Friday, 30 December 2016

सपा में संघर्ष है या नववर्ष ? 6 वर्ष जैसा लंबा समय सैफईलोक के कुछ दिनों के बराबर होता है !

    पृथ्वी लोक के 6 वर्षों जैसा लंबा समय सैफई लोक में 20-25 दिनों में ही बीत जाता है बस ! 23अक्टूबर को नेता जी के अनुज का 6 वर्षों के लिए निष्कासन हुआ था और 18 नवंबर को हो गई थी घर वापसी !
      लोग समझते हैं झगड़ा हो रहा है !अरे !बबुआ ने अपनी बुआ को आज पहलीबार खुश किया है नोटबंदी के बाद बुआ गंभीर तनाव में चल रहीं थीं ।बुआ की पार्टी भी सिमिटिती जा रही थी दिनोंदिन इसीलिए अब तो टिकटें भी नहीं बिकने लगी थीं बुआ की पार्टी की !टिकट खरीदने वाले ग्राहक ही नहीं मिल रहे थे मंडी में !बसपाई बाजारों में हो सकता है कल से लौटे रौनक !आज की रात चैन से सोएँगी बुआ और बुआ की पार्टी के लोग !
  सैफई का महोत्सव अबकी लखनऊ में तब जन्मदिन पर अब नववर्ष पर !
    कार्यकर्ता उछलकूद कर रहे हैं विरोधियों के मन में लड्डू फूट रहे हैं समाजवादी पार्टी समुद्र में बहता हुआ वो जादुई जहाज है जिससे उड़ा हुआ पंक्षी उड़ते उड़ाते जब थक जाता है तब फिर बैठ जाता है इसी जहाज पर !बहुत पंक्षी उड़े सब जगह भूल भटक कर आज सपा को ही  सफा करने में सादर सेवाएँ दे रहे हैं अपनी !अबकी बार लगे हुए हैं बिल्कुल क्लीन करने में !
  


Wednesday, 28 December 2016

"राहुलगाँधी जी के प्रधानमंत्री जी से किए गए सवालों पर राहुल जी से हमारे सवाल !!" क्या जवाब देंगे राहुल जी ?

  राहुल ने पीएम मोदी से कई सवाल किए हैं इस पर पढ़ें राहुल जी के उन उन सवालों पर राहुल जी से हमारे अपने सवाल-
  • 8 नवंबर को नोटबंदी लागू करने के फैसले के बाद अबतक कितना कालाधन देश में पकड़ा गया है ?
 हमारा प्रश्न :हे राहुल जी !कालाधन पकड़ा गया हो न पकड़ा गया हो किंतु कालाधन रोकने का प्रयास तो है
  वैसे भी राहुल जी ! कालाधन तो सारे देश के लिए हो सकता है किंतु काँग्रेस के लिए तो उसके द्वारा मुट्ठी भर लोगों को दिया गया कृपा प्रसाद है अन्यथा काँग्रेस ने सबसे लंबे समय तक शासन किया उसकी इच्छा के बिना ये कालाधन इकठ्ठा हो कैसे गया और यदि हो भी गया तो आपकी सरकारों ने इसे अपने शासनकाल में पकड़ा क्यों नहीं !काँग्रेस में शासन करने की क्षमता नहीं थी या काँग्रेस को कालाधन पकड़ना नहीं आता था या कालेधन वालों के विरुद्ध मुहिम चलाने में काँग्रेस डरती थी या काँग्रेस  कालाधन इसे मानती ही नहीं थी या काँग्रेस अपने लगे हुए कालेधन रूपी वृक्ष को काटना नहीं चाहती थी और आज मोदी जी काटने का प्रयास कर रहे हैं तो काँग्रेस को क्यों दर्द हो रहा है ?
  • पीएम मोदी को बताना चाहिए कि नोटबंदी की वजह से अभी तक कितने लोगों की जान गई है?
  हमारा प्रश्न :हे राहुल जी !नोटबंदी की वजह से किसी की जान नहीं गई है और न ही ये योजना बुरी थी और कैस की कमी भी नहीं  थी किंतु काँग्रेसी सरकारों के शासनकाल में नियुक्त हुए बैंक आदि के कुछ कर्मचारीगण अपना कर्तव्य भूलकर  काँग्रेसी सरकारों के समय कालेधन से धनवान हुए अपने लोगों की मदद करने लगे उनके गोदामों के करोड़ों रूपए बदल दिए और जनता को भूखा प्यासा लाइनों में खड़ा किए रहे उनके ऐसे अत्याचारों को लाइनों में खड़े कुछ गरीब लोग नहीं सह सके और दम तोड़ गए !ऐसे कर्तव्यभ्रष्ट कर्मचारियों की गद्दारी पर अचानक अंकुश लगाने के लिए काँग्रेस ही बता दे कि मोदी सरकार को क्या करने लगना चाहिए था ?क्या उन्हें तुरंत सस्पेंड कर दिया जाना चाहिए था क्या उनकी जगह इतनी जल्दी नई नियुक्तियाँ कर पाना संभव था ?क्या बैंक कर्मचारियों के बिना बैंक अच्छे लगते  ?आखिर जितना काम वो कर रहे थे उतना काम भी कौन करता ?
  • नोटबंदी के फैसले से देश की अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान हुआ है?
हमारा प्रश्न :हे राहुल जी !नोटबंदी जब नहीं हुई थी तब ही देश की अर्थव्यवस्था में कौन चार चाँद लग गए थे और यदि काँग्रेसी सरकारों ने अर्थ व्यवस्था का ही अनर्थ न किया होता तो देश ने उन्हें सत्ता से बेदखल क्यों किया होता काँग्रेस ही बता दे कि उसकी अपनी समझ में लोकसभा चुनावों में हुई इतनी भयंकर पराजय का कारण क्या था ?
  • राहुल ने पूछा ये भी पूछा है कि पीएम मोदी ने किसकी सलाह पर नोटबंदी का फैसला लिया था?
हमारा प्रश्न :हे राहुल जी !काँग्रेसी सरकारों में ऐसा होता है वोट कोई माँगता है प्रधानमंत्री कोई बनता है ऐसे में प्रधानमंत्री जैसे बड़े पद पर बैठे हुए व्यक्ति को भी एक परिवार विशेष से पूछ पूछ कर निर्णय लेने होते हैं जो न पूछे तो उसके मंत्रिमंडल के द्वारा लिए गए निर्णयपत्र मीडिया के सामने फाड़कर फ़ेंक दिए जाते हैं !राहुल जी देश का प्रधानमंत्री कोई बँधुआ मजदूर तो नहीं होता कि हर काम दूसरों की सलाह पर ही करे क्या उसे इतनी भी आजादी नहीं होनी चाहिए कि वो कोई कामअपने मन से भी कर सकता हो! वैसे भी जनता ने जनादेश मोदी जी को दिया है जवाब भी उन्हीं से माँगेगी इसलिए निर्णय लेने का अधिकार भी उन्हीं को है वो उचित समझें तो किसी से सलाह लें न समझें न लें !यही स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान है । देश के प्रधानमंत्री जैसे सम्मानित व्यक्ति को जिससे देश का स्वाभिमान जुड़ा होता है उसे बँधुआ मजदूर बनाकर कैसे रखा जा सकता  है ?आखिर फैसले लेने के लिए उसे स्वतंत्र क्यों नहीं होना चाहिए ? वैसे तो नोटबंदी का फैसला प्रधानमंत्री जी ने खुद लिया था उन्होंने किसी की सलाह लेने की जरूरत नहीं समझी होगी या ली भी हो तो आप को बताना जरूरी है क्या ?
 नोटबंदी की वजह से जान गंवाने वालों के परिजनों को मुआवजा दिया गया या नहीं?
हमारा प्रश्न :हे राहुल जी !नोटबंदी से नहीं अपितु काँग्रेसी सरकारों के समय से चले आ रहे भ्रष्टाचार की वजह से कुछ लोगों का देहावसान हुआ है जो सरकारी कर्मचारियों की कर्तव्यभ्रष्टता को दर्शाता है क्या सरकार को उन पर भरोसा नहीं करना चाहिए और न करे तो क्या करे !सरकारी सारी  मशीनरी काँग्रेसी सरकारों के समय की ही है उनके कामकाज की शैली भी वही है उनमें से जिन लोगों की निष्ठा भी काँग्रेस पार्टी की ओर ही है वे लोग सरकार के हर निर्णय पर काँग्रेस पार्टी के नेतृत्व का रुख भाप कर ही आचरण करते हैं चूँकि काँग्रेस शुरू से ही मोदी सरकार के नोटबंदी अभियान को फ्लाप करना चाहती थी इसलिए  उसके प्रति निष्ठा रखने वाले कर्मचारियों ने भी वैसा ही किया ?वैसे भी ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ दोबारा न घटें सरकार ऐसे प्रयासों में लगी है मुआबजा बाँटकर अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेने वालों को बताना चाहिए कि गरीब हो या अमीर किसी की मौत का मुआबजा हो सकता है क्या ? 
  • उन लोगों की लिस्ट बताएं, जिन्होंने 8 नवंबर से 2 महीने पहले 25 लाख रुपए से ज्यादा बैंक में जमा कराए थे?
 हमारा प्रश्न :हे राहुल जी !ऐसे लोगों के नाम तो  बैंकों के रिकार्ड में होगें ही इनकी लिस्ट आप खुद बना लीजिए ऐसा आप करना नहीं चाहते या ऐसी लिस्टों की आपको आवश्यकता नहीं है होती तो बना लेते !क्या यह सच नहीं है कि मुद्दा विहीन होने के कारण आप ऐसी  अप्रासंगिक बातें कर रहे हैं!हे नेता जी !देश के प्रधानमंत्री को ऐसी बातों के लिए आदेश नहीं दिया जा सकता !उसके पास जनता के लिए जरूरी कामों की बहुत लंबी लिस्ट होती है उसे क्यों नहीं मागते हैं आप !और टाँग खिंचाई की अपेक्षा सहयोग का रुख क्यों नहीं अपनाते हैं आप ?संसद क्यों नहीं चलने देते हैं आप वहीँ माँग लेते लिस्ट !
  • खातों से निकालने के लिए 24 हजार रुपए की लिमिट ही क्यों? इसे तुरंत बढ़ाया जाए.
हमारा प्रश्न :हे राहुल जी !जब लिमिट लगी थी तब तो कालेधन वालों ने गोदाम भर लिए और जब लिमिट नहीं होगी तब क्या होगा ?सरकार धीरे धीरे सबकुछ कर लेना चाहती है तो इसमें काँग्रेस को आपत्ति क्या है !
  • स्विस सरकार ने पीएम को को स्विस बैंकों में अकाउंट रखने वालों की जो लिस्ट सौंपी है उसे लोकसभा या राज्यसभा में कब पेश किया जाएगा?
हमारा प्रश्न :हे राहुल जी !इसके लिए  लोकसभा में प्रश्न उठाकर सरकार को जवाब देने के लिए मजबूर किया जा सकता था तब वहाँ तो हुल्लड़ मचाते रहे कार्यवाही नहीं चलने दी !ऐसे सवालों का जवाब मीडिया तो देगी नहीं जहाँ आप जवाब माँग रहे हैं किससे कौन सा प्रश्न कैसे और कहाँ किया जाना चाहिए इसी से तो प्रश्नकर्ता की योग्यता परिलक्षित होती है इसके लिए सरकार क्या करे ?वैसे भी ऐसे गंभीर प्रश्नों का उत्तर सरकार सार्वजनिक तौर पर मीडिया में कैसे दे दे ?देशके हर नागरिक की निजता का सम्मान क्यों नहीं किया जाना चाहिए ?

Monday, 26 December 2016

घूस की ताकत समझे सरकार !घूसखोर लोगों के लिए सरकार से ज्यादा महत्त्व रखता है भ्रष्टाचार !

    घूस खोर लोग घूस का पैसा देखते ही पागल हो उठते हैं !उन्हें लगता है कि सैलरी तो सरकार देगी ही जैसे देगी वैसे लेंगे नहीं तो केस करके जीत लेंगे उसकी क्या चिंता किंतु घूस जैसी घर वालों को आकस्मिक प्रसन्नता प्रदान करने वाली आमदनी को क्यों छोड़ा जाए !
    सरकार के भ्रष्टाचार विरोधी नोटबंदी जैसे महान अभियान को अँगूठा दिखाने वाले घूसखोर बैंककर्मी ही तो थे जिन्होंने गद्दारी न की होती तो कैसे पहुँचता कालेधन वालों के पास करोड़ों रूपए का कैस !वो कालेधन वाले तो लाइनों में लगे नहीं बैंकों में झाँकने नहीं आए !घूस के बलपर ही तो बैंक वालों से उन्होंने घर बैठे मँगाया करोड़ों का कैस और ये दे आए घूसखोर कर्मचारी !हर बैंक इसकी गवाही देंगे सरकार जाँच करे तो !सरकार जनता से 50 दिनों के लिए गिड़गिड़ाती रही जनता उन्हें प्रधानमंत्री मानकर उनकी बातों का भरोसा करके दो दो हजार के लिए तरसती दम तोड़ती रही उसकीआँखों के सामने सेकरोड़ों की गड्डियाँ जाती रहीं !उन सरकार भक्त देश वासियों की मौतों का बदला  भ्रष्ट  बैंक कर्मियों से कैसे लेगी सरकार !
     घूसखोर अधिकारी कर्मचारी सरकार के लिए इतने ज्यादा खतरनाक होते हैं जैसे कोई विवाहित स्त्री या पुरुष किसी आशिक की चाहत में अपने पति या पत्नी के प्राणों का प्यासा बन बैठे!ऐसे स्वार्थी सर्पों का साथ सबके लिए सबसे ज्यादा खतरनाक होता है भले वो सरकार ही क्यों न हो !
     घूसखोर लोगों को घूस मिलते दिखाई पड़ी तो वो सरकार की कहीं भी कभी भी कितनी भी बड़ी बेइज्जती  करवा सकते हैं वो इसलिए सरकार पहले उनसे निपटे बाद में दूर करे भ्रष्टाचार !क्योंकि भ्रष्टाचारी लोग सरकार की अपनी आस्तीन के साँप बने बैठे हैं । हर बैंक में कुछ न कुछ गड़बड़ तो हुआ है !
  घूसखोर ,कामचोर ,गैरजिम्मेदार एवं यूनियन बनाने वाले सरकारी कर्मचारियों को पहले सेवामुक्त करे सरकार !तब भ्रष्टाचार पर करे प्रहार तब होगा असरदार !ऐसे भ्रष्टाचार के विरोध का जनता में तो हाहाकार है किंतु सरकारी विभागों में रामराज्य का मंगलाचार है !
     सोर्स और घूस के बल पर नौकरी पाने वालों का मन कहाँ लगता है काम करने में उनमें से चतुर  लोग  यूनियन बना कर अपना समय पास करते और सरकारों को ब्लैकमेल किया करते हैं घूस खोर सरकारें डरकर उनकी माँगे मान लिया करती हैं उन्हें अपने पोल खुलने का भय भी तो होता है वो सारा माल  टाल इन कर्मचारियों की जानकारी में इन्हीं से कमवाया गया होता है ऐसी ही सरकारों की कमजोरी पकड़ कर तो हड़ताल पर जाया करते हैं सरकारी दुलारे !उन्हें पता होता है कि डरी सहमी सरकार अब दूध देगी इसीलिए तो हड़ताल करके दुह लेते हैं सरकार को !तभी तो अपने पाप का बोझ जनता पर डालती जाती है सरकार और सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाती और सुविधाएँ मुहैया करवाती जाती है सरकार !अन्यथा इनकी सैलरी बढ़ाते समय आम आदमी की आमदनी को ध्यान में क्यों नहीं रखा जाना चाहिए क्या उनके भरण पोषण की जिम्मेदारी सरकार की नहीं होनी चाहिए किंतु सरकार ईमानदार हो तब तो ऐसा सोचे !
   सरकारी कर्मचारियों की यूनियन बनाने वाले सबसे बड़े भ्रष्टाचारी कामचोर और मक्कार होते हैं उन्हें यह सब करने की जरूरत क्या है समझ में आवे तो नौकरी करें अन्यथा त्यागपत्र दें !बहुत बेरोजगार योग्य लोग नौकरी की तलाश में नाले साफ करते घूम रहे हैं और घूसखोर बैंककर्मी घूस से घर भर रहे हैं !यूनियन वाले कर्मचारी हड़ताल करके घूसखोर भ्रष्ट सरकारों को उनके भ्रष्टाचार की पोल खोलने की धमकी देकर मनवाया करते हैं अपनी माँगें और अँगुलियों पर नचाया करते हैं भ्रष्ट सरकारों को !किंतु ईमानदार सरकारें उनकी इस ब्लैकमेलिंग को क्यों सहें उन्हें ऐसे भ्रष्ट कर्मचारियों पर लगाम लगाकर सबसे पहले अपनी ईमानदारी का परिचय देना चाहिए !भ्रष्टाचार के माता पिता सरकारी कर्मचारी हैं या फिर सरकारों में सम्मिलित लोग !आम जनता तो इसे अपनों की अपने साथ गद्दारी मानती है मज़बूरी में सहती है !
   भ्रष्टाचार पकड़ने का फर्मूला अपनावे सरकार यदि ईमानदारी का परिचय देना हो तो !  
    नेता जब पहला चुनाव लड़े थे, बाबा जब पहली बार बाबा बने थे और सरकारी कर्मचारियों की जब पहली बार नौकरी में आए थे तब उनके पास कितनी संपत्ति थी और आज कितनी है साथ ही इस बीच हुई उनकी आय के ईमानदार स्रोतों की ईमानदारी पूर्वक जाँच कराई  जाए तो देश के सारे भ्रष्टाचार की पोल तो खुल ही जाएगी साथ ही सभी प्रकार के अपराधों का भी पर्दाफास हो जाएगा !बड़े से बड़े अपराधियों को नेताओं बाबाओं या बड़े बड़े आफीसरों की ही गोद में खेलते खाते ,पलते ,बढ़ते देखा जाता हैं !बिना हेलमेट के मोटरसाइकिल वालों को पल में पकड़ लेने वाली सरकार इतने बड़े बड़े अपराधियों को तैयार कैसे होने देती है !
    प्रधानमंत्री जी ! घूस लेने वाले सरकारी कुकर्मचारी तो एटीएम,पेटीएम मानेंगे नहीं वो तो कैस में ही माँगेंगे घूस !उनसे कैसे निपटा जाएगा !
   भारत सरकार से घूस मिलने की आशा नहीं थी इसीलिए घूस प्रिय बैंक कर्मियों ने दिया कालेधन वालों का साथ !और समय से पहले ही नए नोटों में बदल दिया उनका करोड़ों का कैस  जो सरकारी कर्मचारी घूस न मिलने के कारण देश के साक्षात प्रधानमंत्री जी की बातों को नहीं मानते हैं वो घूस न देने वाली जनता के साथ कैसा सलूक करते होंगे !
       हे मोदी जी !  घूस तो कैस में ही चलती रही है इसके बिना सरकारी विभागों से काम लेना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है । समय से काम लेना है तब तो अत्यंत आवश्यक है घूस का आदान प्रदान !
     महोदय ! सरकारी कर्मचारियों की दृष्टि से यदि  सैलरी और घूस देने वालों की यदि तुलना की जाए तो सैलरी देने वाली सरकार हार जाती है और घूस देकर काम कराने वाले जीत जाते हैं !सरकार ने कालेधन वालों के विरुद्ध कठोर कदम उठाने के प्रकट आदेश दिए दूसरी ओर कालेधन वालों ने सरकारी आदेश को ठेंगा दिखाने का अघोषित आदेश जारी किया !सरकारी कर्मचारियों ने सुनी किसकी सरकार की या कालेधन वालों की !सरकार के अपने कर्मचारियों ने सैलरी देने वाली अपनी सरकार पर उतना भरोसा नहीं किया जितना घूस देकर काले धन को सफेद करवाने वालों पर किया !कालेधन वाले लोगों के गोदामों में समय से पहुँचा दिए गए करोड़ों की संख्या में बदल बदल कर नए नोट !कोई काले धन वाला नहीं देखा गया कहीं लाइनों में लगते और सबसे पहले भरे गए उनके गोदाम !श्रीमान जी !ये है घूस का कमाल !
       आधी आधी रात से लाइनों में भूखे प्यासे खड़े लोगों को दिखा दिखा कर लंच करते रहते हैं सरकारी कर्मचारी । लाइनों में लगी जनता यह देख देख कर दम तोड़ती रहती है !उसे लगता था कि ये तो दस बजे घर से खाकर चले होंगे इन्हें फिर भूख लग गई इनके लंच की चिंता सरकार को है और हमारी ! 
         नोटबंदी अभियान में तो सरकार को भी भुगतना ही पड़ा है घूस न देने का दंड !जिन्होंने घूस दी उनका करोड़ों का कैस बदलकर उनके गोदामों में पहुँचाया और जो मोदी जी की बातों के भरोसे रहे घूस नहीं दी वो लाइनों में खड़े खड़े मर गए भूखे प्यासे !जिन्होंने घूस दी उनके रात बिरात भी काम हुए !  मोदी जी !घूस लिए बिना बैंक वालों ने जब आपका काम नहीं किया तो ये जनता का काम क्या करते होंगे वहाँ तो खाना पूर्ति ही होती है !        
      प्रधानमंत्री जी के द्वारा देश हित में लिए गए फैसले को सबसे अधिक सहयोग और सम्मान सरकारी जिन कर्मचारियों के द्वारा सरकारी विभागों से मिलना चाहिए था वहाँ वैसा नहीं हुआ !गैर क़ानूनी रूप से नए नोटों का जहाँ जितना जो भी भंडार  मिला है या भविष्य में कहीं मिलेगा वो किसी न किसी सरकारी कर्मचारी की सरकार और सरकार भक्त जनता के साथ की गई गद्दारी के ज्वलंत सबूत हैं !
          हे प्रधानमंत्री जी !कभी सरकारी विभागों में जाकर देखिए किंतु जाए कौन और देखे कौन !सरकारों में सम्मिलित नेता लोग तो केवल आदेश देने के लिए होते हैं वो तो सत्ता के नशे में इतना अधिक चूर होते हैं कि उन्हें लगता है जो मैंने कह दिया वो हो गया किंतु सरकारी आदेशों को कैसे ठेंगा दिखाते हैं सरकारी कर्मचारी ये जनता तो भोगती ही थी किंतु नोटबंदी अभियान में सरकार ने भी भोग ही लिया है फिर भी सरकार में सम्मिलित लोगों की आँखें न खुलें तो इसे उनके किसी पूर्व जन्म का कर्म भोग ही माना जाना चाहिए !
     महोदय !देश में जबतक घूस लेने वालों का वर्चस्व रहेगा तब तक प्रायः ईमानदार राजनेता यदि सत्ता में आ भी जाएँ और वो ईमानदारी पूर्वक भ्रष्टाचार मिटाना भी चाहें तो उन्हें कई प्रकार के भयों को सहने के लिए हमेंशा तैयार रहना पड़ता है सबसे पहली बात सरकारी कर्मचारियों की जो सरकार के सामने तो हाँ हाँ कितना भी करें किंतु सरकार का और सरकार की योजनाओं का साथ  वे प्रायः बहुत कम देते हैं । वो या तो घूस देने वालों का साथ देते हैं या फिर जिस सरकार के समय उनकी नौकरी लगी होती है उन नेताओं की इच्छा के अनुरूप बर्ताव कर रहे होते हैं । बाकी सरकारी आदेशों को ठेंगा दिखाया करते हैं ये ! जनता सरकारी आदेशों पर जरूर भरोसा करती है वो भूखी प्यासी डटी रहती है सरकारी आदेशों के साथ !
     महोदय !घूस दिए बिना सरकारी विभागों से काम करवाने का मतलब लोहे के चने चबाना होता है वो भी समय से !घूस न देने का मतलब या तो काम होगा नहीं या आधा अधूरा होगा या बहुत लेट होगा या बहुत अपमानित करके किया जाएगा वो काम !
         व्यापार करने वालों को समय से संपूर्ण काम सम्मान पूर्वक अपनी इच्छा के अनुसार करवाना होता है इसलिए उन्हें सरकार के उन सभी विभागों को घूस देनी पड़ती है जिनसे जिनसे उनका काम पड़ता रहता है इसलिए उन्हें रखना पड़ता है कालाधन !और तो और पोस्टमैन तक का महीना बँधा होता है अन्यथा चेक बुक दरवाजे पर फटी पड़ी मिलेगी अगले दिन !ऐसी ही हरकतों के कारण सरकारी विभागों को दलालों का अड्डा एवं सरकारी कर्मचारियों को भिखारी या अपना नौकर समझते हैं बड़े बड़े व्यापारी लोग !
          प्रधानमंत्री जी !आप अपने को प्रधानमंत्री समझें भले किंतु सरकारी कर्मचारियों के प्रधानमंत्री तो वही हैं जो उन्हें घूस देते हैं सैलरी देने वाले प्रधानमंत्री को कौन पूछता है सैलरी देना तो सरकार की मज़बूरी है वो तो कैसे भी ले लेंगे !कानून उनके साथ है । कुछ लोग तो मानते हैं कि नौकरी पाने के लिए हमने जो घूस दी थी सैलरी के रूप  वही वसूल रहे हैं हम !इसमें पाप क्या है ।
   प्रधानमंत्री जी ! भारत सरकार भी अपने सरकारी कर्मचारियों से काम लेने के लिए घूस देगी क्या ?यदि नहीं देगी तो उनसे काम करा लेगी क्या ?सरकारी कर्मचारियों को जो घूस देगा वो उसका तो काम करेंगे  सैलरी कितनी भी मिले वो देनी तो सरकार की मज़बूरी है किंतु घूस जरूरी है !
   भारत सरकार ने घूस नहीं दी  तो उन्होंने काम भी कितना और कैसे किया क्या  दुनियाँ जानती नहीं है !
     देश के प्रधानमंत्री जी नोटबंदी अभियान में देश वासियों से 50 दिन माँगते रहे !किन्तु सरकारी कर्मचारी गद्दारी करते रहे !प्रधानमंत्री जी के आदेशों की अवहेलना करने वाले अधिकारी कर्मचारियों से आजतक दी गई सैलरी वापस ली जाए ताकि दोबारा कोई कर्मचारी ऐसा करने की हिम्मत न जुटा सके इसके लिए कठोर दंड का विधान किया जाए !सरकार का हर विभाग कर्तव्यभ्रष्टता गैरजिम्मेदारी घूस खोरी का शिकार है जनता के काम के लिए सैलरी लेने वाले अधिकारी कर्मचारी जनता की तो सुनते ही नहीं हैं किंतु क्या सरकार की भी नहीं सुनते हैं !आश्चर्य !!
       घूसखोर सरकारीकर्मचारी जब प्रधानमंत्री के आदेशों को नहीं मानते और घूस देने वालों की आज्ञा का पालन करते रहते हैं ऐसे लोग आम जनता का काम कैसे करते होंगे !ऐसे भ्रष्टाचारियों को आज तक दी गई  सैलरी को सरकारी धन का दुरुपयोग समझते हुए वापस लिया जाना चाहिए और सरकार के साथ धोखाधड़ी करने के आरोप में उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए !
      जो घूस देता है  काम उसी का होता है समय से होता है अच्छे ढंग से होता है अपनेपन से होता है और जो घूस नहीं देता है उसका काम न करने के लिए सरकारी कर्मचारियों के पास लाखों बहाने होते हैं सरकार के पुरखों को चुनौती होती है बिना घूस दिए उनसे काम लेकर दिखाए सरकार !
        पीएम साहब ! सरकार यदि बैंक कर्मियों को घूस देती तो न लगतीं लाइनें और न घटता कैस ! न ही किसी को मरने देते बैंक वाले !जिन्होंने जैसी घूस दी उनके वैसे काम हुए !घूस न देने वाले दो दो हजार के लिए तरसते रहे लाइनों में खड़े किंतु घूस देने वालों के करोड़ों रूपए बदलकर उनके गोदामों में समय से पहुँचाए गए जिनके कालेधन के विरुद्ध आप गरज रहे थे उनकी सेवा में लगे थे आपके अपने दुलारे पिआरे बैंक कर्मचारी !काले धन वालों ने जैसा चाहा वैसा करवाया आपके बैंक कर्मियों से और शुरू के 5-7 दिनों में निपटा दिया गया था अपनों का सारा काम !
     सरकारी नौकरी होने के कारण उन्हें सैलरी देना और बढ़ाना तो बेचारी सरकारों की मजबूरी है किंतु काम उन्हीं का होगा जो घूस देंगे !प्रधानमंत्री जी !आप अपने पद और अधिकारों की ठसक में थे कि हम जैसा चाहेंगे वैसा करा लेंगे बैंक कर्मियों से किंतु आप जनता से 50 दिनों के लिए गिड़गिड़ाते रहे किंतु उन्होंने अपने काले धन वालों का अधिकाँश काम तो शुरू के ही 5 -7 दिनों में निपटा दिया था कहीं कोई दिखा बैंकों के आगे लाइनें  लगाए हुए !
     हे मोदी जी !यदि आपने भी बैंक कर्मचारियों को घूस दी होती तो आपकी सरकार की भी वे इज्जत बचा सकते थे किंतु जब आपने उनको घूस नहीं दी तो उन्हें जिन्होंने दी उनके बड़े बड़े काम हिम्मत से उन्होंने किए !देश के प्रधानमंत्री की भ्रष्टाचार विरोधी बातें सुन सुन कर मजाक उड़ाते रहे वो लोग !और जिन्होंने उन्हें घूस दी उनके करोड़ों रूपए बदलकर उन काले धन वालों के गोदाम भरे गए !
      आम जनता तो काम न होने पर एक बार संतोष भी कर लेती है किंतु ब्यापारियों का गुजारा संतोष करने से तो होगा नहीं उन्हें तो काम करना ही पड़ेगा !बिना काम के वो  सैलरी कहाँ से देंगे कर्मचारियों को !उन्हें तो कई कई विभागों को पूजना पड़ता है !इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि चिट्ठी देने आने वाला पोस्टमैन  देकर जाता है कि अबकी महीन नहीं दिया तो तुम्हारी चिट्ठियाँ चेक बुक आदि डाक खाने के बगल में बने नाले में मिलेंगी !आने जाने वालों की मोटर साइकिलें दरवाजे पर खड़ी हो जाती हैं उसके लिए बीट वाले को सप्ताह के हिसाब से देना होता है !बैंकों संबंधी कामों के लिए मैनेजरों को तो जो जाता है वो जाता ही है बाकी कर्मचारियों को भी समझना पड़ता है जैसा गुड़ डालो वैसा मीठा होता है ! सरकारी कर्मचारियों की कम्प्यूटर के की बोर्ड पर थिरकती अँगुलियों से पता लग जाता है कि ये काम सरकारी सैलरी से हो रहा है या घूस से ! सरकारी विभागों में देने के लिए तो में कैसे होगा जनता का जरूरी काम काज !व्यापारियों को इसके लिए तो रखना ही पड़ेगा कालाधन !घूस के चलन को रोका तो जा नहीं सकता ब्यापारियों की मज़बूरी होती है ।
       घूस दिए बिना कैसे कोई करवा लेगा सरकारी कर्मचारियों से अपना काम!उन्हें किसी और से घूस लेकर क्यों बदलने पड़ते उनके पुराने नोट !सरकारों में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी ईमानदार हों तो अच्छी सरकार और भ्रष्ट हों तो भ्रष्टाचार !वस्तुतः भ्रष्टाचार तो सरकार के अपने परिवार का निजी मामला है इसके लिए जनता में क्यों मचा है हाहाकार !
             नोटबंदी अभियान में तो सरकार को भी भुगतना ही पड़ा है घूस न देने का दंड !जिन्होंने घूस दी उनका करोड़ों का कैस बदलकर उनके गोदामों में पहुँचाया और जो मोदी जी की बातों के भरोसे रहे घूस नहीं दी वो लाइनों में खड़े खड़े मर गए भूखे प्यासे !जिन्होंने घूस दी उनके रात बिरात भी काम हुए !  मोदी जी !घूस लिए बिना बैंक वालों ने जब आपका काम नहीं किया तो ये जनता का काम क्या करते होंगे वहाँ तो खाना पूर्ति ही होती है !

Sunday, 25 December 2016

अधिकारी कोपभवनों से बाहर निकलें और सरकार को सहारा दें ! गरीबों ग्रामीणों को भी दें अपनेपन का एहसास !

  आफिसों में अधिकारियों के लिए बना दिए गए हैं कोप भवन!जिनमें बैठे बेचारे अकेले कुढ़ रहे होते हैं वे !
  सरकारी आफिसों में अधिकारियों को हमेंशा निभाते रहनी पड़ती है एक क्रोधी पुरुष या स्त्री की भूमिका !जूनियर लोग उन्हें क्रोधी और घूसखोर सिद्ध कर करके आम जनता से किया करते हैं वसूली!जनता और अधिकारियों को सीधे एक दूसरे से मिलने ही नहीं देते हैं ! 
  इसीलिए जनता अधिकारियों से निराश हो चुकी है जनता के लिए यह समझ पाना कठिन ही नहीं अपितु बिलकुल असंभव सा लगने लगा है कि इस लोकतंत्र में जनता के सुख दुःख में सहभागिता की दृष्टि से अधिकारियों की कोई भूमिका है भी या नहीं !क्योंकि आम जनता किसी भी  संबंधित  संकट से कैसे भी जूझ रही हो किंतु उसे ढाढस बँधाने कोई अधिकारी नहीं आता है कहीं कोई घटना घट जाए और अपरिहार्य कारणों से संबंधित किसी अधिकारी को वहाँ यदि जाना पड़ भी जाए तो कैदियों की पेशी की तरह कुछ लोगों के घेरे में आते हैं अधिकारी महोदय !और उसी घेरे में सम्मिलित लोगों से बात करके लौट जाते हैं आम जनता तो उनकी गाड़ी के पहियों से उड़ी धूल ही देख पाती है जिसके लिए वहाँ वे आए होते हैं ।
        शिक्षा से जुड़े अधिकारी स्कूलों में झाँकने आएँगे ही नहीं इसी सबसे बड़े भरोसे के बलपर तो शिक्षक  शिक्षिकाएँ स्कूल टाइम में ही निपटाया करते हैं अपनी घर गृहस्थी नाते रिस्तेदारों के जरूरी काम काज !मोबाईल पर बातें करते रहना, गेम  खेलना, मूवी देखना, स्वेटर बुनना ,कुछ खरीदकर खाने लगना आदि सारे दोषों का परिमार्जन करने के लिए उसे अपने से सीनियर के पास पेश होकर थोड़ी देर दुम हिलानी होती है बश !किंतु क्या इससे शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति हो जाती है क्या ! किंतु जिन विभागों के अधिकारी इतने लापरवाह हों उनके कर्मचारी आखिर क्यों करें काम !अपने अधिकारियों से ही तो वो भी सीखेंगे !जिस स्त्री का पति ही अँधा हो वो किसे दिखाने के लिए श्रृंगार करे !ऐसे ही लापरवाह अधिकारियों के आधीन रहने वाले ईमानदार कर्मचारी भी अपनी योग्यता का परिचय किसे दें !
   सरकारी स्कूलों अस्पतालों आदि की भद्द पिटने  मतलब अधिकारियों की गैर जिम्मेदारी और अकर्मण्यता का आनंद ले रहे हैं शिक्षक चिकित्सक आदि !सरकार के प्रायः सभी विभागों में भूमिका विहीन लगने लगे हैं अधिकारी !जनता से सीधे तौर पर जुड़ी  समस्याओं से संबंधित किसी अधिकारी को आफिस के किसी एक कमरे में सजाकर बैठा देने से जनता का भला आखिर कैसे हो जाता है !जो जनता के काम न आ सके उसका योगदान क्या है !
    जलबोर्ड के अधिकारियों को पाइपलाइनों की जानकारी नहीं होती, टेलीफोन विभाग के अधिकारियों को केबल का पता नहीं होता, कृषि अधिकारी कृषि कार्यों से अपरिचित होते हैं ऐसे ही सभी विभागों का हाल है अपने अपने विभागों से जुड़े जूनियर कर्मचारियों से पूछ पूछ कर ज्ञानबर्द्धन करने वाले अधिकारियों से अच्छे काम काज की अपेक्षा कैसे की जाए !ऐसे अयोग्य डिग्री धारी लोग अपने से जूनियर कर्मचारियों को कैसे कुछ सिखा  सकेंगे किस मुख से काम करने का दबाव डाल सकेंगे !पानी में घुस कर खुद तैरना सीखे बिना किसी और को तैरना कैसे सिखाया जा सकता है !
        सफाई  कर्मियों की नौकरी के लिए बड़े बड़े शिक्षित बच्चों ने फार्म भरे उनका टेस्ट लेने के लिए उन्हें एक नाले में उतार दिया गया सफाई करने के लिए वो तो बेरोजगारी के कारण अपनी जिंदगी की परवाह किए बगैर उतर गए नाले में और सफाई करने लगे किंतु यदि उनका टेस्ट लेने वाले अधिकारी को उसी प्रकार से नाले में उतार दिया जाता सफाई करने के लिए तो क्या वो पास कर लेते ऐसा टेस्ट !यदि नहीं तो वो अधिकारी किस बात के !जिस काम को वो स्वयं नहीं कर सकते उसकी परीक्षा लेने के लिए ऐसे लोगों को नियुक्त किया जाना कितना न्यायोचित माना जाना चाहिए ! ऐसे अधिकारियों को परीक्षा लेना ही यदि आता होता तो इतना तो वो भी समझ सकते थे कि सबों ने मिलकर नाला यदि साफ कर भी दिया तो फेल पास करने का पारदर्शी मानक क्या होगा और उन्हें सफल या असफल कैसे घोषित किया जाएगा !
      अधिकारी अपने विभागों से जुड़े काम काज को अपनी आखों से देखना और अपने दिमाग से समझना कब का छोड़ चुके हैं जिन घूसखोर कर्मचारियों से प्रताड़ित होकर जनता अधिकारियों की शरण में सहायता के लिए मदद माँगने जाती है उन्हीं घूसखोरों को अधिकारी  भेज देते हैं उस मामले की जाँच करने को !अंततः जनता को  उन्हीं घूसखोरों से हाथ पैर जोड़ने पड़ते हैं और उन्हीं से माँगनी पड़ती है दया की भीख ! उन्हीं से समझौता करना पड़ता है !उनके कथानुसार पहले की अपेक्षा अब डबल घूस देनी पड़ती है क्योंकि अब अधिकारी का हिस्सा भी सम्मिलित हो चुका होता है !अधिकारी के यहाँ कम्प्लेन करने से पहले की अपेक्षा कम से कम डबल तो देनी ही पड़ती है घूस ! ऐसे में ईमानदार अधिकारियों को जनता कैसे पहचाने !
     अपने जूनियर से अपने मन की बातें करने से स्तर न घट जाने का भय और अपने से सीनियर से संबंध सुधारने की बड़ी बीमारी से ग्रस्त ऐसे लोगों के पास आने वाले फोन भी सुख शांति प्रदान करने वाले कहाँ और कितने होते हैं !
     कुल मिलाकर भारत के  भ्रष्टाचार से कोई एक अकेला आदमी कहाँ तक जूझेगा !इसलिए उचित होगा कि ईमानदार अधिकारी कर्मचारी खानापूर्ति  छोड़कर अपनी ईमानदार भूमिका निभाएँ और भ्रष्टाचार मुक्ति महा अभियान के सक्रिय सिपाही बनें ! देशवासी उन्हें देंगे अपार स्नेह ,सम्मान और आनंद देंगे !एक बार गरीबों ग्रामीणों से अधिकारी बन कर नहीं अपनेपन से मिलें तो सही !उनकी समस्याएँ सुन सुन कर जीना सीख जाएँगे अधिकार मूर्च्छित बड़े बड़े घमंडी लोग भी !
      यह उनके लिए चिकित्सा की दृष्टि से भी काफी लाभ प्रिय होगा ! गरीबों ग्रामीणों से सहज बात ब्यवहार रखने वाले बड़े बड़े लोग अधिकारी कभी मानसिक तनाव के रोगी नहीं हो सकते !वैसे भी कोई काम करने के बोझ से कभी नहीं थकता अपितु काम न करने वाले या घूसखोर अधिकारियों की आत्माएँ छोड़ती जा रही  हैं उनका साथ !जो एकांत में अपनी आत्मा का सामना नहीं कर सकते !वो बिना काम किए ही हमेंशा हैरान परेशान थके थके बोझिल से बने रहते हैं !सोने पर सोने का आनंद नहीं खाने पर भोजन का स्वाद नहीं !किसी से मिलने पर मन नहीं खोल पाते तो मिलने का मजा और मस्ती कहाँ है !
    अधिकारी होने के कारण अपने से छोटों से बात करने में स्तर घटता हैं अपने से बड़ों से बात करना  चाहते हैं किंतु वे घास नहीं डालते ! विधायक सांसद मंत्री आदि बनने वाले नेता लोग प्रायः अशिक्षित या अल्पशिक्षित होने के कारण उठने बैठने बोलने के  शिष्टाचार से बंचित होते हैं उन्हें सुशिक्षित अधिकारियों का अपमान करने में आनंद आता है उनसे बात करके अधिकारी कभी खुश नहीं रह सकते !उनके काम करके उन्हें कभी संतुष्ट नहीं कर सकते !ऐसे लोगों के पास अधिकारियों को केवल तनाव ही मिलने की संभावना रहती है उनका विधायकपन,सांसदपन ,मंत्रीपन हमेंशा अधिकारियों के अधिकारीपन पर भारी ही पड़ता  रहता है ! 
     ऐसे असभ्य राजनैतिक वातावरण में सुशिक्षित अधिकारी कहाँ और कैसे खुश रह सकते हैं ऐसे में उन्हें चाहिए गरीबों ग्रामीणों के सहज सदाचरण से आत्मिक ऊर्जा और आध्यत्मिक आशीर्वाद जो हर परिस्थिति में मनोबल उठाए रखेगा !वैसे भी आध्यात्मिक ऊर्जावान मनोबल संपन्न लोग सरकारों से क्या यमराज से भी नहीं डरते तो उन्हें मानसिक तनाव से कभी नहीं जूझना पड़ता !
 


     


Saturday, 24 December 2016

प्रधानमंत्री जी ! घूस लेने वाले सरकारी कुकर्मचारी तो एटीएम,पेटीएम मानेंगे नहीं वो तो कैस में ही माँगेंगे घूस !उनसे कैसे निपटा जाएगा !

 जो सरकारी कर्मचारी घूस न मिलने के कारण देश के साक्षात प्रधानमंत्री जी की बातों को नहीं मानते हैं वो घूस न देने वाली जनता के साथ कैसा सलूक करते होंगे !
       हे मोदी जी !  घूस तो कैस में ही चलती रही है इसके बिना सरकारी विभागों से काम लेना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है । समय से काम लेना है तब तो अत्यंत आवश्यक है घूस का आदान प्रदान !
     महोदय ! सरकारी कर्मचारियों की दृष्टि से यदि  सैलरी और घूस देने वालों की यदि तुलना की जाए तो सैलरी देने वाली सरकार हार जाती है और घूस देकर काम कराने वाले जीत जाते हैं !सरकार ने कालेधन वालों के विरुद्ध कठोर कदम उठाने के प्रकट आदेश दिए दूसरी ओर कालेधन वालों ने सरकारी आदेश को ठेंगा दिखाने का अघोषित आदेश जारी किया !सरकारी कर्मचारियों ने सुनी किसकी सरकार की या कालेधन वालों की !सरकार के अपने कर्मचारियों ने सैलरी देने वाली अपनी सरकार पर उतना भरोसा नहीं किया जितना घूस देकर काले धन को सफेद करवाने वालों पर किया !कालेधन वाले लोगों के गोदामों में समय से पहुँचा दिए गए करोड़ों की संख्या में बदल बदल कर नए नोट !कोई काले धन वाला नहीं देखा गया कहीं लाइनों में लगते और सबसे पहले भरे गए उनके गोदाम !श्रीमान जी !ये है घूस का कमाल !
       आधी आधी रात से लाइनों में भूखे प्यासे खड़े लोगों को दिखा दिखा कर लंच करते रहते हैं सरकारी कर्मचारी । लाइनों में लगी जनता यह देख देख कर दम तोड़ती रहती है !उसे लगता था कि ये तो दस बजे घर से खाकर चले होंगे इन्हें फिर भूख लग गई इनके लंच की चिंता सरकार को है और हमारी ! 
         नोटबंदी अभियान में तो सरकार को भी भुगतना ही पड़ा है घूस न देने का दंड !जिन्होंने घूस दी उनका करोड़ों का कैस बदलकर उनके गोदामों में पहुँचाया और जो मोदी जी की बातों के भरोसे रहे घूस नहीं दी वो लाइनों में खड़े खड़े मर गए भूखे प्यासे !जिन्होंने घूस दी उनके रात बिरात भी काम हुए !  मोदी जी !घूस लिए बिना बैंक वालों ने जब आपका काम नहीं किया तो ये जनता का काम क्या करते होंगे वहाँ तो खाना पूर्ति ही होती है !        
      प्रधानमंत्री जी के द्वारा देश हित में लिए गए फैसले को सबसे अधिक सहयोग और सम्मान सरकारी जिन कर्मचारियों के द्वारा सरकारी विभागों से मिलना चाहिए था वहाँ वैसा नहीं हुआ !गैर क़ानूनी रूप से नए नोटों का जहाँ जितना जो भी भंडार  मिला है या भविष्य में कहीं मिलेगा वो किसी न किसी सरकारी कर्मचारी की सरकार और सरकार भक्त जनता के साथ की गई गद्दारी के ज्वलंत सबूत हैं !
          हे प्रधानमंत्री जी !कभी सरकारी विभागों में जाकर देखिए किंतु जाए कौन और देखे कौन !सरकारों में सम्मिलित नेता लोग तो केवल आदेश देने के लिए होते हैं वो तो सत्ता के नशे में इतना अधिक चूर होते हैं कि उन्हें लगता है जो मैंने कह दिया वो हो गया किंतु सरकारी आदेशों को कैसे ठेंगा दिखाते हैं सरकारी कर्मचारी ये जनता तो भोगती ही थी किंतु नोटबंदी अभियान में सरकार ने भी भोग ही लिया है फिर भी सरकार में सम्मिलित लोगों की आँखें न खुलें तो इसे उनके किसी पूर्व जन्म का कर्म भोग ही माना जाना चाहिए !
     महोदय !देश में जबतक घूस लेने वालों का वर्चस्व रहेगा तब तक प्रायः ईमानदार राजनेता यदि सत्ता में आ भी जाएँ और वो ईमानदारी पूर्वक भ्रष्टाचार मिटाना भी चाहें तो उन्हें कई प्रकार के भयों को सहने के लिए हमेंशा तैयार रहना पड़ता है सबसे पहली बात सरकारी कर्मचारियों की जो सरकार के सामने तो हाँ हाँ कितना भी करें किंतु सरकार का और सरकार की योजनाओं का साथ  वे प्रायः बहुत कम देते हैं । वो या तो घूस देने वालों का साथ देते हैं या फिर जिस सरकार के समय उनकी नौकरी लगी होती है उन नेताओं की इच्छा के अनुरूप बर्ताव कर रहे होते हैं । बाकी सरकारी आदेशों को ठेंगा दिखाया करते हैं ये ! जनता सरकारी आदेशों पर जरूर भरोसा करती है वो भूखी प्यासी डटी रहती है सरकारी आदेशों के साथ !
     महोदय !घूस दिए बिना सरकारी विभागों से काम करवाने का मतलब लोहे के चने चबाना होता है वो भी समय से !घूस न देने का मतलब या तो काम होगा नहीं या आधा अधूरा होगा या बहुत लेट होगा या बहुत अपमानित करके किया जाएगा वो काम !
         व्यापार करने वालों को समय से संपूर्ण काम सम्मान पूर्वक अपनी इच्छा के अनुसार करवाना होता है इसलिए उन्हें सरकार के उन सभी विभागों को घूस देनी पड़ती है जिनसे जिनसे उनका काम पड़ता रहता है इसलिए उन्हें रखना पड़ता है कालाधन !और तो और पोस्टमैन तक का महीना बँधा होता है अन्यथा चेक बुक दरवाजे पर फटी पड़ी मिलेगी अगले दिन !ऐसी ही हरकतों के कारण सरकारी विभागों को दलालों का अड्डा एवं सरकारी कर्मचारियों को भिखारी या अपना नौकर समझते हैं बड़े बड़े व्यापारी लोग !
          प्रधानमंत्री जी !आप अपने को प्रधानमंत्री समझें भले किंतु सरकारी कर्मचारियों के प्रधानमंत्री तो वही हैं जो उन्हें घूस देते हैं सैलरी देने वाले प्रधानमंत्री को कौन पूछता है सैलरी देना तो सरकार की मज़बूरी है वो तो कैसे भी ले लेंगे !कानून उनके साथ है । कुछ लोग तो मानते हैं कि नौकरी पाने के लिए हमने जो घूस दी थी सैलरी के रूप  वही वसूल रहे हैं हम !इसमें पाप क्या है ।
   प्रधानमंत्री जी ! भारत सरकार भी अपने सरकारी कर्मचारियों से काम लेने के लिए घूस देगी क्या ?यदि नहीं देगी तो उनसे काम करा लेगी क्या ?सरकारी कर्मचारियों को जो घूस देगा वो उसका तो काम करेंगे  सैलरी कितनी भी मिले वो देनी तो सरकार की मज़बूरी है किंतु घूस जरूरी है !
   भारत सरकार ने घूस नहीं दी  तो उन्होंने काम भी कितना और कैसे किया क्या  दुनियाँ जानती नहीं है !
     देश के प्रधानमंत्री जी नोटबंदी अभियान में देश वासियों से 50 दिन माँगते रहे !किन्तु सरकारी कर्मचारी गद्दारी करते रहे !प्रधानमंत्री जी के आदेशों की अवहेलना करने वाले अधिकारी कर्मचारियों से आजतक दी गई सैलरी वापस ली जाए ताकि दोबारा कोई कर्मचारी ऐसा करने की हिम्मत न जुटा सके इसके लिए कठोर दंड का विधान किया जाए !सरकार का हर विभाग कर्तव्यभ्रष्टता गैरजिम्मेदारी घूस खोरी का शिकार है जनता के काम के लिए सैलरी लेने वाले अधिकारी कर्मचारी जनता की तो सुनते ही नहीं हैं किंतु क्या सरकार की भी नहीं सुनते हैं !आश्चर्य !!
       घूसखोर सरकारीकर्मचारी जब प्रधानमंत्री के आदेशों को नहीं मानते और घूस देने वालों की आज्ञा का पालन करते रहते हैं ऐसे लोग आम जनता का काम कैसे करते होंगे !ऐसे भ्रष्टाचारियों को आज तक दी गई  सैलरी को सरकारी धन का दुरुपयोग समझते हुए वापस लिया जाना चाहिए और सरकार के साथ धोखाधड़ी करने के आरोप में उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए !
      जो घूस देता है  काम उसी का होता है समय से होता है अच्छे ढंग से होता है अपनेपन से होता है और जो घूस नहीं देता है उसका काम न करने के लिए सरकारी कर्मचारियों के पास लाखों बहाने होते हैं सरकार के पुरखों को चुनौती होती है बिना घूस दिए उनसे काम लेकर दिखाए सरकार !
        पीएम साहब ! सरकार यदि बैंक कर्मियों को घूस देती तो न लगतीं लाइनें और न घटता कैस ! न ही किसी को मरने देते बैंक वाले !जिन्होंने जैसी घूस दी उनके वैसे काम हुए !घूस न देने वाले दो दो हजार के लिए तरसते रहे लाइनों में खड़े किंतु घूस देने वालों के करोड़ों रूपए बदलकर उनके गोदामों में समय से पहुँचाए गए जिनके कालेधन के विरुद्ध आप गरज रहे थे उनकी सेवा में लगे थे आपके अपने दुलारे पिआरे बैंक कर्मचारी !काले धन वालों ने जैसा चाहा वैसा करवाया आपके बैंक कर्मियों से और शुरू के 5-7 दिनों में निपटा दिया गया था अपनों का सारा काम !
     सरकारी नौकरी होने के कारण उन्हें सैलरी देना और बढ़ाना तो बेचारी सरकारों की मजबूरी है किंतु काम उन्हीं का होगा जो घूस देंगे !प्रधानमंत्री जी !आप अपने पद और अधिकारों की ठसक में थे कि हम जैसा चाहेंगे वैसा करा लेंगे बैंक कर्मियों से किंतु आप जनता से 50 दिनों के लिए गिड़गिड़ाते रहे किंतु उन्होंने अपने काले धन वालों का अधिकाँश काम तो शुरू के ही 5 -7 दिनों में निपटा दिया था कहीं कोई दिखा बैंकों के आगे लाइनें  लगाए हुए !
     हे मोदी जी !यदि आपने भी बैंक कर्मचारियों को घूस दी होती तो आपकी सरकार की भी वे इज्जत बचा सकते थे किंतु जब आपने उनको घूस नहीं दी तो उन्हें जिन्होंने दी उनके बड़े बड़े काम हिम्मत से उन्होंने किए !देश के प्रधानमंत्री की भ्रष्टाचार विरोधी बातें सुन सुन कर मजाक उड़ाते रहे वो लोग !और जिन्होंने उन्हें घूस दी उनके करोड़ों रूपए बदलकर उन काले धन वालों के गोदाम भरे गए !
      आम जनता तो काम न होने पर एक बार संतोष भी कर लेती है किंतु ब्यापारियों का गुजारा संतोष करने से तो होगा नहीं उन्हें तो काम करना ही पड़ेगा !बिना काम के वो  सैलरी कहाँ से देंगे कर्मचारियों को !उन्हें तो कई कई विभागों को पूजना पड़ता है !इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि चिट्ठी देने आने वाला पोस्टमैन  देकर जाता है कि अबकी महीन नहीं दिया तो तुम्हारी चिट्ठियाँ चेक बुक आदि डाक खाने के बगल में बने नाले में मिलेंगी !आने जाने वालों की मोटर साइकिलें दरवाजे पर खड़ी हो जाती हैं उसके लिए बीट वाले को सप्ताह के हिसाब से देना होता है !बैंकों संबंधी कामों के लिए मैनेजरों को तो जो जाता है वो जाता ही है बाकी कर्मचारियों को भी समझना पड़ता है जैसा गुड़ डालो वैसा मीठा होता है ! सरकारी कर्मचारियों की कम्प्यूटर के की बोर्ड पर थिरकती अँगुलियों से पता लग जाता है कि ये काम सरकारी सैलरी से हो रहा है या घूस से ! सरकारी विभागों में देने के लिए तो में कैसे होगा जनता का जरूरी काम काज !व्यापारियों को इसके लिए तो रखना ही पड़ेगा कालाधन !घूस के चलन को रोका तो जा नहीं सकता ब्यापारियों की मज़बूरी होती है ।
       घूस दिए बिना कैसे कोई करवा लेगा सरकारी कर्मचारियों से अपना काम!उन्हें किसी और से घूस लेकर क्यों बदलने पड़ते उनके पुराने नोट !सरकारों में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी ईमानदार हों तो अच्छी सरकार और भ्रष्ट हों तो भ्रष्टाचार !वस्तुतः भ्रष्टाचार तो सरकार के अपने परिवार का निजी मामला है इसके लिए जनता में क्यों मचा है हाहाकार !
             नोटबंदी अभियान में तो सरकार को भी भुगतना ही पड़ा है घूस न देने का दंड !जिन्होंने घूस दी उनका करोड़ों का कैस बदलकर उनके गोदामों में पहुँचाया और जो मोदी जी की बातों के भरोसे रहे घूस नहीं दी वो लाइनों में खड़े खड़े मर गए भूखे प्यासे !जिन्होंने घूस दी उनके रात बिरात भी काम हुए !  मोदी जी !घूस लिए बिना बैंक वालों ने जब आपका काम नहीं किया तो ये जनता का काम क्या करते होंगे वहाँ तो खाना पूर्ति ही होती है !

बाल ब्रह्मचारियों

बाल ब्रह्मचारियों के बच्चे ,संन्यासियों की संपत्तियाँ ,नेताओं की अनैतिकता एवं सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से देश में मचा है हाहाकार !इसे ठीक करने के लिए नोट बंद कर रही है सरकार !समस्या कहीं है मलहम कहीं लगाया जा रहा है किंतु ख़ुशी इस बात की है कि भ्रष्टाचार की ओर मोदी जी का ध्यान तो गया बाकी भ्रष्टाचार के विरोध के बड़े बड़े नारे लगाते राजनीति में लोग आए भ्रष्टाचारी नेताओं की बड़ी बड़ी फाइलें जनता को दिखाते रहे बड़े बड़े नेताओं को जेल भेजने की कहानियाँ गढ़ते रहे किंतु सरकारों में आते ही ऐसे बदतमीजों के चेहरे चमक गए गाल लाल होगे खाँसी ठीक हो गई गले की गोली निकलवा ली अब दाँत ठीक करवाने का बजट पास हो रहा है किंतु न किसी नेता की फाइलें खुलीं और न ही कोई जेल ही भेजा गया !अब ऐसे राजनैतिक लुटेरे कई राज्यों के चुनावों में हाथ पैर मारने लगे हैं

Friday, 23 December 2016

अखिलेश सरकार ने छीने 17 जातियों के स्वाभिमान पूर्वक जीने के अधिकार !

दलितों की संख्या बढ़ाने को अखिलेश सरकार की उपलब्धि माना जाए या उसका निकम्मापन ?दलितों का विकास करके दलितों की संख्या घटाने की जरूरत है तब दलितों की संख्या बढ़ाते जा रहे हैं अखिलेश !
    किसी का विकास करने के लिए उस वर्ग को सरकारी भिखारी घोषित करना जरूरी है क्या ?दलित कहे बिना किसी की तरक्की क्यों नहीं की जा सकती है ?जिस दलित शब्द के अर्थ टुकड़े -टुकड़े, छिन्न -भिन्न, नष्ट- भ्रष्ट, विदीर्ण, कटा हुआ चिरा हुआ आदि होते हैं मनुष्यों के किसी भी वर्ग को ऐसे अशुभ सूचक 'दलित' शब्द से संबोधित करना उनका अपमान नहीं है क्या ?
    मनुस्मृति के आधार पर चुनाव लड़ने वाले ये पाखंडी नेता लोग जाति विहीन समाज बनाने के नारे लगाते हैं किंतु जातियों का सहारा लिए बिना एक कदम आगे नहीं बढ़ते हैं!इसमें महर्षि मनु का दोष क्या है ?
   ये पाखंडी नेता लोग जातियाँ बनाने के लिए महान जातिवैज्ञानिक उन महर्षि मनु की निंदा करते नहीं थकते हैं जिन्होंने करोड़ों बर्ष पहले हमारे पुरखों के चेहरे पढ़कर सारे समाज को जातिश्रेणियों में बाँट दिया था जिन श्रेणियों को हम लोग आरक्षण जैसे क्षुद्र प्रयासों से भी आज तक झुठला नहीं सके हैं !
    महर्षि के द्वारा लाखों वर्ष पहले जातियों के आधार पर किया गया पूर्वानुमान आज भी उसी प्रकार से सही घटित होता दिखाई दे रहा है जातियों के उस वर्गीकरण को आज तक झुठलाया नहीं जा सका है ।महर्षि मनु ने मुख्य रूप से दो वर्ग बनाए थे एक सवर्ण दूसरा  असवर्ण !जो स्वाभिमानी संघर्षप्रिय अपनेबल पर अपनी उन्नति करने वाला वर्ग है उसे सवर्ण एवं शासकों के आश्वासनों पर जिंदगी ढोने वाला स्वाभिमान विहीन वर्ग असवर्ण मान लिया गया था !
     महान जातिवैज्ञानिक उन महर्षि मनु का मानना था कि कुछ जातियाँ अपना एवं अपने परिवारों  का स्वाभिमान बनाने और बढ़ाने के लिए संघर्ष स्वयं करेंगी ,खुद जूझ कर अपने अंदर वो योग्यता पैदा करेंगी जिसके बलपर तरक्की के शिखरों को वे स्वयं चूम लेंगी अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए ये सवर्ण लोग  केवल अपने पुरुषार्थ का सहारा लेंगे ।शासकों की कृपा के बल पर पशुओं की तरह पेट भरने से पहले ऐसी जातियों के स्वाभिमानी लोग मरना पसंद करेंगे !इन सवर्ण जातियों के लोगों में शासकों से काम लेने की योग्यता होगी ये शासकों के सामने भिखारी बनकर गिड़गिड़ा नहीं सकते और न ही लालच देने वाले निकम्मे शासकों को पसंद ही करेंगे ऐसे पापीशिखंडियों को तो अपने दरवाजों से दुदकार कर दूर भगा देने का इनमें साहस होगा !
    वैसे भी मक्कारशासकों में इतना शौर्य कहाँ पाया जाता है जो ऐसी स्वाभिमानी जातियों के सामने आरक्षण जैसा कोई प्रस्ताव लेकर फटकने भी पाएँ !ऐसी जीवंत जातियों के लोगों को आरक्षण जैसी भीख देने की बात तो छोड़िए पाखंडी पापी शासक इनसे कभी आँख मिलाकर बात करने का साहस नहीं कर सकेंगे !ऐसे स्वाभिमानी पौरुष पसंद  लोगों को सवर्ण जातियों में रखा गया !
      उन्हीं महान जातिवैज्ञानिक महर्षि मनु का  ये भी मानना था कि कुछ जातियों के लोग अपने जीवन को जीवन्त बनाने के लिए स्वयं कोई प्रयास नहीं करेंगे और न ही इनका कोई अपना लक्ष्य ही होगा !लक्ष्य तो हमेंशा वो लोग बनाते हैं जिन्हें कुछ करना होता है जिन्हें कुछ करना ही न हो वो लक्ष्य बनाने में ही दिमाग क्यों खपाएँगे !जिन्हें खुद कुछ करना ही न हो ऐसे लोगों का स्वाभिमान कैसा ! क्योंकि किसी की कृपा से सब कुछ मिल सकता है किंतु स्वाभिमान नहीं ! 
    ऐसी जातियों के लोग केवल पेट भरने के लिए अपना अच्छा खासा जीवन ढोते रहते हैं ! इनकी इस मनोवृत्ति को समझने वाले चतुर शासकों को ऐसे स्वाभिमान विहीन लोग बहुत पसंद हैं ऐसे लोगों की संख्या जितनी अधिक बढ़ेगी हमसे जवाब माँगने वालों की संख्या उतनी ही अधिक घटती चली जाएगी !इसलिए बदमाश शासक समय समय पर इनकी संख्या में वृद्धि किया करते हैं वे इन लोगों से कुछ न कुछ देने की बातें किया करते हैं जिससे हमेंशा लेने के लिए मुख फैलाए हाथ पसारे लोगों को अपने चंगुल में अपने बुने जाल में ही हमेंशा फँसाए रहते हैं अपने बनाए दायरे से बाहर न वे निकलने देते हैं और न ही ये निकलना ही चाहते हैं ऐसे स्वाभिमान विहीन लोगों को असवर्ण जातियों में सम्मिलित किया गया है ।
      उन्हीं असवर्णों की बेइज्जती करने के लिए ही इन चालाक नेता लोगों ने उनका नाम अपनी सुविधानुसार 'दलित' रख लिया और उन्हें 'दलित' 'दलित'' कहने लगे ! ये बदमाश नेता लोग अच्छे खासे हँसते खेलते स्वस्थ सुखी लोगों को दलितों में सम्मिलित करके ऐसा लगता है कि जैसे उन्हें कोई पुरस्कार दे दिया हो किंतु इतनी गन्दी संज्ञा से मनुष्यों के किसी वर्ग को संबोधित करने से बड़ी उनकी और दूसरी बेइज्जती और क्या की जा सकती है आप स्वयं देखिए क्या होता है दलित शब्द का अर्थ !पढ़िए हमारा ये लेख -
        दलित शब्द का अर्थ क्या होता है ? फिर पहचानो दलितों को !seemore....http://snvajpayee.blogspot.in/2013/01/blog-post_9467.html
    

Saturday, 17 December 2016

कालेधन की सरकारी परिभाषा ! जो धन जनता अपने पास रखे वो काला किंतु वही धन नेताओं को सौंप दे तो सफेद !

नेताओं को चंदा देने के लिए जनता को मजबूर क्यों कर रही है सरकार !
      जनता की मेहनत से कमाई हुई संपत्ति भी काली और नेताओं की हराम में हथियाई हुई संपत्ति भी  सफेद !जब तक नेताओं के इस भ्रष्टाचार और अत्याचार को जनता सहती है तभी तक बचा हुआ है लोकतंत्र ! राजनैतिकदलों को टैक्स में छूट और जनता के पैसों की लूट ? जनता का पैसा हराम का है क्या ?भ्रष्टाचार का साक्षात समुद्र हैं राजनैतिक पार्टियाँ !फिर उन पर कृपा क्यों ? राजनैतिक पार्टियों का फंड जुटाने के लिए ही क्या गढ़ी गई थी नोटबंदी की कहानी ?राजनैतिक भ्रष्टाचार ही वास्तव में असली भ्रष्टाचार है भ्रष्टाचार के इस समुद्र को सुखाए बिना न घट सकते हैं अपराध और न हो सकती है ईमानदार राजनीति !
         प्रायः सरकारी अधिकारी कर्मचारी अपना कर्तव्य भूलकर नेताओं की आज्ञा का पालन ही तो कर रहे हैं इसीलिए नेता लोग इनकी सैलरी अनाप शनाप बढ़ाए जा रहे हैं सरकारों में सम्मिलित नेताओं को उनकी तुलना में आम आदमी की आमदनी की कोई परवाह ही नहीं रहती है किंतु वो नेताओं के भ्रष्टाचार की अधिकारी कर्मचारी कहीं पोल न खोल दें इसीलिए नेता लोग लगे रहते हैं उनकी सेवा में !
          देश वासियों के बीच मजाक बनकर रह गई है राजनीति ! जनता को नोटबंदी अभियान के जाल में चारों ओर से फँसाकर फिर यह कह देना कि राजनैतिक पार्टियों को दिया जा सकता है कितना भी धन वो टैक्स मुक्त है इसका सीधा सा मतलब है नेताओं को सुख सुविधाएँ भोगने के लिए पैसे दो !राहुलगाँधी मिलने क्या गए सरकार का मूड ही बादल गया और राजनैतिक पार्टियों की टैक्स मुक्त बता दिया गया क्यों ?
      संसद चलाना  जिन नेताओं के बश का है नहीं ,जनता के किसी काम के नहीं हैं नेता लोग !फिर भी जनता इन्हें खाने के लिए पैसे दे रहने घूमने के लिए सुख सुविधाएँ दे !दिनोंदिन जनता पर बोझ होती जा रही है राजनीति ! सच्चाई तो यह है कि लोकतंत्र के नाम पर जनता की कमाई भोगने वाले नेताओं को बोझ और उनकी बातों को गाली एवं उनके कर्मों को सबसे बड़े दुष्कर्म एवं उनकी बेशर्मी को सबसे बड़ी नीचता मानने लगी है जनता !हिजड़े भी कमाकर खाते हैं भले ही वो घर घर जाकर तालियाँ ही क्यों न बजाते हों वो गर्व से कह तो सकते हैं कि हमने कहाँ से कितने रूपए कमाए हैं किंतु हमारे नेता नहीं बता सकते हैं अपनी संपत्तियों  के स्रोत !
      नेता लोग अक्सर गरीब परिवारों से आते हैं वे अक्सर अल्पशिक्षित कलाशून्य अकर्मण्य और आलसी होते हैं पैसे पैदा करने लायक उनमें प्रायः कोई गुण नहीं होता है !नौकरी मिलने लायक शिक्षा नहीं होती समय नहीं होता है मेहनत करके खाने की भावना नहीं होती है व्यापार करने के लिए न पैसे होते हैं और न ही समय !धन कमाने के लिए ये कुछ करते देखे भी नहीं जाते हैं फिर भी चुनाव जीतने के बाद करोड़ो अरबोंपति अचानक हो जाते हैं ये लोग !उसके लिए इन्हें कोई प्रयास भी नहीं करना पड़ता है ।  
     राहुलगाँधी जी यदि प्रधानमंत्री जी  से राजनैतिक पार्टियों को टैक्स मुक्त रखने के लिए मिल सकते थे तो   संसद चलाने के लिए पहले मुलाक़ात क्यों नहीं की !उनके लिए संसद चलाना जरूरी काम नहीं था क्या ?संसद चलाने के लिए नेताओं में आपसी सहमति नहीं बनी किंतु राजनैतिकदलों को दी गई टैक्स में छूट के प्रकरण में सभी करिया बरजतिया नेता लोग एक जैसी भाषा बोल रहे हैं !सभी नेताओं के नोट ऐसे होंगें सफेद इसीलिए अभी तक कोई नेता नहीं गया लाइनों में लगने !सारे काम आपसी मिली भगत से हो रहे हैं केवल संसद में जनता का काम न करने के लिए नेता लोग लड़ाई का नाटक करते हैं  !
     जनता के धन को काला बताकर उसे सुरक्षित रखने के सभी दरवाजे बंद करके अचानक यह घोषणा कर दी जाए कि राजनैतिक पार्टियों को दिया गया चंदा टैक्स मुक्त होगा इशारा साफ था अपना पैसा नेताओं को दो !राहुलगाँधी जी और प्रधानमंत्री जी की एकदिन पहले हुई मुलाक़ात के बाद यह घोषणा वो भी तब जब आपसी मतभेदों के कारण संसद न चलने दी जाती रही हो फिर अचानक मुलाक़ात क्यों ?
       देशवासियों में जिनके संबंध किसी नेता से नहीं होते हैं उन्हें तंग करने के लिए छोड़ दिए जाते हैं भ्रष्टाचारी अधिकारी कर्मचारी उनसे जो कुछ भी नोच कर लाते हैं वो मिलबाँट कर रख लेते हैं सरकारी नेता और अधिकारी कर्मचारी लोग ! इसीलिए घूस लेने वाला हर कर्मचारी कहता है कि ये पैसा ऊपर तक जाता है !ऊपर बैठे अधिकारी हों या सरकारों में सम्मिलित नेता लोग इन दोनों के सम्मिलित हुए बिना भ्रष्टाचार किया ही नहीं जा सकता !अधिकारियों को जब से नौकरी मिली है और नेता जब से चुनाव जीते हैं दोनों की तब से अब तक की संपत्तियों और संपत्ति स्रोतों का मिलान करके ईमानदारी पूर्वक देख लिया जाए तो इसी साँठ गाँठ से पैदा हुए हैं सभी प्रकार के भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचार के अपराध ! इनके सहयोग के बिना अपराध हो ही नहीं सकते हैं !
    राजनीति पर कृपा का मतलब है कि भ्रष्टाचार से लड़ने में सरकार की नियत साफ नहीं है !भ्रष्टाचार  की जड़ पर कृपा क्यों ?
     सारे पाप और अपराधों  का केंद्र तो राजनैतिक पार्टियाँ और नेता लोग ही हैं हमारी राजनीति एवं नेताओं की कार्यशैली से ही अपराधियों को ऊर्जा मिलती है । नेताओं के कृपाबल  के बिना किसी भी अपराध को अंजाम देना आसान है क्या ?किसी अपराधी के संपर्कों का अनुसन्धान किया जाए तो उसके निजी संबंध किसी न किसी नेता से प्रायः निकलेंगे !वो जितना बड़ा अपराधी होगा उतने बड़े नेता से संपर्क निकलेंगे!इसी सिद्धांत के तहत बड़े बड़े अपराधियों के संपर्क बड़े बड़े नेताओं से हो जाते हैं ! अपने कर्तव्य पालन में कोई नेता भले फेल हो जाए किंतु ऐसे लोगों के काम टाइम से ही कर के देने होते हैं ! नेता लोग राजनीति के माध्यम से जनता की सेवा कितनी कर पाते हैं कितने लोग कर पाते हैं ये बात दूसरी है ।
       आम आदमी का अपराध करना तो दूर आप थोड़ा सा कोई ऐसा काम कर भर लें जो कानून सम्मत न हो  यहाँ तक कि आप थोड़ा चबूतरा या छज्जा तक तय सीमा से आगे बढ़ा लें या और कुछ कर लें या आपकी गाड़ी के कोई कागज कम हों जिसे गैर क़ानूनी माना जा सकता हो सरकारी भिखारी आपके दरवाजे तब तक हाथ फैलाए खड़े रहेंगे जब तक आप ऊन्हें कुछ दे नहीं देते !किंतु आपकी थोड़ी भी जान पहचान राजनीति में हो तो वही सरकारी भिखारी आपके बड़े बड़े अपराधों को भी नजरंदाज करते रहेंगे !
        यही सब  कारण हैं कि नेता प्रायः सामान्य घरों से आते हैं किंतु चुनाव जीतते ही करोड़ों अरबोंपति बन जाते हैं दूसरी ओर गाँवों गरीबों ग्रामीणों की हमदर्दी और विकास के लिए बड़ी बड़ी बातें करने एवं भारी भरकम फंड पास करवाने वाले नेता खा जाते हैं जो बचता है वो सरकारी भ्रष्टाचारी अधिकारी कर्मचारी खा जाते हैं जनता तक केवल ख़बरें ही पहुँच पाती हैं वो भी सरकारी भ्रष्टाचार में मीडिया को उसका हिस्सा नहीं मिला तो मीडिया शोर मचाता है यदि उसे भी मिल गया तो भ्रष्टाचार की खबरें भी उस जनता को नहीं मिल पाती हैं जिसका भला करने के लिए के नाम पर संसाधनों की लूट की जा रही होती है । 

Friday, 16 December 2016

संसद की कार्यवाही अक्सर रोक दी जाती है क्यों ?जनता के धन का ये सदुपयोग है क्या ?

   लोकसभा के 91 घंटे 59 मिनट बर्बाद हुए ! इसके लिए दोषी कौन ? नेता क्या इतने स्वतंत्र होते हैं संसद चर्चा का मंच है तो चर्चा होनी ही चाहिए किंतु हो कैसे! 
        राजनैतिकदलों में चर्चा करने समझने तथा अपनी बात कहने और दूसरों के विचार सहने योग्य विचारवान कई लोग राजनैतिक दलों में किन्नरों जैसा उपेक्षित जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिए गए हैं हैं वे शिक्षित समझदार अनुभवी एवं जीवंत नेता लोग हैं !किंतु वे अपने इमानधर्म को भी महत्त्व देना चाहते हैं वे अपनी आत्मा की आवाज भी सुनना चाहते हैं इसलिए उनकी उपेक्षा करके राजनैतिक दलों के मालिकों की पहली पसंद होते हैं नेताओं की बीबी बहन बेटियाँ बच्चे एवं नाते रिस्तेदार आदि दूसरी पसंद होते हैं पैसे वाले वे लोग जो पार्टी के मालिक की जेब भर सकते हैं तीसरी पसंद होते हैं पार्टी मालिकों के इशारे पर सदनों में हुल्लड़ मचाने वाले लोग !चर्चा करने की योग्यता रखने वाले लोगों को पसंद कौन करता है उन्हें चुनावी टिकट या पार्टी का पदाधिकार देना कौन चाहता है पार्टी के पदों और चुनावी प्रत्याशियों के रूप में तो अपने और अपनों को ही देखना चाहते हैं नेता लोग !
     संसद चर्चा का मंच है किंतु अशिक्षा अल्पशिक्षा  अयोग्यता या अनुभव हीनता के कारण जो सदस्य लोग उस चर्चा में चाह कर भी भाग न ले पा रहे हों वे सदन में शांत कब तक बैठे रहें वे  कुर्सी छोड़कर समय पास करने बाहर निकल जाएँ ! या कुर्सी पर बैठे बैठे सोवें या मोबाईल फोन में वीडियो देखें या अपनी पार्टी के मालिक का इशारा पाकर तब तक हुल्लड़ मचाते रहें जब तक मालिक चुप रहने को न कहे आखिर वे क्या करें !सदन की सार गर्भित चर्चाओं में जो बोलने और समझने की योग्यता न रखते हों सदनों की कार्यवाही न चलने के लिए वे कितने दोषी माने जाएँ उनमें जितनी योग्यता है उससे अधिक अपेक्षा उनसे कैसे की जा सकती है और चाह कर भी उस पर वे खरे कैसे उतरें !
     
अयोग्य लोग सदनों में जाकर वहाँ की कार्यवाही रोक ही सकते हैं चलाना तो उनके बश का होता नहीं है कार्यवाही चलाने अर्थात चर्चा के लिए जो शिक्षा समझ अनुभव चाहिए वो उनके पास होता नहीं है और दूसरों के अच्छे विचारों को मानने एवं अपने विचारों को विनम्रता पूर्वक औरों को मना लेने की प्रतिभा नहीं होती है वो बेचारे ज्ञानदुर्बल लोग चर्चा कैसे करें !सदनों में चर्चा करना आसान होता है क्या ?
       जिस राजनीति में शिक्षा की अनिवार्यता न हो समझ सदाचरण एवं अनुभव का महत्त्व ही न हो केवल अपनों को या पैसे वालों को या प्रसिद्ध लोगों को पद प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकट बाँटे जाने लगे हों वो संसद में आवें या न आवें ! चर्चा करने और समझने की योग्यता रखते हों या न रखते हों वो कुर्सियों पर बैठ के सोवें या समय पास करने के लिए बाहर चले जाएँ या संसद की कार्यवाही के समय ही अपने मोबाईल पर वीडियो देखने लगें या अपने पार्टी मालिकों का आदेश पाकर हुल्लड़ मचाने लगें !किंतु संसद में चर्चा करने और समझने की योग्यता यदि उनमें नहीं है तो वो संसद कीsee more.... http://samayvigyan.blogspot.in/2016/12/blog-post.html

Monday, 12 December 2016

बाबाओं का धन 'काला' होता है या 'गोरा' ? बाबाओं की छलाँग लगाती संपत्तियों के स्रोत भी तो सार्वजनिक किए जाएँ !

    प्रायः बाबा लोग भी सामान्य परिवारों में ही पले बढ़े होते हैं  दस बीस वर्षों में सैकड़ों करोड़ की संपत्तियाँ ईमानदारी पूर्वक बना लेना आम आदमी के बश की बात नहीं होती है फिर बाबा लोग ईमानदारी पूर्वक ऐसा कैसे कर लेते हैं उनके आयस्रोत खोजे और सार्वजनिक किए जाएँ जनता भी उनसे सीखेगी धन इकठ्ठा करने का चमत्कार !जनता भी बनेगी बाबा और वो भी जाएगी हरिद्वार !
      चोर लोग  शोर मचाते ही हैं 'चोर चोर 'कह कर उन्हें चिल्लाते हुए अक्सर लोगों ने सुना ही होगा ! वही यहाँ होता है जब कोई बाबा कालाधन बहुत अधिक मात्रा में इकठ्ठा कर लेता है तब वो भी कालाधन कालाधन चिल्लाने और राजनीति की ओर भागने लगता है नेताओं से संपर्क साधने लगता है सरकार से सिक्योरिटी माँगने लगता है !ये सब उसके कालाधन की घबराहट के ही प्रतीक होते हैं ।

     जो चरित्रवान साधक विरक्त साधूसंत होते हैं वे सरकारी सिक्योरिटी के भरोसे सुरक्षित रहने से अच्छा मरना पसंद करेंगे वो केवल भगवान् पर भरोसा करते हैं !ऐसे लोग नेताओं के यहाँ दुम हिलाने क्यों जाएँगे यहाँ नेता लोग खुद चिरौरी करने आया करते हैं !संत लोग झूठ क्यों बोलेंगे !संत लोग दवाएँ क्यों बेचेंगे वे तो  आशीर्वाद से ही दूर कर देते हैं बड़े बड़े रोग !
      ऐसे शास्त्रीय साधू संतों एवं धार्मिक क्षेत्र से जुड़े लोगों का अपमान कराते हैं ऊटपटाँग साधनों से कालाधन इकठ्ठा करने वाले बाबा लोग !क्योंकि वास्तविक साधूसंतों जैसे विरक्त लोग धन संपत्तियों का मोह छोड़ कर ही तो व्यापार परिवार एवं नातेरिस्तेदारों आदि सारे प्रपंचों से दूर भगवान की भक्ति में समाई होती है उनकी दुनियाँ ! पर पहुँच चुके लोग फिर सांसारिक प्रपंचों में क्यों फँसना चाहेंगे !जीवनचर्या के लिए वर्तमान युग में धन की आवश्यकता उन्हें  भी होनी स्वाभाविक है जो पूर्ति उनके भक्त लोग किया करते हैं !इससे अधिक वो प्रपंच पालते ही नहीं हैं ।
    दूसरी ओर बाबागिरी की आड़ लेकर धार्मिक कार्यों या सेवाकार्यों का प्रपंच फैलाकर अपनी सुख सुविधाएँ संपत्तियाँ जुटाने वाले लालची लोग हैं जिनका धर्म कर्म से कोई संबंध ही नहीं होता दिन भर झूठ बोल बोल कर धन इकठ्ठा करने के प्रति समर्पित होते हैं ये करोड़ों अरबों का अंबार लगा लेते हैं जो धर्म के माध्यम से ईमानदारी पूर्वक इकठ्ठा कर पाना किसी के लिए भी संभव नहीं होता है ये लोग ऐसे तपस्वी भी नहीं होते हैं कि लोग आस्था पूर्वक इन्हें दे जाते हों !दस बीस वर्षों में सैकड़ों करोड़ की संपत्तियाँ बनने के स्रोत सार्वजनिक क्यों न किए जाएँ !क्योंकि प्रायः बाबा लोग भी  परिवारों में ही पले बढ़े होते हैं ।
   बड़े बड़े राजनैतिक संपर्कों से बाबा बनकर भी कई काले कारनामों से इकठ्ठा किया जा रहा है उनके काले कारनामें भी खोले जाएँ ! भ्रष्ट बाबाओं ,नेताओं ,कर्मचारियों एवं भूमाफियाओं के कालेधन पर कब होगी कार्यवाही ?

  1000 -500 के 'नोट' की 'चोट' से  सारे देश में मचा है हाहाकार !अब तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध  लड़ने लगी है मोदी सरकार !  
     गंगानदी  भगवान के चरणों से निकलती है और भ्रष्टाचार की नदी भ्रष्टनेताओं, भ्रष्टअधिकारियों एवं भ्रष्टबाबाओं तथा भ्रष्टसरकारी कर्मचारियों के आचरणों से निकलती है !इसीलिए इनकी संपत्तियों एवं आयस्रोतों की जाँच के बिना भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए की गई सारी कसरतें बेकार हैं ।                                           हे प्रधानमंत्रीजी!सरकार केलिए सबसे बड़ीचुनौती !                                        
अब नेताओं बाबाओं अधिकारी कर्मचारियों की निजी संपत्तियों की करवाई  जाए जाँच !काले धन का बहुत बड़ा भंडारण मिलेगा इनके पास ! क्योंकि ऐसे सफेदपोश लोग देश की सरकारी जमीनों का अपने को स्वयंभू मालिक समझते हैं उन्हें कब्ज़ा करके बेच लेते हैं धंधा व्यापार फैला देते हैं सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करने के लिए ही ये लोग डाढ़ा झोटा बढ़ाकर बाबा बन जाते  हैं  आश्रम, मंदिर, योगपीठ, स्कूल, गोशाला या चैरिटेबल ट्रस्ट बनाकर  जनसेवा का नाटक करने लगते हैं !
     देश की खाली सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करने वाले अधिकाँश बाबा या नेता लोग हैं या फिर सरकारी अधिकारी कर्मचारी होते हैं इन्हीं लोगों की मल्कियत चलती है सरकारी जमीनों पर !सरकारी जमीनों को बेच बेचकर पहले तो बस्तियाँ बसा देते हैं और फिर यही सफेद पोश लोग इन बस्तियों का नियमिती करण करने के लिए आंदोलन करते हैं जैसे ही उनकी पार्टी की सरकार आती है तो उस जमीन का नियमितीकरण करवा लेते हैं फिर नई जगह कब्ज़ा करते हैं । 
    कुलमिलाकर बाबाओं  नेताओं  या सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की कृपा के बिना न कोई गुंडा बन सकता है न माफिया और न ही अपराधी !क्योंकि इन लोगों से सरकारी मशीनरी भी डरती है इनकी पहुँच सीधे प्रधानमंत्री तक होती है !इसीलिए ये सफेदपोश लोग कई बड़े बड़े अपराध अपनी बाबागिरी और नेतागिरी में छिपाए घूम रहे हैं । 
     कालेधन के इन सफेदपोश रईसों को पकड़ने  की हिम्मत करना  बड़ी बड़ी सरकारों के लिए भी होता है हिम्मत का काम !बाबाओं ,नेताओं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारियों से हर सरकार डरती है क्योंकि इनकी चोरी पकड़ने के लिए जो सरकार खड़ी होती है ये उसी की पोल खोलने लग जाते हैं भ्रष्टाचारी सरकारें अक्सर डरकर अपने कदम वापस खीँच लेती हैं इसीलिए सत्ता किसी की हो सरकार किसी की भी बने किंतु बाबाओं ,नेताओं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारियों का बोल बाला हर सरकार में रहता है !
       इसलिए हे प्रधानमंत्री जी !यदि भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध छेड़ा ही है तो भ्रष्टबाबाओं  भ्रष्टनेताओं एवं भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की चल अचल संपत्तियों एवं उनके आयस्रोतों को भी  सार्वजानिक करे सरकार !
       सभी प्रकार के अपराधों को बढ़ावा देने में सबसे बड़ी भूमिका प्रमुख रूप से इन तीन लोगों की ही मानी  जाती है हजार पाँच सौ के नोट बंद करने का असर इन तीनों लोगों पर बिलकुल न के बराबर होगा !क्योंकि ऐसे लोग अपना सारा कालाधन जगह जमीनों में लगा चुके होंगे !
         अधिकांश काला धन घूस लेने वाले राजनेताओं-नौकरशाहों, टैक्स चोरी करने बड़े व्यापारियों और अवैध धंधा करने माफियाओं के पास जमा होता है। इनमें से कोई भी अपनी  काली कमाई को नोटों के रूप में वर्षों तक रखेगा इसकी कल्पना भी नहीं करनी चाहिए !यदि कुछ 1000 -500 के नोटों के रूप में उनके पास होगा भी तो इनमें से अधिकाँश लोग रसूखदार होते हैं वो अब तक सब इधर उधर कर चुके होंगे !
     हे प्रधानमंत्री जी ! बहुत लोगों में तो यहाँ तक  भ्रम फैलाया जा चुका है कि कालेधन से धनी नेताओं, नौकरशाहों, मीडियामालिकों,माफियाओं एवं कारोबारी और धनवान बाबाओं को विश्वास में लेने के लिए मोदी सरकार ने अपने नोट बदलने के निर्णय को महीनों पहले ही गुप्त रूप से इन लोगों को सूचित कर दिया था और उन्हें किसी भी प्रकार से नुक्सान नहीं होने दिया सौ सौ रूपए के नोट मार्किट से आज इसीलिए गायब हैं !ऐसे ही लोग मोदीसरकार  के इस निर्णय के उस समय गुण गाते घूम रहे हैं जब छोटे छोटे कारोबारी या आम घर गृहस्थी वाले लोग अपना सब कामकाज छोड़ कर बैंकों डाकघरों के सामने लाइनों में लगे हैं किंतु उन लाइनों में न तो कारोबारी बाबा हैं न नेता हैं न माफिया हैं  एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारी भी नहीं हैं उन लाइनों में !आखिर क्यों ? क्या वो लोग इतने बड़े ईमानदार हैं और बाक़ी सारा देश बेईमान और भ्रष्टाचारी है या उन्हें पैसों की जरूरत नहीं पड़ रही होगी या उनके खर्चे आम जनता से कम हैं जो उनका काम बिना पैसे के ही चल जा रहा होगा !आखिर वे शांत क्यों और कैसे बैठे हैं और आम जनता परेशान है क्यों ? इसके कारण भी स्पष्ट किए जाने चाहिए !
        वर्तमान केंद्र सरकार यदि वास्तव में गंभीर है और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना ही चाहती है तो बहुत आवश्यक है कि पारदर्शिता बनाए रखी जाए और ईमानदारी पूर्वक न केवल आचरण किया जाए अपितु उस ईमानदारी पर शंका करने वालों का विश्वसनीयता इन आत्मीयता पूर्वक समाधान भी किया जाए !सरकार की या जिम्मेदारी है कि होम करते हाथ न जलने दिए जाएँ !
      हे प्रधानमंत्री जी ! सरकार ने यदि भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध छेड़ा ही है तो ध्यान यह भी रखा जाना चाहिए कि सफाया हो तो सबका हो !चाहें वो सरकार के कितने भी करीबी नेता अधिकारी या  धनवान साधू संन्यासी और बाबा लोग ही क्यों न हों ?अब यदि इन्हें बचाए रखने का थोड़ा भी लालच किया गया तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा और बदनाम हो जाएगी सरकार !नोटों को बदलने की घोषणा से अभी तो सारे देश में हाहाकार मचा हुआ है सोचने बिचारने का लोगों के पास समय ही नहीं है किंतु जिस दिन लोग सोचने बैठेंगे तब एक एक कमी काउंट करेंगे और उनका रुख देखकर ये विरोधी पार्टियों के नेता भी उस समय उगल रहे होंगे आग !
      अतएव हे प्रधानमंत्री जी !लगभग पिछले तीस पैंतीस वर्षों से भ्रष्टाचार बहुत बढ़ा है इस बीच खरीदी बेची गई चल अचल सभी संदिग्ध संपत्तियों की जाँच कराई जाए और उनमें लगाई गई अकूत धनराशि के आयस्रोत इंटरनेट पर सार्वजनिक कर दिए जाएँ ताकि किसी के बिषय में उसे जानने वाले को कोई शंका समाधान करना हो या कुछ और जानकारी देनी हो तो वो बात भी जाँच के दायरे में आ सके !जो आयस्रोत स्पष्ट न हों या गैरकानूनी हों या जिनमें नियमों का पालन न किया गया हो वो सारी  संपत्तियाँ एवं उनके द्वारा कमाई गई संपत्तियों से बनाई गई संपत्तियाँ पारदर्शिता पूर्वक जप्त करके उन्हें सार्वजानिक संपत्तियाँ घोषित करे सरकार !
     महोदय ! संन्यासी बनने की घोषणा के बाद साधू संतों के द्वारा इकट्ठी की गई सारी संपत्तियाँ कालाधन मानकर उन्हें जप्त करके सार्वजानिक संपत्तियाँ घोषित करे सरकार!ऐसे बाबा लोगों के सेवाकार्य एवं चैरिटी संबंधी सभी लोकप्रिय और जनहितकारी  कार्यों को यथावत उन्हीं की देख रेख में चलने भले दिया जाए किंतु उसका स्वामित्व सरकार अपने हाथों में लें!यदि वे वास्तव  में संन्यासी और सेवाकार्य करने वाले हैं और इसमें उनका कोई निजी लोभ नहीं है तो उन्हें यह व्यवस्था स्वीकार करने में कोई आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए !विगत कुछ वर्षों में कुछ आश्रमों एवं बाबाओं की सेवा गतिविधियों में कई प्रकार के अपराध होते पाए गए जिन आरोपों में वे लोग अभी भी जेलों में हैं या कानूनी लड़ाईयाँ लड़ रहे हैं उसके बाद ऐसे सभी लोगों पर शंका होना स्वाभाविक है । वैसे भी संन्यास लेने के बाद समाज से चंदा इकठ्ठा करके बनाई गई संपत्तियाँ समाज की हैं न कि उन बाबाओं की ,इसलिए समाज की संपत्तियाँ समाज को सौंपने में बुराई भी क्या है !
      चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा बनाई गई अकूत संपत्तियों में भरा पड़ा है भ्रष्टाचार !साहस हो तो उन्हें पकड़े सरकार !  
     ऐसे नेताओं की संपत्तियों की जाँच क्यों न करवाई जाए चुनाव जीतते ही उनके यहाँ लग जाते हैं संपत्तियों के अंबार !खोजे जाएँ उनकी आय के स्रोत !आखिर ऐसा क्या है कि चुनाव जीत जाने के बाद अधिकाँश नेताओं को कुछ करने की जरूरत ही नहीं रह जाती है और प्रायः वे कुछ करते भी नहीं हैं और न ही उनके पास कुछ करने का समय ही होता है !ऐसे नेताओं ने सेवा कार्यों के लिए पहचानी जाने वाली राजनीति को ही न केवल अपना व्यवसाय मान लिया है अपितु उसी राजनैतिक धमक से  संपत्तियों के बड़े बड़े अंबार लगा लिए हैं जिनकी खनक से उनकी सैकड़ों पीढ़ियाँ राजसी ठाटबाट भोगती रहेंगी और आज भी वो बड़ी बड़ी कोठियों में न केवल रहते हैं अपितु कई कई तो खाली भी पड़ी होती हैं जहाज से नीचे पैर नहीं रखते !शादी काम  काज में करोड़ों अरबों रुपये पानी की तरह बहा देते हैं वे !आखिर कहाँ कमाने जाते हैं ? क्या धंधा व्यापार करते हैं और कब काम करते हैं बकवास करने हुल्लड़ मचाने से इन्हें फुरसत ही कहाँ होती है जो काम धंधा फैलाएँगे !भ्रष्टाचार की कमाई से ऐसे लोगों के खजाने भरे पड़े हैं हिम्मत हो तो जाँच करे सरकार अन्यथा 1000 -500 के नोट बंद करने से कैसे बंद हो जाएगा भ्रष्टाचार ?
सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों को नौकरी मिलने के बाद खरीदी गई जमीनों मकानों की जाँच करे सरकार !
        सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों ने नौकरी लगने के बाद जितनी भी संपत्तियाँ बढ़ाई और बनाई हैं उनकी जाँच क्यों नहीं करती है सरकार !उनमें से जो लोग  घूस लेते हैं उससे भ्रष्टाचार पूर्वक बनाई गई संपत्तियाँ और फिर उन संपत्तियों के द्वारा इकठ्ठा की गई जो संपत्तियाँ वे सब काला धन नहीं हैं तो क्या हैं ?सरकार को आखिर क्यों नहीं दिखाई पड़ता है ये भ्रष्टाचार ? केवल 1000 -500 के नोट बंद करने से कैसे बंद हो जाएगा भ्रष्टाचार ?काले धन से खरीदी गई संपत्तियों के अलावा उनकी सैलरी या नैतिक स्रोतों से संचित धन की सीमा में नहीं आती हैं तो वे संपत्तियाँ गैरकानूनी हैं ब्लैकमनी हैं उन्हें सरकार सार्वजनिक करे !
      बाबाओं के द्वारा सबकुछ छोड़ने अर्थात संन्यास लेने की घोषणा करने के बाद जोड़ा गया सारा धन ही कालाधन  होता है चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा अनैतिक रूप से इकठ्ठा की गई सारी संपत्ति भी ब्लैकमनी है ।घूसखोर अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी के अलावा भ्रष्टाचार पूर्वक अर्जित की गई सारी  संपत्तियाँ ही काला धन हैं  क्या सरकार इन तीनों के विरुद्ध भी कठोर कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पाएगी !
     देश की आम धारणा है कि साधू संत लोग विरक्त होते हैं संन्यास का मतलब ही सबकुछ छोड़ना होता है और सब कुछ त्यागने की दुहाई देने वाले बाबाओं का वो धन जो बाबा बनने के बाद इकठ्ठा किया गया होता है वो सारा ब्लैकमनी अर्थात काला धन ही माना जाना चाहिए और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करे सरकार !
   ऐसी संपत्तियों की जाँच करवाकर जो संपत्तियाँ  इनके खून पसीने की कमाई की नहीं हैं उन्हें जब्त करके सार्वजानिक संपत्ति घोषित करे सरकार !
         सैद्धांतिक रूप से बाबाओं का सारा धन ही ब्लैकमनी होता है चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा अनैतिक रूप से इकठ्ठा की गई सारी संपत्ति ब्लैकमनी है । इसी प्रकार से सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की नौकरी लगने के बाद इकठ्ठा की गई गैरकानूनी संपत्तियाँ ब्लैकमनी हैं क्या सरकार इन तीनों के विरुद्ध भी कठोर कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पाएगी !
     देश की आम धारणा है कि साधू संत लोग विरक्त होते हैं संन्यास का मतलब ही सबकुछ छोड़ना ही होता है और सब कुछ त्यागने की दुहाई देने वाले बाबाओं का वो धन जो बाबा बनने के बाद इकठ्ठा किया गया है वो सारा ब्लैकमनी ही माना जाना चाहिए और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए !
        महोदय !भ्रष्टाचारियों का तब तक बाल भी बाँका नहीं होगा जब तक भ्रष्टनेताओं ,भ्रष्टअधिकारियों और भ्रष्टसरकारी कर्मचारियों की संचित संपत्तियों की जाँच नहीं की जाती !चुनाव जीतने के बाद जिस नेता के पास जितनी संपत्ति बढ़ी या बनी है इसी प्रकार से नौकरी लगने के बाद जिस अधिकारी कर्मचारी के पास जो संपत्ति बढ़ी और बनी है वो सारी जाँच के दायरे में लाई जाए !राजनीति में जब वे आए थे तब उनके पास चल अचल संपत्ति कितनी थी और आज कितनी है संपत्ति !इसकी जाँच तो होनी चाहिए ।
    

Thursday, 8 December 2016

नोटबंदी यदि मोदी सरकार में न हुई होती तो ब्राह्मणों सवर्णों को सबसे बाद में दिए जाते दो हजार के नए नोट !

     काली पट्टियाँ बाँधने वालों को नोटबंदी से इसीलिए तो लग रही हैं टट्टियाँ !कि उन्हें नोटबंदी जैसे बड़े अभियान को अल्पसंख्यकों दलितों पिछड़ों आदि की चासनी में डुबोने का मौका नहीं मिला !आज वो जनता की हमदर्दी के लिए नोटबंदी का विरोध कर रहे हैं या अपने काले बोरे  सफेद करने के लिए ? 
  ब्राह्मणों सवर्णों के विषय में कोई पूछता तो ये लोग लोग कह देते कि तुमने अल्पसंख्यकों और दलितों का शोषण किया था इसलिए भोगो ! 
    इन बेशर्मों ने हिंदुओं ब्राह्मणों सवर्णों पर शोषण के झूठे आरोप लगा लगाकर हमेंशा सताया है अपमानित किया है और सजा दी है !यहाँ तक कि सफाई देने का भी मौका नहीं दिया और सजा सुना दी !हिंदुओं और सवर्णों के साथ हमेंशा सौतेला व्यवहार करते रहे हैं वो !जो आज काली पट्टियाँ बाँधे घूम रहे हैं उन्हें आखिर आज क्यों लग रही हैं लग रही हैं टट्टियाँ !केवल इसीलिए न कि उन्हें नोटबंदी जैसे बड़े अभियान को अल्पसंख्यकों दलितों पिछड़ों आदि की चासनी में डुबोने का मौका नहीं दिया गया !आज वो जनता की हमदर्दी के लिए नोटबंदी का विरोध कर रहे हैं या अपने काले बोरे  सफेद करने के लिए ? जनता से यदि इतनी ही हमदर्दी थी तो नसबंदी और आपात काल जैसे अपने दुष्कर्मों को भूल गए क्या ?
    मोदी सरकार ने स्वतन्त्र भारत के इतिहास में ब्राह्मण आदि सवर्णों को पहली बार दिया है बराबरी का हक़ !नोटबंदी अभियान में सभी जातियों और सभी सम्प्रदायों के साथ किया है बराबरी का व्यवहार !
     देश वासियों ने ऐसे ऐसे खूसट प्रधानमन्त्री देखे  हैं जो कहा करते थे कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अमुक जाति या अमुक संप्रदाय वालों का है !देश के शासकों की जबान से ऐसे गंदे शब्द भी सुने और सहे हैं देश वासियों ने दूसरी जाति और सम्प्रदाय वाले लोग अपना मन मसोस कर रह जाते थे!"एक खाए दूसरा देखे"कुछ जातियों और कुछ सम्प्रदायों के साथ इतना घटिहा व्यवहार किया करते थे पापी !मोदी सरकार में सबसे बड़ा संतोष इस बात का है कि जो होगा वो सबके साथ होगा !अन्यथा राजनैतिक राक्षसों ने सभी सुविधाओं और सभी कानूनों में जातियाँ सम्प्रदाय घुसा रखे थे ! 
   नोटबंदी की कमान भी यदि उन  पापियों के हाथ होती तो उन्होंने यहाँ भी ब्राह्मण आदि सवर्णों को सबसे पीछे धकेल रखा होता !सवर्णों को अभी तक देखने को न मिला होता दो हजार का नोट !
     ये ऐसे लागू करते कि सबसे पहले कैस अल्प  संख्यकों को मिलेगा !दूसरा कहता कि दलितों को मिलेगा तीसरा बोलता कि पिछड़ों को मिलेगा चौथा कहता कि महिलाओं को मिलेगा किंतु ब्राह्मणों और सवर्णों को कब मिलेगा !ये पूछने की कोई हिम्मत भी नहीं करता !तब तक अपने कालेधन के बोरे बदल लेते ये नेता लोग ! बेचारों को आज काली पट्टियाँ बाँधे नहीं  घूमना पड़ता आज !मोदी सरकार के विरुद्ध हाहाकार इसीलिए मचाते फिर रहे हैं ये बेरोजगार नेता  लोग क्योंकि इस सरकार ने इस अभियान में सवर्णों को बराबरी का हक़ दे कैसे दिया ! 
      आजकल संसद रोकने वालों के बीत रहे हैं कालेदिन !काले को सफेद करवाने की जुगत भिड़ा रहे हैं विपक्षी नेतालोग !कालेधन पर की गई कार्यवाही कसक रही है कालेधन वाले नेताओं को !
     यही योजना यदि भ्रष्टाचारी नेताओं की सरकारों में बनाई गई होती तो इन्होंने इसे जाती और धर्म   अधिक उलझा  दिया होता कि जनता उसी में भ्रमित हो जाती और उसी गैप में काले नेताओं ने अपने अपने काले बोरे सफेद कर लिए होते !    
    ये सरकार ईमानदार है तो काले धन वाले नेताओं पर भी की जाए कठोर कार्यवाही !ये बात सबको पता है कि अपना अपना कालाधन सफेद करवाने के लिए काली पट्टियाँ बाँधे घूम रहे हैं कालेधन को पसंद करने वाले नेता लोग!इसमें जनता की हमदर्दी नहीं अपितु सबके अपने अपने स्वार्थ हैं !
     सरकार पर दबाव केवल इसलिए बनाया जा रहा है ताकि उनका कालाधन बचा लिया जाए यदि सरकार झुकी तो सरकार पक्षपाती और नेताओं की भी चल अचल संपत्तियों की जाँच करवाकर ब्यौरा जनता के सामने रखा गया तो ईमानदार सरकार !
        काले धन का समर्थन करने वाले नेताओं की संचित संपत्तियों की जाँच करावे सरकार कि जब  नेता जी राजनीति में आए थे तब उन लोगों के पास क्या था अर्थात कितने मकान दूकान खेत खलिहान फैक्ट्री बैंक बैलेंस आदि तब थे और आज कितने हैं ये तो सारा विवरण सरकारी कागजों में उपलब्ध होगा !फिर सार्वजनिक क्यों न किया जाए !साथ ही ये भी पता लगाया जाए कि राजनीति में आने के बाद इन नेताओं के आय के स्रोत क्या क्या थे इन्होंने नौकरी की या व्यापार किया यदि किया तो कब किया इनके पास इतना समय और इतना धन कहाँ था !प्रायः सामान्य परिवारों में अवतरित होने वाले नेताओं के पास अचानक करोड़ों अरबों के अम्बार कैसे लग जाते हैं इन सभी बातों की न केवल जाँच हो अपितु सबकुछ सार्वजनिक भी किया जाए !    
    भ्रष्टाचार पर प्रहार करने में पक्षपात न करे सरकार !
 भ्रष्ट बाबाओं और भ्रष्ट नेताओं का पैसा गरीबों में बाँट दिया जाए वो सारा कालाधन ही तो है !
       भ्रष्ट बाबाओं  और भ्रष्ट नेताओं के काले धन पर भी हो कार्यवाही ये कुछ वर्षों में ही हजारों करोड़ के मालिक कैसे बन जाते हैं जनता को बरगलाकर या झूठे सपने दिखाकर या झूठे विज्ञापन दिखा दिखाकर  समाज से ऐंठा गया पैसा होता है जो अपने परिश्रम से कमाया हुआ न होकर अपितु छल प्रपंच पूर्वक संग्रह किए जाने के कारण ये संपूर्ण पैसा ही कालेधन की श्रेणी में आता है !,सरकारी कर्मचारियों एवं भूमाफियाओं के कालेधन पर भी की जाए कार्यवाही ?   
     गंगानदी  भगवान के चरणों से निकलती है और भ्रष्टाचार की नदी भ्रष्टनेताओं, भ्रष्टअधिकारियों एवं भ्रष्टबाबाओं तथा भ्रष्टसरकारी कर्मचारियों के आचरणों से निकलती है !इसीलिए इनकी संपत्तियों एवं आयस्रोतों की जाँच के बिना भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए की गई सारी कसरतें बेकार हैं ।see more....http://sahjchintan.blogspot.in/2016/11/1000-500.html
 भ्रष्ट सरकारी कुकर्मचारियों ने ऐसे लूटा है देश !
   इनकी भी संपत्तियों की जाँच की जाए और मांगे जाएँ इनसे भी सम्पतियों के स्रोतों के प्रमाण !सरकारी कर्मचारियों को जिस दिन नौकरी मिली थी तब से आज तक की उनकी चल अचल संपत्तियों की जाँच की जाए उनका मिलान उनकी सैलरी से किया जाए जिनका मिलान न हो सके उनसे पूछे जाएँ आय स्रोत बता पावें तो ठीक न बता पावें तो उनकी संपत्तियों को भी घोषित किया जाए सरकारी संपत्ति !कार्यवाही हो तो सब पर हो ! 
मध्य प्रदेश के लोकायुक्त पुलिस की छापेमारी में पीडब्ल्यूडी अफसर की बेहिसाब संपत्ति का खुलासा !
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बैंककर्मियों के भ्रष्टाचार को भी पकड़े  सरकार !जाँच हो तो सबकी हो !  बैंककर्मियों के भ्रष्टाचार को पकड़ने का ऐसा मौका दोबारा फिर कभी नहीं मिलेगा जितना अभी है सरकार यदि वास्तव में भ्रष्टाचार मिटाना ही चाहती है तो नोटबंदी के समय के बैंकों के अंदर के वीडियो खँगाले जाएँ और लापरवाह एवं भ्रष्ट लोगों पर लिया जाए शक्त निर्णय !इधर सरकार काले धन वालों के विरुद्ध भाषण देती रही उधर बैंक कर्मी काले धन वालों को उपलब्ध करते रहे सफेद करने की सुविधाएं -जनता बेचारी लाइनों में खड़ी भोगती रही सरकार की बातों पर भरोसा करने का फल !seemore.... http://sahjchintan.blogspot.in/2016/12/blog-post.html

 बाबाओं की संपत्तियों का सच भी तो जनता के सामने लाया जाए !
      बंधुओ ! दस पंद्रह बीस वर्षों में न्याय और नैतिकता पूर्वक हजारों करोड़ कैसे कमाए जा सकते हैं वो भी कोई निर्धन बाबा ऐसा कैसे कर सकता है और यदि उसके लिए ऐसा कर पाना वास्तव में संभव है तो गरीबों को भी ऐसी ही बाबा गिरी की ट्रेनिंग क्यों न दिलाई जाए और बिना पैसे लगाए ही हजारों करोड़ का व्यापारी उन्हें भी बना दिया जाए !जिसे व्यापार करना हो वो व्यापार करे किंतु व्यापार करने हेतु फंड जुटाने के लिए साधू संतों जैसी वेषभूषा बनाकर धार्मिक भावुक लोगों से पहले फंड जुटाया जाए और खुद पूंजीपति बन जाए ये धोखा धड़ी नहीं तो क्या है !जिनसे कालाधन माँग माँग कर खुद को तो पवित्र पूँजीपति सिद्ध कर लिया जाए और उन्हें कालाधन वाला बताकर उनके विरुद्ध आंदोलन चलाया जाए ये "चोर मचावे शोर" नहीं तो और क्या है !वैसे भी जो एक गिलास गाय का दूध पीकर रह लेता होगा वह सरकारी नेताओं के यहाँ चमचागिरी करता क्यों घूमेंगा !दूसरी बात जो स्वदेशी सामानों का इतना ही बड़ा समर्थक होगा वो खुद विदेशी मशीनों से दवाइयाँ क्यों बनाएगा !तीसरी बात जिसे भारत पर इतना ही स्वाभिमान होगा वो  विदेशों में मारा  मारा  क्यों फिरेगा !चौही बात संन्यास लेने का मतलब सब कुछ छोड़ना होता है सबकुछ छोड़ने की घोषणा करने वाले पर लोग भरोसा करने लगते हैं और उसे बहुत कुछ दे देते हैं किंतु उसे वो यदि गृहस्थों की तरह भोगने लगता है जैसे कोई ब्रह्मचर्य की घोषणा करके लड़कियों के हॉस्टल में रहने लगे और अपनी घोषणा के विरुद्ध आचरण करने लगे इसे धोखाधड़ी नहीं तो क्या कहेंगे !ऐसे अविश्वसनीय लोगों की भारी भरकम संपत्तियों के स्रोतों पर संशय होना स्वाभाविक है आखिर उनकी पवित्रता की जाँच क्यों नहीं कराई जानी चाहिए !see more ....http://samayvigyan.blogspot.in/2016/11/blog-post_28.html
टैक्स लेती है सरकार !भ्रष्टाचार के लिए भी वही जिम्मेदार ! "जो सैलरी लें वही घूस माँगें" ये हिम्मत !  ये सरकारी लापरवाहियों के कारण ही तो हो पाता है तभी तो  सरकार और सरकारी कर्मचारियों ने फैला रखा है भ्रष्टाचार !इसमें आम जनता का क्या दोष !सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती  अस्पतालों में दवाई नहीं होती डाक खाने में सुनवाई नहीं होती टेलीफोन विभाग में समय से ध्यान नहीं दिया जाता तभी तो जनता प्राइवेट स्कूलों अस्पतालों कैरियरों और टेलीफ़ोन कंपनियों में चक्कर लगाया करती है सरकारी लोग भी सैलरी सरकारी और सेवाएँ प्राइवेट की ही लेना पसंद करे हैं क्यों ?सरकारी सेवाएँ विश्वास करने लायक हैं  ही नहीं फिर भी ग़रीबों ग्रामीणों मजदूरों को सरकारी सेवाएँ प्रदान करने के लिए फार्मिलिटी अदा करती जा रही है सरकार !इसे धोखा धड़ी नहीं तो क्या कहा जाए !सरकार को चाहिए कि नोटबंदी की तरह ही एक एक विभाग के कर्मचारियों को एक रात में सेवा मुक्त कर दे और दो दिन बाद  नवयुक्तियों के लिए खुली परीक्षा करा दे जिसमें शिक्षित हर कोई बैठ सकता हो और परीक्षाएँ जो पास कर ले सो सेवाएँ दे जो फेल हो सो घर बैठे !सोर्स और भ्रष्टाचार के बलपर हुई नियुक्तियों के गलत निर्णयों को सुधारा आखिर कैसे जाए ! सरकारी विभागों से जनता को निराश कर रखा है इस भरोसे को वापस लाने में दशकों लग जाएँगे !see more.... http://sahjchintan.blogspot.in/2016/12/blog-post_3.html