Sunday, 28 February 2016

Nivedan

आदरणीय "राष्ट्रीय विज्ञान दिवस" पर भारत के प्राचीनविज्ञान की ओर से आपको बहुत बहुत बधाई !
विषय - प्राचीन विज्ञान के आधार पर प्राकृतिक रहस्यों पर रिसर्च कार्य हेतु सहयोग की अपील !
महोदय ,
धरती से आकाश तक घटने वाली प्रत्येक बड़ी घटना का कुछ न कुछ अर्थ होता है ऐसी हर प्राकृतिक घटना हमें भविष्य में घटित होने वाली कुछ घटनाओं की सूचना दे रही होती है किंतु जानकारी न होने के कारण हम समझ नहीं पाते हैं प्रकृति के वे संकेत !प्रकृति में हर क्षण कुछ न कुछ बदल रहा है ये बदलाव कुछ बड़े होते हैं और कुछ छोटे कुछ हमें दिखाई पड़ते हैं तो कुछ नहीं कुछ सामान्य होते हैं और कुछ विशेष !जैसे वर्षा बादल आदि ,और कुछ उत्पात रूप में होते हैं जैसे भूकंप तूफान आदि !इस शुभ और अशुभ का पूर्वानुमान लगाने के लिए हमारे संस्थान द्वारा चलाई जा रही है व्यापक रिसर्च !जिसमें संसाधनों के अभाव में आने वाली बाधाओं के निवारण एवं कार्य सञ्चालन हेतु आर्थिक सहयोग के लिए अापसे अपेक्षा है !इस दृष्टि से कुछ घटनाओं का अध्ययन किया भी गया है और करने के लिए समय समय पर कई घटनाएँ घटती रहती हैं ये विस्तार पूर्वक इस लिंक पर उपलब्ध हैं देखने की कृपा करें,"प्रकृति की हर हलचल भविष्य में होने वाली घटनाओं की सूचना देती है"http://bharatjagrana.blogspot.in/2016/02/see-more_36.html
                                                                        :प्रार्थी  भवदीय :
                                                       आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी 
    संस्थापक -  राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान (रजि.)      
          एम. ए.(व्याकरणाचार्य) ,एम. ए.(ज्योतिषाचार्य)-संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
एम. ए.हिंदी -कानपुर विश्वविद्यालय \ PGD पत्रकारिता -उदय प्रताप कालेज वाराणसी
    पीएच.डी हिंदी (ज्योतिष)-बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU )वाराणसीsee more … http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html

        K -71 ,छाछी बिल्डिंग, कृष्णा नगर, दिल्ली -110051
        Tele: +91-11-22002689, +91-11-22096548
         Mobile : +919811226973, +919968657732

            Email: vajpayeesn@gmail.com   
            Web: www.DrSNVajpayee.com


'आदरणीय आप  आप सभी भाई बहनों को सादर प्रणाम '                                        
                               -: जय श्री राम :-
 'गौ गंगा गायत्री गीता एवं समस्त सनातन शास्त्रों की गौरव रक्षा हेतु '
      राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान (रजि.)
         
विषय - भारत के प्राचीन विज्ञान पर अनुसंधान हेतु मदद के लिए !
महोदय ,
    भारत का प्राचीन विज्ञान अत्यंत प्रभावी माना जाता रहा है वर्तमान समय में आधुनिक विज्ञान के सामने इससे भी कुछ लाभ हो सकता है क्या इसी विषय पर मेरा रिसर्च सृष्टि और समाज के अनेक रहस्य सुलझाने के लिए चल रहा है जिसमें कई विषयों पर सफलता भी मिलती दिख रही है !मुझे विश्वास है कि इसके आधार पर मानव जीवन से लेकर प्रकृति तक से जुड़े कई गूढ़ रहस्यों का उद्घाटन हो सकता है इसके द्वारा कई दिशाओं में मानव जीवन को सरल बनाया जा सकता है ।प्राचीन विज्ञान में स्वभाव का अध्ययन करने की अद्भुत क्षमता है मैं प्राचीन विज्ञान के अध्ययन और अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि भारत के प्राचीन विज्ञान के द्वारा स्वभाव के अध्ययन के आधार पर कई बड़ी समस्याओं के समाधान खोजे जा सकते हैं । 
       अतएव मैंने प्राचीन विज्ञान को ही आधार बनाकर काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से Ph.D. की है और तब से इसी अनुसन्धान में लगा हूँ और काफी कुछ सफलता मिलने के आसार भी लग रहे हैं । भारत के प्राचीन विज्ञान के आधार पर ऐसे सभी प्राकृतिक संकेतों का अध्ययन करने हेतु हमारे संस्थान के तत्वावधान में इन पर विशेष शोधकार्य चलाया जा रहा है । सरकार से अपेक्षा है कि सरकार इसमें हमारी सभी प्रकार से मदद करे !   संसाधनों एवं आर्थिक क्षमता के अभाव में  ये काम उस तरह से नहीं किए जा पा रहे हैं जैसे होने चाहिए इसलिए सरकार से सहयोग की अपेक्षा है ताकि हम अपना रिसर्च कार्य सुचारू रूप से चलाते रह सकें । 

Help To Research Vaidik Sciences  वैदिक विज्ञान के अनुसंधान हेतु  मदद  की अपील : -seemore.... http://bharatjagrana.blogspot.in/2015/12/help-to-research-vaidik-sciences.html
                                     -:प्रार्थी :-
       राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान  
 एकाउंटनंबर - 62245462386 \ IFSC :SBHY0020838
     स्टेट बैंक ऑफ़ हैदराबाद ,कृष्णा नगर ,दिल्ली                                                                  
                                                                        : भवदीय :
                                                       आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
  एम. ए.(व्याकरणाचार्य) ,एम. ए.(ज्योतिषाचार्य)-संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
एम. ए.हिंदी -कानपुर विश्वविद्यालय \ PGD पत्रकारिता -उदय प्रताप कालेज वाराणसी
    पीएच.डी हिंदी (ज्योतिष)-बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU )वाराणसीsee more … http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html

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आदरणीय प्रधानमंत्री जी

 
आदरणीय प्रधानमंत्री जी 
                       सादर नमस्कार 
विषय - प्राचीन विज्ञान के आधार पर प्राकृतिक रहस्यों का अध्ययन करने के लिए सरकार से सहयोग की अपील !
       महोदय ,
     धरती से आकाश तक घटने वाली प्रत्येक बड़ी घटना का कुछ न कुछ अर्थ होता है ऐसी हर प्राकृतिक घटना हमें भविष्य में घटित होने वाली कुछ घटनाओं की सूचना दे रही होती है किंतु जानकारी न होने के कारण हम समझ नहीं पाते हैं प्रकृति के वे संकेत !प्रकृति में हर क्षण कुछ न कुछ बदल रहा है ये बदलाव कुछ बड़े होते हैं और कुछ छोटे कुछ हमें दिखाई पड़ते हैं तो कुछ नहीं कुछ सामान्य होते हैं और कुछ विशेष !जैसे वर्षा बादल आदि ,और कुछ उत्पात रूप में होते हैं जैसे भूकंप तूफान आदि !इस शुभ और अशुभ का पूर्वानुमान लगाने के लिए हमारे संस्थान द्वारा चलाई जा रही है व्यापक रिसर्च !जिसमें संसाधनों के अभाव में आने वाली बाधाओं के निवारण एवं कार्य सञ्चालन हेतु आर्थिक सहयोग के लिए अापसे अपेक्षा है !इस दृष्टि से कुछ घटनाओं का अध्ययन किया भी गया है और करने के लिए समय समय पर कई घटनाएँ घटती रहती  हैं ये  विस्तार पूर्वक इस लिंक पर उपलब्ध हैं देखने की कृपा करें! ऐसे विषयों के रिसर्च के लिए सरकारी सहयोग का कोई प्रावधान है क्या ?यदि हाँ तो कैसे ?
    " प्रकृति की हर हलचल भविष्य में होने वाली घटनाओं की सूचना देती है !http://bharatjagrana.blogspot.in/2016/02/see-more_36.html"

                                                                        :प्रार्थी  भवदीय :
                                                       आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी 
   संयोजक-  राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान (रजि.)
  एम. ए.(व्याकरणाचार्य) ,एम. ए.(ज्योतिषाचार्य)-संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
एम. ए.हिंदी -कानपुर विश्वविद्यालय \ PGD पत्रकारिता -उदय प्रताप कालेज वाराणसी
    पीएच.डी हिंदी (ज्योतिष)-बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU )वाराणसीsee more … http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html

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Saturday, 27 February 2016

भारतमाता आनाथ है क्या ? क्यों सह जाएँ देश भक्त लोग देश विरोधी हरकतों को ? ऐसा करने के पीछे उनकी मजबूरी क्या थी ?

भारत में भारतविरोधी नारे लगाए जाएँ और भारतमाता के वीर सपूत सह जाएँ  ऐसा कैसे हो सकता है !ऐसे पापियों का मुख नोच लेंगे !
    काँग्रेस को बुरा न लगे तो न सही किंतु माँ भारती के स्वाभिमानी सपूत कैसे पचा जाएँ ये देश द्रोही नारे !"भारत तेरे टुकड़े होंगे"ये लोग टुकड़े करने वाले हैं या सहने वाले या टुकड़े करने वालों की सूचना देने वाले !देश को आखिर पता  तो होना चाहिए कि ये लोग हैं कौन!काँग्रेस ने इतने वर्षों में क्या यही कमाई की है ! 
     क्या यही सब सुनने और सहने के लिए देश के सैनिक शहीद होते  हैं सीमा पर !देश की राजधानी दिल्ली के शिक्षण संस्थान में डंके की चोट पर बोले गए हैं माँ भारती को चुभते हुए शब्द ! अरे कायरो !तुम तो सह गए इतना सब सुनकर भी उन्हीं के बीच बैठे जाकर !किंतु कल्पना करके देखो देश के सैनिकों के सामने सीमा पर कोई ऐसे नारे लगाकर सुरक्षित जा सकता था क्या !हमारे वीर सैनिक ऐसे पापियों की चोंच नोच लेते !यहाँ संसद में इसपर बहस चल रही है लानत है हमें और हमारे देश प्रेम को !
    काँग्रेस को तो केवल एक परिवार के अपमान के अलावा किसी का अपमान समझ में ही नहीं आता उनसे क्या आशा की जाए !
"केवल भारत विरोधी नारे लगाने से कोई देश द्रोही नहीं हो जाता -  काँग्रेसी बरिष्ठ नेता"
   किंतु महोदय !यदि भारत विरोधी नारे लगाने से कोई देश द्रोही नहीं हो जाता तो सोनियाँ और राहुल के विरोध में नारे लगाने वाला कोई कार्यकर्ता काँग्रेस विरोधी कैसे हो जाता है और उसके विरुद्ध कठोर कार्यवाही क्यों कर दी जाती है केवल इसीलिए न कि पार्टी में राहुल और सोनियाँगाँधी जी से स्नेह करने वाले बहुत लोग हैं वो उनका अपमान नहीं सह सकते !यदि सच्चाई ये है तो भारत माता आनाथ है क्या कि भारत विरोधी नारे भारत में लगाए जाएँगे और भारतमाता के सपूत सह जाएँगे क्या ऐसी कल्पना कैसे की जा सकती है ऐसे पापियों की चोंच नोच लेंगे !
सिर्फ भारत विरोधी नारे लगाने से कोई देशद्रोही नहीं हो जाता - See more at: http://www.patrika.com/news/political/sedition-case-cannot-be-apply-on-kanhaiya-says-kapil-sibal-1175868/#sthash.aGxjh4Eb.dpuf
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Thursday, 25 February 2016

-: जय श्री राम :-

                                                                 -: जय श्री राम :-
 'गौ गंगा गायत्री गीता एवं समस्त सनातन शास्त्रों की गौरव रक्षा हेतु '
      राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान (रजि.)
  1.  संसद और विधान सभाओं की कार्यवाही का उद्देश्य जनहित तथा देशहित से जुड़े गंभीर विषयों पर चर्चा करना होता है किंतु चर्चा तो वही करेगा जिसे जिस विषय की जानकारी या अनुभव होगा । चर्चा करने और समझने की योग्यता के लिए शिक्षित होना आवश्यक है ।जो माननीय सदस्य शिक्षित नहीं होते हैं वो अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठे बैठे ऊभते या सोते रहते हैं ऐसी परिस्थिति में वैसे भी वो या तो चुप बैठे रहें या फिर उन लोगों का साथ दें जो लोग केवल शोर शराबा करने  की ही ताक में बैठे होते हैं । चर्चा करने या समझने की आवश्यक योग्यता के अभाव में ऐसे जन प्रतिनिधियों के सदन की कार्यवाही में भाग  लेते समय उनके शांत बैठे रहने से या शोर शराबा करने से सदन की कार्यवाही का उद्देश्य पूरा हो जाता है क्या यदि नहीं तो सदन की  चर्चा में उनकी सहभागिता कैसे सुनिश्चित मानी जाती है ? 
  2.   सम्माननीय सदनों में जनहित और राष्ट्रहित की गंभीर चर्चा करने वालों की संख्या की अपेक्षा चर्चा से ऊभ रहे हुल्लड़ मचाने वालों की संख्या काफी अधिक होती है । इस संख्या के अनुपात में ही सदन के बहुमूल्य समय का अधिक भाग शोर शराबा में और कम भाग चर्चा में जाता है । ऐसे शोर शराबे का जनहित या राष्ट्रहित से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं होता है जबकि सदन की चर्चा का उद्देश्य जनहित और राष्ट्रहित  होता है सम्माननीय सदस्यों की शैक्षणिक अयोग्यता के कारण यदि चर्चा के लिए आहूत सत्र शोर शराबे की भेंट चढ़ जाते हैं तो निकट भविष्य में इसे रोकने के लिए कोई प्रयास किए जा रहे हैं क्या ? 
  3.  संसद लोकतंत्र का महान मंदिर होता है इस मंदिर का देवता संविधान होता है जनहित और राष्ट्रहित से जुड़ी संवैधानिक चर्चाएँ ही इसके महान मंत्र होते हैं और यहाँ की संवैधानिक मर्यादाओं का पालन ही पवित्र पूजा पाठ है । सदन के सम्माननीय सदस्य ही इस मंदिर के पुजारी होते हैं संविधान की सीमा में रहकर देशहित और जनहित के विषय में चर्चा करना ही इनका कर्तव्य होता है इनके सदाचरण और भाषाई पवित्रता से देश और समाज की शाख जुड़ी होती है इनके आचार व्यवहार के साथ देश और जनता का न केवल लौकिकहित अपितु सम्मान स्वाभिमान भी जुड़ा होता है ऐसी परिस्थिति में जिन जन प्रतिनिधियों  के संसदीय आचार व्यवहार से जनता को ठेस लगती हो उसका विरोध करने के लिए आम जनता के पास भी क्या कोई अधिकार हैं यदि हाँ तो क्या ? 
  4.  अपने देश की प्रचलित प्रायः प्रत्येक राजनैतिक पार्टी का मालिक कोई एक परिवार होता है और सब चाहते हैं कि उनकी पार्टी की मल्कियत हमेंशा उनके और उनके परिवार के ही हाथ में रहे इसके लिए आवश्यक होता है कि अपनी पार्टी में अपने से अधिक ज्ञानी गुणी समझदार या सजीव विचार वाले व्यक्ति को पार्टी में या तो घुसने न दिया जाए और यदि घुसाना ही पड़े तो उन्हें निर्णायक भूमिका में न  पहुँचने  दिया जाए । ऐसे पार्टीमालिक लोग  अशिक्षित लोगों को विधायक सांसद  बनाकर अपनी अँगुलियों  पर नचाया करते हैं ये अपनी पार्टी मालिकों का इशारा पाते ही सदन के बाहर या भीतर हुल्लड़ हंगामा धरना प्रदर्शन आदि सब कुछ करने लगते हैं ऐसी परिस्थिति में देश के राजनैतिक क्षितिज से शिक्षित ,समझदार एवं सजीव बिचार वाले लोग दिनोंदिन गायब होते जा रहे हैं परिस्थिति यदि ऐसी ही चलती रही तो शिक्षित लोगों का राजनैतिक क्षेत्र में कोई काम ही नहीं रह जाएगा !ऐसी परिस्थिति में सदनों की गरिमा तथा गुणवत्ता बनाए एवं बचाए रखने के लिए जनप्रतिनिधियों के लिए भी उच्च शिक्षा को अनिवार्य करने की किसी योजना पर विचार किया जाएगा   क्या और यदि नहीं तो क्यों ?
                                                                              : भवदीय :
                                                       आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
  एम. ए.(व्याकरणाचार्य) ,एम. ए.(ज्योतिषाचार्य)-संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
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Wednesday, 24 February 2016

सरकारी नौकरियों की मौज मस्ती भरी जिंदगी ऊपर से भारी भरकम सैलरी आरक्षण आन्दोलनों के लिए उकसाती हैं जनता को !

 आम जनता की अपेक्षा सरकारी कर्मचारियों की ऐसोआराम भरी जिंदगी भारी भरकम सैलरी वो भी बिना कुछ खास काम का बोझ !ऐसी नौकरियाँ कौन नहीं पाना चाहेगा वो भले आरक्षण के द्वारा ही क्यों न मिलें उनके लिए कुछ लोगों को भले मरना ही क्यों न पड़े !
  हे प्रधानमंत्री जी ! सरकारी कर्मचारी यदि सेवक ही होते तो क्यों लेते भारी भरकम सैलरी !समय समय पर सैलरी बढ़ाने के लिए क्यों बनते पेयकमीशन या बेतन आयोग जैसे सरकारी कर्मचारियों के शुभ चिंतक समूह !
     सरकारी नौकरियों की मौजमस्ती पूर्ण ड्यूटी और अँधाधुंध सैलरी ऊपर से ऊपरी कमाई की अघोषित सुविधा !ऊपर से समय समय पर सैलरी बढ़ाते रहने की सलाह देने वाले प्रिय पेयकमीशनों की कृपापूर्ण छत्र छाया जहाँ मिलती हो ऐसी नौकरियाँ यदि आरक्षण से भी मिलें तो क्या बुरी हैं इन्हें पाने के लिए यदि आरक्षण आंदोलनों में कुछ लोग मर भी जाएँ तो भी सस्ता सौदा समझते हैं लोग ! सतर्क सरकारें यदि ईमानदारी पूर्वक अपने कर्मचारियों से काम ले पातीं तो सरकारी नौकरी करना कौन चाहता और कौन माँगता  आरक्षण !
    प्राईवेट कर्मचारियों की अपेक्षा कम से कम पाँच गुना अधिक सैलरी देकर प्राइवेट कर्मचारियों की अपेक्षा कम से कम पाँच गुना कम काम ले पाने वाली सरकारें आरक्षण आंदोलनों की आग में अपनी गैरजिम्मेदारी का घी डालने जैसा काम कर रही हैं !यदि सरकारें कम काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों पर खजाना यूँ ही न लुटा रही होतीं तो न कोई सरकारी नौकरी चाहता और न ही माँगता आरक्षण !किंतु सरकारें अपने कर्मचारियों के भ्रष्टाचार पर लगाम लगा पाने में अब तक सफल नहीं हो पाईं हैं !यदि प्राइवेट संस्थाओं को कम सैलरी देकर जिम्मेदारी पूर्वक अच्छा काम करने वाले कर्मचारी मिल सकते हैं और वो अपने काम से जनता का दिल जीत सकते हैं तो ऐसे पवित्र कर्मचारी सरकारों को क्या नहीं मिल सकते हैं और यदि कम सैलरी पर अच्छा काम करने वाले अच्छे लोग सरकारों को भी मिल सकते हैं तो सरकार अपने महँगे कर्मचारियों की सुख सुविधाओं  पर अकारण ही क्यों लुटाती है सरकारी खजाना ! 
       एक ओर सरकारी डाक सुविधाएँ तो दूसरी ओर प्राईवेट कोरियर ,एक ओर सरकारी अस्पताल तो दूसरी ओर प्राईवेट नर्सिंग होम इसी प्रकार एक ओर सरकारी स्कूल तो दूसरी ओर प्राईवेट स्कूल !यदि सरकारी सेवाएँ अच्छी ही होतीं तो सारे सरकारी लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में क्यों पढ़ाते !कुल मिलाकर जनता का दिल जीतने वाली सरकार की अपेक्षा कम खर्चीली प्राइवेट सेवाएँ यदि इतनी अधिक लोक प्रिय हैं तो जनता के पेट पर लात मारकर शिथिल सरकारें सरकारी खजाना लुटाकर अकारण क्यों ढो रही हैं महँगे सरकारी कर्मचारियों को !
          सरकार चाहे तो सरकारी कर्मचारियों पर जितने पैसे खर्च करके सौ कर्मचारी  रखती है उतने पैसों में प्राइवेट वाले तीन सौ से पाँच सौ कर्मचारी रख लेते हैं यदि सरकार उनसे कुछ सीखने में बेइज्जती न समझती हो तो सरकार भी अपने महँगे कर्मचारियों की छुट्टी करे और सस्ते कर्मचारी रखे !इससे काम की क्वालिटी में सुधार होगा अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा ! बेरोजगारी घटते ही अकारण आंदोलन करने वाले नेताओं राजनैतिक पार्टियों को आंदोलनकारी मिलना बंद हो जाएँगे तो आंदोलनों के नाम पर सरकारी सम्पत्तियाँ नष्ट करने का खिलवाड़ समाप्त हो जाएगा !इसके बाद आरक्षण जैसे राजनैतिक हथकंडों का कोई वजूद नहीं रह जाएगा ! सरकारी कर्मचारियों के लिए एक सीधी गाइड लाइन जारी की जाए कि वो सरकार की किसी बात से यदि असंतुष्ट हैं तो अपनी शिकायत एक बार कर सकते हैं फिर भी यदि उनकी इच्छानुशार सुधार नहीं होता है तो त्यागपत्र दे सकते हैं किंतु सरकारी सैलरी लेते हुए सरकार के विरुद्ध आंदोलन नहीं कर सकते !
     पुलिस जैसे जिन विभागों में प्राइवेट का विकल्प नहीं है वहाँ की सेवाओं को नीलाम होने से कैसे रोका  जा सकता है उसका कोई विकल्प भी खोजना होगा ! इनमें भी यथा संभव सुधार  किया जाए !इन सबसे अलग सरकारी कर्मचारी ही तो सैनिक भी हैं जिनके राष्ट्र समर्पण पर स्वतः शिर झुक जाता है क्या उनसे कुछ सीख नहीं लेनी चाहिए सरकारों और सरकारी कर्मचारियों को !
        सरकारी  धन का बहुत अधिक मिसयूज हो रहा है । जिस देश में दिन भर कठोर परिश्रम करने के बाद भी हजारों गरीबों किसानों मजदूरों को मात्र कुछ हजार रुपयों के लिए आत्महत्या कर लेनी पड़ती हो !उसी देश में बिना किसी खास काम के बिना किसी खास जिम्मेदारी के सरकारी कर्मचारियों की ऐस चल रही हो तो आम आदमी क्यों नहीं चाहेगा कि उसे भी नौकरी मिले !नौकरी के लिए पढ़ना और परिश्रम करना पड़ेगा किन्तु इन दोनों के बिना भी जिंदगी सुधारने का यदि आरक्षण जैसा रास्ता है तो जिंदगी में एकबार रोड रोको पटरी उखाड़ो किसी को मारो कुछ लोगों को मर जाने दो इन सबके बाद यदि आरक्षण मिल ही गया और सरकारी नौकरी पाने में सफल हो गए तो  पीढ़ियाँ तक गुण गाती रहेंगी और सारा दालिद्र्य दूर हो जाएगा !
      सरकारी कर्मचारियों की सुख सुख सुविधाएँ , आम आदमी की  आमदनी से कई कई गुना अधिक सैलरी इसके बाबजूद भी समय समय पर उनकी सैलरी बढ़ाने का ध्यान सरकारें स्वयं रखती हैं इनके बाद कई विभागों में ऊपरी आमदनी का अघोषित  विकल्प हमेंशा खुला रहता है ! जब मन आवे तो कुछ जरूरतों की लिस्ट बना कर धरने प्रदर्शन कर लेना जब काम करने का मन न हो तो नेट नहीं आ रहा हैं का बहाना बना लेना जब काम करने का मन न हो तो मीटिंग चल रही है जैसा सूचना बोर्ड लगाकर अंदर सरकारी पैसों से पार्टी करने लगना । काम के नाम पर केवल अपने बॉस अर्थात अधिकारी को खुश रखना वो जैसे भी खुश हो सके उसे धन कमवा सकते हो तो धन कमवा दो तन सौंप सकते हो तो तन सौंपो सेवा सुश्रूखा आदि अन्यथा उनकी आज्ञा का पालन करो वो खुश तो ब्रह्मा भी आप का कुछ नहीं बिगाड़ सकते ! 
       वर्तमान में व्यवस्था कुछ ऐसी हो चुकी है कि सरकारी आफिसों में दो ही लोगों के काम होते हैं अधिकारियों कर्मचारियों के परिचितों या नाते रिश्तेदारों के या फिर जो घूस दे उसके !इसके अलावा जो किसी भी प्रकार से अपने को नुक्सान पहुँचा सकता हो नेता विधायक मंत्री आदि उसका काम होता है और जो न घूस दे सकता हो न परिचित हो और न ही नुक्सान पहुँचा सकता हो ऐसे लोगों का काम होना कठिन ही नहीं असंभव भी होता है!ये गिड़गिड़ाकर किसी को दया द्रवित करके कुछ काम भले ले लें वरना आम आदमी के पास कोई ऐसा अधिकार नहीं होता कि वो सरकारी कर्मचारियों से काम ले सकें !ईमानदारी का दंभ भरते बड़ी बड़ी सरकारें आईं और चली गईं किंतु वो आम जनता को ये छोटी सी सुविधा मुहैया नहीं करा सकीं कि सरकारी विभागों में उनके जरूरी काम बिना घूस दिए आसानी से होने लगेंगे । 
     




Tuesday, 23 February 2016

'दलितोत्थान'के नाम पर चलाए जा रहे हैं 'दलितउद्योग' ! हे संत रविदास जी ! इन नेताओं को सद्बुद्धि दीजिए !!

  हे संत रविदास जी !दलित यदि गरीब हों भी तो इसमें सवर्णों का क्या दोष !क्यों चाहिए उन्हें आरक्षण !किसी के बच्चा पैदा न हो तो पड़ोसी को दोषी क्यों ठहरा दिया जाए !क्या ऐसा आरक्षण गरीब सवर्णों के साथ अत्याचार नहीं है !सवर्णों पर शोषण के निराधार आरोप लगाएजा रहे हैं !!
   हे संत रविदास जी !सत्ता लुटेरों को सद्बुद्धि दीजिए !ये दुर्दांत लोग लूटते खुद हैं संपत्तियाँ अपनी बनाते हैं सुख सुविधाएँ अपने और अपने परिवारों के लिए इकट्ठी करते हैं और बदनाम सवर्णों को करते हैं जिनका कोई दोष ही नहीं है !हे संत रविदास जी !आप इतने बड़े महापुरुष हुए सारा देश आपके प्रति श्रद्धा रखता है किंतु ये आपकी त्याग तपस्या का प्रभाव है न कि आरक्षण का !ये सीधी सी बात नेताओं को समझाइए कि आरक्षण अधिकार नहीं अपितु सरकारी कृपा है और किसी की कृपा के सहारे जीने वाले लोगों का कोई आत्मसम्मान नहीं होता ! 
   वैसे भी सवर्णों ने यदि शोषण ही किया होता तो बेचारे खुद गरीब क्यों होते !सवर्णों की संख्या कम थी इसलिए उनकी सम्पत्तियाँ दिखाई देती हैं जबकि जिनकी जन संख्या अधिक हो गई संपत्ति बराबर ही थी किंतु ज्यादा जन संख्या में बँटने के कारण कम दिखाई पड़ती है !
   दलितों को जबतक अकल नहीं आती तब तक तो सवर्णों और ब्राह्मणों को गालियाँ सुननी ही पड़ेंगी दलितों के शोषण के नाम पर !नेताओं की यदि चली तो वो दलितों को सच्चाई समझने लायक अकल कभी आने ही नहीं देंगे और यदि एक बार आ गई तो ये दलितों के नाम पर देश को लूटने वाले लुटेरे मुख छिपाए घूमेंगे !       उनकी संतानें इतनी बड़ी लूट का हिसाब नहीं दे पाएँगी !और यदि कोई ईमानदार सरकार सत्ता में आई और इस दलितलूट की जाँच कायदे से हुई तो दलितहक़ हड़पने वाले नेताओं की पीढ़ियां जेलों में ही गुजारेंगी अप्प्णी जिंदगियां !
    उन सवर्णों पर शोषण का आरोप लगाया जा रहा जिनमें एक से एक गरीब ब्राह्मण और सवर्ण लोग कैसे कैसे गुजर बसर कर रहे हैं अपनी गृहस्थी का और कैसे बच्चे पाल रहे हैं कितने संघर्ष से पढ़ाते हैं अपने बच्चों को !ये उनकी ही आत्मा जानती है फिर उन बच्चों को नौकरी न मिले इस कारण आरक्षण का खेल खेला जा रहा है आखिर पढ़ लिख कर ये सवर्णों की फौज कहाँ जाएगी !ये  दलितों के हितैषी नेता केवल अपने घर भरने के लिए देते हैं सवर्णों को गालियाँ !इन्हें दलितों के विकास से कोई लेना देना ही नहीं है ये बेशर्म लोग उन सवर्णों पर शोषण का आरोप लगते हैं जो खुद दो दो पैसे के लिए मारे  मारे फिर रहे हैं जबकि दलितों का हिस्सा हड़पकर अरबोंपति बने ये नेता अपने बिषय में क्यों नहीं बताते कि उनके पास ये अरबों रूपए कहाँ से आए यदि उन्होंने दलितों और गरीबों का शोषण नहीं किया है तो !आखिर उन्होंने और कौन सा धंधा व्यापार किया वो भी कब और कैसे जिससे उनके यहाँ लक्ष्मी बरस पड़ी वो  फार्मूला देश के गरीबों को भी बता दें जो दो दो पैसे के लिए भड़भड़ाते घूम रहे हैं !
  'दलितोत्थान' या 'दलितोद्योग' !देश का दुर्भाग्य है दलितों के नाम पर राजनीति !दलितों की हमदर्दी दिखाकर सवर्णों या ब्राह्मणों को गाली देने या निंदा करने वाले लोग अपनेगिरेबान में क्यों नहीं झाँकते !और समाज को क्यों नहीं बताते कि जब वे राजनीति में आए थे तब उनके पुरखों के दिए हुए कितने पैसे थे उनके पास !और जब वो राजनीति में आ गए तब ऐसा चमत्कार अचानक कैसे हो गया कि बिना कुछ किए धरे ही अरबोंपति हो गए !दिन भर जहाजों पर घूमने वाले अरबों रुपए खर्च करने वाले फिर भी इतना धन !बारे दलितों के हमदर्दो !
      पवित्र आचरण करने वाला व्यक्ति किसी भी जाति सम्प्रदाय में जन्म ले उसे सम्मान मिलता ही है और अपने आचरण ही अच्छे न हों  तो कितनी भी बड़ी आरक्षण जैसी सुविधाएँ किसी का सम्मान उत्साह और अनुभव नहीं बढ़ा सकतीं !
   कहने को तो रैदास जी का जन्म काशी में चर्मकार (चमार) कुल में हुआ था और काम भी कोई प्रतिष्ठित नहीं था जूते बनाने का काम उनका पैतृक व्यवसाय था अपने काम को पूरी लगन तथा परिश्रम पूर्वक समय से  पूरा करने पर वे बहुत ध्यान देते थे।वे मधुर व्यवहार के धनी थे !इसीलिए उनके सम्पर्क में आने वाले लोग भी उनसे बहुत प्रसन्न रहते थे।वे परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था।
      ऐसे महापुरुषों को अपना आदर्श बताने वाले लोग 'दलितउद्योग' चला रहे हैं आरक्षण माँग रहे हैं संत रविदास तो देना सीखे थे माँगना तो उनके स्वभाव में ही नहीं था !वैसे भी माँगने वालों से लोग घृणा करते हैं जबकि देने वालों का सम्मान होता ही है।संत रविदास आज भी अपने गुणों के कारण ही सम्मानित हैं न कि आरक्षण के कारण !उनसे वर्तमान समाज को भी प्रेरणा लेनी चाहिए !
       'दलितउद्योग'चलाने वाले नेता और नेत्रियाँ संत रविदास का नाम लेकर वोट तो माँगना चाहते हैं किंतु उनके आदर्शों का पालन नहीं करना चाहते  !संत रविदास ने अपनी जाति कभी नहीं छिपाई और न ही कभी अपने काम को हीन  भावना से देखा !जातियों को कैस करने की बात तो उन्होंने कभी स्वप्न में भी नहीं सोची होगी । उन्होंने अपनी पहचान अपाहिजों बीमारों जैसी कभी नहीं बनने दी जैसे आजकल होता है कि हमें आरक्षण नहीं मिला तो हम आगे नहीं बढ़ सकते !जबकि वे तो  अपने परिश्रम एवं त्याग पर भरोसा करते थे ! 
    उनकी प्रेरणा से इतना स्वाभिमान तो सबके अंदर होना चाहिए कि अपना विकास एवं अपने बच्चों का पालन पोषण हम आरक्षण जैसी सरकार की किसी की कृपा से नहीं अपितु अपनी कमाई और अपने  बलपर करेंगे !जो लोग ऐसा करते हैं उनके बेटा बेटियों के मन में भी उनकी इज्जत हमेंशा बनी रहती है उनके बच्चे भी अपने माता पिता के आदर्श जीवन पर हमेंशा गर्व करते  हैं किन्तु जब माता पिता ही भूतपूर्व आरक्षण  भोगी रह चुके होते हैं तो बच्चे भी सोचते हैं कि किसी लायक ही होते तो क्यों समाज पर बोझ बनते और क्यों हमें बनाते !सवर्णों की  तरह तरक्की करने का विकल्प तो उनके पास भी खुला हुआ था वो बीमार अपाहिज तो थे नहीं कि आरक्षण के बिना आगे नहीं बढ़ सकते थे । वो चाहते तो सवर्णों की निंदा करने के बजाए अपनी टर्की भी तो कर सकते थे  और समाज को दिखा सकते थे कि हम बिना आरक्षण के बल पर भी अपनी तरक्की कर सकते हैं !     केवल  'दलित का बेटा' और 'दलित की बेटी' बनकर जो लोग विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री जैसे बड़े पद हथिया  लेना चाहते हैं इसके बाद घपले घोटाले करके अरबों खरबोंपति बनकर अरबों खरबों की संपत्ति इकट्ठी करलेते हैं ऐसे लोग जिसके लिए प्रत्यक्ष तौर पर कहीं कोई व्यापार करते नहीं देखे जाते और न ही इसके लिए उनके पास समय ही होता है कुल मिलाकर सत्ता मिलते ही अरबों रूपए इकट्ठे कर लेने वाले दलित नेताओं नेत्रियों को चाहिए कि संत रविदास जैसे महापुरुषों से वे भी कुछ सीखें !
संत रविदास जी जातियाँ समाप्त करने की बातें तो करते रहे किंतु जातियों के नाम पर आरक्षण जैसे हथियारों से सवर्णों का हक़ हड़पने की भावना उनमें दूर दूर तक नहीं थी यथा - 
दो. जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
    "वो कहते हैं कि जब तक जातियाँ रहेंगी तब तक मनुष्य आपस में जुड़ नहीं पाएँगे !"
    उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा अरे भिखमंगो !भगवान को छोड़कर किसी और से माँगने वालो तो और कुछ मिले न मिले तुम यमराज के लोक जरूर आओगे -
दो. हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।
     किंतु संत रविदास जी के पवित्र आदर्शों एवं संदेशों पर भरोसा न करने वाले लोग आज आरक्षण माँगने के लिए या अन्य तमाम प्रकार की अन्य सरकारी सुविधाएँ लेने के लिए जातियों को जीवित रखना चाहते हैं । नेता  नेत्रियों को परवाह ही नहीं है संत रविदास जी के पवित्र आदर्शों की !अन्यथा वो भी सवर्णों की तरह ही अपना एवं अपने बच्चों के भरण पोषण को बोझ स्वयं उठाते अपने परिश्रम से कमाए हुए भोजन से आधेपेट भी रह लेते तो उस कमाई में स्वाभिमान तो होता आत्म सम्मान की भावना बनती बच्चों को भी ऐसे आदर्श जीवन से प्रेरणा मिलती बच्चे अपने माता पिता पर गर्व करते !किंतु आरक्षण की सुविधा लेकर लोग कितने भी ऊँचे पदों पर क्यों न पहुँच जाएँ फिर भी उनके मन से हीन  भावना नहीं जाती !
   जो सवर्ण बालक शिक्षा में वास्तव में अच्छे रहे होते हैं किंतु ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य आदि वर्ग के होने के कारण योग्य होने पर भी वो अवसर उनसे छीनकर उन लोगों को दे दिया जाता है जो उस योग्य नहीं थे !अयोग्य लोगों को योग्य स्थान पर बैठाने से काम तो होता ही नहीं है अपितु उस पद का सम्मान भी घट जाता है इसलिए योग्यता में जूनियर लोगों को आरक्षण के बलपर सीनियर बना देने से कोई सीनियर हो जाएगा क्या !
    यदि घोड़े की खाल गधों को ओढ़ाकर उन्हें घोड़े नहीं बनाया जा सकता तो आरक्षण भी तो एक ऐसी खाल की तरह ही है आरक्षण की आड़ में कम मेहनत करके केवल पेट भरा जा सकता है तरक्की नहीं की जा सकती !क्योंकि तरक्की की इच्छा रखने वाले किसी भी व्यक्ति को अपना बलिदान देना होता है संघर्ष स्वयं करना होता है !
  • कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
    वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
  • कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
    तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।
  • रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।
    तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।
  • हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।
    दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।
मन चंगा तो कठौती में गंगा।

  • वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।
सन्देह-ग्रन्थि खण्डन-निपन, बानि विमुल रैदास की।।

     उनके स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे अप्रसन्न रहते थे। कुछ समय बाद उन्होंने रैदास तथा उनकी पत्नी को अपने घर से अलग कर दिया। रैदास पड़ोस में ही अपने लिए एक अलग झोपड़ी बनाकर तत्परता से अपने व्यवसाय का काम करते थे और शेष समय ईश्वर-भजन तथा साधु-सन्तों के सत्संग में व्यतीत करते थे।
    एक बार एक पर्व के अवसर पर पड़ोस के लोग गंगा-स्नान के लिए जा रहे थे। रैदास के शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने का आग्रह किया तो वे बोले, गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य चलता किन्तु एक व्यक्ति को जूते बनाकर आज ही देने का मैंने वचन दे रखा है। यदि मैं उसे आज जूते नहीं दे सका तो वचन भंग होगा। गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहाँ लगा रहेगा तो पुण्य कैसे प्राप्त होगा ? मन जो काम करने के लिए अन्त:करण से तैयार हो वही काम करना उचित है। मन सही है तो इसे कठौते के जल में ही गंगास्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है। कहा जाता है कि इस प्रकार के व्यवहार के बाद से ही कहावत प्रचलित हो गयी कि - मन चंगा तो कठौती में गंगा। रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।
वे स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है।
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा। वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
उनका विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित-भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना अत्यावश्यक है। अभिमान त्याग कर दूसरों के साथ व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास करने पर उन्होंने बहुत बल दिया।
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।
उनके विचारों का आशय यही है कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की पिपीलिका (चींटी) इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है। इसी प्रकार अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है।

Monday, 22 February 2016

अफसरों और नेताओं की साँठगाँठ से हो रहे हैं

    अपराध क्यों ? 
   अपराधों पर क्यों नहीं लग पा रही है लगाम ?इसके लिए दोषी कौन ?
 अपराधी लोग प्रशासन से बलवान हैं क्या ?  अफसर लोगों पर राजनैतिक दबाव होता है या अफसर आलसी हो गए हैं ?या पैसे देकर खरीद ली जाती हैं अफसरों की आत्माएँ ?या हर प्रकार के अपराधों में जनता का जैसा सहयोग मिलना चाहिए प्रशासन को उतना नहीं मिल पाता है या प्रशासन जनता के साथ ही गद्दारी करने लगता है इसलिए पास पड़ोस में होने वाले अपराधों की जानकारी भी प्रशासन को देने में डरती है जनता !

 भ्रष्टाचार के कारण  
अपराध दिनोंदिन बढ़ते क्यों जा रहे हैं ?
 

संत रविदास जी जैसे महापुरुषों के सम्मान का कारण उनका आदर्श है आरक्षण नहीं !

       पवित्र आचरण करने वाला व्यक्ति किसी भी जाति सम्प्रदाय में जन्म ले उसे सम्मान मिलता ही है और अपने आचरण ही अच्छे न हों  तो कितनी भी बड़ी आरक्षण जैसी सुविधाएँ किसी का सम्मान उत्साह और अनुभव नहीं बढ़ा सकतीं !
   कहने को तो रैदास जी का जन्म काशी में चर्मकार (चमार) कुल में हुआ था और काम भी कोई प्रतिष्ठित नहीं था जूते बनाने का काम उनका पैतृक व्यवसाय था अपने काम को पूरी लगन तथा परिश्रम पूर्वक समय से  पूरा करने पर वे बहुत ध्यान देते थे।वे मधुर व्यवहार के धनी थे !इसीलिए उनके सम्पर्क में आने वाले लोग भी उनसे बहुत प्रसन्न रहते थे।वे परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था।
      ऐसे महापुरुषों को अपना आदर्श बताने वाले लोग 'दलितउद्योग' चला रहे हैं आरक्षण माँग रहे हैं संत रविदास तो देना सीखे थे माँगना तो उनके स्वभाव में ही नहीं था !वैसे भी माँगने वालों से लोग घृणा करते हैं जबकि देने वालों का सम्मान होता ही है।संत रविदास आज भी अपने गुणों के कारण ही सम्मानित हैं न कि आरक्षण के कारण !उनसे वर्तमान समाज को भी प्रेरणा लेनी चाहिए !
       'दलितउद्योग'चलाने वाले नेता और नेत्रियाँ संत रविदास का नाम लेकर वोट तो माँगना चाहते हैं किंतु उनके आदर्शों का पालन नहीं करना चाहते  !संत रविदास ने अपनी जाति कभी नहीं छिपाई और न ही कभी अपने काम को हीन  भावना से देखा !जातियों को कैस करने की बात तो उन्होंने कभी स्वप्न में भी नहीं सोची होगी । उन्होंने अपनी पहचान अपाहिजों बीमारों जैसी कभी नहीं बनने दी जैसे आजकल होता है कि हमें आरक्षण नहीं मिला तो हम आगे नहीं बढ़ सकते !जबकि वे तो  अपने परिश्रम एवं त्याग पर भरोसा करते थे ! 
    उनकी प्रेरणा से इतना स्वाभिमान तो सबके अंदर होना चाहिए कि अपना विकास एवं अपने बच्चों का पालन पोषण हम आरक्षण जैसी सरकार की किसी की कृपा से नहीं अपितु अपनी कमाई और अपने  बलपर करेंगे !जो लोग ऐसा करते हैं उनके बेटा बेटियों के मन में भी उनकी इज्जत हमेंशा बनी रहती है उनके बच्चे भी अपने माता पिता के आदर्श जीवन पर हमेंशा गर्व करते  हैं किन्तु जब माता पिता ही भूतपूर्व आरक्षण  भोगी रह चुके होते हैं तो बच्चे भी सोचते हैं कि किसी लायक ही होते तो क्यों समाज पर बोझ बनते और क्यों हमें बनाते !सवर्णों की  तरह तरक्की करने का विकल्प तो उनके पास भी खुला हुआ था वो बीमार अपाहिज तो थे नहीं कि आरक्षण के बिना आगे नहीं बढ़ सकते थे । वो चाहते तो सवर्णों की निंदा करने के बजाए अपनी टर्की भी तो कर सकते थे  और समाज को दिखा सकते थे कि हम बिना आरक्षण के बल पर भी अपनी तरक्की कर सकते हैं !     केवल  'दलित का बेटा' और 'दलित की बेटी' बनकर जो लोग विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री जैसे बड़े पद हथिया  लेना चाहते हैं इसके बाद घपले घोटाले करके अरबों खरबोंपति बनकर अरबों खरबों की संपत्ति इकट्ठी करलेते हैं ऐसे लोग जिसके लिए प्रत्यक्ष तौर पर कहीं कोई व्यापार करते नहीं देखे जाते और न ही इसके लिए उनके पास समय ही होता है कुल मिलाकर सत्ता मिलते ही अरबों रूपए इकट्ठे कर लेने वाले दलित नेताओं नेत्रियों को चाहिए कि संत रविदास जैसे महापुरुषों से वे भी कुछ सीखें !
संत रविदास जी जातियाँ समाप्त करने की बातें तो करते रहे किंतु जातियों के नाम पर आरक्षण जैसे हथियारों से सवर्णों का हक़ हड़पने की भावना उनमें दूर दूर तक नहीं थी यथा - 
दो. जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
    "वो कहते हैं कि जब तक जातियाँ रहेंगी तब तक मनुष्य आपस में जुड़ नहीं पाएँगे !"
    उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा अरे भिखमंगो !भगवान को छोड़कर किसी और से माँगने वालो तो और कुछ मिले न मिले तुम यमराज के लोक जरूर आओगे -
दो. हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।
     किंतु संत रविदास जी के पवित्र आदर्शों एवं संदेशों पर भरोसा न करने वाले लोग आज आरक्षण माँगने के लिए या अन्य तमाम प्रकार की अन्य सरकारी सुविधाएँ लेने के लिए जातियों को जीवित रखना चाहते हैं । नेता  नेत्रियों को परवाह ही नहीं है संत रविदास जी के पवित्र आदर्शों की !अन्यथा वो भी सवर्णों की तरह ही अपना एवं अपने बच्चों के भरण पोषण को बोझ स्वयं उठाते अपने परिश्रम से कमाए हुए भोजन से आधेपेट भी रह लेते तो उस कमाई में स्वाभिमान तो होता आत्म सम्मान की भावना बनती बच्चों को भी ऐसे आदर्श जीवन से प्रेरणा मिलती बच्चे अपने माता पिता पर गर्व करते !किंतु आरक्षण की सुविधा लेकर लोग कितने भी ऊँचे पदों पर क्यों न पहुँच जाएँ फिर भी उनके मन से हीन  भावना नहीं जाती !
   जो सवर्ण बालक शिक्षा में वास्तव में अच्छे रहे होते हैं किंतु ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य आदि वर्ग के होने के कारण योग्य होने पर भी वो अवसर उनसे छीनकर उन लोगों को दे दिया जाता है जो उस योग्य नहीं थे !अयोग्य लोगों को योग्य स्थान पर बैठाने से काम तो होता ही नहीं है अपितु उस पद का सम्मान भी घट जाता है इसलिए योग्यता में जूनियर लोगों को आरक्षण के बलपर सीनियर बना देने से कोई सीनियर हो जाएगा क्या !
    यदि घोड़े की खाल गधों को ओढ़ाकर उन्हें घोड़े नहीं बनाया जा सकता तो आरक्षण भी तो एक ऐसी खाल की तरह ही है आरक्षण की आड़ में कम मेहनत करके केवल पेट भरा जा सकता है तरक्की नहीं की जा सकती !क्योंकि तरक्की की इच्छा रखने वाले किसी भी व्यक्ति को अपना बलिदान देना होता है संघर्ष स्वयं करना होता है !
  • कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
    वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
  • कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
    तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।
  • रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।
    तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।
  • हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।
    दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।
मन चंगा तो कठौती में गंगा।

  • वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।
सन्देह-ग्रन्थि खण्डन-निपन, बानि विमुल रैदास की।।

     उनके स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे अप्रसन्न रहते थे। कुछ समय बाद उन्होंने रैदास तथा उनकी पत्नी को अपने घर से अलग कर दिया। रैदास पड़ोस में ही अपने लिए एक अलग झोपड़ी बनाकर तत्परता से अपने व्यवसाय का काम करते थे और शेष समय ईश्वर-भजन तथा साधु-सन्तों के सत्संग में व्यतीत करते थे।
    एक बार एक पर्व के अवसर पर पड़ोस के लोग गंगा-स्नान के लिए जा रहे थे। रैदास के शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने का आग्रह किया तो वे बोले, गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य चलता किन्तु एक व्यक्ति को जूते बनाकर आज ही देने का मैंने वचन दे रखा है। यदि मैं उसे आज जूते नहीं दे सका तो वचन भंग होगा। गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहाँ लगा रहेगा तो पुण्य कैसे प्राप्त होगा ? मन जो काम करने के लिए अन्त:करण से तैयार हो वही काम करना उचित है। मन सही है तो इसे कठौते के जल में ही गंगास्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है। कहा जाता है कि इस प्रकार के व्यवहार के बाद से ही कहावत प्रचलित हो गयी कि - मन चंगा तो कठौती में गंगा। रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।
वे स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है।
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा। वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
उनका विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित-भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना अत्यावश्यक है। अभिमान त्याग कर दूसरों के साथ व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास करने पर उन्होंने बहुत बल दिया।
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।
उनके विचारों का आशय यही है कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की पिपीलिका (चींटी) इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है। इसी प्रकार अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है।

Saturday, 20 February 2016

आरक्षण की आग लगाकर राजनीति करना बंद किया जाए !
किसी को आरक्षण नहीं मिलेगा तो कोई नहीं माँगेगा !
गरीबत और मुशीबत  जातियाँ देखकर नहीं आते
 तो मदद और सुविधाएँ जातियाँ देखकर क्यों दी जाती हैं !




सवर्णों के पूर्वजों ने कभी किसी का शोषण नहीं किया !
 सवर्णों के आपसी युद्धों में सवर्ण लोग मारे गए ! परशुराम जी के पूर्वजों को क्षत्रियों ने मारा !
क्षत्रियों को परशुराम जी ने मारा ! क्षत्रिय श्री राम ने ब्राह्मणों (रावण )को मारा ! ऐसे युद्धों से सवर्णों की संख्या घट गई तो संपत्ति बढ़ गई !दूसरी ओर दलितों ने केवल अपनी जनसंख्या बढ़ाई तो संपत्ति घटनी ही थी इसमें सवर्णों का क्या दोष !सवर्णों ने दलितों का शोषण किया भी क्यों होगा दलितों के पास था क्या ?

बुरे लोगों ने राजनीति की राह इतनी रपटीली कर दी है कि भले लोगों का राजनीति में घुस पाना दिनोंदिन कठिन होता जा रहा है !


Friday, 19 February 2016

राजनीति अपराधियों का आँगन है जहाँ फूलते फलते हैं सभी प्रकार के अपराध !

  राजनीति वो वेश्या है जिसे शिक्षा, सद्गुण एवं सच बोलना पसंद ही नहीं है सारे अपराधी जन्म लेते हैं ऐसी ही राजनीति की कोख से  ! 

   जो नेता लोग खुद तो गंदी गंदी गंभीर गालियाँ दे जाते हैं और कोई दूसरा उन्हें 'तू' भी कह दे तो सिक्योरिटी माँगने लगते हैं और सिक्योरिटी उन्हें मिल भी जाती है फिर तो स्वतंत्र रूप से निर्भीक होकर देने लगते हैं गालियाँ !

    गालियाँ देने से उन्हें सिक्योरिटी मिल जाती है मीडिया में कवरेज मिलती है राजनैतिक कद बढ़ता है और धन तो बढ़ता ही है तो वो गाली क्यों न दें !यदि  गाली देने मात्र से एक साथ इतने लाभ हो रहे हों तो कोई क्यों न दे गालियाँ?राष्ट्रगान हो या राष्ट्र  के प्रतीकचिन्ह या अपने महापुरुषों या महान ऋषियों की निंदा करने वालों का क्यों नहीं किया जाता है बहिष्कार ? 

    नेताओं की सोर्स सिपारिस का सहारा लेकर ही अपराधी करते हैं अपराध !अन्यथा अपराधियों में इतनी हिम्मत कहाँ होती है कि वो रिस्क लेकर किसी वारदात  को अंजाम दें  !जिन भैंसों में प्रायः कोई पहचान नहीं होती है वो अपना एवं अपने मालिक का नाम तक नहीं बता सकतीं वो भी यदि नेताओं की हैं तो खोज ली जाती हैं किंतु जनता का बच्चा भी अगर खो जाता है तो मिलना कठिन हो जाता है !ये अपराध और राजनीति की आपसी साँठ गाँठ के प्रत्यक्ष उदाहरण  हैं । 

     बंधुओं ! जेल जाने से तो अपराधी भी डरते हैं बीबी बच्चों से उन्हें भी लगाव होता है अपराधी भी अच्छा खाना पहनना एवं अपने परिवार के साथ रहना चाहते हैं किंतु कम परिश्रम में अच्छी कमाई करने के लालच में वे करते हैं अपराध !किंतु यदि नेता लोग सिक्योरिटी छोड़ दें तो  नेताओं को भी अपराधियों का भय होगा तब उन्हें भी सभी प्रकार के अपराधियों के विरुद्ध जनता के साथ ईमानदारी पूर्वक खड़ा होना होगा !उन्हें भी बलात्कारियों का विरोध राजनैतिक नहीं अपितु वास्तविक रूप से करना पड़ेगा आखिर उनकी भी बहू बेटियाँ तो निकलेंगी रोडों पर तब उन्हें कौन बचाएगा !

  अत्याधुनिक शार्टकटी  नेताओं ने पाल रखे हैं अपराधी और बड़े बड़े हाईटेक अपराधियों ने पाल रखे हैं नेता ! दोनों अपनी अपनी सुविधानुशार करते करवाते हैं अपराध ! और दिखाने के लिए अपराधों के विरोध में निकालते हैं धूमधाम से रैलियाँ !

  वैसे भी नेताओं को सिक्योरिटी क्यों ? नेता लोग अपने एवं अपनों के लिए तो ले लेते हैं सिक्योरिटी और जनता को छोड़ देते हैं मरने के लिए !

    इन नेताओं ने देश की जनता को अपनापन  देने की जगह इन कपटी देश सेवकों ने जनता को शर्मिन्दा किया है !क्या इन नेताओं के भरोसे छोड़ देना चाहिए देश !जो जनता के प्रति इतनी गंदी सोच रखते हों ! 

   जनता के साथ जीने मरने की कसमें खाने वाले  ये कपटी देश सेवक जनता के साथ मर क्यों नहीं सकते ?मरने का खतरा जब सबको है तो सिक्योरिटी केवल अपने एवं अपने लिए क्यों ?ऐसे नेताओं पर भरोसा करने का मतलब अपने साथ धोखा करना है !एक एक नेता की सिक्योरिटीमें बीसों लोग लगा दिए जाते हैं जबकि एक मोहल्ले की जनता की सुरक्षा  के लिए बीस पुलिस वाले नहीं होते !ये नेता   मरने को इतना डरते हैं  तो राजनीति करते क्यों हैं !घर बैठें !क्या डाक्टर ने बताया है कि राजनीति ही करो ! मेहनत करके बच्चे पालो ! 

  सिक्योरिटी गरीबों ,किसानों और मजदूरों को  क्यों नहीं चाहिए ? क्या उन्हें मृत्यु भय नहीं होता है या वो घर से इफरात होते हैं क्या ?आखिर नेताओं का जीवन इतना बहुमूल्य क्यों होता है उनमें ऐसी खूबी क्या है अथवा देश हित में उन्होंने ऐसा किया क्या है ?की नियत पर संदेह क्यों न किया जाए !

      जनता के साथ जीने मरने की कसमें खाने वाले हमारे देश के प्रिय नेताओ !तुम जनता के साथ जी सकते हो तो जनता के साथ मर क्यों नहीं सकते !और यदि तुम्हारे मन में कोई कपट और धोखा देने का भाव नहीं है तो खुद सिक्योरिटी लिए क्यों फिरते हो जैसे जनता रहती है वैसे रहने में आप क्यों डरते हैं ? 

    अरे नेताओ ! सिक्योरिटी के बल पर नहीं अपितु अपने अच्छे कर्मों के बल पर जियो वही सत्कर्म मुसीबत में तुम्हारी भी रक्षा करेंगे! ब्यर्थ में  सिक्योरिटी वाले लोगों को क्यों परेशान करना ! और यदि परेशान ही करना है तो उन्हें देश और देशवासियों की सुरक्षा में लगाओ !जब सब सुरक्षित होंगे तो आपकी भी सुरक्षा होगी ही और यदि सब मार ही दिए गए तो अकेले आप ज़िंदा रहकर भी क्या करोगे !

     जब चारों ओर हाहाकार मचा होगा घायल लोग तड़प रहे होंगे चारों ओर लाशों के अम्बार लगे होंगे जन सुविधाओं का कोई बन्दोंबस्त  नहीं होगा, हे नेता जी !उस समय घायलों का करुण क्रंदन क्या सहा जा पाएगा तुमसे ?इन सबके बीच क्या तुम सो पाओगे चैन की नींद ?क्या तुम्हारे गले से निगले जा पाएँगे भोजन के निवाले ?और यदि नहीं तो सिक्योरिटी का आडम्बर केवल अपने लिए क्यों ?तुम अपने को आम आदमी कहते हो और जनता के साथ जीवन जीते हो  क्या जनता के साथ मर नहीं सकते !

  अरे नेता बंधुओ !जिनके पास पाप का पैसा नहीं होता वे गरीब ,किसान,मजदूर अपने चरित्र और पुण्यों के बल पर जिंदा रहते हैं एकांत में अथवा कोई दुर्घटना घटने पर जब आपका साथ देने वाला वहाँ कोई आस पास नहीं होता है तब भी आपके किए हुए आपके अच्छे कर्म कवच बनकर आपको न केवल घेर लेते हैं अपितु आपकी रक्षा भी कर लेते हैं किंतु जिस दिन पुण्य आपका साथ छोड़ देंगे उस दिन सिक्योरिटी की सारी  श्रेणियाँ निष्फल सिद्ध होंगी !  

   एक बार जो नेता सरकार में पहुँच जाता है उसके भाग्य में पीढ़ियों तक धन्नासेठ बन कर ऐश की जिंदगी जीना लिख ही जाता है वो भी बिना कोई व्यापार कामकाज आदि किए भी !एक बार सरकार में चले जाने वाले लोग आम आदमी कहाँ रह जाते हैं । 

   सरकारों में रहकर लोग अपना एवं अपनी संतानों की ऐशो आराम के लिए संपत्ति जुटाने के लिए उन्होंने कम से कम इतने पाप तो कर ही लिए होते हैं कि उनकी आत्मा उन्हें मरने से हमेंशा डराया करती है कि बिना सिक्योरिटी मत रहना अन्यथा तुम्हारे पाप तुम्हें अकेला पाकर अपनी चपेट में ले लेंगे !इसीलिए कई नेता सरकारों में पहुँचने से पहले अपनी सिक्योरिटी की परवाह नहीं करते थे और घूमते थे अकेले बिलकुल आम लोगों की तरह किंतु सरकार में पहुँचने के बाद ये बात उन्हें भी समझ में आ गई कि सिक्योरिटी की जरूरत पड़ती क्यों है !बंधुओ !पाप का पैसा हमेंशा भय पैदा करता है !

   देखो किसानों मजदूरों को खेतों में काम करने जाते हैं बरसते पानी की अँधेरी रातों में बड़ी बड़ी घासों पर साँप बिच्छुओं का भय किए बिना अपने पुण्यों के भरोसे चले जाते हैं अन्यथा कभी कोई बिषैला जीव जंतु काट भी सकता है कोई हिंसक जानवर हमला कर सकता है कोई शत्रु हमला कर सकता है किंतु वो अपने पुण्य बल के भरोसे घर छोड़कर निकल पड़ता है  अँधेरी रातों में और करने लगता है खेतों में काम किंतु पापी लोग बड़ी बड़ी साफ सुथरी जगहों पर बड़ी बड़ी कोठियों में रहने के बाद भी दिन रात सिक्योरिटी सिक्योरिटी चिल्लाते रहते हैं !अंधेर तो देखो - जो बाबा जी लोग हिंसक और बिषैले जीव जंतुओं से भरे बियाबान जंगलों में रहने के लिए ही जाने जाते थे किंतु पाप से आज वे भी अछूते नहीं रहे वो भी आश्रम नाम की बड़ी बड़ी बिल्डिंगों में रहते हुए भी माँगते हैं सिक्योरिटी !आश्चर्य !!



Tuesday, 16 February 2016

JNU हो या दादरी या फिर हैदराबाद विपक्ष की प्रमुख भूमिका में दिखने के लिए करवाए जाते हैं सारे विवाद !

      केजरीवाल जी और काँग्रेस में मुख्य विपक्षी दिखने के लिए चल रहा है कठिन कंपटीशन ! जिसका लाभ लेने के लिए बनाई जाती हैं JNU ,दादरी और  हैदराबाद जैसी परिस्थितियाँ !
      JNU हो या दादरी या फिर हैदराबाद वहाँ वो गए तो वो भी चले गए उन्होंने जाकर मोदी जी की निंदा की तो उन्होंने भी वहीँ पहुँच कर मोदी जी की निंदा की !वस्तुतः ये लोग JNU जाएँ या दादरी या फिर हैदराबाद इन्हें वहाँ घटी घटनाओं या पीड़ित लोगों की संवेदनाओं से कोई लेना देना नहीं होता है और न ही उन घटनाओं के विषय में कोई होमवर्क ही किया होता है बस वहाँ पहुँचते हैं मोदी जी की निंदा करते हैं चले आते हैं काँग्रेस हों या केजरीवाल ये दोनों आपस में एक दूसरे की निंदा नहीं करते क्योंकि राजनीति में निंदा उसकी की जाती है जिसका कोई वजूद हो और जिसका वजूद ही न हो उससे टकराने से मिलेगा क्या ?इसका सीधा सा अर्थ है कि इन दोनों के मन में एक दूसरे का कोई वजूद ही नहीं है वजूद मोदी जी का है तो उन्हीं के पीछे पड़े रहते हैं दोनों !एक सतर्क शिकारी की तरह मुद्दे लूट लेने की बेचैनी इन दोनों के बयानों से साफ झलकती है उसमें समाजहित  कहीं दूर दूर तक नहीं झलकता है !काँग्रेस हों या केजरीवाल ये दोनों बुराई मोदी जी की भले करें किंतु नुक्सान एक दूसरे का ही करते हैं !क्योंकि देश की सरकार 2019 तक के लिए स्थिर है किंतु मुख्य विपक्ष बनने के लिए दोनों कर रहे हैं मारा मारी !    
                काँग्रेस और केजरी वाल
   काँग्रेस ने जब जब जिसे जिसे समर्थन दिया उसे पक्ष विपक्ष दोनों ही भूमिकाओं से हमेंशा हमेंशा के लिए मुक्त कर दिया वो उसके बाद किसी लायक नहीं रहा - श्री चौधरी चरण सिंह जी,श्री चन्द्र शेखर जी, श्री देवगौड़ा जी ,श्री इंद्र कुमार गुजराल जी काँग्रेस के समर्थन से ही प्रधान मंत्री बने थे । श्री देवगौड़ा जी की जगह श्री इंद्र कुमार गुजराल जी को कैसे बनाया गया था प्रधान मंत्री सबने देखा है ?जब संयुक्त मोर्चा की सरकार का केवल सिर बदला गया था !उसी काँग्रेस की कृपा से पहली बार मुख्यमंत्री बने थे  केजरीवाल !
    काँग्रेस जिसे  समर्थन देती है वह चाहे अनचाहे उसका ग्रास बन ही जाता है काँग्रेस किसी दल के साथ कितना भी बुरा बर्ताव क्यों न करे किन्तु जब वह धर्म निरपेक्षता की मौहर बजाने लगती है तब बड़े बड़े मणियारे  बिषैले राजनैतिक दल फन फैला फैला कर नाचते नजर आते हैं!        
       सम्भवतः इसीलिए आम आदमी पार्टी को काँग्रेस जैसे जैसे समर्थन, सुविधाएँ एवं समाधान देती जा रही थी वैसे वैसे केजरी वाल न केवल अपनी शर्तें एवं शंकाएँ बढ़ाते जा रहे थे अपितु पैर एवं दायरा भी फैलाते जा रहे थे ।
      रामायण में एक प्रसंग आता है कि जब हनुमान जी लंका की ओर बढ़ रहे थे  उसी समय सर्पों की माता सुरसा आती है और हनुमान जी को अपने मुख में रखना चाहती है हनुमान जी जैसे जैसे अपना शरीर बढ़ाते हैं वैसे वैसे सुरसा अपना मुख बढ़ाते जाती है ।वही हालात आज दिल्ली की राजनीति में पैदा हो गए हैं काँग्रेस जैसे जैसे केजरीवाल का साथ देने और शर्तें मानने की घोषणा करती चली जा रही थी अरविन्द  केजरीवाल जी वैसे वैसे अपनी शर्तों का पिटारा खोलते  चले जा रहे थे ।
      वैसे मेरा व्यक्तिगत अनुमान है कि जब तक मोदी जी की सरकार केंद्र में रहेगी तब तक काँग्रेस और केजरीवाल जी ऐसे मुद्दे तैयार करते ही रहेंगे जिससे एक दूसरे को अपने से पीछे कर के अपने को फ्रंट पर दिखाया  सके !वैसे दिल्ली में काँग्रेस हार भले गई  हो किंतु केजरीवाल जी की उछलकूद कितने दिन चलने देगी वो !                                                                                                                                                                   जस जस सुरसा बदन बढ़ावा । 
            तासु  दून कपि रूप दिखावा ॥ 
            शत जोजन तेहि आनन कीन्हा।
           अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥  

Thursday, 11 February 2016

महर्षि मनु की दिव्य दृष्टि !

        महान जाति वैज्ञानिक महर्षि ने  लाखों वर्ष पहले लोगों के चेहरे देखकर पहचान लिया था कि ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्यों  के  स्वाभिमान को कोई राजा आरक्षण जैसा लोभ  देकर गिरवी नहीं कर सकता ! इनकी संतानों में भी अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने की भावना होगी इन  स्वाभिमानी लोगों की संतानें त्याग तपस्या पूर्वक अपना लक्ष्य हासिल करने  पर भरोसा करेंगी !आरक्षण जैसा कोई लोभ देकर इन्हें इनके सिद्धांतों से बिचलित नहीं किया जा सकता !
   यद्यपि  कलियुग के प्रभाव से कुछ सैद्धांतिक शिथिलता सवर्णों में भी आई है उनका प्रतिशत बहुत कम है आज भी सवर्ण शिक्षा और परिश्रम के बल पर तरक्की करने पर भरोसा करते हैं सवर्ण लोग आज भी अपने परिवारों के भरण पोषण के लिए सरकारों की ओर ताकते ! अपने परिवारों के भरण पोषण की जिम्मेदारियाँ सवर्ण लोग स्वयं उठाते हैं ऐसा कभी नहीं करते कि शादी खुद करें एवं बच्चे खुद पैदा करें और उनके पालन पोषण की जिम्मेदारी सरकारों पर छोड़ दें उनकी तरक्की के लिए आरक्षण माँगने लगें या  दूसरों को जिम्मेदार ठहराने लगें जैसे आजकल सवर्णों पर शोषण के आरोप लगाए जा  रहे हैं किंतु सवर्ण ऐसा कभी नहीं कर सकते 
कि अपने परिवार के भरण पोषण के लिए सत्ता के मठाधीशों के सामने जाकर  गिड़गिडाएँ कि तुम आरक्षण नहीं दोगे तो हम और हमारे बच्चे तरक्की नहीं कर सकते !
         सवर्ण आरक्षण न मांगकर अपनी योग्यता बढ़ाते हैं अपनी कार्यक्षमता बढ़ाते हैं अधिक परिश्रम कर्ट हैं जिसके बलपर वो विशाल विश्व में कहीं भी जाकर अपने तरक्की की सम्भावनाएँ खोज सकते हैं किंतु यदि सवर्ण भी आरक्षण की भीख के भरोसे जीन चाहते तो उनके और उनके परिवारों के बोझ को केवल भारत सरकार ही मजबूरी में धो सकती थी क्योंकि उसे वोट लेना था बाकि अन्य देश भारत के बीमारों को क्यों देते आरक्षण !