Thursday, 27 August 2015

आरक्षण ! जिन्हें इलाज की जरूरत है उन्हें आरक्षण देने की बात क्यों ? उनका इलाज ही क्यों न कराया जाए !

  जातिगत आरक्षण कितना अप्रासंगिक है !आप भी देखिए !
जो लोग दशकों से चिल्ला चिल्ला कर कह रहे हैं कि हम देखने में स्वस्थ जरूर लग रहे हैं किंतु अपनी शिक्षा के बल पर नौकरी नहीं पा सकते !और यदि पा भी गए तो प्रमोशन नहीं पा सकते !सम्मान नहीं हासिल कर सकते ! सरकारें सुविधाओं के नाम पर जो कुछ भी दे देती हैं बस उसी में गुजर चलता है नौकरी दे देती हैं तो वो भी कर लेते हैं बाकी कुछ भी अपने बल पर नहीं कर सकते !
 बंधुओ !इतनी हीन भावना से ग्रस्त लोगों को केवल आरक्षण देकर क्यों छोड़ दिया जाए इनका इलाज क्यों न कराया जाए !लोकतांत्रिक भारत में देश के प्रत्येक व्यक्ति को आरक्षण माँगने का अधिकार है!आखिर ये कैसे मान लिया जाए कि सवर्ण जातियों के द्वारा किए गए शोषण के कारण गरीब हो गए हैं कुछ लोग !क्या ये आरोप सच है !और यदि नहीं तो समाप्त किया जाए सभी का सभी प्रकार का आरक्षण !नेताओं को भी अब बंद कर देनी चाहिए आरक्षण पर राजनीति !
    दलितों के शोषण संबंधी ये दकियानूसी बातें ये किंबदन्तियाँ ये मन गढंत किस्से कहानियों जैसे अंधविश्वासों से ऊपर उठकर  आरक्षण माँगने वाले लोंगों की हो मेडिकली जाँच और पता लगाया जाए उनकी कमजोरी का फिर सरकारी खर्चे से कराया जाए उनका इलाज !और आरक्षण देने दिलाने की बात करने वाले नेताओं की सम्पत्तियों की हो जाँच और उनके बताए हुए संपत्ति स्रोतों का सम्यक परीक्षण किया जाए !

     आखिर कुछ जातियों के लोग स्वस्थ होने के बाद भी ऐसा क्यों सोचते हैं कि वो अपने परिश्रम के बल पर कमा कर नहीं खा सकते या अपनी तरक्की नहीं कर सकते !आखिर उनमें ऐसी कमजोरी क्या है ?जबकि सवर्णों में भी गरीब हैं वो तो अपने त्याग तपस्या और पारिश्रमिक बलिदान के आधार पर ही तरक्की कर रहे हैं उन्हें तो कोई आरक्षण नहीं मिला है यदि सवर्ण ऐसा कर सकते हैं तो बाकी क्यों नहीं कर सकते !दूसरीबात वो कर नहीं सकते या करना नहीं चाहते !

     वैसे भी परिश्रम करना केवल वही चाहते हैं जो स्वाभिमान पूर्वक जीना चाहते हैं बाकी संघर्ष रहित तरक्की की कामना रखने वाले लोग हमेंशा पराजित होते रहे हैं किंतु वो अपनी पराजय का दोषी कभी अपने को नहीं मानते दोष हमेंशा दूसरों पर मढ़ते हैं जैसे कहा जा रहा है कि सवर्णों ने दलितों का शोषण किया !किन्तु यदि ये सच होता तो दलितों की इतनी बड़ी संख्या थी और सवर्णों की कम थी फिर सवर्ण यदि शोषण करना भी चाहते तो दलित सह क्यों जाते !इसलिए ये आरोप ही झूठ है !ये झूठ इसलिए भी है कि अपने देश में शासन करने वाले मुस्लिम शासक रहे हों या अंग्रेज उन्होंने दलितों का शोषण करने के लिए सवर्णों को कोई अधिकार नहीं दे रखे थे फिर भी यदि सवर्ण लोग ऐसा करते तो दण्डित किए जाते सुना जाता है कि उस समय कानून बड़ा शक्त था इसलिए उस समय शोषण की कोई गुंजाइस ही नहीं थी और आजादी के बाद सरकारें दलितों के लिए ही काम और सवर्णों को बदनाम करती रही हैं दलितों को ही आगे बढ़ाने के लिए योजनाएँ बनाती हैं नेता लोग सवर्णों निंदा कर कर के नेता चुनाव जीतते हैं और दलितों के विकास के लिए ही जीवन जीते हैं फिर भी दलित जहाँ के तहाँ हैं और दलितों के हितों की लड़ाई लड़ने का ढोंग करने वाले वे नेता जो कभी दो दो कौड़ी के लिए मारे फिरते थे वही लोग आज दलितों का नाम ले लेकर करोड़ों अरबों पति हो गए जिन्हें कभी किसी ने कोई काम करते नहीं देखा होगा जो फुलटाइम राजनीति ही करते हैं फिर भी राजाओं की तरह के उनके ठाटबाट होते हैं ये पैसा उनके पास आखिर आता कहाँ से है !यही दलितों के शुभ चिंतक नेता लोग दलितों की मदद के लिए दिए गए बजट को पचा जाते हैं वही लोग संसद और विधान सभाओं में आज पहलवानी करते अक्सर देखे जा सकते हैं !मजे की बात तो ये है कि सवर्ण जाति के नेताओं ने ही दलितों के साथ ऐसी गद्दारी की हो ये भी सही नहीं हैं सच तो ये है कि इसमें वो लोग भी सम्मिलित हैं जो दलित होकर भी दलितों के मसीहा बनने निकले थे आखिर जब वो राजनीति में आए थे तब उनके पास इतना पैसा था क्या जितना आज है और यदि नहीं तो किसी ईमानदार सक्षम एजेंसी से जाँच क्यों न करवा ली जाए कि इनकी अकूत सम्पत्तियों के आगम के स्रोत कौन कौन से हैं और क्या वे इतनी संपत्ति संग्रह करने के लिए पर्याप्त हैं !ऐसा होते ही नेताओं का जो चेहरा जनता के सामने आएगा वो उनका वास्तविक चेहरा होगा जिससे पता चलेगा कि दलितों के विकास का हिस्सा गया कहाँ ! 

    जो लोग आरक्षण के बिना छोटे से घर की रसोई नहीं चला सकते वे मंत्री मुख्यमंत्री आदि बन कर कोई प्रदेश कैसे चला लेंगे !

     जिन लोगों को लगता है कि आरक्षण के बिना वो अपनी तरक्की नहीं कर सकते तो वो विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री आदि क्यों बनना चाहते हैं जो ये मान  चुका है कि आरक्षण के बिना   अपने बल पर हम अपनी घर गृहस्थी नहीं चला सकते कुछ नहीं कर सकते ऐसी जातियों के लोग विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री आदि बनकर भी उन पदों की गरिमा कैसे बचा सकेंगे क्योंकि वह तो आरक्षण जैसी वैशाखी की कोई सुविधा ही नहीं है !इसलिए उन्हें अपनी अयोग्यता स्वीकार करते हुए ऐसे जिम्मेदारी वाले पदों से दूर रहना चाहिए !         

    आरक्षण है या हथियार ?जातियों के नाम पर विकास की योजनाओं  से सवर्णों का बहिष्कार क्यों ?

   सवर्णों ने किसका शोषण कब किस प्रकार से किया था आखिर उन बहुसंख्य लोगों ने शोषण सहा क्यों होगा !इसलिए शोषण का आरोप ही गलत है ! आखिर सवर्ण मिट्टी खाएँ क्या या चोरी करें ? आखिर उन्हें किस अपराध का दंड दिया जा रहा है ?    

      जिन्हें इलाज चाहिए उन्हें दिया जा रहा है आरक्षण !और जिन गरीबों को सहयोग चाहिए उन्हें सवर्ण बताकर दुत्कारा जा रहा है !आखिर क्यों नहीं दिया जा सकता  है पटेलों को आरक्षण ? 

    जिन लोगों को लगता है कि उनमें ऐसी कोई ख़ास कमजोरी है जिससे वो अपने बल पर अपना विकास नहीं कर सकते ऐसे लोगों को आरक्षण नहीं अपितु इलाज चाहिए !एक बार ठीक से इलाज हो जाए तो उनकी सारी पीढ़ियाँ सुधर जाएँगी अन्यथा आजादी के बाद से आजतक दिए गए आरक्षण से उनका क्या भला हुआ जबकी तबसे अब तक बिना आरक्षण की ही कई गरीब सवर्णों ने अपनी योग्यता के बल पर अपना विकास कर लिया है !उन्हें किसी के सामने किसी आरक्षण माँगने के लिए हाथ फैलाने ही नहीं पड़े !

        जिसमें जो योग्यता न हो उसे वो काम दिया जाए और उस काम के लिए अधिकृत एवं योग्य व्यक्ति का उसकी जाति के कारण बहिष्कार  कर दिया जाए!जिस देश में सत्ता लोलुप राजनेताओं  की इतनी बुरी सोच हो ऐसा देश एवं समाज कभी भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हो सकता और भ्रष्टाचार नाम के पाप में सभी प्रकार के अपराध कीड़े मकोड़ों की तरह अवगाहन किया करते हैं !अपराध निर्मात्री नीतियों से निमज्जित कोई समाज सुखी एवं तनाव रहित कैसे हो सकता है !यह उसके साथ अन्याय एवं देश के साथ गद्दारी है ऐसे तो  समाज प्रतिभाविहीन होता जाएगा !

   जातितंत्र और लोकतंत्र में क्या अंतर है ?

 किसी जातितांत्रिक देश को लोकतांत्रिक कहना क्या अंध विश्वास नहीं है ?जिस देश का कानून सवर्णों की न सुनता हो और न उनके विषय में सोचता हो वो सवर्ण देश के कानून की क्यों सुनें ! 

   जिस देश में लोगों की भूख प्यास,हैरानी परेशानी गरीबी अमीरी सुख दुःख का अनुमान जातियों के आधार पर लगाया जाता हो वो जातितंत्र और जहाँ बिना किसी भेद भाव के सभी लोगों को देश के समान नागरिक समझकर सबके साथ समान व्यवहार किया जाता हो वो लोकतंत्र होता है! समाज को  जोड़कर चलने में लोकतंत्र ही सफल है न कि जातितंत्र !अनेकों प्रकार के अपराध जातितंत्र में होते हैं न कि लोकतंत्र में क्योंकि लोकतंत्र में सबकी सुनी जाती है और सबके विषय में सोचा जाता है किन्तु जाति तंत्र में लोग तो गौण हो जाते हैं जातियाँ प्रमुख हो जाती हैं जैसे दो लोगों को भूख लगी हो और दोनों गरीब हों किन्तु एक ब्राह्मण आदि हो और दूसरा दलित हो तो दलित के लिए राशन की व्यवस्था सरकार कर देगी और उस ब्राह्मण आदि  को यह जानते हुए भी  कि ये भी गरीब है और ये भी भूखा है उसे भगवान भरोसे छोड़ दिया जाएगा ऐसी परिस्थिति में  उस ब्राह्मणादि  का जो पेट भरेगा उसी को अपना मानना उसका धर्म हो जाता है भले वो अपराधी ही क्यों न हो !सरकार को उससे अपराध न करने की आशा भी नहीं करनी चाहिए क्योंकि सरकार ने उसके साथ अपराध किया है !

      इसी प्रकार से सरकारी नौकरियों की स्थिति है दो छात्रों की समान शिक्षा है किन्तु दलित छात्र को नौकरी देने के लिए सरकार दरवाजे खोल देती है जबकि सवर्ण छात्रों की उससे अच्छी शिक्षा होने पर भी उनका बहिष्कार कर देती है। आखिर उनका दोष क्या है  जिस सरकार की सवर्णों के विषय में कोई सोच ही न हो वो सवर्ण उसके और उसके बनाए हुए कानूनों के विषय में क्यों ध्यान दें ऐसी सरकार उन सवर्णों से कानून के अनुशार चलने की अपेक्षा ही क्यों करती है ? वो भी जैसे रह सकेंगे वैसे रहेंगे ।

    आखिर यह कैसा लोक तंत्र है जहाँ लोगों को अपनी इच्छानुसार मतदान न करने दिया जाए वैसे भी किसी भी जाति  क्षेत्र  समुदाय संप्रदाय के नाम पर पार्टी बनाने वालों का समर्थन देने और माँगने वालों का और सुख सुविधाएँ  देने और लेने वालों का बहिष्कार किया जाना चाहिए !   

   देश पर सबसे अधिक वर्षों तक शासन करने वाली काँग्रेस यदि आज तक देश में एक ऐसा अस्पताल नहीं बनवा पाई  जिसमें सोनियाँ  जी इलाज करवा लेतीं !दूसरी बात आजादी के साठ वर्षों बाद देश की जनता के भोजन की याद आई!इसके बाद भी काँग्रेस देश की जनता से वोट माँगने का साहस कर रही है ये बहुत बड़ा आश्चर्य है !

      सभी प्रकार का आरक्षण  भ्रष्टाचार का दूसरा स्वरूप और सामाजिक बुराई एवं अन्याय है इसे समाप्त करने का संकल्प करो !आरक्षण सामाजिक न्याय कभी नहीं हो सकता ,आरक्षण की व्यवस्था केवल उनके लिए होनी चाहिए जो काम करने लायक न हों अपाहिज हों,अनाथ हों,अनाश्रित हों,असाध्यरोगी हों,पागल हों अत्यंत  परेशान हों ,अत्यंत पीड़ित हों ,अत्यंत गरीब होने के बाद भी शारीरिक लाचारी के कारण बेचारे कमाने लायक न रह गए हों! ऐसे लोगों के विषय में जाति,क्षेत्र,समुदाय,संप्रदाय,स्त्री-पुरुष आदि भेद भावनाओं से ऊपर उठकर उदार भावना एवं अपनेपन से मदद की जानी चाहिए जिससे उन अपाहिजों को लेते भी अच्छा लगे और देने वाले को भी देने में प्रसन्नता हो उन्हें भी लगे कि हमारा हक़ छीन कर वास्तव में उन्हें दिया गया है जिनके प्रति हमारा दायित्व बनता है इसलिए ऐसे लोगों का सहयोग किया जाना चाहिए ऐसे लोग जो कुछ भी करने लायक हों वे पद ऐसे लोगों के लिए आरक्षित कर दिए जाने चाहिए जैसे किसी के पैर कट गए हों किन्तु वह शिक्षित होने के कारण शिक्षा से जुड़े कार्य कर सकता हो पढ़ा सकता हो तो ऐसे कामों में इनका सौ प्रतिशत  आरक्षण इन्हें दिया  जाना  चाहिए ताकि ये भी उत्साह एवं स्वाभिमान पूर्वक जीवन जी सकें !जो स्वस्थ हैं वो तो कुछ भी कर के कमा खा लेंगे। 

     इसलिए आरक्षण की व्यवस्था हमेंशा उन लोगों के लिए की जानी चाहिए जो लोग कुछ करने लायक न रह गए हों अपाहिज हों किन्तु जो करने लायक हों और कुछ करना चाहते हों सरकार उन्हें शिक्षित करने में सहायता करे उन्हें उनके लायक रोजगार उपलब्ध करावे,कम ब्याज पर बाधा मुक्त ऋण देने की  व्यवस्था करे इनमें सरकार को चाहिए कि पक्षपात विहीन होकर सभी के साथ समान दृष्टि से न्याय करे किसी को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि उसके साथ अन्याय हो रहा है क्योंकि प्रजा प्रजा में भेद करना अन्याय भी है अत्याचार भी है अपराध भी है और सबसे बड़ा पाप भी !

      कोई भी पूरी जाति,पूरा क्षेत्र और सम्पूर्ण सम्प्रदाय कभी अपाहिज, असाध्य या अक्षम नहीं हो सकता यदि यह सच है तो किसी पूरी जाति,पूरे क्षेत्र और सम्पूर्ण सम्प्रदाय को सरकार आरक्षण जैसा विशेष दर्जा क्यों दे ?उसके लिए तो अन्य लोगों की तरह ही सारे देश के सभी स्कूल पढ़ने के लिए खुले हैं और प्राइवेट या सरकारी नौकरियों के लिए सभी संस्थान समानरूप से अवसर दे रहे हैं व्यापार के लिए सारा मार्केट खुला हुआ है फिर भी जो लोग पिछड़े हैं उसमें समाज का दोष क्या है आखिर समाज क्यों ऐसे लोगों का बोझ ढोता  फिरे !

      लाख टके का सवाल यह है कि स्वस्थ होने पर भी आरक्षण पाने की इच्छा रखने वाले लोगों से शपथ पूर्वक पूछा जाना चाहिए कि यदि सवर्ण वर्ग के गरीब लोग परिश्रम पूर्वक काम करके बिना आरक्षण के अपनी तरक्की कर सकते हैं तो आप में ऐसी कमजोरी क्या है आप क्यों हिम्मत हार रहे हैं आखिर आपको क्यों लगता है कि अपने परिश्रम के बल पर हम तरक्की नहीं कर सकते ! आखिर आप में ऐसी कमजोरी क्या है?और यदि वास्तव में आप अपने को कमजोर मान ही बैठे हैं तो अपने को ठीक करा लीजिए जाँच कराइए इलाज कराइए इसमें सरकार का सहयोग लीजिए और फिर परिश्रम पूर्वक काम करके अपनी तरक्की  आप स्वयं भी कर सकते हैं इससे आपका उत्साह बढ़ेगा जिससे आप सवर्णों से केवल बराबरी ही नहीं कर सकते हैं अपितु उन्हें पछाड़ भी सकते हैं न केवल इतना अपितु परिश्रम पूर्वक काम करके अपनी तरक्की करने से जिस उत्साह एवं स्वाभिमान का प्राकट्य होगा उससे पीढ़ियों की पीढ़ियाँ पवित्र हो जाएँगी हर कोई आपको अपना आदर्श मानेगा और आदर करेगा !किन्तु आरक्षण के द्वारा ये सब चीजें नहीं मिल पाएँगी केवल पेट भरने का साधन बनता रहेगा वो भी आरक्षण से ! पेट तो पशु भी भर लेते हैं वह भी बिना किसी आरक्षण के इसलिए केवल पेट भरने के लिए ही सारी कवायद क्यों?सच्चाई के साथ आत्मबल एवं मनोबल बढ़ाने के लिए कुछ कीजिए-

      जो लोग कहते हैं कि  पहले सवर्णों ने हमारा शोषण किया था इसलिए हम पिछड़ गए हैं किन्तु यह कई कारणों से सच नहीं है पहला कारण तो यह है कि कब शोषण हुआ था! किसने किया था! कितना किया था !किस प्रकार से किया था! दूसरा सहने वालों ने सहा क्यों  था उन्होंने विरोध क्यों नहीं किया था ! क्योंकि सहने वालों की संख्या बहुत अधिक थी इसलिए ये भी नहीं कहा जा सकता है कि भयवश इन लोगों ने अपना शोषण सह लिया होगा, इसलिए सच्चाई तो यही  है कि पहले भी किसी ने किसी का शोषण किया ही नहीं होगा! और यदि शोषण की बात को सच मान भी लिया जाए तो पिछले लगभग 60 वर्षों से तो आरक्षण ले रहे हैं वो लोग! आखिर क्यों नहीं कर ली तरक्की?60वर्ष भी थोड़े तो नहीं होते हैं। 

    इसलिए  यदि अपने पीछे रह जाने  के प्रकरण में आत्म मंथन करके यदि अपनी कमजोरी नहीं खोज पाए और उनका सुधार नहीं किया तो कैसे  हो पाएगा विकास ?ऐसे तो सवर्णों के शोषण का रोना धोना लेकर बैठे रहेंगे 60 क्या 600 वर्षों में भी अपना उत्थान कर पाना असम्भव होगा ! आरक्षण तो किसी की कृपा से प्राप्त अवसर है याद रखिए कि किसी की कृपा पूर्वक प्रदान की गई आजीविका कभी आत्मबल या मनोबल नहीं बढ़ने देगी। 

    कुल मिलाकर आरक्षण नाम का इतना बड़ा भ्रष्टाचार जब सरकारी नीतियों में सम्मिलित किया जा सकता है तब  भ्रष्टाचार समाप्त करने का ड्रामा भले ही कोई सरकार करे किन्तु इसे समाप्त कर पाना कठिन ही नहीं असम्भव भी होगा ! 

        आज कुछ सरकारी कर्मचारियों ने अपने को देश वासियों से बिलकुल अलग कर रखा है भ्रष्टाचार का कोई भी  मौका मिलते ही उन्हें डसने में देर नहीं करते हैं इसके बाद भी उन्हें महँगाई ,भत्ता और भी जाने क्या क्या दिया करती हैं सरकारें !उनका बेतन आम जनता की आमदनी की अपेक्षा इतना अधिक होता है फिर और भी बढ़ाया करती हैं सरकारें! न  जाने उनके किस आचरण पर फिदा रहती हैं भारतीय  सरकारें ? ये सरकारों के दुलारे लोग ऐसे धन से चौड़े हो रहे हैं विभागों में कुछ काम धाम तो  करते नहीं हैं वहाँ कोई देखने सुनने वाला ही नहीं होता है हो भी तो कोई कहे ही क्यों उसका अपना कोई नुकसान तो हो नहीं रहा है भुगतना जनता को पड़ता है ! जहाँ इतनी ऐशो आराम हो फिर भी काम न करना पड़े तो वो लोग कुछ तो करेंगे ही!

   कभी  यूनिअन बनाएँगे धरना प्रदर्शन करके अपनी ऊल जुलूल माँगे मनवाएँगें!सरकार मानती भी है इससे उनका हौसला और बढ़ता है । 

        यदि सरकार वास्तव में भ्रष्टाचार ख़त्म करना ही चाहती है तो सरकारी कर्मचारियों के ऐसे सभी संगठनों को प्रतिबंधित कर देना चाहिए न केवल इतना ही अपितु गैर कानूनी घोषित कर देना चाहिए आखिर वो लोग  सैलरी यूनियन बनाने ,धरना प्रदर्शन करने की लेते हैं या काम करने की !और उन्हें सीधे तौर पर बता दिया जाना चाहिए कि सरकारी व्यवस्था जो आपको दी जा रही है वो समझ में आवे तो काम करो अन्यथा घर बैठो !

     इस प्रकार से उन्हें हटाकर नई नियुक्तियाँ  कर देनी चाहिए जिससे बेरोजगारी घटेगी नए जरूरतवान्  लोगों को काम मिलेगा वो उसकी कदर भी करेंगे मन लगाकर कामभी करेंगे इससे समाज का भी लाभ  होगा काम की गुणवत्ता में सुधार होगा  साथ ही छुट्टी करके गए पुराने कर्मचारियों का  भी भला होगा उनके पास पैसा तो होता ही है उस पैसे से  वो कोई धंधा व्यापार कर लेंगे काम करने के कारण वे भी शुगर आदि बीमारियों से बचेंगे भ्रष्टाचार में कमी आएगी समाज में एक दूसरे के प्रति सामंजस्य  बढ़ेगा आदि आदि । 

     किसी को पेंशन क्यों दी जाए ?

     गरीब किसान मजदूर या गैर सरकारी लोग जो दो हजार रूपए महीने भी कठिनाई से कमा  पाते हैं वो भी दो दो  पैसे बचा कर अपने एवं अपने बच्चों के पालन पोषण से लेकर उनकी   दवा आदि की सारी व्यवस्था करते ही हैं उनके काम काज भी करते हैं और ईमानदारी पूर्ण जीवन भी जी लेते हैं ।

    दूसरी और सरकारी कर्मचारियों की पचासों हजार की सैलरी ऊपर से प्रमोशन उसके ऊपर महँगाई भत्ता आदि आदि और उसके बाद बुढ़ापा बिताने के लिए बीसों हजार की पेंसन दी जा रही है इतने सबके बाबजूद सरकारी कर्मचारियों के एक वर्ग का पेट नहीं भरता है तो वो काम करने के बदले घूँस भी लेते हैं इतना सब होने के बाद भी सरकारी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक पढ़ाते  नहीं हैं अस्पतालों में डाक्टर सेवाएँ  नहीं देते हैं डाक विभाग कोरिअर से पराजित है दूर संचार विभाग मोबाईल आदि प्राइवेट विभागों से पराजित है जबकि प्राइवेट क्षेत्रों में सरकारी की अपेक्षा सैलरी बहुत कम है फिर भी वे सरकारी विभागों की अपेक्षा बहुत अच्छी सेवाएँ देते हैं। 

    आखिर क्या कारण है कि देश की आम जनता की परवाह किए बिना सरकार के मुखिया,सरकार में सम्मिलित लोग एवं सरकारी कर्मचारी आखिर क्यों भोगने में लगे हैं गैर सरकारी लोगों के खून पसीने की कमाई !देश के लोग कब तक और क्यों उठावें ऐसी सरकारों एवं सरकारी कर्मचारियों का बोझ ?

    जब गरीब आदमी अपनी छोटी सी कमाई में ही बचत करके कर लेता है अपने बुढ़ापे का इंतजाम तो पचासों हजार रूपए महीने कमाने वाले सरकारी कर्मचारियों को क्यों दी जाती है बुढ़ापे में पेंसन ? आखिर ये अंधेर कब तक चलेगी और कब तक चलेगा प्रजा प्रजा में भेद भाव का या तांडव ?और कब तक लूटी जाएगी आम जनता ?  
     क्या देश की आजादी पर केवल सरकार और सरकारी कर्मचारियों  का ही अधिकार है बाकी गैर सरकारी लोगों के पूर्वजों का कोई योगदान ही नहीं है !
      अब सरकार से भ्रष्टाचार  मुक्त उत्तम प्रशासन चाहिए इसके आलावा कृपापूर्ण गैस सिलेंडर ,भोजन बिल, पेंसन, आरक्षण,नरेगा ,मरेगा,मनरेगा आदि कुछ भी नहीं चाहिए !अन्यथा गैर सरकारी कहलाने वाली आम जनता अब दलित-सवर्ण, हिन्दू-मुश्लिम, स्त्री-पुरुष आदि भेद भाव के  रूप में दिए गए किसी भी प्रकार के लालच को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है और न ही आपस में लड़ने को ही तैयार है अब वो सारी  चाल समझ चुकी है । अब तो सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों को सुधारना ही होगा अन्यथा अब सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों   के  शोषण विरुद्ध के विरुद्ध लड़ेगी आम जनता अपने अधिकारों के लिए आंदोलनात्मक अंतिम युद्ध !

 

     इस विषय में हमारे निम्न लिखित लेख भी पढ़े जा सकते हैं -

    भ्रष्टाचार के स्रोत क्या हैं और इसे समाप्त कैसे किया जा सकता है ?

     सरकार के  हर विभाग में  भ्रष्टाचार व्याप्त है उससे छोटे से बड़े तक अधिकांश कर्मचारी लाभान्वित होते हैं इसलिए उन पर  भ्रष्टाचार की जो विभागीय जाँच होती है वहाँ क्लीन चिट  मिलनी ही होती है क्योंकि यदि नहीं मिली तो उसके तार उन तक जुड़े निकल सकते हैं  जो जाँच करsee  more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/01/blog-post_19.html

दलित शब्द का अर्थ कहीं दरिद्र या गरीब तो नहीं है ?

   समाज के एक परिश्रमी वर्ग का नाम पहले तो दलित अर्थात दबा, कुचला टुकड़ा,भाग,खंड आदि रखने की साजिश हुई। ऐसे अशुभ सूचक नाम कहीं मनुष्यों के होने चाहिए क्या?  वो भी भारत वर्ष की जनसंख्या के बहुत बड़े वर्ग को दलितsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2013/03/blog-post_2716.html

आरक्षण बचाओ संघर्ष आखिर क्या है ? और किससे ?

     आरक्षणबचाओसंघर्ष या बुद्धुओं को बुद्धिमान बताने का संघर्ष आखिर क्या है ?ये संघर्ष उससे है जिसका हिस्सा हथियाने की तैयारी है।ये अत्यंत निंदनीय है !  जिसमें  चार घंटे अधिक काम करने की हिम्मत होगी वो आरक्षण माँगेगा ही क्यों ?उसे अsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_3571.html

गरीब सवर्णों को भी आरक्षण की भीख  मिलेगी ? 
     चूँकि किसी भी प्रकार का आरक्षण कुछ गरीबों, असहायों को दाल रोटी की व्यवस्था करने के लिए दिया जाने वाला सहयोग है इससे जिन लोगों का हक मारा जाता है वे इस आरक्षण को भीख एवं जिन्हें दिया जाता है उसे भिखारी समझते हैंsee  more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_3184.html
आरक्षण एक बेईमान बनाने की कोशिश !
जो परिश्रम करके अपने को जितना ऊँचे उठा लेगा वह उतने ऊँचे पहुँचे यह  ईमानदारी है लेकिन जो यह स्वयं मान चुका हो कि हम अपने बल पर वहाँ तक नहीं पहुँच सकते ऐसी हिम्मत हार चुका हो ।see  more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_8242.html
पहले आरक्षण समर्थक नेताओं की संपत्ति की हो जाँच तब आरक्षण की बात!              
 प्रतिभाओं के दमन का षड़यंत्र

     जब गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की बात उठी तो उस समय एक मैग्जीन में मेरा लेख छपा था   कि  आरक्षण एक प्रकार की भीख है जो किसी को नहीं लेनी चाहिए, तो आरक्षण समर्थक कई सवर्ण लोगों के पत्र और फोन आए कि जब सभी जातियों को आरक्षण चाहिए तो हमें भी मिलना चाहिए।मैंने उनका विरोध करके कहा था कि किसी को आरक्षण क्यों चाहिए।   यहsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_6099.html


Monday, 24 August 2015

गरीबों के साथ गद्दारी क्यों ?क्या देश की आजादी पर उनका कोई हक़ नहीं है !

   सरकारों के खून में पाया जाने वाला गद्दारी जन्य दोष अब तो कई सरकारी कर्मचारियों में भी दिखने लगा है! 
  समाज के अंग होने के बाद भी इनके मन में आज समाज के प्रति अपनापन खतम सा होता दिख रहा है घूस दो तो काम होगा  अन्यथा नहीं होगा आप कानूनी अधिकारों की पर्चियाँ पकड़े घूमते रहो !लोगों का मानना है चूँकि घूँस आदि भ्रष्टाचार के माध्यम से लिया धन का हिस्सा जब सरकारी दुलारे राजापूत सरकार तक पहुँचा देते हैं तब अपने नौनिहालों पर खुश होकर सरकारें उन्हें महँगाई भत्ता बढ़ा चढ़ा कर देने लगती हैं सैलरी ड्योढ़ी दोगुनी आदि कुछ भी कर देती हैं वो कुछ काम करें न करें किन्तु सैलरी तो बढ़ानी ही होती है!अपनों को तो सरकार एक दम बरदान की तरह बाँटती रहती है दुश्मन तो केवल आम जनता है सरकार एवं सरकारी कर्मचारी दोनों ही आम जनता को पराया समझने लगते हैं!
    सरकारी प्राथमिक  स्कूलों को ही लें उनकी पचासों हजार सैलरी होती है किंतु वो सरकारी दुलारे या तो स्कूल नहीं जाते हैं यदि गए  भी तो जब मन आया  या घर बालों की याद आई तो  बच्चों की तरह स्कूल से भाग आते हैं पढ़ने पढ़ाने की चर्चा वहाँ  कहाँ कौन  करता है और कोई करे भी तो क्यों? इनकी इसी लापरवाही से बच्चों के भोजन में  गंदगी  की ख़बरें तो हमेंशा से मिलती रहीं किन्तु इस बीच तो जहर तक  भोजन में निकला बच्चों की मौतें तक हुई हैं किंतु बच्चे तो आम जनता के थे कर्मचारी  अपने हैं इसलिए थोड़ा बहुतशोर शराबा मचाकर ये प्रकरण ही बंद कर दिया जाएगा ! आगे आ रही है दिवाली पर फिर बढ़ेगी सैलरी महँगाई भत्ता आदि आदि!
    अपने शिक्षकों को दो  चार दस हजार की  सैलरी देने वाले प्राइवेट स्कूल अपने बच्चों को शिक्षकों से अच्छे ढंग से पढ़वा  लेते हैं और लोग भी बहुत सारा धन देकर वहाँ अपने बच्चों का एडमीशन करवाने के लिए ललचा रहे होते हैं किंतु वही लोग फ्री में पढ़ाने वाले सरकारी स्कूलों को घृणा की नजर से देख रहे होते हैं! यदि सोच कर  देखा जाए तो लगता  है कि यदि प्राइवेट स्कूल न होते तो क्या होता? सरकारी शिक्षकों,स्कूलों के भरोसे कैसा होता देश की शिक्षा का हाल?
    सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों  के एक बड़े वर्ग ने जिस प्रकार से जनता के विश्वास को तोड़ा है वह किसी से छिपा  नहीं है आज लोग सरकारी अस्पतालों पर नहीं प्राइवेट नर्शिंग होमों पर भरोसा करते हैं,सरकारी डाक पर नहीं कोरियर पर भरोसा करते हैं,सरकारी फ़ोनों की जगह प्राइवेट कंपनियों ने विश्वास जमाया है! सरकार के हर विभाग का यही  हाल है! जनता का विश्वास  सरकारी कर्मचारी किसी क्षेत्र में नहीं जीत पा रहे हैं सच्चाई यह है कि सरकारी कर्मचारी जनता की परवाह किए बिना फैसले लेते हैं वो जनता का विश्वास जीतने की जरूरत ही नहीं समझते इसके दुष्परिणाम पुलिस के क्षेत्र में साफ दिखाई पड़ते हैं चूँकि पुलिस विभाग में प्राइवेट का विकल्प नहीं है इसलिए वहाँ उन्हीं से काम चलाना है चूँकि वहाँ काम प्रापर ढंग से चल नहीं पा रहा है जनता हर सरकारी विभाग की तरह ही पुलिस विभाग से भी असंतुष्ट है इसीलिए पुलिस और जनता के  बीच हिंसक झड़पें तक होने लगी हैं जो अत्यंत गंभीर चिंता का विषय है उससे  भी ज्यादा चिंता  का विषय यह है कि कोई अपराधी तो किसी वारदात के बाद भाग जाता है किन्तु वहाँ पहुँची पुलिस के साथ जनता अपराधियों जैसा वर्ताव करती है उसे यह विश्वास ही नहीं होता है कि पुलिस वाले हमारी सुरक्षा के लिए आए हैं !!!
     इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही मैं सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों  के सामने एक प्रश्न छोड़ता हूँ कि जनता का विश्वास जीतने की जिम्मेदारी  आपकी आखिर  क्यों नहीं है?
     मेरा मानना है कि यदि पुलिस विभाग की तरह ही  अन्य क्षेत्रों में भी प्राइवेट का विकल्प न होता तो वहाँ भी हो रही होतीं हिंसक झड़पें!मुझे अंदेशा है कि आरक्षण लीला की राजनैतिक सच्चाई जिस दिन जनता समझेगी उस दिन सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों  के विरुद्ध जो जनाक्रोश जनता में जागेगा वह भारतीय समृद्ध लोकतंत्र के लिए भयावह सुनामी की तरह होगा! इसलिए अभी भी समय है कि सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों को  सारे छल कपट छोड़ कर जनता का विश्वास जीतने का प्रयास करना चाहिए !
      आज भ्रष्टाचार के आरोप हर विभाग पर लगाए जा रहे हैं इस देश की भोली भाली सीधी साधी जनता के साथ यह खुली गद्दारी है  जिसे छिपाने केलिए जनता को जाति संप्रदाय के नाम पर आरक्षण  की भीख बाँटते रहते हैं!वो भी लोगों के मस्तक पर केवल भिखारी होने का ठप्पा लगा देते हैं किसी को कुछ  देना ही होता तो आजादी के इतने दिन बीत गए लोगों की स्थिति अब तक सुधर गई होती और आरक्षण समाप्त भी हो गया होता, लोग आपस में भाईचारे से रहने भी  लगते किन्तु लाख टके का सवाल है कि फिर राजनीति कैसे होती ?अब तक आम जनता के हिस्से में केवल  आश्वासन  और उन्माद आते हैं!कि तुम्हारा शोषण किसने किया ! 
    हिन्दू-मुश्लिमों को , आदमी-औरतों को ,  हरिजन -सवर्णों को अलग अलग ढंग से  भड़काकर  लड़ाने का काम नेताओं ने संभाल रखा है केवल भाषण अमन चैन के देते हैं इनके इरादों में ही खोट है कैसे होगी समाज में शांति?  
   वर्तमान समय में समाज  अपनी हर प्रकार की समस्याओं का समाधान राजनीति में ही खोजने लगा  है उसका अपना मन मरता चला जा रहा है ! यही कारण है कि राजनेताओं के मनोबल इतने अधिक बढ़ गए हैं कि  वो हमेशा कुछ कुछ देने की बातें करने लगे हैं भीख में वोट मँगाकर  जनसेवा का अधिकार पाने वाले राजनैतिक भिखारी आज जनता को भिखारी सिद्ध कर देने में लगे हैं! यह देश का दुर्भाग्य ही है!अब लोगों  स्वयं जाग  कर इन कुचालों का पर्दाफास करना होगा और जीतना होगा एक दूसरे का बहुमूल्य विश्वास यही हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोधसंस्थान  का उद्देश्य समाज को आत्म निर्भर  बनाना है, जिससे समाज अपनी हर जरूरत के लिए सरकार की कृपा पर ही आश्रित न रहे!आखिर पुराने समय में भी तो लोग आपसी भाई चारे से रह लेते थे! धन्यवाद!!!



हर समस्या का समाधान केवल राजनीति में ही क्यों खोजा जाए ?

समाज को आत्म निर्भर  बनाना है तो जगाना होगा सारे समाज को और उनमें सँभालने होंगे नैतिक संस्कार !    
      जिससे समाज अपनी हर जरूरत के लिए सरकार की कृपा पर ही आश्रित न रहे!आखिर पुराने समय में भी तो लोग आपसी भाई चारे से रह लेते थे!आज साधन बहुत हो गए हैं किन्तु उनका उपयोग बिलकुल नहीं के बराबर है मोबाईल हर किसी की जेब में पड़ा है किन्तु बात किससे करें! कारें दरवाजे पर खड़ी हैं किंतु जाएँ किसके घर? सबसे तो संबंध बिगाड़ रखे हैं! न जानें क्यों ? सरकारी कानून बल,सरकारी सोर्स सिफारिस बल धनबल कहाँ किसी के काम आ पा रहे हैं जो इनके सहारे रहा सो मरा !
     आज आधे अधूरे कपड़े पहनने वाली फैशनेबल लड़कियों की हिम्मत तो सरकार खूब बँधा  रही है कि आप जैसे चाहो वैसे रहो हम तुम्हारे साथ हैं तुम्हें कोई रोक नहीं सकता किन्तु खाली हिम्मत बँधाने से क्या होता है लड़कियों की मदद कितनी कर पा रही है सरकार?पुराने ढंग से रहने में हमें पिछड़ा दकियानूसी रूढ़िवादी आदि कहलाने का खतरा है किन्तु सरकारी सुरक्षा के भरोसे तो खतरा ही खतरा है!अब ये हमें सोचना है कि सरकारी सुरक्षा बल के भरोसे अपनी छीछालेदर कराने के बाद भारतीय संस्कृति की छाँव में सुरक्षित रहना है या बिना छीछालेदर कराए ही भारतीय संस्कृति की छाँव में सुरक्षित रहने  में भलाई है!चारों ओर आधुनिक फैशन में रहने पर खतरा ही खतरा है!
   सरकारों में जनसेवा की सोच ही आज कहाँ है किस घमंड में जी रहे हम लोग ? सरकारें पति पत्नी का तलाक कराने का कानून तो बना सकती हैं किन्तु पति पत्नी में प्रेम नहीं पैदा कर सकती हैं!जबकि प्रेम सबसे अधिक जरूरी है वो हमें ही करना है इसीप्रकार से पड़ोसी से लेकर सभी सम्पर्कियों से मुकदमा लड़ो तो सरकारें एवं कानून तुम्हारा साथ देंगे किन्तु यदि इनसे प्रेम करना चाहो तो इसके सूत्र न तो कानून में हैं और न ही  सरकारों के पास !किन्तु जो स्त्री पुरुष इस सच्चाई को नहीं समझ पा रहे हैं उन्होंने सरकारी कानूनी सुरक्षा बल के घमंड में  अपने सारे सम्पर्कियों सम्बन्धियों से तलाक कर लिया है किन्तु सरकार कब कहाँ किसके काम आई है? राजनीति,राजनेता एवं सरकारें तो हर विषय में आश्वासन देकर धोखा देती रहती हैं!ये हर विषय में इनकी आदत में है!


नेता लोग अपने गुणों पर भरोसा न करके केवल भावनात्मक उन्माद फैलाकर लड़ने और जीतने लगे हैं चुनाव !

   भारत में राजनेताओं की पार्टियाँ अलग अलग भले ही हों किंतु जनता का शोषण करने एवं झूठ बोलने की संस्कृति सबकी लगभग एक जैसी है परंतु जनता की मजबूरी है आखिर जाएँ तो जाएँ कहाँ !
  राजनैतिक दलों के पास ऐसे ईमानदार और समझदार नेता बहुत कम होते हैं जिनकी योग्यता ,सेवा ,समर्पण पर जनता भरोसा करके जनता उन्हें वोट दे !संभवतः ऐसा वो भी मानते होंगे इसीलिए वो ऐसे सम सामयिक उत्तेजना फैलाने वाले मुद्दों को हवा देने लगते हैं यदि सुलगने लगे तब तो ठीक है अन्यथा तलाशते हैं कोई और मुद्दा ! 
     बी.पी.सिंह जी की सरकार के समय में राजनेताओं के आधारहीन अदूरदर्शी फैसलों से सारा समाज आहत था आरक्षण से लेकर श्री राम मंदिर आन्दोलन तक उसी समय की उपज थे और दोनों में निरपराध लोग मारे गए!उस समय के बाद राज नीति धीरे धीरे प्रदूषित होती चली जा रही है।बहुत दिन बाद जब अटल जी की सरकार आई उसमें तो देश वासियों के प्रति अपनापन दिखा जिसमें जनता को सुख सुविधाएँ मिलती दिखीं भी जनता की जरूरत की चीजें जनता की आर्थिक क्षमता के अनुशार उपलब्ध कराने का प्रयास हुआ।इसके अलावा तो आँकड़ों और आश्वासनों का खेल चलता रहता है जनता मरे मरती रहे,महँगाई बढ़े बढ़ती रहे अपराध बढ़ें बढ़ते रहें, सरकारें बड़ी बेशर्मी से पूरे देश में सुख चैन के आँकड़े लेकर प्रेस कांफ्रेंस करती रहती हैं ये जनता की पीड़ा से अपरिचित सरकारें या यूँ कह लें कि जनता से दूर रहकर केवल चुनावी खेल खेलने वाली सरकारें कभी भी समाज एवं देश हित में नहीं हो सकती हैं इन्हें अपने काम पर भरोसा ही नहीं होता है इसलिए हर चुनाव केवल उन्माद फैलाकर जीतना चाहती हैं!
     आज राजनेताओं का उद्देश्य ही जन सेवा न होकर अपितु सत्ता में बने रहना होता है सत्ता  से हटते ही इनके चेहरों की चमक चली जाती है।
    ये भावना ठीक नहीं है हर राजनेता के मनमें समाज के लिए स्थाई सेवा भाव तो चाहिए ही जो अधिकांश नेताओं में नहीं दिखता ऐसे में उन्माद फैलाकर चुनाव जीतने के अलावा और दूसरा कोई विकल्प दिखता भी नहीं है जातिगत आरक्षण के रूप में बी.पी.सिंह जी ने भी उसी शार्टकट का ही सहारा लिया जो समाज के लिए दुखद साबित हुआ!
   इसी राजनैतिक कुचाल से आहत होकर बेरोजगारी के भय से युवा वर्ग न केवल घबड़ा गया अपितु आरक्षण के समर्थन और विरोध में संघर्ष पूर्ण आन्दोलनों में कूद पड़ा !जिस प्रकार से एक साथ एक कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों के समूह भी एक दूसरे से लड़ रहे थे जाति व्यूहों में बँट चुका था सारा देश !कितना दारुण दृश्य था वह! जब बड़ी संख्या में छात्र आत्म दाह करने पर मजबूर हो रहे थे! उसी समय में पटना में आरक्षण विरोधी छात्रों पर सरकारी मशीनरी ने गोली चलाई जिसमें कई छात्र घायल हुए थे इसी में एक छात्र श्री शैलेन्द्र सिंह जी मारे गए थे जिनका दाह संस्कार वाराणसी के हरिश्चंद घाट पर किया गया था उस समय वहाँ बहुत भीड़ उमड़ी थी जिसमे बहुत सारे लोग रो रहे थे बड़ा भावुक वातावरण था मैं भी उसी भीड़ में खड़े रो रहा था !
    वह विद्यार्थी जीवन था मैंने भी उसी भावुकता  वश अपने मन में ही एक व्रत ले लिया कि अब मैं कभी सरकार से नौकरी नहीं मागूँगा !!!उसके बाद ईश्वर की कृपा से इतना पढ़ने के बाद भी आज तक सरकारी नौकरी के लिए मैंने किसी प्रपत्र पर कभी साइन तक भी नहीं किए हैं ये बात हमारे सैकड़ों मित्रों को पता है। मुझे लगा कि मैं भी तो उसी सवर्ण जाति से हूँ जिस पर दबाने कुचलने एवं शोषण करने के आरोप लगाए जा रहे हैं! हम सवर्णों के अधिकारों की रक्षा के लिए ही तो शैलेन्द्र सिंह जी का बलिदान हुआ है!
    इसके बाद आर्थिक तंगी और धनाभाव से होने वाली बहुत   सारी समस्याओं का सामना तो हमें करना ही था जो  सपरिवार मैं आज तक कर भी रहा हूँ !बचपन में पिता जी का देहांत हो गया था संघर्ष पूर्ण जीवन जीते जीते माता जी भी असमय में ही चल बसीं ! कुल मिलाकर परिस्थितियाँ अच्छी नहीं थीं।केवल विद्या का साथ था। हमारा शैक्षणिक शोषण भी समाज के अर्थ संपन्न लोगों ने करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी परिस्थितियों का लाभ तो चालाक या सक्षम  लोग उठा ही लेते हैं!
     मुझे लगा कि जब अब नौकरी करनी नहीं है तो शिक्षा का समाज हित में ही सदुपयोग किया जाए और जन जागरण किया जाए कि किसी जाति के पीछे रह जाने में सवर्णों का कोई हाथ नहीं है ये राजनेताओं के द्वारा गढ़े गए किस्से हैं। इस प्रकार आपसी भाईचारे की भावना भरना हमारा लक्ष्य था जिसके लिए कुछ प्राइवेट   संगठनों से जुड़ा तो देखा वो समाज सेवा तो कहाँ वो लोग समाज से केवल धन इकट्ठा करने की बात किया करते और सोचते भी यही थे!मुझे लगा कि यही करना है तो किसी राजनैतिक दल से जुड़ जाता हूँ सभी दलों और यथासंभव यथा सुलभ नेताओं से संपर्क किया किन्तु किसी ने मुझमें समाज सेवा के वो गुण नहीं पाए जो एक राजनेता में होने चाहिए!मेरे व्रती,शिक्षित ,सदाचारी,त्याग पूर्ण समाजसेवी जीवन की बातें कहाँ पसंद की जाती हैं राजनीति में? वहाँ तो ऐसी बातें लिखकर भाषणों में पढ़ने के काम आती हैं।
     इस प्रकार से सब जगह एवं सभी दलों से निराश अंततः अब मैं राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान नामक संस्थान के तत्वावधान में यथा संभव जन हित के कार्य करने का प्रयत्न करता रहता हूँ।   
    बंधुओ !यहॉं यह अपनी निजी कहानी लिखने का अभिप्राय केवल यह है कि इन राजनेताओं को अपने दलों में हमारे जैसों को अपने साथ जोड़ने में न जाने किस शैक्षणिक या और प्रकार की योग्यता की आवश्यकता होती है जिन ईमानदार कार्यकर्ताओं के नाम पर वे जिनकी तलाश किया करते हैं न जाने वे कौन से भाग्यशाली लोग होते हैं,और वे अपनी किस योग्यता से अपनी ओर राजनैतिक समाज को प्रभावित किया करते हैं?मुझे तो केवल इतना पता है कि  हमारे जैसा शिक्षा से जुड़ा हुआ व्यक्ति इन राजनैतिक लोगों के यदि किसी काम का नहीं है तो आम ग्रामीण या सामान्य शिक्षित ईमानदार कोई आदमी इन राजनैतिक या सामाजिक संगठनों से क्या आशा  रखे?अगर उसे अपनी कोई समस्या कहनी ही हो तो किससे कहे ?और यदि राजनैतिक क्षेत्र में जुड़कर कोई काम करना ही हो तो कैसे करे ?

भ्रष्टाचारियों के चंदे पर टिकी राजनैतिक पार्टियाँ स्वच्छ छवि के ईमानदार लोगों को साथ लें भी तो उनका उपयोग कैसे और क्या करें ?

    भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही करने की हिम्मत कोई नेता कैसे कर सकता है ! ऐसे में नेताओं से ईमानदारी की आशा क्यों  करना ! 

    चुनावों से पहले सत्ता पक्ष के नेताओं को भ्रष्टाचारी बताने वाले विपक्षी नेता खुद  सत्ता में आने के बाद पूर्व सरकारों के भ्रष्टाचारियों से ही सीखने लगते हैं भ्रष्टाचार करने के गुर !उन्हीं के चेले बन जाते हैं और खुद नोचने लगते हैं देश की बहुमूल्य संपत्ति ! यदि ऐसा न होता तो जिन्हें पहले चोर कहा करते थे उन पर क्यों नहीं की कोई कार्यवाही ! अपितु उनके साथ पार्टियाँ मनाते घूमते हैं वही लोग जो कभी उन्हें चोर कहा करते थे ! इसका मतलब या तो उन्होंने चुनाव जीतने के लिए ही पूर्व सरकार को चोर झूठ ही कहा था और या भी खुद चोर हो गए अन्यथा उनके विरुद्ध कार्यवाही करने में हिचक क्यों ?

       राजनीति  प्रचार पर डिपेंड करती है और प्रचार पैसे पर डिपेंड करता है पैसा  पैसेवालों  के पास होता है वो अपनी खून पसीने की कमाई किसी को विधायक सांसद मंत्री आदि बनने के लिए क्यों दे देंगे ?
   पैसे वाले लोगों के पास राजनीति करने का समय नहीं होता गरीब एवं ईमानदार आदमी राजनीति करे तो कैसे ! सामान्य वर्ग के लोग राजनेताओं को चंदा देंगे नहीं , घर खेत बेचकर कोई राजनीति करता नहीं है और न ही सूत ब्याज पर पैसे लेकर करता है और न ही सरकार से लोन लेकर कोई राजनीति करता है राजनीति करने  के लिए लोग फ्री का पैसा चाहते हैं इस पैसे के बदले वो न तो सूत ब्याज देना चाहते हैं और न ही मूल चुकाना चाहते हैं इन्हें तो फ्री का चाहिए जो देना न पड़े लौटाना न पड़े ऐसे नेताओं को बिना स्वार्थ के कोई क्यों दे देगा !
     नेता यदि भ्रष्टाचार में साथ न दें तो इन्हें राजनीति करने के लिए कोई चंदा क्यों देगा ?
    ये नेता लोग भिखारी जैसे नहीं लगते फिर कोई भीख समझकर इन्हें कैसे धन दे ? ,देखने में गरीब नहीं लगते जो देने वाला दया भावना से द्रवित होकर कृपा पूर्वक इन्हें धन दे दे !ये धार्मिक भी नहीं दिखते ! जो देने वाला धर्म भावना से ही इन्हें दान दे दे !ये परोपकारी  भी नहीं दिखते जो देने वाला जन सेवा की पुण्य भावना से ही दे दे !आखिर नेताओं को कोई क्यों दे धन !
       विधायक सांसद मंत्री आदि तो खुद बनेंगे और धन माँगेंगे औरों से किंतु जो धन दें उन्हें बदले में क्या मिलेगा ! आजकल बिना स्वार्थ के तो कोई बाप को एक पैसा नहीं देना चाहता फिर किसी नेता को कोई क्यों देगा वो भी बिना स्वार्थ के !वो भी व्यापारी जो पाई पाई जोड़ता है वो अपनी खून पसीने की कमाई इन्हें फ्री में क्यों दे देगा !वो रातोरात करोड़ों अरबों पति बन जाना चाहता है इसके लिए उसे भ्रष्टाचार का सहारा लेना होता है इसमें सरकारी आफीसरों से उसे भय होता है उस भय को समाप्त करने के लिए वो नेता जी को पैसा देता है और बदले सभी प्रकार के सहयोग का बचन ले लेता है । ऐसे भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही करने की हिम्मत कोई भ्रष्ट  नेता कैसे कर सकता है !उसके लिए नेता ईमानदार चाहिए वो कहाँ से मिले !
  राजनैतिक पार्टियाँ ईमानदारी के भाषण तो देना चाहती हैं किंतु उनके नेता लोग पढ़े लिखे ईमानदार लोगों को पसंद नहीं करते !आप कभी भी देखेंगे नेता लोग अपने ही लड़के नातियों को चुनाव लड़ाया जिताया करते हैं बाक़ी केवल वोट लेने के लिए ही ग़रीबों के यहाँ चक्कर मारने जाते हैं इसके अलावा गरीबों को वो किसी लायक नहीं समझते हैं यदि समझते ही होते तो मुझमें और क्या कमी थी हमारे जैसे और लोग भी केवल ईमानदारी पूर्वक राजनीति करना चाहते हैं इसीलिए तो बेईमानी पसंद लोग उन्हें नहीं देना चाहते हैं राजनीति के माध्यम से जनसेवा करने के अवसर !
     हर पार्टी के लोगों को मैंने यह कहते  सुना है कि वो राजनैतिक शुद्धि के लिए पढ़े लिखे ईमानदार लोगों को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं।जिससे देश में ईमानदार राजनीति का वातावरण बनाया जा सके। यह सुनकर मैंने सोचा कि मैंने भी तीन विषय से आचार्य (एम.ए.)  दो विषय से अलग से एम.ए. एवं बी.एच.यू. से पीएच.डी की है।करीब150 किताबें लिखी हैं यद्यपि सारी प्रकाशित नहीं हैं,कई काव्य ग्रंथ भी हैं।प्रवचन भाषण आदि करने ही होते हैं।आरक्षण आंदोलन से आहत होकर मैंने आजीवन सरकार से नौकरी न मॉंगने का व्रत लिया हुआ है। वैसे भी ईमानदारीपूर्वक जीवन यापन करने का प्रयास करता रहा  हूँ। फिलहाल अभी तक निष्कलंक जीवन है यह कहने में हमें कोई संकोच नहीं हैं।         
    इस प्रकार से अपनी शैक्षणिक सामर्थ्य  का राजनैतिक दृष्टि से देशहित में सदुपयोग करना चाहता था, इसी दृष्टि से मैंने लगभग हर पार्टी से संपर्क करने के लिए सबको पत्र लिखे अपनी पुस्तकें भेजीं अपने डिग्री प्रमाणपत्र भेजे फोन पर भी संपर्क करने का प्रयास किया,किंतु कहीं किसी ने हमसे मिलने के लिए रुचि नहीं ली।किसी ने हमें पत्रोत्तर देना भी ठीक नहीं समझा।कई जगह तो दो दो बार पत्र डाले किंतु कहीं कोई चर्चा न हो सकी किसी ने मुझे पत्र लिखने लायक या फोन करने लायक नहीं समझा मिलने की बात तो बहुत दूर की है। 
     हमारे राष्ट्रपति जी दुर्गा जी के भक्त हैं यह सुनकर उन्हें अपनी दोहा चौपाई में लिखी दुर्गा सप्तशती की पुस्तकें  भेंट करके अपनी कुछ बात निवेदन करने का मन बनाया किंतु वहॉं पुस्तकें एवं पत्र भेजने के बाद भी उसके उत्तर में कोई पत्र नहीं मिला।
   इसके बाद कुछ हिंदू संगठनों से  इसलिए संपर्क किया कि मेरी धार्मिक शिक्षा विशेष रूप से है शायद  वहीं हमारा या हमारी शिक्षा का जनहित में शैक्षणिक सदुपयोग हो सके तो अच्छा होगा तो वहॉं के बड़े बड़े लोगों ने हमसे मिलना ठीक नहीं समझा,उनसे छोटे लोगों को हमारी शिक्षा में कोई प्रत्यक्ष रुचि नहीं हुई, यद्यपि वहॉ मुझे इसलिए उन्होंने संपर्क में रहने को कहा ताकि हमारी समाज में जो गुडबिल है उसे संगठन के हित में आर्थिक रूप से कैस किया जा सके ऐसा उन्होंने कहा भी!यहॉं से इसी प्रकार के यदा कदा फोन भी आये जिनमें मैंने पैसे के कारण रुचि नहीं ली।               इसके बाद निष्कलंक जीवन बेदाग चारि़त्र का राग अलापने वाले एक सामाजिक संगठन से जुड़ने के लिए मैंने वहाँ के मुखिया को अपना साहित्य भेजा और मिलने के लिए पत्र के माध्यम से समय माँगा किंतु वहाँ  भी मुझे घास नहीं डाली गई।इसके बाद चुपचाप बैठकर ब्लाग पर  मैं अपने बिचार लिखने लगा।
     
राजनैतिक पार्टियों को आखिर क्या कमी दिखती है हम जैसों में !यही न कि हम ईमानदार राजनीति के समर्थक हैं -http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html

Friday, 21 August 2015

सरकारी स्कूल !

 सरकारी स्कूल और बढ़ें न बढ़ें किंतु इनके प्रति जनता का भरोसा बढ़े इसके लिए सरकारें कुछ तो करें !
   सरकारी स्कूलों पर अब कैसे बढ़े जनता का विश्वास और बंद हो बच्चों का प्राइवेट स्कूलों की ओर पलायन !स्कूल बनेंगे वो तो ठीक है किन्तु जो दिल्ली के सरकारी प्राइमरी स्कूल हैं उनमें पढ़ाई कब से और कैसे  शुरू  होगी !
    क्या शिक्षक कक्षाओं में भी जाएँगे वहाँ रुकेंगे भी कुछ पढ़ाएँगे भी और स्कूल में see more...http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2015/05/blog-post_3.html

Sarkari Shiksha Aur Rajniti Ka Eaisa Ghalmel !

सरकारी विद्यालयों की नौकरी पाकर कौन करना चाहता है काम ? see more....http://snvajpayee.blogspot.in/2013/07/sarkari-shiksha-aur-rajniti-ka-eaisa.html

Sunday, 16 August 2015

'भाजपा' और 'आप' में इतना बड़ा फर्क ! एक के लिए देश सर्वोपरि है तो दूसरे के लिए नेता !




भाजपा चिंतन "जय भारत " और आम आदमी पार्टी का चिंतन " अरविंद केजरीवाल " ! 
 जिस नेता का कल नामकरण हुआ उसी का आज जन्मदिन है !
    बंधुओ ! वैसे जन्मदिन पहले होता है बाद में होता है नामकरण  किंतु राजनेताओं के लिए कुछ भी असंभव नहीं है ! यही श्रीमान पहले स्वराज की बातें किया करते थे किंतु सत्ता में आते ही सेम वही व्यक्ति  केक काट रहा है !


Rs 6,500 Crore Declared Under Black Money Law, Says PM Narendra Modi










































जो नेता नहीं है और सरकारी कर्मचारी भी नहीं है जीने का अधिकार तो उन्हें भी मिलना चाहिए !

   देश की आजादी के त्यौहार का भोर एक गरीब परिवार के लिए इतना दुखद !

" रविवार सुबह आर्थिक तंगी के चलते बीकानेर के एक ही परिवार के पांच लोगों ने आत्महत्या कर ली -एक खबर "
   किंतु यह कैसी आजादी ! जहाँ  केवल कुछ लोग आजाद हैं गरीबों किसानों की पीड़ा कोई तो सुनता आखिर इन्हें अपनापन क्यों नहीं दे पा रही हैं सरकारें ! केवल चुनाव जीतने के लिए गरीबों और किसानों की बेदना का बखान किया जाता है बस ! देश की राजनीति का यह संवेदना शून्य चेहरा है जो गरीबों को सहारा न दे सका किसानों के मन में ढाढस न बँधा सका धिक्कार है ऐसे शासन और सरकारों को ऐसी नियत को जो गरीबों का केवल उपयोग करना जानती है !
        कुछ चेहरे बिकाऊ होते हैं कुछ कुर्सियाँ उपजाऊ होती हैं ! इन भोग्यशालियों को पहचाने कौन ?
     देश के नेता लोग देश की संपत्तियों का भोग कैसे भी कर सकते हैं सरकारों में सम्मिलित लोग हों या उनके कर्मचारी सरकार केवल वहीँ तक सीमित है बाक़ी देशवासी किसके हवाले हैं गरीब से गरीब व्यक्ति भी नेता बनते ही बहुमूल्य हो जाता है उसके पास सम्पत्तियों के बादल कहाँ से फट पड़ते  हैं उसे खुद नहीं पता होता है इसी प्रकार सरकारी कर्मचारी का मतलब सरकारी जिम्मेदारी पर जीवन धारण करने वाला वर्ग ,किन्हीं किन्हीं आफिसों में तो कुर्सियाँ उपजाऊ होती हैं जिनपर बैठते ही धनवर्षा होने लगती है कुछ चेहरों पर कीमत लिखी होती है कि इन्हें खरीदने के लिए क्या कीमत चुकानी पड़ेगी !कुछ कुर्सियों पर बैठे लोगों को अपनी जिम्मेदारी ही नहीं पता होती है देखो सरकारी विभागों को ! इनके वीडियो बना लिए जाएँ तो पता लग जाएगा कि कौन सरकारी हैं कौन प्राइवेट !कुल मिलाकर मेरा प्रश्न ये है कि जो नेता नहीं है और सरकारी कर्मचारी भी नहीं है जीने का अधिकार तो उन्हें भी मिलना चाहिए !

'श्रीमान्' और 'श्रीमती' शब्द जब पुरुषों और स्त्रियों के लिए हैं तो अविवाहिता स्त्रियों को अलग क्यों रखा जाए ?

   शब्दों के साथ अकारण इतनी छेड़छाड़ क्यों ? जिन्हें कुँआरी कन्याओं को 'श्रीमती' कहने में कष्ट है उन्हें कुँआरे पुरुषों को श्रीमान् कहने में दिक्कत क्यों नहीं होती ! 
    यहाँ भाषविज्ञान मानक हिंदी या परंपराओं जैसी बातें कहाँ से आ जाती हैं इस सीधी सी बात पर किंतु परंतु क्यों ? "श्रीमती " शब्द का प्रयोग महिलाओं के लिए आदर प्रकट करने के लिए किया जाता है जबकि पुरुषों के लिए इसी अर्थ में 'श्रीमान्' शब्द के प्रयोग करने का विधान है । ऐसी स्थितियों में समस्त स्त्री पुरुष जाति के लिए या तो इन्हीं शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए ! अन्यथा अविवाहिता स्त्रियों "सुश्री" आदि शब्दों का मनगढंत प्रयोग  करते समय ध्यान ये भी रखा जाना चाहिए कि अविवाहित पुरुषों के लिए किस शब्द का प्रयोग किया जाए ?
      पुल्लिंग में 'श्रीमान् \ ' स्त्रीलिंग में 'श्रीमती ' तो अविवहित  कन्या के नाम के आगे किस लिङ्ग का प्रयोग किया जाए ? मानक हिन्दी जैसी बातों का उल्लेख यहाँ करना केवल ना समझी है क्योंकि जहाँ शब्दों के उच्चारण या लेखन में असुविधा हो रही हो वहाँ मानकी करण का सहारा लिया जाता है किंतु इन शब्दों के लेखन और उच्चारण में ऐसी कोई कठिनाई नहीं है दूसरी बात मानक शब्दों में मतभेद की पूरी गुंजाइस रहती कोई मानता है कोई नहीं मानता है !इसलिए मानकहिंदी के शब्द प्रमाण नहीं हो सकते यही कारण है कि केंद्रीय हिंदी संस्थान और NCERT में इसी विषय को लेकर अभी तक मतभेद बना हुआ है केंद्रीय हिंदी संस्थान मानक हिंदी में रूचि रखता है जबकि NCERTने इसे नकार दिया है ।
        इसी प्रकार से बात भाषा विज्ञान की है वहाँ कोई शब्द नया नहीं जोड़ा जा सकता है वहाँ तो प्रचलित शब्दों पर ही अनुसंधान चलाना होता है ।भाषा विज्ञान के द्वारा मदर को मादर भी सिद्ध किया जाना क्यों जरूरी है !अंग्रेज अपने संकुचित मुख यंत्र के कारण यदि 'ठाकुर' को 'टैगोर'और 'उपाध्याय' को 'झा' कहने लगे तो ये उनकी मजबूरी थी जिसे हमें हथियार नहीं बनाना चाहिए हम 'ठाकुर' को 'ठाकुर' एवं 'उपाध्याय' को 'उपाध्याय' कह सकते हैं तो हमें इस विषय में किसी भी भाषा वैज्ञानिक की मदद की क्या आवश्यकता है । 
 इसी विषय में पढ़िए हमारा ये लेख -
उमाभारती जी विवाहिता नहीं हैं किंतु महिला तो हैं ! 'श्रीमती' शब्द का प्रयोग महिलाओं को सम्मान देने के लिए किया जाता है |किसी को सम्मान देने के लिए बनाए गए हैं'श्री' 'श्रीमान्' 'श्रीमती' 'श्रीमत्' आदि शब्द !seemore … http://samayvigyan.blogspot.in/2015/08/blog-post_15.html
 

सपा तो 'वाद' भण्डार पार्टी है ये भाजपा के कलाम वाद को कैसे समझ सकेगी !

 "स्वतंत्रता दिवस पर मुलायम का पीएम मोदी पर हमला, कहा झूठे नारों से चुनकर आई सरकार-एक खबर"                                                                                          किंतु बंधुओ ! भाजपा एक ऐसी पार्टी है जो राष्ट्रपति पद पर उन कलाम साहब को बैठाती है जिनका राजनैतिक स्वभाव ही नहीं था वो देश सेवक थे तो  दूसरी ओर सपा है जहाँ पद ही अपने एवं अपनों को दिए जाते हैं देश की जनता को भूल कर अपनी जाति का चयन करना,देश के अन्य गाँवों को भूलकर केवल  सैफई महोत्सव मनाना ,यादवों में भी अपने नाते रिश्ते दारों को महत्त्व देना ,अपने परिवार वालों को महत्त्व देना और जब बात पुत्र की आवे तो भाइयों को भी पीछे छोड़ देना !ऐसा स्वार्थी सपा नेतृत्व भाजपा के उदारवाद को कैसे समझ सकता है !
     "स्वतंत्रता दिवस पर मुलायम का पीएम मोदी पर हमला, कहा झूठे नारों से चुनकर आई सरकार -एक खबर"
   किंतु मुलायम सिंह जी !चुनाव केवल मोदी ने नहीं जीता  है चुनाव भाजपा जीती है भाजपा के आदर्श विजयी हुए हैं भाजपा का सुसंस्कारित अतीत विजयी हुआ है भाजपा के अटल आडवाणी जी जैसे शीर्ष नेताओं की ईमानदारी के  प्रति बना जनता का विश्वास विजयी हुआ है और वर्तमान नेतृत्व भी उसी विश्वास को जीतने के प्रयास में लगा दिखाई दे रहा है ।
 वैसे मुलायम सिंह जी ! आपका अपना अनुभव ठीक है कि सरकारें अक्सर बनती ही झूठे नारों से हैं क्योंकि योग्य ईमानदार चरित्रवान राजनेता राजनीति में सारा जीवन खपा देते हैं तब कभी कुछ बन पाते हैं कभी नहीं भी बन पाते हैं कभी बनकर भी छोड़देना पड़ता है उन्हें !वो अपने व्यक्तित्व को लोगों की नज़रों में गिरने नहीं देते ! देखो लाल बहादुर शास्त्री जी को ,देखो अटल जी को जिनकी सरकार एक वोट से गिरी थी मंडी में बिकाऊ माल तब भी बहुत था किंतु उन्होंने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया था । " रो चला था देश देख उनकी विनम्रता को तरह दिनों का ताज हँस के उतार था ।"
       अटल जी ! ब्राह्मण हैं किंतु कभी ब्राह्मणवादी नहीं रहे वे जन्म भूमिवादी कभी नहीं रहे वे कान्यकुब्जजाति के ब्राह्मण हैं किंतु कान्यकुब्ज वादी कभी नहीं रहे उनके परिवार नाते रिश्तेदारों को कितने लोग जानते हैं अर्थात उन्होंने देश के नेतृत्व के साथ कभी समझौता नहीं किया ! नेतृत्व की योग्यता का निर्णय करते समय स्वार्थ समूहों को रौंदते हुए भाजपा ने अनुपमेय उदाहरण प्रस्तुत किए हैं अपने एवं अपनों के हितों से ऊपर उठकर कलाम जैसे  व्यक्ति को राष्ट्रपति जैसे बड़े पद के लिए चुना जाना आदर्श नैतिक नेतृत्व के प्रति भाजपा के समर्पण को ही प्रस्तुत करता है !जिस युग में ग्राम प्रधानी तक के पद के लिए मारा मारा होती हो उस युग में राष्ट्रपति पद पर पार्टी के बाहर के किसी व्यक्ति को बैठने का निर्णय करना अत्यंत उत्तम निर्णय  था ।
    सपा तो वाद भण्डार पार्टी  है घर वाद, परिवारवाद ,गाँववाद जातिवाद पार्टीवाद आदि  के लिए समर्पित सपा भाजपा  के आदर्श आचार व्यवहारों को कैसे पचा पाएगी !इसलिए मोदी जी झूठे हैं या सच्चे ये तो 5 वर्ष बाद ही पता चलेगा किंतु भाजपा संकीर्ण नहीं है अटल अडवाणी युग इसका गवाह है !

Saturday, 15 August 2015

उमाभारती जी विवाहिता नहीं हैं किंतु महिला तो हैं ! 'श्रीमती' शब्द का प्रयोग महिलाओं को सम्मान देने के लिए किया जाता है |

किसी को सम्मान देने के लिए बनाए गए हैं'श्री' 'श्रीमान्' 'श्रीमती' 'श्रीमत्' आदि शब्द !
"श्रीमती उमाभारती'संबोधन पर गूंजा ठहाका,उमाभारती बोलीं-अध्यक्षजी मेरा विवाह नहीं हुआ है-see more....http://zeenews.india.com/hindi/india/uma-bharati-tells-lok-sabha-speaker-i-am-not-married-nor-going-to-marry/266835
      किंतु विवाह न होने से श्रीमती शब्द का क्या संबंध ?विवाहिता नहीं हैं किंतु महिला तो हैं ! 'श्रीमती' शब्द का प्रयोग महिलाओं को सम्मान देने के लिए किया जाता है। 
 जानिए   श्री 'श्रीमान्' 'श्रीमती' 'श्रीमत्' आदि शब्दों का प्रयोग किसके लिए किया जाता है !
देवी देवताओं आदि दिव्य शक्तियों के नाम के साथ श्री लगाते हैं क्योंकि इनका लिंग किसी को पता ही नहीं है कि ये स्त्री हैं या पुरुष इसीलिए इनके नाम के साथ केवल श्री लगाया जाता है। कुछ सिद्ध संत जो स्त्री पुरुष के भेद भाव से ऊपर उठ चुके हैं उनके नाम के साथ भी "श्रीश्री 108 या 1008 "आदि लिखने की परंपरा रही है । 
    इसी प्रकार से पुरुषों को सम्मान देने के लिए 'श्रीमान्' और महिलाओं को सम्मान देने के लिए 'श्रीमती' शब्द का प्रयोग किया जाता है और नपुंसक लिंग में सम्मान के लिए  'श्रीमत्' का प्रयोग किया जाता है जैसे -"श्रीमद् भागवत " या "श्रीमद् भगवद् गीता "आदि !
        बंधुओ !कुछ लोगों का अज्ञानवश  मानना है कि विवाहिता स्त्रियों के नाम के पहले ही 'श्रीमती' शब्द का प्रयोग किया जा सकता है यदि ऐसा होता तो श्री सीता जी, श्री पार्वती जी, श्री राधिका जी आदि शब्दों का प्रयोग क्यों किया जाता !तब तो इनके नाम के साथ "श्रीमती" शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए था किंतु ऐसा नहीं किया जाता है इसका सीधा सा मतलब है कि "श्रीमती"शब्द स्त्री पुरुष का भेद तो करता है किंतु विवाहिता अविवाहित से इसका कोई लेना देना है ही नहीं !
      वैसे "श्री" का अर्थ लक्ष्मी भी होता है किंतु यहाँ इस अर्थ में 'लक्ष्मी'शब्द से कोई लेना देना नहीं है । 
    आनंद रामायण में वर्णन मिलता है कि जब रामायण का बँटवारा तीनों लोकों के बीच हुआ था तो उसमें बचे हुए 'राम' शब्द को शिव जी ने अपने पास रख लिया था और सम्मान के लिए " श्री" शब्द को भगवान विष्णु ने ले लिया था " मानार्थे श्रीरिति विष्णुना धृतम् "आदि आदि ! 
   चूँकि उमा भारती जी भी अपने को महिला श्रेणी में ही रखती हैं वे अपने विषय में चर्चा करते समय 'मैं कहती हूँ '  'मैं काम करूँगी' आदि क्रियाओं का ही प्रयोग करती हैं चूँकि ये क्रियाएँ स्त्रीलिंग की ही हैं इसलिए उनके नाम के साथ सम्मान देने के लिए आदर सूचक शब्द भी 'श्रीमती' ही लगेगा न कि 'श्री' 'श्रीमान्' और 'श्रीमत्' आदि शब्दों का प्रयोग उनके लिए किया जाएगा !वैसे भी व्याकरण की दृष्टि में 'सुश्री' कोई शब्द ही नहीं है ।

15 महीने की केंद्र सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप न हों तो भी जनता संतुष्ट है क्या ?



    देखना यह चाहिए कि जनता को हमने ऐसा नया क्या दिया है जो पहले नहीं दिया जा सका था अन्य सरकारें नहीं दे सकती थीं !रही बात विपक्ष की तो तो चूँकि उन्होंने कुछ नहीं किया है इसी लिए जनता ने उन्हें बुरी तरह से पराजित  किया है अब सरकारी लोग यदि बार बार विपक्षी सरकारों की लापरवाही के उदाहरण  देते हैं इसका मतलब सरकारी तंत्र पराजय की ओर बढ़ रहा है इसलिए सरकार को जान सेवा के नए मानक गढ़ने चाहिए जिसमें सरकार अभी तक सफल नहीं हो पायी है भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए कोई ठोस योजना बनकर सामने नहीं आ पायी है सरकारी आफिसों में काम अभी भी उन्हीं की मर्जी से होता है वो चाहें तो करें न चाहें तो न करें या जिसे कोई जरूरी काम करवाना हो वो पैसे देकर करवावे वो और बात है किन्तु सरकार ने जनता को उन्हीं सरकारी कर्मचारियों के रहमोकरम पर छोड़ रखा है जहाँ पहले थी । महिलाएँ सुरक्षित तब भी नहीं थीं अब भी नहीं हैं सरकारी स्कूलों में पढाई तब भी नहीं थी अब भी नहीं है सरकारी अस्पातालों का जो हाल तब था वही आज भी है! कुल मिलाकर बदला  क्या जा सका है !

Tuesday, 11 August 2015

मोदी जी काम करते रहे फिर भी हम उन्हें बदनाम करते रहे !"

योगेंद्र यादव की मदद करने के लिए मचल रहा है केजरीवाल का मन !योगेंद्र से ज्यादती का केजरीवाल ने भी किया विरोध -एक खबर
केजरीवालजी की स्थिति-"नाच न आवे आँगन टेढ़ा !"

बंधुओ !योगेंद्र जी से केजरीवाल जी को अब इतनी सहानुभूति क्यों हो रही है उन्हें समाज को भ्रमित नहीं करना चाहिए !

बंधुओ ! अरविन्द जी का लक्ष्य तो योगेंद्र जी का पक्ष लेना नहीं अपितु पुलिस का विरोध करना है उसका बहाना  केंद्र बने या महिला सुरक्षा या गजेंद्र जी की दुखद मौत या और कुछ हो !उन्हें तो पुलिस के बहाने केंद्र सरकार को ही बदनाम करने में मजा आता है और वही वो कर रहे हैं !जनता उनकी इस प्रवृत्ति से तंग आ चुकी है उनके किसी भी आचार  व्यवहार से आम आदमियत दूर दूर तक नहीं झलक रही है और न ही कानून व्यवस्था में ही कोई बदलाव आया है ऑटो वाले तक मीटर से जाने को तैयार नहीं होते हैं
      फिर भी केजरीवाल जी का नारा है "वो हमें परेशान करते रहे ,हम काम करते रहे "किंतु पता ये नहीं चल पा रहा है कि केंद्र सरकार को बदनाम करने के अलावा केजरीवाल जी काम क्या करते रहे ! पानी शुद्ध नहीं हैं सरकारी आफिस हों या स्कूल पहले के जैसे ही चल रहे हैं परिवर्तन आखिर हुआ कहाँ है अगर किसी एक आदमी की बचपन से आने वाली खाँसी ठीक हो गई तो इसका मतलब ये तो कतई नहीं है कि दिल्ली ठीक हो गई ! स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बजट कितना भी बढ़ा लिया गया हो किन्तु खाँसी दिल्ली में नहीं ठीक हो सकी इसका मतलब दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाएँ विश्वसनीय नहीं थीं तब तो बहार जाकर कराया गया इलाज !
  इसलिए उनका अब ये नारा होना चाहिए था कि देश विदेश में घूम घूम कर"मोदी जी काम करते रहे फिर भी हम उन्हें बदनाम करते रहे !"
     केंद्र सरकार को बदनाम करने के लिए बाकायदा बजट पास किया गया ! आखिर इससे जनता का क्या लाभ हुआ क्या इससे जनहित के जरूरी काम नहीं किए जा सकते थे !