Tuesday, 14 July 2015

चर्चा के भय से संसद न चलने दी जाए ये कहाँ का न्याय है !

नेता यदि शिक्षित होते तो बहस में भाग लेते !पर्चियाँ पढ़ने वाले नेता हुल्लड़ न करें तो क्या करें चर्चा उनके बश की नहीं है !
     चर्चा करने के लिए ज्ञान अनुभव भाषा भावना आदि सब कुछ तो चाहिए !हमारा भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है इसकी संसद चर्चा का महान मंच है और प्रमुख  विपक्षी दल ही सबसे पुरानी पार्टी है जिसके शीर्ष नेता के साथ देश के सबसे पुराने राजनैतिक खानदान की पहचान जुड़ी  हो और वो संसद में अपनी बात कहने के नाम पर यदि पर्चियाँ पढ़ रहा हो तो ऐसे व्यक्ति से क्या आशा !
    भारत वर्ष बड़े बड़े विद्वानों की भूमि है और देश में सार्थक चर्चा का सबसे बड़ा मंच संसद है जहाँ की चर्चा पर विश्व मीडिया का ध्यान होता है वहाँ प्रधानमंत्री बनने के सपने देखने वाले किसी व्यक्ति के पास अपनी भावना न हो अपनी भाषा न हो अपनी लिपि न हो ऐसे लोग संसद कैसे चलने देंगे और क्यों चलने देंगे जहाँ उनका कोई रोल ही न हो !पर्चे पढ़ पढ़ कर बहस तो नहीं की जा सकती है ।       
    संसद केवल इसलिए न चलने दी जाए कि कुछ नेता लोग चर्चा से डरते हों या अपनी बात कहने के लिए पर्चियों का सहारा लेते हों ये कहाँ का न्याय है !यदि हमें बोलना न आता हो तो  संसद में चर्चा क्या करें और खुद चर्चा करने लायक न हों तो संसद क्यों चले दें ! पर्चियाँ पढ़ने वालों ने संसद का बहुमूल्य समय ब्यर्थ में नष्ट कर दिया ! विपक्ष का उच्चतर नेता संसद में पर्चियाँ पढ़ पढ़ कर सुना रहा था !जो नेता बोल न पाते हों वो संसद क्यों चलने दें !

   आज संसद में मची हुल्लड़ बाजी से क्या सीखें देश के युवा? समाज में भाई चारे की भावना ये लोग भरेंगे ! जो खुद आपसे में शांति से चर्चा नहीं कर सकते ! समय पास करने के लिए खानापूर्ति मात्र हो पा रही है ।सत्ता के लिए कितनी भी निम्नता तक उतरने के लिए तैयार है वर्तमान राजनीति !आगामी सुबुद्ध ज्ञानवान जनसेवक नेतृत्व का रास्ता रोके खड़े हैं वर्तमान राजनैतिक  उपद्रवी लोग !किसी को कुछ भी बोल जाते हैं उसके जवाब में सामने वाला भी कुछ भी बोल जाता है मजे की बात यह दोनों को नहीं पता है कि वे क्या बोल रहे हैं और जो बोल रहे हैं क्या उन्हें बोलना चाहिए !
   वैसे भी राजनैतिक पार्टियों में भी सैंपल पीस के रूप में ही रखे जाते हैं कुछ योग्य ,ईमानदार एवं अनुभवी लोग !राजनैतिक मंडियों में योग्य और ईमानदार नेताओं की डिमांड  ही बहुत कम है आखिर इनको पसंद ही कौन करता है !राजनैतिक दलों को जनता के बीच जाकर ईमानदारी की बातें करने के लिए अपनी पार्टी में भी ईमानदारी के कुछ सैंपल पीस तो दिखाने भी पड़ते हैंअन्यथा बिलकुल बनावटी ईमानदारी पर भरोसा करेगा भी कौन
     राजनैतिक पार्टियों में भी सैंपल पीस के रूप में रखे जाते हैं योग्य और ईमानदार लोग !किन्तु बिलकुल गाँधी जी के तीन बंदरों की तरह किसी को बोलना मना  होता है किसी को सुनना और किसी को देखना !कोई बात पूछने पर ये केवल सर हिलाकर प्रतिक्रिया दे सकते हैं जिसके हाँ और ना दोनों में अर्थ निकलते हों जिसकी व्याख्या बाद में अपनी सुविधानुशार करवाई जाती है ऐसे डरावने समय में भी कुछ राजनेता लोग अभी भी जी लेते हैं अपने सजीव सिद्धांतों के साथ ! 
          राजनैतिक पार्टियों में अयोग्यों अशिक्षितों अनुभव विहीनों एवं अपराधियों का प्रवेश  भले ही आसानी से हो जाता हो किंतु शिक्षित योग्य अनुभवी और ईमानदार लोगों को राजनीति में घुसने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं आज भी !ये उनकी आत्मा ही जानती होगी इसके बाद भी केवल सैंपलपीस की तरह दिखाने भर के लिए राजनैतिक दलों में भी रख ही लिए जाते हैं कुछ भले और ईमानदार लोग !

    योग्य, सुशिक्षित ईमानदार और प्रतिभा सम्पन्न  कार्यकर्ताओं से दूर क्यों भागती हैं राजनैतिक पार्टियाँ ?आखिर सदाचरण सहने का अभ्यास उन्हें क्यों नहीं करना चाहिए ! यदि ऐसा नहीं कर सकते तो भ्रष्टाचार का विरोध वो करते आखिर किस मुख से हैं !केवल अपने को ईमानदार दिखाने के लिए भ्रष्टाचार के विरुद्ध मचाते हैं शोर !
 आज की तारीख में राजनीति! धनबली बाहुबली धोखाधड़ी एवं झूठ फरेब करने बालों की अधिकृत मंडी है राजनीति ! सभी प्रकार के अपराधी बेखौफ होकर भागते हैं राजनीति की ओर !यही एकमात्र ऐसा स्थल है जहाँ पहुँचकर अपराधी भी आँख दिखा सकते हैं प्रशासन को !और ठेंगा दिखा देते हैं कानून को !उन्हें राजनैतिक दलों में शरण मिल भी जाती है !
  बंधुओ!ये कोई संयोग नहीं होता है कि कुछ लोग अचानक ही निकल आते हैं अपराधी! सच्चाई तो यह है कि दागदार लोग जान बूझ कर रखते हैं राजनैतिक दलों के मालिक, ताकि जैसे ही उनसे थोड़ी बहुत अनबन शुरू हो तो पोल खोल देने की बात कहकर उन्हें धमकाकर चुप करा दिया जाए !जबकि योग्य  लोगों को ऐसे समय सँभाल पाना बहुत कठिन होता है !राजनैतिक दलों में ये बीमारी आज मंडल और ब्लॉक स्तर तक फैल चुकी है हर पदाधिकारी चाहता है कि उसका कोई कंपटेटिव न हो ताकि वो जैसा चाहे वैसा कर सके और जब कोई पद प्रतिष्ठा या टिकट मिलने का शुभ अवसर आवे तो अपने आस पास के बाक़ी लोगों को बदनाम करके अपना नाम आगे बढ़ा लिया जाए ! अपने इन्हीं दुर्गुणों के कारण पार्टियों में ब्लॉक से लेकर मंडल तक के प्रमुख लोग स्वयं ही सँभाल रहे हैं मोर्चा !बड़ी बड़ी पार्टियों के प्रांतीय प्रमुख पदाधिकारी स्वयं गोदने में लगें हैं फेस बुक ताकि अपने आस पास किसी और की पहचान न बन जाए ! 
  भ्रष्टाचार समर्थक दल प्रतिभासंपन्न सुशिक्षित ईमानदार युवकों को अपनी पार्टियों में घुसने ही नहीं देते ! आखिर क्यों क्या कमी होती है उनमें !
     अयोग्य लोगों को योग्य पदों पर बैठाने के पीछे का भाव आखिर क्या होता है राजनैतिक दलों का ! यही न कि ऐसे लोग अपने राजनैतिक स्वामियों के सामने खड़े दुम हिलाते रहेंगे और बताते रहेंगे उन्हें ब्रह्मा विष्णु महेश !जैसे किसान जिन बैलों को जोतना चाहता है उन्हें पहले नपुंसक बना लेता है बाद में जोतता है हल में क्या राजनैतिक दल भी अपने कार्यकर्ताओं के प्रति अब इसी भावना से भावित होते जा रहे हैं अन्यथा प्रतिभा संपन्न लोगों को अपने दलों में पदाधिकारी बनाने में क्या कठिनाई होती है उन्हें ! यही न कि वो गलत को गलत कहेंगे ,भ्रष्टाचार का विरोध करेंगे ,अपराधियों का बहिष्कार करेंगे सदाचरण को प्रोत्साहित करेंगे किंतु ये सब न हो इसीलिए तो योग्य सुशिक्षित और प्रतिभा सम्पन्न लोगों से दूर भागती हैं राजनैतिक पार्टियाँ !
     केवल यही न कि उनकी नजर में देश की जनता केवल वोट बैंक है इससे ज्यादा कुछ नहीं । जैसे कसाई को बकड़ी में केवल मांस दिखता है ,बलात्कारी को लड़की में केवल सेक्स दिखता है ठीक इसी प्रकार से नेताओं  को  जनता में केवल वोट दिखते हैं !जैसे कसाई को बकड़ी की भावनाओं की परवाह नहीं होती, जैसे बलात्कारी को लड़की की भावनाओं की परवाह नहीं होती वैसे ही नेता को जनता की भावनाओं की परवाह नहीं होती !जैसे कसाई बकड़ी को काटने से पहले उसकी पीठ सहलाता है जैसे बलात्कारी लड़की से बलात्कार करने से पहले उससे प्यार करने का नाटक करता है ऐसे ही धोखा देने से पहले नेता लोग जनता को सारे आश्वासन देते हैं सब कुछ देने की बातें करते हैं !बाद में न चाहते हुए भी जैसे बकड़ी को सबकुछ सहना पड़ता है ,लड़की को सहना पड़ता है वैसे ही जनता को भी सबकुछ सहना ही पड़ता है । 
   राजनैतिक पार्टियों के मठाधीश देश की जनता से केवल उनका वोट लेना चाहते हैं लेकिन चौधराहट अपनी ही चलाना चाहते हैं !
     वायदा बाजार की तरह ही राजनीति में भी सारा आदान प्रदान केवल बातों का ही होता है बड़े बड़े मगरमच्छों ने अपने एवं अपनों के लिए बना रखी हैं राजनैतिक पार्टियाँ और चुनाव आते ही जनता को तरह तरह से बेवकूफ बनाना शुरू कर देते हैं चुनाव आते ही कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर आयोजित करती हैं । क्या वहाँ सदाचरण और ईमानदारी सिखाई जाती होगी या समझाया जाता होगा शांति पूर्ण मतदान करने कराने का ज्ञान विज्ञान !वर्तमान राजनैतिक दलों से जो लोग ऐसी पवित्र आशाएँ करते हैं वो घोर अंधकार में हैं उन्हें चाहिए कि देश के योग्य ,ईमानदार और प्रतिभा संपन्न लोगों को स्वतन्त्र रूप से उतारना चाहिए चुनावों में और स्वराष्ट्र में घटती नैतिकता की आपूर्ति के लिए संस्कार संपन्न लोगों को बढ़ाना चाहिए आगे !वर्तमान राजनैतिक दलों से निराश ही होना पड़ा है और आगे भी आशा करने का कोई औचित्य नहीं दिखता है अन्यथा
भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति के लिए जो पार्टियाँ नेताओं के लिए भी शिक्षा अनिवार्य करें उनका समर्थन किया जाना चाहिए !

    जैसे जमीन के अंदर हर जगह पानी है वैसे ही राजनीति में भ्रष्टाचार है !खोदाई के बिना पानी नहीं मिलता और जाँच के बिना भ्रष्टाचार !!see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2015/07/blog-post_12.html

 

       

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