Wednesday, 31 August 2016

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्रीमान एम. वेंकैया नायडू जी

माननीय -
        केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्रीमान एम. वेंकैया नायडू जी
                                                                                    सादर नमस्कार !
       विषय : चुनावी भविष्यवाणियों के प्रसारण पर रोक लगाने हेतु !
महोदय ,
      आदिकाल में ज्योतिष जब बनी थी तब 'राजा' हुआ करते थे 'राजतंत्र' के उस युग में  चुनावी मतदान होता ही नहीं था इसलिए ज्योतिष शास्त्र में चुनावों  से संबंधित हार जीत से जुड़ी भविष्यवाणी करने के कहीं भी कोई भी प्रमाण नहीं मिलते हैं यहाँ तक कि इस विषय की चर्चा क्या संकेत तक नहीं मिलते हैं !सरकार चाहे तो इस विषय में सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों के ज्योतिषविभागों के विद्वान रीडर प्रोफेसरों से भी सलाह ले सकती है !कुल मिलाकर चुनावी राजनीति से जुड़ी सभी प्रकार की भविष्यवाणियाँ सौ प्रतिशत झूठ होती हैं इसमें कहीं कोई शक की गुंजाइस ही नहीं है !इसलिए अंधविश्वास फैलाने वाले ऐसे सभी प्रकार के पाखंडपूर्ण  प्रसारणों पर प्रभाव पूर्वक रोक लगाई जाए !
       ऐसी चुनावी भविष्यवाणियाँ करने के नाम पर लोगों की आँखों में ऐसे धूल झोंकी जाती है । ज्योतिष के नाम पर चुनावी भविष्यवाणियों का धंधा करने वाले लोग पहले तो अलग अलग समयों में अलग अलग चैनलों पत्र पत्रिकाओं आदि में हार जीत की संभावना रखने वाली संबंधित पार्टियों और नेताओं के हारने और जीतने संबंधी दोनों ही प्रकार की भविष्यवाणियाँ प्रकाशित करवा लेते हैं !दोनों प्रकार के लोगों को जिताने के लिए पूजा पाठ अनुष्ठान उपाय आदि करने का नाटक करते हैं ! समाज किसी के विषय में इतना ध्यान देता नहीं है अगर किसी की  प्रकाशित भविष्यवाणी पढ़ भी ली तो न उसे याद रखता है और न ही उसका संग्रह रखता है जबकि अंधविश्वास फैलाने वाले लोग अपने ऐसे सभी सौ प्रतिशत झूठीप्रकाशित भविष्यवाणियों का संग्रह रखते हैं चुनावों के बाद जिन जिन पार्टियों के जो जो नेता जीतते हैं या जिन पार्टियों को बहुत मिलते दिखता है और जिनकी सरकार बनने लगती है उनसे संबंधित लेख सबको दिखाते फिरते हैं वही पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित करवाया करते हैं कि देखो हमारी ये भविष्यवाणी सच हुई है !जबकि सच्चाई ये है कि ऐसे सौ प्रतिशत लोग न तो ज्योतिष पढ़े होते हैं और न ही इनके पास ज्योतिष सब्जेक्ट की कोई प्रमाणित डिग्री ही होती है और न ही ये ज्योतिष जानते ही हैं । 
        श्रीमान जी ! ऐसे फ्रॉड लोग ज्योतिषशास्त्र का सम्मान घटाते हैं ज्योतिष सब्जेक्ट से जुड़े शिक्षकों विद्यार्थियों का उपहास करवाया करते हैं ज्योतिष शास्त्र का सम्मान घटाते रहते हैं
     महोदय ! अतएव आपसे निवेदन है कि ऐसे सभी पाखंडों और पाखंडियों के द्वारा प्रकाशित एवं प्रसारित करवाई जाने वाली झूठी भविष्यवाणियों पर अविलंब अंकुश लगाया जाए !

प्रधानमंत्री जी कहते हैं - "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" किंतु बेटियों को बचावे कौन और पढ़ावे कौन !

     मोदी जी !  बलात्कारियों के कारण बेटियाँ बचाई कैसे जाएँ और अयोग्य शिक्षकों के कारण पढ़ाई कैसे जाएँ !
    बेटी बचाने की जिम्मेदारी जिनकी है अक्सर उन्हीं के सगे संबंधी निकलते हैं बेटियों को सताने वाले ! बेटियों को पढ़ाने की जिम्मेदारी जिनकी है वे खुद अनपढ़ होते हैं बेचारों ने घूस देकर नौकरी पाई होती है सैलरी वसूल कर उन्हें चला जाना होता है वस !जिन कक्षाओं को पढ़ाने की शिक्षकों को जिम्मेदारी दी जाती है उन कक्षाओं की परीक्षाओं में वे स्वयं बैठा दिए जाएँ शिक्षक लोग ही 80 प्रतिशत फेल हो जाएँगे !वो बेचारे कैसे और क्या पढ़ाएँगे "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" आखिर कैसे !
      सरकारी अधिकारी कर्मचारी ! आखिर कर क्या रहे हैं !केवल रुतबा दिखाने के लिए अधिकारी बने हैं क्या ! सरकारी आफिसों में लगा कंप्यूटर और प्रिंटर ख़राब हो जाए या अस्पतालों में एक्सरे मशीन खराब हो जाए तो ठीक होने में कहो महीनों लग जाएँ क्योंकि उससे जनता का काम होना होता है किंतु अफसरों के कमरे का AC खराब हो जाए तो तुरंत ठीक हो जाता है आखिर क्यों !क्या सरकारी धन केवल अधिकारियों को ही सारे सुख भोगवाने के लिए होता है क्या !"बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" आखिर कैसे !
   सरकारी स्कूलों में शिक्षा नहीं , अस्पतालों में चिकित्सा नहीं है ,रोडों पर सुरक्षा नहीं है  !अधिकारियों के पास सुनवाई नहीं ! भ्रष्ट कर्मचारियों पर कार्यवाही नहीं !सरकार की सतर्कता के अभाव में सारी व्यवस्थाएँ दिनोंदिन बिगड़ती जा रही हैं | सच मानिए प्रधान मंत्री जी !आम जनता के लिए लोकतंत्र का वर्तमान स्वरूप केवल छलावा सिद्ध है उसके आलावा कुछ नहीं !बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" आखिर कैसे !
        सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की नियुक्तियाँ हुए ही कई दशकों  बीत गए !अब तो शिक्षकों की नियुक्तियाँ ही घूस लेकर की जाती हैं और मोटी  मोटी  सैलरी देकर उन्हें खुश किया जाता है !बाद में पेंशन !
भ्रष्टाचार के विरूद्ध लोग तभी तक आंदोलन करते हैं जब तक उन्हें हिस्सा नहीं मिलता जैसे ही उन्हें भी हिस्सा मिलने लगता है शांत होकर बैठ जाते हैं देखो केजरीबवाल को !भ्रष्टाचार का मान अपने भी घर पहुँचाने लगा होगा तो अब खुश हैं वैसे मरे जा रहे थे भ्रष्टाचार के कारण !जनता के लिए तो जैसा पहले था वैसा ही आज है अधिकारी कर्मचारी वही हैं तो बदलेगा क्या ? वो बदलेंगे तो बदलेगा अन्यथा कैसे बदल जाएगा वातावरण ! वो बदल कैसे जाएँगे !पढ़े लिखे अधिकारियों को अंगूठा टेक नेताओं को रास्ते पर लाना आता है !    

         कुलमिलाकर अधिकारियों की सैलरी बोझ है देश पर !वो जनता के किसी काम नहीं आ पा रहे हैं !वो न किसी की सुनते हैं और न किसी के लिए कुछ करते हैं !जिस विभाग की शिकायत होती है कभी कभी उनसे पूछ कर वही बता देते हैं जो वो लोग पहले ही कह रहे थे फिर इस लोकतंत्र में अधिकारियों का अपना वजूद क्या है !एक पुलिस वाले भाई साहब तो यहाँ तक कह रहे थे कि अधिकारियों से शिकायत करने का असर ये हुआ कि पहले आपका जो काम करने के लिए हम दो हजार माँग रहे थे उसी के लिए अब दस हजार देने पड़ेंगे क्योंकि अब उन अधिकारियों को भी उनका हिस्सा पहुँचाना पड़ेगा !बारे देश बारे लोकतंत्र !बारी सरकारें !सरकारी योजनाओं को पूर्णकरने वाले लोग यदि ऐसे हैं तो सरकारी योजनाओं का कार्यान्वयन कैसे होता होगा !
   लोग अपनी अपनी एप्लिकेशनें दे जाते हैं सुबह सफाई वाले उठा कर फ़ेंक देते हैं ।  गरीबों का जीवन इतना अकेला है उड़ीसा की घटना जिसकी पत्नी के निधन के बाद शव ले जाने तक की  व्यवस्था न कर सके हों सरकारी अधिकारी कर्मचारी  !दूसरी घटना कानपुर हैलट कि एक पिता के उसके छोटे से पुत्र का शव कंधे पर लेकर जाने को मजबूर कर देने वाले अधिकारी कर्मचारी मरीजों का इलाज क्या ख़ाक करते होंगे !ऐसी मौतों के लिए अस्पतालों के जिन अधिकारियों कर्मचारियों को जिम्मेदार मान कर मुकदमा चलाया जाना चाहिए और कठोर सजा का प्रावधान होना चाहिए घूस खोर सरकारों का ध्यान ऐसे लोगों की सैलरी और महँगाई भत्ता बढ़ाने पर रहता है !  सरकार के हर विभाग का हाल यही है अधिकारियों कर्मचारियों की नियत ही साफ नहीं है
         सरकारी कर्मचारी ऊपरी कमाई का लालच छोड़ें तो बंद हो सकते हैं सभी प्रकार के अपराध और बलात्कार !किंतु वे छोड़ें क्यों उनपर ऊपरी दबाव होता है कमाई करके देने का !सरकारों में सम्मिलित लोगों का सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों पर घूस लेकर नेताओं की कमाई बढ़ाने का अघोषित दबाव रहता है वो टारगेट उन्हें पूरा करके देना ही होता है ! दो दो कौड़ी के नेता इन्हीं कमाऊपूतों के सहयोग से होते हैं अरबों खरबोंपति और भोगते हैं राजाओं जैसे सुख भोग !बाद में नेता लोग उन्हें महँगाई  भत्ता या सैलरी बढ़ाकर कुछ अंश लौट दिया करते हैं वो कर्मचारी जब कमा कर भेजते हैं तब भी अपना हिस्सा निकालकर रख लिया करते हैं !तभी तो जिन जिन अधिकारियों कर्मचारियों के यहाँ तलाशी होती है वो सब करोडो अरबो पतिनिकलते हैं जिनके घरों की तलाशी ही नहीं हुई वो ईमानदार बने रहते हैं तलाशी उन्हीं के यहाँ होती है जो सरकारों में सम्मिलित नेताओं का दिया हुआ कमाई का टार्गेट पूरा करके समय से पहुँचा नहीं पाते हैं !सरकारों में सम्मिलित लोग कुछ लूट लिया करते हैं कुछ सरकारी अधिकारी कर्मचारी नोच लेते हैं इस  जिस दिन चाह लेंगे उसी दिन बंद हो जाएँगे बलात्कार समेत सभी प्रकार के अपराध !ऊपरी कमाई का लालच तो छोड़ना पड़ेगा ! 

       गन्दगी में जैसे कीड़े डालने नहीं पड़ते अपितु स्वतः पड़ जाते हैं उसी प्रकार से भ्रष्टाचार की गंदगी की सड़ांध में सभी प्रकार के अपराधी जन्म लेते हैं  सरकार गंदगी पर कीटनाशक छिड़क रही है किंतु इससे कीड़े मकोड़े मर तो सकते हैं किंतु दोबारा पैदा होने से नहीं रोके जा सकते हैं इसलिए हटानी तो गन्दगी ही पड़ेगी किंतु अपनों की हुई गंदगी गंदगी कहाँ लगती है छोटे बच्चे पिता के ऊपर पेशाब कर देते हैं तो भी पिता उसे पुचकारना नहीं छोड़देता है ऐसे ही सरकारी कर्मचारियों के सौ खून माफ हैं वो कुछ भी करें किंतु अपनों की सैलरी बढ़ाने से पीछे नहीं हटती हैं सरकारें !
 अपराधियों पर शिकंजा कसने का दिखावा करने के लिए एक से एक कठोर कानून बनाए जाते हैं इसके बाद उन कानूनों को बेचने की रेट लिस्ट सरकारी अधिकारी कर्मचारी खुद बना लेते हैं जिस अपराधी की जेब में जितना पैसा होता है वो अपराधी उसी हिसाब से कानून खरीदता है और ठाठ से करता है अपराध !

   'ठाठ से' कहने का मतलब आप छोटे बड़े किसी भी अपराधी को देखिए पुलिस पकड़े खड़ी होती है किंतु अपराधी के चेहरे पर डर नाम की चीज नहीं होती  है रोते  वही अपराधी हैं जो नए नए होने के कारण या कंजूसी के कारण सेटिंग नहीं कर पाते हैं या फिर वो रोते  हैं जिनका उस अपराध से कोई संबंध ही नहीं होता है किंतु वास्तविक अपराधियों को बचाने के लिए पुलिस के द्वारा गरीबों  किसानों मजदूरों के बच्चे उठा लिए जाते हैं इससे  जनता में सन्देश चला जाता है कि  अपराधी पकड़ गए फिर सक्षम अधिकारी मिलकर तय करते हैं कि उस पर कौन कौन कैसे कैसे केस थोपे जाएँ और उसे कितना बड़ा अपराधी घोषित करना है उसी हिसाब से उसके कागज पत्तर बना लिए जाते हैं उनके पास न घूस  देने को पैसे होते हैं और न कोई सोर्स !उनके परिवारों की महिलाएँ सिर ढक ढक कर रोने जरूर पहुँच जाती हैं उन्हीं घरों का पुरुष वर्ग कसमें खा कहकर अपने निर्दोष होने का सबूत दे रहा होता है किंतु  सरकारी शेर  ग़रीबों के साथ कैसा भी बुरा व्यवहार करने के लिए स्वतंत्र होते हैं उस दिन वो कोई भी गाली दे सकते हैं बच्चों के माता पिता होने के नाते उन्हें बुरा  नहीं लगता !वो सोचते हैं चलो इसी बहाने साहब ने बात तो की !सरकार ऐसे कमाऊ पूतों को सातवें वेतन आयोग की धनराशि से सींचने जैसी बड़ी भूल करती है । किंतु सरकार में इतनी हिम्मत नहीं होती है कि उनसे कहे कि यदि सैलरी बढ़ के लेनी है तो अपने अपने विभागों से भ्रष्टाचार को समाप्त करो !सरकार सारे अभियान चलाती है किंतु भ्रष्टाचार भगाओ अभियान कभी सुना है ।

    भ्रष्टाचार से कमाई करके सरकारों में सम्मिलित लोगों का हिस्सा उन्हें पहुँचाते हैं वे खुश  होकर इनकी सैलरी बढ़ा दिया करते हैं ये न बढ़ावें तो वो  चले जाते हैं हड़ताल में !सरकार में सम्मिलित लोग घबरा जाते हैं कि ये कहीं पोल न खोल दें अपने भ्रष्टाचार की इसलिए मना लेते हैं इन्हें और मान लेते हैं उनकी अच्छी बुरी सभी माँगें ! यदि सरकार  ईमानदार हो तो इन्हें निकाल बाहर करे और नई  भर्ती करले किंतु ईमानदार हो तब तो !
    भ्रष्टाचार करने वाले सरकारी अधिकारी कर्मचारी ही तो हैं जनता के पास ऐसे कोई अधिकार ही नहीं होते कि वो भ्रष्टाचार करे ! ये तो भीषण सैलरी उठाने वाले सरकारी लोग ही कर सकते हैं । ऊपर से बढ़ाती  जा रही है सरकार !सरकार को चाहिए कि सैलरी बढ़ाने से पहले उनसे कहे कि भाई घूस लेना अब तो बंद करो ! जिन्दा मुर्दा सब तुम्हीं खा जाओगे तो ग़रीबों किसानों मजदूरों को हम क्या देंगे !
    वैसे भी सरकारी कर्मचारियों  से काम लेना सरकार के बश की बात नहीं है और आम जनता की वो सुनते नहीं हैं घूस देकर आते हैं सैलरी उठाकर रिटायर हो जाते हैं । जब चाहते हैं तब सैलरी बढ़वा लेते हैं ।काम के नाम पर ऐसे हैं कि शिक्षकों की परीक्षा लेने पहुँचते हैं मीडिया वाले तो शिक्षकों को कुछ आता जाता नहीं है घूस देकर भर्ती हुए हैं तो अब उन्हें सैलरी चाहिए बश !
    खैर ,सरकार के हर विभाग का लगभग यही हाल है अयोग्य अधिकारियों कर्मचारियों को ये समझ में ही नहीं आ रहा है कि काम शुरू कहाँ से करें और हमें करना क्या है तब तक बेचारे रिटायर हो जाते हैं उनकी इसी  अयोग्यता के कारण ही सभी प्रकार के अपराध बढ़ रहे हैं कुल मिलाकर सरकार के किसी काम में कोई क्वालिटी नहीं है केवल घोषणाएँ हो रही हैं काम के विषय में सोच रहे हैं कि अगली पञ्च वर्षीय  योजना में करेंगे । सरकार का कोई विभाग भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है इसलिए योग्य अधिकारियों कर्मचारियों की नियुक्तियाँ हों तो कैसे हों और योग्यता विहीन लोग अपराधों को कैसे करें कंट्रोल !
        भ्रष्टाचार करने वाले सरकारी कर्मचारी ही तो हैं !कुछ भ्रष्टाचार करते हैं कुछ हिस्सा लेते हैं कुछ केवल भ्रष्टाचारी कमाई की पार्टियाँ खाते हैं कुछ घूस नहीं लेते हैं तो पता उन्हें भी सबकुछ होता है कि हमारी आफिस में सरकार का बनाया हुआ कौन सा कानून तोड़ने का रेट क्या है !और अपनी आफिस में कितने का कारोबार हो रहा है प्रतिदिन !जानते सबकुछ हैं कब कब कौन कौन कितनी कितनी कर रहा है कमाई !ऐसे सभी लोग सम्मिलित माने जाएँगे भ्रष्टाचार में !
   अरे सरकारी कर्मचारियो ! आप लोग जिम्मेदारी निभाना देश के श्रद्धेय सैनिकों से सीखिए !उन्हें जो  जिम्मेदारी सौंपी जाती है उसे पूरी करके ही लौटते हैं न कोई मजबूरी न कोई बहाना न कोई किंतु परंतु !उनके दृढ निश्चयी स्वभाव से देश के दुश्मनों के दिल थर्राते हैं हिम्मत नहीं पड़ती है भारत की ओर ताकने की !उन्हें पता है कि ये मर मिटेंगे किंतु पीछे नहीं हटेंगे !हमारे सैनिक केवल कर्मचारी ही नहीं अपितु देश के सेवक भी हैं वे सैलरी के लिए नहीं अपितु वे देश के लिए शहीद होते हैं !
      दूसरी ओर सरकारी आफिसों के अधिकारी कर्मचारी !जनता दिन दिन भर आफिसों में दौड़ते रहते हैं काम न करना पड़े इसलिए एक दूसरे का नाम और फोन नंबर बता बता कर दिन  करते हैं जनता को !अगर कोई कुछ ज्यादा टाइट पड़ा तो सब मिलकर उसका  देते हैं जो उस दिन गैरहाजिर होता है ! अब कोई क्या कर लेगा इनका !इंटरनेट नहीं आ रहा है बता कर कभी उठ जाते हैं कुर्सियाँ छोड़कर !कई बार काम के लिए आए लोगों के मुख सुबह से पनि नहीं गया होता है इनका नास्ता लंच सब कुछ हो चुका होता है फिर भी चाय पीने चले जाते हैं जनता से कहते हैं कल आना !कंप्यूटर प्रिंटर खराब बता बता कर कई कई दिन मस्ती मार लेते हैं ये !यही कारण है दस हजार रूपए पाने वाले प्राइवेट स्कूलों के शिक्षक पढ़ाते हैं और साथ हजार सैलरी लेने वाले सरकारी शिक्षक नाक कटाते हैं देश के सैनिक इतनी बेइज्जती सहने से पहले मर मिटते किंतु जिन कर्मचारियों को शर्म नहीं है उनसे क्या आशा !दस हजार रूपए पाने वालेकोरियर कर्मी ,प्राइवेट मोबाईल कंपनियों के कर्मचारी नाक काट रहे हैं साठ साठ हजार लेने वाले सरकारियों की !  
         अरे कर्मचारियो !तुम्हें धिक्कार है तुम्हारे विभागों के  भ्रष्टाचार, कामचोरी, गैरजिम्मेदारी से जनता तंग है फिर भी इतनी सारी सैलरी और फिर भी असंतोष ! सारा  भ्रष्टाचार जब सरकारी आफिसों में होता है उसे रोकने की जिम्मेदारी सरकारी लोगों की है भ्रष्ट लोगों को पकड़ने और पकड़वाने की जिम्मेदारी सरकारी लोगों की है जनता के काम करने की जिम्मेदारी सरकारी लोगों की है अपनी जिम्मेदारी निभाने में कहाँ खरे उतर पा रहे हैं सरकारी अधिकारी कर्मचारी!
    सरकार जो कानून बनाती है वो कानून सरकारी कर्मचारी बेचने  लगते हैं उनसे अपराधी खरीदते हैं और ठाठ से करते हैं अपराध ! दिन दोपहर में बीच चौराहे पर लूट लिए जाते हैं लोग  हो रहे हैं अपराध ! किए जा रहे हैं मर्डर आदि !  
भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी तो भ्रष्टाचार से कमा ही रहे हैं उन्हें सैलरी क्यों ?सरकार उनकी पहचान क्यों नहीं करती क्यों नहीं छेड़ती है कोई "भ्रष्टाचार मिटाओ अभियान!"
      सरकार जो नियम बनाती है सरकारी मशीनरी का एक बड़ा वर्ग उन्हें बेच कर पैसे कमाता  है भारी भरकम सैलरी भी उठाता है ।सरकारी निगरानी तंत्र इतना लचर या भ्रष्ट है कि नियमों कानूनों को तोड़ने जोड़ने बेचने खरीदने की मंडी बन गया  है सरकारी कामकाज !लगभग हर आफिस में अलग अलग काम के हिसाब से घूस के पैसे फिक्स हैं !भ्रष्टाचार की भारत बहुत बड़ीमंडी है !जहाँ भ्रष्ट लोग नित्यप्रति करोड़ों का कारोबार उस भ्रष्टाचार के बल पर चला रहे हैं जिसे सरकारी नियम कानून गलत मानते हैं ।जिन्हें पकड़ने की जिम्मेदारी सरकार की है ये सरकारों का फेलियर नहीं तो क्या है !फिर भी सैलरी !
  सरकारी आफिसों में भ्रष्टाचार के जन्मदाता सरकार के भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी ही तो होते हैं जिनसे गलत काम करवाकर दलाल लोग काली कमाई करने वालों से करोड़ों रूपए कमीशन कमा लेते हैं तो कल्पना कीजिए कितनी कमाई होगी उन भ्रष्ट अधिकारीकर्मचारियों की !ऊपर से हजारों लाखों की सैलरी !उसके ऊपर वेतन आयोगों की सरकारी कृपा !बारी सरकारी नौकरी !इनकी इतनी सुख सुविधाएँ और अपना इतना संघर्ष पूर्ण जीवन देखकर किसान आत्म हत्या न करें तो क्या करें !
    अपराधीलोग, गुंडेलोग और काली कमाई करने वाले धनीलोगों को इन्हीं सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से वो अघोषित  रेटलिस्ट मिलती है कि सरकार के द्वारा बनाया गया कौन सा नियम कितने पैसे में तोड़ा जा सकता है ।यही कारण  है कि अपराधियों में कानून का खौफ नहीं है । जिस अपराधी की जेब में जितना पैसा है सो कर रहा है उतना बड़ा अपराध !
     मोदी जी !  किसानों गरीबों मजदूरों का भी कोई वेतन आयोग बनाइए आखिए वे भी देश सेवा का ही काम कर रहे हैं उनकी उपेक्षा क्यों ?किसान आत्महत्या करते जा रहे हैं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाई जा रही है !दाल और टमाटर महँगे होने की चिंता तो है किंतु किसानों की रक्षा के लिए पहले उठाए जाएँ कठोर कदम !बाद में बढ़ाई जाए कर्मचारियों की सैलरी !वे सैलरी बढ़ाए बिना मरे नहीं जा रहे उन्हें आलरेडी इतना मिल रहा है पहले किसानों मजदूरों गरीबों की ओर देखिए मोदी जी !
   किसानों गरीबों मजदूरों की आमदनी की कितने गुने सैलरी होनी चाहिए सरकारी कर्मचारियों की इसकी भी कोई नीति बनाइए !एक तरफ हजारों का ठिकाना नहीं एक तरफ लाखों बढ़ाए जा रहे हैं ये कुंठा ही गरीबों के अंदर  आपराधिक प्रवृत्ति को जन्म देती है ।
   आम जनता के टैक्स दी जाने वाली सैलरी कब बढ़ाई जाए कितनी बढ़ाई जाए इसके लिए जनता से क्यों नहीं पूछा जाता जनता के बीच सर्वे क्यों नहीं कराया जाता !सारे फैसले सरकार खुद ले लेती है तभी तो सरकारी आफिसों के लोग आम जनता को कुछ समझते नहीं हैं सरकारी आफिसों में काम के लिए जाने वाली जनता को खदेड़ कर भगा देते हैं सरकारी लोग !कोई सीधे मुख बात नहीं करता है वहाँ । जनता की कोई सुनने वाला नहीं होता है !
   सरकार में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी यदि  जनता का ध्यान नहीं रखते तो ये लोकतंत्र के नाम पर कलंक है कि जनता आज भी सरकारी अधिकारियों को अपनी समस्या बताने में डरती है उसके चार प्रमुख कारण हैं पहली बात वो सुनेंगे नहीं !दूसरी बात वो कुछ करेंगे नहीं ! तीसरी बात वो पैसे माँगेंगे !चौथी बात वो समस्या बढ़ा देंगे !
   कई बार लोगों को जो तंग कर रहा होता है उसके विरुद्ध किए गए कम्प्लेन की सूचना सरकारी विभाग से उस अपराधी को दी जाती है जाती है जो तंग कर रहा होता है फिर अपराधी ही कम्प्लेनर पर करता है अत्याचार !ये सारी कमियाँ दूर किए बिना सैलरी बढ़ाए जा रही है सरकार !अफसोस !ये सरकारें आम जनता के लिए चुनी जाती हैं पेट केवल अपना और अपनों का भरा करती हैं ।
    मोदी  सरकार के दो वर्ष होने का पर्व जनता भी मना रही है क्या ?या केवल सरकार में सम्मिलित लोग और केवल पार्टी के पदाधिकारी ही !कोशिश ऐसी होनी चाहिए कि जनता को भी विश्वास में लिया जाए और जनता भी मोदी सरकार के वर्षद्वय पर में भावनात्मक रूप से सम्मिलित हो !अन्यथा वर्तमान खुशफहमी कहीं अटल जी की सरकार का फीलगुड बन कर न रह जाए !

   मोदी जी ! जनता का बहुत बड़ा वर्ग भ्रष्टअधिकारियों और भ्रष्टनेताओं की धोखाधड़ी का शिकार हो रहा है उसे बचने के लिए कुछ कीजिए !ये दोनों लोग ही करवा रहे हैं सभी प्रकार के अपराध !अन्यथा अपराधियों में इतनी हिम्मत कहाँ होती है कि वो अपने बल पर अपराध करें और उनके पास इतना धन कहाँ होता है कि वे घूस देकर बच जाएँ किंतु मददगारों के बल पर वो उठा जाते हैं बड़े बड़े कदम !इस लिए उन मदद गारों की पहचान करके उन पर अंकुश लगाना होगा !इन लोगों पर अंकुश लगाए बिना 2019 की वैतरणी पार कर पाना आसान नहीं होगा !
 
  इसके अलावा मोदी जी आखिर कैसे बंद हों अपहरण हत्या बलात्कार जैसे अपराध ! अपराधियों को गले लगाते हैं गुंडे और गुंडों को गले लगाती हैं राजनैतिक पार्टियाँ !इसी प्रकार से अपराध के कारोबार से कमाई करते हैं अपराधी और अपराधियों से कमाई करते हैं भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी !यदि सरकारी अधिकारी ,कर्मचारी ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ होते तो न हत्याएँ होतीं न होते बलात्कार !इसलिए अपराधियों पर अंकुश लगाने से पहले भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों पर काबू पावे सरकार !उसके पहले विकास संबंधी सारी बातें बेकार ! 
    प्रधानमंत्री जी ! सरकार के हाथ पैर तो सरकारी अधिकारी और कर्मचारी ही होते हैं जिनके अच्छे बुरे व्यवहार के आधार पर ही सरकार के काम काज का मूल्यांकन  होता है क्योंकि अधिकारियों और कर्मचारियों से ही जनता को जूझना पड़ता है वो ही यदि भ्रष्टाचारी हैं तो आप कितने भी अच्छे बने रहें किंतु जनता के मन में आपकी छवि भ्रष्टाचार समर्थक के रूप में  ही बनी रहेगी !अपराधों पर अंकुश लगाने के नाम पर भाषण चाहें जितने हों किंतु काम बिलकुल नहीं हो रहा है ! 
   जेल में बैठकर  मीटिंगें कर रहे हैं अपराधी !एक साधारण किसान की गारंटी पर हजारों करोड़ का लोन मिल जाता है ऐसे असंख्य अपराध कर रहे हैं सरकारी अधिकारी ,कर्मचारी इन्हें कोई देखने रोकने वाला ही नहीं है तभी तो अंकुश नहीं लग पा रहा है अपराधों पर !        सरकारी नीतियाँ इतनी अंधी हैं कि अधिकारियों कर्मचारियों से काम लेना तो सरकार के बश का ही नहीं है इनके  भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना भी सरकार के बश का नहीं है फिर भी इनकी सैलरी बढ़ाए जा रही है सरकार जबकि सरकारी हर काम काज का भट्ठा बैठा रखा  है इन्होंने !आखिर सरकार अपने  कर्मचारियों से इतनी खुश क्यों है!
    सरकारी शिक्षा विभाग ,डाकविभाग दूरसंचार विभाग चिकित्साविभाग चौपट तो इन्हीं सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों ने कर  रखा है इनसे बहुत कम सैलरी पाकर भी प्राइवेट टीचर, कोरियरकर्मी, प्राइवेटदूर संचार कर्मी,चिकित्साकर्मी अपने अपने क्षेत्र में कितनी अच्छी अच्छी सेवाएँ दे रहे हैं । 
    सरकार के कर्मचारी तो इतने कामचोर हैं कि जिस आफिस के कर्मचारियों की एक एक महीने की सैलरी पर पचासों लाख रूपए खर्च हो रहे होते हैं उस आफिस के कर्मचारी अपना कम्प्यूटर और प्रिंटर बिगाड़ कर उसी बहाने कई कई दिन काम न करके जनता को टरकाया करते हैं ऊपर से जनता के साथ मिलकर वो लोग  भी सरकार तथा सरकारी व्यवस्थाओं को गालियाँ देते हैं !         इनके काउंटरों पर नंबर की तलाश में खड़ी जनता को जानवरों की तरह कभी भी खदेड़ देते हैं ये इटरनेट न आने का बहाना बनाकर!कई कई दिन बीत जाने पर भी काम  न होने पर घूस देने को मजबूर कर दी जाती है जनता !उसके पास इसके अलावा और कोई दूसरा विकल्प ही नहीं होता है । सरकारी तंत्र की ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जहाँ जनता इस विश्वास के साथ शिकायत करे कि उसका काम समय से हो जाएगा !
       सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से काम कराने के लिए घूस देने के अलावा जनता के पास कोई अधिकार नहीं हैं जिस अधिकारी से शिकायत की जाती है वो उलटे जनता को ही काटने दौड़ता है सरकार तक जनता की पहुँच नहीं होती है !
     कुल मिलाकर अपराध छोटे हों या बड़े इसे करने वाला किसी न किसी कोने में मूर्ख होता है तभी तो ऐसा  रास्ता चुनता है ।अपराधी केवल यंत्र की भाँति होता है इसी कारण ऐसे लोगों का ऊपरी कमाई के लालच में उपयोग करते हैं भ्रष्टअधिकारी कर्मचारी और गुंडेनेता !जहाँ अधिकारियों कर्मचारियों की ऊपरी कमाई का साधन बने हैं अपराधी वहीँ भ्रष्टनेताओं  का दबदबा बनाने में सहायक होते हैं  अपराधी !यही अधिकारी और यही नेता उन अपराधियों की हर समय हर प्रकार से रक्षा करते रहते हैं इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता है इसलिए  ऐसे लोगों पर अंकुश लगाए बिना अपराधों पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता है । 
          गंगानदी  भगवान के चरणों से निकलती है किंतु भ्रष्टाचार की नदी अधिकारियों कर्मचारियों के आचरणों से निकलती है !

Wednesday, 24 August 2016

मैडल लाने पर खिलाड़ियों का इतना सम्मान इतने पुरस्कार इतना धन इतनी प्रशंसा सभाएँ !और देश के सैनिकों के लिए....... !

   सैनिकों को भी ऐसा प्रोत्साहन मिलता तो अब तक आ नहीं गए होते अपने श्रद्धेय सैनिकों के कटे हुए सिर !आखिर कहाँ गए अपने वीर सैनिकों के कटे शिर और कब मिलेंगे ? सरकार खेलों को महत्त्व देती है तो खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ेगा जिस दिन वो महत्त्व देश के वीर सैनिकों को मिलेगा उस दिन दुनियाँ देखेगी हमारे वीर सैनिकों की समर सामर्थ्य !न आतंकवाद होगा न नक्सलवाद और न उल्फा उग्रवादी जैसी आपराधिक गैंग !
       26 जनवरी की झाँकियाँ देखकर लगता है जिस देश के पास इतनी ताकत हो उसके सैनिकों के शिर काट लिए गए।कायदा ये है कि हमें तो प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि जिस दिन अपने सैनिकों के शिर वापस लाएँगे  हमारा गणतंत्र दिवस और दिवाली सबकुछ उसी दिन होगा ।
   आज 26 जनवरी पर सब तरह की झाँकियाँ सारे विश्व ने जरूर  देखी होगी हमारे प्यारे भारत वर्ष की  समर सामर्थ्य !इसप्रकार वहाँ जो भी झाँकियाँ थीं उनमें कुछ सजीव तथा निर्जीव थीं, जो कुछ सजीव झाँकियाँ ऐसी थीं।जिनमें नेता, मंत्री मुन्त्री, प्रधान मंत्री टाईप की हँसती मुस्कुराती हुई थीं।उनके मुखमंडलों पर प्रणम्य भारतीय सैनिकों के शिर न ला पाने के लिए आत्मग्लानि का कोई भाव नहीं दिख रहा था।सबकुछ झाँकियों में समिट सा चुका था सब तरह की झाँकियाँ और  झाँकियाँ ही झाँकियाँ !बस केवल झाँकियाँ ?या कुछ और? 
      यह सब  देख देखकर लग रहा था -वाह रे हम और हमारा देश!हमारे वीर सैनिकों ,वैज्ञानिकों ने देश के लिए बहुत कुछ बना चुना कर सँवार सुधारकर रखा है।इसीबल पर हमारे शौर्य संपन्न वीर सैनिक  हमेशा दुश्मनों को ललकारा करते हैं और जब जब उन्हें अवसर मिला है तब तब उन्होंने अपने अदम्य साहस का न केवल परिचय भी दिया है अपितु दुश्मनों के सहस्रों फनों को एक नहीं कई बार कुचला है ।आज भी इन सबके बीच भीरु राजनेताओं के सुषुप्त शौर्य को ललकारते हुए वीर सैनिकों ने जो रणकौशल दिखाए वो भारतीय जनसंपदा को ढाढस बँधाने के लिए कम नहीं थे।
      तरुणाई की अरुणिमा से आह्लादित रणबांकुरों का आत्मसम्मान से  दमकता हुआ देदीप्यमान उन्नत मस्तक ,छलकता हुए  शौर्य संपन्न प्रणम्य सैन्य समुदाय को देखकर  उस दिव्यता से हमारा हृदय भी हर्ष की हिलोरें मारने लगा । देश की मिट्टी के कण कण की रक्षा के लिए आतुर स्व तनों को तृणवत समझने वाले भारतीय वीरपुंगव सशस्त्र शूरमाओं को किसी की नजर न लग जाए यह सोच सोच कर मैं मन ही मन ईश्वर से उनके दीर्घायुष्य एवं कुशलता की कामना करने लगा। 
        रह रहकर  हृदय में हूक सी उठती थी कि कहाँ गए उन पवित्र भारतीय सैनिकों के प्रणम्य शिर? जिन्हें कभी ललकारा करते थे उन शत्रु सनिकों के आधीन होंगे हमारे भारती कुमारों के  शिर! जिनकी आन बान शान  सुरक्षा के लिए वो लड़े आखिर उन देशवासियों का उनके प्रति कोई दायित्व बनता है क्या ?आखिर क्या कर सकते हैं देशबासी?एकबार बोट देकर जिन्हें सत्ता सौंप चुके हैं अब क्या कर लेगा कोई उन  सत्तालु लोगों का ?कुछ भी करें या न करें।आखिर अपनी कर्मकुंडली उन्हें भी पता है कि जो जो हमने किया है जनता हमें अबकी चुनावों में  क्यों चुनेगी ?अगले चुनावों तक भूल जाएगी !ऐसे में हम आखिर क्यों किसी से दुश्मनी लें ?दूसरी बात यह भी है कि किसी राज नेता या उसके नाते रिश्तेदार का शिर तो है नहीं जो लाने की कोई मजबूरी ही हो! ये तो आम  सैनिक का शिर है इसलिए बस  बातों बातों में समय पास करना है कभी धमकी देंगे कभी माफी माँग लेंगे कह देंगे ये तो सामाजिक मजबूरी है इतना तो कहना करना ही पड़ता है।इसी प्रकार  थोड़े दिनों में सब स्वयं भूल भाल जाएँगे । यदि ऐसा न होता तो आम जनता को पता लगना चाहिए कि आखिर अपने देश के स्वाभिमान सम्मान का प्रतीक अपने वीर सैनिक का सम्माननीय शिर  कहाँ है और  कब मिलेगा ?और यदि  उस समय सीमा के अन्दर नहीं मिलेगा तो अपना शिर लाने के लिए सरकार का अग्रिम कदम क्या होगा ?साथ ही अपने देश की जन भावना से सभी देशों को अवगत करा दिया जाना चाहिए कि हम किसी भी कीमत पर अपने शिर के साथ समझौता नहीं कर सकते।हाँ, यदि हम  ऐसा कहने करने का साहस नहीं कर पा रहे हैं तो स्पष्ट  है कि हम भयग्रस्त हैं और दुर्भाग्य से यदि ऐसा है तो गणतंत्र दिवस पर वीरता की कहानी कहने वाली ये झाँकियाँ इस देश के  किस काम की ?
        अब झाँकियाँ दिखाने के साथ साथ शत्रु सेना में  झंझावात मचाने का समय है आखिर जिस  शिर के साथ देश का सम्मान जुड़ा हो वह हमारे लिए सामान्य शिर नहीं है ।ये बात यदि हम एक बार नहीं समझा पाए तो शत्रु इसके बाद  कितनी भी बड़ी नीचता कर सकता है यह सोच कर मन सिहर उठता है कि सैनिकों का सम्मान स्वाभिमान एवं जीवन हमारे लिए  बहुमूल्य है।आखिर जिन देशवासियों की सुरक्षा के लिए वीर सैनिकों ने  अपना जीवन बलिदान किया है उस समर्पण का सम्मान करते हुए देशवासी यदि वह शिर भी न ला सके तो आखिर उन वीर सैनिकों के और किस काम आएँगे ?
     क्या उन सरकार में बैठे मठाधीशों को श्रद्धेय सैनिकों के सम्मान में उनकी अंत्येष्टि में पहुँचना नहीं चाहिए था? कानून की शिथिल व्यवस्था के कारण दुर्घटना की  शिकार हुई एक युवती के समान भी सम्मान के अधिकारी नहीं थे क्या देश के लिए शहीद हुए सैनिक?कानून की शिथिल व्यवस्था के कारण एक युवती के साथ दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना जैसा अक्षम्य अपराध होता है।वहाँ सरकार एवं समाज का रुख एक था तो  दूसरी ओर शहीद सैनिक अपनी युवती पत्नी छोटे छोटे बच्चे एवं वृद्ध माता पिता को घर में छोड़कर देशवासियों की रक्षा के लिए देश की सीमाओं की सुरक्षा में कठोर समर्पण की साधना करते करते प्राण न्योछावर कर देता है।ऐसे  सैनिकों के प्रति सरकार एवं समाज का रुख !उनके परिवारों के प्रति आर्थिक सहयोग देने वालों की सोच एवं सहयोग राशि में कितनी उपेक्षात्मक  असमानता है !
      इसीप्रकार क्रिकेट जैसे खेल में जीतने पर सरकार एवं समाज के धनशूरमाओं के द्वारा जो पुरस्कार या सहयोग राशि उन क्रिकेटरों को प्रदान की जाती है।क्या उसकी अपेक्षा सैनिकों के प्रति विशेष सम्मानजनक सोच नहीं होनी चाहिए ?क्रिकेटरों का सम्मान खेल के द्वारा  मनोरंजन से जुड़ा विषय है जबकि सैनिकों का सम्मान देश रक्षा से जुड़ा तनरंजन का  प्रश्न है।अब ये सरकार एवं समाज को सोचना है कि  हमारे लिए मनोरंजन या देश की सुरक्षा दोनों में विशेष सम्माननीय क्या होना चाहिए?आतंकवाद से सुरक्षा के लिए सैनिकों का उत्साह बर्धन बहुत आवश्यक है। मुझे लगता है कि जाने अनजाने एक बड़ी चूक हमसे हो रही है जिसका सुधार किया जाना चाहिए।
       शहीदों के सम्मान के समर्थन में आवाज उठाकर सैनिकों के शिर वापस लाने की माँग कर दबाव बना  रहे देश भक्त लोगों तथा संगठनों को सरकारी गृहमंत्री के द्वारा भगवा आतंकवाद में सम्मिलित बताकर समाज का ध्यान भटकाने जैसी ओछी हरकत नहीं की जानी चाहिए थी । मुझे  इस बात की महती बेदना है कि हमारे गृहमंत्री के मुख से आतंकवादियों की आत्माओं की आवाजें क्यों सुनाई दे रही हैं ?आखिर इस तरह देश भक्त लोगों तथा संगठनों की राष्ट्रनिष्ठा की बलि देकर शत्रु देशों एवं लोगों को प्रसन्न करने के प्रयास क्यों किए जा रहे हैं ?यह गंभीर चिंता का विषय है !
         आखिर देश के सैनिकों के प्रणम्य शिरों के विषय में  ये सब बातें सुन सोच कर कोई कुछ न भी कहे तो भी हमारी सरकारों में बैठे जनप्रतिनिधि नेताओं का खून क्यों नहीं खौलता? कहीं ऐसा तो नहीं है कि नौकर शाहों की तरह सरकार में सम्मिलित जनप्रतिनिधि नेताओं  का सरकार में अपना कोई वजूद नहीं है और जो खून सरकार का मालिक है वह खून भारतीय नहीं है तो वो देश के सैनिकों के शिरों के विषय में सोच कर खौलता कैसे ?आखिर वह खून देश के सैनिकों के सम्मान हेतु संकुचित क्यों दिखाई देता है ?
           भला हो उन टी.वी. चैनलों का जिन्होंने  ऐसे अवसरों पर भी अपनी आवाज दबने नहीं दी और यत्र तत्र जोर शोर से उठाते रहते हैं आज 26 जनवरी को भी उन टी.वी. चैनलों ने सरकार से बड़ी निर्भीकता पूर्वक अपने शहीद सैनिकों के शिर माँगे !  
      मित्रों! कारगिल विजय काव्य  लिखने  के बाद आज पहली बार गणतंत्र दिवस जैसे प्रसन्नता के अवसर पर भी शहीद सैनिकों की याद में  मैं कई बार रोया हूँ फिर भी यदि हमारे किसी वाक्य से किसी को विशेष ठेस लगी हो तो मैं सभी से क्षमा प्रार्थी हूँ क्योंकि मेरा उद्देश्य किसी को ठेस पहुँचाना न होकर अपितु देश भक्ति हेतु जन जागरण करना है।

Tuesday, 23 August 2016

कानपुर पुलिस एक सप्ताह में तीन बार पिटी ! आखिर क्यों घटा पुलिस का रुतबा ? देश के सरकारी अधिकारी कर्मचारियों का इतना पतन !

     कानपुर के नेता इसके लिए आंदोलन क्यों नहीं करते !पुलिस का सम्मान बचाना नेताओं और समाज की जिम्मेदारी नहीं है क्या !वो भी तो हमारे ही भाई बंधु हैं कानून ने उनके हाथ बाँध रखे हैं जहाँ हमें उनकी मदद के लिए आगे आना चाहिए !कानून की रक्षा हम करेंगे तो कानून हमारी रक्षा करेगा !
   कल्याणपुर थाना इतना लाचार क्यों है आम जनता ऐसे अधिकारियों कर्मचारियों से क्या उमींद करे जनता !और इनके कमजोर कन्धों के भरोसे सरकार इस क्षेत्र की जनता को सुरक्षित कैसे मानती है । 
       बंधुओ !ये कोई छोटी घटना तो नहीं है कि जिनके ऊपर समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी है वही सुरक्षित न हों वो भी कानपुर के कल्याण पुर थाने की पुलिस !कोई पिछड़ा क्षेत्र होता तो कुछ मजबूरी मानी भी जा सकती थी किंतु कानपुर का कल्याणपुर थाना जिसके एक ओर IIT है तो दूसरी ओर विश्व विद्यालय तीसरी ओर कृषि विश्व विद्यालय !यदि उपद्रवियों के हौसले ऐसे ही बढ़ते रहे तो इन तीनों शिक्षण संस्थानों को कैसे सुरक्षित माना  जाए और आम जनता की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाए !कानपुर प्रशासन से जुड़े बड़े से बड़े अधिकारियों से लेकर जिम्मेदार छोटे छोटे कर्मचारियों तक के लिए ये भयंकर शर्म की बात है कि अपनी  भ्रष्टनीतियों एवं अपनी भ्रष्ट कार्य शैली के कारण पिटते हैं सरकारी लोग !
        भिखारियों का कहीं सम्मान नहीं होता और पुलिस ने भीख माँगना न जाने कब से शुरू कर रखा है ऐसी परिस्थिति में सारे देश में ही पुलिस से लेकर हर विभाग के अधिकारियों कर्मचारियों का न केवल सम्मान घटा है अपितु इनकी सैलरी भी देनी महँगी पड़ रही है देश को क्योंकि आम जनता को इनका कोई सहारा नहीं है जनता के मन में एक बात घर कर चुकी है कि ये भिखारी हैं इन्हें पैसे दोगे तो काम करेंगे अन्यथा नहीं करेंगे !रेड़ी पटरीवालों से 10 -10 रूपए माँगने के लिए हाथ फैला  देते हैं ये लोग !इन्हें इस बात की शर्म नहीं होती कि उनका हाथ केवल उनका नहीं है अपितु ये विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का वो पवित्र हाथ है जिन  हाथों पर देश की सारी  कानून व्यवस्था टिकी हुई है जिसके बल पर प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्री कानून व्यवस्था कायम रखने का दंभ भरते हैं वे हाथ बिकने के लिए नहीं हैं इस बात पर सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों को गर्व होना चाहिए । पूर्वजों के पुण्य प्रभाव से माता पिता के आशीर्वाद से बच्चों के भाग्य से एवं आपके अपने पूर्व संचित अच्छे कर्मों से तुम्हें वो सरकारी नौकरी मिली है जिसमें आम जनता की आमदनी से कई गुना अधिक सैलरी मिलती है आपको ऊपर से सम्मान भी !इसके बाद भी तुम घूस लेते हो मर जाना चाहिए तुम्हें चिल्लू भर पानी में डूब के!तुम अपना गौरव कायम नहीं रख सके !हमें याद रखना चाहिए कि सम्मान दिया नहीं अपितु सम्मान पाने की अपने अंदर योग्यता पैदा करनी होती है ।  पुलिस का पिट जाना ये छोटी घटना नहीं है वो भी एक ही सप्ताह में तीन तीन बार वो भी एक ही थाना क्षेत्र की !ऐसे तो अपराधियों का और मनोबल बढ़ जाएगा !सरकार किसके बल पर गरजती है आखिर इन्हीं पुलिस वळून के बल पर और वही पिट जाएँ इसका सीधा सा मतलब है कि केवल पुलिस वाले ही नहीं अपितु सरकार पिटी है हमारी कानून व्यवस्था पिटी है हमारा लोकतंत्र पिटा  है जिसे हम सँभाल कर नहीं रख पाए !
   हमें ध्यान देना होगा कि ऐसी परिस्थिति पैदा क्यों हुई !आम जनता की समस्याएँ ये सुनकर हवा में उड़ा देते हैं एप्लीकेशनें रद्दी की टोकरी में फ़ेंक दी जाती हैं और अधिकारियों को अपने आप से काम करने की जरूरत क्या है उधर सरकार  इनसे कोई काम कहे क्यों !जरा जरा सी बातों की जाँच में छै छै महीने बर्बाद कर देते हैं ये अधिकारी कर्मचारी !इतने बुद्धू तो नहीं हैं ये लोग !आखिर इतने लापरवाह क्यों हैं अधिकारी कर्मचारी !अपनी सेवाओं से जनता का भरोसा जीतना इनका  दायित्व है किंतु जनता इन्हें चोर समझती है आखिर क्यों ? ऐसी घटनाएँ घट क्यों रही हैं एक सप्ताह में तीन बार आखिर क्यों पिटी है कानपुर पुलिस !इसके कारण न केवल खोजे जाने चाहिए अपितु सार्वजनिक भी किए जाने चाहिए ताकि औरों को भी प्रेरणा मिले !क्योंकि ये कानून व्यवस्था देश के सम्मान जुड़ा मामला है । 
   भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों के लिए कल्याणपुर स्वर्ग है यहाँ सैलरी के अलावा कई प्रकार से कमाई संसाधन बना लेते हैं अधिकारी कर्मचारी !ऐसी मेरी आशंका इसलिए है क्योंकि यदि ऐसा न होता तो जो लोग गलत या गैर कानूनी काम करते हैं उन्हें रोका क्यों नहीं जाता !उनके यहाँ जेई हो या पुलिस वाले हाथ फैला कर खड़े हो जाते हैं अपने दरवाजे के भिखारियों का कोई कितना सम्मान कर सकता है ये अपने अपने ह्रदय पर हाथ रखकर स्वयं सोचिए !चार लोग ऐसा करते हैं दो नहीं करते तो जनता उन ईमानदार लोगों की अलग से पहचान कैसे करे !सरकारी लोगों को घूस देकर दबंग लोग लोग सरकारी जमीनों के झूठे कागज बनवाकर बेच लेते हैं सरकारी जमीनें !कल्याण पुर में जितने पुराने या नए मकान बने हैं उनकी नाप की जाए और चेक किए जाएँ कागज और क्यों न ढहा दिए जाएँ अवैध निर्माण !यदि अधिकारी ईमानदार हैं तो तो उनका ये कर्तव्य है और यदि वो इस नहीं करना चाहते तो अधिकारी किस बात के !इसी कारण वे अपनी प्रतिष्ठा नहीं  बचा पा रहे हैं !
     इस क्षेत्र में अधिकारियों कर्मचारियों की कमाई के साधन ऐसे बन जाते हैं कि उन्हें पैसे खिला खिलाकर सरकारी जमीनों पर लोग कब्ज़ा कर ले रहे हैं उनकी प्लाटिंग करके उसे बेच दे रहे हैं कोई देखने वाला नहीं है । जब किसी गाँव की जमीन शहर के रूप में विकसित की जाती है तो बने हुए मकानों के नंबर दिए जाते हैं उसके अलावा  जमीनें विकसित की जाती हैं !या जिसकी जो जमीनें होती हैं उससे बेचीं खरीदी जाती हैं किंतु जिन  मकानों में नंबर भी नहीं हैं और उनकी कोई लिखा पढ़ी भी नहीं है न कोई कागजात ही हैं वो जमीनें अवैध नहीं तो क्या हैं !कल्याणपुर 'कला' के चारों ओर ऐसी लावारिस जमीनों के मालिक बने बैठे हैं दबंग लोग किंतु इन्हें रोके कौन !इनका पैसा सब जगह पहुँचता है क्यों कोई बोले !
        फूलेश्वर शिव मंदिर के पास हरीसिंह की बगिया में मेरा भी घर है अंधेर तो मैंने तब देखी जब एक 30 फिट चौड़ा रोड पक्का बनाया जा रहा था किंतु उसे तीन दिन तक केवल इसलिए रोके रखा गया ताकि उस  रोड के नीचे किसी का लेट्रीन का टैंक बनाया जा सके !बीचोंबीच रोड पर 10 बाई 12 फिट का काफी बड़ा और गहरा गड्ढा खोदा गया था उसमें लेट्रीन का टैंक जेई साहब की सहमति से बनाया गया उस टैंक के ऊपर से जेई साहब ने रोड निकलवाया !आज उसमें दस बारह फिट पानी भरा होगा यदि कोई सवारी निकले और वो रोड टूट जाए तो कितना बड़ा हादसा होगा ये कह पाना कठिन है । ऐसा कई जगह करवा रहे हैं जेई लोग !ऐसा करवाने वाले अधिकारी हैं या अपराधी ये निर्णय भी तो सरकार को ही करना होगा । 
    इसी प्रकार से सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करके लोग बिना पिलर बनाए हुए 5 -5 इंच चौड़ी दीवारों पर चार चार मंजिल के घर बनाकर किराए पर उठा दे रहे हैं लोग !जेई साहब तो घूस लेकर चले गए अब यदि ऐसी बिल्डिंगें गिरती हैं तो उनमें रहने वाले लोग मरेंगे और पडोसी मरेंगे किंतु पैसा वो काम रहा है जिसका कोई रिस्क है ही नहीं !
        कानपुर में जो भी ईमानदार अधिकारी हैं उन्हें चाहिए कि वो अभी भी सभी जमीनों और मकानों की जाँच करवाएँ और जो भी अवैध या गैर कानूनी मकान बनें हैं या बिल्डिंग निर्माण नियमावली की आवश्यक शर्तों का पालन न करके बनें हैं उन्हें नष्ट किया जाना चाहिए !तब तो जनता को भी लगेगा कि ये दमदार अधिकारी हैं अन्यथा ऐसे हमले तो  होते ही रहेंगे !उन्हें रोकेगा आखिर कौन !
      

Thursday, 11 August 2016

जो निकम्मे वे नेता जो गैर जिम्मेदार वे अधिकारी !सैलरी फिर भी जारी !बारे लोकतंत्र !!

     नेता जनहित  की बड़ी बड़ी बातें करते हैं किंतु चुनाव जीतने के बाद केवल अपनों से और अपनी ससुराल वालों से मिलते हैं जनता पराई है उसकी क्यों सुनें !चुनावों के समय फिर आएँगे गिना देंगे कोई मजबूरी !
   अधिकारी बड़े बड़े किंतु उनके बश का काम धेले का नहीं होता है घर में कभी काम किया नहीं केवल पढने लिखने में समय बिता दिया तो नौकरी पाने के बाद भी वो आफिसों में बैठे केवल पढ़ा लिखा ही करते हैं और कुछ उनके बस का है भी नहीं जिम्मेदारियाँ निभाने लायक साहस तो होता है मन भी होता है निभाना भी चाहते हैं उनके हृदय में दबी छिपी नैतिकता उन्हें धिक्कारती भी है कि वो अपने अधिकारों का जनहित  में उपयोग करें किंतु इसके लिए उन्हें आफिसों से निकलना पड़ेगा उस जनता के उन लोगों से बात करनी पड़ेगी जिनके रहन सहन मैले कुचैलेपन से आज तक घृणा करते रहे हैं आज  उससे अचानक कैसे घुल मिल जाएँ !जिस आम जनता की छाया उनके बच्चों पर न पड़ जाए इसलिए तो उन्होंने अपने विद्यालय तक अलग बना रखे हैं अपना उठना बैठना रहन सहन बात व्यवहार नातेरिश्तेदारी आदि सब कुछ जिस आयाम जनता से अलग कर लिया है वो आम


क्या इसीलिए सिविल सर्विसेस की तैयारी की थी और यदि उन्हीं से घुलना मिलना है तो अपनी हैसियत का रौब किसको दिखाएँ  !नेता हों या अधिकारी सबके रौब तो जनता ही देखती है ।

और नैतिकता से वे विमुख बने रहते सिविल सर्विसेज की तैयारियाँ बहुत कठिन होती हैं वो करते करते उनका मन मर जाता है अर्थात जीवन का उत्साह समाप्त हो जाता है

Tuesday, 9 August 2016

फर्जी गो रक्षकों पर नकेल ! बाकी फर्जियों पर कृपा क्यों ?

   फर्जी योगियों ,फर्जी बाबाओं ,फर्जीज्योतिषियों ,फर्जी नेताओं, फर्जीसरकारी कर्मचारियों , फर्जी देश सेवकों  फर्जी डॉक्टरों को रोकने के लिए क्यों न उठाए जाएँ कठोर कदम !
        राजनीति और अपराध की ऐसी साँठ गाँठ है जो रोके नहीं रुक रही है ! सरकारी अधिकारी कर्मचारी जनता की सुनते नहीं हैं सरकारें चुनाव जीतने की जुगत भिड़ाने में ही बिजी रहती हैं उन्हें इसी काम से  फुरसत नहीं हैं !जनता के काम यदि नहीं होते हैं तो उसमें सरकारों का बिगड़ता भी क्या है वैसे भी जिसे अपना जो जरूरी काम करवाना होता है वो तो हाथ पर जोड़ के चाय पानी का खर्च देकर या फिर सुविधा शुल्क देकर करवा ही लेता है जो कंजूस हैं उन्हीं के काम तो रुकते हैं तो वो भोगते हैं अपनी करनी का फल सरकार के ईमानदार अफसरों के इंतज़ार में वो अपनी जवानी बर्बाद किया करते हैं !बुढ़ापे में भ्रष्टाचार को कोसते हैं "अब पछताए होत का जब चिड़ियाँ चुन गईं खेत!" भ्रष्टाचार का सुख भोगने के लिए ही तो सरकारी नौकरी पाने के लिए मचाती है मारा मारी !ये हमारे लोकतंत्र की सच्चाई है जो हम सबको पता है किंतु फिर भी आशा ईमानदारी की !
      बाबा ब्यापारी हो रहे हैं और व्यापारी भिखारी हो रहे हैं !

Monday, 8 August 2016

दलितों के लिए अपनी छाती खोले खड़े हैं देश के प्रधानमंत्री जी ! किंतु दलितों की छाती इतनी नाजुक क्यों है ?

  दलितों में इतनी दम क्यों नहीं है कि अपने लिए अपनी छाती वे स्वयं अड़ाएँ और अपने विषय में समाज को कठोर सँदेशा दे दें !
      छाती अड़ाएँगे मोदी जी तो सम्मान भी उन्हीं का होगा !इससे दलितों का सम्मान कैसे बढ़ जाएगा !हाँ !इससे दलितों को कायर जरूर समझा जाएगा !
    अपने सम्मान स्वाभिमान के लिए मरना जो जानता है सम्मान महत्त्व और तरक्की मिलती उसी को है इतिहास में व्राह्मणों क्षत्रियों वैश्यों ने अपनों के जो बलिदान दिए हैं उसी के बलपर आज तक अपना सम्मान स्वाभिमान बचाकर रख पाए हैं किंतु लगातार बलिदान देने के कारण  जनसंख्या घटती चली गई ! लोकतंत्र में जनसँख्या बल का महत्त्व है यहाँ तो सिर गिने जाते हैं और सिरों की गणना में सवर्ण पिछड़ गए जबकि अपना गौरव बचाए रखने में सफल हो गए !
       वहीँ जो दलित आदि अन्य वर्ण हैं वो बलिदान देने में पिछड़ गए किंतु जनसँख्या बढ़ाने में सफल हो गए !सवर्णों की अपेक्षा उनकी विशाल जन संख्या इस बात की प्रमाण है बलिदान देते समय कदम पीछे घसीट लेने के कारण ही वो अपना इतिहास रचने में असफल होते चले गए और आजतक अपने सम्मान स्वाभिमान को बचाने के लिए जूझना पड़ रहा है उन्हें !आज भी दलितों के लिए मोदी जी तो छाती खोलने के लिए तैयार हैं किंतु 
 इस तरह की परिस्थितियों का सामना दलित स्वयं क्यों नहीं करते ! 
        दलितों की  रक्षा के लिए यदि यदि मोदी जी अपनी छाती खोलेंगे तो सम्मान भी मोदी जी का ही बढ़ेगा दलितों का नहीं !कायरों को कौन पूजता  है !भिक्षुक का सम्मान नहीं होता !जातिगत आरक्षण की भिक्षा से कम भी नहीं है  क्योंकि ऐसे आरक्षण का कोई औचित्य है ही नहीं !जो लोग कहते हैं कि सवर्णों के द्वारा शोषण होने के कारण दलित पिछड़े किंतु ये बाद  प्रतिशत झूठ है ।मुट्ठी भर सवर्ण यदि शोषण करते भी तो इतनी विशाल संख्या वाले दलित सह क्यों जाते !
       जितने भी वीर महापुरुष हुए हैं उन्होंने अपनी अपनी कुर्वानियाँ दी हैं जिन्होंने नहीं दी हैं वे पिछड़ गए इसमें सवर्णों का क्या दोष !यदि थोड़ा बहुत किसी का कहीं कोई शोषण हुआ भी हो तो उसके लिए भी दलित ही दोषी हैं उन्होंने सहा क्यों और यदि आप अपने को इतना कमजोर सिद्ध कर देंगे तो दूसरे को दोषी कहने का आपको नैतिक अधिकार ही नहीं है ।
       दलित लोगों के शरीरों में आखिर ऐसी कौन सी कमी है कि ये हिम्मत  बहुत जल्दी हार जाते हैं परिस्थितियों का सामना स्वयं क्यों नहीं करते हैं ! अपना वजूद बनाने के लिए गोली अपने सीने पर खानी पड़ती है अन्यथा गोली खाने के लिए जो तैयार रहेगा वजूद उसका बनेगा दलितों को मिलेगा कायर होने का सर्टिफिकेट ! दलितों की बनेगी स्वाभिमान विहीन होने की पहचान !जो व्यक्ति अपने आत्म सम्मान को बचाने के लिए मरना नहीं जानता ऐसे कायरों  को कोई क्यों सम्मान दे !ऐसे आत्म सम्मान विहीन लोगों को कोई स्वाभिमानी मनुष्य कैसे मान ले !
    दलित कमजोर हैं इसलिए माना कि वो किसी को मार नहीं सकते ये बात तो समझ में आती है किंतु किसी के हाथों मरने के लिए वो स्वयं क्यों नहीं तैयार हैं इसके लिए भी प्रधानमंत्री जी को आगे आकर छाती अड़ानी पड़ रही है  जबकि दलित अपनी छाती बचाए बैठे हैं।दलितों के पिछड़ने का सबसे बड़ा कारण यही है !
         दलितों की सुरक्षा के लिए क्यों बने हैं अलग से कानून !वे अपनी तरक्की अपने हाथों पैरों की कमाई से           कमाकर क्यों नहीं कर सकते !उन्हें आरक्षण क्यों चाहिए ?दलितों को सरकारी कृपा के बल पर क्यों जीना  चाहिए !सवर्ण भी गरीब हैं किंतु वे अपने बलपर जीते हैं जबकि दलित सरकारों के भरोसे जीते हैं जो अपनी भुजाओं का सहारा करता है उसे दुनियाँ सम्मान देती है जो सरकार या किसी और के बल पर जीता  है उसमें न तो वो उत्साह होता है और न ही आत्मसम्मान की भावना !

       


Sunday, 7 August 2016

वेश्याएँ भी नेता बनकर भारी मतों से जीत सकती हैं चुनाव और कमा सकती हैं करोड़ों अरबों की अपार संपत्ति !किंतु चरित्र......!


    राजनीति में आने के बाद चरित्र बचाना कठिन हो जाता है और जिसका चरित्र ही न बचे उसके जीवन का अर्थ और औचित्य ही समाप्त हो जाता है इसीलिए वेश्याएँ बेचारी गरीबत के कारण सारी दुर्दशा सहती हैं यहाँ कि शरीर बेचना स्वीकार कर लेती हैं किंतु चरित्र बचा लेती हैं जिसे राजनीति में आने के बाद बचा पाना अत्यंत कठिन हो जाता है !अपने चरित्र को बचाने के लिए कितनी सतर्क हैं वो!भगवान् दत्तात्रेय ने उनके सिद्धांतों से प्रभावित होकर ही तो उन्हें गुरूबनाया होगा !आखिर उन्होंने किसी राजा या राजनेता को तो गुरू नहीं बना लिया
     !इसलिए नेताओं की तुलना वेश्याओं से नहीं की जा सकती ।वेश्याएँ अपनी आमदनी के स्रोत बता सकती हैं इतनी पारदर्शिता और कानून के प्रति सम्मान की भावना है उनमें किंतु नेताओं की अथाह संपत्ति के स्रोत आकाश से भी अनंत हैं चुने हुए प्रतिनिधियों को मिलने वाली सैलरी से संपत्ति के इतने अंबार नहीं लगाए जा सकते !
      राजनीति में पैसा तो बहुत मिलता है पर चरित्र चला जाता है चरित्र बचाने के लिए वेश्याओं को करनी पड़ी वेश्यावृत्ति !वेश्याएँ भी नेता बनकर इकट्ठा कर सकती थीं अपार संपत्ति !किंतु चरित्र चला जाता !इसलिए शरीर बेच लिया और चरित्र बचा लिया !


    वेश्याओं ने पेट भरने के लिए शरीर को दाँव पर लगा दिया किंतु चरित्र और सिद्धांतों को बचा लिया !केवल धन ही इकठ्ठा करना था तो वेश्यावृत्ति नहीं अपितु राजनीति करतीं जो सबसे अधिक कमाऊ धंधा है । जहाँ कुत्तों की तरह से केवल दूसरों  की कमाई पर ही नजर गड़ाए रखनी होती है !
    वेश्याओं को पता है कि दूसरों की कमाई पर कब्जा करने के लिए वेश्यावृति नहीं अपितु राजनीति करनी होती है !
  नेता बनते समय पैसे पैसे के लिए मोहताज नेतालोग अचानक अरबों खरबों के मालिक हो जाते हैं न कोई धंधा न कोई रोजगार फिर भी संपत्तियों के भरे हैं  भंडार ! किंतु नेताओं की तरह पाप करने के लिए वेश्याओं का मन नहीं माना !वो नेताओं की तरह अपना कालेजा कठोर नहीं कर सकीं !वो भी नेता बनकर अपराधियों से ले सकती थीं घूस !दलितों के नाम पर शोर मचाकर योजनाएँ पास करवातीं और खुद हड़पजातीं !अशिक्षित लोगों से घूस लेतीं उन्हें शिक्षक बना देतीं !सरकारी नौकरी दे देतीं !प्रमोशन कर देतीं !मिड डे मील बेचलेतीं !मरीजों के हिस्से की दवाइयाँ बेच लेतीं !गरीबों के हिस्से का राशन बेच लेतीं !अधिकारियों से भ्रष्टाचार करके धन कमवातीं कुछ अपने पास रख लेतीं और कुछ से उनकी सैलरी बढ़ दिया करतीं सारे खुश ! अरबों इकठ्ठा कर सकती थीं बड़ी बड़ी कोठियाँ बना सकती थीं किंतु नेताओं की तरह बच्चों गरीबों मरीजों को दगा देने के लिए वेश्याओं का मन नहीं माना !    
    नेताओ खबरदार! वेश्याओं से नेताओं की तुलना की तो !जिस डर से वेश्याएँ बेचारी सारी मुसीबतें सह लेती हैं !आर्थिक परिस्थितियों के कारण शरीर बेचती हैं किंतु अपना चरित्र बचा लेती हैं उन पर गर्व किया जा सकता है किन्तु नेताओं पर नहीं ! 

    वेश्याओं को भी पता होता है कि राजनीति सबसे अधिक कमाऊ धंधा है नेताओं की कमाई के आगे वेश्याओं की कमाई फीकी है !किंतु चरित्रवती वेश्याएँ सोचती हैं कि कमाई के लालच में राजनीति करनी शुरू की तो चरित्र चला जाएगा !चरित्र की चिंता में बेचारी सारी दुर्दशा सहती हैं किंतु नेता कहलाना पसंद नहीं करती हैं । 
    वेश्याओं को लगता है कि राजनीति में कमाई भले ही कितनी भी क्यों न हो किंतु वो हुई कैसे इस बात का नेता के पास कोई जवाब नहीं होता है ।गरीब से गरीब लोग जिनकी जेब में किराया नहीं हुआ करता था राजनीति में आने के बाद वो अरबों खरबों के मालिक हो गए आखिर ये चमत्कार हुआ कैसे !व्यापार कोई किया नहीं पुस्तैनी संपत्ति इतनी थी नहीं और यदि  गरीबों अल्प संख्यकों का हक़ नहीं हड़पा तो अपने आयस्रोत बताइए !जनता स्वयं जाँच कर लेगी कि कितने कमाऊ और कितने इज्जतदार हैं नेता लोग !चले वेश्याओं को नीची निगाह से देखने !जिनके काम में पारदर्शिता है राजनेताओं के काम में कोई पारदर्शिता  नहीं है !वेश्याएँ अपने शरीर की कमाई खाती हैं किंतु नेता लोग दूसरों के हक़ हड़पते हैं ।
     महिलाओं के हकों के लिए लड़ने का नाटक करने वाले नेता महिलाओं के लिए पास किया गया फंड खुद खा जाते हैं इस ही अल्पसंख्यकों के हितैषी नेता खा जाते हैं अलप संख्यकों के हक़ !दलितों के नाम पर राजनीति चमकाने वाले नेता नीतियाँ दलितों के हक़ हड़प जाते हैं ।दूसरों के हक़ हड़पकर सुख सुविधाएँ भोगते घूम रहे अकर्मण्य लोग चले वेश्याओं का सम्मान घटाने !
     वेश्याएँ किसी की माँ बहन बेटियाँ होती हैं वो इस देश की  सम्मानित नारियाँ हैं वो हमसबकी तरह ही देश की नागरिक हैं !उनमें सभी धर्मों और सभी जातियों की महिलाएँ होती हैं !वो नहीं चाहती हैं कि राजनीति में आवें उनके भी घपले घोटाले उजागर हों उनकी अकर्मण्यता के कारण उनके नाते रिश्तेदारों सगे संबंधियों को आँखें झुकानी पढ़ें !ये वेश्याओं का अपना गौरव है । 
    वेश्याएँ सेक्स करती हैं ये बुरा होता है या जो ग्राहक ज्यादा पैसे दिखाए उसके पीछे भाग खड़ी होती हैं ये बुरा है !आखिर वेश्याओं में बुराई क्या है सेक्स तो सभी करते हैं एक से अधिक लोगों से सेक्स करना बुरा है तो प्रेमी जोड़े नाम के सेक्स व्यापारी भी तो अधिक  स्त्री पुरुषों से सेक्स करते हैं वो नहीं बुरे इसका मतलब वेश्याएँ अधिक लोगों से सेक्स के कारण बदनाम नहीं हैं अपितु बदनाम इसलिए हैं कि जो ज्यादा पैसे दिखाए उसकी हो जाती हैं । वेश्याएँ यदि केवल इस दोष के कारण दोषी होती हैं तो राजनीति में तो ये खूब हो रहा है प्रत्याशियों  का चयन करते समय अधिकाँश तो पैसा ही देखा जाता है बाकी  शिक्षा  चरित्र सदाचरण आदि सबकुछ तो गौण होता है एक से एक चरित्रवान विद्वान् कार्यकर्ता पैसे न होने के कारण पीछे कर दिए जाते हैं और पैसे वाले एक से  एक खूसट जिन्हें ये भी नहीं पता होता है कि किससे कैसे क्या बोलना है क्या नहीं या हम जो बोल रहे हैं उसका अर्थ क्या निकलेगा फिर भी उनका पैसा देखकर पार्टियाँ उन्हें न केवल उन्हें अपना प्रत्याशी बनती हैं अपितु अपनी पार्टी और संगठन के जिम्मेदार पदों पर भी ऐसे ही लोगों को बैठा देती हैं फिर उन पैसे वालों का जो मन आता है वो उसे बोल देते हैं और उन पार्टियों का लालची केंद्रीय नेतृत्व पीछे पीछे खेद प्रकट करते माफी माँगते चलता है !ये राजनैतिक वैश्यावृत्ति नहीं तो है क्या ?
    वेश्याओं के भी कुछ तो तो जीवन मूल्य होते होंगे ही किंतु राजनेताओं के तो वो भी नहीं रहे !उन्हें तो केवल कमाई दिखाई पड़ती है ! जो लोग दबे कुचलों लोगों के हकों के लिए दम्भ भरते हैं उन्हें कुछ कह दिया जाए  इतनाबुरा लगता है किंतु वही शब्द किसी और को बोल दिया जाए तो बुरा क्यों नहीं लगता !
    अरे !दबे कुचलों के हिमायती ड्रामेवाजो !ये क्यों नहीं सोचते कि जो शब्द हमें कह दिया जाए तो इतना बुरा लग जाता है जिन महिलाओं की पहचान ही वही शब्द हो उन्हें कितना बुरा लगता होगा उनकी दशा सुधारने के लिए कितने आंदोलन किए अपने !दबे कुचलों के नाम पर सरकारी खजाना लूटकर अपना घर भर लेने वालो !यदि कर्म इतने ही अच्छे होते तो CBI का नाम सुनते ही पसीना क्यों छूटने लगता है !इसके पहले की सरकार तो जब जिस मुद्दे पर हामी भावना चाहती थी छोड़दिया पार्टी थी CBI सारे घोटालेवाजों को जब जहाँ चाहती थी तब तहाँ मुर्गा बना दिया करती थी !हिम्मत थी तो तब न मानते उनकी बात !आज आए इज्जतदार बनने !!
    वेश्याओं को राजनेता  इतनी गिरी दृष्टि से देखते हैं जिनके अपने कोई जीवन मूल्य नहीं होते !वेश्याओं का चरित्र राजनेताओं से ज्यादा गिरा होता है क्या ?वेश्याओं को इतनी गंदी दृष्टि से देखते हैं नेता लोग !
   वेश्याएँ भी चाहें तो और कुछ कर पावें न कर पावें किंतु वेश्यावृत्ति को छोड़कर राजनीति तो वो भी कर सकती हैं और वो भी कर सकती हैं अनाप शनाप कमाई किंतु उन्हें अपना चरित्र प्यारा है वो शरीर बेच लेती हैं किंतु चरित्र बचा लेती हैं ।    
   वेश्या से तुलना कर देना किसी को यदि इतना बुरा लग सकता है तो जो वास्तव में वेश्याएँ हैं कितना  दुःख सह रही हैं वे महिलाएँ !क्या उनके लिए इस राजनीति की कोई जिम्मेदारी नहीं है !

Tuesday, 2 August 2016

आजादी भोगने वाले नेताओं, भ्रष्टअधिकारियों ,अपराधियों के बीच पिस रहे हैं आम लोग !

अँग्रेजों के शासन में इतना भ्रष्टाचार और अपराध कहाँ  सह पाते वो लोग !
  आत्महत्या करते किसानों मजदूरों गरीबों ग्रामीणों पर भी आजादी के बादल कभी बरसेंगे क्या !
   सर्व प्रथम आजादी के महान पर्व पर देश के श्रद्धेय पूर्वजों एवं देश की सीमाओं पर तैनात देश के स्वाभिमान की सुरक्षा के लिए समर्पित सैनिकों  को सादर नमन !
   अब बारी स्वतंत्रता दिवस पर बधाई देने की --
नेताओं एवं सरकारी कर्मचारियों को बहुत बहुत बधाई !
     हमारे नेता और हमारे कर्तव्य भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी लोग अंग्रेजों के रहते जो सुख नहीं भोग सकते थे उनके जाने के बाद आज तक जो वो लोग आजादी का आनंद  भोग रहे हैं उसके लिए उन्हें बहुत बहुत बधाई !
        बेटियाँ बलात्कारियों के आतंक से भयभीत होकर स्कूल जाना छोड़ रही हैं रेप और गैंग रेप हो रहे हैं हत्या बलात्कार लूटपाट बंद करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों कर्मचारियों को आजादी भोगने के लिए स्वतंत्रता दिवस पर बहुत बहुत बधाई !
सरकारी शिक्षकों एवं शिक्षा जगत से जुड़ेसभी अधिकारियों कर्मचारियों को बहुत बहुत बधाई !
   सरकारी शिक्षा की भद्द पीटने और गरीबों के बच्चों की जिंदगी चौपट करने वाले शिक्षा जगत से जुड़े उन सभी अधिकारियों कर्मचारियों को आजादी भोगने के लिए बहुत बहुत बधाई !हे देश की शिक्षा में टॉपर कांड करवाने वाले मास्टरमाइंडों !सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के लिए घूस लेकर रखे गए अशिक्षित अयोग्य संस्कार विहीन शिक्षको !सरकारीशिक्षा के पतन के लिए जिम्मेदार एवं सरकारी सैलरी लेकर प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चे पढ़ाने वाले अधिकारीकर्मचारियो ! आजादी भोगने के लिए आपको बहुत बहुत बधाई !
 ब्यभिचारी और ब्यापारी बाबाओं को बहुतबहुत बधाई !
  जिनके षड्यंत्रों से ईमानदार व्यापारी भिखारी होते जा रहे हैं ।'ढोंगी'उद्योगी लोग योगी होते जा रहे हैं । 'योगियों'के गर्भ से उद्योग पैदा होने लगा है ! व्यापार शुरू करने से पहले बड़े बड़े व्यापारी लोग भी अब अपने बच्चों को बाबा बनने की ट्रेनिंग करवाने लगे हैं ताकि वो भी बेशर्म होकर धड़ाधड़  झूठ बोल सके !ऐसे सभी प्रकार के पाखंडियों को बहुत बहुत बधाई !
   सरकारी सिक्योरिटी के भरोसे जिन्दा रहने वाले संन्यासियों को बधाई !
  ईमानदार किसान मजदूर गरीब ग्रामीण लोग भगवान् के भरोसे जंगलों में भी निर्भीक घूमते हैं और दूसरी ओर बेईमान तथा डरपोक बाबा लोग अपने पाप कर्मों से  इतना अधिक डरने लगे हैं कि भगवान का भरोसा छोड़ कर बड़े बड़े महलों में भी सरकारी सिक्योरिटी के भरोसे ज़िंदा रह रहे हैं पाखंडी लोग !ऐसे सत्यानाशियों को बहुत बहुत बधाई !

    चुनाव जीतने के लिए सवर्णों की निंदाकरना हर पार्टी के लिए जरूरी होता जा रहा है ।गंभीर चर्चाओं  के लिए प्रसिद्ध संसद और विधान सभाओं में अनपढ़ नेता भेजे जा रहे हैं जो न चर्चा कर सकें न समझ सकें केवल अपनी पार्टी के मालिकों के आदेशानुसार अँगूठा लगाते चले जाएँ !
   सरकारों के द्वारा बनाए जाने वाले कानून भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों द्वारा उचित मूल्य पर अपराधियों के हाथों बेच दिए जाते हैं जिनके बल पर अपराधी लोग डंके की चोट पर करते हैं अपराध !सरकारी कर्मचारियों को सेवक कहा जाता था और सेवा कार्यों में सैलरी नहीं मिलती है किंतु ये भारी भरकम सैलरी भी लेते हैं फिर भी सेवक हैं !स्वतंत्रता दिवस पर ऐसे सभी देश भक्तों को बहुत बहुत बधाई !
    सरकार यदि ईमानदार है तो घूसखोर अधिकारियों के विरुद्ध छेड़े अभियान तथा विकसित करे अपना निगरानी तंत्र और जिम्मेदारी पूर्वक कसे  भ्रष्ट अधिकारियों की नकेल ! स्वच्छता अभियान हो या सर्व शिक्षा अभियान या कोई और अभियान किंतु   भ्रष्टाचार विरोधी अभियान छेड़े बिना सरकार के सारे अभियान और सरकार के द्वारा चलाई जाने वाली सारी योजनाएँ निरर्थक हैं !
    सरकारों में सम्मिलित नेता होते हैं अनपढ़ या कम पढ़े लिखे उनमें इतनी बुद्धि कहाँ होती है कि वो IAS ,IPS अधिकारियों से कुछ काम ले सकें !इसीलिए सरकारें बड़े बड़े कानून बनाती हैं बड़ी बड़ी योजनाएँ चलाती हैं किंतु वे लागू करें न करें ये अधिकारियों की मर्जी !मोदी जी या  केजरीवाल जैसे लोग बड़ी बड़ी बातें कर के सत्ता में आए थे क्या हुआ आप अपने किसी नाते रिस्तेदार या परिचित को फोन करके पूछ लीजिए उसके जीवन में कोई परिवर्तन हुआ क्या ?सरकारें बदलती हैं अधिकारी कर्मचारी तो वही रहते हैं और काम उन्हीं को करना है वो करें न करें उनकी मर्जी !उनका  क्या बिगाड़ लेगी सरकार !
     कानपुर की एक घटना है किसी को धमकी दी गई थी उनके घर की लीगल दीवार गिरा देने की तो वो जिम्मेदार अपने थाने में गए वहाँ उनसे कुछ डिमांड रखी गई तो वो मरे ठसक में दिल्ली गृहमंत्री जी के यहाँ पहुँचे मुश्किल से प्रवेश मिला उन्होंने लेटर देकर शिकायत की वहाँ से जाँच के लिए लेटर उन्हीं के पास पहुँचा जिनसे असंतुष्ट होकर पीड़ित व्यक्ति गृहमंत्री जी के पास गया था !वो साहब इन्क्वारी के लिए गए तो उन्होंने साफ साफ कहा कि इससे ऊपर कहाँ जाओगे लिख के तो हमें ही भेजना है मैं कुछ भी लिखूँ ये मेरी मर्जी !कोई गृहमंत्री हमारी कलम पकड़ लेगा क्या या तेरी दीवार देखने आएगा !तुम्हारी इस कार्यवाही से केवल इतना फर्क पड़ा है कि पहले तुम्हें केवल हमें खुश करना था अब कुछ अधिकारी और भी सम्मिलित हो गए हैं क्योंकि ये एप्लिकेशन सबके पास घूम के आई है और सबको कुछ कुछ देती जाएगी अन्यथा खाली जाएगी !
   अपराधियों के आका भ्रष्टअधिकारियों पर कार्यवाही करके सरकार रोक सकती है सभी प्रकार के अपराध !      घूसबल समाप्त होते ही अपराधियों  में मच जाएगा हाहाकार !अपराधी या तो अपराध छोड़ देंगे या फिर उन्हें तुरंत  छोड़ना पड़ेगा देश !भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी ही अपराधियों को मुहैया करवाते हैं अपराध की सारी सुविधाएँ !इसलिए सभी प्रकार के अपराधों के लिए वरदान है सरकारी भ्रष्टाचार!भ्रष्ट अधिकारी ही अपराधियों के लिए एक तरह के सुरक्षा कवच हैं !किसी के कवच का भेदन किए बिना उसे नष्ट नहीं किया जा सकता !
     भ्रष्टाचार की कमाई से सुख सुविधाएँ भोगना बंद करें नेता(मंत्री)लोग !
    भ्रष्ट अधिकारी हर अपराधी को बताते हैं कि आपका दिया हुआ पैसा ऊपर तक जाता है जनता भी इस बात को समझती है कि सरकारों में सम्मिलित लोग जब राजनीति में आए थे तब किराया खर्च करने के लिए दूसरों की जेबें ताकते थे वही आज अरबो खरबों पति बने बैठे हैं ये धन इनके पास  आया आखिर कैसे !
   आखिर नेताओं ने कैसे कौन सा रोजगार व्यापार किया वो भी कब !जो अचानक दूध देने लगा !यदि नेताओं को कमाई का ऐसा ही कोई सरल फार्मूला पता है तो देश के गरीबों मजदूरों  किसानों क्यों नहीं बता देते हैं । वो भी लाभ ले लें बेचारे !
    ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों को सैलरी क्यों ?सरकार उनकी पहचान क्यों नहीं करती क्यों नहीं छेड़ती है कोई "भ्रष्टाचार मिटाओ अभियान!"  गैंगरेप आदि सभी प्रकार के अपराध रोकना है तो सरकार भ्रष्टाचार के विरुद्ध छेड़े अभियान !अधिकारियों को जिम्मेदार बनाने के लिए बने कठोर कानून!अपराधियों से   ज्यादा कठोर कानून बनने चाहिए भ्रष्ट अधिकारियों के लिए !
    भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों के संरक्षण में फूल फल रहे हैं सभी प्रकार के अपराध !जैसे जमींन  के अंदर हर जगह पानी है किंतु जहाँ खोदाई हो वहाँ  निकलता है वैसे ही सरकार के हर विभाग में भ्रष्टाचार है ! जहाँ जाँच होती है वहाँ निकलता है और जब ऊपर वालों का हिस्सा पहुँचना बंद होता है तब जाँच होती है या फिर मीडिया का हिस्सा जब मीडिया को नहीं मिलता है तो मीडिया तब तक शोर मचाता है जबतक मीडिया को मैनेज न किया जाए !अन्यथा भ्रष्टाचार पकड़वाकर ही दम लेता है मीडिया !
      सरकार जो नियम बनाती है सरकारी मशीनरी का एक बड़ा वर्ग उन्हें बेच कर पैसे कमाता  है भारी भरकम सैलरी भी उठाता है ।सरकारी निगरानी तंत्र इतना लचर या भ्रष्ट है कि नियमों कानूनों को तोड़ने जोड़ने बेचने खरीदने की मंडी बन गया  है सरकारी कामकाज !लगभग हर आफिस में अलग अलग काम के हिसाब से घूस के पैसे फिक्स हैं !भ्रष्टाचार की भारत बहुत बड़ीमंडी है !जहाँ भ्रष्ट लोग नित्यप्रति करोड़ों का कारोबार उस भ्रष्टाचार के बल पर चला रहे हैं जिसे सरकारी नियम कानून गलत मानते हैं ।जिन्हें पकड़ने की जिम्मेदारी सरकार की है ये सरकारों का फेलियर नहीं तो क्या है !फिर भी सैलरी !
  सरकारी आफिसों में भ्रष्टाचार के जन्मदाता सरकार के भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी ही तो होते हैं जिनसे गलत काम करवाकर दलाल लोग काली कमाई करने वालों से करोड़ों रूपए कमीशन कमा लेते हैं तो कल्पना कीजिए कितनी कमाई होगी उन भ्रष्ट अधिकारीकर्मचारियों की !ऊपर से हजारों लाखों की सैलरी !उसके ऊपर वेतन आयोगों की सरकारी कृपा !बारी सरकारी नौकरी !इनकी इतनी सुख सुविधाएँ और अपना इतना संघर्ष पूर्ण जीवन देखकर किसान आत्म हत्या न करें तो क्या करें !
    अपराधीलोग, गुंडेलोग और काली कमाई करने वाले धनीलोगों को इन्हीं सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से वो अघोषित  रेटलिस्ट मिलती है कि सरकार के द्वारा बनाया गया कौन सा नियम कितने पैसे में तोड़ा जा सकता है ।यही कारण  है कि अपराधियों में कानून का खौफ नहीं है । जिस अपराधी की जेब में जितना पैसा है सो कर रहा है उतना बड़ा अपराध !
     मोदी जी !  किसानों गरीबों मजदूरों का भी कोई वेतन आयोग बनाइए आखिए वे भी देश सेवा का ही काम कर रहे हैं उनकी उपेक्षा क्यों ?किसान आत्महत्या करते जा रहे हैं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाई जा रही है !दाल और टमाटर महँगे होने की चिंता तो है किंतु किसानों की रक्षा के लिए पहले उठाए जाएँ कठोर कदम !बाद में बढ़ाई जाए कर्मचारियों की सैलरी !वे सैलरी बढ़ाए बिना मरे नहीं जा रहे उन्हें आलरेडी इतना मिल रहा है पहले किसानों मजदूरों गरीबों की ओर देखिए मोदी जी !
   किसानों गरीबों मजदूरों की आमदनी की कितने गुने सैलरी होनी चाहिए सरकारी कर्मचारियों की इसकी भी कोई नीति बनाइए !एक तरफ हजारों का ठिकाना नहीं एक तरफ लाखों बढ़ाए जा रहे हैं ये कुंठा ही गरीबों के अंदर  आपराधिक प्रवृत्ति को जन्म देती है ।
   आम जनता के टैक्स दी जाने वाली सैलरी कब बढ़ाई जाए कितनी बढ़ाई जाए इसके लिए जनता से क्यों नहीं पूछा जाता जनता के बीच सर्वे क्यों नहीं कराया जाता !सारे फैसले सरकार खुद ले लेती है तभी तो सरकारी आफिसों के लोग आम जनता को कुछ समझते नहीं हैं सरकारी आफिसों में काम के लिए जाने वाली जनता को खदेड़ कर भगा देते हैं सरकारी लोग !कोई सीधे मुख बात नहीं करता है वहाँ । जनता की कोई सुनने वाला नहीं होता है !
   सरकार में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी यदि  जनता का ध्यान नहीं रखते तो ये लोकतंत्र के नाम पर कलंक है कि जनता आज भी सरकारी अधिकारियों को अपनी समस्या बताने में डरती है उसके चार प्रमुख कारण हैं पहली बात वो सुनेंगे नहीं !दूसरी बात वो कुछ करेंगे नहीं ! तीसरी बात वो पैसे माँगेंगे !चौथी बात वो समस्या बढ़ा देंगे !
   कई बार लोगों को जो तंग कर रहा होता है उसके विरुद्ध किए गए कम्प्लेन की सूचना सरकारी विभाग से उस अपराधी को दी जाती है जाती है जो तंग कर रहा होता है फिर अपराधी ही कम्प्लेनर पर करता है अत्याचार !ये सारी कमियाँ दूर किए बिना सैलरी बढ़ाए जा रही है सरकार !अफसोस !ये सरकारें आम जनता के लिए चुनी जाती हैं पेट केवल अपना और अपनों का भरा करती हैं ।
    मोदी  सरकार के दो वर्ष होने का पर्व जनता भी मना रही है क्या ?या केवल सरकार में सम्मिलित लोग और केवल पार्टी के पदाधिकारी ही !कोशिश ऐसी होनी चाहिए कि जनता को भी विश्वास में लिया जाए और जनता भी मोदी सरकार के वर्षद्वय पर में भावनात्मक रूप से सम्मिलित हो !अन्यथा वर्तमान खुशफहमी कहीं अटल जी की सरकार का फीलगुड बन कर न रह जाए !     मोदी जी ! जनता का बहुत बड़ा वर्ग भ्रष्टअधिकारियों और भ्रष्टनेताओं की धोखाधड़ी का शिकार हो रहा है उसे बचने के लिए कुछ कीजिए !ये दोनों लोग ही करवा रहे हैं सभी प्रकार के अपराध !अन्यथा अपराधियों में इतनी हिम्मत कहाँ होती है कि वो अपने बल पर अपराध करें और उनके पास इतना धन कहाँ होता है कि वे घूस देकर बच जाएँ किंतु मददगारों के बल पर वो उठा जाते हैं बड़े बड़े कदम !इस लिए उन मदद गारों की पहचान करके उन पर अंकुश लगाना होगा !इन लोगों पर अंकुश लगाए बिना 2019 की वैतरणी पार कर पाना आसान नहीं होगा !
  इसके अलावा मोदी जी आखिर कैसे बंद हों अपहरण हत्या बलात्कार जैसे अपराध ! अपराधियों को गले लगाते हैं गुंडे और गुंडों को गले लगाती हैं राजनैतिक पार्टियाँ !इसी प्रकार से अपराध के कारोबार से कमाई करते हैं अपराधी और अपराधियों से कमाई करते हैं भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी !यदि सरकारी अधिकारी ,कर्मचारी ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ होते तो न हत्याएँ होतीं न होते बलात्कार !इसलिए अपराधियों पर अंकुश लगाने से पहले भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों पर काबू पावे सरकार !उसके पहले विकास संबंधी सारी बातें बेकार !
    प्रधानमंत्री जी ! सरकार के हाथ पैर तो सरकारी अधिकारी और कर्मचारी ही होते हैं जिनके अच्छे बुरे व्यवहार के आधार पर ही सरकार के काम काज का मूल्यांकन  होता है क्योंकि अधिकारियों और कर्मचारियों से ही जनता को जूझना पड़ता है वो ही यदि भ्रष्टाचारी हैं तो आप कितने भी अच्छे बने रहें किंतु जनता के मन में आपकी छवि भ्रष्टाचार समर्थक के रूप में  ही बनी रहेगी !अपराधों पर अंकुश लगाने के नाम पर भाषण चाहें जितने हों किंतु काम बिलकुल नहीं हो रहा है !
   जेल में बैठकर  मीटिंगें कर रहे हैं अपराधी !एक साधारण किसान की गारंटी पर हजारों करोड़ का लोन मिल जाता है ऐसे असंख्य अपराध कर रहे हैं सरकारी अधिकारी ,कर्मचारी इन्हें कोई देखने रोकने वाला ही नहीं है तभी तो अंकुश नहीं लग पा रहा है अपराधों पर !        सरकारी नीतियाँ इतनी अंधी हैं कि अधिकारियों कर्मचारियों से काम लेना तो सरकार के बश का ही नहीं है इनके  भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना भी सरकार के बश का नहीं है फिर भी इनकी सैलरी बढ़ाए जा रही है सरकार जबकि सरकारी हर काम काज का भट्ठा बैठा रखा  है इन्होंने !आखिर सरकार अपने  कर्मचारियों से इतनी खुश क्यों है!
    सरकारी शिक्षा विभाग ,डाकविभाग दूरसंचार विभाग चिकित्साविभाग चौपट तो इन्हीं सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों ने कर  रखा है इनसे बहुत कम सैलरी पाकर भी प्राइवेट टीचर, कोरियरकर्मी, प्राइवेटदूर संचार कर्मी,चिकित्साकर्मी अपने अपने क्षेत्र में कितनी अच्छी अच्छी सेवाएँ दे रहे हैं ।
    सरकार के कर्मचारी तो इतने कामचोर हैं कि जिस आफिस के कर्मचारियों की एक एक महीने की सैलरी पर पचासों लाख रूपए खर्च हो रहे होते हैं उस आफिस के कर्मचारी अपना कम्प्यूटर और प्रिंटर बिगाड़ कर उसी बहाने कई कई दिन काम न करके जनता को टरकाया करते हैं ऊपर से जनता के साथ मिलकर वो लोग  भी सरकार तथा सरकारी व्यवस्थाओं को गालियाँ देते हैं !         इनके काउंटरों पर नंबर की तलाश में खड़ी जनता को जानवरों की तरह कभी भी खदेड़ देते हैं ये इटरनेट न आने का बहाना बनाकर!कई कई दिन बीत जाने पर भी काम  न होने पर घूस देने को मजबूर कर दी जाती है जनता !उसके पास इसके अलावा और कोई दूसरा विकल्प ही नहीं होता है । सरकारी तंत्र की ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जहाँ जनता इस विश्वास के साथ शिकायत करे कि उसका काम समय से हो जाएगा !
       सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से काम कराने के लिए घूस देने के अलावा जनता के पास कोई अधिकार नहीं हैं जिस अधिकारी से शिकायत की जाती है वो उलटे जनता को ही काटने दौड़ता है सरकार तक जनता की पहुँच नहीं होती है !
     कुल मिलाकर अपराध छोटे हों या बड़े इसे करने वाला किसी न किसी कोने में मूर्ख होता है तभी तो ऐसा  रास्ता चुनता है ।अपराधी केवल यंत्र की भाँति होता है इसी कारण ऐसे लोगों का ऊपरी कमाई के लालच में उपयोग करते हैं भ्रष्टअधिकारी कर्मचारी और गुंडेनेता !जहाँ अधिकारियों कर्मचारियों की ऊपरी कमाई का साधन बने हैं अपराधी वहीँ भ्रष्टनेताओं  का दबदबा बनाने में सहायक होते हैं  अपराधी !यही अधिकारी और यही नेता उन अपराधियों की हर समय हर प्रकार से रक्षा करते रहते हैं इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता है इसलिए  ऐसे लोगों पर अंकुश लगाए बिना अपराधों पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता है ।