने के लिए भ्रष्टाचार के विरुद्ध मचाते हैं शोर !
वायदा बाजार से बड़ा जुआँ है आज राजनीति ! धनबली बाहुबली धोखाधड़ी एवं झूठ फरेब करने बालों की अधिकृत मंडी है राजनीति ! सभी प्रकार के अपराधी राजनीति की ओर भागते हैं आखिर क्यों !उन्हें राजनैतिक दलों में शरण मिल भी जाती है किन्तु भ्रष्टाचार समर्थक दल प्रतिभासंपन्न सुशिक्षित ईमानदार युवकों को अपनी पार्टियों में घुसने ही नहीं देते ! आखिर क्यों क्या कमी होती है उनमें !
अयोग्य लोगों को योग्य पदों पर बैठाने के पीछे का भाव आखिर क्या होता है राजनैतिक दलों का ! यही न कि ऐसे लोग अपने राजनैतिक स्वामियों के सामने खड़े दुम हिलाते रहेंगे और बताते रहेंगे उन्हें ब्रह्मा विष्णु महेश !जैसे किसान जिन बैलों को जोतना चाहता है उन्हें पहले नपुंसक बना लेता है बाद में जोतता है हल में क्या राजनैतिक दल भी अपने कार्यकर्ताओं के प्रति अब इसी भावना से भावित होते जा रहे हैं अन्यथा प्रतिभा संपन्न लोगों को अपने दलों में पदाधिकारी बनाने में क्या कठिनाई होती है उन्हें ! यही न कि वो गलत को गलत कहेंगे ,भ्रष्टाचार का विरोध करेंगे ,अपराधियों का बहिष्कार करेंगे सदाचरण को प्रोत्साहित करेंगे किंतु ये सब न हो इसीलिए तो योग्य सुशिक्षित और प्रतिभा सम्पन्न लोगों से दूर भागती हैं राजनैतिक पार्टियाँ !
केवल यही न कि उनकी नजर में देश की जनता केवल वोट बैंक है इससे ज्यादा कुछ नहीं । जैसे कसाई को बकड़ी में केवल मांस दिखता है ,बलात्कारी को लड़की में केवल सेक्स दिखता है ठीक इसी प्रकार से नेताओं को जनता में केवल वोट दिखते हैं !जैसे कसाई को बकड़ी की भावनाओं की परवाह नहीं होती, जैसे बलात्कारी को लड़की की भावनाओं की परवाह नहीं होती वैसे ही नेता को जनता की भावनाओं की परवाह नहीं होती !जैसे कसाई बकड़ी को काटने से पहले उसकी पीठ सहलाता है जैसे बलात्कारी लड़की से बलात्कार करने से पहले उससे प्यार करने का नाटक करता है ऐसे ही धोखा देने से पहले नेता लोग जनता को सारे आश्वासन देते हैं सब कुछ देने की बातें करते हैं !बाद में न चाहते हुए भी जैसे बकड़ी को सबकुछ सहना पड़ता है ,लड़की को सहना पड़ता है वैसे ही जनता को भी सबकुछ सहना ही पड़ता है ।
राजनैतिक पार्टियों के मठाधीश देश की जनता से केवल उनका वोट लेना चाहते हैं लेकिन चौधराहट अपनी ही चलाना चाहते हैं !
वायदा बाजार की तरह ही राजनीति में भी सारा आदान प्रदान केवल बातों का ही होता है बड़े बड़े
मगरमच्छों ने अपने एवं अपनों के लिए बना रखी हैं राजनैतिक पार्टियाँ और
चुनाव आते ही जनता को तरह तरह से बेवकूफ बनाना शुरू कर देते हैं चुनाव आते ही कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर आयोजित करती हैं । क्या वहाँ सदाचरण और ईमानदारी सिखाई जाती होगी या समझाया जाता होगा शांति पूर्ण मतदान करने कराने का ज्ञान विज्ञान !वर्तमान राजनैतिक दलों से जो लोग ऐसी पवित्र आशाएँ करते हैं वो घोर अंधकार में हैं उन्हें चाहिए कि देश के योग्य ,ईमानदार और प्रतिभा संपन्न लोगों को स्वतन्त्र रूप से उतारना चाहिए चुनावों में और स्वराष्ट्र में घटती नैतिकता की आपूर्ति के लिए संस्कार संपन्न लोगों को बढ़ाना चाहिए आगे !वर्तमान राजनैतिक दलों से निराश ही होना पड़ा है और आगे भी आशा करने का कोई औचित्य नहीं दिखता है अन्यथा
भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति के लिए जो पार्टियाँ नेताओं के लिए भी शिक्षा अनिवार्य करें उनका समर्थन किया जाना चाहिए !
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