भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को न सफलता मिलती है और न ही सुख ! विवाह, विद्या ,मकान, दुकान ,व्यापार, परिवार, पद, प्रतिष्ठा,संतान आदि का सुख हर कोई अच्छा से अच्छा चाहता है किंतु मिलता उसे उतना ही है जितना उसके भाग्य में होता है और तभी मिलता है जब जो सुख मिलने का समय आता है अन्यथा कितना भी प्रयास करे सफलता नहीं मिलती है ! ऋतुएँ भी समय से ही फल देती हैं इसलिए अपने भाग्य और समय की सही जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को रखनी चाहिए |एक बार अवश्य देखिए -http://www.drsnvajpayee.com/
Tuesday, 28 October 2014
Sunday, 26 October 2014
मंत्री ,महात्मा और मीडिया तीनों कानून से ऊपर हैं और सरकारी कर्मचारी तो हैं ही सबसे ऊपर !
बेचारी जनता इन सबको ढोने के लिए बनी है ये अच्छा करें या बुरा किन्तु इनकी सुख सुविधाओं या भोग विलास पर जो भी खर्च आएगा वो आम जनता को ही बहन करना होगा किन्तु इनसे ये पूछने वाला कोई नहीं है कि आप करते क्या हैं !क्योंकि ये लोग सभी प्रकार के कानूनों से ऊपर होते हैं अपने लिए कानून अपनी सुविधानुशार ये स्वयं बनाते हैं और पालन करें या न करें इसके लिए ये स्वतन्त्र होते हैं !जनता इनके आधीन होती है इसलिए ये जैसा नाच नचाते हैं जनता को वैसा ही नाचना होता है ! जो कानून ये बनाते हैं उनका पालन ये करें न करें किन्तु जनता को करना होता है ।
यहाँ एक बात और विशेष है कि ये तीनों एक दूसरे का हौसला बढ़ाया करते हैं ! नेता महात्मा एक साथ फोटो खिंचवाते हैं और मीडिया खींचता है और मीडिया ही समाज के सामने परोसता है इसका मतलब ये होता है कि यदि नेता लोग यदि भ्रष्टाचार में पकड़े जाएँ तो वो महात्माओं के साथ वाली अपनी फोटो मीडिया से दिखवाते हैं जिससे पता लगे कि वो कितने बड़े धार्मिक हैं इसी प्रकार से बाबा जी पकड़े जाएँ तो नेताओं के साथ वाली अपनी फोटो मीडिया से दिखवाते हैं ताकि लोग उन्हें सोर्सफुल समझें !ऐसी फोटो दिखाने के लिए मीडिया लेता होगा कुछ दान दक्षिणा जिसे पेडन्यूज या और कुछ कहते होंगे !किसी महात्मा को अपने कर्मों के आधार पर सोर्स की यदि बार बार जरूरत पड़े तो उसका काम केवल सोर्सफुल होने से नहीं चलता है अपितु उसे सीधे राजनीति में स्वयं उतरना होता है उस समय उसकी वो नदियों ,झरनों ,पहाड़ों के पास खड़े होकर खिंचवाई गई फोटो मीडिया को दिखाने के लिए दी जाती हैं ये छवि बनाने के बहुत काम आता है वैसे भी उस समय उनके साथ मीडिया तो होता नहीं है ये सब कुछ पूर्वनियोजित सा होता है ! अक्सर नेताओं को आपने कहते सुना होगा कि यदि हमारे ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध हुए तो वो संन्यास ले लेंगे !चूँकि उन्हें पता होता है कि संन्यास लेकर भी स्वदेशी के नाम पर दवा दारू का उद्योग तो वो लगा ही सकते हैं इससे उन्हें कैसे रोक जा सकता है !इस प्रकार से इस युग में ऐसे लोगों के हिसाब से संन्यास और राजनीति एक दूसरे की पूरक होती जा रही है ! मीडिया का काम इनसे चिपक कर चलना होता है पूरे देश से इनका कहाँ बहुत मतलब होता है कोई बहुत बड़ी घटना घटित हो जाए तो बात और है अन्यथा जनता के बच्चे गायब कर दिए जाएँ तो वो खबर बने न बने किन्तु नेता जी की भैंसें गायब हों तो ये लोग उसमें खबर बना लेते हैं !आम जनता की उपेक्षा राजनेता ही नहीं मीडिया भी करता है !जहाँ धन मिलता है वहीँ मीडिया का मन लगता है पिछले कुछ महीने पहले निर्मल बाबा टाईप के किसी धर्म व्यवसायी में मीडिया को अचानक बहुत सारे दुर्गुण दिखाई देने लगे और सभी चैनलों ने उसका बहिष्कार कर दिया किन्तु इसी बीच मीडिया और निर्मल बाबा के बीच ऐसा कुछ पका कि वो आज फिर पवित्र हैं और चैनलों ने उन्हें शिर आँखों पर बैठा रखा है !
कुल मिलाकर वर्तमान लोकतंत्र में मीडिया इतना अधिक सक्षम है कि किसी को कुछ भी बना सकता है जैसे किसी की जेब में मीडिया को देने के लिए पैसे हों तो वो बिना कुछ पढ़े लिखे भी ज्योतिषाचार्य बना सकता है और वो राशिफल से लेकर कहीं भी कुछ भी कितना भी झूठ बोले किन्तु मीडिया की कृपा से वो निश्चिन्त बना रहता है !
बंधुओ ! आपको पता ही होगा कि सरकारी संस्कृत विश्वद्यालयों से ज्योतिष को विषय के रूप में लेकर एम.ए.करने पर उसे ज्योतिषाचार्य नामक डिग्री मिलती है किन्तु जिसने ऐसी कोई पढ़ाई नहीं की है उसके नाम के साथ ज्योतिषाचार्य की डिग्री लगाना या ज्योतिष की प्रेक्टिस कानूनन अनुचित होता होगा किन्तु मीडिया है कि जिसको जब जहाँ चाहे चढ़ा दे और जिसको जब जहाँ से चाहे गिरा दे !
खैर, अब बारी सरकारी कर्मचारियों की इनकी सैलरी से लेकर सुख सुविधाओं के लिए सभी चिंतित रहते हैं । सरकारी स्कूलों में शिक्षक की कुर्सी यदि पुरानी हो जाए और देखने में अच्छी न लगे तो मीडिया का कैमरा उस कुर्सी को बार बार दिखाएगा किन्तु उस कुर्सी पर बैठकर वो करते क्या हैं इसपर मीडिया का ध्यान ही कहाँ जाता है ! इसीप्रकार से जिस विभाग में दसों लाख रूपए की सैलरी वहाँ के कर्मचारी ले जाते हैं किन्तु पाँच दस हजार का प्रिंटर ठीक न होने से महीनों तक वहाँ काम नहीं होता है जनता बिचारी पूछ पूछ कर लौट जाती है किन्तु मीडिया में कहाँ आती हैं ऐसी खबरें !
अर्थात चरित्रवान संतों को अपने समुदाय पर उठने वाली अँगुलियों के इशारों को यूँ ही नजरंदाज नहीं कर देना चाहिए । भिक्षावृत्ति के पवित्रव्रतियों जैसी वेषभूषा बनाकर रहने वाले कुछ साधूसंत यदि सांसारिक प्रपंचों में फँसने लगें न केवल चूरन चटनी मिर्च मशाले बेचते फिरते हों अपितु अरबों रुपयों के उद्योग चलने लगें इसी प्रकार से अन्य भी विविध प्रकार के प्रपंच फाँसते फिरते हों फिर भी अपने को संन्यासी सिद्ध करने पर तुले हों तो ये संन्यास का मजाक नहीं तो क्या है !
इसीप्रकार से आधुनिक राजनेता लोग राजनीति में घुसते तो देश और देशवासियों की सेवा करने के लिए हैं किन्तु वहाँ निकलते मेवा लेकर हैं वो भी अपने एवं अपनों के लिए राजनीति में घुसते वक्त जिनकी औकात हजारों लाखों की होती है वो बिना कोई ख़ास व्यापार किए जीवन में बिना कोई कंजूसी किए सारी सुख सुविधाएँ भोगते हुए भी खरबों में खेलने लगते हैं अपने को दलित राजनेता कहने वाले भी करोड़ों के घाँघरे पहनने लगते हैं !
मजे की बात ये है कि एक से एक ईमानदार राजनेताओं के हाथों में सत्ता पहुँचती है किन्तु ऐसे नेताओं का वह भ्रष्टाचारार्जित धन और उन नेताओं को कटघरे में खड़ा करके उनसे जनता की गाढ़ीकमाई उन नेताओं से छीन कर जनता को सौंपने की जेहमत कोई उस तरह से नहीं उठाता है जैसा उठाया जाना चाहिए । आखिर क्यों ?क्या वो नेता भी ईमानदार नहीं होते हैं ईमानदारी का केवल दिखावा करते रहते हैं अथवा वो इस बात से डरते हैं कि कल इनकी पार्टी सत्ता में आई तो मेरे साथ भी ऐसा ही होगा !यदि ये बात ऐसी ही सच है तो देश वासियों को ईमानदार एवं कर्मठ प्रशासक खोजने की यात्रा अपनी जारी रखनी चाहिए क्योंकि यह सपना अभी तक अधूरा है ।
तीसरा पक्ष है मीडिया का मीडिया आज नैतिक नहीं रहा है उस अपने काम पर उस तरह की निष्ठा भी नहीं दिखती जैसी होनी चाहिए इधर कुछ वर्षों से मीडिया सत्ता एवं संपत्ति के सामने केवल दुम हिलाते दिखते रहना चाहता है कई प्रकरणों में देखा जाता है कि सत्ता के शीर्ष पुरुषों की चाटुकारिता में अपनी कलम का इस्तेमाल झाड़ू की तरह करता है वो सत्ता शीर्ष पर छाई हुई पार्टी और राजनेताओं की उनके कपड़ों की उनकी चाल ढाल रहन सहन वेष भूषा आदि की केवल प्रशंसा ही किया करता है यह चाटुकारिता यहाँ तक बढ़ चुकी है कि कई बड़े वैश्विक मंचों पर अपने नेताओं के प्रवचनों को सारगर्भित भाषणों की तरह महिमामंडित करती रहती है वैश्विक मंचों पर दिए गए हमारे भाषणों का मूल्यांकन हर देश अपने अपने व्यक्तिगत लाभ हानि की दृष्टि से करता है इसलिए हमारा भी दायित्व बन जाता है कि हम अपने भाषणों में अधिक से अधिक देशों के हृदय छूने होंगे तब वो देश भी हमारी भावनाओं से भावित होकर हमारे एवं हमारे पड़ोसियों के साथ हमारे बनाते बिगड़ते संबंधों में हमारे साथ खड़े होंगे किन्तु ऐसी उमींद कैसे की जा सकती है कि विश्व के कुछ देश या समूह या स्त्री पुरुष किन्हीं लोगों के अत्याचार के शिकार हो रहे हों वो भी हमसे अपेक्षा करते हैं कि हम उनके लिए भी कुछ सोचें किन्तु हम अपनी अपनी बातें एवं मधुरिम कल्पनाएँ परोसकर यह सोचकर चले आएँ कि अब विश्व हमारी ओर लालायित होगा किन्तु आखिर किसलिए !यदि हमारी उन बातों में उनका कोई स्वार्थ नहीं होगा, ऐसे प्रवचनों को भी मीडिया महिमा मंडित करे यह बात समझ से परे है !कई बार ऐसा होते देखा जाता है ।
Friday, 24 October 2014
दीपावली के विषय में कई टी.वी. चैनलों ने जनता को दी गलत जानकारी !
धर्म ,ज्योतिष एवं शास्त्रीय विषयों में भारतीय मीडिया न जाने क्यों दिनोंदिन भोंदू बनता जा रहा है !
मीडिया को खुद ही नहीं पता है कि दीवाली का पर्व मनाया क्यों जाता है ! मीडिया से जुड़े टी.वी. चैनलीय लोग जनता को दिन भर मूर्ख बनाते रहे कि दीपावली श्री राम के बन से वापस आने की खुशी के उपलक्ष्य में मनाई जाती है जबकि सच्चाई ये है कि राजा बलि ने भगवान विष्णु से वरदान के रूप में वर्ष में एक दिन के लिए इस पृथ्वी पर अपने राज्य का महोत्सव मनाने का बचन लिया था जिसमें उसकी इच्छा थी कि इस समस्त पृथ्वी को प्रकाश से नहला दिया जाए ! इसीलिए दीपावली त्यौहार को प्रकाश पर्व के रूप में मनाते हैं एवं इसे "कौमुदी महोत्सव" भी कहते हैं ! इस विषय में अधिक जानकारी के पढ़ें हमारा यह लेख लिंक -
दीपावली का त्योहार मनाते आखिर क्यों हैं और कब से चली आ रही है दिवाली मनाने की परंपरा ! see more...http://snvajpayee.blogspot.in/2014/10/blog-post.html
बंधुओं ! धर्म एवं धर्मशास्त्रों ,ज्योतिष तथा वास्तु आदि विषयों में टीवी चैनलों से परोसी जा रही सामग्री विश्वसनीय नहीं होती है !आप स्वयं देखिए -
मीडिया के टी.वी. चैनलों के विषय में लगता है कि उन्हें पढ़े लिखे ज्योतिषी या धर्मवेत्ता शास्त्रीय विद्वान मिलते ही नहीं हैं और यदि मिले भी तो बहुत थोड़े समय के लिए मिलते हैं , अन्यथा धर्म ज्योतिष वास्तु एवं उनके उपायों के विषय में निराधार बातें बकने के लिए तरह तरह के मुखौटे लगाए लोगों को न जाने कहाँ से पकड़ लाता है मीडिया और धर्म एवं धर्म शास्त्रों के नाम पर या ज्योतिष,वास्तु एवं उनके उपायों के नाम पर उन शास्त्रीय निरक्षरों की कल्पित बकवास परोसा करता है मीडिया !शास्त्रों के नाम पर उनके द्वारा जो भी बातें बताई जाती हैं उपाय करवाए जाते हैं उनका प्रायः शास्त्रों या आर्ष ग्रंथों से कोई सम्बन्ध ही नहीं होता है वो सब लगभग कोरा झूठ होता है ।
आप स्वयं सोचिए कि राशिफल नामक झूठ बोलने के लिए विभिन्न टीवी चैनलों ने विभिन्न प्रकार के लोग बैठा रखे होते हैं ये लोग एक ही राशि वालों के लिए एक ही दिन के विषय में अलग अलग या कई बार परस्पर विरोधी राशिफल नामक झूठ बोल रहे होते हैं आखिर क्यों ? ऐसा करवाने में मीडिया की मजबूरी आखिर क्या है!
आप स्वयं ही सोचिए कि जब एक दिन में कोई ग्रह नहीं बदलता है तो ऐसा कैसे संभव है !कोई ग्रह महीने में बदलता है, कोई वर्ष में कोई वर्षों में राशि बदलता है एक मात्र चन्द्रमा ऐसा ग्रह है जो सबसे कम अर्थात सवा दो दिनों में राशि बदलता है फिर इन झुट्ठों का राशि फल रोज आखिर कैसे बदलता है और उसका शास्त्रीय आधार आखिर क्या होता है !इसी प्रकार से टीवीचैनलों पर चलने वाले ज्योतिष,वास्तु एवं धर्म सम्बन्धी लगभग हर कार्यक्रम को कल्पित ही समझना चाहिए जिनके विषय में शास्त्रीय प्रमाण नहीं दिए जाते हैं ।
टीवीचैनलों पर ऐसे कार्यक्रम दिखाने के शौकीन लोगों को क्या यह पता होना चाहिए कि सरकार के द्वारा चलाए जाने वाले संस्कृत विश्वविद्यालयों में ज्योतिष वास्तु एवं अन्य धार्मिक विषय सब्जेक्ट के रूप में पढ़ाए जाते हैं इन्हीं विषयों में एम.ए.पीएच. डी. आदि भी करवाया जाता है ऐसे संस्कृत विश्वविद्यालयों ,महाविद्यालयों या विद्यालयों में पढ़ाने वाले लोग उन उन विषयों के अधिकृत विद्वान होते हैं!धर्म के नाम पर बड़ी बड़ी बहसें करवाने वाला मीडिया उन विद्वानों तक पहुँचने की आवश्यकता ही नहीं समझता है जो किसी विषय के शास्त्रीय पक्ष को रख सकने में सक्षम हों !इसका कारण है कि उनका चेहरा टीवी पर दिखाने के लिए मीडिया को जो धन चाहिए वो विद्वान लोग ईमानदारी पूर्वक कमाकर मीडिया को कैसे दे सकते हैं !इसलिए मीडिया उनकी उपेक्षा हमेंशा करता रहता है कभी कोई बात बहुत आगे बढ़ जाए और उन बातों को समेटना इनके बूते का न रह जाए तब मीडिया भागता है शास्त्रीय विद्वानों एवं शास्त्रीय साधू संतों के पास ! बाकी तो उन्हीं अपने रोज वाले कल्पित लोगों को माला वाला पहनाकर,चंदन वंदन लगवाकर बैठा लेता है मीडिया ,यह जानते हुए भी कि इन लोगों ने संस्कृत विश्वविद्यालयों ,महाविद्यालयों या विद्यालयों से सम्बंधित विषयों में कभी कोई शिक्षा नहीं ली है !आखिर धार्मिक एवं शास्त्रीय विषयों की छीछालेदर करवाने में मीडिया की ऐसी मजबूरी क्या है ?
इन मीडिया वालों को ऐसा कोई साधू संत क्यों नहीं मिलता है जिसके माध्यम से ये मीडियायी लोग धर्म एवं शास्त्रों की सही सही जानकारी जनता को परोस पाते जो इनका नैतिक कर्तव्य भी है किन्तु दुनियाँ को नैतिकता का पाठ पढ़ाने की कसम खाने वाला मीडिया , किसी को भी कभी भी कटघरे में खड़ा कर देने वाले मीडिया के मल्ल वीर धर्म एवं शास्त्रों के बारे में हमेंशा भ्रामक जानकारी न जाने क्यों देते रहते हैं !
Monday, 13 October 2014
कहाँ श्री राम जी और कहाँ साईं !
साईं पत्थरों को देवता बनाने की साजिश एक बार फिर हुई नाकाम !
वहाँ से भी खदेड़े गए साईं जहाँ से आशा थी कि शायद उन्हीं के सहयोग से पुजवाने की शौक पूरी हो जाए !
चमत्कारी साईं के कहाँ गए चमत्कार ! ये तो धीरे धीरे निर्मल बाबा बनते जा रहे हैं अब तो कोई चालाकी काम नहीं आ रही है !
साईं को जयंत से सबक लेना चाहिए था !
साईं की दुर्दशा रामचरित मानस के जयंत की तरह होती चली जा रही है जहाँ जाएँ वहीँ धक्के मिल रहे हैं श्री राम प्रभु के द्रोही की रक्षा कौन कर सकता है अर्थात कोई नहीं -
काहू राखन कहा न ओही ।
राखि को सकहि राम कर द्रोही ॥
-रामचरित मानस
साईंवादियों को रावण की दुर्दशा नहीं भूलनी चाहिए -
राम विमुख अस हाल तुम्हारा ।
रहा न कुल को रोवनि हारा ॥
श्री राम के सामने बड़ों बड़ों की तो चली नहीं साईं किस खेत की मूली हैं -
कहाँ श्री राम जी और कहाँ साईं !
श्री राम जी जो करना चाहते हैं होता वही है जिस जीवन को श्री राम जी खाली खाली रखना चाहते हैं उसे भर कौन सकता है और जब श्री राम जी भरेंगे तो खाली कौन कर सकता है जिसे राम जी सामाजिक पद प्रतिष्ठा आदि समस्त सुख सुविधाएँ प्रदान करना चाहेंगे उसकी छीन कौन सकता है और जिसकी छीनना चाहेंगे उसे दे कौन सकता है ! कुल मिलाकर करना जब सबकुछ श्री राम जी को ही है साईं भी उन्हीं के आधीन है फिर साईं वाले ये क्यों नहीं सोचते हैं कि श्री राम जी में ऐसी क्या कमी है जो साईं बुढ़ऊ पूरी करेंगे ! गोस्वामी तुलसी दास जी महाराज जी कहते हैं कि -
को भरिहै है के रितए रितवै पुनि को हरि जौं भरिहै ।
उथपै तेहि को जेहि राम थपै थपिहै तेहि को हरि जौं टरिहै ।
-कवितावली
जो समझ नहीं सकते पढ़ नहीं सकते ऐसे गूँगे बहरे लोग कुछ भी कहें तो उसका जवाब कैसे दिया जा सकता है हाँ कोई प्रमाणित बात बोले उसका जवाब होता ही है किन्तु जब साईं प्रमाणित नहीं हैं तो उनके चेला चेलियों से शास्त्र प्रमाणों की आशा ही क्यों करनी !
वहाँ से भी खदेड़े गए साईं जहाँ से आशा थी कि शायद उन्हीं के सहयोग से पुजवाने की शौक पूरी हो जाए !
चमत्कारी साईं के कहाँ गए चमत्कार ! ये तो धीरे धीरे निर्मल बाबा बनते जा रहे हैं अब तो कोई चालाकी काम नहीं आ रही है !
साईं को जयंत से सबक लेना चाहिए था !
साईं की दुर्दशा रामचरित मानस के जयंत की तरह होती चली जा रही है जहाँ जाएँ वहीँ धक्के मिल रहे हैं श्री राम प्रभु के द्रोही की रक्षा कौन कर सकता है अर्थात कोई नहीं -
काहू राखन कहा न ओही ।
राखि को सकहि राम कर द्रोही ॥
-रामचरित मानस
साईंवादियों को रावण की दुर्दशा नहीं भूलनी चाहिए -
राम विमुख अस हाल तुम्हारा ।
रहा न कुल को रोवनि हारा ॥
श्री राम के सामने बड़ों बड़ों की तो चली नहीं साईं किस खेत की मूली हैं -
कहाँ श्री राम जी और कहाँ साईं !
श्री राम जी जो करना चाहते हैं होता वही है जिस जीवन को श्री राम जी खाली खाली रखना चाहते हैं उसे भर कौन सकता है और जब श्री राम जी भरेंगे तो खाली कौन कर सकता है जिसे राम जी सामाजिक पद प्रतिष्ठा आदि समस्त सुख सुविधाएँ प्रदान करना चाहेंगे उसकी छीन कौन सकता है और जिसकी छीनना चाहेंगे उसे दे कौन सकता है ! कुल मिलाकर करना जब सबकुछ श्री राम जी को ही है साईं भी उन्हीं के आधीन है फिर साईं वाले ये क्यों नहीं सोचते हैं कि श्री राम जी में ऐसी क्या कमी है जो साईं बुढ़ऊ पूरी करेंगे ! गोस्वामी तुलसी दास जी महाराज जी कहते हैं कि -
को भरिहै है के रितए रितवै पुनि को हरि जौं भरिहै ।
उथपै तेहि को जेहि राम थपै थपिहै तेहि को हरि जौं टरिहै ।
-कवितावली
जो समझ नहीं सकते पढ़ नहीं सकते ऐसे गूँगे बहरे लोग कुछ भी कहें तो उसका जवाब कैसे दिया जा सकता है हाँ कोई प्रमाणित बात बोले उसका जवाब होता ही है किन्तु जब साईं प्रमाणित नहीं हैं तो उनके चेला चेलियों से शास्त्र प्रमाणों की आशा ही क्यों करनी !
Sunday, 12 October 2014
महिलाओं की सुरक्षा के लिए महिलाएँ आगे आएँ और भली महिलाओं को शोषित होने से बचाएँ !
महिलाओं की सुरक्षा पुरुषों के बश की बात नहीं है वो पुलिस वाले ही क्यों न हों !
Saturday, 11 October 2014
गुप्त करवाचौथ मनाने के लिए न्योछावर हुई तरुणाई !
गुप्त करवाचौथ की बर्बादी भुगत रहे हैं कई भले परिवार !
अपने यहाँ घटित हो रहे बलात्कारों को लेकर तो बड़ी बड़ी बातें हो रही हैं कठोर कानून बनाने की माँग आदि बहुत कुछ हो रहा है मीडिया को भी जब कोई समाचार नहीं मिलता है तब बलात्कारों को रोकने की बातें ही करने लगता है क्योंकि उसे विश्वास होता है कि ये खबरें कभी पुरानी नहीं होंगी !
समाज में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो गलत है किन्तु उसे गलत मानते हुए भी गलत कहने का साहस लोगों में घटता जा रहा है ये गंभीर चिंता का विषय है !
बंधुओ !कल पार्कों में या वैसे जहाँ तहाँ लड़के लड़कियों के जोड़े एक दूसरे में ऐसे समिटते देखे गए जैसे दारुण शीतऋतु की शर्दी रजाई के अभाव में इसीप्रकार से छुटा लेना चाह रहे हों !कई जगह तो इस परिस्थिति में अधेड़ जोड़े भी देखे गए ! सार्वजनिक जगहों में भी ऐसी रासलीला अब तो आमतौर पर देखी जा सकती है कोई किसी को देखने सुनने वाला नहीं है अब तो लोगों को परदे की जरूरत भी नहीं दिखती है !
गुप्त करवाचौथ मनाने वाला समाज जो या तो अविवाहित होता है या तलाक शुदा होता है या पति या पत्नी ,में से कोई एक किसी दुर्घटना के शिकार हो गए हों ऐसे सदस्य भी होते हैं ऐसे लोगों को तो अच्छा बुरा आप कुछ भी कहें ये आपकी मर्जी !
यहाँ एक वर्ग ऐसा भी होता है जो किसी अयोग्य महिला को योग्य बनाने की ताकत रखता है ऐसे शक्तिशाली लोग भी ऐसी गतिविधियों में सम्मिलित होते हैं ऐसे लोग बेशक महँगी जगहों पर जाते हों किन्तु सम्मिलित ये लोग भी हैं !ऐसे रोगों के रोगी कई राजनेता भी होते हैं ये लोग विवाहित होने के बाद भी अपनी पार्टी, संगठन ,सरकार आदि में देखने में सुन्दर लगने वाली महत्वाकांक्षी किसी महिला को न केवल अपने साथ सम्मिलित कर लेते हैं अपितु उसे अपने प्रति समर्पित भी देखना चाहते हैं ऐसी महिलाएँ अपने पति की बुराई करती हुई एवं उनकी प्रशंसा करके उनके साथ सभीप्रकार से समर्पित होती हैं पति बेचारे को छायामात्र के लिए केवल गुस्सा सहते हुए दुम हिलाने के लिए रखती हैं बाकी सब कुछ समर्पित होता है उस राजनेता के लिए ! यहाँ तक कि करवा चौथ भी उसी के लिए किन्तु लोकलाज से बचते बचाते हुए इसलिए गुप्त करवाचौथ का सहारा लेना पड़ता है !अपने विवाहित पति से मिल पाना तो नेता जी की कृपा से ही संभव हो पाता है नेता जी न चाहें तो नहीं होगा !वो करवा चौथ के दिन ही कोई बाहर जाने का टूर बना लेंगे जिसे प्रभावी पत्नी का बेचारा पति रोक भी कैसे सकता है !
सरकारी कर्मचारी वर्ग में भी सीनियर पदों पर भी अपने अंडर में काम करने वाली महिलाओं के प्रति ऐसी सोच रखने वालों की कमी नहीं हैं यद्यपि महिलाओं का बहुत बड़ा वर्ग अपने अफसरों की ऐसी हरकतों का न केवल विरोध करता है अपितु उनके साथ किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करता है इसके कारण कईबार अनेकों प्रकार से प्रताड़ना भी सहनी पड़ती है उन्हें ! फिर भी वे अडिग रहती हैं । विशेष बात यह है कि इतना सब होने पर भी ऐसी महिलाएँ उन लोगों को मिल ही जाती हैं जो उनकी इच्छाओं के आगे घुटने टेक ही देती हैं ऐसे लोग मनमाने ढंग से मनवाते हैं अपनी करवाचौथ किन्तु गुप्त रूप से इसीलिए इसे गुप्त करवाचौथ भी कहा जाता है !
प्राइवेट नौकरियों में भी गुप्त करवाचौथ मनाने की परंपरा है हमारे एक परिचित हैं उनका न्यूज़ चैनल है वहाँ काम करने वाली एक सुंदरी को पहले वे धार्मिक बातों का उपदेश दे देकर गृहस्थ जीवन के प्रति उसके मन में घृणा भरते रहे और उन्हें वैराग्य का उपदेश करते रहे इसलिए उसने अपनी शादी करने को सबको मना कर दिया बाद में उन्होंने स्टूडिओ से थोड़ी देर पर एक फ्लेट उसे दिलवा दिया जहाँ वो अकेले रहने लगी जिसे चाहे अनचाहे उनके प्रति समर्पित होना पड़ा किन्तु उनके मन में वैराग्य भावना चूँकि स्थाई हो चुकी थी इसलिए उसे बासनात्मक बातों में रूचि नहीं रही थी इससे उनके प्रेमी बहुत परेशान थे इसलिए उन्होंने हमारे ज्योतिष ज्ञान का लाभ इस विषय में लेना चाहा जिसमें दोनों लोगों से अलग अलग बात करने का मौका मिला और ये बातें सामने आईं !
इसी प्रकार से अन्य क्षेत्रों में भी है जहाँ जो लड़की स्त्री आदि किसी के दबाव में आ भर पाती है कि प्रभावी पुरुष उस पर स्वामित्व जताने लगता है !इसमें अपनी अयोग्यता को नजरंदाज करते हुए भी धन सम्मान एवं पद प्रतिष्ठा पाने की लालषा रखने वाली महिलाओं को ऐसे लोगों की भावनाओं के साथ समझौता करना पड़ता है और विभिन्न बहाने बनाकर ऐसे लोगों के साथ होटल, रेस्टोरेंटों ,पार्कों ,पार्किंगों या और ऐसे ही स्थलों में मनानी पड़ती है गुप्त करवा चौथ ! ऐसे लोगों ने अपने घर परिवार के प्रति समर्पित महिलाओं को महती पीड़ा दे रखी है उचित होता यदि ये सुधरते !कल शाम को पार्कों में इस गुप्त करवाचौथ को देखने दिखाने वाले जोड़ों को इतनी तक परवाह नहीं थी की उनके पास कौन खड़ा है कौन देख रहा है आदि आदि उन्हें इतनी भी समाई नहीं थी !ये समाज का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा !
पढ़ें हमारा यह लेख भी -
करवाचौथ की शॉपिंग में विवाहिताओं पर भारी पड़ती हैं प्रेमिकाएँ आखिर क्यों ?करवा चौथ की शॉपिंग इतनी महँगी क्यों ?see more... http://samayvigyan.blogspot.in/2014/10/blog-post_11.html
करवाचौथ की शॉपिंग में विवाहिताओं पर भारी पड़ती हैं प्रेमिकाएँ आखिर क्यों ?
करवा चौथ की शॉपिंग इतनी महँगी क्यों ?
विवाहित संबंधों में कुछ दिखावा करना नहीं होता है !इसलिए यहाँ धन महत्वपूर्ण नहीं होता है यहाँ मन का महत्त्व होता है जो सामान मिल पाया उसी से श्रद्धा पूर्वक पूर्ण निष्ठा से पूजा की जाती है ।
लव मैरिज में धन और मन दोनों से पूजा की जाती है
वस्त्र आभूषण आदि शौक शान में जितना धन लगाया जाएगा वैसी पूजा होती है और जो धन नहीं लगा सकता उसकी लम्बी आयु माँगने में मन कहाँ लगता है वैसे भी ऐसे लोगों की दीर्घायु माँगकर भी क्या करना !
बिना मैरिज वाले केवल लवलबाते हुए संबंधों की करवाचौथ तो धन से ही होती है वहाँ मन कहाँ लगता है ऐसी प्रेमिकाएँ अधिक से अधिक धन खर्च करवाने के पक्ष में होती हैं वो मेंहदी भी लगवाने जाती हैं तो जितने माँगता है उससे अधिक देकर आती हैं और देखा करती हैं अपने प्रेमी का मुख जितने तक खर्च करने में उसकी हँसी बंद होने लगती है और मुख बनने लगता है वो समझ लेती हैं की इसकी औकात इतनी ही है यदि अगली करवाचौथ में उससे अधिक खर्चा करने वाला कोई दूसरा प्रेमी मिलता है तो अगली करवा चौथ उसके नाम की !अन्यथा इसी से काम चलेगा !
यही कारण है कि यह पता होते हुए भी कि सौभाग्यवती स्त्रियाँ ही इस व्रत को रखती हैं हमें नहीं रखना चाहिए फिर भी रखती हैं केवल इसलिए कि साल भर में पटाए गए प्रेमी की परीक्षा आखिर कैसे की जाए ! अबकी बार करवाचौथ में कौन चीज कितनी महँगी रही वो इन्हीं लोगों की शॉपिंग से आँका जाता है क्योंकि सौभाग्यवती स्त्रियों को घर देखकर चलना पड़ता है किन्तु जिनका घर ही न बसा हो सबकुछ हवा में ही हो वो क्यों देखें घर ?वहाँ तो न खाता न बही जो प्रेमिका कहे सो सही !
प्रेमिकाओं की शॉपिंग देख देखकर अब विवाहिताएँ भी लड़ने लगी हैं अपने पतियों से कि जो अपनी पत्नी को प्रेम करते हैं वो इतनी महँगी शॉपिंग करवाते हैं लगता है कि तुम हमें प्रेम ही नहीं करते हो !
Tuesday, 7 October 2014
ब्राह्मणों ने कभी किसी को सताया नहीं इसीलिए उनका सम्मान हमेंशा सुरक्षित रहा !
ब्राह्मण भी आरक्षण जैसी भीख के सहारे जीने लगते तो उनकी भी वही दुर्दशा होती जो आरक्षण लोभियों की हो रही है न इधर के न उधर के !
आरक्षण भिखारियों का लेवल भी लग गया मिला भी कुछ नहीं जो मिला वो उनके हमदर्द नेता खा गए अन्यथा उन नेताओं की संपत्तियाँ बढ़ीं कैसे वो कमाने तो कहीं गए नहीं और न ही कोई धंधा व्यापार ही करते देखे गए !दलितों के आरक्षण वाला माल वही दलितों के हितैषी नेता लोग चरते जा रहे हैं और दलितों को ठेंगा दिखाते जा रहे हैं !दलितों को बेवकूफ बनाते हुए कहते हैं तुम्हारा शोषण सवर्णों ने किया है अरे सवर्ण करते तो उनके पास होता और यदि किया है तो सवर्णों से लेकर उन्हें दिलाइए किन्तु नेताओ !खुद क्यों खाए जा रहे हो दलितों का धन धर्म आदि सब कुछ ?रही बात ब्राह्मणों की तो ब्राह्मण सभी लोगों के लिए हमेंशा शुभ सोचता है शुभ करता है सन्मार्ग का उपदेश करता है इससे प्रभावित सभी जातियाँ उसका सम्मान करती हैं !इसमें ब्राह्मणों का क्या दोष ?ब्राह्मणों ने सम्मान की कभी किसी से भीख नहीं माँगी उनके गुणों से प्रभावित होकर ही सभी जातियाँ ब्राह्मणों का सम्मान करती रहीं हैं किसी पर कोई जबर्दश्ती नहीं थी !सभी जातियाँ ऋषियों की संतानें हैं सभी जातियों ने मिलजुलकर भारतीय शास्त्रीय संस्कृति को बचा और बना कर रखा है जो जिस लायक था उसने वो और उतना योगदान दिया है अपनी शास्त्रीय संस्कृति की रक्षा में सबका योगदान रहा है !क्योंकि अपने धर्म की शास्त्रीय सामर्थ्य पर अन्य जातियों को भी उतना ही गर्व रहा है जितना ब्राह्मणों को है ! अन्यथा ब्राह्मणों की संख्या हमेंशा से सबसे कम रही है ब्राह्मण लोग बल पूर्वक अपना मत किसी पर कभी भी कैसे भी नहीं थोप सकते थे उनके त्याग तपस्या और बलिदान से प्रभावित होकर ही सभी जातियाँ ब्राह्मणों का सम्मान करती रहीं थीं क्योंकि अपनी संस्कृति से लगाव तो सबको था ही सभी जातियों के लोग यह चाहते थे कि विश्व के सबसे प्राचीन अपने सनातन धर्म की ध्वजा कभी झुकने न पाए उन्हें लगता था कि यदि हम वेद शास्त्र नहीं पढ़ पा रहे हैं त्याग तपस्या में ब्राह्मण हमसे आगे हैं तो इस क्षेत्र में इन्हीं को महत्त्व दिया जाना चाहिए ताकि धर्म और संस्कृति की रक्षा ब्राह्मण लोग ठीक ढंग से कर सकें न केवल इतना ब्राह्मण दिन भर यज्ञ आदि कार्यों में लगे रहते थे बाक़ी सभी वर्णों के लोग उनके भरण पोषण की चिंता करते थे ऐसी पवित्र भावना से मिलजुल कर सभी जातियों ने आज तक अपने धर्म और संस्कृति को बचा कर रखा है अन्यथा इतने वर्षों तक गुलामी झेलने वाले सनातन धर्मी सभी जाति के लोगों ने अपने धर्म और संस्कृति को भुलाया नहीं सभी लोग अपने अपने पथ पर सुचारू रूप से चलते रहे कभी किसी को किसी से कोई समस्या नहीं रही लोगों ने मिलजुल कर बनाया और बचाया है अपनी संस्कृति को !सबको अपने पूर्वज ऋषियों के ज्ञान विज्ञान पर गर्व था और आज भी है तभी सभी धर्म कर्म आज भी शास्त्रीय विधि विधानों से संचालित हो पा रहे हैं।
इस समाज के सात्विक संचालन में ब्राह्मणों का हमेंशा से अमित योगदान रहा है यह बात अनंत काल से प्रमाणित है यदि ऐसा न होता तो जो लोग आज यह कहते हुए ब्राह्मणों की निंदा करते हैं कि ब्राह्मणों ने कभी किसी जाति धर्म के लोगों का शोषण किया था उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि उन सभी के पूर्वज मूर्ख तो नहीं थे आखिर ब्राह्मणों के महत्त्व को उन लोगों ने स्वेच्छया स्वीकार किया था अन्यथा वो कायर डरपोक नहीं थे जो डरकर ब्राह्मणों के सामने हाँ जी हाँ जी करने लगे होंगे !उस युग में जातियों के सामर्थ्यवान लोगों ने नियम धर्म और कानून बनाए थे किसी को किसी से कभी कोई शिकायत नहीं रही तभी सब कुछ ठीक ठाक ढंग से चलता रहा था ।
बंधुओ ! इसी बीच देश परतंत्र हो गया उन गुलामी के दिनों में धर्म परिवर्तन का भी बहुत दबाव रहा , सनातन हिन्दुओं ने सारे संकट सहे किंतु अपने धर्म और संस्कृति के साथ कभी कोई समझौता नहीं किया !ब्राह्मणों के बौद्धिक नेतृत्व में सभी जातियों के लोग अपने धर्म संस्कृति पर निष्ठा पूर्वक अडिग होकर डटे रहे इसलिए आक्रान्ताओं को हिन्दू तथा उनकी शास्त्रीय संस्कृति एवं ब्राह्मणों वेदों शास्त्रों से चिढ़ होने लगी किन्तु उनका बिगाड़ कुछ सकते नहीं थे ।
ऐसी परिस्थिति में उन्होंने सनातन हिन्दुओं का बलपूर्वक DNA बिगड़ने की कोशिश जिसमें उन्हें कुछ हद तक सफलता भी मिली ! उनकी संतानें आज भी भारत वर्ष को, भारतीय सनातनी शास्त्रीय संस्कृति को अपने पूर्वजों अर्थात अंग्रेजों की तरह ही न केवल देखती हैं अपितु दुष्प्रचारित भी उसी तरह से करती हैं इसीलिए ऐसी उनकी संतानें अपने भारतीय प्रमाणित पूर्वजों को बुजदिल कायर मक्कार सिद्ध करने का कोई मौका चूकती नहीं हैं हमेंशा यही दिखाया करती हैं कि उनके यहाँ के पूर्वज लोग कितने कमजोर कितने निरीह और कितने डरपोक थे यही कारण है कि ब्राह्मण शोषण करते रहे और सभी जातियाँ सहती रहीं !
ऐसा सिद्ध करने के लिए वो अपने वास्तविक पूर्वज अंग्रेजों की कही बातें लिखी किताबें उनके यहाँ उनके सोच के आधार पर बनी किताबों को प्रमाण मानकर सर्वजातिमयी भारतीय समाज को बरगलाने का आज भी प्रयास करते रहते हैं इसलिए इससे हमेंशा सतर्क और सावधान रहना ही चाहिए !ऐसे लोगों की कही लिखी एवं बोली हुई बातों पर कभी विश्वास ही नहीं करना चाहिए साथ ही इतना ध्यान भी रखना चाहिए कि जब उनके पूर्वज अंग्रेज भारतीय संस्कृति का कुछ नहीं बिगाड़ सके तो उनकी डुब्लीकेट संतानें आखिर किसी का क्या कर लेंगी !
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य कभी जातिवादी नहीं रहे अन्यथा पतन उनका भी हुआ होता !
सवर्णों ने अपने जीवन में हमेंशा पारदर्शिता रखी थी उन्हें महत्व मिलने का एक कारण ये भी रहा है !
Wednesday, 1 October 2014
छूत और अछूत जैसी बातें राजनैतिक लोभ से फैलाई जा रही हैं ! ये विश्वसनीय नहीं है !!!
कौन छूत है और कौन अछूत ये प्रश्न ही क्यों और कितना प्रासंगिक है ? आज हर कोई होटल में खाता है बाजार का नमकीन बिस्कुट खाता है पार्टियों में हलवाई खाना बनाते हैं कोई उनकी जाति पूछकर खाना खाता है क्या !
दूसरी बात किसी को अछूत कहकर अपमान किया गया हो या किसी महिला का शीलहरण किया गया हो इनका परिमार्जन आरक्षण एवं धन से हो ही नहीं सकता है फिर आरक्षण क्यों !
जो आपके साथ जैसा व्यवहार कर रहा है आप उसके साथ वैसा ही व्यवहार कीजिए जो आपको अछूत मानता है आप भी उसे अछूत मानिए मत खाइए उसका छुआ हुआ किन्तु उसके बदले में आरक्षण माँग या लेकर आप अपने अपमान को हल्का मत बनाइए !आखिर इसमें आरक्षण किस बात का ?
कोई आपके यहाँ अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहता है तो आप अपनी बेटी उसके यहाँ देने के लिए लालायित क्यों हैं आप भी मत दीजिए उसे अपनी बेटी आखिर आपका भी अपना स्वाभिमान होना चाहिए ! किन्तु उसके बदले में आपको आरक्षण क्यों चाहिए !
आपको लगता है कि आपको वेद नहीं पढ़ने दिए गए इसलिए आप गरीब हो गए तो आप वेद पढ़िए कौन रोक रहा है आपको किन्तु इसमें आरक्षण किस बात का ?
बंधुओ ! किसी भी अपमान का सौदा नहीं किया जा सकता है किसी सम्मानित महिला का शील हरण हो जाए तो वह अपने अपमान का बदला लेना चाहेगी न कि उसके बदले में धन क्योंकि सम्मान की पूर्ति धन से कभी नहीं हो सकती ।
इसलिए प्रश्न ये नहीं होना चाहिए कि आपको कोई क्या मानता है अपितु प्रश्न ये होना चाहिए कि आप अपने को क्या मानते हो यदि आप अपने को अछूत नहीं मानते तो दूसरा कोई आप को अछूत कैसे मान सकता है उसकी अवकात क्या है कि आपकी स्थिति का मूल्यांकन कोई और करे !
हर परिस्थिति में अपना सम्मान हमें स्वयं ही बनाना पड़ता है कि हम हैं क्या इसके बाद हमारी शर्तों पर किसी को हमसे जुड़ना है तो जुड़े नहीं जुड़ना है तो मत जुड़े और जब अपना कमाना अपना खाना तो परवाह किसी और की करी भी क्यों जाए !
सवर्ण लोग ऐसा ही कर रहे हैं किन्तु जो लोग ऐसा नहीं कर रहे हैं वो भोग रहे हैं सामाजिक अपमान ! राजनैतिक दलों और लोगों ने अच्छे भले स्वस्थ एवं परिश्रमी वर्ग को आरक्षण के नाम पर सरकारी भिखारी सिद्ध कर रखा है ! दलितों के साथ अपाहिजों सा व्यवहार किया जा रहा है आज और आश्चर्य इस बात का है कि दलित लोग उनका साथ देते जा रहे हैं उन्हें जहाँ स्वाभिमान करना चाहिए वहाँ तो कर नहीं पाते हैं और सवर्णों को अपना शत्रु समझते रहते हैं !आरक्षण देने की बात करने वाले नेताओं को मुख क्यों लगाते हैं इन्हें दरवाजे से फटकार लगाकर भगा क्यों नहीं देते ! साफ साफ क्यों नहीं कह देते हैं कि यदि गरीब सवर्ण लोग संघर्ष और परिश्रम करके अपनी तरक्की कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते !
हमारे दलित बंधुओं में जब तक इसप्रकार का स्वाभिमान नहीं जगेगा तब तक कोई किसी को अछूत कहे तो कहे ये शब्द तो एक गाली है और गालियों पर देश में प्रतिबन्ध तो है नहीं यदि होता तो कोई किसी को क्यों दे रहा होता गालियाँ !इसलिए इसके मूलकारणों पर जाना बहुत आवश्यक है ।
एक दलित डॉक्टर साहब सर्जन थे उन्होंने अपने विषय में बताया कि हम आरक्षण से आए हैं योग्यता से नहीं इसलिए सवर्ण लोगों की कौन कहे दलित लोग भी हमसे आपरेशन नहीं करवाना चाहते हैं जबकि वो योग्य थे उन जैसों की पीड़ा का क्या समाधान है नेताओं के पास !आज कोई अछूत कह दे तो उसके पीछे पड़ जाओ कल कोई किसी दलित सर्जन से आपरेशन न करवावे उसके पीछे पड़ जाओ क्या कानून बश इतने लिए ही है अपनी कुछ जिम्मेदारियाँ हमें स्वयं भी उठानी चाहिए इस लोकतंत्र में सबको समान अधिकार हैं इसलिए आरक्षण का लोभ अलोकतांत्रिक है ये लोगों के पारस्परिक व्यवहार में भेदभाव उत्पन्न करता है !अतः इसे बंद किया जाना चाहिए ।
किसी भी जाति क्षेत्र धर्म वर्ग आदि के लोग हों यदि वो स्वस्थ हैं सहज हैं परिश्रम कर सकते हैं व्यापार कर सकते हैं तो उन्हें आरक्षण किस बात का !अजीब सी अंधेर है ये कि आप मंत्री बन जाएँ तो भी आरक्षण और कोई अछूत कह दे तो पिनक लगती है आखिर क्यों ?कोई तो सिद्धांत बनाकर चलना ही होगा !
इसी प्रकार से जो सुविधाएँ किसी और को मिल रही हैं वही दलितों को मिल रही हैं जो काम कोई और कर सकता है वही दलित कर सकते हैं जो व्यापार कोई और कर सकता है वही दलित कर सकते हैं राजनीति कोई और कर सकता है तो दलित भी कर सकते हैं अपने परिश्रम के बलपर बड़े से बड़े पदों पर कोई और पहुँच सकता है तो दलित भी पहुँच सकते हैं बड़ा से बड़ा व्यापार दलित भी कर सकते हैं फिर एक देश में रहने वाले एक जैसी परिस्थिति के सभी लोगों में से केवल कुछ जाति के लोगों की उन्नति करने के लिए आरक्षण की व्यवस्था अलग से क्यों ?क्या वे बीमार हैं विकलांग हैं आखिर उनके शरीरों में ऐसी कौन सी कमी है क्या रोग है कि वे बिना आरक्षण के आगे नहीं बढ़ सकते हैं ?
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