प्रधानमंत्री जी ! आपको यदि लगता है कि सांसद विधायक आदि भी सदनों में उपस्थित रहकर चर्चा में न केवल सम्मिलित हों अपितु वहाँ बोलने और समझने की प्रक्रिया में भी भाग लें तो आपको चुनावी टिकट ही पढ़े लिखे प्रत्याशियों को उनकी रूचि और जनसेवा कार्य देखकर देनी चाहिए और ऐसा यदि जनता को लगता है तो उसे अपना बहुमूल्य वोट ही पढ़े लिखे सुयोग्य प्रत्याशियों को देना चाहिए !
अन्यथा -
"बोवे पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से होय ।"
स्कूलों में गैर हाजिर रहने वाले विद्यार्थियों में अक्सर देखा जाता है कि या तो वे पढ़ाई लिखाई में कमजोर होते हैं इसलिए उन्हें कक्षा की चर्चा में कुछ समझ में ही नहीं आ रहा होता है !या फिर पढ़ाई में उनकी रूचि ही नहीं होती है इसलिए स्कूल जाना बंद कर देते हैं । यदि स्कूलों के दबाव से कक्षाओं में चले भी गए तो वहाँ भी तो खेला ही करते हैं और दूसरे छात्रों को भी पढ़ने में बाधा पहुँचाते रहते हैं!
यह जानते हुए भी कि पढ़ने लिखने में इनकी रूचि नहीं है फिर भी घर वाले तो उन्हें धकिया कर स्कूल इसलिए भेज ही देते हैं कि वहाँ जाकर पढ़ें न पढ़ें किंतु देखने वाले तो समझ ही जाएँगे कि ये भी पढ़ने जाता है तो पढ़ता ही होगा !इससे शादी विवाह आदि होने में सुविधा रहेगी !अभिभावक होने के नाते उनका तो ऐसा सोचना ठीक भी है किंतु उसकी शादी हो जाए इसलिए स्कूल रोज रोज उसके घर बोलावा भेजे और अपने स्कूल का नाम चौपट करे उसके साथ पढ़ने वाले बच्चों के जीवन से खिलवाड़ करे इसमें स्कूल की क्या मज़बूरी क्या हो सकती है ?स्कूल ऐसे बच्चों का एडमीशन ही क्यों ले !किंतु डोनेशन के लोभ में स्कूलों को ऐसा करना पड़ता है !इसीप्रकार से चुनावी टिकट देते समय भी अक्सर प्रत्याशियों में डोनेशन राशि के आगे बाकी सभी योग्यताओं की उपेक्षा करके नतमस्तक हो जाना होता है !
स्कूलों की तरह ही सदनों की कार्यवाही है जो सांसद विधायक सदनों की चर्चा को जरूरी समझते होंगे और वहाँ चर्चा करने और समझने की शैक्षणिक योग्यता रखते होंगे उन्हें तो उस चर्चा में स्वयं ही आनंद आ रहा होगा वे गैर हाजिर रहेंगे ही क्यों ?किंतु जो ऐसा कर पाने में सक्षम नहीं होते हैं बेचारे वे सदनों में पहुँच भी जाते हैं तो वहाँ भी उनका समय बड़ी मुश्किल से ही कटता होगा !भला हो मोबाइलों का समय बिताने में कुछ मदद उनसे मिल जाती है कुछ मदद वहाँ के सुख सुविधापूर्ण कुर्सियों पर सोने से मिल जाती है कुछ मदद हुल्लड़ मचाने लायक मौक़ा तलाशने और हुल्लड़ मचाने से मिल जाती है और धीरे धीरे इसी प्रकार से समय पास कर लिया जाता है कभी कभी छुट्टी हो जाती है और कभी कभी कर भी ली जाती है ।
वस्तुतः प्रधानमंत्री जी !सांसदों को सदनों की कार्यवाही में भाग तो लेना ही चाहिए किंतु फिर भी जो नहीं लेते हैं उन्हें संसद में उपस्थित रहने का आपको निर्देश देना पड़ता है जबकि संसद का सुख सुविधा पूर्ण वातानुकूलित वातावरण होता है फिर भी जो लोग बुलाए बुलाए संसद में उपस्थित नहीं रह पाते हैं वे अपने अपने क्षेत्रों में जनता की सेवा कैसे करते होंगे वहाँ तो जो कर लेते होंगे वही बहुत मान लिया जाता होगा !वहाँ तो शर्दी गर्मी में सब लगती है जनता के हितों के लिए समाज एवं सरकारी व्यवस्थाओं से जूझना कोई हँसी खेल तो नहीं होता है !
ऐसे सांसदों की ऐसी ही लापरवाही के कारण सरकारों की घोषणाएँ लोग अक्सर समाचारों में ही सुन पढ़ लिया करते हैं बाकी सांसदों विधायकों के पास इतना समय कहाँ होता है कि वे सरकार की योजनाओं का जनता को लाभ दिलाने के लिए कोई प्रभावी प्रयास करें !और तो और अधिकाँश सांसदों को तो जन समस्याएँ सुनने का भी समय नहीं होता है वे सरकार प्रदत्त सुख सुविधाएँ भोगने में इतना अधिक व्यस्त रहते हैं कि केवल अपना सांसद होने का झाम दिखाने से ही फुर्सत नहीं होती है !सांसदों की आफिसों में जनता से निपटने के लिए अक्सर भाड़े के लोग बैठा दिए जाते हैं उनमें से जिनको जैसी सैलरी मिलती है वे वैसा वर्ताव कर रहे होते हैं उसमें उनका कोई अपना लाभ हानि तो होता नहीं है इसीलिए जनता की सेवा से उनका क्या लेना देना ! उनके पास हर बात के आर्टिफीशियल जवाब होते हैं और हर प्रकार की सिफारिस के लिए आर्टीफीशियल लेटरों की गड्डियाँ रखी होती हैं जिन्हें वे बेचारे दिन भर बाँटते रहते हैं और सांसद जी प्रधानमंत्री जी के यहाँ गए हैं ये बात जनता को बताया करते हैं भाग्यवश जिस दिन सांसद लोग जनता से मिलने को बैठते हैं वो समय इतना कम होता है कि परिचय मुलाकात करते ही बीत जाता है तब तक प्रधानमन्त्री जी ने बुलाया है बता कर उठा ले जाए जाते हैं !जनता बेचारी उनके ठाट बाट देखती रह जाती है !
उनकी आफिस के लोगों ने यदि किसी को सिफारिसी फोन किया भी तो उन्हें खुद पता होता है कि मेरी बात कहीं नहीं सुनी और मानी जाएगी !ये स्थिति अभी भी दिल्ली के प्रायः सांसदों की आफिसों की है जिसका भुक्त भोगी प्रमाण सहित मैं स्वयं हूँ फिर देश के अन्य भागों में आम जनता के साथ कैसा वर्ताव हो रहा होगा इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है ।
इसलिए प्रधानमंत्री जी !यदि आपको वास्तव में लगता है कि सांसद लोग सदनों में उपस्थित रहें तो टिकट देते समय ही रूचि देखकर टिकट दिलवाइए अन्यथा सदनों की कार्यवाही में सम्मिलित भी हो जाएँ और वहाँ उनका मन न लग रहा हो कुर्सी पर सोवें मोबाईल में मनोरंजन करें या हुल्लड़ मचाने के मौके की तलाश में बैठे रहें तो क्या लाभ होगा !
जिनकी रूचि नहीं है आखिर वे वहाँ जाकर भी क्या करें !जो सांसद बने ही झाम दिखाने फोटो खिंचाने और पैसे कमाने के लिए हों वो क्यों जाएँ !
देशवासियों से भी मेरा निवेदन है कि यदि आप भी बलात्कारियों से तंग हैं तो चरित्रवान प्रत्याशियों को ही वोट दें !यदि आप भी भ्रष्टाचारियों से तंग हैं तो ईमानदार प्रत्याशियों को ही वोट दें !यदि आप भी देश में लोकतांत्रिक पद्धति को जिन्दा रखना चाहते हैं तो उन पार्टियों को बिलकुल वोट न दें जिनका अध्यक्ष किसी एक फैक्ट्री मालिक की तरह केवल एक ही व्यक्ति या परिवार का सदस्य होता हो ऐसी पार्टियों के विरुद्ध मतदान कीजिए और बचा लीजिए अपने पूर्वजों के प्यारे लोकतंत्र को !जिस प्रत्याशी को टिकट इसलिए मिला हो कि वो किसी नेता की बीबी है नेता की बेटी या बेटा है या किसी नेता के घर खानदान का है या नाते रिस्तेदार है इसलिए उसे प्रत्याशी बनाया गया है ऐसे नेताओं को वोट न खुद दीजिए न किसी और को देने दीजिए संपूर्ण प्रयास करके इन्हें पराजित करके लोकतंत्र बचा लीजिए !
लोकतंत्र का मतलब है सबका समान अधिकार किन्तु यहाँ तो केवल नेता हैं और उनके नाते रिस्तेदार बाकी सब मतदाता सब बेकार !राजनैतिक दलों के अध्यक्ष हैं या ठेकेदार !सब जगह भ्रष्टाचार !!
अन्यथा -
"बोवे पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से होय ।"
स्कूलों में गैर हाजिर रहने वाले विद्यार्थियों में अक्सर देखा जाता है कि या तो वे पढ़ाई लिखाई में कमजोर होते हैं इसलिए उन्हें कक्षा की चर्चा में कुछ समझ में ही नहीं आ रहा होता है !या फिर पढ़ाई में उनकी रूचि ही नहीं होती है इसलिए स्कूल जाना बंद कर देते हैं । यदि स्कूलों के दबाव से कक्षाओं में चले भी गए तो वहाँ भी तो खेला ही करते हैं और दूसरे छात्रों को भी पढ़ने में बाधा पहुँचाते रहते हैं!
यह जानते हुए भी कि पढ़ने लिखने में इनकी रूचि नहीं है फिर भी घर वाले तो उन्हें धकिया कर स्कूल इसलिए भेज ही देते हैं कि वहाँ जाकर पढ़ें न पढ़ें किंतु देखने वाले तो समझ ही जाएँगे कि ये भी पढ़ने जाता है तो पढ़ता ही होगा !इससे शादी विवाह आदि होने में सुविधा रहेगी !अभिभावक होने के नाते उनका तो ऐसा सोचना ठीक भी है किंतु उसकी शादी हो जाए इसलिए स्कूल रोज रोज उसके घर बोलावा भेजे और अपने स्कूल का नाम चौपट करे उसके साथ पढ़ने वाले बच्चों के जीवन से खिलवाड़ करे इसमें स्कूल की क्या मज़बूरी क्या हो सकती है ?स्कूल ऐसे बच्चों का एडमीशन ही क्यों ले !किंतु डोनेशन के लोभ में स्कूलों को ऐसा करना पड़ता है !इसीप्रकार से चुनावी टिकट देते समय भी अक्सर प्रत्याशियों में डोनेशन राशि के आगे बाकी सभी योग्यताओं की उपेक्षा करके नतमस्तक हो जाना होता है !
स्कूलों की तरह ही सदनों की कार्यवाही है जो सांसद विधायक सदनों की चर्चा को जरूरी समझते होंगे और वहाँ चर्चा करने और समझने की शैक्षणिक योग्यता रखते होंगे उन्हें तो उस चर्चा में स्वयं ही आनंद आ रहा होगा वे गैर हाजिर रहेंगे ही क्यों ?किंतु जो ऐसा कर पाने में सक्षम नहीं होते हैं बेचारे वे सदनों में पहुँच भी जाते हैं तो वहाँ भी उनका समय बड़ी मुश्किल से ही कटता होगा !भला हो मोबाइलों का समय बिताने में कुछ मदद उनसे मिल जाती है कुछ मदद वहाँ के सुख सुविधापूर्ण कुर्सियों पर सोने से मिल जाती है कुछ मदद हुल्लड़ मचाने लायक मौक़ा तलाशने और हुल्लड़ मचाने से मिल जाती है और धीरे धीरे इसी प्रकार से समय पास कर लिया जाता है कभी कभी छुट्टी हो जाती है और कभी कभी कर भी ली जाती है ।
वस्तुतः प्रधानमंत्री जी !सांसदों को सदनों की कार्यवाही में भाग तो लेना ही चाहिए किंतु फिर भी जो नहीं लेते हैं उन्हें संसद में उपस्थित रहने का आपको निर्देश देना पड़ता है जबकि संसद का सुख सुविधा पूर्ण वातानुकूलित वातावरण होता है फिर भी जो लोग बुलाए बुलाए संसद में उपस्थित नहीं रह पाते हैं वे अपने अपने क्षेत्रों में जनता की सेवा कैसे करते होंगे वहाँ तो जो कर लेते होंगे वही बहुत मान लिया जाता होगा !वहाँ तो शर्दी गर्मी में सब लगती है जनता के हितों के लिए समाज एवं सरकारी व्यवस्थाओं से जूझना कोई हँसी खेल तो नहीं होता है !
ऐसे सांसदों की ऐसी ही लापरवाही के कारण सरकारों की घोषणाएँ लोग अक्सर समाचारों में ही सुन पढ़ लिया करते हैं बाकी सांसदों विधायकों के पास इतना समय कहाँ होता है कि वे सरकार की योजनाओं का जनता को लाभ दिलाने के लिए कोई प्रभावी प्रयास करें !और तो और अधिकाँश सांसदों को तो जन समस्याएँ सुनने का भी समय नहीं होता है वे सरकार प्रदत्त सुख सुविधाएँ भोगने में इतना अधिक व्यस्त रहते हैं कि केवल अपना सांसद होने का झाम दिखाने से ही फुर्सत नहीं होती है !सांसदों की आफिसों में जनता से निपटने के लिए अक्सर भाड़े के लोग बैठा दिए जाते हैं उनमें से जिनको जैसी सैलरी मिलती है वे वैसा वर्ताव कर रहे होते हैं उसमें उनका कोई अपना लाभ हानि तो होता नहीं है इसीलिए जनता की सेवा से उनका क्या लेना देना ! उनके पास हर बात के आर्टिफीशियल जवाब होते हैं और हर प्रकार की सिफारिस के लिए आर्टीफीशियल लेटरों की गड्डियाँ रखी होती हैं जिन्हें वे बेचारे दिन भर बाँटते रहते हैं और सांसद जी प्रधानमंत्री जी के यहाँ गए हैं ये बात जनता को बताया करते हैं भाग्यवश जिस दिन सांसद लोग जनता से मिलने को बैठते हैं वो समय इतना कम होता है कि परिचय मुलाकात करते ही बीत जाता है तब तक प्रधानमन्त्री जी ने बुलाया है बता कर उठा ले जाए जाते हैं !जनता बेचारी उनके ठाट बाट देखती रह जाती है !
उनकी आफिस के लोगों ने यदि किसी को सिफारिसी फोन किया भी तो उन्हें खुद पता होता है कि मेरी बात कहीं नहीं सुनी और मानी जाएगी !ये स्थिति अभी भी दिल्ली के प्रायः सांसदों की आफिसों की है जिसका भुक्त भोगी प्रमाण सहित मैं स्वयं हूँ फिर देश के अन्य भागों में आम जनता के साथ कैसा वर्ताव हो रहा होगा इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है ।
इसलिए प्रधानमंत्री जी !यदि आपको वास्तव में लगता है कि सांसद लोग सदनों में उपस्थित रहें तो टिकट देते समय ही रूचि देखकर टिकट दिलवाइए अन्यथा सदनों की कार्यवाही में सम्मिलित भी हो जाएँ और वहाँ उनका मन न लग रहा हो कुर्सी पर सोवें मोबाईल में मनोरंजन करें या हुल्लड़ मचाने के मौके की तलाश में बैठे रहें तो क्या लाभ होगा !
जिनकी रूचि नहीं है आखिर वे वहाँ जाकर भी क्या करें !जो सांसद बने ही झाम दिखाने फोटो खिंचाने और पैसे कमाने के लिए हों वो क्यों जाएँ !
देशवासियों से भी मेरा निवेदन है कि यदि आप भी बलात्कारियों से तंग हैं तो चरित्रवान प्रत्याशियों को ही वोट दें !यदि आप भी भ्रष्टाचारियों से तंग हैं तो ईमानदार प्रत्याशियों को ही वोट दें !यदि आप भी देश में लोकतांत्रिक पद्धति को जिन्दा रखना चाहते हैं तो उन पार्टियों को बिलकुल वोट न दें जिनका अध्यक्ष किसी एक फैक्ट्री मालिक की तरह केवल एक ही व्यक्ति या परिवार का सदस्य होता हो ऐसी पार्टियों के विरुद्ध मतदान कीजिए और बचा लीजिए अपने पूर्वजों के प्यारे लोकतंत्र को !जिस प्रत्याशी को टिकट इसलिए मिला हो कि वो किसी नेता की बीबी है नेता की बेटी या बेटा है या किसी नेता के घर खानदान का है या नाते रिस्तेदार है इसलिए उसे प्रत्याशी बनाया गया है ऐसे नेताओं को वोट न खुद दीजिए न किसी और को देने दीजिए संपूर्ण प्रयास करके इन्हें पराजित करके लोकतंत्र बचा लीजिए !
राजनैतिक पार्टियाँ दूध देने वाली भैंसों की तरह हैं जैसे भैंसों के
मालिकों को जो पैसे दे वो उसे दूध देते हैं ऐसे ही दलों के दलाल जिन्हें
दाम देते हैं वे उन्हें टिकट देते हैं किंतु आप उन्हें वोट क्यों देते हैं
वे आपको क्या देते हैं ?
राजनेताओं पर दलितों ने भरोसा किया तो आज तक दाल चावल में ही अटका रखा
है उन्हें !दलितों के प्रति हमदर्दी दिखाने वाले नेताओं की कई कई कोठियाँ
और करोड़ों के बैंक बैलेंश !और दलित बेचारे जहाँ के तहाँ पड़े हैं !ये दलितों के नाम पर राजनीति से लूटा गया धन नहीं है तो आखिर कहाँ से कैसे आया उनके पास ये भी जानकारी तो सार्वजनिक की जाए ! लोकतंत्र का मतलब है सबका समान अधिकार किन्तु यहाँ तो केवल नेता हैं और उनके नाते रिस्तेदार बाकी सब मतदाता सब बेकार !राजनैतिक दलों के अध्यक्ष हैं या ठेकेदार !सब जगह भ्रष्टाचार !!
देशवासियो ! प्यारे भाई बहनों से निवेदन !आप भी लोकतंत्र की
रक्षा के लिए आगे आएँ !और आप स्वयं विचार करें कि जो नेता लोग आपको कुछ
नहीं समझते हैं उन्हें आप भी कुछ मत समझो जो आपको चुनाव लड़ने लायक नहीं
समझते उन्हें आप भी वोट देने लायक मत समझो !जो आपको चुनावी टिकट नहीं देते
आप भी उन्हें वोट मत दो !
जो
नेता लोग टिकट देते हैं अपने बीबी बच्चों को !अपने घर खानदान वालों को
!अपने नाते रिस्तेदारों को तथा वोट माँगते हैं आप से ! ऐसे पापी पाखंडियों
को जिताने के लिए किसी भी कीमत पर आप वोट न दें लोकतंत्र की रक्षा के लिए
ऐसे प्रत्याशियों को पराजित करवाकर पुण्य कमाएँ !लोकतंत्र के सबल साधकों
से निवेदन है कि ऐसे भाई भतीजा वादी लोकतंत्र द्रोही प्रत्याशियों को अवश्य
सबक सिखाएँ !आपके क्षेत्र में अच्छे अच्छे पढ़े लिखे ईमानदार अनुभवी
चरित्रवान लोग भी होते हैं किंतु उनकी उपेक्षा करके नेता लोग या तो अपने
नाते रिस्तेदारों को टिकट देते हैं या फिर टिकट बेंच लिया करते हैं ऐसे
पक्ष पात का विरोध करने के लिए आप उन्हें हरवाकर अपना जन्म सफल बनाएँ और
अपने जीवित होने का सबूत दें !राजनीति में भाई भतीजे वाद को जड़ से उखाड़
फेंकें !
यदि आप जाति देखकर वोट देंगे तो वो जाति जनाएँगे ही यदि आप संप्रदाय देखकर वोट देंगे तो वो सांप्रदायिक दंगे करवाएँगे ही यदि आप उनका धन देखकर वोट देंगे तो वो भ्रष्टाचार करेंगे ही !
यदि आप जाति देखकर वोट देंगे तो वो जाति जनाएँगे ही यदि आप संप्रदाय देखकर वोट देंगे तो वो सांप्रदायिक दंगे करवाएँगे ही यदि आप उनका धन देखकर वोट देंगे तो वो भ्रष्टाचार करेंगे ही !
- प्रत्याशियों की उच्च शिक्षा, अच्छे संस्कार, ईमानदारी ,सेवा भावना और चरित्र देखकर वोट दोगे तो तुम्हें पछताना नहीं पड़ेगा और वेईमानों को वोट दोगे तो वो तुम्हारे नाम पर भी घपले घोटाले ही करेंगे !
- जैसे छोटी छोटी बच्चियाँ बड़ी होकर दादी बन जाती हैं ऐसे ही बचपन के छोटे छोटे अपराधी भी बड़े होकर आजकल नेता बनने लगे हैं किंतु अभी भी राजनीति में भी कुछ अच्छे और ज़िंदा लोग हैं उन्हें खोजिए और ऐसे प्रत्याशियों को ही वोट देकर आप भी अपने देश और समाज के निर्माण में योगदान दें !ऐसे लोग किसी भी पार्टी के क्यों न हों !
- भ्रष्ट नेता चुनाव जीतकर यदि मंत्री भी बन जाते हैं तो वे समाज का भला नहीं करेंगे वो तो सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से वसूली ही करवाएँगे !उनसे अपनी सैलरी बढ़वाने के लिए उन्हें पोल खोलने की धमकी देकर वही सरकारी लोग हड़ताल पर चले जाएँगे फिर वे उन्हें मनाएँगे फिर उनकी सैलरी बढ़ाएँगे !ऐसे ही रूठते मनाते बीत जाएँगे 5 साल ! इसलिए अपना वोट बर्बाद मत होने दो !
- भ्रष्ट नेताओं को वोट दोगे तो भ्रष्टाचार सहना ही पड़ेगा !कमाओगे तुम खाएँगे नेता और उनके परिवार !
"राजनीति शुरू करते समय गरीब से गरीब नेता लोग चुनाव जीतते ही करोड़ों अरबोंपति हो जाते हैं कैसे आखिर उनके पास कहाँ से आता है ये पैसा !ऐसे बेईमानों को वोट देकर ईमानदारी की आशा मत करो !"
- बलात्कारी नेताओं को वोट दोगे तो बहू बेटियों की सुरक्षा कैसे कर पाओगे ?नेताओं का बलात्कार तो प्यार और गरीबों का बलात्कार !
"बलात्कारी नेता लोगों के पास काम के लिए जाने वाली या पार्टी के पद पाने
के लिए जाने वाली महिलाओं के चरित्र से ही ये खेलेंगे !अपने बलात्कार को
प्यार बताएँगे और गरीबों के बच्चों पर बलात्कार के आरोप लगते ही उनके लिए
फाँसी की सजा माँगेंगे !अपने कुकर्मों पर तो पीड़ितों को डरा धमकाकर या कुछ
लालच देकर शांत कर देते हैं आम बलात्कारियों के पास डराने धमकाने और लालच
देने की हैसियत नहीं होती है इसलिए उसे फाँसी पर चढ़ाने की माँग करते हैं ये
पापी !
- भूमाफिया नेताओं को वोट दोगे तो वो बेच खाएँगे तुम्हारे पास पड़ोस की सारी सरकारी जमीनें पार्क पार्किंगें आदि !
- कम पढ़े लिखे नेताओं को सांसद विधायक बनाकर संसद और विधान सभाओं में चुनकर भेजोगे तो वो सदनों में चर्चा कैसे कर पाएँगे ?ऐसे बुद्धू नेता लोग या तो मोबाईल पर फिल्में देखेंगे या सोएंगे या घूमें टहलेंगे या हुल्लड़ मचाएँगे !अपनी नाक कटवाने के लिए ऐसे अनपढ़ों को चुनकर क्यों भेजते हैं आप लोग !जो सदनों का बहुमूल्य समय बर्बाद करने के लिए पहुँच जाते हैं वहाँ !
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