Tuesday, 31 March 2015

  ब्राह्म के महान योगदान
     ब्राह्मणो का योगदान - भारत के क्रान्तिकारियो मे 90% क्रान्तिकारी ब्राह्मण थे जरा देखो कुछ मशहूर ब्राह्मण क्रान्तिकारियो के नाम ब्राह्मण स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी (१) चंद्रशेखर आजाद (२) सुखदेव (३) विनायक दामोदर सावरकर( वीर सावरकर ) (४) बाल गंगाधर तिलक (५) लाल बहाद्दुर शास्त्री (६) रानी लक्ष्मी बाई (७) डा. राजेन्द्र प्रसाद (८) पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल (९) मंगल पान्डेय (१०) लाला लाजपत राय (११) देशबन्धु डा. राजीव दीक्षित (१२) नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (१३) शिवराम राजगुरु (१४) विनोबा भावे (१५) गोपाल कृष्ण गोखले (१६) कर्नल लक्ष्मी सह्गल ( आजाद हिंद फ़ौज की पहली महिला ) (१७) पण्डित मदन मोहन मालवीय (१८) डा. शंकर दयाल शर्मा (१९) रवि शंकर व्यास (२०) मोहनलाल पंड्या (२१) महादेव गोविंद रानाडे (२२) तात्या टोपे (२३) खुदीराम बोस (२४) बाल गंगाधर तिलक (२५) चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (२६) बिपिन चंद्र पाल (२७) नर हरि पारीख (२८) हरगोविन्द पंत (२९) गोविन्द बल्लभ पंत (३०) बदरी दत्त पाण्डे (३१) प्रेम बल्लभ पाण्डे (३२) भोलादत पाण्डे (३३) लक्ष्मीदत्त शास्त्री (३४) मोरारजी देसाई (३५) महावीर त्यागी   (३६) बाबा राघव दास (३७) स्वामी सहजानन्द यह है ब्राह्मणो का भारत की क्रांती मे योगदान !
अथर्व वेद के 5/19/10 मे स्पष्ट लिखा है बाह्मणो की उपेक्षा व तिरस्कार की बात सोचने मात्र भल से सोचने वाले का सर्वस्व पतन होना शुरू हो जाता है ।क्योकि ब्राह्मण दान देने पे आया तो -दधीचि, दान लेने पे आया तो सुदामा परीक्षा लेने पे आया तो -भृगु, तपोबल पे आया तो कपिल मुनि अहंकार को दबाने पे आया तो अगस्त मुनि धर्म को बचाने पे आया तो आदि शंकराचार्य नीति पे आया तो ... -चाणकय, नेतृत्व करने पे आया तो -अटल बिहारी, बग़ावत पे आया तो -मंगल पांडे, क्रांति पे आया तो -चंद्रशेखर आज़ाद, संगठित करने पे आया तो -केशव बलिराम हेगड़ेवार, संघर्ष करने पे आया तो -विनायक राव सावरकर- निराश हुआ तो -नाथु राम गोडसे और क्रोध मे आया तो -परशुराम : ब्राह्मण साम्राज्य की टीम ने 2 महीने की मेहनत कर भारत के समस्त राज्यों से ब्राह्मण जनसँख्या जानने की कोशिश की हे जिसके अनुसार सूची तयार हुई हे। उम्मीद हे ब्राह्मण अपनी शक्ति पहचाने और एकजुट होकर कार्य करे : 1) जम्मू कश्मीर : 2 लाख + 4 लाख विस्थापित 2) पंजाब : 9 लाख ब्राह्मण 3) हरयाणा : 14 लाख ब्राह्मण 4) राजस्थान : 78 लाख ब्राह्मण 5) गुजरात : 60 लाख ब्राह्मण 6) महाराष्ट्र : 45 लाख ब्राह्मण 7) गोवा : 5 लाख ब्राह्मण 8) कर्णाटक : 45 लाख ब्राह्मण 9) केरल : 12 लाख ब्राह्मण 10) तमिलनाडु : 36 लाख ब्राह्मण 11) आँध्रप्रदेश : 24 लाख ब्राह्मण 12) छत्तीसगढ़ : 24 लाख ब्राह्मण 13) ओद्दिस : 37 लाख ब्राह्मण 14) झारखण्ड : 12 लाख ब्राह्मण 15) बिहार : 90 लाख ब्राह्मण 16) पश्चिम बंगाल : 18 लाख ब्राह्मण 17) मध्य प्रदेश : 42 लाख ब्राह्मण 18) उत्तर प्रदेश : 2 करोड़ ब्राह्मण 19) उत्तराखंड : 20 लाख ब्राह्मण 20) हिमाचल : 45 लाख ब्राह्मण 21) सिक्किम : 1 लाख ब्राह्मण 22) आसाम : 10 लाख ब्राह्मण 23) मिजोरम : 1.5 लाख ब्राह्मण 24) अरुणाचल : 1 लाख ब्राह्मण 25) नागालैंड : 2 लाख ब्राह्मण 26) मणिपुर : 7 लाख ब्राह्मण 27) मेघालय : 9 लाख ब्राह्मण 28) त्रिपुरा : 2 लाख ब्राह्मण सबसे ज्यादा ब्राह्मण वाला राज्य: उत्तर प्रदेश सबसे कम ब्राह्मण वाला राज्य : सिक्किम सबसे ज्यादा ब्राह्मण राजनेतिक वर्चस्व : पश्चिम बंगाल सबसे ज्यादा %ब्राह्मण वाला राज्य : उत्तराखंड में जनसँख्या के 20 % ब्राह्मण अत्यधिक साक्षर ब्राह्मण राज्य : केरल और हिमाचल सबसे ज्यादा अच्छी आर्थिक स्तिथि में ब्राह्मण : आसाम सबसे ज्यादा ब्राह्मण मुख्यमंत्री वाला राज्य : राजस्थान सबसे ज्यादा ब्राह्मण विधायक वाला राज्य : उत्तर प्रदेश -------------------- भारत लोकसभा में ब्राह्मण : 48 % भारत राज्यसभा में ब्राह्मण : 36 % भारत में ब्राह्मण राज्यपाल : 50 % भारत में ब्राह्मण कैबिनेट सचिव : 33 % भारत में मंत्री सचिव में ब्राह्मण : 54% भारत में अतिरिक्त सचिव ब्राह्मण : 62% भारत में पर्सनल सचिव ब्राह्मण : 70% यूनिवर्सिटी में ब्राह्मण वाईस चांसलर : 51% सुप्रीम कोर्ट में ब्राह्मण जज: 56% हाई कोर्ट में ब्राह्मण जज : 40 % भारतीय राजदूत ब्राह्मण : 41% पब्लिक अंडरटेकिंग ब्राह्मण : केंद्रीय : 57% राज्य : 82 % बैंक में ब्राह्मण : 57 % एयरलाइन्स में ब्राह्मण : 61% IAS ब्राह्मण : 72% IPS ब्राह्मण : 61% टीवी कलाकार एव बॉलीवुड : 83% CBI Custom ब्राह्मण 72% !

       

काशी का हृदयाकर्षक चित्र !

    दो.गंगा मैया को नमन  हनुमत का आशीष ।
       अन्नपूर्णे उर बसहु कृपा करहु काशीश ॥
        भाई साहब ! श्री आनंद मिश्र के द्वारा संप्रेषित काशी का हृदयाकर्षक चित्र जिससे हमारे अतीत की वे मधुर स्मृतियाँ जुड़ी हैं जहाँ माता काशी की चरण शरण में हम वर्षों तक रहे और एकांत की तलाश में निकल जाया करते थे माँ गंगा की सुशांत गोद में तैरती इन्हीं नावों पर बैठ कर बिताया करते थे अध्ययन का वह स्वर्णिम समय !


                    

Sunday, 29 March 2015

हे अन्ना जी ! सादगी की कसमें खाने वाले आपके चेले दिल्ली वालों को चैन से जीने नहीं दे रहे हैं !

  बंधुओ !   
ये वास्तव में कोई राजनैतिक पार्टी  है या कुछ गंदे लोगों  का गिरोह !जिन्हें शर्म नहीं  आई भाषण देते जब सामने फाँसी के फंदे में एक किसान जीवन मौत से जूझ रहा था फड़फड़ा रहे थे उसके प्रान !नेता दे रहे पुलिस और केंद्र सरकार विरोधी बयान !यह कैसी किसानों की हमदर्दी !
  किसान  पेड़ पर लटकता छटपटाता रहा रैली चलती रही सियासी भाषण परोसे जाते रहे यदि रैली किसानों के लिए होती तो तुरंत बंद कर दी जाती रैली पहले किसान को देखा जाता किंतु किसानों को तो मोहरा बनाया जा रहा था वस्तुतः भावी प्रधानमंत्री बनने बनाने के लिए बिसात बिछाई जा रही थी !धंधे का सवाल था आखिर बंद कैसे कर दी जाती रैली !
    मृतप्राय  किसान को अस्पताल भेजा गया क्या दो शब्द संवेदना के नहीं होने चाहिए थे क्या सामूहिक रूप से परमात्मा से प्रार्थना नहीं कराई जा  सकती थी किसान की सुरक्षा के लिए क्या उन पापियों को तुरंत अस्पताल में नहीं पहुँचना चाहिए था क्या उनके अपने घर का कोई होता तो भी रैली चलती रहती और पुलिस पर ठीकरा फोड़कर चालू कर दी जाती भाषण बाजी !
   बारे अन्ना हजारे जी !इन्हीं किसान द्रोही पाखंडियों के बल पर तुम मिटा  रहे थे देश से भ्रष्टाचार!                                   
 श्रीमान अन्ना जी !ये तुम्हारे पाखंडी समाज  सेवक तो सत्ता मिलते ही पागल हो  रहे हैं सत्ता के लिए !  इतनी गंदगी समेटे  घूम  रहे थे तुम !इन कपटी ईमानदारों के बल पर आप  लाना चाह रहे थे देश में स्वराज और भगाना चाह रहे थे भ्रष्टाचार किंतु मान्यवर अन्ना जी ! देश में आपके कुनबे के अलावा और कहाँ है इतना अविश्वास और भ्रष्टाचार इतनी गंदी भाषा !इन मूल्यों संस्कारों की दिखावटी बातें करने वाले लोगों के हृदय इतने गंदे हैं !हे अन्ना जी ! गंदगी का यह गिरोह तो  रामलीला मैदान में भी आपके चारों ओर विद्यमान  था !आप पर बहुत बड़ी कृपा रही इनकी अन्यथा ये वहाँ आपके मंच पर भी कुत्ते बिल्लियों की तरह लड़ सकते  थे और गँधवा सकते थे  आपका आंदोलन किंतु शांत ही रहे ये सत्ता लोलुप किंतु लड़ते किस लिए इन्हें सत्ता तो आज मिली है सत्ता पाकर बौराने वाले हैं ये लोग ! एक दूसरे को कैसी कैसी गालियाँ देते हैं ये लोग !ऐसे लोग सत्ता और पद के लिए पागल हैं यही लोग  ईमानदारी सादगी समाज सेवा  और भ्रष्टाचार मुक्ति की बातें कर रहे थे किंतु इतना अहंकार इतना कलह  गंदी जबान तो शायद देश की सर्वाधिक भ्रष्ट कही जाने वाली पार्टियों में भी नहीं दिखी होगी ऊपर से इसी गिरोह का  एक  सदस्य जो भूतपूर्व  पत्रकार भी है वो कितनी बेशर्मी से इन गालियों की वकालत कर रहा था दिया गया  होगा  उसे भी  कुछ बनाने का लालच !ईमानदारी  नाम  बना ये  गिरोह   राजनैतिक भ्रष्टाचार का एक बड़ा उदाहरण है !
     इनलोगों ने भ्रष्टाचार विरोधी समाज को बहुत बड़ा धक्का पहुँचाया है इसके दुष्परिणाम  भविष्य में और भी सामने आएँगे तथा भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम चलाना किसी के लिए भी अब और अधिक कठिन होगा !जनता अब क्यों करेगी किसी भले आदमी पर भरोसा !
इसी विषय में पढ़ें हमारा यह लेख -
        आम आदमी पार्टी में किसी का कोई भविष्य नहीं है जानिए  क्यों ?
   ज्योतिष की दृष्टि में तो आम आदमी पार्टी का  ही कोई भविष्य नहीं है इसलिए इस पार्टी में दुर्भाग्यवश जो जितना बड़ा चौधरी बनकर जितने अधिक दिन टिक जाएगा वो उतना अधिक बेइज्जत होकर निकलेगा इसलिए जो जितनी जल्दी निकल गए या निकाल दिए गए वो भाग्यशाली हैं इसीविषय में seemore...http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2015/03/blog-post_11.html-

Tuesday, 24 March 2015

सपा को कार्यकर्ताओं ने बर्बाद किया है या कर्मों ने ?

'कार्यकर्ताओं ने बर्बाद कर दिया' -नव भारत
                                         -मुलायम सिंह यादव

किंतु नेता जी !आपकी पार्टी में कार्यकर्ताओं का रोल ही कितना है वहाँ की सारी शक्तियाँ आपके और आपके परिवारिक लोगों के पास होती हैं और जिनके पास पावर होता है जनता उन्हें ही  पहचानती भी है और चुनावों में उन्हीं  को वोट देकर जिताती भी है बिगत लोक सभा में  एसपी उत्तर प्रदेश में 80 में से केवल पाँच सीटें ही जीत पाई थी। सभी परिवार के लोग ही जीते थे! आजमगढ़ सीट से मुलायम खुद जीते जबकि उनकी बहू डिंपल यादव, भतीजे धर्मेंद्र यादव और अक्षय यादव व पोते तेज प्रताप सिंह यादव क्रमशः कन्नौज, बदायूं, फिरोजाबाद और मैनपुरी सीटों से चुनाव जीते।जिनके पास पावर है जनता ने उन्हें जिताया था कार्यकर्त्ता तो कोई नहीं जीता आखिर क्यों ? यदि चुनाव जीतना उनके वश में होता तो पार्टी चुनाव जीतती या न जीतती किन्तु वो अपनी सीट तो निकालते ही जो वो नहीं कर सके !ये उनकी मजबूरी ही है । 

    उत्तर प्रदेश में सपा सरकार की हालत यह है कि किसी काम के लिए या समस्या समाधान के लिए कोई कम्प्लेन किया जाता है तो वो काम होगा या नहीं ये तो बाद की बात है उस पत्र का जवाब देना भी लोग जरूरी नहीं समझते !यहाँ तक कि ऐसा कोई शिकायती पत्र भी मिला है इसका  स्वीकारोक्ति संदेश भी नहीं दिया जाता !मैंने भी नैतिक समस्याओं से जुड़े पत्र मुख्यमंत्री जी के लिए आन लाइन भेजे थे दो तीन बार ऐसा करने के बाद हमने अपनी आदत में सुधार कर लिया !

    मुझे एक सपा कार्यकर्त्ता के द्वारा ही पता लगा कि केवल सपा के नेताओं एवं उनके नाते रिश्तेदारों के काम करने के लिए ही बनी है सपा सरकार ?कार्यकर्ता तो चुनावों में विजय दिलाने के लिए होता है आखिर आम जनता या कार्यकर्त्ता किससे कहे अपने काम काज जब कोई सुनता ही नहीं है  ! 

    वस्तुतः उत्तर प्रदेश की सरकार यदि लोक जीवन से जुड़े कार्य कर ही रही होती तो  लोक सभा चुनावों में क्यों होती इतनी गंभीर दुर्दशा ? इसके लिए जिम्मेदार भी तो उ.प्र. सरकार ही है!ऐसे ही क्या मुलायम सिंह जी के पी.एम. बनने से हो सकता था देशवासियों का भला ?जो पार्टी सीएम बनकर कुछ नहीं कर पा  रही है वो पी.एम.बनकर क्या कर लेती !

   यू. पी. में लोकतंत्र तो नाम भर है या यूँ कह लें कि लोकतंत्र की तो खिल्ली उड़ाई जा रही है! वहाँ केवल आप हैं आप का प्रिय परिवार है आपके पुरबासी हैं आपकी पार्टी के लोग हैं एवं आपकी जाति बिरादरी के लोग हैं और आपकी पार्टी की प्रिय भैंसें हैं इसके अलावा उत्तर प्रदेश में और है ही कौन! जिसके विषय में सोचे आपकी पार्टी और सरकार ?

    आप एवं आप के कुनबे के जैसा कोई दूसरा नेता तो हो ही कैसे सकता है! आपकी जाति  के जैसी कोई दूसरी जाति भी नहीं हो सकती है आपके जैसा कोई परिवार तो हो ही नहीं सकता है आपका गाँव गाँव है बाक़ी तो सब यों ही हैं आपके गाँव में महोत्सव हो सकता है बाक़ी और किसी की भावनाएँ ही कहाँ होती  हैं और आपकी पार्टी की जैसी दुर्लभ प्रजाति की आजमी भैंसों की खोज में सरकार एवं प्रशासन का जो समर्पण दिखा शायद किसी का बच्चा खोया होता तो नहीं होती ऐसी तत्परता !किन्तु पार्टी आपकी सरकार आपकी भैंसें भी आपकी पुलिस  प्रशासन भी आपका !मुख्य बात तो यही ध्यान देने की है कि इससे जो सन्देश समाज तक गया वो ठीक नहीं था क्योंकि इससे साफ तौर पर यही दिखाने की कोशिश की गई कि सारा विश्व देख ले कि समाजवादियों की सरकार के समय समाजवादियों का रौब किस कदर शिर चढ़कर बोलता है !सपा की भैंसें भी खो जाएँ तो बड़े बड़े दमदार अधिकारियों  की जान भी पूँछ हिलाने से ही बचती है देखते घबड़ाहट !जहाँ से पावें वहाँ से कूद जाएँ अधिकारी !

       माननीय नेता जी! मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि यह सरकार  चलाने की कोई स्वस्थ प्रक्रिया बनाइए जिससे देश वासियों को भी लगे कि आप एवं आपकी पार्टी को अपनों के अलावा उन परायों की भी चिंता है जिनसे लोक लुभावन वायदे करके आप चुनाव के समय जनता के सुषुप्त मनों में जिजीविषा पैदा किया करते  हैं। केवल कहने से बात नहीं बनेगी !

   आज आप लोगों की कार्यशैली से निस्तब्ध लोग आपस में चर्चा करने लगे हैं कि क्या मुलायम सिंह को बनना चाहिए देश का अगला प्रधानमंत्री ? जबकि वो सभी के विषय में सोचते नहीं हैं तो सारे लोग उन्हें अपना नेता कैसे मान लें !जब उन पर प्रदेश की जनता ने भरोसा किया और वे  उसके नहीं हो सके तो देश उन  पर भरोसा  कैसे करे ?  

    सरकारों में बैठे लोगों को क्या जनता के प्रति  इतना भी जवाबदेय  नहीं होना चाहिए ! आखिर क्यों उन्हें इस बात का संकोच नहीं  होना चाहिए कि वो  जो कर रहे हैं उसका असर उस जनता पर क्या पड़ेगा जिसने उन्हें सत्ता सौंपी है !केवल सैफई वालों के वोट से तो वे मुख्यमंत्री बन नहीं गए! ऐसा भी नहीं है कि केवल आजम खान को खुश करना ही सरकार का केवल लक्ष्य हो !

    मुलायम सिंह जी को समझना चाहिए कि अगर आप वास्तव में समाजवादी हैं तो आपका समाजवाद इतना संकीर्ण क्यों है जो आपको परिवारवादी ,जातिवादी ,सैफईवादी बना देता है और कभी कदाचित मुश्किल से आप यदि इन दीवारों से बाहर  निकले भी तो आपको पार्टीवादी बना देता है।आखिर क्या कारण है कि आप प्रदेश और देशवादी नहीं बन पाए !मान्यवर !क्या यही आपका समाजवाद है क्या मुख्यमंत्री बनने की आपकी यही योग्यता है इसी के बल पर बनना चाहते हैं प्रधानमंत्री !

       काँग्रेस की कमजोरी ,भाजपा की कलह,बसपा की संकीर्णता से ऊभ चुकी प्रदेश की जनता ने अपना समझ कर आपको सत्ता सौंपी थी किन्तु आप उस जनता के अपने नहीं हो सके मात्र कुछ लोगों के होकर रह गए !कितना बुरा तब लगता है जब उत्तर प्रदेश की सरकारी मशीनरी कोई काम न करके अपितु किसी परेशान व्यक्ति की मदद नहीं कर रही होती है और वह निराश हताश आदमी उस जिले के डी.एम.को लिखित अप्लिकेशन देता है महीनों बीत जाने पर भी जब कोई सुनवाई नहीं होती है तो दुबारा वो जब डी.एम. के यहाँ जाता है तो उनका पी.ए. उस प्रार्थी के कान में कहता है कि इस समय साहब किसी और का कोई काम नहीं सुन रहे हैं केवल मुलायम सिंह जी के घर और पार्टी वालों की ही बात सुनते हैं और उन्हीं का काम करते हैं बाक़ी किसी का नहीं! वो कहते हैं कि जब चलनी ही सपा की और उनके लोगों की है तो पंगा लेकर अपनी बेइज्जती क्यों करवाना !यह सुनकर निराश हताश प्रार्थी वहाँ से वापस लौट आता है। ये कोई  कल्पना नहीं अपितु वास्तविक घटना है। 

      ऐसे ही अन्य प्रश्न भी हैं धन तो पूरे प्रदेश की जनता का खर्च हो किन्तु महोत्सव सैफई में हो आखिर क्यों ?क्योंकि सैफई नेता जी की है तो बाकी प्रदेश किसका है और वहाँ का मुख्यमंत्री क्या कोई दूसरा है ?

    इसीप्रकार से किसी का बेटा बेटी अपहृत हो जाता या और कोई नुक्सान हो जाता तो भी प्रशासन इतना ही मुस्तैद होता क्या?जितना भैंसें खोजने में था उन भैंसों को खोजने के लिए क्या कुछ नहीं किया गया फिर भी बेचारे पुलिस वाले …!

      आजम की  भैंसों की तलाश के लिए पुलिस की चार टीमों का गठन किया गया.खोजी कुत्ते, क्राइम ब्रांच और पुलिसकर्मियों ने कई बूचड़खानों और मांस की दुकानों पर छापेमारी की.  पड़ोस के कई जिलों में सर्च ऑपरेशन चलाया गया.और भैंसें मिल गईं । 

       इससे सिद्ध भी यही होता है कि ये सरकार सपा और केवल सपा के लोगों के लिए ही है उसके अलावा सारा प्रदेश जाए जहन्नुम में !इससे एक बात और सिद्ध होती है कि यदि प्रयास पूर्वक भैंसे खोजी जा सकती हैं तो और अपराधी क्यों नहीं !इसका सीधा सा अर्थ है कि जो अपराध सपा के छोटे बड़े सभी कार्यकर्ताओं के विरुद्ध होगा वो तो अपराध माना जाएगा और उसी को रोकने का भी प्रयास होगा बाकी लोग परेशान रहें तो रहें ये सरकार तो सपाइयों की है सपाइयों की ही रहेगी, प्रदेश वा देश की जनता का इससे क्या लेना देना !

 

 

    


Sunday, 22 March 2015

किसानों को आर्थिक सहायता या उपहास ! देश की आजादी में इनका कोई योगदान नहीं है क्या ?

                  किसानों की इतनी उपेक्षा !
   लोकतंत्र की दुहाई देकर सरकारों में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी भोग रहे हैं देश के संसाधन एवं संपत्ति और गरीबों को दिखा रहे हैं ठेंगा ऐसा पक्षपाती लोकतंत्र सहना आम जनता की आखिर क्या मजबूरी है ? 
   ऐसी संवेदना शून्य सरकारों एवं सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध जनता को लड़ना होगा एक बड़ा युद्ध !जो मुशीबत में भी देश की संपत्ति देश वासियों के काम नहीं आने देते ! सरकार के खर्चे हों या सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाने के लिए पैसा ही पैसा है किसानों मजदूरों गरीबों को मुशीबत के समय भी दी जाने वाली सहायता राशि इतनी कम होती है कि वो सहयोग कम मजाक ज्यादा लगता है !
    किसानों को सिक्योरिटी, सुविधाएँ ,संसाधन उनके बच्चों को शिक्षा, चिकित्सा,रोजगार आदि कोई चीज ऐसी नहीं दिख रही है जिससे किसानों को भी लगे कि सरकार हमारे विषय में भी आत्मीयता पूर्वक कुछ करने को तैयार है ,रही बात बातों की तो बातों का क्या कहते तो सभी हैं किंतु कुछ होते  भी तो दिखाई पड़े !
     राजनैतिक निगाहों में किसानों की जिंदगी की कीमत इतनी कम क्यों हैं ?और नेता एवं बाबा इतने बहुमूल्य क्यों हैं जो उन्हें तो चाहिए सिक्योरिटी किन्तु किसानों नहीं आखिर क्यों ?अपने ही देश में किसानों के साथ इतने सौतेलेपन  का व्यवहार आखिर क्यों ?किसानों की सुरक्षा एवं सुविधाओं के लिए आखिर क्या इंतजाम हैं और नेताओं  बाबाओं को आखिर क्यों चाहिए सिक्योरिटी ?नेता अपना घर भर रहे हैं और बाबा अपने आश्रम !फिर इन्हें क्यों चाहिए अलग से सिक्योरिटी ?देश की जनता आखिर इनके अपव्ययों को क्यों बर्दाश्त करे ?ये दोनों देश के लिए कर आखिर क्या रहे हैं जबकि किसान आज भी देश की भूख मिटा रहा है उसकी इतनी उपेक्षा क्यों ?

     देश का किसान मजदूर तथा सभी प्रकार के आम आदमियों के लिए आखिर सुरक्षा की व्यवस्था क्या है और जो है उसे सरकार  यदि नेताओं और बाबाओं के लिए पर्याप्त नहीं मानती है तो ऐसी  सुरक्षा व्यवस्था को सरकार किसानों या आम जनता के लिए कैसे पर्याप्त मानती  है ! जिस सुरक्षा से देश के नेता और बाबा अपने को सुरक्षित नहीं मानते इसीलिए उन्हें अलग से सिक्योरिटी चाहिए होती है उस सुरक्षा के भरोसे किसान कैसे सुरक्षित माने जा सकते हैं ! किसानों मजदूरों आम आदमियों की जिंदगी के प्रति इतनी उपेक्षा की भावना आखिर क्यों है ? समाज को समझाने के लिए नेता संविधान(कानून व्यवस्था ) की दुहाई देते हैं और बाबा भगवान की किंतु जब अपने पर बन आती है तो नेताओं का भरोसा कानून व्यवस्था से उठ जाता है और बाबाओं का भगवानों से और दोनों अपने लिए सिक्योरिटी माँगने लगते हैं आखिर क्यों ?

  ऐसे नेताओं एवं धार्मिक लोगों को जो राष्ट्रवाद और धर्मवाद के नाम पर दूसरों को आग में कुदाने के लिए तो बहादुरी की बड़ी बड़ी बातें करते हैं किंतु जब बात अपने पर आती है तो अच्छे अच्छे आश्रमों में रहते हुए भी सरकारी सिक्योरिटी की खोली में घुस जाते हैं आखिर क्यों ?

जिन्हें भगवान पर भरोसा नहीं रहा फिर साधू किस बात के !दूसरी ओर किसान मजदूर और आम लोग भगवान पर बहुत भरोसा करते हैं भगवान भरोसे रहने वाले किसान डरपोक बाबाओं और नेताओं से लाख गुना अच्छे होते हैं वो खेतों खलिहानों में रात विरात निर्भीक विचरण करते हैं । क्या सरकार ने उनकी सुरक्षा के विषय में कभी सोचा है और यदि हाँ तो क्या ?         जो किसान पूष  माघ (जनवरी फरवरी )की कटकटाती ठंड में खुले जंगल में रात में भी काम किया करते हैं कई बार हिंसक जीव जंतु भी खेतों में घुस आते हैं किन्तु यदि उस किसान से कोई पूछे कि ऐसी अँधेरी रात्रि में आप यहाँ अकेले हो अगर शेर आ जाए तो आप क्या करोगे !तो वो कितने भरोसे से कहता कि अभी तक भगवान बचाते रहे हैं आगे भी उन्हीं के भरोसे हैं क्या भगवान पर ऐसा विश्वास दिखता धार्मिक लोगों में !फिर भी  सरकारें आज तक ऐसे किसानों की सहायता के लिए कुछ सोच पाई हैं जिससे किसानों को अपनी जिंदगी के साथ न खेलना पड़े ?

     पूष  माघ (जनवरी फरवरी )की कटकटाती ठंड में जिस दिन गंभीर गर्जन के साथ बरस रहे होते हैं बादल गिर रहे होते हैं ओले कड़क रही होती है बिजली इन सबके बीच खुले जंगलों के बीच खेतों खलिहानों में अपनी कटी हुई पसल समेटने के लिए ऐसी भयावनी अँधेरी रात में निकल पड़ता है किसान  ऐसे अपनी जिंदगी पर खेलने वाले किसानों के लिए सरकार के द्वारा आज तक क्या सिक्योरिटी की ब्यवस्था की गई है ?

     सावन भादौं (जुलाई अगस्त )के महीनों में जब दिन में ही रात लगने लगती है उस ऋतु की अँधेरी डरावनी रातों में बढ़ी घास के  कारण खेत और मेड़ों का अंतर कर पाना कठिन हो जाता है जहाँ किस कदम पर कौन कितना जहरीला साँप बिच्छू काट ले या मक्का ज्वार बाजरा अरहर गन्ना ढेंचा जैसी फसलें जो आदमी के शिर से ऊपर निकल जाती हैं ऐसी फसलों से कहाँ कब कितना भयानक जानवर निकल आवे और जीवन लीला समाप्त कर दे ये सब खतरे जानते हुए भी किसान अपनी फसल को बचाने के लिए कंधे पर फरुहा रखकर निकल पड़ता है अपने खेतों से पानी निकालने और फसल बचाने के लिए ऐसे किसानों को सरकार कितनी देती है सिक्योरिटी ?उन्हें तो सर्प काट ले तो कोई ढंग का अस्पताल भी नहीं होता है आस पास !क्या यही किसानों के प्रति हमदर्दी है ?ऐसे किसानों के लिए इस आजादी के मायने क्या हैं ?

     किसानों को इतना ही नहीं अपितु सरकारी लोगों का कितना दुर्व्यवहार सहना पड़ता है आफिसों ब्लॉक,बैंक,डाकखाना,तहसील,पुलिस आदि सरकार के गैर जिम्मेदार विभागों से कभी कोई आता है धमका कर या कोई नोटिस थम्हा कर चला जाता है अपना काम काज छोड़कर वो तपस्वी किसान आफिसों आफिसों में अलग अलग बाबुओं के पास भटकता घूमता है जहाँ आदतन सरकारी लोग किसी और बाबू का नाम बताकर या फोन नंबर देकर आगे टरका देते हैं अक्सर अंग्रेजी न जानने वाले किसान वो कागज लिए दर दर भटक  रहे होते हैं किंतु बिना पैसे दिए लगभग  कहीं सुनवाई नहीं होती और देश के अन्नदाता उन तपस्वी किसानों से सरकारी विभागों के लोग बहुत गंदा बर्ताव करते हैं कई बार किसान का अपना खेत लेखपाल गलती या साजिश से किसी और के नाम चढ़ा देता है उसे ठीक करने के हजारों रूपए माँगता है !खाद जिसका जितना सोर्स उसको उतनी खाद मिलती है !किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए अविलम्ब पारदर्शी कार्यवाही हो ऐसा भी आजतक कोई सहयोगी संपर्क सूत्र नहीं दिया जा सका है आखिर क्यों !

   किसानों मजदूरों आम आदमियों गरीबों के लिए शासन प्रशासन की सोच को अच्छा कैसे कहा जाए जिनकी जिंदगी उन सरकारी कर्मचारियों के आधीन है जो बिना काम किए सैलरी लेने के नाम से लोकविख्यात हैं यही कारण है कि पैसे वालों के बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं बाकि उन सरकारी स्कूलों में जहाँ शिक्षकों का स्कूल पहुँचना समय से पहुँचना क्लास में पहुँचना और पहुँचकर वहाँ रुक कर कुछ पढ़ाना भी जरूरी नहीं होता ऐसे प्राइमरी स्कूलों में पढ़ते हैं किसानों, मजदूरों, आम आदमियों और गरीबों के बच्चे !ऐसे लापरवाह शिक्षकों की दिनों दिन सैलरी महँगाई भत्ता आदि और भी बहुत कुछ बढ़ाया जाता रहता है आखिर क्यों ?बेरोजगारी का आलम ये है कि एक शिक्षक की सैलरी में उतने या उनसे अधिक योग्य दो या तीन शिक्षक तक रख कर शिक्षा के स्तर को सुधारा जा सकता है इससे बेरोजगारी घटे जरूरत मंद लोगों को रोजगार मिले वो लगन के साथ काम भी करें ऐसी परिस्थिति में जब कम कीमत में काम करने वाले अच्छे शिक्षक समाज में अपनी सेवाएँ देने के लिए उपलब्ध हैं तो प्राइमरी स्कूलों की भद्द पिटवाने वाले अकर्मण्य महँगे शिक्षक रखने की सरकार की मजबूरी क्या है ?

        डाक विभाग के 60,000 पाने वाले कर्मचारी कोरियर के 6000 रूपए वालों के इतनी भी सेवाएँ जनता को नहीं देते हैं फिर भी सरकार उनकी सैलरी बढ़ाए जा रही है आखिर क्यों ?यही अंतर सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में है दूरसंचार कंपनियों में है और लगभग सभी सरकारी विभागों में है किंतु सरकार अपने कर्मचारियों की अकर्मण्यता से  हमेंशा प्रभावित रहती है वो इतनी भरी भरकम सैलरी लेकर भी हड़ताल करते हैं तो भी सरकार उनको मनाती है उनकी माँगें मानती है आखिर क्यों जबकि आम समाज में उनसे अधिक योग्य और परिश्रमी लोग बेरोजगार घूम रहे हैं आखिर सरकार अपने ऐसे हड़ताली कर्मचारियों का हाथ के हाथ हिसाब क्यों नहीं कर देती है !और नई नियुक्तियाँ करे !

   इसी प्रकार से इतनी भारी भरकम सैलरी लेने के बाद भी रिटायरमेंट के बाद इन्हें पेंसन किस बात की ?जिसे जीवन भर सरकार ने ढोया हो उसी का बोझ बुढ़ापे में भी ढोने को तैयार रहती है सरकार !और जो सुशिक्षित लोग बेरोजगारी के भय से सारे जीवन अपने एवं अपनों पर बोझ बने रहते हैं उनके लिए सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है आखिर क्यों ?

       किसानों मजदूरों आम आदमियों गरीबों के  सुशिक्षित बच्चे भी सोर्स और घूस देने की असक्षमता के कारण आजीवन अपमानित होते रहते हैं किंतु उन नौ जवानों की चिंता सरकार के भाषणों के अलावा और कहीं नहीं दिखती है इसप्रकार से किसानों के बच्चे शिक्षा चिकित्सा आदि में तो पिछड़ते हैं ही रोजगार में भी उनका किसी को ध्यान नहीं होता है ऐसे किसानों मजदूरों आम आदमियों गरीबों के लिए आजादी के क्या मायने होने चाहिए ! 

इसी विषय में पढ़ें मेरा यह लेख भी -

      किसानों की उपेक्षा करके आज बाबाओं और नेताओं को आखिर क्यों मिलनी चाहिए सिक्योरिटी ? देश के अन्नदाता किसानों की उपेक्षा करके नेताओं और बाबाओं पर खर्च हो रहा है सरकारी धन आखिर क्यों ?seemore... http://samayvigyan.blogspot.in/2015/03/kisaan.html

 

किसानों की उपेक्षा करके आज बाबाओं और नेताओं को आखिर क्यों मिलनी चाहिए सिक्योरिटी ?

      देश के अन्नदाता किसानों की उपेक्षा करके नेताओं और बाबाओं पर खर्च हो रहा है सरकारी धन आखिर क्यों ?नेता हों या बाबा जब दोनों का ही लक्ष्य धनसंग्रह ही है तो इनकी सिक्योरिटी का खर्च जनता क्यों बहन करे ?ये दोनों लोग देश और समाज के आखिर किस काम आ रहे हैं आज ?जो देश ढोवे इनकी बिलसिताओं के खर्च ?
   आज  धर्म और राजनीति दोनों आज अपने अपने लक्ष्य से भटके हुए हैं फिर भी उन्हीं का महिमा मंडन आखिर क्यों ?बाबा  हों या नेता दोनों कलियुग से भयंकर रूप से प्रभावित हैं दोनों ही जनता से न तो सच बोल रहे हैं और न ही ईमानदार एवं आत्मीय व्यवहार कर ही रहे हैं सब कुछ दिखाने के लिए वास्तविकता से कोसों दूर के सपने दिखाए जाते हैं किसानों मजदूरों और गरीबों को । आज स्थिति यह है कि नेताओं ने देश को और बाबाओं  ने धर्म को लाकर चौराहे पर खड़ा कर दिया है दोनों की गतिविधियाँ विश्वसनीय नहीं रह गई हैं नेता संविधान के अनुशार नहीं चल रहे हैं और न ही बाबा शास्त्रों के अनुशार चल रहे हैं और जो चल रहे हैं उनकी संख्या बहुत कम है देश का अधिकांश अपराध इन दोनों से संरक्षित है!ये दोनों अपराधियों की मदद अच्छे कामों के लिए नहीं लेते होंगे स्वाभाविक है और जो गलत करेगा तो उसे डर तो रहेगा ही इसके लिए देश का क्या दोष क्यों भुगते किसी की सिक्योरिटी का खर्च !
     आखिर बाबा हों या नेता इनके सोर्स आफ इनकम दिखाई नहीं पड़ते कंजूसी करते नहीं हैं किन्तु इनके पास संपत्ति के अंबार लग  जाते हैं आखिर कैसे ?दूसरी ओर किसान मजदूर दिन रात मेहनत करके मरा जा रहा है उसे पेट पालना  मुश्किल होता है आखिर क्यों क्या कमी है किसानों  के परिश्रम में ?गरीबत से वो अपना पीछा क्यों नहीं छुड़ा पाते हैं !
     नेताओं बाबाओं दोनों ही समुदायों से समाज का  भरोसा बुरी तरह  टूटा है दोनों ने समाज के साथ विश्वसनीय व्यवहार नहीं किया है !
     किसानों मजदूरों गरीबों को तन की सुरक्षा की गारंटी नेता देते हैं और मन की सुरक्षा की बाबा लोग  किंतु दोनों के व्यवहारों से लगता ही नहीं कि वे अपनी बातों पर गंभीर हैं !एक इस लोक की गारंटी  देता है दूसरा परलोक की किन्तु दोनों ....!शारीरिक सुरक्षा एवं सुविधाओं के लिए समाज राजनेताओं की ओर देखता है इसीप्रकार  मानसिक सुख सुविधाओं  सात्विकता आदि के लिए बाबाओं की ओर देखता है दोनों से  दोनों प्रकार का सहयोग लेने के लिए दोनों को टैक्स देता है समाज! बात और है कि नेताओं का टैक्स घोषित होता है तो बाबाओं का अघोषित!अन्यथा  नेताओं या बाबाओं  के पास बिना कमाए इतना अधिक पैसा आता कहाँ से है ?
     आधुनिक बाबाओं और नेताओं के आचरणों में अब अब कोई विशेष अंतर नहीं रह गया है दोनों में अद्भुत समानताएँ  हैं दोनों समाज सेवा की दुहाई देते हैं दोनों अपनी अपनी ताकत दिखाने के लिए बड़ी बड़ी रैलियाँ करते हैं जिसकी जीतनी भीड़ वो उतना बड़ा नेता या बाबा आदि ! इसीलिए रैलियाँ इन दोनों को ही बहुत पसंद है रैलियों में केवल भाव विहीन भाषण होते हैं इनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं होता है 

|जैसे -धार्मिक भाषण देकर अपनी हैसियत बढ़ावें तो बाबा !

राजनैतिक भाषणदेकर अपनी हैसियत बढ़ावें तो नेता !

 यदि आप मंच पर प्रेम पूर्वक किसी की आलोचना करते हैं तो  बाबा !
यदि  आप मंच पर क्रोध पूर्वक किसी को अपशब्द बोलें तो नेता !

जो वेद शास्त्रों की दुहाई देकर जनता को झकझोरें तो बाबा !
जो संबिधान की दुहाई देकर जनता को झकझोरें वे नेता !

जो ईश्वर भक्ति की दुहाई दें वे बाबा !
जो देश भक्ति की दुहाई दें वे नेता !!

 जो परलोक का भय देकर धमकावें वे बाबा !
 जो इस लोक का भय देकर धमकावें वे नेता !

 जो शिष्य बनाकर  जनता को जोड़ें वो बाबा !
जो सदस्य बनाकर   जनता को जोड़ें वो नेता !
     
      जो लाल वर्दी पहनें तो बाबा !
      जो सफेद वर्दी पहनते हैं तो नेता!
 पुराणों की कथाएँ सुनावें तो बाबा !
इतिहास की कहानियाँ सुनावें तो नेता!


  सबसे बड़ी समानता यह कि दोनों के हाथ पैर दुरुस्त शरीर स्वस्थ होने पर भी दोनों मेहनत से बहुत कतराते हैं फिर भी अपार धन संग्रही एवं विलासितापूर्ण जीवन जीने के शौकीन होते हैं ! किसानों में ऐसी क्या कमी है कि उन्हें इस प्रकार की सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकती ! इसी प्रकार से आधुनिक नेता हों या बाबा दोनों को मीडिया बनाता है और मीडिया ही नष्ट कर देता है।अक्सर जब बाबा कहीं  फँसते हैं तो नेता उनकी मदद करने लगते हैं और नेता फँसें तो बाबा !क्योंकि दोनों की पोल दोनों के पास दबी होती है!दोनों  का संपूर्ण खर्च आम जनता बहन करती है !उसमें किसान मजदूर आदि सभी आम लोग सम्मिलित होते हैं । 
नेता जब खूब धन इकट्ठा कर लेते हैं तो ईमानदार दिखने के लिए साधुओं जैसे  बात व्यवहार करने लगते हैं और बाबा जब खूब धन संग्रह कर लेते हैं तो अपनी ताकत दिखाने के लिए नेताओं जैसे  बात व्यवहार करने लगते हैं इसीप्रकार नेता बदनाम होते हैं तो संन्यास लेने की बात करते हैं और बाबा राजनीति की ओर बढ़ने लगते हैं  
   दोनों ही अपनी अच्छी बुरी बात समाज पर जबरदस्ती थोपने के लिए भीड़ का सहारा लेते  हैं ।भीड़ को बुलाया तो कुछ और समझा करके जाता है, भाषण किसी और बात के दिए जा रहे होते हैं, उद्देश्य  कुछ और होता है,परिणाम कुछ और होता है।      
     इसीप्रकार रैली में सम्मिलित होने वाले लोग भी समझने कुछ और आते हैं किंतु समझकर कुछ और चले जाते हैं।जहॉं तक भीड़ की बात है। भीड़ तो पैसे देकर भी इकट्ठी की जा रही है वो समाज का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सकती।
    जो पैसे देकर भीड़ बुलाएगा वो भीड़ से ही पैसे कमाएगा भी। तो राजनीति या धर्म में भ्रष्टाचार  होगा ही। किसी भी प्रकार का आरक्षण या छूट के लालची लोग अथवा कर्जा माफ करवाने के शौकीन लोग भ्रष्ट नेताओं को जन्म देते  हैं।इसी प्रकार बहुत सारा पापकरके  पापों से मुक्ति चाहने वाले चतुर लोग ही भ्रष्ट बाबाओं को जन्म देते हैं।ऐसी परिस्थिति में धर्म और राजनैतिक भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार आखिर है कौन ?

   भ्रष्टाचार सोचा मन से और किया तन से जाता है।सोच पर लगाम लगाने के लिए धर्म एवं उसकी क्रिया पर लगाम लगाने के लिए कानून होता है।धर्म तो धार्मिक लोगों के आधीन एवं कानून नेताओं के आधीन हो गया है। ऐसे में किसी एक पर लगाम लगाने पर भी अपराध पर अधूरा नियंत्रण हो पाएगा जो उचित नहीं है।
    ऐसे बाबाओं के पास ईश्वर भक्ति नहीं होती हैऔर  नेताओं में देश  भक्ति नहीं होती है।दोंनों अपने  अनुयायिओं की भीड़ के बल पर फूलते हैं। भीड़ देखकर दोनों  ही पागल हो उठते हैं चाहें वह किराए की ही क्यों न हो।अनाप सनाप कुछ भी बोलने बकने लगते हैं।दोनों को लगता है कि सारा देश  उनके पीछे ही खड़ा है।दोनों वेष  भूषा  का पूरा ध्यान रखते हैं बाबा नेताओं की तरह दिखने की  दूसरा नेता बाबाओं की तरह दिखने की पूरी कोशिश   करते हैं । दोनों रैलियॉं करने के आदी होते हैं।दोनों मीडिया प्रेमी होते हैं इसलिए पैसे देकर दोनों टी.वी.टूबी पर खूब बोलते हैं।बातों में दम हो न हो पैसे का दम जरूर दिखता है । नेता जब भ्रष्ट  होते हैं तो कहते हैं कि यदि ये आरोप सही साबित हुए तो संन्यास ले लूँ गा।जैसे उन्हें पता हो कि भ्रष्ट लोग ही संन्यासी होते हैं।ये सबको पता है कि बिना पैसे ,बिना परिश्रम और बिना जिम्मेदारी के उत्तमोत्तम सुख सुविधाओं का भोग इन्हीं दो जगहों पर संभव है। 
     इसी प्रकार नेताओं की एक बार की चुनावी विजय के बाद हजारों रूपए के नेता करोड़ों अरबों में खेलने लगते हैं।इन्हें देखकर भी लोग सतसंगी लोगों की तरह ही बहुत बड़ी संख्या में प्रेरित होते हैं।ईश्वर भक्त संतों एवं देश भक्त नेताओं के दर्शन दिनों दिन दुर्लभ होते जा रहे हैं।बाकी राजनेताओं की बिना किसी बड़े व्यवसाय के दिनदूनी रात चैगुनी बढ़ती संपत्ति सहित सब सुख सुविधाएँ  बढ़ते अपराधों की ओर मुड़ते युवकों के लिए संजीवनी साबित हो रही हैं ।

     बेचारे किसानों के पर न इतने चाल फरेब हैं और न ही इतनी चतुराई इसीलिए उनके पास भीड़ भी नहीं है इसीलिए दिनरात  परिश्रम करके भी वे वो कुछ नहीं पाते हैं जो नेता या बाबा !दोनों के बिलासिता पूर्ण जीवन को देखकर ललचाया करते हैं किसान मजदूर एवं आम आदमी !

Wednesday, 11 March 2015

आम आदमी पार्टी में मची भगदड़ के लिए जिम्मेदार आखिर कौन !

      प्रशांत जी बड़े वकील हैं और योगेंद्र जी बड़े पत्रकार !जब उनके विरुद्ध कुछ होगा तो वे क्या चुप बैठेंगे !इसके साइड इफेक्ट क्या नहीं होंगे ?यदि पार्टी के पास इनके विरुद्ध कोई मजबूत आधार नहीं हैं तो क्या इससे आहत होकर और भी आत्मसम्मानी और स्वाभिमानी और नेता भी पार्टी छोड़कर नहीं चले जाएँगे आम आदमी पार्टी आज केवल एक पार्टी ही नहीं अपितु सरकार भी है गंभीरता तो रखनी ही चाहिए !प्रचंड बहुमत भी पचा नहीं पा रही है पार्टी !
    लोगों से सुना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी फैसले लेने के बाद जनता  की राय  सुमारी वाली खाना पूर्ति एक बार फिर करने जा रही है इसी के तहत जिन नेताओं को पार्टी से निकालने का निर्णय ऊपर ऊपर हो चुका है अब उन्हें निकालने की माँग करते हुए उन नेताओं के विरुद्ध विधायकों से शिकायती लेटर माँगे जा रहे हैं ताकि कहा जा सके कि विधायकों और कार्यकर्ताओं की माँग पर उन्हें निकाला जा रहा है आदि आदि !किंतु जनता सब जानती है इसे अधिक दिनों तक भ्रमित नहीं  सकता है ! 
     अभी तक प्रशांत जी और योगेंद्र जी के विरुद्ध पार्टी कोई मजबूत आधार जनता को नहीं बता सकी है जिसके कारण  उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है जहाँ तक बात अरविंद को पार्टी संयोजक पद  हटाने  की है तो उसका खंडन सार्वजनिक  योगेंद्र जी करते रहे हैं फिर भी यदि ऐसी ही कोई विशेष बात है तो कारण बताओ नोटिश देकर उनका अभिप्राय कानाफूसी से ऊपर उठकर सार्वजनिक रूप से जानना जरूरी था या इस मामले को पार्टी के लोकपाल के पास भेजा जा सकता था राजनीति में ये सब चला करता है क्योंकि हर आदमी राजनीति में अपने को आगे बढ़ाने के लिए ही आता है और ये हर स्तर पर चलता है तो इसे इतने बड़े अपराध की तरह प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए !दूसरी बात पार्टी के इस तरह के बिखराव से जो पीड़ा पार्टी  चाहिए मीडिया में जो लोग अभी तक बोलते दिखाए गए हैं उनके चेहरों से से तो कम से कम ऐसा व्यक्त नहीं होता है !उनकी वाणी में वो गंभीरता नहीं दिखती है जो पार्टी के प्रति समर्पित जिम्मेदार लोगों में दिखनी चाहिए !
      यदि आज कुछ नेताओं के साथ ऐसा किया गया तो क्या गारंटी कि बाक़ी लोगों के साथ कल ऐसा नहीं होगा !तो क्या हर असंतुष्ट नेता को प्याज के छिलकों की तरह यूँ ही  निकालते रहा जाएगा या कुछ को सहने और कुछ को मनाने की कोशिश भी की जाएगी । 
       यदि  प्रशांत जी और योगेंद्र जी जैसे नेताओं के प्रति इतना ही असंतोष था तो उसी समय निकाल दिया जाता आखिर डर तब किस बात का था और तब मनाया क्यों जाता रहा !और अब विवाद बढ़ाना जरूरी क्यों था अब तो उन्हें भी जवाब जनता ने ही दे दिया था तो अब तो बारी काम करने की थी विरोधी लोग धीरे धीरे स्वयं किनारे हो जाते !कई पार्टियों में ऐसा होता रहता है यदि इस विजय को पचा  लिया गया तो अच्छा होता !आज तो पार्टी को निर्विवाद बने रखने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी पार्टी के उन लोगों की है जो पार्टी के वास्तविक हितैषी अपने को मानते हैं क्योंकि सिद्धांततः निकाले जाने वाले नेताओं के पास इस समय खोने के लिए राजनैतिक रूप कुछ नहीं है रही बात निजी प्रतिष्ठा की तो वो उनसे छीनी नहीं जा सकती क्योंकि राजनैतिक आरोप प्रत्यारोप व्यक्ति की जीवंतता के द्योतक होते हैं जो राजनीति के अंग होते हैं । आखिर वो उन लोगों से तो लाख गुना अच्छे हैं जो पार्टी और संगठन में जिम्मेदारी विहीन होने के कारण अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह  विवाद बना और बढ़ाकर ही अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं इसी प्रकार से चर्चा में बने रहते हैं अन्यथा उन्हें जनता भूल जाएगी !राजनीति में और कुछ मिले या न मिले किंतु चर्चा में तो हर कोई रहना ही चाहता है और यदि ऐसा नहीं है तो फिर वो नेता ही नहीं  है ।
       दिल्ली सरकार यदि जनता का काम नहीं कर सकती तो मना कर दे !क्या बुराई है इसमें अन्यथा पिछली बार ये कहकर सरकार गिरा दी गई कि बहुमत नहीं था अबकी बार बहुमत है तो आपसी छींटाकसी के आपसी आरोप प्रत्यारोपों में दोनों ओर से ढका छिपा बहुत कुछ निकलेगा जो और कुछ हो या न हो किंतु पार्टी और सरकार दोनों के हित  में नहीं होगा !
आम आदमी पार्टी में ये रोज की शिर फुटौव्वल ठीक नहीं हैं  ये पार्टी कार्यकर्ताओं का ही नहीं उन वोटरों के समर्पण का भी अपमान है जिन्होने आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत दिया है आज विरोधी पार्टियों के लोग न केवल दिल्ली की जनता को मुख चिढ़ा रहे हैं अपितु आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता भी दिग्भ्रमित हैं कि वो क्या मानें!
     रही बात सरकारी कामकाज की तो आम आदमी पार्टी ने जनता को जो सपने दिखाए हैं वो पूरे कर सकती है तो करे अन्यथा मना कर दे !किंतु ये सब ठीक नहीं है जो आजकल चल रहा है !आम आदमी पार्टी के जिन कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी सरकारी विभागों में पेंडिंग पड़े जनता के काम कराने की है वो पार्टी के विवादों से मायूस हैं !इसलिए सरकार बने इतने दिन हो गए हैं किन्तु सरकारी और निगम स्कूलों में पढ़ाई पहले नहीं थीं पढ़ाई आज भी नहीं हो रही है ,ऐसे और भी बहुत सारे काम हैं जिनमें लापरवाही हो रही है जनता की शिकायतों के प्रति जवाबदेय पहले भी कोई नहीं था आज भी नहीं है!आखिर जैसे सारी  सरकारें चलती रही हैं वैसे ही तो आम आदमी पार्टी सरकार भी चल रही है अंतर केवल इतना है कि दिल्ली की सत्ता में एक नई पार्टी सत्ता रूढ़ हुई है किन्तु आज तक इस सरकार ने भी कोई ऐसा कदम तो नहीं उठाया जहाँ जनता अपनी समस्या जा कर बतावे तो उसकी न केवल सुनी जाए उसका समाधान भी किया जाए और यदि समाधान न हो सके तो कम से कम मना तो कर ही दिया जाए !आखिर आशा तो टूटे !
     वैसे नई पार्टी जो भी सत्ता में आती है वो कुछ दिन शिकायतें सुनने का व्यवहार करते तो दीख पड़ती है नई नई शौक होती है किंतु काम करना बश का नहीं होता तो चुप होकर बैठ जाते हैं मैंने भी एक शिकायत इस सरकार के उपलब्ध लगभग हर माध्यम में की है किन्तु आज तक मुझे नहीं लगता कि झगड़े झंझट के कारण नेताओं को समय मिला भी होगा और उन्होंने  शिकायत पढ़ी भी होगी !मैं तो समझता हूँ कि ऐसा ही औरों के साथ भी होता होगा !खैर,अभी तक तो दिल्ली की जनता का समय और ध्यान दोनों भटकाया  जा रहा है आखिर क्यों ?जिन  वालंटियर्स को जनता से  किये हुए वायदों को पूरा करने में लगना था वो अपने हाई कमान के झगड़े से निस्तब्ध हैं कि ये तो अपने को त्यागी कह रहे थे किन्तु आज ये सब हो क्या रहा है ?
   आम आदमी पार्टी का उतना नुक्सान दूसरे कभी नहीं कर सकते थे जितना उसके अपनों ने किया है दूसरी बात आम आदमी पार्टी को उनसे उतना नुक्सान नहीं है जो पार्टी के मूल सिद्धांतों पर भटकाव के विरुद्ध खुल कर अपना विरोध व्यक्त कर रहे हैं अपितु सबसे बड़ा नुक्सान उनसे है जो पार्टी की हमदर्दी दिखाने के लिए पार्टी के सिद्धांतों से समझौता करने पर आमादा हैं आज ये बात अंदर वालों ने उठाई तो उनका गला दबाया जा है किंतु कल जब यही बात जनता से उठेगी तो क्या उसका भी उसका भी मुख बंद करने के लिए कुछ किया जाएगा !क्योंकि पार्टी भटकी है प्रचंड बहुमत मिलने के बाद विरोधियों के मुख तो बंद हो गए किंतु ये विजय उसके अपने नहीं पचा पाए ! 
     इस विषय में पढ़ें हमारे कुछ और लेख -

इस लेख को आप जरूर पढ़ें और समझें "आम आदमी पार्टी" बनने की संभावित सच्चाई !see more... http://snvajpayee.blogspot.in/2014/03/blog-post_6.html

Monday, 13 January 2014

आम आदमी पार्टी को अरविन्द स्वयं छोड़ देंगे अन्यथा हटा दिए जाएँगे - डॉ. एस .एन.वाजपेयी-'ज्योतिष वैज्ञानिक' !!! seemore... http://snvajpayee.blogspot.in/2014/01/blog-post_13.html

 

 

Saturday, 7 December 2013


क्या है अरविन्द का भविष्य आम आदमी पार्टी में ?  अरविन्द केजरीवाल से यदि अन्नाहजारे की नहीं पटी तो पटेगी आम आदमी पार्टी की भी नहीं !

seemore... http://snvajpayee.blogspot.in/2013/12/blog-post_7.html


 

Thursday, 18 October 2012अन्ना और अरविन्द में आपसी दूरी क्यों ?क्यों बिगड़े अन्ना और अरविन्द के आपसी सम्बन्धsee more... http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/anna-arvind-ki-aapasi-duri-kyon.html

 

   

Friday, 29 March 2013

आम आदमी पार्टी बनते ही अरविन्द का करिश्मा समाप्त ?

   आम आदमी पार्टी  और अरविन्द  जी एवं ज्योतिष 


 

Monday, 11 March 2013

अरविन्द केजरीवाल फँसे अ के झंझट में ! Dr.Vajpayee

   रविन्द केजरीवाल  और म आदमी पार्टीseemore... http://snvajpayee.blogspot.in/2013/03/drvajpayee.html


Wednesday, 20 November 2013

अन्ना एवं अरविन्द केजरी वाल के बीच बढ़ते विवाद के विषय में ज्योतिषीय सफाई !see  more... http://snvajpayee.blogspot.in/2013/11/blog-post_681.html

 

Friday, 29 March 2013अरविन्द केजरीवाल जी के लिए आम आदमी पार्टी शुभ नहीं है !   आम आदमी पार्टी  और अरविन्द  जी एवं ज्योतिष 

seemore..http://snvajpayee.blogspot.in/2013/03/blog-post_9531.html 

 

Sunday, 3 March 2013

अरविन्द केजरीवाल की गुडबिल दिनों दिन गड़बड़ाती जा रही है?

   रविन्द केजरीवाल  और म आदमी पार्टीseemore... http://snvajpayee.blogspot.in/2013/03/blog-post_4860.html


 

Friday, 30 November 2012

आम आदमी पार्टी और अरविन्द Dr.S.N.Vajpayee

   आम आदमी पार्टी  और अरविन्द  जी एवं ज्योतिष seemore... http://snvajpayee.blogspot.in/2012/11/blog-post_9715.html


Sunday, 25 November 2012

आम आदमी पार्टी में अरविन्द जी का भविष्य ?seemore... http://snvajpayee.blogspot.in/2012/11/blog-post_2833.html

 

 

सोमवार, 13 जनवरी 2014

आम आदमी पार्टी का भविष्य बहुत अच्छा नहीं दिखता है -ज्योतिष

आम आदमी पार्टी  क्या अपनी साख बचाने एवं बनाने में  सफल हो पाएगी ?seemore....http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/01/blog-post_13.html


Sunday, 12 January 2014

आम आदमी पार्टीं एवं अरविन्द का आगे क्या होगा राजनैतिक भविष्य -ज्योतिष

आम आदमी पार्टी  क्या अपनी साख बचाने एवं बनाने में में सफल हो पाएगी ?seemore... http://samayvigyan.blogspot.in/2014/01/blog-post_7471.html


 

हे केजरीवाल जी ! आपसे इतने छिछले आचरण की उम्मीद नहीं थी !आपने देश को निराश किया है !!

  अरविन्द   अरविन्द जी ! जनता जानना चाहती है कि दूसरी पार्टियों और नेताओं का पोल खोलने के लिए बात बात में पोथी पत्रा लेकर मीडिया के सामने पोल खोलने के लिए बैठ जाने वाले आप आज मौन क्यों हैं आखिर इतना बीमार तो नहीं ही  माना जा सकता कि आप  बोल नहीं सकते !आखिर ऐसा क्या हुआ है कि आपने जनता के सामने अपनी स्थिति स्पष्ट करना भी जरूरी नहीं समझा है।  क्या जनता को इतना जानने का हक़ भी नहीं है कि आप बीमार होने के कारण मौन हैं या कोई व्रत चल रहा है या किसी समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि जब ऐसा होगा तब बोलेंगे या जाने अनजाने में पार्टी से कोई गलती हो गई है जिसे न कहा जा पा रहा हो और न सहा जा रहा हो ! पार्टी में मची ये भगदड़ उसी की सड़ांध का प्रतीक तो  नहीं है आखिर कारण क्या है ?
   अरविन्द जी !जिस दिल्ली की जनता ने तुम्हें इतना दुलार दिया है कि जो दिल्ली के चुनावी इतिहास में किसी दूसरे पार्टी और नेता को नहीं मिला है जनता ने बीसों बर्ष पुरानी पार्टियों एवं उनके अनुभवी और चिर परिचित नेताओं के विश्वास को दरकिनार करते हुए अरविंद तुम्हारी सरलता सहजता ईमानदारी विनम्रता एवं भाषाई शालीनता पर अपने को न्योछावर कर दिया है !समाज जिस समय सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचारों से रौंदा जा रहा है जब बड़े बड़े पढ़े लिखे लोगों का जीवन केवल अनपढ़ नेताओं मंत्रियों की चाटुकारिता के लिए जाना जाने लगा था उस समय शिक्षित और सामान्य समाज की आशा की किरण बनकर अरविन्द तुम प्रकट हुए जिन्हें देखकर शिक्षित समाज को आशा बँधी  कि मैं भी कुछ कर सकता हूँ इसलिए अरविंद जी शिक्षित और लेखक होने के नाते मैं निजी तौर पर आपसे आशान्वित हूँ कि आप अपने उद्देश्यों में सफल हों और यदि आप असफल हुए तो हमारे जैसे हजारों हृदय यह सोचकर हताश हो जाएँगे कि जो सपना आपने दिखाया था वो टूट गया !इसलिए अरविन्द जी !तुम कुछ कर पाओ या न कर पाओ वो आपकी परिस्थितियाँ हो सकती हैं जिन्हें जनता सह जाएगी किंतु जनता के सामने आकर अपनी बात तो बताओ  !जनता आज भी आपके साथ है । आखिर मीडिया में ख़बरें आ रही हैं कि मीटिंग में तुम रोने लगे थे गिर पड़े थे आशुतोष और अंजली दमानियाँ जैसे लोगों ने आपको सँभाला था !इतनी बड़ी बड़ी बातें  हो गईं दिल्ली की जनता को कुछ पता ही नहीं लगा !जरा जरा सी बात जनता के सामने बताने वाले तुम इतनी बड़ी बात छिपा गए रामलीला मैदान से आंदोलन के समय कपिल सिब्बल से बात करने आप लोग गए थे वहाँ  जिस उपेक्षात्मक ढंग से आप से व्यवहार किया गया था वो बिना संकोच के आपने मंच से जनता के सामने बताया था किंतु …!और जनता ने आप लोगों के अपमान को अपना अपमान समझा था इसीलिए न केवल आपका साथ दिया अपितु उन  अहंकार मूर्च्छित लोगों से बदला भी ले लिया । अरविन्द जी !आप दिल्ली की सरकार छोड़कर गए थे जनता के मन में आक्रोश था किंतु आपने जनता से माफी माँगी जनता ने आपको न केवल माफ किया और न ही केवल गले लगाया अपितु गोद उठा  लिया तुम्हें !कितना दुलार दिया है तुम्हें दिल्ली वालों ने !इतना बड़ा विश्वास जीत पाना अरविन्द !एक जन्म के पुण्यों का प्रभाव नहीं है इसलिए वह आपके लिए विश्वास सबसे अधिक मूल्यवान होना चाहिए !
   अतएव आपसे से एक ही निवेदन है कि आप मीडिया में आकर अपने मुख से बोलिए कि आपकी मजबूरी आखिर क्या है क्यों पार्टी में नित नूतन विवाद जन्म ले रहे हैं !आप कोशिश कीजिए ताकि पार्टी की निर्विवादिता बचाई जा सके अन्यथा बहुत देर हो चुकी होगी !
                                                                                                              भवदीय -
                                                                                                  डॉ.शेष नारायण वाजपेयी  



Monday, 9 March 2015

अरविंद की तपस्या को तमाशा बनाने वाले हमदर्दों का जब तक पर्दाफाश होगा तब तक देर हो चुकी होगी !

         आम आदमी पार्टी में हमदर्दी की होड़ !

   आम आदमी पार्टी के साथ उसके अपने लोग ही हमदर्दी करने के बजाए दिखाने के लिए मारा मारी मचाए हुए हैं !इन नेताओं के बयानों में अपने त्याग और सेवा भाव के संकल्प की सुगंध ही मरती जा रही है इतना अहंकार और इतना असंतोष !

   वस्तुतः'अ'अक्षर से प्रारंभ नाम वाले नेता पहले'अ'अक्षर से प्रारंभ नाम वाले न्नाआंदोलन में सेट नहीं हो पाए और अब 'अ'अक्षर से प्रारंभ नाम वाली म आदमी पार्टी में अपने को अपने हिसाब से एडजेस्ट नहीं कर पा रहे हैं किंतु कह भी नहीं पा रहे हैं और सह भी नहीं पा रहे हैं तो दूसरों तीसरों में दोष दिखाने की होड़ सी लगी हुई है मुझे डर है कि ये भावना न्ना आंदोलन की तरह कहीं पार्टी को ही न ले बैठे !अन्यथा जनता ने बहुमत दे दिया है अब काम करो विवाद क्यों ?
'रविंदकेजरीवाल, न्नाहजारे,अग्निवेष और असीम त्रिवेदी !तब मात्र ये तीन '' थे । 
  अब मआदमीपार्टी के '' के लिए  रविंदकेजरीवाल स्वयं में एक समस्या और समाधान भी हैं किंतु शुतोष ,लकालांबा,शीष खेतान,अंजलीदमानियाँ,दर्शशास्त्री,सीमअहमद,श्विनी,  इसी प्रकार से जेश,वतार ,जय,खिलेश,निल,अमान उल्लाह खान  आदि 'अ' से प्रारम्भ नाम वाले लोग न जाने कब किस बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लें और कितने बड़े भाग को प्रभावित करके कितनी बड़ी समस्या तैयार कर दें कहना कठिन होगा !इससे पार्टी तो प्रभावित होगी ही सरकार भी प्रभावित होगी क्योंकि ये छोटी समस्या नहीं तैयार करेंगे !seemore... http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2015/02/blog-post_13.html

    केजरीवाल की मुशीबत विरोधियों से नहीं अपितु कृत्रिम हमदर्दों से बढ़ रही हैं जिन्हें ये समझ में नहीं आ रहा है कि पार्टी  में होने वाले किसी भी प्रकार के विवाद का नुक्सान पार्टी को होगा पार्टी की विश्वसनीयता को होगा और अरविंद जी की छवि को होगा। पिछले वार सरकार छोड़कर भागने के आरोप लगे थे और प्रचारित किया गया था कि इन्हें सरकार चलाने नहीं आता है इसलिए ये लोग स्वयं विवाद खड़े करते हैं कुछ लोगों का मानना है कि जैसे कुछ मछुआरे समुद्र में दस पाँच किलो मछली पकड़ने के लिए जाल फेकें किन्तु उसमें कोई दो सौ किलो की मछली फँस जाए तो न वो मछली घसीट पाते हैं न जाल निकाल पाते हैं और न जाल छोड़ कर आ पाते हैं तो निराश होकर वे आपस में लड़ने लगते हैं कि हमें यहाँ नहीं आना चाहिए था, जाल ऐसे नहीं फेंकना चाहिए था या हम लोगों को आज आना नहीं चाहिए था आदि आदि एक दूसरे की कमियाँ गिनाने लगते हैं किंतु जैसे उनके अनुमान गलत हैं वही स्थिति आज के आम आदमी पार्टी के विवादों की है !यदि योगेंद्र और प्रशांत जी ने कुछ ऐसा कह भी दिया था कि जिसके संकेत अरविन्द के पद के विरुद्ध जाते थे तो ये लोकतंत्र है आखिर अरविन्द को इस प्रकार की दैवी शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित करने की कोशिश क्यों की जा रही है जिसे सुझाव भी नहीं दिए जा सकते हैं जिसकी आलोचना भी नहीं की जा सकती !खैर !कुल मिलाकर कुछ हमदर्दों के द्वारा अरविंद के परिश्रम पर पानी फेरने की चल रही तैयारियाँ घातक हैं जिन्हें अरविंद की सरलता के प्रति समर्पित उन लाखों लोगों की भावनाओं का स्मरण ही नहीं रहा जो अभी तक ठीक से सरकार गठन का जश्न भी नहीं मना पाए थे फिल हाल इस अनावश्यक विवाद को अभी टाला जा सकता था और टालने में ही भलाई है !अपनी अपनी महत्वाकाँक्षाओं की पूर्ति करने का ये सबसे भद्दा ढंग है जिसमें व्यक्ति विशेष को खुश करते दिखने के लिए ऐसे आत्मघाती बयान  दिए जा रहे हों !see more... http://snvajpayee.blogspot.in/2014/01/blog-post_13.html

Sunday, 8 March 2015

पवित्र संन्यासियों को बाबाओं, पंडितपुजारियों,और समाज सुधारकों से कुछ तो अलग रखकर चलना ही होगा !

   संन्यासियों के लिए शास्त्रीय धर्मकर्मों  का पालन उतना ही आवश्यक होता है जितना व्यापारियों के लिए कानून और नेताओं के लिए संविधान !     

   संन्यासियों और समाज सुधारकों में कुछ अंतर करके तो चलना ही पड़ेगा अन्यथा आज तो ईमानदार दिखने के लिए नेता ,व्यापारी और भिखारी जैसे लोग भी संन्यासियों जैसा वेष  बनाकर अपने को संन्यासी कहने लगे हैं !वैसे भी जिस व्यापारी की सामाजिक गुडबिल ख़राब  हो गई हो ब्याज पर भी उधार कर्जा न मिल पाता हो और वो व्यापार या राजनीति करना चाहता हो इसके लिए उसे धन चाहिए तो बाबा बन कर धन इकठ्ठा किया जा सकता है इससे उसे धन भी मिल जाएगा और ब्याज भी नहीं पड़ेगा और देने की चिंता भी नहीं होगी इसके लिए उसे धर्म और देश प्रेम से जुड़ी बातें बोलकर समाज को प्रभावित करना होगा !बाकी  व्यापार करे या राजनीति क्या दिक्कत !अगर भोग बिलासिता की  सारी सुख सुविधाओं को भोगते हुए भी केवल संन्यासियों जैसा वेष  बना लेने या अपने महल और फार्म हाउस को आश्रम कह देने मात्र से यदि बिना कुछ किए धरे सब कुछ मिल जाता है तो लिया जा सकता है इसमें दिक्कत भी क्या है दुनियाँ इतने व्यापार कर रही है सब नंबर एक के ही तो नहीं हैं इसी प्रकार से समाज सेवक नेता लोग  बिना कुछ किए धरे भी अरबों पति हो जाते हैं किंतु ये नंबर एक की राजनीति तो नहीं हैं इसी प्रकार से संन्यास है किंतु व्यापारी हो राजनेता हो या संन्यासी इसका मूल्यांकन तो उसके नीति नियमों के पालन से ही करना होगा न कि काल्पनिक जैसे देश के कानून और संविधान के अनुशार चलकर व्यापारियों  और राजनेताओं की शुद्धि  हो सकती है इसी प्रकार से धर्मशास्त्रों का पालन करने वाले धार्मिकों को शुद्ध माना जा सकता है दूसरी बात कई बार कुछ  व्यापारी और कुछ नेता लोग चाहकर भी सम्पूर्ण रूप से संबिधान के अनुशार जीवन यापन नहीं कर पाते हैं किन्तु प्रयास करते हैं तो उनकी उस विषय संबंधी बातों का विश्वास भी उसी अनुपात में किया जाना चाहिए इसी प्रकार से साधू संन्यासी पंडित पुजारियों जैसे धार्मिक लोगों को भी अपनी क्षमता से बहार जाकर लप्फाजी नहीं मारनी चाहिए !जिससे समाज उसे देखकर भ्रमित न हो वैसे भी धार्मिक लोगों पर तो इसकी नैतिक जिम्मेदारी अधिक होती है कि वे यथासंभव शास्त्रीय जीवन पद्धति अपनाने का प्रयास करें फिर भी जो न कर पावें उसके बारे में समाज को भ्रमित भी न करें इतनी अपेक्षा हमारी समझ में बुरी भी नहीं है और ताकि उसकी आवश्यकता समाज कहीं अन्य जगह से पूरी करे या न करे !कम से कम उसके लिए धर्म और धर्म शास्त्रों को तो दोषी नहीं ठहराया जाएगा !या गलत तो नहीं करेगा और यदि करेगा तो मानेगा भी गलत कि मैं गलत या अशास्त्रीय कर रहा हूँ !आज सबसे बड़ी दिक्कत तो ये है कि जो लोग गलत भी कर रहे हैं वो भी अपने को सही बता रहे हैं एक बाबा जी अपनी शिष्या के साथ शारीरिक संबंधों में पकड़े गए जब लोगों ने पूछा  ऐसा क्यों करते हैं तो कहने लगे "प्रेम तो भगवान का स्वरूप है श्री राधा कृष्ण ने भी किया था " बंधुओ !इस स्वेच्छाचार या ब्याभिचार को धर्म कैसे मान लिया जाए ! ऐसे सभी लोग यदि अपने अपने अनुशार धर्म गढ़ लेंगे तो कैसे निभ पाएगा धर्म !हर आदमी  अपने मन गढंत संविधान के आधार पर कैसे चल सकता है !

     इसलिए धर्म अनुशासित राजनीति तो ठीक है किन्तु धर्म जब राजनीति का अनुगमन करने लगे वो ठीक नहीं है जहाँ गुरुद्रोणाचार्य जी जैसे अनेकों महापुरुष हुए हैं जो गुरु थे शिक्षक थे आचार्य थे किंतु संन्यासी नहीं थे अपितु गृहस्थ थे और भी बहुत लोग हैं जो समाज सुधारक हैं किन्तु संन्यासी नहीं हैं संन्यास कल्पना का विषय नहीं है ये एक व्रत है जिसके नियम धर्म शास्त्रों में वर्णित हैं उनका पालन करने वाला संन्यासी और न पालन करने वाला ....!जहाँ तक निर्लोभ भावना से अपने देश जाति धर्म समाज के प्रति समर्पित व्यक्ति को संन्यासी मानने का प्रश्न है तो ये परिभाषा तो आतंक वादियों के आत्मघाती दस्तों पर भी लागू होने का भय है क्योंकि वो भी अपने धर्म के प्रति समर्पित होते हैं इसलिए हमें अपनी सीमाओं में रहते हुए मनगढंत संन्यास को छोड़कर शास्त्रीय  संन्यास या धर्म का पालन करना चाहिए !

इसी विषय में पढ़ें मेरे ये लेख भी -

शास्त्रीय संन्यासियों के लक्षण 

    संन्यासियों या किसी भी प्रकार के महात्माओं को काम क्रोध लोभ मोह मद मात्सर्य   आदि विकारों पर नियंत्रण तो रखना ही चाहिए यदि पूर्ण नियंत्रण न रख सके तब भी प्रयास तो पूरा होना ही चाहिए।वैराग्य की दृढ़ता दिखाने के लिए कहा गया कि स्त्री यदि लकड़ी की भी बनी हो तो भी वैराग्य व्रती उसका स्पर्श न करे.....! see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2013/06/blog-post_6671.html

संन्यासियों को अपने नियमों का पालन क्यों नहीं करना चाहिए?

 संन्यासियों  के भी कुछ तो नियम होते ही होंगे उनका पालन उन्हें क्यों नहीं करना चाहिए और हमें क्यों उनकी प्रशंशा करते रहना चाहिए केवल उनके पास पैसा है इसलिए ! see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2013/11/blog-post_97.html

 इसी  विषय में पढ़ें मेरा यह लेख भी -

 

कुछ बाबाओं के ब्यभिचार में साथ देने वाला समाज कितना निर्दोष है ?

बाबाओं को  ब्यभिचार के लिए धन देने वालों ने धन दिया,मन देने वालों ने मन दिया तन देने वालों ने तन दिया कुछ लोगों ने तो जीवन ही दे दिया है ये सच्चाई है फिर भी  दोष केवल बाबाओं का ही है क्या?

  संन्यासियों को सब कुछ छोड़ कर केवल भजन करने को शास्त्रों में क्यों कहा गया ?see more ....http://bharatjagrana.blogspot.in/2013/10/blog-post_10.html


 

 

Friday, 6 March 2015

होली रंगों का त्यौहार है किन्तु नंगों का नहीं इसलिए खबरदार नंगई बर्दाश्त नहीं है ! हाँ ,रंग खेलने वालों का स्वागत है !!

बंधुओ ! आज धुलेठी पर्व की आप सबको बहुत बहुत बधाई !! आखिर क्यों मनाया जाता है धुलेठी पर्व ?

   बंधुओ !इस त्यौहार की मर्यादा बनाए रखने में ही भलाई है अन्यथा कुछ विधर्मी लोग हमारे पर्वों को बदनाम करने के लिए कीचड़ कैमिकल आदि हानि कारक चीजें भी चलाने लगे हैं बहुत मजनूँ लोगों को तो यह त्यौहार केवल इसीलिए अधिक प्रिय है क्योंकि इस दिन वो लोग कुछ उन लोगों के उन अंगोपांगों को रंग लगाने के बहाने छू पाते हैं जिनके लिए वर्ष भर तरसा करते हैं ऐसे लोगों को तो न तो प्रह्लाद जी से कुछ लेना देना होता है न ही होलिका से उन्हें तो केवल अश्लील हरकतें करने के लिए ये दिन सबसे अधिक सुविधाजनक लगता है जो अशोभनीय है इससे अपने त्योहारों की गलत छवि विधर्मी लोगों तक पहुँचती है जिसका वे उपहास उड़ाते हैं इसलिए हमारा सभी अपने भाई बहनों से अनुरोध है कि हम अपने धर्म की गरिमा बचाए रखें इसी में हम सभी की भलाई है !कुछ लोग होली मनाने के नाम  पर कुछ भी नंगई करना चाहते हैं उन्हें समझा दिया जाना चाहिए कि होली रंगों का त्यौहार तो है किन्तु नंगों का त्यौहार नहीं है इसलिए नंगई बर्दाश्त नहीं की जाएगी !


भाई बहनो !आप सभी को पता ही है कि भक्त प्रह्लाद जी की बुआ होलिका भगवान सूर्य की कृपा से प्राप्त दिव्य वस्त्र को ओढ़ कर अपनी गोद में भतीजे प्रह्लादको लेकर बैठी थीं किन्तु अग्नि प्रज्ज्वलित होते ही वो दिव्य वस्त्र जिसे ओढ़ने वाला जलता नहीं था प्रभु कृपा प्रसाद से वो दिव्य वस्त्र उड़कर प्रह्लाद जी पर आ गिरा जिससे  प्रह्लाद जी ढक गए और बच गए किंतु होलिका जल गईं अगले दिन प्रातः प्रह्लाद जी से स्नेह करने वाले सखा गण वहाँ आए भस्म (राख) का ढेर देख कर सह नहीं सके प्रह्लादजी जैसे अपने प्रिय मित्र का वियोग धैर्य टूट गया प्रह्लाद जी का गुणानुवाद गाते हुए बेचारे रोने लगे उन्हें व्याकुल देखकर प्रह्लाद जी उसी भस्म (राख)के ढेर से प्रकट हुए जिससे बहुत सारी भस्म (राख)उड़ने लगी यह देखकर प्रसन्नता से झूम उठे साथी भी लिपट गए अपने प्राण प्रिय सखा प्रह्लाद जी से ,ख़ुशी से वही राख धूल उड़ा उड़ा कर सभी आपस में खेलने लगे इसीलिए इसे धुलेठीपर्व के रूप में मनाया जाने लगा तब से यह पर्व बड़े श्रद्धा विश्वास के साथ आज तक मनाया जाता है !

       इस सुदिन पर हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि जैसे प्रह्लाद जी के मित्रों को उनके बिछुड़े प्रह्लाद जी मिल गए ऐसी कृपा ईश्वर सब पर करे और सबके बिछुड़े सबको मिल जाएँ !

होली रंगों का त्यौहार है किन्तु नंगों का नहीं इसलिए खबरदार नंगई बर्दाश्त नहीं है ! हाँ ,रंग खेलने वालों का स्वागत है !!

बंधुओ ! आज धुलेठी पर्व की आप सबको बहुत बहुत बधाई !! आखिर क्यों मनाया जाता है धुलेठी पर्व ?

   बंधुओ !इस त्यौहार की मर्यादा बनाए रखने में ही भलाई है अन्यथा कुछ विधर्मी लोग हमारे पर्वों को बदनाम करने के लिए कीचड़ कैमिकल आदि हानि कारक चीजें भी चलाने लगे हैं बहुत मजनूँ लोगों को तो यह त्यौहार केवल इसीलिए अधिक प्रिय है क्योंकि इस दिन वो लोग कुछ उन लोगों के उन अंगोपांगों को रंग लगाने के बहाने छू पाते हैं जिनके लिए वर्ष भर तरसा करते हैं ऐसे लोगों को तो न तो प्रह्लाद जी से कुछ लेना देना होता है न ही होलिका से उन्हें तो केवल अश्लील हरकतें करने के लिए ये दिन सबसे अधिक सुविधाजनक लगता है जो अशोभनीय है इससे अपने त्योहारों की गलत छवि विधर्मी लोगों तक पहुँचती है जिसका वे उपहास उड़ाते हैं इसलिए हमारा सभी अपने भाई बहनों से अनुरोध है कि हम अपने धर्म की गरिमा बचाए रखें इसी में हम सभी की भलाई है !कुछ लोग होली मनाने के नाम  पर कुछ भी नंगई करना चाहते हैं उन्हें समझा दिया जाना चाहिए कि होली रंगों का त्यौहार तो है किन्तु नंगों का त्यौहार नहीं है इसलिए नंगई बर्दाश्त नहीं की जाएगी !


भाई बहनो !आप सभी को पता ही है कि भक्त प्रह्लाद जी की बुआ होलिका भगवान सूर्य की कृपा से प्राप्त दिव्य वस्त्र को ओढ़ कर अपनी गोद में भतीजे प्रह्लादको लेकर बैठी थीं किन्तु अग्नि प्रज्ज्वलित होते ही वो दिव्य वस्त्र जिसे ओढ़ने वाला जलता नहीं था प्रभु कृपा प्रसाद से वो दिव्य वस्त्र उड़कर प्रह्लाद जी पर आ गिरा जिससे  प्रह्लाद जी ढक गए और बच गए किंतु होलिका जल गईं अगले दिन प्रातः प्रह्लाद जी से स्नेह करने वाले सखा गण वहाँ आए भस्म (राख) का ढेर देख कर सह नहीं सके प्रह्लादजी जैसे अपने प्रिय मित्र का वियोग धैर्य टूट गया प्रह्लाद जी का गुणानुवाद गाते हुए बेचारे रोने लगे उन्हें व्याकुल देखकर प्रह्लाद जी उसी भस्म (राख)के ढेर से प्रकट हुए जिससे बहुत सारी भस्म (राख)उड़ने लगी यह देखकर प्रसन्नता से झूम उठे साथी भी लिपट गए अपने प्राण प्रिय सखा प्रह्लाद जी से ,ख़ुशी से वही राख धूल उड़ा उड़ा कर सभी आपस में खेलने लगे इसीलिए इसे धुलेठीपर्व के रूप में मनाया जाने लगा तब से यह पर्व बड़े श्रद्धा विश्वास के साथ आज तक मनाया जाता है !

       इस सुदिन पर हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि जैसे प्रह्लाद जी के मित्रों को उनके बिछुड़े प्रह्लाद जी मिल गए ऐसी कृपा ईश्वर सब पर करे और सबके बिछुड़े सबको मिल जाएँ !

Thursday, 5 March 2015

आम आदमी पार्टी की रासलीला मंडली से बाहर किए गए योग्य सक्षम शालीन एवं बरिष्ठ नेता लोग !

आमआदमीपार्टी के चतुर चिकित्सकों को उनकी कुशल कारीगरी के लिए बहुत बहुत बधाई !बड़ालंबा चला आपरेशन और  सफलता पूर्वक निकाली गईं पार्टी की दोनों किडनियाँ !चलो अभी ही दर्द में आराम तो हो !!

    आम आदमी पार्टी के 6 घंटोंतक चले लंबे आपरेशन से सफलता पूर्वक निकाली गईं पार्टी की दोनों किडनियाँ !ऐसा करके चतुर चिकित्सकों को अपनी चाल सफल होने की खुशी होनी तो स्वाभाविक है ही किंतु उनकी जगह ट्राँसप्लांटेशन ठीक हो तब न !अन्यथा डॉक्टरी पढ़ कर आए नए नए अनुभव विहीन लोगों ने केवल यह देखने के लिए आपरेशन कर डाला कि देखें उन्हें आपरेशन करना आता है या नहीं !अच्छी भली चल रही अपनी पार्टी की किडनियों को निकाल कर वो खुश तो हैं किंतु खुशी का अवसर ये नहीं है अपितु वास्तविक ख़ुशी तो तब होनी चाहिए जब उनकी  जगह प्रत्यारोपण ठीक हो सके !किंतु ये नौ सिखिए यदि इतने ही समझदार होते तो किडनियाँ बिना निकाले भी दवा से भी काम चला सकते थे ,अपनी ओरिजनल किडनियों की बराबरी किसी और की लगाई गई प्रत्यारोपित किडनियों से कैसे की जा सकती है आखिर डायलिसिस की भी तो सीमा है !उनकी जगह अब किसी और किडनियों को प्रत्यारोपित किया जाएगा किंतु इस प्रत्यारोपण  के बाद  दर्द नहीं होगा इसकी क्या गारंटी  ?चूँकि दर्द का कारण किडनियाँ नहीं अपितु पार्टी का वो दिमाग है जिसे बहम हो गया है कि उसे दर्द है और वो भी किडनियों के कारण !जबकि पार्टी की जीत की खुशी में लीवर दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था जसके कारण किडनियों के काम करने में बाधा उत्पन्न हो रही थी अब लीवर तो वैसा ही है किंतु किडनियाँ बाहर कर दी गई हैं फिर भी समझदार नए नए डाक्टर हैं कोर्स करके आए हैं जो करेंगे अच्छा ही करेंगे किन्तु मैंने सुना है कि सलाह बूढ़े बैद्य की ही अच्छी मानी जाती है,"नया ज्योतिषी वैद्य पुरान"  खैर ,हमारी तो भगवान से यही प्रार्थना है कि आम आदमी पार्टी को अब ऐसा दर्द कभी न  हो जैसा अबकी हुआ ,पिछले काफी दिनों से बहुत परेशान रही पार्टी !इस दर्द से पार्टी का एक एक पार्ट न केवल परेशान था !अपितु कराह रहा था शोर सुनकर मीडिया वाले भी जमावड़ा लगे थे यद्यपि आम आदमी पार्टी के कुशल चिकित्सकों की इस बात के लिए तो प्रशंसा की ही जानी  चाहिए कि अंग में घाव होने लगता है ये उसकी दवा न करके अपितु आपरेशन करके हाथ के हाथ अंग ही निकाल  देते हैं किन्तु इन ओरिजन अंगों को भुला  पाना भी उतना आसान नहीं होगा क्योंकि ये पार्टी की प्रकृति में पैदा हुए अंग हैं !ईश्वर इन ऑपरेटेड अंगों को इतनी सामर्थ्य दे कि ये अपने डॉक्टरों को क्षमा करते रह सकें !

इसी विषय में पढ़ें हमारा ये लेख भी -


आम आदमी पार्टी की कलह का कारण आखिर है क्या ? ज्योतिष की वैज्ञानिक और तर्क पूर्ण दृष्टि से समझिए कि दिल्ली में पूर्ण बहुमत मिलने के बाद भी सरकार तो तब चलेगी जब पार्टी बचेगी किंतु प्याज के छिलकों की तरह यदि ऐसे ही एक एक परत उतारते रहेंगे तो पार्टी हो या सरकार आखिर बचेगा क्या ? आमआदमीपार्टी का जब जब कोई विखराव होगा तब तब उसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सूत्रधार कोई 'अ' या 'स' अक्षर से प्रारंभ नाम वाला अपना सदस्य होगा !-ज्योतिष
   आमआदमी पार्टी हो या अरविन्द केजरीवाल इन दोनों का सहयोग 'अ' और 'स' अक्षर वाले लोगों से संभव नहीं है इसलिए ये सच है कि पार्टी में बगावत कोई भी करे किन्तु उसकी जड़ में 'अ' और 'स' अक्षर वाले लोग होंगे इसमें उनकी कोई गलती या साजिश नहीं कही जा सकती किन्तु ग्रह दोष के कारण ये लोग पार्टी की सेवा कर ही इसी प्रकार से  सकेंगे इन्हें वही रास्ता पसंद आएगा जो पार्टी और अरविन्द जी के हित  में नहीं होगा see more...http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.com/2015/02/blog-post_13.html


आमआदमीपार्टी अपने को सँभाल क्यों नहीं पा रही है ?
आमआदमीपार्टी के लोग अन्ना आंदोलन से अभी तक किसी के साथ बना कर क्यों नहीं चल पा रहे हैं ? कुछ नेता हट गए कुछ हटाए जा रहे हैं आखिर क्यों ?
  राजनीति चलती भी चाटुकारों से है और नष्ट भी उन्हीं से होती है !इसलिए चटुकारिता से ऊपर उठकर ही कुछ किया जा सकता है !और कुछ भी हो किन्तु पार्टी विजय को पचा नहीं पा रही है !
    किसी समाजsee more....http://samayvigyan.blogspot.in/2015/03/blog-post_53.html