Thursday, 23 February 2017

"शिल्पा शेट्टी होंगी स्वच्छभारतअभियान की ब्रांड एंबेसडर"- किंतु स्वच्छता के विषय में शिल्पा सेट्टी का योगदान क्या है ?

     अपनी नाक तक नौकरों से पोछवाने वाले बनाए जा रहे हैं स्वच्छता अभियान के ब्रांड एंबेसडर !ऐसे लोग स्वच्छता के विषय में क्या सिखा पाएंगे देश को !
      शिल्पा शेट्टी के लिए चित्र परिणाम जो फिल्मी अभिनेता अभिनेत्रियाँ अपने घर की साफ सफाई खुद न करते हों ! जो अपने घरों में झाड़ू लगाना तो दूर झाड़ू छूने में डरते हों !खुद पोछा न मारते हों कपड़े न धोते हों बाथरूम न साफ करते हों सब कामों के लिए अलग अलग नौकर रखते हों !ऐसे लोगों को ब्रांड एंबेसडर बनाने से देश के लोग आखिर क्या और कैसे प्रेरणा लेंगे !ऐसे लोगों से स्वच्छता के विषय में क्या सीखेंगे !
      आधे चौथाई कपड़े  पहनने की गन्दगी विदेशों से लाकर फैशन के नाम पर भारत में फैलाने के लिए जिम्मेदार फिल्मी जगत के अधिकांश लोग जिन्हें भारतीय संस्कृति से ऊभन  होती हो !ऐसे लोगों के अभिनयों आचारों व्यवहारों के दुष्परिणाम भारतीय लड़कियां महिलाएँ सामाजिक दुर्व्यवहारों के रूप में सहने के लिए मजबूर हों वे लोग यदि बना दिए जाएँ स्वच्छ भारत अभियान के ब्रांड एंबेसडर तो बनाने वाले का उद्देश्य आखिर क्या हो सकता है !
    ये तो उसी तरह की लापरवाही है जैसे अशिक्षित या अल्पशिक्षित  गैर जिम्मेदार और कामचोर घूस खोर लोगों को सरकारी नौकरियों में अधिकारी कर्मचारी बनाकर रख दिया जाए जिन पर  काम काज की कोई जिम्मेदारी ही न हो और न ही वो करते  ही हों इसके बाद भी वे अधिकारी कर्मचारी आखिर किस बात के !आखिर क्या करते हैं वो !केवल गाड़ियों में बैठकर आऊँ आऊँ करके झाम दिखाते घूमने वाली सरकारी  अधिकारियों की प्रजाति से सरकार कभी पूछे तो सही कि उनके पास कितने गरीब मजदूर ग्रामीणों को आने दिया जाता है और जो आने में सफल भी हो जाते हैं उनमें कितने के काम वो कर पाते हैं कितने दीन दुखियों को अपनापन देकर उनके काम आ पाते हैं वे किन्तु भ्रष्टाचार के माध्यम से सरकारों में सम्मिलित नेता लोग जिन अधिकारियों कर्मचारियों के माध्यम  से अवैध वसूली करवाते हैं उनसे किस मुख से पूछेंगे वे !और पूछें भी क्यों क्या उन्हें पता नहीं होता है जो पूछें !वैसे भी नेता लोग जिस दिन उनसे हिसाब लेने लगेंगे वे पोल नहीं खोल देंगे इनकी !
       सरकारी विभागों की नौकरी में नाम लिखाकर सैलरी उठाने वाले लोग अपने सारे काम प्राइवेट में करवाते हैं अपने बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं चिकित्सा प्राइवेट अस्पतालों में करवाते हैं डाक छोड़ कोरिअर का उपयोग करते हैं सरकारी फोन छोड़ प्राइवेट कंपनियों के मोबाईल उपयोग करते हैं ऐसे लोगों को सरकार नौकरी पर रखती ही क्यों है जिन्हें सरकारी काम काज पर भरोसा ही नहीं है उन्हें सरकार बाँटे जा रही है फोकट में सैलरी !ये अंधेर नहीं तो क्या है ?
      जो नेता अशिक्षित या अल्प शिक्षित होने के कारण बोल न पाते हों समझ न पाते हों उन्हें चुनावी टिकट देकर पार्टियां सदस्य बनवाती हैं इसके बाद उनसे हुल्लड़ मचवाकर सदनों की बहुमूल्य कार्यवाही रुकवाती हैं ऐसे लोगों को चुनाव लड़वाने वालों के इरादे ही नेक नहीं होते !वो ऐसे लोगों के साथ काम करना चाहते हैं जो बुद्दू हों उनके भ्रष्टाचार पर अंगुली न उठा सकें !
    कुल मिलाकर सरकार के हर काम में अदूर दर्शिता गैरजिम्मेदारी आदि प्रत्यक्ष झलकती है किंतु देश वासी करें आखिर क्या ?अभिनेताओं को किसानों का ब्रांड एम्बेसडर बना दिया जाता है आखिर उनसे क्या प्रेरणा लेते होंगे किसान !धन्य हैं सरकारें और उनकी कार्यशैली !भगवान् ही मालिक है ऐसे लोकतंत्र का !
   

भ्रष्ट बेईमान अशिक्षित अयोग्य एवं दुश्चरित्र नेताओं को न दिए जाएँ वोट !ये चुनाव जीतकर भी तुम्हारी ही नाक कटवाएँगे !

   राजनैतिकदलों में किन्नरों जैसा उपेक्षित जीवन बिता रहे हैं कई शिक्षित,समझदार अनुभवी चरित्रवान एवं जीवंत नेता लोग !और भ्रष्ट बेईमान अशिक्षित अयोग्य एवं दुश्चरित्र नेताओं को दिए जाते हैं टिकट और बनाया जाता है प्रत्याशी !
    अधिकाँश  राजनैतिक पार्टियों के मालिक लोकतंत्र के दुश्मनों के वे अपने नाते रिस्तेदार सगे संबंधी आदि वे लोग होते हैं या फिर पैसे देकर टिकट खरीद लेने वाले लोग होते हैं !पार्टी के लिए खून पसीना बहाने वाले ईमानदार कार्यकर्ता हाथ मलते   रह जाते हैं !ऐसी पापी पार्टियों और लोकतंत्र के शत्रु नेताओं नेताओं का बहिष्कार किया जाए !
       राजनैतिकदल चुनावी टिकट अपने घर परिवार वालों को देते हैं नाते रिस्तेदारों को देते हैं या फिर बेच लेते हैं ऐसे पक्षपात से पैदा हुए प्रत्याशी जब चुनाव जीत का जाते हैं तो सदनों में हुल्लड़ मचाते हैं  कार्यवाही रोकते हैं उपद्रव आदि जो कुछ भी कर पाते सब कुछ करते हैं किंतु नेताओं के घर खानदान वाले या नाते रिस्तेदार आदि 
        बेचारे लोग सदनों की चर्चा में भाग नहीं ले पाते क्योंकि उसके लिए शिक्षा ज्ञान अनुभव राष्ट्रचिंतन संस्कार सदाचार परोपकार सेवाभाव ईमानदारी जैसे तमाम गुण  चाहिए जिसकी उमींद नेताओं के सगे  सम्बन्धियों और टिकट खरीदकर चुनाव लड़ने वाले लोगों से नहीं की जा सकती ! ऐसे में ये सदनों में जाकर हुल्लड़ और उपद्रव ही करेंगे जनता के पैसों से चलने  संसद का बहुमूल्य समय बर्बाद करवाने पर आमादा है देश के बड़े बड़े राजनैतिक दल वो चर्चा करेंगे कैसे जिनमें चर्चा करना तो छोड़ी समझने लायक भी शिक्षा न हो ऐसे लोगों की योग्यता को जानते हुए भी जो पार्टियां टिकट देती हैं उनके इरादे ही संसद की कार्यवाही चलने देने के नहीं होते !
    अयोग्य लोग सदनों में जाकर वहाँ की कार्यवाही रोक ही सकते हैं चलाना तो उनके बश का होता नहीं है कार्यवाही चलाने अर्थात चर्चा के लिए जो शिक्षा समझ अनुभव चाहिए वो उनके पास होता नहीं है और दूसरों के अच्छे विचारों को मानने एवं अपने विचारों को विनम्रता पूर्वक औरों को मना लेने की प्रतिभा नहीं होती है वो बेचारे ज्ञानदुर्बल लोग चर्चा कैसे करें !सदनों में चर्चा करना आसान होता है क्या ?
       जिस राजनीति में शिक्षा की अनिवार्यता न हो समझ सदाचरण एवं अनुभव का महत्त्व ही न हो केवल अपनों को या पैसे वालों को या प्रसिद्ध लोगों को पद प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकट बाँटे जाने लगे हों वो संसद में आवें या न आवें ! चर्चा करने और समझने की योग्यता रखते हों या न रखते हों वो कुर्सियों पर बैठ के सोवें या समय पास करने के लिए बाहर चले जाएँ या संसद की कार्यवाही के समय ही अपने मोबाईल पर वीडियो देखने लगें या अपने पार्टी मालिकों का आदेश पाकर हुल्लड़ मचाने लगें !किंतु संसद में चर्चा करने और समझने की योग्यता यदि उनमें नहीं है तो वो संसद की चर्चा में सहभागी कैसे बनें !ऐसे लोगों को पद - प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकट प्रदान करने वालों को ही दोषी क्यों न माना जाए !
      संसद चलने का मतलब होता ही है विचारों का आदान प्रदान ! किंतु विचारशून्य लोग संसद चलने क्यों दें  इसके लिए शिक्षा जरूरी है । आजकल तो नेता बनने के लिए प्रसिद्ध होना जरूरी है भले ही वह प्रसिद्धि कितने भी कुकर्मों से ही क्यों न मिली हो ! नेता लोग अपने घर ख़ानदान वालों नाते रिस्तेदारों के अलावा पद प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकटों का हकदार केवल उन्हें मानते हैं जो चुनावी टिकट खरीद सकते हों या अच्छे बुरे कैसे भी कामों से प्रसिद्ध हो चुके हों भले वो बदनाम ही क्यों न हों !
             लोकतंत्र की टाँगें सहलाने का दंभ भरने वाले राजनैतिक पार्टियों के मालिक निर्लज्ज नेतालोग उन योग्य और समाज साधकों की उपेक्षा करके या यूँ कहें कि उनका हक़ मार कर अपने उन बेटा बेटी बहू बहन भांजों  भतीजों आदि को पद प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकट देते हैं जिन्हें राजनीति का कुछ भी पता ही नहीं होता है !तालियाँ बजवाने नारे लगाने रैलियाँ निकालने के लिए होते हैं कार्यकर्ता किंतु पद प्रतिष्ठा पाने और चुनावी टिकट पाने के लिए होते हैं  वे स्पेशल लोग जिनपर पार्टी मालिकों की कृपा होती है या वो पैसे देते हैं या फिर प्रसिद्ध होते हैं या फिर पार्टी मालिकों के अपने बेटा बेटी बहू भांजे भतीजे आदि पार्टी मालिकों के बिलकुल अपने लोग !
     दूसरी ओर  समाज को बदलने की क्षमता रखने वाले कई बहुमूल्य राजनेतालोग राजनैतिक पार्टियों में केवल तालियाँ बजाने बधाइयाँ गाने एवं नेग न्योछावर माँगने के लिए रखे गए हैं !ऐसे लोगों से पार्टियों के अंदर न कोई कुछ पूछता है न बताता है न कहीं बुलाता है किंतु ये राजनैतिक बेरोजगार लोग पार्टी कार्यक्रमों में स्वयं ही जाया आया पूछा बताया करते हैं !ये ऐसे ऐसे दो दो कौड़ी के भ्रष्टाचारियों की चाटुकारिता करते देखे जाते हैं जिनमें न शिक्षा न सदाचरण और न ही समाज सेवा की भावना ही होती है जिन्हें जीवन भर पढ़ा सिखा  समझा सकते हैं वो समझदार लोग !
भ्रष्टनेताओं के हिसाब से देखा जाए तो संसद में हुल्लड़ मचाने के लिए शिक्षा एवं समझदारी की जरूरत पड़ती ही कहाँ है !इसलिए सदाचारी नेता बेरोजगार हैं और भ्रष्टाचारियों के आँगन की बहार हैं !ये राजनीतिक का पतन नहीं तो क्या कहा जाएगा !
    संसद चर्चा का मंच है किंतु जो अशिक्षित लोग न समझ सकते हों न समझा सकते हों वे हुल्लड़ न मचावें तो करें क्या ?वे गूँगेनेता बेचारे खुद कुछ बोल नहीं सकते और जो बोल रहे होते हैं उनकी समझ नहीं सकते वो तो दिहाड़ी मजदूरों की तरह अपने अपने पार्टी मालिकों का मुख ताका करते हैं उनका इशारा मिलते ही अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने लगते हैं पार्टियों में सबके काम अलग अलग बँटे होते हैं कि किसको कौन कैसी गालियाँ देगा कौन कितनी देर चीखे चिल्लाएगा !कौन बंदरों की तरह उछलकूद करके  गैलरी में आ जाएगा या कौन कागज फाड़ कर किसी सम्मानित पदाधिकारी पर फ़ेंक देगा कौन किसे कैसे अपमानित करेगा आदि आदि !    
      ईमानदार लोग पार्टी अनुशासन के कैद खाने में पड़े पड़े बेचारे बुढ़ापे की प्रतीक्षा में अपने बहुमूल्य जीवन को घुट घुट कर बिताने के लिए मजबूर होते हैं !दूसरी ओर अशिक्षित अयोग्य अनुभव विहीन असंस्कारित लोगों को पार्टियों के पद प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकट दिए जा रहे होते हैं । वे जीत कर जब सदनों में पहुँचते हैं तब चीखते चिल्लाते हुल्लड़ मचाते अपशब्द बकते कागज फाड़ फाड़ कर फेंकते हैं !पार्टी मालिकों के बँधुआ मजदूरों की तरह उनका इशारा पाते ही बंदरों की तरह उछल कूद शुरूकर देते हैं सदनों के योग्य से योग्य लोगों का अपमान करने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती यहाँ तक कि पीठासीन अधिकारियों के अनुशासन आदेश आदि की भी वेपरवाह नहीं करते हैं वो लोग !अपनी पार्टी के सर्वोच्च ठेकेदार का इशारा मिले बिना वे शांत होते ही नहीं हैं !
     बंधुओ !किसी राजनैतिक पार्टी में किन्नर बनकर रहने से अच्छा है कि आप जनसेवा व्रती बनें और अपनी जीवंतता सिद्ध करें ! 
            बंधुओ ! सभी भाई बहनों से निवेदन है कि यदि आप राजनैतिक पार्टियों जुड़कर देश सेवा करना चाहते हैं उसके लिए आप किसी राजनैतिक पार्टी से जुड़े भी हैं किंतु वो पार्टी और उसके नेता आपको इतनी गिरी निगाह से देखते हैं कि  वो पार्टी संगठन के सभी पद और सरकार बनने के बाद सरकार के सभी पद वो खुद ले लेते हैं या अपने घर खानदान वाले या नाते रिश्तेदारों ,परिचितों या पैसे वालों को दे देते हैं या फिर पैसे लेकर बेच देते हैं !और आपको केवलवोट और वोटमाँगने वाला मात्र बनाकर रखना चाहते हैं और आपको पार्टी से केवल इसलिए जोड़े रखना चाहते हैं ताकि आप जैसे लोग उनका आदेश पाते ही उनके लिए भौंकने लगें जिससे उनका रूतबा कायम हो,उनकी प्रतिष्ठा बढ़े वो चुनाव जीतें  उन्हें महत्व मिले वो पद पावें और वो सब कुछ बनते रहें और आप उनके बनने खुशियाँ मनाते एवं जगह जगह उनका स्वागत करते घूमते रहें !क्या आप भी अपने को इतनी गिरी हुई निगाहों से देखते हैं यदि हम तो क्यों उनके पीछे पीछे घूमें ?
     ऐसे राजनैतिक पार्टियों के मालिक या नेता लोग आम समाज को यदि इतनी गिरी निगाह से देखते हैं कि उन्हें कोई पद प्रतिष्ठा देने लायक ही नहीं समझते हैं तो आम समाज को भी चाहिए कि वो उसी शैली में ऐसे घमंडी नेताओं और राजनैतिक पार्टियों को अपना भी परिचय दें !

    आप भी ऐसे नेताओं और पार्टियों का बहिष्कार करें  जो आप से कम पढ़े लिखे ,आपसे कम प्रतिभा संपन्न, आप से कम काम करने वाले ,आप से कम चरित्रवान, आप से कम अच्छा बोल लेने वाले ,नशा करने वाले, गाली गलौच करने वाले,गुंडा गर्दी करने वाले लोगों को पद प्रतिष्ठा और महत्त्व देने वाली पार्टियों से आप केवल बेइज्जती सहने के लिए जुड़े हैं क्या ?
     जहाँ आपका कोई मान सम्मान इज्जत प्रतिष्ठा ही न हो तो ऐसी पार्टी को आप तुरंत छोड़ कर शुरू कीजिए अपने निजी सामाजिक कार्य जीवंतता का परिचय दीजिए !यदि आपके अंदर वास्तव में क्षमता है तो आपके कामों से जनता खुश होगी अपने आप !ऐसे में आप किसी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ें या फिर निर्दलीय जनता आपको विजय अवश्य दिलवाएगी क्योंकि हार जीत जनता के वोटों से होती है न कि पार्टियों और नेताओं से !इसलिए आप अपनी प्रतिभा पहचानिए  पहचान बनाइए ! 
   

Wednesday, 22 February 2017

राजनीति सब कुछ छीन लेती है !शिक्षित और चरित्रवान कितने लोग हैं जो टिक पाते हैं राजनीति के अखाड़े में !

      राजनीति में शिक्षित और ईमानदार लोगों की संख्या बहुत कम है क्यों ?आखिर इसकी चिंता क्यों नहीं की जानी चाहिए !अशिक्षा या अलप शिक्षा के कारण सदनों में भी हुल्लड़ मचने लगते हैं लोग !खाली बैठकर क्या करें वे लोग जिन्हें चर्चा समझ में आती नहीं है और कर पाते नहीं हैं !
     वेश्याओं और भ्रष्ट नेताओं में सबसे बड़ा अंतर ये है कि वेश्याएँ जो कहती हैं वो करती भी हैं किंतु नेता लोग जो भी कहते हैं वो नहीं करते !बड़े बड़े राजनैतिकदलों के घोषणापत्र पूरी तरह झूठ के पुलिंदा होते हैं। 
    नेता लोग जनता के हित की बातें करके जनता के हिस्से के पैसे से अपना घर भर लेते हैं देश जबसे आजाद हुआ हर चुनाव में गरीबी दूर करने का नारा लगाकर चुनाव जीतते हैं किंतु गरीब तो गरीब ही रहते हैं नेता रईस हो जाते हैं !एक से एक कंगले नेता कब और कैसे करोड़पति हो जाते हैं किसी को पता ही नहीं होता है उनके पास व्यापार करने को न पैसे न समय फिर भी अनाप शनाप कमाई !किसी को नहीं पता होता है कि नेताओं के पास कहाँ से आता है इतना सारा धन किंतु वेश्याओं की कमाई में पारदर्शिता होती है !वेश्याएँ भी नेताओं की तरह ही यदि केवल कमाई ही करना चाहतीं तो राजनीति के धंधे से वो भी कमा सकती थीं अकूत संपत्ति  किंतु उन्होंने अपना दावन दागदार नहीं होने देती हैं इसीलिए तो अपना शरीर दाँव पर लगाकर चरित्र और सिद्धांत बचा लेती हैं किंतु राजनीति तो वो भी छीन लेती है !उठना बैठना बोलना आदि सब कुछ बनावटी होता है राजनीति में !
    वेश्याओं को भी पता है कि राजनीति सबसे बड़ा कमाऊ धंधा है राजनीति में अपार संपत्ति एवं भारी भरकम सुख सुविधाएँ हैं सामाजिक सम्मान प्रतिष्ठा आदि सारे सुख भी हैं ,काम केवल चुनाव जीतना इसी बल पर सारे राजभोग   भोगते हैं राजनेता ! चुनाव तो वेश्याएँ भी औरों की अपेक्षा अधिक आसानी से जीत सकती हैं उनका धंधा ही लोगों को प्रभावित करना है शिक्षा की आवश्यकता चुनाव लड़ने के लिए होती नहीं है सबसे अलग अलग ढंग से आँख मार कर खुश करना नेताओं से ज्यादा उन्हें आता है नेताओं से अधिक अच्छे ढंग से वे झूठ बोल लेती हैं फिर भी वेश्याएँ वेश्यावृत्ति की सारी जलालत सहती हैं किंतु राजनीति में नहीं आती हैं !

   वेश्याएँ इस कटु  सच्चाई को समझती हैं कि वेश्यावृत्ति में केवल शरीर का ही सौदा करना होता है जबकि  वर्तमान राजनीति तो धंधा ही चरित्र और सिद्धांतों की बोली लगवाने का है ।वेश्याएँ शरीर आर्थिक परिस्थितियों के कारण बेचती हैं किंतु अपना चरित्र बचा लेती हैं वेश्याएँ सोचती हैं कि कमाई के लालच में राजनीति करनी शुरू की तो चरित्र चला जाएगा !चरित्र की चिंता में बेचारी सारी दुर्दशा सहती हैं किंतु नेता कहलाना पसंद नहीं करती हैं ।
        राजनीति का कितना अवमूल्यन हुआ है आज ।आप स्थापित सरकारों में सम्मिलित लोगों को चोर छिनार भ्रष्टाचारी कहकर जीत लेते हैं चुनाव !आप ब्राह्मणों सवर्णों को गाली देकर जीत लेते हैं चुनाव !दलितों महिलाओं गरीबों अल्पसंख्यकों की बातें करके जीत लेते हैं चुनाव !विकार के आश्वासन देकर जीत लेते हैं चुनाव !इसीलिए सदाचारी ,योग्य और लोगों को राजनीति में घुसने कौन देता है !किस पार्टी में जगह है ऐसे लोगों के लिए !ये वर्तमान समय के हमारे लोकतंत्र का चरित्र है ।
      संसद और विधान सभा जैसे अत्यंत पवित्र सदनों की गरिमा ही चरित्र और सिद्धांतों की रक्षा करने से है किंतु कितने चरित्रवान  और सिद्धांतवादियों को प्रवेश मिल पाता है राजनीति में !इसी प्रकार से संसद और विधान सभा जैसे सदन होते ही चर्चा के लिए हैं चर्चा करने के लिए उच्च शिक्षा को  अनिवार्य क्यों न बनाया जाए !जो सदस्य अपनी अयोग्यता के कारण औरों की कही हुई बात समझेंगे ही नहीं अपनी समझा नहीं सकेंगे उनका इन सदनों में और काम ही क्या है उदास बैठने के अलावा ! या तो वे हुल्लड़ मचावें या सोवें या बाहर निकलकर कहीं गप्पें मारें आखिर ऐसे सदनों में और वो करें भी तो क्या कहाँ तक उदास बैठे रहें !
    चरित्र ,सिद्धांत शिक्षा और सदाचरण जैसे महत्त्वपूर्णमूल्यों को चुनाव लड़ने के लिए अनिवार्य करने के लिए बहुमत चाहिए !भले और शिक्षित लोगों का बहुमत कभी हो ही नहीं सकता भीड़ होती ही जनरल बोगी में हैं !माना कि अवसर सबको मिलना चाहिए किंतु इसका मतलब ये भी तो नहीं है कि अशिक्षित और अयोग्य लोगों को योग्य पदों पर बैठा दिया जाए मूर्खों को कलट्टर बना दिया जाए अशिक्षितों को शिक्षक बना दिया जाए यदि ये सब होना गलत है तो इन सम्मानित सदनों के सदस्यों के लिए भी शिक्षा और योग्यता के उच्चमानदंड क्यों न बनाए जाएँ !
    संसद और विधान सभा जैसे सदनों के सदस्यों पर कम जिम्मेदारी होती है क्या ?उनमें से अयोग्य लोग अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह कैसे कर सकेंगे !किंतु ऐसा सब कुछ सोचने वाले सजीव राजनेता कहाँ और कितने हैं जिनसे उमींद की जाए कि ये देश के लिए भी कुछ सोचेंगे !
     राजनीति में शिक्षित योग्य ईमानदार सदाचारी लोग आवें ऐसा बोलते तो सब हैं किंतु ऐसे लोगों को अपनी पार्टी में घुसने कौन देता है जिसने एहसान व्यवहार में घुसने भी दिया तो वो उसे पहले वैचारिक बधिया (नपुंसक) बनाने की प्रतिज्ञा करवाता है बाद में घुसने देता है ताकि वो पार्टी में आकर चरित्र और सिद्धांतों का झंडा उठाए न घूमें  !
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Tuesday, 14 February 2017

बेलेन्टाइन डे !आधुनिकता के नाम पर इतना गिर गए हैं हम !क्या प्रेम की परंपरा हमारे यहाँ पहले नहीं थी !

    बेलेन्टाइन लाइफ मनाने वाले बलात्कारी क्यों ?

    बेलेन्टाइन के नाम पर सार्वजनिक जगहों पर चूमना चाटना कुत्ते बिल्लियों की तरह नंगपन और बेशर्मी ओढ़ लेना कहाँ तक ठीक !ऐसे संबंधों में सम्मिलित जोड़ों की सुरक्षा कैसे करे पुलिस जो सम्बन्ध ही धोखाधड़ी पर आधारित होते हैं उन्हें कैसे और कब तक रखावे पुलिस !

    समाज  बेलेन्टाइन डे मनावे और पुलिस लट्ठ लिए इन्हें रखाते घूमे ! अब  देश में पुलिस के लिए बस इतना  ही काम   रह गया है क्या ? ये लैला मजनूँ ऐय्याशी करते घूमें पुलिस इनके पीछे पीछे फिरै !आतंकी उपद्रव करें तो करते रहें ! 

    जिस देश में कन्याओं का पूजन बड़ी श्रद्धा पूर्वक किया जाता रहा हो एवं जिसकी  परंपरा में महिलाओं के सम्मान प्रतिष्ठा मान मर्यादा की रक्षा के लिए  कई बड़े बड़े युद्ध लड़े गए हैं  वही देश कन्याओं एवं महिलाओं की सुरक्षा पुलिस के सहारे छोड़कर खुद बेलेंटाइन डे मनावे और पुलिस से कहे हमें रखाइए और हमसे  बचा लीजिए देश की बहू बेटियाँ बच्चियाँ एवं महिलाएँ !कितना आश्चर्य है !!! उनसे कौन पूछे कि आखिर पुलिस ही क्यों बचा ले ?क्या आपका इन बहू बेटियों  बच्चियों एवं महिलाओं से  अपना कोई सम्बन्ध नहीं है आखिर आप क्यों मौन हैं आपकी इस कायरता का राज क्या है ?

     क्या आपने पहले भी कभी सुना था कि श्रद्धा पूर्वक कन्याओं का पूजन करने वाला अपना सैद्धांतिक समाज अपनी ही बच्चियों को कालगर्ल कहे और वो सुनें सहें कुछ न कहें! समाज का बलात्कारी वर्ग  जैसी वेष भूषा में उन्हें रखना चाहता  हो वैसे ही रहें ! इतना ही नहीं उन्हीं कन्याओं को और  भी ऐसे ही नामों से पुकारा जाए  जैसे कालगर्ल, अकालगर्ल, मेट्रोगर्ल, पार्कगर्ल, पार्किंगगर्ल, झाड़ीगर्ल, जंगलगर्ल आदि और भी जो गर्ल हो सकती हैं वे सब !ये सब वही कन्याएँ हैं क्या जिन्हें भारत कभी पूजा करता था इन्हीं के पीछे क्या ऐसे ही नामों वाले ब्वायज पड़े हुए हैं क्या ?उन्हें रोकने का हमारे पास कोई उपाय नहीं है क्या ?

     इस कन्या पूजन वाले देश में यह क्या हो रहा है?कईबार डांस बार,या और तरीके की जगहों पर छापा पड़ते टी.वी.चैनलों पर देखा जाता है।जब इतनी छोटी छोटी सँकरी,अँधेरी, गंदी जगहों से लड़कियाँ  निकाली जाती हैं जहाँ कुत्ते बिल्ली भी नहीं रह सकते।यह माना जा सकता है कि कुछ जगहों पर वो बलपूर्वक ले जाई गई हों जहाँ उनका दोष न होता हो किन्तु उन जगहों की भी कमी नहीं है जहाँ इसे धंधा मानकर  व्यापारिक दृष्टि से आपसी सहमति पूर्वक चलाया जा रहा होता है।उसमें सम्मिलित सभी को सैलरी मिलती है।ऐसे ब्यभिचारिक अड्डों को भी फैक्ट्री और ऑफिस जैसे नामों से संबोधित किया जाता है।ऐसे अड्डों से या इसी प्रकार के और भी घिनौने कार्यों से किसी भी रूप में किसी भी उम्र में सम्मिलित रह चुके लोग हर उम्र में ऐसे ब्यभिचारों का समर्थन करते दिखते हैं एवं इसमें सम्मिलित लोगों की बातों ब्यवहारों का समर्थन करते करते उसी में सम्मिलित हो लेते हैं। बहुत ऐसे सफेदपोश लोग ऐसे ही कुकृत्यों से पोल खुलने पर पूरे पूरे  मटुक नाथ बनकर निकलते हैं।

     ऐसे भटके हुए मटुक  नाथ लोग बार बार विदेशों के उदाहरण देते हैं आखिर क्यों?विदेश तो विदेश है और स्वदेश स्वदेश! वहाँ उनको वैसा अच्छा लगता है वो उनकी संस्कृति है यहाँ वैसा नहीं अच्छा लगता है ये अपनी संस्कृति है।यहाँ के सारे लोगों को विदेशों में घुमाया नहीं जा सकता है वहाँ के सारे लोगों को यहाँ लाया नहीं जा सकता है।अगर वहाँ घूमकर आए लोग यहाँ वालों पर अपना अनुभव ऐसे ही थोपेंगे तो ये सब्जी या नमक में चीनी मिलाना भारत के आम आदमियों के साथ कहाँ का न्याय है?

       कुछ लोगों को छोड़कर यहाँ का  गरीब या रईस आम आदमी किसी भी जाति,समुदाय, संप्रदाय से जुड़ा हो वह अपने प्राचीन संस्कारों पर आज भी गर्व करता है।उन्हें ही उसने देखा है और उसी में वह जिया भी है। बात अलग है कि कुछ लोग जैसे विदेशों की दुर्गन्ध स्वदेश में फैला रहे हैं उसी प्रकार से कुछ शहरों में घूम चुके लोग अपनी दुर्गन्ध वहाँ गाँवों में भी  फैला रहे हैं।गाँवों में भी शहरों के ही कुछ लोगों की तरह ही ऐसे बिना पेंदी के लोटे तैयार होने लगे हैं किन्तु गाँवों में लोगों के पास समय है वो आपसी बात ब्यवहार से ऐसे बदबूदार लोगों का बहिष्कार कर लेते हैं और खुश हो जाते हैं।वहाँ लोग बेशर्मी करके नहीं जी सकते क्योंकि  उनके घर और खेत आदि इतनी आसानी से बदले नहीं जा सकते।उन्हें कई कई पीढ़ियाँ एक एक जगह ही बितानी पड़ती हैं जिसकी बेटी-बहन ने प्रेम या प्रेम विवाह कर लिया होता है उसके दूसरे बेटा बेटियों के विवाह आदि काम काज होने मुश्किल हो जाते हैं।समाज के कितने ताने सुनने  सहने होते हैं उन्हें? कितनी सभा सोसायटियों से किया जा चुका होता है उनका बहिष्कार ?उनकी पीड़ा वही जानते हैं और जितना वो जानते हैं उसी में वो जी भी लेते हैं।

      जिसकी बेटी-बहन ने प्रेम या प्रेम विवाह कर लिया होता है उनका गाँवों में रह पाना बहुत कठिन हो जाता है वो मजबूरी में शहरों की ओर भाग खड़े होते हैं शहर वाले बढ़ती जनसंख्या के लिए उन्हें दोषी ठहरावें तो ठहरावें।आखिर कहाँ जाएँ वे?जिनके युवा होते  बच्चों ने  गाँवों में आधे अधूरे कपड़े पहन कर लड़कियों या महिलाओं  को रहते नहीं देखा है वो शहरों में ऐसा सब कुछ देख कर पागल हो उठते हैं फिर वो डायरेक्ट बेलेंटाइन डे मनाने लगते हैं।बड़ी बड़ी बसों ट्रेनों कारों में घुस घुस कर  जबर्दश्ती  बड़ी बुरी तरह से मनाते हैं बेलेंटाइन डे।चोट जिसके लगे घावों का एहसास उसे हो उनकी गंभीरता उसे पता  हो जिसे इलाज करना हो।उनकी पीड़ा का अनुभव वह करेगा जिसके  हृदय हो किन्तु जो गया ही बेलेंटाइन डे मनाने हो उसे क्या लेना देना इन दकियानूसी बातों से? कोई मरे तो मरे उसको तो अपने बेलेंटाइन डे से मतलब!क्या कहा जाए किसी को? सबको अपनी अपनी पड़ी है।

      जिनका विदेशों में जाना आना है वो वहाँ जो देखकर  आते हैं उसे बताने की उन्हें भी ऐसी खुजली उठती है कि वो यहाँ बताए या जताए बिना रहते नहीं आखिर विदेश घूम कर जो आए हैं। केवल बेलेंटाइन डे मना लेने से यह देश अमेरिका की तरह समृद्ध हो जाएगा क्या ?या आधे चौथाई कपड़े पहनकर क्या सम्पन्नता लौट आएगी और लोग शिक्षित और आधुनिक समझे जाएँगे?क्या इससे महिला पुरुषों के अधिकारों की रक्षा हो जाएगी? और यदि यही है तो सभी लोग पहले बिना कपड़े पहने रहें फिर पुलिस उन्हें रखाती घूमे इतने पर भी पुलिस को दोषी ठहराया जाए।ऐसे तो पुलिस बस यही कर पाएगी बाकी सारे अपराधियों से कौन निपटेगा ?हाँ,बेलेंटाइन डे जरूर ऐसा हो जाएगा कि लोग देखते रह जाएँगे।

  यदि विदेश घुमक्कणों  को  इतनी ही शौक थी कि हमारे देश में भी बेलेंटाइन डे धूम धाम से मनाया जाए तो वहाँ से कोई ऐसा रास्ता खोज कर लाते ताकि भारत के आम आदमी की आर्थिक स्थिति भी सुधरती उससे गरीबों के बच्चों का बौद्धिक, शैक्षणिक,सामाजिक आदि स्तर भी सुधरता सोच उन्नत होती,महँगे कपड़ों में क्रीम पाउडर आदि लगाकर ये भी महँगी कारों में दन दनाते घूमते तो बसों ट्रेनों पर क्यों झपटते? इन्हें देखकर   भी  आधुनिक लड़के लड़कियाँ  लव लवाते इनके साथ भी   बेलेंटाइन डे मनाते।ऐसा तो किया नहीं विदेश घुमक्कणों ने जो धन कमाकर लाए वो तो अपने और अपने बच्चों के लिए और जो वहाँ के कुसंस्कारों की सड़ांध लाए वो सारे देश में फैला दी।बिना शिर पैर की

फोकट की बकवास तो कोई भी कर सकता है बिना पैसों के  उसे हकीकत में  बदल पाना  कितना कठिन होता है ये उन्हें ही पता होता है जिन पर बीतती है।जिन्हें दो टाइम का भोजन मुश्किल हो वो कैसे कहाँ और किससे  मनाएँ  बेलेंटाइन डे? ऐसे जिन गरीबों  को  बेलेंटाइन डे की बहुत जल्दी है वो कहीं किसी पर भी झपट रहे हैं और डायरेक्ट मना रहे हैं बेलेंटाइन डे।जिनको थोड़ी समाई है वो चोरी,चकारी, चैनचोरी, अपहरण फिरौती आदि से धन इकट्ठा करके नियमानुशार  मनाते हैं बेलेंटाइन डे।आखिर गरीब आदमी मेहनत से तो दाल रोटी ही कमा ले वही बहुत बड़ी बात है।बाकी  बेलेंटाइन डे के लिए तो ऊपरी पैसा  तो चाहिए ही ।

     जहाँ तक प्रेम या प्रेम विवाहों की बात है शहरों की तरह उनके पास पैसे नहीं होते कि वो किसी भी प्रकार की बदनामी होने पर अपना मकान दुकान बेंचकर किसी नई या अपरिचित जगह चले जाएँ और  हाथ में रिमोट लेकर टी.वी.चैनल बदल बदल कर अंधे बहरों की तरह जीना शुरू कर दें सुबह शाम कथा कीर्तन में सहभागी बनकर धार्मिकता का लबादा ओढ़े रहें।तथाकथित सत्संगों में बढ़ रही भीड़ इसी भावना से इकट्ठी हो रही है अन्यथा यदि इतने लोग धार्मिक होते तो देश और समाज की दशा ही कुछ और होती!जो माता पिता संघर्ष पूर्वक, समर्पण पूर्वक, स्नेह पूर्वक पाल पोष  कर  अपने बच्चों को बड़ा करते हैं उनके हर उत्सव,उन्नति,सुख, दुःख आदि में अपने को सीमित कर लेते हैं विवाह आदि के लिए के लिए भी तमाम  तरह के सपने सजाए होते हैं।ऐसे नित्य नमन करने योग्य उन समर्पित माता पिता को अपने माता पिता पद से सस्पेंड करके जो नवजवान अपनी सेक्सी समझदारी के भरोसे अपने को संतान पद से पदच्युत करके पुरुष या पति -पत्नी ,प्रेमी-प्रेमिका आदि पद पर प्रतिष्ठित  करते हैं।काश,उन्हें भी माता पिता की पीड़ा का हो पाता अहसास !जिसकी घुटन में उन्हें बितानी होती है सारी जिंदगी।    

  अगर किसी कूड़े दान के पास लड़के बुलाते हैं तो लड़कियाँ पहुँचती भी हैं वहाँ आखिर क्यों? झाड़ी, जंगल, पार्क ,पार्किंग आदि किसी भी स्थल पर लड़के बुला लेते हैं लड़कियाँ आसानी से चली जाती हैं।वो लिपटा रहे होते हैं वो लिपट रही होती हैं।जिन लड़कों की ईच्छा का वे इतना सम्मान करती हैं यदि उन लड़कों की शादी हो जाती है या उन दोनों में किसी एक को  कोई और उससे अच्छा मिल जाता है तो वो उसके हो जाते हैं किन्तु इनमें जिसके साथ छल हुआ होता है उसे कितनी तकलीफ होती है ये उसी की आत्मा जानती है ।ऐसे लड़के लड़कियों को न जाने क्या क्या सुनना सहना पड़ता है कितना अपमानित होना पड़ता है अपने आप से घृणा होने लगती है।

       प्रेम कभी भी इतना दुःखदाई  नहीं हो सकता है यह तो बासना है जो हमेशा ही दुःख देती है।विदेश का एक समाचार नेट पर पढ़ रहा था कि किसी ऐसे ही तथाकथित प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को बुलाया था किन्तु किसी कारण से वह नहीं आ सकी तो उसने घोड़ी के साथ सेक्स किया। 

जब गर्लफ्रेंड नहीं आई तो घोड़ी को बनाया हवस का शिकार  

इस हेडिंग को अभी भी नेट पर देखा जा सकता है।

यह लिखने का हमारा उद्देश्य मात्र इतना है कि प्रेमिका न आने का कोई अफसोस नहीं हुआ उसका काम घोड़ी से चल गया।यह कैसा प्रेम ?प्रेम तो वह होता है कि उसकी प्रेमिका से कितनी भी अधिक सुंदरी स्त्री  के समर्पण को भी वो स्वीकार न करता तो कुछ प्रेम कहा जा सकता था । आप स्वयं सोचिए कि किसी का अपना लड़का कम सुन्दर भी तो वह प्रेम उसी से करता है किसी और के लड़के से नहीं ।

      जिस प्रेमी के मन में  प्रेमिका और घोड़ी की आवश्यकता लगभग एक समान हो धिक्कार है ऐसे प्रेमी प्रेमिकाओं को जो केवल सेक्स के लिए जुड़ते हैं और उसे प्रेम या प्यार कहते हैं।

    लड़कियों के समर्पण का यह कितना बड़ा अपमान है फिर  भी बेलेंटाइन डे !यह घोर आश्चर्य का विषय है।यह तो विशुद्ध रूप से बासना अर्थात सेक्स ही है उसे अपने संतोष के लिए कह कुछ भी लिया जाए!

     शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि एक कुत्ते के शिर में चोट लगने से घाव हो गया है जिसमें कीड़े पड़ने से खुजली होती थी जिसे एक छोटे घड़े में शिर रगड़ कर खुजलाते  समय अचानक उसका शिर उस छोटे घड़े में जाकर फँस जाता है जो निकलता नहीं है इतनी पीड़ा सहकर भी वह कुत्ता इस गलत फहमी में  कुतिया का पीछा करना नहीं छोड़ता है कि वह अपनी प्रेमिका के  प्रेम  में समर्पित है।जबकि सच यही है कि वह प्रेम नहीं अपितु सेक्स की भूख मिटाने के लिए पागल है । घोड़ी और प्रेमिका की समानता भी इस युग का उसी तरह का उदहारण है।  

   जो पटने पटाने में सफल हो गए उनका तो  बेलेंटाइन  डे, जो नहीं सफल हुए उनका  बैलेंटाइन डे वही घोड़ी वाली परंपरा अर्थात बैलों की तरह जोड़े की तलाश में जोर जबर्जस्ती करते घूमना फिर चाहे वह बस का कुकृत्य ही क्यों न हो ? आखिर कहाँ है पवित्र प्रेम ! 

  जब से इस तथाकथित बेलेंटाइन  डे प्रेम या प्रेम विवाह का प्रचलन बढ़ा तब से महिलाओं का सम्मान भाषणों चर्चाओं में बढ़ रहा है किन्तु वास्तविकता में घटता जा रहा है उन्हें पटने पटाने का प्रचार चल रहा है।भारतवर्ष में हमेंशा से सम्मानित रही नारी का वजूद अब इतना रह गया है मात्र ?क्या उनका अपना कोई सम्मान जनक स्थान नहीं होना चाहिए? उनकी सुरक्षा की तैयारियाँ चल रही हैं।आखिर क्या दिक्कत है उन्हें?जब देश में सुरक्षा का वातावरण बनेगा तो महिलाएँ भी सुरक्षित हो जाएँगी आखिर उन्हें समाज से अलग क्यों समझा जा रहा है?  आज प्रेम और प्रेम विवाहों के नाम पर  सारी वर्जनाएँ टूटती जा रही हैं।अब किसी भी रिश्ते की लड़की को पटाने के प्रयास होने लगते हैं जब मटुक नाथ ने अपनी शिष्या को पटा लिया तब किस पर भरोसा किया जाए?कोई किसी को पटा ले!एक विवाहिता स्त्री किसी के प्रेम जाल में फँसकर अपने पति एवं बच्चों को छोड़ देती है।इसीप्रकार कोई विवाहित व्यक्ति किसी अन्य लड़की के चक्कर में पड़कर अपनी शादी शुदा जिंदगी को तवाह कर लेता है बच्चे भटकते फिरने लगते हैं ।इसीप्रकार रास्तों में  पार्कों, होटलों, आफिसों,स्कूलों आदि  में प्यार का खेल केवल इसी बल पर चल रहा होता है कि यदि बात आगे बढ़ जाएगी तो कोर्ट में विवाह कर लेगें। बेशक वे लोग एक दूसरे को लव मैरिज के नाम पर धोखा ही दे रहे हों किन्तु उस समय उन युवक युवतियों को एक दूसरे पर विश्वास करने के अलावा कोई चारा नहीं होता है।लव और लव मैरिजों के नाम पर सबसे अपमान उन दोनों के माता पिता का होता है जिन्होंने संस्कार सुधारने के नाम पर कि कहीं बच्चे भटक न जाएँ इस लिए उन्हें प्यार व्यार के चक्कर में न पड़ने की सलाह दी थी, जब वही लड़की  बहू और दामाद बनकर उसी माता पिता के अपने ही घर में खातिरदारी करा रहे होते हैं,और उन बूढ़ों का अपमान कर रहे होते हैं तो क्या बीतती है उन पर ?

     उस समय यदि युवकों को रोका न गया होता तो बस के बलात्कार कांड जैसे किसी अपराध में फँसते तो वही सामाजिक खुले पन का समर्थक समाज उनके लिए फाँसी की सजा माँगता! ऐसे युवकों के माता पिता आखिर क्या करें, उनका दोष आखिर क्या है?जिन्हें आधुनिकता के नाम पर ये जलालत झेलने पर मजबूर होना पड़ता  है ? 

      कई बार ऐसा भी देखा गया है कि किसी एक व्यक्ति के प्रेम जाल में फँसे  किसी युवती या युवक का सम्बन्ध किसी अन्य युवक या युवती  से होने पर सम्बंधित सभी युवक युवतियों  का जीवन धार पर लगा होता है। अर्थात इसमें कौन किसकी कब हत्या कर दे या किस पर तेजाब फेंक दे कहना बड़ा कठिन होता है। कई बार ऐसे युवक युवतियों के परिवारजन  भी ऐसे संबंधों के पक्ष या विरोध में हिंसक रूप से उतर जाते हैं जिसमें वो संबधित लड़के के साथ साथ अपनी लड़की के भी जीवन से खेल जाते हैं अर्थात उसे भी मार देते हैं।

     महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर अब  बड़ी बड़ी बातें की जाने लगी हैं किन्तु सुरक्षा किससे करनी है?जब इस बात पर विचार करना होता है तो सोचना पड़ता है कि जो नपुंसक नहीं है ऐसे किसी भी व्यक्ति के हृदय समुद्र में कब किस लड़की या स्त्री को देख कर तरंगे उठने लगें कब किस सुंदरी को देखकर संयम के तट बंध टूट जाएँ और तरंगें ज्वार भाटा का रूप ले लें किसी को क्या पता ?इन विषयों में किसी और पर कैसे विश्वास किया जाए?जब अपने मन का ही विश्वास नहीं है।इसीलिए ऋषियों के द्वारा हजारों वर्ष तक ब्रह्मचर्य का अभ्यास करने के बाद भी थोड़ी सी चूक में कब किसका  मन किस पर आकृष्ट हो जाए कहना बहुत कठिन है।कई बार किसी महिला का शील भंग करने वाले व्यक्ति को निजी तौर बहुत आत्म ग्लानि होती है किन्तु अब वह अपने हृदय का भरोसा किसी को कैसे कराए ?

     महिलाओं का सम्मान एवं विश्वास सुरक्षित रखने के लिए ही शास्त्रकारों ने अपने मनों पर लगाम लगाने का प्रयास किया और कहा कि युवा पुरुषों के लिए आवश्यक है कि  माता मौसी बहन तथा बेटी रूपी स्त्री के साथ भी एकांत में न बैठे।

                 माता स्वस्रा दुहित्रा वा  

भगवान शंकराचार्य ने कहा है इस दुनियाँ में वीरों में सबसे बड़ा वीर वही है जो स्त्रियों के चंचल नेत्रों को देखकर भी जिसका  मन मोहित न हो ।

           प्राप्तो न मोहं ललना कटाक्षैः 

इसी प्रकार महिलाओं के विषय में लिखा गया कि कोई स्त्री यदि किसी की सुन्दरता पर मोहित हो जाए तो वह भाई ,पिता, पुत्र भी क्यों न हो यह सब भूलकर स्त्रियाँ केवल सुन्दरता पर समर्पित हो जाती हैं---

                  भ्राता   पिता   पुत्र   उरगारी ।

                  पुरुष मनोहर  निरखत नारी।। 

     और भी इसीप्रकार की बातें योगवाशिष्ठ  रामायण में भी लिखी गई हैं । 

      महिलाओं के विषय में कहा गया है कि महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा बासना अर्थात  सेक्स आठ गुणा अधिक होता है किंतु उस बासना को सहने के लिए ईश्वर ने महिलाओं में धैर्य भी बहुत अधिक मात्रा में दिया है। लिखा गया है कि 

        तत्रा शक्या निवर्तन्ते नराः धैर्येण योषितः।। 

     बात अलग है कि जहाँ  ये धैर्य के तटबंध टूटते हैं वहाँ  अक्सर बड़ी बड़ी दुर्घटनाएँ  घटते देखी जाती हैं। 

इसी प्रकार पुराने ऋषियों ने ही अपनी खोज में बताया कि  पुरुष  जब तक  अतिवृद्ध नहीं होता है तब तक बासना कि दृष्टि से उसका मन कभी भी  किसी भी स्त्री पर आकृष्ट हो सकता है इसलिए किसी स्त्री के लिए वह पुरुष मन  विश्वसनीय नहीं  हो सकता ।

      चूँकि बासना अर्थात सेक्स का सारा खेल इसलिए मन के आधीन होता है -

                   मनो हि मूलं हर दग्ध मूर्तेः 

   इसलिए ध्यान रखना चाहिए कि जिसका मन जब जितना अधिक प्रसन्न होता है उस समय उसके मन में  बासना उतनी अधिक होती है इसीलिए राजा, महाराजा, धनी,मंत्री आदि सफल संपन्न लोग अक्सर औरों की अपेक्षा सुरा सुंदरी के अधिक शौकीन होते हैं।

 जब बासना घटती है तो लोग उदास हो जाते हैं  घूमने टहलने आदि कार्यों से बासना को बढ़ाकर मन को प्रसन्न करते  हैं अर्थात मनोरंजन करने के लिए या यूँ कह लें कि बासना बढ़ाने या मन को रिचार्ज करने जाते हैं । जो लोग मनोरंजन के लिए जाते समय किसी लड़की या लड़कियाँ किसी लड़के को साथ लेकर घूमने टहलने  जाते हैं ।वह भी कई तो आधे अधूरे कपड़े पहनकर कर जाते हैं। कई तो फ़िल्म आदि देखने जाते हैं ऐसे समय वहाँ सब कुछ होना संभव होता है ।ऐसी परिस्थितियों से बचा जाना चाहिए।लव मैरिज प्रतिबंधित होते ही युवक युवतियों

में प्रेम विवाह सम्बंधित आशा ही नहीं रहेगी। जिससे पटने पटाने का चक्कर समाप्त होगा और महिलाओं का अपना सम्मान पुनः प्रतिष्ठित होगा । 

   पुराने समय में मान्यता थी कि सुंदरी स्त्री पति के प्राणों पर कभी भी भारी पड़ सकती है अर्थात या तो वो किसी पर मोहित होकर उस  प्रेमी के साथ मिलकर पति को नष्ट करती हैं या फिर वो प्रेमी स्वयं ही अपने प्रेम में  बाधक समझकर उस सुंदरी स्त्री के पति को नष्ट कर देते हैं ।इसीलिए महर्षि चाणक्य ने लिखा है कि      भार्या रूपवती शत्रुः    !!!

      प्रेम विवाह के सन्दर्भ में ज्योतिष शास्त्र का मानना है कि जीवन में जो सुख किसी को नहीं मिलने होते हैं उनके प्रति बचपन से ही उसके मन में असुरक्षा की भावना बनी रहती है।इसी लिए उस व्यक्ति का ध्यान उधर ही अधिक होता है और वो उस दिशा  में बचपन से ही प्रयास रत होता है।
          सामान्य जीवन में ऐसा माना जाता  है कि जीवन में आपको जिस चीज की आवश्यकता हो वह इच्छा होते ही जैसा चाहते हो वैसा या उससे भी अच्छा मिल जाए। इसका मतलब होता है कि यह सुख आपके भाग्य में बहुत है अर्थात यह उस विषय का उत्तम सुख योग है, किंतु जिस चीज की इच्छा होने पर किसी से कहना या मॉंगना पड़े तब मिले  ये मध्यम सुख योग है, और यदि तब भी न मिले तो ये उस बिषय का अधम या निम्न सुख योग मानना चाहिए।और यदि वह सुख पाने के लिए पागलों की तरह गली गली भटकना पड़े  लोगों के गाली गलौच या मारपीट या और प्रकार के अपमान या तनाव का सामना करना पड़े तब मिले या तब भी न मिले तो इसे  संबंधित विषय का सबसे निकृष्ट  सुख योग  समझना चाहिए।
       अब बात विवाह की सच्चाई यह है कि शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन है,जिसमें आज प्रचलन विवाह या प्रेम विवाह दो ही हैं।विवाह चाहें जितने प्रकार के जो भी हों किन्तु विवाह का अभिप्राय पत्नी या पति से मिलने वाला सुख है। यह सुख जिसे जितनी आसानी से जैसा चाहता है  वैसा या उससे भी अच्छा मिल जाता है तो वह विवाह के विषय में  उतना  अधिक भाग्यशाली होता है, किंतु जो  समय से पहले विवाह  की इच्छा होने से परेशान रहने लगे पढ़ाई छोड़कर  या काम छोड़ कर माता पिता आदि स्वजनों की ईच्छा के विरुद्ध  लुक छिप कर वैवाहिक सुख के लिए किसी से कहना या माँगना पड़े तब मिले  ये मध्यम सुख योग है, और यदि तब भी न मिले तो ये उस बिषय का अधम या निम्न सुख योग मानना चाहिए।और यदि वह सुख पाने के लिए पागलों की तरह गली गली भटकना पड़े  लोगों के गाली गलौच या मारपीट या और प्रकार के अपमान या तनाव का सामना करना पड़े तब मिले या तब भी न मिले तो इसे  संबंधित विषय का सबसे निकृष्ट विवाह योग  समझना चाहिए।इस प्रकार जिसमें सब तरफ से तनाव,अपमान,परेशानियाँ,या हानि ही हानि हो  वह प्रेम विवाह कैसे हो सकता है क्योंकि पवित्र प्रेम तो परमात्मा का स्वरूप होता है और जो परमात्मा का स्वरूप  है उससे तनाव कैसा ?सच यह है कि ज्योतिष की दृष्टि से यह   बीमार विवाह योग है विवाह पूर्व इसका पता लगा लगने पर इसकी शांति कर लेनी चाहिए जिससे सारा जीवन बर्बाद होने से बच जाता है।ऐसे विषयों में सही जाँच एवं जानकारी करके बिना  किसी बहम के सही मार्गनिर्देशन के लिए हमारे संस्थान की ओर से भी विशेष व्यवस्था की गई है। 

       उत्तम विवाह योग में प्रायः ऐसा देखा जाता है कि लड़का अभी कह रहा होता है  कि अभी हमें शादी नहीं करनी है अभी पढ़ना या अपने पैरों पर खड़ा होना है  किंतु माता पिता अपनी जिम्मेदारी समझकर विवाह कर रहे होते हैं ऐसे विवाह में यदि उनका पति पत्नी में आपसी स्नेह भी उत्तम हो जाए, तो ये सर्वोत्तम विवाह योग होता है। इसमें उस लड़के को अपनी बासना अर्थात सेक्स की इच्छा प्रकट नहीं करनी पड़ी, इसलिए माता पिता के लिए वो हमेंशा शिष्ट,शालीन,सदाचारी आदि बना रहता है। ऐसे माता पिता अपने बच्चे का नाम बड़े गर्व से हमेंशा  लिया करते हैं कि उसने कभी किसी की ओर आँख उठाकर देखा भी नहीं है। ऐसा उत्तम विवाह योग किसी किसी लड़के या लड़की को बड़े भाग्य से मिलता है। बाकी जितना जिसे तड़प कर,बदनाम होकर या जलालत सहकर पति या पत्नी का सुख मिलता या नहीं भी मिलता है उतना उसे इस बिषय में भाग्यहीन या अभागा समझना चाहिए।
   ऐसे ही वैवाहिक भाग्यहीन लोग प्रेम का धंधा करना शुरू कर देते हैं एक को छोड़ते दूसरे को पकड़ते दूसरे से तीसरा आदि ।ऐसे लोग इस विषय में कई बार हिंसक हो जाते हैं।बलात्कार,छेड़छाड़,हत्याएँ ऐसे ही बीमार विवाह योगों के लक्षण हैं।जिनके भाग्य में कम बीमार विवाह योग होता है उनका नुकसान कम होते देखा जाता है।ऐसे समझदार लोग संयम और शालीनता  पूर्वक ये सब करते हैं, कुछ ऐसा  नहीं भी करते हैं सहनशीलता के साथ संयमपूर्वक अच्छा बुरा कैसा भी हो एक जीवन साथी चुन लेते हैं और उसी के साथ अपना भाग्य समझ कर निर्वाह भी करते हैं  ।

    सामान्य रूप से असहन शील असंयमी  बीमार विवाह योग वाले लोग ऐसा करते करते थक कर  कहीं संतोष  करके मन या बेमन किसी के साथ जीवन बिताने लगते हैं जिसे देखकर लोग कहते हैं कि उनकी तो बहुत अच्छी निभ रही है।सच्चाई तो उन्हें ही पता होती है।ऐसे ही निराश  हताश लोग कई बार अपनी जिंदगी को तमाशा ही बना लेते हैं कई बार हत्या या आत्महत्या तक गुजर जाते हैं वो ऐसा समझते हैं कि वे प्रेम पथ पर मर रहे हैं जब सामने वाला या वाली को उससे अच्छा कोई और दूसरा मिल गया होता है तो वो पहले वाले से पीछा छुड़ाने के लिए उसे कैसे भी छोड़ना या मार देना चाहता है।ऐसे लोगों का एक दूसरे के प्रति कोई समर्पण नहीं होता है जबकि प्रेम तो पूर्ण समर्पण पर चलता है कोई भी प्रेमी अपने प्रेमास्पद को कभी दुखी नहीं देखना चाहता।
  कई ने तो एक साथ कई कई पाल रखे होते हैं।ऐसे लोग कई बार सार्वजनिक जगहों पर एक दूसरे के साथ शिथिल आसनों में बैठे होते हैं या एक दूसरे के मुख में चम्मच घुसेड़ घुसेड़  कर खा खिला रहे होते हैं। इसी बीच तीसरी या तीसरा आ गया उसने ज्योंही किसी और के साथ देखा तो पागल हो गया या हो गई जब पोल खुल गई तो लड़ाई हुई कोई कहीं झूल गया कोई कहीं झूल गई।भाई ये कैसा प्रेम? ये तो बीमार विवाह योग है।यहॉ विशेष  बात ये है कि इस पथ पर बढ़ने वाले हर किसी लड़के या लड़की की जिंदगी बीमार विवाह योग से पीड़ित होती है।इसी लिए ऐसे लोग अपने जैसे बीमार विवाह वाले साथी ढूँढ़ ढूँढ़कर उन्हें ही धोखा दे देकर अपनी और अपने जैसे अपने साथियों की जिंदगी बरबाद किया करते हैं।जैसे आतंकवादियों को लगता है कि वे धर्म के लिए मर रहे हैं इसीप्रकार ऐसे तथाकथित प्रेमी भी अपनी गलत फहमी में प्राण गॅंवाया करते हैं।
ऐसे लोगों की जन्मपत्रियॉं यदि बचपन में ही किसी सुयोग्य ज्योतिष विद्वान से दिखा ली जाएँ तो ऐसे योग पड़े होने पर भी ऐसे लोगों को  अच्छे ढंग से प्रेरित करके जीवन की इस त्रासदी से बचाया जा सकता है। 

राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान की सेवाएँ 


     यदि आप ऐसे किसी बनावटी आत्मज्ञानी, बनावटी ब्रह्मज्ञानी, ढोंगी,बनावटी तान्त्रिक,बनावटी ज्योतिषी, योगी उपदेशक या तथाकथित साधक आदि के बुने जाल में फँसाए जा  चुके हैं तो आप हमारे यहाँ कर सकते हैं संपर्क और ले सकते हैं उचित परामर्श ।

       कई बार तो ऐसा होता है कि एक से छूटने के चक्कर में दूसरे के पास जाते हैं वहाँ और अधिक फँसा लिए जाते हैं। आप अपनी बात किसी से कहना नहीं चाहते। इन्हें छोड़ने में आपको डर लगता है या उन्होंने तमाम दिव्य शक्तियों का भय देकर आपको डरा रखा है।जिससे आपको  बहम हो रहा है। ऐसे में आप हमारे संस्थान में फोन करके उचित परामर्श ले सकते हैं। जिसके लिए आपको सामान्य शुल्क संस्थान संचालन के लिए देनी पड़ती है। जो आजीवन सदस्यता, वार्षिक सदस्यता या तात्कालिक शुल्क  के रूप में  देनी होगी, जो शास्त्र  से संबंधित किसी भी प्रकार के प्रश्नोत्तर करने का अधिकार प्रदान करेगी। आप चाहें तो आपके प्रश्न गुप्त रखे जा सकते हैं। हमारे संस्थान का प्रमुख लक्ष्य है आपको अपनेपन के अनुभव के साथ आपका दुख घटाना,बाँटना  और सही जानकारी देना।


Sunday, 5 February 2017

दिल्ली सरकार के भ्रष्टाचार विरोधी जिम्मेदार ईमानदार एवं सजीव लोगों से नैतिक निवेदन !

    घूसखोरी ,बेईमानी गुंडागर्दी बंद करवाइए और बचा लीजिए दिल्ली में शांति पूर्वक रहने की इच्छा रखने वाले दिल्लीवालों का जीवन !
   दिल्ली जैसी राष्ट्रीय राजधानी में कानून व्यवस्था की स्थिति यदि इतनी बिगड़ी हुई है तो बाकी देश के विषय में क्या परिकल्पना की जा सकती है !
     दिल्ली के कृष्णा नगर में छाछी बिल्डिंग चौक पर "के -71 दुग्गल बिल्डिंग "नाम से बिल्डिंग हैं जिसमें सोलह फ्लैट्स हैं बिल्डर सारे फ्लैट्स बेचकर पहले ही जा चुका है जाते समय उसने बिल्डिंग के मेंटिनेंस के लिए एक मोबाईल टावर लगवाया था किंतु जाते जाते वो भी बेच गया !अब बिल्डिंग में टॉप फ्लोर पर रहने वालों की मदद से किराया कोई दूसरा लेता है जो बिल्डिंग का सदस्य नहीं है!इसीलिए बीते 18 वर्षों में बिल्डिंग का मेंटीनेंश बिल्कुल नहीं किया गया है !बिल्डिंग के मेंटिनेंस से मोबाईल टावर वालों का कोई लेना देना नहीं है  दूसरी ओर बिल्डिंग में रहने वाले अपने पैसों से मेंटिनेंस तब तक नहीं करना चाहते हैं जब तक मोबाईल टावर का अब तक का किराया उन्हें नहीं दिलाया जाता या फिर मोबाईल टावर हटाया नहीं जाता !रख रखाव के अभाव में  अब तो बेसमेंट में भी पानी भरा रहने लगा है !
        मोबाईल टावर वाले और बिल्डिंग के टॉप फ्लोर वालों ने मिलकर छत पर जाने के रास्ते पर ताला लगाकर चाभी अपने पास रख ली है अपनी पानी की टंकियाँ अलग लगा ली हैं !उनकी गुंडागर्दी का आलम यह है कि छत पर रखी हुई पानी की सामूहिक 12 टंकियों में पहले तो सभी प्रकार से गंध डाला जाता रहा बाद में उन्हीं लोगों ने टंकियां फाड़ दीं पाइप तोड़ दिए पिछले दो वर्ष से बिल्डिंग में रहने वाले लगभग 10 फ्लैटों का पानी बंद कर दिया गया है उन लोगों की गुंडा गर्दी ,मारपीट और अवैध वसूली से तंग आकर कई लोग फ्लैट बेच कर भाग गए किंतु कोई कहीं कम्प्लेन नहीं करते क्योंकि मोबाईल टावर से आने वाले किराए से  सम्बंधित अधिकारियों कर्मचारियों तक को खर्चा पानी पहुँचा दिया जाता है इसलिए उनकी शिकायत पर सुनवाई तो होती नहीं है अपितु उनका उत्पीड़न जरूर होने लगता है इसलिए वो खाली करके चले जाते हैं । 
     MCD वालों से बिना परमीशन लिए एवं  बिल्डिंग में रहने वालों से बिना सहमति लिए गुंडागर्दी पूर्वक ये टावर लगाया गया था इसका किराया भी वही लोग घूस खोर अधिकारी कर्मचारियों की मिली भगत से लेते जा रहे हैं !गुंडागर्दी की कमाई का स्वाद चख चुके जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारी लोग टावर हटाने संबंधी किसी शिकायत पर कोई सुनवाई करने को तैयार नहीं हैं तरह तरह के बहाने बताते रहते हैं !उनकी बातों के वीडियो यदि सार्वजानिक कर दिए जाएं तो उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ सकता है । ये टॉवर सन 2013 में बुक किया जा चुका है किंतु हटाने से बचने के लिए ये घूस खोर किराए के लालची लोग नई नई दलीलें दे देकर समय पास करते जा रहे हैं !ऐसी परिस्थिति में घूसखोर अधिकारियों कर्मचारियों की मदद से गुंडे बदमास लोग यदि इस बिल्डिंग को गिराने में सफल हो जाते हैं तो उसमें होने वाली मौतों के लिए किसे जिम्मेदार माना जाएगा !
     अतएव आपसे निवेदन है कि इस बिल्डिंग में रहने वाले लोगों की जीवन रक्षा के लिए इस मोबाईल टावर को अविलम्ब हटवाइए साथ ही गुंडागर्दी पूर्वक पानी की टंकियाँ तोड़ने वालों पर कठोर कार्यवाही कीजिए !इसके साथ ही एक निवेदन और भी है कि अब इसे अविलंब हटवा ही दीजिए जाँच के झमेले में मत डालिए क्योंकि सरकारी विभागों में बीते तेरह सालों से केवल जाँच ही चलती रही है !विशेष बात ये है कि यदि आप कुछ करवा सकते हों और करवाना चाहते हों तो जिम्मेदारी पूर्वक करवाइए अन्यथा मना कर दीजिएगा क्योंकि सरकारी मशीनरी से कई बार धोखा खाए हुए लोग आपके द्वारा भेजी जाने वाली जाँच में सहयोग के लिए तब तक तैयार नहीं होंगे जब तक उन्हें विश्वास में नहीं लिया जाएगा !यहाँ रहने वालों को भय है कि सरकारी जाँचों से और तो कुछ होगा नहीं किंतु टावर का माल खाने वाले गुंडे लोग जीना मुश्किल जरूर कर देंगे !ऐसा ही पहले से भी होता चला आ रहा है ।
                                   निवेदक -
        इस बिल्डिंग एवं बिल्डिंग में रहने वाले लोगों का शुभ चिंतक -
महोदय एक बार इसे जरूर देखें -http://epaper.livehindustan.com/story.aspx?id=1713071&boxid=115120774&ed_date=2017-2-4&ed_code=1&ed_page=4