Tuesday, 25 February 2014

भाजपा को आत्म मंथन करना चाहिए कि कि जीत के जोश में कहीं कुछ भूल तो नहीं हो रही है !

    क्या भाजपा का लक्ष्य भी केवल चुनाव जीतना ही तो नहीं है क्योंकि जनता तो भाजपा के दृढ़ सिद्धांतों की समर्थक है !

     भाजपा में इस समय अति उत्साह का वातावरण है और होना भी चाहिए क्योंकि काफी दिनों बाद राष्ट्रीय चुनावी चर्चा के केंद्र में भाजपा पहुँच पाई है ये हम सब लोगों के लिए अत्यंत उत्साही अवसर है इसमें कोई संदेह की बात भी नहीं है,किन्तु मुझे आशंका है कि भाजपा हमेंशा से चुनावी उत्सवों (रैलियों)में भरोसा करती रही है उसका कारण है इतने अच्छे उत्सव किसी और पार्टी में होते भी नहीं हैं और इतिहास भूगोल से सम्मिश्रित इतने हृदयाकर्षक वीर रस से ओतप्रोत भाषण भी कहीं और नहीं होते हैं, हों भी कैसे ! भाषणों के नाम पर कुछ लोग गाली गलौच करते हैं और कुछ  नकलची लोग अपना भाषण लिखाकर ले जाते हैं और पढ़कर चले आते हैं किन्तु ऐसे लोग भी बिना कुछ किए धरे भी पिछले दस वर्षों से देश में शासन कर रहे हैं!केवल इतना ही नहीं देश में सबसे अधिक वर्षों तक शासन करने का गौरव भी उन्हें ही प्राप्त है आखिर ऐसा कौन सा गुण है उनमें जो भाजपा के पास नहीं है मंथन इस पर हो तो अच्छा है देखना यह है कि अपने सिद्धांतों की रक्षा करते हुए ऐसा क्या कुछ सुधार किया जा सकता है जिससे कि लोक सभा के चुनावों का परिणाम अपने पक्ष में किया जा सके । यद्यपि इस विषय में भाजपा की शालीनता सराहनीय है!

      अभी तक यह देखा जाता रहा है कि जिन उत्सवों में जितनी अधिक संख्या में लोग बड़े धूम धाम से भाजपा के साथ  सम्मिलित होते रहे हैं उतने वोट नहीं मिलते रहे हैं यही कारण है कि चुनावों से पूर्व की भाजपा की रैलियों में उमड़ती भीड़ हमेंशा से भाजपा को भ्रमित करती रही है  आखिर क्या हस्र हुआ था सन 2004 के फीलगुड का ! 

     कुछ सिद्धांत हीन लोगों के साथ सैद्धांतिक जीवन जीने वाली भाजपा ने चुनावी गठबंधन किए हैं उन पार्टियों के मुखिया वो लोग हैं जो भाजपा के सैद्धांतिक समर्थकों की निंदा आलोचना किया करते हैं या उनसे जातिगत द्वेष रखते हैं उन्हें भाजपा की गोद में बैठा देखकर कैसे पचा पाएगा उसका सैद्धांतिक वोटर !इसलिए उसकी भावनाओं का ध्यान रखकर ही कोई समझौता करना ठीक रहेगा अन्यथा वो वोटर भी स्वतन्त्र है !वैसे भी ऐसे लोग कब दगा दे जाएँ  कैसे विश्वास किया जा सकता है ?मेरी चिंता बस यही है कि मुश्किल से मिला यह मौका कहीं भाजपा के हाथ से निकल न जाए !

    एक और बात है कि मोदी जी के व्यवहार में  गुजरात वाद का जिक्र सबसे अधिक होता है ऐसा क्यों ?जब बात प्रदेशों की करनी हो तब गुजरात की चर्चा में क्या बुराई है किन्तु समता बनाए रखने के लिए गुजरात के साथ साथ उन प्रदेशों की भी चर्चा वैसे ही खुले मन से की जानी चाहिए जैसे गुजरात  की चर्चा  की जाती  है !

      दूसरी बात मोदी जी जब प्रधान मंत्री हैं  तो अपने पूर्व पुरुष श्री अटल जी की सरकार की खूबियाँ भी गिनावें ! 

   वैसे भी अपनी बारी की प्रतीक्षा करते करते पिछले कई चुनावों से जनता की अदालत में अनुपस्थित सी होती रही दिल्ली  भाजपा चुनाव लड़ने की केवल खाना पूर्ति मात्र करती रही है,इसीलिए पार्टी की छवि दिनोंदिन धूमिल होती चली गई किन्तु  अब जनता की अदालत में सेवा भावना से भाजपा को भी  अपनी  हाजिरी लगानी ही होगी!अब भाजपा को किसी की शर्त के सामने घुटने नहीं टेकने चाहिए!केवलअपने कार्यकर्ताओं के समर्पण बल पर चुनाव लड़ना चाहिए।बाबा बैरागी या फिल्मी अभिनेताओं की गुड़बिल के पीछे खड़े होकर  चुनावों में जीत जाने पर भी पार्टी के स्वाभिमान या आत्म सम्मान के तौर पर न जाने क्यों भाजपा हार ही जाती है इसीलिए उसकी अपनी छवि में निखार नहीं आ पाता है। इससे पार्टी पर वो लोग हमेंशा अपनी धौंस चलाना चाहते हैं जिन्होंने भाजपा को जिताने का मिथ्या बहम पाल रखा होता है।वैसे भी पार्टी अपने कार्यकर्ताओं के कठोर परिश्रम से ही जीतती है किन्तु जब पार्टी से असम्बद्ध लोग भाजपा की नीतियों को  हाइजेक करके भाजपा के ही माथे पर उसी की नीतियाँ अपने नाम से मढ़ने लगते हैं जिसे  सुन कर भी मौन रह जाता है पार्टी का शीर्ष नेतृत्व !

    ऐसी गतिविधियों से पार्टी के प्रति दशकों से समर्पित कार्यकर्ता अपने को अपमानित महसूस करने लगते हैं इसलिए किसी आगन्तुक सैलिब्रेटी का सहयोग लेने में कोई बुराई नहीं है किन्तु उसके समर्थक थोड़े से वोटों के लालच में उसी के हवाले पार्टी करने की अपेक्षा उचित होगा कि बड़े मुद्दों पर भाजपा के अपने कार्यकर्ताओं की भी रायसुमारी हो !इस प्रकार की विनम्र भाजपा यदि समाज में जाएगी तो आम आदमी पार्टी का औचित्य ही क्या रह जाएगा !

      कुछ हो न हो किन्तु भाजपा को एक बात तो समाज के सामने स्पष्ट कर ही देनी  चाहिए कि उसे आम समाज के सहारे चलना है या साधू या सैलिब्रेटी समाज के ? जो चरित्रवान विरक्त तपस्वी एवं शास्त्रीय स्वाध्यायी संत हैं उनके धर्म एवं वैदुष्य में सेवा भावना से सहायक होकर विनम्रता से साधुओं का आशीर्वाद लेना एवं उनकी समाज सुधार की शास्त्रीय बातों विचारों के समर्थन में सहयोग देना ये और बात है! सच्चे साधू संत भी अपने धर्म कर्म में सहयोगी दलों नेताओं व्यक्तियों कार्यक्रमों में साथ देते ही  हैं किन्तु उसके लिए कोई शर्त रखे और वो मानी जाए ये परंपरा किसी भी राजनैतिक दल के लिए  ठीक नहीं है ! 

        विदेश से कालाधन लाने जैसी भ्रष्टाचार निरोधक लोकप्रिय योजनाओं के लिए भाजपा को स्वयं अपने कार्यक्रम न केवल बनाने अपितु घोषित भी करने चाहिए ताकि ऐसी योजनाओं का श्रेय केवल भाजपा और उसके लिए दिन रात कार्य करने वाले उसके परिश्रमी कार्यकर्ताओं को मिले।वो भाजपा की पहचान में सम्मिलित हो जिन्हें लेकर दुबारा समाज में जाने लायक  कार्यकर्ता बनें उनका मनोबल बढ़े !अन्यथा कुछ योजनाओं का श्रेय नाम देव ले जाएँगे कुछ का कामदेव और कुछ का वामदेव! भाजपा के पास अपने लिए एवं अपने कार्यकर्ताओं के लिए बचेगा क्या ? ऐसे तो दस लोग और मिल जाएँगे वो भी अपने अपने दो दो मुद्दे भाजपा को पकड़ा कर चले जाएँगे भाजपा उन्हें ढोती फिरे श्रेय वो लोग लेते रहें ।

      इसलिए भाजपा को मुद्दे अपने बनाने चाहिए उनके आधार पर समर्थन माँगना चाहिए । अब यह समाज ढुलममुल भाजपा का साथ छोड़कर अपितु सशक्त भाजपा का  ही साथ देना चाहता है। 

        इसके अलावा जो ऐसी शर्तें रखते हैं ऐसे लोगों के अपने समर्थक कितने हैं और वो उनका कितना साथ देते हैं यह उनके आन्दोलनों  में देखा जा चुका है किसी ने पुलिस के विरोध में एक दिन धरना प्रदर्शन भी नहीं किया था सब भाग गए थे । 

        दूसरी बात संदिग्ध साधुओं की विरक्तता पर अब सवाल उठने लगे हैं अब  लोग किसी बाबा की अविरक्तता  सहने को तैयार नहीं हैं किसी भी व्यापारी या ब्याभिचारी बाबा से अधिक संपर्क इस समय लोग नहीं बना  रहे  हैं सम्भवतः इसीलिए कथा कीर्तन भी दिनोदिन घटते जा रहे हैं ।

       इसलिए भाजपा समर्थकों का भाजपा से निवेदन है कि वो अपने मुद्दों पर ही समाज से समर्थन माँगे तो बेहतर होगा !

      



Friday, 21 February 2014

आखिर नेताओं के पैर क्यों  छूते  हैं अफसर ?see  more....http://snvajpayee.blogspot.in/2014/02/blog-post_19.html

संसद और विधान सभाओं में क्यों बढ़ने लगीं हैं अमर्यादित घटनाएँ ?see  more....http://snvajpayee.blogspot.in/2014/02/blog-post_19.html

पढ़े लिखे अफसरों की राय कुछ  अशिक्षित नेताओं से कैसे मेल खा सकती है ?see  more....http://snvajpayee.blogspot.in/2014/02/blog-post_19.html

 राजनीति में कोई पद पाने के लिए शिक्षा अनिवार्य क्यों नहीं होनी चाहिए ?see  more....http://snvajpayee.blogspot.in/2014/02/blog-post_19.html

सुशिक्षित अफसरों की आत्मा अशिक्षित नेताओं के अनुशासन को सह नहीं पा रही है इसीलिए सारे काम ठप्प पड़ते जा रहे हैं आखिर राजनीति के लिए शिक्षा आवश्यक क्यों नहीं होनी चाहिए ?see  more....http://snvajpayee.blogspot.in/2014/02/blog-post_19.html

क्या अपनी बेइज्जती से बचने के लिए नेताओं के पैर छूते  हैं अफसर !see  more....http://snvajpayee.blogspot.in/2014/02/blog-post_19.html

अधिकाँश शिक्षित लोग राजनीति में फिट क्यों नहीं बैठते हैं see  more....http://snvajpayee.blogspot.in/2014/02/blog-post_19.html

Monday, 17 February 2014

बेलेन्टाइन डे !आधुनिकता के नाम पर इतना गिर गए हैं हम !क्या प्रेम की परंपरा हमारे यहाँ पहले नहीं थी !

     बेलेन्टाइन लाइफ मनाने वाले बलात्कारी क्यों ?

    बेलेन्टाइन के नाम पर सार्वजनिक जगहों पर चूमना चाटना कुत्ते बिल्लियों की तरह नंगपन और बेशर्मी ओढ़ लेना कहाँ तक ठीक !ऐसे संबंधों में सम्मिलित जोड़ों की सुरक्षा कैसे करे पुलिस जो सम्बन्ध ही धोखाधड़ी पर आधारित होते हैं उन्हें कैसे और कब तक रखावे पुलिस !

    समाज  बेलेन्टाइन डे मनावे और पुलिस लट्ठ लिए इन्हें रखाते घूमे ! अब  देश में पुलिस के लिए बस इतना  ही काम   रह गया है क्या ? ये लैला मजनूँ ऐय्याशी करते घूमें पुलिस इनके पीछे पीछे फिरै !आतंकी उपद्रव करें तो करते रहें !

    जिस देश में कन्याओं का पूजन बड़ी श्रद्धा पूर्वक किया जाता रहा हो एवं जिसकी  परंपरा में महिलाओं के सम्मान प्रतिष्ठा मान मर्यादा की रक्षा के लिए  कई बड़े बड़े युद्ध लड़े गए हैं  वही देश कन्याओं एवं महिलाओं की सुरक्षा पुलिस के सहारे छोड़कर खुद बेलेंटाइन डे मनावे और पुलिस से कहे हमें रखाइए और हमसे  बचा लीजिए देश की बहू बेटियाँ बच्चियाँ एवं महिलाएँ !कितना आश्चर्य है !!! उनसे कौन पूछे कि आखिर पुलिस ही क्यों बचा ले ?क्या आपका इन बहू बेटियों  बच्चियों एवं महिलाओं से  अपना कोई सम्बन्ध नहीं है आखिर आप क्यों मौन हैं आपकी इस कायरता का राज क्या है ?

     क्या आपने पहले भी कभी सुना था कि श्रद्धा पूर्वक कन्याओं का पूजन करने वाला अपना सैद्धांतिक समाज अपनी ही बच्चियों को कालगर्ल कहे और वो सुनें सहें कुछ न कहें! समाज का बलात्कारी वर्ग  जैसी वेष भूषा में उन्हें रखना चाहता  हो वैसे ही रहें ! इतना ही नहीं उन्हीं कन्याओं को और  भी ऐसे ही नामों से पुकारा जाए  जैसे कालगर्ल, अकालगर्ल, मेट्रोगर्ल, पार्कगर्ल, पार्किंगगर्ल, झाड़ीगर्ल, जंगलगर्ल आदि और भी जो गर्ल हो सकती हैं वे सब !ये सब वही कन्याएँ हैं क्या जिन्हें भारत कभी पूजा करता था इन्हीं के पीछे क्या ऐसे ही नामों वाले ब्वायज पड़े हुए हैं क्या ?उन्हें रोकने का हमारे पास कोई उपाय नहीं है क्या ?

     इस कन्या पूजन वाले देश में यह क्या हो रहा है?कईबार डांस बार,या और तरीके की जगहों पर छापा पड़ते टी.वी.चैनलों पर देखा जाता है।जब इतनी छोटी छोटी सँकरी,अँधेरी, गंदी जगहों से लड़कियाँ  निकाली जाती हैं जहाँ कुत्ते बिल्ली भी नहीं रह सकते।यह माना जा सकता है कि कुछ जगहों पर वो बलपूर्वक ले जाई गई हों जहाँ उनका दोष न होता हो किन्तु उन जगहों की भी कमी नहीं है जहाँ इसे धंधा मानकर  व्यापारिक दृष्टि से आपसी सहमति पूर्वक चलाया जा रहा होता है।उसमें सम्मिलित सभी को सैलरी मिलती है।ऐसे ब्यभिचारिक अड्डों को भी फैक्ट्री और ऑफिस जैसे नामों से संबोधित किया जाता है।ऐसे अड्डों से या इसी प्रकार के और भी घिनौने कार्यों से किसी भी रूप में किसी भी उम्र में सम्मिलित रह चुके लोग हर उम्र में ऐसे ब्यभिचारों का समर्थन करते दिखते हैं एवं इसमें सम्मिलित लोगों की बातों ब्यवहारों का समर्थन करते करते उसी में सम्मिलित हो लेते हैं। बहुत ऐसे सफेदपोश लोग ऐसे ही कुकृत्यों से पोल खुलने पर पूरे पूरे  मटुक नाथ बनकर निकलते हैं।

     ऐसे भटके हुए मटुक  नाथ लोग बार बार विदेशों के उदाहरण देते हैं आखिर क्यों?विदेश तो विदेश है और स्वदेश स्वदेश! वहाँ उनको वैसा अच्छा लगता है वो उनकी संस्कृति है यहाँ वैसा नहीं अच्छा लगता है ये अपनी संस्कृति है।यहाँ के सारे लोगों को विदेशों में घुमाया नहीं जा सकता है वहाँ के सारे लोगों को यहाँ लाया नहीं जा सकता है।अगर वहाँ घूमकर आए लोग यहाँ वालों पर अपना अनुभव ऐसे ही थोपेंगे तो ये सब्जी या नमक में चीनी मिलाना भारत के आम आदमियों के साथ कहाँ का न्याय है?

       कुछ लोगों को छोड़कर यहाँ का  गरीब या रईस आम आदमी किसी भी जाति,समुदाय, संप्रदाय से जुड़ा हो वह अपने प्राचीन संस्कारों पर आज भी गर्व करता है।उन्हें ही उसने देखा है और उसी में वह जिया भी है। बात अलग है कि कुछ लोग जैसे विदेशों की दुर्गन्ध स्वदेश में फैला रहे हैं उसी प्रकार से कुछ शहरों में घूम चुके लोग अपनी दुर्गन्ध वहाँ गाँवों में भी  फैला रहे हैं।गाँवों में भी शहरों के ही कुछ लोगों की तरह ही ऐसे बिना पेंदी के लोटे तैयार होने लगे हैं किन्तु गाँवों में लोगों के पास समय है वो आपसी बात ब्यवहार से ऐसे बदबूदार लोगों का बहिष्कार कर लेते हैं और खुश हो जाते हैं।वहाँ लोग बेशर्मी करके नहीं जी सकते क्योंकि  उनके घर और खेत आदि इतनी आसानी से बदले नहीं जा सकते।उन्हें कई कई पीढ़ियाँ एक एक जगह ही बितानी पड़ती हैं जिसकी बेटी-बहन ने प्रेम या प्रेम विवाह कर लिया होता है उसके दूसरे बेटा बेटियों के विवाह आदि काम काज होने मुश्किल हो जाते हैं।समाज के कितने ताने सुनने  सहने होते हैं उन्हें? कितनी सभा सोसायटियों से किया जा चुका होता है उनका बहिष्कार ?उनकी पीड़ा वही जानते हैं और जितना वो जानते हैं उसी में वो जी भी लेते हैं।

      जिसकी बेटी-बहन ने प्रेम या प्रेम विवाह कर लिया होता है उनका गाँवों में रह पाना बहुत कठिन हो जाता है वो मजबूरी में शहरों की ओर भाग खड़े होते हैं शहर वाले बढ़ती जनसंख्या के लिए उन्हें दोषी ठहरावें तो ठहरावें।आखिर कहाँ जाएँ वे?जिनके युवा होते  बच्चों ने  गाँवों में आधे अधूरे कपड़े पहन कर लड़कियों या महिलाओं  को रहते नहीं देखा है वो शहरों में ऐसा सब कुछ देख कर पागल हो उठते हैं फिर वो डायरेक्ट बेलेंटाइन डे मनाने लगते हैं।बड़ी बड़ी बसों ट्रेनों कारों में घुस घुस कर  जबर्दश्ती  बड़ी बुरी तरह से मनाते हैं बेलेंटाइन डे।चोट जिसके लगे घावों का एहसास उसे हो उनकी गंभीरता उसे पता  हो जिसे इलाज करना हो।उनकी पीड़ा का अनुभव वह करेगा जिसके  हृदय हो किन्तु जो गया ही बेलेंटाइन डे मनाने हो उसे क्या लेना देना इन दकियानूसी बातों से? कोई मरे तो मरे उसको तो अपने बेलेंटाइन डे से मतलब!क्या कहा जाए किसी को? सबको अपनी अपनी पड़ी है।

      जिनका विदेशों में जाना आना है वो वहाँ जो देखकर  आते हैं उसे बताने की उन्हें भी ऐसी खुजली उठती है कि वो यहाँ बताए या जताए बिना रहते नहीं आखिर विदेश घूम कर जो आए हैं। केवल बेलेंटाइन डे मना लेने से यह देश अमेरिका की तरह समृद्ध हो जाएगा क्या ?या आधे चौथाई कपड़े पहनकर क्या सम्पन्नता लौट आएगी और लोग शिक्षित और आधुनिक समझे जाएँगे?क्या इससे महिला पुरुषों के अधिकारों की रक्षा हो जाएगी? और यदि यही है तो सभी लोग पहले बिना कपड़े पहने रहें फिर पुलिस उन्हें रखाती घूमे इतने पर भी पुलिस को दोषी ठहराया जाए।ऐसे तो पुलिस बस यही कर पाएगी बाकी सारे अपराधियों से कौन निपटेगा ?हाँ,बेलेंटाइन डे जरूर ऐसा हो जाएगा कि लोग देखते रह जाएँगे।

  यदि विदेश घुमक्कणों  को  इतनी ही शौक थी कि हमारे देश में भी बेलेंटाइन डे धूम धाम से मनाया जाए तो वहाँ से कोई ऐसा रास्ता खोज कर लाते ताकि भारत के आम आदमी की आर्थिक स्थिति भी सुधरती उससे गरीबों के बच्चों का बौद्धिक, शैक्षणिक,सामाजिक आदि स्तर भी सुधरता सोच उन्नत होती,महँगे कपड़ों में क्रीम पाउडर आदि लगाकर ये भी महँगी कारों में दन दनाते घूमते तो बसों ट्रेनों पर क्यों झपटते? इन्हें देखकर   भी  आधुनिक लड़के लड़कियाँ  लव लवाते इनके साथ भी   बेलेंटाइन डे मनाते।ऐसा तो किया नहीं विदेश घुमक्कणों ने जो धन कमाकर लाए वो तो अपने और अपने बच्चों के लिए और जो वहाँ के कुसंस्कारों की सड़ांध लाए वो सारे देश में फैला दी।बिना शिर पैर की

फोकट की बकवास तो कोई भी कर सकता है बिना पैसों के  उसे हकीकत में  बदल पाना  कितना कठिन होता है ये उन्हें ही पता होता है जिन पर बीतती है।जिन्हें दो टाइम का भोजन मुश्किल हो वो कैसे कहाँ और किससे  मनाएँ  बेलेंटाइन डे? ऐसे जिन गरीबों  को  बेलेंटाइन डे की बहुत जल्दी है वो कहीं किसी पर भी झपट रहे हैं और डायरेक्ट मना रहे हैं बेलेंटाइन डे।जिनको थोड़ी समाई है वो चोरी,चकारी, चैनचोरी, अपहरण फिरौती आदि से धन इकट्ठा करके नियमानुशार  मनाते हैं बेलेंटाइन डे।आखिर गरीब आदमी मेहनत से तो दाल रोटी ही कमा ले वही बहुत बड़ी बात है।बाकी  बेलेंटाइन डे के लिए तो ऊपरी पैसा  तो चाहिए ही ।

     जहाँ तक प्रेम या प्रेम विवाहों की बात है शहरों की तरह उनके पास पैसे नहीं होते कि वो किसी भी प्रकार की बदनामी होने पर अपना मकान दुकान बेंचकर किसी नई या अपरिचित जगह चले जाएँ और  हाथ में रिमोट लेकर टी.वी.चैनल बदल बदल कर अंधे बहरों की तरह जीना शुरू कर दें सुबह शाम कथा कीर्तन में सहभागी बनकर धार्मिकता का लबादा ओढ़े रहें।तथाकथित सत्संगों में बढ़ रही भीड़ इसी भावना से इकट्ठी हो रही है अन्यथा यदि इतने लोग धार्मिक होते तो देश और समाज की दशा ही कुछ और होती!जो माता पिता संघर्ष पूर्वक, समर्पण पूर्वक, स्नेह पूर्वक पाल पोष  कर  अपने बच्चों को बड़ा करते हैं उनके हर उत्सव,उन्नति,सुख, दुःख आदि में अपने को सीमित कर लेते हैं विवाह आदि के लिए के लिए भी तमाम  तरह के सपने सजाए होते हैं।ऐसे नित्य नमन करने योग्य उन समर्पित माता पिता को अपने माता पिता पद से सस्पेंड करके जो नवजवान अपनी सेक्सी समझदारी के भरोसे अपने को संतान पद से पदच्युत करके पुरुष या पति -पत्नी ,प्रेमी-प्रेमिका आदि पद पर प्रतिष्ठित  करते हैं।काश,उन्हें भी माता पिता की पीड़ा का हो पाता अहसास !जिसकी घुटन में उन्हें बितानी होती है सारी जिंदगी।    

  अगर किसी कूड़े दान के पास लड़के बुलाते हैं तो लड़कियाँ पहुँचती भी हैं वहाँ आखिर क्यों? झाड़ी, जंगल, पार्क ,पार्किंग आदि किसी भी स्थल पर लड़के बुला लेते हैं लड़कियाँ आसानी से चली जाती हैं।वो लिपटा रहे होते हैं वो लिपट रही होती हैं।जिन लड़कों की ईच्छा का वे इतना सम्मान करती हैं यदि उन लड़कों की शादी हो जाती है या उन दोनों में किसी एक को  कोई और उससे अच्छा मिल जाता है तो वो उसके हो जाते हैं किन्तु इनमें जिसके साथ छल हुआ होता है उसे कितनी तकलीफ होती है ये उसी की आत्मा जानती है ।ऐसे लड़के लड़कियों को न जाने क्या क्या सुनना सहना पड़ता है कितना अपमानित होना पड़ता है अपने आप से घृणा होने लगती है।

       प्रेम कभी भी इतना दुःखदाई  नहीं हो सकता है यह तो बासना है जो हमेशा ही दुःख देती है।विदेश का एक समाचार नेट पर पढ़ रहा था कि किसी ऐसे ही तथाकथित प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को बुलाया था किन्तु किसी कारण से वह नहीं आ सकी तो उसने घोड़ी के साथ सेक्स किया। 

जब गर्लफ्रेंड नहीं आई तो घोड़ी को बनाया हवस का शिकार  

इस हेडिंग को अभी भी नेट पर देखा जा सकता है।

यह लिखने का हमारा उद्देश्य मात्र इतना है कि प्रेमिका न आने का कोई अफसोस नहीं हुआ उसका काम घोड़ी से चल गया।यह कैसा प्रेम ?प्रेम तो वह होता है कि उसकी प्रेमिका से कितनी भी अधिक सुंदरी स्त्री  के समर्पण को भी वो स्वीकार न करता तो कुछ प्रेम कहा जा सकता था । आप स्वयं सोचिए कि किसी का अपना लड़का कम सुन्दर भी तो वह प्रेम उसी से करता है किसी और के लड़के से नहीं ।

      जिस प्रेमी के मन में  प्रेमिका और घोड़ी की आवश्यकता लगभग एक समान हो धिक्कार है ऐसे प्रेमी प्रेमिकाओं को जो केवल सेक्स के लिए जुड़ते हैं और उसे प्रेम या प्यार कहते हैं।

    लड़कियों के समर्पण का यह कितना बड़ा अपमान है फिर  भी बेलेंटाइन डे !यह घोर आश्चर्य का विषय है।यह तो विशुद्ध रूप से बासना अर्थात सेक्स ही है उसे अपने संतोष के लिए कह कुछ भी लिया जाए!

     शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि एक कुत्ते के शिर में चोट लगने से घाव हो गया है जिसमें कीड़े पड़ने से खुजली होती थी जिसे एक छोटे घड़े में शिर रगड़ कर खुजलाते  समय अचानक उसका शिर उस छोटे घड़े में जाकर फँस जाता है जो निकलता नहीं है इतनी पीड़ा सहकर भी वह कुत्ता इस गलत फहमी में  कुतिया का पीछा करना नहीं छोड़ता है कि वह अपनी प्रेमिका के  प्रेम  में समर्पित है।जबकि सच यही है कि वह प्रेम नहीं अपितु सेक्स की भूख मिटाने के लिए पागल है । घोड़ी और प्रेमिका की समानता भी इस युग का उसी तरह का उदहारण है।  

   जो पटने पटाने में सफल हो गए उनका तो  बेलेंटाइन  डे, जो नहीं सफल हुए उनका  बैलेंटाइन डे वही घोड़ी वाली परंपरा अर्थात बैलों की तरह जोड़े की तलाश में जोर जबर्जस्ती करते घूमना फिर चाहे वह बस का कुकृत्य ही क्यों न हो ? आखिर कहाँ है पवित्र प्रेम ! 

  जब से इस तथाकथित बेलेंटाइन  डे प्रेम या प्रेम विवाह का प्रचलन बढ़ा तब से महिलाओं का सम्मान भाषणों चर्चाओं में बढ़ रहा है किन्तु वास्तविकता में घटता जा रहा है उन्हें पटने पटाने का प्रचार चल रहा है।भारतवर्ष में हमेंशा से सम्मानित रही नारी का वजूद अब इतना रह गया है मात्र ?क्या उनका अपना कोई सम्मान जनक स्थान नहीं होना चाहिए? उनकी सुरक्षा की तैयारियाँ चल रही हैं।आखिर क्या दिक्कत है उन्हें?जब देश में सुरक्षा का वातावरण बनेगा तो महिलाएँ भी सुरक्षित हो जाएँगी आखिर उन्हें समाज से अलग क्यों समझा जा रहा है?  आज प्रेम और प्रेम विवाहों के नाम पर  सारी वर्जनाएँ टूटती जा रही हैं।अब किसी भी रिश्ते की लड़की को पटाने के प्रयास होने लगते हैं जब मटुक नाथ ने अपनी शिष्या को पटा लिया तब किस पर भरोसा किया जाए?कोई किसी को पटा ले!एक विवाहिता स्त्री किसी के प्रेम जाल में फँसकर अपने पति एवं बच्चों को छोड़ देती है।इसीप्रकार कोई विवाहित व्यक्ति किसी अन्य लड़की के चक्कर में पड़कर अपनी शादी शुदा जिंदगी को तवाह कर लेता है बच्चे भटकते फिरने लगते हैं ।इसीप्रकार रास्तों में  पार्कों, होटलों, आफिसों,स्कूलों आदि  में प्यार का खेल केवल इसी बल पर चल रहा होता है कि यदि बात आगे बढ़ जाएगी तो कोर्ट में विवाह कर लेगें। बेशक वे लोग एक दूसरे को लव मैरिज के नाम पर धोखा ही दे रहे हों किन्तु उस समय उन युवक युवतियों को एक दूसरे पर विश्वास करने के अलावा कोई चारा नहीं होता है।लव और लव मैरिजों के नाम पर सबसे अपमान उन दोनों के माता पिता का होता है जिन्होंने संस्कार सुधारने के नाम पर कि कहीं बच्चे भटक न जाएँ इस लिए उन्हें प्यार व्यार के चक्कर में न पड़ने की सलाह दी थी, जब वही लड़की  बहू और दामाद बनकर उसी माता पिता के अपने ही घर में खातिरदारी करा रहे होते हैं,और उन बूढ़ों का अपमान कर रहे होते हैं तो क्या बीतती है उन पर ?

     उस समय यदि युवकों को रोका न गया होता तो बस के बलात्कार कांड जैसे किसी अपराध में फँसते तो वही सामाजिक खुले पन का समर्थक समाज उनके लिए फाँसी की सजा माँगता! ऐसे युवकों के माता पिता आखिर क्या करें, उनका दोष आखिर क्या है?जिन्हें आधुनिकता के नाम पर ये जलालत झेलने पर मजबूर होना पड़ता  है ? 

      कई बार ऐसा भी देखा गया है कि किसी एक व्यक्ति के प्रेम जाल में फँसे  किसी युवती या युवक का सम्बन्ध किसी अन्य युवक या युवती  से होने पर सम्बंधित सभी युवक युवतियों  का जीवन धार पर लगा होता है। अर्थात इसमें कौन किसकी कब हत्या कर दे या किस पर तेजाब फेंक दे कहना बड़ा कठिन होता है। कई बार ऐसे युवक युवतियों के परिवारजन  भी ऐसे संबंधों के पक्ष या विरोध में हिंसक रूप से उतर जाते हैं जिसमें वो संबधित लड़के के साथ साथ अपनी लड़की के भी जीवन से खेल जाते हैं अर्थात उसे भी मार देते हैं।

     महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर अब  बड़ी बड़ी बातें की जाने लगी हैं किन्तु सुरक्षा किससे करनी है?जब इस बात पर विचार करना होता है तो सोचना पड़ता है कि जो नपुंसक नहीं है ऐसे किसी भी व्यक्ति के हृदय समुद्र में कब किस लड़की या स्त्री को देख कर तरंगे उठने लगें कब किस सुंदरी को देखकर संयम के तट बंध टूट जाएँ और तरंगें ज्वार भाटा का रूप ले लें किसी को क्या पता ?इन विषयों में किसी और पर कैसे विश्वास किया जाए?जब अपने मन का ही विश्वास नहीं है।इसीलिए ऋषियों के द्वारा हजारों वर्ष तक ब्रह्मचर्य का अभ्यास करने के बाद भी थोड़ी सी चूक में कब किसका  मन किस पर आकृष्ट हो जाए कहना बहुत कठिन है।कई बार किसी महिला का शील भंग करने वाले व्यक्ति को निजी तौर बहुत आत्म ग्लानि होती है किन्तु अब वह अपने हृदय का भरोसा किसी को कैसे कराए ?

     महिलाओं का सम्मान एवं विश्वास सुरक्षित रखने के लिए ही शास्त्रकारों ने अपने मनों पर लगाम लगाने का प्रयास किया और कहा कि युवा पुरुषों के लिए आवश्यक है कि  माता मौसी बहन तथा बेटी रूपी स्त्री के साथ भी एकांत में न बैठे।

                 माता स्वस्रा दुहित्रा वा  

भगवान शंकराचार्य ने कहा है इस दुनियाँ में वीरों में सबसे बड़ा वीर वही है जो स्त्रियों के चंचल नेत्रों को देखकर भी जिसका  मन मोहित न हो ।

           प्राप्तो न मोहं ललना कटाक्षैः 

इसी प्रकार महिलाओं के विषय में लिखा गया कि कोई स्त्री यदि किसी की सुन्दरता पर मोहित हो जाए तो वह भाई ,पिता, पुत्र भी क्यों न हो यह सब भूलकर स्त्रियाँ केवल सुन्दरता पर समर्पित हो जाती हैं---

                  भ्राता   पिता   पुत्र   उरगारी ।

                  पुरुष मनोहर  निरखत नारी।। 

     और भी इसीप्रकार की बातें योगवाशिष्ठ  रामायण में भी लिखी गई हैं । 

      महिलाओं के विषय में कहा गया है कि महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा बासना अर्थात  सेक्स आठ गुणा अधिक होता है किंतु उस बासना को सहने के लिए ईश्वर ने महिलाओं में धैर्य भी बहुत अधिक मात्रा में दिया है। लिखा गया है कि 

        तत्रा शक्या निवर्तन्ते नराः धैर्येण योषितः।। 

     बात अलग है कि जहाँ  ये धैर्य के तटबंध टूटते हैं वहाँ  अक्सर बड़ी बड़ी दुर्घटनाएँ  घटते देखी जाती हैं। 

इसी प्रकार पुराने ऋषियों ने ही अपनी खोज में बताया कि  पुरुष  जब तक  अतिवृद्ध नहीं होता है तब तक बासना कि दृष्टि से उसका मन कभी भी  किसी भी स्त्री पर आकृष्ट हो सकता है इसलिए किसी स्त्री के लिए वह पुरुष मन  विश्वसनीय नहीं  हो सकता ।

      चूँकि बासना अर्थात सेक्स का सारा खेल इसलिए मन के आधीन होता है -

                   मनो हि मूलं हर दग्ध मूर्तेः 

   इसलिए ध्यान रखना चाहिए कि जिसका मन जब जितना अधिक प्रसन्न होता है उस समय उसके मन में  बासना उतनी अधिक होती है इसीलिए राजा, महाराजा, धनी,मंत्री आदि सफल संपन्न लोग अक्सर औरों की अपेक्षा सुरा सुंदरी के अधिक शौकीन होते हैं।

 जब बासना घटती है तो लोग उदास हो जाते हैं  घूमने टहलने आदि कार्यों से बासना को बढ़ाकर मन को प्रसन्न करते  हैं अर्थात मनोरंजन करने के लिए या यूँ कह लें कि बासना बढ़ाने या मन को रिचार्ज करने जाते हैं । जो लोग मनोरंजन के लिए जाते समय किसी लड़की या लड़कियाँ किसी लड़के को साथ लेकर घूमने टहलने  जाते हैं ।वह भी कई तो आधे अधूरे कपड़े पहनकर कर जाते हैं। कई तो फ़िल्म आदि देखने जाते हैं ऐसे समय वहाँ सब कुछ होना संभव होता है ।ऐसी परिस्थितियों से बचा जाना चाहिए।लव मैरिज प्रतिबंधित होते ही युवक युवतियों

में प्रेम विवाह सम्बंधित आशा ही नहीं रहेगी। जिससे पटने पटाने का चक्कर समाप्त होगा और महिलाओं का अपना सम्मान पुनः प्रतिष्ठित होगा । 

   पुराने समय में मान्यता थी कि सुंदरी स्त्री पति के प्राणों पर कभी भी भारी पड़ सकती है अर्थात या तो वो किसी पर मोहित होकर उस  प्रेमी के साथ मिलकर पति को नष्ट करती हैं या फिर वो प्रेमी स्वयं ही अपने प्रेम में  बाधक समझकर उस सुंदरी स्त्री के पति को नष्ट कर देते हैं ।इसीलिए महर्षि चाणक्य ने लिखा है कि      भार्या रूपवती शत्रुः    !!!

      प्रेम विवाह के सन्दर्भ में ज्योतिष शास्त्र का मानना है कि जीवन में जो सुख किसी को नहीं मिलने होते हैं उनके प्रति बचपन से ही उसके मन में असुरक्षा की भावना बनी रहती है।इसी लिए उस व्यक्ति का ध्यान उधर ही अधिक होता है और वो उस दिशा  में बचपन से ही प्रयास रत होता है।
          सामान्य जीवन में ऐसा माना जाता  है कि जीवन में आपको जिस चीज की आवश्यकता हो वह इच्छा होते ही जैसा चाहते हो वैसा या उससे भी अच्छा मिल जाए। इसका मतलब होता है कि यह सुख आपके भाग्य में बहुत है अर्थात यह उस विषय का उत्तम सुख योग है, किंतु जिस चीज की इच्छा होने पर किसी से कहना या मॉंगना पड़े तब मिले  ये मध्यम सुख योग है, और यदि तब भी न मिले तो ये उस बिषय का अधम या निम्न सुख योग मानना चाहिए।और यदि वह सुख पाने के लिए पागलों की तरह गली गली भटकना पड़े  लोगों के गाली गलौच या मारपीट या और प्रकार के अपमान या तनाव का सामना करना पड़े तब मिले या तब भी न मिले तो इसे  संबंधित विषय का सबसे निकृष्ट  सुख योग  समझना चाहिए।
       अब बात विवाह की सच्चाई यह है कि शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन है,जिसमें आज प्रचलन विवाह या प्रेम विवाह दो ही हैं।विवाह चाहें जितने प्रकार के जो भी हों किन्तु विवाह का अभिप्राय पत्नी या पति से मिलने वाला सुख है। यह सुख जिसे जितनी आसानी से जैसा चाहता है  वैसा या उससे भी अच्छा मिल जाता है तो वह विवाह के विषय में  उतना  अधिक भाग्यशाली होता है, किंतु जो  समय से पहले विवाह  की इच्छा होने से परेशान रहने लगे पढ़ाई छोड़कर  या काम छोड़ कर माता पिता आदि स्वजनों की ईच्छा के विरुद्ध  लुक छिप कर वैवाहिक सुख के लिए किसी से कहना या माँगना पड़े तब मिले  ये मध्यम सुख योग है, और यदि तब भी न मिले तो ये उस बिषय का अधम या निम्न सुख योग मानना चाहिए।और यदि वह सुख पाने के लिए पागलों की तरह गली गली भटकना पड़े  लोगों के गाली गलौच या मारपीट या और प्रकार के अपमान या तनाव का सामना करना पड़े तब मिले या तब भी न मिले तो इसे  संबंधित विषय का सबसे निकृष्ट विवाह योग  समझना चाहिए।इस प्रकार जिसमें सब तरफ से तनाव,अपमान,परेशानियाँ,या हानि ही हानि हो  वह प्रेम विवाह कैसे हो सकता है क्योंकि पवित्र प्रेम तो परमात्मा का स्वरूप होता है और जो परमात्मा का स्वरूप  है उससे तनाव कैसा ?सच यह है कि ज्योतिष की दृष्टि से यह   बीमार विवाह योग है विवाह पूर्व इसका पता लगा लगने पर इसकी शांति कर लेनी चाहिए जिससे सारा जीवन बर्बाद होने से बच जाता है।ऐसे विषयों में सही जाँच एवं जानकारी करके बिना  किसी बहम के सही मार्गनिर्देशन के लिए हमारे संस्थान की ओर से भी विशेष व्यवस्था की गई है। 

       उत्तम विवाह योग में प्रायः ऐसा देखा जाता है कि लड़का अभी कह रहा होता है  कि अभी हमें शादी नहीं करनी है अभी पढ़ना या अपने पैरों पर खड़ा होना है  किंतु माता पिता अपनी जिम्मेदारी समझकर विवाह कर रहे होते हैं ऐसे विवाह में यदि उनका पति पत्नी में आपसी स्नेह भी उत्तम हो जाए, तो ये सर्वोत्तम विवाह योग होता है। इसमें उस लड़के को अपनी बासना अर्थात सेक्स की इच्छा प्रकट नहीं करनी पड़ी, इसलिए माता पिता के लिए वो हमेंशा शिष्ट,शालीन,सदाचारी आदि बना रहता है। ऐसे माता पिता अपने बच्चे का नाम बड़े गर्व से हमेंशा  लिया करते हैं कि उसने कभी किसी की ओर आँख उठाकर देखा भी नहीं है। ऐसा उत्तम विवाह योग किसी किसी लड़के या लड़की को बड़े भाग्य से मिलता है। बाकी जितना जिसे तड़प कर,बदनाम होकर या जलालत सहकर पति या पत्नी का सुख मिलता या नहीं भी मिलता है उतना उसे इस बिषय में भाग्यहीन या अभागा समझना चाहिए।
   ऐसे ही वैवाहिक भाग्यहीन लोग प्रेम का धंधा करना शुरू कर देते हैं एक को छोड़ते दूसरे को पकड़ते दूसरे से तीसरा आदि ।ऐसे लोग इस विषय में कई बार हिंसक हो जाते हैं।बलात्कार,छेड़छाड़,हत्याएँ ऐसे ही बीमार विवाह योगों के लक्षण हैं।जिनके भाग्य में कम बीमार विवाह योग होता है उनका नुकसान कम होते देखा जाता है।ऐसे समझदार लोग संयम और शालीनता  पूर्वक ये सब करते हैं, कुछ ऐसा  नहीं भी करते हैं सहनशीलता के साथ संयमपूर्वक अच्छा बुरा कैसा भी हो एक जीवन साथी चुन लेते हैं और उसी के साथ अपना भाग्य समझ कर निर्वाह भी करते हैं  ।

    सामान्य रूप से असहन शील असंयमी  बीमार विवाह योग वाले लोग ऐसा करते करते थक कर  कहीं संतोष  करके मन या बेमन किसी के साथ जीवन बिताने लगते हैं जिसे देखकर लोग कहते हैं कि उनकी तो बहुत अच्छी निभ रही है।सच्चाई तो उन्हें ही पता होती है।ऐसे ही निराश  हताश लोग कई बार अपनी जिंदगी को तमाशा ही बना लेते हैं कई बार हत्या या आत्महत्या तक गुजर जाते हैं वो ऐसा समझते हैं कि वे प्रेम पथ पर मर रहे हैं जब सामने वाला या वाली को उससे अच्छा कोई और दूसरा मिल गया होता है तो वो पहले वाले से पीछा छुड़ाने के लिए उसे कैसे भी छोड़ना या मार देना चाहता है।ऐसे लोगों का एक दूसरे के प्रति कोई समर्पण नहीं होता है जबकि प्रेम तो पूर्ण समर्पण पर चलता है कोई भी प्रेमी अपने प्रेमास्पद को कभी दुखी नहीं देखना चाहता।
  कई ने तो एक साथ कई कई पाल रखे होते हैं।ऐसे लोग कई बार सार्वजनिक जगहों पर एक दूसरे के साथ शिथिल आसनों में बैठे होते हैं या एक दूसरे के मुख में चम्मच घुसेड़ घुसेड़  कर खा खिला रहे होते हैं। इसी बीच तीसरी या तीसरा आ गया उसने ज्योंही किसी और के साथ देखा तो पागल हो गया या हो गई जब पोल खुल गई तो लड़ाई हुई कोई कहीं झूल गया कोई कहीं झूल गई।भाई ये कैसा प्रेम? ये तो बीमार विवाह योग है।यहॉ विशेष  बात ये है कि इस पथ पर बढ़ने वाले हर किसी लड़के या लड़की की जिंदगी बीमार विवाह योग से पीड़ित होती है।इसी लिए ऐसे लोग अपने जैसे बीमार विवाह वाले साथी ढूँढ़ ढूँढ़कर उन्हें ही धोखा दे देकर अपनी और अपने जैसे अपने साथियों की जिंदगी बरबाद किया करते हैं।जैसे आतंकवादियों को लगता है कि वे धर्म के लिए मर रहे हैं इसीप्रकार ऐसे तथाकथित प्रेमी भी अपनी गलत फहमी में प्राण गॅंवाया करते हैं।
ऐसे लोगों की जन्मपत्रियॉं यदि बचपन में ही किसी सुयोग्य ज्योतिष विद्वान से दिखा ली जाएँ तो ऐसे योग पड़े होने पर भी ऐसे लोगों को  अच्छे ढंग से प्रेरित करके जीवन की इस त्रासदी से बचाया जा सकता है। 

राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान की सेवाएँ 


     यदि आप ऐसे किसी बनावटी आत्मज्ञानी, बनावटी ब्रह्मज्ञानी, ढोंगी,बनावटी तान्त्रिक,बनावटी ज्योतिषी, योगी उपदेशक या तथाकथित साधक आदि के बुने जाल में फँसाए जा  चुके हैं तो आप हमारे यहाँ कर सकते हैं संपर्क और ले सकते हैं उचित परामर्श ।

       कई बार तो ऐसा होता है कि एक से छूटने के चक्कर में दूसरे के पास जाते हैं वहाँ और अधिक फँसा लिए जाते हैं। आप अपनी बात किसी से कहना नहीं चाहते। इन्हें छोड़ने में आपको डर लगता है या उन्होंने तमाम दिव्य शक्तियों का भय देकर आपको डरा रखा है।जिससे आपको  बहम हो रहा है। ऐसे में आप हमारे संस्थान में फोन करके उचित परामर्श ले सकते हैं। जिसके लिए आपको सामान्य शुल्क संस्थान संचालन के लिए देनी पड़ती है। जो आजीवन सदस्यता, वार्षिक सदस्यता या तात्कालिक शुल्क  के रूप में  देनी होगी, जो शास्त्र  से संबंधित किसी भी प्रकार के प्रश्नोत्तर करने का अधिकार प्रदान करेगी। आप चाहें तो आपके प्रश्न गुप्त रखे जा सकते हैं। हमारे संस्थान का प्रमुख लक्ष्य है आपको अपनेपन के अनुभव के साथ आपका दुख घटाना,बाँटना  और सही जानकारी देना।


Thursday, 13 February 2014

क्या मोदी जी मौत के सौदागर हैं !

 मोदी जी पर दंगों का दोष आखिर क्यों मढ़ा जा रहा है ?

   जो लोग भारतीय कानून व्यवस्था पर भरोसा करते हैं उन्हें ये बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि उन दंगों में मोदी जी का यदि रंच मात्र दोष भी होता तो उन्हें माफ कोई क्यों कर देता ! जिसमें केंद्र में उन मोदी विरोधियों की सरकार है जो मोदी जी को बिना दोष के दिन रात कोसते हैं फिर  यदि कोई दोष सिद्द हो ही जाता तो वो लोग मौन आखिर क्यों रहते !अर्थात अबतक मोदी जी की सजा का इन्तजाम हो चुका होता किन्तु बिना दोष के बिचारे वे लोग भी क्या करें !

     अब मोदी जी को खून का सौदागर वो बोले जो दिन रात उस पार्टी के समर्थन में बोलता हो जिसकी केंद्र में सरकार है यह बात उस पार्टी से ही उन्हें पूछनी चाहिए कि मोदी जी को अभी तक वो बचा क्यों रही है और यदि बचा रही है तो ये और चिंता का विषय है इसका सीधा सा मतलब है कि उसे अपना कोई पुराना पाप ऐसा करने से मना  कर रहा है कि यदि हमने कार्यवाही की तो कल मोदी जी यदिप्रधान मंत्री बनेंगे तो बदला ले सकते हैं तब क्या होगा क्या इस भय से केंद्र में सत्तारूढ़ दल मोदी जी पर किसी तरह की कार्यवाही से बच रहा है यदि ऐसा है भी तो मोदी जी को खून का सौदागर कहने वाले नेता जी केंद्र सरकार से खुद क्यों नहीं पूछ लेते हैं कि भाई मोदी जी को गाली देने के लिए आपने हम लोगों को तो भाड़े पर लगा रखा है किन्तु आप कोई कार्यवाही करने से डरते क्यों हैं आपकी तो उनसे पटरी भी खूब खाती है पूछ लीजिए तो सारा दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा ! किन्तु आपको पूछने में डर क्यों लग रहा है कहीं आपको ये तो नहीं लग रहा है जिस सजा से सुसज्जित होकर आप स्वयं कुछ दिनों के लिए बाहर निकल कर आए हैं कहीं सारी जांचें नए शिरे से न होने लगें जो मुशीबत और अधिक बढ़ जाए और यदि वास्तव में ऐसा नहीं है तो कहीं आपको जबसे सजा हुई है तब आप किसी को अपना साथी बनाने के  लिए ये आरोप जबर्दस्ती मढ़ रहे है किंतु आपका उद्देश्य यदि साथी बनाना ही है तो उस पार्टी के लोगों को ले जाइए जिनसे आप यहाँ भी मित्रता निभाते रहे हैं वो लोग वहाँ भी साथ देंगे वहाँ भी माल बहुत है बड़ा भ्रष्टाचार हुआ है ले जाइए न उन्हें !किन्तु मोदी जी के चरित्र दर्पण में आप अपना चित्र देखकर भ्रमित मत होइए !अब भलाई आपकी भी इसी में है कि मान लीजिए मोदी जी निर्दोष ही हैं !


मोदी जी अभी तक की जांच रिपोर्टों में दोषी सिद्ध नहीं किए जा सके हैं फिर भी देश की कई बड़ी पार्टियाँ और नेता अपने स्वार्थ के कारण मोदी जी को 2002 के दंगों का दोषी मानते हैं



Wednesday, 5 February 2014

सपा सरकार की मौज ही मौज!पहले सैफई महोत्सव फिर भैंसों की खोज !

आखिर कब जागेगी उत्तर प्रदेश की जनता और सरकार से माँगेगी  अपने धन का हिसाब एवं लेगी ऐसी सरकारों से  अपने अपमान का बदला ?

       क्या मुलायम सिंह को बनना चाहिए प्रधानमंत्री ? किन्तु जिन  पर प्रदेश की जनता ने भरोसा किया और वे  उसके नहीं हो सके तो देश उन  पर भरोसा  कैसे करे ?

    सरकारों में बैठे लोगों को क्या जनता के प्रति  इतना भी जवाबदेय  नहीं होना चाहिए ! आखिर क्यों उन्हें इस बात का संकोच नहीं  होना चाहिए कि वो  जो कर रहे हैं उसका असर उस जनता पर क्या पड़ेगा जिसने उन्हें सत्ता सौंपी है !केवल सैफई वालों के वोट से तो वे मुख्यमंत्री बन नहीं गए! ऐसा भी नहीं है कि केवल आजम खान को खुश करना ही सरकार का केवल लक्ष्य हो !

       मुलायम सिंह जी को समझना चाहिए कि अगर आप वास्तव में समाजवादी हैं तो आपका समाजवाद इतना संकीर्ण क्यों है जो आपको परिवारवादी ,जातिवादी ,सैफईवादी बना देता है और कभी कदाचित मुश्किल से आप यदि इन दीवारों से बाहर  निकले भी तो आपको पार्टीवादी बना देता है।आखिर क्या कारण है कि आप प्रदेश और देशवादी नहीं बन पाए !मान्यवर !क्या यही आपका समाजवाद है क्या मुख्यमंत्री बनने की आपकी यही योग्यता है इसी के बल पर बनना चाहते हैं प्रधानमंत्री !

       काँग्रेस की कमजोरी ,भाजपा की कलह,बसपा की संकीर्णता से ऊभ चुकी प्रदेश की जनता ने अपना समझ कर आपको सत्ता सौंपी थी किन्तु आप उस जनता के अपने नहीं हो सके मात्र कुछ लोगों के होकर रह गए !कितना बुरा तब लगता है जब उत्तर प्रदेश की सरकारी मशीनरी कोई काम न करके अपितु किसी परेशान व्यक्ति की मदद नहीं कर रही होती है और वह निराश हताश आदमी उस जिले के डी.एम.को लिखित अप्लिकेशन देता है महीनों बीत जाने पर भी जब कोई सुनवाई नहीं होती है तो दुबारा वो जब डी.एम. के यहाँ जाता है तो उनका पी.ए. उस प्रार्थी के कान में कहता है कि इस समय साहब किसी और का कोई काम नहीं सुन रहे हैं केवल मुलायम सिंह जी के घर और पार्टी वालों की ही बात सुनते हैं और उन्हीं का काम करते हैं बाक़ी किसी की नहीं! वो कहते है कि जब चलनी ही सपा की और उनके लोगों की है तो पंगा लेकर अपनी बेइज्जती क्यों करवाना !यह सुनकर निराश हताश प्रार्थी वहाँ से वापस लौट आता है। ये कोई  कल्पना नहीं अपितु वास्तविक घटना है। 

      ऐसे ही अन्य प्रश्न भी हैं धन तो पूरे प्रदेश की जनता का खर्च हो किन्तु महोत्सव सैफई में हो आखिर क्यों ?क्योंकि सैफई नेता जी की है तो बाकी प्रदेश किसका है और वहाँ का मुख्यमंत्री क्या कोई दूसरा है ?

    इसीप्रकार से किसी का बेटा बेटी अपहृत हो जाता या और कोई नुक्सान हो जाता तो भी प्रशासन इतना ही मुस्तैद होता क्या?जितना भैंसें खोजने में था उन भैंसों को खोजने के लिए क्या कुछ नहीं किया गया फिर भी बेचारे पुलिस वाले …!

      आजम की  भैंसों की तलाश के लिए पुलिस की चार टीमों का गठन किया गया.खोजी कुत्ते, क्राइम ब्रांच और पुलिसकर्मियों ने कई बूचड़खानों और मांस की दुकानों पर छापेमारी की.  पड़ोस के कई जिलों में सर्च ऑपरेशन चलाया गया.और भैंसें मिल गईं । 

       इससे सिद्ध भी यही होता है कि ये सरकार सपा और केवल सपा के लोगों के लिए ही है उसके अलावा सारा प्रदेश जाए जहन्नुम में !इससे एक बात और सिद्ध होती है कि यदि प्रयास पूर्वक भैंसे खोजी जा सकती हैं तो और अपराधी क्यों नहीं !इसका सीधा सा अर्थ है कि जो अपराध सपा के छोटे बड़े सभी कार्यकर्ताओं के विरुद्ध होगा वो तो अपराध माना जाएगा और उसी को रोकने का भी प्रयास होगा बाकी लोग परेशान रहें तो रहें ये सरकार तो सपाइयों की है सपाइयों की ही रहेगी, प्रदेश वा देश की जनता का इससे क्या लेना देना !

      

Tuesday, 4 February 2014

भ्रष्टाचार के स्रोत क्या हैं और इसे समाप्त कैसे किया जा सकता है ?

  जाति देखकर जब गरीबत नहीं आती है तो जाति  के आधार पर  आरक्षण या अन्य सुविधाएँ क्यों दी जाती  हैं ?
  जब जाति  क्षेत्र  सम्प्रदाय आदि देखकर गरीबत या कोई विपत्ति नहीं आती है तो इनके आधार पर   आरक्षण क्यों दिया जाता है ?
    सरकार के  हर विभाग में  भ्रष्टाचार व्याप्त है उससे छोटे से बड़े तक अधिकांश कर्मचारी लाभान्वित होते हैं इसलिए उन पर  भ्रष्टाचार की जो विभागीय जाँच होती है वहाँ क्लीन चिट  मिलनी ही होती है क्योंकि यदि नहीं मिली तो उसके तार उन तक जुड़े निकल सकते हैं  जो जाँच करsee  more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/01/blog-post_19.html



दलितों के लिए आरक्षण या सम्मान?दोनों किसी को नहीं मिलते !

दलित शब्द का अर्थ कहीं दरिद्र या गरीब तो नहीं है ?

   समाज के एक परिश्रमी वर्ग का नाम पहले तो दलित अर्थात दबा, कुचला टुकड़ा,भाग,खंड आदि रखने की साजिश हुई। ऐसे अशुभ सूचक नाम कहीं मनुष्यों के होने चाहिए क्या?  वो भी भारत वर्ष की जनसंख्या के बहुत बड़े वर्ग को दलितsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2013/03/blog-post_2716.html





आरक्षण बचाओ संघर्ष आखिर क्या है ? और किससे ?

         4 घंटे  अधिक काम करने का ड्रामा !

     आरक्षणबचाओसंघर्ष या बुद्धुओं को बुद्धिमान बताने का संघर्ष आखिर क्या है ?ये संघर्ष उससे है जिसका हिस्सा हथियाने की तैयारी है।ये अत्यंत निंदनीय है ! 
    
     जिसमें  चार घंटे अधिक काम करने की हिम्मत होगी वो आरक्षण माँगेगा ही क्यों ?उसे अपनी कमाई और योग्यता का भरोसा होगा  किसी और की कमाई की ओर देखना ही क्यों? आरक्षण इससे ज्यादा कुछ है भी नहीं !
        चूँकि राजनैतिक दलों को पता है कि  देश में आरक्षण समर्थकों के वोट अधिक हैं औरsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_3571.html





यदि ऐसा है तो जाति देखकर आरक्षण क्यों दिया जाता है क्या आप गरीबों के सहयोग के लिए कोई जाति  बिहीन नीति बनाएँगे ?

    गरीब सवर्णों को भी आरक्षण की भीख  मिलेगी ?

     चूँकि किसी भी प्रकार का आरक्षण कुछ गरीबों, असहायों को दाल रोटी की व्यवस्था करने के लिए दिया जाने वाला सहयोग है इससे जिन लोगों का हक मारा जाता है वे इस आरक्षण को भीख एवं जिन्हें दिया जाता है उसे भिखारी समझते हैं।इस दृष्टि से भीख में दाल रोटी तो मिल सकती है किन्तु कोई  घी लगा लगा कर रोटी दे ऐसा उसे कैसे बाध्य किया जा सकता है।इसी प्रकार शर्दी में ठिठुरते देखकर किसी को कुछ कपड़े तो भीख या सहयोग में मिल सकते हैंsee  more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_3184.html

आरक्षण एक बेईमान बनाने की कोशिश !

    गरीब सवर्णों को भी आरक्षण की भीख  मिलेगी ?
     जो परिश्रम करके अपने को जितना ऊँचे उठा लेगा वह उतने ऊँचे पहुँचे यह  ईमानदारी है लेकिन जो यह स्वयं मान चुका हो कि हम अपने बल पर वहाँ तक नहीं पहुँच सकते ऐसी हिम्मत हार चुका हो । दूसरी ओर कुछ लोग सारी मुशीबत उठाकर भी ऊँचा पद पाने के लिए कठोर परिश्रम कर रहे हों ! ऐसे संघर्ष शील वर्ग को आरक्षण के माध्यम से  आगे बढ़ने से रोकना न केवल अन्याय अपितु अपराध भी माना जाना चाहिए ।यदि यही छेड़खानी शिक्षा को लेकर चलती रही तो क्यों कोई पढ़ेगा ?आखिर जो जिस लायक है उसे वो मिलना नहीं है और जो जिसsee  more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_8242.html


पहले नेताओं की संपत्ति जाँच तब हो आरक्षण की बात!

   
                  प्रतिभाओं के दमन का षड़यंत्र
     जब गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की बात उठी तो उस समय एक मैग्जीन में मेरा लेख छपा था   कि  आरक्षण एक प्रकार की भीख है जो किसी को नहीं लेनी चाहिए, तो आरक्षण समर्थक कई सवर्ण लोगों के पत्र और फोन आए कि जब सभी जातियों को आरक्षण चाहिए तो हमें भी मिलना चाहिए।मैंने उनका विरोध करके कहा था कि किसी को आरक्षण क्यों चाहिए।
   यहsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_6099.html

आरक्षण समर्थक नेताओं की संपत्ति की जाँच होनी चाहिए !

              
      गरीब सवर्णों को भी आरक्षण की भीख  मिलेगी ?
             
                  प्रतिभाओं के दमन का षड़यंत्र

     जब गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की बात उठी तो उस समय एक मैग्जीन में मेरा लेख छपा था   कि  आरक्षण एक प्रकार की भीख है किसी को नहीं लेनी चाहिए, तो आरक्षण समर्थक कई सवर्ण लोगों के पत्र और फोन आए कि जब सभी जातियों को आरक्षण चाहिए तो हमें भी मिलना चाहिए।मैंने उनका विरोध करके कहा था कि किसी को आरक्षण क्यों चाहिए।
   यह बात सच है कि अमीर गरीब आदि सभीप्रकार के लोग हर वर्ग में होते हैं।दुनियाँ में वैसे सभी काम सभी के लिए कठिन होते हैं किंतु पढ़ाई उनमें सबसे कठिन काम है।जो लोग ईमानदारी से पढ़ाई करते हैं। मन को सारे विकारों से दूर रखकर शिक्षा की ओर ले जाना कोई हँसी खेल नहीं है।और काम तो विकारों के साथ भी कुछsee  more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_4640.html

Monday, 3 February 2014

ईमानदारी का आतंक फैलाकर क्या संदेश देना चाहती है आम आदमी पार्टी ?

क्या आम आदमी की हिम्मत है कि वो इतने  बड़े बड़े लोगों को  'बेईमान' बोल जाए !

    केजरीवाल और उनसे जुड़े लोग नेता हैं या अभिनेता ? या कुछ और !कैसे बनी आम आदमी पार्टी और और कैसे ठगा गया आम आदमी  का आम आदमीपन ?      

इस लेख का मूल उद्देश्य यह देखना है कि केजरीवाल आम आदमियों के नेता हैं या आम आदमीयत्व के अभिनेता ! तीसरा सबसे प्रमुख विन्दु इस लेख के माध्यम से इस बात की खोज करना है कि केजरीवाल जी या उनके साथियों को आम आदमी बनने की प्रेरणा कब और कहाँ से मिली? कैसे बने ये आम आदमी और क्यों बने ये आम आदमी ?या ये पहले भी आम आदमी ही थे !पहले कभी क्या आम आदमियों की बस्तियों में कुमार विश्वास को कविताएँ सुनाने जाते आपने देखा सुना है या प्रशांत भूषण जी आम आदमियों  की शुल्कमुक्त सहायता करते देखे गए हैं या आम आदमियों का मनोबल बढ़ाने के लिए अरविन्द जी या उनके अन्य साथी किसी क्षेत्र में कोई प्रभावी भूमिका निभाने में सफल हो सके हैं यदि हाँ तो कहाँ और यदि नहीं तो क्यों !ये जितने लोग आज आम आदमियों की टोपी पहने घूम रहे हैं या इनमें से किसी को पहले कभी आपने देखा है ग़रीबों को गले से लगाते ! क्या सत्ता के बिना आम आदमी की मदद नहीं की जा सकती है तो गरीबों को गले भी नहीं लगाया जा सकता था ? लोग कह रहे हैं कि केजरीवाल जी ने पहले ही एक अच्छा बँगला रहने के लिए माँगा था ऐसे आम आदमीयत्व के विसर्जन के और भी कई प्रकरण चर्चा में रहे किन्तु बड़ी बात यह है कि फिल्मी अभिनेताओं की तरह इन आम आदमियों में भी आम आदमीपन ढुलमुल ही होता रहा !बार बार व्यवहार बदलने से लगने लगा कि ये इनकी मूल भावना नहीं थी ये तो आम आदमी का अभिनय मात्र कर रहे थे वस्तुतः इसकी स्क्रिप्ट तो किसी और ने लिखी थी जिसने लिखी होगी उसमें होगी आम आदमी की मूल भावना, वह है आखिर कौन यह भी पता लगेगा इसी लेख के लिंक से !

       केजरीवाल जी और उनके साथी आम आदमी होने का यदि अभिनय नहीं वास्तविक  आचरण कर रहे होते तो यह तथाकथित आम आदमियत्व बचपन से ही इनके स्वभावों  में होता और सत्ता का कितना भी लालच दिया जाता ये उधर जाते ही नहीं ये जन सेवा ही करते !जैसे भुने हुए  दाने में अंकुर नहीं निकलता है जैसे विरक्त संत में बासना नहीं जगती है उसी प्रकार से आम आदमी बनकर रहना भी आसान नहीं होता ये भी बहुत बड़ी साधना  है वहाँ भी सत्ता की बासना नहीं होती है वहाँ सबको साथ लेकर चलना , सबके सम्मान एवं सबके हित के लिए निःस्वार्थ रूप से कर्तव्य पालन करना होता है सबको चोर बेईमान कहने से बात नहीं बनती है यहाँ अपने आचरण सुधारने पर विशेष जोर होता है ऐसे  संस्कार बचपन से ही स्वभाव एवं व्यवहार में देखे जाते हैं  और ऐसे  आचरणों से प्रभावित होकर लोग धीरे धीरे ऐसे लोगों का अनुगमन करने लगते हैं जो जुड़ते हैं उनमें भी बचपन से ही ये स्वाभाविक सहजता के संस्कार दिखाई देने लगते हैं ऐसे जन नेता महापुरुष पहले भी अनंत बार अवतार  लेकर भटकते हुए समाज को सँवारते रहे हैं किन्तु उन्होंने कभी किसी और के लिए अपशब्द या कटुशब्दों के प्रयोग नहीं किए होंगे क्योंकि उनका उद्देश्य समाज को सुधारना होता है और समाज के सुधरते ही राजनीति  आदि सारे विभाग स्वयं शुद्ध हो जाते हैं!समाज के सुधरते ही अपराध स्वयं घटने लगते हैं अन्यथा सरकारों में ईमानदार लोग आ भी जाएँ तो वो कितने अपराधियों को कितना कठोर दंड देकर ठीक कर लेंगे !बनाया  तो  गया है महिलाओं की सुरक्षा के लिए कठोर कानून और बड़े बड़े लोग जेल भी भेजे गए हैं किन्तु अपराधों की संख्या घटी है क्या ?इसलिए आचरणात्मक परिवर्तन सबसे अधिक  जरूरी है !अभिनय से काम नहीं चलेगा केजरीवाल जी ! 

     किसी पार्टी का टिकट न मिलने या अपनी नौकरी आदि किसी कार्यक्षेत्र में अपनी उपेक्षा के कारण या अपनी राजनैतिक महत्वाकाँक्षा के कारण जो लोग अपनी पार्टियाँ या नौकरियाँ छोड़ छोड़ कर आपकी पार्टी में सम्मिलित हो रहे हैं वे भी किसी न किसी महत्वाकाँक्षा की पूर्ति के लिए ही आ रहे हैं जिसके लिए वे किसी भी श्रेणी तक गिरने में संकोच नहीं करेंगे आपके टोपी पहना देने से वो आम आदमी नहीं हो जाएँगे क्योंकि स्वभाव तो वही रहेगा।  इसलिए ऐसे काया कल्पित आपके सारे आम आदमी अपनी अपनी महत्वाकाँक्षा की  आग को  आदमियत्व की रुई में लपेट कर दूसरों को दिखाने के लिए कुछ समय के लिए ढक भले लें किन्तु वो और विशाल रूप लेकर जब प्रकट होगी तब सँभाली नहीं जा सकेगी जैसे आज आपके कुछ बनावटी आम आदमी धधक रहे हैं बहुत और लोग भी धधकने की तैयारी में होंगे जो अभी अपनी अपनी आत्माएँ आशा और आश्वासनों  में दबाए  बैठे हुए हैं !

         अब देखना ये है कि केजरीवाल जी या उनके सत्ता सहभोगी या भोगेच्छु लोग क्या  पहले भी आम आदमी की तरह से सादगी पूर्ण ढंग से ही रहते रहे हैं या  संयोगवश अचानक  आम आदमी हो गए हैं! यदि देखा जाए तो इन आम आदमियों में उन आम आदमियों की अपेक्षा बहुत बड़ा अंतर है जिनके ये मसीहा बनने का अभिनय करते हैं ये लोग ठहरे शाही आम आदमी ! 

      इनके पास  अच्छे मकान भी है गाड़ियाँ भी हैं बच्चे भी अच्छे स्कूलों में पढ़ते हैं शादी कामकाम काज भी बड़े लोगों में ही करते हैं इलाज भी महँगे प्राइवेट नर्सिंग होम में ही कराते हैं इस प्रकार से बिलासिता के सारे संसाधन भोगते रहते  हैं फिर भी इन्होंने अपने नाम आम आदमी ही रख रखे हैं ये इनकी अभूत्पूर्व सादगी  है फिर वो न जाने क्या हैं जो ऐसे समस्त संसाधनों से विहीन हैं !खैर, पहले किसी को क्यों नहीं आई आम आदमी की याद ?

       सरकार में आने के बाद लालबत्ती छोड़कर धीरे धीरे सब कुछ अन्य सरकारों की तरह ही हो गया है !कहाँ खो गया वो आम आदमियत्व जिसके सपने दिखाए गए थे ? मुख्य मंत्री या मंत्री पद आप ने गरीबों में तो नहीं बाँट दिए हैं जिन्हें कुर्सी पर बैठाकर उनसे आज्ञा ले लेकर आप लोग काम कर रहे हों! रहने को आवास अन्य लोग लेते रहे हैं वो ये भी ले रहे हैं गाड़ी से आप भी चलते हैं सुरक्षा आपने भी भले ली न हो किन्तु दी तो गई है! जैसी सब सरकारें या उनमें बैठे लोग अपने को पाक साफ एवं दूसरों को गन्दा कहते रहे हैं वैसा ही आप भी कर रहे हैं बल्कि आप तो उनसे अधिक  कर रहे हैं यदि आप आम आदमी के प्रतिनिधित्व का दावा करते हैं तो आप ही बताइए कि क्या आम आदमी की हिम्मत है कि वो इतने  बड़े बड़े लोगों को  'बेईमान' बोल जाए !वो तो बहुत छोटे छोटे लोगों को भी बाबू जी कहकर अपना जीवन काटा करते हैं क्योंकि उनके जीवन में जो अभाव होता है वही उन्हें दीन बना देता है और आपकी सम्पन्नता आदि आपके सारे संचित संसाधनों का उत्साह और ओज आपकी वाणी एवं भाल पर साफ साफ दमक रहा होता है जब आप बड़े बड़े लोगों को 'बेईमान' कह रहे होते हैं !

            आप एवं आपके लोगों के इन्हीं सारे संदेहास्पद आम आदमियत्व पर मैंने जब गम्भीर चिंतन किया तो देखा कि आम आदमी और आधुनिक राजनेताओं के रहन सहन के अंतर को दर्शाने के लिए जो स्क्रिप्ट 31 October 2012 को स्वयं  मैंने अपने ब्लॉग पर लिखी थी उसी का अभिनय सा करते हुए उसके ठीक 26 दिन बाद 26 नवम्बर 2012  को इन लोगों ने "आम आदमी पार्टी " को  न केवल जन्म दिया अपितु उसके वो सारे प्रभावी  विचार और नारे लेकर अपने और अपनी पार्टी के नाम से समाज में उछालने शुरू कर दिए और टोपियाँ लगा लगाकर आप लोग तो जुट गए अपने को आम आदमियों का मसीहा सिद्ध करने में किन्तु एक लेखक होने के नाते मैं आप से ही जानना चाहता हूँ कि वास्तव में जब आप हमारी लिखित स्क्रिप्ट सामग्री का राजनैतिक उपयोग करने ही लगे थे तो हमसे पूछना तो दूर क्या हमें बताया जाना भी जरूरी नहीं था ! आखिर हमारे ब्लॉग पर हमारा लेख प्रकाशित होने से पूर्व कहाँ था आपका यह तथाकथित आम आदमियत्व ?यहाँ तक कि अन्ना आंदोलन में भी आपके रहन सहन या बोली भाषा पर आम आदमियत्व हावी नहीं था जैसा कि  हमारा लेख प्रकाशित होने के बाद दिखा ! आम आदमी  की चर्चा से भरा पूरा हमारा वह लेख है हमारे उस आम आदमी का !उस आम आदमी में ही आपने पार्टी शब्द जोड़ दिया है बस बन गई "आम आदमी पार्टी" !

         "आप" एवं आपके आम आदमियों ने हमारी स्क्रिप्ट का कितना राजनैतिक उपयोग किया है इस बात का निर्णय तो हमारा वह लेख पढ़कर  स्वयं समाज का आम आदमी ही करेगा मैं समाज के सभी वर्गों समुदायों के सामने अपने उस लेख का लिंक भेज रहा हूँ जिसमें लिखने के बाद कभी  कोई एडिटिंग नहीं की गई है जिसे पता लगाने के लिए यदि कोई जाँच होती हो तो मैं विनम्रता पूर्वक उसके लिए भी तैयार हूँ  इसलिए इस सच्चाई पर विश्वास करते हुए  हमारे पाठक परिवार के जो लोग भी  पढ़ें कृपा पूर्वक अपनी राय  से हमें अवगत अवश्य करावें - यह लेख पढ़कर समाज को आम आदमी पार्टी के अभिनेता  नेताओं का अंदाजा आसानी से लग जाएगा कि केजरीवाल जी की सादगी उनकी मूल विचारधारा बिलकुल नहीं है यदि ऐसा होता तो इतनी जल्दी इस पार्टी में इतनी भगदड़ न मची होती जो पार्टी आम आदमी के नाम पर सादगी के लिए बनी हो उसमें कुछ तो त्याग भावना होती!

       मैं विश्वास से कह सकता हूँ कि यह आम आदमीपन का केवल एक अभिनय मात्र था जो वास्तविक जीवन में उतार पाना कठिन होता जा रहा है अपने किए हुए वायदे बोझ बनते जा रहे हैं ।    यदि इन नेताओं के अतीत के रहन सहन की शैली को खंगाला जाए तो इस सच्चाई की पोल भी स्वयं ही खुल जाएगी ! आप सभी बंधुओं से प्रार्थना है कि आप लोग मेरा निम्न लिखित लेख अवश्य पढ़ें कि कैसे बनी आम आदमी पार्टी ?


Wednesday, 31 October 2012
ऐ मेरे देश के शासको! अब तो विश्वास भी टूट रहा है!
आम आदमी और नेताओं में इतनी दूरी आश्चर्य !
इस देश का आम आदमी कहॉं जाए अपनी पीड़ा किसे सुनावे ?जो न हिंदू और न ही मुशलमान है न हरिजन और न ही सवर्ण है।न स्त्री न ही पुरुष है। न बच्चा न बूढ़ा है।वो केवल इंसान है। अब तो उसका भी जीना मुश्किल है।गरीब हो या अमीर, भूखप्यास, सुख दुख, बीमारी आरामी, शिक्षा दीक्षा आदि सभी प्रकार की सुख सुविधाएँ तो सबको चाहिए किंतु ये आज भारतवर्ष की सच्चाई नहीं है seemore....http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/blog-post_4683.html