सरकारी स्कूलों में बच्चों के भविष्य के साथ न्याय भी होगा क्या ?
बजट और बातें हर पार्टी अच्छी ही करती है किंतु उनका कार्यान्वयन ठीक से
होना चाहिए !बंधुओ ! संसाधनों की कमी का मतलब ये तो
नहीं है कि शर्दियों में सुबह सुबह तैयार होकर सिकुड़ते समिटते बच्चे स्कूल
आवें उन्हें तो कमरों में कैद करके शिक्षक धूप सेंकते रहें ! लंच करा दें
और छुट्टी के समय बिदा कर दें !बंधुओ ! शिक्षा के प्रति समर्पित होने के कारण मैं भी अक्सर
सरकारी एवं प्राइवेट प्रारम्भिक स्कूलों में जाया करता हूँ और शिक्षकों
एवं बच्चों से मिलना अच्छा लगता है कई बार तो हमारी दी हुई बिना माँगी
सलाहें कुछ लोगों को परेशान भी करती हैं किंतु मुझे लगता है कि अच्छाई के
लिए ऐसा करने में कोई बुराई नहीं है । बंधुओ ! सरकारी लापरवाही के कारण स्कूलों में शिक्षक आवें या न आवें
स्कूल में रुकें या न रुकें कक्षा में जाएँ या न जाएँ वहां जाकर भी पढ़ावें
या न पढ़ावें कितनी देर पढ़ावें क्या पढ़ावें या कुछ न पढ़ावें मोबाइल पर बैठे
बातें करते रहें कौन है उन्हें टोकने वाला ।
बंधुओ ! दिल्ली की
शिक्षा को सुधारने के लिए दिल्ली सरकार को सबसे निगरानी तंत्र सुधारना होगा !स्कूलों
में डालने होंगे आकस्मिक छापे और गैर जिम्मेदार लोगों पर करनी होगी कठोर
कार्यवाही !शिक्षकों से मांगना होगा शिक्षा का हिसाब कि आपके स्कूलों की शाख प्राइवेट
स्कूलों से कमजोर क्यों है आप ट्रेंड हैं आप को उनसे अधिक सैलरी मिलती है
किंतु आप अपने स्कूलों की प्रतिष्ठा क्यों नहीं बना पा रहे हैं ! आप लोग
अपने बच्चे पढ़ाने लायक ये स्कूल क्यों नहीं समझते हैं जबकि इन स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था सुधारना आपकी जिम्मेदारी है !इसका जवाब उनसे लिया जाना चाहिए और
सुनी जानी चाहिए उनकी भी मजबूरियाँ किंतु संसाधनों की कमी का मतलब ये तो
नहीं है कि शर्दियों में सुबह सुबह तैयार होकर सिकुड़ते समिटते बच्चे स्कूल
आवें उन्हें तो कमरों में कैद करके शिक्षक धूप सेंकते रहें ! लंच करा दें
और छुट्टी के समय बिदा कर दें ! क्या ये बच्चों के भविष्य के साथ न्याय
है और यदि नहीं तो इसके लिए शिक्षक उतने दोषी नहीं जितने वे अधिकारी हैं जो
अपनी आफिसों से निकल कर स्कूलों की ओर नहीं जाते हैं और उनसे ज्यादा वो सरकारें दोषी हैं जो शिक्षा में दिखावा के लिए सारे ड्रामें करती हैं किंतु
निगरानी तंत्र मजबूत नहीं करती हैं ऐसे शिक्षक लाखों भर्ती कर लिए जाएँ तो
क्या होगा पहले जो हैं उनसे तो काम लेने की जुगत सीखनी होगी ।
पूर्वी
दिल्ली छाछी बिल्डिंग कृष्णा नगर में मेरा घर हैं जहाँ एक ओर कृष्णा नगर तो दूसरी ओर वेस्ट आजाद नगर है आस पास के सरकारी निगम एवं प्राइवेट प्रारंभिक स्कूलों की गैर जिम्मेदार शिक्षा व्यवस्था से मैं भी सुपरिचित हूँ जहाँ शिक्षकों की कमी कारण नहीं है अपितु कारण सरकार का निगरानी तंत्र कमजोर होना एवं अधिकारियों का कर्तव्य विमुख होना है । अपने पास के ही एक सरकारी स्कूल में मुझे किसी काम से सुबह के समय में कई
दिन जाना पड़ा कुछ देर के लिए रुकना भी पड़ा !वहां देखा एक कमरे में बैठी शिक्षिकाएँ पूरे समय शोभा बढ़ा रही थीं
चल रही थीं घर गृहस्थी की चर्चाएँ ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी शादी विवाह
के पंडाल के किसी कोने में सजने संवरने की गहमा गहमी चल रही हो ! किंतु
हमने जब कहा तो पता लगा अगले दिन से मुझे घुसने ही नहीं दिया गया स्कूल में । उसके एक
सप्ताह बाद स्थानीय विधायक जी उनकी सेवाओं से खुश एकदम गदगद दिख रहे थे !
खैर, ये
स्थिति केवल यहीं की नहीं अपितु मिलीजुली हर स्कूल की ही है कहीं कुछ कम है
कहीं कुछ अधिक है किंतु सरकारी शिक्षा की कमजोरी की सबसे बड़ी वजह है कि
जिम्मेदार लोगों का अपना कोई नुकसान नहीं होता इसलिए शिक्षकों पर शक्ति क्यों करनी !वोट
लेने का समय आता है तब यही बजट यही शिक्षकों की भर्ती आदि आंकड़े हर सरकार बताया
करती है किन्तु क्या ये बच्चों के भविष्य के साथ न्याय है ?
प्राइवेट स्कूलों की भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं दिखती है बड़े प्राइवेट
स्कूलों से तो सभी परिचित होते ही हैं मीडिया भी उन्हीं की खबरें दिखाता
है किंतु गली मोहल्लों में चलने वाले छोटे स्कूलों को भी तो कोई देखे !कई
प्राइवेट स्कूल ऐसी जगह चलने की अनुमति दी गई है जहाँ से निकलने में दम घुटती है सरकारी
अधिकारी अनुमति देते समय कम से कम ये तो देख लेते कि जब छुट्टी के समय बच्चों के झुंड
निकलेंगे तो स्कूल के आसपास की इन इतनी सँकरी गलियों से कैसे निकल पाएँगे
बच्चे ! वो भी नालियाँ जाम हैं पानी ऊपर से निकल रहा है उससे निकलना होता है
बच्चों को कोई बच्चा गिर जाए फिसल जाए कोई धक्का ही दे दे छोटे छोटे बच्चे
होते हैं कौन सँभालेगा उन्हें !
उस रास्ते से एक दिन मुश्किल से मैं
निकल पाया तो मैंने सोचा कि जाकर स्कूल वालों को कहूँ कि स्कूल के दरवाजे
की गली खुद ही साफ करवा लिया करो आखिर बच्चे तो सुरक्षित रहें ! मैं वहां
गया आफिस में बैठा बहुत सुन्दर आफिस था रिसेप्सनिस्ट एक सुन्दर सी लड़की को
बुलाया गया उससे मेरा परिचय करवाया गया कि ये बहुत जिम्मेदार हैं और भी कुछ लोग मिले अच्छा लगा आफिस और रिसेप्सन के दरवाजे पर छोटा सा
ग्राउंड था जहाँ गमले वमले खूब सजाए गए थे सब कुछ अच्छा था ! तब तक बत्ती
चली गई तो जरनेटर चला दिया । हम लोग A C में बैठे थे अच्छी चर्चा हुई फिर
मेरी इच्छा बच्चों से मिलने की हुई तो मैंने उनसे कक्षा में जाकर कुछ
बच्चों से मिलने की इच्छा जाहिर की जिसे उन प्रबंधक +प्रधानाचार्य महोदय ने
शिरे से नकार दिया कि कक्षा में क्यों जाना ! खैर, मेरी अधिक उत्सुकता
देखकर वो कंप्यूटर पर कैमरे में कक्षाएँ दिखाने लगे जहाँ कमरों में पढने
लायक प्रकाश नहीं पहुँच पाता था ,पंखे बंद देखे बच्चों की बेचैनी देखकर लग
रहा था कि घुटन का माहौल है बच्चे गर्मी से बहुत बेचैन थे ये बात पिछली
जुलाई की है ! मुझसे रहा न गया मैंने उनसे पूछ ही दिया कि कक्षाओं में
प्रकाश नहीं हैं पंखे चल नहीं रहे हैं बच्चे परेशान लग रहे हैं ?तो उन्होंने
वेल बजाई चपरासी दौड़ता हुआ आया तो इन्होने डांटते हुए उससे कहा कि अंदर
पंखे क्यों नहीं चल रहे हैं तुम ठीक नहीं करा सकते थे !इसपर उसने कहा सर! सारे पंखे ठीक हैं सब चल रहे हैं तो उन्होंने कहा कहाँ चल रहे हैं देखो सब बंद
हैं तो चपरासी ने कहा सर अभी तक तो चल रहे थे बत्ती चली गई तबसे बंद हैं
जरनेटर से तो उनका कनेक्सन है नहीं यह सुनते ही उन्होंने उसे बहुत झाड़ा
बोले इतने लापरवाह हो तुम लोग! तो उसने कहा कि सर कक्षाओं में तो जरनेटर का कनेक्सन
कभी नहीं रहा किन्तु आप कहते हैं तो करा देंगे खैर वो चला गया !
इसके बाद
उन्होंने हमसे अपनी राजनैतिक पहुँच का बखान किया कई बड़े लोगों के साथ अपनी फोटो
दिखाईं फिर अपने मुख से अपनी विरुदावलि सुनाई ! हमने भी उनकी प्रशंसा की
और चला आया ! मैं छाछी बिल्डिंग पर रहता हूँ मेरे घर के पास ही वो स्कूल है किंतु दुबारा मैं वहाँ नहीं गया !आखिर किसी को बुरा लगे तो क्यों जाना !
बंधुओ ! किंतु प्राइवेट हैं तो क्या उनके प्रति सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है कल कोई घटना घटती है तब सरकार नहीं तो कौन जिम्मेदार होगा !खैर सरकार को जो उचित लगे वो सरकार करे किंतु बजट की बातों और चुनावी वायदों से मेरा तो विश्वास उठ गया है !जब तक सामने कुछ होता हुआ न दिखाई दे !फिर भी सरकार के उत्तम भविष्य के लिए हमारी शुभकामनाएँ !