आम जनता की अपेक्षा सरकारी कर्मचारियों की ऐसोआराम भरी जिंदगी भारी भरकम सैलरी वो भी बिना कुछ खास काम का बोझ !ऐसी नौकरियाँ कौन नहीं पाना चाहेगा वो भले आरक्षण के द्वारा ही क्यों न मिलें उनके लिए कुछ लोगों को भले मरना ही क्यों न पड़े !
हे प्रधानमंत्री जी ! सरकारी कर्मचारी यदि सेवक ही होते तो क्यों लेते भारी भरकम सैलरी !समय समय पर सैलरी बढ़ाने के लिए क्यों बनते पेयकमीशन या बेतन आयोग जैसे सरकारी कर्मचारियों के शुभ चिंतक समूह !
सरकारी नौकरियों की मौजमस्ती पूर्ण ड्यूटी और अँधाधुंध सैलरी ऊपर से ऊपरी कमाई की अघोषित सुविधा !ऊपर से समय समय पर सैलरी बढ़ाते रहने की सलाह देने वाले प्रिय पेयकमीशनों की कृपापूर्ण छत्र छाया जहाँ मिलती हो ऐसी नौकरियाँ यदि आरक्षण से भी मिलें तो क्या बुरी हैं इन्हें पाने के लिए यदि आरक्षण आंदोलनों में कुछ लोग मर भी जाएँ तो भी सस्ता सौदा समझते हैं लोग ! सतर्क सरकारें यदि ईमानदारी पूर्वक अपने कर्मचारियों से काम ले पातीं तो सरकारी नौकरी करना कौन चाहता और कौन माँगता आरक्षण !
प्राईवेट कर्मचारियों की अपेक्षा कम से कम पाँच गुना अधिक सैलरी देकर प्राइवेट कर्मचारियों की अपेक्षा कम से कम पाँच गुना कम काम ले पाने वाली सरकारें आरक्षण आंदोलनों की आग में अपनी गैरजिम्मेदारी का घी डालने जैसा काम कर रही हैं !यदि सरकारें कम काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों पर खजाना यूँ ही न लुटा रही होतीं तो न कोई सरकारी नौकरी चाहता और न ही माँगता आरक्षण !किंतु सरकारें अपने कर्मचारियों के भ्रष्टाचार पर लगाम लगा पाने में अब तक सफल नहीं हो पाईं हैं !यदि प्राइवेट संस्थाओं को कम सैलरी देकर जिम्मेदारी पूर्वक अच्छा काम करने वाले कर्मचारी मिल सकते हैं और वो अपने काम से जनता का दिल जीत सकते हैं तो ऐसे पवित्र कर्मचारी सरकारों को क्या नहीं मिल सकते हैं और यदि कम सैलरी पर अच्छा काम करने वाले अच्छे लोग सरकारों को भी मिल सकते हैं तो सरकार अपने महँगे कर्मचारियों की सुख सुविधाओं पर अकारण ही क्यों लुटाती है सरकारी खजाना !
एक ओर सरकारी डाक सुविधाएँ तो दूसरी ओर प्राईवेट कोरियर ,एक ओर सरकारी अस्पताल तो दूसरी ओर प्राईवेट नर्सिंग होम इसी प्रकार एक ओर सरकारी स्कूल तो दूसरी ओर प्राईवेट स्कूल !यदि सरकारी सेवाएँ अच्छी ही होतीं तो सारे सरकारी लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में क्यों पढ़ाते !कुल मिलाकर जनता का दिल जीतने वाली सरकार की अपेक्षा कम खर्चीली प्राइवेट सेवाएँ यदि इतनी अधिक लोक प्रिय हैं तो जनता के पेट पर लात मारकर शिथिल सरकारें सरकारी खजाना लुटाकर अकारण क्यों ढो रही हैं महँगे सरकारी कर्मचारियों को !
सरकार चाहे तो सरकारी कर्मचारियों पर जितने पैसे खर्च करके सौ कर्मचारी रखती है उतने पैसों में प्राइवेट वाले तीन सौ से पाँच सौ कर्मचारी रख लेते हैं यदि सरकार उनसे कुछ सीखने में बेइज्जती न समझती हो तो सरकार भी अपने महँगे कर्मचारियों की छुट्टी करे और सस्ते कर्मचारी रखे !इससे काम की क्वालिटी में सुधार होगा अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा ! बेरोजगारी घटते ही अकारण आंदोलन करने वाले नेताओं राजनैतिक पार्टियों को आंदोलनकारी मिलना बंद हो जाएँगे तो आंदोलनों के नाम पर सरकारी सम्पत्तियाँ नष्ट करने का खिलवाड़ समाप्त हो जाएगा !इसके बाद आरक्षण जैसे राजनैतिक हथकंडों का कोई वजूद नहीं रह जाएगा ! सरकारी कर्मचारियों के लिए एक सीधी गाइड लाइन जारी की जाए कि वो सरकार की किसी बात से यदि असंतुष्ट हैं तो अपनी शिकायत एक बार कर सकते हैं फिर भी यदि उनकी इच्छानुशार सुधार नहीं होता है तो त्यागपत्र दे सकते हैं किंतु सरकारी सैलरी लेते हुए सरकार के विरुद्ध आंदोलन नहीं कर सकते !
पुलिस जैसे जिन विभागों में प्राइवेट का विकल्प नहीं है वहाँ की सेवाओं को नीलाम होने से कैसे रोका जा सकता है उसका कोई विकल्प भी खोजना होगा ! इनमें भी यथा संभव सुधार किया जाए !इन सबसे अलग सरकारी कर्मचारी ही तो सैनिक भी हैं जिनके राष्ट्र समर्पण पर स्वतः शिर झुक जाता है क्या उनसे कुछ सीख नहीं लेनी चाहिए सरकारों और सरकारी कर्मचारियों को !
सरकारी धन का बहुत अधिक मिसयूज हो रहा है । जिस देश में दिन भर कठोर परिश्रम करने के बाद भी हजारों गरीबों किसानों मजदूरों को मात्र कुछ हजार रुपयों के लिए आत्महत्या कर लेनी पड़ती हो !उसी देश में बिना किसी खास काम के बिना किसी खास जिम्मेदारी के सरकारी कर्मचारियों की ऐस चल रही हो तो आम आदमी क्यों नहीं चाहेगा कि उसे भी नौकरी मिले !नौकरी के लिए पढ़ना और परिश्रम करना पड़ेगा किन्तु इन दोनों के बिना भी जिंदगी सुधारने का यदि आरक्षण जैसा रास्ता है तो जिंदगी में एकबार रोड रोको पटरी उखाड़ो किसी को मारो कुछ लोगों को मर जाने दो इन सबके बाद यदि आरक्षण मिल ही गया और सरकारी नौकरी पाने में सफल हो गए तो पीढ़ियाँ तक गुण गाती रहेंगी और सारा दालिद्र्य दूर हो जाएगा !
सरकारी कर्मचारियों की सुख सुख सुविधाएँ , आम आदमी की आमदनी से कई कई गुना अधिक सैलरी इसके बाबजूद भी समय समय पर उनकी सैलरी बढ़ाने का ध्यान सरकारें स्वयं रखती हैं इनके बाद कई विभागों में ऊपरी आमदनी का अघोषित विकल्प हमेंशा खुला रहता है ! जब मन आवे तो कुछ जरूरतों की लिस्ट बना कर धरने प्रदर्शन कर लेना जब काम करने का मन न हो तो नेट नहीं आ रहा हैं का बहाना बना लेना जब काम करने का मन न हो तो मीटिंग चल रही है जैसा सूचना बोर्ड लगाकर अंदर सरकारी पैसों से पार्टी करने लगना । काम के नाम पर केवल अपने बॉस अर्थात अधिकारी को खुश रखना वो जैसे भी खुश हो सके उसे धन कमवा सकते हो तो धन कमवा दो तन सौंप सकते हो तो तन सौंपो सेवा सुश्रूखा आदि अन्यथा उनकी आज्ञा का पालन करो वो खुश तो ब्रह्मा भी आप का कुछ नहीं बिगाड़ सकते !
वर्तमान में व्यवस्था कुछ ऐसी हो चुकी है कि सरकारी आफिसों में दो ही लोगों के काम होते हैं अधिकारियों कर्मचारियों के परिचितों या नाते रिश्तेदारों के या फिर जो घूस दे उसके !इसके अलावा जो किसी भी प्रकार से अपने को नुक्सान पहुँचा सकता हो नेता विधायक मंत्री आदि उसका काम होता है और जो न घूस दे सकता हो न परिचित हो और न ही नुक्सान पहुँचा सकता हो ऐसे लोगों का काम होना कठिन ही नहीं असंभव भी होता है!ये गिड़गिड़ाकर किसी को दया द्रवित करके कुछ काम भले ले लें वरना आम आदमी के पास कोई ऐसा अधिकार नहीं होता कि वो सरकारी कर्मचारियों से काम ले सकें !ईमानदारी का दंभ भरते बड़ी बड़ी सरकारें आईं और चली गईं किंतु वो आम जनता को ये छोटी सी सुविधा मुहैया नहीं करा सकीं कि सरकारी विभागों में उनके जरूरी काम बिना घूस दिए आसानी से होने लगेंगे ।