Saturday, 30 July 2016

भ्रष्टाचार से अंधाधुंध कमाई करने वालों की सैलरी इतनी हाई फाई !क्या भ्रष्टाचार से खुश होकर अधिक बढ़ाई !

आदरणीय प्रधानमंत्री
                    सादर नमस्कार !
  विषय : अधिकारियों कर्मचारियों की क्वालिटी सुधारने हेतु !
      महोदय ,
      आपकी सरकार बने दो वर्ष हो गए किंतु सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों के काम काज की क्वालिटी में कोई ख़ास सुधार नहीं दिखाई देता है और जनता को दिन रात जूझना इन्हीं से पड़ता है इन्हीं  की  सेवाओं से समाज में सरकार की छवि बना बिगड़ा करती है ! यहाँ तक कि जनता का काम करने के लिए जो अधिकारी घूस लेते हैं वो भी घूस देने हुआ है बने
 अधिकारियों कर्मचारियों के काम से जनता बिलकुल खुश नहीं है
 जो अधिकारी कर्मचारी करते हैं उनकी को
बधाई हो बधाई

Tuesday, 26 July 2016

क्षत्राणियों की दहाड़ में आज भी इतनी दम है कि मैदान छोड़कर भागना पड़ा स्वयंभू कलियुगी दलित देवीको !

   कलियुगी स्वयंभू दलित देवी पहले तो आंदोलन करने जा रही थीं किंतु स्वातीसिंह की गर्जना के आगे सारा जोश ठंडा पड़ गया !
     कलियुग की स्वयंभूदलित देवीको विगत चुनावों में प्रदेश के मतदाताओं ने लोकसभा में घुसने लायक नहीं रखा था !वो आज अपनी तुलना देवी देवताओं से करते नहीं थकती हैं यदि दलित लोग उन्हें इतना ही सम्मान देते होते तो लोकसभा चुनावों में वोट न देते !आजकल अखवार पढ़कर पता लगते हैं लोकसभा के समाचार फिर भी देवी बनने का नशा लगा हुआ है ऐसी दुर्दशा की है प्रदेश वासियों ने और समझा दिया है कि ऐसे किया जाता है  कलियुगी दलित देवी का सम्मान !
       क्षत्राणी का गर्जन सुनते ही दलितोंदेवी ठंडी पड़ गई जाने कहाँ चला गया वो जोश !वो तो आंदोलन करने वाली थीं !! क्षत्राणी अपनी आन बान  शान की रक्षा के लिए न केवल निकल आई रोडों पर अपितु  उस कलियुगी देवी को भागने पर विवश कर दिया !जातिगत आरक्षण के अनुदान पर जिंदा रहने वालों में इतनी हिम्मत कहाँ होती है कि अपनी मेहनत से कमाने खाने वालों का सामना कर सकें !उतनी आत्मसम्मान की भावना भी नहीं होती है । 
       एक अपनी बेटी की इज्जत के लिए मर मिटने को तैयार है और दूसरा अपना घोषित आंदोलन छोड़कर भाग खड़ा हुआ ! भविष्य में जब कभी कोई बात होगी तो कहेंगे कि हमें तो जाति के कारण या महिला होने के कारण दयाशंकर सिंह ने अपशब्द कहे थे!  कोई नेता केवल नेता होता है बस उसकी न कोई जाति होती है न लिंग और न क्षेत्र !वैसे भी दयाशंकर सिंह जी ने अपशब्द तो कहे भी नहीं थे किंतु आरक्षण की वैशाखी  के बलपर शिक्षित लोग कहाँ और कैसे समझ सकते हैं साहित्य और अलंकारों के भेद !नहीं समझ पाए उस तुलना का अर्थ !धन लोभ की तुलना की गई थी वे अपनी तुलना समझ बैठे !
       जातिगत आरक्षण के पक्षधर लोग नहीं समझ पाए तुलना के सिद्धांत !जो तुलना मायावती जी की कार्यशैली से की गई थी उसे बुद्धू लोग मायावती जी की तुलना समझ बैठे और मचाने लगे शोर !
     दयाशंकर सिंह जी ने अपने बयान में मायावती जी के व्यक्तिगत सम्मान  का सम्पूर्ण रूप से ध्यान रखा  है !इसी बात का प्रमाण है कि उस बयान में मायावती जी का नाम जितनी बार भी लिया गया है हर बार 'जी' लगाने का ध्यान रखा गया है इसके साथ ही उनके बयान का ही अंश यह भी है कि "प्रदेश की 'हमारी' 'इतनी बड़ी नेता' तीन तीन बार की मुख्यमंत्री मायावती जी" आदि शब्दों से दयाशंकर सिंह जी ने मायावती जी को एवं उनके बड़प्पन को भी महत्त्व दिया है । कुल मिलाकर इस दृष्टि से भी मायावती जी के अपमान की भावना कहीं नहीं झलकती है !
      इसलिए  दयाशंकर सिंह जी के विवादित बयान की व्याख्या विद्वान् भाषाविदों से कराई जाए और पता किया जाए कि दयाशंकर सिंह जी ने मायावती जी का अपमान किया भी है या नहीं !सच्चाई ये है कि उन्होंने मायावती जी की कार्यशैली की  और राजनैतिक चुनावी भ्रष्टाचार की तुलना के लिए उपमान(वेश्या) शब्द का चयन किया है न कि मायावती जी की व्यक्तिगत तुलना के लिए ।इसलिए सरकार से मेरा निवेदन है कि उन पर कोई भी कार्यवाही करने से पूर्व उनके बयान की जाँच अवश्य करवाई जाए ! 
     मुझे भाषा के विषय में जितना पता है उसके आधार पर मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि दयाशंकर सिंह जी के उस बयान से कहीं और कैसे भी ये सिद्ध नहीं होता है कि दयाशंकर सिंह जी ने मायावती जी का अपमान किया है हाँ उनकी कार्यशैली की तुलना करने के लिए चुने गए उपमान में गलती जरूर हुई है जिससे बचा जाना चाहिए था !  
  दयाशंकर सिंह जी के बयान में हिंदी साहित्य के अनुसार 'प्रतीपअलंकार' है ।  जिसमें उपमान (वेश्या)  और उपमेय (मायावतीजी) की तुलना का आधार मायावती जी का ‘चरित्र’ नहीं है शरीर नहीं है व्यक्तित्व नहीं है सामाजिक बात व्यवहार नहीं है स्वरूप नहीं है मान सम्मान नहीं है !केवल टिकटों का सौदा करते समय "अपने दिए हुए बचन  पर कायम न रहने "का  आरोप लगाया गया है और इसी 'बचन  पर कायम न रहने' के व्यवहार की  तुलना के लिए उपमान 'वेश्या' शब्द  चुना गया है।
      किसी भी प्रकरण में उपमान और उपमेय शब्दों के बीच जो उभयनिष्ठ गुण होता है तुलना उसी की होती सबकी नहीं । किसी स्त्री के लिए यदि कह दिया जाए कि इसकी नाक तोते जैसी है या इसके बाल  भ्रमरों की तरह हैं आँखें मछली की तरह हैं मुख चंद्रमा की तरह है तो उसके सारे शरीर की तुलना नहीं मानी जा सकती ! जैसे तोते की तरह की नाक का मतलब ये तो नहीं कि उस स्त्री की तुलना तोते से कर दी गई हो !ऐसा ही अन्यत्र भी देखा जाना चाहिए कि तुलना में समानता किस चीज की दिखाई गई है उसके आधार पर ही निर्णय भी  होना चाहिए !यहाँ पर भी तुलना मायावती जी से न होकर अपितु उनकी एक आदत से की  गई है ।इसलिए इसे आदत तक ही सीमित रखा जाना चाहिए !इसे मायावती जी के चरित्र और व्यक्तित्व से जोड़ना ठीक नहीं है । क्योंकि मायावती जी के आम बात व्यवहार या उनके निजी जीवन से संबंधित इस बयान में कोई चर्चा नहीं की गई है ।इसमें चरित्र की चर्चा के तो कोई संकेत नहीं मिलते हैं !कुल मिलाकर दयाशंकर सिंह जी के बयान की कैसी भी व्याख्या क्यों न कर ली जाए उसमें मायावती जी के चरित्र की तुलना कहीं नहीं सिद्ध की जा सकती है !
     इसलिए इस विषय में मेरा निवेदन मात्र इतना है कि दयाशंकर सिंह जी जैसे किसी भी व्यक्ति से मायावती जी की राजनैतिक कार्यशैली की आलोचना करते समय मानवीय भूल के तहत गलती से गलत उपमान चुन लिया गया है जिसकी गलती का एहसास होते ही उन्होंने माफी भी माँग ली है ।  मायावती जी ने भी सदन में उनके परिवार के लिए अपशब्द कहे इसके बाद उन्हें पार्टी से निकालने की माँग रखी भाजपा ने वो भी मान ली !इसके बाद मायावती जी की प्रेरणा से खुले समाज में दयाशंकर सिंह जी की बहन बेटी माँ और पत्नी के विषय में खुले आम जितनी गंदी गालियाँ दिलवाई गई हैं उसके लिए एक एक बदजुबान बसपाई पर कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए !
 ये है दया शंकर सिंह जी का वो विवादित बताया जाने वाला बयान -

     "आज मायावती जी आज टिकटों की इस तरह विक्री कर रही हैं कि "एक वेश्या भी यदि किसी पुरुष के साथ कांटेक्ट करती है तो जब तक पूरा नहीं करती है तो उसको नहीं तोड़ती है "प्रदेश की हमारी इतनी बड़ी नेता तीन तीन बार की मुख्यमंत्री मायावती जी किसी को 1 करोड़ में टिकट देती हैं दोइए घंटे बाद 2 करोड़ देने वाला मिलता है तो उसे दे देती हैं और शाम को कोई 3 करोड़ देने वाला मिलता है तो  उसे दे देती हैं । "
   see more.... इस बयान को आप सुन भी सकते हैं -ये ही वो लिंक -see more... https://www.youtube.com/watch?v=lIT54SBJn4U

Monday, 25 July 2016

जन मन में संघ के प्रति उगी विश्वसनीयता की घास



 तब काँग्रेस सरकार में के सरकार समेटे घूम रहे हैं
  किसी भी पार्टी को सत्ता में लाने का श्रेय पार्टी के प्रत्येक कार्यकर्ता को जाता है यदि शीर्ष नेतृत्व की छवि होती है तो छोटे कार्यकर्ताओं का श्रम और समर्पण लगा होता है !सरकार बनने पर छोटे से छोटे कार्यकर्ता को भी ये लगना चाहिए कि अब उसकी सरकार है इसलिए उसके स्तर का अधिकार तो उसे भी चाहिए कि वो भी उन मतदाताओं के  नैतिक  कामों  में तो मदद कर सके जिनसे कल वोट माँगे थे जिस दायरे में उसने चुनाव प्रचार किया है लोगों के कि तक हर कार्यकर्ता खुद को कुछ संगठन को कभी किसी कार्यकर्ता को खाली नहीं छोड़ा जाना चाहिए

   संघ के कार्यकर्ता अपने एवं अपनों को भूलकर संगठन को मजबूत करते हैं समाज को संस्कारी बनाते हैं और देश के सम्मान स्वाभिमान की संप्रभुता के लिए समर्पित होते हैं । दूसरी ओर राजनैतिक कार्यकर्ता देश समाज और पार्टी हितों को ताख पर रखकर केवल अपने को मजबूत करता है अपनों के लिए काम करता है समाज एवं देश के प्रति उसका कोई चिंतन नहीं होता है।राजनीति का स्वरूप इतना ही नहीं बिगड़ा है परिस्थितियाँ  तो इतनी अधिक खराब हो चुकी हैं कि संघ भावना से स्वयं काम न करने वाले नेता लोग  संघ भावना  से काम करने वालों के लिए सशक्त बैरियर का काम करने में लगे हुए हैं।ऐसे नेता संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों के स्वयं सेवकों के समर्पित प्रयासों से सुसिंचित समाज में लहलहाती विश्वसनीयता की घास चरने के लिए पहन लिया करते हैं कभी कभी खाकी पैंट !
     पहले गाँवों में घास को इकट्ठी करके रस्सियाँ बना लिया करते थे लोग उसी से काम चलाया करते थे।इसी क्रम में एक जगह  कुछ नेत्रहीन लोग बैठे घास की रस्सियाँ बना रहे थे उन्हीं का अपना पालतू पड़वा (भैंस का बच्चा) घास की होने के कारण उन रस्सियों को खाता जा रहा था किंतु वो बेचारे अपने कार्य में समर्पित होने के कारण आहट समझ  नहीं पाए !दिखाई  पड़ता ही नहीं था । यहाँ जनविश्वास की घास उगाकर  सत्ता  रूपी रस्सियाँ  तैयार करने वाले संघ संगठनों को नेत्रहीन समझने की भूल करता जा रहा है उनका पालतू पड़वा ! वो रस्सी तो खाता जा रहा है किंतु स्वयंसेवकों की विश्वसनीयता समाज में बरकरार बनी रहे इसके लिए वो कुछ भी करने को तैयार नहीं दिखते !आगामी चुनावों में अपने पालतू पड़वे की मदद करने के लिए कैसे निकलेंगे स्वयं सेवक उन लोगों से आँख मिलाकर बात कैसे कर सकेंगे जिनसेचुनावों में जिताने के लिए वोटों की मधुकरी (भिक्षा) माँग माँग कर इन पड़वों का पेट भरा था अर्थात सत्ता सौंपी थी । वोट माँगते समय मतदाताओं को विश्वास में लेने के लिए स्वयं सेवकों ने लोगों को कुछ तो आश्वासन दिए होंगे किसी तरह तो अपनापन जीता ही होगा तभी तो इतना भारी बहुमत मिल पाया  है जिसे अब वे पड़वे अपनी योग्यता और झूठे भाषणों का प्रतिफल मानने लगे हैं जबकि नेताओं की बातों पर भरोसा करना देशवासियों ने बहुत पहले छोड़ दिया था । ये तो स्वयं सेवकों के सदाचरणों  पर जनता का भरोसा है कि जो आज पूर्ण बहुमत में सरकार बनी है । 
       सभी संगठनों के स्वयं सेवकों की आज ये स्थिति है कि जिस सरकार को बनवाने के लिए वो सालों से दिन दिन रात रात परिश्रम करते रहे मतदाताओं से वोट माँगने के लिए गिड़गिड़ाते रहे उन्हें झूठे साँचे आश्वासन देते रहे कायदा तो ये कहता है कि अब उन्हें मतदाताओं  के नैतिक कामों में तो साथ देना ही चाहिए किंतु कैसे दें किससे कहें अब अधिकार प्राप्त सत्तासीन  नेताओं के लिए जब वे ही पराए हो गए तो कैसे आवें किसी के काम !उन्हें खुद कोई नहीं पूछ रहा है ।
        

किंतु एक बार अल्पाहार ले रहे थे मुझे पास बैठे

राष्ट्रीय कार्यालय से लेकर 
      


 जब से छोड़ा है तभी से तो मिली जुली सरकारें बननी शुरू हुईं इसके पहले पूर्णबहुमत से बनने वाली सरकारें भी जनता का विश्वास जीतने से नहीं अपितु बलिपृथा की  प्रोडक्ट होती थीं किसी एक नेता के निधन से उपजी संवेदना कैस करके सरकारें  बना लिया करते थे चालाक नेता लोग ! अब संवेदनाओं के अभाव में चालीस सीटों पर सिमिट गए हैं बेचारे ये चालीस सीटें उनके उन वास्तविक कर्मों का फल हैं जो उन्होंने अभी तक जनता के साथ किए हैं । जिसके वो हमेंशा से हकदार थे किंतु पार्टी के प्रिय परिवार के नेताओं के दुर्भाग्यपूर्ण निधन को हमेंशा से कैस कर लेते रहे उनकी पार्टी के नेता लोग ।अपनी इसी काबिलियत के बलपर इतने लंबे समय तक सत्ता सुख भोगा  उन लोगों ने अब भटक रहे हैं बेचारे !

  
 जिनकी नक़ल करने में वो लोग लगे हैं जिन्हें 

सी  छोड़ चूका है उन्हें सोचना

जन मन में संघ के प्रति उगी विश्वसनीयता की  घास को चरने उस तरह से काम लेना चाहते हैं जैसे एक नेत्रहीन बूढ़ा

पहले राजनीति भी बिलकुल ऐसी नहीं थी जैसी आज है 


से उसका कोई केवल को अत्यंत ऊँचाइयों तक ले जाने के लिए समर्पित हैं !
 राष्ट्र का कार्य ही

भाजपा में भाजपा के लिए काम करने वाले कितने लोग हैं

Sunday, 24 July 2016

दयाशंकर सिंह के बयान में मायावती जी की राजनैतिक आलोचना तो है किंतु अपमान नहीं है ! बहस के लिए खुली चुनौती !

   जातिगत आरक्षण के पक्षधर लोग नहीं समझ पाए तुलना के सिद्धांत !जो तुलना मायावती जी की कार्यशैली से की गई थी उसे बुद्धू लोग मायावती जी की तुलना समझ बैठे और मचाने लगे शोर !
     दयाशंकर सिंह जी ने अपने बयान में मायावती जी के व्यक्तिगत सम्मान  का सम्पूर्ण रूप से ध्यान रखा  है !इसी बात का प्रमाण है कि उस बयान में मायावती जी का नाम जितनी बार भी लिया गया है हर बार 'जी' लगाने का ध्यान रखा गया है इसके साथ ही उनके बयान का ही अंश यह भी है कि "प्रदेश की 'हमारी' 'इतनी बड़ी नेता' तीन तीन बार की मुख्यमंत्री मायावती जी" आदि शब्दों से दयाशंकर सिंह जी ने मायावती जी को एवं उनके बड़प्पन को भी महत्त्व दिया है । कुल मिलाकर इस दृष्टि से भी मायावती जी के अपमान की भावना कहीं नहीं झलकती है !
      इसलिए  दयाशंकर सिंह जी के विवादित बयान की व्याख्या विद्वान् भाषाविदों से कराई जाए और पता किया जाए कि दयाशंकर सिंह जी ने मायावती जी का अपमान किया भी है या नहीं !सच्चाई ये है कि उन्होंने मायावती जी की कार्यशैली की  और राजनैतिक चुनावी भ्रष्टाचार की तुलना के लिए उपमान(वेश्या) शब्द का चयन किया है न कि मायावती जी की व्यक्तिगत तुलना के लिए ।इसलिए सरकार से मेरा निवेदन है कि उन पर कोई भी कार्यवाही करने से पूर्व उनके बयान की जाँच अवश्य करवाई जाए ! 
     मुझे भाषा के विषय में जितना पता है उसके आधार पर मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि दयाशंकर सिंह जी के उस बयान से कहीं और कैसे भी ये सिद्ध नहीं होता है कि दयाशंकर सिंह जी ने मायावती जी का अपमान किया है हाँ उनकी कार्यशैली की तुलना करने के लिए चुने गए उपमान में गलती जरूर हुई है जिससे बचा जाना चाहिए था !  
  दयाशंकर सिंह जी के बयान में हिंदी साहित्य के अनुसार 'प्रतीपअलंकार' है ।  जिसमें उपमान (वेश्या)  और उपमेय (मायावतीजी) की तुलना का आधार मायावती जी का ‘चरित्र’ नहीं है शरीर नहीं है व्यक्तित्व नहीं है सामाजिक बात व्यवहार नहीं है स्वरूप नहीं है मान सम्मान नहीं है !केवल टिकटों का सौदा करते समय "अपने दिए हुए बचन  पर कायम न रहने "का  आरोप लगाया गया है और इसी 'बचन  पर कायम न रहने' के व्यवहार की  तुलना के लिए उपमान 'वेश्या' शब्द  चुना गया है।
      किसी भी प्रकरण में उपमान और उपमेय शब्दों के बीच जो उभयनिष्ठ गुण होता है तुलना उसी की होती सबकी नहीं । किसी स्त्री के लिए यदि कह दिया जाए कि इसकी नाक तोते जैसी है या इसके बाल  भ्रमरों की तरह हैं आँखें मछली की तरह हैं मुख चंद्रमा की तरह है तो उसके सारे शरीर की तुलना नहीं मानी जा सकती ! जैसे तोते की तरह की नाक का मतलब ये तो नहीं कि उस स्त्री की तुलना तोते से कर दी गई हो !ऐसा ही अन्यत्र भी देखा जाना चाहिए कि तुलना में समानता किस चीज की दिखाई गई है उसके आधार पर ही निर्णय भी  होना चाहिए !यहाँ पर भी तुलना मायावती जी से न होकर अपितु उनकी एक आदत से की  गई है ।इसलिए इसे आदत तक ही सीमित रखा जाना चाहिए !इसे मायावती जी के चरित्र और व्यक्तित्व से जोड़ना ठीक नहीं है । क्योंकि मायावती जी के आम बात व्यवहार या उनके निजी जीवन से संबंधित इस बयान में कोई चर्चा नहीं की गई है ।इसमें चरित्र की चर्चा के तो कोई संकेत नहीं मिलते हैं !कुल मिलाकर दयाशंकर सिंह जी के बयान की कैसी भी व्याख्या क्यों न कर ली जाए उसमें मायावती जी के चरित्र की तुलना कहीं नहीं सिद्ध की जा सकती है !
     इसलिए इस विषय में मेरा निवेदन मात्र इतना है कि दयाशंकर सिंह जी जैसे किसी भी व्यक्ति से मायावती जी की राजनैतिक कार्यशैली की आलोचना करते समय मानवीय भूल के तहत गलती से गलत उपमान चुन लिया गया है जिसकी गलती का एहसास होते ही उन्होंने माफी भी माँग ली है ।  मायावती जी ने भी सदन में उनके परिवार के लिए अपशब्द कहे इसके बाद उन्हें पार्टी से निकालने की माँग रखी भाजपा ने वो भी मान ली !इसके बाद मायावती जी की प्रेरणा से खुले समाज में दयाशंकर सिंह जी की बहन बेटी माँ और पत्नी के विषय में खुले आम जितनी गंदी गालियाँ दिलवाई गई हैं उसके लिए एक एक बदजुबान बसपाई पर कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए !
 ये है दया शंकर सिंह जी का वो विवादित बताया जाने वाला बयान -

     "आज मायावती जी आज टिकटों की इस तरह विक्री कर रही हैं कि "एक वेश्या भी यदि किसी पुरुष के साथ कांटेक्ट करती है तो जब तक पूरा नहीं करती है तो उसको नहीं तोड़ती है "प्रदेश की हमारी इतनी बड़ी नेता तीन तीन बार की मुख्यमंत्री मायावती जी किसी को 1 करोड़ में टिकट देती हैं दोइए घंटे बाद 2 करोड़ देने वाला मिलता है तो उसे दे देती हैं और शाम को कोई 3 करोड़ देने वाला मिलता है तो  उसे दे देती हैं । "
   see more.... इस बयान को आप सुन भी सकते हैं -ये ही वो लिंक -see more... https://www.youtube.com/watch?v=lIT54SBJn4U

Thursday, 21 July 2016

वेश्याएँ शरीर बेचती हैं चरित्र और सिद्धांत नहीं ! वेश्याओं को भी यदि चरित्र की चिंता न होती तो वो भी नेता बन सकती थीं !!

   वेश्याओं से नेताओं की तुलना नहीं की जा सकती !जिस डर से वेश्याएँ बेचारी सारी मुसीबतें सह लेती हैं !आर्थिक परिस्थितियों के कारण शरीर बेचती हैं किंतु अपना चरित्र बचा लेती हैं उन पर गर्व किया जा सकता है किन्तु नेताओं पर नहीं !ये तो कभी भी किसी के गले लग जाते हैं और कभी भी तलाक कर देते हैं ! 
    वेश्याओं को भी पता होता है कि राजनीति सबसे अधिक कमाऊ धंधा है नेताओं की कमाई के आगे वेश्याओं की कमाई फीकी है !किंतु चरित्रवती वेश्याएँ सोचती हैं कि कमाई के लालच में राजनीति करनी शुरू की तो चरित्र चला जाएगा !चरित्र की चिंता में बेचारी सारी दुर्दशा सहती हैं किंतु नेता कहलाना पसंद नहीं करती हैं । 
    वेश्याओं को लगता है कि राजनीति में कमाई भले ही कितनी भी क्यों न हो किंतु वो हुई कैसे इस बात का नेता के पास कोई जवाब नहीं होता है ।गरीब से गरीब लोग जिनकी जेब में किराया नहीं हुआ करता था राजनीति में आने के बाद वो अरबों खरबों के मालिक हो गए आखिर ये चमत्कार हुआ कैसे !व्यापार कोई किया नहीं पुस्तैनी संपत्ति इतनी थी नहीं और यदि  गरीबों अल्प संख्यकों का हक़ नहीं हड़पा तो अपने आयस्रोत बताइए !जनता स्वयं जाँच कर लेगी कि कितने कमाऊ और कितने इज्जतदार हैं नेता लोग !चले वेश्याओं को नीची निगाह से देखने !जिनके काम में पारदर्शिता है राजनेताओं के काम में कोई पारदर्शिता  नहीं है !वेश्याएँ अपने शरीर की कमाई खाती हैं किंतु नेता लोग दूसरों के हक़ हड़पते हैं ।
     महिलाओं के हकों के लिए लड़ने का नाटक करने वाले नेता महिलाओं के लिए पास किया गया फंड खुद खा जाते हैं इस ही अल्पसंख्यकों के हितैषी नेता खा जाते हैं अलप संख्यकों के हक़ !दलितों के नाम पर राजनीति चमकाने वाले नेता नीतियाँ दलितों के हक़ हड़प जाते हैं ।दूसरों के हक़ हड़पकर सुख सुविधाएँ भोगते घूम रहे अकर्मण्य लोग! चले वेश्याओं का सम्मान घटाने !
     वेश्याएँ भी किसी की माँ बहन बेटियाँ होती हैं वो इस देश की  सम्मानित नारियाँ हैं वो हमसबकी तरह ही देश की नागरिक हैं !उनमें सभी धर्मों और सभी जातियों की महिलाएँ होती हैं !वो नहीं चाहती हैं कि राजनीति में आवें उनके भी घपले घोटाले उजागर हों उनकी अकर्मण्यता के कारण उनके नाते रिश्तेदारों सगे संबंधियों को आँखें झुकानी पढ़ें !ये वेश्याओं का अपना गौरव है । 
    वेश्याएँ सेक्स करती हैं ये बुरा होता है या जो ग्राहक ज्यादा पैसे दिखाए उसके पीछे भाग खड़ी होती हैं ये बुरा है !आखिर वेश्याओं में बुराई क्या है सेक्स तो सभी करते हैं एक से अधिक लोगों से सेक्स करना बुरा है तो प्रेमी जोड़े नाम के सेक्स व्यापारी भी तो अधिक  स्त्री पुरुषों से सेक्स करते हैं वो नहीं बुरे इसका मतलब वेश्याएँ अधिक लोगों से सेक्स के कारण बदनाम नहीं हैं अपितु बदनाम इसलिए हैं कि जो ज्यादा पैसे दिखाए उसकी हो जाती हैं । वेश्याएँ यदि केवल इस दोष के कारण दोषी होती हैं तो राजनीति में तो ये खूब हो रहा है प्रत्याशियों  का चयन करते समय अधिकाँश तो पैसा ही देखा जाता है बाकी  शिक्षा  चरित्र सदाचरण आदि सबकुछ तो गौण होता है एक से एक चरित्रवान विद्वान् कार्यकर्ता पैसे न होने के कारण पीछे कर दिए जाते हैं और पैसे वाले एक से  एक खूसट जिन्हें ये भी नहीं पता होता है कि किससे कैसे क्या बोलना है क्या नहीं या हम जो बोल रहे हैं उसका अर्थ क्या निकलेगा फिर भी उनका पैसा देखकर पार्टियाँ उन्हें न केवल उन्हें अपना प्रत्याशी बनती हैं अपितु अपनी पार्टी और संगठन के जिम्मेदार पदों पर भी ऐसे ही लोगों को बैठा देती हैं फिर उन पैसे वालों का जो मन आता है वो उसे बोल देते हैं और उन पार्टियों का लालची केंद्रीय नेतृत्व पीछे पीछे खेद प्रकट करते माफी माँगते चलता है !ये राजनैतिक वैश्यावृत्ति नहीं तो है क्या ?
    वेश्याओं के भी कुछ तो तो जीवन मूल्य होते होंगे ही किंतु राजनेताओं के तो वो भी नहीं रहे !उन्हें तो केवल कमाई दिखाई पड़ती है ! जो लोग दबे कुचले लोगों के हकों के लिए दम्भ भरते हैं उन्हें कुछ कह दिया जाए  तो इतनाबुरा लगता है किंतु वही शब्द किसी और को बोल दिया जाए तो बुरा क्यों नहीं लगता !
    अरे !दबे कुचलों के हिमायती ड्रामेवाजो !ये क्यों नहीं सोचते कि जो शब्द हमें कह दिया जाए तो इतना बुरा लग जाता है जिन महिलाओं की पहचान ही वही शब्द हो उन्हें कितना बुरा लगता होगा उनकी दशा सुधारने के लिए कितने आंदोलन किए अपने !दबे कुचलों के नाम पर सरकारी खजाना लूटकर अपना घर भर लेने वालो !यदि कर्म इतने ही अच्छे होते तो CBI का नाम सुनते ही पसीना क्यों छूटने लगता है !इसके पहले वाली सरकार तो जब जिस मुद्दे पर हामी भरवाना चाहती थी छोड़ देती थी CBI सारे घोटालेवाजों को जब जहाँ चाहती थी तब तहाँ मुर्गा बना दिया करती थी !
    वेश्याओं को राजनेता  इतनी गिरी दृष्टि से देखते हैं जिनके अपने कोई जीवन मूल्य नहीं होते !वेश्याओं का चरित्र राजनेताओं से ज्यादा गिरा होता है क्या ?वेश्याओं को इतनी गंदी दृष्टि से देखते हैं नेता लोग !
   वेश्याएँ भी चाहें तो और कुछ कर पावें न कर पावें किंतु वेश्यावृत्ति को छोड़कर राजनीति तो वो भी कर सकती हैं क्योंकि राजनीति के लिए किसी योग्यता की आवश्यकता नहीं होती है और शिक्षा भी जरूरी नहीं होती !सदनों की चर्चा में हुल्लड़ अक्सर मचता ही इसीलिए है कि लोगों को एक दूसरे की कही हुई बात समझ में ही नहीं आती है तब हुल्लड़ मचाना उनकी मजबूरी हो जाती है आखिर उनके भी तो ससुराल वाले पूछते हैं कि "जीजाजी" तुम्हें सदनों में कभी बोलते नहीं देखा आपकी आवाज तो कभी नहीं सुनाई पड़ी !तो वो बेचारे कह तो पाते हैं कि हुल्लड़ तो हम्हीं ने मचाया था आपने सुना नहीं था क्या ?सुनाई पड़ता न पड़ता किंतु मुख बगारे तो अपने पड़ोसियों को दिखा ही सकते थे !हमें बोलना आता नहीं है वहाँ की बातें अपने सिर के ऊपर से निकल जाती हैं मोबाईल पर वीडियो कब तक देखकर समय पास करें ?कब तक सीटों पर सो कर निकालें अपना समय !थोड़ा बहुत इधर उधर घूम फिर के काट लेते हैं अपना समय !हम लोगों को तो अपने गिरोह के सरदार के इशारे का इन्तजार होता है पार्टी के मालिक लोग या घराने ही निर्णय लेते हैं कि हमें सदनों में कैसा रोल प्ले करना है क्या करना है हमें तोउन्हीं के द्वारा लिखी हुई स्क्रिप्ट पर चलना होता है!इसलिए उन्हीं के इशारों पर नाचना हम लोगों की मजबूरी होती है नहीं तो निकाल देंगे अपने गिरोह से फिर भटकना पड़ेगा !जिस भी पार्टी में जाएंगे हमें मिलनी मजदूरी ही है इसलिए यहीं सही !अन्यथा वो किसी  को भर्ती कर लेंगे मेरी जगह !इसीलिए तो किसी दिमागदार सजीवलोगों को पार्टियों के गिरोह मालिक अपने आस पास तक नहीं फटकने देते हैं जिस पर थोड़ा भी शक होता है कि इसके पास अपना दिमाग और ये उसका उपयोग भी कर सकता है !जिसके पास अपनी योग्यता भी है और अपने निर्णय खुद ले भी सकता है ऐसे कुछ लोग गिरोहों में दरवान बनाकर रखलिए जाते हैं जो हर घपले घोटाले पर लीपा पोती किया करते हैं कानूनी मंचों पर  भ्रष्टाचारियों  ईमानदार सिद्ध करने का काम उन्हें सौंप दिया जाता है !कुछ बोलने वाले रख लिए जाते हैं कुछ रणनीति बनाने वाले कुछ टीवीचैनलों पर अपने अपने गिरोहों की  तरफ से चोंच लड़ाने के लिए टीवी चैनलों पर बहस के लिए जाने से पहले इन्हें समझा दिया जाता है कि वहाँ जाकर कुछ बोलना मत जो चर्चा में फँस जाओ !क्योंकि चर्चा के लिए उस तरह का दिमाग चाहिए होता है तुम केवल इतना करना कि वहाँ अपनी पार्टी और पार्टी के मालिक का नाम ले लेकर ऐसा शोर मचाते रहना कि कोई दूसरा अपनी बात बोल न पाए !टीवी चैनल भी ऐसे ही लोगों को पसंद करते हैं ताकि कह सकें कि गरमागरम बहस हो रही है एक घंटे हुल्ल्ड मचवाने के बाद चैनल वाले खुद धक्का देकर बाहर फेंकवा  देते हैं !
      साली ने पूछा -जीजा जी वहाँ पहुँचकर लोग गालियाँ क्यों देते हैं माइक ऐसे तरह तरह के उपद्रव क्यों करते हैं !तो नेता जी ने समझा कि वो इतना बड़ा मंच है वहाँ पहुँचकर अपनी प्रतिभा का  नहीं करना चाहता है |जिसने जीवन भर  पहलवानी की हो वो वहां पर जाकर भी दो दो हाथ करना चाहेगा  स्वाभाविक है गाली देते रहने वाले गाली देंगे ही !इसीलिए तो राजनीति में योग्यता को अनिवार्य नहीं बनाया गया !
   साली ने फिर कहा कि जीजा जी !राजनीति में योग्यता अनिवार्य हो न हो किंतु शिक्षा का अपना महत्त्व है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है !इस पर साली को समझाते हुए नेता जी ने कहा कि शिक्षा का क्या महत्त्व है ख़ाक !
 अधिकाँश शिक्षित लोगों को राजनीति में कोई मुख लगाता नहीं है वहाँ तो बार बार कह कर अपनी बात से मुकरना होता है उसमें शिक्षा का क्या काम !नीति का नाम ले लेकर अनीति करना ही तो राजनीति कही जाती है !वैसे भी शिक्षा की जरूरत जीवन में पड़ती ही कहाँ है राजनीति से भ्रष्टाचार पूर्वक कमाई करो फिर एक से एक पढ़े लिखे लोगों को भाड़े पर रख लो अपने यहाँ काम करने को सब सर सर कहेंगे और दिनरात हाजिरी देंगे नेताओं के यहाँ !नौकरी भी नेताओं के सोर्स से ही मिलती है शिक्षा से नहीं बड़े बड़े पढ़े लिखे लोग मारे घूम रहे हैं कौन पूछता है उन्हें !एक से एक अनपढ़ लोगों को फर्जी कागज़ बनवा कर नेताओं ने घुसा रखा है सरकारी नौकरियों में ले रहे हैं लाखों में सैलरी !नेताओं ने सोर्स लगाकर ऐसे ऐसे लोगों को शिक्षक  रीडर प्रोफेसर आदि बनवा दिया है ऐसे लोगों को आज है स्कूल इंटर की परीक्षाओं में बैठा दिया जाए तो 50 प्रतिशत भी पास हो जाएँ तो भी बड़ी बात होगी !तभी तो जैसी शिक्षा वैसे संस्कार !समाज में अपराध बढ़ते ही नेताओं के सोर्स सिफारिस के कारण हैं | शिक्षित सभ्य सदाचारी लोगों को न तो नौकरी मिलती है न प्रमोशन न कोई राजनीति में पूछता है जो किसी तीर तुक्के से एक बार घुस भी गए उन्हें भी नेता लोग उनकी औकात में बाँध कर रखते हैं उन्हेंकेवळ मंच संचालन की जिम्मेदारी दी जाती है और कोई कुछ बने तो वो बधाई देने जा सकते हैं बस !केवल उनके हंसने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है !
    कुल मिलाकर राजनीति ही इस जीवन का सच है !देखो डॉ.एस.एन.वाजपेयी को इतने विषयों से MA किया इतनी किताबें लिखीं तो उन्हें क्या मिला ! ब्राह्मण होने के नाते नौकरी माँग नहीं सकते थेसोर्स था नहीं घूस देने के लिए पैसे नहीं थे तो शिक्षित होने का क्या लाभ राजनीति पढ़े लिखे लोगों को पूछती  नहीं है आपस्वयंदेखिए-http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/drshesh-narayan-vajpayeedrsnvajpayee.html-क्योंकि ब्राह्मणोंका इस देश की राजनीति अघोषित रूप से बहिष्कार करती है इनके नाम पर कोई विकास योजना नहीं बनती है उसे भय है ये दिमागदार लोग अपने नाम पर घपलेघोटाले नहीं करने देंगे दलितों के नाम पर योजनाएं बनाकर अपने घर भर लिया करते हैं नेता लोग!ऐसा ब्राह्मणों के साथ थोड़ा कर पाएँगे !इसीलिएतो इन्हें लाभ पहुँचाने के लिए कुछ नहीं किया जाता है !
 नौकरी दी ही उन्हें न जाती हैं जो न कुछ जानते हों न कुछ पढ़े हों और अपने मुख से ये कहने में शर्म न करते हों कि हम बिना आरक्षण के अपने बल पर तरक्की नहीं कर सकते !फिर भी लोग उन्हें नौकरी दे देते हैं यह जानते हुए भीकि जब अपने बल पर घर की रसोई नहीं चला सकते तो नौकरी के साथ न्याय कैसे कर सकेंगे !इसीलिए लिएतो सरकार के किसी विभाग में काम कर सकने और काम करने वाले लोग बहुत काम पहुँचपाते हैं लोगों के काम नहीं हो पते हैं तो नेताओं के यहां जमावड़ा लगा रहता है वोसिफारिशी  चिट्ठी लिख लिख कर दिया करते हैं काम चिट्ठियाँ तो करेंगी नहीं उसके लिए तो अकल चाहिए और अकल ही होती तो आरक्षण क्यों माँगते !
कुल मिलाकर राजनीति सभी प्रकार के अपराधों की सबसे बड़ी मंडी है !राजनीति में तो बहस ही इन्हीं बातों पर होती है कि दूसरी पार्टियाँ हमसे ज्यादा खराब हैं हम अच्छे हैं ऐसा कहने की तो कोई नेता हिम्मत भी नहीं कर पाता है !
   इसीलिए तो राजनीति में जाकर वेश्याएँ भी  कर सकती हैं अनाप शनाप कमाईवो चुनाव भी आसानी से जीत सकती हैंवो नेताओं से अधिक मनोरंजन करा सकती हैं किंतु उन्हें अपना चरित्र प्याराहोता  हैइसलिए  वो शरीर बेच लेती हैं किंतु चरित्र बचा लेती हैं ।    
  इसलिए  वेश्याकी तुलना नेताओंसे  कर देनाठीक नहीं होगा !

राहुलगाँधी के सो जाने पर तो शोर क्यों ?

   जो जग रहे थे उनमें कितने लोग बता पाएँगे आज किसने क्या बोला है संसद में !संसद में लिखा हुआ भाषण पढ़ने और रटा हुआ भाषण सुनाने आते हैं नेता लोग !किसी और का सुनता कौन है वैसे भी जिन्हें कल के लिए लिखकर देना होता है वे भाषण लेखक तो टीवी चैनलों पर सुन ही रहे होंगे ! 
रात रात  भर जगते रहते इतनी मेहनत इतना काम।
कहाँ भाग्य में बदी सभी के यह संसद सदनी आराम ॥                                                     संसद में आराम बहुत है काम नहीं कुछ अपने पास।
  शीतल मंद सुगंध पवन है अच्छे अवसर का एहसास ॥ 
  कोई कुछ भी भाषण बोले तीन वरस हैं अपने पास । 
 तब तक तो संतोष  हमें है फिर सोचेंगे क्या है ख़ास ॥
 संसद शयन सुरक्षित सुन्दर सुखद स्वप्न के सारे रंग ।                                                                                                      चिंता रहित मस्त यह जीवन संसद मेंअतुलित आनंद
    राहुलगाँधी संसद में सो नहीं रहे थे -काँग्रेस 
    किंतु ये बात अन्य कांग्रेसियों को कैसे पता लगी कि वो सो रहे थे या चिंतन कर रहे थे ये सफाई काँग्रेसी देते क्यों घूम रहे है इतनी बात तो राहुलगाँधी भी बोल सकते हैं । जनता से इतना पर्दा क्यों ?नींद तो किसी को भी आ सकती है वैसे भी संसद में आरोप प्रत्यारोप लगाने के अलावा होता क्या है !इसलिए माना कि गृह मंत्री जी का भाषण चल रहा था किंतु इससे किसी को क्या लेना देना !यदि राहुलगाँधी सो भी गए थे तो कौन पहाड़ टूट गया नींद खुलती और जब उनसे बोलने को कहा जाता तो जो उन्हें बोलना था वो घर से रट कर आए होंगे वही कि ये सूट  बूट की सरकार है दलितों  और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे हैं कश्मीर में जो हुआ ठीक नहीं हुआ मोदी जी विदेश घूम रहे हैं महिलाएँ सताई जा रही हैं आदि आदि बातें यही बोल बोल कर काटने होंगे अभी तीन साल और !बोलना जब यही है तो इसके लिए नींद क्यों ख़राब करनी !

 आखिर क्यों ? बहस समझ में नहीं आ रही थी या बहस सुनना जरूरी नहीं समझ रहे थे,या सत्ता से हटने के बाद जिम्मेदारियाँ घटने से मन हल्का हुआ और नींद आ गई ,या कोई तनाव है जो घर में सोने नहीं देता संसदीय चर्चा में मन भटक गया और नींद आ गई,या अगले पाँच वर्ष तक खालीपन की निश्चिंतता का एहसास है कि कौन क्या कह रहा है कहने दो अभी से क्या चिंता जब चुनाव आएँगें तब फिर सुन लेंगे दो चार भाषण अभी से कौन मत्था मारने जाए ,या जो मैंने दस वर्ष किया है और हम लोगों ने बोला है मिलाजुला कर कर वही करना और वही बोलना मोदी जी को भी है इसलिए नया क्या होगा जो सुनें इसलिए नींद आ गई !                 


          

Wednesday, 20 July 2016

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प्रश्नकुंडली या जन्मकुंडली या वास्तुकुंडली या अन्य किसी भी  एक  समस्या से संबंधित जानकारी लेने के लिए पहले जमा करना होगा Rs.1100  \डेट ऑफ़ बर्थ \एकाउंट डिटेल - डॉ.शेष नारायण वाजपेयी SBI-10152713661 शाखा -दिल्ली कृष्णानगर  IFSC:SBIN0001573 \  संपर्क सूत्र -09811226973 \011 ,22002689   अधिक जानकारी के लिए देखें यह लिंक -http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_5.html  \Know More... http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_10.html




माननीय राज्यपाल महोदय जी 
                                                सादर प्रणाम !
विषय : रोड के रास्ते में सरकारी जमीन पर बनाए गए अवैध कमरे को हटाकर रोड को आपस में मिलाने हेतु !
   मान्यवर ,
         विदित हो कि कानपुर के कल्याणपुर 'कला' क्षेत्र  में पनकी रोड और पुराना शिवली रोड नाम से दो प्रमुख रोड हैं पनकी रोड जीटी रोड से निकला है और पनकी रोड से निकलकर पुराना शिवली रोड काफी आगे तक गया है । ये रोड जैसे जैसे आगे बढ़ता गया है वैसे वैसे पनकी रोड और पुराना शिवली रोड के बीच का आपसी गैप काफी बढ़ता चला गया है जिसमें काफी बड़ी और घनी बस्ती है यहाँ बड़ी संख्या में लोग रहते हैं ।यहाँ का मेन  मार्केट पनकी रोड पर होने के कारण सभी लोगों को जरूरत के सामान के लिए पनकीरोड पर ही आना पड़ता है ।
      पुराने शिवली रोड से पनकीरोड पर आने के लिए कोई सीधा रोड नहीं है गलियों से निकलना होता है या फिर पुराने शिवली रोड  से काफी लंबा चक्कर काटकर आना पड़ता है । जिससे यहाँ रहने वालों को काफी कठिनाई होती है ।जिसे दूर करने के लिए सरकार ने पुराने शिवलीरोड से 30 फिट चौड़ा एक सीधा रोड लाकर जवाहर स्कूल के सामने पनकी रोड से जोड़ दिया है जो पुराने शिवलीरोड से शुरू होकर हरीसिंह की बगिया में कुम्हारों के दरवाजे से J P पांडेय ,राजेंद्र सिंह के दरवाजे से होता हुआ वाजपेयी जी के घर के पास से सीधा शत्रुघ्न सिंह के दरवाजे से निकलकर फूलेश्वर शिवमंदिर के पास से नए गैस गोदाम के पास से ले जाकर पनकी रोड से जोड़  दिया गया  है ।इस रोड को रोकने के लिए इसके रास्ते में ही सरकारी जमीन पर एक कमरा बनाकर खड़ा कर दिया गया है उसी अवैध निर्माण के कारण इस रोड को आपस में मिलाया नहीं जा सका है इसलिए रोड बनने के बाद भी आवागमन  चालू नहीं हो पाया है ।यदि ये रोड आपस में मिला दिया जाए तो यहाँ के लोगों का आना जाना बहुत आसान हो सकता है ।
       महोदय !ये गाँव समाज के पुराने तालाब की सरकारी जमीन है जिसपर स्थानीय अधिकारियों की मिली भगत से कई लोगों ने मिलकर काफी बड़े भूभाग पर कब्जा करके अस्थाई निर्माण किया हुआ है प्रशासन की सुस्ती या मिली भगत के कारण वहाँ अब स्थाई  मकान बनने भी लगे हैं ।                                                            भवदीय       
  आर.के. सिंह ,रमेश यादव ,गीताकिशोरी,दिनेश वर्मा,धर्मेंद्रपाल,सविता चौहान ,करुणा पटेल ,मनीष तिवारी जितेंद्र मिश्र एवं इस क्षेत्र में रहने वाले हम सभी लोग !
                                                   हरीसिंह की बगिया
                          फूलेश्वर शिव मंदिर के पीछे ,कल्याणपुर कला  कानपुर  



ज्योतिष से भ्रष्टाचार मिटाओ !   प्रश्नकुंडली ,जन्मकुंडली या वास्तुकुंडली आदि ज्योतिष सब्जेक्ट में क्वालीफाइड डॉ. शेष नारायण वाजपेयी को दिखाओ ! ज्योतिष सब्जेक्ट में आचार्य (MA) एवं Ph. D. (बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी ) की ज्योतिष वैज्ञानिकता का लाभ उठाओ ! एक पत्री देखने की फीस - Rs . 1100 \एकाउंट डिटेल - डॉ.शेष नारायण वाजपेयी SBI-10152713661 शाखा -दिल्ली कृष्णानगर  IFSC:SBIN0001573 \ संपर्क सूत्र -09811226973 \011 ,22002689 

Tuesday, 19 July 2016

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" श्रीकृष्णं वंदे जगद्गुरुम् "
 दो. जगदगुरु श्रीकृष्ण हैं सकल ज्ञान भंडार ।
       सबके अंदर बैठि के बाँटत बुद्धि अपार ॥
      जहाँ सहारा कोई नहिं मिलत  न कैसेहु थाह ।
       अँगुरी पकरे कृष्ण जी तबहुँ दिखावत राह ॥
        कृपाचार्य गुरुद्रोण ने भी जब छोड़ा साथ ।
        तब निराश लखि द्रोपदिहिं  वस्त्र बने यदुनाथ ॥
           गीता को उपदेश उत रथ हाँकत यदुनाथ । 
        कहौ गुरू अस कौन जग जो रण में जूझत साथ ॥
          ग्वाल बाल अरु गोपियाँ कहहु कवन विद्वान ।
          ते ऊधौ ते आस भिड़े कि फिरत बचावत प्रान ॥
        

Friday, 15 July 2016

अधिकारियों में या तो निर्णय लेने की क्षमता नहीं है या उन्हें निर्णय लेने नहीं दिए जा रहे हैं !

     अधिकारी या तो अयोग्य हैं या अशक्त !माता सरस्वती की और अशक्त हैं तो सरकारों की बेइज्जती करवा रहे हैं वे !

जनता की आकाँक्षाओं

 उन्हें कंप्लेन करने का मतलब  उनकी बेइज्जती करना है !


Thursday, 14 July 2016

शिक्षकों से घूस लेकर दी गई होंगी नौकरियाँ अब कहा जा रहा है पढ़ाओ !अरे !पढ़े हों तब न पढ़ावें !

 शिक्षा और संस्कार वहीं शिक्षक तैयार कर रहे हैं अपराधियों की फौज !इसके लिए संस्कार विहीन दुर्भाग्य पूर्ण शिक्षा नीतियाँ बनाने वाले अधिकारी जिम्मेदार ! बारे भ्रष्टाचार !! शिक्षा और संस्कारों के सत्यानाश के लिए दोषी है सरकार और शिक्षाविभाग ! 
    लुटेरी राजनीति के दुलारे कर्मचारियों बश का काम करना है ही नहीं वो तो घूस देकर नौकरी पाते हैं सैलरी लेकर सुख भोगते हैं छुट्टी !शिक्षक लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में इसीलिए तो नहीं पढ़ाते हैं फिर भी सरकारों की आँखें फूटी हैं तो इसमें शिक्षकों का  क्या दोष !

  जिन लोंगों ने धन खर्च करके पाई हैं नौकरियाँ वे सरकार का गला पकड़ के लेंगे सैलरियाँ ! अन्यथा करेंगे हड़ताल और खोलेंगे सरकार के भ्रष्टाचार की पोल !सरकार को हजार बार गर्ज हो तो शिक्षकों की शर्तें माने और सरकारी कर्मचारियों से करे समझौता ! 
         जो शिक्षाधिकारी भ्रष्टाचार में स्वयं संलिप्त  होंगे या जो शिक्षक कर्तव्यपालन से स्वयं विमुख होंगे या जो बच्चे उनसे कैसे लें शिक्षा और कैसे ग्रहण करें संस्कार !जो सरकारी नौकरियों से पैसे कमाकर अपने बच्चे तो प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा लेते हैं और सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करने के लिए कर रहे हैं सरकारी स्कूलों में नौकरी ! और पिटवा रहे हैं सरकारी स्कूलों में भद्द !  इसमें शिक्षकों और शिक्षा विभाग का क्या दोष ! ये तो झलकियाँ हैं हकीकत  तो बहुत खराब है जिनसे जो पूछा  गया वे वो नहीं बता पाए जिनसे पूछा ही नहीं गया उन्हें विद्वान कैसे मान लिया जाए !  सरकार ने शिक्षकों की सैलरी बढ़ाने के अलावा शिक्षा के लिए और किया ही क्या है !नौकरियाँ बेच लीं पैसे वालों के हाथ ! शुद्ध शिक्षित लोगों की प्रतिभा पहचानकर उन्हें भी रोजगार उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी क्यों नहीं समझी सरकार ने !शिक्षा के लिए कठोर से कठोर परिश्रम करने वालों को ऐसा कौन सा मंच उपलब्ध करवाया गया जहाँ वो भी अपनी प्रतिभा को प्रस्तुत कर सकें !शिक्षित लोग घूस नहीं दे सकते ,उनका सोर्स नहीं है या वो ऊँची जातियों के हैं इसलिए प्रतिभाओं को ठुकराया गया और पैसे को पकड़ा गया है 

   " बिहार का टॉपरकांड हो या UP के शिक्षकों की स्पेलिंग मिस्टेक " इसे केवल UP और बिहार के शिक्षकों  तक ही नहीं सीमित माना जाना चाहिए अपितु यही हाल सारे देश का है शिक्षा विभाग की ऐसी हरकतें  कहीं कहीं झलक जाती हैं सरस्वती नदी की तरह किंतु जैसे सरस्वती नदी का रहस्य जानने के लिए भयंकर खुदाई जरूरी है वैसे ही शिक्षा विभाग का भ्रष्टाचार पता लगाने के लिए सरकार को उठाने होंगे कठोर कदम !
        इसके लिए चाहिए देश में ईमानदार ,साहसी और कर्तव्यनिष्ठ  प्रधानमंत्री मुख़्यमंत्री शिक्षामंत्री आदि !वो भ्रष्ट शिक्षकों और अधिकारियों की पहचान करे और फिर जनता को विश्वास में लेकर अपराधियों को न केवल निकाल बाहर करे अपितु उनसे वसूली जाए आज तक दी गई सारी सैलरी !योग्य लोगों के अधिकार अयोग्य लोगों को देने एवं जनता के धन का दुरुपयोग करने की दोषी सरकार इसके लिए जिम्मेदार तत्कालीन अधिकारियों के साथ अपराधियों जैसे कठोर दंड का प्रावधान करे !उनकी चल अचल संपत्तियों को जब्त करे सरकार !देश का बेड़ा गर्क किया  है उन लोगों ने !ऐसे ही अपराधियों के कारण एक से एक पढ़ी लिखी प्रतिभाएँ आज खेती किसानी करने या मेहनत मजदूरी करके दिन काटने पर मजबूर हैं ।
       देश का शिक्षा विभाग भ्रष्टाचार का इतनी बुरी तरह से शिकार है कि नेताओं के साथ लगे रहने वाले ठेलुहेचमचे और उनके नाते रिस्तेदार शिक्षा विभाग के अधिकारियों के परिचित हेती व्यवहारी या घूस देने वाले लोगों को रेवड़ियों की तरह बाँटी गई हैं नौकरियाँ  जिसमें कहीं किन्हीं नियमों का पालन हुआ होगा इसकी सम्भावना बिलकुल न के बराबर है इसलिए सरकार शिक्षा विभाग से जुड़े भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए कोई स्थाई नीति बनावे !      

 UP: कॉलेजों के कई टीचर नहीं बता सके अंग्रेजी के सामान्य शब्दों की स्पेलिंग !-जनसत्ता 
 see more...http://www.jansatta.com/national/bjp-demands-governor-to-probe-in-up-
teachers-fail-to-spell-english-words/114763/
          अधिकाँश शिक्षकों की स्थिति ये है कि वे जिन कक्षाओं को पढ़ाने के लिए रखे गए हैं उन्हें यदि उन्हीं कक्षाओं की परीक्षाओं में बैठा दिया जाए तो पास होने वाले शिक्षकों की संख्या का परसेंटेज इतना कम होगा कि सरकार देश की जनता के सामने मुख दिखाने लायक नहीं रह जाएगी ! ऐसे लोगों को सैलरी लुटा रही है सरकार !सरकारी स्कूलों की भद्द पिटने का मुख्य कारण यही है जो खुद नहीं पढ़े होंगे ऐसे शिक्षकों को स्कूल देख कर  डर  तो लगेगा ही ! ऐसे लोग कक्षाओं में जाकर छात्रों से आँखें मिलाने की हिम्मत ही नहीं कर पाते हैं बेचारे !इसी लिए किसी न किसी बहाने से गायब रहते हैं शिक्षक ! क्या समय पास करने के लिए बनें हैं स्कूल !जिस गाय के पास दूध ही नहीं होगा वो पेन्हाएगी क्या ख़ाक !दूध देने वाली गउएँ ही बछड़ों को दुलार करती हैं और लुक छिपकर चोरी चोरी दूध पिला देती हैं अपने बछड़ों को ! क्योंकि उन्हें बछड़े की चिंता होती है !काश ! उन पशुओं से ही शिक्षक कुछ सीख पाते तो बच्चों के भविष्य से थोड़ा भी लगाव रखने वाले शिक्षक अपनी माँगें मनवाने के लिए हड़ताल तो नहीं ही करते !क्योंकि इससे नुक्सान ही केवल बच्चों का होता है । 
         स्कूलों में अँगेजी की मीनिंग की स्पेलिंग सही सही कितने शिक्षक लोग बता पाएँगे ये तो आशा ही नहीं करनी चाहिए वो साफ कह देंगे कि हम हिन्दुस्तान पर गर्व करते हैं इसलिए अंग्रेजी क्यों हिंदी क्यों नहीं ! बात यदि हिंदी की है तो मैं सरकार को चुनौती देता हूँ कि वो अपने शिक्षकों से हिंदी की ही परीक्षा लेकर दिखादे ! बशर्ते पेपर बनाते समय सुझाव हमारे भी सम्मिलित किए जाएँ !यदि हिंदी की सामान्य परीक्षा में देश के 50 प्रतिशत शिक्षक भी पास हो जाएँ तो सरकार अपने शासन पर गर्व कर सकती है शिक्षा के हालात इतने अधिक खराब हैं इसलिए जो शिक्षक पास न हों उन्हें खदेड़ बाहर करे सरकार !
      संस्कृत शिक्षा के नाम पर संस्कृत पढ़ाने के लिए जो शिक्षक रखे जाते हैं अक्सर वो कुछ और न पढ़ा सकने योग्य ढीले ढाले जिजीविषा मुक्त शिक्षकों का ही नाम 'शास्त्री जी' रख लिया जाता है और उन्हीं के जर्जर दिमाग के सहारे ढोई जा  रही होती  है संस्कृत ! दूसरी  ओर संस्कृत जानने वाले संस्कृतविद्यालयों के छात्र बेरोजगारी से परेशान  होकर मारे मारे घूम रहे हैं कलश पूजन करवाते शादी विवाह पढ़ते !उनके पास घूस  देने के पैसे  नहीं हैं  सोर्स नहीं है ।
      ये दायित्व सरकार का है कि योग्य लोगों को ही योग्य पदों पर बैठावे !अयोग्य लोगों को योग्य पदों पर बैठकर भारीभरकम  सैलरी देकर पूजने से आज हर किसी की इच्छा है कि सरकारी नौकरी मिले !अगर पूछ दो क्यों तो बोले उसमें पहली बात तो काम नहीं करना पड़ता है और दूसरी बात सैलरी बढ़ाने की चिंता नहीं होती है सरकार खुद बढ़ाती रहती है । सरकार के कई विभाग ऐसे हैं जहाँ ब्रेनडेड आदमी आराम से अपने  दायित्व का निर्वहन कर सकता है ! बारी नौकरी बारे काम ! 
  देखें इसे भी -

UP: कॉलेजों के कई टीचर नहीं बता सके अंग्रेजी के सामान्य शब्दों की स्पेलिंग !-जनसत्ता 
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Saturday, 9 July 2016

शिक्षकों से तब तो पैसे लेकर दी गई होंगी नौकरियाँ !अब पूछी जा रही है शब्दों की स्पेलिगें !अरे !वो पढ़े हों तब तो बतावें !

    ऐसे ही बिहारशिक्षाबोर्ड के होनहारों ने तैयार किया था टॉपरकांड !अरे !इस महान देश में जब अनपढ़ और भ्रष्ट अधिकारी हो सकते हैं तो टॉपर क्यों नहीं !
    अपराधियों की फौज तैयार कर रही हैं दुर्भाग्य पूर्ण शिक्षा नीतियाँ और शिक्षाविभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार ! शिक्षा और संस्कारों के सत्यानाश के लिए दोषी है सरकार और शिक्षाविभाग !                       
   जिन लोंगों ने धन खर्च करके पाई हैं नौकरियाँ वे सरकार का गला पकड़ के लेंगे सैलरियाँ ! अन्यथा करेंगे हड़ताल और खोलेंगे सरकार के भ्रष्टाचार की पोल !सरकार को हजार बार गर्ज हो तो शिक्षकों की शर्तें माने और सरकारी कर्मचारियों से करे समझौता ! 
         जो शिक्षाधिकारी भ्रष्टाचार में स्वयं संलिप्त  होंगे या जो शिक्षक कर्तव्यपालन से स्वयं विमुख होंगे या जो बच्चे उनसे कैसे लें शिक्षा और कैसे ग्रहण करें संस्कार !जो सरकारी नौकरियों से पैसे कमाकर अपने बच्चे तो प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा लेते हैं और सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करने के लिए कर रहे हैं सरकारी स्कूलों में नौकरी ! और पिटवा रहे हैं सरकारी स्कूलों में भद्द !  इसमें शिक्षकों और शिक्षा विभाग का क्या दोष ! ये तो झलकियाँ हैं हकीकत  तो बहुत खराब है जिनसे जो पूछा  गया वे वो नहीं बता पाए जिनसे पूछा ही नहीं गया उन्हें विद्वान कैसे मान लिया जाए !  सरकार ने शिक्षकों की सैलरी बढ़ाने के अलावा शिक्षा के लिए और किया ही क्या है !नौकरियाँ बेच लीं पैसे वालों के हाथ ! शुद्ध शिक्षित लोगों की प्रतिभा पहचानकर उन्हें भी रोजगार उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी क्यों नहीं समझी सरकार ने !शिक्षा के लिए कठोर से कठोर परिश्रम करने वालों को ऐसा कौन सा मंच उपलब्ध करवाया गया जहाँ वो भी अपनी प्रतिभा को प्रस्तुत कर सकें !शिक्षित लोग घूस नहीं दे सकते ,उनका सोर्स नहीं है या वो ऊँची जातियों के हैं इसलिए प्रतिभाओं को ठुकराया गया और पैसे को पकड़ा गया है 

   " बिहार का टॉपरकांड हो या UP के शिक्षकों की स्पेलिंग मिस्टेक " इसे केवल UP और बिहार के शिक्षकों  तक ही नहीं सीमित माना जाना चाहिए अपितु यही हाल सारे देश का है शिक्षा विभाग की ऐसी हरकतें  कहीं कहीं झलक जाती हैं सरस्वती नदी की तरह किंतु जैसे सरस्वती नदी का रहस्य जानने के लिए भयंकर खुदाई जरूरी है वैसे ही शिक्षा विभाग का भ्रष्टाचार पता लगाने के लिए सरकार को उठाने होंगे कठोर कदम !
        इसके लिए चाहिए देश में ईमानदार ,साहसी और कर्तव्यनिष्ठ  प्रधानमंत्री मुख़्यमंत्री शिक्षामंत्री आदि !वो भ्रष्ट शिक्षकों और अधिकारियों की पहचान करे और फिर जनता को विश्वास में लेकर अपराधियों को न केवल निकाल बाहर करे अपितु उनसे वसूली जाए आज तक दी गई सारी सैलरी !योग्य लोगों के अधिकार अयोग्य लोगों को देने एवं जनता के धन का दुरुपयोग करने की दोषी सरकार इसके लिए जिम्मेदार तत्कालीन अधिकारियों के साथ अपराधियों जैसे कठोर दंड का प्रावधान करे !उनकी चल अचल संपत्तियों को जब्त करे सरकार !देश का बेड़ा गर्क किया  है उन लोगों ने !ऐसे ही अपराधियों के कारण एक से एक पढ़ी लिखी प्रतिभाएँ आज खेती किसानी करने या मेहनत मजदूरी करके दिन काटने पर मजबूर हैं ।
       देश का शिक्षा विभाग भ्रष्टाचार का इतनी बुरी तरह से शिकार है कि नेताओं के साथ लगे रहने वाले ठेलुहेचमचे और उनके नाते रिस्तेदार शिक्षा विभाग के अधिकारियों के परिचित हेती व्यवहारी या घूस देने वाले लोगों को रेवड़ियों की तरह बाँटी गई हैं नौकरियाँ  जिसमें कहीं किन्हीं नियमों का पालन हुआ होगा इसकी सम्भावना बिलकुल न के बराबर है इसलिए सरकार शिक्षा विभाग से जुड़े भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए कोई स्थाई नीति बनावे !      

 UP: कॉलेजों के कई टीचर नहीं बता सके अंग्रेजी के सामान्य शब्दों की स्पेलिंग !-जनसत्ता 
 see more...http://www.jansatta.com/national/bjp-demands-governor-to-probe-in-up-
teachers-fail-to-spell-english-words/114763/
          अधिकाँश शिक्षकों की स्थिति ये है कि वे जिन कक्षाओं को पढ़ाने के लिए रखे गए हैं उन्हें यदि उन्हीं कक्षाओं की परीक्षाओं में बैठा दिया जाए तो पास होने वाले शिक्षकों की संख्या का परसेंटेज इतना कम होगा कि सरकार देश की जनता के सामने मुख दिखाने लायक नहीं रह जाएगी ! ऐसे लोगों को सैलरी लुटा रही है सरकार !सरकारी स्कूलों की भद्द पिटने का मुख्य कारण यही है जो खुद नहीं पढ़े होंगे ऐसे शिक्षकों को स्कूल देख कर  डर  तो लगेगा ही ! ऐसे लोग कक्षाओं में जाकर छात्रों से आँखें मिलाने की हिम्मत ही नहीं कर पाते हैं बेचारे !इसी लिए किसी न किसी बहाने से गायब रहते हैं शिक्षक ! क्या समय पास करने के लिए बनें हैं स्कूल !जिस गाय के पास दूध ही नहीं होगा वो पेन्हाएगी क्या ख़ाक !दूध देने वाली गउएँ ही बछड़ों को दुलार करती हैं और लुक छिपकर चोरी चोरी दूध पिला देती हैं अपने बछड़ों को ! क्योंकि उन्हें बछड़े की चिंता होती है !काश ! उन पशुओं से ही शिक्षक कुछ सीख पाते तो बच्चों के भविष्य से थोड़ा भी लगाव रखने वाले शिक्षक अपनी माँगें मनवाने के लिए हड़ताल तो नहीं ही करते !क्योंकि इससे नुक्सान ही केवल बच्चों का होता है । 
         स्कूलों में अँगेजी की मीनिंग की स्पेलिंग सही सही कितने शिक्षक लोग बता पाएँगे ये तो आशा ही नहीं करनी चाहिए वो साफ कह देंगे कि हम हिन्दुस्तान पर गर्व करते हैं इसलिए अंग्रेजी क्यों हिंदी क्यों नहीं ! बात यदि हिंदी की है तो मैं सरकार को चुनौती देता हूँ कि वो अपने शिक्षकों से हिंदी की ही परीक्षा लेकर दिखादे ! बशर्ते पेपर बनाते समय सुझाव हमारे भी सम्मिलित किए जाएँ !यदि हिंदी की सामान्य परीक्षा में देश के 50 प्रतिशत शिक्षक भी पास हो जाएँ तो सरकार अपने शासन पर गर्व कर सकती है शिक्षा के हालात इतने अधिक खराब हैं इसलिए जो शिक्षक पास न हों उन्हें खदेड़ बाहर करे सरकार !
      संस्कृत शिक्षा के नाम पर संस्कृत पढ़ाने के लिए जो शिक्षक रखे जाते हैं अक्सर वो कुछ और न पढ़ा सकने योग्य ढीले ढाले जिजीविषा मुक्त शिक्षकों का ही नाम 'शास्त्री जी' रख लिया जाता है और उन्हीं के जर्जर दिमाग के सहारे ढोई जा  रही होती  है संस्कृत ! दूसरी  ओर संस्कृत जानने वाले संस्कृतविद्यालयों के छात्र बेरोजगारी से परेशान  होकर मारे मारे घूम रहे हैं कलश पूजन करवाते शादी विवाह पढ़ते !उनके पास घूस  देने के पैसे  नहीं हैं  सोर्स नहीं है ।
      ये दायित्व सरकार का है कि योग्य लोगों को ही योग्य पदों पर बैठावे !अयोग्य लोगों को योग्य पदों पर बैठकर भारीभरकम  सैलरी देकर पूजने से आज हर किसी की इच्छा है कि सरकारी नौकरी मिले !अगर पूछ दो क्यों तो बोले उसमें पहली बात तो काम नहीं करना पड़ता है और दूसरी बात सैलरी बढ़ाने की चिंता नहीं होती है सरकार खुद बढ़ाती रहती है । सरकार के कई विभाग ऐसे हैं जहाँ ब्रेनडेड आदमी आराम से अपने  दायित्व का निर्वहन कर सकता है ! बारी नौकरी बारे काम ! 
  देखें इसे भी -

UP: कॉलेजों के कई टीचर नहीं बता सके अंग्रेजी के सामान्य शब्दों की स्पेलिंग !-जनसत्ता 
 see more...http://www.jansatta.com/national/bjp-demands-governor-to-probe-in-up-teachers-fail-to-spell-english-words/114763/

Friday, 8 July 2016

a08

महामहिम राज्यपाल महोदय जी 
                                         सादर प्रणाम !  
विषय:  20 वर्ष पुरानी हमारी जगह में बनी हमारी दीवार तोड़ कर दरवाजा रखने की धमकी देकर गए हैं पडोसी उन्हें रोकने हेतु !
     महोदय            
      विदित हो कि मैं दिल्ली में रहता हूँ विश्वहिंदू परिषद के आयाम 'भारतजागरण' के दिल्ली प्रदेश का दायित्व निर्वाह कर रहा हूँ । कानपुर (इंदलपुर)जन्मभूमि है मैं कई पुस्तकों का लेखक हूँ  20 किताबें  प्रारंभिक स्कूलों में भी पढ़ाई भी जाती हैं मेरे कई काव्य एवं गद्यग्रंथ हैं 9 ब्लॉग हैं जिनमें भ्रष्टाचार विरोधी संगठन संबंधी और नैतिक जन जागरण से जुड़े लगभग 2000 आर्टिकल  प्रकाशित हैं जो लाखों बार पढ़े जा चुके हैं वैसे दिल्ली में ही स्वतंत्र पत्रकारिता भी करताहूँ । 
    महोदय !कानपुर के कल्याणपुर 'कला' में फूलेश्वर शिवमंदिर के पीछे हमारा घर है । यह प्लाट मैंने सन  1997 में हरीसिंह से खरीदा था जिसका प्लाट नंबर 27 है !इसकी रजिस्ट्री तुरंत हो गई थी और दाखिल ख़ारिज 1999 में हो गया था!यहाँ हमारे भाई साहब पिछले 19 वर्षों से रहते हैं ।
      श्रीमान जी !हरीसिंह जी ने हमारे प्लॉट के सामने तक ही रोड बनाकर हमें प्लॉट बेचा था और हमसे कहा था कि इसके आगे दीगर भूमि की बाउंड्री है इसलिए ये रोड यहाँ से बंद है । इस बाउंड्री के उधर से तुम्हारा कोई लेना देना नहीं है और इस बाउंड्री के इधर से दीगर भूमि वालों का कोई लेना देना नहीं है । 
     मान्यवर ! ये रोड यदि  लगभग तीस फिट और आगे बढ़ जाता तो पनकीरोड के मेन लिंक रोड में मिल सकता था जिससे इधर रहने वाले काफी बड़े समूह का आवागमन बहुत आसान हो जाता किंतु दीगर भूमि होने के कारण ही यह रोड पनकीरोड के लिंक रोड में मिलाया नहीं जा सका इसे लगभग 30 फिट पहले ही रोक देना पड़ा ।पिछले 19 वर्षों से हम लोग यहाँ रह रहे हैं और बाउंड्री वैसी ही बनी हुई है रोड हमारे दरवाजे पर ही रुका हुआ है न उनका इधर से कोई मतलब था और न हमारा उधर से !
      महोदय !अभी 2 -7-2016 को दीगर भूमि वाले साबूसिंह पुत्र रघुनाथ सिंह ने हमारे भाईसाहब ब्रजकिशोर वाजपेयी जी से बोला है कि मैं तुम्हारी तरफ गेट खोलूँगा तो भाई साहब ने कहा कि तुम्हारा इधर से क्या संबंध !करना ही है तो रोड को बाउंड्री की दीवार पार करके आगे अपनी जगह में ले जाओ वहाँ खोलो अपना दरवाजा !साथ ही यदि आप हमारी तरफ क़ी जमीन पर बने रोड का फायदा उठाना चाहते हैं तो आप इस रोड को उधर के रोड से भी मिलाएँ ताकि हम लोगों को भी आने जाने की सुविधा मिले !
     इस पर दीगर भूमि वाले साबूसिंह कहते हैं कि "यह रोड तो यहीं तक रहेगी इसे आगे नहीं बढ़ने दूँगा और अपनी बाउंड्री एवं उसके साथ वाली तुम्हारी दीवाल तोड़कर तुम्हारे चबूतरे पर दरवाजा खोलूँगा ।"ये उनकी हमारे लिए अंतिम चेतावनी  है इसके बाद वो कभी भी आकर हमारी दीवार तोड़कर अपना दरवाजा बना लेंगे !
    महोदय ! हमने पैसे देकर जगह खरीदी है और ये साबूसिंह की गाँव समाज की कब्ज़ा की हुई जमीन बताई जाती है जिसका दरवाजा वो हमारी तरफ खोलना चाह रहे हैं सरकार यदि अपनी जमीन की जाँच करवाकर अवैध कब्जे से मुक्त करवाले  तो भी हमारी समस्या का समाधान हो जाएगा और रोड भी आपस में मिलाया जा सकेगा जिससे बहुत सारे लोगों को सुविधा हो जाएगी !अन्यथा यहाँ  कब्ज़ा दिखाने के लिए अभी तक जो अस्थाई निर्माण किए गए थे वो अब स्थाई किए जाने लगे हैं जो भविष्य में सरकार के लिए भी समस्या बन सकते हैं । 
     श्रीमान जी ! अतएव मेरा आपसे निवेदन है कि यदि साबूसिंह को दरवाजा खोलना ही है तो रोड को आगे बढ़ाकर आर पार करें एवं अपनी जगह में अपना  दरवाजा खोलें और हमें भी अपनी तरफ से निकलने का रास्ता दें अन्यथा उनका दरवाजा हमारी तरफ से किसी भी कीमत पर न खुलने दिया जाए !
                                            भवदीय 
                         डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 
                           9811226973\9838239075
                                        प्लॉट नं 27, हरीसिंह की बगिया
                          फूलेश्वर शिव मंदिर के पीछे ,कल्याणपुर कला  कानपुर 
     
महोदय !कृपया इसे भी देख लीजिए इसमें वहाँ के कुछ चित्र आदि भी हैं -http://samayvigyan.blogspot.in/2016/07/blog-post_6.html

शिक्षकों से पैसे लेकर दी गई थीं नौकरियाँ अब उनसे स्पेलिंग क्यों पूछी जा रही है !

   अपराधियों की फौज तैयार कर रही हैं दुर्भाग्य पूर्ण शिक्षा नीतियाँ!शिक्षा और संस्कारों के सत्यानाश के लिए दोषी है सरकार और शिक्षाविभाग !
   " बिहार का टॉपरकांड हो या UP के शिक्षकों की स्पेलिंग मिस्टेक " इसे केवल UP और बिहार के शिक्षकों  तक ही नहीं सीमित माना जाना चाहिए अपितु यही हाल सारे देश का है शिक्षा विभाग की ऐसी हरकतें  कहीं कहीं झलक जाती हैं सरस्वती नदी की तरह किंतु जैसे सरस्वती नदी का रहस्य जानने के लिए भयंकर खुदाई जरूरी है वैसे ही शिक्षा विभाग का भ्रष्टाचार पता लगाने के लिए सरकार को उठाने होंगे कठोर कदम !
        इसके लिए चाहिए देश में ईमानदार ,साहसी और कर्तव्यनिष्ठ  प्रधानमंत्री मुख़्यमंत्री शिक्षामंत्री आदि !वो भ्रष्ट शिक्षकों और अधिकारियों की पहचान करे और फिर जनता को विश्वास में लेकर अपराधियों को न केवल निकाल बाहर करे अपितु उनसे वसूली जाए आज तक दी गई सारी सैलरी !योग्य लोगों के अधिकार अयोग्य लोगों को देने एवं जनता के धन का दुरुपयोग करने की दोषी सरकार इसके लिए जिम्मेदार तत्कालीन अधिकारियों के साथ अपराधियों जैसे कठोर दंड का प्रावधान करे !उनकी चल अचल संपत्तियों को जब्त करे सरकार !देश का बेड़ा गर्क किया  है उन लोगों ने !ऐसे ही अपराधियों के कारण एक से एक पढ़ी लिखी प्रतिभाएँ आज खेती किसानी करने या मेहनत मजदूरी करके दिन काटने पर मजबूर हैं ।
       देश का शिक्षा विभाग भ्रष्टाचार का इतनी बुरी तरह से शिकार है कि नेताओं के साथ लगे रहने वाले ठेलुहेचमचे और उनके नाते रिस्तेदार शिक्षा विभाग के अधिकारियों के परिचित हेती व्यवहारी या घूस देने वाले लोगों को रेवड़ियों की तरह बाँटी जाती हैं नौकरियाँ  जिसमें कहीं किन्हीं नियमों का पालन हुआ होगा !इसीलिए सरकार के हर विभाग की भद्द पिटी पड़ी है हर जगह भ्रष्टाचार है ।
          शिक्षा विभाग की " बिहार का टॉपरकांड हो या UP के शिक्षकों की स्पेलिंग मिस्टेक " इसमें शिक्षकों और शिक्षा विभाग का क्या दोष ! ये तो झलकियाँ हैं हकीकत  तो बहुत खराब है जिनसे जो पूछा  गया वे वो नहीं बता पाए जिनसे पूछा ही नहीं गया उन्हें विद्वान कैसे मान लिया जाए !
     सरकार ने शिक्षकों की सैलरी बढ़ाने के अलावा शिक्षा के लिए और किया ही क्या है !नौकरियाँ बेच लीं पैसे वालों के हाथ ! शुद्ध शिक्षित लोगों की प्रतिभा पहचानकर उन्हें भी रोजगार उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी क्यों नहीं समझी सरकार ने !शिक्षा के लिए कठोर से कठोर परिश्रम करने वालों को ऐसा कौन सा मंच उपलब्ध करवाया गया जहाँ वो भी अपनी प्रतिभा को प्रस्तुत कर सकें !शिक्षित लोग घूस नहीं दे सकते ,उनका सोर्स नहीं है या वो ऊँची जातियों के हैं इसलिए प्रतिभाओं को ठुकराया गया और पैसे को पकड़ा गया है !
   UP: कॉलेजों के कई टीचर नहीं बता सके अंग्रेजी के सामान्य शब्दों की स्पेलिंग !-जनसत्ता 
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         स्कूलों में अँगेजी की मीनिंग की स्पेलिंग सही सही कितने शिक्षक लोग बता पाएँगे ये तो आशा ही नहीं करनी चाहिए वो साफ कह देंगे कि हम हिन्दुस्तान पर गर्व करते हैं इसलिए अंग्रेजी क्यों हिंदी क्यों नहीं ! बात यदि हिंदी की है तो मैं सरकार को चुनौती देता हूँ कि वो अपने शिक्षकों से हिंदी की ही परीक्षा लेकर दिखादे ! बशर्ते पेपर बनाते समय सुझाव हमारे भी सम्मिलित किए जाएँ !यदि हिंदी की सामान्य परीक्षा में देश के 50 प्रतिशत शिक्षक भी पास हो जाएँ तो सरकार अपने शासन पर गर्व कर सकती है शिक्षा के हालात इतने अधिक खराब हैं इसलिए जो शिक्षक पास न हों उन्हें खदेड़ बाहर करे सरकार !
      संस्कृत शिक्षा के नाम पर संस्कृत पढ़ाने के लिए जो शिक्षक रखे जाते हैं अक्सर वो कुछ और न पढ़ा सकने योग्य ढीले ढाले जिजीविषा मुक्त शिक्षकों का ही नाम 'शास्त्री जी' रख लिया जाता है और उन्हीं के जर्जर दिमाग के सहारे ढोई जा  रही होती  है संस्कृत ! दूसरी  ओर संस्कृत जानने वाले संस्कृतविद्यालयों के छात्र बेरोजगारी से परेशान  होकर मारे मारे घूम रहे हैं कलश पूजन करवाते शादी विवाह पढ़ते !उनके पास घूस  देने के पैसे  नहीं हैं  सोर्स नहीं है ।
      ये दायित्व सरकार का है कि योग्य लोगों को ही योग्य पदों पर बैठावे !अयोग्य लोगों को योग्य पदों पर बैठकर भारीभरकम  सैलरी देकर पूजने से आज हर किसी की इच्छा है कि सरकारी नौकरी मिले !अगर पूछ दो क्यों तो बोले उसमें पहली बात तो काम नहीं करना पड़ता है और दूसरी बात सैलरी बढ़ाने की चिंता नहीं होती है सरकार खुद बढ़ाती रहती है । सरकार के कई विभाग ऐसे हैं जहाँ ब्रेनडेड आदमी आराम से अपने  दायित्व का निर्वहन कर सकता है ! बारी नौकरी बारे काम ! 
  देखें इसे भी -

UP: कॉलेजों के कई टीचर नहीं बता सके अंग्रेजी के सामान्य शब्दों की स्पेलिंग !-जनसत्ता 
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