Monday, 27 July 2015

शरद यादव ने पीएम मोदी को कहा ‘बेइमान’-पंजाब केशरी

    किंतु शरद यादव जी इतना गिरकर बयान  देंगे कम से कम उनसे तो ऐसी उम्मींद नहीं ही थी ! नरेंद्र मोदी जी आज केवल मोदी ही नहीं हैं अपितु देश वासियों का विशेष विश्वास जीतने वाले लोगों की श्रेणी में उनका भी स्थान है वे जनता के चुने हुए भारत वर्ष के सम्माननीय प्रधान मंत्री भी हैं  इस नाते उनके साथ देश का गौरव जुड़ा हुआ है वे विश्व के विभिन्न मंचों पर सवा अरब भारतीयों का प्रतिनिधित्व करते हैं उन्होंने अपने भाषा और आचार व्यवहार के द्वारा विश्व का ध्यान भारत की ओर खींचने में सफलता हासिल की है उनकी सरल सहज एवं आत्मीय बातें विश्व ध्यान से सुनता है ! उनका आत्मसंयम विश्व ने देखा है जब निराहार रहकर उन्होंने कई दिन व्रत में बिताए थे ! इसलिए मूल्यों के लिए जीवन जीने वाले मोदी जी हो सकता है किसी मजबूरी बश कहीं सत्य से समझौता कर ही बैठे हों किंतु उनके इमान पर संदेह नहीं किया जा सकता फिर उन्हें बेईमान कहना कहाँ तक न्यायोचित है !शरद जी के कहने का अर्थ कहीं ये तो नहीं है कि देश वासियों ने किसी बेईमान आदमी को प्रधान मंत्री बना दिया और यदि उनका अभिप्राय ऐसा है तो बहुत दुर्भाग्य पूर्ण है क्योंकि लोकतंत्र में जनता ही मालिक होती है उसके फैसले पर किन्तु परन्तु नहीं चला करते !

Saturday, 18 July 2015

जनता के पत्रों का या प्रश्नों का उत्तर न देने वाले नेताओं का बहिष्कार किया जाए !ऐसे घमंडी लोग फेसबुक पर करने क्या आए हैं !

 शिक्षा और सभ्यता की उमींद नेताओं से ठीक नहीं है क्योंकि ये दोनों उनके लिए अनिवार्य नहीं हैं !इसकी उन्हें जरूरत भी नहीं होती है । आजकल राजनीति धरना प्रदर्शनों से चलती है उसके लिए क्या जरूरत शिक्षा और सभ्यता की ?
     देश दुनियाँ को ठीक करने का ठेका लेने वाले कुछ नेता लोग तो इतने मक्कार होते हैं कि यदि कोई व्यक्ति बीमारी आरामी जैसी बड़ी से बड़ी कैसी भी समस्या से जूझ रहा हो या प्रशासन परेशान कर रहा हो या और कोई बड़ी परेशानी से जूझ रहा हो और वो नेता जी को पत्र लिखकर मदद माँगना चाहे तो नेता जी मदद तो दूर पत्र का उत्तर तक नहीं देते हैं ,और तो और फेस बुक में लिखे मैसेज का उत्तर नहीं देते हैं ऐसे मुखछिपाने वाले डरपोक नेता लोगों से क्या उम्मींद की जाए !
   कहने को तो ये लोग मंत्री मुख्यमंत्री होते हैं किंतु हिम्मत इतनी भी नहीं होती है कि फेसबुक पर जनता के सवालों का सामना कर सकें !धिक्कार है ऐसी पद प्रतिष्ठा को जिसके मन में जनता जनार्दन का सम्मान ही न हो !
      इनपर इसीलिए तो भरोसा नहीं होता है कि  राजनेता बनने के लिए न शिक्षा चाहिए और न सभ्यता । केवल झूठ बोलने  की कला होनी चाहिए ।  बंधुओ ! नेताओं को अपना  शरीर किसी न किसी  बहाने  से   मीडिया के लपलपाते कैमरों के सामने फेंकना होता है बस !और कोई दूसरी योग्यता इनमें ढूँढे नहीं मिलती है !इसलिए देश को सुधारने सँवारने की बातें राजनेताओं की सुननी तो चाहिए किंतु उन पर भरोसा करना  ठीक नहीं है क्योंकि नेताओं के बश का होता तो पहले ये खुद सुधर जाते !  जिनका अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं होता है कि कब गैर जिम्मेदारी के बयान देने लगें कब गाली गलौच करने लगें इनकी भाषा पत्रकार भी नहीं समझ पाते इन्हें सुधार सुधार कर बोलना होता है ये कब किसी को मारने लगें ! कब फर्जी डिग्रियों में फँसे मिलें !कब किस बलात्कार या घपले घोटाले में किसका नाम सम्मिलित मिले ! इसलिए इनके विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता !
     बंधुओ ! पैसा और पावर जहाँ होता है अपराध होने की संभावनाएँ  वहाँ बढ़ ही जाती हैं चूँकि नेताओं के पास दोनों होते हैं इसलिए इनके विषय में कुछ भी विश्वास पूर्वक कह पाना कठिन होता है कब कहाँ मन और आत्मा डोल जाए इनकी ! जब ये खुद नहीं सुधर पाए तो देश कैसे सुधार  लेंगे ! ये खुद कितने सुधरे हैं ये संसद और विधान सभाओं के चलते सत्र में देखा जा सकता है !
       सभापति महोदय या अध्यक्ष जी एवं माननीय सदस्य जी जैसे कुछ सभ्यता के शब्द छोड़ दिए जाएँ तो सदनों में जो कुछ होता है वो दुनियाँ देखती है । इनकी भाषा में अज्ञान अहंकार आलस्य अयोग्यता अकर्मण्यता आदि सारे दोष दुर्गुण दिखते हैं !फिर भी लोग यदि इनसे कुछ आशा करें तो ये उनका अज्ञान है !


      

Friday, 17 July 2015

देश का दामाद या दामाद का देश ! उस समय दामाद का बर्चस्व इतना था कि सारी सरकार दंडवत कर रही थी !

  आरोप लगते ही तैयार हो गई थी 'क्लीनचिट'  किंतु समस्या इस बात की थी कि दामाद जी को क्लीनचिट मिल गई है ये बताने के लिए उनके घर जाए कौन !              दमादों की खातिरदारी में लोग न जानें क्या क्या दे देते हैं यहाँ तो क्लीनचिट जैसी छोटी चीज पर शंका और शोर क्यों ? इतना तो बनता भी है ।
       अब तो ये आम बात हो गई है कि किसी पर पहले घोटाले के आरोप लगते हैं फिर मीडिया या आरोप लगाने वाले अन्य लोग अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए बड़े बड़े प्रमाण देते नजर आ रहे होते हैं। कई कई प्रेस कांफ्रेंस होती हैं, लोग बड़े बड़े पोथी पत्रा पढ़ पढ़ कर  जनता को  दिखा रहे होते हैं आखिर जनता ने उन्हें जो काम सौंपा है वही वो कर रहे हैं किसी को क्यों बुरा लगे ?
       मीडिया की दहाड़ एवं समाजिक कार्य कर्ताओं की ललकार सुनकर सारी जनता यह सोच कर रिमोट पकड़ कर टी.वी. के सामने बैठ जाती है कि लगता है अब महॅंगाई की जड़ पकड़ ली गई है। इसके बाद जॉंच होगी, दोषियों से धन वसूला जाएगा फिर महॅंगाई घटना शुरू होगा किंतु ऐसा कभी हुआ ही नहीं।
     दमदार आदमी होने पर सरकार की तरफ से उसे क्लीनचिट का पुरस्कार मिलता है। कुछ लोग साक्ष्य मिटाने में सफल हो जाते हैं तो बाद में छूट जाते हैं। कुछ बड़े लोग होते हैं । उनके बारे में सबको पता होता है कि ये तो छूटेंगे ही।कुछ तो बहुत बड़े लोग होते हैं उनका तो बस .......!खैर  क्या  कहना ?
     कुछ लोग अपनी पार्टी के  होते हैं यदि वे भी पकड़ जाएँ तो अपनी सरकार का फायदा ही क्या ?चुनावों में बेकार ही चीखते चिल्लाते रहे क्या ?अपना या अपने नाते रिश्तेदार का मामला हो तो प्रश्न उठाने वाला ही समझदारी से काम नहीं ले रहा है जबकि उसे भी पता है कि इस मामले में कुछ नहीं होगा तो आग से खेलना ही क्यों ?
    एक दिन टी.वी. पर समाचार सुन रहा था कि किसी के दमाद को क्लीनचिट दे दी गई है। कुछ पार्टियों के लोग शोर मचा रहे थे। पत्रकार बड़ी तल्लीनता से बहस करा रहे थे लग रहा था कि बहुत कुछ निकल कर सामने आ जाएगा। समय पूरा हुआ वो सब शांत हो गए।
      जब ये सब हो रहा था तब मुझे लग रहा था कि जब मीडिया में भूमि घोटाले का शोर मच रहा था तब तो किसी ने किसी को घास डाली नहीं , सफाई देने के लिए न तो दमाद सामने आया और न ही ससुराल पक्ष से ही कोई सामने आया , अब शोर क्यों ? हो सकता है  कि उन्होंने समझा हो कि शोर मचाकर कोई क्या कर लेगा? ये बात भी सही है आज तक किसी ने क्या कर लिया ? या फिर हो सकता है कि उन्हें पता ही न लगा हो कि उनके विषय में देश  में कुछ इस तरह की बातें भी चल रही हैं।वैसे भी उन्हें पता कैसे लगेगा किसकी हिम्मत है कि वो इस तरह की बात बता कर उनके विश्राम में बाधा डाले ?यह तो चलो आरोप की बात है अगर कोई पुरस्कार देने की बात भी  होती तो भी डर की वजह से कोई यह सूचना लेकर भी वहॉं नहीं जाता तो घोटाले के आरोप की सूचना लेकर वहॉं कौन जाएगा?  हमें तो लगता है कि क्लीन चिट देने की बात भी सही नहीं है क्योंकि उन्हें यह सूचना जाकर देगा कौन ? इतनी मर्यादा तो रखनी ही पड़ती है इसलिए मीडिया को ही सीधे बता दिया गया होगा कि आप लोग देश को बता दें कि यह क्लीनचिट का मैटर है,इसे तूल न दिया जाए।
    इसप्रकार आम जनता को सनसनीखेज बातें बता कर उसके परिवार का ज्ञानबर्धन  करने की जरूरत क्या थी ?आखिर  उसका  समय क्यों  नष्ट  किया गया ?
     हो सकता है कि इस पर बिचार करके ऐसे लोगों के खिलाफ किसी कार्यवाही की तैयारी भी चल रही हो। जिन्होंने इस तरह की आवाज उठाने का अपराध किया है।
     आपके देश का बडा़ से बड़ा पद पाने के लिए जिसकी कृपा की जरूरत होती है मंत्री-मुख्यमंत्री टाईप के लोग तो जिस दरवाजे पर लोटकर बिना बताए ही वापस लौट जाते होंगे। लोग उसके दामाद पर उँगली उठाएँ  यह शोभनीय नहीं है।यह देश तो वैसे भी दमादों का सम्मान करता है।  


भ्रष्टाचार है या मायामृग ! भ्रष्टाचार को मिटाना तो दूर इसे पकड़ पाना भी संभव नहीं है !कहे कोई कुछ भी !

    राजनीति का ही  व्यापारिक स्वरूप ही  है भ्रष्टाचार ! इसलिए भ्रष्टाचार को मिटाना कठिन ही नहीं असंभव भी है !
    जिस नेता पर आरोप लगे वो तो  भ्रष्टाचारी बाकी सब ईमानदार !किंतु उनका क्या है रोजी रोजगार ?कैसे लगे हैं धन के अंबार ? यह भी तो देखना होगा और समझना होगा कि राजनीति है या कल्पवृक्ष ?गरीब से गरीब लोग राजनीति मेँ पहुँचते ही करोडोंपति हो जाते हैं !कैसे ?
   मजे की बात हमारे नेताओं के पास कुछ करने के लिए न समय होता है न पैसा !किन्तु थोड़े दिन राजनीति का सेवन करते ही पैसा ही पैसा हो जाता है !कितना बड़ा चमत्कार है यह ! 
    बंधुओ !राजनीति पहले सेवा थी सबको पता है किंतु वही राजनीति अब स्वरोजगार बन गई है !इसमें धन कमाने के लिए भ्रष्टाचार के अलावा कोई और खिड़की है ही नहीं !राजनीति में आकर या तो आप रईस नहीं हो या फिर ईमानदार नहीं हो !क्योंकि सेवा कार्य में धन कैसा !
     राजनीति जब सेवा थी तब लोग राजनीति करने के साथ साथ कुछ रोजी रोजगार भी किया करते थे कुछ अपने खर्चे घटाए हुए थे तो निभ जाता है किंतु अब वैसा कुछ नहीं है अब तो नेताओं के शरीर देखकर किसी को नहीं लगता कि ये इन सुकोमल हाथों से कभी कुछ करते भी होंगे धरना प्रदर्शनों में ही भले गरम हवा लग जाती हो बाकी गरमी फटकने भी नहीं पाती  होगी पास !पैदल चलना तो पद यात्राओं में ही हो पाता होगा बाकी गाड़ी घोड़े और जहाज आदि सब इनके और इनके परिवार वालों के लिए सहज सुलभ होते हैं । 
      अधिकांश राजनेताओं का बचपन गरीबी में बीता होता है फिर वही गरीबत लेकर राजनीति में पहुँचते हैं जहाँ भ्रष्टाचार राजनीति का व्यापारिक स्वरूप ही है  बंधुओ !यदि  कोई योग्य आदमी राजनीति में आकर ईमानदारी पूर्वक काम करना चाहे तो कैसे करे !  पहली बात तो पार्टियाँ अपने यहाँ भले लोगों का प्रवेश ही नहीं होने देती हैं और यदि हो जाए तो कोई निर्णायक पद नहीं देती हैं और केवल शो पीस बनाकर रखती हैं उन्हें !इसका कारण शिक्षित योग्य और ईमानदार लोग भ्रष्टाचार करने को डरते हैं इसलिए यहाँ तो ऐसा चाहिए कि कमाए एक अपने पास रखे और 9 अपने पार्टी स्वामी को दे जो इतनी बड़ी राजनैतिक फैक्ट्री चला रहा होता है उस मालिक को खुश करने का साहस रखने वाले लोगों प्रमोट करती हैं पार्टियाँ जिनका राजनीति में अवतरण ही भ्रष्टाचार करने के लिए हुआ होता है उनमें वो खूबी होती है उसी भूल आखिर कैसे जाएँ !
   बंधुओ ! इसमें अब किसी को कोई शक नहीं  होना चाहिए कि राजनैतिकपार्टियाँ  अब उद्योग धंधों का रूप ले चुकी हैं !
 भ्रष्टाचार है या मायामृग !
       नेता ढूँढ नहीं पा रहे हैं या ढूँढ नहीं रहे हैं या ढूँढने से डर रहे हैं या भ्रष्टाचार पर कार्यवाही करने की बात सोचते ही उनके सामने अपने एवं अपनों के चेहरे कौंधने लगते हैं ! हर पार्टी और हर नेता  केवल वोट माँगने के लिए भ्रष्टाचार को कोसता है फिर उसी में सम्मिलित हो जाता है या उसके विषय में जवाब देने में कतराने लगता है आखिर क्यों ?

इसी विषय में पढ़ें हमारा यह लेख भी -

राजनैतिक मंडियों में योग्य और ईमानदार नेताओं की डिमांड ही बहुत कम है आखिर इनको पसंद ही कौन करता है !  राजनैतिक पार्टियों में भी सैंपल पीस के रूप में रखे जाते हैं कुछ योग्य और ईमानदार लोग !see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2015/07/blog-post_14.html



 
 

Thursday, 16 July 2015

यदि जाति सूचक शब्द बोलना अपराध है तो जातिगत जनगणना क्यों ?

 जातियों को  मानना है तो ठीक से मानिए अन्यथा पूरी तरह से भूल जाइए जातियाँ  !जब अपमान हो तब जातियाँ गलत हैं जब लाभ हो तो सहीं हैं आखिर ये कहाँ  तक ठीक है !
   बंधुओ !महान जाति वैज्ञानिक महर्षि मनु ने लाखों वर्ष पहले किस आधार पर वर्गीकरण किया होगा कि इन इन जातियों के लोग प्रतिभा विहीन होंगे ये मानकर ही इन जातियों की उपेक्षा की गई होगी और आज भी जातियों के आधार पर किए जा रहे भेद भाव को अप्रत्यक्ष रूप से मनु के उसी मत का समर्थन माना जाना चाहिए !ये भी तो बिना आरक्षण के विकास नहीं कर पा रहे हैं जबकि सवर्णों में भी तो गरीब होते हैं वो संघर्ष पूर्वक अपनी तरक्की करते हैं किंतु जो लोग नहीं कर सकते उनके शरीरों में ऐसी कमी क्या होती है जो सरकारों को आरक्षण जैसी अतिरिक्त सुविधा देनी जरूरी होती है । 
      इसलिए यदि सबका मानना है कि जातिवाद गलत है तो इसे भूलना चाहिए भूलने के लिए सबको कमाने खाने शादी विवाह में स्वतंत्र छोड़ा जाना चाहिए ! जातियों की जनगणना हो या जातिगत सुख सुविधा की योजनाएं सब पर लगाम लगनी चाहिए भले ही वो जातिगत आरक्षण ही क्यों न हो, सरकार भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने का अपना वायदा तो निभा नहीं पा रही है फिर लोगों के निजी जीवन में क्यों घुसी घूम रही है सरकार ?
आप सवर्ण हैं तो बेकार हैं आपके लिए न कोई सुविधा न कोई रोजगार !   फिर भी हम जाति सम्प्रदायवाद मिटाने पर तुले हुए हैं ज्ज्वलित आग की ज्वाला को घी डालकर बुझाना चाहते हैं ऐसा कोई मूर्ख ही कर सकता है केवल फायदे के लिए जातियाँ !यदि आप सवर्ण हैं इसका मतलब आपने शोषण जरूर किया होगा बिना शोषण के आप सवर्ण नहीं हो सकते !भारत सरकार ऐसा मानकर ही अपनी सारी योजनाएँ चलाती है! ऐसे कैसे चलेगा लोकतंत्र एक वर्ग की उपेक्षा सरकार करे !गुणवान लोगों की पहचान उनके गुणों से होती है जबकि गुणहीन लोग जातियों से पहचाने जाते हैं !जातियाँ तो पहले भी थीं किन्तु गुणों की प्रधानता थी पहले गुणों से लोग कमाते थे अब जातियों से कमाते हैं गुण घटबढ़ भी सकते थे जबकि जातियाँ फिक्स्ड हैं !

Tuesday, 14 July 2015

चर्चा के भय से संसद न चलने दी जाए ये कहाँ का न्याय है !

नेता यदि शिक्षित होते तो बहस में भाग लेते !पर्चियाँ पढ़ने वाले नेता हुल्लड़ न करें तो क्या करें चर्चा उनके बश की नहीं है !
     चर्चा करने के लिए ज्ञान अनुभव भाषा भावना आदि सब कुछ तो चाहिए !हमारा भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है इसकी संसद चर्चा का महान मंच है और प्रमुख  विपक्षी दल ही सबसे पुरानी पार्टी है जिसके शीर्ष नेता के साथ देश के सबसे पुराने राजनैतिक खानदान की पहचान जुड़ी  हो और वो संसद में अपनी बात कहने के नाम पर यदि पर्चियाँ पढ़ रहा हो तो ऐसे व्यक्ति से क्या आशा !
    भारत वर्ष बड़े बड़े विद्वानों की भूमि है और देश में सार्थक चर्चा का सबसे बड़ा मंच संसद है जहाँ की चर्चा पर विश्व मीडिया का ध्यान होता है वहाँ प्रधानमंत्री बनने के सपने देखने वाले किसी व्यक्ति के पास अपनी भावना न हो अपनी भाषा न हो अपनी लिपि न हो ऐसे लोग संसद कैसे चलने देंगे और क्यों चलने देंगे जहाँ उनका कोई रोल ही न हो !पर्चे पढ़ पढ़ कर बहस तो नहीं की जा सकती है ।       
    संसद केवल इसलिए न चलने दी जाए कि कुछ नेता लोग चर्चा से डरते हों या अपनी बात कहने के लिए पर्चियों का सहारा लेते हों ये कहाँ का न्याय है !यदि हमें बोलना न आता हो तो  संसद में चर्चा क्या करें और खुद चर्चा करने लायक न हों तो संसद क्यों चले दें ! पर्चियाँ पढ़ने वालों ने संसद का बहुमूल्य समय ब्यर्थ में नष्ट कर दिया ! विपक्ष का उच्चतर नेता संसद में पर्चियाँ पढ़ पढ़ कर सुना रहा था !जो नेता बोल न पाते हों वो संसद क्यों चलने दें !

   आज संसद में मची हुल्लड़ बाजी से क्या सीखें देश के युवा? समाज में भाई चारे की भावना ये लोग भरेंगे ! जो खुद आपसे में शांति से चर्चा नहीं कर सकते ! समय पास करने के लिए खानापूर्ति मात्र हो पा रही है ।सत्ता के लिए कितनी भी निम्नता तक उतरने के लिए तैयार है वर्तमान राजनीति !आगामी सुबुद्ध ज्ञानवान जनसेवक नेतृत्व का रास्ता रोके खड़े हैं वर्तमान राजनैतिक  उपद्रवी लोग !किसी को कुछ भी बोल जाते हैं उसके जवाब में सामने वाला भी कुछ भी बोल जाता है मजे की बात यह दोनों को नहीं पता है कि वे क्या बोल रहे हैं और जो बोल रहे हैं क्या उन्हें बोलना चाहिए !
   वैसे भी राजनैतिक पार्टियों में भी सैंपल पीस के रूप में ही रखे जाते हैं कुछ योग्य ,ईमानदार एवं अनुभवी लोग !राजनैतिक मंडियों में योग्य और ईमानदार नेताओं की डिमांड  ही बहुत कम है आखिर इनको पसंद ही कौन करता है !राजनैतिक दलों को जनता के बीच जाकर ईमानदारी की बातें करने के लिए अपनी पार्टी में भी ईमानदारी के कुछ सैंपल पीस तो दिखाने भी पड़ते हैंअन्यथा बिलकुल बनावटी ईमानदारी पर भरोसा करेगा भी कौन
     राजनैतिक पार्टियों में भी सैंपल पीस के रूप में रखे जाते हैं योग्य और ईमानदार लोग !किन्तु बिलकुल गाँधी जी के तीन बंदरों की तरह किसी को बोलना मना  होता है किसी को सुनना और किसी को देखना !कोई बात पूछने पर ये केवल सर हिलाकर प्रतिक्रिया दे सकते हैं जिसके हाँ और ना दोनों में अर्थ निकलते हों जिसकी व्याख्या बाद में अपनी सुविधानुशार करवाई जाती है ऐसे डरावने समय में भी कुछ राजनेता लोग अभी भी जी लेते हैं अपने सजीव सिद्धांतों के साथ ! 
          राजनैतिक पार्टियों में अयोग्यों अशिक्षितों अनुभव विहीनों एवं अपराधियों का प्रवेश  भले ही आसानी से हो जाता हो किंतु शिक्षित योग्य अनुभवी और ईमानदार लोगों को राजनीति में घुसने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं आज भी !ये उनकी आत्मा ही जानती होगी इसके बाद भी केवल सैंपलपीस की तरह दिखाने भर के लिए राजनैतिक दलों में भी रख ही लिए जाते हैं कुछ भले और ईमानदार लोग !

    योग्य, सुशिक्षित ईमानदार और प्रतिभा सम्पन्न  कार्यकर्ताओं से दूर क्यों भागती हैं राजनैतिक पार्टियाँ ?आखिर सदाचरण सहने का अभ्यास उन्हें क्यों नहीं करना चाहिए ! यदि ऐसा नहीं कर सकते तो भ्रष्टाचार का विरोध वो करते आखिर किस मुख से हैं !केवल अपने को ईमानदार दिखाने के लिए भ्रष्टाचार के विरुद्ध मचाते हैं शोर !
 आज की तारीख में राजनीति! धनबली बाहुबली धोखाधड़ी एवं झूठ फरेब करने बालों की अधिकृत मंडी है राजनीति ! सभी प्रकार के अपराधी बेखौफ होकर भागते हैं राजनीति की ओर !यही एकमात्र ऐसा स्थल है जहाँ पहुँचकर अपराधी भी आँख दिखा सकते हैं प्रशासन को !और ठेंगा दिखा देते हैं कानून को !उन्हें राजनैतिक दलों में शरण मिल भी जाती है !
  बंधुओ!ये कोई संयोग नहीं होता है कि कुछ लोग अचानक ही निकल आते हैं अपराधी! सच्चाई तो यह है कि दागदार लोग जान बूझ कर रखते हैं राजनैतिक दलों के मालिक, ताकि जैसे ही उनसे थोड़ी बहुत अनबन शुरू हो तो पोल खोल देने की बात कहकर उन्हें धमकाकर चुप करा दिया जाए !जबकि योग्य  लोगों को ऐसे समय सँभाल पाना बहुत कठिन होता है !राजनैतिक दलों में ये बीमारी आज मंडल और ब्लॉक स्तर तक फैल चुकी है हर पदाधिकारी चाहता है कि उसका कोई कंपटेटिव न हो ताकि वो जैसा चाहे वैसा कर सके और जब कोई पद प्रतिष्ठा या टिकट मिलने का शुभ अवसर आवे तो अपने आस पास के बाक़ी लोगों को बदनाम करके अपना नाम आगे बढ़ा लिया जाए ! अपने इन्हीं दुर्गुणों के कारण पार्टियों में ब्लॉक से लेकर मंडल तक के प्रमुख लोग स्वयं ही सँभाल रहे हैं मोर्चा !बड़ी बड़ी पार्टियों के प्रांतीय प्रमुख पदाधिकारी स्वयं गोदने में लगें हैं फेस बुक ताकि अपने आस पास किसी और की पहचान न बन जाए ! 
  भ्रष्टाचार समर्थक दल प्रतिभासंपन्न सुशिक्षित ईमानदार युवकों को अपनी पार्टियों में घुसने ही नहीं देते ! आखिर क्यों क्या कमी होती है उनमें !
     अयोग्य लोगों को योग्य पदों पर बैठाने के पीछे का भाव आखिर क्या होता है राजनैतिक दलों का ! यही न कि ऐसे लोग अपने राजनैतिक स्वामियों के सामने खड़े दुम हिलाते रहेंगे और बताते रहेंगे उन्हें ब्रह्मा विष्णु महेश !जैसे किसान जिन बैलों को जोतना चाहता है उन्हें पहले नपुंसक बना लेता है बाद में जोतता है हल में क्या राजनैतिक दल भी अपने कार्यकर्ताओं के प्रति अब इसी भावना से भावित होते जा रहे हैं अन्यथा प्रतिभा संपन्न लोगों को अपने दलों में पदाधिकारी बनाने में क्या कठिनाई होती है उन्हें ! यही न कि वो गलत को गलत कहेंगे ,भ्रष्टाचार का विरोध करेंगे ,अपराधियों का बहिष्कार करेंगे सदाचरण को प्रोत्साहित करेंगे किंतु ये सब न हो इसीलिए तो योग्य सुशिक्षित और प्रतिभा सम्पन्न लोगों से दूर भागती हैं राजनैतिक पार्टियाँ !
     केवल यही न कि उनकी नजर में देश की जनता केवल वोट बैंक है इससे ज्यादा कुछ नहीं । जैसे कसाई को बकड़ी में केवल मांस दिखता है ,बलात्कारी को लड़की में केवल सेक्स दिखता है ठीक इसी प्रकार से नेताओं  को  जनता में केवल वोट दिखते हैं !जैसे कसाई को बकड़ी की भावनाओं की परवाह नहीं होती, जैसे बलात्कारी को लड़की की भावनाओं की परवाह नहीं होती वैसे ही नेता को जनता की भावनाओं की परवाह नहीं होती !जैसे कसाई बकड़ी को काटने से पहले उसकी पीठ सहलाता है जैसे बलात्कारी लड़की से बलात्कार करने से पहले उससे प्यार करने का नाटक करता है ऐसे ही धोखा देने से पहले नेता लोग जनता को सारे आश्वासन देते हैं सब कुछ देने की बातें करते हैं !बाद में न चाहते हुए भी जैसे बकड़ी को सबकुछ सहना पड़ता है ,लड़की को सहना पड़ता है वैसे ही जनता को भी सबकुछ सहना ही पड़ता है । 
   राजनैतिक पार्टियों के मठाधीश देश की जनता से केवल उनका वोट लेना चाहते हैं लेकिन चौधराहट अपनी ही चलाना चाहते हैं !
     वायदा बाजार की तरह ही राजनीति में भी सारा आदान प्रदान केवल बातों का ही होता है बड़े बड़े मगरमच्छों ने अपने एवं अपनों के लिए बना रखी हैं राजनैतिक पार्टियाँ और चुनाव आते ही जनता को तरह तरह से बेवकूफ बनाना शुरू कर देते हैं चुनाव आते ही कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर आयोजित करती हैं । क्या वहाँ सदाचरण और ईमानदारी सिखाई जाती होगी या समझाया जाता होगा शांति पूर्ण मतदान करने कराने का ज्ञान विज्ञान !वर्तमान राजनैतिक दलों से जो लोग ऐसी पवित्र आशाएँ करते हैं वो घोर अंधकार में हैं उन्हें चाहिए कि देश के योग्य ,ईमानदार और प्रतिभा संपन्न लोगों को स्वतन्त्र रूप से उतारना चाहिए चुनावों में और स्वराष्ट्र में घटती नैतिकता की आपूर्ति के लिए संस्कार संपन्न लोगों को बढ़ाना चाहिए आगे !वर्तमान राजनैतिक दलों से निराश ही होना पड़ा है और आगे भी आशा करने का कोई औचित्य नहीं दिखता है अन्यथा
भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति के लिए जो पार्टियाँ नेताओं के लिए भी शिक्षा अनिवार्य करें उनका समर्थन किया जाना चाहिए !

    जैसे जमीन के अंदर हर जगह पानी है वैसे ही राजनीति में भ्रष्टाचार है !खोदाई के बिना पानी नहीं मिलता और जाँच के बिना भ्रष्टाचार !!see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2015/07/blog-post_12.html

 

       

Sunday, 12 July 2015

सांसद विधायक पहले शिक्षित और शालीन होते थे तब नहीं होती थी ऐसी हुड़दंग ! योग्यता के आधार पर ही होता था नेताओं का सम्मान !

  जिसे कुछ पता ही न हो वो चर्चा क्या करे !शिक्षा नहीं तो ज्ञान नहीं और ज्ञान नहीं तो चर्चा क्या ?ऐसे तो हुल्लड़ ही होगा या फिर फेंके जाएँगे माईक और पटकी जाएँगी कुर्सियाँ !फाड़े जाएँगे कागज पत्तर !यही तो है आज की राजनीति ! कोई पार्टी आज पढ़े लिखे ईमानदार लोगों को अपनी पार्टी में घुसने ही नहीं देना चाहती और यदि भाग्यवश घुस भी गए तो वो रखे हासिए पर ही जाते हैं । 
   जिसे जो पता है वही तो करेगा !अब जिसने केवल पहलवानी ही सीखी हो वो श्रेष्ठ सदनों की चर्चा में भाग कैसे ले !ये उसका काम ही नहीं है वो तो अपनी सहभागिता निभाने के लिए माईक फेंक सकता है किसी के ऊपर कुर्सी पटक सकता है किंतु वो ज्ञान विज्ञान की संविधान सम्मत चर्चा क्या जाने जिसने कुछ पढ़ा ही न हो !इसलिए चुनाव लड़ने के लिए शिक्षा अनिवार्य क्यों न की जाए !ताकि लोक सभा और विधान सभाओं का हुल्लड़ बंद हो !और इन श्रेष्ठ सदनों का जनहित में सदुपयोग हो सके !
   जनप्रतिनिधियों का शोर हुल्लड़ तू तू मैं मैं  हो या माइक फेंकना !कुर्सी पटकना ही क्यों न हो क्या इन श्रेष्ठ सदनों का यही सदुपयोग है ! सांसदों विधायकों में कवि अधिक होंगे तो कविताओं से उदाहरण देंगे,लेखक होंगें तो साहित्य से देंगे, कुछ पढ़े लिखे होंगे अच्छे बुरे की  समझ होगी इसके अलावा जो लोग जैसे होंगे वैसी चर्चा होगी ! चर्चा के लिए कुछ जानना जरूरी है जानने के लिए कुछ पढ़ना जरूरी है किन्तु राजनीति करने के लिए शिक्षा जरूरी नहीं है आखिर क्यों ?बिना ज्ञान के    चर्चा नहीं हो सकती शिक्षा के बिना ज्ञान कैसे संभव है !
  शिक्षित सांसद अधिक होंगे तो चर्चा होगी चिंतन होगा विचारों में सहमति होगी !अशिक्षित नेता लोग  तू तू मैं मैं न करें असंसदीय भाषा न बोलें इसीप्रकार से पहलवान उद्दंड लोग माइक न तोड़ें कुर्सी न फेंकें   तो आखिर अपनी योग्यता का परिचय कैसे दें ! सत्तापक्ष हो या विपक्ष नेताओं के आपसी तू तू मैं मैं से आखिर क्या सीखे युवा पीढ़ी ?
   बहुमत के मद में सरकारों की मनमानी सत्ता छिनने के दुःख से विपक्ष की बदजुवानी से आखिर क्या सीखे युवा पीढ़ी ! निराश करने वाली उभाऊ राजनीति से कैसे सुरक्षित रखी जाए तरुणाई !आज सबसे बड़ा प्रश्न यह है !
    सत्तापक्ष और विपक्षी दलों और नेताओं के बीच आपसी संबंधों का स्तर इतना नहीं गिरना चाहिए कि देखने वालों को लगने लगे कि जैसे हाथी चला जा रहा है और कुत्ते भौंकते जा रहे हैं किंतु हाथी को परवाह ही न हो और कुत्तों को समझ में न आ रहा हो कि अब इसे रोकने के लिए करें तो क्या करें ! 
     
    आज देश की राजनीति इसी प्रकार से सर्व दुर्गुण संपन्न होती जा रही है और संवैधानिक मर्यादाओं  की सीमा रेखाएँ मिटती  जा रही हैं मंत्री मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री आदि पर तो विपक्ष ऐसे अपनी खुंदक निकलता है जैसे किसी गाँव में आए हाथी को देखकर कुत्ते भौंकने लगते हैं ।
    बंधुओ !यदि वो हाथी ये समझकर सुधार  भी करना भी चाहे कि आखिर इन्हें परेशानी क्या है ये क्यों भौंक रहे हैं तो उसे पता ही नहीं नहीं लग पाता है कि कारण क्या है । यदि हाथी आगे की ओर बढ़ता है तो ये भौंक रहे होते हैं तो हाथी सोचता है कि लग रहा है कि मेरा आगे की ओर जाना इन्हें पसंद नहीं है तो वो पीछे की ओर चलने लगता  तो भी ये उधर से घेर कर भौंकने लगते हैं फिर हाथी ने समझ लिया कि इनकी परवाह करनी ठीक नहीं है लग रहा है कि इन्हें खुद पता ही नहीं है कि इन्हें बुरा क्या लग रहा है इसलिए वो उनकी बिना परवाह किए ही चलने लगता है ।  बंधुओ ! वर्तमान समय राजनीति की भी यही स्थिति है कि सत्तापक्ष और विपक्ष का आपसी व्यवहार भी इसी प्रकार का होता जा रहा है सत्तापक्ष थोड़े बहुत दिन तो विपक्ष की परवाह करता है किंतु जब उसे बीमारी पता लगती है कि पाँच वर्ष तक ऐसा करना ही पड़ेगा अन्यथा पार्टी के मालिक लोग इन्हें धक्का मारकर बाहर करेंगे इसलिए इनकी बिना परवाह किए ही आगे बढ़ना पड़ेगा तब वो हाथी की तरह बिना परवाह किए ही आगे बढ़ने लगता है तो कहते हैं कि सत्ता पक्ष निरंकुश हो रहा है !सत्ता पक्ष करे तो आखिर क्या करे !चुनाव जीत कर उसने कोई अपराध कर लिया है क्या ?
    बंधुओ ! निजी हमलों के अशोभनीय प्रहारों से सत्ता और विपक्ष के जहरीले संवादों ने समाज से शालीनता का हरण किया है । अब कोई किसी की परवाह नहीं कर रहा है जिसे जो मन आ रहा है वो वही कहता है वही करता है वो कितना भी गलत ही क्यों न हो ,कानून जेब में डाले घूम रहे हैं अपराधी !नेताओं के ये दोष और दुर्गुण संसद और विधान सभाओं से निकलकर समाज में और समाज से परिवारों तक पहुँचने लगे हैं जिन्हें रोका  जाना बहुत जरूरी है । 
   बंधुओ !सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों के बीच आपसी संबंध ऐसे नहीं होने चाहिए कि हाथी चला जाता है और कुत्ते भौंका करते हैं !जब सरकार की अच्छी बुरी हर बात को विपक्ष नकारने लगता है और सरकार अपनी अच्छी बुरी हर बात विपक्ष की परवाह न करती हुई विपक्ष और जनता पर थोपने लगती  है तब बनने लगती है यह तस्वीर ! जो लोकतंत्र के लिए घातक होती है।
   ऐसे दृश्य देखकर जनता को राजनीति से होने लगती है घोर निराशा !यह सब देखकर भी बेमन ही सही जनता ढोया करती है पूर्वजों का स्वप्निल लोकतंत्र !और पालन करती रहती है ऐसे नेताओं के बनाए कानून !जिनके अपने उठने बैठने बोलने व्यवहार करने के ढंग से जनता घृणा करने लगी है आज !
      बंधुओ !लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने के लिए उचित है कि विपक्ष की प्रमाणित बातों एवं अनुभव का  सम्मान तो रखा ही जाना चाहिए और विपक्ष भी इतना समझदार तो होना ही चाहिए जो तथ्यपरक जनहित के विचार रखने की क्षमता रखता हो ! आपसी एवं निजी आरोपों  प्रत्यारोपों के माध्यम से सरकार के शिखर पुरुषों का उपहास उड़ाने वाला विपक्ष मात्र पद लोलुपता के कारण अपने प्रशासकों की गरिमा के साथ खिलवाड़ कर रहा होता है  आखिर कुछ तो शालीनता बरती ही जानी चाहिए आपसी संवादों में !सूटबूट की सरकार हो या खुजलीवाल या मौन मोहन सिंह जैसे शब्दों की जगह चर्चा का केंद्र जनसेवा के कार्यों बनाया जाए जिसके लिए सरकारों का गठन होता है वही अच्छा है ।
    सत्ता पक्ष हो या विपक्ष उन्हें नहीं है अपनी अपनी जिम्मेदारियों का एहसास यही लोग करवा रहे हैं लोकतंत्र का उपहास !  
     विपक्ष का काम ऊटपटाँग तर्कों एवं बातों के बवंडर बना बना कर सरकारों को केवल गालियाँ देना ही  होता है क्या ? और सत्ता पक्ष का काम तानाशाह  बनकर विपक्ष को मुख चिढ़ाना ही होता है क्या ?क्या भला होगा इससे जनता का !
  मंत्री मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को जनता क्या केवल इसीलिए चुनती है कि विपक्ष इनकी निंदा करता रहे !इनके कार्यों की निंदा करता रहे ऊट पटांग शब्दों से सत्ता पक्ष को अपमानित करता रहे ।आखिर हमारे संवैधानिक पदों की इज्जत हम नहीं करेंगे तो और कौन करेगा ?
         बंधुओ ! राजनीति में आलोचना होती भी है और होनी भी चाहिए किंतु सरकार पर संवैधानिक अंकुश लगाकर रखना विपक्ष का कर्तव्य है । बंधुओ !जनता की भलाई के लिए आपसी आलोचनाएँ हों तो हों मतभेद में क्या बुराई है किन्तु मन भेद न होने पाए ! 
   आज विपक्ष के लिए अपनी इस पीड़ा को पचा पाना अत्यंत कठिन होता है कि वो पाँच वर्ष तक बिना सरकारी ताम झाम के सत्ता से दूर रहकर जीवन यापन कैसे करे ! इस पीड़ा के याद आते ही विपक्षी लोग पागल हो उठते हैं और जो मन आता है सो बोलने  बकने लगते हैं संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को ! उनके लिए तरह तरह के अशोभनीय सम्बोधन देते हैं उनके रहन सहन वेष भूषा को लेकर ऊट पटांग टिपणियां और बात बात में माफी माँगने की माँग करना कहाँ तक न्यायोचित है आखिर वे देश और प्रदेश की जनता के चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं और उनमें लाख बुराई हो सकती हैं किंतु जनता का विश्वास जीतने में वे कामयाब रहे हैं इसके लिए वो प्रशंसनीय हैं ही !
    जो लोग झूठ साँच बोलकर वायदे करके सत्ता में आते हैं ये उनकी गलती है किंतु इसका परिमार्जन उनकी निंदा करने से नहीं होगा अपितु इससे तो एक सन्देश जाता है कि सामने वाले को मंत्री मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री पद तक पहुँचने की बात को पचा नहीं पा रहा  है विपक्ष !
      

भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति के लिए सुशिक्षित योग्य एवं ईमानदार नौजवानों को क्यों न दिया जाए अवसर !

  योग्य, सुशिक्षित ईमानदार और प्रतिभा सम्पन्न  कार्यकर्ताओं से दूर क्यों भागती हैं राजनैतिक पार्टियाँ ?आखिर सदाचरण सहने का अभ्यास उन्हें क्यों नहीं करना चाहिए ! यदि ऐसा नहीं कर सकते तो भ्रष्टाचार का विरोध वो करते आखिर किस मुख से हैं !केवल अपने को ईमानदार दिखाने के लिए भ्रष्टाचार के विरुद्ध मचाते हैं शोर !
  वायदा बाजार से बड़ा जुआँ है आज राजनीति ! धनबली बाहुबली धोखाधड़ी एवं झूठ फरेब करने बालों की अधिकृत मंडी है राजनीति ! सभी प्रकार के अपराधी राजनीति की ओर भागते हैं आखिर क्यों !उन्हें राजनैतिक दलों में शरण मिल भी जाती है किन्तु  भ्रष्टाचार समर्थक दल प्रतिभासंपन्न सुशिक्षित ईमानदार युवकों को अपनी पार्टियों में घुसने ही नहीं देते ! आखिर क्यों क्या कमी होती है उनमें !
     अयोग्य लोगों को योग्य पदों पर बैठाने के पीछे का भाव आखिर क्या होता है राजनैतिक दलों का ! यही न कि ऐसे लोग अपने राजनैतिक स्वामियों के सामने खड़े दुम हिलाते रहेंगे और बताते रहेंगे उन्हें ब्रह्मा विष्णु महेश !जैसे किसान जिन बैलों को जोतना चाहता है उन्हें पहले नपुंसक बना लेता है बाद में जोतता है हल में क्या राजनैतिक दल भी अपने कार्यकर्ताओं के प्रति अब इसी भावना से भावित होते जा रहे हैं अन्यथा प्रतिभा संपन्न लोगों को अपने दलों में पदाधिकारी बनाने में क्या कठिनाई होती है उन्हें ! यही न कि वो गलत को गलत कहेंगे ,भ्रष्टाचार का विरोध करेंगे ,अपराधियों का बहिष्कार करेंगे सदाचरण को प्रोत्साहित करेंगे किंतु ये सब न हो इसीलिए तो योग्य सुशिक्षित और प्रतिभा सम्पन्न लोगों से दूर भागती हैं राजनैतिक पार्टियाँ !
     केवल यही न कि उनकी नजर में देश की जनता केवल वोट बैंक है इससे ज्यादा कुछ नहीं । जैसे कसाई को बकड़ी में केवल मांस दिखता है ,बलात्कारी को लड़की में केवल सेक्स दिखता है ठीक इसी प्रकार से नेताओं  को  जनता में केवल वोट दिखते हैं !जैसे कसाई को बकड़ी की भावनाओं की परवाह नहीं होती, जैसे बलात्कारी को लड़की की भावनाओं की परवाह नहीं होती वैसे ही नेता को जनता की भावनाओं की परवाह नहीं होती !जैसे कसाई बकड़ी को काटने से पहले उसकी पीठ सहलाता है जैसे बलात्कारी लड़की से बलात्कार करने से पहले उससे प्यार करने का नाटक करता है ऐसे ही धोखा देने से पहले नेता लोग जनता को सारे आश्वासन देते हैं सब कुछ देने की बातें करते हैं !बाद में न चाहते हुए भी जैसे बकड़ी को सबकुछ सहना पड़ता है ,लड़की को सहना पड़ता है वैसे ही जनता को भी सबकुछ सहना ही पड़ता है । 
   राजनैतिक पार्टियों के मठाधीश देश की जनता से केवल उनका वोट लेना चाहते हैं लेकिन चौधराहट अपनी ही चलाना चाहते हैं !
     वायदा बाजार की तरह ही राजनीति में भी सारा आदान प्रदान केवल बातों का ही होता है बड़े बड़े मगरमच्छों ने अपने एवं अपनों के लिए बना रखी हैं राजनैतिक पार्टियाँ और चुनाव आते ही जनता को तरह तरह से बेवकूफ बनाना शुरू कर देते हैं चुनाव आते ही कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर आयोजित करती हैं । क्या वहाँ सदाचरण और ईमानदारी सिखाई जाती होगी या समझाया जाता होगा शांति पूर्ण मतदान करने कराने का ज्ञान विज्ञान !वर्तमान राजनैतिक दलों से जो लोग ऐसी पवित्र आशाएँ करते हैं वो घोर अंधकार में हैं उन्हें चाहिए कि देश के योग्य ,ईमानदार और प्रतिभा संपन्न लोगों को स्वतन्त्र रूप से उतारना चाहिए चुनावों में और स्वराष्ट्र में घटती नैतिकता की आपूर्ति के लिए संस्कार संपन्न लोगों को बढ़ाना चाहिए आगे !वर्तमान राजनैतिक दलों से निराश ही होना पड़ा है और आगे भी आशा करने का कोई औचित्य नहीं दिखता है अन्यथा
भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति के लिए जो पार्टियाँ नेताओं के लिए भी शिक्षा अनिवार्य करें उनका समर्थन किया जाना चाहिए !

    जैसे जमीन के अंदर हर जगह पानी है वैसे ही राजनीति में भ्रष्टाचार है !खोदाई के बिना पानी नहीं मिलता और जाँच के बिना भ्रष्टाचार !!see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2015/07/blog-post_12.html

जैसे जमीन के अंदर हर जगह पानी है वैसे ही राजनीति में भ्रष्टाचार है !खोदाई के बिना पानी नहीं मिलता और जाँच के बिना भ्रष्टाचार !!

आजकल राजनैतिक दल मछुआरों के गिरोह की तरह हैं ,मछुआरों  की तरह ही उनके बड़े बड़े नेता देश रूपी समुद्र में जनता रूपी मछलियों को फँसाने के लिए हर चुनावों से पहले लोकतंत्र की नाव में बैठकर निकलते हैं , अच्छे अच्छे वायदे आश्वासनों जातियों सम्प्रदायों से बुने भाषणों   के  जाल फेंकते हैं सभा सम्मेलनी समुद्रों में !
     जो नेता अपने भाषणों से जितने अधिक लोगों को खुश कर पाता है वो उतना बड़ा नेता ! और जो जितना अधिक झूठे आश्वासन दे पाता है उससे उतने अधिक लोग खुश होंगे । कुल मिलाकर जितने अधिक झूठे भाषणों के जाल में जितनी ज्यादा जन      मछलियाँ(जनता)फँस जाए वो उतना बड़ा नेता मान लिया जाता है जबकि जाल फेंकने वाले मछुआरे को ये पता भी नहीं होता है कि उसने ऐसी क्या कलाकारी की थी कि जिससे फँस गईं इतनी सारी  मछलियाँ और जिस बार नहीं फँसती हैं उस बार कोसा जाता है वो बेचारा !जबकि जाल फेंकना तो उसके बश में है किंतु मछलियाँ फँसाना उसके बश में नहीं होता है । आम चुनावों में नेताओं की निगाह जनता के प्रति उस मछुआरे जैसी होती है जो अधिक से अधिक मछलियाँ फँसाने के लिए समुद्र में जाल फेंकता है जनता की कीमत उन मछलियों से ज्यादा नहीं होती है उसके दिमाग में जो मछुआरों  के जाल में फँसती हैं इसीप्रकार से जनता केवल वोट डाल सकती है इसके अलावा आम आदमियों की परवाह कहाँ होती है किसी राजनैतिक पार्टी या नेता को !जैसे मछलियाँ पकड़ने के बाद जाल को भूल जाते हैं मछुआरे वैसे ही वोट लेने के बाद लोकतंत्र को भूल जाते हैं नेता !जिस नेता की जाँच होती है उसकी खुलती चली जाती हैं बड़ी बड़ी घटनाएँ किंतु जिनकी जाँच ही नहीं होती वो सौ टका ईमानदार माने जाते हैं किंतु ईमानदार और बेईमान नेताओं के बीच अंतर करने वाली जाँच एजेंसियाँ होती तो सरकारों के ही अंदर में हैं । 
      नेताओं की प्रजाति बहुत निर्मम होती है ये केवल अपनी छाया देखते हैं अपनी प्रशंसा सुनते हैं सत्ता का उपयोग केवल अपने सुख साधन जुटाने के लिए करते हैं अपने धन संग्रह करने के लिए बड़े बड़े घपले घोटाले करते हैं अपने बच्चों को ही राजनीति में आगे बढ़ाते हैं उन्हें ही बड़े बड़े पद प्रतिष्ठा आदि प्रदान करते हैं देश के बड़े बड़े पढ़े लिखे प्रतिभा संपन्न लोग जो ईमानदारी पूर्वक देश की सेवा करना चाहते भी हैं उन्हें ये लोग मुख ही नहीं लगाते हैं क्योंकि अच्छे लोग यदि राजनीति में आ जाएँगे तो इन लोगों का क्या होगा जो सारे दोषों दुर्गुणों से लैस हैं अयोग्य हैं अशिक्षित या स्वल्प शिक्षित हैं वो कैसे टिक पाएँगे भले और ईमानदार लोगों के सामने और वो ऐसे लोगों का सम्मान भी नहीं करेंगे इस लिए ये जानबूझ कर चयन ही अपराधियों का करते हैं ताकि वो भ्रष्टाचार के द्वारा चार पैसे कमाएँ दो अपने राजनैतिक आकाओं को दें दो अपने पास रखें भले ईमानदार शालीन शिक्षित लोगों से नेताओं को क्या लाभ !ऐसे लोग भ्रष्टाचार के द्वारा पार्टी का फंड नहीं इकठ्ठा कर सकेंगे अपने अयोग्य नेतृत्व की सलाह के सामने अपना भी मत रखना चाहेंगे और गाली गलौच मार पीट आदि नहीं करेँगे ! जैसे जमीन के अंदर पानी हर जगह होता है किंतु जहाँ खोदा जाए वहीँ से निकलने लगता है वैसे ही राजनीति में भ्रष्टाचार हर जगह है  किंतु जिसकी जाँच होती है प्रकट वहीँ होता है और जिसकी जाँच न हो तो वो ईमानदार !जाँच शुरू होते ही भ्रष्टाचार निकलने लगता है ।हर प्रकार के अपराधी राजनीति में मिल जाएँगे अभी फर्जी डिग्री वाले पकड़े जाने लगे तो उठने कई बड़े लोगों पर अँगुलियाँ !राजनीति तो अपराधों  की मंडी है हर बरायटी का अपराधी कानून से बचने के लिए राजनीति  के झँगोले में छिपा बैठा है और राजनीति ही एक ऐसी जगह है जहाँ पहुँचकर लोग कानून से ऊपर उठ जाते हैं ।किंतु खोदाई के बिना पानी नहीं मिलता और जाँच के बिना भ्रष्टाचार !
    राजनीति में ईमानदारी ,चरित्र और सिद्धांतों की बातें अपनी बात मनवाने के लिए हथियार रूप में केवल दूसरों को उदाहरण और उपदेश देने के लिए होती हैं !बाकी इनका कोई महत्त्व नहीं है !      
सरकारी नौकरी पाने के लिए तो शिक्षा और डिग्री चाहिए किंतु मंत्री बनने के लिए नहीं !आखिर क्यों ?
एक शिक्षक बनने के लिए तो ट्रेनिंग किंतु मंत्री बनने के लिए कुछ नहीं !आखिर क्यों ?    
      भारत का लोकतंत्र मजबूरी में ढो रहा है गरीब और उसको भोग रहे हैं रईस नेता खूँटा और सरकारी कर्मचारी !    
    बंधुओ ! जनतंत्र में केवल शिर गिने जाते हैं लोकतंत्र तो भीड़ के कन्धों पर स्थापित है वह भीड़ कैसे लोगों की है इसका कोई महत्त्व नहीं है भीड़ मक्खियों की तरह है मक्खियाँ  दो ही जगह भिनभिनाने के लिए भीड़ लगाती हैं एक तो मिठाई पर दूसरा गंदगी पर !मिठाई बनाने में समय लगता है सामान लगता है परिश्रम लगता है उसे बनाना सीखना होता है आदि आदि बड़े बलिदान करने होते हैं ये है सेवा भाव की राजनीति जिस पथ पर चमकने के लिए केवल कुर्वानी करने पर ध्यान होता है यहाँ चमकने की तो चाह ही नहीं होती है।फिर भी समय रहते यदि समाज उन्हें भी पहचान पाया तो चमक जाते हैं अन्यथा उनके बलिदान का  आदर्श उदाहरण प्रचारित नहीं हो पाता है।
    इसी प्रकार गंदगी फैलाने में कितना समय लगता है कहीं भी खखार कर थूक दिया उस पर तुरत मक्खियाँ भिनभिनाने लगेंगी !यही सॉर्टकट राजनीति है जो पनपती ही गंदगी में है जहाँ आपराधिक बलगम की गंदगी पेशाब करके बहानी होती है जो देखने में तो लगे कि साफ हो गया है किंतु वास्तविकता में तो उससे अधिक गंदा हो गया होता है !इस पथपर तो लोग महीनों वर्षों में न केवल चमक जाते हैं अपितु विधायक सांसद मंत्री मुख्य मंत्री क्या प्रधानमंत्री तक बनते देखे जाते हैं  
     ऐसे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सरकार स्वामियों के बयानों पर बवाल करके चरित्रों पर सवाल करके उनकी संपत्ति को भ्रष्टाचारी बताकर आप अपनी ऊर्जा नष्ट कर रहे हैं मीडिया का समय बर्बाद कर रहे हैं जनता के धन से चलने वाली बहु खर्चीली विधान सभा और लोक सभा का कीमती समय यह जानते हुए भी आप बर्बाद कर रहे हैं कि इन्हें ठीक करने का जनता के पास कोई विकल्प नहीं है ।
   नेताओं के अपराध तो अपराध नहीं अपितु उन पर  लगे मिथ्या आरोप होते हैं उनकी  फर्जी का क्या मतलब वो बिना पढेलिखे सबपर भारी होते हैं
     कोई पढ़ालिखा और ईमानदार व्यक्ति यदि राजनीति में सफल हुआ हो तो समझ लेना वो बहुत भाग्यशाली है ये उसके जन्म जन्मान्तरों के पुण्यों का ही प्रभाव है कि किसी पार्टी के राजनेताओं ने उसे अपने यहाँ घुसने दिया !अन्यथा अपराध के बिना  राजनीति और राजनीति के बिना अपराध चलना बहुत कठिन है कोई पार्टी किसी ईमानदार और किसी पढ़े लिखे व्यक्ति को अपनी पार्टी में घुसने नहीं देना चाहती जब तक उसने दो चार कायदे के काम किए न हों बाकी जो बहुत भाग्यशाली होते हैं
   सेवाभाव विहीन नेतागिरी का शार्टकट रास्ता अपराधों से होकर ही गुजरता है यह सबको पता है !इसलिए नेताओं के चरित्रों बयानों बवालों एवं उनके घोटालों पर सवाल क्यों ?जो जितने बड़े अधिकारी को जितना अधिक बेइज्जत कर सकें उतनी जल्दी चमक उठते हैं ! उसके लिए वो कितने भी पाप क्यों न करें ! 
      बंधुओ !कई बड़े दलों के नेताओं  यहाँ जा जाकर मैंने भी धक्के खाए हैं कि वो मुझे भी अपने दल में सम्मिलित करके मुझे भी अपनी प्रतिभा प्रस्तुत करने का अवसर दें किंतु उन्हें मैं इसलिए नहीं पसंद आया कि मैं शिक्षित हूँ ईमानदार और सिद्धांतवाद की राजनीति  करने का पक्षधर हूँsee more...http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html बंधुओ !इस घोषित मूल्य विहीन राजनैतिक युग में अलग से किसी को भ्रष्टाचारी कहना क्या उसका अतिरिक्त अपमान नहीं  है  ऐसा करने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए  ।
    कम समय में नेता बनने के लिए सरल साधन आप जितने बड़े व्यक्ति को चोर घोटालेबाज भ्रष्टाचारी अपराधी लुटेरा आदि कुछ भी कह दें और समाज को समझा दें कि तुम्हारी गरीबत  का कारण यही नेता जी हैं जनता चूँकि परेशान है ही इसलिए उनके झूठ को भी सच मान लेती है इतने में  ही नए नए नेता जी चमक उठते हैं ।
    नेता जी किसी इतिहास पुरुष या सर्व सम्माननीय स्त्रीपुरुष धर्म संप्रदाय आदि को जितनी भद्दी गालियाँ  दे जाएँ और खेद प्रकट करने में जितना अधिक समय खींच ले जाएँ उनकी उतनी राजनैतिक पॉपुलैरिटी बढ़ती रहती है ।     
   जितने अधिक मीडिया में दिखाई पढ़ें उतनी जल्दी चमक उठते हैं क्योंकि हर क्षेत्र में गधों को घोड़ा बनाने का काम मीडिया आज बहुत अच्छी तरह से कर रहा है इसीलिए जो भी लोग अपने को गधा समझते हैं और बनना घोड़ा चाहते हैं किंतु उसके लिए जो ताकत चाहिए वो उनके पास होती नहीं है तब वो मीडिया की शरण पहुंचते हैं मीडिया उनका उद्धार कर देता है भले ही ये ज्योतिष और धर्म से जुड़े लोग ही क्यों न हों उनके पास भी अपनी कोई योग्यता नहीं होती अपने पास कोई डिग्री प्रमाण पत्र नहीं होते फिर भी मीडिया उन्हें केवल उनकी बकवास के बलपर  घोषित कर देता है ज्योतिषी !इसीलिए वो टीवी चैनलों पर दिन भर किया करते हैं बकवास ! खैर !!ये मीडिया का महत्त्व है । 
     इसीप्रकार से राजनैतिक क्षेत्र में भी गधों को घोड़ा  बना देता है मीडिया किंतु उसके लिए उसे देना होता है धन !क्योंकि टीवी चैनलों पर आने के लिए पैसा चाहिए वो ब्याज पर लेकर नौसिखिया नेता लोग राजनीति करेंगे क्या या उसके लिए लोन पास कराएँगे सरकार से ! स्वाभाविक है कि या तो वो अपराध से पैसे संग्रह करके अपना राजनैतिक जीवन डबलप करें और या फिर किसी अपराधी या अपराधी ग्रुप से इस कमिटमेंट के साथ अपने लिए फाइनेंस करवावें कि हम सत्ता में आएँगे  तब सरकार तुम्हारे अनुशार चलेगी  !
   राजनेता ईमानदार भी हों ये अच्छी बात है किंतु मेरे विचार से इस युग में किसी नेता से ईमानदारी की आशा करना ठीक नहीं है । बंधुओ ! एक किसान मजदूर ईमानदारी पूर्वक दिन भर परिश्रम करता है फिर भी परिवार पालना उसके लिए मुश्किल हो रहा है इसीलिए कई किसान घबड़ाकर आत्महत्या तक करते देखे जा रहे हैं वहीँ दूसरी ओर राजनीति वाले लोगों का काम क्या है वो करते क्या हैं करते कब हैं फिर भी उनकी अपार सम्पत्तियों के स्पष्ट स्रोत क्या हैं यह सब कुछ बारामूडा ट्रायंगल की तरह रहस्य ही बने हुए हैं इनके जाँच की प्रक्रिया अंतरिक्ष के किसी ब्लैक होल से कम नहीं है !राजनीति की इस अनसुलझी पहेली में सम्मिलित सभी दलों के लोग न इसे कभी सुलझने देंगे और न ही सुलझाएँगे इसी में उन सबकी भलाई है । केवल पक्ष विपक्ष की भूमिका निभाने एवं अपनी जीवंतता प्रदर्शित करने के लिए कभी कभी शोर मचाते रहेंगे ! इसलिए  जनता भी इसे रहस्य ही बना रहने दे इसी में उसकी अपनी भलाई है  । 
    ईमानदार राजनीति के लिए या तो पारदर्शिता पूर्वक सभी नेताओं की अकूत संपत्ति की जाँच शुरू से की जाए !जब उन लोगों का राजनीति में प्रवेश हुआ था तब वो क्या थे और आज क्या हैं सभी दलों के सभी नेताओं की सारी संपत्ति का ब्यौरा जनता के सामने रखा जाए नेट पर डाल दिया जाए जनता जनता जैसा उचित समझेगी वैसा अगले चुनावों उन नेताओं के पक्ष विपक्ष में फैसला सुनाएगी लोकतंत्र में वही मान लेना चाहिए !
   ये  किसी के फोटो किसी के साथ दिखाकर किसी की चिट्ठी दिखाकर किसी का स्टिंग करके दिखाना यह सब करने वाले पर भरोसा कैसे किया जाए कि उसने किस स्वार्थ के लिए  किया है या कोई ब्लैक मेलिंग तो नहीं हो रही है आदि आदि !
  इसके लिए विपक्ष को जनता को विश्वास में लेना होगा किन्तु वातानुकूलित भवनों को छोड़कर निकलना वे भी नहीं चाहते हैं अच्छा आचरण वे भी नहीं करना चाहते हैं जनता से आँख मिला कर बात करने में डर उनको भी लगता है इसलिए विधान सभा और लोक सभा में ही हुल्लड़ काट कर सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार के साथ साथ समाज के लिए यदि कुछ करना चाहता था वो विपक्ष नहीं करने दिया !इसमें नुक्सान जनता का है जिसको उसने बहुमत दिया है वो पाँच वर्ष तक तो अपनी कुर्सी पर रहेगा ही इसमें जिसको अपना घर भरना होगा वो भरेगा ही यही तो राजनीति है किंतु जनता का काम होगा या नहीं ये आप्सनल है हो भी सकता है नहीं भी विपक्ष ने हुल्लड़ मचाया तो नहीं ही होगा  !अगले चुनावों में विपक्ष अपने सेवा कार्यों को गिनाकर चुनाव नहीं जीतना चाहता है अपितु सरकार की नाकामियों को गिनाकर लड़ता है चुनाव !हर पार्टी यही करती है । 
   नेतागिरी के प्रारंभिक काल में तो नेताओं को भी कानून के अनुशार ही चलना होता है किंतु जैसे जैसे उनकी पद प्रतिष्ठा बढ़ने लगती है लोग जुड़ने लगते हैं वैसे वैसे वो नेता शक्तिशाली होने लगते हैं इसप्रकार से नेताओं की शक्ति जैसे जैसे आगे बढ़ने लगती है कानून वैसे वैसे पीछे छूटने लगता है धीरे धीरे एक समय आता है जब कानून बहुत पीछे छूट जाता है और नेता तेजी से आगे निकल जाता है । यहाँ पहुँचकर उसे या तो कोई राजनैतिक पड़ाव मिल जाता है या फिर मजबूत मंजिल ही मिल जाती है जहाँ उसकी अपनी पहचान ऐसी हो जाती है कि जिसे अपने गुणों का सम्मान तो मिलता ही है दुर्गुणों का सम्मान भी मिलने लगता है जिसकी एक आवाज पर उसके समर्थन में लाखों लोग निकल पड़ते हैं ऐसी परिस्थिति में महाबली नेता अपने को कानून से ऊपर समझने लगता है लोग भी उसके विषय में ऐसा ही समझने लगते हैं ऐसी अवस्था में बड़े बड़े आरोपों में आरोपी नेता जिन्हें वर्षों की सजा सुनाई जा चुकी होती है वो बड़े धूम धाम से महोत्सव पूर्वक जेल जाते हैं जब तक मन आता है तब तक वहाँ अपने हिसाब से रहते हैं इसके बाद बाहर आकर संपूर्ण राजनीति करते हैं मंत्री मुख्यमंत्री आदि सबकुछ अपनी सुविधानुशार बन जाते हैं इस प्रकार से संविधान को ठेंगा दिखा दिया जाता है । ऐसे नेता जेल से बाहर  निकलते हैं तो चहरे चमक रहे होते हैं कपड़े दमक रहे होते हैं बड़ी भीड़भाड़ आदि जुलूसों के साथ निकलते हैं जेल से नारे लगाते हुए लोग दौड़ रहे होते हैं । मीडिया वाले नेता जी से मिलने को बेताब होते हैं नेता जी को देखते ही घेर लेते हैं सबसे पहले नेता जी देश की कानून व्यवस्था पर प्रश्न उठाते हैं कि हमको गलत फँसाया गया था मेरे साथ षड्यंत्र हुआ था मुझे विश्वास था कि सत्य की विजय होगी सो हुई और मैं छूट गया !
          आम आदमी जेल से निकलता है तो महीनों  लग जाते हैं रूटीन में आने में लोगों से आँखें मिलाने की हिम्मत नहीं कर पाता  है ! चेहरा उदास शर्म के मारे पानी पानी होता है जनता उसे देखती है और नेता जी को देखती तो समझ जाती है कि ये सब ड्रामा है सजा कितने भी वर्ष की क्यों न हुई हो किंतु ये नेता लोग हैं अभी छूट आएँगे और जनता अनुमान लगभग ठीक होता है नेता जी छूट भी आते हैं ।ये नेताओं का महाबली अवतार होता है जब इन्हें सब डरने लगते हैं ये किसी को कुछ भी बोल सकते हैं किसी को गाली गलौच कर सकते हैं मारपीट भी कर सकते हैं कुछ भी करें वो  सर्वसक्षम कैटेगरी में आ जाते हैं !
     इस राजनैतिक कौशल से  न्याय को जीत लेने वाले उस महाबली को तब इस बात की चिंता ही नहीं रहती है कि वो किसी से कैसे बात व्यवहार करे या उसकी कमाई लीगल है या अनलीगल इसके बाद तो वो किसी को कुछ भी बोले और किसी के साथ कैसा भी गंदा व्यवहार करे कैसे भी धन संग्रह करे किंतु उसके बातों और व्यवहारों को सही एवं संविधान सम्मत सिद्ध करने के लिए भाड़े के सलाह कार,वकीलादि लगे होते हैं जिन्हें फीस ही एक बात की मिल रही होती है कि नेता जी के हर गैरकानूनी काम को ,व्यवहार को ,बयान  को कानून सम्मत सिद्ध करना होता  है । 

 

Wednesday, 8 July 2015

लोकतंत्र या नेता नेतातंत्र ? सांसदों विधायकों की सैलरी बढ़ाते समय जनता से पूछा ही नहीं जाता तो काहे का लोकतंत्र !

   सरकारों को जनता चुन तो सकती है किंतु किसमें किसको चुने !विकल्प आखिर कहाँ है और जनता का भरोसा  हर दल ने तोड़ा है इसलिए जनता अपनी परवाह छोड़ उन्हीं दलों को बारी बारी मौका दिया करती है जिनसे निराश है जब चुनाव होने ही हैं वोट देने ही हैं और सहारा किसी दल या नेता से है नहीं अपना कमाना अपना खाना फिर कैसी सरकार !जब उससे कोई आशा ही न हो ! 
    काश !हमारे देश में भी लोकतंत्र होता !जिसमें जनता जो चाहती वो होता या फिर जनता की बात भी सुनी जाती !यह तो नेतातंत्र है इसमें नेता जो चाहते हैं वही होता है ! 
    यदि देश में लोकतंत्र होता तो किसानों की भी सुनी जाती और उन्हें नहीं करनी पड़ती आत्महत्या !किसी पत्रकार को कोई मंत्री जिंदा कैसे जला  सकता था,सरकारी प्राइमरी स्कूलों में क्यों नहीं होती है पढ़ाई !सरकारी अस्पतालों में क्यों नहीं मिलती दवाई ? सरकारी आफिसों में आम जनता को धक्के क्यों खाने पड़ते,FIR लिखवाने के लिए नेता जी से फोन क्यों करवाना पड़ता !सरकारी विभागों में अधिकारी कर्मचारियों के द्वारा क्यों की जा रही होती उपेक्षा ?इसलिए लोकतंत्र का तो नाम ही नाम है  वोट देने के अलावा कौन पूछता है जनता को !कलियुगी परिवारों में विवाहादि काम काज के समय बुजुर्गों को जिस तरह केवल हाँ करने के लिए बैठा लिया जाता है वही स्थिति भारतीय लोकतंत्र में जनता की है ।
    जनता को पता नहीं है कि नेताओं की अकूत संपत्ति के स्रोत क्या  हैं इतना जरूर है कि ईमानदारी पूर्वक बिना कुछ किए इतने पैसे कमाए ही नहीं जा सकते !फिर भी हमारे नेता कमा लेते हैं वो कब काम करते हैं क्या काम करते हैं किसी को नहीं पता होता है किंतु संपत्ति हजारों करोड़ में होती है !दूसरी और परिश्रमी किसान मजदूर मर रहे हैं काम कर कर के उन्हें दाल रोटी के लाले पड़े होते हैं !आखिर कैसा है ये लोकतंत्र ?जहाँ जनता को कुछ पता ही नहीं है फिर भी जनतंत्र है 
   अधिकार तो तब भी सरकार  और उसके कर्मचारियों के पास थे और अभी भी वहीँ हैं किंतु आमजनता तो केवल वोट देने के लिए होती है
 जनता भी राजनैतिक पार्टियों की लड़ाई तो लड़ा करती है एक को हटाना दूसरे को बैठाना दूसरे को हटाकर तीसरे को बैठाना  किन्तु अपनी लड़ाई कब और कैसे लड़ेगी जनता जिससे आएगा जनतंत्र ?
      वैसे भी वर्तमान समय में लोकतंत्र और कानून का सम्मान तो गरीब एवं  मध्यमवर्ग करता है धनी और नेताओं  का तो कानून स्वयं अनुगमन करने लगता है । ऐसे नेता जनता के अधिकारों की उपेक्षा करके मनमानी करने लगते हैं दूसरी ओर जनादेश संपन्न शासकों के सामने मुख खोलने का साहस किसी में नहीं होता !नौकरी करनी हो या राजनीति जहाँ जनादेश वहाँ सैल्यूट ! ऐसी परिस्थिति में लोकतंत्र कैसे संभव है ?
    जिस नेता  को चुनावों में बहुमत मिलजाता है वो प्रायः उस जनादेश का अपने को मालिक समझने लगता है जनादेश का गुरूर उसके  चेहरे पर साफ झलकता दिखता है वो दिखावटी विनम्रता चाहे जितनी ओढ़े किंतु सच्चाई झलक ही जाती है !जनादेश संपन्न नेता अपने को सर्वगुण संपन्न समझने लगते हैं उनकी जहाँ जरूरत है वहाँ उतना ध्यान न देकर जो काम समाज के अन्य लोगों के होते हैं वहाँ अपनी बहुमूल्य ऊर्जा लगाया करते हैं !जनादेशशक्ति से सक्षम शासक जिसे जैसा चाहे वैसा नाच नचावे अपने देश और प्रदेश के अपने मातहत लोगों से जो चाहे सो करवावे , वो कह दे कि कान पकड़कर उठो बैठो तो उसे वैसा करना पड़ेगा !आखिर पाँच वर्ष तक उसका चाह कर भी दूसरा कोई  क्या बिगाड़ लेगा बहुमत उसके साथ है । नौकरी करनी हो या राजनीति जहाँ जनादेश वहाँ सैल्यूट अन्यथा गए काम से !
    ऐसे शासक चाहें तो अपनी ताकत का इस्तेमाल निगरानी तंत्र को मजबूत बनाकर जन सेवा के लिए कर सकते हैं वालेंटियर तैयार करके घुसाए जा सकते हैं सरकारी कार्यालयों में जहाँ जनता को अकेला जूझना पड़ता है आखिर आम जनता की बात सुनने वाला वहाँ कोई तो होगा जो सुने और समझेगा जनता की परेशानी किंतु उसमें ठसक नहीं दिखाई पड़ती है इसलिए प्रायः ऐसे प्रशासक तमाशा पसंद होते हैं जिसका पता पाँच वर्ष बीतने पर लगता है !
     एक ओर लगातार काम करने पर भी आम जनता को दाल रोटी जुटाने के लाले पड़े होते हैं परिश्रमी किसान जरूरत की चीजों की चिंता में आत्महत्या कर रहे होते हैं जबकि नेताओं के पास न कोई काम  करने का समय न कोई काम करते देखता है किंतु जहाँ जाते हैं वहाँ जहाजों से, रहते हैं कोठियों में, टहलते हैं महँगी गाड़ियों से, बच्चे पढ़ाते हैं महँगे स्कूलों में , इनके बेटा बेटियों के शादी विवाह में तो करोड़ों का पानी पी जाते हैं लोग अंदाजा लगाओ क्या खर्च होता होगा कार्यक्रमों में ! नेता लोग एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं किंतु सत्ता में आने पर शांत हो जाते हैं । 
       कई नेता हजारों करोड़ के आरोप में जब जेल जाते हैं तो इतने धूम धाम से भेजे जाते हैं कि लगता है जैसे किसी तपस्वी पर अत्याचार हो रहा है और जब छूटकर आते हैं तो उनका काफिला देखकर लगता है जैसे किसी संत का स्वागत हो रहा है !जिन्हें हजारों करोड़ के गमन में वर्षों की सजा सुनाई जाती है वो सप्ताहों महीनों  में छूट आते हैं चुनाव लड़ते लड़वाते मंत्री मुख्यमंत्री आदि कुछ भी बन जाते हैं और नहीं तो मेकर आफ मंत्री या मुख्यमंत्री आदि और भी बहुत कुछ बन जाते हैं  और वो गमन वाले हजारों करोड़ कहाँ जाते हैं पता ही नहीं लगता । 
     दूसरी बात सरकारी अफसरों एवं धनी लोगों की आपसी साँठ से भोगा  जाता है देश का धन । छोटे छोटे जिन अधिकारी कर्मचारियों पर छापे पड़ते हैं तो सैकड़ों करोड़ की संपत्ति बरामद होते देखी जाती है और जिन पर नहीं पड़ते वो ईमानदार रईस ।छापे डालने आखिर कोई जाए क्यों मिल भी जाएगा तो कौन अपनी जेब में जाएगा !सरकारी कर्मचारियों की इसी अनात्मीय भावना ने देश की आम जनता की नजरों में सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों को अविश्वसनीय बना दिया है !
     प्राइवेट प्राइमरी स्कूलों में एक प्रबंधक बहुत कम पैसे देकर अपने अनट्रेंड शिक्षकों से उत्तम शिक्षा दिलवा  लेता है जबकि सरकारी लोग भी अपने बच्चों को उसी प्राइवेट में पढ़ाते हैं सरकारी स्कूलों में नहीं आखिर क्यों ? जबकि सरकार शिक्षा के लिए बड़े बड़े विज्ञापन करती है शिक्षा के लिए योजनाएँ बनाने के लिए बड़े अफसर रखती है मीटिंगें  करने के लिए ट्रेंड शिक्षक रखती है उन्हें प्राइवेट की अपेक्षा अधिक सैलरी देती है इसके बाद भी उनकी सैलरी आदि बढ़ाती रहती है फिर भी वो कभी कभी रूठ जाते हैं तो हड़ताल करने लगते हैं तो सरकार उनकी मनौवल कर रही होती है आखिर क्यों जबकि उनसे अधिक योग्य लोग उनसे कम सैलरी पर काम करने को तैयार होते हैं फिर भी सरकारों की मजबूरी क्या होती है क्यों बनने देती है यूनियनें क्यों है हड़ताल की सुविधा !सीधीबात जिसको  समझ में आता है सो नौकरी करे अन्यथा त्याग पत्र देकर अन्य योग्य जरूरत मंदों को मौका दे !किन्तु सरकारें ऐसा क्यों करें उनके बच्चे वहां पढ़ते नहीं हैं  इससे उनका अपना कोई नुकसान नहीं है जिस आम जनता का है वे कुछ कर नहीं सकते !सरकारी विभागों में कर्मचारियों का जनता के प्रति प्रायः यही रुख होता है जनता उन्हें कुछ ले देकर काम करवावे या हाथ पैर जोड़कर या उनके ठनगन सहकर !इसके अलावा जनता के पास कोई अधिकार नहीं होते हैं उनसे काम लेने के !

    अपने देश के ब्राह्मणों के साथ सौतेला बर्ताव करती हैं सरकारें !समाज को लूट कर संपत्ति बनाते हैं नेता !और अपनी चोरी न पकड़ जाए इसलिए बदनाम सवर्णों ब्राह्मणों या हिन्दुओं को किया करते हैं !
    बंधुओ ! सवर्णों ब्राह्मणों और हिन्दुओंने कभी किसी का शोषण शोषण का अधिकार केवल नेताओं के पास है किंतु चुनावी विजय हेतु दलितों की आँखों में धूल झोंकने के लिए ब्राह्मणों को दोषी ठहरा देना और अम्बेडकर साहब को ब्रह्मा विष्णु महेश क्या साक्षात परमात्मा तक बता देना इन सत्ता लोलुपों की मजबूरी है!इन्हें पता है कि अल्पसंख्यक ब्राह्मणों की अपेक्षा अधिसंख्यक दलितों को खुश करने के लिए ब्राह्मणों को बदनाम तो करना ही होगा इसी से वोट अधिक मिल सकते हैं!क्योंकि अपनी अच्छाईयों का इन्हें भरोसा ही नहीं होता है इसी लिए हिन्दू मुश्लिमों तथा दलित और सवर्णों को भिड़ाकर ही लूट रहे हैं देश वासियों के हिस्से का धन !फिर भी कहते हैं ये लोकतंत्र है वस्तुतः भारतवर्ष में नेता तंत्र है । 
        ब्राह्मण ही एक मात्र ऐसी जाति है जिसे न तो इतिहास में कभी किसी से कोई उम्मींद रही और न ही भविष्य में है लोकतंत्र और आजादी जैसे शब्दों के नाम पर ब्राह्मण केवल जश्न मना सकता है निष्ठा व्यक्त कर सकता है किंतु अपनी बीमारी से लेकर सभी प्रकार अभावों से जूझना उसे स्वयं ही पड़ेगा सरकारों राजनेताओं से उन्हें कोई सहारा नहीं है और न ही आगे की संभावना है । सरकार की शिक्षा रोजगार समेत बहुत सारी योजनाओं का अभिप्राय किसी का विकास नहीं अपितु केवल ब्राह्मणों को अपमानित करना होता है !और इसकी कहीं सुनवाई नहीं होती है । 
    चुनावों के समय सभी पार्टियों के नेता भ्रष्टाचार और घोटालों की बड़ी बड़ी बातें करते हैं भ्रष्टाचारी नेताओं के नाम गिनाते हैं जनता उन झुट्ठों की बात मान कर उन्हें सत्ता सौंप देती है कि शायद ये ही भ्रष्टाचारियों को पकड़ें और स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके किंतु जब वो सत्ता में आते हैं तो उन्हें पकड़ना तो दूर खुद लूटने लग जाते हैं !ऐसे नेता किस मुख से सवर्णों और ब्राह्मणों पर मढ़ते हैं दलितों के शोषण का दोष !दलितों के मसीहा माने जाने वालों  को भी शरण किसी ब्राह्मण ने ही दी थी बात और है कि बाद में उन्हें भी  ब्राह्मणों में ही कमियाँ दिखने लगीं !
      सभी जातियों एवं पार्टियों के नेता लूटते खुद हैं तिजोरियाँ अपनी भरते हैं किंतु उनकी लूट घसोट कहीं पकड़ न जाए इसलिए नाम ब्राह्मणों और सवर्णों का लगाते हैं ! दलितों के शोषण लिए घड़ियाली आँसू बहाने वाले सभी जातियों के नेता राजनीति में आए थे तब इनके पास पैसे कितने थे और आज संपत्ति के पहाड़ तैयार कैसे किए गए हैं आखिर उन नेताओं के आय के स्रोत थे क्या ? इसकी ईमानदार जाँच होते ही पता चल जाएगा कि दलितों के शोषण का धन गया कहाँ किस्से कुकर्मों को भोग रहे हैं देश के सभी वर्ग !
     दलितों के शोषण का जिम्मेदार ब्राह्मणों को ठहराते रहते हैं अरे !शोषण केवल दलितों का ही नहीं हुआ है शोषित तो सारा समाज है शोषण करता एकमात्र नेता हैं दूसरा कोई चाहे भी तो किसी का शोषण कर ही नहीं सकता है और करे तो छिप नहीं सकता है प्रशासनिक भूत उसके यहाँ भोर में ही घुस जाएंगे और उठा लाएँगे सारा मॉल पानी अन्यथा अपना हिस्सा तो ले ही आएँगे !किंतु नेताओं से सब डरते हैं !इसलिर शोषण का अधिकार केवल नेताओं के पास है शोषण सहने के लिए केवल ब्राह्मण हैं जिन्हें सतयुग त्रेता द्वापर में त्याग तपस्या ने कसौटी पर कसा और कलियुग में सरकारें कस रही हैं कसौटी पर !ब्राह्मण ही एक ऐसी जाति  है जिसे न इतिहास में कुछ मिला और न अभी मिल रहा है फिर भी बलिदान देने से कभी न पीछे हटी है और न हटेगी !क्योंकि सबको सुखी रखना उसका उद्घोष है सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः !
आरक्षण नीति में  सवर्णों का बहिष्कार क्यों ? सवर्णों को देश की सरकारें अपना क्यों नहीं समझती हैं यह कैसा लोकतंत्र जहाँ इतने बड़े सवर्ण वर्ग की इस गैरजिम्मेदारी से उपेक्षा की जा रही हो !
    ब्राह्मणों ने यदि शोषण किया होता तो उनके पास भी संपत्ति होती किंतु सभी जाति के नेताओं ने समाज का शोषण किया है इसीलिए राजनीति में आते समय किराए तक के लिए मोहताज नेता लोगों ने पसीना बहका कभी कोई काम धंधा नहीं किया ,हमेंशा सुख सुविधापूर्ण जीवन जीते रहे जहाजों में चढ़े घूमते रहे फिर भी अरबों खरबोंपति बने बैठे हैं इसे कहते हैं शोषण !जबकि ब्राह्मण आज भी खेतों में पसीना बहाकर परिश्रम करता है सभी की तरह ही सभी प्रकार के सुख दुखों का सामना करता है ब्याज पर पैसे उसे भी लेने पड़ते हैं पैसे के अभाव में आत्म हत्या उसे भी करनी पड़ती है प्रशासन से उत्पीड़ित वो भी होता है इसके बाद भी ब्राह्मणों की निंदा आखिर क्यों ?फिर भी नेता लोग अपनी लूट घसोट छिपाने के लिए ब्राह्मणों को बदनाम करते रहते हैं !
    आरक्षण का अधिकार सवर्णों को क्यों नही ! क्या सवर्णों को भूख नहीं लगती है या सवर्ण जातियों में सभी लोग संपन्न हैं ! यदि ये मान भी लिया जाए कि सवर्ण जातियों में कुछ लोगों के पास धन अधिक होगा किन्तु जिनके पास नहीं हैं उन्हें इन लोकतांत्रिक सरकारों ने किसके भरोसे आरक्षण से बाहर रख छोड़ा है आखिर उनका सहयोग कौन करेगा कहीं सरकार ऐसा तो नहीं मानती है कि सवर्णों में जो धनी लोग हैं वो खाना खाएँगे तो गरीब सवर्णों की भूख भी शांत हो जाएगी ! या इन गरीब सवर्णों को पडोसी देशों के सहारे छोड़ दिया गया है ,या इन्हें देश के अलगाववादी तत्वों के साथ तालमेल बिठाकर चलने के लिए छोड़ा गया !  


         इस विषय में हमारे निम्न लिखित लेख भी पढ़े जा सकते हैं -
    भ्रष्टाचार के स्रोत क्या हैं और इसे समाप्त कैसे किया जा सकता है ?
     सरकार के  हर विभाग में  भ्रष्टाचार व्याप्त है उससे छोटे से बड़े तक अधिकांश कर्मचारी लाभान्वित होते हैं इसलिए उन पर  भ्रष्टाचार की जो विभागीय जाँच होती है वहाँ क्लीन चिट  मिलनी ही होती है क्योंकि यदि नहीं मिली तो उसके तार उन तक जुड़े निकल सकते हैं  जो जाँच करsee  more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/01/blog-post_19.html
दलित शब्द का अर्थ कहीं दरिद्र या गरीब तो नहीं है ?
   समाज के एक परिश्रमी वर्ग का नाम पहले तो दलित अर्थात दबा, कुचला टुकड़ा,भाग,खंड आदि रखने की साजिश हुई। ऐसे अशुभ सूचक नाम कहीं मनुष्यों के होने चाहिए क्या?  वो भी भारत वर्ष की जनसंख्या के बहुत बड़े वर्ग को दलितsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2013/03/blog-post_2716.html
आरक्षण बचाओ संघर्ष आखिर क्या है ? और किससे ?
     आरक्षणबचाओसंघर्ष या बुद्धुओं को बुद्धिमान बताने का संघर्ष आखिर क्या है ?ये संघर्ष उससे है जिसका हिस्सा हथियाने की तैयारी है।ये अत्यंत निंदनीय है !  जिसमें  चार घंटे अधिक काम करने की हिम्मत होगी वो आरक्षण माँगेगा ही क्यों ?उसे अsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_3571.html
गरीब सवर्णों को भी आरक्षण की भीख  मिलेगी ? 
     चूँकि किसी भी प्रकार का आरक्षण कुछ गरीबों, असहायों को दाल रोटी की व्यवस्था करने के लिए दिया जाने वाला सहयोग है इससे जिन लोगों का हक मारा जाता है वे इस आरक्षण को भीख एवं जिन्हें दिया जाता है उसे भिखारी समझते हैंsee  more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_3184.html
आरक्षण एक बेईमान बनाने की कोशिश !
जो परिश्रम करके अपने को जितना ऊँचे उठा लेगा वह उतने ऊँचे पहुँचे यह  ईमानदारी है लेकिन जो यह स्वयं मान चुका हो कि हम अपने बल पर वहाँ तक नहीं पहुँच सकते ऐसी हिम्मत हार चुका हो ।see  more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_8242.html पहले आरक्षण समर्थक नेताओं की संपत्ति की हो जाँच तब आरक्षण की बात!              
 प्रतिभाओं के दमन का षड़यंत्र
     जब गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की बात उठी तो उस समय एक मैग्जीन में मेरा लेख छपा था   कि  आरक्षण एक प्रकार की भीख है जो किसी को नहीं लेनी चाहिए, तो आरक्षण समर्थक कई सवर्ण लोगों के पत्र और फोन आए कि जब सभी जातियों को आरक्षण चाहिए तो हमें भी मिलना चाहिए।मैंने उनका विरोध करके कहा था कि किसी को आरक्षण क्यों चाहिए।   यहsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_6099.html

Tuesday, 7 July 2015

कुंभ में कंडोम ! आखिर कहाँ पहुँच रहे हैं हम लोग !

   विरक्त संत तो न काम को भजते हैं और न दाम को वे तो काम और दाम से ऊपर उठकर केवल श्री राम को ही भजते हैं किंतु जो सारे जीवन दाम और काम का ही गुलाम बना रहा वो अपनी इन्द्रियों पर क्यों लगाएगा  लगाम !उसका भक्ति और विरक्ति में मन भी क्यों लगेगा !
      आज अपने मन पर लोगों का नियंत्रण  समाप्त होता जा रहा है काफी काफी उम्र में लड़के लड़कियों के ववाह होने लगे हैं या प्रेम प्यार के चक्कर में काफी लोग अपने वैवाहिक जीवन से असंतुष्ट रहने लगे हैं ऐसे लोग यदि समाज में अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन खोजते हैं तो सामाजिक अपयश का भय होता है इसलिए ऐसे लोग अपने प्रेमी या प्रेमिका की तलाश करके किसी आश्रम से जुड़ते हैं जहाँ धर्म और भक्ति के नाम पर कोई कितने दिन भी एक साथ पति पत्नीवत रह सकता है निर्विघ्न बीतता है समय !युवा लड़के लड़कियाँ भी बाबाओं के चित्र लगे लॉकेट पहन पहन कर पहले अपने को धार्मिक घोषित करते हैं फिर अपने गुरूजी के सत्संग शिविरों में रहा करते हैं साथ साथ !जिसे न घर वाले बुरा मानते हैं न बाहर वाले !और बाबा जी अपने भक्तों को निराश कैसे कर सकते हैं ! 
        इसका एक तर्क ये भी है कि आज सत्संग जगह जगह हो रहे हैं खूब भीड़ हो रही है खूब धन खर्च होता  हैं किंतु यदि वहां वास्तव में सत्संग होता हो तो उसका कुछ असर समाज पर भी तो दिखना चाहिए किंतु समाज में तो वही चोरी छिनारा लूट घसोट बलात्कार भ्रष्टाचार आदि बहुत कुछ चल रहा है इसका सीधा सा अर्थ है कि हमारी नैतिक और धार्मिक शिक्षा में ईमानदारी नहीं बरती जा रही है ।
    आज लोगों के मन दूषित हो चुके हैं जिन्हें निर्मल करने का एक मात्र रास्ता धर्म और अध्यात्म है किन्तु धर्म और अध्यात्म के संस्कार देने वाले महापुरुष विलुप्त से होते जा रहे हैं जो हैं भी उनकी बातों का उतना असर ही नहीं हो पा रहा है जितना होना चाहिए अन्यथा बलात्कारों को रोकने के लिए फाँसी जैसा कठोर कानून क्यों बनाना पड़ता ! संत लोग तो अपने सुदृढ़ संस्कारों के आधार पर ही समाज को सुसंस्कारित करते रहे हैं और सुसंस्कारित समाज में होने वाले नेता भी सुसंस्कारित ही होंगे ! और सुसंस्कारित नेता लोग देश भक्त होंगे तो वो अपने देश का धन विदेशों  में जमा ही क्यों करेंगे !
     बाबाओं के विषय में मेरा निजी मानना है कि आज वे स्वयं वैसा आचरण नहीं कर पा रहे हैं जिसकी समाज को आज आवश्यकता है। 
ब्रह्मचर्य का पालन जो लोग करना चाहते हैं या करते हैं उनका रहन सहन चाल चलन खान पान आदि बिलकुल अलग होता है वे लोग जंगलों में या एकांत में रहना रूखा सूखा खाना आदि पसंद करते हैं!फिर भी बासनात्मक चित्रों तक से परहेज करते हैं!इनके शरीरों में तपस्या का तेज तो होता है किन्तु शौक शान श्रंगार नहीं   होता है। अक्सर इनके शरीर देखने में अत्यंत सामान्य एवं अंदर से मजबूत होते हैं । हमें हर किसी से ब्रह्मचर्य की आशा भी नहीं करनी चाहिए उसका एक और कारण है ,आयुर्वेद में मनुष्य शरीर के तीन उपस्तंभ बताए गए हैं -
१.आहारअर्थात भोजन
२. निद्रा अर्थात सोना 
३. मैथुन अर्थात सेक्स 
    उपस्तंभ अर्थात एक प्रकार के पिलर, बिल्डिंग बनाने में जो महत्त्व पिलर्स का होता है वही महत्त्व शरीर सुरक्षा में इन तीन उपस्तम्भों का होता है । इसलिए आहार,निद्रा और मैथुन तीनों के घटने से भी स्वास्थ्य ख़राब होता है और बढ़ने से भी स्वास्थ्य ख़राब होता है!फिर असाधक  संयम बिहीन लोग मैथुन अर्थात सेक्स के बिना कैसे स्वस्थ और प्रसन्न रह सकते हैं यह बिलकुल असंभव बात है !जो धन कमाने की ईच्छा पर नियंत्रण नहीं रख सका वो धन भोगने की ईच्छा पर नियंत्रण क्यों रखेगा !
     इतना अवश्य है कि जो ऐसे कलियुगी ब्रह्मचारियों का शिकार बनने से बच गया उसके लिए तो कैसे भी बाबा जी हों ब्रह्मचारी ही हैं इसलिए संयम शील स्त्रियों या लड़कियों को इन संदिग्ध गृहस्थी बाबाओं से मध्यम दूरी बनाकर तो  चलना ही चाहिए!
आप स्वयं सोचिए कि जो योगी होगा वो योग का पालन स्वयं भी तो करेगा !बंदरों की तरह उछल कूद वाली शरारतें या कलाएँ या ऊट पटांग ढंग से हाथ पैर दे दे मारना योग है क्या !और इससे क्या सुधर जाएगा !    बिना बैराग्य वाले धनी लोगों में  प्रायः भोगने की  भावना तो आ ही जाती है । 
   आजकल बहुत आश्रमों में सेवाकार्य भी सफलता एवं सच्चरित्रता पूर्वक संचालित किए जा रहे हैं किन्तु उन्हीं की आड़ लेकर विकारवान बाबा लोग असामाजिक गतिविधियों को भी संचालित कर रहे हैं इससे भी समाज को पूरी तरह सतर्क रहने की आवश्यकता है अपने को सँभाल ले दोष किसी और का क्यों दिया जाए ?जो लोग बाबाओं के आगे सब कुछ तो परोस देते हैं और फिर चाहते हैं कि वो मुख बाँध कर रहे किसी चीज का भोग न करे !ऐसा कैसे सम्भव है ?आखिर मनुष्य शरीर और मन उनके भी ही हैं अंतर इतना ही तो है कि उनमें से कुछ लोग इन्द्रिय निग्रह का अभ्यास भी कर रहे हैं और अभ्यास तो कभी भी टूट सकता है । इसलिए सतर्कता तो रखना चाहिए । 
     जिन आश्रमों में धन है गाड़ियाँ हैं अच्छा अच्छा खाना पीना है शौक शान का सारा साजो सामान होता है एक महिला को छोड़कर जो आदमी बाबा बना होता है अब  उसके पीछे या चारों ओर महिलाएँ  ही महिलाएँ घेरे होती हैं फिर भी कमी पड़ती है तो समाज समय समय पर उसकी आपूर्ति भिन्न भिन्न रूपों में करता रहता है जैसे -बाबा जी ने गुरुकुल चला दिया तो समाज अपनी बच्चियाँ  भेजने लगा,बाबा जी गरीब कन्याओं की शादी कराने लगे तो लोग अपनी बच्चियाँ ले लेकर जाने लगे!बाबा जी अस्पताल या स्कूल चलाते हैं दवा बनाने बेचने का धंधा कर लेते हैं तो कर्मचारियों के रूप में स्वयमेव सब कुछ उपलब्ध रहता है।साधुओं के साधुत्व को बिगाड़ने में इन सेवा कार्यों का महत्वपूर्ण योगदान है!इनसे सबकुछ मुदा  छिपा चला करता है और बाद में कोई दस वर्षों से कबूलता है कोई पंद्रह !अरे! यदि शोषण था तो इतने महीने या वर्ष तक कैसे सहा गया !
        इसी प्रकार  चरित्रवान आम स्त्री पुरुषों के पास बाबाओं के पीछे पीछे घूमने का न तो समय है और न ही उनकी निंदा या समर्थन में साथ देने का | ऐसी  महंगाई में ईमानदारी पूर्वक जीवन चला पाना ही कितना कठिन है फिर भले लोगों के पास बबई के लिए समय कहाँ है !
    इन सब बातों के साथ साथ यह स्वीकार करने में भी अब संकोच नहीं  होना चाहिए कि अब समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग सेक्स के प्रति समर्पित हो चुका है जिसमें नेताओं से लेकर बाबाओं तक ने बढ़ चढ़ कर  भाग ले रखा है| सेक्स के प्रति  समर्पण में स्त्री पुरुषों में लगभग समानता दिखती  है  अगर बाबा दुश्चरित्र हैं तो उनके प्रति समर्पित होने वाली भीड़ का समर्पण भी देखते ही बनता है!इसलिए किसी बाबा को अकेले दोषी कैसे कहा जाए !
    संन्यासियों को सब कुछ छोड़ कर केवल भजन करने को शास्त्रों में क्यों कहा गया ? वस्तुतः पहले भी तो वह एक घर में रहते थे बाद में आश्रम में रहने लगे!पहले पत्नी बच्चों के साथ थे बाद में चेला चेलियों से घिरे रहने लगे !धन पहले कमाते थे साधू बनने के बाद भी कमाते हैं जो तब खाते थे वो अब खाते हैं  जैसे वातावरण में पहले रहते थे वैसे वातावरण में साधू बनने के बाद भी  भी रहा करते हैं ! पहले सारा दिन ब्यर्थ के सांसारिक प्रपंचों  में बीत जाता था और साधू बनने के बाद भी दिनचर्या यदि वैसी ही चल रही है तो काहे का संन्यास !कोई व्यक्ति जब अपने पत्नी बच्चों सहित घर बार छोड़कर साधू बनता है तो उसके मन और जीवन में वैराग्य का बदलाव तो आना ही चाहिए यदि ऐसा नहीं हो पाता  है तो केवल कपड़ों का कलर बदलने के लिए गृहस्थी क्यों छोड़ना ?क्या इसे ये नहीं कहा जा सकता है कि पत्नी बच्चों के पोषण के भय से भड़भड़ाकर कर भाग खड़े हुए हैं ! किन्तु इस भगोड़ेपन को वैराग्य या संन्यास क्यों और कैसे कहा जाए जिसमें शास्त्रीय वैराग्य और  संन्यास के लक्षण ही न पाए जाते हों !
     वैसे  भी धन और बासना का परस्पर अद्भुत सम्बन्ध है इसीलिए  बासना से बचने के लिए पुराने साधू संत महिलाओं से मध्यम दूरी  बनाकर रहते थे ऐसा नहीं कि उन्हें महिलाओं से भय होता था अपितु उन्हें अपने मन से भय होता था कि स्त्री पुरुष शरीरों की प्रकृति में अंतर होने के कारण हमारा मन कहीं विकारों में भटक न जाए ! दूसरा खतरा वैरागी मन को धन से होता है क्योंकि जब धन होगा तो जहाँ जहाँ धन लगता है वहाँ वहाँ मन लगता ही है । आप स्वयं सोचिए जब आश्रम नाम का सुन्दर सा भवन होगा उसमें सुन्दर सुन्दर बेड रूम होंगे जिनमें सुन्दर सुंदर बेड पड़े होंगे इस प्रकार से जो साधू जो संत जो महात्मा जो संन्यासी अपनी इच्छाओं को बेड रूम और बेड तक पहुँचने  में नहीं रोक सका वो आगे खाक रोक पाएगा !बिस्तर पर केवल लाल चद्दर बिछा लेने से किसी को संन्यासी कैसे मान लिया जाए ।आपने भी बहुत पुराने संतों के विषय में सुना होगा कि वे पैसे नहीं छूते थे इसका एक मात्र कारण  धन एवं धन से पनपने वाले विकारों से अपने को अलग रखना था !वो बासनात्मक विकारों नहीं फँसना चाहते थे!आज जो फँसना चाहते हैं वो धन छूने की बात तो छोड़िए धंधा व्यापार फैलाए घूम रहे हैं ।
  आज जिन बाबाओं पर ब्यभिचार के आरोप लगते हैं वो समाज के सहयोग से ऐसे हुए हैं उन्हें यहाँ तक पहुँचने के लिए धन देने वालों ने धन दिया,मन देने वालों ने मन दिया और तन  देने वालों ने तन दिया कुछ लोगों ने तो जीवन ही दे दिया है ये सच्चाई है फिर भी  दोष केवल बाबाओं का ही है क्या?
   जो  महिलाएँ या लड़कियाँ बाबाओं के आस पास या सान्निध्य में विशेष रहती हैं वो यह क्यों नहीं समझती हैं कि ब्रह्मचर्य का पालन करना सबसे कठिन होता है गिने चुने चरित्रवान तपस्वियों की अलग बात है किंतु उनकी संख्या काफी कम है बाकी बाजारू बाबाओं के बश का कहाँ है ब्रह्मचर्य !ये इतने छिछले लोग होते हैं कि बिना किसी चरित्र और तपस्या के ही अपने को आत्मज्ञानी, ब्रह्मज्ञानी ,सिद्ध साधक आदि सब कुछ बता बता कर माँगते हैं पैसे ! बंधुओ !आज धर्म की स्थिति बहुत ख़राब है । 
 दो.   सकल भोग  भोगत फिरहिं प्रवचन में वैराग।
            जिनके  ये  चेला  गुरू  तिनके   परम अभाग ॥                                                                    - श्री हनुमत सुंदर कांड