Tuesday, 26 May 2015

दलितों की दलाली में नेता अरबपति हो गए !कोई पूछे कि इनके आयस्रोत क्या हैं ये धंधा करते कब हैं ?

   आरक्षण माँगने वालों का स्वास्थ्य परीक्षण हो कि इनमें ऐसी कमी क्या है कि ये सवर्णों की तरह कमा खा क्यों नहीं सकते ?

   सवर्णों के स्वाभिमान को विश्व जनता है कि इन्होंने कभी आरक्षण नहीं माँगा है अन्यथा भिखारी समझ कर सवर्णों से भी लोग घृणा कर रहे होते देश विदेश के लोग !

    आरक्षण माँगने वालों से पूछा जाए कि उनके शरीरों में ऐसी कमी क्या है कि वे अपने बल पर आगे नहीं बढ़ सकते उन्हें आगे बढ़ने के लिए आरक्षण की बैशाखी चाहिए और सवर्ण लोगों में ऐसी बहादुरी क्या है कि इस देश में सवर्णों के लिए कुछ नहीं चाहिए !

     हे दलित बंधुओ!सम्मान यदि तुम्हें भी सवर्णों की तरह चाहिए तो सवानों की तरह ही आप भी आरक्षण को ठुकरा दीजिए और म्हणत करके कमाइए खाइए अपनी भुजाओं का भरोसा कीजिए देखो अभी सम्मान बनता है कि नहीं किंतु आरक्षण सरकारी कृपा है और किसी की कृपा के सहारे जीने वाले का स्वाभिमान कैसा ?

      आज सवर्णों के लिए कोई योजना नहीं है कोई सुविधा नहीं है कोई आरक्षण नहीं है फिर भी कभी किसी से आरक्षण की भीख नहीं माँगते अपने परिश्रम से कमाते खाते हैं यही कारण है कि किसी नेता से या किसी पार्टी से कभी दब के बात नहीं करते इसी कारण उनका सम्मान बना है अन्यथा सेवकों को सुख और भिखारियों को सम्मान और नशेड़ी को धन ,और ब्यभिचारियों को सद्गति कभी नहीं मिला करती है ! 

   बंधुओ ! सवर्णों के विरुद्ध आरक्षण एक षड्यंत्र के तहत लाया गया था ताकि सवर्णों को पीछे धकेला जाए इनका सम्मान घटाया जाए उन्हें गरीब बनाया जाए ताकि सवर्ण लोग भी नेताओं के सामने भिखारियों की तरह गिड़गिडाएँ किंतु स्वाभिमानी सवर्णों ने संघर्ष पूर्वक अपना विकास करके दिखा दिया है या संघर्ष कर रहे हैं किंतु लालच देने वाले नेताओं के सामने घुटने नहीं टेके हैं !

    यदि हमारे सभी देशवासी आरक्षण को ठोकर मारकर लालच देने वाले नेताओं को दुदकार कर दरवाजे से भगाना शुरू कर दें तो देखो अभी भ्रष्टाचार समाप्त होता है कि नहीं !देखो देश की तरक्की होती है कि नहीं !

    ऐसे नेता लोग दलितों की दीन दशा दिखाकर माँगते हैं और खुद खा जाते हैं इससे देश का धन न दलितों के काम आ रहा है और न देश के बिना किसी घोषित आय स्रोत के भी दलित धन से नेता अरबपति होते जा रहे हैं राजनीति में आते समय इनके पास कुछ था नहीं और राजनीति में आने के बाद कुछ धंधा व्यापार कर नहीं सके फिर भी अरबपति आखिर ये दलितों का धन नहीं तो है किसका  !सवर्णों के नाम पर तो कभी कोई अनुदान पास नहीं न हुआ जो वो खा जाएँगे ! ये दलितों का ही हिस्सा मार जाते हैं और सवारों की बुराई करके दलितों को फुसला कर उनका वोट भी ले लेते हैं किंतु उन्हें कभी कुछ देते नहीं हैं पिछले साठ  सालों से यही खेल खेले जा रहे हैं !

     दलितों को नेताओं से पूछना चाहिए कि हमारे हिस्से का धन तुम्हारे पास पहुँचा कैसे !और आज किस मुख से मांगने आए हो वोट ?

    "आरक्षण पर अड़े गुर्जरों की जिद से रेलवे रोज झेल रहा 15 करोड़ का नुकसान  - एक खबर"   

    ये आरक्षण की आग लगाई तो नेताओं ने ही है !अब गुर्जरों को क्यों न मिले आरक्षण उन्हें भी दिया जाए और भी जो बचे खुचे अपने को कमजोर मानने वाले लोग हों उन्हें भी दिया जाए !

 जहाँ तक बात सवर्णों की है भारतीय राजनेता सवर्णों के विरुद्ध आरक्षणी साजिश रचने का कितना भी कुचक्र रचते रहें किंतु विश्व जनता है कि सवर्णों ने अपने देश में रहकर सरकारों के द्वारा रचे जा रहे सभी प्रकार के जातीय अत्याचार सहकर भी कठिन परिश्रम करके अपना विकास किया है ।  


       


Monday, 25 May 2015

जनता की समस्याएँ सत्तासीन राजनैतिक देवताओं तक पहुँचती आखिर कैसे होंगी ?

 सत्तासीन नेताओं को पता कैसे लग जाता है कि अब विकास हो गया है चलो अब रैली करते हैं ?
      राजनैतिक देवता तो अपने कैलास से उतरते  नहीं हैं जनता को उनके दर्शन दुर्लभ होते हैं पत्र व्यवहार बड़ा कठिन होता है फिर भी सब कुछ जान जाते हैं !
     महँगाई बढ़ती जा रही हो,सड़कें टूट रही हों ,अपराध बढ़ रहे हों फिर भी सत्तासीन नेता कैसे बता देते हैं कि भारी विकास हो रहा है ?आखिर ये देवता जान कैसे जाते हैं ! 
  यही नेता जब विपक्ष में होते हैं तब इसी परिस्थिति को जंगलराज,महंगाई ,भ्रष्टाचार आदि न जाने क्या क्या बोला करते हैं किंतु सत्ता शीर्ष पर पहुंचते ही उन्हें अच्छे दिनों का एहसास हो जाता है और चारों और राम राज्य दिखाई पड़ने लगता है आखिर कैसे ?
     बंधुओ !परिस्थितियाँ वही होती हैं किंतु अंतर इतना होता है कि तब हम उस व्यवस्था में सम्मिलित नहीं होते हैं और अब सम्मिलित हैं तब इसका एहसास नहीं था  अब है बस !
       एक बात और है जब विपक्ष में होते हैं तो वोट मांगने के लिए घर घर जाना होता है जगह जगह धक्के खाने होते हैं तब पता लगता रहता है आटा  दाल का भाव ! किंतु सत्ता में आते ही भोजनपानी फ्री होता है क्या लेना देना महंगाई से ! 
   सत्ता में आने के बाद अधिकारी उनकी गाड़ियों के आगे पीछे चलते है साइरन बजाते हुए ,चिकने रोडों से निकाले जाते हैं सत्तासीन राजनैतिक देवी देवता ! पूरी रोड में दोनों तरफ खड़े पुलिस के आला अधिकारी कर्मचारी धड़ाधड़ ठोंक रहे होते हैं सलाम !
    यह सब देख कर पहले गली मोहल्ले में धक्के खाकर देश की हकीकत देखने वाला नेता अधिकारियों के द्वारा स्वरचित आर्टिफीशियल विकास देखकर बाग़ बाग़ हो उठता है उस दिन उसे अपने रामपन एवं अपने राज्य की तुलना राम राज्य से करने के लिए ढिंढोरा पीटने का मन हो उठता है !       जिन्हें सुनकर जनता को लगता है कि ऐसा क्या हो गया जिसके लिए दुंदुभी बजाई जा रही है बोले क्यों ? पता लगा कि नेता जी ने विकास किया है ! वाह बहुत सुन्दर !चलो उन्हें लगने तो लगा विकास हो गया है उनकी आत्मा को शान्ति मिले हम तो पिछले 70 वर्षों से दिन काट ही रहे हैं तो आजतक कुछ बदलता दीखा नहीं और थोड़ा बहुत तो सभी करते हैं !चलो विकास हुआ तो सही हमारा नहीं नेता जी का हुआ यह भी अच्छा ही है ।
                                     
               राजधानी में रामराज्य !

  दिल्ली वालों के लिए डबल सौभाग्य ! केंद्र हो या प्रदेश सरकार दिल्ली

  वालों पर सबकी अपार कृपा है !बाकी आप लोग दिल्ली के भी समाचार 

तो पढ़ते ही होंगे ! दो सरकारों के बीच रगड़े जा रहे हैं बेचारे ! दिल्ली वालों

 की भी खबर लेते रहना देश वासियो ! दिल्ली के दंगल में कौन पहलवान 

किसको कब पटक दे क्या पता ! ताल तो दोनों तरफ से ठोकी जा रही है

 कुस्ती कठिन है ! इतनी हमदर्दी पचा नहीं पा रहे हैं दिल्ली के लोग ! 

भगवान 4 वर्ष 9 महीने दिल्ली वालों पर अभी और भारी हैं !भगवान करे 

ठीक ठीक ही बीत जाएँ दिल्ली वालों के आने वाले दिन !
                   
  ' पीठ थपथपावन दिवस 'अर्थात 25-5-2015आप सभी मित्रों को बहुत बहुत बधाई !
     यह त्यौहार आज बड़े धूम धाम से मनाया जा रहा है इस पवन पर्व पर अपने मुख मियाँ मिट्ठू बनना होता है अर्थात अपने मुख से अपनी प्रशंसा उन बातों के लिए करनी होती है जो आज तक तो न ही कर सके हों और आगे भी जल्दी जल्दी करने की उम्मीद कम ही दिख रही हो फिर भी आगे आने वाले चुनावों का सामना करने की कठिन चुनौती सामने खड़ी हो और जनता के बीच जाने की हिम्मत न पड़ रही हो !ऐसे धर्म संकटों से निपटने में राजनेताओं के लिए इस " पीठथपथपावनदिवस" का महान महत्त्व है ।
              यदि हम और हमारे लोग सत्ता में तो 'अच्छे दिन' !
    जो विपक्ष में उनके बुरे दिन और  आम जनता के हमेंशा एक जैसे दिन  'अपने मुख से अपनी प्रशंसा !' बंधुओ ! कहते कुछ अजीब सा नहीं लगता है ? पहले अपनी प्रशंसा अपने मुख से करने वालों को अच्छी निगाहों से नहीं देखा जाता था किंतु राजनीति में किसी की अच्छी बुरी निगाहों की परवाह किसको होती है यहाँ तो " अपना मन चंगा तो कठौती में गंगा "
          अपनों के लिए कुछ अच्छा करके कहने की अपनी परंपरा नहीं है ! 
       यदि जनता को अपना समझा जाए और उनके लिए कुछ अच्छे काम कर ही दिए जाएँ जिसके लिए जनता चुनकर भेजती है तो फिर करके कहना क्यों ?पहले मर्यादा थी लोग ऐसा नहीं किया करते थे और जो कह् देते थे उनका कहाँ रह जाता था सम्मान !लोग कहा करते थे कि यदि कह ही दिया तो करे न करे का क्या फायदा ?किंतु राजनीति में काम करने कितने लोग आते हैं !यहाँ तो योजनाएँ बना बना कर जनता को बताना और विपक्ष को गरियाना होता है बस बीत जाते हैं पाँच वर्ष !                      
अयोग्य चाटुकार लोग राजनीति से समाप्त करते जा रहे हैं नैतिकमूल्य !
    एक हिन्दू वादी पार्टी में सम्मिलित होने एकबार मैं गया राजधानी के उस कार्यालय में जिन नेता जी से फोन पर बात हुई थी उन्हीं से जाकर मिला हमने उन्हें अपने सारे डिग्री प्रमाण पत्र एवं सामाजिक कार्य दिखाए अपनी लिखी हुई किताबों की एक एक प्रति भेंट की, संयोग से उसमें एक दुर्गा सप्तशती भी थी जो हमने  दोहा चौपाई में अनुवाद की है !उन्होंने उसे देखते ही कहा तो ये आपने लिखी है! मैंने कहा हाँ मान्यवर !उन्होंने तपाक  से कहा कि तुम चंडीपाठ वाले लोग रंडीपाठ वाली राजनीति में क्या करने के लिए आना चाहते हो ! खैर, अपना नंबर दे दो देखेंगे बाद में ! संभवतः अब वो कहीं राजनीति की इतनी ऊँची  जगह बैठे होंगे जहाँ से हम जैसे छोटे लोग दिखाई ही कहाँ पड़ते होंगे ! अब वो मिलेंगे कुछ वर्ष बाद जब धरती पर आएँगे !
                               अँधा जब देखे तब भरोसा करे !
    प्रधान मंत्री जी अपनी सरकार को अच्छा बतावें या मुख्यमंत्री जी हमलोग तो बने ही उनकी प्रशंसा सुनने के लिए हैं और कर भी क्या सकते हैं !कम से कम ये लोग कुछ करने को कह तो रहे हैं हमें तो इसी बात की ख़ुशी है !
 अच्छे नेताओं को भी अपने अच्छे कामों पर भीड़ देखे बिना भरोसा कहाँ होता है !
          अपने किए हुए अच्छे कामों पर यदि भरोसा ही हो तो रैली रैला क्यों ? जो काम आप ने किए जनता ने समझे बस बात खत्म । आखिर जनता के लिए किए गए कामों पर ढिंढोरा आप क्यों पीटते फिरें ! अब अच्छी बुरी टिप्पणी जनता की तरफ से आने की प्रतीक्षा तो की जानी चाहिए किंतु राजनीति में इतनी समाई कहाँ होती है किसी को !
    धन्य हैं लोकतंत्र के रखवाले जुबान बहादुर लोग !
      यहाँ तो जिसे परीक्षा देनी होती है वाही इक्जामनर होता है वही कापियाँ जँचता है वही रिजल्ट घोषित करता है वही मैरिट बनाता है और वही अपने को सर्व श्रेष्ठ राजनेता सिद्ध कर लेता है !बारी राजनीति !बारे राजनेता !!धन्य हैं लोकतंत्र के जुबान बहादुर लोग !!!
जनता की समस्याएँ सत्तासीन राजनैतिक देवताओं तक पहुँचती आखिर कैसे होंगी ?
      वो तो अपने कैलास से उतरते  नहीं हैं जनता को उनके दर्शन दुर्लभ होते हैं पत्र व्यवहार बड़ा कठिन होता है ।फिर भी जान जाते हैं महँगाई बढ़ती जा रही हो हो,सड़कें टूट रही हों ,अपराध बढ़ रहे हों फिर भी सत्तासीन नेता कैसे बता देते हैं कि भारी विकास हो रहा है ?ये देवता जान कैसे जाते हैं ! कोई अल्प संख्यक हो, दलित हो, विकलाँग हो  उनके पत्रों का जवाब देने में अच्छा भी लगता है जब मीडिया दयालू कृपालु जैसी छवि बना रहा होता है ! बाकी लोगों से पत्र व्यवहार कैसा ?

                     
           यदि हम और हमारे लोग सत्ता में तो 'अच्छे दिन' !
 जो विपक्ष में उनके बुरे दिन और  आम जनता के हमेंशा एक जैसे दिन ! 
 'अपने मुख से अपनी प्रशंसा !' बंधुओ ! कहते कुछ अजीब सा नहीं लगता है ?
         पहले अपनी प्रशंसा अपने मुख से करने वालों को अच्छी निगाहों से नहीं देखा जाता था किंतु राजनीति में किसी की अच्छी बुरी निगाहों की परवाह किसको होती है यहाँ तो " अपना मन चंगा तो कठौती में गंगा "

        अपनों के लिए कुछ अच्छा करके कहने की अपनी परंपरा नहीं है ! 
       यदि जनता को अपना समझा जाए और उनके लिए कुछ अच्छे काम कर ही दिए जाएँ जिसके लिए जनता चुनकर भेजती है तो फिर करके कहना क्यों ?पहले मर्यादा थी लोग ऐसा नहीं किया करते थे और जो कह् देते थे उनका कहाँ रह जाता था सम्मान !लोग कहा करते थे कि यदि कह ही दिया तो करे न करे का क्या फायदा ?किंतु राजनीति में काम करने कितने लोग आते हैं !यहाँ तो योजनाएँ बना बना कर जनता को बताना और विपक्ष को गरियाना होता है बस बीत जाते हैं पाँच वर्ष !
                         
 अयोग्य चाटुकार लोग राजनीति से समाप्त करते जा रहे हैं नैतिकमूल्य !
         एक हिन्दू वादी पार्टी में सम्मिलित होने एकबार मैं गया राजधानी के उस कार्यालय में जिन नेता जी से फोन पर बात हुई थी उन्हीं से जाकर मिला हमने उन्हें अपने सारे डिग्री प्रमाण पत्र एवं सामाजिक कार्य दिखाए अपनी लिखी हुई किताबों की एक एक प्रति भेंट की, संयोग से उसमें एक दुर्गा सप्तशती भी थी जो हमने  दोहा चौपाई में अनुवाद की है !उन्होंने उसे देखते ही कहा तो ये आपने लिखी है! मैंने कहा हाँ मान्यवर !उन्होंने तपाक  से कहा कि तुम चंडीपाठ वाले लोग रंडीपाठ वाली राजनीति में क्या करने के लिए आना चाहते हो ! खैर, अपना नंबर दे दो देखेंगे बाद में ! संभवतः अब वो कहीं राजनीति की इतनी ऊँची  जगह बैठे होंगे जहाँ से हम जैसे छोटे लोग दिखाई ही कहाँ पड़ते होंगे ! अब वो मिलेंगे कुछ वर्ष बाद जब धरती पर आएँगे !
अच्छे नेताओं को भी अपने अच्छे कामों पर भीड़ देखे बिना भरोसा कहाँ होता है !
          अपने किए हुए अच्छे कामों पर यदि भरोसा ही हो तो रैली रैला क्यों ? जो काम आप ने किए जनता ने समझे बस बात खत्म । आखिर जनता के लिए किए गए कामों पर ढिंढोरा आप क्यों पीटते फिरें ! अब अच्छी बुरी टिप्पणी जनता की तरफ से आने की प्रतीक्षा तो की जानी चाहिए किंतु राजनीति में इतनी समाई कहाँ होती है किसी को !
 धन्य हैं लोकतंत्र के रखवाले जुबान बहादुर लोग !
      यहाँ तो जिसे परीक्षा देनी होती है वाही इक्जामनर होता है वही कापियाँ जँचता है वही रिजल्ट घोषित करता है वही मैरिट बनाता है और वही अपने को सर्व श्रेष्ठ राजनेता सिद्ध कर लेता है !बारी राजनीति !बारे राजनेता !!धन्य हैं लोकतंत्र के जुबान बहादुर लोग !!!
    किसकी सरकार कितनी अच्छी है ये तो जनता को ही पता होगा ! किंतु नेता कैसे जान जाते हैं कि मेरी सरकार अच्छा काम कर रही है वो तो कभी जनता से पूछने नहीं जाते कि क्या बीत रही है तुम पर !और जनता उनसे मिल तो सकती नहीं अपनी बात बतावे तो कैसे ?पत्रों तक का जवाब तो वापस आता नहीं है कोई अल्प संख्यक हो, दलित हो, विकलाँग हो उसका जवाब देने से पहले मीडिया को बता दिया जाता है कि अब जवाब दिया जा रहा है ! 
    

Saturday, 23 May 2015

'राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान' की ओर से विशेष पत्र प्रार्थना -

आदरणीय प्रधानमंत्री जी   
                             सादर प्रणाम 
   विषय - भारत के प्राचीन विज्ञान के द्वारा 'भूकंप ' संबंधी शोध हेतु सहयोग के विषय में -
   महोदय,
       नेपाल में आए भयावह भूकम्प से सारा समाज भयभीत है । विश्व वैज्ञानिकों ने कई क्षेत्रों में निस्संदेह महत्वपूर्ण खोज की है किंतु भूकंप के विषय में अभी तक कुछ विशेष सफलता हासिल नहीं हो पायी है । 
     श्रीमान जी ! हमारा 'राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान'  भारतवर्ष के प्राचीन विज्ञान के आधार पर विगत कई वर्षों से विभिन्न विषयों पर शोध कार्यों में लगा है जिसमें कई विषयों पर न्यूनाधिक सफलता के सूत्र मिले हैं जो कुछ क्षेत्रों में समाज के लिए संजीवनी सिद्ध हो सकते हैं ।
       ऐसी परिस्थिति में नेपाल में आए भूकंप को हमारे संस्थान ने अपने शोध का विषय बनाया जिसमें भारत के प्राचीन विज्ञान के दृष्टि कोण से कुछ महत्वपूर्ण बातें सामने आई हैं इस दिशा में गंभीर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है मेरा अनुमान है कि इन विंदुओं पर अपने शोध कार्य को गति देने के लिए सरकार का सहयोग अपेक्षित है । 
    प्राचीन विज्ञान के दृष्टिकोण से अभी तक प्राप्त जानकारी के आधार पर यह कहा जा सकता है भूकंप आने का कारण केवल जमीन के अंदर की प्लेटों के घर्षण को ही नहीं माना जा सकता अपितु भूकंप आने के कारण ऐसे तत्व भी हो सकते हैं जो धरती के अंदर न हों जैसे वायु ,समुद्री जल ,आकाशीय बादल और वायु में व्याप्त अग्नि की मात्रा आदि । मेरे ज्ञान के अनुशार भूकंप के विषय में पहली बार इस दृष्टिकोण से भी विचार किया जा रहा है । 
       महोदय !इसी दृष्टि से  25 -4 -2015 को नेपाल में आया भूकंप 'वायव्य' नाम का भूकम्प था इसे आने का कारण धरती के अंदर की प्लेटें न होकर अपितु 21-4-2015 को आया भयानक तूफान था इस तूफान का केंद्र भी नेपाल का वही स्थान था जहाँ 25 -4 -2015  को भूकंप आया था इस तूफान में भी नेपाल से लेकर बिहार तक जनधन की विशेष हानि हुई थी । 
      'वायव्य' नामक भूकंप सूर्योदय से मध्यदिन के बीच में आता है यह 11. 56 AM पर आया था दूसरा वायव्य नामक भूकंप बहुत विशाल क्षेत्र को प्रभावित करता है जैसा कि इसने किया है इसी प्रकार से वायव्य नामक भूकंप आने के सात दिन पहले से लोगों के शरीरों में सूजन आने लगती ही खाँसी,दमा ,वमन ,चक्कर आना एवं उन्माद रोग (पागलपन सा) होने लगता है जो धीरे धीरे  बढ़ते बढ़ते भूकंप आने वाले दिन अपने विशेष प्रभाव पर होता है ये लक्षण भी नेपाल और बिहार के लोगों में विशेष मिले । भूकंप आने के 45 दिन बाद तक इसके आफ्टर शॉक्स आते रहते हैं जो यहाँ भी आते जा रहे हैं और 10 -6 -2015 तक ऑफ्टर शॉक्स आते रहेंगे जिसमें भी 24-5-2015 से 26 -5-2015 एवं 8 -6 -2015 से 10 -6 -2015 के बीच विशेष ऑफ्टर शॉक्स की संभावना रहेगी  और यदि ऐसा हुआ तो देश के प्रशासक के लिए विशेष अशुभ माना जाता है जिसका दुष्प्रभाव 180 दिन के अंदर दिखाई पड़ता है ।अभी  यह समय आगे आना है । 
    कुल मिलाकर प्राप्त ऐसे ही लक्षणों के आधार पर कहा जा सकता है कि इस दृष्टि से अनुसंधान करने पर सफलता की विशेष संभावनाएँ प्रचुर मात्रा में मिल सकती हैं किंतु इसमें निरंतर काम करने के लिए सरकार का सहयोग अपेक्षित है जिसके बिना आगे बढ़ पाना कठिन है । इससे जो कुछ विशेष जानकारियाँ हाथ लगें उसके आधार पर आधुनिक विज्ञान के साथ मिलकर एक निष्कर्ष तक पहुँचा जा सकता है ।                  
                                                                                                          भवदीय डॉ.शेषनारायण वाजपेयी
           संस्थापक   - 'राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान' 
          k-71 छाछी बिल्डिंग ,कृष्णा नगर ,दिल्ली -51 
                         मो. 9811226973 

इस विषय में और विशेष जानकारी के लिए देखें -' भूकंपज्योतिष ' नेपाल में भूकंप आने के विषय में क्या कहता है भारत का प्राचीन विज्ञान ?see more... http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2015/05/blog-post_17.html

Saturday, 16 May 2015

शिक्षा व्यवस्था का इतना पतन !

शिक्षक जिन कक्षाओं को पढ़ाते हैं वह परीक्षा यदि खुद उन्हें देनी पड़े तो कितने प्रतिशत पास हो जाएँगे ?    शिक्षक जिन कक्षाओं में पढ़ाते उन कक्षाओं को पढ़ाने लायक योग्यता भी बहुतों में नहीं होती है कुछ शिक्षक कोल्हू के बैल की तरह केवल उन्हीं कक्षाओं के बच्चों  को पढ़ाने की क्षमता रखते हैं जिन्हें हर वर्ष पढ़ाते हैं उसके अलावा उन्हें कुछ नहीं पता होता है कुछ तो उन कक्षाओं को भी नहीं पढ़ा सकते जिन्हें पढ़ाने का रोज रोज ड्रामा करते हैं कुछ शिक्षक उन क्लासों की को अध्यापक उन कक्षाओं को पढने भर की योग्यता रखते हैं

http://aajtak.intoday.in/story/jammu-kashmir-high-court-irked-as-teacher-fails-to-write-simple-essay-on-cow-1-812605.html

Thursday, 14 May 2015

देव मंदिरों में साईं पूजा के पाप से आती हैं भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएँ !जानिए कैसे ?

 ऐसे  लोगों का मुख नहीं देखना चाहते बाबा केदारनाथ हों या बाबा पशुपतिनाथ !जो साईं में आस्था रखते हुए भगवान के यहाँ भी हाजिरी लगाना चाहते हैं किन्तु वो ये क्यों नहीं सोचते हैं कि ऐसा करना तो भगवान का अपमान है ! 
  साईं जैसे पीरों फकीरों को भगवान बनाकर पूजने के कारण बार बार आ रहे हैं भूकंप!बाढ़,बीमारियाँ ,बलात्कार ,हत्या ,लूटपाट आदि सभी प्रकार के अपराध, भ्रष्टाचार आदि बढ़ते जा रहे हैं !जब साईं पूजा का प्रचार प्रसार कम था तब न तो इतने अपराध थे और न ही इतनी प्राकृतिक आपदाएँ !आज देश का धार्मिक धन या तो साईं के पास या अन्य पाखंडियों के पास समिटता जा रहा है यज्ञ बंद होते जा  रहे हैं इसके साइड इफेक्ट तो होंगे ही ! 
  बंधुओ ! यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी की जगह उसी घर में किसी दूसरी स्त्री को रखैल बनाकर रख ले  तो क्या उसकी पत्नी सह जाएगी !यदि ऐसा ही कोई स्त्री करे तो क्या उसका पति सह जाएगा ?इसी प्रकार से कोई अपने बाप की जगह किसी और को बाप बनाकर अपने घर में रखना चाहे तो क्या उसका पिता सह जाएगा !यदि नहीं तो देवी देवता क्यों सह जाएँ उनके मंदिरों में मची साईं भगदड़ को !इसलिए भलाई इसी में है कि साईं नाम के घुसपैठियों से सनातन धर्म के मंदिरों को मुक्त करवाया जाए !

बंधुओ ! देवी देवताओं की उपेक्षा करके यदि साईं आदि पीरों फकीरों को  पूजोगे तो यही होगा ! 

     बंधुओ ! जब केदार नाथ जी में इतने लोग मरे तो संपूर्ण समाज की तरह मैं भी बहुत दुखी था दिन रात बेचैनी थी तो मैंने भगवान शिव का ध्यान करके रोते हुए कहा "  स्वामी !हम सांसारिक लोगों पर इतना क्रोध !ऐसा तांडव !अपने चारों और लगा लिए शवों के ढेर !स्वामी आप तो गलतियाँ क्षमा कर देते रहे हैं आप पर तो आपके भक्तों को इतना भरोसा है कि आपके भक्त आपका नाम लेकर बड़ी बड़ी बिपत्तियाँ सह जाते हैं आपके भरोसे हमेंशा गरजा करते हैं वे !और आप ही यदि ऐसे ठुकराएँगे तो वे अनाथ हो जाएँगे !आप तो भोले बाबा हैं और आपका अपने भक्तों पर ऐसा क्रोध !स्वामी !आपके भक्तों का संहार कोई दूसरा कर ही नहीं सकता ये तो आपकी इच्छा के बिना संभव ही नहीं है !फिर अपने भक्तों की गलतियाँ माफ कर देते तो !स्वार्थी दुनियाँ से उकता कर लोग आपकी शरण में आते हैं स्वामी आप भी क्रोध करेंगे तो किसकी ओर ताकेंगे निराश हताश लोग !बंधुओ !ऐसा कहते भाव विभोर लोग होता हुआ सो गया मैं !

     रात में स्वप्न में एक शिव मंदिर दिखा जिसमें शिव जी का मंदिर सूना पड़ा था किंतु उसी में रखे साईं पत्थर की पूजा बड़े धूम धाम से हो रही थी !वहीँ किसी की एक अज्ञात आवाज आ रही थी कि इसे गलती नहीं गुंडई कहते हैं जिसका मंदिर उसकी उपेक्षा और भूत प्रेतों का पूजन वो भी भोले बाबा के सामने !मतलब क्या वो गलतियाँ माफ कर देते हैं तो कुछ भी करोगे !इसलिए ईश्वरी शक्तियों को भी अब अपना परिचय देना चाहिए!
     इसके बाद सपना टूट गया !  इस विषय में बहुत सोच विचार पूर्वक मैंने निर्णय किया कि ईश्वर के मंदिरों में होने वाली पीरों फकीरों भूतों प्रेतों की पूजा बंद करवाने के लिए हमें प्रयास करना चाहिए !दूसरी बात इन पीरों फकीरों को पूजने वाले लोगों का ईश्वर के मंदिरों में प्रवेश बंद किया जाना चाहिए !अन्यथा साईंवालों का मनहूस चेहरा देखते ही देवी देवता क्रोध से तमतमा उठते हैं और हो जाता है भूकंप ,आँधी तूफान ,बाढ़ जैसा कोई न कोई बड़ा उपद्रव !        
    ये तो हम सब लोगों को सोचना होगा कि आखिर क्यों आ रहे हैं बार बार भूकंप ?आँधी तूफान ,बाढ़ आदि !गाँव के गाँव नदियों की बाढ़ में बहते जा रहे हैं आखिर क्यों !कहीं डेंगू तो कहीं स्वाइन फ्लू !हर तरफ से संहार ही संहार नजर आ रहा है आखिर क्यों ?जब साईं पूजा नहीं थी तब इतने उपद्रव नहीं होते थे और न ही इतने बलात्कार ,हत्याएँ लूट पाट  आदि ही थी आज क्यों ये सब होने लगा है !
    अरे पापियों ! भगवानों के मंदिरों में भगवानों को दिखा दिखा कर साईं पत्थरों को पूजोगे तो ऐसे ही आएँगे भूकंप और बहुत सारी  प्राकृतिक आपदाएँ !कुछ लोगों के साईंपापों का फल आज संपूर्ण समाज भोगने को मजबूर है ! 
  साईं के बहाने पूजा पाठ मंदिरों शास्त्रों एवं परंपराओं को ड्रामा सिद्ध करने की तैयारी !

    रावण ने मायावी साधू बनकर सीता का हरण किया था और साईं मायावी देवता बनकर संस्कृति का हनन कर रहे हैं ! 

    अरे हिन्दुओ !आज कुछ मायावी लोग तुम्हारे देवी देवता ,योगी,सिद्ध आदि बनने के लिए घात लगाए बैठे हैं यदि तुम थोड़ा भी चूके तो वो लोग तुम्हारे देवी देवता गुरु सिद्ध साधक आदि कुछ भी बन बैठेंगे !फिर तुम्हारी पीढ़ियों तक को अनादि काल तक उन्हें ढोना पड़ेगा ।  

   साईं या किसी और ऐसे वैसे व्यक्ति को देवता मानने का मतलब हमारे धर्म में सबकुछ काल्पनिक और माननेवाली चीजें  ही हैं !इस धर्म में सच्चाई कुछ भी नहीं है !जो जिसे जब और जैसे चाहे वो उसे देवी देवता बना ले और मढ़ दे हिंदुओं के मंदिरों पर !और मंदिरों में रखकर पुजवाना चालू करवा दे कितनी बड़ी साजिश है सनातनधर्मी हिंदुओं के साथ !जिसे हिन्दू अभी समझ नहीं रहे हैं आगे इसके कितने घातक परिणाम होंगे इसकी अभी कल्पना भी नहीं की जा सकती !

      शास्त्र को न जानने वाले कुछ अज्ञानी लोगों ने साईं को देवता बना तो लिया और मंदिरों में रखकर पुजवाने भी लगे किंतु जब कोई किसी अन्यधर्मी किसी और की मूर्तियाँ मंदिरों में रखकर पुजवाना चाहेगा तो उसे किस नियम से रोका  जाएगा !वो अपने श्रद्धा पुरुष के लिए कहेगा कि ये भी बड़े दयालू हैं ये सबकी मनोकामनाएँ पूर्ण कर देते हैं!

 आखिर साईं को देवता बनाकर पूजने की मजबूरी क्या थी ! क्या हिन्दू धर्म में देवी देवता नहीं थे ?

    देवी देवताओं की उपासना करने के लिए समझाया जाता है कि जो पाप करेगा भगवान उस पर गुस्सा होते हैं इसलिए पाप अपराध आदि गलत काम छोड़कर देवी देवताओं की शरण में आओ किन्तु साईं वाले कहने लगे कि कुछ भी करो साईं सब माफ कर देंगे ये बाबा बड़े दयालू हैं !बंधुओ !क्या ये अप्रत्यक्ष रूप से अपराधों को प्रमोट करना या उनका समर्थन करना नहीं है !

    अरे हिंदुओ ! तुम्हारे जैसा कायर कौन हो सकता है जो अकारण अपने मंदिरों में एक साधारण से बुड्ढे की मूर्तियाँ पुजवा रहा है ,कोई स्वाभिमानी व्यक्ति अपने बाप को छोड़कर किसी और को बाप नहीं बना सकता तुम अपना भगवान बदल लेते हो !कुछ लोग अपने श्रद्धा पुरुष की पोशाक किसी और के पहन लेने पर परेशान हो जाते हैं किन्तु तुम्हारे अंदर वो स्वाभिमान क्यों नहीं है!कोई अपने गुरू की निंदा नहीं सुन सकता तुम अपने भगवान की निंदा सुनते हो !

   अरे !साईं पूजक हिन्दुओ ! क्या तुम्हें भी लगता है कि साईं बाबा बड़े दयालू हैं और यदि हाँ तो श्री राम कृष्ण शिव दुर्गा आदि देवी देवताओं की दया पर भरोसा नहीं रहा क्या तुम्हें !आखिर क्यों अपमानित करवा  रहे हो अपने देवी देवताओं को !क्यों लजाते घूम रहे हो अपने भगवानों को !बुड्ढे के प्रतिमा पत्थरों के आगे क्यों गिड़गिड़ा रहे हो तुम ! ऐ भिक्षुकों ! यदि केवल कुछ माँगने के लिए ही अपने देवी देवताओं  को लजाते साईं पत्थरों के सामने रोते घूम रहे हो तुम तो कभी पवित्र भावना से अपने देवी देवताओं से भी कुछ माँग कर तो देखते !

     ऐ पाप प्रेमियो ! आखिर देवी देवताओंको छोड़कर तुम साईं के यहाँ गए क्या समझकर !केवल इसीलिए न कि साईं के यहाँ पाप करने को रोका  नहीं जाता अपितु पीठ ठोकी जाती है कि कुछ भी करो बाबा बचा लेंगे क्योंकि वो बहुत दयालू हैं !यदि ये नहीं तो और ऐसा क्या है जो देवी देवताओं से अलग हैं !

    किसी के कहने मात्र से किसी को देवता मान लिया जाएगा क्या ?किसी को देवता मानने के लिए शास्त्र की सहमति लेनी आवश्यक है! कुछ लोगों ने अपने अनुयायियों को समझा रखा है कि हम मरें तो हमारी भी मूर्तियाँ मंदिरों में लगाई जाएँ और हमारा भी आरती पूजन उसी प्रकार से हो जैसे साईं बुड्ढे का होता है !आप स्वयं सोचिए बाबाओं की ऐसी महत्वाकाँक्षा को कैसे पूरा किया जा सकेगा !

   जिन सनातन धर्म ग्रंथों से देवी देवताओं के विषय में हमें प्रेरणा मिलती है उनमें साईं की चर्चा ही नहीं है संत साहित्य में साईं की चर्चा नहीं है आजादी के इतिहास में साईं की चर्चा नहीं है साहित्यकारों में साईं की चर्चा नहीं है भक्तसंतों की परंपरा में साईं की चर्चा नहीं है ,साईं को किसी मंदिर में जाते देखा नहीं गया आदि आदि फिर साईं देवता किस बात के !

      आज धर्म के नाम पर पाखण्ड की भरमार होती जा रही है आश्रमों के नाम पर ऐय्याशी के अड्डे बनते जा रहे हैं बाबा लोग अपनी अपनी सुविधानुशार धर्म पालन की सलाह दे रहे हैं जैसे जो लोग अपनी  शिष्याओं के प्रति बासना का भाव रखते हैं वो उन्हें कृष्ण की रासलीलाओं को बासनात्मक बताकर उनके उदाहरणों से अपनी ओर आकर्षित करते  हैं कि जब कृष्ण ने ऐसा किया तो हम आप क्यों न करें !इसी प्रकार से और भी अनेकों उदाहरण हैं । 

       ऐसे  सभी प्रकार के पाखंडों से बचने के लिए हमें धर्म के मामले में शास्त्रों को आगे करके चलना होगा अगर कोई पंडित महात्मा पुजारी गुरु आदि आपको कोई उपदेश करता है या ज्योतिष एवं तंत्र सम्बन्धी कोई उपदेश या शंका समाधान करता है तो उचित है कि आप उससे प्रमाण पूछिए कि ये  किस आधार पर कह रहे हैं आप ! जिसदिन आप ऐसा करना सीख जाएँगे उसीदिन आपको मूर्ख बनाना इन पाखंडियों को बंद करना होगा !

   

Saturday, 9 May 2015

प्रधानमंत्रीजी सब जगह घूम आते हैं किंतु अयोध्या नहीं जाते हैं आखिर क्यों ? क्या अपराध है प्रभु श्री राम का !

 प्रधानमंत्रीजी सब जगह  घूम आते हैं किंतु अयोध्या नहीं जाते हैं आखिर क्यों ? क्या अपराध है प्रभु श्री राम का !
 

 अरे प्रधानमंत्री जी !श्री रामलला के दर्शन न करते तो न सही एकबार देख ही आते उन्हें उसी चबूतरे  पर 1992 में जहाँ जैसे बैठा आए थे आप लोग बस वहाँ वैसे ही बैठे तक रहे हैं आप लोगों की राह ! और सह रहे हैं गर्मी सर्दी वर्षात एक तंबू में !
    भाजपा को सत्ता तक पहुँचाने का श्रेय केवल श्री राम मंदिर निर्माण संकल्प को जाता है जिसे भाजपा ने आज भुला दिया है भाजपा के वर्तमान शीर्ष पुरुष सारी  दुनियाँ  घूम आते हैं किंतु अयोध्या नहीं जाते हैं !उनके प्रधान मंत्री बनने का श्रेय कभी साईं बुड्ढे को दे दिया जाता है कभी किसी और को किंतु श्री राम लला को नहीं दिया  जाता है जो श्री राम भाजपा को सत्ता में लाने के लिए आज भी चबूतरे पर एक तंबू में बैठे  सह रहे हैं गर्मी सर्दी वर्षात !किंतु सत्तासीन भाजपायियों के लिए मंदिर निर्माण अब कोई मुद्दा नहीं रहा ! अन्यथा लोकसभा में बहुमत है वहीँ पास कीजिए आगे का आगे देखा जाएगा !आखिर  क्या गलती हो गयी प्रभु श्री राम से ?
   प्रधानमंत्री जी आज हर विषय पर हर तरह से बोलते हैं कभी 'तन की बात' कभी 'मन की बात' तो कभी 'धन की बात' कर लेते हैं वैसे तो हर बिषय पर बोल लेते किंतु श्री रामलला  का नाम आते ही .... !
 इसी  प्रकार से सारी  दुनियाँ घूम आते हैं किन्तु अयोध्या जाने में क्यों ठिठुकते हैं पैर वहाँ क्यों नहीं जा पाते हैं !
   यदि अपने शिर की छाया छोड़कर  चबूतरे पर बैठे श्री रामलला गर्मी शर्दी वर्षा न सह रहे होते तो क्या भाजपा आज आ जाती सत्ता में और बन जाते मोदी जी प्रधानमंत्री ?
"ये मोदी जी के गुरु जी न होते तो मोदी जी आज प्रधानमंत्री न होते -आजतक"
    किंतु यदिअयोध्या में प्रभु श्री राम जी के मंदिर निर्माण को मुद्दा न बनाया गया होता तो मोदी जी बन जाते प्रधान मंत्री क्या ! यदि बाबरी ढाँचा श्री राम भक्तों ने ढहाया न होता तो मोदी जी बन जाते प्रधान मंत्री क्या !यदि अडवाणी जी ने रथ यात्रा न निकाली होती तो मोदी जी बन जाते प्रधान मंत्री क्या ?यदि भाजपा और संघ के समस्त पूर्व पुरुषों ने  मानव मूल्यों की रक्षा संकल्प एवं अपनी  देश भक्ति भावना का विश्वास समाज के में न पैदा किया होता तो मोदी जी आज बन जाते प्रधान मंत्री क्या ?

Wednesday, 6 May 2015

बढ़ते बलात्कारों भ्रष्टाचारों अपराधों के लिए हम सभी धार्मिक लोग जिम्मेदार ! अफसोस ! हम समाज को वो नहीं दे सके जिसकी उसे जरूरत थी !!

 हम धार्मिकों के शास्त्रीय व्यवहार विरोधी पाप में समाज बराबर का दोषी है आखिर वो धर्म के नाम पर हमसे क्यों खरीद रहा है अशास्त्रीय डालडा !हमें दुदकार क्यों नहीं देता ! हमारी उपेक्षा क्यों नहीं कर देनी चाहिए उसे !
     ऐ ! समाज के प्रबुद्ध और जिम्मेदार नागरिको ! हम धार्मिकों को मानने की आपकी मजबूरी क्या है ?जब हम आपके बच्चों को सदाचरण नहीं सिखा पा रहे हैं संस्कार नहीं दे पा रहे हैं त्याग वैराग आत्म संयम सेवा भावना,शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान आदि कुछ भी तो नहीं सिखा पा रहे हैं फिर भी आप हमारी गैर जिम्मेदारी अकर्मण्यता अशास्त्रीय बात व्यवहारों में हमारा साथ क्यों देते हैं आप ! ये पाप आप से भी हो रहा है !हम धार्मिकों का जो काम आपको अशास्त्रीय लगे उसका विरोध आपको हमारे मुख पर करने का अभ्यास करना चाहिए !
 पहले हमारे शास्त्रीय संस्कारों का ही प्रभाव था माता पिता आदि पूर्वजों को लोग उनके मरने के बाद भी पिंडदान के माध्यम से भोजन पहुंचते थे किंतु आज तो जीते जी भोजन देना मुश्किल होता जा रहा है इसके लिए न सरकार दोषी है न कानून अपितु ये हम धार्मिकों की गैर जिम्मेदारी के दुष्परिणाम हैं !
     पहले हमारे शास्त्रीय संस्कारों का ही प्रभाव था कि पड़ोसियों के सहारे लोग  अपनी बहन बेटियाँ अपने घरों में छोड़कर चले जाते थे अपनी नाते रिश्तेदारियों में निपटा आते थे कामकाज ! किंतु अब तो पड़ोसियों से भी बचाकर रखनी होती हैं बधू बेटियाँ अन्यथा किसी मजबूरी में पड़ोसी की गलत हरकतों के सामने विवश होकर मान लें तो प्यार न माने तो बलात्कार ! आखिर जाएँ तो जाएँ कहाँ !
      प्यार नामक दुराचरण से परिवार टूट रहे हैं संस्कार समाप्त हो रहे हैं आपसी अविश्वास और विश्वास घात में हत्याएँ हो रही हैं पूरे देश और समाज में प्यार के साइड इफेक्ट हत्याओं में तब्दील होते जा रहे हैं फिर भी मीडिया ,फ़िल्म एवं विदेशों में घूमे फिर लोग प्यार के इतने दीवाने हैं कि उसका समर्थन करते करते वो उनके माता पिता की भावनाओं को भी कुचलने को तैयार हैं  जिसका दुष्परिणाम है आनरकिलिंग !आखिर अपने पैदा किए हुए बच्चों को भूल कैसे जाएँ वो लोग !उनके सामने आत्म समर्पण कैसे कर दें फिर भी जो सह जाते हैं वो ऐसे बच्चों के या तो साथ रहते हैं या उन से किनारा कर लेते हैं और जो नहीं सह पाते हैं वो भावावेश में कर बैठते हैं अपराध हत्याएँ !आदि आदि और भी बहुत कुछ !जो गलत है किंतु इन्हें रोकने के लिए हम धार्मिका समुदायों के लोग आखिर क्यों नहीं कर पा रहे है कुछ !
        शिक्षा में मटुकनाथ पैदा होने लगे हैं धार्मिकों में निर्मल बाबाओं ने गन्दगी फैला रखी है नेताओं में बदनाम आदमी पार्टी के लोगों ने टीवी चैनलों में ज्योतिष एवं धर्म से जुड़े अधार्मिक कार्यक्रम दिखने वाले लोगों ने
              माननीय न्यायालयों की भूमिका धार्मिक क्षेत्रों में भी अभिनंदनीय !
 धार्मिक निर्मल बाबाओं से बचाया जाना चाहिए धर्म !
 धर्म के क्षेत्र में अभी और भी भ्रष्टाचारी  कचरा बहुत है उसे भी हटना चाहिए !धीरे धीरे धर्म का स्वरूप ही विलुप्त होता जा रहा है वेदों शास्त्रों पुराणों रामायणों सहित समस्त धर्म शास्त्रों की भूमिका ही समाप्त होती जा रही है धर्म के नाम पर जिसे जो मन आ रहा है सो बक रहा है समाज भ्रमित है कि वो किसे और किसकी माने या न माने धर्म का चोला पहने घूम रहे लोगों की किस बात को शास्त्रीय मान कर उस पर अमल करें किस पर न करें।
       केवल चंदा जुटाने के लिए हमने 'भागवत' को भगवत बना डाला ! हमें धिक्कार है !
भागवत कथाएँ केवल कामियों को खुश करने के लिए !हम भूल गए कि भागवत मनोरंजन का नहीं अपितु आत्मरंजन का ग्रन्थ है ! भागवत वक्ता महिलाएँ यदि शास्त्र को मानती हैं तो मासिक अशुद्धि में क्या उन्हें करनी चाहिए भागवत ?क्या महीनों वर्षों पहले बुक की जाने वाली कथाओं में संभव है धर्मनिर्वाह !क्या हमारी माताएँ बहनें अशुद्धिकल बचाती नहीं रही हैं आखिर क्यों आया ये अशास्त्रीय परिवर्तन !और जब हम ही धर्मशास्त्रों  को नहीं मानते तो हमें समाज क्यों मानता है इसके लिए समाज दोषी नहीं है क्या ?
      समाज को भागवत वक्ताओं से आज भागवत नहीं मिल रही है इसमें एक तो वक्ता अयोग्य होने के कारण भागवत जानते नहीं हैं दूसरा उनके अपने आचारण इतने निंदनीय होते जा रहे हैं कि यदि वो भागवत वास्तव में कहने लगें तो उसे सुनकर श्रोतालोग इनसे घृणा करने लगेंगे !इसीलिए वास्तविक भागवत से समाज को दूर रखने का षड्यंत्र चल रहा है अन्यथा भागवत में नाच गाना यदि इतना ही जरूरी होता तो शुकदेव जी ने भी ठोंका होता तबला और नचाई होती अबलाएँ !वर्तमान अशास्त्रीय  भागवत वक्ताओं  का ध्यान रामियों श्यामियों से तो पूरी तरह हट चुका है इनका टार्गेट केवल कमियों को खुश करना दिखता है इसीलिए आज की भागवत में सुंदरता बिकती है श्रृंगार बिकता है संगीत बिकता है संपन्नता बिकती है कामुकता बिकती है टैक्स बचाने के  कुछ धनी लोग खेलते हैं भागवत नाम का खेल और उसी पैसे के बल पर भडुवे भागवत नाम की भगदड़ काटते हैं सात दिन! केवल संपत्ति का प्रदर्शन होता है   केवल केवल करके केवल इसलिए समय पास किया जा रहा है कि यदि भागवत भागवत केवल इसलिए नहीं कहते हैं 

     आज कोई भी अपने को शंकराचार्य कहने लगता है कोई भी जगद्गुरु बन जाता है कोई भी महंत श्री महंत मण्डलेश्वर महामंडलेश्वर आदि बन बैठता है जबकि उसमें उसके शास्त्रीय लक्षण होते ही नहीं है और न ही वो शास्त्रों की परवाह ही करता है

Tuesday, 5 May 2015

नेताओं की पढ़ाई

 

इन नेताओं की पढ़ाई जानकर हैरान रह जाएंगे आप

aajtak.in [Edited By: अनुराधा पांडे] | नई दिल्ली, 17 मार्च 2015 | अपडेटेड: 12:56 IST

Smriti Irani
भारतीय राजनीति में नेता अपनी पढ़ाई को लेकर जमकर झूठ बोलते हैं लेकिन अक्सर उनके ये झूठ बेनकाब हो जाते हैं. जानकर हैरान हो जाएंगे कि आपके लिए कानून बनाने वाले कई नेता ग्रेजुएट भी नहीं है.
झूठ की क्लास क्यों लगाते हैं नेता?
लालू की बेटी का हार्वर्ड में लेक्चर!

लालू की बेटी मीसा भारती ने अपने फेसबुक पेज पर फोटो डालते हुए दावा किया कि उन्होंने हार्वड यूनिवर्सिटी में लेक्चर दिया. इस दावे की हवा निकालते हुए हार्वड ने सफाई दी कि मीसा ने कोई लेक्चर नहीं दिया. वो वहां महज दर्शक के तौर पर मौजूद थीं. सोशल मीडिया में उनका फोटो जमकर वायरल हुआ. वहीं विरोधियों को उन पर निशाना साधने का मौका मिल गया.
राजनीति की पाठशाला

हमारे देश में राजनीत‌ि के लिए पढ़ाई नहीं सिर्फ कौशल की ज़रूरत होती है.
दूसरे नेताओं की हालत और भी खराब

मीसा पटना मेडिकल कॉलेज से MBBS हैं और अपनी क्लास की टॉपर भी रही हैं. जबकि 121 सांसद 12वीं या उससे कम पढ़े लिखे हैं.

भाजपा नेता वरुण गांधी का दावा था कि उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स से अपनी पढ़ाई पूरी की है. हकीकत निकलकर आई कि उन्होंने अपनी पढ़ाई डिस्टेंस लर्निंग के जरिए पूरी की थी.

मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी का दावा था कि उनके पास येल यूनिवर्सिटी की डिग्री है. बाद में सच्चाई सामने आई कि उन्होंने अन्य सांसदों के साथ महज 6 दिन का एक कोर्स किया था.


1991 में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का दावा था कि उनके पास ईस्ट जॉर्जिया यूनिवर्सिटी से डॉक्ट्रेट की उपाधि है. सच सामने आया कि इस तरह की कोई डिग्री अस्तित्व में ही नहीं है.
सौजन्य: NEWSFLICKS

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बाबा लोग पत्नी से डर के कारण नहीं करते हैं शादी ! अन्यथासबकुछ करने वाले बाबा शादी क्यों न कर लेते ?

   महिलाओं से जब कोई भय नहीं तो फिर पत्नी से इतना डर क्यों?
    इसीलिए अपने प्रवचनों में पत्नी बासना है माया है और जाने क्या क्या बोला करते हैं बाबा !वस्तुतः ये बाबाजी नहीं अपितु उनका डर बोल  रहा होता है ।ये केवल बातों के शेर होते हैं ,बड़ी बड़ी बातें करके समाज को कभी भी चढ़ा सकते हैं बाँस पर !और भिड़ा सकते हैं एक दूसरे से ! 
     पत्नी भय से घर गृहस्थी छोड़ भागे बाबा लोग वहाँ नहीं पहुँच पाए जहाँ के लिए निकले थे ,अब तो घर गृहस्थियों के ही इर्द गिर्द मँडराती ऐसे बाबाओं की असंतुष्ट आत्माएँ उनकी कथा कहानियों में केवल गृहस्थी की बातें !  ऐसे बाबाओं के प्रवचन आजकल ऐसे होने लगे हैं कि समाज को या तो यमराज से डरवाते हैं या फिर  पत्नी से या बीमारी से डराकर चंदा या चढ़ावा ऐसे माँगते हैं जैसे पत्नी रूपी बासना के डर से जान बचाकर खुद तो भाग आए हैं किंतु बेचारे लोगों को बचाने हेतु कोई नई भागीरथी धरती पर उतारने के लिए मानों भगीरथ बनने जा रहे हों ! कितनी बड़ी बड़ी बातें कैसी कैसी भारी भरकम योजनाएँ !
      जिन्हें व्यापार, राजनीति आदि सारे काम गृहस्थों की तरह ही करने हों फिर ऐसे बहादुर लोगों को क्या केवल पत्नी ही इतनी खुंखार लगती है कि उसके डर के कारण केवल विवाह नहीं करते हैं अन्यथा यदि वैराग्य ही होता तो साधू संतों की तरह ही बाबा लोग भी सारे प्रपंचों से दूर रहकर भगवान का भजन करते ! और यदि  सब कुछ छोड़ते तो विवाह भी न करते तब तो बात समझ में आती किन्तु सब कुछ करना यहाँ तक कि स्त्रियों से भी न डरना तो फिर केवल पत्नी से क्यों डरना ! पत्नी के साथ जिम्मेदारियाँ निभानी पड़ती हैं इसलिए !उसे कमा  कर खिलाना पड़ता है इसलिए !! बच्चों का भरण पोषण करना होता है इसलिए ! अपनी जिम्मेदारी स्वयं अपने को उठानी पड़ती है इसलिए !जबान सँभाल कर बोलना पड़ता है इसलिए !आखिर  एक पत्नी से डर कर क्यों भागना !और जो घर गृहस्थी के परिश्रम पूर्ण कामधंधों से डर गए  वो कितनी भी बीर रस की बातें कर लें किंतु अब समाज को सच्चाई पता लगने लगी है कि कौन क्या करने के लिए क्या बना है इसलिए ऐसे अघोषित गृहस्थों की सीख मानकर आज कोई भी अपने को बदलने को तैयार नहीं है क्योंकि जो चीज हम खुद नहीं कर सकते  हैं उसका उपदेश करते हैं तो सामने वाले पर भी उसका उतना असर भी नहीं पड़ता है! आज बाबा लोग भी कथाओं के नाम पर अब गाते बजाते घूम रहे हैं क्या वेद पुराण रामायणें इसीलिए लिखी गई थीं !

Saturday, 2 May 2015

सरकारी शिक्षा है या भिक्षा ?आखिर बच्चों के भविष्य की इतनी उपेक्षा क्यों करते हैं वहाँ के शिक्षक ?

    सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के साथ तो सारी सरकार किंतु अभिभावक अकेला होता है !उसे कोई कुछ भी बोल सकता है किंतु वो किसी को कुछ बोलने लायक ही नहीं होता है वो ऐसे डाँट दिया जाता है कि जैसे शिक्षक अपनी जेब से उसे सरकारी सुविधाएँ दे रहे हों !
      सरकारी प्राइमरी स्कूलों के शिक्षकों का साथ देने के लिए अधिकारी हैं सरकारें हैं धन है अधिकार है धमक है किंतु केवल अभिभावक अकेला होता है जिसे लोग बार बार समझाते हैं  कि अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में मत पढ़ावो वहाँ भविष्य बिगड़ जाएगा यहाँ तक कि वहाँ के शिक्षक भी यही समझाते हैं और बच्चा भी अपने पापा की अंगुली पकड़ कर प्राइवेट स्कूल में जाने की जिद  है किंतु मजबूर  पिता  छोड़ आता है लोक तिरस्कृत सरकारी स्कूलों में ।जब शिक्षक छोटे छोटे बच्चों के सामने क्लास में बैठकर चपरासियों से मँगवा कर  फ्रूटी पी रहे होते हैं या अन्य चीजें खा रहे होते हैं वो बच्चे उनकी ओर टुकुर टुकुर देख रहे होते हैं किंतु उनसे माँग नहीं सकते !ये कैसा गुरु का शिष्य का संबंध है जहाँ नैतिकता आत्मीयता वात्सल्यता आदर्श आदि बिलकुल मर चुके हों ! मैं विभिन्न स्कूलों में जा कर बच्चों से मिला करता हूँ ऐसी बातें सुनकर भर आते हैं हमारी आँखों में आँसू कई बार अपने छोटे छोटे हाथों से पोछने लगते हैं बच्चे उनके उस अपनेपन  पर  न्योछावर हो जाता है मन !                                      
   एकांत में मैं सोचा करता हूँ कि सरकारी स्कूलों में शिक्षाकार्य इतना उपेक्षित क्यों होता जा रहा है नैतिक आदर्श घटते क्यों जा रहे हैं !शिक्षा के लिए मीटिंगें  समय पर हो सकती हैं बार बार भी  हो सकती हैं ,शिक्षा के लिए विज्ञापन हो सकते हैं,भोजन दिया जा सकता वस्त्र पुस्तकें यहाँ तक कि पैसे भी दिए जा सकते हैं किन्तु शिक्षा क्यों नहीं ?पूर्वी दिल्ली कृष्णा नगर के  सरकारी स्कूल में मुझे बच्ची के कारण सुबह मीटिंग में अक्सर जाना पड़ता है जहाँ शिक्षिकाएँ या तो कुछ खा रही होती हैं या फिर आपस में झुंड बनाए घर गृहस्थी की बातें किया करती हैं या स्वजनों को फोन मिला लेती हैं चला करती हैं बातें ! आखिर यह कैसी शिक्षा ? और यदि कोई अभिभावक बच्चे की शिक्षा से संबंधित उनसे अपना कोई काम बताना चाहें  तो वो बेझिझक कह देती हैं कि वो व्यस्त हैं ये कैसे शिक्षकों के संस्कार हैं इन शिक्षकों को ट्रेंड कहकर क्यों महत्त्व मिलता है जबकि प्राइवेट स्कूलों के अनट्रेंड शिक्षकों की सैलरी इनसे बहुत कम होती है और शिक्षा की क्वालिटी बहुत अच्छी होती है इसीलिए तो उसमें धनी लोग नेता लोग अधिकारी लोग यहाँ तक कि सरकारी या निगम स्कूलों के शिक्षक लोग भी अपने बच्चों को प्राइवेट में ही पढ़ाना चाहते हैं फिर सरकारी शिक्षकों की ट्रेनिंग का समाज को क्या लाभ ?दूसरी बात जब सरकारी शिक्षकों की अपेक्षा चौथाई सैलरी में प्राइवेट स्कूलों को अपने शिक्षणकार्य से समाज का विश्वास जीतने वाले शिक्षक मिल सकते हैं तो सरकार जनता के विश्वास की परवाह ही न करने वाले सरकारी शिक्षकों की सेवाएँ लेने के लिए मजबूर क्यों है और क्यों देती है उन्हें अधिक सैलरी ! खुले मार्केट रेट  से अधिक सैलरी देने का रहस्य क्या है जबकि प्राइवेट की तरह ही खुले मार्केट में जगहें निकाली जाएँ और भर्ती हो उससे कम फंड में अधिक लोगों को रोजगार मिल सकता है शिक्षकों की संख्या बढ़ेगी शिक्षा की गुणवत्ता में भी सुधार होना स्वाभाविक है अन्यथा वर्त्तमान में सरकारी स्कूलों में शिक्षा गौण होती जा रही है बाकी सबकुछ ठीक है । सरकारी स्कूल के ही एक ईमानदार  एवं  कर्मठ शिक्षक ने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि हमें बड़ी बड़ी मीटिंगों में बुलाया जाता है वहाँ सारे विषय लिए जाते हैं किंतु शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने एवं सरकारी शिक्षा के प्रति समाज का विश्वास जीतने के प्रति कोई चर्चा नहीं की जाती है आखिर क्यों ?
    परसों अर्थात 30 अप्रैल के दिन पूर्वी दिल्ली कृष्णा नगर के  सरकारी स्कूल में मैंने एक शिक्षिका से अपनी बच्ची के नाम में हुए स्पेलिंग मिस्टेक को ठीक करने को कहा तो उन्होंने कहा आप देख रहे हैं कि मैं व्यस्त हूँ जबकि ऐसा कुछ नहीं था ।साथ ही उन्होंने कहा कि वैसे भी मैं किसी की नौकर नहीं हूँ ।जब मैंने उनसे कहा कि आजकल मनीष सिसोदिया जी अचानक भी स्कूल में आ जाते हैं यदि आ गए तब क्या होगा !तो उन्होंने कहा आजतक तो ऐसा कुछ हुआ नहीं अब क्या हो जाएगा !वो अभी नए नए हैं धीरे धीरे भारतीय शिक्षा व्यवस्था का ज्ञान उन्हें भी हो जाएगा !ऐसा कहने में उन्हें न कोई डर था न सँकोच !प्रेंसिपल साहिबा  के संज्ञान में लाने पर वे भी उन्हीं का पक्ष लेते दिखीं ! इसका मतलब सरकारी शिक्षा व्यवस्था में अभिभावक अकेला है ।  
      मैं सामाजिक चिंतक होने के नाते आपसे केवल निवेदन कर सकता हूँ कि ऐसी लापरवाही के लिए जिम्मेदार अाखिर कौन है ?इसमें अभिभावक एवं बच्चियों का क्या दोष है जिनके भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है आखिर जनता की कमाई से प्राप्त धन से सरकार जब इन शिक्षकों  को सैलरी दे सकते हैं तो इनसे काम क्यों नहीं लिया जा सकता है । ये मैं इस लिए भी कह रहा हूँ कि यदि ऐसे स्कूलों में ईमानदारी पूर्वक कर्तव्य निर्वाह होता ही तो क्यों लोग प्रतिभा स्कूलों या प्राइवेट स्कूलों में धक्के खाते होते ।