Friday, 30 October 2015

पुरस्कार देने वालों का एहसान तो नहीं चुका रहे हैं साहित्यकार !

 सरकारों में अब इतनी समझ ही नहीं होती  है कि वो देश के लिए उचित अनुचित का निर्णय ले सकें !
      साहित्यकार वर्तमान सरकार को भी अपना ही समझें और सरकार की बौद्धिक मदद करें, उचित मान्य एवं स्वीकरणीय सुझाव दें ! सरकार यदि कोई गलती कर रही है तो उसे वापस लौटना पड़ेगा किंतु सुझाव तो अपनेपन  से दिए जाएँ !
     मोदी जी के सरकार में आने से पहले ही जो लोग मोदी जी को मौत का सौदागर कह चुके थे या कुछ लोग कह रहे थे इनके प्रधानमंत्री बनने से सांप्रदायिक माहौल बिगड़ जाएगा किंतु मोदी सरकार में एक वर्ष तक तो ऐसा कुछ हुआ नहीं यह सोचकर कहीं वही लोग तो नहीं अपनी भविष्यवाणियाँ सच करने पर तुले हुए हैं इसलिए वही लोग सरकार को बदनाम करने के लिए करवा रहे हों ये सारे अपराध !आखिर दालों से लेकर तेलों तक के भावों में आग लगी नहीं अपितु विरोधियों के द्वारा लगाई गई है ये सबको पता है महँगाई बढ़ाने में तो  कोई साम्प्रदायिकता नहीं है किंतु इससे सरकार की छवि बिगाड़ने में तो विरोधियों को  सुविधा हो रही  है !
  चाहे अनचाहे साहित्यकार लोग भी यदि  यही करते दिखने लगेंगे तो पुरानी सरकारों से साँठ गाँठ होने का आरोप तो लगेगा ही !
 इसमें कोई संशय नहीं है कि राजनीति में भाषा से लेकर आचार व्यवहार तक सब कुछ बिगड़ता जा रहा है अपराधियों ,अयोग्यों ,अशिक्षितों एवं अन्याय प्रिय लोगों का प्रवेश राजनीति में बढ़ता जा रहा है जिस पर अंकुश लगाने को कोई पार्टी तैयार नहीं है ये सच्चाईहै । 
   आप कितना भी पढ़े लिखे ज्ञानी गुणवान आदि कुछ भी क्यों न हों किंतु राजनीति के लिए आप तब तक बिलकुल बेकार हो जब तक आपके पीछे भीड़ नहीं है और यदि आपके पीछे भीड़ है तो आपके सौ खून माफ अर्थात आपको जेल भी नहीं होगी बेल भी मिल जाएगी आपकी मदद करने के लिए भी लोग आ जाएँगे विरोधी पार्टियाँ भी आपका  विरोध करने से डरने लगेंगी  !कुलमिलाकर राजनैतिक समाज भीड़ के भरोसे टिका हुआ है और भीड़  अच्छे लोगों के साथ कहाँ होती है !इसीलिए तो शिक्षित सदाचारी लोग राजनीति  में सफल कम ही हो पाते हैं ।वहाँ तो सबको वैसा ही बनना पड़ता है जैसी राजनैतिक क्षेत्र में डिमांड है । 
     भीड़ दूध की डेरियों पर नहीं होती शराब की दुकानों पर होती है ,वेश्याओं के कोठों पर होती है ,जुआँ खेलने वालों के पास या गाली गलौच करने वालों के पास होती है! मक्खियाँ गंदगी में ही भिनभिनाया करती हैं भीड़ हमेंशा जनरल बोगी में ही होती है रिजर्वेशन में नहीं !आप दरोगा जी से प्रेम पूर्वक बात करें तो बेकार हैं भरी सभा में दरोगा जी को चाँटा मार दें तो आप नेता हैं । चोरी छिनारा हत्या बलात्कार जैसे बड़े से बड़े अपराध करने वाले लोग स्वयं अपराधी नहीं होते अपितु ये उन अपराधियों के कृपापात्र होते हैं जिनसे हम अपराध रोकने की आशा रखते हैं ! 
   बंधुओ !यही एक कारण है कि यदि आप वास्तव में ईमानदार हैं और ईमानदारी पूर्वक देश और समाज की सेवा करना चाहते हैं तो आप अपनी बड़ी से बड़ी क्वालीफिकेशन की कापियाँ भेज दीजिए देश की बड़े से बड़े राजनैतिक पार्टी प्रमुखों के पास किंतु  वो आपकी बातों में हँस देंगे आपकी प्रशंसा कर देंगे आपको आश्वासन दे देंगे आपके पैर छू लेंगे !किन्तु आपको अपनी पार्टी में  घुसने नहीं देंगे और यदि किसी जुगाड़ से घुस गए तो कोई पद नहीं देंगे और पद दे भी दिया तो आप पर नजर रखी जाएगी और थोड़े बहुत दिनों में आपकी दो चार कमियाँ खोज कर आपको पद मुक्त कर दिया जाएगा !इस प्रकार से समय समय पर आपका उपयोग किया जाता रहेगा ,भाड़े के तो आप आप प्रधान मंत्री भी बनाए जा सकते हैं किंतु आप अपनी सामर्थ्य पर कभी कुछ नहीं बन पाएँगे !ये है वर्तमान राजनीति का स्तर !ये सब हमारा निजी अनुभव है see more .... http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/drshesh-narayan-vajpayee-drsnvajpayee.html
  ऐसी परिस्थिति में सभी पार्टियों की सरकारों से ईमानदार व्यवहार की आशा एक सीमा तक ही रखी जा सकती है अन्यथा कोई एक पार्टी यदि इससे हटेगी तो वो अपनी चुनावी विरादरी से बाहर हो जाएगी ऐसी परिस्थिति में हर पार्टी की कार्य प्रणाली एक जैसी ही है  तो फिर आक्रोश केवल वर्तमान केंद्र सरकार पर  ही क्यों ?ऐसी परिस्थिति में साधू संत शिक्षक कवि साहित्यकार आदि लोग समाज को ही जागृत करके ईमानदारी के पथ पर अग्रसर करें तभी सम्भव  है कि देश में भ्रष्टाचार मुक्त स्वच्छ वातावरण बन सके !

इसी विषय में हमारे कुछ और लेख -
  • केंद्र सरकार के विरुद्ध बड़े बड़े समझदार लोग न जाने क्यों बनाने लगे हैं डरावना माहौल !seemore.... http://sahjchintan.blogspot.in/2015/10/blog-post_89.html 
  • साहित्यकारों और सरकारों के सहयोग से ही हो सकता है अच्छे समाज का निर्माण !आपसी विश्वास बनाए और बचाए रखना बहुत जरूरी !see more... http://bharatjagrana.blogspot.in/2015/10/blog-post_89.html 
  • साहित्यकारों का पुरस्कार पाना हो या लौटाना दोनों राजनीति से प्रेरित होते हैं ! अच्छा रहा   कबीर  सूर तुलसी मीरा जैसे साहित्यकारों को नेताओं ने कोई पुरस्कार नहीं दिया इसीलिए साहित्यकार के रूप में ही आजतक ज़िंदा रह सके हैं वे लोग !बंधुओ !जिन्हें पुरस्कार नहीं मिलता ऐसे साहित्यकार क्या सम्मानित नहीं होते !seemore.... http://bharatjagrana.blogspot.in/2015/10/blog-post_66.html
  • अरे पुरस्कार लौटाने वालो ! दुखी तो देशवासी भी हैं किंतु वो लौटावें क्या ?पुरस्कार उन्हें दिए नहीं गए ,बाजारों में मिलते नहीं हैं !पुरस्कार लेने का जुगाड़ उन्हें आता  नहीं है !see more.... http://bharatjagrana.blogspot.in/2015/10/blog-post_48.html

    •   क्या केवल साहित्यकारों और लेखकों की हत्या के खिलाफ हैं साहित्यकार !     हर किसी का जीवन बहुमूल्य है , हत्या किसी की भी विरोध सामूहिक होनाचाहिए !मिलजुलकर ही निपटा जा सकता है मानवता के शत्रुओं से !see more.... http://sahjchintan.blogspot.in/2015/10/blog-post_21.html

     



सवर्णों की लड़कियाँ क्या भैंस बकड़ी हैं जो गले में रस्सी बाँधकर जबर्दश्ती सौंप दी जाएँ दलितों को !

 बंधुओ !कोई लड़की जिसे अपना नौकर भी बनाकर न रखना चाहे उसे पति बनाकर रखने के लिए उसे  मजबूर कैसे किया जा सकता है!वो किसी भी जाति की क्यों न हो ! 
   मेरे प्यारे देशवासियो ! आज कुछ लोग ऐसी बातें करने लगे हैं -
"सवर्ण लोग अपनी लड़िकयों की शादी दलितों से करने लगें तो समाप्त हो सकता है जातिवाद !उसके बाद बंद हो सकता है आरक्षण !"-एक खबर 

   मेरे प्यारे भाई बहनो !क्या आपको ठीक लगती हैं ऐसी बेहूदी बातें !आखिर लड़कियों के अपने कोई सपने नहीं होते क्या ! वे जिससे चाहें उससे करें अपना विवाह !अपने जीवन के विषय में सबकी तरह उन्हें भी आत्म निर्णय का अधिकार होना चाहिए !बंधुओ !हम सबकी भलाई कन्याओं की स्वायत्तता बनाए रहने में ही है !
  "राष्ट्रहित में उच्च शिक्षा में आरक्षण हो खत्म : सुप्रीम कोर्ट-एक खबर "
     प्रिय भाई बहनो !माननीय सर्वोच्च न्यायालय का कहना राष्ट्रहित  में है ऐसा होना ही चाहिए ! इसी के साथ एक प्रार्थना मेरी भी है यदि उच्च शिक्षा में आरक्षण समाप्त करने में राष्ट्रहित है तो समाजहित को ध्यान में रखते हुए जातिगत आरक्षण को समाप्त ही क्यों न कर दिया जाए !क्योंकि इससे बड़े बड़े भ्रष्टाचारी नेता लोग दलितों पिछड़ों का नारा दे कर जीत लेते हैं चुनाव !इसके बाद फिर भ्रष्टाचार करते हैं दलितों के विकास का राग अलापने वाले नेता आज करोड़ों अरबोंपति हैं दलित जहाँ थे वहीँ हैं !दूसरी बात आरक्षण के बल पर अयोग्य लोगों को योग्य स्थानों पर एवं योग्य लोगों को अयोग्य स्थानों पर फिट किया जा रहा है जिससे काम की गुणवत्ता प्रभावित होती है क्योंकि ये तो ध्रुव सत्य है कि यदि वो इस योग्य होते तो आरक्षण के सहारे क्यों आते !तीसरी बात "दलित अपने बल पर तरक्की नहीं कर सकते"ये वाक्य दलितों का मनोबल बुरी तरह गिरा रहा है उनमें आत्म सम्मान की भावना ही मिती जा  रही है चौथी बात दलित लोग इस लालच में कि नेता बहुत कुछ बोलकर गए हैं तो अब हमारे लिए सरकार कुछ करेगी  किंतु सरकारें  कुछ करती नहीं हैं और वे स्वयं अपने लिए कोई लक्ष्य नहीं बना पाते हैं सारी जिंदगी बीत जाती है इसी आशा में !कि हमारे लिए सरकार कभी तो कुछ करेगी !! 
  एक बहुत बड़ी बात ' लड़कियाँ लड़कियाँ होती हैं भेड़ बकड़ियाँ नहीं जो जिसके चाहो उसके गले बाँध दो !'
     "सवर्ण लोग अपनी लड़िकयों की शादी दलितों से करने लगें तो समाप्त हो सकता है जातिवाद !उसके बाद बंद हो सकता है आरक्षण !"-एक खबर 
    कितने गंदे होते हैं ऐसी बातें करने वाले लोग !वे जो ऐसी दलीलें दे रहे हैं आखिर ऐसे लोग लड़कियों को समझते क्या हैं ?लड़कियाँ कोई चीज सामान हैं क्या जो किसी के गले में  लटका दी जाएँगी  !या फिर लड़कियाँ कोई जानवर हैं क्या जो उनके गले में रस्सी बाँधकर कर किसी के पीछे हाँक दी जाएँगी !
    सवर्णों की वे लड़कियाँ जिन्होंने कठोर परिश्रम पूर्वक शिक्षा ली हो संघर्ष एवं स्वाभिमान पूर्वक उन्नति करने के सपने बुने हों अपनी योग्यता के द्वारा राष्ट्रीय ज्ञान विज्ञान राजनीति चिकित्सा एवं प्राशासनिक आदि सेवा में कोई महत्वपूर्ण लक्ष्य हासिल करना चाहती हों जिसके लिए उन्होंने सारे जीवन शैक्षणिक तपस्या की हो अब जब उन्हें उनका लक्ष्य दिखने लगे तब उन्हें किसी ऐसे परिवार की बहू जबर्दश्ती क्यों बनाया जाना चाहिए जिस घर के लोग पढ़ना न चाहते हों, जिस घर के लोगों में स्वाभिमान भी न हो, जो लोग बिना आरक्षण के अपनी घर गृहस्थी चलाने का साहस ही न रखते हों, आरक्षण जैसी भिक्षा के भरोसे आत्म सम्मान विहीन जीवन जीने के लिए जो लोग आदी हो चुके हों !जो भी नेता या राजनैतिक दल कुछ देने की बात कर भर दे कि उसी के पीछे चल पड़ते हों, ऐसे पिठलग्गुओं के साथ कोई सुयोग्य स्वाभिमानी लड़की अपना विवाह क्यों करना चाहेगी और यदि कर भी ले तो निभेगी कितने दिन !
    जो वर्ग किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा से डरता हो ऐसे डरपोक लोगों के साथ जुड़कर कोई सुयोग्य लड़की अपनी जिंदगी क्यों बर्बाद करना चाहेगी !
     जिसके  माता पिता आरक्षण जैसी भीख से घृणा करते रहे हों और उन्होंने अपने बच्चों को ऐसे संस्कार दिए हों कि बेटा परिश्रम पूर्वक पढ़ाई करके स्वाभिमान पूर्वक ईमानदारी की कमाई से अपना जीवन यापन करना !नमक रोटी खा लेना किंतु किसी भी प्रकार की आरक्षण जैसी भीख के भरोसे मत जीना !कोई नेता कोई राजनैतिक दल तुम्हें कुछ देने का लोभ देकर तुम्हारा वोट लेने की बात करे तो ऐसे लोकतंत्र विरोधी लोगों को  धक्का देकर दरवाजे से भगा देना !नेता काम करने के लिए होते हैं वो सेठ साहूकारों की तरह कुछ देने की बातें क्यों करते हैं इसलिए ऐसी आत्म सम्मान को चोट पहुँचाने वाली बातें सहना भी मत !
   ऐसे स्वाभिमानी सुसंस्कारों में पली बढ़ी कोई सुयोग्य स्वाभिमानी कन्या किसी ऐसे व्यक्ति का वरण क्यों करना चाहेगी जिसमें कोई गुण ही न हों !ऐसी परिस्थिति में केवल बोझ समझकर उसे सारे जीवन ढोती हुई घुट घुट कर क्यों जीती रहे, ऐसा अन्याय क्यों किया जाए किसी ऐसी लड़की के साथ !आखिर उसका अपना जीवन है उसे उसके अनुशार क्यों न जीने दिया जाए !
   इसके विरुद्ध जो मूर्ख लोग आरक्षण समाप्त करने के लिए सवर्ण लड़कियों से जबरन शादी करने जैसी शर्तें करते हैं ऐसे मक्कारों को क्यों न दिया जाए मुख तोड़ जवाब !
    सवर्ण कन्याओं के साथ विवाह करने की लालषा रखने वाले नौजवानों को आरक्षण जैसी भीख का बहिष्कार करना पड़ेगा ,परिश्रम पूर्वक पढ़ना लिखना पड़ेगा, ईमानदारी पूर्वक आरक्षण मुक्त भावना से कमाने खाने की आदत डालनी पड़ेगी और आत्म सम्मान पूर्वक जीवन जीने का अभ्यास करना पड़ेगा भविष्य में बहुत ऊँचे उठने का संकल्प स्वयं बुनना होगा उसी के अनुशार अपना जीवन ढालना होगा !तब कहीं ऐसी बातें न्याय संगत मानी जा सकती हैं तब भी शादी किसी पर जबर्दश्ती थोपी नहीं जा सकती लड़कियों को जैसा उचित लगे अपने जीवन के विषय में वे वैसा निर्णय लेने के लिए  स्वयं स्वतंत्र होंगी । 
   कुल मिलाकर दलितों को स्वयं इस योग्य बनना पड़ेगा कि कोई सवर्ण लड़की उनसे विवाह करना चाहे ! अन्यथा जो लड़की जिसकी ओर देखना न चाहे जिसके साथ उठना बैठना न चाहे जिसके आचार व्यवहार से घृणा करती हो ऐसे किसी स्वभाव विरुद्ध लड़के के साथ उस लड़की को वैवाहिक दृष्टि से फँसा देना कहाँ का न्याय है पहली बात तो ऐसी बातें कोई मूर्ख व्यक्ति ही कर सकता है जिसे समझ ही न हो कि वो बोल क्या रहा है । 
   वैसे तो लड़कियों का अपना आस्तित्व है अपना स्वाभिमान है अपनी इच्छा है वो जैसा चाहें वैसा निर्णय ले सकती हैं अपने जीवन के विषय में अगर वो माता पिता की इच्छा से भी विवाह करती हैं तो भी पसंद ना पसंद तो उनकी अपनी ही चलेगी और होना भी ऐसा ही चाहिए आखिर निर्वाह तो उन्हें ही करना होता है !फिर लड़कियों पर ऐसा दबाव कैसे डाला जा सकता है जिससे उन्हें अपना भविष्य बर्बाद होता दिखे !वैसे भी कोई सुयोग्य स्वाभिमानी सुशिक्षित कन्या अपना जीवन साथी चुनते समय इतना ध्यान तो रखेगी ही कि वो उसी के साथ जुड़े कि जिससे उसकी पद प्रतिष्ठा वैसे तो बढ़े किंतु यदि न भी बढ़ सके तो घटे भी न !
    कोई लड़की जब किसी आचार व्यवहार शिक्षा संस्कार स्वाभिमान विहीन व्यक्ति को अपना नौकर नहीं बनाना चाहती तो ऐसे व्यक्ति को पति कैसे बना लेगी !ऐसी आशा भी कैसे और क्यों की जाए !

 

Sunday, 25 October 2015

सांसद और विधायक बनने के लिए जब शिक्षा और सदाचरण की कोई सीमा रेखा है ही नहीं तो वो पालन किसका करें !

   लोकसभा या विधान सभाओं में लड़ने - झगड़ने वाले ,शोर मचाने वाले ,माइक फेंकने या कुर्सी मारने वाले  नेता लोग किसी  मज़बूरी में तो ऐसा नहीं करते हैं आखिर उन्हें भी उन्हीं के अनुशार क्यों न समझा जाए !   
 आज राजनीति के बिना किसी भी क्षेत्र में किसी का भी गुजारा नहीं है यदि कोई सीधा शालीन समझदार आदमी राजनीति न भी करना चाहे तो दूसरे लोग उसके साथ राजनीति करके उसे फँसा देंगे इसलिए उसे चाहकर या अनचाहे भी करनी होती है राजनीति !किंतु राजनैतिक जगत में आज अधिकांश कैसे लोग सक्रिय हैं ये किसी से छिपा नहीं है स्वदेश से लेकर विदेश तक हमारी लोकसभा या विधानसभाओं की कार्यवाही देखने वालों को अच्छी तरह से पता है कि भारतीय राजनीति जिस ओर बहक  चुकी है यदि समय रहते उसे रोका  न गया तो परिस्थितियाँ ज्यादा भी बिगड़ सकती हैं ।           आज सांसदों विधायकों से कहा जाता है कि आप चर्चा में भाग लें किंतु चर्चा के लिए ज्ञान अनुभव और अध्ययन की आवश्यकता होती है किंतु जिसके पास ये तीनों न हों वो वहाँ बैठकर क्या करे !और चुप  कहाँ तक बैठे ! इसलिए  लोकसभा या विधान सभाओं में अपनी अपनी कला योग्यता का प्रदर्शन हर कोई करना चाहता है जिसे भाषण देना आता है सो भाषण देता है और जिसे गाली देना आता है सो गाली देता है !जिसे कुस्ती लड़ना आता है सो उठापटक करता है इसी पाकर से माइक फेंकने के स्पशलिस्ट माइक फ़ेंक कर मारते हैं और कुर्सी फेंकने की कला के विशेषज्ञ कुर्सी फ़ेंक फ़ेंक कर मारते देखे जाते हैं , कई बार कुछ विधान सभाओं में कुछ सदस्य लोग अपने मोबाईल में ब्लू फ़िल्म देखते भी देखे गए !इसी प्रकार से कार्यवाही के बीच कुछ लोग सो जाते हैं बेचारों को नहीं समझ में आती है वो सार गर्भित चर्चा तो कैसे समझें और क्या करें ! 
    कुल मिलाकर संसद और विधान सभाएँ चूँकि देश और प्रदेश के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करती हैं ऐसी परिस्थिति में देश और प्रदेशों में जितने भी प्रकार के लोग होते हैं सभी कलाओं से संपन्न लोग यदि कहीं एक जगह बैठेंगे तो वहाँ चर्चा तो कम बाजारों और मेलों  जैसा वातावरण ही मुश्किल से बन पाएगा फिर हाय तोबा क्यों ?
   बंधुओ !मैंने खुद चार विषय से MA किया है BHU से Ph.D. किया है विभिन्न विषयों में सौ से अधिक किताबें लिखी हैं उनमें कई काव्य हैं हमारी लिखी हुई 27 किताबें प्रारंभिक कक्षाओं के पाठ्यक्रमों में पढ़ाई भी जा रही हैं और भी बहुत कुछ है- (See More  About Me http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html  )
        इतने सबके बाद भी अच्छी अच्छी राजनैतिक पार्टियों से जुड़ने के लिए गया वहाँ के मठाधीशों को अपनी योग्यता प्रमाण पत्र दिखलाए उनकी कापियाँ भी दीं अपनी लिखी हुई किताबों की प्रतियाँ भी उन्हें भेंट कीं इसके बाद उनसे उस राजनैतिक पार्टी में अपने योग्य सेवा माँगी जिसमें मेरी शिक्षा का भी सदुपयोग हो सके किंतु उन नेताओं ने अपनी पार्टी में हमें प्रवेश देना ही ठीक नहीं समझा !
    बंधुओ !जब इन राजनेताओं ने हमारे अंदर न जाने ऐसी कौन सी अयोग्यता दो मिनट में भाँप ली कि हमें अपनी पार्टी में सक्रिय रूप से जोड़ना ठीक नहीं समझा गया !ऐसी परिस्थिति में देश के और बहुत सारे पढे लिखे लोगों को राजनैतिक दल केवल सैम्पल पीस के रूप में ही रखते होंगे या फिर हमारी तरह ही मुख मोड़ लेते होंगे उनसे भी !और उन्हें भी वापस भेज दिया जाता होगा उनके घर !
   यदि सच्चाई यही है तो लोकसभा या विधान सभाओं में लड़ने - झगड़ने वाले ,शोर मचाने वाले ,माइक फेंकने या कुर्सी मारने वाले नेताओं को ही दोषी क्यों माना जाए !यदि है तो राजनीति का वर्तमान सारा सिस्टम ही दोषी है उसे सुधारने के प्रयास भी तो किए जाने चाहिए साथ ही सांसद और विधायक बनने के लिए भी शिक्षा और सदाचरण की कुछ तो खींची ही जाएँ सीमा रेखाएँ जिनका पालन मिलजुलकर सभी लोग करें !

Friday, 9 October 2015

सरकारी आफिसों से AC हटाओ ,बिजली बचाओ ,गाँव गरीबों के यहाँ भी कम से कम एक बल्ब और एक पंखा तो चलाओ !

हमसे कहा जाता है कि " CFL जलाओ बिजली बचाओ !" और रोड लाइटें अक्सर दिन में भी जलती रहती हैं !सरकारी आफिसों में सबसे ज्यादा फुँकती है ब्यर्थ की बिजली !

     सरकारी आफिसों में AC की क्या जरूरत और जिन्हें जरूरत है वहाँ क्यों नहीं ध्यान जाता है तुम्हारा !केवल इसीलिए कि आम जनता तुम्हारी  अपनी नहीं है !जनता से आपका कोई सम्बन्ध नहीं है ! आफिसों को आरामगाह बनाने के पीछे का उद्देश्य क्या है कि वो काम न करें आलसी हो जाएं कमरे बंद कर के बैठे रहें ताकि आम जनता उनसे मिल न सके नहीं उनकी ठंडी हवा निकल जायेगी ! ऐसे सुख सुविधाभोगी अफसरों से ये उम्मीद कैसे की जाए कि वो फील्ड पर जाकर जनता की समस्याएँ सुनेंगे जो आफिसों में ही आम आदमी से मिलना पसंद नहीं करते !आज दस पांच हजार रुपए की सैलरी देकर प्राइवेट प्राइमरी  स्कूल अच्छी शिक्षा दे लेते हैं किंतु साठ हजार सैलरी देकर सरकार नहीं पढ़वा  पाती है अपने स्कूलों में !सरकार के लगभग हर विभाग का यही हाल है क्योंकि सरकारी काम करने की किसी की जिम्मेदारी नहीं होती है नीचे से ऊपर तक हर कोई केवल जवाब तैयार रखता है कि हमसे जब कोई पूछेगा काम क्यों नहीं हो रहा है तो सरकार की कोई छोटी सी कमी बताकर बच जाएँगे ! और वैसे भी लाख पचास हजार पाने वाले सरकारी कर्मचारी काम के प्रति समर्पित  क्यों हों जब दो दो लाख रूपए सैलरी पाने वाले सुविधा भोगी उनके अधिकारी अपने अपने कमरों से नहीं निकलते हैं निकलेंगे तो एयर कंडीसण्ड गाड़ियों में ! आखिर उनके कर्मचारियों ने मक्कारी करना उन्हीं से तो सीखा है आज वो भी इतने चालाक हो गए हैं कि जब रेस्ट करना होता है तो यूनिटी बनाकर कह देते हैं कि नेट नहीं आ रहा है उनका क्या बिगाड़ लेगी आम जनता !और उन्हें किसी अधिकारी का भय ही नहीं है क्योंकि उन्हें पता होता है कि अधिकारी पहली बात तो आएँगे नहीं और आ भी गए तो कुछ पूछेंगे नहीं क्योंकि काम होने से उनका अपना कुछ बिगड़ नहीं रहा है और काम  होने से उन्हें कोई तमगा नहीं मिल जाएगा !वो कोई नेता तो हैं नहीं कि चुनाव जीतने की चिंता हो ! और यदि अधिकारी पूछ भी देगा तो कोई आफिस में चीज सामानों की कोई छोटी मोटी  कमी या फिर शर्दी जुकाम आदि कुछ भी बता दिया जाएगा वो भी हर कोई 
    ऐ भारत वर्ष के प्रतिष्ठा प्राप्त नेताओ ! कभी तुमने उन किसानों मजदूरों ग़रीबों के विषय में सोचा है क्या  जो एक दीपक जलाकर जीवन जीते हैं खर पतवार के बने घर ,छप्पर छानियों से टपक रहा पानी और पानी के भय से भयभीत सर्प बिच्छू छिप कर बैठ जाते हैं कत्थर गुद्दरी बिस्तरों में पैरों के नीचे बड़ी बड़ी घासों के बीच भगवान भरोसे चलना होता है कहीं भी डस सकता है साँप !कई बार गाँव किनारे की बढ़ी फसलों में छिपकर बैठ जाते हैं हिंसक जानवर और मौका मिलते ही घात लगाकर उठा ले जाते हैं बच्चे !

Wednesday, 7 October 2015

यू पी सरकार अपने बाचालमंत्रियों को खुले में क्यों छोड़ देती है !इन्हें देनी चाहिए लगाम !

"सरकार साफ कहे कि हां हम हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं -आजमखान "  किंतु ऐ सपा के शुतुरमुर्ग ! काशी में संतों पर लाठी चलवाने को क्या मान लिया जाए कि आप मुस्लिम प्रदेश बनाना चाहते हैं !अब तक देश में किसी भी पार्टी की सरकार रही हो किंतु सभी नेताओं ने प्रयास पूर्वक कश्मीर पर विश्व विरादरी को पंचायत नहीं करने दी किंतु तुम दादरी पर करने लगे वैश्विक पंचायत ! दादरी में जो कुछ हुआ वो दुर्भाग्य पूर्ण है किंतु उसके लिए जिम्मेदार तो आपकी ही सरकार है आप जैसे  गैर जिम्मेदार लोगों के विस्फोटक बयान एवं आपकी सरकार की कमजोर कानूनी नीतियाँ हैं ।आज भी आप चाहते तो दादरी की जैसी चाहते वैसी जाँच करवा लेते कार्यवाही कर लेते देश से बाहर रोने जाने की क्या जरूरत थी !
     आजम साहब !आप किस मुख से आज औरों को दोषी ठहरा सकते हैं जब यूपी में आपकी सरकार है जहाँ  आजीवन कैद की सजा पाए कैदी आपके एक नेता त्रिपाठी जी हॉस्पिटल से ही सपा सरकार चलाने का दावा ठोक रहे हैं ऐसी परिस्थिति में जहाँ कैदियों को इतनी छूट हो वहाँ कौन विश्वास करे कि हो न हो अपराधीकैदी  ही  समाज में बड़ी बड़ी वारदातों को अंजाम देकर फिर घुस जाते हों जेलों में आखिर नाम तो जेलों में लिखा ही रखा होता है ! न जाने आपके नेता जी क्यों मौन हैं ऐसी घटनाओं पर कहीं आप  जैसे रक्त पिपासुओं ने उन्हें भी तो सांप्रदायिकता फैलाकर आगामी चुनाव जिताने के सपने तो नहीं दिखा रखे हैं अन्यथा उन्होंने आपको कुछ भी बोलने और करने की छूट कैसे दे रखी है !

Saturday, 3 October 2015

दलितों और मुस्लिमों की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन ?स्वयं वो या कोई और ?

  यदि जातियों संप्रदायों से तरक्की होती होती तो हिंदुओं और सवर्णों में कोई गरीब नहीं होता !तथा दलितों और मुस्लिमों में कोई रईस क्यों होता !
कुलमिलाकर "जो जागा वहाँ सवेरा बाक़ी सब अँधेरा ही अँधेरा !" 'सफलता किसी की सगी नहीं होती !'
     दलितों को हमेंशा कुछ देने की बात क्यों होती है क्या वो भिखारी हैं क्या वो कामचोर हैं क्या वो मक्कार हैं क्या वो बीमार हैं !क्या वो पागल हैं !सवर्ण लोग यदि अपनी तरक्की स्वयं कर सकते हैं तो दलित लोग अपनी तरक्की स्वयं क्यों नहीं सकते !कोई दूसरा क्यों आता है उनका  मसीहा बनकर उनकी लड़ाई लड़ने का नाटक करने के लिए !
   बंधुओ ! दलितों के प्रति कितनी घटिया सोच होती है नेताओं की !उनकी दृष्टि में किसी सवर्ण जाति  का तो कोई गरीब बच्चा अपने और अपने संघर्ष के बलपर तरक्की कर सकता है किंतु नेताओं के हिसाब से दलित लोग अपनी तरक्की नेताओं की कृपा के बिना नहीं कर सकते ! आखिर क्यों !आखिर दुनियाँ में दलितों पर अंकुश लगाकर क्यों रखना चाहते हैं नेता लोग !दलितों के साथ ये बहुत बड़ा षड्यंत्र है ऐसे लोगों ने परिश्रमी दलितों को विश्व में बदनाम कर दिया है विश्व की विरादरी के लोग भी सोचने लगे हैं कि दलितों में आखिर कोई तो कमी होगी तब तो अपनी तरक्की स्वयं नहीं कर सकते !जब ये कहते हैं कि दलितों का शोषण सवर्णों ने किया है तब वो सोचते हैं कि सवर्णों की संख्या तो इतनी काम है जबकि दलितों की अधिक तो सवर्ण इनका शोषण कैसे कर सकते हैं और ये सहेंगे क्यों ? दलितों को कहीं कोई दिमागी या शारीरिक बीमारी तो नहीं है तभी तो साठ साल से आरक्षण भी ले रहे हैं फिर भी वहीँ हैं आखिर कारण क्या है !जबकि इस सच्चाई को कोई नहीं जानता है कि इनके लक्ष्य नेता ही बुनते हैं और वही छीन लेते हैं । हम तुम्हें दाल फ्री देंगे ,चावल फ्री देंगे, कपड़े फ्री देंगे, आरक्षण भी देंगे आदि आदि ! 
    ऐसे कपटी नेता लोग दलितों को आरक्षण आदि कुछ न कुछ देने की बातें बोल बोल कर निरंतर प्रयास पूर्वक उनमें भिखारी भावना पैदा करते हैं और छीन लेते हैं उनका स्वाभिमान और चुरा ले जाते हैं उनके लक्ष्य ! ऐसे लक्ष्य भ्रष्ट लोगों को सारे जीवन इसी रोटी धोती आटा दाल चावल में फँसाए रहते हैं इससे कभी निकलने  ही नहीं देते हैं । ऐसे बेशर्म लोग अपनी छाती ठोक ठोक कर कहते हैं कि मैं दलितों मुस्लिमों के अधिकारों के लिए हमेंशा लड़ा हूँ अब हमारे लड़के लड़ेंगे ! कहने का मतलब आप लोग अभी तक हमें विधायक सांसद आदि बनाते रहे हो अब हमारे बच्चों को बनाते रहना !
   कितने बेशर्म हैं ऐसे मक्कार लोग ! यदि इन्हें ऐसा ही लगता है कि हमें दलितों और मुस्लिमों को ही आगे बढ़ाना है तो अपनी पार्टियों के जिम्मेदार पदों पर दलितों और मुस्लिमों को ही क्यों नहीं बैठाते हैं वहाँ अपने ही बेटा बेटी भाई भतीजा साला  साली आदि  नाते रिस्तेदार ही चिपका कर क्यों रखते हैं कितने गंदे होते हैं ये नेता लोग !
     बंधुओ ! सवर्णों की किसी भी जाति का कोई बच्चा बचपन में ही अपने जीवन का एक लक्ष्य बनाता है और उसे पाने के लिए वो अपनी सारी ऊर्जा लगा देता है और अधिकांश लोग पाने में सफल भी हो जाते हैं इसीलिए सवर्ण जातियों  में विकसित लोगों का अनुपात अधिक है क्योंकि वो केवल अपनी भुजाओं पर ही भरोसा करते हैं औरमेहनत करके संघर्ष पूर्वक विद्याअर्जनकरते हैं । 
      बंधुओ ! ऐसा दलित क्यों नहीं कर सकते हैं आखिर वो भी अन्य लोगों की तरह ही परिश्रमी होते हैं निरंतर संघर्ष करने के अभ्यासी होते हैं और सारे जीवन संघर्ष करते रहते हैं किंतु कमी केवल  इतनी रह जाती है कि वो कोई एक लक्ष्य नहीं बना पाते हैं इसलिए लक्ष्य हासिल करने के सपने भी नहीं देखते तो वो पूरे कहाँ से हों !और जो ऐसा कर पाते हैं उन दलित जाति  के लोगों ने स्वदेश से लेकर विदेशों तक झंडा गाड़ा है उन्हें कोई रोक पाया है क्या ?दलितों में भी एक से एक बड़े उद्योगपति हैं जबकि लक्ष्य भ्रष्ट सवर्णों में भी एक से एक गरीब हैं । यदि जातियों से तरक्की होती होती तो सवर्णों में क्यों कोई गरीब होता !