Tuesday, 30 June 2015

aam aadmi party


सीएम ऑफिस के खर्चों का हिसाब-किताब नहीं है -केजरीवाल सरकार के पास 
    किंतु अपने खर्चे का हिसाब सरकार अाखिर रखे भी क्यों खर्चों का हिसाब तो हमेंशा कंजूस लोग रखते हैं या फिर वो लोग रखते हैं जिनकी आमदनी कम होती है या फिर जिनके यहाँ कमाने वाले कम होते हैं उसे हिसाब किताब रख कर खर्च करना होता है किंतु जिसके लिए सारी दिल्ली कमाती हो वह भी हिसाब किताब रख कर खर्च करे तो फिर सरकार किस बात की !और फिर अपनी सरकार का मतलब ही क्या यदि उसका खुल कर भोग न किया जा सके !वैसे भी दिखावटी मुख्यमंत्री तो कोई नहीं बनाना चाहेगा !


दिल्ली के लोगों का स्तर उठाने के लिए दिल्ली सरकार कर रही है कुछ कठोर निर्णय !
दिल्ली सरकार के प्रयास से अब आवश्यक चीजों के दाम बढ़ाए जाएँगे जिससे पता लगे कि पहले की सरकारों की अपेक्षा इस सरकार में दिल्ली का कितना विकास हुआ है । बंधुओ ! यदि बढ़ी हुई कीमतों में भी दिल्ली की जनता के पास पर्चेजिंग क्षमता बनी रहती है लोग खरीदने खाने की स्थिति में बने रहते हैं इसका मतलब है कि 'आप' की सरकार के प्रयासों से दिल्ली वालों का विकास हुआ है !  ऐसा माना जाएगा !!
केजरीवाल जी ने जनता की मुसीबत अपने गले डाल ली ।
जनता बिजली बिल घटाया तो अपना बढ़ गया ! यही तो है किसी को आशीर्वाद देने से उसका पाप तो अपने शिर लेना ही होता है ये प्रायश्चित्त तो करना ही पड़ेगा !
दिल्ली के CM केजरीवाल के घर का बिजली बिल 91,000 रुपये!- एक खबर     बंधुओ ! क्या मुख्यमंत्री बनने के पहले केजरी वाल जी के घर का बिल इतना ही आता था और यदि नहीं तो सादगी के सपने दिखाकर जनता के पैसे से खुद तो कर रहे हैं मौज और जनता के लिए महँगाई ! यदि यही होना था तो पहले की सरकारें भी तो यही करती थीं !केजरी वाल जी !ध्यान रखना ऐसे आचरणों पर
गोस्वामी तुलसी दास जी ने लिखा है कि -
जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी । सो नृप अवस नरक अधिकारी ॥

Monday, 29 June 2015

प्रकृति का कमाल !नारी लता !!

एक पेड़ जिसमें लड़कियों की आकृति के फूल लगते हैं  इसे नारी लता कहा जाता है ! 






कितनी सुन्दर होती थी गाँवों में रसोई !




मोदी को गद्दी सौंपी है जनता ने और हिसाब माँगती है काँग्रेस !जो न देश में प्रदेश में न रेस में फिर भी इतनी तैस ! बारी काँग्रेस !!

 जनता ने काँग्रेस को बनबास और भाजपा का राजतिलक किया है इसलिए जनता को ही दिया जाएगा हिसाब !काँग्रेस का बायकाट !काँग्रेस अखवार पढ़े समाचार देखे और करे विदेश भ्रमण !नहीं तो सत्संग श्रवण !
       काँग्रेस को भूलना नहीं चाहिए कि काँग्रेस केवल पराजित ही नहीं हुई है अपितु जनता ने तंग होकर उसे केंद्र की सत्ता से धक्का देकर खदेड़ा है ! पराजय कभी इतनी बुरी नहीं होती है जितनी काँग्रेस की हुई है !दिल्ली विधान सभा के समाचार तो अब अखवार पढ़कर ही पता लगेंगे काँग्रेस को ! इतनी पुरानी पार्टी का ये हश्र !अब उसे हिसाब चाहिए मोदी जी की एक साल की सरकार से ! काँग्रेस को चुनावपरिणामी अपनी हैसियत  को ध्यान में रखकर ही कोई डिमांड रखनी चाहिए
   लोकसभा चुनावी परीक्षा की फेल विद्यार्थी है काँग्रेस जबकि भाजपा पास हुई है ! पास होने वाले की एक कक्षा आगे बढ़ जाती है तो कोई पास हुआ विद्यार्थी अपने फेलियर साथी को हिसाब क्यों देगा !शिष्टता तो ये है कि उसे माँगना ही नहीं चाहिए !किंतु काँग्रेस से इतनी शालीनता की उम्मींद क्यों !   
     जो न देश में न प्रदेश में पीर भी इतनी तैस !बारी काँग्रेस!
      जनता ने तो काँग्रेस से विपक्ष का पद पाने का अधिकार भी छीन लिया है अब तो सत्तापक्ष चाहे तो दयावश दे दे विपक्ष का पद अन्यथा मन मसोस कर बैठे और करे अतीत के अपने आचरणों पर पश्चात्ताप !          काँग्रेस को यह भी सोचना चाहिए कि विगत लोकसभा चुनावी परीक्षा की वह फेल विद्यार्थी है जबकि भाजपा पास हुई है ! पास होने वाले की एक कक्षा आगे बढ़ जाती है तो कोई पास हुआ विद्यार्थी अपने फेलियर साथी को हिसाब क्यों देगा !शिष्टता तो ये है कि उसे माँगना ही नहीं चाहिए !किंतु काँग्रेस से इतनी शालीनता की उम्मींद क्यों ! 
     देश ने काँग्रेस को रेस से बाहर कर दिया है फिर चाहिए मोदी सरकार के एक वर्ष का हिसाब ! आखिर क्यों आप हैं क्या जनता ने तो आपको विपक्ष पद भी मांगने लायक नहीं छोड़ा था !आप मोदी साकार के एक वर्ष का हिसाब पूछने की जगह अपना हिसाब किताब जनता को समझाइए जिसने आपकी ये दुर्दशा की है !
    जनता मोदी जी से एक साल के शासन का भी हिसाब किताब माँग सकती है ,हम जनता हैं हम मोदी से भी पूछ सकते हैं काँग्रेस से भी किंतु काँग्रेस नहीं !आखिर वो पूर्व प्रशासक हैं काँग्रेस को मोदी जी से पूछने से पहले अपना हिसाब देना चाहिए था क्यों हुए इतने घोटाले !उनके लिए जिम्मेदार कौन था उन्हें क्या सजा मिली !पहले काँग्रेस के साठ  वर्ष के शासन का हिसाब देना होगा तब काँग्रेस पूछ सकती है मोदी जी के एक वर्ष का हिसाब किताब !

Friday, 26 June 2015

महाबली नेताओं के बयानों पर बवाल क्यों ! उनके चरित्र पर सवाल क्यों ?

    राजनीति में ईमानदारी ,चरित्र और सिद्धांतों की बातें अपनी बात मनवाने के लिए हथियार रूप में केवल दूसरों को उदाहरण और उपदेश देने के लिए होती हैं !बाकी इनका कोई महत्त्व नहीं है !      
सरकारी नौकरी पाने के लिए तो शिक्षा और डिग्री चाहिए किंतु मंत्री बनने के लिए नहीं !आखिर क्यों ?
एक शिक्षक बनने के लिए तो ट्रेनिंग किंतु मंत्री बनने के लिए कुछ नहीं !आखिर क्यों ?    
          भारत का लोकतंत्र ढो रहा है गरीब भोग रहे हैं रईस !    
    बंधुओ ! जनतंत्र में केवल शिर गिने जाते हैं लोकतंत्र तो भीड़ के कन्धों पर स्थापित है वह भीड़ कैसे लोगों की है इसका कोई महत्त्व नहीं है भीड़ मक्खियों की तरह है मक्खियाँ  दो ही जगह भिनभिनाने के लिए भीड़ लगाती हैं एक तो मिठाई पर दूसरा गंदगी पर !मिठाई बनाने में समय लगता है सामान लगता है परिश्रम लगता है उसे बनाना सीखना होता है आदि आदि बड़े बलिदान करने होते हैं ये है सेवा भाव की राजनीति जिस पथ पर चमकने के लिए केवल कुर्वानी करने पर ध्यान होता है यहाँ चमकने की तो चाह ही नहीं होती है।फिर भी समय रहते यदि समाज उन्हें भी पहचान पाया तो चमक जाते हैं अन्यथा उनके बलिदान का  आदर्श उदाहरण प्रचारित नहीं हो पाता है।
    इसी प्रकार गंदगी फैलाने में कितना समय लगता है कहीं भी खखार कर थूक दिया उस पर तुरत मक्खियाँ भिनभिनाने लगेंगी !यही सॉर्टकट राजनीति है जो पनपती ही गंदगी में है जहाँ आपराधिक बलगम की गंदगी पेशाब करके बहानी होती है जो देखने में तो लगे कि साफ हो गया है किंतु वास्तविकता में तो उससे अधिक गंदा हो गया होता है !इस पथपर तो लोग महीनों वर्षों में न केवल चमक जाते हैं अपितु विधायक सांसद मंत्री मुख्य मंत्री क्या प्रधानमंत्री तक बनते देखे जाते हैं  
     ऐसे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सरकार स्वामियों के बयानों पर बवाल करके चरित्रों पर सवाल करके उनकी संपत्ति को भ्रष्टाचारी बताकर आप अपनी ऊर्जा नष्ट कर रहे हैं मीडिया का समय बर्बाद कर रहे हैं जनता के धन से चलने वाली बहु खर्चीली विधान सभा और लोक सभा का कीमती समय यह जानते हुए भी आप बर्बाद कर रहे हैं कि इन्हें ठीक करने का जनता के पास कोई विकल्प नहीं है ।
   नेताओं के अपराध तो अपराध नहीं अपितु उन पर  लगे मिथ्या आरोप होते हैं उनकी  फर्जी का क्या मतलब वो बिना पढेलिखे सबपर भारी होते हैं
     कोई पढ़ालिखा और ईमानदार व्यक्ति यदि राजनीति में सफल हुआ हो तो समझ लेना वो बहुत भाग्यशाली है ये उसके जन्म जन्मान्तरों के पुण्यों का ही प्रभाव है कि किसी पार्टी के राजनेताओं ने उसे अपने यहाँ घुसने दिया !अन्यथा अपराध के बिना  राजनीति और राजनीति के बिना अपराध चलना बहुत कठिन है कोई पार्टी किसी ईमानदार और किसी पढ़े लिखे व्यक्ति को अपनी पार्टी में घुसने नहीं देना चाहती जब तक उसने दो चार कायदे के काम किए न हों बाकी जो बहुत भाग्यशाली होते हैं
   सेवाभाव विहीन नेतागिरी का शार्टकट रास्ता अपराधों से होकर ही गुजरता है यह सबको पता है !इसलिए नेताओं के चरित्रों बयानों बवालों एवं उनके घोटालों पर सवाल क्यों ?जो जितने बड़े अधिकारी को जितना अधिक बेइज्जत कर सकें उतनी जल्दी चमक उठते हैं ! उसके लिए वो कितने भी पाप क्यों न करें ! 
      बंधुओ !कई बड़े दलों के नेताओं  यहाँ जा जाकर मैंने भी धक्के खाए हैं कि वो मुझे भी अपने दल में सम्मिलित करके मुझे भी अपनी प्रतिभा प्रस्तुत करने का अवसर दें किंतु उन्हें मैं इसलिए नहीं पसंद आया कि मैं शिक्षित हूँ ईमानदार और सिद्धांतवाद की राजनीति  करने का पक्षधर हूँsee more...http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html बंधुओ !इस घोषित मूल्य विहीन राजनैतिक युग में अलग से किसी को भ्रष्टाचारी कहना क्या उसका अतिरिक्त अपमान नहीं  है  ऐसा करने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए  ।
    कम समय में नेता बनने के लिए सरल साधन आप जितने बड़े व्यक्ति को चोर घोटालेबाज भ्रष्टाचारी अपराधी लुटेरा आदि कुछ भी कह दें और समाज को समझा दें कि तुम्हारी गरीबत  का कारण यही नेता जी हैं जनता चूँकि परेशान है ही इसलिए उनके झूठ को भी सच मान लेती है इतने में  ही नए नए नेता जी चमक उठते हैं ।
    नेता जी किसी इतिहास पुरुष या सर्व सम्माननीय स्त्रीपुरुष धर्म संप्रदाय आदि को जितनी भद्दी गालियाँ  दे जाएँ और खेद प्रकट करने में जितना अधिक समय खींच ले जाएँ उनकी उतनी राजनैतिक पॉपुलैरिटी बढ़ती रहती है ।     
   जितने अधिक मीडिया में दिखाई पढ़ें उतनी जल्दी चमक उठते हैं क्योंकि हर क्षेत्र में गधों को घोड़ा बनाने का काम मीडिया आज बहुत अच्छी तरह से कर रहा है इसीलिए जो भी लोग अपने को गधा समझते हैं और बनना घोड़ा चाहते हैं किंतु उसके लिए जो ताकत चाहिए वो उनके पास होती नहीं है तब वो मीडिया की शरण पहुंचते हैं मीडिया उनका उद्धार कर देता है भले ही ये ज्योतिष और धर्म से जुड़े लोग ही क्यों न हों उनके पास भी अपनी कोई योग्यता नहीं होती अपने पास कोई डिग्री प्रमाण पत्र नहीं होते फिर भी मीडिया उन्हें केवल उनकी बकवास के बलपर  घोषित कर देता है ज्योतिषी !इसीलिए वो टीवी चैनलों पर दिन भर किया करते हैं बकवास ! खैर !!ये मीडिया का महत्त्व है । 
     इसीप्रकार से राजनैतिक क्षेत्र में भी गधों को घोड़ा  बना देता है मीडिया किंतु उसके लिए उसे देना होता है धन !क्योंकि टीवी चैनलों पर आने के लिए पैसा चाहिए वो ब्याज पर लेकर नौसिखिया नेता लोग राजनीति करेंगे क्या या उसके लिए लोन पास कराएँगे सरकार से ! स्वाभाविक है कि या तो वो अपराध से पैसे संग्रह करके अपना राजनैतिक जीवन डबलप करें और या फिर किसी अपराधी या अपराधी ग्रुप से इस कमिटमेंट के साथ अपने लिए फाइनेंस करवावें कि हम सत्ता में आएँगे  तब सरकार तुम्हारे अनुशार चलेगी  !
   राजनेता ईमानदार भी हों ये अच्छी बात है किंतु मेरे विचार से इस युग में किसी नेता से ईमानदारी की आशा करना ठीक नहीं है । बंधुओ ! एक किसान मजदूर ईमानदारी पूर्वक दिन भर परिश्रम करता है फिर भी परिवार पालना उसके लिए मुश्किल हो रहा है इसीलिए कई किसान घबड़ाकर आत्महत्या तक करते देखे जा रहे हैं वहीँ दूसरी ओर राजनीति वाले लोगों का काम क्या है वो करते क्या हैं करते कब हैं फिर भी उनकी अपार सम्पत्तियों के स्पष्ट स्रोत क्या हैं यह सब कुछ बारामूडा ट्रायंगल की तरह रहस्य ही बने हुए हैं इनके जाँच की प्रक्रिया अंतरिक्ष के किसी ब्लैक होल से कम नहीं है !राजनीति की इस अनसुलझी पहेली में सम्मिलित सभी दलों के लोग न इसे कभी सुलझने देंगे और न ही सुलझाएँगे इसी में उन सबकी भलाई है । केवल पक्ष विपक्ष की भूमिका निभाने एवं अपनी जीवंतता प्रदर्शित करने के लिए कभी कभी शोर मचाते रहेंगे ! इसलिए  जनता भी इसे रहस्य ही बना रहने दे इसी में उसकी अपनी भलाई है  । 
    ईमानदार राजनीति के लिए या तो पारदर्शिता पूर्वक सभी नेताओं की अकूत संपत्ति की जाँच शुरू से की जाए !जब उन लोगों का राजनीति में प्रवेश हुआ था तब वो क्या थे और आज क्या हैं सभी दलों के सभी नेताओं की सारी संपत्ति का ब्यौरा जनता के सामने रखा जाए नेट पर डाल दिया जाए जनता जनता जैसा उचित समझेगी वैसा अगले चुनावों उन नेताओं के पक्ष विपक्ष में फैसला सुनाएगी लोकतंत्र में वही मान लेना चाहिए !
   ये  किसी के फोटो किसी के साथ दिखाकर किसी की चिट्ठी दिखाकर किसी का स्टिंग करके दिखाना यह सब करने वाले पर भरोसा कैसे किया जाए कि उसने किस स्वार्थ के लिए  किया है या कोई ब्लैक मेलिंग तो नहीं हो रही है आदि आदि !
  इसके लिए विपक्ष को जनता को विश्वास में लेना होगा किन्तु वातानुकूलित भवनों को छोड़कर निकलना वे भी नहीं चाहते हैं अच्छा आचरण वे भी नहीं करना चाहते हैं जनता से आँख मिला कर बात करने में डर उनको भी लगता है इसलिए विधान सभा और लोक सभा में ही हुल्लड़ काट कर सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार के साथ साथ समाज के लिए यदि कुछ करना चाहता था वो विपक्ष नहीं करने दिया !इसमें नुक्सान जनता का है जिसको उसने बहुमत दिया है वो पाँच वर्ष तक तो अपनी कुर्सी पर रहेगा ही इसमें जिसको अपना घर भरना होगा वो भरेगा ही यही तो राजनीति है किंतु जनता का काम होगा या नहीं ये आप्सनल है हो भी सकता है नहीं भी विपक्ष ने हुल्लड़ मचाया तो नहीं ही होगा  !अगले चुनावों में विपक्ष अपने सेवा कार्यों को गिनाकर चुनाव नहीं जीतना चाहता है अपितु सरकार की नाकामियों को गिनाकर लड़ता है चुनाव !हर पार्टी यही करती है । 
   नेतागिरी के प्रारंभिक काल में तो नेताओं को भी कानून के अनुशार ही चलना होता है किंतु जैसे जैसे उनकी पद प्रतिष्ठा बढ़ने लगती है लोग जुड़ने लगते हैं वैसे वैसे वो नेता शक्तिशाली होने लगते हैं इसप्रकार से नेताओं की शक्ति जैसे जैसे आगे बढ़ने लगती है कानून वैसे वैसे पीछे छूटने लगता है धीरे धीरे एक समय आता है जब कानून बहुत पीछे छूट जाता है और नेता तेजी से आगे निकल जाता है । यहाँ पहुँचकर उसे या तो कोई राजनैतिक पड़ाव मिल जाता है या फिर मजबूत मंजिल ही मिल जाती है जहाँ उसकी अपनी पहचान ऐसी हो जाती है कि जिसे अपने गुणों का सम्मान तो मिलता ही है दुर्गुणों का सम्मान भी मिलने लगता है जिसकी एक आवाज पर उसके समर्थन में लाखों लोग निकल पड़ते हैं ऐसी परिस्थिति में महाबली नेता अपने को कानून से ऊपर समझने लगता है लोग भी उसके विषय में ऐसा ही समझने लगते हैं ऐसी अवस्था में बड़े बड़े आरोपों में आरोपी नेता जिन्हें वर्षों की सजा सुनाई जा चुकी होती है वो बड़े धूम धाम से महोत्सव पूर्वक जेल जाते हैं जब तक मन आता है तब तक वहाँ अपने हिसाब से रहते हैं इसके बाद बाहर आकर संपूर्ण राजनीति करते हैं मंत्री मुख्यमंत्री आदि सबकुछ अपनी सुविधानुशार बन जाते हैं इस प्रकार से संविधान को ठेंगा दिखा दिया जाता है । ऐसे नेता जेल से बाहर  निकलते हैं तो चहरे चमक रहे होते हैं कपड़े दमक रहे होते हैं बड़ी भीड़भाड़ आदि जुलूसों के साथ निकलते हैं जेल से नारे लगाते हुए लोग दौड़ रहे होते हैं । मीडिया वाले नेता जी से मिलने को बेताब होते हैं नेता जी को देखते ही घेर लेते हैं सबसे पहले नेता जी देश की कानून व्यवस्था पर प्रश्न उठाते हैं कि हमको गलत फँसाया गया था मेरे साथ षड्यंत्र हुआ था मुझे विश्वास था कि सत्य की विजय होगी सो हुई और मैं छूट गया !
          आम आदमी जेल से निकलता है तो महीनों  लग जाते हैं रूटीन में आने में लोगों से आँखें मिलाने की हिम्मत नहीं कर पाता  है ! चेहरा उदास शर्म के मारे पानी पानी होता है जनता उसे देखती है और नेता जी को देखती तो समझ जाती है कि ये सब ड्रामा है सजा कितने भी वर्ष की क्यों न हुई हो किंतु ये नेता लोग हैं अभी छूट आएँगे और जनता अनुमान लगभग ठीक होता है नेता जी छूट भी आते हैं ।ये नेताओं का महाबली अवतार होता है जब इन्हें सब डरने लगते हैं ये किसी को कुछ भी बोल सकते हैं किसी को गाली गलौच कर सकते हैं मारपीट भी कर सकते हैं कुछ भी करें वो  सर्वसक्षम कैटेगरी में आ जाते हैं !
     इस राजनैतिक कौशल से  न्याय को जीत लेने वाले उस महाबली को तब इस बात की चिंता ही नहीं रहती है कि वो किसी से कैसे बात व्यवहार करे या उसकी कमाई लीगल है या अनलीगल इसके बाद तो वो किसी को कुछ भी बोले और किसी के साथ कैसा भी गंदा व्यवहार करे कैसे भी धन संग्रह करे किंतु उसके बातों और व्यवहारों को सही एवं संविधान सम्मत सिद्ध करने के लिए भाड़े के सलाह कार,वकीलादि लगे होते हैं जिन्हें फीस ही एक बात की मिल रही होती है कि नेता जी के हर गैरकानूनी काम को ,व्यवहार को ,बयान  को कानून सम्मत सिद्ध करना होता  है । 

 

सांसदों के साथ अन्याय क्यों ?

4 रुपये में सांसदों को मिल रही फ्राइड दाल !..-एक खबर
  बंधुओ ! मैं तो कहूँगा कि सांसदों का शोषण आखिर क्यों किया जा रहा है ?जानिए कैसे !
      साधुओं के आश्रमों में लंगर चला करता है वहाँ तो खाओ और चले आओ अर्थात कोई पैसा नहीं लगता है फिर सांसदों को पापी पेट के लिए दाल के चार रूपए चुकाने पड़ते हैं आखिर क्यों ?देश सेवा तो वो भी करते हैं अपना घर परिवार छोड़े दिन भर संसद में पड़े रहते हैं क्या संसद उनको भोजन भी निशुल्क नहीं दे सकती !
   सांसद हों या आधुनिक हाईटेक संत ये दोनों समाज में बराबर माने जाते हैं ये दोनों भिक्षाव्रती हैं एक वोट माँगते दूसरे नोट माँगते हैं काम दोनों माँगकर ही चलाते हैं वैसे वोट भी बाद में नोट में कन्वर्ट हो ही जाता है । 
       इन  दोनों के पास कोई रोजी रोजगार नहीं होता है हो भी तो करें कब समय कहाँ होता है और फिर जरूरत क्या है ! एक को नेतागीरी से फुर्सत नहीं होती तो दूसरे को सधुअई से ! और कोई काम करने की इन्हें जरूरत भी नहीं होती है क्योंकि देश के जो भी लोग धंधा व्यापार आदि कुछ भी करते हैं उसके प्रॉफिट पर ये दोनों अपना स्वाभाविक हक़ मानते हैं !
    नेता इस लोक को सँवारने की बात करते  हैँ साधू उस लोक की !नेतासंविधान की बात करते हैं साधू शास्त्रों की किंतु न ये संविधान जानते हैं न वे शास्त्र !एक कानून का भय देकर मांगता है तो दूसरा पाप का भय देकर! दोनों को सारे भोग और भोजन सामग्री समाज से ही चाहिए होती है मांगने के लिए नेता रैली करता है तो साधू सत्संग !भाषण की लत दोनों को होती है एक लाल कपडे पहनता  है तो दूसरा सफेद !दोनों भीड़ के साथ चलते हैं  नेता भ्रष्ट होते हैं तो कहते हैं आरोप साबित हुए तो संन्यास ले लूँगा इसी प्रकार साधू राज नीति करने लगते हैं । नेता साधू के साथ फोटो इसलिए बनाते हैं कि लोग उन्हें ईमानदार समझें और साधू लोग नेता के साथ इस लिए दाँत निपोर रहे होते हैं ताकि लोग उन्हें सोर्स फुल समझें और उनके दवा दारू के व्यापार में अधिकारी रोड़ा न लगावें !   दोनों की औकात उनके फालोवर्स से आँकी जाती है ।
    कुल मिलकर दोनों की दोनों से हर जगह तो बराबरी है फिर साधुओं के आश्रमों में लंगर चला करता है वहाँ तो खाओ और चले आओ अर्थात कोई पैसा नहीं लगता है फिर सांसदों को पापी पेट के लिए दाल के चार रूपए चुकाने पड़ते हैं आखिर क्यों ?देश सेवा तो वो भी करते हैं अपना घर परिवार छोड़े दिन भर संसद में पड़े रहते हैं क्या संसद उनको भोजन भी निशुल्क नहीं दे सकती !

नेताओं का जहरीला व्यवहार एवं गिरताचरित्र और बिगड़ती बोली भाषा से बर्बाद होते बच्चे,टूटते संबंध और बिखरते परिवार !

   ऐसे निर्जीव राजनैतिक वातावरण ने समाज को कितना संवेदना शून्य बना दिया है राजनीति अब तो घरों में घुसी घूम रही है हर कोई डिप्लोमेटिक होता जा रहा है !फिर भी नेता हैं कि सुधरने को तैयार ही नहीं हैं ! 
  आज अपराधी मर्डर अपहरण जैसा अपराध करने से पहले भी हिसाब किताब लगाने लगे हैं कि ये करने के लिए पुलिस को क्या देना पड़ेगा ,नेता जी के पार्टी फंड में क्या जमा करना पड़ेगा केस लड़ने में क्या लगेगा आदि पूरा स्टीमेट बनाकर तब करते हैं अपराध !
    आज हर कोई किसी और को अपने चक्रव्यूह में फाँसने के लिए झूठ बोलने लगा है बाद में मुकर जाता है अपना स्वार्थ साधने के लिए आश्वासन देता है बाद में मजबूरियाँ गिनाने लगता है कोई किसी को कितनी भी गहरी चोट देता है और बाद में सॉरी बोलकर निकल जाता है !ऐसे  राजनैतिक वातावरण ने समाज को कितना संवेदना शून्य बना दिया है !इसका कुछ उपाय तो  खोजा  जाना चाहिए और देश के सभी चुनाव एक साथ कराने की पद्धति पर विचार किया जाना चाहिए जिससे पाँच वर्षों में एक बार होली दीपावली के त्यौहार की तरह चुनावी त्यौहार भी हो जाए इसके बाद फुरसत में मीडिया से लेकर सभी राजनैतिक दल एवं सत्तासीन दल और लोग देश एवं समाज के लिए भी कुछ सोचें और कुछ करें भी । ऐसे देश देश में हमेंशा चुनावी वातावरण ही बना रहता है अपना अपना काम छोड़ कर हर कोई चुनावी चिंतन चर्चा जोड़ तोड़ आदि में बेमतलब में ब्यस्त रहता है ये चुनाव के लिए अच्छा हो सकता है किन्तु इसका दुष्प्रभाव आम जनता के बात व्यवहार में घुसकर परिवारों एवं समाज के मधुर संबंधों को जहरीला बनाता जा रहा है । 
      श्रीमान जी,देश की स्थिति पर आप सभी की तरह ही मैं भी चिंतित हूँ,किन्तु परिस्थितियाँ दिनों दिन अनियंत्रित होती जा रही हैं।राजनैतिक बात ब्यवहारों ने देश, समाज एवं परिवारों  की समरसता को छिन्न भिन्न सा कर दिया है। घर घर एवं जन जन के मन में ऐसी राजनीति समाई हुई है कि लोग अपनों से परायों जैसा कूट नैतिक वर्ताव करने लगे हैं। हर किसी के पास प्रकट बोलने के लिए कुछ नहीं है लोग सब कुछ छिपाना चाहते हैं,न जाने कितना और किस बात का भय समाया हुआ है लोगों में !इसीप्रकार मोबाईल पास में है किन्तु बात किससे करें?उन्हें भय है कि कहीं कुछ छिपा हुआ खुल न जाए !इस डर से मन की बात किसी से कहना नहीं चाहते! परेशान होकर भड़भड़ाते हैं तो किसी किसी को फोन मिला लिया करते  हैं किन्तु इधर उधर की बातें करके रख देते हैं फोन!इसीप्रकार कई कई गाड़ियाँ दरवाजे पर खड़ी हैं किन्तु जाएँ किसके घर !कहीं शांति नहीं है।
   पार्कों, राहों, चौराहों, बाजारों में  अपरिचित या अल्प परिचित लोगों से कभी कभी हो जाती हैं कुछ बातें!उसमें भी कुशल डिप्लोमेटिक लोगों की तरह एक सीमा रेखा खींच कर बात करनी होती है।उनके एजेंडे के हिसाब से कुछ विषय निश्चित होते हैं,जैसे- राजनैतिक या हवा पानी के प्रदूषण की बातें,महँगाई एवं सामाजिक क्राइम सम्बन्धी चर्चाएँ,स्वास्थ्य तथा खाने पीने की बातें करते कराते बीत रही हैं जिंदगी की बहुमूल्य स्वाँसें,किन्तु मन किसी से नहीं खोला जा रहा है। समाज के मन में यह अघोषित सा भय व्याप्त  है कैसे निकाला जाए इसे ! इसी अर्द्ध चेतनता के घुटन भरे वातावरण में हो रहे हैं सब प्रकार के अपराध ! अनिच्छा से ही सही जबर्दश्ती घुट घुट कर जीते जा रहे हैं लोग!हँसने के लिए एक्सरसाइज करनी पड़ रही है।आज अपनों के बीच बैठकर हँसने मुस्कुराने की हिम्मत ही नहीं पड़ रही है।लोग अपनों से मिलते ही कहना शुरू कर देते हैं आओ कभी घर खाना खूना खाओ,चाय पानी सानी पियो!इसी प्रकार कभी कोई घर आ जाए तो आते ही और गरम लोगे या ठंडा ?इसप्रकार खिला पिलाकर बिना कुछ बात चीत किए ही उसे यह कहकर बिदा कर देते हैं कि अच्छा ठीक है फिर कभी आना,बस इतना कहकर जोड़ देते हैं दोनों हाथ ! इस प्रकार भगा दिया जाता है आगंतुक अतिथि नातेरिश्तेदार !अतिथि पूजन वाले देश में क्या यही अतिथि सत्कार है!ऐसा क्यों समझा गया कि वह केवल खाने पीने के लिए ही यहाँ आया था।हो सकता है कि वह भी अपने मन की कोई बात ही आप से कहकर अपना मन ही हल्का करने आया हो !
    इसी प्रकार तिथि त्योहारों में भी यही मनहूसियत छाई हुई है ।शादी विवाहों के कार्यक्रम आयोजित करने वाले लोग पैसा तो अपनी औकात से अधिक लगा रहे होते हैं शादी में ! लेकिन जरा जरा सी बात पर ऐसे  चिड़ चिड़ाने लगते हैं।मानों खिलापिलाकर समाज का ऋण उतार रहे हों !
      जिसके भरोसे  अपना काम आगे भी चलना होता है या जिसके पास अधिक पैसा होता है या नेता ख़ूँटा, अथवा अधिकारी टाइप का कोई भारी भरकम आदमी, जिसे शादी पर बुलाने के लिए बाप बेटों ने औकात लगा रखी होती है बस उसकी प्रतीक्षा हो रही होती है उसी को फोन पर फोन हो रहे होते हैं उसी के विषय में चर्चा हो रही होती है उसी के साथ केवल मोबाईल पर बात हो रही होती है,पिता पुत्र मिला रहे होते हैं बस उसी को फोन!!!उसे ही रास्ता बताया जा रहा होता है कि आपको कहाँ से कैसे कैसे आना है!उसके आने पर ही सारा प्रोग्राम प्रारंभ होता है बस उसी के साथ फोटो खिंचवाई जाती हैं।उसके अतिथि सत्कार को देखकर वर बिचारा मन ही मन परेशान होता है वह मन ही मन सोच रहा होता है कि शादी हमारी और स्वागत इनका !!!खैर, उसी  बलिपशु से वर बधू को आशीर्वाद दिलवाया जाता है, जब किसी शादी समारोह में ऐसे किसी बलिपशु के पीछे पीछे घर के सारे सदस्यों को घूमते देखा जाता है तो लोग समझ ही लेते  हैं कि ये तो कँगले हैं इसी बलिपशु की कमाई के सहारे जीते हैं ये लोग! शादी के बाद भी इन्हीं के गले पड़ेंगे ये सारे पिता पुत्र आदि सारा परिवार !!!इसलिए इधर उस बलिपशु के तलवे चाटने में पूरा कुनवा लगा है उधर आए हुए बाकी व्यवहारियों  से मिलने वाला घर का वहाँ कोई होता नहीं है तो व्यवहारी लोग आपस में ही मिल जुल कर लिफाफा पकड़ाते और चले जाते हैं खाएँ न खाएँ कहाँ कोई है कोई पूछने वाला?आज हम लोग इतने स्वार्थी हो गए हैं। 

    बच्चे के जन्म से लेकर अब तक आशा लगाकर बैठे  दादा दादी का आशीर्वाद मारा मारा फिर रहा होता है!दादा दादी की तबियत खराब बताकर उन्हें नींद की गोली देकर सुला दिया जाता है उन्हें क्या पता कि आखिर उन्हें चक्कर क्यों आ रहे थे?नींद की गोली कोई बता कर थोड़े ही दी जाती है। 

     बुआ बहन बेटी टाइप की घर की बेटियों से  कौन मिलना चाहता है ? उल्टा वही मिलकर साथ लाई अपने अपने पतियों को समझा देती हैं कि सारा काम यही सँभाल रहे हैं इसलिए बहुत ब्यस्त हैं।खैर,क्या कहें! पहले तो लोग खाना पीना स्वयं बनाते थे फिर भी पूछ लेते थे एक दूसरे के सुख दुःख हाल समाचार,एवं  खाने पीने के लिए आदि आदि। आधुनिकता के चक्कर में कहाँ पहुँच रहे हैं हम लोग ?क्या  पहले लोग कमाते खाते नहीं थे आज अपहरण करके फिरौती वसूलने या घूस लेने की जरूरत क्यों पड़ती है क्या आज अधिक खाया जाने लगा है ? सच्चाई तो यह है कि आज आधुनिकता के नाम पर गंध खाया जाने लगा है!

      क्या पहले शादियाँ नहीं होती थीं ?आज बस इतने लिए मित्रता के नाम पर मूत्रता के लिए पागल हो रहा है समाज!इसे प्यार कहा जा रहा है ये दुर्भाग्य है कि मनुष्य योनि प्राप्त करके भी चिंतन केवल सेक्स का !यह तो पशु योनि में भी संभव था।ईश्वर ने हमें मनुष्य बनाया है इसमें ईश्वर हमसे कुछ और कराना चाह रहा होगा जो पशु योनि में संभव न हो सकता था ।आधुनिकता के नाम पर छोटी छोटी पर अत्याचार !ये अपने देश की संस्कृति तो न थी इस देश की तो पहचान ही संयम से थी!क्या हो गया है अपने दुलारे भारत वर्ष को!फैशन ने बरबाद कर दी अपनी संस्कृति! पहले हम ऐसे तो न थे !

  पहले लोग  सेक्स और निजी सुख सुविधाओं से ऊपर उठकर देश और समाज के लिए भी कुछ करते  थे  अब सारी जिंदगी ही मुखता(खाना)  से मूत्रता(सेक्स) के बीच समिट कर रह गई है इसके अलावा किसी के लिए कोई दायित्व महत्वपूर्ण बचा ही नहीं है क्या हो गया है अपने इस भारतीय समाज को ?

    
   

Thursday, 25 June 2015

बजट की बातों और चुनावी वायदों से मेरा तो विश्वास उठ गया है !

 सरकारी स्कूलों में बच्चों के भविष्य के साथ न्याय भी होगा क्या ?
    बजट और बातें हर पार्टी अच्छी ही करती है किंतु उनका कार्यान्वयन ठीक से होना चाहिए !बंधुओ ! संसाधनों की कमी का मतलब ये तो नहीं है कि शर्दियों में सुबह सुबह तैयार होकर सिकुड़ते समिटते बच्चे स्कूल आवें  उन्हें तो कमरों में कैद करके  शिक्षक धूप सेंकते रहें ! लंच करा दें और छुट्टी के समय बिदा  कर दें !बंधुओ ! शिक्षा के प्रति  समर्पित होने के कारण मैं भी अक्सर सरकारी एवं प्राइवेट  प्रारम्भिक स्कूलों में जाया करता हूँ और शिक्षकों एवं बच्चों से मिलना अच्छा लगता है कई बार तो  हमारी दी हुई बिना माँगी सलाहें कुछ लोगों को परेशान भी करती हैं किंतु मुझे लगता है कि अच्छाई के लिए ऐसा करने में कोई बुराई नहीं है ।  बंधुओ ! सरकारी लापरवाही के कारण स्कूलों में शिक्षक आवें या न आवें स्कूल में रुकें या न रुकें कक्षा में जाएँ या न जाएँ वहां जाकर भी पढ़ावें या न पढ़ावें कितनी देर पढ़ावें क्या पढ़ावें या कुछ न पढ़ावें मोबाइल पर बैठे बातें करते रहें कौन है उन्हें टोकने वाला । 
     बंधुओ ! दिल्ली की शिक्षा को सुधारने के लिए दिल्ली सरकार को सबसे निगरानी तंत्र सुधारना होगा !स्कूलों में डालने होंगे आकस्मिक छापे और गैर जिम्मेदार लोगों पर करनी होगी कठोर कार्यवाही !शिक्षकों से मांगना होगा शिक्षा का हिसाब कि आपके स्कूलों की शाख प्राइवेट स्कूलों से कमजोर क्यों है आप ट्रेंड हैं आप को उनसे अधिक सैलरी मिलती है किंतु आप अपने स्कूलों की प्रतिष्ठा क्यों नहीं बना पा रहे हैं ! आप लोग अपने बच्चे पढ़ाने लायक ये स्कूल क्यों नहीं समझते हैं जबकि इन स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था सुधारना आपकी जिम्मेदारी है !इसका जवाब उनसे लिया जाना चाहिए और  सुनी जानी चाहिए उनकी भी मजबूरियाँ किंतु संसाधनों की कमी का मतलब ये तो नहीं है कि शर्दियों में सुबह सुबह तैयार होकर सिकुड़ते समिटते बच्चे स्कूल आवें  उन्हें तो कमरों में कैद करके  शिक्षक धूप सेंकते रहें ! लंच करा दें और छुट्टी के समय बिदा  कर दें ! क्या ये बच्चों के भविष्य के साथ न्याय है और यदि नहीं तो इसके लिए शिक्षक उतने दोषी नहीं जितने वे अधिकारी हैं जो अपनी आफिसों से निकल कर स्कूलों की ओर नहीं जाते हैं और उनसे ज्यादा वो सरकारें  दोषी हैं जो शिक्षा में दिखावा के लिए सारे  ड्रामें करती हैं किंतु निगरानी तंत्र मजबूत नहीं करती हैं ऐसे शिक्षक लाखों भर्ती कर लिए जाएँ तो क्या होगा पहले जो हैं उनसे तो काम लेने की जुगत सीखनी होगी ।
    पूर्वी दिल्ली छाछी बिल्डिंग कृष्णा नगर  में मेरा घर हैं जहाँ एक ओर कृष्णा नगर तो दूसरी ओर वेस्ट आजाद नगर है आस पास के सरकारी निगम एवं प्राइवेट प्रारंभिक स्कूलों की गैर जिम्मेदार शिक्षा व्यवस्था से मैं भी सुपरिचित हूँ जहाँ शिक्षकों की कमी कारण नहीं है अपितु कारण सरकार का निगरानी तंत्र कमजोर होना एवं अधिकारियों का कर्तव्य विमुख होना है । अपने पास के ही एक सरकारी स्कूल में मुझे किसी काम से सुबह के समय में कई दिन जाना पड़ा कुछ देर के लिए रुकना भी पड़ा !वहां देखा एक कमरे में बैठी शिक्षिकाएँ पूरे समय शोभा बढ़ा रही थीं चल रही थीं घर गृहस्थी की चर्चाएँ ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी शादी विवाह के पंडाल के किसी कोने में सजने संवरने की गहमा गहमी चल रही हो ! किंतु  हमने जब कहा तो पता लगा अगले दिन से मुझे घुसने ही नहीं दिया गया स्कूल में । उसके एक सप्ताह बाद स्थानीय विधायक जी उनकी सेवाओं से खुश एकदम गदगद दिख रहे थे !
   खैर, ये स्थिति केवल यहीं की नहीं अपितु मिलीजुली हर स्कूल की ही है कहीं कुछ कम है कहीं कुछ अधिक है किंतु सरकारी शिक्षा की कमजोरी की सबसे बड़ी वजह है कि जिम्मेदार लोगों का अपना कोई नुकसान नहीं होता इसलिए शिक्षकों पर शक्ति क्यों करनी !वोट लेने का समय आता है  तब यही बजट यही शिक्षकों की भर्ती आदि आंकड़े हर सरकार बताया करती है किन्तु क्या  ये बच्चों के भविष्य के साथ न्याय है ?
         प्राइवेट स्कूलों की भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं दिखती है बड़े प्राइवेट स्कूलों से तो सभी परिचित होते ही हैं मीडिया भी उन्हीं की खबरें दिखाता है किंतु गली मोहल्लों में चलने वाले छोटे स्कूलों को भी तो कोई देखे !कई प्राइवेट स्कूल  ऐसी जगह चलने की अनुमति दी गई है जहाँ से निकलने में दम घुटती है सरकारी अधिकारी अनुमति देते समय कम से कम ये तो देख लेते कि जब छुट्टी के समय बच्चों के झुंड निकलेंगे तो  स्कूल के आसपास की इन  इतनी सँकरी गलियों से कैसे निकल पाएँगे बच्चे ! वो भी नालियाँ जाम हैं पानी ऊपर से निकल रहा है उससे निकलना होता है बच्चों को कोई बच्चा गिर जाए फिसल जाए कोई धक्का ही दे दे छोटे छोटे बच्चे होते हैं कौन सँभालेगा उन्हें !
   उस रास्ते से एक दिन मुश्किल से मैं निकल पाया तो मैंने सोचा कि जाकर स्कूल वालों को कहूँ कि स्कूल के दरवाजे की गली खुद ही साफ करवा लिया करो  आखिर बच्चे तो सुरक्षित रहें ! मैं वहां गया आफिस में बैठा बहुत सुन्दर आफिस था रिसेप्सनिस्ट एक सुन्दर सी लड़की  को बुलाया गया उससे मेरा परिचय करवाया गया कि ये बहुत जिम्मेदार हैं और भी कुछ लोग मिले अच्छा लगा आफिस और रिसेप्सन  के दरवाजे पर छोटा सा ग्राउंड था जहाँ गमले वमले खूब सजाए गए थे सब  कुछ अच्छा था ! तब तक बत्ती चली गई तो जरनेटर चला दिया । हम लोग A C में बैठे थे अच्छी चर्चा हुई फिर मेरी इच्छा बच्चों से मिलने की हुई तो मैंने उनसे कक्षा में जाकर कुछ बच्चों से मिलने की इच्छा जाहिर की जिसे उन प्रबंधक +प्रधानाचार्य महोदय ने शिरे से नकार दिया कि  कक्षा  में क्यों जाना ! खैर, मेरी अधिक उत्सुकता देखकर वो कंप्यूटर पर कैमरे में कक्षाएँ दिखाने  लगे  जहाँ कमरों में पढने लायक प्रकाश नहीं पहुँच पाता था ,पंखे बंद देखे बच्चों की बेचैनी देखकर लग रहा था कि घुटन का माहौल है बच्चे गर्मी से बहुत बेचैन थे ये बात पिछली जुलाई की है ! मुझसे रहा न गया मैंने उनसे पूछ ही दिया कि कक्षाओं में प्रकाश नहीं हैं पंखे चल नहीं रहे हैं बच्चे परेशान लग रहे हैं ?तो उन्होंने वेल बजाई चपरासी दौड़ता हुआ आया तो इन्होने डांटते हुए उससे कहा कि अंदर पंखे क्यों नहीं चल रहे हैं तुम ठीक नहीं करा सकते थे !इसपर उसने कहा सर! सारे पंखे ठीक हैं सब चल रहे हैं तो उन्होंने कहा कहाँ चल रहे हैं देखो सब बंद हैं तो चपरासी ने कहा सर अभी तक तो चल रहे थे बत्ती चली गई तबसे बंद हैं जरनेटर से तो उनका कनेक्सन है नहीं यह सुनते ही उन्होंने उसे बहुत झाड़ा बोले इतने लापरवाह हो तुम लोग! तो उसने कहा कि सर कक्षाओं में तो जरनेटर का कनेक्सन कभी नहीं रहा किन्तु आप कहते हैं तो करा देंगे खैर वो चला गया ! 
    इसके बाद उन्होंने हमसे  अपनी राजनैतिक पहुँच का बखान किया कई बड़े लोगों के साथ अपनी फोटो दिखाईं फिर अपने मुख से अपनी विरुदावलि सुनाई ! हमने भी उनकी प्रशंसा की और चला आया ! मैं छाछी बिल्डिंग पर रहता हूँ मेरे घर के पास ही वो स्कूल है किंतु दुबारा मैं वहाँ नहीं गया !आखिर किसी को बुरा लगे तो क्यों जाना !
     बंधुओ ! किंतु  प्राइवेट हैं तो क्या उनके प्रति सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है कल कोई घटना घटती है तब सरकार नहीं तो कौन जिम्मेदार होगा !खैर सरकार को जो उचित लगे वो सरकार करे किंतु बजट की बातों और चुनावी वायदों से मेरा तो विश्वास उठ गया है !जब तक सामने कुछ होता हुआ न दिखाई दे !फिर भी सरकार के उत्तम भविष्य के लिए हमारी शुभकामनाएँ !



Thursday, 18 June 2015

आपातकाल हो या वर्तमानकाल अधिकार तो तब भी जनता के पास नहीं थे अब भी नहीं हैं ! फिर काहे का लोकतंत्र ?

    काश !हमारे देश में भी लोकतंत्र होता !जिसमें जनता जो चाहती वो होता या फिर जनता की बात भी सुनी जाती !यह तो नेतातंत्र है इसमें नेता जो चाहते हैं वही होता है !
     यदि देश में लोकतंत्र होता तो किसानों की भी सुनी जाती और उन्हें नहीं करनी पड़ती आत्महत्या !किसी पत्रकार को कोई मंत्री जिंदा कैसे जला  सकता था,सरकारी प्राइमरी स्कूलों में क्यों नहीं होती है पढ़ाई !सरकारी अस्पतालों में क्यों नहीं मिलती दवाई ? सरकारी आफिसों में आम जनता को धक्के क्यों खाने पड़ते,FIR लिखवाने के लिए नेता जी से फोन क्यों करवाना पड़ता !सरकारी विभागों में अधिकारी कर्मचारियों के द्वारा क्यों की जा रही होती उपेक्षा ?इसलिए लोकतंत्र का तो नाम ही नाम है  वोट देने के अलावा कौन पूछता है जनता को !कलियुगी परिवारों में विवाहादि काम काज के समय बुजुर्गों को जिस तरह केवल हाँ करने के लिए बैठा लिया जाता है वही स्थिति भारतीय लोकतंत्र में जनता की है ।
    जनता को पता नहीं है कि नेताओं की अकूत संपत्ति के स्रोत क्या  हैं इतना जरूर है कि ईमानदारी पूर्वक बिना कुछ किए इतने पैसे कमाए ही नहीं जा सकते !फिर भी हमारे नेता कमा लेते हैं वो कब काम करते हैं क्या काम करते हैं किसी को नहीं पता होता है किंतु संपत्ति हजारों करोड़ में होती है !दूसरी और परिश्रमी किसान मजदूर मर रहे हैं काम कर कर के उन्हें दाल रोटी के लाले पड़े होते हैं !आखिर कैसा है ये लोकतंत्र ?जहाँ जनता को कुछ पता ही नहीं है फिर भी जनतंत्र है 
   अधिकार तो तब भी सरकार  और उसके कर्मचारियों के पास थे और अभी भी वहीँ हैं किंतु आमजनता तो केवल वोट देने के लिए होती है
 जनता भी राजनैतिक पार्टियों की लड़ाई तो लड़ा करती है एक को हटाना दूसरे को बैठाना दूसरे को हटाकर तीसरे को बैठाना  किन्तु अपनी लड़ाई कब और कैसे लड़ेगी जनता जिससे आएगा जनतंत्र ?
      वैसे भी वर्तमान समय में लोकतंत्र और कानून का सम्मान तो गरीब एवं  मध्यमवर्ग करता है धनी और नेताओं  का तो कानून स्वयं अनुगमन करने लगता है । ऐसे नेता जनता के अधिकारों की उपेक्षा करके मनमानी करने लगते हैं दूसरी ओर जनादेश संपन्न शासकों के सामने मुख खोलने का साहस किसी में नहीं होता !नौकरी करनी हो या राजनीति जहाँ जनादेश वहाँ सैल्यूट ! ऐसी परिस्थिति में लोकतंत्र कैसे संभव है ?
    जिस नेता  को चुनावों में बहुमत मिलजाता है वो प्रायः उस जनादेश का अपने को मालिक समझने लगता है जनादेश का गुरूर उसके  चेहरे पर साफ झलकता दिखता है वो दिखावटी विनम्रता चाहे जितनी ओढ़े किंतु सच्चाई झलक ही जाती है !जनादेश संपन्न नेता अपने को सर्वगुण संपन्न समझने लगते हैं उनकी जहाँ जरूरत है वहाँ उतना ध्यान न देकर जो काम समाज के अन्य लोगों के होते हैं वहाँ अपनी बहुमूल्य ऊर्जा लगाया करते हैं !जनादेशशक्ति से सक्षम शासक जिसे जैसा चाहे वैसा नाच नचावे अपने देश और प्रदेश के अपने मातहत लोगों से जो चाहे सो करवावे , वो कह दे कि कान पकड़कर उठो बैठो तो उसे वैसा करना पड़ेगा !आखिर पाँच वर्ष तक उसका चाह कर भी दूसरा कोई  क्या बिगाड़ लेगा बहुमत उसके साथ है । नौकरी करनी हो या राजनीति जहाँ जनादेश वहाँ सैल्यूट अन्यथा गए काम से !
    ऐसे शासक चाहें तो अपनी ताकत का इस्तेमाल निगरानी तंत्र को मजबूत बनाकर जन सेवा के लिए कर सकते हैं वालेंटियर तैयार करके घुसाए जा सकते हैं सरकारी कार्यालयों में जहाँ जनता को अकेला जूझना पड़ता है आखिर आम जनता की बात सुनने वाला वहाँ कोई तो होगा जो सुने और समझेगा जनता की परेशानी किंतु उसमें ठसक नहीं दिखाई पड़ती है इसलिए प्रायः ऐसे प्रशासक तमाशा पसंद होते हैं जिसका पता पाँच वर्ष बीतने पर लगता है !
     एक ओर लगातार काम करने पर भी आम जनता को दाल रोटी जुटाने के लाले पड़े होते हैं परिश्रमी किसान जरूरत की चीजों की चिंता में आत्महत्या कर रहे होते हैं जबकि नेताओं के पास न कोई काम  करने का समय न कोई काम करते देखता है किंतु जहाँ जाते हैं वहाँ जहाजों से, रहते हैं कोठियों में, टहलते हैं महँगी गाड़ियों से, बच्चे पढ़ाते हैं महँगे स्कूलों में , इनके बेटा बेटियों के शादी विवाह में तो करोड़ों का पानी पी जाते हैं लोग अंदाजा लगाओ क्या खर्च होता होगा कार्यक्रमों में ! नेता लोग एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं किंतु सत्ता में आने पर शांत हो जाते हैं । 
       कई नेता हजारों करोड़ के आरोप में जब जेल जाते हैं तो इतने धूम धाम से भेजे जाते हैं कि लगता है जैसे किसी तपस्वी पर अत्याचार हो रहा है और जब छूटकर आते हैं तो उनका काफिला देखकर लगता है जैसे किसी संत का स्वागत हो रहा है !जिन्हें हजारों करोड़ के गमन में वर्षों की सजा सुनाई जाती है वो सप्ताहों महीनों  में छूट आते हैं चुनाव लड़ते लड़वाते मंत्री मुख्यमंत्री आदि कुछ भी बन जाते हैं और नहीं तो मेकर आफ मंत्री या मुख्यमंत्री आदि और भी बहुत कुछ बन जाते हैं  और वो गमन वाले हजारों करोड़ कहाँ जाते हैं पता ही नहीं लगता । 
     दूसरी बात सरकारी अफसरों एवं धनी लोगों की आपसी साँठ से भोगा  जाता है देश का धन । छोटे छोटे जिन अधिकारी कर्मचारियों पर छापे पड़ते हैं तो सैकड़ों करोड़ की संपत्ति बरामद होते देखी जाती है और जिन पर नहीं पड़ते वो ईमानदार रईस ।छापे डालने आखिर कोई जाए क्यों मिल भी जाएगा तो कौन अपनी जेब में जाएगा !सरकारी कर्मचारियों की इसी अनात्मीय भावना ने देश की आम जनता की नजरों में सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों को अविश्वसनीय बना दिया है !
     प्राइवेट प्राइमरी स्कूलों में एक प्रबंधक बहुत कम पैसे देकर अपने अनट्रेंड शिक्षकों से उत्तम शिक्षा दिलवा  लेता है जबकि सरकारी लोग भी अपने बच्चों को उसी प्राइवेट में पढ़ाते हैं सरकारी स्कूलों में नहीं आखिर क्यों ? जबकि सरकार शिक्षा के लिए बड़े बड़े विज्ञापन करती है शिक्षा के लिए योजनाएँ बनाने के लिए बड़े अफसर रखती है मीटिंगें  करने के लिए ट्रेंड शिक्षक रखती है उन्हें प्राइवेट की अपेक्षा अधिक सैलरी देती है इसके बाद भी उनकी सैलरी आदि बढ़ाती रहती है फिर भी वो कभी कभी रूठ जाते हैं तो हड़ताल करने लगते हैं तो सरकार उनकी मनौवल कर रही होती है आखिर क्यों जबकि उनसे अधिक योग्य लोग उनसे कम सैलरी पर काम करने को तैयार होते हैं फिर भी सरकारों की मजबूरी क्या होती है क्यों बनने देती है यूनियनें क्यों है हड़ताल की सुविधा !सीधीबात जिसको  समझ में आता है सो नौकरी करे अन्यथा त्याग पत्र देकर अन्य योग्य जरूरत मंदों को मौका दे !किन्तु सरकारें ऐसा क्यों करें उनके बच्चे वहां पढ़ते नहीं हैं  इससे उनका अपना कोई नुकसान नहीं है जिस आम जनता का है वे कुछ कर नहीं सकते !सरकारी विभागों में कर्मचारियों का जनता के प्रति प्रायः यही रुख होता है जनता उन्हें कुछ ले देकर काम करवावे या हाथ पैर जोड़कर या उनके ठनगन सहकर !इसके अलावा जनता के पास कोई अधिकार नहीं होते हैं उनसे काम लेने के !

    अपने देश के ब्राह्मणों के साथ सौतेला बर्ताव करती हैं सरकारें !समाज को लूट कर संपत्ति बनाते हैं नेता !और अपनी चोरी न पकड़ जाए इसलिए बदनाम सवर्णों ब्राह्मणों या हिन्दुओं को किया करते हैं !
    बंधुओ ! सवर्णों ब्राह्मणों और हिन्दुओंने कभी किसी का शोषण शोषण का अधिकार केवल नेताओं के पास है किंतु चुनावी विजय हेतु दलितों की आँखों में धूल झोंकने के लिए ब्राह्मणों को दोषी ठहरा देना और अम्बेडकर साहब को ब्रह्मा विष्णु महेश क्या साक्षात परमात्मा तक बता देना इन सत्ता लोलुपों की मजबूरी है!इन्हें पता है कि अल्पसंख्यक ब्राह्मणों की अपेक्षा अधिसंख्यक दलितों को खुश करने के लिए ब्राह्मणों को बदनाम तो करना ही होगा इसी से वोट अधिक मिल सकते हैं!क्योंकि अपनी अच्छाईयों का इन्हें भरोसा ही नहीं होता है इसी लिए हिन्दू मुश्लिमों तथा दलित और सवर्णों को भिड़ाकर ही लूट रहे हैं देश वासियों के हिस्से का धन !फिर भी कहते हैं ये लोकतंत्र है वस्तुतः भारतवर्ष में नेता तंत्र है । 
        ब्राह्मण ही एक मात्र ऐसी जाति है जिसे न तो इतिहास में कभी किसी से कोई उम्मींद रही और न ही भविष्य में है लोकतंत्र और आजादी जैसे शब्दों के नाम पर ब्राह्मण केवल जश्न मना सकता है निष्ठा व्यक्त कर सकता है किंतु अपनी बीमारी से लेकर सभी प्रकार अभावों से जूझना उसे स्वयं ही पड़ेगा सरकारों राजनेताओं से उन्हें कोई सहारा नहीं है और न ही आगे की संभावना है । सरकार की शिक्षा रोजगार समेत बहुत सारी योजनाओं का अभिप्राय किसी का विकास नहीं अपितु केवल ब्राह्मणों को अपमानित करना होता है !और इसकी कहीं सुनवाई नहीं होती है । 
    चुनावों के समय सभी पार्टियों के नेता भ्रष्टाचार और घोटालों की बड़ी बड़ी बातें करते हैं भ्रष्टाचारी नेताओं के नाम गिनाते हैं जनता उन झुट्ठों की बात मान कर उन्हें सत्ता सौंप देती है कि शायद ये ही भ्रष्टाचारियों को पकड़ें और स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके किंतु जब वो सत्ता में आते हैं तो उन्हें पकड़ना तो दूर खुद लूटने लग जाते हैं !ऐसे नेता किस मुख से सवर्णों और ब्राह्मणों पर मढ़ते हैं दलितों के शोषण का दोष !दलितों के मसीहा माने जाने वालों  को भी शरण किसी ब्राह्मण ने ही दी थी बात और है कि बाद में उन्हें भी  ब्राह्मणों में ही कमियाँ दिखने लगीं !
      सभी जातियों एवं पार्टियों के नेता लूटते खुद हैं तिजोरियाँ अपनी भरते हैं किंतु उनकी लूट घसोट कहीं पकड़ न जाए इसलिए नाम ब्राह्मणों और सवर्णों का लगाते हैं ! दलितों के शोषण लिए घड़ियाली आँसू बहाने वाले सभी जातियों के नेता राजनीति में आए थे तब इनके पास पैसे कितने थे और आज संपत्ति के पहाड़ तैयार कैसे किए गए हैं आखिर उन नेताओं के आय के स्रोत थे क्या ? इसकी ईमानदार जाँच होते ही पता चल जाएगा कि दलितों के शोषण का धन गया कहाँ किस्से कुकर्मों को भोग रहे हैं देश के सभी वर्ग !
     दलितों के शोषण का जिम्मेदार ब्राह्मणों को ठहराते रहते हैं अरे !शोषण केवल दलितों का ही नहीं हुआ है शोषित तो सारा समाज है शोषण करता एकमात्र नेता हैं दूसरा कोई चाहे भी तो किसी का शोषण कर ही नहीं सकता है और करे तो छिप नहीं सकता है प्रशासनिक भूत उसके यहाँ भोर में ही घुस जाएंगे और उठा लाएँगे सारा मॉल पानी अन्यथा अपना हिस्सा तो ले ही आएँगे !किंतु नेताओं से सब डरते हैं !इसलिर शोषण का अधिकार केवल नेताओं के पास है शोषण सहने के लिए केवल ब्राह्मण हैं जिन्हें सतयुग त्रेता द्वापर में त्याग तपस्या ने कसौटी पर कसा और कलियुग में सरकारें कस रही हैं कसौटी पर !ब्राह्मण ही एक ऐसी जाति  है जिसे न इतिहास में कुछ मिला और न अभी मिल रहा है फिर भी बलिदान देने से कभी न पीछे हटी है और न हटेगी !क्योंकि सबको सुखी रखना उसका उद्घोष है सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः !
आरक्षण नीति में  सवर्णों का बहिष्कार क्यों ? सवर्णों को देश की सरकारें अपना क्यों नहीं समझती हैं यह कैसा लोकतंत्र जहाँ इतने बड़े सवर्ण वर्ग की इस गैरजिम्मेदारी से उपेक्षा की जा रही हो !
    ब्राह्मणों ने यदि शोषण किया होता तो उनके पास भी संपत्ति होती किंतु सभी जाति के नेताओं ने समाज का शोषण किया है इसीलिए राजनीति में आते समय किराए तक के लिए मोहताज नेता लोगों ने पसीना बहका कभी कोई काम धंधा नहीं किया ,हमेंशा सुख सुविधापूर्ण जीवन जीते रहे जहाजों में चढ़े घूमते रहे फिर भी अरबों खरबोंपति बने बैठे हैं इसे कहते हैं शोषण !जबकि ब्राह्मण आज भी खेतों में पसीना बहाकर परिश्रम करता है सभी की तरह ही सभी प्रकार के सुख दुखों का सामना करता है ब्याज पर पैसे उसे भी लेने पड़ते हैं पैसे के अभाव में आत्म हत्या उसे भी करनी पड़ती है प्रशासन से उत्पीड़ित वो भी होता है इसके बाद भी ब्राह्मणों की निंदा आखिर क्यों ?फिर भी नेता लोग अपनी लूट घसोट छिपाने के लिए ब्राह्मणों को बदनाम करते रहते हैं !
    आरक्षण का अधिकार सवर्णों को क्यों नही ! क्या सवर्णों को भूख नहीं लगती है या सवर्ण जातियों में सभी लोग संपन्न हैं ! यदि ये मान भी लिया जाए कि सवर्ण जातियों में कुछ लोगों के पास धन अधिक होगा किन्तु जिनके पास नहीं हैं उन्हें इन लोकतांत्रिक सरकारों ने किसके भरोसे आरक्षण से बाहर रख छोड़ा है आखिर उनका सहयोग कौन करेगा कहीं सरकार ऐसा तो नहीं मानती है कि सवर्णों में जो धनी लोग हैं वो खाना खाएँगे तो गरीब सवर्णों की भूख भी शांत हो जाएगी ! या इन गरीब सवर्णों को पडोसी देशों के सहारे छोड़ दिया गया है ,या इन्हें देश के अलगाववादी तत्वों के साथ तालमेल बिठाकर चलने के लिए छोड़ा गया !  


         इस विषय में हमारे निम्न लिखित लेख भी पढ़े जा सकते हैं -
    भ्रष्टाचार के स्रोत क्या हैं और इसे समाप्त कैसे किया जा सकता है ?
     सरकार के  हर विभाग में  भ्रष्टाचार व्याप्त है उससे छोटे से बड़े तक अधिकांश कर्मचारी लाभान्वित होते हैं इसलिए उन पर  भ्रष्टाचार की जो विभागीय जाँच होती है वहाँ क्लीन चिट  मिलनी ही होती है क्योंकि यदि नहीं मिली तो उसके तार उन तक जुड़े निकल सकते हैं  जो जाँच करsee  more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/01/blog-post_19.html
दलित शब्द का अर्थ कहीं दरिद्र या गरीब तो नहीं है ?
   समाज के एक परिश्रमी वर्ग का नाम पहले तो दलित अर्थात दबा, कुचला टुकड़ा,भाग,खंड आदि रखने की साजिश हुई। ऐसे अशुभ सूचक नाम कहीं मनुष्यों के होने चाहिए क्या?  वो भी भारत वर्ष की जनसंख्या के बहुत बड़े वर्ग को दलितsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2013/03/blog-post_2716.html
आरक्षण बचाओ संघर्ष आखिर क्या है ? और किससे ?
     आरक्षणबचाओसंघर्ष या बुद्धुओं को बुद्धिमान बताने का संघर्ष आखिर क्या है ?ये संघर्ष उससे है जिसका हिस्सा हथियाने की तैयारी है।ये अत्यंत निंदनीय है !  जिसमें  चार घंटे अधिक काम करने की हिम्मत होगी वो आरक्षण माँगेगा ही क्यों ?उसे अsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_3571.html
गरीब सवर्णों को भी आरक्षण की भीख  मिलेगी ? 
     चूँकि किसी भी प्रकार का आरक्षण कुछ गरीबों, असहायों को दाल रोटी की व्यवस्था करने के लिए दिया जाने वाला सहयोग है इससे जिन लोगों का हक मारा जाता है वे इस आरक्षण को भीख एवं जिन्हें दिया जाता है उसे भिखारी समझते हैंsee  more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_3184.html
आरक्षण एक बेईमान बनाने की कोशिश !
जो परिश्रम करके अपने को जितना ऊँचे उठा लेगा वह उतने ऊँचे पहुँचे यह  ईमानदारी है लेकिन जो यह स्वयं मान चुका हो कि हम अपने बल पर वहाँ तक नहीं पहुँच सकते ऐसी हिम्मत हार चुका हो ।see  more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_8242.html पहले आरक्षण समर्थक नेताओं की संपत्ति की हो जाँच तब आरक्षण की बात!              
 प्रतिभाओं के दमन का षड़यंत्र
     जब गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की बात उठी तो उस समय एक मैग्जीन में मेरा लेख छपा था   कि  आरक्षण एक प्रकार की भीख है जो किसी को नहीं लेनी चाहिए, तो आरक्षण समर्थक कई सवर्ण लोगों के पत्र और फोन आए कि जब सभी जातियों को आरक्षण चाहिए तो हमें भी मिलना चाहिए।मैंने उनका विरोध करके कहा था कि किसी को आरक्षण क्यों चाहिए।   यहsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_6099.html

Monday, 15 June 2015

गलत लोग न हों तो कैसे चलेगी राजनीति क्या मुट्ठी भर अच्छे लोग चला लेंगे देश !

 "केजरीवाल ने पार्टी से गलत लोगों को जोड़ा: अन्‍ना !-एक खबर "   
      किंतु अन्ना जी !अच्छे लोग राजनीति में आवें कहाँ से और उन्हें यहाँ घुसने कौन देगा और घुस भी जाएँ तो टिकने कौन देगा ?   
       अन्ना जी !केजरीवाल कहाँ से ले आते अच्छे आदमी !आप तो ऐसे बोल रहे हैं  जैसे गलत आदमी केजरीवाल  ने ही बनाए हैं अरे ! इस देश की मंडी में जो मिल रहा है केजरी वाल भी वही तो लाएँगे । देश की सामाजिक एवं राजनैतिक मंडी में अधिकांश मॉल ही बेईमानी पसंद है तो केजरीवाल क्या करें !!
   अन्ना जी !अच्छे लोगों की संख्या देश में इतनी कम है कि उनके साथ चलकर राजनीति नहीं की जा सकती ! क्योंकि  लोकतंत्र में संख्या का ही महत्त्व होता है यहाँ तो गुण नहीं अपितु शिर गिने जाते हैं शिरों की संख्या हमेंशा उनके पास होती है जो ईमानदार होने की अपेक्षा ईमानदार दिखने में सफल होते हैं वो कितने ही बड़े अपराधी क्यों न हों !राजनीती में सफल होने के लिए कई लोग विरोधियों की हत्या किया या कराया करते हैं और सौ करोड़ देश वासियों के विकास की कसमें खाया करते हैं !लोग भरोसा भी कर लेते हैं !
       गलत लोग आसानी से मिल भी जाते हैं जितने चाहो उतने मिल जाते हैं जैसे जैसे दुर्गुण संपन्न चाहिए वैसे मिल जाते हैं !गलत लोगों को जोड़ अच्छे इसके  केजरीवाल जी ही अकेले नहीं हैं हर राजनैतिक पार्टी जोड़ती गलत लोगों को ही है किंतु अच्छे लोग चूँकि कुशल होते हैं प्रतिभा संपन्न होते हैं इसलिए वे जबर्दस्ती भले घुस जाएँ अन्यथा पार्टियों का स्थापित नेतृत्व हमेंशा ऐसे लोगों को अपने साथ जोड़ना चाहता है जो उनसे अयोग्य उनसे मूर्ख उनसे काम अच्छा बोलने वाले उनसे कम अच्छे प्रतिभावाले लोगों की संख्या अधिक से अधिक हो ताकि वो कभी भी संख्या बल से पार्टी के बुद्धिमान कार्यकर्ताओं पर अंकुश लगा सकें !
       शिक्षा से जुड़े लोग शिक्षा में भ्रष्टाचार रहे हैं साधू संतों में भी व्यापारी घुस आए हैं साधु होकर हजारों करोड़ का व्यापार फैलाए फिर रहे हैं योग की जगह व्यायाम बेच रहे हैं !जिनके अपने आचरण ऐसे हों वो सदाचारी समाज का निर्माण कैसे कर सकेंगे ! शिक्षक और संत ही संस्कार निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह कर सकते हैं किंतु दोनों में भारी भ्रष्टाचार है!बाबा भ्रष्ट होकर व्यापार कर रहे हैं शिक्षक भ्रष्ट होकर प्यार कर रहे हैं जवान भटक कर बलात्कार कर रहे हैं नेता बिगड़कर भ्रष्टाचार कर रहे हैं अब समाज को संस्कार दे कौन !लोगों में स्वयं ईमानदारी के भाव जागते नहीं हैं उसका मूल कारण है कि आम लोग ईमानदारों की अपेक्षा भ्रष्टाचारियों को सफल होता हुआ अधिक देखते हैं -
भ्रष्टाचारियों के पास  पैसे हैं ,पद हैं,  प्रतिष्ठा है प्रसिद्धि है और सदाचार में क्या है ?
गलत लोग न हों तो कैसे चलेगी राजनीति क्या मुट्ठी भर अच्छे लोग देश चला लेंगे !
 अच्छे लोगों का निर्माण करने के लिए खाली कौन है ?कैसे होगा भले लोगों का निर्माण !
नेताओं और किसानों में भी इतना ही अंतर है -
 किसानों की गलती क्या है यही न कि वो मेहनत से ईमानदारी पूर्वक कमाना खाना चाहते हैं !
      नेताओं की अच्छाई यही है  कि ईमानदारी की बातें कर के भ्रष्टाचार से धन कमाते हैं सब सुख सुविधाएँ भोगते हैं  पद प्रतिष्ठा प्रसिद्धि पाते हैं नेता को परिवार के भरण पोषण के लिए व्यापार या काम काज भी करना पड़ता किंतु भ्रष्टाचार के बल पर दो दो रूपए को मोहताज रह चुके नेता आज अरबों पति हैं उनके पास न कोई व्यापार है और न ही व्यापार करने का समय !भ्रष्टाचारियों को देश सब सुख सुविधाएँ दे रहा है और सदाचारियों को मुआबजे के तीस पैंतीस रुपए के चेक !
   इसलिए  जब तक अच्छे लोगों की संख्या नहीं बढ़ेगी तब तक समाज और राजनीति में अच्छे लोगों की संख्या कैसे बढ़े !और संख्या बढे बिना अच्छे लोग अच्छी बात भी बोलेंगे तो दबका कर बैठा दिए जाएँगे लोकतंत्र में संख्या का महत्त्व होता है अच्छे लोगों की संख्या बहुत कम है दूसरा वो मुर्दों की तरह ढोए नहीं जा सकते !अच्छे लोग अपनी बात भी रखेंगे ! इस भय से नेता लोग अपनीभ्रष्ट पार्टियों में अच्छे लोगों को घुसने भी नहीं देते हैं !मैंने भी प्रयास किया था किंतु किसी पार्टी को पसंद नहीं आया । आप भी देखें हमारे दोष जिनके कारन राजनैतिक पार्टियां हमें पचा नहीं रही हैंsee more... http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html


 

  

"केजरीवाल ने पार्टी से गलत लोगों को जोड़ा: अन्‍ना !-एक खबर "

किंतु अन्ना जी !गलत लोग न हों तो कैसे चलेगी राजनीति क्या मुट्ठी भर अच्छे लोग चला लेंगे देश  !अच्छे लोग राजनीति में आवें कहाँ से और उन्हें यहाँ घुसने कौन देगा और घुस भी जाएँ तो टिकने कौन देगा ?   
       अन्ना जी !केजरीवाल कहाँ से ले आते अच्छे आदमी !आप तो ऐसे बोल रहे हैं  जैसे गलत आदमी केजरीवाल  ने ही बनाए हैं अरे ! इस देश की मंडी में जो मिल रहा है केजरी वाल भी वही तो लाएँगे । देश की सामाजिक एवं राजनैतिक मंडी में अधिकांश मॉल ही बेईमानी पसंद है तो केजरीवाल क्या करें !!
   अन्ना जी !अच्छे लोगों की संख्या देश में इतनी कम है कि उनके साथ चलकर राजनीति नहीं की जा सकती ! क्योंकि  लोकतंत्र में संख्या का ही महत्त्व होता है यहाँ तो गुण नहीं अपितु शिर गिने जाते हैं शिरों की संख्या हमेंशा उनके पास होती है जो ईमानदार होने की अपेक्षा ईमानदार दिखने में सफल होते हैं वो कितने ही बड़े अपराधी क्यों न हों !राजनीती में सफल होने के लिए कई लोग विरोधियों की हत्या किया या कराया करते हैं और सौ करोड़ देश वासियों के विकास की कसमें खाया करते हैं !लोग भरोसा भी कर लेते हैं !
       गलत लोग आसानी से मिल भी जाते हैं जितने चाहो उतने मिल जाते हैं जैसे जैसे दुर्गुण संपन्न चाहिए वैसे मिल जाते हैं !गलत लोगों को जोड़ अच्छे इसके  केजरीवाल जी ही अकेले नहीं हैं हर राजनैतिक पार्टी जोड़ती गलत लोगों को ही है किंतु अच्छे लोग चूँकि कुशल होते हैं प्रतिभा संपन्न होते हैं इसलिए वे जबर्दस्ती भले घुस जाएँ अन्यथा पार्टियों का स्थापित नेतृत्व हमेंशा ऐसे लोगों को अपने साथ जोड़ना चाहता है जो उनसे अयोग्य उनसे मूर्ख उनसे काम अच्छा बोलने वाले उनसे कम अच्छे प्रतिभावाले लोगों की संख्या अधिक से अधिक हो ताकि वो कभी भी संख्या बल से पार्टी के बुद्धिमान कार्यकर्ताओं पर अंकुश लगा सकें !
       शिक्षा से जुड़े लोग शिक्षा में भ्रष्टाचार रहे हैं साधू संतों में भी व्यापारी घुस आए हैं साधु होकर हजारों करोड़ का व्यापार फैलाए फिर रहे हैं योग की जगह व्यायाम बेच रहे हैं !जिनके अपने आचरण ऐसे हों वो सदाचारी समाज का निर्माण कैसे कर सकेंगे ! शिक्षक और संत ही संस्कार निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह कर सकते हैं किंतु दोनों में भारी भ्रष्टाचार है!बाबा भ्रष्ट होकर व्यापार कर रहे हैं शिक्षक भ्रष्ट होकर प्यार कर रहे हैं जवान भटक कर बलात्कार कर रहे हैं नेता बिगड़कर भ्रष्टाचार कर रहे हैं अब समाज को संस्कार दे कौन !लोगों में स्वयं ईमानदारी के भाव जागते नहीं हैं उसका मूल कारण है कि आम लोग ईमानदारों की अपेक्षा भ्रष्टाचारियों को सफल होता हुआ अधिक देखते हैं -
भ्रष्टाचारियों के पास  पैसे हैं ,पद हैं,  प्रतिष्ठा है प्रसिद्धि है और सदाचार में क्या है ?
गलत लोग न हों तो कैसे चलेगी राजनीति क्या मुट्ठी भर अच्छे लोग देश चला लेंगे !
 अच्छे लोगों का निर्माण करने के लिए खाली कौन है ?कैसे होगा भले लोगों का निर्माण !
नेताओं और किसानों में भी इतना ही अंतर है -
 किसानों की गलती क्या है यही न कि वो मेहनत से ईमानदारी पूर्वक कमाना खाना चाहते हैं !
      नेताओं की अच्छाई यही है  कि ईमानदारी की बातें कर के भ्रष्टाचार से धन कमाते हैं सब सुख सुविधाएँ भोगते हैं  पद प्रतिष्ठा प्रसिद्धि पाते हैं नेता को परिवार के भरण पोषण के लिए व्यापार या काम काज भी करना पड़ता किंतु भ्रष्टाचार के बल पर दो दो रूपए को मोहताज रह चुके नेता आज अरबों पति हैं उनके पास न कोई व्यापार है और न ही व्यापार करने का समय !भ्रष्टाचारियों को देश सब सुख सुविधाएँ दे रहा है और सदाचारियों को मुआबजे के तीस पैंतीस रुपए के चेक !
   इसलिए  जब तक अच्छे लोगों की संख्या नहीं बढ़ेगी तब तक समाज और राजनीति में अच्छे लोगों की संख्या कैसे बढ़े !और संख्या बढे बिना अच्छे लोग अच्छी बात भी बोलेंगे तो दबका कर बैठा दिए जाएँगे लोकतंत्र में संख्या का महत्त्व होता है अच्छे लोगों की संख्या बहुत कम है दूसरा वो मुर्दों की तरह ढोए नहीं जा सकते !अच्छे लोग अपनी बात भी रखेंगे ! इस भय से नेता लोग अपनीभ्रष्ट पार्टियों में अच्छे लोगों को घुसने भी नहीं देते हैं !मैंने भी प्रयास किया था किंतु किसी पार्टी को पसंद नहीं आया । आप भी देखें हमारे दोष जिनके कारन राजनैतिक पार्टियां हमें पचा नहीं रही हैंsee more... http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html


 

  

Saturday, 13 June 2015

सफाई कर्मी बेकार ही बदनाम थे !

          कूड़े पर चली 'आप' की झाड़ू!-एक खबर !

  
  किंतु सबको लग रहा था कि हड़ताल सफाई कर्मियों ने की है चलो अच्छा है पैसे मिलते ही काम पर तो लौटे लोग !दिल्ली वालों को क्या करना कोई करे उन्हें तो सफाई से मतलब कोई लगावे झाड़ू कोई उठावे कूड़ा ,आम आदमी पार्टी वाले  हों या सफाईकर्मी !किंतु बिना पैसे के लोग झाड़ू भी नहीं लगाते हैं ?
     कल फंड आज झाड़ू ! इसका मतलब सफाई कर्मी बेकार ही बदनाम थे !वस्तुतः समस्या तो आपियों ने तैयार की हुई थी !किंतु इतनी देर से क्यों  आम आदमी पार्टी वालों ने सँभाला अपना काम ? सरकार ये चलाना इनके बस का उतना अभ्यास नहीं है जितना अपने काम का है आखिर झाड़ू है ही इनकी जिसका काम उसी को साजे और करे तो .... !फिर भी बधाई हो देर आए दुरुस्त आए ! 

   पहले राहुलगांधी जी बुलाकर बैठा लिए गए तब  किया गया एलान ! चलो कैसे भी हुआ, हुआ तो सही !
      अच्छा है इसी बहाने राहुलगांधी जी का भी उत्साह बढ़ गया !वो भी आजकल खाली हैं चुनाव तो अब 4 वर्ष बाद ही होंगे ऐसे कैसे कटेगा तब तक समय ! हमारा तो सभी सरकारों से उदार निवेदन है कि पार्टी पॉलिटिक्स से ऊपर उठकर सबको निभानी चाहिए ये रस्म !फिल हाल तो चार साल ही काटने हैं किंतु मोदी जी तो कह रहे हैं कि दस वर्ष और उमा जी कहती हैं बीस वर्ष तक रहेंगे मोदी जी  प्रधानमंत्री !यदि ऐसा हुआ तब तो जवान समझ कर जिन नेताओं को अभी अभी पार्टियों ने जिम्मेदारी दी है उनकी अगली पीढ़ियाँ ही कर पाएँगी चुनावों का सामना !कुलमिलाकर अभी की तैयारी तब तक किस काम आएगी !
  

Tuesday, 9 June 2015

pharji

सभी भ्रष्टाचारी एक हो गए हैं- मनीष सिसोदिया- एकखबर 
  मनीष जी ! आपकी बेदना से समाज सहमत है आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं किंतु यही बात विरोधी लोग भी बोल रहे हैं कि भ्रष्टाचारी इकट्ठे हो गए हैं अब भ्रष्टाचारी कौन है ये फैसला तो कोर्ट में होगा किंतु फर्जी डिग्री के आरोप में पकडे गए मंत्री के लिए भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुहिम चलाने वाली पार्टी पागल क्यों हो रही है ये बौखलाहट ठीक नहीं है कानून पर भरोसा रखिए मंत्री जी यदि निर्दोष हैं तो उन्हें न्याय मिलेगा उससे पार्टी की छवि में और अधिक निखार आएगा !जनता का भरोसा और अधिक बढ़ेगा !  

  दूसरों को भ्रष्टाचारी बता बता कर सरकार बना ली अपने पर बात आई तो आपातकाल याद आया !बारी ईमानदारी !
"आपातकाल जैसे हालात बना रहा है केन्द्र: सिसोदिया"
    किंतु मनीष सिसोदिया जी ! यदि फर्जी डिग्री का आरोप है तो जाँच होने दीजिए इसमें आपातकाल किस बात का !आप लोगों ने हर पार्टी को भ्रष्टाचारी कहा अधिकांश नेताओं को भ्रष्टाचारी कहा  केवल ये कहते कहते तो आप वहाँ तक पहुँच गए जहाँ तक कल्पना नहीं थी लोग सुनते रहे हैं किंतु आज दाग अपने पर लग रहे हैं उन्हें भी साफ होने दीजिए !उसमें इतनी पीड़ा क्यों ?

Sunday, 7 June 2015

आखिर आम आदमी पार्टी वाले किसी को कुंडली क्यों नहीं दिखा लेते !
ओह तो ये है आम आदमी पार्टी का रामराज्य !जिसका बखान करने के लिए इतना बड़ा अमाउंट ! 
आम आदमी पार्टी के वर्त्तमान नेता गण जब लोकपाल पास कराना चाह रहे थे तो उसमें रोड़ा लगा रहा फिर पहली सरकार बनाना चाह रहे थे तब उसमें रोड़ा लगा रहा उसके बाद चार दिन की सरकार उसमें भी मुख्य मौके पर नायक बीमार!फिर स्पीकर बनाने में रोड़ा लगा ! अबकी जब से चुनाव जीते तब से सारी  दिल्ली को सर पर उठाए घूम रहे हैंअंदर वालों से लड़कर उन्हें भगा रहे हैं बाहर वालों से लड़कर ताकत दिखा रहे हैं उपराज्य पाल से लड़ाई, केंद्र से लड़ाई, मीडिया से लड़ाई वैसे भी जब से आम आदमी पार्टी दिल्ली के आस्तित्व में आई तब से स्थिति विषम सी ही  बनी हुई है ! स्कूलों में शिक्षा नहीं है ,अस्पतालों में चिकित्सा नहीं है धन के अभाव में सफाईकर्मियों ने कूड़ा फैला रखा था दिल्ली में तब पैसा नहीं था आज महँगाई चरमसीमा पर है फिर भी आत्म विज्ञापन कितनी निष्ठुर है दिल्ली सरकार जो पैसा आम आदमी के काम आना चाहिए वो लगाया जाएगा बदनामी को ईमानदारी में बदलने के लिए !!
       धन्य हैं आम आदमी पार्टी के नेता जो इतनी जल्दी इतने कम प्रयास में राम राज्य लाने में सफल हो गए जिसके बखान करने के लिए उन्हें चाहिए जनता के धन का इतना बड़ा अमाउंट ! फिर भी बधाई हो आम आदमी पार्टी वालों को !
राजनीति में सरकार बनाने लिए राजनैतिक दल अक्सर पहले हम पहले हम वाले फार्मूले पर काम करते हैं किन्तु दिल्ली के राजनैतिक महापुरुषों में अब शिष्टाचार की होड़ सी लगी see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2013/12/blog-post_31.html
मनुवाद का विरोध क्यों ?
जातिगत आरक्षण का आधार ही है मनुस्मृति ! फिर मनुवाद का विरोध या मनुस्मृति को जलाने का नाटक क्यों ?
मनुस्मृति दहन दिवस का मतलब है मनुस्मृति जलाने का दिन !अर्थात इस दिन मनुस्मृति जलाई गई थी !!!
जो जातिगत आरक्षण के बिना घर की रसोई नहीं चला पाते वे मनुस्मृति जलाकरके लोगों को देश चलाने के सपने दिखा रहे थे वो भी बिना आरक्षण के !
जो जातिगत आधार पर मिलने वाले आरक्षण के समर्थक हैं उन्हें ये भी तो सोचना see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2014/12/blog-post_27.html
बलात्कार बंद करने के लिए प्यार की सार्वजनिक गतिविधियों पर लगाया जाए प्रतिबन्ध !
जो जिसे चाहता है वो यदि उसे पाने में सफल हो जाए तो विवाह और यदि ऐसा न हो तो रेप, गैंग रेप, हत्या या आत्महत्या आदि कुछ भी … ! इसलिए प्यार की सार्वजनिक प्रक्रिया पर ही क्यों न लगाया जाए प्रतिबन्ध !
आधुनिक प्यार में प्यार जैसा कुछ होता नहीं है ये तो मूत्रता के लिए बनाई गई छद्म मित्रता होतीsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2014/06/blog-post_6.html