इस कन्या पूजन वाले देश में यह क्या हो रहा है?कईबार
 डांस बार,या और तरीके की जगहों पर छापा पड़ते टी.वी.चैनलों पर देखा जाता 
है।जब इतनी छोटी छोटी सँकरी,अँधेरी, गंदी जगहों से लड़कियाँ 
 निकाली जाती हैं जहाँ कुत्ते बिल्ली भी नहीं रह सकते।यह माना जा सकता है 
कि कुछ जगहों पर वो बलपूर्वक ले जाई गई हों जहाँ उनका दोष न होता हो किन्तु
 उन जगहों की भी कमी नहीं है जहाँ इसे धंधा मानकर  
व्यापारिक दृष्टि से आपसी सहमति पूर्वक चलाया जा रहा होता है।उसमें 
सम्मिलित सभी को सैलरी मिलती है।ऐसे ब्यभिचारिक अड्डों को भी फैक्ट्री और 
ऑफिस जैसे नामों से संबोधित किया जाता है।ऐसे अड्डों से या इसी प्रकार के 
और भी घिनौने कार्यों से किसी भी रूप में किसी भी उम्र में सम्मिलित रह 
चुके लोग हर उम्र में ऐसे ब्यभिचारों का समर्थन करते दिखते हैं एवं इसमें 
सम्मिलित लोगों की बातों ब्यवहारों का समर्थन करते करते उसी में सम्मिलित 
हो लेते हैं। बहुत ऐसे सफेदपोश लोग ऐसे ही कुकृत्यों से पोल खुलने पर पूरे पूरे  मटुक नाथ बनकर निकलते हैं।
     ऐसे भटके हुए मटुक  नाथ लोग बार बार विदेशों के उदाहरण देते हैं आखिर क्यों?विदेश तो विदेश है
 और स्वदेश स्वदेश! वहाँ उनको वैसा अच्छा लगता है वो उनकी संस्कृति है यहाँ
 वैसा नहीं अच्छा लगता है ये अपनी संस्कृति है।यहाँ के सारे लोगों को 
विदेशों में घुमाया नहीं जा सकता है वहाँ के सारे लोगों को यहाँ लाया नहीं 
जा सकता है।अगर वहाँ घूमकर आए लोग यहाँ वालों पर अपना अनुभव ऐसे ही थोपेंगे
 तो ये सब्जी या नमक में चीनी मिलाना भारत के आम आदमियों के साथ कहाँ का 
न्याय है?
      
 कुछ लोगों को छोड़कर यहाँ का  गरीब या रईस आम आदमी किसी भी जाति,समुदाय, 
संप्रदाय से जुड़ा हो वह अपने प्राचीन संस्कारों पर आज भी गर्व करता 
है।उन्हें ही उसने देखा है और उसी में वह जिया भी है। बात अलग है कि कुछ 
लोग जैसे विदेशों की दुर्गन्ध स्वदेश में फैला रहे हैं उसी प्रकार से कुछ 
शहरों में घूम चुके लोग अपनी दुर्गन्ध वहाँ गाँवों में भी  फैला रहे 
हैं।गाँवों में भी शहरों के ही कुछ लोगों की तरह ही ऐसे बिना पेंदी के लोटे
 तैयार होने लगे हैं किन्तु गाँवों में लोगों के पास समय है वो आपसी बात 
ब्यवहार से ऐसे बदबूदार लोगों का बहिष्कार कर लेते हैं और खुश हो जाते 
हैं।वहाँ लोग बेशर्मी करके नहीं जी सकते क्योंकि  उनके घर और खेत आदि इतनी 
आसानी से बदले नहीं जा सकते।उन्हें कई कई पीढ़ियाँ एक एक जगह ही बितानी पड़ती
 हैं जिसकी बेटी-बहन ने प्रेम या प्रेम विवाह कर लिया होता है उसके दूसरे 
बेटा बेटियों के विवाह आदि काम काज होने मुश्किल हो जाते हैं।समाज के कितने
 ताने सुनने  सहने होते हैं उन्हें? कितनी सभा 
सोसायटियों से किया जा चुका होता है उनका बहिष्कार ?उनकी पीड़ा वही जानते 
हैं और जितना वो जानते हैं उसी में वो जी भी लेते हैं।
     
 जिसकी बेटी-बहन ने प्रेम या प्रेम विवाह कर लिया होता है उनका गाँवों में 
रह पाना बहुत कठिन हो जाता है वो मजबूरी में शहरों की ओर भाग खड़े होते हैं 
शहर वाले बढ़ती जनसंख्या के लिए उन्हें दोषी ठहरावें तो ठहरावें।आखिर कहाँ 
जाएँ वे?जिनके युवा होते  बच्चों ने  गाँवों में आधे अधूरे कपड़े पहन कर 
लड़कियों या महिलाओं  को रहते नहीं देखा है वो शहरों में ऐसा सब कुछ देख कर 
पागल हो उठते हैं फिर वो डायरेक्ट बेलेंटाइन डे मनाने लगते हैं।बड़ी बड़ी 
बसों ट्रेनों कारों में घुस घुस कर  जबर्दश्ती  बड़ी बुरी तरह से मनाते हैं 
बेलेंटाइन डे।चोट जिसके लगे घावों का एहसास उसे हो उनकी गंभीरता उसे 
पता  हो जिसे इलाज करना हो।उनकी पीड़ा का अनुभव वह करेगा जिसके  हृदय हो 
किन्तु जो गया ही बेलेंटाइन डे मनाने हो उसे क्या लेना देना इन दकियानूसी 
बातों से? कोई मरे तो मरे उसको तो अपने बेलेंटाइन डे से मतलब!क्या कहा जाए 
किसी को? सबको अपनी अपनी पड़ी है।
      जिनका विदेशों में जाना आना है वो वहाँ जो देखकर 
 आते हैं उसे बताने की उन्हें भी ऐसी खुजली उठती है कि वो यहाँ बताए 
या जताए बिना रहते नहीं आखिर विदेश घूम कर जो आए हैं। केवल बेलेंटाइन 
डे मना लेने से यह देश अमेरिका की तरह समृद्ध हो जाएगा क्या ?या आधे चौथाई 
कपड़े पहनकर क्या सम्पन्नता लौट आएगी और लोग शिक्षित और आधुनिक समझे जाएँगे?क्या
 इससे महिला पुरुषों के अधिकारों की रक्षा हो जाएगी?  और यदि यही है तो सभी
 लोग पहले बिना कपड़े पहने रहें फिर पुलिस उन्हें रखाती घूमे इतने पर भी 
पुलिस को दोषी ठहराया जाए।ऐसे तो पुलिस बस यही कर पाएगी बाकी सारे 
अपराधियों से कौन निपटेगा ?हाँ,बेलेंटाइन डे जरूर ऐसा हो जाएगा कि लोग 
देखते रह जाएँगे।
 
     उस
 समय यदि युवकों को रोका न गया होता तो बस के बलात्कार कांड जैसे किसी 
अपराध में फँसते तो वही सामाजिक खुले पन का समर्थक समाज उनके लिए फाँसी की 
सजा माँगता! ऐसे युवकों के माता पिता आखिर क्या करें, उनका दोष आखिर 
क्या है?जिन्हें आधुनिकता के नाम पर ये जलालत झेलने पर मजबूर होना पड़ता  
है ? 
      कई बार ऐसा भी देखा गया
 है कि किसी एक व्यक्ति के प्रेम जाल में फँसे  किसी युवती या युवक का 
सम्बन्ध किसी अन्य युवक या युवती  से होने पर सम्बंधित सभी युवक 
युवतियों  का जीवन धार पर लगा होता है। अर्थात इसमें कौन किसकी कब हत्या कर
 दे या किस पर तेजाब फेंक दे कहना बड़ा कठिन होता है। कई बार ऐसे युवक 
युवतियों के परिवारजन  भी ऐसे संबंधों के पक्ष या विरोध
 में हिंसक रूप से उतर जाते हैं जिसमें वो संबधित लड़के के साथ साथ अपनी 
लड़की के भी जीवन से खेल जाते हैं अर्थात उसे भी मार देते हैं।
     महिलाओं
 की सुरक्षा के नाम पर अब  बड़ी बड़ी बातें की जाने लगी हैं किन्तु सुरक्षा 
किससे करनी है?जब
 इस बात पर विचार करना होता है तो सोचना पड़ता है कि जो नपुंसक नहीं है ऐसे 
किसी भी व्यक्ति के हृदय समुद्र में कब किस लड़की या स्त्री को देख कर तरंगे
 उठने लगें कब किस सुंदरी को देखकर संयम के तट बंध टूट जाएँ और तरंगें 
ज्वार भाटा का रूप ले लें किसी को क्या पता ?इन विषयों में 
किसी और पर कैसे विश्वास किया जाए?जब अपने मन का ही विश्वास नहीं है।इसीलिए
 ऋषियों के द्वारा हजारों वर्ष तक ब्रह्मचर्य का अभ्यास करने के बाद भी 
थोड़ी सी चूक में कब किसका  मन किस पर आकृष्ट हो जाए कहना बहुत कठिन है।कई 
बार किसी महिला का शील भंग करने वाले व्यक्ति को निजी तौर बहुत आत्म ग्लानि
 होती है किन्तु अब वह अपने हृदय का भरोसा किसी को कैसे कराए ?
     महिलाओं का सम्मान एवं विश्वास सुरक्षित रखने 
के लिए ही शास्त्रकारों ने अपने मनों पर लगाम लगाने का प्रयास किया और 
कहा कि युवा पुरुषों के लिए आवश्यक है कि  माता मौसी बहन तथा बेटी रूपी 
स्त्री के साथ भी एकांत में न बैठे।
                 माता स्वस्रा दुहित्रा वा  
भगवान शंकराचार्य ने कहा है इस दुनियाँ में
 वीरों में सबसे बड़ा वीर वही है जो स्त्रियों के चंचल नेत्रों को देखकर 
भी जिसका  मन मोहित न हो ।
           प्राप्तो न मोहं ललना कटाक्षैः 
इसी प्रकार महिलाओं के विषय में लिखा गया कि कोई स्त्री यदि किसी की सुन्दरता पर मोहित हो जाए तो वह भाई ,पिता, पुत्र भी क्यों न हो यह सब भूलकर स्त्रियाँ केवल सुन्दरता पर समर्पित हो जाती हैं---
                  भ्राता   पिता   पुत्र   उरगारी ।
                  पुरुष मनोहर  निरखत नारी।। 
     और भी इसीप्रकार की बातें योगवाशिष्ठ  रामायण में भी लिखी गई हैं । 
      महिलाओं के विषय में कहा गया है कि महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा
 बासना अर्थात  सेक्स आठ गुणा अधिक होता है किंतु उस बासना को सहने के लिए 
ईश्वर ने महिलाओं में धैर्य भी बहुत अधिक मात्रा में दिया है। लिखा गया है 
कि 
        तत्रा शक्या निवर्तन्ते नराः धैर्येण योषितः।। 
     बात अलग है कि जहाँ  ये धैर्य के तटबंध टूटते हैं वहाँ  अक्सर बड़ी बड़ी दुर्घटनाएँ  घटते देखी जाती हैं। 
इसी प्रकार पुराने 
ऋषियों ने ही अपनी खोज में बताया कि  पुरुष  जब तक  अतिवृद्ध नहीं होता है 
तब तक बासना कि दृष्टि से उसका मन कभी भी  किसी भी स्त्री पर आकृष्ट हो 
सकता है इसलिए किसी स्त्री के लिए वह पुरुष मन  विश्वसनीय नहीं  हो सकता ।
      चूँकि बासना अर्थात सेक्स का सारा खेल इसलिए मन के आधीन होता है -
                   मनो हि मूलं हर दग्ध मूर्तेः 
   इसलिए ध्यान रखना चाहिए कि
 जिसका मन जब जितना अधिक प्रसन्न होता है उस समय उसके मन में  
बासना उतनी अधिक होती है इसीलिए राजा, महाराजा, धनी,मंत्री आदि सफल संपन्न 
लोग अक्सर औरों की अपेक्षा सुरा सुंदरी के अधिक शौकीन होते हैं।
 जब बासना घटती है तो 
लोग उदास हो जाते हैं  घूमने टहलने आदि कार्यों से बासना को बढ़ाकर मन को 
प्रसन्न करते  हैं अर्थात मनोरंजन करने के लिए या यूँ कह लें कि बासना 
बढ़ाने या मन को रिचार्ज करने जाते हैं । जो लोग मनोरंजन के लिए जाते समय 
किसी लड़की या लड़कियाँ किसी लड़के
 को साथ लेकर घूमने टहलने  जाते हैं ।वह भी कई तो आधे अधूरे कपड़े पहनकर कर 
जाते हैं। कई तो फ़िल्म आदि देखने जाते हैं ऐसे समय वहाँ सब कुछ होना संभव 
होता है ।ऐसी परिस्थितियों से बचा जाना चाहिए।लव मैरिज प्रतिबंधित होते 
ही युवक युवतियों
में प्रेम विवाह 
सम्बंधित आशा ही नहीं रहेगी। जिससे पटने पटाने का चक्कर समाप्त होगा और 
महिलाओं का अपना सम्मान पुनः प्रतिष्ठित होगा ।   
   पुराने
 समय में मान्यता थी कि सुंदरी स्त्री पति के प्राणों पर कभी भी भारी पड़ 
सकती है अर्थात या तो वो किसी पर मोहित होकर उस  प्रेमी के साथ मिलकर पति 
को नष्ट करती हैं या फिर वो प्रेमी स्वयं ही अपने प्रेम में  बाधक समझकर उस सुंदरी स्त्री के पति को नष्ट कर देते हैं ।इसीलिए महर्षि चाणक्य ने लिखा है कि      भार्या रूपवती शत्रुः    !!!
      प्रेम विवाह के सन्दर्भ में ज्योतिष
 शास्त्र का मानना है कि जीवन में जो सुख किसी को नहीं मिलने होते हैं उनके
 प्रति बचपन से ही उसके मन में असुरक्षा की भावना बनी रहती है।इसी लिए उस 
व्यक्ति का ध्यान उधर ही अधिक होता है और वो उस दिशा  में बचपन से ही प्रयास 
रत होता है।
          
सामान्य जीवन में ऐसा 
माना जाता  है कि जीवन में आपको जिस चीज की आवश्यकता हो 
वह इच्छा होते ही जैसा चाहते हो वैसा या उससे भी अच्छा मिल जाए। इसका मतलब 
होता है कि यह सुख आपके भाग्य में बहुत
 है अर्थात यह उस विषय का उत्तम सुख योग है, किंतु जिस चीज की इच्छा होने 
पर किसी 
से कहना या मॉंगना पड़े तब मिले  ये मध्यम सुख योग है, और
 यदि तब भी न मिले तो ये उस बिषय का अधम या निम्न सुख योग मानना चाहिए।और 
यदि वह सुख पाने के लिए पागलों की तरह गली गली भटकना पड़े  लोगों के गाली 
गलौच या मारपीट या और प्रकार के अपमान या तनाव का सामना करना पड़े तब मिले 
या तब भी न मिले तो इसे  संबंधित विषय का सबसे निकृष्ट  सुख योग 
समझना चाहिए।
       अब बात 
विवाह की सच्चाई यह है कि शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन है,जिसमें
 आज प्रचलन विवाह या प्रेम विवाह दो ही हैं।विवाह चाहें जितने प्रकार के जो
 भी हों किन्तु विवाह का अभिप्राय पत्नी या पति से मिलने वाला सुख है। यह 
सुख जिसे जितनी आसानी से जैसा चाहता है  वैसा या उससे भी अच्छा मिल जाता है तो वह विवाह के विषय में  उतना  अधिक भाग्यशाली होता है, किंतु जो 
 समय से पहले विवाह  की इच्छा होने से परेशान रहने लगे पढ़ाई छोड़कर  या काम 
छोड़ कर माता पिता आदि स्वजनों की ईच्छा के विरुद्ध  लुक छिप कर वैवाहिक सुख
 के लिए किसी से कहना या माँगना पड़े तब मिले  ये मध्यम सुख योग है, और
 यदि तब भी न मिले तो ये उस बिषय का अधम या निम्न सुख योग मानना चाहिए।और 
यदि वह सुख पाने के लिए पागलों की तरह गली गली भटकना पड़े  लोगों के गाली 
गलौच या मारपीट या और प्रकार के अपमान या तनाव का सामना करना पड़े तब मिले 
या तब भी न मिले तो इसे  संबंधित विषय का सबसे निकृष्ट विवाह योग 
समझना चाहिए।इस प्रकार जिसमें सब तरफ से तनाव,अपमान,परेशानियाँ,या हानि ही 
हानि हो  वह प्रेम विवाह कैसे हो सकता है क्योंकि पवित्र प्रेम तो परमात्मा
 का स्वरूप होता है और जो परमात्मा का स्वरूप  है उससे तनाव कैसा ?सच यह है
 कि ज्योतिष की दृष्टि से यह  
 बीमार विवाह योग है विवाह पूर्व इसका पता लगा लगने पर इसकी शांति कर लेनी 
चाहिए जिससे सारा जीवन बर्बाद होने से बच जाता है।ऐसे विषयों में सही जाँच 
एवं जानकारी करके बिना  किसी बहम के सही मार्गनिर्देशन के लिए हमारे 
संस्थान की ओर से भी विशेष व्यवस्था की गई है। 
       उत्तम विवाह योग में प्रायः ऐसा देखा जाता है कि लड़का अभी कह रहा होता है  कि अभी हमें 
शादी नहीं करनी है अभी पढ़ना या अपने पैरों पर खड़ा होना है  किंतु माता पिता
 अपनी जिम्मेदारी समझकर विवाह कर रहे होते हैं ऐसे विवाह में यदि उनका पति पत्नी में आपसी स्नेह भी उत्तम हो 
जाए, तो ये सर्वोत्तम विवाह योग होता है। इसमें उस लड़के को अपनी बासना अर्थात सेक्स 
की इच्छा प्रकट नहीं करनी पड़ी, इसलिए माता पिता के लिए वो हमेंशा 
शिष्ट,शालीन,सदाचारी आदि बना रहता है। ऐसे माता पिता अपने बच्चे का नाम 
बड़े गर्व से हमेंशा  लिया करते हैं कि उसने कभी किसी की ओर आँख उठाकर देखा भी 
नहीं है। ऐसा उत्तम विवाह योग किसी किसी लड़के या लड़की को बड़े भाग्य से 
मिलता है। बाकी जितना जिसे तड़प कर,बदनाम होकर या जलालत सहकर पति या पत्नी का सुख मिलता या नहीं भी मिलता है 
उतना उसे इस बिषय में भाग्यहीन या अभागा समझना चाहिए। 
   ऐसे ही वैवाहिक
 भाग्यहीन लोग प्रेम का धंधा करना शुरू कर देते हैं 
एक को छोड़ते दूसरे को 
पकड़ते दूसरे से तीसरा आदि ।ऐसे लोग इस विषय में कई बार हिंसक हो जाते 
हैं।बलात्कार,छेड़छाड़,हत्याएँ ऐसे ही बीमार विवाह योगों के लक्षण हैं।जिनके 
भाग्य में कम बीमार विवाह योग होता है उनका नुकसान कम होते देखा जाता 
है।ऐसे समझदार लोग संयम और शालीनता  पूर्वक ये सब करते हैं,
 कुछ ऐसा  नहीं भी करते हैं सहनशीलता के साथ संयमपूर्वक अच्छा बुरा कैसा भी
 हो एक जीवन साथी चुन लेते हैं और उसी के साथ अपना भाग्य समझ कर निर्वाह भी
 करते हैं  ।
    सामान्य रूप से असहन शील असंयमी  बीमार विवाह योग वाले लोग ऐसा करते करते थक कर  कहीं संतोष  करके मन या बेमन 
किसी के साथ जीवन बिताने लगते हैं जिसे देखकर लोग कहते हैं कि उनकी तो बहुत
 अच्छी निभ रही है।सच्चाई तो उन्हें ही पता होती है।ऐसे ही निराश  हताश लोग
 कई बार अपनी जिंदगी को तमाशा ही बना लेते हैं कई बार हत्या या आत्महत्या 
तक गुजर जाते हैं वो ऐसा समझते हैं कि वे प्रेम पथ पर मर रहे हैं जब सामने 
वाला या वाली को उससे अच्छा कोई और दूसरा मिल गया होता है तो वो पहले वाले 
से पीछा छुड़ाने के लिए उसे कैसे भी छोड़ना या मार देना चाहता है।ऐसे लोगों 
का एक दूसरे के प्रति कोई समर्पण नहीं होता है जबकि प्रेम तो पूर्ण समर्पण 
पर चलता है कोई भी प्रेमी अपने प्रेमास्पद को कभी दुखी नहीं देखना चाहता।
 
 कई ने तो एक साथ कई कई पाल रखे होते हैं।ऐसे लोग कई बार सार्वजनिक जगहों 
पर एक दूसरे के साथ शिथिल आसनों में बैठे होते हैं या एक दूसरे के मुख में 
चम्मच घुसेड़ घुसेड़  कर खा खिला रहे होते हैं। इसी बीच तीसरी या तीसरा आ गया
 उसने ज्योंही किसी और के साथ देखा तो पागल हो गया या हो गई जब पोल खुल गई 
तो लड़ाई हुई कोई कहीं झूल गया कोई कहीं झूल गई।भाई ये कैसा प्रेम? ये तो 
बीमार विवाह योग है।यहॉ विशेष  बात ये है कि इस पथ पर बढ़ने वाले हर किसी 
लड़के या लड़की की जिंदगी बीमार विवाह योग से पीड़ित होती है।इसी लिए ऐसे लोग 
अपने जैसे बीमार विवाह वाले साथी ढूँढ़ ढूँढ़कर उन्हें ही धोखा दे देकर अपनी 
और अपने जैसे अपने साथियों की जिंदगी बरबाद किया करते हैं।जैसे आतंकवादियों
 को लगता है कि वे धर्म के लिए मर रहे हैं इसीप्रकार ऐसे तथाकथित प्रेमी भी
 अपनी गलत फहमी में प्राण गॅंवाया करते हैं।ऐसे लोगों की जन्मपत्रियॉं यदि बचपन में ही किसी सुयोग्य ज्योतिष विद्वान 
से दिखा ली जाएँ तो ऐसे योग पड़े होने पर भी ऐसे लोगों को  अच्छे ढंग से 
प्रेरित करके जीवन की इस त्रासदी से बचाया जा सकता है। 
राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान की सेवाएँ 
     यदि आप ऐसे किसी 
बनावटी आत्मज्ञानी, बनावटी ब्रह्मज्ञानी, ढोंगी,बनावटी तान्त्रिक,बनावटी 
ज्योतिषी, योगी उपदेशक या तथाकथित साधक आदि के बुने जाल में फँसाए जा  चुके
 हैं तो आप हमारे यहाँ कर सकते हैं संपर्क और ले सकते हैं उचित परामर्श ।
 
      कई बार तो ऐसा होता है कि एक से छूटने के चक्कर में दूसरे के पास 
जाते हैं वहाँ और अधिक फँसा लिए जाते हैं। आप अपनी बात किसी से कहना नहीं 
चाहते। इन्हें छोड़ने में आपको डर लगता है या उन्होंने तमाम दिव्य शक्तियों 
का भय देकर आपको डरा रखा है।जिससे आपको  बहम हो रहा है। ऐसे में आप हमारे 
संस्थान में फोन करके उचित परामर्श ले सकते हैं। जिसके लिए आपको सामान्य 
शुल्क संस्थान संचालन के लिए देनी पड़ती है। जो आजीवन सदस्यता, वार्षिक 
सदस्यता या तात्कालिक शुल्क  के रूप में  देनी होगी, जो शास्त्र  से 
संबंधित किसी भी प्रकार के प्रश्नोत्तर करने का अधिकार प्रदान करेगी। आप 
चाहें तो आपके प्रश्न गुप्त रखे जा सकते हैं। हमारे संस्थान का प्रमुख 
लक्ष्य है आपको अपनेपन के अनुभव के साथ आपका दुख घटाना,बाँटना  और सही 
जानकारी देना।