सरकारों को जनता चुन तो सकती है किंतु किसमें किसको चुने !विकल्प आखिर कहाँ है और जनता का भरोसा हर दल ने तोड़ा है इसलिए जनता अपनी परवाह छोड़ उन्हीं दलों को बारी बारी मौका दिया करती है जिनसे निराश है जब चुनाव होने ही हैं वोट देने ही हैं और सहारा किसी दल या नेता से है नहीं अपना कमाना अपना खाना फिर कैसी सरकार !जब उससे कोई आशा ही न हो !
काश !हमारे देश में भी लोकतंत्र होता !जिसमें जनता जो चाहती वो होता या फिर जनता की बात भी सुनी जाती !यह तो नेतातंत्र है इसमें नेता जो चाहते हैं वही होता है !
यदि देश में लोकतंत्र होता तो किसानों की भी सुनी जाती और उन्हें नहीं करनी पड़ती आत्महत्या !किसी पत्रकार को कोई मंत्री जिंदा कैसे जला सकता था,सरकारी प्राइमरी स्कूलों में क्यों नहीं होती है पढ़ाई !सरकारी अस्पतालों में क्यों नहीं मिलती दवाई ? सरकारी आफिसों में आम जनता को धक्के क्यों खाने पड़ते,FIR लिखवाने के लिए नेता जी से फोन क्यों करवाना पड़ता !सरकारी विभागों में अधिकारी कर्मचारियों के द्वारा क्यों की जा रही होती उपेक्षा ?इसलिए लोकतंत्र का तो नाम ही नाम है वोट देने के अलावा कौन पूछता है जनता को !कलियुगी परिवारों में विवाहादि काम काज के समय बुजुर्गों को जिस तरह केवल हाँ करने के लिए बैठा लिया जाता है वही स्थिति भारतीय लोकतंत्र में जनता की है ।
जनता को पता नहीं है कि नेताओं की अकूत संपत्ति के स्रोत क्या हैं इतना जरूर है कि ईमानदारी पूर्वक बिना कुछ किए इतने पैसे कमाए ही नहीं जा सकते !फिर भी हमारे नेता कमा लेते हैं वो कब काम करते हैं क्या काम करते हैं किसी को नहीं पता होता है किंतु संपत्ति हजारों करोड़ में होती है !दूसरी और परिश्रमी किसान मजदूर मर रहे हैं काम कर कर के उन्हें दाल रोटी के लाले पड़े होते हैं !आखिर कैसा है ये लोकतंत्र ?जहाँ जनता को कुछ पता ही नहीं है फिर भी जनतंत्र है
अधिकार तो तब भी सरकार और उसके कर्मचारियों के पास थे और अभी भी वहीँ हैं किंतु आमजनता तो केवल वोट देने के लिए होती है
जनता भी राजनैतिक पार्टियों की लड़ाई तो लड़ा करती है एक को हटाना दूसरे को बैठाना दूसरे को हटाकर तीसरे को बैठाना किन्तु अपनी लड़ाई कब और कैसे लड़ेगी जनता जिससे आएगा जनतंत्र ?
वैसे भी वर्तमान समय में लोकतंत्र और कानून का सम्मान तो गरीब एवं मध्यमवर्ग करता है धनी और नेताओं का तो कानून स्वयं अनुगमन करने लगता है । ऐसे नेता जनता के अधिकारों की उपेक्षा करके मनमानी करने लगते हैं दूसरी ओर जनादेश संपन्न शासकों के सामने मुख खोलने का साहस किसी में नहीं होता !नौकरी करनी हो या राजनीति जहाँ जनादेश वहाँ सैल्यूट ! ऐसी परिस्थिति में लोकतंत्र कैसे संभव है ?
जिस नेता को चुनावों में बहुमत मिलजाता है वो प्रायः उस जनादेश का अपने को मालिक समझने लगता है जनादेश का गुरूर उसके चेहरे पर साफ झलकता दिखता है वो दिखावटी विनम्रता चाहे जितनी ओढ़े किंतु सच्चाई झलक ही जाती है !जनादेश संपन्न नेता अपने को सर्वगुण संपन्न समझने लगते हैं उनकी जहाँ जरूरत है वहाँ उतना ध्यान न देकर जो काम समाज के अन्य लोगों के होते हैं वहाँ अपनी बहुमूल्य ऊर्जा लगाया करते हैं !जनादेशशक्ति से सक्षम शासक जिसे जैसा चाहे वैसा नाच नचावे अपने देश और प्रदेश के अपने मातहत लोगों से जो चाहे सो करवावे , वो कह दे कि कान पकड़कर उठो बैठो तो उसे वैसा करना पड़ेगा !आखिर पाँच वर्ष तक उसका चाह कर भी दूसरा कोई क्या बिगाड़ लेगा बहुमत उसके साथ है । नौकरी करनी हो या राजनीति जहाँ जनादेश वहाँ सैल्यूट अन्यथा गए काम से !
ऐसे शासक चाहें तो अपनी ताकत का इस्तेमाल निगरानी तंत्र को मजबूत बनाकर जन सेवा के लिए कर सकते हैं वालेंटियर तैयार करके घुसाए जा सकते हैं सरकारी कार्यालयों में जहाँ जनता को अकेला जूझना पड़ता है आखिर आम जनता की बात सुनने वाला वहाँ कोई तो होगा जो सुने और समझेगा जनता की परेशानी किंतु उसमें ठसक नहीं दिखाई पड़ती है इसलिए प्रायः ऐसे प्रशासक तमाशा पसंद होते हैं जिसका पता पाँच वर्ष बीतने पर लगता है !
एक ओर लगातार काम करने पर भी आम जनता को दाल रोटी जुटाने के लाले पड़े होते हैं परिश्रमी किसान जरूरत की चीजों की चिंता में आत्महत्या कर रहे होते हैं जबकि नेताओं के पास न कोई काम करने का समय न कोई काम करते देखता है किंतु जहाँ जाते हैं वहाँ जहाजों से, रहते हैं कोठियों में, टहलते हैं महँगी गाड़ियों से, बच्चे पढ़ाते हैं महँगे स्कूलों में , इनके बेटा बेटियों के शादी विवाह में तो करोड़ों का पानी पी जाते हैं लोग अंदाजा लगाओ क्या खर्च होता होगा कार्यक्रमों में ! नेता लोग एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं किंतु सत्ता में आने पर शांत हो जाते हैं ।
कई नेता हजारों करोड़ के आरोप में जब जेल जाते हैं तो इतने धूम धाम से भेजे जाते हैं कि लगता है जैसे किसी तपस्वी पर अत्याचार हो रहा है और जब छूटकर आते हैं तो उनका काफिला देखकर लगता है जैसे किसी संत का स्वागत हो रहा है !जिन्हें हजारों करोड़ के गमन में वर्षों की सजा सुनाई जाती है वो सप्ताहों महीनों में छूट आते हैं चुनाव लड़ते लड़वाते मंत्री मुख्यमंत्री आदि कुछ भी बन जाते हैं और नहीं तो मेकर आफ मंत्री या मुख्यमंत्री आदि और भी बहुत कुछ बन जाते हैं और वो गमन वाले हजारों करोड़ कहाँ जाते हैं पता ही नहीं लगता ।
दूसरी बात सरकारी अफसरों एवं धनी लोगों की आपसी साँठ से भोगा जाता है देश का धन । छोटे छोटे जिन अधिकारी कर्मचारियों पर छापे पड़ते हैं तो सैकड़ों करोड़ की संपत्ति बरामद होते देखी जाती है और जिन पर नहीं पड़ते वो ईमानदार रईस ।छापे डालने आखिर कोई जाए क्यों मिल भी जाएगा तो कौन अपनी जेब में जाएगा !सरकारी कर्मचारियों की इसी अनात्मीय भावना ने देश की आम जनता की नजरों में सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों को अविश्वसनीय बना दिया है !
प्राइवेट प्राइमरी स्कूलों में एक प्रबंधक बहुत कम पैसे देकर अपने अनट्रेंड शिक्षकों से उत्तम शिक्षा दिलवा लेता है जबकि सरकारी लोग भी अपने बच्चों को उसी प्राइवेट में पढ़ाते हैं सरकारी स्कूलों में नहीं आखिर क्यों ? जबकि सरकार शिक्षा के लिए बड़े बड़े विज्ञापन करती है शिक्षा के लिए योजनाएँ बनाने के लिए बड़े अफसर रखती है मीटिंगें करने के लिए ट्रेंड शिक्षक रखती है उन्हें प्राइवेट की अपेक्षा अधिक सैलरी देती है इसके बाद भी उनकी सैलरी आदि बढ़ाती रहती है फिर भी वो कभी कभी रूठ जाते हैं तो हड़ताल करने लगते हैं तो सरकार उनकी मनौवल कर रही होती है आखिर क्यों जबकि उनसे अधिक योग्य लोग उनसे कम सैलरी पर काम करने को तैयार होते हैं फिर भी सरकारों की मजबूरी क्या होती है क्यों बनने देती है यूनियनें क्यों है हड़ताल की सुविधा !सीधीबात जिसको समझ में आता है सो नौकरी करे अन्यथा त्याग पत्र देकर अन्य योग्य जरूरत मंदों को मौका दे !किन्तु सरकारें ऐसा क्यों करें उनके बच्चे वहां पढ़ते नहीं हैं इससे उनका अपना कोई नुकसान नहीं है जिस आम जनता का है वे कुछ कर नहीं सकते !सरकारी विभागों में कर्मचारियों का जनता के प्रति प्रायः यही रुख होता है जनता उन्हें कुछ ले देकर काम करवावे या हाथ पैर जोड़कर या उनके ठनगन सहकर !इसके अलावा जनता के पास कोई अधिकार नहीं होते हैं उनसे काम लेने के !
अपने देश के ब्राह्मणों के साथ सौतेला बर्ताव करती हैं सरकारें !समाज को लूट कर संपत्ति बनाते हैं नेता !और अपनी चोरी न पकड़ जाए इसलिए बदनाम सवर्णों ब्राह्मणों या हिन्दुओं को किया करते हैं !
बंधुओ ! सवर्णों ब्राह्मणों और हिन्दुओंने कभी किसी का शोषण शोषण का अधिकार केवल नेताओं के पास है किंतु चुनावी विजय हेतु दलितों की आँखों में धूल झोंकने के लिए ब्राह्मणों को दोषी ठहरा देना और अम्बेडकर साहब को ब्रह्मा विष्णु महेश क्या साक्षात परमात्मा तक बता देना इन सत्ता लोलुपों की मजबूरी है!इन्हें पता है कि अल्पसंख्यक ब्राह्मणों की अपेक्षा अधिसंख्यक दलितों को खुश करने के लिए ब्राह्मणों को बदनाम तो करना ही होगा इसी से वोट अधिक मिल सकते हैं!क्योंकि अपनी अच्छाईयों का इन्हें भरोसा ही नहीं होता है इसी लिए हिन्दू मुश्लिमों तथा दलित और सवर्णों को भिड़ाकर ही लूट रहे हैं देश वासियों के हिस्से का धन !फिर भी कहते हैं ये लोकतंत्र है वस्तुतः भारतवर्ष में नेता तंत्र है ।
ब्राह्मण ही एक मात्र ऐसी जाति है जिसे न तो इतिहास में कभी किसी से कोई उम्मींद रही और न ही भविष्य में है लोकतंत्र और आजादी जैसे शब्दों के नाम पर ब्राह्मण केवल जश्न मना सकता है निष्ठा व्यक्त कर सकता है किंतु अपनी बीमारी से लेकर सभी प्रकार अभावों से जूझना उसे स्वयं ही पड़ेगा सरकारों राजनेताओं से उन्हें कोई सहारा नहीं है और न ही आगे की संभावना है । सरकार की शिक्षा रोजगार समेत बहुत सारी योजनाओं का अभिप्राय किसी का विकास नहीं अपितु केवल ब्राह्मणों को अपमानित करना होता है !और इसकी कहीं सुनवाई नहीं होती है ।
चुनावों के समय सभी पार्टियों के नेता भ्रष्टाचार और घोटालों की बड़ी बड़ी बातें करते हैं भ्रष्टाचारी नेताओं के नाम गिनाते हैं जनता उन झुट्ठों की बात मान कर उन्हें सत्ता सौंप देती है कि शायद ये ही भ्रष्टाचारियों को पकड़ें और स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके किंतु जब वो सत्ता में आते हैं तो उन्हें पकड़ना तो दूर खुद लूटने लग जाते हैं !ऐसे नेता किस मुख से सवर्णों और ब्राह्मणों पर मढ़ते हैं दलितों के शोषण का दोष !दलितों के मसीहा माने जाने वालों को भी शरण किसी ब्राह्मण ने ही दी थी बात और है कि बाद में उन्हें भी ब्राह्मणों में ही कमियाँ दिखने लगीं !
सभी जातियों एवं पार्टियों के नेता लूटते खुद हैं तिजोरियाँ अपनी भरते हैं किंतु उनकी लूट घसोट कहीं पकड़ न जाए इसलिए नाम ब्राह्मणों और सवर्णों का लगाते हैं ! दलितों के शोषण लिए घड़ियाली आँसू बहाने वाले सभी जातियों के नेता राजनीति में आए थे तब इनके पास पैसे कितने थे और आज संपत्ति के पहाड़ तैयार कैसे किए गए हैं आखिर उन नेताओं के आय के स्रोत थे क्या ? इसकी ईमानदार जाँच होते ही पता चल जाएगा कि दलितों के शोषण का धन गया कहाँ किस्से कुकर्मों को भोग रहे हैं देश के सभी वर्ग !
दलितों के शोषण का जिम्मेदार ब्राह्मणों को ठहराते रहते हैं अरे !शोषण केवल दलितों का ही नहीं हुआ है शोषित तो सारा समाज है शोषण करता एकमात्र नेता हैं दूसरा कोई चाहे भी तो किसी का शोषण कर ही नहीं सकता है और करे तो छिप नहीं सकता है प्रशासनिक भूत उसके यहाँ भोर में ही घुस जाएंगे और उठा लाएँगे सारा मॉल पानी अन्यथा अपना हिस्सा तो ले ही आएँगे !किंतु नेताओं से सब डरते हैं !इसलिर शोषण का अधिकार केवल नेताओं के पास है शोषण सहने के लिए केवल ब्राह्मण हैं जिन्हें सतयुग त्रेता द्वापर में त्याग तपस्या ने कसौटी पर कसा और कलियुग में सरकारें कस रही हैं कसौटी पर !ब्राह्मण ही एक ऐसी जाति है जिसे न इतिहास में कुछ मिला और न अभी मिल रहा है फिर भी बलिदान देने से कभी न पीछे हटी है और न हटेगी !क्योंकि सबको सुखी रखना उसका उद्घोष है सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः !
आरक्षण नीति में सवर्णों का बहिष्कार क्यों ? सवर्णों को देश की सरकारें अपना क्यों नहीं समझती हैं यह कैसा लोकतंत्र जहाँ इतने बड़े सवर्ण वर्ग की इस गैरजिम्मेदारी से उपेक्षा की जा रही हो !
ब्राह्मणों ने यदि शोषण किया होता तो उनके पास भी संपत्ति होती किंतु सभी जाति के नेताओं ने समाज का शोषण किया है इसीलिए राजनीति में आते समय किराए तक के लिए मोहताज नेता लोगों ने पसीना बहका कभी कोई काम धंधा नहीं किया ,हमेंशा सुख सुविधापूर्ण जीवन जीते रहे जहाजों में चढ़े घूमते रहे फिर भी अरबों खरबोंपति बने बैठे हैं इसे कहते हैं शोषण !जबकि ब्राह्मण आज भी खेतों में पसीना बहाकर परिश्रम करता है सभी की तरह ही सभी प्रकार के सुख दुखों का सामना करता है ब्याज पर पैसे उसे भी लेने पड़ते हैं पैसे के अभाव में आत्म हत्या उसे भी करनी पड़ती है प्रशासन से उत्पीड़ित वो भी होता है इसके बाद भी ब्राह्मणों की निंदा आखिर क्यों ?फिर भी नेता लोग अपनी लूट घसोट छिपाने के लिए ब्राह्मणों को बदनाम करते रहते हैं !
आरक्षण का अधिकार सवर्णों को क्यों नही ! क्या सवर्णों को भूख नहीं लगती है या सवर्ण जातियों में सभी लोग संपन्न हैं ! यदि ये मान भी लिया जाए कि सवर्ण जातियों में कुछ लोगों के पास धन अधिक होगा किन्तु जिनके पास नहीं हैं उन्हें इन लोकतांत्रिक सरकारों ने किसके भरोसे आरक्षण से बाहर रख छोड़ा है आखिर उनका सहयोग कौन करेगा कहीं सरकार ऐसा तो नहीं मानती है कि सवर्णों में जो धनी लोग हैं वो खाना खाएँगे तो गरीब सवर्णों की भूख भी शांत हो जाएगी ! या इन गरीब सवर्णों को पडोसी देशों के सहारे छोड़ दिया गया है ,या इन्हें देश के अलगाववादी तत्वों के साथ तालमेल बिठाकर चलने के लिए छोड़ा गया !
काश !हमारे देश में भी लोकतंत्र होता !जिसमें जनता जो चाहती वो होता या फिर जनता की बात भी सुनी जाती !यह तो नेतातंत्र है इसमें नेता जो चाहते हैं वही होता है !
यदि देश में लोकतंत्र होता तो किसानों की भी सुनी जाती और उन्हें नहीं करनी पड़ती आत्महत्या !किसी पत्रकार को कोई मंत्री जिंदा कैसे जला सकता था,सरकारी प्राइमरी स्कूलों में क्यों नहीं होती है पढ़ाई !सरकारी अस्पतालों में क्यों नहीं मिलती दवाई ? सरकारी आफिसों में आम जनता को धक्के क्यों खाने पड़ते,FIR लिखवाने के लिए नेता जी से फोन क्यों करवाना पड़ता !सरकारी विभागों में अधिकारी कर्मचारियों के द्वारा क्यों की जा रही होती उपेक्षा ?इसलिए लोकतंत्र का तो नाम ही नाम है वोट देने के अलावा कौन पूछता है जनता को !कलियुगी परिवारों में विवाहादि काम काज के समय बुजुर्गों को जिस तरह केवल हाँ करने के लिए बैठा लिया जाता है वही स्थिति भारतीय लोकतंत्र में जनता की है ।
जनता को पता नहीं है कि नेताओं की अकूत संपत्ति के स्रोत क्या हैं इतना जरूर है कि ईमानदारी पूर्वक बिना कुछ किए इतने पैसे कमाए ही नहीं जा सकते !फिर भी हमारे नेता कमा लेते हैं वो कब काम करते हैं क्या काम करते हैं किसी को नहीं पता होता है किंतु संपत्ति हजारों करोड़ में होती है !दूसरी और परिश्रमी किसान मजदूर मर रहे हैं काम कर कर के उन्हें दाल रोटी के लाले पड़े होते हैं !आखिर कैसा है ये लोकतंत्र ?जहाँ जनता को कुछ पता ही नहीं है फिर भी जनतंत्र है
अधिकार तो तब भी सरकार और उसके कर्मचारियों के पास थे और अभी भी वहीँ हैं किंतु आमजनता तो केवल वोट देने के लिए होती है
जनता भी राजनैतिक पार्टियों की लड़ाई तो लड़ा करती है एक को हटाना दूसरे को बैठाना दूसरे को हटाकर तीसरे को बैठाना किन्तु अपनी लड़ाई कब और कैसे लड़ेगी जनता जिससे आएगा जनतंत्र ?
वैसे भी वर्तमान समय में लोकतंत्र और कानून का सम्मान तो गरीब एवं मध्यमवर्ग करता है धनी और नेताओं का तो कानून स्वयं अनुगमन करने लगता है । ऐसे नेता जनता के अधिकारों की उपेक्षा करके मनमानी करने लगते हैं दूसरी ओर जनादेश संपन्न शासकों के सामने मुख खोलने का साहस किसी में नहीं होता !नौकरी करनी हो या राजनीति जहाँ जनादेश वहाँ सैल्यूट ! ऐसी परिस्थिति में लोकतंत्र कैसे संभव है ?
जिस नेता को चुनावों में बहुमत मिलजाता है वो प्रायः उस जनादेश का अपने को मालिक समझने लगता है जनादेश का गुरूर उसके चेहरे पर साफ झलकता दिखता है वो दिखावटी विनम्रता चाहे जितनी ओढ़े किंतु सच्चाई झलक ही जाती है !जनादेश संपन्न नेता अपने को सर्वगुण संपन्न समझने लगते हैं उनकी जहाँ जरूरत है वहाँ उतना ध्यान न देकर जो काम समाज के अन्य लोगों के होते हैं वहाँ अपनी बहुमूल्य ऊर्जा लगाया करते हैं !जनादेशशक्ति से सक्षम शासक जिसे जैसा चाहे वैसा नाच नचावे अपने देश और प्रदेश के अपने मातहत लोगों से जो चाहे सो करवावे , वो कह दे कि कान पकड़कर उठो बैठो तो उसे वैसा करना पड़ेगा !आखिर पाँच वर्ष तक उसका चाह कर भी दूसरा कोई क्या बिगाड़ लेगा बहुमत उसके साथ है । नौकरी करनी हो या राजनीति जहाँ जनादेश वहाँ सैल्यूट अन्यथा गए काम से !
ऐसे शासक चाहें तो अपनी ताकत का इस्तेमाल निगरानी तंत्र को मजबूत बनाकर जन सेवा के लिए कर सकते हैं वालेंटियर तैयार करके घुसाए जा सकते हैं सरकारी कार्यालयों में जहाँ जनता को अकेला जूझना पड़ता है आखिर आम जनता की बात सुनने वाला वहाँ कोई तो होगा जो सुने और समझेगा जनता की परेशानी किंतु उसमें ठसक नहीं दिखाई पड़ती है इसलिए प्रायः ऐसे प्रशासक तमाशा पसंद होते हैं जिसका पता पाँच वर्ष बीतने पर लगता है !
एक ओर लगातार काम करने पर भी आम जनता को दाल रोटी जुटाने के लाले पड़े होते हैं परिश्रमी किसान जरूरत की चीजों की चिंता में आत्महत्या कर रहे होते हैं जबकि नेताओं के पास न कोई काम करने का समय न कोई काम करते देखता है किंतु जहाँ जाते हैं वहाँ जहाजों से, रहते हैं कोठियों में, टहलते हैं महँगी गाड़ियों से, बच्चे पढ़ाते हैं महँगे स्कूलों में , इनके बेटा बेटियों के शादी विवाह में तो करोड़ों का पानी पी जाते हैं लोग अंदाजा लगाओ क्या खर्च होता होगा कार्यक्रमों में ! नेता लोग एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं किंतु सत्ता में आने पर शांत हो जाते हैं ।
कई नेता हजारों करोड़ के आरोप में जब जेल जाते हैं तो इतने धूम धाम से भेजे जाते हैं कि लगता है जैसे किसी तपस्वी पर अत्याचार हो रहा है और जब छूटकर आते हैं तो उनका काफिला देखकर लगता है जैसे किसी संत का स्वागत हो रहा है !जिन्हें हजारों करोड़ के गमन में वर्षों की सजा सुनाई जाती है वो सप्ताहों महीनों में छूट आते हैं चुनाव लड़ते लड़वाते मंत्री मुख्यमंत्री आदि कुछ भी बन जाते हैं और नहीं तो मेकर आफ मंत्री या मुख्यमंत्री आदि और भी बहुत कुछ बन जाते हैं और वो गमन वाले हजारों करोड़ कहाँ जाते हैं पता ही नहीं लगता ।
दूसरी बात सरकारी अफसरों एवं धनी लोगों की आपसी साँठ से भोगा जाता है देश का धन । छोटे छोटे जिन अधिकारी कर्मचारियों पर छापे पड़ते हैं तो सैकड़ों करोड़ की संपत्ति बरामद होते देखी जाती है और जिन पर नहीं पड़ते वो ईमानदार रईस ।छापे डालने आखिर कोई जाए क्यों मिल भी जाएगा तो कौन अपनी जेब में जाएगा !सरकारी कर्मचारियों की इसी अनात्मीय भावना ने देश की आम जनता की नजरों में सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों को अविश्वसनीय बना दिया है !
प्राइवेट प्राइमरी स्कूलों में एक प्रबंधक बहुत कम पैसे देकर अपने अनट्रेंड शिक्षकों से उत्तम शिक्षा दिलवा लेता है जबकि सरकारी लोग भी अपने बच्चों को उसी प्राइवेट में पढ़ाते हैं सरकारी स्कूलों में नहीं आखिर क्यों ? जबकि सरकार शिक्षा के लिए बड़े बड़े विज्ञापन करती है शिक्षा के लिए योजनाएँ बनाने के लिए बड़े अफसर रखती है मीटिंगें करने के लिए ट्रेंड शिक्षक रखती है उन्हें प्राइवेट की अपेक्षा अधिक सैलरी देती है इसके बाद भी उनकी सैलरी आदि बढ़ाती रहती है फिर भी वो कभी कभी रूठ जाते हैं तो हड़ताल करने लगते हैं तो सरकार उनकी मनौवल कर रही होती है आखिर क्यों जबकि उनसे अधिक योग्य लोग उनसे कम सैलरी पर काम करने को तैयार होते हैं फिर भी सरकारों की मजबूरी क्या होती है क्यों बनने देती है यूनियनें क्यों है हड़ताल की सुविधा !सीधीबात जिसको समझ में आता है सो नौकरी करे अन्यथा त्याग पत्र देकर अन्य योग्य जरूरत मंदों को मौका दे !किन्तु सरकारें ऐसा क्यों करें उनके बच्चे वहां पढ़ते नहीं हैं इससे उनका अपना कोई नुकसान नहीं है जिस आम जनता का है वे कुछ कर नहीं सकते !सरकारी विभागों में कर्मचारियों का जनता के प्रति प्रायः यही रुख होता है जनता उन्हें कुछ ले देकर काम करवावे या हाथ पैर जोड़कर या उनके ठनगन सहकर !इसके अलावा जनता के पास कोई अधिकार नहीं होते हैं उनसे काम लेने के !
अपने देश के ब्राह्मणों के साथ सौतेला बर्ताव करती हैं सरकारें !समाज को लूट कर संपत्ति बनाते हैं नेता !और अपनी चोरी न पकड़ जाए इसलिए बदनाम सवर्णों ब्राह्मणों या हिन्दुओं को किया करते हैं !
बंधुओ ! सवर्णों ब्राह्मणों और हिन्दुओंने कभी किसी का शोषण शोषण का अधिकार केवल नेताओं के पास है किंतु चुनावी विजय हेतु दलितों की आँखों में धूल झोंकने के लिए ब्राह्मणों को दोषी ठहरा देना और अम्बेडकर साहब को ब्रह्मा विष्णु महेश क्या साक्षात परमात्मा तक बता देना इन सत्ता लोलुपों की मजबूरी है!इन्हें पता है कि अल्पसंख्यक ब्राह्मणों की अपेक्षा अधिसंख्यक दलितों को खुश करने के लिए ब्राह्मणों को बदनाम तो करना ही होगा इसी से वोट अधिक मिल सकते हैं!क्योंकि अपनी अच्छाईयों का इन्हें भरोसा ही नहीं होता है इसी लिए हिन्दू मुश्लिमों तथा दलित और सवर्णों को भिड़ाकर ही लूट रहे हैं देश वासियों के हिस्से का धन !फिर भी कहते हैं ये लोकतंत्र है वस्तुतः भारतवर्ष में नेता तंत्र है ।
ब्राह्मण ही एक मात्र ऐसी जाति है जिसे न तो इतिहास में कभी किसी से कोई उम्मींद रही और न ही भविष्य में है लोकतंत्र और आजादी जैसे शब्दों के नाम पर ब्राह्मण केवल जश्न मना सकता है निष्ठा व्यक्त कर सकता है किंतु अपनी बीमारी से लेकर सभी प्रकार अभावों से जूझना उसे स्वयं ही पड़ेगा सरकारों राजनेताओं से उन्हें कोई सहारा नहीं है और न ही आगे की संभावना है । सरकार की शिक्षा रोजगार समेत बहुत सारी योजनाओं का अभिप्राय किसी का विकास नहीं अपितु केवल ब्राह्मणों को अपमानित करना होता है !और इसकी कहीं सुनवाई नहीं होती है ।
चुनावों के समय सभी पार्टियों के नेता भ्रष्टाचार और घोटालों की बड़ी बड़ी बातें करते हैं भ्रष्टाचारी नेताओं के नाम गिनाते हैं जनता उन झुट्ठों की बात मान कर उन्हें सत्ता सौंप देती है कि शायद ये ही भ्रष्टाचारियों को पकड़ें और स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके किंतु जब वो सत्ता में आते हैं तो उन्हें पकड़ना तो दूर खुद लूटने लग जाते हैं !ऐसे नेता किस मुख से सवर्णों और ब्राह्मणों पर मढ़ते हैं दलितों के शोषण का दोष !दलितों के मसीहा माने जाने वालों को भी शरण किसी ब्राह्मण ने ही दी थी बात और है कि बाद में उन्हें भी ब्राह्मणों में ही कमियाँ दिखने लगीं !
सभी जातियों एवं पार्टियों के नेता लूटते खुद हैं तिजोरियाँ अपनी भरते हैं किंतु उनकी लूट घसोट कहीं पकड़ न जाए इसलिए नाम ब्राह्मणों और सवर्णों का लगाते हैं ! दलितों के शोषण लिए घड़ियाली आँसू बहाने वाले सभी जातियों के नेता राजनीति में आए थे तब इनके पास पैसे कितने थे और आज संपत्ति के पहाड़ तैयार कैसे किए गए हैं आखिर उन नेताओं के आय के स्रोत थे क्या ? इसकी ईमानदार जाँच होते ही पता चल जाएगा कि दलितों के शोषण का धन गया कहाँ किस्से कुकर्मों को भोग रहे हैं देश के सभी वर्ग !
दलितों के शोषण का जिम्मेदार ब्राह्मणों को ठहराते रहते हैं अरे !शोषण केवल दलितों का ही नहीं हुआ है शोषित तो सारा समाज है शोषण करता एकमात्र नेता हैं दूसरा कोई चाहे भी तो किसी का शोषण कर ही नहीं सकता है और करे तो छिप नहीं सकता है प्रशासनिक भूत उसके यहाँ भोर में ही घुस जाएंगे और उठा लाएँगे सारा मॉल पानी अन्यथा अपना हिस्सा तो ले ही आएँगे !किंतु नेताओं से सब डरते हैं !इसलिर शोषण का अधिकार केवल नेताओं के पास है शोषण सहने के लिए केवल ब्राह्मण हैं जिन्हें सतयुग त्रेता द्वापर में त्याग तपस्या ने कसौटी पर कसा और कलियुग में सरकारें कस रही हैं कसौटी पर !ब्राह्मण ही एक ऐसी जाति है जिसे न इतिहास में कुछ मिला और न अभी मिल रहा है फिर भी बलिदान देने से कभी न पीछे हटी है और न हटेगी !क्योंकि सबको सुखी रखना उसका उद्घोष है सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः !
आरक्षण नीति में सवर्णों का बहिष्कार क्यों ? सवर्णों को देश की सरकारें अपना क्यों नहीं समझती हैं यह कैसा लोकतंत्र जहाँ इतने बड़े सवर्ण वर्ग की इस गैरजिम्मेदारी से उपेक्षा की जा रही हो !
ब्राह्मणों ने यदि शोषण किया होता तो उनके पास भी संपत्ति होती किंतु सभी जाति के नेताओं ने समाज का शोषण किया है इसीलिए राजनीति में आते समय किराए तक के लिए मोहताज नेता लोगों ने पसीना बहका कभी कोई काम धंधा नहीं किया ,हमेंशा सुख सुविधापूर्ण जीवन जीते रहे जहाजों में चढ़े घूमते रहे फिर भी अरबों खरबोंपति बने बैठे हैं इसे कहते हैं शोषण !जबकि ब्राह्मण आज भी खेतों में पसीना बहाकर परिश्रम करता है सभी की तरह ही सभी प्रकार के सुख दुखों का सामना करता है ब्याज पर पैसे उसे भी लेने पड़ते हैं पैसे के अभाव में आत्म हत्या उसे भी करनी पड़ती है प्रशासन से उत्पीड़ित वो भी होता है इसके बाद भी ब्राह्मणों की निंदा आखिर क्यों ?फिर भी नेता लोग अपनी लूट घसोट छिपाने के लिए ब्राह्मणों को बदनाम करते रहते हैं !
आरक्षण का अधिकार सवर्णों को क्यों नही ! क्या सवर्णों को भूख नहीं लगती है या सवर्ण जातियों में सभी लोग संपन्न हैं ! यदि ये मान भी लिया जाए कि सवर्ण जातियों में कुछ लोगों के पास धन अधिक होगा किन्तु जिनके पास नहीं हैं उन्हें इन लोकतांत्रिक सरकारों ने किसके भरोसे आरक्षण से बाहर रख छोड़ा है आखिर उनका सहयोग कौन करेगा कहीं सरकार ऐसा तो नहीं मानती है कि सवर्णों में जो धनी लोग हैं वो खाना खाएँगे तो गरीब सवर्णों की भूख भी शांत हो जाएगी ! या इन गरीब सवर्णों को पडोसी देशों के सहारे छोड़ दिया गया है ,या इन्हें देश के अलगाववादी तत्वों के साथ तालमेल बिठाकर चलने के लिए छोड़ा गया !
इस विषय में हमारे निम्न लिखित लेख भी पढ़े जा सकते हैं -
भ्रष्टाचार के स्रोत क्या हैं और इसे समाप्त कैसे किया जा सकता है ?
सरकार के हर विभाग में भ्रष्टाचार व्याप्त है उससे छोटे से बड़े तक
अधिकांश कर्मचारी लाभान्वित होते हैं इसलिए उन पर भ्रष्टाचार की जो
विभागीय जाँच होती है वहाँ क्लीन चिट मिलनी ही होती है क्योंकि यदि नहीं
मिली तो उसके तार उन तक जुड़े निकल सकते हैं जो जाँच करsee
more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/01/blog-post_19.html
दलित शब्द का अर्थ कहीं दरिद्र या गरीब तो नहीं है ?
समाज के एक परिश्रमी वर्ग का नाम पहले तो दलित अर्थात दबा, कुचला टुकड़ा,भाग,खंड
आदि रखने की साजिश हुई। ऐसे अशुभ सूचक नाम कहीं मनुष्यों के होने चाहिए
क्या? वो भी भारत वर्ष की जनसंख्या के बहुत बड़े वर्ग को दलितsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2013/03/blog-post_2716.html
आरक्षण बचाओ संघर्ष आखिर क्या है ? और किससे ?
आरक्षणबचाओसंघर्ष
या बुद्धुओं को बुद्धिमान बताने का संघर्ष आखिर क्या है ?ये संघर्ष उससे
है जिसका हिस्सा हथियाने की तैयारी है।ये अत्यंत निंदनीय है ! जिसमें चार
घंटे अधिक काम करने की हिम्मत होगी वो आरक्षण
माँगेगा ही क्यों ?उसे अsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_3571.html
गरीब सवर्णों को भी आरक्षण की भीख मिलेगी ?
चूँकि किसी भी प्रकार का आरक्षण कुछ गरीबों, असहायों को दाल रोटी की व्यवस्था करने के लिए दिया जाने वाला सहयोग है इससे जिन लोगों का हक मारा जाता है वे इस आरक्षण को भीख एवं जिन्हें दिया जाता है उसे भिखारी समझते हैंsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_3184.html
चूँकि किसी भी प्रकार का आरक्षण कुछ गरीबों, असहायों को दाल रोटी की व्यवस्था करने के लिए दिया जाने वाला सहयोग है इससे जिन लोगों का हक मारा जाता है वे इस आरक्षण को भीख एवं जिन्हें दिया जाता है उसे भिखारी समझते हैंsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_3184.html
आरक्षण एक बेईमान बनाने की कोशिश !
जो परिश्रम करके अपने को जितना ऊँचे उठा लेगा वह उतने ऊँचे पहुँचे यह ईमानदारी है लेकिन जो यह स्वयं मान चुका हो कि हम अपने बल पर वहाँ तक नहीं पहुँच सकते ऐसी हिम्मत हार चुका हो ।see
more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_8242.html
पहले आरक्षण समर्थक नेताओं की संपत्ति की हो जाँच तब आरक्षण की बात!
प्रतिभाओं के दमन का षड़यंत्र
जब गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की बात उठी तो उस समय एक मैग्जीन में मेरा लेख छपा था कि आरक्षण एक प्रकार
की भीख है जो किसी को नहीं लेनी चाहिए, तो आरक्षण समर्थक कई सवर्ण लोगों के
पत्र और फोन आए कि जब सभी जातियों को आरक्षण चाहिए तो हमें भी मिलना
चाहिए।मैंने उनका विरोध करके कहा था कि किसी को आरक्षण क्यों चाहिए।
यहsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_6099.html
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