Sunday, 30 July 2017

अपराधियों के आका जैसे गैर जिम्मेदार लोगों को अपनी नौकरी पर भी नहीं रखते सरकार उनसे भी चला रही है काम !

  सरकारी काम काज की इतनी कमजोर क्वालिटी है कि इस मशीनरी के बल पर सरकार कैसे कर सकती है अपराधों और अपराधियों का मुकाबला !(श्रद्धेय सैनिकों एवं इमानदार कर्मठ कर्मचारियों से क्षमा याचना के साथ !) 
    काल्पनिक तौर पर  सरकारी मशीनरी को दो चार दिन के लिए यदि अपराधियों के काम काज को करने की जिम्मेदारी सौंप दी जाए तो ये वो भी नहीं निभा सकते !ये अपराध शुरू करने से पहले ही पकड़ जाएँगे इन्हेंघूस देकर सारे रहस्य उगलवाए जा सकते हैं !भ्रष्टाचार के कारण इनके बनवाए बमोँ में या तो  मिट्टी निकलेगी यदि ठीक बन भी गए तो लापरवाही के कारण समय से ठीक जगह रखे नहीं जा पाएंगे और रख गए तो फूटेंगे ही नहीं मिस हो जाएँगे !एक बम रखने के लिए कई कई टेंडर पास होंगे सबको पता लग जाएगा किंतु इनके रखे हुए बम फूट नहीं सकते  !
     काम के मामले में इतनी कमजोर क्वालिटी के अधिकारियों कर्मचारियों के बलपर इतनी बड़ी बड़ी योजनाएं बना डालती है सरकार !जिससे सरकार की घोषणाएं सुन सुन कर जनता तंग हो हो जाती है !सरकार को लिखे गए पत्रों में टाइप के पैसे और रजिस्ट्री के पैसे तक बेकार चले जाते हैं !भाषणों में CM,PMजैसे लोग कहते सुने जाते हैं हमें लिख कर भेजो !जो लोग इनकी बातों पर भरोसा कर लेते हैं वे मुसीबत मोल ले लेते हैं सौ दो सौ रूपए फोकट में गँवा बैठते हैं अपने दो चार दिन बर्बाद कर लेते हैं | 
    पत्रों की भाषा में तमाम 'श्री' और 'जी'लगाकर एक एक मात्रा सुधारकर पत्र लिखते हैं | ठीक ठीक एड्रेस लिखकर कितनी आशा और उत्साह से आर्डिनरी डाक से नहीं अपितु रजिस्ट्री करते हैं किंतु  निर्मम सरकार काम करे न करे उनके उत्तर भी देने की जिम्मेदारी नहीं समझती !क्या उन्हें ये जान्ने का अधिकार भी नहीं होना चाहिए कि उनका पत्र सरकार को मिल गया है !
   सरकार की ऐसी ही लापरवाही के कारण नौकर शाही राज कर रही है देश में क्योंकि उसके विरुद्ध न कोई शिकायत सुनी जाती है और न ही कार्यवाही होते देखी जाती है !
  इसीलिए तो अपराधियों की अपराध कमाई अपराधियों में घरों में नहीं मिलती है अपितु उन लोगों के यहाँ से मिलती है जिन पर सरकार ने जिम्मेदारीडाल रखी है अपराध रोकने की!उनके ऊपर जब कभी छापे पड़ते हैं तब पता लगता है कि किस अधिकारी कर्मचारियों ने कितने अपराधों में अपराधियों का साथ देकर ये अकूत संपत्ति इकठ्ठा की है | 
   आखिर अपराधी जो धन कमाते हैं वो जाता  कहाँ है उनके घर में दिखता नहीं शरीर पर कुछ होता नहीं बच्चे फटीचर बने रहते हैं फिर वो धन उनके आका लोग ही तो नहीं खा जाते हैं बड़े बड़े नेताओं और अधिकारियों की अकूत सम्पत्तियों के संग्रह में अपराधियों का कितना योगदान है इस पर भी सघन जाँच की जानी चाहिए !
    अपराधी लोग आपराधिक कमाई करने के बाद भी प्रायः गरीब ही बने रहते हैं किंतु अपराधियों को पकड़ने के लिए जिम्मेदार अधिकारी मालामाल हो जाते हैं क्यों ?कहाँ से आती हैं उनके पास इतनी संपत्तियाँ !इसमें सरकार सम्मिलित नहीं है तो जाँच कराए निकलेंगे अपराधों के बड़े बड़े मगरमच्छ !यदि सरकार भी हिस्सा लेती है तो चुप बैठे भ्रष्टाचार के विरुद्ध शोर क्यों मचाती है सरकार ?
     जिसकी जब नौकरी लगी थी तब कितनी संपत्ति थी उसके पास और आज कितनी है ?सैलरी कितनी मिलती है ?बाकी संपत्ति  आई कहाँ से ?उसकी जाँच हो और दोषियों पर कार्यवाही की जाए !निर्दोष कर्मचारियों को प्रोत्साहित किया जाए !
   अवैध संपत्ति प्रकरण में जनता मुख्य दोषी है ही नहीं फिर क्यों धमकाया जा रहा है जनता को !
    अवैध संपत्तियों से या अवैध काम काज से सबसे अधिक पैसा कमाया है उसे रोकने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों कर्मचारियों ने उन्होंने अकूत संपत्तियाँ कमाई हैं इस अवैध कारोबार से !सरकार जाँच करवाकर ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों  की   संम्पत्तियाँ जप्त क्यों नहीं करती है साथ ही आज तक दी गई सैलरी उनसे वसूले सरकार !उसके बाद अवैध सम्पत्तियों के लिए जनता को दोषी माना जाए तब हो जनता पर कार्यवाही !ऐसे प्रकरणों में जनता मुख्य दोषी है ही नहीं फिर क्यों धमकाया जा रहा है जनता को !
   सरकार चाह ले तो अपराध रोके भी जा सकते हैं किंतु अपराध रुकने से जिनका घाटा होने लगता हैं वे रुकने ही नहीं देते !अपराधी बेचारे क्या करें !एकबार संग साथ में पढ़ कर धोखे से अपराधियों की श्रेणी में नाम चढ़ गया तो अब तो करने ही पड़ेंगे अपराध ,अपने लिए न सही तो भाड़े के अपराध तो करने ही पड़ेंगे उन्हें अन्यथा भोगेंगे !गरीबों का साथ कब देता है कानून !चाकू खरभुजे पर गिरे या खरभूजा चाकू पर कटेगा खरभूजा ही ऐसे ही सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों  से कानूनी मदद की आशा ले कर जाने वाले गरीब लोग या तो निराश होकर लौटते हैं या फिर अपराधी बनने का संकल्प लेकर !
       अब तो देश का बच्चा मानता है कि जिस काम के लिए जो अधिकारी रखे गए हैं वो काम इसलिए नहीं होता है कि काम के स्थानों पर आराम के इंतजाम सरकार ने इतने अधिक करवा रखे हैं कि आफिस पहुँचते ही नींद आने लग जाती है|संतरी कह देता है कि साहब मीटिंग में हैं !जनता उनसे कुछ पूछने की हैसियत नहीं रखती और सरकार के पास इतना पता करने का न समय है न जरूरत !इसलिए सरकारी कार्यालय आजादी से आजतक सोते चले आ रहे हैं !कर्मचारियों की सैलरी पेंसन  सरकार खाते में पहुँचाती जा रही है |सरकार का निगरानी तंत्र इतना नाकाम है कि जो बिल्कुल काम न करे उसकी भी शिकायत सरकार तक कैसे पहुँच पाएगी और कौन पहुँचा पाएगा !   
     जिस कम्प्लेन  की जाँच करने कर्मचारी जाते हैं वहाँ जो जो घूस देता है वो निर्दोष होता है और जो नहीं देता है सारा दोष उसी के मत्थे मढ़कर उसी के विरुद्ध भेज देते हैं रिपोर्ट !
      रही बात सरकारों में उच्च पदों पर बैठे नेता लोग उन्हें केवल दो जिम्मेदारी सँभालनी होती हैं पहली मीडिया में कुछ अच्छा बोलने के लिए जिससे जनता का ध्यान भटकाया जा सके तो दूसरा गरीबों की भलाई करने के लिए हो हल्ला मचाया जा सके क्योंकि वोट काम करके नहीं अपितु दूसरों को बदनाम करके आसानी से लिया जा सकता है | जनता की आँखों में धूल झोंककर ही लेना होता है वोट !उसके प्रयास में संपूर्ण समय लगे रहते हैं नेता लोग !
   आजादी के बाद आजतक सरकार के नाम पर ऐसे ही खेल खेले जा रहे हैं !काम के लिए जनता पार्षद के पास जाती है विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री तक सबके पास जाती है जो मिलता है उससे मिल लेती है जो नहीं मिलता है वहाँ से लौट आती है !जनता के काम करने के लिए अधिकारी कर्मचारी स्वतंत्र होते हैं वो काम करें न करें !जनता का दबाव वो क्यों मानेंगे आखिर अधिकारी हैं जनता की क्या औकात जो उन पर दबाव डाले और सरकार दबाव डालेगी क्यों ?उसका अपना तो कोई काम रुकता नहीं है | वैसे भी सरकार की नैया डुबाने तारने वाले वही होते हैं | 
    आजादी के बाद आजतक इसी गैरजिम्मेदारी के साथ घसीटा जा रहा है लोकतंत्र किसी विभाग में कोई जिम्मेदारी समझता ही नहीं है | सरकार तो सरकार है सरकार जनता के कामों से सरोकार रखे तो सरकार किस बात की !प्रधानमंत्री जी तरह तरह की घोषणाएँ तो किया करते हैं योजनाएँ बना बना कर परोसा करते हैं किंतु उनकी बात उनके अधिकारी कर्मचारी मानते कितनी हैं इस सच को तो केवल जनता ही  समझती है जिसे हमेंशा फेस करना पड़ता है ! वो यदि अपनी पीड़ा बताना भी चाहे तो बोलने बताने के लिए माध्यम बहुत हैं  किंतु शिकायत कहीं भी भेजो तो न कार्यवाही होती है और न ही जवाब आता है | न जाने सरकार कहाँ रहती है और कितनी जागरूकता से काम कर रही है जो जिनके लिए काम कर रही है उन्हें ही बताना पड़ रहा है कि हम काम कर रहे हैं |
     सुना है कि सोशल साइटों में तो केवल सरकार एवं सरकार में बैठे लोगों की निंदा करने संबंधी बातों पर ही ध्यान दिया जाता है उन्हीं का संग्रह किया जाता है और उन्हीं पर कार्यवाही की जाती है बाकि अपनी जरूरत की बातें कोई कितनी भी लिखता रहे ध्यान ही नहीं दिया जाता है न कोई जवाब आता है |  तब से मैंने भी लेटर लिखने बंद कर दिए पहले तो मैं भी लिखा करता था किंतु सच्चाई समझने के बाद मन ही नहीं हुआ लिखने का | रही बात जनता की तो जनता बेचारी तो बनी ही भटकने के लिए है भटका करती है सरकार के इस द्वार से उस द्वार तक शायद कहीं उसकी भी आवाज सुन ली जाए किंतु जनता को जीवित मानने वाले हैं कितने नेता अधिकारी कर्मचारी लोग !!   


सरकार चाहे तो सरकारी स्कूलों में भी अच्छी पढ़ाई हो सकती है और मिड डे मिल में छिपकली भी नहीं निकलेगी !

सरकार शिक्षा और संस्कार पर ध्यान दे !अन्यथा अपराध और बलात्कार घटने की कल्पना ही नहीं की जानी चाहिए !
     सरकार खुद पढ़ी लिखी हो तब न चाहे कि सरकारी स्कूलों में भी पढ़ाई हो !सरकार में रहने वालों के लिए तो शिक्षा इसीलिए तो अनिवार्य नहीं है कि यदि वे पढ़े लिखे और चरित्रवान होंगे तो समाज में शिक्षा और संस्कार बढ़ जाएँगे फिर सारे काम लोग स्वयं ही करने लगेंगे सरकार बेरोजगार हो जाएगी इसलिए भ्रष्टाचारी लोगों के एक बड़े वर्ग को विधायक सांसद आदि बनाया जाता है और भ्रष्ट लोगों को नौकरी देने के पीछे सरकार का उद्देश्य उनसे अपनी कमाई करवाना होता है इसीलिए हर सरकार भ्रष्टाचार की निंदा तो बहुत करती है किंतु भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही बहुत कम करती है क्योंकि उसमें सरकार के खुद के फँसने का भय होता है जिन पर कार्यवाही होगी हो फटाफट कबूलने लगेंगे सरकारों में सम्मिलित नेताओं के नाम !
       पुलिस की भूमिका अपराध घटित होने के बाद की है किंतु अपराध होते क्यों है इसके लिए तो शिक्षा व्यवस्था ही जिम्मेदार है जैसी शिक्षा वैसे संस्कार !उचित होगा कि अपराधियों की सजा उनके शिक्षकों को देने का प्रावधान किया जाए ! जो जानकर गरीबों के बच्चों का भविष्य बर्बाद करते  अन्यथा अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ाते हैं उन्हें पता है यहाँ पढाई होगी नहीं और खिचड़ी में छिपकली निकलेगी !अपने बच्चे बचाकर और गरीबों के मरवा डालो कितनी गन्दी सोच है !ऐसे लोगों के हवाले है शिक्षा व्यवस्था !सरकार सर्वे कराए कि सरकारी शिक्षकों और शिक्षाधिकारियों के कितने प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ाई गए या पढ़ाई जा रहे हैं जो नहीं तो क्यों ये उनसे ही पूछा जाए कि इसके लिए वास्तविक जिम्मेदार तो आप ही हैं !गरीबों के भबच्चों के भविष्य में आग लगाकर अपनों का भविष्य सुधारने के लिए इस नौकरी में आए हैं आप !ऐसे पाप पूर्ण इरादे रखने वालों को नौकरी से तुरंत निकालकर आज तक दी गई सैलरी तुरंत रिफंड ले लेनी चाहिए !  
     शिक्षकों और शिक्षा अधिकारियों के बच्चे भी  यदि सरकारी स्कूलों में ही पढ़ने लगें  ऐसा अनिवार्य हो जाए तो मिड डे मील में न छिपकली निकलेगी और पढ़ाई भी अच्छी होने लगेगी !किंतु दूसरों के बच्चों का भविष्य बर्बाद करके अपने बच्चों का भविष्य सुधारना चाहते हैं बेईमान लोग !ऐसे खतरनाक इरादे रखने वाले लोगों की छत्रछाया में पढ़ने वाले बच्चों के यदि संस्कार बिगड़ जाएं तो इसमें आश्चर्य क्या है !अपराधियों और बलात्कारियों की संख्या बढ़ने में इस वर्ग की बहुत बड़ी भूमिका है | शिक्षा अपराधी यदि ऐसे अपराधों से धन कमा कर अपने बच्चे पढ़ा भी लेंगे तो उनके अपने बच्चे इस पाप के कारण संस्कार भ्रष्ट होकर  बुढ़ापे में उन्हें उनके पापों की याद दिलाते रहेंगे !
    रिजल्ट अच्छा बताकर झूठ बोलती है सरकार !
शिक्षामंत्री जी ! रिजल्ट वो नहीं जो अपनी अपनी पीठ थपथपाने के लिए सरकारी मशीनरी झूठा गढ़ लेती है सैलरी लेनी है तो रिजल्ट तो अच्छा दिखाना मज़बूरी है इसीलिए वो तो झूठ गढ़ लिया जाता है किंतु वास्तविक  रिजल्ट तो समाज में दिखाई पड़ता है जो शिक्षकों और शिक्षा अधिकारियों के चरित्र को प्रतिविम्बित करता है !बड़ी भयावह है वो तस्वीर !इसलिए अपराधों और अपराधियों की संख्या बढ़ने के लिए शिक्षकों और शिक्षा अधिकारियों को जिम्मेदार माना जाए !जैसी शिक्षा वैसे संस्कार !इसके लिए पुलिस क्या कर लेगी अपराध होने पर अपराधियों को पकड़ेगी किन्तु अपराध होते क्यों हैं इसके लिए तो शिक्षा विभाग ही जिम्मेदार है !इसलिए समाज में बढ़ते अपराधों के लिए शिक्षा व्यवस्था के भ्रष्टाचार को ही जिम्मेदार क्यों न  माना जाए !शिक्षा शिक्षकों और परीक्षाओं में भ्रष्टाचार !अच्छे रिजल्ट के झूठे दावे करती रहती है सरकार !
    बिहार टॉपरकांड भी तो इन्हीं शिक्षा अधिकारियों कर्मचारियों के द्वारा किया गया चमत्कार था !मीडिया की सक्रियता के कारण खुली पोल !ऐसा हर प्रदेशों में होता है वैसे तो सरकार के हर विभाग में होता ही यही है !इसीलिए तो भरोसा टूटा है किंतु शिक्षामंत्रालय शिक्षाव्यवस्था एवं शिक्षकों  पर से उठता विश्वास चिंता का विषय !
    छात्र यदि वास्तव में देश का भविष्य होते हैं तो भविष्य को चौपट करने वालों से कड़ाई से क्यों न नहीं निपटती है सरकार ! स्वच्छता अभियान यदि इतना ही जरूरी है तो शिक्षाव्यवस्था की गंदगी दूर करने को पहली प्राथमिकता क्यों न दी जाए !देश का भविष्य सुधरेगा तो देश सुधरेगा !
     शिक्षा के इंतजामों पर भारी भरकम खर्च किंतु जो शिक्षक खुद पढ़े नहीं हैं तो पढ़ाएँगे क्या ?परीक्षा कैसे लेंगे परीक्षा कापियों को जाँचेंगे कैसे !रिजल्ट कैसे बनाएँगे ! चतुर सरकारें सरकारी स्कूलों की कापियाँ जँचवाने में कुछ हाथ पाँव मारकर रिजल्ट अच्छा बनवा लेती हैं थपथपा लेती हैं अपनी पीठ !देश के भविष्य से कपट क्यों ?
       सोचने वाली बात है कि घूस और सोर्स के बल पर शिक्षक बनने वाले अयोग्य लोगों का प्रतिशत कम है क्या ? उनकी पहचान करके छँटनी किए बिना अच्छी पढ़ाई हो पाना संभव है क्या ?ऐसे अयोग्य एवं अकर्मण्य लोगों के विरुद्ध कोई कार्यवाही किए बिना ही उन्हें हटाए बिना ही जो चतुर सरकार अच्छा रिजल्ट दिखाकर अपनी पीठ थपथपाती है हमें तो उसकी नियत पर ही शक होता है !ऐसे शिक्षा मंत्रियों की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर इतने बड़े भरोसे के आधारों की जाँच होनी चाहिए !आखिर किस आधार पर वे ऐसे ऊलजलूल दावे ठोंकते रहते हैं क्यों झोंकते हैं अभिभावकों की आँखों में धूल !ऐसे शिक्षामंत्रियों में यदि थोड़ा भी संकोच हो तो वो मीडिया से नहीं अपितु सरकारी स्कूलों में बच्चे पढ़ाने वाले अभिभावकों से आँख मिलाकर बात करने का साहस करें !
     मैं पूछता हूँ योग्य और अयोग्य दोनों प्रकार के शिक्षा कर्मचारी व शिक्षक लोग शिक्षा व्यवस्था को बनाने बिगाड़ने में लगे हुए हैं !इन बिगाड़ने वालों को हटाए बिना क्या सुधर सकती है शिक्षा व्यवस्था ? इन्हें हटाने के अलावा कोई विकल्प जब है ही नहीं तो देर क्यों कर रही है सरकार ? योग्य लोगों की पहचान करने के लिए योग्यता परीक्षा ले सरकार और ऐसे लोगों के चंगुल से मुक्त करवाई जाए शिक्षा व्यवस्था !इन्हें नौकारियों से हटाकर योग्य ईमानदार और कर्मठ शिक्षकों के हवाले शिक्षा व्यवस्था किए बिना शिक्षा कैसे सुधर सकती है शिक्षा और कैसे हो सकता है अच्छा रिजल्ट !
        विगत कई दशकों से शिक्षा के लिए केवल इंतजाम होते हैं विज्ञापन छपते हैं किंतु शिक्षा कितनी होती  है ये सरकार को क्या पता ! सरकार को रिपोर्ट बनाकर वो लोग देते हैं जो शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने के वास्तविक मसीहा हैं उस पर भरोसा करना सरकार की अपनी मजबूरी है जनप्रतिनिधियों आदि का शिक्षित न होना या कम शिक्षित होना भी एक बड़ी बाधा  है !
       ऐसे लोगों के द्वारा मीडिया को दिखाने के लिए अच्छे आँकड़े पेश करने एवं अच्छी जाँच रिपोर्ट बनाने और शिक्षा मंत्री एवं सरकार की पीठ थपथपाने का मैटीरियल तैयार करने में लगी रहती है सरकारी मशीनरी !किंतु सरकारी स्कूलों में शिक्षा होती है कि नहीं ये देखने की जिम्मेदारी जिनकी है उनसे क्यों न पूछा जाए कि सरकारी स्कूलों  की शिक्षा व्यवस्था आम जनता का भरोसा जीतने में नाकाम क्यों रही ?शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद करने के आपके यदि इरादे नहीं थे इसके चौपट होने में आपकी यदि वास्तव में कोई भूमिका नहीं रही है तो शिक्षा व्यवस्था से जुड़े आप सभी लोगों में से कितने अधिकारियों कर्मचारियों ने अपने बच्चे सरकारी स्कूलों में  पढ़ाए नहीं तो क्यों ?
      इसका मतलब शिक्षा व्यवस्था में सुधार आपका लक्ष्य था ही नहीं !इसलिए जो जिम्मेदारी आप निभा ही नहीं सके  फिर सैलरी किस बात की ?और आजतक आपको ब्यर्थ में दी गई सैलरी वापस क्यों न ली जाए ?

Monday, 24 July 2017

'बलात्कार' रोकना सरकार के बस का है क्या ?कानून और पुलिस क्या रोक सकती है बलात्कार !यदि ऐसा होता तो रोक न लेती !

    महिलाएँ और लड़कियाँ कैसे भी कपड़े पहनें और कैसे भी रहें कुछ भी करें वे स्वतंत्र है किन्तु क्या पुरुषों को भी है ऐसी स्वतंत्रता !seemore....htt://navbharattimes.indiatimes.com/metro/delhi/crime/man-arrested-for-allegedly-masturbating-in-front-of-german-woman/articleshow/59715184.cms 
      पुरुष भी अपने शरीर के विषय में स्वतंत्र होने चाहिए !वे क्या करें क्या न करें ये उनकी स्वतंत्रता है उन्हें ही क्यों तमीज सिखाई जाए !
    अत्याधुनिक समाज में ऐसी ही प्रदूषण पैदा कर रही है जिसके लिए ओवरफैशनेबल स्त्री पुरुष दोनों दोषी हैं |   स्वतंत्रता की ऐसी परिभाषा और ये कुतर्क समाज में ऐसे जहर घोलते हैं ! जिनका तर्क होता है कि यदि वे स्वतंत्र हो सकते हैं तो मैं क्यों नहीं ?मैं भी कुछ भी करूँ       कुलमिलाकर हमारा कोई भी आचरण रहन सहन पहनावा श्रृंगार आदि दर्शकों के मन को सेक्स के लिए उत्तेजित करता है तो ऐसे स्त्री पुरुषों को बलात्कारों को बढ़ाने वाला माना जाना चाहिए और कार्यवाही भी समान रूप से की जानी चाहिए ! 
     समाज के किसी भी वर्ग को दूसरे से ऐसी अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि हम कुछ भी करते रहेंगे और सामने वाले की ओर से कोई प्रतिक्रिया ही नहीं आएगी ऐसा कैसे हो सकता है !
      आधे चौथाई कपड़े पहनने की विकृति हो या शरीर को जगह जगह से नंगा दिखाने की कोशिश ये न कोई फैशन हो सकता है न कोई शौक और न पहनावा ये केवल दर्शकों के मन के सेक्स भाव को जगाने या उत्तेजित करने के लिए किया जाता है अधिक से अधिक लोगों की सेक्स भावनाओं को अपनी ओर आमंत्रित करने का ये कुश्चित प्रयास मात्र है !
      किसी भी मनोवैज्ञानिक से इस बात की जाँच करवा ली जाए कि ऐसे नंगे शरीरों को देखकर दर्शकों पर उत्तेजक प्रभाव पड़ता है या नहीं ?बात अलग है कि कुछ लोग अपने संयम या अन्य साधनों से उत्तेजना शांत कर लेते हैं किंतु कुछ साधनविहीन उत्तेजित लोग हमलावर हो जाते हैं ऐसे हमलों का शिकार वो नंगे शरीर संपन्न लोगों को बना पाए तो ठीक और यदि न सफल हुए तो वे सेक्सविक्षिप्त लोग पागलों की तरह मौका  तलाशते भटकने लगते हैं !फिर उन्हें न भीड़ का लिहाज रहता है न उम्र का और न स्त्री पुरुष का  न रिश्तों का ऐसे विषयों में तो वो सोचें जो होश में हों किन्तु उन्हें इतना होश कहाँ होता है सेक्सालुओं में इतना धैर्य कहाँ होता है !
    इसीलिए वे न कानून व्यवस्था की परवाह करते हैं और न ही पुलिस का भय ! वे मन की ऐसी विक्षिप्त अवस्था में पहुँच चुके होने के कारण अपने सेक्स लक्ष्य को पा लेने के लिए हत्या आत्महत्या आदि बड़े से बड़े अपराधों को बहुत छोटा मानने लगते हैं सरकार और कानून के द्वारा दिया जाने वाली फाँसी जैसी भयंकर सजा के फंदे को तो वे झुनझुना मानने लगते हैं जिससे कभी भी खेलते देखे जाते हैं ऐसे लोग !सरकार और कानून जिस दारुण सजा के लिए इतना बड़ा हउआ खड़ा करती है महीनों  सालों लग जाते हैं इसके बाद सजा होती है बड़े इंतजाम होते हैं कोई जल्लाद होता है फाँसी का फन्दा होता है ऐसे भारी भरकम इंतजामों के साथ दी जाती है ये सजा किंतु ये सेक्सपथिक तो हत्या आत्महत्या को कुछ गिनते ही नहीं हैं घर के पंखे में दुपट्टे में ही खुद लटक जाते हैं या सामने वाले को लटका देते हैं !एक दिन पहले तक उनके चेहरों पर ऐसे कोई भाव भी नहीं होते यहाँ तक कि दिन रात साथ रहने वाले उनके घर के लोग भी उनकी भावनाएँ भाँप ही नहीं पाते हैं कि वे कोई ऐसा बड़ा कदम उठाने जा रहे हैं ऐसी परिस्थिति में बलात्कारों या ऐसे अपराधों को न रोक पाने के लिए पुलिस और सरकार को जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है !कानून व्यवस्था को कैसे कटघरे में खड़ा किया जा सकता है !
     मैं इस विषय में किसी से भी किसी भी खुले मंच पर बहस करने को तैयार हूँ कि वो सुझाव दें कि इन बढ़ते बलात्कारों को रोकने के लिए सरकार कानून और पुलिस को करना क्या चाहिए ?फिर सरकार न करे तब तो सरकार दोषी !किंतु ये बात महिलाओं को भी सोचनी पड़ेगी कि जीवन जीने की ऐसी कोई सरल तकनीक नहीं हो सकती कि हम आग लगाते घूमें कोई दूसरा आग बुझाते घूमे !वो एक दो बार बुझा देगा फिर कहाँ तक पीछे पीछे घूमता रहेगा !अंत में यही तो कहना पड़ेगा कि जैसा करो वैसा भरो !और इसी विकृति की ओर बढ़ता जा रहा है समाज !लाचार कानून व्यवस्था कुछ न करने की अपेक्षा कुछ करती दिखती रहती है किंतु मजबूरी में बेमन !
      सरकार के किसी व्यक्ति से बात कर ली जाए विपक्ष के किसी नेता नेत्री से पूछ लिया जाए पुलिस के किसी अधिकारी कर्मचारी से पूछ लिया जाए मनोचिकित्सकों और चिकित्सकों से पूछ लिया जाए वैज्ञानिकों को बलात्कार रोक कर दिखाने की चुनौती दे दी जाए वो मीडिया के सामने बैठकर कुछ भले बोल बता कर चले जाएँ किंतु इस बहस में सार्थक तर्कों के साथ उनका अधिक देर तक टिका रह पाना संभव ही नहीं है वो मौसम विभाग और भूकंपविभाग की तरह बिल्कुल खाली हाथ हैं !जिन विषयों में जिसकी जो जानकारी ही नहीं होती है सरकारी की गैरजिम्मेदार चयन पद्धति के हिसाब से प्रायः वे उसके ही विशेषज्ञ जाते हैं !इसीलिए वे भटकाते रहते हैं !समाज को सुधारने में जो कोई भूमिका ही न निभा पा रहे हों वे अधिकारी ,जनता का कोई काम करना जिनके बश का ही न हो वे कर्मचारी !शिक्षा और सदाचरण से जिनका कोई सम्बन्ध ही  न हो उनकी बनाई हुई शिक्षा सम्बन्धी सारी फाइलें झूठ का पुलिंदा मात्र हों वो शिक्षक और उनकी कोई  है सरकार क्या सुधार कर सकती है !
     वस्तुतः ऐसे प्रकरणों में  अपनी भूमिका का  करना पड़ेगा !केवल  सरकार  के भरोसे बैठा रहना ठीक नहीं होगा !
      

Thursday, 20 July 2017

बधाई क्यों दूँ ?मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति जैसे पद बनें हैं तो इन पर कोई तो बैठेगा ही !

    समाज में बदलाव के लिए कौन क्या करता है ध्यान तो इस बात के लिए दिया जाना है !
  देशवासियों के लिए कुछ नया और अच्छा हो तो अच्छा अन्यथा मंत्री  मुख्यमंत्री प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति जैसे पद यदि बनें हैं तो इन पर कोई तो बैठेगा ही प्रक्रिया पूरी करने के लिए लोग आते जाते रहेंगे अपना अपना समय बिताएँगे चले जाएँगे !जहाँ इतने लोग हैं वहाँ एक और सही उनका भी नाम इतिहास में दर्ज हो जाएगा !कुछ नहीं करेंगे तो ईमानदार भी बने रहेंगे !किंतु ऐसी सभी खाना पूर्तियों से समाज को क्या मिलेगा ? लोग आते जाते रहेंगे किंतु जो भ्रष्टाचार का धंधा समाप्त करेगा सच्ची बधाई तो उसे ही बनती है !
 देश विभिन्न प्रकार की समस्याओं से जूझ रहा है जिसमें भ्रष्टाचार सबसे ऊपर है उसे रोकने के लिए अभी तक कोई प्रभावी उपाय दिखाई नहीं दिए समझ में नहीं आता है कि भारत की न्यायपालिका भी भ्रष्टाचारियों से मिली हुई है क्या ?भ्रष्टाचार आखिर रुकते क्यों नहीं हैं !
    घूस लेने वाले अधिकारी कर्मचारियों  को ऐसे पदों पर सरकार ने बैठाया है यही घूसखोरी  करने के लिए ही तो सरकार उन्हें सैलरी देती है यदि ऐसा न होता तो सरकार उन्हें उनके पदों से तुरंत हटा देती किंतु सरकार ने ऐसा किया नहीं इसका मतलब घूस खोरी में सरकार मिली हुई है घूस खोरों पर कार्यवाही करने की दिखावटी धमकी दिया करती है सरकार !
   पूर्वी दिल्ली नगर निगम की एक घटना है K-71,छाछी बिल्डिंग कृष्णानगर दिल्ली -51 नामक   एक सामूहिक बिल्डिंग की छत पर अवैध मोबाईल टावर लगा है !जिसकी परमीशन  न तो बिल्डिंग में बने सोलह फ्लैट मालिकों से ली गई है और न ही EDMC से ली गई है 12 वर्ष हो गए मोबाईल टावर चलता जा रहा है उसका किराया बाहरी लोग लेते जा रहे हैं !EDMC से लेकर दिल्ली सरकार केंद्र सरकार को काई कम्प्लेन किए जा चुके किंतु कोई कार्यवाही नहीं  की गई !12 वर्ष हो गए !अभी भी चलता जा रहा है तब तक चलेगा जब तक अधिकारियों कर्मचारियों को घूस मिलती रहेगी !अवैध होकर जो इतने लंबे समय तक चल सकता है तो वैध कोई क्यों लेगा ! 
       EDMC अधिकारियों की मानी जाए  तो न्याय पालिका घूस खोर है इसलिए चलते हैं ऐसे अवैध काम !क्योंकि प्रायः हर अवैध काम को जब हटाने के लिए कहा जाता है तब निगम के घूस खोर लोग अवैध काम करने वालों को एक नोटिश देकर उन्हें स्टे दिलवा देते हैं इसके बाद खुद कोई पैरवी करते नहीं हैं वर्षों तक मामला खिंचता चला जाता है !जब उनसे पूछा जाता है कि ये अवैध टॉवर इतने वर्षों बाद भी हटाया क्यों नहीं गया !तब वो कहते हैं मैंने तो नोटिश दे दिया किंतु उसने कोर्ट से स्टे ले लिया है !फिर पूछा स्टे कब तक चलेगा तो कहते हैं जब तक जज साहब को घूस मिलती रहेगी तब तक जज साहब स्टे बढ़ाते चले जाएँगे !पूछा गया यदि हटवाना पड़े तो क्या करना होगा !हटेगा नहीं क्योंकि कई मोबाईल टावर वालों ने मिलकर कुछ करोड़ रूपए दिए हैं इसलिए !उतने तुम दे सकते हो तो भले हट जाए !
       मुझे नहीं पता कि EDMC के अधिकारियों के द्वारा मुझे बताई गई बात में कितनी सच्चाई है क्योंकि  कोई प्रमाण नहीं हैं और न ही उनकी बातों की ही कोई रिकार्डिंग ही है किंतु इतना अवश्य है कि ऐसे अवैध कामों के विरुद्ध कोर्ट शक्त क्यों नहीं होता !ऐसे लोगों के विरुद्ध की गई शिकायतें सरकारें सुनती क्यों नहीं है अधिकारी कर्मचारी अवैध कामों के विरुद्ध कोई कठोर कार्यवाही क्यों नहीं करते ?क्या उन्हें दिखते नहीं हैं अवैध मोबाईल टावर अवैध बिल्डिंग निर्माण या अवैध सभी प्रकार के काम काज !और यदि नहीं दिखते हैं तो वो करते क्या हैं सैलरी किसी बात की लेते हैं यदि वो काम उन्हें करने ही नहीं हैं तो बिना काम किए केवल घूस खोरी करने के लिए ही सरकार ने उन्हें पद सौंप रखे हैं क्या ?आखिर उन्हें सैलरी क्यों  देती है सरकार यदि सरकार उनके द्वारा किए जाने वाले भ्रष्टाचार में सम्मिलित नहीं है तो ?यदि नहीं तो ऐसे घूस खोर लोगों को तुरंत सस्पेंड करके  ऐसे अधिकारियों कर्मचारियों को आज तक दी गई सैलरी वापस ली जाए जिनके क्षेत्रों में किसी भी प्रकार के अवैध काम काज चल रहे हैं या अवैध निर्माण हुए हैं या अवैध बिल्डिंगें बनाई गई हैं | 
      अवैध काम काज चलाए जा रहे हों या अवैध निर्माण हुए हों या अवैध मोबाईल टावर लगाए गए हों !ऐसे सभी कार्यों को रोकने के लिए जिन जिन अधिकारियों कर्मचारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई हो यदि वो इतने अयोग्य थे कि रोकना उनके बैश का नहीं था तो उनसे घूस लेकर सरकार ने उन्हें नौकरी पर रखा क्यों ?और यदि वे योग्य हैं तो अपना काम नहीं करते ऊपर से घूस खोरी करते हैं फिर भी सरकार उन्हें सैलरी देती है !इसलिए ऐसे अपराधों को सरकार की मिली भगत के बिना कैसे किया जा सकता है | 
     
                   

Saturday, 15 July 2017

'भूकंप' और 'मौसम' संबंधी पूर्वानुमान वैज्ञानिकों के बस का है भी या नहीं ?आखिर क्यों किया करते हैं झूठी भविष्यवाणियाँ ?

भूकंप और मौसम के नाम पर झूठी भविष्यवाणियों एवं मनगढंत किस्सों कहानियों पर कब तक भरोसा किया जाएगा !
     'मौसम' और भूकंप संबंधी झूठी अफवाहें फैलाने वाले 'मौसमवैज्ञानिक' 'भूकंपवैज्ञानिक' और सभी विषयों घटनाओं के विषय में समय संबंधी सटीक पूर्वानुमान लगा लेने वाले ज्योतिषशास्त्र  को अंधविश्वास बताते हैं ऐसे लोग !    
         जिस विषय का ज्ञान ही नहीं है उसके वैज्ञानिक कैसे ?किंतु उन्हें सैलरी देने के  सरकार को कोई नाम तो रखना ही होगा ! यही स्थिति भूकंप वैज्ञानिकों की है एक ओर कहते हैं कि भूकंप के विषय में किसी को कुछ पता नहीं तो दूसरी ओर बताते हैं कि हिमालय के नीचे बहुत गैसें संचित है इसलिए यहाँ बहुत बड़ा भूकंप आएगा !इन्हें भी सरकार भूकंप वैज्ञानिक सिद्ध करती है सैलरी जो देना है !किंतु जिस विषय में कोई कुछ जनता ही न हो और जितना जानता हो उसे प्रमाणित कर सकने की स्थिति में ही न हो केवल आशंका के आधार पर इतनी बड़ी बड़ी बातें क्यों ?
     कब तक डर कर रहा जाए कि "हिमालय के नीचे बहुत गैसें भरी हुई हैं इसलिए किसी दिन बहुत बड़ा भूकंप आएगा" जैसी बिना सिर पैर की बातों पर क्यों  न लगाया जाए प्रतिबंध !एक ओर कहते हैं कि भूकंप के विषय में हमें कुछ पता ही नहीं है तो दूसरी ओर इतनी बड़ी बड़ी बातें जैसे हिमालय के नीचे देखकर आए हों !ऐसी बातें गढ़ने और बताने में विज्ञान जैसा है क्या ?
  'भूकंप' और 'मौसम' संबंधी पूर्वानुमानों की खानापूर्ति पर खर्च होने वाला धन 'व्यय' है 'अपव्यय' है या 'ब्यर्थव्यय' ! 
    सरकार के जिन मंत्रालयों में मंत्री हैं अधिकारी हैं कर्मचारी हैं वैज्ञानिक हैं उनकी सारी सुख सुविधाओं पर भारी भरकम खर्चे भी होंगे सबकी बड़े बड़े फंड वाली सैलरियाँ भी होती होंगी !जिन मंत्रालयों मंत्रियों विभागों अधिकारियों कर्मचारियों पर ये धन खर्च किया जाता है उनकी भी तो कोई जवाबदेही होनी चाहिए क्योंकि जनता के द्वारा टैक्स रूप में दिया गया होता है ये सारा धन !किंतु जवाबदेही ऐसी...... seemore......http://navbharattimes.indiatimes.com/state/maharashtra/other-cities/farmers-lodge-police-plaint-against-imd-for-wrong-forecast/articleshow/59595348.cms  
भूकंपवैज्ञानिक और मौसमवैज्ञानिक भूकंप और मौसम के विषय में कितने अनुभव सिद्ध हैं कह पाना कठिन है किंतु भूकंप के विषय में कुछ बता पाना असंभव और मौसम के विषय में बताई जाने वाली बातें केवल तीर तुक्का ही सिद्ध होती रही हैं !इनमें विज्ञान जैसा कभी कुछ किसी को नहीं लगा फिर भी इन्हें भूकंपविज्ञान और मौसमविज्ञान कहा जाता है और इससे संबंधित लोगों को भूकंप वैज्ञानिक और मौसम वैज्ञानिक माना जाता है जो जिस विषय में अपनी योग्यता को प्रमाणित ही न कर सका हो वो उस विषय का वैज्ञानिक कहना कहाँ तक न्यायसंगत है | 
      मेरी जानकारी के अनुशार अभी तक तो विश्वास पूर्वक कोई ये कहने की स्थिति में भी नहीं है कि भूकंपों के आने का कारण क्या है अथवा भूकम्पों के आने का कारण खोजने के लिए करना क्या चाहिए उसका भी अभी तक कोई सार्थक सूत्र नहीं खोजा  जा सका है इसका मतलब आज तक की भूकंपशोधयात्रा जहाँ शुरू हुई थी वहीँ खड़ी हुई है !
     भूकंपशोधयात्रा कहाँ अटकी है किधर जा रही है क्यों जा रही है उसे उधर ले जाना जरूरी क्यों समझा जा रहा है या केवल समय बिताने की प्रक्रिया का पालन मात्र है! पहले भी भूकंपशोधयात्रा कभी ज्वालामुखियों या कोयना जैसे जलाशयों की ओर घूमते फिरते अब भूमिगत प्लेटों की ओर मोड़ दी गई है !सुनने में आ रहा है कि पृथ्वी के गर्भ में स्थित गैसों के दबाव को अब कारण माना जाने लगा है इसीलिए ड्रिलिंग होगी फिर उसके माध्यम से कुछ अनुभव जुटाए जाएँगे !
       मेरे हिसाब से ये सब ठीक है किंतु ज्वालामुखी और कोयनाजलाशय की तरह ही यदि ये दाँव भी खाली जाता है तो उसके बाद का विकल्प क्या होगा ?उसको भी अभी से अमल में क्यों न लाया जाए !ऐसे तो अकारण  बहुत समय बीतता जा रहा है इसी के लिए एक संपूर्ण मंत्रालय है उसके संचालन से लेकर अधिकारी कर्मचारियों की सेवा सुविधाओं सैलरियों आदि पर भारी भरकम धनराशि खर्च होने के बाद भी बस वही परिणामशून्यता और आगे भी निराशा की स्थिति !कब तक चलाए जाएँगे यूँ ही अँधेरे में तीर !इसमें विज्ञान जैसा क्या है ?
     भूकंपविज्ञान हो या मौसमविज्ञान इन दोनों से संबंधित पूर्वानुमान तो तीर तुक्के मात्र साबित हो रहे हैं जब जैसा मौसम सबको दिखाई देने लगता है वही बात मौसम वाले बताने लगते हैं !संशय ये होने लगा है कि ये कोई  या नहीं ! दूसरा ये नहीं समझ में आता है कि ये असफलताएँ सरकार के अन्य विभागों के कामकाज की तरह ही लापरवाही की शिकार हुई हैं या पूर्वानुमान प्रक्रिया ही विश्वसनीय नहीं है |
         महोदय !मौसम विभाग और भूकंप विज्ञान विभाग की आधारहीन बातें अब जनता को बुरी लगने लगी हैं !वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों के गलत सिद्ध होने की कीमत किसानों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है !इसलिए इन दोनों विभागों की क्षमताओं मजबूरियों कार्य प्रणालियों से न केवल समाज को अवगत कराया जाए अपितु इन विषयों में समाज के ज्ञान एवं परंपराजन्य अनुभवों को भी इस रिसर्च में साथ लेकर चला जाए !
      वैदिक विज्ञान के आधार पर मैं पिछले लगभग 20 वर्षों से इसविषय पर ही शोधकार्य कर रहा हूँ मेरा अनुमान है कि इससे संबंधित कोई भी बड़ी घटना घटने से पहले प्रकृति में कोई हलचल तो होती ही होगी कोई सूक्ष्म लक्षण तो प्रकट होते ही होंगे आकाशीय लक्षणों एवं ग्रहजन्य परिस्थितियों में अंतर आता होगा पशुओं पक्षियों अन्य जीव जंतुओं एवं मनुष्यों के स्वभावों में परिवर्तन आता होगा! वृक्षों बनस्पतियों में बदलाव होते होंगे !समुद्रों नदियों तालाबों कुओं से संबंधित बदलाव होते होंगे !ऐसे सूक्ष्म अनुभवों को भी इन अध्ययनों में सम्मिलित किया जाना चाहिए !
      प्राकृतिक  घटनाओं के अध्ययन में बहुत मदद उन लोगों के अनुभवों से मिल सकती है जो शहरी चकाचौंध से दूर कृषि कार्यों में लगे रहते हैं वृक्षों बनौषधियों से संबंधित कार्य करते हैं ऐसे ग्रामीणों बनवासियों पशुपालकों बनों उपबनों से संबंधित निरंतर काम करने बालों से अनुभव जुटाए जाने चाहिए !मेरा विश्वास है कि उन्हें कुछ प्राकृतिक अनुभव होते होंगे वैसे भी कुछ लोग तो परंपरा से प्राप्त अनुभवजन्य ज्ञान विज्ञान का संग्रह रखते हैं ऐसे सभी अनुभव स्रोतों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए !प्रकृति के सच्चे अनुभव ऐसे लोगों के पास होते होंगे उनसे छोटे छोटे प्रकृतिपरिवर्तनजन्य अनुभवों का संचय करके उन्हें मथा जाना चाहिए संभव है कि वो भूकंप और मौसम संबंधी अनुसंधानों के लिए विशेष सहायक हो !
      भारत सरकार के इन विभागों से संबंधित शोध प्रक्रिया अभी तक इतनी भ्रामक खर्चीली और विस्तारवादी  है कि इसमें योगदान दे पाना हर किसी के लिए संभव नहीं है !सबसे बड़ी बात ये है कि इससे संबंधित शोध कार्यों में सम्मिलित होने के लिए आधुनिक विज्ञान का डिग्री होल्डर विद्वान होना अनिवार्य माना गया है जो हर किसी के लिए संभव नहीं है किंतु प्राकृतिक अनुभव तो किसी के भी पास हो सकते हैं !उनकी उपेक्षा करना कहाँ तक उचित होगा !एक बात और है कि यदि यह विषय केवल विज्ञान के बस का होता तो वैज्ञानिक लोग अब तक इसका कोई न कोई रास्ता निकाल चुके होते किंतु ऐसा नहीं हो सका इसलिए प्रकारांतर विधाओं पर भी विचार किया जाना चाहिए !       
    भूकंप वाले हों या मौसम वाले दोनों बिल्कुल खाली हाथ होने के बाद भी वैज्ञानिकों की श्रेणी में सम्मिलित हैं !सरकार भी भूकंप जैसी आपदाएँ उन्हीं की दृष्टि से देखती है किंतु जो विषय जिन्हें खुद न पता हो उस पर वो सरकार को क्या गाइड करेंगे !
     भारत के प्राचीन वैदिक विज्ञान में इन विषयों में छिटपुट मिलने  जानकारियों अनुभवों का संग्रह करके उनको अनुसन्धान योग्य बनाया जा सकता है जो भूकम्पों से संबंधित शोध कार्यों में विशेष सहयोगी सिद्ध हो सकते हैं ऐसा मैं लगभग पिछले बीस वर्षों से कर भी रहा हूँ कुछ बड़ी सफलताएँ हाथ भी लगी हैं जिससे भूकम्पों को समझने में हमें बहुत मदद मिली है अभी भी उसी कार्य में लगा हूँ !
   वैदिक विज्ञान के द्वारा 'भूकंप' और 'मौसम'जैसे विषयों पर अनुसंधान के लिए मुझे सरकार से सहयोग चाहिए था प्राकृतिक परीक्षणों के लिए जमीन चाहिए थी उसमें आवश्यकतानुशार निर्माणों के लिए धन एवं कुछ यंत्र चाहिए थे कुछ सहयोगी चाहिए थे यातायात साधन और आर्थिक मदद चाहिए थी! 
    जिसके लिए मुझे सरकार से सहयोग चाहिए था मैंने संबंधित विभाग में फोन किया जहाँ से इस विषय में फोन  करने पर क्रमशः लोग एक दूसरे का नम्बर देते चले गए जिसमें तेरह ऐसे प्रमुख पदाधिकारी लोग अनुपस्थित थे ये बात उनके यहाँ फोन उठाने वालों ने  मुझे बताई !तीन बार ऐसा करने पर जब जानकारी लेने में मैं सफल न हो सका तो मैंने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी माँगी कि वैदिक विज्ञान के द्वारा भूकंप और मौसम जैसे विषयों पर मैं शोध कार्य कर रहा हूँ क्या मुझे  यहाँ से कोई सहयोग मिल सकता है !उसमें जवाब आया कि सारी जानकारी हमारी साइट पर है वहीँ देख लीजिए !
       खैर मैंने एक दिन फिर फोन मिलाया कुछ देर भटकने के बाद कोई महापुरुष मुझे मिले जिन्होंने हमें कुछ बातों में निपटा दिया !पहली बात जो साइंस नहीं पढ़ा है उसकी कोई बात नहीं सुनी जाएगी !दूसरी बात आपका सेटअप लगा कहाँ हैं उसमें कितने लोग काम करते हैं !ये दोनों चीजें हमारे पास नहीं थीं !तीसरी सबसे जरूरी बात उन्होंने बताई कि आप कुछ तारीखें लिखकर लेकर आओ कि इस दिन इसे इतने बजे वहाँ पर भूकंप
 आएगा !वो तारीखें और समय सम्बन्धी भविष्यवाणी यदि सही निकल जाएगी उसके बाद कुछ सोचेंगे तुम्हारे लिए !इसपर मेरे मन में  आया कि इतनी भारी भरकर धनराशि खर्च करके सब सुख सुविधा भोगने वाले भारी भरकम सैलरी लेने वाले जो काम इतने वर्षों में नहीं कर सके वो हमसे कुछ क्षणों में करवाना चाह रहे थे वे भूकम्पीय लोग !क्या ये उचित था ?
   'भूकंप' और 'मौसम' जैसे विषयों में मैंने कुछ महत्वपूर्ण बातें खोजी भी हैं जो ऐसे लोगों के लिए कुछ बड़ी सफलता सिद्ध कर सकती हैं किंतु अब मेरा भी निश्चय है कि जहाँ अपनी प्रतिभा विस्तारित करने के लिए कोई उचित मंच मिलेगा तो मैं भी अपने प्राकृतिक अनुसन्धान सार्वजनिक कर दूँगा अन्यथा नहीं !



Friday, 14 July 2017

मौसमविज्ञानविभाग और भूकंपविज्ञानविभाग में विज्ञान है कहाँ ? बिना विज्ञान के वैज्ञानिक !

   मौसम विभाग बेचारे पर हो गई  FIR मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के नामपर झूठ पर झूठ नहीं सह सके किसान ! मौसमविज्ञान वालों के तीर तुक्कों से तंग होकर किसानों  ने कराई  है FIR  !seemore......http://navbharattimes.indiatimes.com/state/maharashtra/other-cities/farmers-lodge-police-plaint-against-imd-for-wrong-forecast/articleshow/59595348.cms 

   मौसम के विषय में झूठी अफवाहें फैलाने वाले मौसम वैज्ञानिक और भूकंप के विषय में झूठ मूठ के किस्से कहानियाँ गढ़ गढ़ कर सुनाते रहने वाले भूकंप वैज्ञानिक !अगर विज्ञान ऐसा होता है तो अंधविश्वास कैसा होता होगा ?  
  भूकंप विज्ञान वालों का भी यही हाल है मौसम वैज्ञानिकों की अपेक्षा उनमें इतना अंतर अवश्य है कि भूकंप वाले लोग ये स्वीकार करते हैं कि उन्हें भूकंप के विषय में कुछ नहीं पता है जबकि मौसम वैज्ञानिक ऐसा मानने को तैयार ही नहीं हैं कि उन्हें मौसम के विषय में कुछ पता ही नहीं है | 
     भूकंप वैज्ञानिकों के द्वारा भूकंप के कारणों के संदर्भ में समय समय पर वाणी बदली जाती रही है कभी ये कारण कभी वो कारण कभी कोई तीसरा कारण बता बताकर अपना समय पार करते जाते हैं !किंतु एक बात तो है कि मौसम वाले कुछ करते दिखते नहीं हैं किंतु भूकंप वाले समय समय पर गड्ढे खोदा करते हैं फिर उसमें मिट्टी भर दिया करते हैं !किंतु गड्ढे खोदते भरते ये निष्कर्ष वो पता नहीं कैसे निकाल लेते हैं कि हिमालय के नीचे गैसों का बहुत बड़ा जमावड़ा है यहाँ भूकंप आया तो बड़ा भयंकर होगा बहुत नुक्सान करेगा !ऐसे ही डेंजर जॉन बना डेल गए हैं पता नहीं कि उनका आधार क्या है ?कभी भूकंप आने का कारण ज्वालामुखी बताए जाते थे फिर कोयना जैसे जलाशय इसके बाद कुछ नहीं तो जमीन के अंदर की प्लैटें हिलने से आता है भूकंप ऐसा बताने लगते हैं !और भी ऐसे कई कारण गिनाए जाते हैं भगवान् जाने भूकम्पों के लिए कल किसे जिम्मेदार ठहरा  देंगे ये लोग !किंतु इतना तो मुझे भी लगता है कि यदि भूकंप के विषय में कुछ भी पता ही नहीं है तो फिर हिमालय के नीचे गैसों के कारण भयंकर भूकंप आने जैसी डरावनी बातें भी नहीं बोली जानी चाहिए !
      मौसम के संबंध में झूठ मूठ के तीर तुक्के लगाने से अच्छा है भूकंप वालों की तरह ये भी साफ साफ कह दें कि मौसम के विषय में कुछ भी बता पाना हमारे बस का नहीं है मौसम के नाम पर आज तक झूठ बोलने के लिए हम माफी चाहते हैं !मौसम संबंधी तीर तुक्कों से समाज को भ्रमित करते रहने की अपेक्षा अच्छा  है  कि वे अपनी योग्यता क्षमता आदि के विषय में अपनी अपनी सीमाएँ और मजबूरियाँ समाज के सामने रखें ! ताकि मौसम संबंधी  विषयों में मौसम विज्ञान विभाग के द्वारा बताई हुई झूठी भविष्यवाणियों पर भरोसा करके किसान ऐसी फसलें क्यों बोवें मौसम के कारण जिनके नष्ट होने की संभावना अधिक हो !ऐसे मौसम विज्ञान की सच्चाई से समाज को अवगत करवाया जाए ताकि मौसम विज्ञान की झूठी भविष्यवाणियों के कारण होने वाली किसानों की आत्म हत्या की घटनाओं को घटाया जा सके ! मौसमसंबंधी झूठी भविष्यवाणियों से तंग आ चुके हैं लोग आत्म हत्या कर रहे हैं किसान किंतु मौसम विभाग को मौन रहने का अभ्यास नहीं है !
   ईस्वी 2015 में मौसम के कारण ही तो प्रधानमंत्री जी की दो रैलियाँ कैंसिल करनी पड़ी थीं करोड़ों रूपए तैयारियों में लगे ब्यर्थ चले गए थे किंतु मौसम विभाग का क्या लाभ हुआ देश को !जो प्रधानमन्त्री जी के कार्यक्रमों के विषय में मौसम बिगड़ने संबंधी कोई सूचना नहीं दे सका उससे मौसम संबंधी सच्चाई जानने की आशा ही क्यों करते हैं किसान और देशवासी !
    मेरा निवेदन इतना अवश्य है कि वैदिक विज्ञान को  अंधविश्वास बताना जिस दिन छोड़ दिया जाएगा और मौसम एवं भूकंप जैसे विषयों से जुड़े आधुनिक वैज्ञानिक जिस दिन अपनी सच्चाई स्वीकार कर लेंगे उस दिन वैदिकवर्षाविज्ञान  और वैदिकभूकंप विज्ञान  से जुड़े वैदिकवैज्ञानिक लोग अपनी सक्रियता बढ़ाएँगे और खोज लाएँगे भूकंप आने के कारण !
     

शिक्षा शिक्षकों और परीक्षाओं में भ्रष्टाचार !अच्छे रिजल्ट के झूठे दावे करती रहती है सरकार !

    बिहार टॉपरकांड भी तो इन्हीं शिक्षा अधिकारियों कर्मचारियों के द्वारा किया गया चमत्कार था !मीडिया की सक्रियता के कारण खुली पोल !ऐसा हर प्रदेशों में होता है वैसे तो सरकार के हर विभाग में होता ही यही है !इसीलिए तो भरोसा टूटा है किंतु शिक्षामंत्रालय शिक्षाव्यवस्था एवं शिक्षकों  पर से उठता विश्वास चिंता का विषय !
    छात्र यदि वास्तव में देश का भविष्य होते हैं तो भविष्य को चौपट करने वालों से कड़ाई से क्यों न नहीं निपटती है सरकार ! स्वच्छता अभियान यदि इतना ही जरूरी है तो शिक्षाव्यवस्था की गंदगी दूर करने को पहली प्राथमिकता क्यों न दी जाए !देश का भविष्य सुधरेगा तो देश सुधरेगा !
     शिक्षा के इंतजामों पर भारी भरकम खर्च किंतु जो शिक्षक खुद पढ़े नहीं हैं तो पढ़ाएँगे क्या ?परीक्षा कैसे लेंगे परीक्षा कापियों को जाँचेंगे कैसे !रिजल्ट कैसे बनाएँगे ! चतुर सरकारें सरकारी स्कूलों की कापियाँ जँचवाने में कुछ हाथ पाँव मारकर रिजल्ट अच्छा बनवा लेती हैं थपथपा लेती हैं अपनी पीठ !देश के भविष्य से कपट क्यों ?
       सोचने वाली बात है कि घूस और सोर्स के बल पर शिक्षक बनने वाले अयोग्य लोगों का प्रतिशत कम है क्या ? उनकी पहचान करके छँटनी किए बिना अच्छी पढ़ाई हो पाना संभव है क्या ?ऐसे अयोग्य एवं अकर्मण्य लोगों के विरुद्ध कोई कार्यवाही किए बिना ही उन्हें हटाए बिना ही जो चतुर सरकार अच्छा रिजल्ट दिखाकर अपनी पीठ थपथपाती है हमें तो उसकी नियत पर ही शक होता है !ऐसे शिक्षा मंत्रियों की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर इतने बड़े भरोसे के आधारों की जाँच होनी चाहिए !आखिर किस आधार पर वे ऐसे ऊलजलूल दावे ठोंकते रहते हैं क्यों झोंकते हैं अभिभावकों की आँखों में धूल !ऐसे शिक्षामंत्रियों में यदि थोड़ा भी संकोच हो तो वो मीडिया से नहीं अपितु सरकारी स्कूलों में बच्चे पढ़ाने वाले अभिभावकों से आँख मिलाकर बात करने का साहस करें !
     मैं पूछता हूँ योग्य और अयोग्य दोनों प्रकार के शिक्षा कर्मचारी व शिक्षक लोग शिक्षा व्यवस्था को बनाने बिगाड़ने में लगे हुए हैं !इन बिगाड़ने वालों को हटाए बिना क्या सुधर सकती है शिक्षा व्यवस्था ? इन्हें हटाने के अलावा कोई विकल्प जब है ही नहीं तो देर क्यों कर रही है सरकार ? योग्य लोगों की पहचान करने के लिए योग्यता परीक्षा ले सरकार और ऐसे लोगों के चंगुल से मुक्त करवाई जाए शिक्षा व्यवस्था !इन्हें नौकारियों से हटाकर योग्य ईमानदार और कर्मठ शिक्षकों के हवाले शिक्षा व्यवस्था किए बिना शिक्षा कैसे सुधर सकती है शिक्षा और कैसे हो सकता है अच्छा रिजल्ट !
        विगत कई दशकों से शिक्षा के लिए केवल इंतजाम होते हैं विज्ञापन छपते हैं किंतु शिक्षा कितनी होती  है ये सरकार को क्या पता ! सरकार को रिपोर्ट बनाकर वो लोग देते हैं जो शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने के वास्तविक मसीहा हैं उस पर भरोसा करना सरकार की अपनी मजबूरी है जनप्रतिनिधियों आदि का शिक्षित न होना या कम शिक्षित होना भी एक बड़ी बाधा  है !
       ऐसे लोगों के द्वारा मीडिया को दिखाने के लिए अच्छे आँकड़े पेश करने एवं अच्छी जाँच रिपोर्ट बनाने और शिक्षा मंत्री एवं सरकार की पीठ थपथपाने का मैटीरियल तैयार करने में लगी रहती है सरकारी मशीनरी !किंतु सरकारी स्कूलों में शिक्षा होती है कि नहीं ये देखने की जिम्मेदारी जिनकी है उनसे क्यों न पूछा जाए कि सरकारी स्कूलों  की शिक्षा व्यवस्था आम जनता का भरोसा जीतने में नाकाम क्यों रही ?शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद करने के आपके यदि इरादे नहीं थे इसके चौपट होने में आपकी यदि वास्तव में कोई भूमिका नहीं रही है तो शिक्षा व्यवस्था से जुड़े आप सभी लोगों में से कितने अधिकारियों कर्मचारियों ने अपने बच्चे सरकारी स्कूलों में  पढ़ाए नहीं तो क्यों ?
      इसका मतलब शिक्षा व्यवस्था में सुधार आपका लक्ष्य था ही नहीं !इसलिए जो जिम्मेदारी आप निभा ही नहीं सके  फिर सैलरी किस बात की ?और आजतक आपको ब्यर्थ में दी गई सैलरी वापस क्यों न ली जाए ?