Sunday, 28 December 2014

जो प्रेमी अपने प्रति इतने हिंसक हो सकते हैं वो दूसरों पर एसिड क्यों नहीं फेंकेंगे !

सभी प्रकार अपराधों की जड़ स्वरूप ऐसे तथाकथित प्रेम सम्बन्धों को प्रतिबंधित क्यों नहीं कर दिया जाता !

गर्लफ्रेंड नहीं मिली तो प्राइवेट पार्ट ही काट लिया-नवभारत टाइम्स 

   बंधुओ !  गर्लफ्रेंड को लेकर हमेंशा भ्रम का वातावरण बनाया जाता रहा है कहा तो मित्र जाता है किन्तु माना  सेक्स पार्टनर ही जाता रहा है ऐसा अनेकों प्रकरणों से स्पष्ट हो चुका है ।     

     अगर फ्रेंड का मतलब मित्रता ही है तो मित्रता मन से होती है हृदय से होती है धोखा मिलने पर ठेस भी मन या हृदय में ही लगती है किन्तु  यदि किसी को मित्रता में ठेस मिले तो वो अपना प्राइवेट पार्ट काट ले ये बात समझ से बाहर है । कुछ दिन पहले ऐसी ही एक घटना मीडिया के माध्यम से पढ़ने को मिली कि प्रेमिका नहीं आई तो घोड़ी से सेक्स किया !

     सभी  बंधु बहनों को इस विषय पर गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए कि जो आचार व्यवहार इतना हिंसक होता चला जा रहा हो जिसमें अपनी या औरों की जिंदगी की परवाह ही न की जा रही हो जिसमें आत्म हत्या से लेकर अपने प्रेमी और प्रेमिका की हत्या अपने घर वालों से लेकर प्रेमी और प्रेमिका के परिवार वालों की हत्या तक कुल मिलाकर इन तथाकथित प्रेम संबंधों में जो बाधक बना उसे बीच से हर प्रकार से हटा दिया जाता है उसके लिए कितना भी बड़ा अपराध क्यों न करना पड़े !आजकल अक्सर हत्या के केसों में कोई न कोई प्रेम सम्बन्ध ही निकलता है ऐसे प्रेम संबंधों को समाज हित में प्रतिबंधित क्यों न कर  दिया जाए !

     इसी प्रकार से कम कमाई वाले प्रेमी लोग अपनी प्रेमिकाओं को खुश करने या उनकी डिमांड पूरी करने के लिए अक्सर अपराधों का सहारा लेते हैं कोई किसी की चैन खींचता है और कोई किसी का पर्स मारता है । जहाँ ऐसे सभी प्रकार के अपराध  देखे जा रहे हों ऐसे प्रेम संबंधों को जनहित में प्रतिबंधित क्यों न कर दिया  जाए ! 

     कुछ लोग मानते हैं कि प्रेम संबंधों का मतलब सेक्स नहीं होता है ये शुद्ध मित्रता भी तो हो सकती है किन्तु जब जब कोई कांड खुल कर सामने  आता है तो बात बनते बिगड़ते पहुँचती  सेक्स  पर ही है और अगर सेक्स की ही इतनी अधिक आवश्यकता है तो फिर  इतनी हत्याएँ या आत्म हत्याएँ आदि क्यों होती हैं और क्यों होते हैं अन्य प्रकार के अपराध !

    इसलिए जिसको जिससे जहाँ लिपटे चिपटे चूमते चाटते देखे उसका विवाह वहीँ उसी से क्यों न करवा दिया जाए टंटा टूटे ,कम से कम समाज तो इस बढ़ती पशुता से बच जाएगा, ऐसे तो बड़े बड़े पार्क पार्किंगें मैट्रो या स्टेशन और भी झाड़ी  जंगल सुनसान गाड़ियों में थोड़ा भी मौका मिलते ही या न मौका मिले  सही सभी के सामने भी बड़ी बेशर्मी पूर्वक आँखें  झुका करके कुत्ते बिल्ली बंदरों की तरह अश्लील हरकतें करने लगते हैं ऐसे जोड़ों का वहीँ हाथ के हाथ सीधे सीधे विवाह ही क्यों नहीं करवा दिया जाता है ताकि बाकी समाज को तो ये नरपशु दूषित न कर पाएँ !ऐसे तो चिपका चिपकी के खेल खेलते तो खुद हैं और पटरी न खाने पर बदनाम सारे समाज को करते हैं । कई तो ऐसे खेल सालों साल तक खेला  करते हैं और जब अपनी शर्तें पूरी होते  नहीं दिखती हैं तो पता लगता है कि इतने वर्षों से अब तक बलात्कार हो रहा था !ऐसी बातें समझ से परे एवं भ्रामक हैं ।



Saturday, 27 December 2014

जातियों का आधार ही है मनुस्मृति ! फिर मनुवाद का विरोध और जातिगत आरक्षण साथ साथ नहीं चल सकते ?

    महान जातिवैज्ञानिक महर्षि मनु ने हजारों लाखों वर्ष पहले जो बात कही थी उसे आज भी झुठलाया नहीं जा सका !उन्होंने तब जो कहा था वो आज भी सच हो रहा है जातियों के विषय में कितने बड़े भविष्य दृष्टा थे महर्षि मनु ! विश्वास संरक्षण की भावना का आज भी नितांत अभाव है !

     जो जातिगत आरक्षण के बिना घर की रसोई नहीं चला पाते वे मनुस्मृति जलाकरके  लोगों को देश चलाने के सपने दिखा रहे थे वो भी बिना आरक्षण के !

      जो जातिगत आधार पर मिलने वाले आरक्षण के समर्थक हैं उन्हें ये भी तो सोचना होगा कि यदि जातियाँ न होतीं तो आरक्षण भी नहीं  होता और मनुस्मृति न होती तो जातियाँ न होतीं ! इसलिए जातिगत आरक्षण का आधार ही है मनुस्मृति ! फिर मनुवाद का विरोध या मनुस्मृति को जलाने का नाटक क्यों ? अक्सर क्यों दी जाती हैं महान जाति वैज्ञानिक महर्षि मनु को गालियाँ !जिन्होंने लाखों वर्ष पहले जिनके विषय में लिखकर रख दिया था कि इन इन जातियों के लोग त्याग, संयम,स्वाभिमान एवं पवित्रता आदि भावों से विमुख होने के कारण आत्मग्लानि से हमेंशा ग्रसित रहेंगे !इसी कारण अत्यंत परिश्रमी होने के बाद भी ये अपना उत्थान अपने बल पर नहीं कर सकेंगे !ये दिल और दिमाग से काम न लेकर काम में केवल अपना शरीर ही लगाते रहेंगे इसलिए राजा को चाहिए कि इन्हें सेवा कार्य सौंपे ! चूँकि अज्ञान  के कारण इनकी संतानें भी इसी भावना से भावित होती रहेंगी और वो भी हमेंशा अपने विकास से बंचित बनी रहेंगी । महर्षि मनु ने उस युग में इस बात का पता लगा लिया था कि इन जातियों के लोग अपने पिछड़ेपन के लिए कभी अपने को जिम्मेदार नहीं मानेंगे  हमेंशा दूसरों को ही दोषी ठहराते  रहेंगे !चूँकि इनके उत्थान न होने का दोषी कोई दूसरा होगा ही नहीं ये आदतन हीन भावना से ग्रस्त रहेंगे इसलिए ये अपने पिछड़ेपन के लिए अपने को एवं अपनी जीवन शैली को जिम्मेदार कभी नहीं मानेंगे किन्तु इन जातियों के भी जो लोग ऐसा मानकर प्रयास करेंगे उनके असीमित उत्थान को कोई दूसरा कैसे रोक  सकता है । 

     जो लोग अपने पिछड़ेपन के लिए जाति अन्वेषक महान वैज्ञानिक महर्षि मनु एवं मनुस्मृति को दोषी मानते हैं उनकी स्थिति ठीक उसीप्रकार के विद्यार्थी की तरह होती है जिसकी अपनी लापरवाही देखकर शिक्षक पठनशील लड़कों से कहे कि इसका साथ करोगे तो तुम भी फेल हो जाओगे इसका मतलब है कि वो परिश्रम पूर्वक पढ़ाई करके अपनी स्थिति में सुधार करे और यदि न करे तो पठनशील अन्य विद्यार्थियों को उससे दूर  रहना चाहिए ! किन्तु ये बात सुन और सोच कर उस विद्यार्थी के पास दो ही विकल्प होते हैं उत्तम पक्ष तो यह है कि वो अधिक परिश्रमपूर्वक पढ़ाई करके अपने सहपाठियों की अपेक्षा अपने को और अधिक योग्य बनावे दूसरा विकल्प होता है कि वो अपने शिक्षक एवं सहपाठियों से घृणा करने लगे !

      किन्तु यहाँ विचार करने वाली बात ये है कि वे शिक्षक और सहपाठी यदि न भी  रहें तो संभव है कि उसे मूर्ख कहने  वाला कोई न रहे किन्तु इतने भर से  वो योग्य तो नहीं ही हो जाएगा  और बिना अपनी योग्यता के उसे सामाजिक प्रतिष्ठा या आर्थिक तरक्की नहीं प्राप्त होगी इसलिए उसे अपने शिक्षक और सहपाठियों से घृणा करने की अपेक्षा अपने उत्थान के लिए अपना प्रयास करना चाहिए  यही उसके काम आएगा !

      इसी प्रकार से जो लोग जातिवैज्ञानिक महर्षि मनु से घृणा करते और मनुस्मृति को जलाते हैं उन कुंद  बुद्धियों को अब समझ लेना चाहिए कि अब तो साठ पैंसठ वर्ष आरक्षण भी ले और पचा चुके यदि विकास होना होता तो इतने में ही हो जाता किन्तु यदि अभी तक नहीं हुआ तो अब इससे सबक लेते हुए समझ लेना चाहिए कि आरक्षण रूपी भिक्षा के भरोसे जीवन जीने की आशा छोड़कर अपनी  प्रतिभा विकास पर विशेष ध्यान देना चाहिए जो आरक्षण से संभव ही नहीं है !


        देखिए इसी विषय में हमारे कुछ अन्य लेख भी -

  • आरक्षण देश के विकास को रोकने वाला एवं भ्रष्टाचार को बढ़ाने वाला होता है !आरक्षण के दुष्प्रभाव से बाहरी लोग अपने सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत को कहीं भिखारी भारत न कहने लगें !see more ....http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/05/dalit-plus.html

  • दलित नाम की कोई जाति कभी नहीं हुई ,हो सकता है यह दिमागी बीमारी हो ! तो इसकी जाँच हो चिकित्सा हो किन्तु आरक्षण नहीं !दलित कौन हैं उनमें किस तरह की कमी होती है और आरक्षण से उसकी पूर्ति कैसे हो पाती है ?http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/05/blog-post_21.html 

       

 

       

 

Friday, 26 December 2014

असम में इतना बड़ा नरसंहार ! तब कहाँ सो रही थी सरकार !!!



        क्या सरकार को पता नहीं था कि देश में सुरक्षा की व्यवस्था की स्थिति इतनी  लचर है यहाँ कहीं भी कभी भी किसी भी अप्रिय वारदात को आसानी पूर्वक अंजाम दिया जा  सकता है ! आखिर यदि सरकार को अपनी सुरक्षा व्यवस्था पर इतना ही भरोसा होता तो अपने गाली गलौच पसंद बाबा जी को अलग से सिक्योरिटी क्यों दी जाती !उन्हें अलग से सुरक्षा प्रदान करने का मतलब ही साफ है कि सरकार की दृष्टि में सरकारी सुरक्षा व्यवस्था विश्वसनीय  नहीं है ! इसलिए सरकारी लोग स्वयं तो सुरक्षा ले लेते हैं और अपने बाबाओं को सुरक्षा  दे देते हैं बाकी जनता को छोड़ देते हैं आतंकवादियों उग्रवादियों के भरोसे वो जब जिसे जहाँ जैसे  चाहें मारें या  करके छोड़ दें , असम जैसी घटनाएँ प्रकार की गैर जिम्मेदार मनोवृत्ति की देन हैं ! सरकारी लोग बाद में जाकर घायलों को अस्पताल भेजवा देते हैं , मृतकों को कुछ मुवाबजा की घोषणा कर देते हैं ,और आतंक वादियों को कड़ा सन्देश दे देते हैं !और बस वापस दिल्ली, क्या सरकार केवल इतने लिए ही बदली गई थी !एक भी निर्दोष आदमी मारा तो क्यों ? आखिर क्यों  सरकार की जवाब देही !

Wednesday, 24 December 2014

जनता के प्रति कितनी गिरी सोच होती है नेताओं की !

                जनता के प्रति कितनी गिरी सोच होती है नेताओं की !
     जिस पार्टी की सरकार बनती है उसे और उसके बाबाओं को मिलती है सिक्योरिटी  क्योंकि उनकी  नज़रों में केवल उन्हीं की जान कीमती होती है बाक़ी जनता का क्या  इन नेताओं की नजर में जनता तो बनी ही मरने के लिए होती है!

                 नेताओं की नजर में जनता  की जान की कोई कीमत नहीं होती है 
       काँग्रेस के खिलाफ हो हल्ला मचाने वाले बाबाओं  को सरकार सिक्योरिटी देती है परन्तु वोट देकर सरकार बनाने वाली जनता  को क्या देती है ! जिस सिक्योरिटी से जनता सुरक्षित है उससे बाबा जी क्यों नहीं हैं उन्हें अतिरिक्त सुरक्षा क्यों ? 

'रामदेव को बोलो, मोदी का गणित गड़बड़ाया'-जनता परिवार (BBC)

   किन्तु मोदी का गणित गड़बड़ाया कहाँ !मोदी  का गणित प्रधानमन्त्री  बनना था वो   बन गए ,रामदेव का गणित सिक्योरिटी अर्थात सुरक्षा पाना था वो पा गए ! असुरक्षित तो जनता है जिसकी ओर किसी का कोई  ध्यान ही नहीं है हर नेता और हर पार्टी  केवल अपने को एवं अपनों को ही सुरक्षा देता है !बेचारी जनता को  कोई नेता एवं कोई दल अपना नहीं मानता है !

धर्मान्तरण हुआ क्यों ?और घरवापसी गलत कैसे है ?

  सम्राट भरत का देश भारत वर्ष है इस देश का मूल धर्म हिन्दू ही है फिर घरवापसी में इतना शोर शराबा क्यों ?

     सम्राट भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा , राजा भरत सनातनधर्मी हिंदू थे चूँकि  तब राजा और प्रजा का धर्म अलग अलग नहीं होता था इसलिए उनकी प्रजा भी सनातन धर्मी हिन्दू ही थी । इस दृष्टि से भारतवर्ष संपूर्ण  रूप से हिंदुओं का ही देश  है अब जो लोग कहते हैं कि वे हिंदू नहीं अपितु किसी और धर्म के हैं तो या तो कालांतर में उन्होंने अपना धर्म बदल  लिया है और या फिर बाहर से आए हैं !इसलिए उचित तो यही है कि जो बाहर से आए हैं वे बाहर जाएँ और  जिन्होंने  अपना धर्म बदल लिया है वे अपने धर्म में वापस आएँ ! अपनी अपनी सुविधानुशार इस देश की मूल संस्कृति के साथ खिलवाड़ करना ठीक आदत नहीं है । 

     इस प्रकार के सुधार से इस देश में धर्म संप्रदाय के नाम पर होने वाले  झगड़े समाप्त  जाएँगे सभी लोग अपने मूल धर्म में लौट कर अपने  पूर्वजों के अनुशार अपने स्वजनों में सम्मिलित हो जाएँगे !इससे दंगा मुक्त भारत बनेगा न केवल इतना अपितु धर्म और जातीय भेदभाव पैदा करने वाले राजनैतिक दलों को फिर राजनीति करने के लिए विकास करना ही होगा तब जाति और धर्म के नाम पर मंत्री नहीं बनाए जाएँगे अपितु सभी लोग अच्छे कर्म के आधार पर ही सम्मान पा  सकेंगे !     

    वैसे भी यह देश इंडिया नहीं है यह तो भारत है इसे इंडिया कहने की जरुरत क्या पड़ी थी जब इसका अपना ऐतिहासिक नाम भारत वर्ष था ही तो दूसरा नाम रखने की जरूरत  क्यों पड़ी ! जब हर देश का एक एक नाम है तो भारत वर्ष के नाम दो क्यों ? कहीं ये उसी तरह का तो नहीं हैं जैसे गरीब या बहुत सीधे  ग्लानि ग्रसित लोगों के बच्चों के नाम बड़े लोग अपनी अपनी सुविधानुशार बिगाड़ बिगाड़ कर रख लिया करते थे जैसे कलिका प्रसाद को को कलुआ कहने लगते थे। ऋषियों की भूमि पवित्र भारत वर्ष को उसी दृष्टि से तो इंडिया नहीं कहा जाने लगा है !आखिर इस इण्डिया शब्द का भारत वर्ष के प्राचीन इतिहास से सम्बन्ध क्या है ?कहीं भारत वर्ष की हिन्दू जैसी इसकी पहचान अंतरित करने लिए ही तो इसे इण्डिया नहीं कहा जाने लगा है !  भारत वर्ष में संस्कार मिले जबकि इण्डिया संस्कारों की दृष्टि से नंगा है । 

      मूलरूप से हमारे देश का नाम भारत है पर मुगलों ने इसका नाम 'हिन्दुस्तान' रख दिया और हमारा देश भारत से 'हिन्दुस्तान' बन गया। फिर अंग्रेज आए और उन्होंने हमारे देश का नाम 'इण्डिया' रख दिया और हमारा देश 'इण्डिया' कहलाने लगा।

    ये तो उसी तरह की बात हो गई जैसे किसी असहाय अबला को कोई अपने साथ रखकर अपनी टाइटिल दे दे इसके बाद वो छोड़ दे तो कोई और दूसरा रख ले वो अपनी टाइटिल दे दे !इस प्रकार का अपमान सहने के बाद जब उस  अपने बच्चे  जाएँ तो क्या  कर्तव्य नहीं बनता है कि वे  मूल धर्म में घर वापसी करें और अपने सक्षम इतिहास  के साथ गौरव पूर्ण जीवन जिएँ !अन्यथा इससे तो  स्पष्ट लक्षित होता है कि हमारे देश के नाम को कोई भी कभी भी बदल सकता है !आश्चर्य !!

इस विषय में पढ़िए हमारा यह  लेख भी -

     धर्मांतरण जैसी बड़ी समस्या का शान्ति पूर्ण समाधान है घरवापसी !जिसके विरोध में नेताओं का इतना हंगामा ,आखिर चाह क्या रहे हैं ये लोग !     see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2014/12/blog-post_22.html

Monday, 22 December 2014

धर्मांतरण जैसी बड़ी समस्या का शान्ति पूर्ण समाधान है घरवापसी !जिसके विरोध में नेताओं का इतना हंगामा ,आखिर चाह क्या रहे हैं ये लोग !

     धर्मांतरण के कारण ही घटी है हिंदुओं  की जनसंख्या , सम्राट 'भरत' के भारत में हिन्दू ही अल्पसंख्यक  हुआ जा रहा है ! आश्चर्य  !!!
     सम्राट 'भरत' का देश होने के कारण यह 'भारतवर्ष' है  चूँकि  महाराज भरत सनातन धर्मी हिन्दू थे इसलिए भारत वर्ष को ही हिंदुस्तान भी कहा जाने लगा और  महाराज भरत के प्रजाजनों को भारतवर्षी या हिंदू या हिंदुस्तानी कहा जाने लगा ! 
     जो लोग महाराज भरत को अपना पूर्वज एवं अपने को भारत वर्ष का मूल निवासी मानते हैं वे सब हिन्दू हैं । जो लोग अपने को हिन्दू नहीं मानते हैं वे या तो भारत वर्ष के मूल निवासी नहीं हैं और या फिर हिन्दू ही हैं फिर भी जिन लोगों को विश्वास है कि वे इस देश के ही मूल निवासी हैं किन्तु आज वे किसी अन्य धर्मकर्मों का अनुशरण कर रहे हैं उनका भय या लोभवश धर्मान्तरण हुआ है और यदि यह सच है तो उनकी घर वापसी पर इतना हो हल्ला क्यों ?
    आज भारत की पहचान हिंदुस्थान और भारत वर्ष दोनों ही नामों से होती है ।चूँकि  सम्राट 'भरत' के नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा है इसलिए महाराज भरत के राष्ट्र की शासन व्यवस्था तो शास्त्र प्रतिपादित थी अर्थात सभी कार्य शास्त्रों के अनुशार किए जाते थे सनातन धर्मशास्त्रों से नियंत्रित शासन व्यवस्था जिस देश की हो वो भारत वर्ष है।
    हिंदुस्थान हो या हिन्दूराष्ट्र  ये दोनों एक जैसे ही शब्द हैं हिन्दुओं के रहने का स्थान 'हिंदुस्थान'और हिंदुओं का राष्ट्र (देश) ही हिंदुस्थान या हिन्दूराष्ट्र है ।   इंडिया शब्द का हमारे देश की पहचान से कोई सम्बन्ध नहीं है ये तो मिला हुआ नाम है ।जिस देश की राष्ट्र भाषाहिंदी और जिस देश का नाम हिंदुस्तान  है वहाँ के रहने वाले हिन्दू और वह देश हिंदू राष्ट्र क्यों नहीं है !और यदि नहीं है तो है और क्या ? 
  भारत हो या हिंदुस्थान।दोनों की हिंदू पहचान॥      
    अपने देश का नाम भारत होने का तो लंबा इतिहास   है  किन्तु इस देश का नाम इंडिया क्यों पड़ा ?इसका क्या इतिहास है ? जो भी हो किन्तु भारत वर्ष कहने से जो आत्मगौरव की अनुभूति होती है वह इंडिया से नहीं !   भारत नाम, एक प्राचीन हिन्दू सम्राट भरत जो कि मनु के वंशज ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे तथा जिनकी कथा श्रीमद्भागवत महापुराण में है, के नाम से लिया गया है। भारत (भा + रत) शब्द का मतलब है आन्तरिक प्रकाश । इसके अतिरिक्त भारतवर्ष को वैदिक काल से आर्यावर्त "जम्बूद्वीप" और "अजनाभदेश" के नाम से भी जाना जाता रहा है।

  भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव-सभ्यता का पहला राष्ट्र था। श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है। भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वयंभू मनु ने व्यवस्था सम्भाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़ कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन भारत देश था। राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। पहले भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे बहुत पहले यह देश 'सोने की चिड़िया' के रूप में जाना जाता था।

     इस प्रकार भारत नामअपनी पवित्र संस्कृति एवं इतिहास की याद दिलाता है जबकि इंडिया नाम से हमारा  कोई सांस्कृतिक  एवं ऐतिहासिक सम्बन्ध  नहीं सिद्ध होता है ।

      इसलिए जो भारत में रहकर भारतीय परम्पराओं पर विश्वास करता है वो भारतीय है हिंदू है और जो नहीं करता है वो नहीं है !

      सनातन हिन्दू  धर्म  में बहुत संतानों को जन्म देने की परंपरा रही है इसीप्रकार बहुत संतानें हों ऐसे आशीर्वाद भी पहले से ही दिए जाते रहे हैं।पहले जन संख्या कम थी ये तब की बातें हैं किन्तु जब देश में न केवल पर्याप्त जनसंख्या हो गई अपितु बढ़ने लगी तो हिन्दू लोगों ने राष्ट्रहित में अपनी बहुत संतानों को जन्म देने  वाली परम्पराओं को रोक कर हम दो हमारे दो वाले सरकारी उद्घोष का सम्मान किया और देश हित को ध्यान में रखते हुए दो बच्चों को जन्म देने लगे !किन्तु इसमें समस्या तब पैदा होती है जब दूसरे धर्मों को मानने वाले लोग सरकार एवं समाज की  इस चिंता में सम्मिलित नहीं दिखाई देते हैं प्रत्युत अपने धर्म का हवाला देते हुए बहुत संतानों को जन्म देने की न केवल वकालत करते हैं अपितु इसी भावना से अपने सम्प्रदाय के अनुयायिओं की संख्या बढ़ाते जा रहे  हैं !ऐसी परिस्थिति में देश की जनसंख्या का ध्यान उन्हें भी क्यों नहीं रखना चाहिए !

      देश की बढ़ती हुई जनसंख्या को रोक कर रखने की सारी  जिम्मेदारी केवल हिंदुओं की क्यों  है ? अन्य सम्प्रदाय के अनुयायिओं की क्यों नहीं ?क्या इस देश को वे अपना  नहीं समझते हैं  यदि नहीं तो क्यों ?और यदि हाँ तो कैसे ?यदि द्देश की जनसंख्या इस प्रकार से बढ़ेगी तो यह चिंता का विषय उनके लिए भी क्यों नहीं होना चाहिए !और  यदि वो लोग नहीं मानते हैं तो हिन्दू ही क्यों मानें!और वह क्यों न दे पाँच संतानों को जन्म ?

     यदि विभिन्न भाषाओं के शब्दों को समेट कर चलने वाली भाषा को हिंदीभाषा कहने और मानने में किसी को आपत्ति नहीं है !  यदि विभिन्न जातिसंप्रदाय के लोगों वाले देश को  हिन्दुस्थान कहने और मानने में किसी को आपत्ति नहीं है !  विभिन्न जाति संप्रदाय वाले लोगों को राष्ट्रवाद की भावना से अपने साथ मिलाकर जो चले उसे हिंदू कहने और मानने में किसी को आपत्ति क्यों है ?  इसीप्रकार से हिंदुस्थान को हिंदूराष्ट्र कहने और मान लेने में क्या समस्या है ?

पढ़िए हमारा यह लेख भी -

     संघ जैसे राष्ट्र प्रहरी संगठन एवं भाजपा को लेकर क्यों किया जाता है संदेह और  दुष्प्रचार ?देश ,समाज और संस्कृति के प्रति समर्पित है आर .एस.एस. ! seemore... http://samayvigyan.blogspot.com/2014/08/blog-post_13.html

 


Saturday, 20 December 2014

आजमखान साहब !ऐसी मर्दानगी किस काम की जो केवल बच्चे पैदा करने के ही काम आवे !उनकी परवरिश के लिए अपना नाम गरीबी रेखा में लिखाता घूमे !

'पुरस्कार बांटने से बच्चे पैदा नहीं होंगे। बच्चे पैदा करने के लिए मर्दानगी की जरूरत होती है' - आजम  खान (पंजाब केशरी )

    किन्तु आजमखान साहब !ऐसी मर्दानगी किस काम की जो केवल बच्चे पैदा करने के ही काम आवे !उनकी परवरिश के लिए अपना नाम गरीबी रेखा में लिखाता घूमे !         

     आजमखान ये क्यों नहीं सोचते हैं कि ज्यादा संतानों को जन्म देने के लिए  आज के युग में केवल मर्दानगी से ही काम नहीं चलता है  यदि ऐसा होता तो हिन्दू भी पीछे नहीं रहते क्योंकि हिंदुओं के धर्म ग्रंथों  एवं परंपराओं में भी "बहु पुत्रवान भव"  का आशीर्वाद दिया जाता है !किन्तु हिंदुओं ने देश काल परिस्थिति के अनुशार इस पर नियंत्रण किया है !यही कारण है कि देश की जनसंख्या नियंत्रण अभियान  को वर्तमान समय देश की आवश्यकता समझकर जो लोग देश को अपना मान रहे हैं वे जनसंख्या पर नियंत्रण कर रहे हैं किन्तु जिनके मन में ऐसा भाव नहीं हैं वो कुछ भी करें !   

   किन्तु जो लोग ऐसा नहीं मानते उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि अधिक बच्चे पैदा करने वालों को आज के इस महँगाई युग में बेशर्मी और गैर जिम्मेदारी की सोच से भी  देश और समाज पर बोझ बनकर जीना  पड़ता है और बाद में सरकारों से आरक्षण  माँग माँग कर जिंदगी काटनी पड़ती है पेट भरने के लिए जीवन भर गिड़गिड़ाते रहना पड़ता है फिर भी आजम की मर्दानगी की बातें समझ में आने वाली नहीं हैं  

   

Wednesday, 17 December 2014

पाकिस्तानी भाई बहनों के प्रति समर्पित आत्मीय 'दो शब्द' !

   पाकिस्तान में निर्दोष बच्चों  की  हत्याओं  से मानवता दहल उठी है!

       भारत माता के ही हृदय के  कभी अभिन्न अंग रह चुके पाकिस्तान के बच्चों पर आतताइयों ने इतना बड़ा अत्याचार किया हो चीथड़े उड़ा दिए गए जिन नौनिहालों के उनके परिजनों के करुण क्रंदन से ब्यथितात्मा आपके अपने भारतीयों से कौर नहीं निगले जा रहे थे सो नहीं सके हैं भारतीय !

    पाकिस्तानी हुक्मरानों की कार्यशैली से निराश मैं आज  दुखी पाकिस्तानी भाई बहनों के प्रति संवेदना व्यक्त करता हूँ साथ ही ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि निर्दोष बालकों के परिजनों को यह असह्य बेदना सहने की सामर्थ्य ईश्वर प्रदान करे !

     दुःख की इस प्रेरक घड़ी में पाकिस्तानी भाई बहनों से निवेदन है कि आज के बाद संकल्प लें कि वो उन्हीं राजनैतिक दलों और नेताओं का समर्थन करेंगे जो पाक के प्रति भारत की आत्मीय भावना का आत्मीयता के साथ आदर कर सकते हों ताकि भारत और पाकिस्तान मिलजुलकर आतंकवाद के विरुद्ध दृढ़ता से खड़ा हो सके !और समाप्त कर दे यह मानवता विरोधी दारुण आतंकवाद !

      अरे पाकिस्तानी भाई बहनो ! आपके शासकों ने निरंतर हमारी आत्मीयता का अपमान किया है अटल जी की मित्रता की पहल का जवाब उन्होंने कारगिल से दिया था , मुंबई हमला रहा हो या हमारे श्रद्धेय सैनिक हेमराज का शिरच्छेदन एवं उससे संबंधित वीडियो दिखाया जाना !ऐसी और भी बहुत सारी भारत विरोधी दुखद बातों का विरोध पाकिस्तानी भाई बहनों की ओर से होना चाहिए था खैर

         "बीती ताहि बिसारिके आगे की सुधि लेय"

       किंतु पाकिस्तानी भाई बहनों को आज संकल्प लेना चाहिए कि भारत विरोधी आतंकी  गतिविधियाँ चलाने के लिए वो न केवल पाक की जमीन का दुरुपयोग नहीं होने देंगे अपितु भारत विरोधी भावनाएँ भड़काने वाले राजनैतिक दलों और नेताओं को सत्ता की सीढ़ियाँ नहीं चढ़ने देंगे !साथ ही आतंकी गतिविधियों में सम्मिलित लोगों को पाकिस्तान में पनाह नहीं मिलने देंगे !

    बंधुओ ! भारत पर विश्वास किया ही जाना  चाहिए कि पाक के द्वारा भारत की ओर उठाए जाने वाले एक एक आत्मीय हाथों शब्दों एवं व्यवहारों का जवाब भारत हजारों गुणा  अधिक आत्मीयता पूर्वक देगा ! भारत अपने प्रति व्यक्त की गई किसी आत्मीय भावना   का कभी अपमान नहीं होने देता है !

      अस्तु ! पाकिस्तानी भाई बहनो ! भारत वर्ष के आतंक वाद विरोधी अभियान में साथ देने के लिए अपने शासकों को बाध्य करके   इस संपूर्ण क्षेत्र को आतंकवाद मुक्त मानवता संरक्षण के महान कार्य में आपके  योगदान का भी अमर इतिहास बने ! अपनी इन्हीं भावनाओं के साथ एक बार पुनः संवेदना अपने पाकिस्तानी भाई बहनों के लिए ! पाकिस्तानी भाई बहनो ! भूल मत जाना सहृदय भारतीय आपके दुःख तकलीफ में हमेंशा आपके साथ हैं किन्तु शहीद  हेमराज का शिर विहीन शव एवं भारतीयों के पौरुष को ललकारता उसका लहराया जाता  वीडियो जैसी और भी पाकिस्तान के द्वारा प्रदत्त असह्य बेदनाओं से घायल भारतीयों के हृदय आज भी आपके आत्मीय व्यवहारों से सहलाए जाने की प्रतीक्षा में हैं !

      

 

गुरु गौरव !

  
              खेलों के लिए गुरु द्रोणाचार्य  अवार्ड दिए जाने पर आपत्ति क्यों ? 

     गुरु दक्षिणा में सबसे महत्वपूर्ण चीज माँगे जाने की परंपरा रही है ! धनुर्वीर के लिए अँगूठे का महत्त्व सबसे अधिक होता है ,इसलिए प्राणप्रिय विद्या देने वाले गुरु ने यदि अँगूठा माँग ही लिया तो यदि उनके शिष्य को बुरा नहीं लगा तो हमारी औकात क्या है कि हम उस पर प्रश्न उठावें जिसका सम्मान करते हुए उनके शिष्य ने ही दे दिया अँगूठा !
    साथ ही  यह कहना कहाँ तक न्योयाचित है कि उन्होंने अपने शिष्य से अँगूठा माँग लिया था  इसलिए उनके नाम पर पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए !
      कितना बेहूदा तर्क है यह !  आखिर देश काल परिस्थिति पर बिना विचार किए हुए ऐसे प्रश्न खड़े ही क्यों किए जाते हैं !गुरु द्रोणाचार्य जी युद्ध विद्या सिखाने  वाले गुरु थे  जहाँ मरना या  मार देना खेल समझा जाता है  ऐसे दिव्य गुरु को गुरु दक्षिणा में आधा किलो पालक मँगवा लेनी चाहिए थी या इसी प्रकार का कुछ और माँग लेते ये सलाह देने वाले हम कौन होते हैं हम कैसे कह सकते हैं कि अँगूठा माँगना गलत था । 
   रण कौशल सीखने वाले विद्यार्थी वीर एकलव्य की प्रशंसा इस बात के लिए की जानी चाहिए कि उसने गुरुदक्षिणा में हँसते हुए अँगूठा दे  दिया था ये उसकी विद्या एवं गुरु के प्रति गंभीर निष्ठा  को व्यक्त करता है उसने गुरु की अमोघवाणी को ब्यर्थ नहीं जाने दिया !



Thursday, 11 December 2014

रावण से साईं की क्या तुलना !

 विजय दशमी के दिन किसी का भी देहांत हो जाए तो वो रावण जैसा कैसे हो सकता है !

     आज कल कुछ साईं सदस्य  साईं की तुलना रावण से करने लगे हैं कहते हैं कि साईं का देहांत भी तो विजय दशमी को ही हुआ था ! 

   बंधुओ ! बराबरी ऐसे कैसे की जा सकती है साईं में रावण जैसे गुण भी तो होने चाहिए !ऐसे तो कल कोई रामनवमी को पैदा होगा तो वो अपने को श्री राम कहने लगेगा  क्या ?और कहे तो कहे उसका मुख किन्तु ऐसी बिना शिर पैर की बातें कोई मान क्यों लेगा !विजय दशमीको मृत्यु होने से रावण के बराबर थोड़े हो गए साईं!   रावण  विद्वान तपस्वी पराक्रमी शिव भक्त आदि बहुत कुछ था जबकि बेचारे साईं रावण के सामने कहाँ ठहरते हैं ! किसी को बुरा लगे तो लगे सच्चाई है तो है । 

   सच्चे सनातनधर्मी लोग अपने मंदिरों में रावण की प्रतिमालगाकर उसे तो पूज सकते हैं किन्तु साईं को नहीं !अमृतोपम गाय के दूध का स्वाद जिसे एकबार लग जाए वो  गधी का दूध कैसे पी सकते हैं !किन्तु जिसे गाय के दूध का स्वाद ही न पता हो वो गधी का पिए या कुतिया का ये उसकी अज्ञानजन्य मजबूरी हो सकती  है किन्तु किसी दिन उस पर भी यदि किसी शास्त्रीय संत की कृपा हो गई तो उसे भी गाय की महत्ता समझ में आ जाएगी किन्तु जब तक नहीं पता है तब तक वो किसी को पूजे ऐसे ज्ञान दुर्बल लोग विवश होते ही  हैं !

   रावण का वर्णन तो हमारे धर्म ग्रंथों  रामायणों में मिलता है साईं का कहीं अता पता ही नहीं है ये भी नहीं पता कि साईं नाम का भ्रम डाला किसने क्योंकि इस नाम से कभी कहीं कोई व्यक्ति हुआ हो ऐसा तो बर्णन ही नहीं मिलता है इस नाम से कभी कोई संत भी नहीं हुआ अन्यथा संत इतिहास में तो इनका नाम होता ! किन्तु ये तो " मान न मान मैं तेरा मेहमान" !

  कहाँ रावण कहाँ साईं ! गए तो दोनों विजय दशमी के दिन  ही थे किन्तु रावण गया और साईं ले जाए गए !

 बलिष्ठा कर्मणां गतिः (कर्मों की गति बड़ी बलवान होती है)

        दशहरा पर्व शिर्ड़ी साईं बाबा और रावण बाबा दोनों का ही निर्वाण दिवस है रावण भी अपने को पुजाना चाहता था और साईं भी अपने गिरोह के सदस्यों को ऐसी ही सीख दे कर गए हैं अंतर इतना है  रावण विद्वान था तपस्वी था पराक्रमी था और भगवान शंकर का उपासक था इसलिए रावण को मुक्ति देने के लिए प्रभु श्री राम स्वयं पधारे और उसपर कृपा की ,प्रभु ने उसका दाह संस्कार भी करवाया ताकि भूत प्रेत बनकर साईं की तरह भटकता न घूमै ! किन्तु बेचारे साईं जिन्हें कभी किसी मंदिर जाते देवी देवता की आराधना करते किसी ने नहीं देखा उनपर कैसे हो सकती थी प्रभु की कृपा !इसलिए रावण के तपस्या आदि गुणों से प्रभावित होकर प्रभु श्री राम के हाथों उसकी मृत्यु हुई किंतु उसी विजय दशमी को साईं बेचारे अपने आप .……!

       दशहरा पर्व के दिन ही रावण का भी निर्वाण दिवस है रावण के पास भी सोना चाँदी का चढ़ावा बहुत आता था उसकी तो लंका भी धीरे धीरे सोने की बन गई थी !रावण के अनुयायी भी बहुत थे धन संपत्ति उसके पास भी बहुत थी हमें ये नहीं पता है कि रावण के यहाँ लड्डुओं का व्यापार होता था या नहीं हाँ मुकुट उसके भी भक्तों ने उसे सोने का दे रखा होगा क्योंकि वो भी लगाता सोने का मुकुट ही था उसने भी शास्त्रीय सनातन धर्मियों के साथ बड़ा उपद्रव किया था खैर जो भी हो पहले तो रावण के अनुयायी भी बहुत जोर पड़ते रहे थे किन्तु जब से हनुमान जी ने पूँछ घुमाई तो फिर सब धीरे धीरे धीरे ठंढे पड़ते चले गए अब देखो कब दया करते हैं हनुमान जी !क्योंकि मंदिरों की मर्यादा और सनातन धर्म की प्रतिष्ठा एक बार फिर धार पर लगी है !

   "साईं संप्रदाय का सबसे बड़ा झूठ 'साईं डे ' अर्थात साईं बाबा का दिन "

बृहस्पति वार से साईं का सम्बन्ध क्या है ?इस दिन अनंत काल से बृहस्पति देवता एवं भगवान विष्णु की पूजा होती चली आ रही है सारी दुनियाँ जानती भी इस दिन को इसी नाम से है ये करोड़ों वर्षों की शास्त्रीय संस्कृति भी है और परंपराओं में भी यही माना जाता रहा है और अभी तक यही माना जा रहा है इसी बात के प्रमाण भी हैं किन्तु अभी कुछ वर्षों से साईं के घुसपैठियों ने इस बृहस्पति वार में साईं बुड्ढे को जबर्दश्ती घुसाना शुरू कर दिया है इसके पीछे इन लोगों के पास न कोई तर्क है न कोई प्रमाण न और कोई आधार !है तो केवल निर्लज्जता !!see more... http://snvajpayee.blogspot.in/2014/07/blog-post_31.html

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                          जब साईं नाम का कोई ग्रह ही नहीं है तो साईंवार कैसे हो सकता है?

साईं घुसपैठियों का बृहस्पतिवार को साईं वार कहने का ड्रामा !बृहस्पतिवार को साईं वार कहना कितना सही है !आप स्वयं सोचिए कि ग्रहों के दिन वही हो सकते हैं जिनके नाम के आकाश में ग्रह होते हैं वो ग्रह अपने अपने दिनों में शुभ या अशुभ फल दिया करते हैं किन्तु साईं वार का मतलब क्या है क्या इन्होंने साईं नाम का कोई ग्रह बनवाकर साईं पत्थरों को मंदिरों में घुसाने की तरह ही आकाश में भी साईं पत्थर घुसा कर टाँग रखा है क्या ?और यदि नहीं तो फिर ये धोखाधड़ी क्यों !आखिर क्यों मिस गाइड किया जा रहा है समाज को ? जब साईं नाम का कोई ग्रह ही नहीं है तो साईं वार कैसे हो सकता है !फिर भी साईं घुस पैठियों के द्वारा शास्त्रीय मान्यताओं से समाज को भटकाने का उद्देश्य आखिर क्या है इसकी जाँच होनी चाहिए ! see more... http://snvajpayee.blogspot.in/2014/07/blog-post_31.html






Wednesday, 10 December 2014

घूस लेकर अपराधियों को अभयदान देने वाले सरकारी कर्मचारियों पर नियंत्रण कौन करेगा ?

   "अपराध बढ़ेंगे तो आमदनी बढ़ेगी ! " मित्रो !अपराध बढ़ने का कारण कहीं कुछ लोगों की इसी प्रकार की सोच तो  नहीं है ! 

      आजीविका के साधन अपराध नहीं हो सकते किन्तु कुछ लोग यदि ऐसा ही मानते हैं तो उनसे निपटने के लिए सरकार क्या कर रही है क्योंकि घूस का लेन देन निरवरोध रूप से लगभग हर जगह जारी है घूस रुके तो अपराध घटे क्योंकि आपराधिक हर कार्य घूस के सहारे ही चलता है अपराधियों का सबसे बड़ा बल घूस ही होता है ?कोई भी अपराधी अक्सर घूस के सहारे ही देते हैं अपराधों को अंजाम !अर्थात कुछ देकर बच जाएँगे     

     महिलाओं के साथ आखिर क्यों होते हैं रोज रोज हादसे ! और या फिर सरकार अपनी मजबूरी महिलाओं को  सीधे क्यों नहीं बता सकती कि इससे अधिक सुरक्षा आज की परिस्थिति में हम नहीं दे सकते !आप कोई बाबा जी तो हैं नहीं जो आपकी सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम करना इतना ही जरूरी हो !आप महिलाएँ हैं तो क्या हुआ ! हैं तो आमआदमी ही जिनके बच्चों को पढ़ने लिए सरकारी स्कूल, चिकित्सा के लिए सरकारी अस्पताल आदि व्यवस्थाएँ हैं जहाँ की कार्यपद्धति से सारा समाज परिचित है !

      सरकारी नौकरी को सेवा कहते हैं और सेवा श्रद्धा से की जाती है!सरकारी हर विभाग के कर्मचारी अपनी अपनी श्रद्धा के अनुशार सेवाएँ दे रहे हैं जो इनसे संतुष्ट नहीं है वो प्राइवेट का विकल्प चुनें !आखिर प्राइवेट वालों का विकल्प तो उन्हीं लोगों के लिए खुला है जो सरकारी सेवाओं से संतुष्ट न हों ! फिर अपराध न  रुकने के लिए देश की पुलिस व्यवस्था को बार बार जिम्मेदार क्यों ठहराया जाए !

    इसलिए सरकार कह दे कि महिलाएँ इससे अधिक सरकारी सुरक्षा का भरोसा छोड़ें और अपने  भरोसे निकलें घर से देर सबेर न निकलें या जैसे उनको ठीक लगे वैसा वो करें ,कम से कम सरकारी सुरक्षा के भरोसे तो न रहें और न ही अपनी जान जोखिम में डालें !

    अपराध रोकने की जिम्मेदारी सरकारी हाथों में है जबकि अपराध करने वाले अधिकतर लोग गैर सरकारी अर्थात प्राइवेट होते हैं और प्राइवेट लोगों से हर सरकारी विभाग पराजित है शिक्षाविभाग सँभालने की सारी जिम्मेदारी सरकारी और निगम के प्राथमिक स्कूलों ने प्राइवेट  स्कूलों पर डाल रखी है , आलम यह है कि शिक्षक अपने बच्चे भी प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ा रहे हैं !

   यही स्थिति सरकारी अस्पतालों की है उनका हौसला ही प्राइवेट अस्पतालों के सामने पस्त हैं वो अपने घर वालों को भी प्राइवेट नरसिंग होम में दिखाने  जाते हैं। 

    यही स्थिति दूर संचार विभाग की है उसे प्राइवेट कंपनियों ने इतना ढीला कर रखा है,डॉक विभाग प्राइवेट कोरिअर के सामने अपनी इज्जत बचाने के लिए हाथ जोड़े खड़ा है । 

     कहने का मतलब जब इन सब सरकारी विभागों को अपनी अपनी श्रद्धानुशार कार्य करने की छूट सभी को है तो केवल पुलिस के विरूद्ध ही इतना हो हल्ला क्यों मचाया जाता है ?

    बंधुओ! सरकारी  विभागों में सरकारी कर्मचारियों के काम करने की पद्धति यदि इतनी ही शिथिल है जिसे ठीक करने के लिए सरकारें आज तक कुछ नहीं कर सकी हैं ऐसे में सरकारी पुलिसविभाग में भी तो सरकारी कर्मचारी ही हैं उन पर सरकार का इतना विश्वास किस कारण  है कि वो अपना काम संपूर्ण निष्ठा से कर ही रहे होंगे ?और यदि वो सरकार के इस   विश्वास पर निरंतर खरे नहीं उतर पा रहे हैं और सभी प्रकार के अपराधों में दिनोंदिन बढ़ोत्तरी  होती जा  रही है ऐसी परिस्थिति में इन अपराधों को रोकने के लिए सरकार किसी अन्य विकल्प पर भी विचार करेगी क्या ?अथवा पुलिस विभाग में ही ऐसा क्या नया परिवर्तन करेगी  जिससे अपराध घटें और देश की महिलाएँ सुरक्षित हों !    

      अब तो लोग कहने भी लगे हैं कि अपराध रोकना ही कौन चाहता है आज कुछ जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग तो अपराध को ही अपनी आजीविका तक मान बैठे हैं अन्यथा यदि कोई अपराधी किसी वारदात को अंजाम देना चाहता है तो लगभग देता ही है कोई उसे रोक नहीं पाता इसीप्रकार से अपराध को रोकने की जिम्मेदारी जिनपर है वो यदि उतनी ही  निष्ठा से अपराध रोकने का संकल्प करें तो क्यों नहीं रोके जा सकते हैं अपराध !

     अपराध करने वाले जितनी निष्ठा से अपराध करते हैं अपराध रोकने के लिए जिम्मेदार लोग उतनी निष्ठा से अपराध रोकने का प्रयास ही नहीं करते अपराध रुकें तो  कैसे !सरकारी सुरक्षाकर्मियों की शिथिल कार्यशैली शैली देखकर तो लगता है कि अपराधियों  की जगह यदि बम विस्फोट करने की जिम्मेदारी कहीं इनकी होती तो इनके लगाए बम तो आधे भी नहीं फूटते वो बीच में ही फुस्स हो जाते !पहली बात तो ये लगा ही नहीं पाते ,लगाते ठीक जगह नहीं लगाते या इधर उधर लगा देते अथवा लगाने से पहले ही ये पकड़ जाते या फिर इनके डरके मारे  काँपते  हाथों से वो बम बीच में ही छूट कर फूट जाते !ये ठहरे सरकारी कर्मचारी  इनमें अपराधियों जैसी कार्यनिष्ठा कहाँ होती है ! फिर अपराधियों का मुकाबला ये कर सकेंगे ऐसा भरोसा ही सरकार कैसे कर रही है ! सरकार को या तो खुद सुधरना होगा या इन्हें सुधारना होगा या नियमों में सुधार करना होगा अन्यथा सभी प्रकार के अपराध यों ही घटित होते रहेंगे !

     सरकार यदि वास्तव में अपराध रोकना ही चाहती है तो जारी करे अपने विश्वसनीय एवं आत्मीय हेल्प लाइन नंबर !अपराधों की सूचनाएँ  सरकार तक समाज स्वयं पहुँचाएगा किन्तु सरकार उनपर ईमानदारी से कार्यवाही करे और सूचना देने वाले की सुरक्षा में सहयोग करे !और यदि भूल बश कभी सूचना गलत भी  तो उस निर्दोष स्वयं सेवक को कटघरे में न खड़ा किया जाए !

        राजनेता लोग राजनीति में जब आते हैं तब गरीब और सामान्य होते हैं किन्तु राजनीति में घुसते ही करोड़ों अरबों में खेलने लगते हैं ये संपत्ति जुटाने के लिए उन्हें कोई खास उद्योग नहीं करना होता है कोई कंजूसी नहीं करते हैं पूरी ऐस आराम करते हुए अरबों रूपए बन जाते हैं नामी बेनामी संपत्तियाँ  बन जाती हैं आखिर कैसे ?

     सरकार के कई बदनाम विभाग हैं उनमें काम होता ही पैसे देकर है और पैसे वही दे पाता है जो अपराध को व्यापार मानकर चलता है जिसने किसी की जमीन  पर कब्जा किया दस लाख का लालच है तो लाख पचास हजार खर्च कर दिए तब शासन उसका साथ इस हद तक देने लगता है कि जमीनदार उस इज्जतदार  और ईमानदार निर्दोष आदमी से एक अपराधी के सामने घुटने टिकाए जाते हैं  और उसे टेकने पड़ते हैं और उस अपराधी को आगे करके उस ईमानदार और निर्दोष आदमी से धन लेने के लिए वो हाथ आगे बढ़ते हैं जिन्हें सरकार अपराध रोकने के लिए जनता की गाढ़ी कमाई के टैक्स से सैलरी देती है उस सैलरी के बदले वो घूस लेकर सरकार को देते हैं कुल मिलाकर दोनों दोनों का ध्यान रखते हैं !

     किसी भी घूस लेने वाले अधिकारी कर्मचारी से पूछो कि घूस का ये पैसा सब तुम्हें मिलता है ! तो वो कहते  हैं कि नहीं ये तो ऊपर तक जाता है ऊपर कहाँ तक अर्थात सरकार तक ! दूसरी तरफ सरकार ने समाज को ऐसा कोई विश्वसनीय एवं आत्मीय संपर्क सूत्र नहीं दे रखा है जिस पर समाज ये बात  निडरता पूर्वक पूछ या बता सके  !

      इसी विषय में देखें हमारा यह लेख भी -

 पुलिस विभाग की आँखों में ईमानदारी का अंजन आँजते ही दिखने लगेंगे अपराधियों के चेहरे !
      पुलिस पर पॉलिस की जरूरत ! see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2014/11/blog-post_29.html