Wednesday, 29 March 2017

patree


 और उसका ऊपर तक ले जाने के विषय में पिछले बीस वर्षों से अपना जो शोध कार्य


प्रकृति से संबंधित हों या जीवन से संबंधित अधिकाँश घटनाओं के घटने का कारण केवल 'समय' होता है। 

मानसिक तनाव के कारण बढ़ते अपराधों हत्याओं आत्महत्याओं को रोकने हेतु ज्योतिषीय एवं उससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं से मुक्ति के लिए समयविज्ञान की दृष्टि से शोध कार्य करता आ रहा हूँ !परिणाम स्वरूप 

एवं आत्महत्याओं को रोकने के क्षेत्र में निजी प्रयासों के द्वारा वैदिकविधा से कार्य करता आ रहा हूँ जिसमें मुझे काफी सफलता भी मिली है किंतु इस शोध कार्य को विस्तार देने के लिए मुझे सरकार के प्रबल सहयोग की आवश्यकता है !
    महोदय ! वैदिकविधा से रिसर्च की प्रक्रिया में मैं  इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद की हो या एलोपैथ की उनके पास मनोरोग को घटाने के लिए कुछ ख़ास है ही नहीं क्योंकि मनोरोग  शरीर संबंधी बीमारी नहीं है और वो चिकित्सक शरीर के होते हैं ।
    श्रीमान जी !चिकित्सकों के पास मनोरोगों पर नियंत्रण कर सकने की यदि कोई प्रभावी विधा होती तो औषधीय चिकित्सा के द्वारा कम से कम उन लोगों को तो बचाया जा ही सकता था जो इलाज करा सकने में समर्थ थे जबकि कई चिकित्सकों अफसरों शिक्षकों व्यापारियों आदि के द्वारा भी आत्महत्या करने जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ देखने सुनने को मिलती हैं !ऐसे लोग साधन सक्षम होने के कारण अपनी चिकित्सा तो करा ही सकते थे !
    वैसे भी मन की जाँच रोगी और रोगी के परिजनों से पूछताछ के ही की जा सकती है किंतु जहाँ तनाव की वजह स्पष्ट होती है वहाँ तो वो बता पाते हैं बाकी नहीं !
    महोदय ! प्राचीनकाल में जिस योग का प्रचलन था उससे निरंतर साधना एवं अभ्यास पूर्वक व्यक्ति अपने को अपने मन की स्थिति से ऊपर स्थापित कर लेता था जहाँ ईर्ष्या द्वेष सुख -दुःख आदि की पहुँच ही नहीं होती थी तो तनाव कैसे होता किंतु वो प्रक्रिया न तो आसान है और न ही हर किसी के बश की है !योग आसनों या कसरत व्यायामों सामान्य प्राणायामों आदि की मनोरोग के क्षेत्र में कोई विशेष भूमिका नहीं है ये शरीर को स्वस्थ और मजबूत बनाने के प्रयास मात्र हैं ऐसे व्यायाम या योगासन शारीरिक चिकित्सा पद्धति के सहयोगी हो सकते हैं किंतु इनका मन से कोई विशेष संबंध नहीं है !
    चिंताग्रस्त या मानसिक तनाव से ग्रस्त लोग  आसन व्यायाम करने में भी आलस करते हैं उन्हें रात को नींद नहीं आती और दिन में भूख नहीं लगती है इससे  होने वाले कब्ज और तवाव से होने वाली सैकड़ों प्रकार की बीमारियाँ तनावग्रस्त लोगों को घेर लेती हैं !
   




   






   मान्यवर !मेरा मानना है कि तनाव तीन प्रकार से पैदा होता है पहला तो अतीत में हुई गलतियों से सशंकित भविष्य संबंधी भय के कारण दूसरा जरूरी जरूरतें पूरी न हो पाने के कारण और तीसरा अकारण अपनी ऊटपटाँग सोच के कारण तनाव होता है ।
    महोदय ! हम जो जब जिससे जितना और जैसा चाहें वैसा न हो तो तनाव होता है किंतु वैसा ही हो यह सुनिश्चित कैसे किया जा सकता है ऐसा कर पाना किसी चिकित्सा प्रक्रिया के बश की बात भी नहीं है इसके लिए कुछ प्रतिशत तक अभाव की परिस्थितियाँ जिम्मेदार हो सकती हैं किंतु जिनके पास अभाव नहीं भी है तनाव तो उन्हें भी होता है ।
    दूसरा पक्ष एवं हमारे रिसर्चकार्य का विचारणीय महत्त्वपूर्ण विषय तनाव के कारण बढ़ती आत्महत्याओं को कैसे रोक जाए इस दृष्टिकोण से अध्ययन करने पर एक नई बात सामने आई कि तनाव की सारी परिस्थितियाँ एक जैसी बनी रहने पर भी कभी  हम तनाव सह पा रहे होते हैं और कभी नहीं ऐसा क्यों ?अर्थात हमारी सहनशीलता यदि बढ़ा ली जाए तो तनाव घट जाता है और सहनशीलता घटते ही तनाव बढ़ जाता है इसप्रकार से हमारी अपनी सहनशीलता का स्तर घटने बढ़ने से हम परेशान होते हैं ये सहनशीलता का लेवल जितना बढ़ेगा हमारा तनाव उतना घट जाएगा और इसके घटते ही बढ़ भी जाएगा ऐसी ही परिस्थितियों में ही कई बार हम छोटी छोटी बातों का बड़ा बड़ा तनाव लेकर बैठ जाते हैं हम और लोगों से सम्बन्ध तक बना बिगाड़ लेते हैं ; इसलिए मेरा मानना है कि सहनशीलता यदि बढ़ा ली जाए तो घट सकती हैं आत्महत्या जैसी दुखद दुर्घटनाएँ !
    हमारी सहनशीलता हमारे जीवन में कब और कैसे और कितने समय के लिए घटती है और उसे कैसे नियंत्रित रखा जा सकता है इसके लिए क्या करना चाहिए आदि बातों पर हमने न केवल रिसर्च किया है अपितु उसके सकारात्मक और प्रभावी परिणाम भी सामने आए हैं !
     महोदय !अतएव आपसे निवेदन है कि सरकार के द्वारा हमारे इस कार्य में हमारी मदद की जाए !

                                       निवेदक - डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
                           संस्थापक :राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
            K -71, छाछी बिल्डिंग, कृष्णा नगर, दिल्ली -110051,Tele: +91-11-22002689, +91-11-22096548, Mobile : +919811226973

Tuesday, 28 March 2017

पशुओं के हत्यारों की पशुओं को मारने खाने की ऐसी जिद !

 पशु नहीं रहेंगे तो आदमी उपलब्ध कराए जाएँगे क्या ?हड़ताल तो तब भी करेंगे पशु हत्यारे एवं मांस भक्षी लोग ? 
अंधेर है बैध बूचड़ खाने हों या अवैध ! कटना तो पशुओं को ही होता है जिन पशुओं को काटा  खाया जाता है उनसे भी कोई सहमति ली जाती है क्या ?यदि नहीं तो काहे के वैध !किसी को मारने खाने की अनुमति कोई दूसरा कैसे दे सकता है ? 
   बूचड़खाने बैध या अवैध ?बैध बूचड़ खाने पशुओं से NOC लेकर बनाए जाते हैं क्या ?अपराधों और बलात्कारों को घटाने के लिए बूचड़खाने हटाने पड़ेंगे !जो कुछ खाएँगे वैसा मन बनेगा!पशुओं  को मारने खाने वालों से दया की उम्मींद नहीं की जानी चाहिए   
पशु बेचारे किसी को परेशान करते हों कोई नुक्सान न पहुँचाते हों अपितु मानवता की ऐसी सेवा करते हों जो मनुष्य भी न कर पाते हों !उनके मरने के बाद भी उनके शरीर की खाल मानवता की सेवा करती है किन्तु मनुष्य का चमड़ा किस काम आता है !
      पशुओं को चबाने वालों से क्यों न पूछा जाए कि यदि तुम गाय भैंसें ऐसे ही चबाते चले जाओगे तो कैसे मिल पाएगा  दूध दही मट्ठा मक्खन घी खोया पनीर रबड़ी आदि असंख्य व्यंजनों और मिठाइयों का स्वादों को उपलब्ध  ! दूध में मिलावट दूध के सभी उत्पादों में मिलावट तिथि त्योहारों में मिठाइयों में मिलावट के लिए जिम्मेदार केवल वो लोग हैं जो पशुओं को खाए जा रहे हैं !बीमारियों के बढ़ने का कारण है दूध और दूध के उत्पादों की कमी और उनकी  शुद्धता का अभाव !खाद्य पदार्थों की कमी का कारण है दूध और दूध के उत्पादों की कमी एवं उनमें भारी मिलावट !
     पुराने ज़माने में दूध और मट्ठे आदि से लोगों का सबेरा शुरू हो जाता था इसीलिए खाद्यवस्तुओं की खपत घट जाती थी जो भी जैसा भी खाले पच जाता था एवं खाने में प्रोटीन की कमी से भी उतनी बीमारियाँ नहीं होने पाती थीं क्योंकि दूध आदि से ताकत तो मिलती ही जाती थी इसलिए शरीरों में प्रतिरोधक क्षमता होती थी इसी लिए उतनी बीमारियाँ नहीं होने पाती थीं !लोगों के शरीरों में दम होती थी इसीलिए उत्साह होता था और लोग पहलवानी किया करते थे !

    गोबर की खाद से बनस्पत्तियों बनौषधियों को पोषण मिलता था जिससे प्रकृति अनुकूल वर्ताव करती थी किन्तु राक्षसों के राक्षसी भोजन के कारण प्रकृति से सब कुछ नष्ट होता जा रहा है !यही कारण है कभी बाढ़ कभी सूखा और बार बार भूकम्प जैसी आपदाएँ !
  इसी राक्षसी प्रवृत्ति के कारण राक्षसों जैसे दुर्गुण हावी होते जा रहे हैं हत्या बलात्कार लूट मार पीट जैसे बड़े से बड़े अपराध पशुओं को चबाने वालों के विवेक नष्ट होने के कारण होता चला जा रहा है !
   राक्षसों का भोजन करने से राक्षसी मन बनता है राक्षसी विचार आते हैं हत्या बलात्कार लूट धोखाधड़ी जैसे राक्षसी कार्यों में रूचि बढ़ती है बुरी से बुरी वारदातें करने का मन होने लगता है इसलिए यदि अपराध मुक्त समाज का निर्माण करना है तो हमें पशुओं की हत्या से और मांस भक्षण से बचना चाहिए क्योंकि मांस किसी को मारने से मिलता है और मरने वाला पशु अपना मांस खाने वाले को उसके बच्चों एवं परिवार के लोगों को मर जाने रोगी होने परेशान  होने जैसा शाप ही देकर जाएगा आशीर्वाद तो देगा नहीं !इसलिए हमें सुखी रहने के लिए ऐसे दुष्कर्मों से बचना चाहिए !ऐसे लोगों का बहिष्कार करना चाहिए !
  क्या उन लोगों से पूछ कर बनाए जाते हैं जो जीवों के जियो और जीने दो के सिद्धांत को  सुरक्षित रखना चाहते हैं !


नक़ल का कारोबार ! नक़ल सरकार करवाती है या फिर नक़ल रोकने में असफल रहती है सरकार ?

      सरकार नक़ल रोकने का प्रयास नहीं करती है या शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारी कर्मचारी सरकार की परवाह ही नहीं करते हैं और सरकार के तथाकथित नक़ल विरोधी आदेशों को अँगूठा दिखाकर धूम धाम से करवाते रहते हैं नक़ल !और सरकार बेचारी जाँच रिपोर्ट मँगवाते रह जाती है और रिपोर्टें वही लोग बनाते हैं जिनकी कलम से अपनों का अहित कभी हो ही नहीं सकता है !
     नक़ल करवाने में लगी है जो सरकारी मशीनरी   उन पर भी सैलरी उड़ेल रही है सरकार बारी उदारता !एक ओर गरीबों ग्रामीणों मजदूरों किसानों का संघर्ष पूर्ण मुसीबतों भरा जीवन तो दूसरी ओर शिक्षा व्यवस्था के  साथ गद्दारी करने वाले नक़ल करवाने वालों का सुख सुविधापूर्ण जीवन ! सच कहें तो शिक्षा कर्म से जुड़े अधिकारियों कर्मचारियों की घिनौनी करतूतें देखकर अब तो शिक्षा व्यवस्था से ही घृणा होने लगी है अब तो किसी को बताने में भी शर्म  लगने लगी है कि मैंने भी चार विषय से MA किया है !आप स्वयं देखिए -see more.... http://aajtak.intoday.in/karyakram/video/special-report-24th-march-over-ayodhya-and-ram-mandir-1-919535.html

    नक़ल रोकने के लिए जिम्मेदार लोगों ने पूरी ताकत झोंक रखी है नक़ल करवाने में !बारे सरकारी काम काज की शैली !इतनी गद्दारी करते हैं सरकार के अपने लोग इसके बाद भी सरकार उन्हें देती है सैलरी ये सरकार के हिम्मत की बात है किंतु सैलरी जनता की कमाई से देनी होती है इसमें सरकारों का मोह कैसा !
        काम करने के नाम पर गद्दारी करने की सैलरी उठा रहे हैं बहुत लोग !सरकार ख़ुशी ख़ुशी देती जा रही है उन्हें भारी भरकम सैलरी !जितनी सैलरी में आम मार्केट में तीन से चार शिक्षक मिल जाएँ वो भी पढ़े लिखे परिश्रम करने वाले ईमानदार लोग किंतु उतनी सैलरी सरकार अपने एक एक शिक्षक को देती है फिर भी वे लोग यदि शिक्षा व्यवस्था के साथ गद्दारी कामचोरी मक्कारी बेईमानी आदि करने लगें तो दोष सरकार का नहीं तो किसका है !
      सरकारी कर्मचारियों से काम लेना जब सरकार के बश का है ही नहीं और न ले पा रही है फिर उन्हें क्यों दे रही है सैलरी और जनता से क्यों लेती है टैक्स !भ्रष्टाचार मुक्त ईमानदार सेवाएँ उपलब्ध करवाना सरकार की जिम्मेदारी है !इसमें सरकारी कर्मचारी यदि सरकार का साथ नहीं देते हैं तो ये समस्या सरकार के अपने परिवार की है किन्तु सरकार यदि जनता से टैक्स लेती है तो सरकार की सेवाओं के प्रति दिनोंदिन मरते जा रहे जनता के विश्वास को जिन्दा करना सरकार का धर्म है और स्वधर्म का पालन करे सरकार !
    शिक्षाअधिकारी प्रेंसिपल शिक्षक और पुलिस विभाग से संबंधित जो लोग गद्दारी कर रहे हैं छात्रों के भविष्य के साथ उनसे शक्तिपूर्वक निपटे सरकार !सरकारों के भ्रष्टाचार की पोल न खोल दें केवल इसलिए सैलरी लुटाई जा रही है उन्हें !सरकार आगे से आगे बढ़ाती जाती है उनकी भी सैलरी ! उन्हें भी न केवल सारी सुविधाएँ दी जाती हैं अपितु छींकने खाँसने नहाने धोने आदि हर काम की छुट्टी भी देती है सरकार !
    इसमें सरकार के पिता जी का जाता क्या है सैलरी तो जनता की जेब से जाती है वाहा वाही सरकार की होती है छुट्टियों पर छुट्टियाँ घोषित करना कामचोरी को प्रोत्साहित करना नहीं तो क्या है ?
     इन्हें सैलरी नक़ल कराने के लिए दी जाती है क्या ?
      शिक्षक ,प्रेंसिपल और शिक्षाअधिकारी हों या पुलिस विभाग !बच्चों के भविष्य के साथ गद्दारी कर रही है भ्रष्ट सरकारी मशीनरी ! ऐसे लोगों को भी सरकार न केवल सैलरी आदि सारी सुविधाएँ देती जा रही है अपितु इन भ्रष्टाचारियों की भी सैलरी बढ़ाती जा रही है!ये सैलरी देश वासियों के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से प्राप्त टैक्स से देती है सरकार !ये नहीं भूला जाना चाहिए । 
        गरीबों ग्रामीणों मजदूरों किसानों की ओर देखो दिन रात शर्दी गर्मी हमेंशा कर्तव्य पालन में लगे रहते हैं कितना संघर्ष पूर्ण मुसीबत की जिंदगी जीते हैं वे लोग !इनमें बहुत बड़ा वर्ग अच्छे खासे पढ़े लिखे लोगों का है जिनके पास घूस देने के पैसे नहीं थे सोर्स लगाने के लिए दलाल नहीं थे इसलिए उनकी सरकारी नौकरी नहीं लग पाई वे भी बेचारे पढ़े लिखे होनहार लोग आज मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन यापन करने पर मजबूर हैं !दूसरी ओर सरकारें सरकारी विभागों में बैठे गद्दारों मक्कारों कामचोरों बेईमानों को भी सैलरी बाँटे जा रही हैं जो सरकार से भारी भरकम सैलरी लेकर भी अपराधियों और शिक्षा माफियाओं का साथ देते देखे जाते हैं शिक्षा से जुड़े लोग शिक्षा विभाग चौपट करने पर लगे हुए हैं चिकित्सा से जुड़े लोग चिकित्सा विभाग चौपट कर रहे हैं किंतु इन विभागों से जुड़े अधिकारियों के चेहरों पर जिम्मेदारियों का जरा सा एहसास नहीं दिखाई देता है और न ही उनकी कोई भूमिका ही समझ में आती है सरकारी विभागों में एक एकांत कमरा रूपी कोप भवन बना दिया जाता है जहाँ वातानुकीलित वातावरण में समय पास किया करता है भूमिका विहीन ये वर्ग !
      किसान भी अपने खेतों की ओर चक्कर मारने जाते हैं किंतु अधिकारी आफिसों में आराम करते हैं उन्हें उनके विभाग की लापरवाहियाँ मीडिया वाले बताते हैं तब वो बड़े आराम से कह रहे होते हैं मैंने जाँच के आदेश दे दिए हैं रिपोर्ट मँगवाई है दोषियों पर कठोर कार्यवाही होगी किंतु सोचने वाली बात है कि जिनका अधिकारी इतना आलसी हो उसके कर्मचारी कितने सक्रिय और ईमानदार होंगे कल्पना की जा सकती है ! जाँच करने वालों में भी सम्मिलित लोग वे ही होते हैं जो वहाँ उन शिक्षा माफियाओं की मदद कर रहे होते हैं ऐसी परिस्थिति में रिपोर्टें बिलकुल ओके आती हैं न कोई अपराध और न कोई अपराधी !कैमरे झूठ वीडियो गलत !सबजगह रामराज्य !
    खेती के मामलों में भ्रष्टाचार करने वाले लेखपाल से ही उसी से संबंधित भ्रष्टाचार के मामले की मँगवाई जाती है जाँच रिपोर्ट !सरकार के हर विभाग का यही हाल है !सरकारी विभागों का शोषितों पीड़ितों के साथ जाँच नाम का ये इतना भद्दा मजाक है जैसा छोटे छोटे बच्चे अपनी हँसी मजाक के खेलों में भी नहीं खेलते हैं ।इसीलिए सरकारी कामकाज की शैली से उठता जा रहा है जनता का विश्वास ! 
            शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े ईमानदार लोगों का सर शर्म से झुक जाता होगा जब वे देखते होंगे नक़ल करवाने वाले शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों की ऐसी कुकार्यशैली उनकी पीड़ा का एहसास हमें है उनसे क्षमा याचना के साथ मुझे कठोर शब्दों का प्रयोग करना पड़ रहा है !




Sunday, 26 March 2017

बूचड़खाने बैध या अवैध ?बैध बूचड़ खाने क्या पशुओं से सहमति लेकर बनाए जाते हैं क्या ?

बूचड़खाने बैध या अवैध ?बैध बूचड़ खाने पशुओं से NOC लेकर बनाए जाते हैं क्या ?अपराधों और बलात्कारों को घटाने के लिए बूचड़खाने हटाने पड़ेंगे !जो कुछ खाएँगे वैसा मन बनेगा!पशुओं  को मारने खाने वालों से दया की उम्मींद नहीं की जानी चाहिए!

   राक्षसों का भोजन करने से राक्षसी मन बनता है राक्षसी विचार आते हैं हत्या बलात्कार लूट धोखाधड़ी जैसे राक्षसी कार्यों में रूचि बढ़ती है बुरी से बुरी वारदातें करने का मन होने लगता है इसलिए यदि अपराध मुक्त समाज का निर्माण करना है तो हमें पशुओं की हत्या से और मांस भक्षण से बचना चाहिए क्योंकि मांस किसी को मारने से मिलता है और मरने वाला पशु अपना मांस खाने वाले को उसके बच्चों एवं परिवार के लोगों को मर जाने रोगी होने परेशान  होने जैसा शाप ही देकर जाएगा आशीर्वाद तो देगा नहीं !इसलिए हमें सुखी रहने के लिए ऐसे दुष्कर्मों से बचना चाहिए !ऐसे लोगों का बहिष्कार करना चाहिए !
  क्या उन लोगों से पूछ कर बनाए जाते हैं जो जीवों के जियो और जीने दो के सिद्धांत को  सुरक्षित रखना चाहते हैं !पशुओं को खाने वालों से क्यों न पूछा जाए कि यदि तुम गाय भैंसें ऐसे ही चबाते चले जाओगे तो कैसे मिल पाएगा  दूध दही मट्ठा मक्खन घी खोया पनीर रबड़ी आदि असंख्य व्यंजनों और मिठाइयों का स्वादों को उपलब्ध  ! दूध में मिलावट दूध के सभी उत्पादों में मिलावट तिथि त्योहारों में मिठाइयों में मिलावट के लिए जिम्मेदार केवल वो लोग हैं जो पशुओं को खाए जा रहे हैं !बीमारियों के बढ़ने का कारण है दूध और दूध के उत्पादों की कमी और उनकी  शुद्धता का अभाव !खाद्य पदार्थों की कमी का कारण है दूध और दूध के उत्पादों की कमी एवं उनमें भारी मिलावट !
     पुराने ज़माने में दूध और मट्ठे आदि से लोगों का सबेरा शुरू हो जाता था इसीलिए खाद्यवस्तुओं की खपत घट जाती थी जो भी जैसा भी खाले पच जाता था एवं खाने में प्रोटीन की कमी से भी उतनी बीमारियाँ नहीं होने पाती थीं क्योंकि दूध आदि से ताकत तो मिलती ही जाती थी इसलिए शरीरों में प्रतिरोधक क्षमता होती थी इसी लिए उतनी बीमारियाँ नहीं होने पाती थीं !लोगों के शरीरों में दम होती थी इसीलिए उत्साह होता था और लोग पहलवानी किया करते थे !
    गोबर की खाद से बनस्पत्तियों बनौषधियों को पोषण मिलता था जिससे प्रकृति अनुकूल वर्ताव करती थी किन्तु राक्षसों के राक्षसी भोजन के कारण प्रकृति से सब कुछ नष्ट होता जा रहा है !यही कारण है कभी बाढ़ कभी सूखा और बार बार भूकम्प जैसी आपदाएँ !
  इसी राक्षसी प्रवृत्ति के कारण राक्षसों जैसे दुर्गुण हावी होते जा रहे हैं हत्या बलात्कार लूट मार पीट जैसे बड़े से बड़े अपराध पशुओं को चबाने वालों के विवेक नष्ट होने के कारण होता चला जा रहा है !


मंत्री मुख्यमंत्री जैसे पदों पर बैठने वालों के नौसिखएपन से सुपरिचित मशीनरी उन्हें ढाल लेती है अपने अनुशार !

     अधिकारी कर्मचारियों को अपने अपने पदों पर काम करने का लंबा अनुभव होता है और शैक्षणिक योग्यता भी होती है उन्हें पता होता है कि इन नौसिखिए लोगों से कैसी कैसी फाइलों पर कैसे कैसे साइन करा लेने के बाद उनकी सारी उछल कूद बंद हो जाती है फिर वे वैसे ही चलने लगते हैं जैसा मशीनरी कहती है तब तक वो झाड़ू लगवा लें या पोंछा मशीनरी सबकुछ धैर्य पूर्वक सहती है और बिलकुल वैसा ही करती है जैसा वे कहते हैं !किंतु ऐसे पदों पर पहुँचने वाले जो नेता योग्य और अनुभवी होते हैं उन्हें मूर्ख नहीं बना पाती है ये मशीनरी !
    इसके बाद जब उनकी भी टाँग किसी भ्रष्टाचार में अपने साथ फँसा लेते हैं फिर वे भ्रष्टाचार विरोधी सारे राग अलापना बंद कर देते हैं !आदेश निर्देश जैसे शब्दों के प्रयोग से बचते बचाते वैचारिक रूप से बिलकुल शाकाहारी हो जाते हैं पूर्ववर्ती जिन सरकारों के जिन मंत्रियों के भ्रष्टाचार की बड़ी बड़ी फाइलें दिखाते रहे होते हैं उनके विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने की बड़ी बड़ी कसमें खाते रहे होते हैं वो सब भूल जाते हैं बशर्ते मशीनरी जिस दिन उनकी भी टाँग अपने साथ फँसा लेने में सफल हो जाती है उस दिन से उन्हें केवल अपना भ्रष्टाचार याद रहता है बाकी सबके भूल जाते हैं !इसी लिए किसी भ्रष्टाचारी पर प्रायः नहीं हो पाती है कोई विशेष कार्यवाही !बस चुनाव जीतने के लिए केवल उनके नाम गिनाने की रस्म अदा की जाती है ।
    सरकार में नए नए आने वाले लोग थोड़े दिन तो बहुत उछल कूद करते ही हैं ये बात सरकारी हर अधिकारी कर्मचारी समझते हैं क्योंकि उन्होंने ऐसे बड़े नौसिखिया लोगों को काढ़ा होता है !
     उच्च पदों पर बैठे नेताओं का भी जोश तब तक ठंडा होने लगता है और धीरे धीरे उन्हें भी समझ आने लगतीं हैं सरकार चलाने की मजबूरियाँ !वर्तमान राजनीति है ही योग्यता और अनुभव विहीन लोगों प्रतिष्ठित सम्मानित और सम्पत्तिवान बनाने का चर्चित खेल !झूठों का व्यापार है राजनीति !अपराधियों का आश्रय स्थल है राजनीति !मीडिया की रोजी रोटी है राजनीति !अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी का इतंजाम करती है राजनीति !
     

Saturday, 25 March 2017

बलात्कार आपसी सहमति से हो तो बुरा नहीं है क्या !आपसी सहमति नाम पर क्या भटकते बच्चों का बचाव जरूरी नहीं है ?

लड़का या लड़की लोभ देकर या सपने बड़े  दिखाकर फँसा लेता है तो इसे आपसे सहमति माना जाएगा क्या ? बलात्कार या प्रेमी जोड़ों में एक दूसरे की हत्या संबंधी बड़े बड़े कांड अक्सर होते आपसी सहमति से ही हैं !
       वस्तुतः प्रेम प्यार की कहानी समय पास करने से शुरू होती है दहेज़ लोभ के कारण कैरिअर बनाकर अधिक उम्र में व्याह करना पड़ता तब तब शरीर की जरूरतें पूरी करने के लिए खेल जाता है प्रेम प्यार नाम का खिलवाड़ जिसे कोई पार्टनर पहले की अपेक्षा जब ज्यादा अच्छा मिलने की संभावना बन जाती है तब वो पहले वाले को अपने जीवन में काँटा समझने लगता है इसलिए उसे अपने जीवन से बिलकुल हटा देना चाहता है इस प्रयास में वो जी जान से लग जाता है यदि उसका पूर्व पार्टनर उसे आसानी से छोड़ देता है तब तो दुर्घटना ताल जाती है अन्यथा आपसी सहमति से उसे किसी एकांत में बुला लेता है और उससे अपने जीवन से हटाने के लिए जितने भी बड़ा निर्णय लेना पड़ता है लेता है जितना भी बड़ा पाप करना पड़ता है करता है !इस प्रकार से आपसी सहमति नामक  सुविधा का उपयोग करते हुए एक दूसरे की हत्या तक करते देखा जाता है इसलिए इस आपसे सहमति पर भी कुछ सोचा जाना चाहिए और उचित यही होगा कि मित्रता को मित्रता ही रखने के प्रयास किए जाने चाहिए अपित मित्रता को मूत्रता नहीं बनने दिया जाना चाहिए इसके आलावा महिलाओं से सम्बंधित दुर्घटना को टालने का कोई प्रभावी विकल्प दिखाई ही नहीं पड़ता है ! see more.... https://www.facebook.com/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE-%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE--989589957777724/

Wednesday, 22 March 2017

सांसदों विधायकों का सदनों में मन क्यों नहीं लगता है ?चर्चा में अरुचि का कारण अयोग्यता तो नहीं है !

    प्रधानमंत्री जी ! आपको यदि लगता है कि सांसद विधायक आदि भी सदनों में उपस्थित रहकर चर्चा में न केवल सम्मिलित हों अपितु वहाँ बोलने और समझने की प्रक्रिया में भी भाग लें तो आपको चुनावी टिकट ही पढ़े लिखे प्रत्याशियों को उनकी रूचि और जनसेवा कार्य देखकर देनी चाहिए और ऐसा यदि जनता को लगता है तो उसे अपना बहुमूल्य वोट ही पढ़े लिखे सुयोग्य प्रत्याशियों को  देना चाहिए !
       अन्यथा -
      "बोवे पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से होय ।"
     स्कूलों में गैर हाजिर रहने वाले विद्यार्थियों में अक्सर देखा जाता है कि या तो वे पढ़ाई लिखाई में कमजोर होते हैं इसलिए उन्हें कक्षा की चर्चा में कुछ समझ में ही नहीं आ रहा होता है !या फिर पढ़ाई में उनकी रूचि ही नहीं होती है इसलिए स्कूल जाना बंद कर देते हैं । यदि स्कूलों के दबाव से कक्षाओं में चले भी गए तो वहाँ भी तो खेला ही करते हैं और दूसरे छात्रों को भी पढ़ने में बाधा पहुँचाते रहते हैं!
     यह जानते हुए भी कि पढ़ने लिखने में इनकी रूचि नहीं है फिर भी घर वाले तो उन्हें धकिया कर स्कूल इसलिए भेज ही देते हैं कि वहाँ जाकर पढ़ें न पढ़ें किंतु देखने वाले तो समझ ही जाएँगे कि ये भी पढ़ने जाता है तो पढ़ता ही होगा !इससे शादी विवाह आदि होने में सुविधा रहेगी !अभिभावक होने के नाते उनका तो ऐसा  सोचना ठीक भी है किंतु उसकी शादी हो जाए इसलिए स्कूल रोज रोज उसके घर बोलावा भेजे और अपने स्कूल का नाम चौपट करे उसके साथ पढ़ने वाले बच्चों के जीवन से खिलवाड़ करे इसमें स्कूल की क्या मज़बूरी क्या हो सकती है ?स्कूल ऐसे बच्चों का एडमीशन ही क्यों ले !किंतु डोनेशन के लोभ में स्कूलों को ऐसा करना पड़ता है !इसीप्रकार से चुनावी टिकट देते समय भी अक्सर प्रत्याशियों में डोनेशन राशि के आगे बाकी सभी योग्यताओं की उपेक्षा करके नतमस्तक हो जाना होता है !
     स्कूलों  की तरह ही सदनों की कार्यवाही है जो सांसद विधायक सदनों की चर्चा को जरूरी समझते होंगे और वहाँ चर्चा करने और समझने की शैक्षणिक योग्यता रखते होंगे उन्हें तो उस चर्चा में स्वयं ही आनंद आ रहा होगा वे गैर हाजिर रहेंगे ही क्यों ?किंतु जो ऐसा  कर पाने में सक्षम नहीं होते हैं बेचारे वे सदनों में पहुँच भी जाते हैं तो वहाँ भी उनका समय बड़ी मुश्किल से ही कटता होगा !भला हो मोबाइलों का समय बिताने में कुछ मदद उनसे मिल जाती है कुछ मदद वहाँ के सुख सुविधापूर्ण कुर्सियों पर सोने से मिल जाती है कुछ मदद हुल्लड़ मचाने लायक मौक़ा तलाशने और हुल्लड़ मचाने से मिल जाती है और धीरे धीरे इसी प्रकार से समय पास कर लिया जाता है कभी कभी छुट्टी हो जाती है और कभी कभी कर भी ली जाती है ।
     वस्तुतः प्रधानमंत्री जी !सांसदों को सदनों की कार्यवाही में भाग तो लेना ही चाहिए किंतु फिर भी जो नहीं लेते हैं उन्हें संसद में उपस्थित रहने का आपको निर्देश देना पड़ता है जबकि संसद का सुख सुविधा पूर्ण वातानुकूलित वातावरण होता है फिर भी जो लोग बुलाए बुलाए संसद में उपस्थित नहीं रह पाते हैं वे अपने अपने क्षेत्रों में जनता की सेवा कैसे करते होंगे वहाँ तो जो कर लेते होंगे वही बहुत मान लिया जाता होगा !वहाँ तो शर्दी गर्मी में सब लगती है जनता के हितों के लिए समाज एवं सरकारी व्यवस्थाओं से जूझना कोई हँसी खेल तो नहीं होता है !
     ऐसे सांसदों की ऐसी ही लापरवाही के कारण सरकारों की घोषणाएँ लोग अक्सर समाचारों में ही सुन पढ़ लिया करते हैं बाकी सांसदों विधायकों के पास इतना समय कहाँ होता है कि वे सरकार की योजनाओं का जनता को लाभ दिलाने के लिए कोई प्रभावी प्रयास करें !और तो और अधिकाँश सांसदों को तो जन समस्याएँ सुनने का भी समय नहीं होता है वे सरकार प्रदत्त सुख सुविधाएँ भोगने में इतना अधिक व्यस्त रहते हैं कि केवल अपना सांसद होने का झाम दिखाने से ही फुर्सत नहीं होती है !सांसदों की आफिसों में जनता से निपटने के लिए अक्सर भाड़े के लोग बैठा दिए जाते हैं उनमें से जिनको जैसी सैलरी मिलती है वे वैसा वर्ताव कर रहे होते हैं उसमें उनका कोई अपना लाभ हानि तो होता नहीं है इसीलिए जनता की सेवा से उनका क्या लेना देना !          उनके पास हर बात के आर्टिफीशियल जवाब होते हैं  और हर प्रकार की सिफारिस के लिए आर्टीफीशियल लेटरों की गड्डियाँ रखी होती हैं जिन्हें वे बेचारे दिन भर बाँटते रहते हैं और सांसद जी प्रधानमंत्री जी के यहाँ गए हैं ये बात जनता को बताया करते हैं भाग्यवश जिस दिन सांसद लोग जनता से मिलने को बैठते हैं वो समय इतना कम होता है कि परिचय मुलाकात करते ही बीत जाता है तब तक प्रधानमन्त्री जी ने बुलाया है बता कर उठा ले जाए जाते हैं !जनता बेचारी उनके ठाट बाट देखती रह जाती है !
    उनकी आफिस के लोगों ने यदि किसी को सिफारिसी फोन किया भी तो उन्हें खुद पता होता है कि मेरी बात कहीं नहीं सुनी और मानी जाएगी !ये स्थिति अभी भी दिल्ली के प्रायः सांसदों की आफिसों की है जिसका भुक्त भोगी प्रमाण सहित मैं स्वयं हूँ फिर देश के अन्य भागों में आम जनता के साथ कैसा वर्ताव हो रहा होगा इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है ।
   इसलिए प्रधानमंत्री जी !यदि आपको वास्तव में लगता है कि सांसद लोग सदनों में उपस्थित रहें तो टिकट देते समय ही रूचि देखकर टिकट दिलवाइए  अन्यथा सदनों की कार्यवाही में सम्मिलित भी हो जाएँ और वहाँ उनका मन न लग रहा हो कुर्सी पर सोवें मोबाईल में मनोरंजन करें या हुल्लड़ मचाने के मौके की तलाश में बैठे रहें तो क्या लाभ होगा !
      जिनकी रूचि नहीं है आखिर वे वहाँ जाकर भी  क्या करें !जो सांसद बने ही झाम दिखाने फोटो खिंचाने और पैसे कमाने के लिए हों वो क्यों जाएँ !
    देशवासियों से भी मेरा निवेदन है कि यदि आप भी बलात्कारियों से तंग हैं तो चरित्रवान प्रत्याशियों को ही वोट दें !यदि आप भी भ्रष्टाचारियों से तंग हैं तो ईमानदार प्रत्याशियों को ही वोट दें !यदि आप भी देश में लोकतांत्रिक पद्धति को जिन्दा रखना चाहते हैं तो उन पार्टियों को बिलकुल वोट न दें जिनका अध्यक्ष किसी एक फैक्ट्री मालिक की तरह केवल एक ही व्यक्ति या परिवार का सदस्य होता हो ऐसी पार्टियों के विरुद्ध मतदान कीजिए और बचा लीजिए अपने पूर्वजों के प्यारे लोकतंत्र को !जिस प्रत्याशी को टिकट इसलिए मिला हो कि वो किसी नेता की बीबी है नेता की बेटी या बेटा है या किसी नेता के घर खानदान का है या नाते रिस्तेदार है इसलिए उसे प्रत्याशी बनाया गया है ऐसे नेताओं को वोट न खुद दीजिए न किसी और को देने दीजिए संपूर्ण प्रयास करके इन्हें पराजित करके लोकतंत्र बचा लीजिए ! 
   राजनैतिक पार्टियाँ दूध देने वाली भैंसों की तरह हैं जैसे भैंसों के मालिकों को जो पैसे दे वो उसे दूध देते हैं ऐसे ही दलों के दलाल जिन्हें  दाम देते हैं वे उन्हें टिकट देते हैं किंतु आप उन्हें वोट क्यों देते हैं वे आपको क्या देते हैं ?
     राजनेताओं पर दलितों ने भरोसा किया तो आज तक दाल चावल में ही अटका  रखा है उन्हें !दलितों के प्रति हमदर्दी दिखाने वाले नेताओं की कई कई कोठियाँ और करोड़ों के बैंक बैलेंश !और दलित बेचारे जहाँ के तहाँ पड़े हैं !ये दलितों के नाम पर राजनीति से लूटा गया धन नहीं है तो आखिर कहाँ से कैसे आया उनके पास ये भी जानकारी तो सार्वजनिक की जाए !
     लोकतंत्र का मतलब है सबका समान अधिकार किन्तु यहाँ तो केवल नेता हैं और उनके नाते रिस्तेदार बाकी सब मतदाता सब  बेकार !राजनैतिक दलों के अध्यक्ष हैं या ठेकेदार !सब जगह भ्रष्टाचार !!
   देशवासियो ! प्यारे भाई बहनों से निवेदन !आप भी  लोकतंत्र की रक्षा के लिए आगे आएँ !और आप स्वयं विचार करें कि जो नेता लोग आपको कुछ नहीं समझते हैं उन्हें आप भी कुछ मत समझो जो आपको चुनाव लड़ने लायक नहीं समझते उन्हें आप भी वोट देने लायक मत समझो !जो आपको चुनावी टिकट नहीं देते आप भी उन्हें वोट मत दो !      
        जो नेता लोग टिकट देते हैं अपने बीबी बच्चों को !अपने घर खानदान वालों को !अपने नाते रिस्तेदारों को तथा वोट माँगते हैं आप से ! ऐसे पापी पाखंडियों को जिताने के लिए किसी भी कीमत पर आप वोट न दें लोकतंत्र की रक्षा के लिए ऐसे  प्रत्याशियों को पराजित करवाकर पुण्य कमाएँ !लोकतंत्र के सबल साधकों से निवेदन है कि ऐसे भाई भतीजा वादी लोकतंत्र द्रोही प्रत्याशियों को अवश्य सबक सिखाएँ !आपके क्षेत्र में अच्छे अच्छे पढ़े लिखे ईमानदार अनुभवी चरित्रवान लोग भी होते हैं किंतु उनकी उपेक्षा करके नेता लोग या तो अपने नाते रिस्तेदारों को टिकट देते हैं या फिर टिकट बेंच लिया करते हैं ऐसे पक्ष पात का विरोध करने के लिए आप उन्हें हरवाकर अपना जन्म सफल बनाएँ और अपने जीवित होने का सबूत दें !राजनीति में भाई भतीजे वाद को जड़ से उखाड़ फेंकें !
   यदि आप जाति देखकर वोट देंगे तो वो जाति जनाएँगे ही यदि आप संप्रदाय देखकर वोट देंगे तो वो सांप्रदायिक दंगे करवाएँगे ही यदि आप उनका धन देखकर वोट देंगे तो वो भ्रष्टाचार करेंगे ही !
  • प्रत्याशियों की उच्च शिक्षा, अच्छे संस्कार, ईमानदारी ,सेवा भावना और चरित्र देखकर वोट दोगे तो तुम्हें पछताना नहीं पड़ेगा और वेईमानों को वोट दोगे तो वो तुम्हारे नाम पर भी घपले घोटाले ही करेंगे !
  • जैसे छोटी छोटी बच्चियाँ बड़ी होकर दादी बन जाती हैं ऐसे ही बचपन के छोटे छोटे अपराधी भी बड़े होकर आजकल नेता बनने लगे हैं किंतु अभी भी राजनीति में भी कुछ अच्छे और ज़िंदा लोग हैं उन्हें खोजिए और ऐसे प्रत्याशियों को ही वोट देकर आप भी अपने देश और समाज के निर्माण में योगदान दें !ऐसे लोग किसी भी पार्टी के क्यों न हों !
  • भ्रष्ट नेता चुनाव जीतकर यदि मंत्री भी बन जाते हैं तो वे समाज का भला नहीं करेंगे वो तो सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से वसूली ही करवाएँगे !उनसे अपनी सैलरी बढ़वाने के लिए उन्हें पोल खोलने की धमकी देकर वही सरकारी लोग हड़ताल पर चले जाएँगे फिर वे उन्हें मनाएँगे फिर उनकी सैलरी बढ़ाएँगे !ऐसे ही रूठते मनाते बीत जाएँगे 5 साल ! इसलिए अपना वोट बर्बाद मत होने दो !
  •  भ्रष्ट नेताओं को वोट दोगे तो भ्रष्टाचार सहना ही पड़ेगा !कमाओगे तुम खाएँगे नेता और उनके परिवार !
          "राजनीति शुरू करते समय गरीब से गरीब नेता लोग चुनाव जीतते ही करोड़ों अरबोंपति हो जाते हैं कैसे  आखिर उनके पास कहाँ से आता है ये पैसा !ऐसे बेईमानों को वोट देकर ईमानदारी की आशा मत करो !"
  • बलात्कारी नेताओं को वोट दोगे तो बहू बेटियों की सुरक्षा कैसे कर पाओगे ?नेताओं का बलात्कार तो प्यार और गरीबों का बलात्कार ! 
         "बलात्कारी नेता लोगों के पास काम के लिए जाने वाली या पार्टी के पद पाने के लिए जाने वाली महिलाओं के चरित्र से ही ये खेलेंगे !अपने बलात्कार को प्यार बताएँगे और गरीबों के बच्चों पर बलात्कार के आरोप लगते ही उनके लिए फाँसी की सजा माँगेंगे !अपने कुकर्मों पर तो पीड़ितों को डरा धमकाकर या कुछ लालच देकर शांत कर देते हैं आम बलात्कारियों के पास डराने धमकाने और लालच देने की हैसियत नहीं होती है इसलिए उसे फाँसी पर चढ़ाने की माँग करते हैं ये पापी !
  • भूमाफिया नेताओं को वोट दोगे तो वो बेच खाएँगे तुम्हारे पास पड़ोस की सारी सरकारी जमीनें पार्क पार्किंगें आदि !
   नेता लोग जब राजनीति शुरू करते हैं तब गरीब होते हैं चुनाव जीतते ही करोड़ों अरबों पति हो जाते हैं न धंधा करते हैं न नौकरी न व्यापार !न जाने कैसे कर लेते हैं इतनी जल्दी इतना बड़ा चमत्कार ! आखिर उनके पास ये पैसा आता कहाँ से है ?ऐसे लोग सरकारी जमीनें पार्क आदि बेच कर पहले वहाँ बस्तियाँ बसाते हैं फिर  छेड़ते हैं उनके नियमितीकरण का राग !ऐसी पाप की कमाई से पालते हैं वे अपने परिवार !
  • कम पढ़े लिखे नेताओं को सांसद विधायक बनाकर संसद और विधान सभाओं में चुनकर भेजोगे तो वो सदनों में चर्चा कैसे कर पाएँगे ?ऐसे  बुद्धू नेता लोग या तो मोबाईल पर फिल्में देखेंगे या सोएंगे या घूमें टहलेंगे या हुल्लड़ मचाएँगे !अपनी नाक कटवाने के लिए ऐसे अनपढ़ों को चुनकर क्यों भेजते हैं आप लोग !जो सदनों का बहुमूल्य समय बर्बाद करने के लिए पहुँच जाते हैं वहाँ !
     सदनों की कार्यवाही में उच्चस्तरीय चर्चाएँ होती हैं किंतु जो नेता बेचारे न बोल पाते हैं और न समझ पाते हैं वो चर्चा के समय सदनों में ही अपनी कुर्सियों पर सोकर,मोबाईल पर मनोरंजन करके या घूम फिर करके अपना समय कब तक कैसे और क्यों पास करें ! जो लोग बाहर रहकर गाली गलौच लड़ाई भिड़ाई कुस्ती आदि करते रहे हैं वे अंदर मुख बंद करके हाथ पैर बाँधे आखिर कब तक और क्यों बैठे रहें !जो पढ़े लिखे हैं वे अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं ऐसे ही जो नहीं पढ़े लिखे हैं वे अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन क्यों न करें !जिसके आपस जो  योग्यता होती है उसे भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का अवसर तो मिलना ही चाहिए !जिसने जीवन भर केवल पहलवानी की हो वो वहाँ चुप करके कैसे और कितनी देर तक बैठा रहे !


Tuesday, 21 March 2017

न्यायालयों का बोझ घटाने के लिए रोकना होगा सरकारी विभागों का भ्रष्टाचार ! किंतु सरकारें ऐसा करें तब न !

    देश और समाज को सुधारने के लिए सरकारों को पहले स्वयं सुधरना होगा और फिर सुधारना होगा अपने भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की काली कार्यशैली को !इतना होते ही अपराधी स्वयं सुधर जाएँगे!क्योंकि अपराधियों की सबसे बड़ी मददगार होती है सरकार की अपनी भ्रष्ट मशीनरी !
     यद्यपि सरकारी विभागों में आज भी बहुत लोग ईमानदार हैं और उन्होंने आज भी अपनी नैतिकता को जीवित बचा रखा है वो अपने बच्चों को ईमानदारी की कमाई से ही पालाना लन चाहते हैं किंतु कुछ भ्रष्टाचारियों ने जो गन्दगी फैला  रखी है वो सब पर भारी पड़ रही है उससे निपटने की तरकीब सोचे सरकार !अन्यथा सारी कवायद बेकार है !
     सरकारी विभागों के  भ्रष्टाचार  के कारण कानूनों का उपयोग कम दुरुपयोग ज्यादा हो रहा है?सरकारी मशीनरी जनता की समस्याएँ घटाने से ज्यादा बढ़ाने  में रूचि ले रही है ।अरे ये भी तो देखे कि कौन कर्मचारी जनता का काम कितना और कैसा कर रहा है किसी की कोई जिम्मेदारी ही नहीं है हर मामला धकिया कर कोर्ट भेज दिया जा रहा है !रोड बनते ही उखड़ने लगते हैं कहीं पर कोई कब्ज़ा करके बैठ जाता है सरकारी स्कूल अस्पताल डाक खानों से जनता का भरोसा क्या टूटता है क्योंकि वहां जिम्मेदारी नहीं है अपनापन नहीं है कुछ कहो तो कहते हैं कोर्ट चले जाओ !
     धन के बल पर लोग कहीं भी कभी भी किसी भी मामले में टाँग फँसाकर खड़े हो जाते हैं । कुछ धन लोभी अधिकारियों कर्मचारियों का आर्थिक पूजन करके उनसे अपना मनचाहा लिखवा लेते हैं और चले जाते हैं कोर्ट ! किंतु उन्हें यदि वैसा लिख कर देने में जिम्मेदारी बरती जाए तो वो चाहकर भी वे  कैसे बना पाएँगे गलत एवं आधारहीन केस ! सरकारी विभागों की इसी गैर जिम्मेदारी के कारण कितने भले लोग अपनी पुस्तैनी जमीनें और मकान आदि बेचने के लिए मजबूर कर दिए जाते हैं !किंतु सरकार यदि वास्तव में समाज के लिए कुछ अच्छा करना चाहती है तो वो सर्व प्रथम सरकारी विभागों में होने वाला भ्रष्टाचार बंद करे ऐसे भ्रष्टाचारी लोगों के विरुद्ध किसी बड़ी सजा का एलान करे !सभी प्रकार के अपराधों पर अभी अंकुश लगना शुरू हो जाएगा और घटने लगेगा न्यायालयों का अतिरिक्त बोझ !झूठे मुकदमें अभी वापस होने लगेंगे !दबंग लोग आपस में समझौते करने पर मजबूर हों जाएँगे !
       अक्सर अपराधियों को पकड़ने के लिए छापे मारे जाते हैं समाज में और उनका बचाव करने वाले बैठे होते हैं सरकारी विभागों में! सरकार उन्हीं से उमींद पाले बैठी है भ्रष्टाचार रोकने की !उन्हीं के बल पर अपराधों को रोकने की कसमें खा रहे होते हैं सरकारों में बैठे बड़े बड़े नेता लोग !कितने अँधेरे में जीते हैं वो लोग और जनता को भी अपने आधार विहीन सच के सहारे अपराध रोकने का झूठा आश्वासन दिया करते हैं !
      राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गैर कानूनी कामों की शिकायत करने पर भी सुनवाई जब नहीं होती है तो बाकी सारे देश की स्थिति की सहज कल्पना की जा सकती है !दिल्ली में भ्रष्टाचार कम है क्या ! अब तो भ्रष्टाचार उखाड़ फेंकने की कसमें खाने वाले भी मौन हो चले हैं पाप की कमाई खाने वालों के पास इतना नैतिक बल कहाँ होता है कि वे भ्रष्टाचार के विरुद्ध गरज सकें वो जब तक भ्रष्टाचार के अंग नहीं होते हैं तभी तक ही उन्हें भ्रष्टाचार बुरा लगता है किन्तु जब से भ्रष्टाचार परिवार के सदस्य वे खुद भी हो जाते हैं तो भूल जाता है सारा सारा धरना प्रदर्शन !
     दिल्ली में भी खूब हो रहा है भ्रष्टाचार पैसे देकर जायज नाजायज सभी प्रकार के काम किए कराए जा रहे हैं सरकारों में बैठे लोगों के पास इतनी फुरसत कहाँ है कि वे जनता की आखों से देख सकें सरकारी  कर्मचारियों के काम काज की गैर जिम्मेदार कार्य शैली को ! विवाद बढ़ने पर पुलिस कहती है SDM साहब के पास जाओ ! वहाँ जाने पर वो कहते हैं कि EDMC में जाओ ! जब वहाँ पहुँचो तो वो कहते हैं कि कोर्ट चले जाओ !इसी प्रकार से ग्रामीण क्षेत्रों में हैं जो जैसे पैसे दे वैसा लेखपाल लिख देते हैं अपने मनमुताबिक SDM से लिखा लेते हैं अक्सर घूस देने में सक्षम लोग ! इस प्रकार से पैसे ले लेकर दोनों तरफ से मामलों को उलझा देते हैं सरकारी विभाग और फिर उन दोनों को भेज देते हैं कोर्ट! सरकारी विभाग क्या इसीलिए बनाए गए हैं और इसीलिए सरकार उन्हें देती है सैलरी ! आखिर उनकी कोई जिम्मेदारी क्यों नहीं होनी चाहिए गलत लिखकर देने में भय तो उन्हें भी होना चाहिए किंतु क्यों नहीं है !वे केवल एक दूसरे का पता बताते रहें और गैर जिम्मेदारी पूर्वक लिख लिख कर देते रहें और इसके बाद भेज दें कोर्ट !ऐसा कब तक चलेगा और ऐसे तो बढ़ेगा ही माननीय न्यायालयों का बोझ !
    सरकारी मशीनरी यदि ईमानदारी और जिम्मेदारी पूर्वक काम करे तो आधे मामले कोर्ट में जाने से पहले ही निपटाए जा सकते हैं !सैकड़ों झगड़े टाले जा सकते हैं !सैकडों तलाक होने से बचाए जा सकते हैं किंतु वे ऐसा करें क्यों इसमें उनका अपना लाभ क्या है और भ्रष्टाचार करने में उनका अपना नुक्सान क्या है ! आलसी सरकारों की लप्फाजी से सुपरिचित हैं वे लोग भी इसलिए डरें किसको और क्यों डरें !सरकारें अपराधियों पर लगाम लगाने से ज्यादा अपराध के विरुद्ध लड़ने का दिखावा करने में समय बर्बाद करती हैं किंतु अभी तक इस पर लगाम लगाने में असफल रही हैं गैर जिम्मेदार सरकारें !     
     चिंता की बात ये है कि  सरकारी कामकाज करने और कानूनों का पालन जनता से करवाने के लिए जो अधिकारी कर्मचारी नियुक्त किए जाते हैं और उन्हें जनता की खून पसीने की कमाई से सरकार सैलरी देती है वो सरकार उनसे काम भी करवावे ये क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए !उचित तो है कि सरकार उनसे कानून के अनुसार काम ले किंतु यदि सरकारी लापरवाही के कारण ऐसा नहीं किया जा सकता है तो कम से कम इतनी जिम्मेदारी तो सरकार को भी सुनिश्चित करनी ही चाहिए कि सरकार के अधिकारी कर्मचारी गैरकानूनी या कानून के विरुद्ध किए जाने वाले कार्यों में अपराधियों या गुंडों या दबंग लोगों का साथ न दें !फिर भी यदि वे ऐसा ही करते रहते हैं तो ऐसे अपराधों को खोजने और सम्बंधित सरकारी कर्मचारियों और गुंडों माफियाओं को दण्डित करने की कठोर प्रक्रिया विकसित करे सरकार !
    सरकारी विभागों में कम्प्लेन करने अक्सर कमजोर लोग ही जाते हैं किंतु सरकारी मशीनरी के कुछ भ्रष्ट लोग गैर कानूनी कार्यों के विरुद्ध कार्यवाही तो करते ही नहीं हैं अपितु कम्प्लेन करने वाले की सूचना गुंडों अपराधियों या गैरकानूनी काम करने वालों को देकर  कम्प्लेन करने वाले को ही पिटवा देते हैं ऐसे मिलता है सरकारी विभागों में गरीबों को न्याय !इसप्रकार से अपराधों का संबर्धन कर रही है सरकारी मशीनरी और बढ़ रही है अपराधियों का मनोबल !इसीकारण तो दोबारा से कम्प्लेन करने की कोई हिम्मत नहीं जुटा पाता है और गैर कानूनी कार्य हों या अपराध दिनोंदिन बढ़ते चले जाते हैं ।
    सरकार करना चाहे तो अपराधों की संख्या बहुत जल्दी घटा सकती है सबसे पहले भ्रष्टाचारियों और अपराधियों की आमदनी के स्रोत खोजने एवं कुचलने के लिए खुपिया तंत्र विकसित करे ! भ्रष्टाचारी अधिकारी कर्मचारियों को न केवल सस्पेंड किया जाए अपितु उनसे आज तक की सारी सैलरी वसूली जाए इसी प्रकार से दबंगों गुंडों माफियाओं की सारी संपत्तियाँ  जप्त की जाए तब लोग अपराध एवं भ्रष्टाचार करने से डरेंगे !
     जगह जमीनों के कब्जे या अवैध निर्माण हों उन्हें देखने पकड़ने के लिए गूगलमैप का उपयोग किया जाना चाहिए जिस सन में जिन जमीनों पर अवैध कब्ज़ा या अवैध निर्माण किया गया है उस समय में उस क्षेत्र में ऐसे अवैध निर्माण रोकने की जिम्मेदारी जिस भी अधिकारी कर्मचारी की रही हो किंतु वो ऐसा करने में नाकाम रहा हो तो घटित हुए ऐसे अपराधों में उसे रोकने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों कर्मचारियों को बराबर का दोषी माना जाना चाहिए ! उस अपराध के लिए जिम्मेदार मानकर अधिकारियों कर्मचारियों को ऐसे अपराधों में सम्मिलित मानकर उन पर भी कठोर कार्यवाही की जानी चाहिए । इसके अलावा सरकारों और नेताओं के अपराध और भ्रष्टाचार को रोकने संबंधी संकल्प को दोहराते रहने को कोरा  प्रदर्शन मानते हुए ऐसे अपराधों में उनकी भी संलिप्तता  बराबर की मानी जानी चाहिए !भ्रष्टनेताओं की गैर कानूनी कमाई के भी ऐसे ही प्रमुख स्रोत होते हैं !     
     सोचने वाली बात है कि सरकारी लोग ही यदि सरकार के द्वारा निर्मित कानूनों के विरुद्ध घूस लेकर दबंगों और अपराधियों को प्रोत्साहित करेंगे तो कानूनों का पालन कौन करेगा और क्यों करेगा और उसे क्यों करना चाहिए !कालेधन के विरुद्ध सरकार के द्वारा चलाए गए नोटबंदी अभियान में बैंक वालों के द्वारा कालेधन वालों का साथ देने को गंभीर अपराध मानकर उन्हें कठोर दंड से दण्डित किया जाना चाहिए
     सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की गैर जिम्मेदारी लापरवाही और भ्रष्टाचार से ही होता है सभी प्रकार के अपराधों का उत्पादन ! इस पर नकेल कसने में नाकाम रही हैं अब तक की सरकारें किंतु ये बात सबसे अधिक   चिन्तयनीय तब हो जाती है जब ऐसे प्रकरण राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में होने लगे हों !ऐसे में ये अंदाज आसानी से लगाया जा सकता है कि जब राष्ट्रीय राजधानी में ऐसा तो सारे देश में कैसा हो रहा होगा !ये सरकार के लिए भी विशेष चिंता की बात मानी जानी चाहिए !
     अब आप स्वयं देखिए राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का एक ऐसा ही प्रकरण !
       विषय एक बिल्डिंग पर गैर कानूनी मोबाईल टावर लगाए जाने का है यदि दिल्ली जैसी राष्ट्रीय राजधानी की K-71,दुग्गल बिल्डिंग ,छाछी बिल्डिंग चौक,कृष्णानगर दिल्ली -51   बिल्डिंग की छत पर बिल्डिंग में रहने वाले 16 फ्लैट मालिकों की सहमति लिए बिना,EDMC की अनुमति लिए बिना,बिल्डिंग की मजबूती का परीक्षण किए बिना,इस रिहायशी बिल्डिंग में रहने वाले परिवार जनों के स्वास्थ्य पर रेडिएशन के असर का परीक्षण किए बिना ,57 फिट ऊँची बिल्डिंग में ऊँचाई संबंधी नियमों का ध्यान दिए बिना सरकारी विभागों की घोर लापरवाही से इस बिल्डिंग की छत पर एक  मोबाईल टॉवर बिल्डिंग से बाहरी लोगों के द्वारा लगभग सन 2004 में लगा दिया गया था !सभी प्रकार से अवैध और गैर कानूनी होने के बाब्जूद आज 12 वर्षों बाद भी EDMC हटा नहीं पाई है क्योंकि उस गैरकानूनी टावर से होने वाली कमाई में से उनका हिस्सा उनके पास पहुँचा  दिया जाता है ये उस गिरोह से जुड़े लोगों का कहना है ! 
      टॉवर यह बताकर लगाया गया था कि इससे मिलने वाला किराया बिल्डिंग के मेंटीनेंस पर खर्च किया जाएगा किंतु पिछले बारह वर्षों में आज तक एक पैसा भी बिल्डिंग मेंटिनेंस में नहीं लगाया गया EDMC और वही गैर कानूनी लोग मिलबाँट ले रहे हैं टावर से मिलने वाला किराया ।उधर बिल्डिंग दिनोंदिन जर्जर होती जा रही है मेंटिनेंस न होने के कारण बेसमेंट में अक्सर पानी भरा रहने लगा है !बिल्डिंग में रहने वाले लोग इस बात पर अड़े हैं कि जब तक ये अवैध मोबाईल टावर नहीं हटेगा तबतक हम अपने पैसों से बिल्डिंग की मेंटिनेंस नहीं करवाएँगे !किंतु मोबाइल टावर इसलिए नहीं हट पा रहा है क्योंकि इस अवैध मोबाईल टावर को बनाए रखने में EDMC अधिक मेहरवान है वे स्वयं गैरकानूनी लोगों की मदद कर रहे हैं उनसे कोर्ट केस करवाकर उन्हें स्टे दिलवा दिया है और खुद पैरवी नहीं करते हैं जबकि पार्टी EDMC वाले ही हैं उन्हें घूसखोरी के पैसों में आनंद आ रहा है !सरकार मूकदर्शक बनी हुई है कल को यदि कोई दुर्घटना घटती या बिल्डिंग गिर जाती है तो उस हादसे के लिए घूस खोर सरकारी मशीनरी के अलावा और दूसरा कौन जिम्मेदार होगा !
       इस रिहायसी बिल्डिंग की छत पर लगे मोबाईल टॉवर की रिपेयरिंग के नाम पर बिल्डिंग के बीचोंबीच से गई सीढ़ियों से अक्सर छत पर आते जाते रहने वाले अपरिचित एवं अविश्वसनीय मैकेनिकों या उनके बहाने  अन्य आपराधिक तत्वों के द्वारा यदि कोई विस्फोटक आदि  बिल्डिंग में रख दिया जाता है और कोई बड़ा विस्फोट आदि हो जाता है तो इस घूस खोर सरकारी मशीनरी के अलावा दूसरा कौन जिम्मेदार माना जाएगा !
      इस बिल्डिंग में सोलह फ्लैट हैं जिनमें सभी के लिए पानी की सप्लाई हेतु बिल्डिंग की छत पर सामूहिक 12 टंकियाँ लगाईं गई थीं किंतु इसी उपद्रवी गिरोह के दबंगों ने टंकियाँ फाड़ दीं और उनके पाइप काट दिए हैं 9 परिवारों का पानी पिछले तीन वर्षों से बिलकुल बंद कर दिया है किंतु उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं है  हास्यास्पद बयानों में से कुछ की रिकार्डिंग भी है जो सरकार के भ्रष्ट काम काज की अत्यंत भद्दी और निराश कर देने वाली तस्वीर प्रस्तुत करती है !
      बिल्डिंग दिनोंदिन जर्जर होती जा रही है  बिल्डिंग के बेसमेंट में पिछले दो तीन वर्षों से अक्सर पानी भरा रहता है । टॉवर रेडिएशन से लोग बीमार हो रहे हैं किंतु सरकारी मशीनरी घूस के लोभ के कारण अवैध टॉवर हटाने में लाचार है ऐसे लोगों के विरुद्ध सरकार के लगभग सभी जिम्मेदार विभागों में कम्प्लेन किए गए किंतु उन लोगों के विरुद्ध तो कारवाही हुई नहीं अपितु कम्प्लेन करने वालों पर कई बार हमले हो चुके हैं !जो एक बार पिट जाता है वो या तो अपना फ्लैट बेचकर चला जाता है या फिर किराए पर उठा देता है या फिर खाली करके ताला बंद करके चला जाता है या फिर चुप बैठ जाता है । 
        MCD के अधिकारियों की मिली भगत से ये पूरा गिरोह फल फूल रहा है अवैध होने के बाब्जूद पिछले 12 वर्षों से ये टॉवर लगा होना आश्चर्य की बात नहीं है क्या ! इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारी जब कुछ कर ही नहीं पा रहे हैं ऊपर से गैर कानूनी कार्यों के समर्थन में दबंग लोगों की मदद करते जा रहे हैं ऐसे लोगों को सैलरी आखिर दी किस काम के लिए जा रही है !इस अवैध मोबाईल टावर को कानूनी संरक्षण दिलवाने के लिए इसी गिरोह के कुछ लोगों ने मोबाइलटावर हटाने के विरुद्ध  स्टे ले लिया जिनसे पैसे लेकर MCD वाले ठीक से पैरवी नहीं करते इसी प्रकार से इसे पिछले 12 वर्षों से खींचे जा रहे हैं वो किराया खाते जा रहे हैं उन्हें घूस देते जा रहे हैं । ऐसे तो ये अवैध होने के बाद भी कभी तक चलाया जा सकता है ये सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना नहीं तो और क्या है !
     आश्चर्य ये है कि जिस कर्तव्य के लिए जो सरकारी कर्मचारी सरकार से एक ओर तो सैलरी लेता है वहीँ दूसरी ओर अपने संवैधानिक कर्तव्य के विरुद्ध जाकर अवैध और गैर कानूनी कामों को प्रोत्साहित करता है किंतु उनके विरुद्ध कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है !स्टे के कारण कोई अन्य विभाग सुनता नहीं है और ये तब तक बना रहेगा जब तक MCD वालों को घूस मिलती रहेगी !हमलों के डर से बिल्डिंग में रहने वाले लोग केस कर नहीं सकते !किंतु MCD यदि इस टावर को अवैध घोषित कर ही चुकी है इसके बाद भी 12  वर्षों से चलाए जा रही है तो ये अवैध किस बात का !और इसमें हो रहे भ्रष्टाचार की जाँच क्यों नहीं होनी चाहिए !
       इस बिल्डिंग संबंधी भ्रष्टाचार से स्थानीय पार्षद से लेकर सांसद जी का कामकाजी कार्यालय तक सुपरिचित है किंतु बेचारे दबंगों के विरुद्ध कुछ कर पाने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा है SDM साहब भी बेचारे आकर देख सुन कर लौट गए पुलिस विभाग तो ये सुनते ही मौन है कि स्टे है !और EDMC इस स्टे वाले दाँव को अपनी कमाई का साधन मान रही है !
        सरकार की ओर से भ्रष्टाचार के विरुद्ध न केवल कठोर कार्यवाही की जाए अपितु आजतक का प्राप्त किराया भी या तो बिल्डिंग मेंटिनेंस में लगाने के लिए फ्लैट मालिकों को सामूहिक रूप से दिया जाए या फिर राजस्व विभाग में जमा कराया जाए !


Wednesday, 8 March 2017

बेनामी सम्पत्तियाँ बेचारी !सरकार और सरकारी कर्मचारियों की कृपा के बिना कोई बना सकता है क्या ?

  सरकारी विभागों के भ्रष्टाचार में सरकारें बराबर की जिम्मेदार ! सरकार और भ्रष्टाचार एक सरकार के दो पहलू !देखिए कैसे -
       कोई सरकार यदि ईमानदार है तो भ्रष्टाचारियों पर करे कठोर कार्यवाही अन्यथा सरकारी मशीनरी के भ्रष्टाचार में वो भी सम्मिलित मानी ही जाएगी !अब आप स्वयं सोचिए कि सरकारी मशीनरी यदि ईमानदार होती तो क्या ऐसा होने पाता !सरकारी जमीनों पर क्या हो जाते कब्जे !जनता के दिए टैक्स से सैलरी पाने वाले कर्मचारियों से क्या इतनी भी आशा नहीं रखी जानी चाहिए कि वे अपने दायित्व का निर्वाह ईमानदारी पूर्वक करें !जो सरकार उन अधिकारियों कर्मचारियों को भारी भरकम सैलरी सुविधाएँ आदि देने के लिए जनता की छाती पर सवार होकर टैक्स वसूल लेती है वो सरकार यदि उन्हीं कर्मचारियों की कार्यशैली से देश वासियों को संतुष्ट नहीं कर पाती है तो उनके द्वारा किए जाने वाले भ्रष्टाचार में सरकार को बराबरी का जिम्मेदार क्यों नहीं माना जाना चाहिए !
      एक उदाहरण हमारा अपना ही - कानपुर के कल्याणपुर में 1997 में मैंने एक प्लाट लिया था उसके आस पास गाँव की सरकारी जमीन पड़ी हुई थी खुली खुली जगह थी !पता लगा कि यहाँ स्कूल पार्क आदि बनेंगे यह सुनकर मैंने भी ले लिया किंतु थोड़े दिन बाद सरकारी मशीनरी की मिली भगत से वो सारी जमीन बेच दी गई हमारा प्लाट सबसे लास्ट में होने के कारण हमारे यहाँ से रोड बंद है यही देखकर मैंने लिया था किंतु जब सब जमीन बेच दी गई तो जमीन बेचने वाले आए और हमारे घर के सामने वाले रोड के पैसे माँगने लगे अन्यथा सामने वाले प्लॉट वाले को रोड बेच देने की धमकी देने  लगे तीस फिट चौड़ा रोड है अन्यथा बगल वालों से पैसे लेकर उनका गेट हमारे दरवाजे पर खोलने की धमकी देने लगे !
      इसके विरुद्ध सरकार के सारे विभागों में कम्प्लेन करने पर भी हमारा प्लाट वहाँ उन्हीं की कृपा के भरोसे पड़ा हुआ है सरकारी मशीनरी का कोई सहयोग नहीं मिला ! भूमाफिया लोग समय समय पर धमकाते रहते हैं क्योंकि सरकार से सम्बंधित प्रायः सभी विभाग प्रायः भूमाफियाओं से मिले होते हैं । वस्तुतः ये बहुत बड़ा गिरोह होता है जिनकी जड़ें सरकारों के आसन तक पहुँची होती हैं आखिर कैसे रोका  जा सकता है उन्हें !सरकार ऐसे भूमाफियाओं पर कभी कोई कार्यवाही करेगी भी मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा है क्योंकि उसमें अधिकार सरकारों में सम्मिलित लोगों के अपने नाते रिस्तेदार परिचित लोग आदि ही होंगे !आम आदमी अपनी जमीन पर तो कब्ज़ा कर नहीं पाता है वो बेचारा सरकारी जमीनों पर क्या करेगा ! किंतु इतना तो तय है कि बेनामी संपत्तियों के विरुद्ध यदि कोई कार्यवाही हुई तो बहुत लोग सरकार के अपने ही फँसने लगेंगे और कार्यवाही बीच में ही रोक दी जाएगी !फिर भी यदि प्रधान मंत्री मुख्य मंत्री आदि वास्तव में ईमानदार होंगे तो कर भी सकते हैं कठोर कार्यवाही !ऐसे बलवान पुण्यवान चरित्रवान और कर्मनिष्ठ लोगों को चुनौती दे सकने की हमारी हिम्मत नहीं है । 
      हमारे इसी प्लाट के दूसरी छोर पर जो सरकारी जमीन  पड़ी थी वहाँ चौड़ा सा रोड बनाया जाना था किंतु वो भी कुछ बेच ली गई कुछ खरीदने वालों ने बढ़ाकर बना ली अब तो रोड एक चार फिट चौड़ी गली का रूप ले चुका है !इसके साथ ही हमारे घर के साथ वाली जगह में पाँच इंच चौड़ी दीवाल बनाकर उसी पर चार मंजिल का मकान बनाकर खड़ा कर दिया गया है इसमें कोई पिलर नहीं हैं वो भगवान् के सहारे ही खड़ा है गैर क़ानूनी बनाए जाने के कारण सरकार के जिम्मेदार लोग बनाने वाले से अपना अपना हिस्सा लेकर जा चुके हैं । मकान मालिक उसमें किराएदार रखते हैं जो प्रायः स्कूली बच्चे होते हैं वे दीवारों में छेद करके तो देखेंगे नहीं !यदि भूकंप आदि में कभी कोई दुर्घटना घटी तो कितने विद्यार्थियों की जानें जाएँगी कितने घर उजड़ेंगे इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा !
       ऐसे गिर जाने लायक मकान के बगल में होने के कारण हमें हमारा प्लाट बनाने की हिम्मत नहीं पड़  रही है न जाने वो कब अपने मकान पर आकर गिर जाए !इसी कारण वो प्लॉट बिकता भी नहीं है और वही भूमाफिया लोग आधे चौथाई रूपए देकर हमारा रजिस्ट्री शुदा प्लॉट खरीद लेने का कई बार ऑफर दे चुके हैं कहते हैं कि बेच लो !किंतु यदि बेच भी लें तो जहाँ लेंगे वहां की जमीनें भी तो ऐसे ही सरकारी कर्मचारियों की ही देख रेख में होंगी उन्हें भी तो सरकारों के पास सप्ताह पहुँचाना ही होता होगा !इसलिए ईमानदार भले और शांति प्रिय लोगों के लिए भी देश में कोई जगह है क्या ?  देखा जाए तो क्या मैंने ये प्लॉट बेचने की लिए ही ख़रीदा था !किन्तु घूसखोर सरकारी मशीनरी जो न करावे सो थोड़ा है ।
   बेनामी संपत्तियाँ बनाने वालों से घूस ले लेकर कब्जे करवाए गए हैं । सरकारी अधिकारी कर्मचारी एवं तत्कालीन सरकारों में सम्मिलित लोग भी अपना हिस्सा खाते रहे तभी तो चुनाव लड़ने से पहले किराए तक के लिए मोहताज नेता लोग चुनाव जीतते ही अरबो खरबोपति हो जाते रहे हैं ये उन्हीं बेनामी संपत्तियों और आपराधिक कार्यों से अपराधियों के द्वारा दिए गए कमीशन का ही तो धन होता है । 
    इसलिए जिस सन में जिन संपत्तियों पर कब्ज़ा किया गया है उस सन में उसे रोकने की जिम्मेदारी जिनकी थी उन्हें सरकार इसी काम की सैलरी देती रही और वो देश की सैलरी खाकर गद्दारी करते रहे दॆश वालों के साथ !पहले उन्हें पकड़ा जाए और उनसे कबुलवाया जाए कि उन्होंने किससे कितने रूपए लेकर कौन कौन सी जमीनें कब्ज़ा करवाई थीं वो सारा पैसा सूत ब्याज सहित उनसे वसूला जाए तब की जाए उन परकार्यवाही !
     


सरकारों में बैठे घूसखोरी के लिए जिम्मेदार लोगो !जरा सोचो -

       श्रद्धा से कोई नहीं देता है घूस !बिना घूस दिए ही यदि उत्तम सरकारी सेवाएँ मिलने लगें तो कोई क्यों देगा घूस !घूस का इतना अधिक प्रचलन सरकारों की गैर जिम्मेदारी लापरवाही और भ्रष्टाचार में संलिप्तता आदि को सिद्ध करता है ।सरकार सरकारी विभागों के अधिकारियों कर्मचारियों को जिस दिन जनता की आँखों से देखने लगेगी उस दिन मिट सकता है घूस का प्रचलन !
      सरकारों में सम्मिलित जिम्मदार लोग अपनी अपनी आत्मा को साथ लेकर सरकारी विभागों में  जाएँ और सरकारी स्कूलों में जाकर देखें और अभिभावक भावना से विचार करें कि यहाँ यदि हमारा अपना बच्चा पढ़ता हो तो .......! क्या सरकारी शिक्षा संतोष जनक  है और यदि नहीं तो क्यों ?इसके लिए वास्तव में जिम्मेदार है कौन !किसकी लापरवाही से  बर्बाद हो रही है सरकारी शिक्षा ?यदि आप सजीव हैं तो सह पाएँगे क्या अपनी लापरवाहियों गैर जिम्मेदारियों को !
     ऐसा ही सरकारी अस्पतालों आदि सभी सरकारी सेवाओं में करें अपने आप आँखें खुल जाएंगी जब सरकारी सेवाओं से परेशान  होते अपने बच्चों एवं परिजनों की इसी दुर्दशा के विषय में सोचेंगे !संसार नाशवान  है इस दृष्टि से भी देखिए कि कल हम आप यदि नहीं रहे तो हमारे आपके बच्चे अपने छोटे छोटे कामों के लिए इन्हीं सरकारी विभागों में हैरान परेशान  होकर घूमेंगे और घूसखोर सरकारी कर्मचारी उन्हें भी जलील करेंगे उनसे भी घूस माँगेंगे वो असक्षम पत्नी अपनी ज्वेलरी बेचकर इन्हें घूस देकर आपके अपने बच्चे का सरकारी अस्पतालों में इलाज करा रही हो ये आपकी आत्मा सह पाएगी क्या !आपके बूढ़े पिता और बूढ़ी माँ अपने पोते की अंगुली पकड़ कर लड़खड़ाते चले जा रहे हों और सरकार की इसी भ्रष्ट मशीनरी से अपने कामों के लिए गिड़गिड़ा रहे हों किंतु उनसे भी घूस माँग रहे हों ये लोग !क्या सह पाएगी तुम्हारी अपनी आत्मा !यदि नहीं तो आज से ही ऐसे काम करते चलिए ताकि कल आपके अपने परिजनों को आपकी अपनी लापरवाहियों के कारण परेशान  न होना पड़े !और वे तुम्हें तुम्हारी इस समय की लापरवाहियों के लिए कोसते और न भटकते घूमें !                                                                                                          निवेदक :  आपका अपना वाजपेयी
  • घूस खोरी इतनी शर्मनाक !आप स्वयं देखें खोलें यह लिंक -

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