Sunday, 12 July 2015

सांसद विधायक पहले शिक्षित और शालीन होते थे तब नहीं होती थी ऐसी हुड़दंग ! योग्यता के आधार पर ही होता था नेताओं का सम्मान !

  जिसे कुछ पता ही न हो वो चर्चा क्या करे !शिक्षा नहीं तो ज्ञान नहीं और ज्ञान नहीं तो चर्चा क्या ?ऐसे तो हुल्लड़ ही होगा या फिर फेंके जाएँगे माईक और पटकी जाएँगी कुर्सियाँ !फाड़े जाएँगे कागज पत्तर !यही तो है आज की राजनीति ! कोई पार्टी आज पढ़े लिखे ईमानदार लोगों को अपनी पार्टी में घुसने ही नहीं देना चाहती और यदि भाग्यवश घुस भी गए तो वो रखे हासिए पर ही जाते हैं । 
   जिसे जो पता है वही तो करेगा !अब जिसने केवल पहलवानी ही सीखी हो वो श्रेष्ठ सदनों की चर्चा में भाग कैसे ले !ये उसका काम ही नहीं है वो तो अपनी सहभागिता निभाने के लिए माईक फेंक सकता है किसी के ऊपर कुर्सी पटक सकता है किंतु वो ज्ञान विज्ञान की संविधान सम्मत चर्चा क्या जाने जिसने कुछ पढ़ा ही न हो !इसलिए चुनाव लड़ने के लिए शिक्षा अनिवार्य क्यों न की जाए !ताकि लोक सभा और विधान सभाओं का हुल्लड़ बंद हो !और इन श्रेष्ठ सदनों का जनहित में सदुपयोग हो सके !
   जनप्रतिनिधियों का शोर हुल्लड़ तू तू मैं मैं  हो या माइक फेंकना !कुर्सी पटकना ही क्यों न हो क्या इन श्रेष्ठ सदनों का यही सदुपयोग है ! सांसदों विधायकों में कवि अधिक होंगे तो कविताओं से उदाहरण देंगे,लेखक होंगें तो साहित्य से देंगे, कुछ पढ़े लिखे होंगे अच्छे बुरे की  समझ होगी इसके अलावा जो लोग जैसे होंगे वैसी चर्चा होगी ! चर्चा के लिए कुछ जानना जरूरी है जानने के लिए कुछ पढ़ना जरूरी है किन्तु राजनीति करने के लिए शिक्षा जरूरी नहीं है आखिर क्यों ?बिना ज्ञान के    चर्चा नहीं हो सकती शिक्षा के बिना ज्ञान कैसे संभव है !
  शिक्षित सांसद अधिक होंगे तो चर्चा होगी चिंतन होगा विचारों में सहमति होगी !अशिक्षित नेता लोग  तू तू मैं मैं न करें असंसदीय भाषा न बोलें इसीप्रकार से पहलवान उद्दंड लोग माइक न तोड़ें कुर्सी न फेंकें   तो आखिर अपनी योग्यता का परिचय कैसे दें ! सत्तापक्ष हो या विपक्ष नेताओं के आपसी तू तू मैं मैं से आखिर क्या सीखे युवा पीढ़ी ?
   बहुमत के मद में सरकारों की मनमानी सत्ता छिनने के दुःख से विपक्ष की बदजुवानी से आखिर क्या सीखे युवा पीढ़ी ! निराश करने वाली उभाऊ राजनीति से कैसे सुरक्षित रखी जाए तरुणाई !आज सबसे बड़ा प्रश्न यह है !
    सत्तापक्ष और विपक्षी दलों और नेताओं के बीच आपसी संबंधों का स्तर इतना नहीं गिरना चाहिए कि देखने वालों को लगने लगे कि जैसे हाथी चला जा रहा है और कुत्ते भौंकते जा रहे हैं किंतु हाथी को परवाह ही न हो और कुत्तों को समझ में न आ रहा हो कि अब इसे रोकने के लिए करें तो क्या करें ! 
     
    आज देश की राजनीति इसी प्रकार से सर्व दुर्गुण संपन्न होती जा रही है और संवैधानिक मर्यादाओं  की सीमा रेखाएँ मिटती  जा रही हैं मंत्री मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री आदि पर तो विपक्ष ऐसे अपनी खुंदक निकलता है जैसे किसी गाँव में आए हाथी को देखकर कुत्ते भौंकने लगते हैं ।
    बंधुओ !यदि वो हाथी ये समझकर सुधार  भी करना भी चाहे कि आखिर इन्हें परेशानी क्या है ये क्यों भौंक रहे हैं तो उसे पता ही नहीं नहीं लग पाता है कि कारण क्या है । यदि हाथी आगे की ओर बढ़ता है तो ये भौंक रहे होते हैं तो हाथी सोचता है कि लग रहा है कि मेरा आगे की ओर जाना इन्हें पसंद नहीं है तो वो पीछे की ओर चलने लगता  तो भी ये उधर से घेर कर भौंकने लगते हैं फिर हाथी ने समझ लिया कि इनकी परवाह करनी ठीक नहीं है लग रहा है कि इन्हें खुद पता ही नहीं है कि इन्हें बुरा क्या लग रहा है इसलिए वो उनकी बिना परवाह किए ही चलने लगता है ।  बंधुओ ! वर्तमान समय राजनीति की भी यही स्थिति है कि सत्तापक्ष और विपक्ष का आपसी व्यवहार भी इसी प्रकार का होता जा रहा है सत्तापक्ष थोड़े बहुत दिन तो विपक्ष की परवाह करता है किंतु जब उसे बीमारी पता लगती है कि पाँच वर्ष तक ऐसा करना ही पड़ेगा अन्यथा पार्टी के मालिक लोग इन्हें धक्का मारकर बाहर करेंगे इसलिए इनकी बिना परवाह किए ही आगे बढ़ना पड़ेगा तब वो हाथी की तरह बिना परवाह किए ही आगे बढ़ने लगता है तो कहते हैं कि सत्ता पक्ष निरंकुश हो रहा है !सत्ता पक्ष करे तो आखिर क्या करे !चुनाव जीत कर उसने कोई अपराध कर लिया है क्या ?
    बंधुओ ! निजी हमलों के अशोभनीय प्रहारों से सत्ता और विपक्ष के जहरीले संवादों ने समाज से शालीनता का हरण किया है । अब कोई किसी की परवाह नहीं कर रहा है जिसे जो मन आ रहा है वो वही कहता है वही करता है वो कितना भी गलत ही क्यों न हो ,कानून जेब में डाले घूम रहे हैं अपराधी !नेताओं के ये दोष और दुर्गुण संसद और विधान सभाओं से निकलकर समाज में और समाज से परिवारों तक पहुँचने लगे हैं जिन्हें रोका  जाना बहुत जरूरी है । 
   बंधुओ !सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों के बीच आपसी संबंध ऐसे नहीं होने चाहिए कि हाथी चला जाता है और कुत्ते भौंका करते हैं !जब सरकार की अच्छी बुरी हर बात को विपक्ष नकारने लगता है और सरकार अपनी अच्छी बुरी हर बात विपक्ष की परवाह न करती हुई विपक्ष और जनता पर थोपने लगती  है तब बनने लगती है यह तस्वीर ! जो लोकतंत्र के लिए घातक होती है।
   ऐसे दृश्य देखकर जनता को राजनीति से होने लगती है घोर निराशा !यह सब देखकर भी बेमन ही सही जनता ढोया करती है पूर्वजों का स्वप्निल लोकतंत्र !और पालन करती रहती है ऐसे नेताओं के बनाए कानून !जिनके अपने उठने बैठने बोलने व्यवहार करने के ढंग से जनता घृणा करने लगी है आज !
      बंधुओ !लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने के लिए उचित है कि विपक्ष की प्रमाणित बातों एवं अनुभव का  सम्मान तो रखा ही जाना चाहिए और विपक्ष भी इतना समझदार तो होना ही चाहिए जो तथ्यपरक जनहित के विचार रखने की क्षमता रखता हो ! आपसी एवं निजी आरोपों  प्रत्यारोपों के माध्यम से सरकार के शिखर पुरुषों का उपहास उड़ाने वाला विपक्ष मात्र पद लोलुपता के कारण अपने प्रशासकों की गरिमा के साथ खिलवाड़ कर रहा होता है  आखिर कुछ तो शालीनता बरती ही जानी चाहिए आपसी संवादों में !सूटबूट की सरकार हो या खुजलीवाल या मौन मोहन सिंह जैसे शब्दों की जगह चर्चा का केंद्र जनसेवा के कार्यों बनाया जाए जिसके लिए सरकारों का गठन होता है वही अच्छा है ।
    सत्ता पक्ष हो या विपक्ष उन्हें नहीं है अपनी अपनी जिम्मेदारियों का एहसास यही लोग करवा रहे हैं लोकतंत्र का उपहास !  
     विपक्ष का काम ऊटपटाँग तर्कों एवं बातों के बवंडर बना बना कर सरकारों को केवल गालियाँ देना ही  होता है क्या ? और सत्ता पक्ष का काम तानाशाह  बनकर विपक्ष को मुख चिढ़ाना ही होता है क्या ?क्या भला होगा इससे जनता का !
  मंत्री मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को जनता क्या केवल इसीलिए चुनती है कि विपक्ष इनकी निंदा करता रहे !इनके कार्यों की निंदा करता रहे ऊट पटांग शब्दों से सत्ता पक्ष को अपमानित करता रहे ।आखिर हमारे संवैधानिक पदों की इज्जत हम नहीं करेंगे तो और कौन करेगा ?
         बंधुओ ! राजनीति में आलोचना होती भी है और होनी भी चाहिए किंतु सरकार पर संवैधानिक अंकुश लगाकर रखना विपक्ष का कर्तव्य है । बंधुओ !जनता की भलाई के लिए आपसी आलोचनाएँ हों तो हों मतभेद में क्या बुराई है किन्तु मन भेद न होने पाए ! 
   आज विपक्ष के लिए अपनी इस पीड़ा को पचा पाना अत्यंत कठिन होता है कि वो पाँच वर्ष तक बिना सरकारी ताम झाम के सत्ता से दूर रहकर जीवन यापन कैसे करे ! इस पीड़ा के याद आते ही विपक्षी लोग पागल हो उठते हैं और जो मन आता है सो बोलने  बकने लगते हैं संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को ! उनके लिए तरह तरह के अशोभनीय सम्बोधन देते हैं उनके रहन सहन वेष भूषा को लेकर ऊट पटांग टिपणियां और बात बात में माफी माँगने की माँग करना कहाँ तक न्यायोचित है आखिर वे देश और प्रदेश की जनता के चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं और उनमें लाख बुराई हो सकती हैं किंतु जनता का विश्वास जीतने में वे कामयाब रहे हैं इसके लिए वो प्रशंसनीय हैं ही !
    जो लोग झूठ साँच बोलकर वायदे करके सत्ता में आते हैं ये उनकी गलती है किंतु इसका परिमार्जन उनकी निंदा करने से नहीं होगा अपितु इससे तो एक सन्देश जाता है कि सामने वाले को मंत्री मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री पद तक पहुँचने की बात को पचा नहीं पा रहा  है विपक्ष !
      

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