Friday, 27 February 2015

नरेंद्र मोदी जी की सरकार के विरुद्ध अभी से हुल्लड़ करना ठीक नहीं है !अभी कुछ करने भी तो दीजिए !!अन्यथा चारवर्ष का लंबा समय क्या अविश्वास पूर्वक ही बिताया जाएगा ?

   प्रधानमंत्री सारे देश का प्रतिनिधत्व करता है इसलिए उसे कमजोर करके प्रस्तुत करना ठीक नहीं होगा !

  यदि मोदी जी पर विश्वास नहीं था तो इतना बहुमत क्यों दिया और यदि विश्वास किया है तो थोड़ा धैर्य भी करना चाहिए हो न हो उन्होंने भी कुछ अच्छा ही सोचा हो !

अभी नौ महीने के कार्यकाल में इस सरकार में कोई घपला घोटाला नहीं मिला है जनहित के कई कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया गया है विदेशी शाख बनाई एवं बढ़ाई गई है सबके बाद हर किसी की शंकाओं के समाधान करने के पारदर्शी प्रयास किए जाते हैं इतने के बाद भी भूमि अधिग्रहण जैसे बिलों के विरुद्ध सामाजिक तौर पर सीधे चुनौती देने लगना इसलिए ठीक नहीं है कि चुने हुए प्रधानमंत्री को भी कुछ अधिकार तो देने पड़ेंगे वो अन्ना जी की सरकार की तरह हर बात के लिए जन सर्वेनाम का प्रचार प्रसार हो सकता है कि उन्हें पसंद ही न हो इसलिए नहीं किया गया है फिर भी सरकार के द्वारा संसद में स्वतंत्र समाधान की व्यवस्था के लिए  सम्मानित सदस्यों को आमंत्रित किया गया है फिर भी सर्वोपरि बात ये है कि यदि मोदी जी गुजरात का विकास करने में सफल हुए हैं तो देश का विकास करने में भी सफल होंगे वो PM के रूप में पूरी तरह नौसिखिया नहीं हैं चूँकि वो CM के रूप में कई वर्ष तक लोकप्रिय शासन चला चुके हैं । 

बाप बेटे सरकार के विरुद्ध पहले इतना प्रचार फिर उन्हीं बाप बेटे पोता पोती परिवार के साथ इतना प्यार !

वारे मोदी जी!कार्यकर्ताओं को तो  पैर भी नहीं छूने देते और लालूमुलायम से हाथ मिलाते घूम रहे हैं अाश्चर्य !!
 लालू की बेटी की शादी, पीएम बने बाराती-एक खबर

   आपस में नेताओं की चुनावी प्रचार के लिए तो तकरार बाक़ी सब प्यार ही प्यार !ये नेता चुनावों में जिन्हें गाली देते हैं चुनावों के बाद उन्हीं से प्रेम से मिलते हैं बेचारी जनता चुनावों में जिससे हमदर्दी जताते थे उसे तो मिलने तक का समय भी नहीं देते !जरूरत मंद लोगों से मिलने के लिए उनके पी.ए.कह  देते हैं समय नहीं है और राजनैतिक विरोधियों को उनके घर जाकर मिलते हैं ये है राजनीति ! 
     बड़े लोगों के यहाँ ही हर कोई जाता है और बड़े लोगों को ही हर कोई बुलाता है और जनता बेचारी  कभी बड़ी बन ही नहीं पाती वो तो खुद सरकारों की कृपा पर दिन काट रही होती है इसलिए प्रधानमंत्री जी को बुला पाने का साहस वो कैसे कर पाती !और यदि बुलाने पहुँचे भी तो आने की बात तो दूर क्या उसे ये सौभाग्य भी नसीब होगा कि बो अपने हाथ से निमंत्रण पत्र भी  प्रधान मंत्री जी को भेंट कर पाएँ !उनमें भले ही भाजपा के वो कार्यकर्ता भी क्यों न हों जिन्होंने मोदी जी को  प्रधान मंत्री बनाने के लिए दिन रात एक कर दिया था दूसरी ओर वे लालू मुलायम जिन्होंने मोदी जी को प्रधानमंत्री न बनने देने के लिए ऐंड़ी छोटी का जोर लगा दिया था ! उसके लिए उन्होंने  कोई कोर कसर छोड़ी भी नहीं थी फिर भी उन  लालू मुलायम से गले मिल रहे हैं जबकि मोदी जी और सुना है कि अपने  कार्यकर्ताओं को पैर भी छूने से मन कर देते हैं आप !अपना अपना भाग्य !भाजपा के कार्यकर्ताओं के समर्पण में कमी कहाँ है बशर्ते नेतृत्व उनके समर्पण को मजबूरी न समझे !वो भी नेतृत्व का दुलार तो चाहते ही हैं नेतृत्व उनसे मिल लेता है उनके सुख दुःख सुन लेता है उनके साथ फोटो खिंचा लेता है कार्यकर्ता खुशी से झूम उठता है खिलखिला उठता है फिर इन्हीं लालू मुलायमों की गालियाँ गोलियाँ लाठियाँ डंडे खा खाकर फिर उठा लेता  है अपने हाथ में पार्टी का पवित्र ध्वज और निकल पड़ता है अपनी पार्टी का विस्तार करने के लिए इन्हीं लालू मुलायमों से जूझने !



Wednesday, 25 February 2015

अधिकारी कर्मचारी

सरकारें कागजों पर केवल कानून बना देती हैं अधिकारी कर्मचारी लोग उन कानूनों को पालन करने और न करने वालों के लिए अलग अलग रेटलिस्ट बना लेते हैं ! कानून तो जनता को डराने धमकाने के लिए होता है पालन तो रेट लिस्ट का ही करना पड़ता है ऐसे कानून गरीबों के किस काम के ?क्योंकि रेटलिस्ट का पालन करने की उनकी क्षमता नहीं होती है !इसलिए उन कानूनों पर आम समाज का उतना भरोसा भी नहीं है जितना धनि समाज को है 

  नहीं है  उनके काम उतने सरकारी छोटे मोटे कामों के लिए कुछ 


 गरीब लोगों के लिए सरकारी या निगम स्कूल !जहाँ कुछ पढ़ाया भी जाता है या नहीं कोई शिक्षक समय से कक्षाओं में पहुँचता भी है या नहीं ये सब देखने के लिए सुनने के लिए कौन है

   सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं इसलिए प्राइवेट स्कूलों पर विश्वास बढ़ा ! अस्पतालों में दवाई नहीं इसलिए प्राइवेट अस्पतालों पर विश्वास बढ़ा! डाक व्यवस्था शिथिल इसलिए कोरियर पर विश्वास बढ़ा !

 सरकारी फोन व्यवस्था में सुनवाई नहीं इसलिए प्राइवेट पर विश्वास कर रहे हैं लोग !

 पुलिस में प्राइवेट होता नहीं इसलिए सबको पता है कि पुलिस उसकी जो ज्यादा पैसे दे !ये जानते हुए भी गरीब लोगों को भी जाना पड़ता है उन्हीं पुलिस वालों के पास जिनसे न्याय की उमींद उन्हें बिलकुल न के बराबर होती है !आखिर क्यों ?उनके लिए सरकार कुछ और विकल्प 

वहाँ तो न्याय की नीलामी होती है ।

 

   जो नेता लोग अपनी अपनी जाति ,धर्म ,क्षेत्र, जिला,प्रदेश आदि को ही आगे बढ़ते देखना चाहते हैं उनकी निष्ठा  देश के प्रति क्यों नहीं है !और देशवासी उनके बचनों  विश्वास कैसे करें !  

     नेताओं में ऐसी संकीर्णता नहीं होनी चाहिए ! जो नेता लोग राजनीति में प्रवेश करते समय एक एक पैसे को तरसते  थे वो आज बिना किसी ख़ास व्यापार के करोड़ों अरबों के आदमी हो गए हैं !आखिर कैसे ?जिनका व्यापार कोई दिखाई न पड़ा  हो,कंजूसी कभी की न हो,सुख सुविधाएँ जुटाने के लिए खुला खर्च किया जा रहा हो इसके बाद भी करोड़ों अरबों का संचय आखिर कैसे हो जाता है यदि देश और समाज के साथ गद्दारी नहीं की गई है तो !और संपत्ति यदि वास्तव में ईमानदारी से बढ़ती  है तो वही रास्ता देश के अन्य लोगों को क्यों नहीं बता दिया जाता है ! 

     आजकल नेता लोग छोटे बड़े किसी भी केस  में यदि फँस जाते हैं तो जब उनकी पार्टी की सरकार में आती है तो यह कहकर सारे केस वापस कर लिए जाते हैं कि उन्हें गलत फँसाया गया था !माना कि उनपर गलत केस विरोधी पार्टी की सरकार ने विद्वेषवश बनवा दिए होंगे किन्तु जिन अधिकारियों के माध्यम से बनवाए होंगे केस उनकी कोई जिम्मेदारी ही नहीं थी क्या ?आखिर उन्होंने क्यों बनाए इस विषय की जाँच क्यों नहीं की जाती है और इसके लिए उन्हें दण्डित क्यों नहीं किया जाता है !ऐसे केस आम जनता पर भी बनाए जाते हैं किन्तु वो न कभी सत्ता में आते हैं और न उनके केस वापस लिए जाते हैं पैसे न होने के कारण कई बार पैरवी ठीक से नहीं हो पाती है ऐसी परिस्थिति में उन्हें  सजा तक भोगनी पड़ती है ।

Monday, 23 February 2015

फर्जी डिग्री

                        फर्जी डिग्री

     सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों में ज्योतिषाचार्य एक डिग्री है जो एम.ए.के समकक्ष होती है इस दृष्टि से ज्योतिषाचार्य  का मतलब ज्योतिष विषय में एम.ए.की डिग्री हासिल करने वाला होता है जिसके लिए पाठ्य क्रम के हिसाब से लगभग बारहवर्ष पढ़ना पड़ता है ।ऐसी परिस्थिति में कुछ लोग बिना किसी सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालय से ज्योतिषाचार्य की डिग्री हासिल किए हुए भी अपने नाम के साथ बिना किसी रोक टोक के ज्योतिषाचार्य जैसी बड़ी डिग्री का उपयोग करते हैं या टी.वी.चैनलों पर ज्योतिषाचार्य के  रूप में ही अपने को प्रचारित करवाते हैं । 
    यदि किसी संस्कृत विश्व विद्यालय से 'ज्योतिषाचार्य' जैसी डिग्री लिए बिना भी कुछ लोग बिना किसी रोक टोक के ज्योतिषाचार्य जैसी बड़ी डिग्री का उपयोग करते हैं या टी.वी.चैनलों पर ज्योतिषाचार्य के  रूप में ही अपने को प्रचारित करवाते हैं ऐसी परिस्थिति में 'ज्योतिषाचार्य'की डिग्री किसी सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालय से हासिल करने का क्या महत्त्व है ?एवं उनके इस कार्य को कितना अनुचित माना जाए ? ऐसा करना क्या अपराध की श्रेणी में आता है ?और यदि हाँ तो ऐसे लोगों के विरुद्ध क्या कुछ कार्यवाही का प्रावधान है और ऐसे लोगों की शिकायत किससे की जा सकती है ?
     एक ओर संस्कृत विश्व विद्यालयों के संचालन का भारी भरकम खर्च सरकार बहन करती है दूसरी ओर उनमें निर्धारित पाठ्यक्रम को बिना पढ़े और वहाँ से बिना कोई डिग्री हासिल किए हुए भी उस डिग्री का उपयोग करने वाले लोगों पर यदि सरकार की ओर से कोई कार्यवाही होते नहीं दिखती है तो ऐसी परिस्थिति में संस्कृत विश्व विद्यालयों के निरुद्देश्य संचालन पर सरकार के द्वारा खर्च की जा रही भारी भरकम धनराशि को सरकार के बहन करने का औचित्य आखिर क्या है ?




  
       
                                                 सूचना प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार

           सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों में ज्योतिषाचार्य एक डिग्री है जो एम.ए.के समकक्ष होती है इस दृष्टि से ज्योतिषाचार्य  का मतलब ज्योतिष विषय में एम.ए.की डिग्री हासिल करने वाला होता है जिसके लिए पाठ्य क्रम के हिसाब से लगभग बारहवर्ष पढ़ना पड़ता है ।ऐसी परिस्थिति में कुछ लोग बिना किसी सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालय से ज्योतिषाचार्य की डिग्री हासिल किए हुए भी अपने नाम के साथ बिना किसी रोक टोक के ज्योतिषाचार्य जैसी बड़ी डिग्री का उपयोग करते हैं या टी.वी.चैनलों पर ज्योतिषाचार्य के  रूप में ही अपने को प्रचारित करवाते हैं ।ऐसा करने वाले टीवी चैनल,अखवार या विज्ञापन करने वाली अन्य निजी संस्थाओं के ऊपर अंकुश लगाने के लिए कोई कानूनी प्रावधान है क्या ?और यदि है तो उसका अनुपालन किया जा रहा है क्या और उससे अभीतक किसी पर कोई कार्यवाही की गई है क्या ? 
      विज्ञापन करने वाली सभी संस्थाओं के लिए भी क्या ऐसा कोई नियम है जिसमें ऐसे लोगों के लिए विश्व प्रसिद्ध ज्योतिषी या ज्योतिषाचार्य जैसी डिग्रियों का प्रयोग करने से पूर्व सम्बंधित विषयों में किसी प्रमाणित विश्व विद्यालय से प्रदान किए गए डिग्री प्रमाण पत्रों की एक कापी सत्यापन प्रति के रूप में अपने पास रखकर उसी की सीमा में रहकर संबंधित व्यक्ति का विज्ञापन करने के आदेश का अनुपालन करें !
ज्योतिष जन जागरण के लिए आंदोलन का उद्घोष
ज्योतिष विज्ञान है अंध विश्वास नहीं जानें कैसे !
जुड़ें आप औरजोड़ें औरों  को भी
जानें ज्योतिष की सच्चाई और समझें ज्योतिषियों में व्याप्त भ्रष्टाचार के प्रकार !

Saturday, 21 February 2015

माँझी मुख्यमंत्री होने के बाद भी अपने को गरीब और महादलित कहते रहे इस दिमागी दरिद्रता को जातिगत आरक्षण से कैसे दूर किया जा सकता है ?

जीतनराम माँझी अपने कार्यकाल में अपने को महादलित सिद्ध करने में सफल हुए या मुख्यमंत्री ?

     "माँझी एक ओर मुख्यमंत्री तो दूसरी ओर अपने को गरीब कहते रहे । उन्हें महादलित भी कहा जाता रहा ! इसी प्रकार से उनके सहयोगी और विरोधी लोग भी उनके विषय में ऐसा ही कहते हैं !"ऐसे लोगों को देश आखिर क्या माने ? महादलित,गरीब या मुख्यमंत्री !

     मुख्यमंत्री जैसा पद पाकर भी यदि कोई गरीब और महा दलित ही बना रहा तो इस दिमागी दरिद्रता की भरपाई जातिगत आरक्षण से कैसे की जा सकती है ?

   महान जातिवैज्ञानिक महर्षि मनु ने यही तो कहा है जिस पर उन्हें गालियाँ मिलती रहीं आखिर क्यों ?see more....http://samayvigyan.blogspot.in/2014/12/blog-post_27.html
"जीतन राम माँझी एक ओर तो स्वयं मुख्यमंत्री होने  के बाद भी अपने को महादलित और गरीब भी कहते हैं

नीतीश जी ने जब मुख्य मंत्री पद का तोहफा उन्हें दिया था तब महादलित कहकर ही दिया था जब तक वो मुख्यमंत्री रहे तब तक वो अपने मुख्यमंत्री कम और दलित अधिक मानते रहे उसी की चर्चा बार बार करते रहे ,जब वो मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने लगे तब वो अपने को एक राजनेता की तरह रणनीति बनाने के बजाए अपने मन के महादलित को लेकर बैठ गए !इसके बाद केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी उन्हें मदद देने आई वो भी न केवल उनके पीछे का महादलित वोट बैंक देखकर आई और कहती भी यही रही कि महादलित का अपमान हो रहा है इसलिए हम उसका साथ देंगे या दे रहे हैं !बंधुओ !एक व्यक्ति के तौर पर जीतन राम माँझी क्या इतने बुरे हैं या यूँ कह लें कि क्या वो किसी लायक नहीं हैं जो सारी  चर्चा केवल उनके महादलित होने पर ही न केवल दूसरे कर रहे हैं अपितु जीतन राम माँझी भी इसी चर्चा में खुश हैं आखिर क्यों ?क्या उन्हें व्यक्ति के रूप में अपनी प्रतिष्ठा नहीं बनानी और बढ़ानी चाहिए !और यदि ऐसा नहीं है तो सम्मान हमेंशा गुणों को मिलता है जातियों को नहीं !यदि जातियों को आगे करके चलना है तो सम्मान पाने की आशा छोड़ देनी चाहिए !ये बात केवल जीतन राम माँझी पर ही नहीं अपितु यदि कोई ब्राह्मण भी हो तो जाती आगे करके चलने पर उसे भीख और भोजन तो मिल सकता है किन्तु सम्मान नहीं सम्मान तो केवल गुणों को ही मिलता है जातियों को नहीं -

           "गुणैर्हि सर्वत्र पदं निधीयते"

     इस समाज में लगभग जितने जाति धर्म सम्प्रदायों के आधार पर बने संगठन हैं उसके मुखिया लोग त्याग तपस्या की बड़ी बड़ी बातें करते रहेंगे किंतु बिना कुछ किए धरे अपने जीवन का बोझ औरों के कन्धों पर छोड़कर सम्मान पाने की लालसा पीला होते हैं यहाँ भी जो त्याग तपस्या जन सेवा आदि पवित्र आचरण अपने जीवन में उतारने में सफल होते हैं उन्हें सम्मान उन कारणों से मिलता है न कि जातियों धर्मों संगठनों के कारण ! इसलिए माँझी जी जैसे किसी भी जाति संप्रदाय के व्यक्ति को यदि सम्मान पाने की वास्तव में लालसा है तो अपनी जातियों को पीछे करके अपने को आगे करें अन्यथा सवर्णों को कोसते कितना भी रहो किंतु झूठी बातों पर विश्वास करेगा कोई नहीं और करना भी नहीं चाहिए !

     इस देश में न कोई दलित है और न ही महादलित ये सब उन लोगों के सगूफे हैं जो अपने पौरुष और व्यक्तित्व को आगे न करके अपनी जातियों के बल पर जीना  चाहते हैं !

 

 

Friday, 20 February 2015

माँझी साहब ! ऐसे दुर्गंधित बयानों की बदबू में जीना बहुत मुश्किल !!

माँझी की जहरीली बयानावली  से बच पाओ तो बचो नहीं जो साथ देगा उसे  डुबा देंगे बीच मजधार में !

   "मांझी ने कहा कि 90 फीसदी से अधिक लोग दूसरों की पत्नियों के साथ घूमने  जाते और डेटिंग करते हैं।"

 क्या ये सहने लायक बयान है क्या ऐसे देश में हम लोग रह रहे हैं संस्कार के देश भारत की कैसी पहचान बनाने पर आमादा हैं ऐसे लोग !ऐसे तो जो आपका साथ देगा वो भोगेगा भले ही उसे आप जातियों के नाम पर शोषण कहें तो कहते रहें ! 

 माँझी के छिछोरे बयान !

    माँझी ये अक्सर भूल जाते रहे कि वे महादलित होने के साथ साथ मुख्य मंत्री भी हैं उसकी गरिमा तो बना और बचा कर रखनी  ही चाहिए थी ! क्या हम लोग वास्तव में उस देश में रहते हैं जहाँ लोगों का चरित्र इतना गिर चुका  है कि 90 प्रतिशत लोग अपनी नहीं अपितु दूसरों की पत्नी पसंद करते हैं इसीलिए उनके साथ घूमते हैं और उन महिलाओं का भी कोई चरित्र नहीं है जो ऐसे लोगों का साथ देती हैं !

जीतन राम माँझी  ऐसे भस्मासुर हैं जो साथ देगा उसी का नाश करेंगे !

     माँझी को समर्थन देकर भाजपा उत्तर प्रदेश में दिए गए मायावती के समर्थन वाली गलती दोबारा दोहराने जा रही थी जिसके साइड इफेक्ट होने भी स्वाभाविक थे नितीश कुमार एक गंभीर नेता हैं उन्होंने पारदर्शिता पूर्वक जवाबदेय शासन चलाया था जिसे लोगों ने भी अनुभव किया था । जीतनराम माँझी का विश्वास इसलिए करना ठीक नहीं है कि ये कब क्या बोल जाएँगे पता नहीं ,दूसरा जातिवादी नेता हैं तीसरा विश्वसनीय नहीं हैं!

इस सारे ड्रामें में माँझी प्रसिद्ध हुए हैं जबकि भाजपा को खल नायक सिद्ध करने में जेडीयू सफल हुई है !

  माँझी के संपूर्ण विवादित प्रकरण से माँझी प्रसिद्ध हुए हैं यदि वो मुख्य मंत्री पद  नहीं भी बचा पाए तो भी वो घाटे में नहीं हैं दूसरी ओर नितीश कुमार भी इसलिए घाटे में नहीं हैं क्योंकि वो कह सकते हैं कि एक दलित को मैंने आगे बढ़ाया किन्तु उन्होंने मेरा विश्वास तोड़ा है जो सच भी है बिहार की भावुक जनता इसपर भरोसा करेगी क्योंकि नितीश जी की निजी शाख माँझी से अधिक है उन माँझी का साथ देकर भाजपा वो करने जा रही थी जो किसी का घर फोड़ने के लिए उसके बिगड़ैल बच्चे का हौसला बढ़ाकर  किया जाता है । 

माँझी के सत्ता छोड़कर भागने में ही भाजपा की भी भलाई है !अन्यथा कहाँ तक ढो पाती वो इस पाप के पुलिंदे को !जोलगातार झूठ ही बोलता है !

        जीतन राम माँझी से मेल ,बिहार में बिगाड़ देता भाजपा का खेल ॥

      माँझी कभी गंभीर नहीं रहे यहाँ तक कि अपने भाषाई असंयम के कारण उन्होंने देश को कई बार शर्मिंदा किया है आप स्वयं सोचिए क्या हम लोग उस भारत में रह रहे हैं जिसमें 95 प्रतिशत लोग दूसरे की पत्नियों के साथ डेटिंग करते या घूमते हैं !

मध्यप्रदेश के बाबूलाल गौर हों या जीतनराममाँझी एक के हटाने को सही तो दूसरे को गलत नहीं कहा जा सकता !

    चूँकि मध्य प्रदेश में भाजपा ने भी एक मुख्य मंत्री के साथ ऐसा ही किया था इसलिए आज नितीश कुमार के द्वारा माँझी को हटाए जाने की बात को वो गलत कैसे कह सकती है और इससे  कैसे मिल जाएगी महादलितों की सहानुभूति ! इसलिए इस संपूर्ण प्रकरण में नैतिकता का लबादा ओढ़कर भाजपा यदि तटस्थ रह जाती और इसमें सम्मिलित हुए बिना दूर से देखती सारा खेल तो नितीश और माँझी के बीच चल रही उठापटक एवं अस्थिरता से त्रस्त जनता की पहली पसंद नैतिकता और स्थिरताके नाम पर भाजपा ही होती !उसके ऊपर जीतन राम माँझी को उकसाने का आरोप न लगने पता तो और अच्छा होता !यद्यपि आजकल राजनीति में ये सबकुछ चलता है किन्तु भाजपा से लोग संयम स्वच्छता एवं नैतिकता की अपेक्षा करते हैं वो विश्वसनीयता  बचाकर रखनी चाहिए भाजपा को  !

 माँझी के ऐसे छिछले बयान !

"परिवार का पेट पालने के लिए कालाबाजारी को सही बताने, थोड़ी शराब पीने को गलत न मानने, बिजली के बिल के सेटलमेंट के लिए घूस देने से और पेट भरने के लिए चूहा खाने से लेकर पुल के ठेकेदारों से कमिशन लेने की बात कह चुके हैं।"

                  -दैनिक जागरण

पढ़ें हमारा ये लेख भी -
 बारे जीतन राम माँझी साहब !वाह कमाल कर दिया !!कैसे माना जा सकता है कि दलितों का शोषण कोई कर पाया होगा कभी  कोई !!!  मनुस्मृति को गलत बताने वालों को भी माँझी जी ने समझा दिया कि मनुस्मृति की बातें गलत नहीं हो सकतीं किसी को समझ में भले ही देर से आवें  !मनुस्मृति को कोसने वाले अब भोगें ! भाजपा ने यू. पी.में भोगा  था अब जदयू वाले भोगें बिहार में ! 
       अब तो मनुस्मृति उन्हें भीsee more...http://samayvigyan.blogspot.in/2015/02/blog-post_6.html

                            

        

भाजपा को चाहिए कि वो मोदी जी के प्रभावी व्यक्तित्व को बचाकर रखे !

 पार्टी के स्थानीय कार्यकर्त्ता अपनी स्वयं की छवि जनसेवक  नेता की क्यों नहीं बना पा रहे हैं जिससे उनकी निजी पहचान भी पार्टी के विकास में सहायक हो ! योग्य ,अनुभवी ,कानून विद, भाषाविद तथा शालीन  भाषा भाषी एवं पार्टी के पक्ष में तर्क पूर्ण प्रस्तुति की क्षमता रखने वाले कुशल वक्ताओं को भी पार्टी से जोड़ने की जाए अतिरिक्त पहल !
    मोदी जी को ही हर जगह मोर्चा सँभालना पड़ता है आखिर क्यों ?पार्टी प्रांतों में कुछ  स्थापित नेताओं के अलावा भी तो प्रतिभावान कार्यकर्ता लोग होंगे पार्टी में उन्हें भी क्यों न प्रोत्साहित किया जाए !नई भर्तियों में परिचयवाद  परिवार वाद आदि भूलकर कार्यकर्ताओं के चयन में  प्रतिभावाद  को प्राथमिकता क्यों न दी जाए ! और उनके कंधों पर रखकर विकसित किया जाए स्थानीय नया नेतृत्व  ! 
      जनप्रिय लोकाकर्षक भावों को सौम्य भाषा में प्रकट कर पाने वाले नेता कहाँ हैं भाजपा में !आज टीवी चैनलों में भाजपा का पक्ष रखने वाले लोग घंटे घंटे भर की बहसों में कभी ये नहीं समझा पा रहे होते हैं कि आखिर वो क्या कहने को भेजे गए थे !क्या  कहना चाह रहे हैं और कह क्या रहे हैं पूरी पूरी बहसों में भाजपाई प्रवक्ताओं के चेहरे से जनाकर्षक भाव गायब होते हैं सब कुछ बनावटी सा लगता है उन्हें अपने पुराने नेताओं से क्यों कुछ सीखना नहीं चाहिए !
   आज भी मोदी जी अपनी बातों से जन भावनाओं के विशाल समुद्र को मथते हुए अपार भीड़ के हृदयों तक उतर जाते हैं अटल अडवाणी जोशी जी आदि और भी श्रद्धेय लोग बहस करते समय या भाषण करते समय हृदय  पक्ष  को भी साथ ले जाया करते थे जिससे उनकी बातें लोगों के हृदयों तक उतर जाया करती थीं तब होती थी सजीव बहस और उसका पड़ता था लोगों पर प्रभाव !आज केजरीवाल भी ऐसा करने में सफल हैं तो भाजपा की नई पीढ़ी का ध्यान आखिर है किधर ! केवल अपने से बड़े नेताओं का नाम ले लेकर चुनाव जीतने का अपरिपक्व खेल आखिर कब तक चलेगा !
     दिल्ली के चुनावों में मोदी जी को यदि इसप्रकार से अड़ाया न गया होता तो कम से कम उनकी शाख बचाई जा सकती थी जिनके बल पर कार्यकर्ता आज भी उत्साहित किया जा सकता है किन्तु आज दिल्ली का भाजपाई कार्यकर्त्ता न केवल निरुत्साहित है अपितु वो सत्ता से चिपकना चाहता है उसे  बचा कर रखना भाजपा के लिए बहुत जरूरी है जो केवल नैतिकता के आधार पर ही संभव है !
     बिहार में एकबार फिर दाँव पर लगाया जा रहा है मोदी जी के उसी व्यक्तित्व को !स्थानीय नेतृत्व के निष्प्रभावी होने से मोदी जी का प्रभावी व्यक्तित्व भी उतना असर नहीं छोड़ पाता है जितना होना चाहिए !  बंधुओ !भाजपा की दिल्ली पराजय का कारण 'आप' न होकर अपितु  भाजपा का अपना उदासीन नेतृत्व था !जिसकी कमजोरी के कारण ही दिल्ली भाजपा भाजपा पहले भी लगातार कई चुनाव हार चुकी थी । 
  अब भी कई ऐसे ही प्रांतों में प्रतिभावान लोगों को प्रस्तुत ही नहीं होने दिया जाता और प्रभावी रूप से कुछ परोस पाने  की उनकी अपनी क्षमता नहीं होती है! इसीलिए अनावश्यक रूप से बारबार लेना पड़ता है मोदी जी का नाम !जिसकी वहाँ जरूरत ही नहीं होती है ।  
     भारतीय जनता पार्टी में भी आज कार्यकर्ताओं की भर्ती का आधार परिवारवाद परिचयवाद नेतासमूहवाद चाटुकारितावाद आज हावी होते देखा जा रहा है ऐसी परिस्थिति में योग्य विद्वान अनुभवी सम्बद्ध विषयों की जानकारी रखने वाले अपनी बात को समझाने की क्षमता रखने वाले कार्यकर्ताओं का नितांत अभाव होता जा रहा है पार्टी की विचारधारा को समाज की स्वीकरणीय शैली में परोसने की शैली ही समाप्त होती जा रही है जो भाजपा की मुख्य पहचान रही है । नेताओं के पास अपनी बातों के समर्थन में न कोई ऐतिहासिक उदाहरण होते हैं न कोई गद्य गरिमा न कोई भाषा का लालित्य न कोई हाव भाव ! आजकल टीवी चैनलों पर घंटों चलने वाली बहसों  में भाजपा का पक्ष रखने वाले लोगों की भाषा में जनता को परोसा जाने वाला साधारणीकरण बिलकुल गायब होता जा रहा है, बहसों में व्यक्तिवैचित्र्यवाद के आधार पर केवल समय पार किया जाता है वही कुछ कानूनी आँकड़े बार बार पढ़कर रिपीट किए जा रहे होते हैं कई बार तो एंकर पूछ कुछ रहा होता है उत्तर कहीं और का होता है कई बार तो उत्तर देने के लिए उद्धृत किया जाने वाला उदाहरण इतना विस्तारित  एवं अरुचिकर होता है कि मूलबात  से उसका कोई सम्बन्ध ही नहीं रह  जाता है इससे मूल बात एवं उदाहरण दोनों भटक जाते हैं इस घालमेल से  जनता तक कुछ पहुँच ही नहीं पाता है । 
   श्रोताओं में अगर कुछ पढ़े लिखे लोग समझ भी पा रहे होंगे तो उनकी बातों से वो सहमत नहीं होते पत्रकार हों या विपक्ष के लोग वो आपकी सही बात भी क्यों टिकने देंगे और आम जनता आपकी बात समझ नहीं पा रही होती है इसलिए आम जनता के हृदयों तक पहुँचने के लिए भाजपा को हर जगह मोदी जी की जरूरत पड़ती है किंतु मोदी जी अब केवल मोदी जी ही नहीं हैं अपितु वो देश के प्रधानमन्त्री भी हैं और सत्ता में होने के कारण उनसे दस काम अच्छे होंगे तो एक बिगड़ भी सकता है जिसे विपक्ष के लोग जनता के सामने परोसने लगते हैं उसको दबाने के लिए जितना समय प्रांतों में मोदी जी को देना जरूरी होता है अब उतना वो वहाँ दे नहीं सकते उनकी तमाम मजबूरियाँ हैं इसीलिए भाजपा दिल्ली  चुनावों में सहल नहीं हो पाई  !
    जिन प्रदेशों में वहाँ के प्रांतीय नेता बिना मोदी जी के भी अपनी क्षमता के आधार पर जनता से हृदय के सम्बन्ध बना पाते हैं वहाँ वो अपने पुरुषार्थ से पार्टी की पहचान बनाने में सफल होते हैं ! वहाँ पार्टी की स्वाभाविक विजय होती है किंतु कुछ बाहरी नेता या अभिनेताओं के बलपर नहीं जीते जा सकते चुनाव अब हर किसी को विकास और विकास के लिए उसकी बातों पर विश्वास चाहिए । इसलिए जनता से अच्छे लोगों को लेकर उनके समर्पण ज्ञान गुण गौरव अनुभव आदि का भी उपयोग किया जाना चाहिए !

Thursday, 19 February 2015

शास्त्रीय ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हैं इसलिए उन्हें समझने के लिए संस्कृत जानना बहुत जरूरी है !

 किसी भाषा के ग्रन्थ का किसी भाषा में अनुवाद उपलब्ध होना बहुत अच्छी बात है किन्तु उस ग्रंथ की मूल भाषा यदि पता हो तो उसे समझने का स्वाद ही और होता है इसलिए संस्कृत समझने के लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान होना भी बहुत आवश्यक है !

     बाजार में खाना पीना से लेकर आजकल लगभग सभी कुछ उपलब्ध होने का मतलब ये तो कतई नहीं है कि उसी पर आश्रित होकर जीवन जिया जाए,बाजारू खाना कभी कभी स्वादिष्ट लग सकता है किन्तु पेट तो घर के खाने से ही भरता है इसी प्रकार से भारतीय संस्कृति में परिवारों की अवधारणा है अन्यथा पाश्चात्य देशों में तो बहुत लोग विवाह जैसे पवित्र बंधन को उतना महत्त्व कहाँ देते हैं जबकि भारतवर्ष की संस्कृति में जैसे जिंदगी को बाजार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है उसी प्रकार से कोई सनातन धर्मी विद्वान केवल अनूदित ग्रंथों को पढ़कर संतुष्ट कैसे हो सकता है !

    यद्यपि असंस्कृत विद्वानों के लिए बहुत ग्रंथों का अनुवाद विभिन्न भाषाओँ में श्रद्धेय विद्वानों के द्वारा  उपलब्ध कराया जा चुका है किन्तु भाषा ज्ञान के बाद शास्त्रों को अपनी दृष्टि से समझने का स्वाद ही और होता है जिसका अनुभव सुशिक्षित लोगों को होता है !

     हम सनातन धर्म की शास्त्रीय संस्कृति के लिए समर्पित होकर काम कर रहे हैं धार्मिक पाखंडों के विरुद्ध आवाज उठाना अपराध नहीं मान रहे हैं लोगों को संस्कृत पढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं हमारे विचारों से जरूरी नहीं कि सब लोग सहमत हों उस पर वो अपने विद्या बुद्धि के अनुशार प्रतिक्रिया करने के लिए स्वंतत्र हैं ये उनका अधिकार है किन्तु  जो संस्कृत को पढ़े हैं या पढ़ना चाहते हैं उन्हें तो आनंद लेने दें रास्ता रोककर खड़े होने की आदत ठीक नहीं है संस्कृत पढ़ना कठिन है मानता हूँ इसलिए जिनके बश का नहीं है उन्हें संस्कृत के प्रचार प्रसार में परेशानी होना स्वाभाविक है उन्हें हमारी बातें बुरी लग सकती हैं किन्तु जो संस्कृत  जानते हैं उन्हें पता है कि संस्कृत के मूल ग्रंथों को समझने के लिए संस्कृत का ज्ञान कितना आवश्यक है !और सनातन धर्म के आकर ग्रंथों का अध्ययन किए बिना धर्म के मर्म तक पहुँच पाना संभव ही नहीं है । वैसे भी कोई व्यक्ति कितना भी प्रयास करे किन्तु सृष्टि में विभिन्न प्रकार  की मानसिकता रखने वाले सभी लोगों को एक साथ एक बात से खुश नहीं किया जा सकता इसलिए अपने लेखन में हम विभिन्न विषय सम्मिलित करते चले आ रहे हैं उसी श्रृंखला में संस्कृत भाषा के ज्ञान सम्बन्धी विचार हमने संस्कृत विद्वानों या विद्यार्थियों के लिए लिखे हैं । जब हमें संस्कृत विद्वानों और असंस्कृत विद्वानों में एक पक्ष  को ही चुनना है तो किसी लेख में संस्कृत विद्वानों विद्यार्थियों और शास्त्र का पक्ष लेने में क्या बुराई है !जिससे  बाकी लोगों को जो लगे सो लगे शास्त्रीय विद्वान तो प्रसन्न होते ही हैं !बाकी समाज में जो जिस स्तर के लोग हैं उन्हें उस स्तर के लोगों का साथ मिल ही जाता है इस धरती पर विद्वानों की कमी नहीं है !एक से एक बड़े विद्वान इस भूमण्डल पर विराजते हैं । 

Digree

                                           फर्जी डिग्री
  सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों में ज्योतिषाचार्य एक डिग्री है जो एम.ए.के समकक्ष होती है इस दृष्टि से ज्योतिषाचार्य  का मतलब ज्योतिष विषय में एम.ए.की डिग्री हासिल करने वाला होता है जिसके लिए पाठ्य क्रम के हिसाब से लगभग बारहवर्ष पढ़ना पड़ता है ।
     ऐसी परिस्थिति में जो लोग बिना किसी सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालय से ज्योतिषाचार्य की डिग्री हासिल किए भी अपने नाम के साथ ज्योतिषाचार्य जैसी बड़ी डिग्री  का उपयोग करते हैं या टी.वी.चैनलों पर ज्योतिषाचार्य के  रूप में ही अपने को प्रचारित करवाते हैं । 
     अतः 'ज्योतिषाचार्य' नाम की डिग्री किसी सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालय से हासिल करने का क्या महत्त्व है और जो ऐसी कोई डिग्री लिए बिना भी अपने नाम के साथ 'ज्योतिषाचार्य' लिखते हैं उसे कितना अनुचित माना जाए ? ऐसा करना क्या अपराध की श्रेणी में आता है ?और यदि हाँ तो ऐसे लोगों के विरुद्ध क्या कुछ कार्यवाही का प्रावधान है और ऐसे लोगों की शिकायत किससे की जा सकती है ?

                              सूचना प्रसारण मंत्रालय (फर्जी डिग्रीका प्रचार प्रसार )
      सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों में ज्योतिषाचार्य एक डिग्री है जो एम.ए.के समकक्ष होती है इस दृष्टि से ज्योतिषाचार्य  का मतलब ज्योतिष विषय में एम.ए.की डिग्री हासिल करने वाला होता है जिसके लिए पाठ्य क्रम के हिसाब से लगभग बारहवर्ष पढ़ना पड़ता है ।
     ऐसी परिस्थिति में जो लोग बिना किसी सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालय से ज्योतिषाचार्य की डिग्री हासिल किए भी अपने नाम के साथ ज्योतिषाचार्य जैसी बड़ी डिग्री का उपयोग अपने प्रचार प्रसार के लिए करते हैं या टी.वी.चैनलों पर ज्योतिषाचार्य के  रूप में ही अपने को प्रचारित करवाते हैं । 
      ऐसे लोगों के नाम के साथ फर्जी डिग्रियाँ लगा लगाकर प्रचारित करने वाले मीडिया माध्यमों पर अंकुश लगाने का क्या कुछ प्रावधान है ?ऐसा करने वाले टी.वी. चैनलों की शिकायत किससे की जा सकती है ? 

      

                                    

कुछ टीवी चैनल ज्योतिष एवं धर्म के क्षेत्र में गधों को घोड़े बनाने की कसम सी खा चुके हैं

 


 कुछ लोग मानते हैं कि ज्योतिष को नहीं मानना चाहिए !
बंधुओ ! ऐसे लोग हमें भी जब मिले मैंने उनसे पूछा कि ज्योतिष आप जानते हैं आपने पढ़ी है क्या ?तो बोलते हैं कि पढ़ी नहीं है और न ही ज्योतिष जानता हूँ किंतु ज्योतिष अंध विश्वास है ये मानता हूँ !इस पर पैसे और समय बर्बाद नहीं करना चाहिए !
   बंधुओ ! ऐसा कहने वाला निंदनीय एवं  वैचारिक नपुंसक वर्ग है जो बिना कुछ जाने समझे बिना किसी आधार सबूत प्रमाण के किसी को भी चोर चरित्रहीन आदि कुछ भी कह देता है जिसके तर्क उसके पास कुछ भी नहीं होते हैं।इसलिए जिन लोगों ने जो विषय सब्जेक्ट रूप में पढ़ा न हो उसे बिना किसी आधार के गलत सिद्ध नहीं कर देना चाहिए !

     जो समझदार लोग ज्योतिष को विज्ञान इसलिए नहीं मानते हैं कि ज्योतिष गलत है उनसे निवेदन  ! 
    ऐसे लोगों को इसके लिए प्रयास करके ऐसा कोई आयोजन करना चाहिए जिसमें सौ दो सौ पाँच सौ अपरिचित लोगों की शुद्ध जन्मपत्रियाँ लेकर बैठा जाए और यदि उन लोगों के विषय में बताई गईं उनसे संबंधित ज्योतिष की बातों में से 70 प्रतिशत तक सच निकल जाए तो ज्योतिष को विज्ञान मानने में किसी को क्यों आपत्ति होनी चाहिए !
       यदि ज्योतिष विज्ञान होता तो 70 प्रतिशत क्यों सौ प्रतिशत सच क्यों नहीं बताया जा सकता ?
बंधुओ !विज्ञान भी किसी चीज की सौ प्रतिशत गारंटी नहीं देता है रोगी के इलाज से लेकर यंत्र निर्माण तक हर कुछ आधा अधूरा ही है किंतु अंतर इतना है कि वहाँ उन विषयों में जिसके पास जो डिग्रियाँ हैं वही प्रमाण माने  जाते हैं उन्हीं की बातें सुनी जाती हैं और उन्हीं के विचारों पर भरोसा किया जाता हैं किन्तु ज्योतिष में झोलाछाप लोगों पर किसी कठोर कार्यवाही का प्रावधान न होने से दुनियाँ का बहुत बड़ा अशिक्षित वर्ग ज्योतिषी होने का लेवल लगा कर जो ज्योतिष के सैद्धांतिक पक्ष में भी टाँग अड़ाए खड़ा है ये वर्ग ज्योतिष का सच समाज के सामने आने ही नहीं दे रहा है क्योंकि इससे उस वर्ग के बेनकाब होने का खतरा है !

        ज्योतिष के क्षेत्र में मीडिया और नेताओं का रोल इतना अहम है  कि वो जिस नेता के साथ फोटो खिंचा लें वो अपने नाम के साथ ज्योतिषाचार्य लिखने लगता है इसी प्रकार से जो ज्योतिषकर्मी  टी.वी.चैनलोंपर बैठकर बोलने लगता है वो तो अपने नाम के साथ ज्योतिषाचार्य लिखने ही लगता है साथ ही टी.वी.चैनल भी उसे ज्योतिषाचार्य कहकर प्रचारित करने लगता है !

       

  कुछ भी ज्योतिष के विषय में कुछ भी बोलने लगता है     को

    ज्योतिष एवं धर्म के विषय में जिन लोगों ने किसी भी विश्व विद्यालय से जो डिग्रियाँ ली ही नहीं होती हैं ऐसे लोगों की प्रशंसा में वे भी बोला करते हैं ये टी.वी.वाले !  

 ज्योतिष को गलत कहने वाले लोग प्रायःपढ़े लिखे तथा ज्योतिष के विषय में शून्य एवं अहंकारी होते हैं !

ये अपने बीबी बच्चों को अपने अहंकार के दायरे से बाहर निकलने ही नहीं देते हैं जो ये जानते हैं उसकी तो किस्से कहानियाँ झूठ साँच बना बनाकर सुनाया करते हैं झूठ मूठ में बताया समझायाकरते हैं कि  कहाँ कितने कलट्टरों मंत्रियों ने उन्हें मनाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने उन्होंने ये स्वीकार ही नहीं किया कि ज्योतिष विज्ञान है क्योंकि ऐसे लोग अपने को इस दुनियाँ का अंतिम पढ़ा लिखा एवं अंतिम वैज्ञानिक मान चुके होते हैं किन्तु इनकी ऐसी धारणाओं के पीछे ज्योतिष शास्त्र की कोई गलती नहीं होती है प्रत्युत वो स्वयं ही मनोविकार के शिकार होते हैं । 

जो लोग अपने अज्ञान,लापरवाही एवं कंजूसी की आदत के कारण कभी किसी ज्योतिषाडंबरी के नाटक में फँसाए जा चुके होते हैं ऐसे लोग बिना किसी कारण के अपनी भड़ास ज्योतिष शास्त्र पर निकाला करते हैं !

ऐसे लोग  कई बार ऐसे लोग किसी के द्वारा उसके विषय में कही गई किसी ज्योतिष कर्मी की कोई बात पकड़े बैठे होते हैं कि उसने मेरे विषय में ऐसा कहा था किन्तु हुआ नहीं !
     बंधुओ ! ऐसे अकर्मण्य और कंजूस लोग ज्योतिष के लिए कहीं जाना न पड़े किसी को कुछ देना न पड़े इस भावना से रास्ते चलते अपनी डेट ऑफ बर्थ बाँटा करते हैं यह सोच कर कि ये हमारा भविष्य बताएगा !मित्रो !ऐसे दरिद्र वर्ग को भविष्य बताने वाले भी उसी की तरह के मिलते हैं ईश्वर ने हर किसी का जोड़ा बना रखा है वो कुंडली तो जानते नहीं होते हैं वो कभी प्लेयिंग कार्ड देखकर,कभी चड्ढी बनियान जूते मोज़े आदि देख सूँघकर भविष्य बताने के नाम पर अच्छीखासी बटरिंग करके ऐसे वर्ग के मुख से अच्छा खासा धन निकाल लेते हैं अब बारी आती है उपाय बताने की तो ऐसे लोग वेद मंत्र पढ़े नहीं होते इसलिए ये नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीजों को बनाने बेचने या कुछ लोग इसकी दलाली करके इकठ्ठा करते हैं अच्छा खासा धन !ने के पास काफी के नाम

सरकारी संस्कृतविश्वविद्यालय 12 वर्ष ज्योतिष पढ़ाने के बाद ज्योतिषाचार्य (ज्योतिष एम.ए.)की डिग्री देते हैं किंतु मीडिया बिना पढ़े लिखे लोगों को डायरेक्ट बना देता है "ज्योतिषाचार्य"!

 ऐसे लोग सोचते हैं कि मुझे मुख भगवान ने दिया ही गंदगी बकने को है इतना गन्दा वर्ग है किंतु ये वो एक प्रश्न का उत्तर नहीं क्या ज्योतिष को मानना अंध विश्वास

Wednesday, 18 February 2015

मोदी जी के सूट की नीलामी !जन भावना को नमन ! बारे लोकतंत्र ! ऐसा करने के लिए प्रधानमंत्री जी को बधाई !

मोदी जी का सूट अब होगा नीलाम, लोकभावना के सम्मान को सलाम  ॥ 

    ये है लोकतंत्र की सच्ची उपासना, जहाँ जन भावना को ही सर्वोपरि रखकर चलना होता है !

     इसी लोकतंत्र की रक्षा हेतु रामायण के इतिहास में कितनी बढ़ी घटना घट चुकी है जो आज भी लोगों के गले नहीं उतरती है कि एक धोबी के कहने पर राजरानी सीता को मिला होगा बनवास ! चूँकि विश्व की किसी संस्कृति के इतिहास में आज तक लोकतंत्र की रक्षा के लिए इतने बड़े बलिदान का कोई उदाहरण नहीं मिलता इसी कारण "रामराज्य"आजतक किसी शासन सत्ता से तौला  नहीं जा सका है ।  सीता जी से अपार स्नेह रखने वाले प्रभु श्री रामजी को विश्वास था कि सीता  जी निर्दोष हैं यह माता सीता को भी पता था साथ ही यह भी पता था कि इस विषयमें कोई किसी की मदद नहीं कर सकता इसमें हमें ही कूदना होगा इसीलिए प्रभु की भावना और विवशता से सुपरिचित माता सीता ने रामराज्य के विमल यश में खरोंच न आने देने के लिए ही तो बनवास का वरण किया था अन्यथा एक धोबी की बातों को महत्व देकर जंगल क्यों चली जातीं !ये है लोकतंत्र की सच्ची साधना !अन्यथा यदि न जातीं तो क्या हो जाता !किन्तु लोकतंत्र में जनमत के चरणों में चढ़ाना ही होता है अपनामत !अन्यथा लोकतंत्र किस बात का !

 इसी भावना से सही दिशा में अग्रसर मोदी जी को बहुत बहुत बधाई पुनः एक बार  !

  "बंधुओ !मोदी जी का मंदिर भी बनाया गया था जो मोदी जी की नाराजगी के बाद तोड़ा गया ॥"

इसी विषय में पढ़ें  हमारा यह लेख भी - 

"मोदी जी कोट नहीं तो क्या लँगोट पहनकर बैठ जाते ओबामा के सामने !आखिर क्यों उठाए जा रहे हैं कोट पर प्रश्न ?"see more... http://samayvigyan.blogspot.in/2015/02/blog-post_5.html

Tuesday, 17 February 2015

प्रेम के महान पर्व शिवरात्रि को मानने वाला कोई हिंदू मजनुओं वाले वेलेंटाइन डे को क्यों मनाएगा !

पति पत्नी के पवित्र प्रेम के महान पर्व शिवरात्रि पर आप सभी भाई बहनों को कोटि कोटि बधाई !भगवती की कृपा से आप सभी का वैवाहिक जीवन मंगलमय  हो भगवान शिव एवं माता पार्वती की चरण शरण में मन लगा रहे !

   दो.   आज महाशिव रात्रि का पावन पर्व पुनीत ।

         शंभु चरण चित  लाइए भजहु शंभु जग जीत ॥


प्रेम का महान पर्व शिवरात्रि -

भगवान शिव की प्रिय पत्नी जगज्जननी  माता सती ने अपने पति प्रेम में इतना समर्पित थीं कि पिता दक्ष के द्वारा भी किया गया पति का अपमान सहा  नहीं था किंतु पिता का गौरव भी बनाए और बचाए रखने के लिए पिता से कुछ कहा नहीं मध्यम मार्ग निकालते हुए पति प्रेम में समर्पिता माता सती  ने अपना शरीर छोड़ दिया था । यह समाचार सुनते ही भगवान शिव ने अपने सारे सहज श्रंगार तक छोड़ दिए थे सती का शरीर लेकर पागलों की भाँति नाचते रहे इसी प्रकार सती के प्रेम में समर्पित भावना  से जगह जगह भटकते और विरह की ज्वाला में  जलते रहे !तब माता सती ने गिरिजा जी के रूप में अवतार लिया और उद्घोष किया कि मैं विवाह करूंगी तो भगवान शिव से अन्यथा क्वाँरी बनी रहूँगी !इसके लिए उन्हें कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा अंत में माता पार्वती और भगवान शिव का मिलन आज के दिन ही हुआ था!उस जन्म जन्मान्तर तक चलने वाले परं प्रेम की यादगार का दिन है  महाशिवरात्रि !

     बंधुओ ! हिंदू धर्म को से जुड़े हर व्यक्ति को पता है जिस कन्या का विवाह न होता या पति के साथ संबंधों में अनबन चलती रहती है ऐसी कन्याएँ या स्त्रियाँ माता पार्वती  की आराधना करके अपने वैवाहिक जीवन को मधुर बनाया करती हैं ।इस प्रकार से माता पार्वती ने केवल अपना पति प्रेम ही नहीं बनाया  और बचाया अपितु अपनी भक्त कन्याओं स्त्रियों को वैवाहिक सुख प्रदान करती आ रही हैं !इस पुनीत पर्व पर भगवान शिव और माता पार्वती को कोटिशः प्रणाम !

Monday, 16 February 2015

बलात्कारियों को फाँसी देने से अपराध रुकेंगे या भ्रष्टाचारी नेताओं पर कठोर अंकुश लगते ही रुक सकते हैं सभी प्रकार के अपराध !

    नेता यदि किसी गंदे धंधे से जुड़े नहीं होते तो सैकड़ों रूपए के नेता बिना कुछ किए धरे करोड़ों अरबों के कैसे  हो जाते हैं !
     चुनावी सफलता मिलने पर अचानक कानून से ऊपर उठ जाने वाले नेताओं पर अंकुश लगाएगा आखिर कौन !नेता किसी पर भी अंकुश लगा सकते हैं किन्तु नेताओं पर कोई नहीं !और तो और सफल नेताओं का अनुगमन कानून स्वयं करने लगता है अपराधी नेताओं पर कार्यवाही शुरू होते ही बदले की राजनीति करने के आरोप लगने लगते हैं आखिर कैसे हो भ्रष्टाचार का उन्मूलन और ऐसा किए बिना कैसे रोके जा सकते हैं अपराध !
    राजनीति में जाते समय समाज के चंदे से काम चलाने वाले नेताओं के पास करोड़ों अरबों रूपए आते आखिर कहाँ से हैं ऐसे स्रोतों का पता लगाए बिना  बड़े बड़े अपराधियों तक पहुँच पाना केवल कठिन ही नहीं असंभव भी है !इसके बिना अपराध रोकने की बात करना सरासर झूठ है । 
     
   सैकड़ों रूपए के नेता राजनीति में घुसते ही करोड़ों अरबों रूपए के कैसे  हो जाते हैं आखिर कैसे इसके लिए न वो कोई धंधा व्यापार करते हैं और न ही अपने बिलासिता पूर्ण खर्चों में कोई कटौती फिर भी इनके पास अकूत संपत्ति इकट्ठी होती आखिर कैसे है ! यदि ये किसी गंदे धंधे में सम्मिलित नहीं रहे हैं तो  बताएँ न अपना बिना कुछ किए धरे धन इकट्टा करने का जादू !जनता भी वही कर लेगी धन इकट्ठा करने क्या आदमी राजनीति में जाता किसलिए है । 
   जनता के पैसे की बर्बादी करने वाले ऐसे सभी नेता उन लोगों से सीख ही लेने को तैयार नहीं हैं जो दस दस पंद्रह पंद्रह वर्ष तक लगातार जनता का विश्वास कायम रखने में सफल रहते हैं । इन राजनैतिक बीमारू राज्यों में तो जिस पार्टी की सरकार चुनी जाती है उससे जनता पाँच वर्ष तो छोड़िए पाँच महीन में ही ऊभ जाती है किन्तु नेताओं की सेहत पर कोई असर ही नहीं पड़ता ये इतने मक्कार हैं कि इन्हें दोष हमेंशा दूसरी पार्टियों और नेताओं के तो दिखते हैं किन्तु अपने कर्मों के विषय में कभी नहीं सोचते कि जनता का भरोसा आखिर हम क्यों नहीं जीत सके !

   केवल अखिलेश ही क्यों लगभग हर नेता आज यही तो कर रहा है जनता बहुत जोर से भड़भड़ा रही है किन्तु करे तो क्या करे! जनता एक पार्टी को बहुमत देती है फिर इन्हीं आचरणों के कारण जनता का उससे मोह भंग हो जाता  है फिर तीसरे को देती है ऐसे पार्टियाँ और नेता बदलते जा रहे हैं किंतु कोई ईमानदार नेता और पार्टी जनता को मिल नहीं पा रही है जिस पर विश्वास करे खोज जारी है 'जिन प्रदेशों में नेता विश्वास जीतने में सफल हैं वहाँ सरकारें स्थिर हैं और विकास हो भी रहा है । 

    आजकल नेताओं के भाषण सेवा भावना एवं जनता के विकास के होते हैं भ्रष्टाचारी नेताओं की निंदा की जाती है यह सब सुनकर इसी के आधार पर जनता वोट दे देती है बाद में वो भी वही करते हैं जो अन्यलोग करते रहे हैं  सैकड़ों रूपए के नेता राजनीति में घुसते ही करोड़ों अरबों रूपए के हो जाते हैंआखिर कैसे ?


 

Sunday, 15 February 2015

अरविंद केजरीवाल जी के शपथग्रहण में उपराज्यपाल महोदय के उच्चारण में अशुद्धि !

           " शुद्धअंतःकरण या शुद्धअंतकरण "

    अरविंद केजरी वाल जी के शपथ ग्रहण समारोह में  उपराज्यपाल नजीब जंगसाहब ने बार बार " शुद्धअंतःकरण की जगह शुद्ध अंतकरण " बोला !जबकि अरविन्द जी ने शुद्ध बोला था । 

    जहाँ बात शपथ की हो वो भी ईश्वर की वो भी मुख्य मंत्री जैसे गौरवमय पद पर आसीन होने की उसमें गलती वो भी उपराज्यपाल  जी जैसे सम्माननीय लोगों से ,जिसमें पढ़नी ही चार लाइनें होती हैं सारे  विश्व का मीडिया सुन रहा होता है । क्या इसका अभ्यास पहले से नहीं किया जाना चाहिए था !

बंधुओ !  अंतःकरण  का अर्थ हृदय जबकि अंतकरण का अर्थ समाप्त करना होता है !

संपूर्ण वाक्य ये था -

        मैं अरविंद केजरीवाल ईश्वर की शपथ लेता हूँ.……………………। इसी के आगे है "मैं मुख्यमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धा पूर्वक और शुद्ध अंतकरण से निर्वहन करूँगा ।" 

   एक तरफ ईश्वर की कसम खाना दूसरी ओर मुख्यमंत्री जैसे बड़े पद की शपथ दिलाना उसमें कर्तव्य निर्वाह की प्रतिज्ञा अंतकरण अर्थात समाप्त करने के अर्थ में की जा रही हो ।

      बंधुओ इसे शपथ माना जाए या न माना जाए या आधी अधूरी माना जाए या गलत माना जाए !

 इतने बड़े पदों के दायित्व निर्वाह के लिए ली जाने वाली शपथों में इस प्रकार की लापरवाहियाँ  कहाँ तक उचित हैं !

क्या दिल्ली सरकार में धरना प्रदर्शन का काम सँभालेंगे केजरीवाल !आखिर उन्होंने क्यों नहीं लिया है कोई मंत्रालय !

      जनता से किए गए अधिकाँश वायदों को पूरा करने के लिए केजरीवाल जी को उन सरकारों से सहयोग लेना होगा जिन पार्टियों की ईमानदारी पर वे शक करते रहे हैं ऐसे में उनसे सहयोग की अपेक्षा वे कैसे कर सकते हैं और वो सरकारें ऐसा करने के लिए बाध्य कैसे हैं ऐसे में अपनी माँगें मनवाने के लिए धरना प्रदर्शन के अलावा और विकल्प ही क्या बचता इनके पास !

     इस सरकार के हर मंत्रालय के कार्यों से सम्बंधित जनता को जो आश्वासन दिए गए हैं वो अन्य सरकारों का सहयोग लेकर ही पूरे करना है वे उन पार्टियों की सरकारें हैं जिन्हें केजरीवाल जी भ्रष्ट बेईमान आदि कहते रहे हैं तो उनसे अच्छे सहयोग की उम्मींद इन्हें करनी भी नहीं चाहिए आखिर उनका भी आत्म सम्मान है !साथ ही केंद्र सरकार की प्रमुख पार्टी के वर्तमान मुखिया पहले ही कह चुके हैं कि दिल्ली में हमसे डरने वाली सरकार चाहिए ऐसे डराने के शौकीन लोगों से सहयोग की अपेक्षा ! हाँ वैधानिक सहयोग तो उन्हें भी करना ही होगा किन्तु इतने भारी भरकम वायदे उतने से पूरे कैसे हो पाएँगे !

     इसलिए केजरीवाल सरकार में जिन्होंने मंत्रालय लिए हैं उन्हें भी काम काज तो जस तस बाक़ी  धरना प्रदर्शन ही अधिक करना होगा इसके अलावा उनके पास काम क्या है अर्थात वो आखिर करेंगे क्या ! दिल्ली के कई बड़े काम पड़ोसी राज्यों पर निर्भर हैं यूपी हरियाणा से पानी आता है बिजली हिमाचल उत्तराखंड से बिजली आती है केंद्र सरकार से काम करने के लिए फंड मिलता है योजनाएँ पूरी करने के लिए जमीनें मिलती हैं रही बात साफ सफाई नाले नालियों की वो निगम के हाथ हैं  रही बात पुलिस व्यवस्था की तो वो केंद्र सरकार के हाथ में है और भी बहुत सारी योजनाएँ दूसरों तीसरों के आधीन हैं ।   

      पीने वाले पानी की ही बात लें तो नियम है कि सीवर के पाइप पीने वाले पानी के पाइप से नीचे डाले जाने चाहिए ताकि सीवर के पाइप से निकलने वाला गन्दा पानी पीने वाले पानी के पाइप पर न गिरे किन्तु पीने वाला पानी दिल्ली सरकार का और सीवर वाला निगम का और निगम वालों ने सैकड़ों जगह डाल रखे हैं इसी प्रकार के पाइप और आगे नहीं डालेंगे इसकी क्या गारंटी !और यदि ऐसा ही होता रहा तो गंदे पानी की समस्या का समाधान कैसे करेंगे केजरीवाल जी !क्योंकि जलबोर्ड के पाइप अनेकों जगहों पर गल चुके हैं जिन्हें बदले बिना साफ पानी की परिकल्पना कैसे की जाए !और पाईप बदलने में दो बड़ी समस्याएँ हैं पहला तो फंड जो केंद्र सरकार के आधीन है और दूसरा समय अर्थात फंड मिल भी जाए तो पाइप बदलने के लिए समय तो चाहिए किन्तु जनता में इतना  धैर्य कहाँ है जिसने मोदी जी विरुद्ध नौ महीने में ही फैसला सुना दिया वो केजरीवाल  जी को क्यों पाँच वर्ष दे देगी !और बात बात में अपने कार्य न कर पाने के लिए दूसरी सरकारों को दोषी ठहराया जाना भी बर्दाश्त नहीं करेगी !आखिर जनता को आश्वासन आपने अपने बल पर दिए हैं इसलिए जनता से वायदे करने से पूर्व दिल्ली सरकार की क्षमताओं का अध्ययन तो किया ही जाना चाहिए था ।इसलिए इस सरकार के प्रमुख अस्त्र शस्त्र धरना प्रदर्शन ही होते दिख रहे हैं !

   केजरीवाल जी को अपने आंदोलन के माध्यम से प्रसिद्ध पहचान दिलाने वाले अादरणीय अन्ना हजारे जी एवं उनके आंदोलन रूपी दही को विलोने से निकले आम आदमी पार्टी  रूपी मक्खन का और अधिक विस्तार करने के लिए सुना है कि अादरणीय अन्ना हजारे जी अपने धरना प्रदर्शन का कार्यक्रम पुनः प्रारम्भ करने जा रहे हैं किन्तु ये बात न तो हमसे किसी ने बताई है और न ही हम किसी को बता रहे हैं ये अनुमान हमारा है अनुमान ही आप भी लगाइए !हमारा अनुमान तो ये भी है कि वायदे पूरे न होने पर जनता की फजीहत झेलने के बजाए त्याग प्रधान  पार्टी इस असफलता का सारा ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ कर बिसर्जन कर सकती है अपनी सरकार और ये आम आदमी पार्टी की ये सारी  राम लीला मंडली रामलीला मैदान पहुँचकर करने लगे पुनः धरना प्रदर्शन !

    खैर ,निजी तौर  हमारी ओर से इस सरकार  को बहुत बहुत  शुभ कामनाएँ !


Wednesday, 11 February 2015

मोदीलहर के लोभ में अलसाई भाजपा को बहा ले गईं लहरें केजरीवाल की !

भाजपा को जिताने का ईमानदार प्रयत्न भी नहीं किया जा सका !चुनाव लड़ने की तैयारियाँ अंत तक चलती रहीं !

    अब बात मोदी लहर की !-

  बंधुओ ! यदि ये बात भाजपा के लोगों की समझ में आ जाए कि मोदी लहर तब भी नहीं थी जब मोदी सरकार बनी थी ! अपितु आजकल सरकारों से असंतुष्ट जनता मजबूरी में डालने जाती है वोट !ऐसे में मोदी लहर या किसी नेता की लहर कैसे हो सकती है और                                         यदि होती भी तो किस बात से ! अपने काम भी तो देखने चाहिए देश में UPA और  NDA दो बड़े गठबंधन हैं UPA सरकार की नीतियों से त्रस्त जनता ने उसपर रोष प्रकट किया और पराजित कर दिया तो NDA को जीतना ही था इसके अलावा जनता के पास और कोई विकल्प था ही नहीं या तो चुनावों का बहिष्कार करती किन्तु कब तक !इसलिए UPA को हराने के लिए NDA को जिताना ही था इसमें लहर कहाँ किसकी और क्यों होती !       

        माना कि UPA सरकार की नीतियों से जनता त्रस्त थी किन्तु NDA से भी तो खुश नहीं थी क्योंकि NDA का कोई नेता UPA सरकार की गलत नीतियों का विरोध करने के लिए प्रभावी रूप से जनता के साथ खड़ा नहीं हुआ !अकर्मण्य विपक्ष की भूमिका का निर्वाह अन्ना और बाबा जी को निभानी पड़ी जबकि ये काम NDA का था !इस विषम परिस्थिति में मोदी जी और अमित शाह जी तो कभी  जनता को हिम्मत बँधाने भी नहीं आए फिर उनकी लहर यदि होती भी तो किस बात के लिए !

          प्रधानमंत्री पद की दौड़ में उस समय मोदी जी ,राहुल गांधी जी और अरविन्द केजरी वाल तीन लोग दिखाई देते थे उसमें सबसे मजबूत अनुभवी एवं उम्रदराज मोदी जी ही थे इसलिए जनता ने उन्हीं का विकल्प चुना !उसे लगा कि ये काम करेंगे काम करने को कह तो ये अभी भी रहे हैं किन्तु करना कब शुरू करेंगे इसका पता ही नहीं चल पा रहा है ! और जो काम ये कर भी रहे हैं उसके लाभ हानि का असर जब तक जनता पर पड़ेगा तब तक तो तमाम केजरीवाल तैयार हो जाएँगे और ये लहर लिए बैठे रहेंगे ! 


पक्ष लिया




यदि    अपराध समर्थक नहीं है की इसलिए कार्यकर्ता के लिए गर्व का विषय है !

 की हार का कारण     इसलिए अपराध समर्थक नहीं है   


हीं है के कारण नहीं हारी की पराजय का कारण उसका नहीं मुझे इसका अभी भी गर्व है !


 भाजपा के सिद्धांतों और में भ्रष्टाचार नहीं है भ्रष्टाचारी नहीं है

भाजपा की पराजय का कारण उसकी अकर्मण्यता हो सकती है किंतु भ्रष्टाचार नहीं है

भाजपा हारी अपने कर्मों से किन्तु घपले घोटाले के कारण नहीं

 भाजपा की हार का कारण और कुछ भी हो किन्तु उसके घोटाले भ्रष्टाचार आदि

भाजपा को  कोसना ठीक नहीं है

Tuesday, 10 February 2015

राजनैतिक पार्टियाँ पवित्रता का नारा देकर सत्ता में आती हैं फिर स्वच्छता की बातें करती हैं के लिए केवल विज्ञापन करती हैं काम किसी के लिए कुछ नहीं !

     केवल 'स्वच्छ भारत अभियान' क्यों ? देश में सारा अपराध एवं भ्रष्टाचार पवित्रता के अभाव में है न कि स्वच्छता के !  

   राजनैतिक पार्टियाँ पवित्रता का नारा देकर सत्ता में आती हैं फिर स्वच्छता की बातें करने लगती हैं और अंत में न पवित्रता के लिए कुछ कर पाती हैं और न ही स्वच्छता के लिए !निराश होकर जनता किसी और पार्टी की ओर बड़ी आशा से मुड़ जाती है वहाँ से भी निराश होकर लौट आती है फिर कोई और विकल्प चुनती है कुल मिलाकर जनता वर्तमान राजनैतिक कार्यशैली से बुरी तरह निराश है इसलिए अब समय आ गया है जब सुशिक्षित ,ईमानदार एवं जनसेवक वर्ग को बिना किसी निजी महत्वाकाँक्षा के राजनैतिक क्षेत्र में कदम रखना चाहिए !

     राजनैतिक एवं सामाजिक पवित्रता के लिए भी कोई ठोस कार्य करना चाहिए न कि केवल स्वच्छता के लिए !क्योंकि  पवित्रता के अभाव में देश का सारा ताना बना बिगड़ रहा है परिवार टूट रहे हैं समाज छिन्न भिन्न हो रहा है उसके लिए क्या योजना है?क्या किया जा रहा है! पवित्रता की आज बहुत बड़ी आवश्यकता है !

  बंधुओ ! पहले से फैली हुई गन्दगी को साफ करना स्वच्छता एवं गंदगी को फैलाने से ही बचने की भावना पवित्रता है गंदगी से अभिप्राय सभी प्रकार की गंदगी से है भले  वो भ्रष्टाचार की ही गन्दगी क्यों न हो !उसे भी पैदा ही न होने देना पवित्रता की भावना है !

       स्वच्छता अभियान के नाम पर जिस तरह से बड़े बड़े सेलिब्रेटी आज जगह जगह झाड़ू पकड़ कर खड़े हो जाते हैं और फोटो खिंचाने लगते हैं ये ऐसे अभियान को प्रारम्भ करने के लिए तो ठीक है किन्तु दायित्व उनका भी कुछ और अधिक ईमानदारी पूर्वक स्वच्छता पूर्वक प्रोत्साहित करना बनता है !

    यदि वास्तव में झाड़ू लगाने वालों ने भी इनकी नक़ल करनी प्रारम्भ कर दी तो कैसे हो पाएगी सफाई क्योंकि इन सैलिब्रेटियों को तो झाड़ू पकड़नी भी नहीं आ  रही है ये तो जिस तरह से झाड़ू पकड़कर खड़े होते हैं उससे ये नहीं लगता है कि स्वच्छता अभियान में सम्मिलित हैं अपितु ये लगता है कि ये झाड़ू लगाने वालों को चिढ़ा रहे हैं !

        भारत की पहचान पवित्रता से है केवल स्वच्छता  क्यों पवित्रता क्यों नहीं ?  भारत की प्यास पवित्रता है आज पवित्रता को पाने की तड़फ में दहक रहा है देश उसे केवल स्वच्छता के कुछ  छींटे देकर संतुष्ट नहीं किया जा सकता !  

    नवरात्रि की पवित्र अष्टमी जो कन्यापूजन पर्व के रूप में सारे विश्व में प्रसिद्ध  है कन्याओं का महत्त्व बढ़ाने के लिए इसे मनाने का सुअवसर वर्ष में दो बार ही मिल पाता  है इसलिए वर्त्तमान समय में कन्याओं के ऊपर हो रहे बलात्कार आदि अत्याचारों को रोकने के लिए सम्पूर्ण समाज में कन्यापूजन पर्वों को बड़ी धूम धाम से मनाया जाना चाहिए ताकि कन्याओं के सम्मान को समाज में और अधिक महत्त्व मिले इस बात की इस समय बहुत अधिक आवश्यकता है । संयोगवश अबकी बार इसी  दिन २ अक्टूबर पड़ गया इसलिए अबकी सरकार ने दुर्गाष्टमी की जगह गांधी जयंती मना डाली ली और कन्या पूजन पर्व की जगह धूम धाम से मनाया गया स्वच्छता दिवस और प्रधानमंत्री जी ने भी लगाई झाड़ू !यदि प्रधानमंत्री जी ने इस दिन मनाई होती दुर्गाष्टमी और पूरे देश में करवाया गया होता कन्यापूजन तथा इसी प्रकार से  कन्याओं की सुरक्षा पर कोई नैतिक सरकारी प्रोत्साहन किया गया होता और इस वर्ष आज कन्याओं के पूजन, कन्याओं की सुरक्षा का कोई कार्यक्रम रखा जाता या बलात्कारों एवं भ्रूण हत्या के  विरुद्ध जन जागृति का कोई कार्यक्रम रखा जाता तो कन्याओं की सुरक्षा की दृष्टि से बहुत अधिक प्रभावी हो सकता था तो शायद इस दिन का और अधिक अच्छा उपयोग माना जाता !वैसे तो कन्याओं के हिस्से के इस दिन का सदुपयोग स्वच्छता के साथ साथ कन्याओं की सुरक्षा के प्रति होता तो और अधिक अच्छा होता !आज कन्याओं की सुरक्षा के लिए,भ्रूण हत्या रोकने के लिए,बलात्कार रोकने के लिए समाज प्रधानमंत्री जी के तत्वावधान में संकल्प लेता या समाज को इसके लिए प्रेरित किया गया होता या कन्या रक्षा सेना या कन्या रक्षा दल जैसे सक्रिय संगठनों का गठन किया गया होता तो स्वच्छ भारत के साथ साथ पवित्र भारत का संकल्प भी पूरा होता चलता !

    स्वच्छता बाहरी सफाई है किन्तु पवित्रता तो आतंरिक सफाई है इस युग में आतंरिक स्वच्छता की सबसे अधिक आवश्यकता है । यह देश पवित्रता का उपासक है गोबर गन्दा होता है किन्तु गाय का गोबर न केवल घरों को पवित्र करता रहा है अपितु अपवित्र से पवित्र होने के लिए धार्मिक  समुदाय इसी गाय के गोबर और मूत्र का उपयोग पंचगव्य बनाने में भी करता है उसे पीकर लोग पवित्र होते हैं ऐसी न केवल शास्त्र मान्यता है अपितु व्यवहार में भी ऐसा देखा जाता है ! 

    बड़ा प्रश्न ये है कि देश में पवित्रता अर्थात सात्विक चिंतन का वातावरण कैसे बनाया जाए क्योंकि मानसिक स्वच्छता के लिए क्या कुछ उपाय किए जाने चाहिए इसका चिंतन होना चाहिए जो उपाय करने में सक्षम हैं उनका  विषय का गंभीर अध्ययन नहीं होता है और जिनका अध्ययन होता है उनके पास उपायों का प्रभावी प्रचार करने का माध्यम नहीं होता है ऐसी परिस्थिति में अल्पज्ञ प्रशासक अपने अनुशार जो कर पाते हैं वो करते हैं अन्यथा ऊलजुलूल निर्णय करते हैं उचित ये है कि इस विषय के विधिविशेषज्ञों से सलाह ली जानी चाहिए किन्तु अपनी समाज का दुर्भाग्य यह है कि ऐसे धर्म एवं आध्यात्मिक विषयों में बिना कुछ अध्ययन के भी हर कोई अपने को पूर्ण पंडित समझने लगता है,इसलिए जो इन विषयों के अधिकृत समझदार लोग हैं उन्हें वो मुख लगाना ही नहीं चाहते! 

    आप स्वयं सोच सकते हैं कि मन शोधन कोई आसान काम नहीं होता है ये हर कोई कैसे कर सकता है इसके लिए अच्छे अध्ययन अनुभव एवं अभ्यास की आवश्यकता होती है।देश में बलात्कार से लेकर हर प्रकार के अपराध दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं,कठोर कानून बनने के बाद भी तो उनमें कमी नहीं आई क्या उसका और कोई उपाय नहीं खोजा जाना चाहिए! मन शोधन का कोई रास्ता तो होता होगा क्या उस पर अमल नहीं किया जाना चाहिए क्या झाड़ू लगाने के कार्यक्रम पहले दिमागों से नहीं प्रारम्भ किए जाने चाहिए मनोविकार समाप्त होते ही सबकुछ स्वतः शुद्ध और स्वच्छ हो जाएगा ! आज समाज में लूट हत्या बलात्कार भ्रष्टाचार मिलावट खोरी ,धोखाधड़ी ,घूसखोरी आदि जितने प्रकार के भी अपराध हैं सारे मानसिक अपवित्रता के कारण हैं ।इनके लिए भी कुछ तो किया  जाना चाहिए । 

      आज वृद्धजनों का अपमान हो रहा है पति पत्नी में सम्बन्ध विच्छेद हो रहे हैं तलाकशुदा लोगों के बच्चे तड़पते घूम रहे होते हैं कुछ माँ के बिना कुछ पिता के बिना ! तीन तीन वर्ष तक की बच्चियों के साथ हो रहे बलात्कारों और भ्रूण हत्या के जघन्यतम अपराधों ने समाज को हिलाकर रख दिया है सद्यः प्रसूत बच्चियाँ अस्पतालों में,मंदिरों में ,रेलवे स्टेशनों पर लोग छोड़कर भाग जाते हैं और तो क्या कहें कूड़े दानों में फ़ेंक कर चले जाते हैं शौचालय में फ़ेंक दी जाती हैं बच्चियाँ हम उस समाज के अंग हैं यह सब देख सुनकर समाज के लिए बहुत कुछ करने का मन करता है अपनी सीमाओं में रहकर बहुत कुछ करता भी  हूँ किन्तु जितने बड़े स्तर पर होना चाहिए उतना नहीं कर पाता हूँ संसाधनों का अभाव है ऐसी परिस्थिति में धीरे धीरे करने पर लम्बे समय में हो पाएगा किन्तु जरूरत तुरंत कुछ किए जाने की है । 

      इसलिए अब केवल स्वच्छता से काम नहीं चलेगा अब आवश्यकता पवित्रता की भी है पवित्रता को प्रदूषित करने के लिए सबसे अधिक दोषी सरकार एवं सरकारी कर्मचारी हैं । यह बात कोई एक आदमी नहीं कह रहा है अपितु पूरा देश न केवल कह रहा है अपितु  समझ भी रहा है इतना ही  नहीं सरकार एवं सरकारी  कर्मचारियों से सारा देश निराश है और तो क्या कहें आज सरकारी कर्मचारियों का भरोसा सरकारी कर्मचारी भी  नहीं कर रहे हैं सरकारी डाक्टर; मास्टर, पोस्ट मास्टर और टेलीफोन विभाग के लोग भी अपना इलाज प्राइवेट अस्पतालों कराते हैं अपने बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं मोबाईल प्राइवेट कंपनियों के रखते हैं और अपना लेटर प्राइवेट कोरिअर को देते हैं !मजे की बात तो यह है कि प्राइवेट  विभागों में वही काम सरकारी विभागों की अपेक्षा बहुत कम खर्च में हो जाता है  इसीलिए तो प्राइवेट स्कूलों ने सरकारी स्कूलों को पीट रखा है, प्राइवेट अस्पतालों नें सरकारी अस्पतालों को पीट रखा है प्राइवेट कोरिअर ने पोस्ट आफिसों को  पीट रखा है प्राइवेट फोन व्यवस्था नें सरकारी फोन विभाग को पीट रखा है !कहने को भले ही सरकारी विभागों को प्राइवेट विभाग पीट रहे हों किन्तु उन्हीं पीटने वालों ने ही उन उन अकर्मण्य सरकारी विभागों की इज्जत भी बचा रखी है अन्यथा सरकारी विभाग तो अपाहिज हैं आप स्वयं देखिए - चूँकि सरकारी पुलिस विभाग को पीटने के लिए कोई प्राइवेट विभाग बनने की व्यवस्था या विकल्प ही नहीं है इसलिए उसे न कोई पीटने वाला है और न ही उसकी कोई इज्जत ही बचाने वाला है सम्भवतः इसीलिए हर कोई पुलिस विभाग पर ही अंगुली उठता रहता है!हर प्रकार के अपराध नियंत्रण में पुलिस फेल नजर आती है लुटेरे लूट का धंधा बंद कर दें तब लूट रूकती है बलात्कारी बलात्कार बंद करें तब बलात्कार बंद हों !इसीप्रकार से सरकारी स्कूलों में जो बच्चे खुद पढ़ लें वही पढ़ पाते हैं ये कैसी अंधेर है  दिल्ली जैसी देश की राजधानी में भाजपा केंद्र में है राज्यपाल भी उन्हीं के अनुशार चलते हैं MCD में भाजपा है इसके बाद भी MCD के स्कूलों में शिक्षक या तो आते नहीं या कक्षाओं में नहीं जाते हैं जाते भी हैं तो पढ़ाते नहीं हैं या जल्दी घर चले जाते हैं !आखिर कौन देखेगा इसे ! सरकारी कर्मचारियों पर नकेल कसने का काम सरकार को करना है वो काम सरकार न करे और जो काम सरकार को औरों से करवाना है वो सरकार करती घूमे ये कहाँ का न्याय है ?यदि सरकार एकदिन झाड़ू उठा भी लेगी तो क्या इससे सफाई हो जाएगी इसीप्रकार एक दिन आप टीवी से प्रवचन कर देंगे तो इससे बच्चों का भविष्य सुधर जाएगा क्या !इसलिए पहले प्रत्येक काम के लिए जिम्मेदार लोगों को चुस्त करना पड़ेगा उसके बाद ये  कार्यक्रम करना उचित होगा !आज सफाई कर्मचारी समय से काम पर आकर भी काम इसलिए नहीं करते हैं कि उन्हें खत्ते के हिसाब से घूस देनी पड़ती है वो काम केन तो भी देनी है न करें तो भी देनी है फिर आखिर  क्यों करें काम ! ऐसी परिस्थिति में स्वयं झाड़ू पकड़ने से पहले ये घूस का धंधा तो बंद किया जाना चाहिए ताकि जो सफाई करते हैं वो तो सुचारू रूप से कर सकें !

      एक दिन आप सफाई कर देंगे एकदिन आप किसी स्कूल में जाकर पढ़ा देंगे ?एक दिन किसी अस्पताल में दवाई बाँट देंगे इससे जनता की मुश्किलें कितनी आसान हो पाएँगी !हाँ खबर जरूर बन सकती है!

   अरे शासक शिरोमणि !यदि आपके पास शासन क्षमता है तो उसका परिचय दीजिए और जिस काम को करने के लिए जो पैसे लेता है ईमानदारी पूर्वक आप उससे वो काम लीजिए ये आपका पवित्र दायित्व है इसका आप निर्वाह कीजिए ,चूँकि आप सरकार में हैं गैर सरकारी संगठनों की तरह आप व्यवहार मत कीजिए !आप जिम्मेदार लोगों से काम लीजिए।इसके अलावा ब्यर्थ की उछलकूद ठीक नहीं है।

      एक दिन अखवार में मैंने एक कहानी पढ़ी थी कि जंगल के राजा शेर से तंग आकर सभी पशु पक्षियों ने मीटिंग की तो बन्दर ने सबको सुरक्षा देने का भरोसा  दिया  यह देखकर सब लोगों ने बन्दर को अपना राजा बना लिया !एक दिन शेर आया बड़ी जोर से दहाड़ मारने लगा , दो चार पशु पक्षियों की हिंसा भी कर दी सारे पशु पक्षी अपने राजा बन्दर को पुकारने लगे यह सुनकर  बन्दर आया वो कभी इस पेड़ पर जाए कभी उस पेड़ पर ऐसे उछलकूद करता रहा किन्तु शेर को जो कुछ करना था करके चला गया बाद में लोगों ने बन्दर से कहा कि तुमने तो कुछ किया ही नहीं  कई पशु पक्षी मार भी दिए गए तो बन्दर कहने लगा कि हम चुप तो नहीं बैठे कुछ न कुछ तो करते रहे और प्रयास तो पूरे किए !अरे अजीब सी बात है कि सुरक्षा देने की बात आपने की वो तो कुछ नहीं कर सके आप !ऐसा सभी जगह  समझना चाहिए !

    वही आज स्थिति है  किसी स्तर पर अभी तक भ्रष्टाचार में कमी होती नहीं दिख रही है न ही शिक्षा में कोई सुधार हो रहा है सरकार और निगम के प्राथमिक स्कूल शिक्षा शून्य होते जा रहे हैं ऊपर से मैंने सुना है कि अब कर्तव्य भ्रष्ट उन्हीं शिक्षकों से नैतिक विषय भी पढ़वाया जाएगा अरे! जो स्वयं नैतिक नहीं होगा वो क्या पढ़ाएगा नैतिकता के सिद्धांत !

    एक ओर निगम ने पैसे  ले लेकर दूसरों की छतों पर मोबाईल टावर लगवा रखे हैं दूसरी ओर न्यूज चैनल बताते हैं कि आसपास रहने वालों को कैंसर जैसी भयानक बीमारियाँ हो सकती हैं किन्तु वहाँ रहने वाले यदि टावर हटवाना चाहें तो कहें किससे कहीं सुनवाई नहीं है ये काम सरकार का है ये सरकार को पहले करना चाहिए !स्वच्छता के साथ साथ ये भी ज्यादा जरूरी है । 

      निगम वालों को पैसे देकर 5 -5 इंच की चौड़ी दीवारों पर लोग 4 - 4  मंजिल के घर खड़े कर देते हैं और उठा देते हैं किराए पर जब वो गिरते हैं या भूकम्प आते हैं तब या तो पड़ोसी मरते हैं या फिर रहने वाले आखिर कौन है जिम्मेदार इसके लिए और कौन सुनेगा उन पड़ोसियों की क्या सरकार का कोई दायित्व नहीं है !स्वच्छता के साथ साथ ये भी आवश्यक है ।

        किसी के झाड़ू लगाने में कोई दम नहीं थी कुछ लोगों के अलावा किसी को झाड़ू पकड़ने भी नहीं आ रहा था केवल झाड़ू स्पर्श करके फोटो खिंचवा रहे रहे थे जनता के मसीहा, बिलकुल उस तरह जैसे विवाह में रस्म अदायगी भर होती है क्या होगा इससे जन जागरण बल्कि लोगों को पता चल गया कि इन्हें तो झाड़ू लगाना छोड़ो पकड़ना भी नहीं  आता है । टिकटार्थी छुट भैए नेता तो अपनी झाड़ू भी नहीं लाए थे वे तो सफाई कर्मियों की झाड़ू स्पर्श करके फोटो खिंचवा रहे थे !

   नीचे से ऊपर तक के लोगों ने झाड़ू पकड़ पकड़ कर फोटो खिंचवाने के अलावा आखिर और किया क्या ?छोटे लोगों के यहाँ ग्रामीणों के यहाँ किसानों के यहाँ,पशुपालकों के यहाँ माध्यम वर्ग के लोगों के यहाँ एवं अन्य सभी प्रकार के परिश्रमी वर्ग के यहाँ, वैसे भी खुद ही झाड़ू लगाई जाती है और दिन में कई कई बार लगानी पड़ती है झाड़ू ! दूसरी ओर जिनके पास फ्री का पैसा आता है वही धनवान लोग तथा सरकार में सम्मिलित लोग एवं सरकारी कर्मचारियों की ही यह प्रवृत्ति विशेष होती है कि कूड़ा वो खुद फैलाएँ साफ कोई और करे बाकी जो लोग अपने घर अपने हाथों से साफ करते हैं उन्हें सफाई का महत्त्व पता होता है इसलिए उनसे ऐसी गलतियाँ दूसरों को देखकर ही होती हैं बाक़ी उन्हें जीना  आता है वो इंसान को इनसान समझते हैं !वो घर से बाहर तक रोज झाड़ू बुहारू करते ही हैं फिर प्रेरित आखिर किसको किया जा रहा है शहरों कस्बों में पेनाल्टी की व्यवस्था की जाए ! बाकी मुख्य ध्यान भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए एवं कन्याओं की सुरक्षा के लिए लगाया जाना चाहिए जिसकी आज सबसे अधिक आवश्यकता है । 

    नवरात्र की नवमी में कन्या पूजन का पवित्र दिन केवल झाड़ू की भेंट चढ़ गया और हुआ क्या कुछ बड़े बड़े लोगों ने झाड़ू पकड़ पकड़ कर खूब खिंचवाए फोटो ! 

     स्वच्छ भारत की जगह पवित्र भारत की अभिलाषा लेकर मैं कई बार कई लोगों से मिला किन्तु कहाँ कोई करता है सहयोग! अंततः मैं यही  सोचकर सरकारों से सहयोग की लालषा लेकर सरकाराधिपतियों से मिलने के लिए प्रयास करता रहा कि ये लोग भारत को पवित्र बनाने में हमारा सहयोग कर देंगे किन्तु उन लोगों के पास पवित्रता पर बात करने के लिए समय ही कहाँ है फिर बड़े लोगों को हमने पत्र लिखे किन्तु कोई उत्तर नहीं आया तो पत्र पत्रिकाओं में लिखता रहा सात ब्लॉग बनाए उन पर लिखता रहता हूँ इसी जन जागरण के लिए फेस बुक पर तो सम्पूर्ण समय देता हूँ !जब मोदी जी को प्रधान मंत्री बनाने के लिए प्रस्तुत किया गया तब से तो उनके समर्थन में जागरण में पूरा पूरा दिन सोसल नेटवर्किंग साइट पर समय दिया है जो आज भी प्रमाण हैं आशा थी कि यदि वो लोग हमें मिलने लायक नहीं समझते हैं तो मोदी जी आएँगे इनसे कही जाएगी अपनी बात और लिया जाएगा सहयोग किन्तु मोदी जी के यहाँ संपर्क करने पर वहाँ भी मिलने का समय देना ठीक नहीं समझा गया खैर वो प्रशासक हैं होंगी उनकी अपनी कुछ मजबूरियाँ किन्तु हम अपनों के बीच तो अपनी बात रख ही सकते हैं इसलिए मैंने यह विकल्प चुना है ।


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अब भ्रष्ट सरकारों और सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध जनता को लड़ना होगा एक बड़ा युद्ध !  सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों के व्यवहार से बहुत निराश हैं देशवासी !"हर चेहरे पर दाम लिखे हैं हर कुर्सी उपजाऊ है" see more... http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/02/blog-post_8.html


       

Monday, 9 February 2015

योगी आदित्यनाथ जी !मस्जिदों में गणेश जी की मूर्तियाँ ही लगाएँगे या प्राण प्रतिष्ठा भी करेंगे ?

      जो हिंदू अपने मंदिरों में रखे इस्लाम धर्मानुयायी साईं पत्थरों को रखकर पूजने लगा हो उससे इतनी बड़ी

 उम्मींद कैसे की जा सकती है जोगी जी !

 मौका मिला तो हर मस्जिद में लगाएंगे गणेश की मूर्ति:योगी आदित्यनाथ !IBN-7

    किंतु योगी जी जनता से कैसा मौका चाहते हैं आप !आपकी इस इच्छा की पूर्ति के लिए हमारे जैसे आम लोगों के लिए भी कोई सेवा हो तो बताइए !

      आदरणीय योगी जी !यदि गणेश जी की मूर्ति  बिना प्राण प्रतिष्ठा के रखनी है तो उससे हिन्दुओं का क्या लाभ !और यदि वास्तव में गणेश जी की प्राण प्रतिष्ठा पूर्ण मूर्तियाँ लगाने का विचार है तो सोचना यह पड़ेगा कि क्या हम कहीं भी देवी देवताओं की इस प्रकार की प्रतिष्ठा कर सकते हैं क्या ?क्या वो वास्तुभूमि और वहाँ की संस्कृति इस योग्य होती है कि उन मस्जिदों में भगवान गणेश जी को बैठा दिया जाए !जिन मस्जिदों में नेताओं को छोड़कर कभी कोई हिन्दू जाता ही नहीं है वहाँ गणेश जी को कैसे बैठा दिया जाएगा क्या वो हिंदुओं के यहाँ इफरात हैं जो उन्हें रख आवें मस्जिदों में !

    योगी जी !यदि यही करना है तो दूसरी सरकारों में जो 3000 मस्जिदों की वो लिस्ट जो आपलोग जनता को पढ़ पढ़ कर सुनाया करते थे कि मंदिर तोड़कर मस्जिदें बनाई गई हैं कहाँ गई वो लिस्ट लाइए और शुरू कीजिए उसपर काम !यदि उन बातों में साहस और सच्चाई न हो न हो तो बाक़ी छोड़िए वो 3000 न सही तीन तो बना ही लीजिए जिनके लिए जनता को खूब कसमें खिलाई गई हैं अब तो आपकी सरकार भी है -

    अयोध्या मथुरा विश्वनाथ ,तीनों लेंगे एक साथ ॥ 

     कब लेंगे ये तीनों जोगी जी जनता को वो भी तो बताइए !या केवल कहते ही रहेंगे !और तो छोड़िए जो सरकारें ऐसा करेंगी जिनसे आशा थी जिन्होंने आश्वासन दिए थे उनके मुखिया प्रधानमंत्री जी पचासों हजार किलोमीट की विदेशी यात्रा तो कर आते हैं किन्तु अयोध्या जाने का समय उनके पास भी नहीं है या फिर साहस नहीं है उन श्री रामलला से आँखें मिलाने का जिन्हें भाजपा सरकार बनवाने के लिए वर्षा गरमी शर्दी सहते हुए चबूतरे पर आना पड़ा तब जाकर बनी है भाजपा सरकार !अन्यथा कौन पहचानता था भाजपा को !किन्तु आज न कहीं 'जय श्री राम' है और न ही श्री राम मंदिर की चरचा !

    अरे !उनसे इतना ही कह देते कि प्रभु श्री राम लला के दर्शन करने न जाना हो तो एक बार दर्शन दे ही आते !बाट जोह रहे हैं श्री रामलला कि हमारे राम भक्त मंत्री प्रधानमंत्री आदि बन कर कैसे लग रहे होंगें क्या देखने की उन्हें इच्छा नहीं होती होगी इससे और होता सो तो होता ही कम से कम हमारे जैसे छोटे लोगों को आम जनता यह प्रश्न पूछकर निरुत्तर तो न कर पाती  कि ये लोग मंदिर क्या बनाएँगे जिन्हें दर्शन करने जाने में ही डर लगता है !

Friday, 6 February 2015

साधुओं जैसी शकल न अकल और न ही नक़ल फिर भी साधू ! कितना बड़ा चमत्कार है !

सधुअई एक खोज !आखिर सधुअई है क्या और साधू बनना  जरूरी है क्यों ?

   हाईटेक बाबाओं ने समाज को भ्रमित किया है !इनका कोई नियम धर्म ही नहीं होता है जो मन आता है सो बकने बयाने या करने लगते हैं उसी को धर्म बता  देते हैं !

     किसी लड़की को छेड़ा तो बोले कृष्ण जी भी तो यही करते थे । अपने हर प्रकार के पाप  साबित करने  के लिए पुराणों की  कथाओं को अपने अपने अनुशार  फिट करने  के लिए गढ़ छोल कर तैयार कर रखा है जहाँ जब जरूरत पड़ती  तहाँ तब फिट कर देते हैं ।

    नाचें गावें , व्यापार करें ,कुश्ती लड़ें ,चुनाव लड़ें किसी को मारें गरियावें आदि वो भी सबकुछ करें जो नहीं करना चाहिए !झूठ बोलने से लेकर ऐसा कोई पाप नहीं जिसे करने में ये भय मानते हों फिर भी साधू हैं इनकी नजर में सधुअई आखिर है क्या ?

    आधुनिक बाबाओं के विषय में समाज कन्फ्यूज्ड है कि आखिर उन्हें क्या माने !और क्यों मानें ?और न ही ये पता लगता है कि इन बेचारे बाबाओं की ऐसी मजबूरी आखिर क्या थी क्यों बनाना पड़ा इन्हें बाबा!ऐसे बाबाओं को साधू संत मानने का दंड न जाने क्यों भोग रहा है सनातन धर्मी समाज !

     आधुनिक बाबाओं के किसी भी आचरण में धर्म कर्म के लक्षणों के नाम पर केवल वेषभूषा ही दिखाई पड़ती है बाक़ी सारे लक्षण एक मजे हुए राजनेता की तरह ,व्यापारी की तरह,हीरो की तरह ,गायक की तरह पहलवान की तरह आदि सब तरह के होते हैं किन्तु इनके किसी आचरण से ईश्वर भक्त साधुओं की सी सुगंध नहीं आती है किन्तु बातें उन्हीं  की तरह की  करते हैं ।

    शेर की खाल ओढ़ कर रहने वाला कोई गधा जैसे  अपने  गधों की टोली देखता है तो चींपों चींपों करने  लग  जाता है क्योंकि किसी का स्वभाव बदलता तो है नहीं इसीलिए ऐसे हाईटेक लोग भी वैसे तो साधुओं  जैसे वस्त्रों में अपने  शरीरों को लिपेट कर रखते हैं किन्तु चुनाव पास  देखते ही कहीं किसी नेता के साथ चिपक जाते हैं तो कहीं किसी पार्टी के साथ बस उसी के लिए चींपों चींपों करने लग जाते हैं । 

   बंधुओ !  जो विरक्त साधू संत होते हैं उन्हें न सत्ता की जरूरत और न ही संम्पति की वो तो स्वयं में राजा होते हैं  किन्तु आधुनिक बाबा चुनाव देखते ही औकात से उतरने लगते हैं बाबाओं  का मानना होता है कि   सरकारों के साथ चिपकना ही ठीक रहेगा उसी के  संरक्षण में रहने में भलाई है इससे किसी भी परिस्थिति में कानून से भय नहीं रहेगा ,कैसा भी व्यापार कारोबार करो  कोई जाँच पड़ताल नहीं होगी ,कुछ भी करो किसी को कुछ भी बको सिक्योरिटी की जिम्मेदारी तो सरकार उठाएगी ही ऊपर से सरकार में दखलंदाजी भी बनी रहेगी जिससे चेलाही में बढ़ोत्तरी होगी !

      इनके अनुयायी चेला चेलियों की संख्या देखकर लगता  है कि महँगाई के इस युग में ईमानदारी पूर्वक रोजी रोटी कमाने वालों के पास इतना समय कहाँ होता है कि वे ऐसे किसी के पीछे भीड़ बढ़ाते घूमें !इनका सारा समय अपना घरगृहस्थी ही सँवारते सुधारते बच्चों का पालन पोषण करते बीत जाता है हाँ जिन्होंने अपनी गृहस्थी न बनाई हो या बनाकर विसर्जित कर दी हो ऐसे लोगों की तो बात ही और है बाक़ी भले लोग कहीं सत्संग सुनने जाते हैं सुनकर अपने घर आते हैं वो बाबाओं से राजनीति की सलाह लेने तो नहीं ही जाते हैं किन्तु वे आदत से मजबूर हैं जो दे रहे हैं !

    खैर, जो भी हो किन्तु धर्म क्षेत्र के इन घुसपैठियों ने अपने प्रयासों से अब धर्म को धर्म कहलाने का हकदार तो नहीं ही छोड़ा है बाक़ी जिम्मेदारी शास्त्रीय साधू संतों पर है कि वे अपने धर्म के शास्त्रीय मूल्यों को कितना और कैसे बचा पाते हैं !