Wednesday, 28 January 2015

पाकिस्तान में ठोंकतंत्र है या लोकतंत्र या लोकतंत्र का उपहास !


     आतंकवादी जैसा चाहते हैं वैसा होता है चुनी हुई सरकारें देखती रह जाती हैं !उधर नवाज साहब भारत से अच्छे संबंध चाहते हैं किन्तु किस बल पर !

'भारत से अच्छे संबंध चाहता है पाक : नवाज (IBN-7)'

कारगिल की लड़ाई को ही देखिए ! पाक की चुनी हुई सरकार युद्ध में सम्मिलित होने से इंकार करती रही जबकि पाकिस्तान ने चोरी चोरी चुपके चुपके भारत के विरुद्ध छेड़ रखा था  युद्ध !पाक में न लोकतंत्र स्थिर है न सरकारें कब कौन किस पद से हटा जाए क्या पता !फिर सम्बंध कैसे और किससे अच्छे बनाए जाएँ !

    इसलिए नवाज साहब ! अच्छे संबंधों का एक ही उपाय है कि पाकिस्तान नामक देश भ्रम को समाप्त करके भारत में विलय कर दिया जाए तभी  संभव है क्योंकि हम ज्योतिषी होने के नाते विश्वास पूर्वक यह कह सकते हैं कि पाक नामक हिस्सा भारत से जिस समय अलग हुआ था उस समय अलग हुआ कोई पौधा भी अलग रहता है तो सूख जाता है और वापस मिल जाता है तो लहलहा उठता है वही स्थिति पाक की है इसी कारण से वहाँ धींगा मुस्ती चल रही है जो जिस पर भारी पड़ता है वो हथिया लेता है सत्ता ! किसी देश में लोकतंत्र ऐसे चलते हैं क्या !

Monday, 26 January 2015

चुनाव प्रचार !

चुनावों में जिसका जितना प्रचार उसका उतना भ्रष्टाचार !
  आखिर अपने खून पसीने की कमाई तो कोई खर्च नहीं करेगा वो भी तब जबकि अधिकांश नेता राजनीति में आने से पहले गरीब थे आखिर कहाँ से आया उनके पास ये अनाप शनाप धन !जो अभी तक इतना धन जुटा  चुके वे चुनावों में जीत जाएंगे तो क्या कोई उठा धरेंगे !ऐसे नेताओं से सावधान रहने की जरूरत है !

      नेताओं का चुनाव प्रचार !
जिन नेताओं की छठी पशनी आदि सब कुछ सभी लोगों को पता होता है वे चुनाव प्रचार करने के लिए बेकार में पैसा क्यों बहाते हैं !
चुनाव प्रचार पर पानी की तरह पैसा क्यों बहाया जाता है !
  नेताओं के रग रग से परिचित जनता नेताओं के बारे में सब कुछ जानती है उसे ये भी पता होता है कि अमुक नेता जी जब राजनीति में आए थे तब किराये के पैसे नहीं होते थे जेब में ,आज ट्रेन खरीदने की ताकत रखते हैं हमलोगों के विकास के नाम पर मिले पैसे से अपना विकास कर लिया है इन्होंने इसी लिए तो तब गाल पिचके थे आज फूले हैं तब साइकिल थी आज कार है तब चेहरा मुरझाया था अब चमक रहा है तब खाँसी आती थी आज ख़ुशी आ रही है! 

       चुनाव प्रचार का मतलब क्या केवल झूठ बोलना नहीं होता है !
 जिनका अपना कभी कोई काम ही न चला हो वो औरों के काम कराने का आश्वासन देते घूमें ऐसा मजाक चुनाव प्रचार में ही हो सकता है !
               ऐसी बातों पर जनता कितना  विश्वास करे !
        जिनकी अपनी माँ , बहन, बेटी ,पत्नी आदि अनाथों की तरह दर दर भटकती फिरें वो औरों से बेटी बचाने  की अपील करें तो समझो कि वोट के लिए चुनाव प्रचार हो रहा है !
   ये होता है रहे होते हैं !तब आखिर ऐसा क्या छिपा होता है जो बताने के लिए पैसा फूँका जाता है

Sunday, 25 January 2015

बाबा जी आखिर क्यों नहीं ले रहे हैं पुरस्कार !बेकार में सरकार को परेशान करते चले जा रहे हैं !

  सुरक्षा से लेकर सम्मान तक सबकुछ बाबाजी के लिए न्योछावर है !और हो भी क्यों न !सरकार तो उन्होंने ही बनवाई है !

    ऐसे तो सरकार को भी लगेगा कि बाबाजी कहीं गुस्सा तो नहीं हैं जो एक और मुसीबत तैयार हो ! जबकि दूसरी ओर बाबाजी को भी लगेगा कि सरकार बदलने से हमें क्या लाभ हुआ !चुनावों में विजय तो बाबा जी ने ही दिलाई थी अन्यथा क्या कर लेते देश भर के इतने सारे वोटर अकेले !कैसे जिता देते भाजपा को और अकेले कैसे बनवा देते सरकार इसलिए इतना तो बाबा जी का हक़ भी बनता है !और हक़ लेने में संकोच क्यों कोई फ्री में तो दे नहीं रहा है परिश्रम किया गया है और किसी का पारिश्रम कभी रखना नहीं चाहिए !   

     वैसे भी बाबा जी को खुश करने का सरकार कोई मौका खोना नहीं चाहती है एकदम भूत सा सवार है सरकार पर ! ये नहीं समझ में आता है कि सरकार बाबा जी से खुश है या भयभीत ! कि कहीं ऐसा न हो UPA सरकार की  तरह ही बाबा जी वर्तमान सरकार के भी पीछे न पड़ जाएँ !खैर जो भी हो और जिस भी भावना से हो सुरक्षा हो या सम्मान ,श्रद्धा पूर्वक सरकार जो भी दे स्वीकार करके सरकार को आशीर्वाद पूर्वक अभय प्रदान करना चाहिए ताकि काले पीले हरे गुलाबी आदि धन को लाने की चिंता से मुक्त होकर सरकार प्रांतीय चुनावों में अपनी पार्टी को विजय दिलाने के लिए सम्पूर्ण मनोयोग से काम कर सके !इसके अलावा अगली पंचवर्षी चुनावी योजना में भाग लेने के लिए सरकार को कुछ काम भी तो करना होगा ऐसे तो चिंता लगी रहती है कि क्या पता कब बाबाजी सरकार से पूछ बैंठें कि कहो भाई कालेधन का क्या हुआ !आखिर कब तक टाला जाएगा इस मुद्दे को भी !

      चुनावों के बाद अभी तक तो शिष्टाचार  में ही काफी समय निकल गया किसी देश में मिलने जा रहे थे एवं किसी देश को अपने यहाँ बुलाना था स्वागत सत्कार में समय और साधन तो लगने ही थे कोई उत्सव होता है तो उसे मनाने के लिए समय तो चाहिए ही !जब श्री राम जी का जन्म हुआ था तब भी तो सालों साल तक उत्सव ही मनाया जाता रहा था !

     वैसे भी सरकार अगर बाबाजी का कोई एहसान चुकाना चाहती है तो इसमें बुरा भी क्या है!अब बाबा जी को खुश रखने के लिए आखिर क्या करे सरकार !बाबा जी  का एहसान आखिर कैसे चुकावे!

      बाबा लोगों  को अचानक याद आया कि वो केवल दवा व्यापारी ही नहीं अपितु साधू भी हैं इसलिए उन्हें पुरस्कार नहीं लेना चाहिए और नहीं लेंगें !किन्तु पुरस्कार का सधुअई से क्या संबंध वो गृहस्थ या विरक्त के लिए तो है नहीं वो तो देश और समाज सेवा में अच्छे योगदान के लिए मिलता है!

     पद्म पुरस्कार भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक हैं। ये पुरस्कार, विभिन्न क्षेत्रों जैसे कला, समाज सेवा, लोक-कार्य, विज्ञान और इंजीनियरी, व्यापार और उद्योग, चिकित्सा, साहित्य और शिक्षा, खेल-कूद, सिविल सेवा इत्यादि के संबंध में प्रदान किए जाते हैं।

     दवा व्यापार एवं राजनीति आदि में सम्पूर्ण रूप से संलग्न बाबा जी की सधुअई यदि उन सब कामों में नहीं बिगड़ी तो केवल पुरस्कार लेने में ही क्या दिक्कत थी !

Friday, 23 January 2015

कन्या भ्रूण हत्या जैसा कोई पाप नहीं है किन्तु ऐसा जघन्यतम पाप लोग करते क्यों हैं !

 

  प्रधान मंत्री जी ! कन्या भ्रूण हत्या कोई मानसिक बीमारी नहीं है अपितु किसी बाप की कोई मजबूरी होती होगी अन्यथा मैं विश्वास से कह सकता हूँ कि ऐसा  जघन्यतम पाप करके कोई माँ बाप कभी  खुश नहीं हुआ होगा !!!मान्यवर ! कन्या भ्रूण हत्या का कारण केवल बेटे की चाहत ही नहीं है !और यदि ऐसा है भी तो क्यों है कन्या की चाहत नहीं है तो क्यों ? इसपर भी शोध होना चाहिए !

  प्रिय  प्रधान मंत्री जी ! इस विषय में बहुत सुन्दर हैं आपके विचार ,कन्या भ्रूण हत्या निसंदेह अक्षम्य अपराध है और इस  पर नियंत्रण करने की ओर बढ़ाए गए आपके हर कदम को सलाम !

  किन्तु प्रधानमंत्री जी ! मेरी समझ में मानसिक बीमारी नहीं है कन्या भ्रूण हत्या अपितु  होती होगी किसी माता पिता की कोई बड़ी मजबूरी जब अपने हृदय के अंश के साथ करना पड़ता है यह  दुनियाँ का सबसे बड़ा पाप !

  आप ही सोचिए जिस पिता का दामाद प्रधानमंत्री ,मुख्य मंत्री या मंत्री जैसे बड़े पदों पर सुसज्जित हो जहाँ पहुँचने के बाद कानून उसका अनुगमन करने लगता है ऐसे पदों पर पहुँचे हुए दामाद की शिकायत किससे करे कोई बेटी का बाप !क्या मरणोत्तर भी उसकी आत्मा अपने को कोसती नहीं होगी कि कहाँ से बेटी को जन्म दे दिया जिसे जीवन भर यह ही पता नहीं लगा कि वो विवाहिता है या अविवाहिता !जो जीवन भर न अपने को माँ मान सकी हो और न ही बाँझ !जो अपने को आजीवन न तो गृहस्थ कह सकी हो और न ही विरक्त !जिसका पति कभी उसे पत्नी मान लेता हो और कभी नहीं ! ऐसी बेटी के निराश हताश पिता को देखकर कोई  क्या प्रेरणा लेगा !   

   कन्या भ्रूणहत्या करने से मुझे नहीं लगता है कि किसी को सुख होता होगा !सबको पता है कि यह अमानवीय कृत्य है यह करने से सबसे बड़ा पाप होता है इसके बाद भी कोई बाप जब अत्यंत मजबूर हो जाता होगा  और देखता होगा कन्याओं की दुर्दशा तब लगाना पड़ता होगा अपने कलेजे में पत्थर !और करवाता होगा यह अक्षम्य अपराध !!

     इसका मतलब ये कतई नहीं है कि बेटियाँ दुलारी नहीं होती हैं अपितु बेटियाँ बहुत सुख देती हैं बेटे तन का पोषण करते हैं तो बेटियाँ मन का पोषण करती हैं । कन्याओं ने ही सारी समाज को बाँध रखा है सारे नाते रिश्ते कन्याओं की ही देन हैं । 

    कन्याओं की किलकारियों से घर से बाहर तक सब कुछ गुंजायमान रहता है सारा घर आनंदित रहता है बड़ा से बड़ा घर छोटा लगने लग जाता है बड़ी से बड़ी जिंदगी हँसी ख़ुशी में कब बीत गई पता ही नहीं लग पाता है और बेटी के बिदा होते ही छोटे छोटे घर बड़े दिखने लगते हैं सारा घर समिट कर एक जगह बैठ जाया करता है इतना नहीं अपितु बची खुची जिंदगी बहुत लम्बी लगने लगती है ! काम करने का उत्साह ही मर जाता है !इसीलिए कहता हूँ कि बहुत दुलारी होती हैं बेटियाँ ! बेटियाँ नहीं उन्हें इस जीवन का  आनंद ही नहीं मिला इसके लिए दुबारा जन्म लेना पड़ेगा !

       लड़का हो या लड़की दोनों इस जीवन के महत्वपूर्ण अंग होते हैं ये अत्यंत आभ्यन्तर अंग होते हैं !इसलिए इन्हें  कम करके नहीं आँकना चाहिए !

हिंदू पैदा करें पाँच पाँच बच्चे किंतु किसके बलपर ! केवल जलालत सहने के लिए !!!

   शिवाजी पैदा तो हों किन्तु पड़ोसी के घर  ये कौन नहीं चाहता है !

  जो राजनैतिक साधू लोग व्यापार कर सकते हैं राजनीति कर सकते हैं जब ये सब करने में कोई रोकटोक नहीं है वो विवाह भी कर सकते थे !

   बंधुओ ! चार चार पाँच पाँच संताने पैदा करने की सलाह वो लोग देते  हैं जिन्होंने संतानों के भरण पोषण से भयभीत होकर ही संभवतः विवाह नहीं किया होगा  अन्यथा जो साधू लोग व्यापार कर सकते हैं राजनीति कर सकते हैं वो विवाह क्यों नहीं कर सकते थे और विवाह करते तो बच्चे भी होते जितने चाहते उतने होते !उनका उदाहरण देखकर उनसे बहुत लोग प्रेरित भी होते !

         बंधुओ !आज की महँगाई में अपना जीवन चला पाना बोझ होता है बच्चों के गर्भ में आने पर ही आजकल ठीके लगाने लगते हैं प्रसव पर भारी भरकम खर्च !हिजड़े तक हजारों में बातें करते हैं लाखों रूपए लेकर छोटे छोटे बच्चों के एडमीशन स्कूलों  में होते हैं ! सरकारी स्कूलों में पढ़ने पर कितना जलील होना पड़ता है उन्हें !और यदि बच्चियाँ  हुईं तो उन्हें पढ़ापाना और सुरक्षित रख पाना कितना कठिन होता है !ये बच्चों के माता पिता से पूछो कि उनपर क्या बीतती है जब गरीब लोग अपने बच्चों की अँगुली पकड़कर सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिए ले जा रहे होते हैं रास्ते में वे छोटे छोटे बच्चे हठ बड़े बड़े स्कूलों की ओर इशारे करके पूछते हैं कि पापा हमारा एडमीशन इस स्कूल में क्यों नहीं करवा देते ! ऐसा कहकर रुक जाते हैं रोने लगते हैं वे और उसी स्कूल में जाने की हठ करते हैं लोग देख देख कर हँस रहे होते हैं उस समय क्या बीतती होगी उस बाप पर ! हृदय पर हाथ रखकर देखिए !!!

हिंदू धर्म है या मजाक ?जो जिसे चाहे उसे देवी देवता बना ले और मढ़ दे हिंदुओं के मंदिरों पर !साईं को ही देख लो !

  साईं के बहाने पूजा पाठ मंदिरों शास्त्रों एवं परंपराओं को ड्रामा सिद्ध करने की तैयारी !

    रावण ने मायावी साधू बनकर सीता का हरण किया था और साईं मायावी देवता बनकर संस्कृति का हनन कर रहे हैं ! 

    अरे हिन्दुओ !आज कुछ मायावी लोग तुम्हारे देवी देवता ,योगी,सिद्ध आदि बनने के लिए घात लगाए बैठे हैं यदि तुम थोड़ा भी चूके तो वो लोग तुम्हारे देवी देवता गुरु सिद्ध साधक आदि कुछ भी बन बैठेंगे !फिर तुम्हारी पीढ़ियों तक को अनादि काल तक उन्हें ढोना पड़ेगा ।  

   साईं या किसी और ऐसे वैसे व्यक्ति को देवता मानने का मतलब हमारे धर्म में सबकुछ काल्पनिक और माननेवाली चीजें  ही हैं !इस धर्म में सच्चाई कुछ भी नहीं है !जो जिसे जब और जैसे चाहे वो उसे देवी देवता बना ले और मढ़ दे हिंदुओं के मंदिरों पर !और मंदिरों में रखकर पुजवाना चालू करवा दे कितनी बड़ी साजिश है सनातनधर्मी हिंदुओं के साथ !जिसे हिन्दू अभी समझ नहीं रहे हैं आगे इसके कितने घातक परिणाम होंगे इसकी अभी कल्पना भी नहीं की जा सकती !

      शास्त्र को न जानने वाले कुछ अज्ञानी लोगों ने साईं को देवता बना तो लिया और मंदिरों में रखकर पुजवाने भी लगे किंतु जब कोई किसी अन्यधर्मी किसी और की मूर्तियाँ मंदिरों में रखकर पुजवाना चाहेगा तो उसे किस नियम से रोका  जाएगा !वो अपने श्रद्धा पुरुष के लिए कहेगा कि ये भी बड़े दयालू हैं ये सबकी मनोकामनाएँ पूर्ण कर देते हैं!

 आखिर साईं को देवता बनाकर पूजने की मजबूरी क्या थी ! क्या हिन्दू धर्म में देवी देवता नहीं थे ?

    देवी देवताओं की उपासना करने के लिए समझाया जाता है कि जो पाप करेगा भगवान उस पर गुस्सा होते हैं इसलिए पाप अपराध आदि गलत काम छोड़कर देवी देवताओं की शरण में आओ किन्तु साईं वाले कहने लगे कि कुछ भी करो साईं सब माफ कर देंगे ये बाबा बड़े दयालू हैं !बंधुओ !क्या ये अप्रत्यक्ष रूप से अपराधों को प्रमोट करना या उनका समर्थन करना नहीं है !

    अरे हिंदुओ ! तुम्हारे जैसा कायर कौन हो सकता है जो अकारण अपने मंदिरों में एक साधारण से बुड्ढे की मूर्तियाँ पुजवा रहा है ,कोई स्वाभिमानी व्यक्ति अपने बाप को छोड़कर किसी और को बाप नहीं बना सकता तुम अपना भगवान बदल लेते हो !कुछ लोग अपने श्रद्धा पुरुष की पोशाक किसी और के पहन लेने पर परेशान हो जाते हैं किन्तु तुम्हारे अंदर वो स्वाभिमान क्यों नहीं है!कोई अपने गुरू की निंदा नहीं सुन सकता तुम अपने भगवान की निंदा सुनते हो !

   अरे !साईं पूजक हिन्दुओ ! क्या तुम्हें भी लगता है कि साईं बाबा बड़े दयालू हैं और यदि हाँ तो श्री राम कृष्ण शिव दुर्गा आदि देवी देवताओं की दया पर भरोसा नहीं रहा क्या तुम्हें !आखिर क्यों अपमानित करवा  रहे हो अपने देवी देवताओं को !क्यों लजाते घूम रहे हो अपने भगवानों को !बुड्ढे के प्रतिमा पत्थरों के आगे क्यों गिड़गिड़ा रहे हो तुम ! ऐ भिक्षुकों ! यदि केवल कुछ माँगने के लिए ही अपने देवी देवताओं  को लजाते साईं पत्थरों के सामने रोते घूम रहे हो तुम तो कभी पवित्र भावना से अपने देवी देवताओं से भी कुछ माँग कर तो देखते !

     ऐ पाप प्रेमियो ! आखिर देवी देवताओंको छोड़कर तुम साईं के यहाँ गए क्या समझकर !केवल इसीलिए न कि साईं के यहाँ पाप करने को रोका  नहीं जाता अपितु पीठ ठोकी जाती है कि कुछ भी करो बाबा बचा लेंगे क्योंकि वो बहुत दयालू हैं !यदि ये नहीं तो और ऐसा क्या है जो देवी देवताओं से अलग हैं !

    किसी के कहने मात्र से किसी को देवता मान लिया जाएगा क्या ?किसी को देवता मानने के लिए शास्त्र की सहमति लेनी आवश्यक है! कुछ लोगों ने अपने अनुयायियों को समझा रखा है कि हम मरें तो हमारी भी मूर्तियाँ मंदिरों में लगाई जाएँ और हमारा भी आरती पूजन उसी प्रकार से हो जैसे साईं बुड्ढे का होता है !आप स्वयं सोचिए बाबाओं की ऐसी महत्वाकाँक्षा को कैसे पूरा किया जा सकेगा !

   जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद महाराज जी हमारे सनातन धर्म की शान हैं उनके आदेश के पालन में किन्तु परन्तु नहीं होना चाहिए ! साईं का विरोध उन्होंने किसी को चोट पहुँचाने के लिए नहीं किया है अपितु जिन सनातन धर्म ग्रंथों से देवी देवताओं के विषय में हमें प्रेरणा मिलती है उनमें साईं की चर्चा ही नहीं है संत साहित्य में साईं की चर्चा नहीं है आजादी के इतिहास में साईं की चर्चा नहीं है साहित्यकारों में साईं की चर्चा नहीं है भक्तसंतों की परंपरा में साईं की चर्चा नहीं है ,साईं को किसी मंदिर में जाते देखा नहीं गया आदि आदि फिर साईं देवता किस बात के !

      आज धर्म के नाम पर पाखण्ड की भरमार होती जा रही है आश्रमों के नाम पर ऐय्याशी के अड्डे बनते जा रहे हैं बाबा लोग अपनी अपनी सुविधानुशार धर्म पालन की सलाह दे रहे हैं जैसे जो लोग अपनी  शिष्याओं के प्रति बासना का भाव रखते हैं वो उन्हें कृष्ण की रासलीलाओं को बासनात्मक बताकर उनके उदाहरणों से अपनी ओर आकर्षित करते  हैं कि जब कृष्ण ने ऐसा किया तो हम आप क्यों न करें !इसी प्रकार से और भी अनेकों उदाहरण हैं । 

       ऐसे  सभी प्रकार के पाखंडों से बचने के लिए हमें धर्म के मामले में शास्त्रों को आगे करके चलना होगा अगर कोई पंडित महात्मा पुजारी गुरु आदि आपको कोई उपदेश करता है या ज्योतिष एवं तंत्र सम्बन्धी कोई उपदेश या शंका समाधान करता है तो उचित है कि आप उससे प्रमाण पूछिए कि ये  किस आधार पर कह रहे हैं आप ! जिसदिन आप ऐसा करना सीख जाएँगे उसीदिन आपको मूर्ख बनाना इन पाखंडियों को बंद करना होगा !

   

Wednesday, 21 January 2015

भाजपा को किरनवेदी जी से समझौता करना ही था तो केजरीवाल क्या बुरे थे !

              किरनवेदी जी से समझौता करना ही था तो केजरीवाल क्या बुरे थे !
 सत्ता बहुत कुछ होती है किन्तु सबकुछ नहीं होती ! सत्ता के लिए इतना बड़ा बलिदान !दाँव पर लगा है दिल्ली भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का स्वाभिमान !!ऐसे सत्ता में औना पौना हिस्सा तो केजरीवाल भी दे सकते थे! काँग्रेस मुक्त दिल्ली का अभियान तो केजरीवाल से भी पूरा किया  सकता था !!!

 
 भाजपा के कार्यकर्ताओं पर जब पार्टी ने ही भरोसा नहीं किया तो जनता को भरोसा किस मुख से दें !
    दिल्ली भाजपा का कार्यकर्ता आज भी ईमानदारी से लगा हुआ है किन्तु उसकी बातों का प्रभाव नहीं पड़ा रहा है वो करे तो क्या करे ! दिल्ली में भाजपा कार्यकर्ताओं की कोई गलती नहीं है उन्हें बदनाम किया जाना ठीक नहीं है यदि दुर्भाग्य से पार्टी पराजित भी होती है तो दोष कार्यकर्ताओं के मत्थे मढ़ना ठीक नहीं होगा ।जिस गेम में उन्हें विश्वास में  लिया  ही नहीं गया उसके लिए उनकी गलती कहाँ है !दिल्ली भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के मुरझाए मुख मंडलों पर मंडरा रही मलिनता एवं मीडिया के सामने निरुत्तर वाणी और कृत्रिम हँसी  ,मीडिया की चोचले बाजी सुनकर भाजपा से जुड़े हर आम आदमी को पीड़ा होती है !जिनके विरुद्ध पार्टी कार्यकर्ता कभी आवाज बुलंद करता रहा आज वही दूसरे दलों के लोग उन्हें सभ्यता समझा रहे हैं !ऐसे मायूस कार्यकर्ताओं की सहन शीलता की भी कोई सीमा है ।


                             काँग्रेस
काँग्रेस अपनी संभावित पराजय से सुपरिचित होते हुए भी उसने अपने कार्यकर्ताओं के स्वाभिमान के साथ समझौता नहीं किया है !



किरनवेदी जी यदि CM न भी बन सकें तो PM बना देना चाहिए !
     प्रधानमंत्री पद के लिए भी तो वो बहुत अच्छी हैं  और जनादेश अभी भी पार्टी के पास है इसके ये उन्हें चुनाव भी नहीं लड़ना पड़ेगा ! उन्हें पार्टी सीधे तौर पर बना सकती प्रधानमन्त्री !आखिर समर्थन उसके पास है !
      यदि ये फैसला पहले ही हो जाता और सौभाग्य से वो बन पातीं देश की प्रधानमंत्री तो उनकी योग्यता का लाभ पूरे देश को अब तक मिलने लगा होता क्योंकि किरनवेदी जी योग्य हैं कुशल प्रशासक की उनकी अपनी स्वच्छ छवि है यदि उनकी योग्यता का लाभ लिया ही जाना था तो प्रधानमंत्री पद को सुशोभित करके वो देश के लिए बहुत कुछ कर सकती  थीं , संपूर्ण देश उनकी क्षमताओं  से लाभान्वित होता !इस भूल सुधार की गुंजाइस तो अभी भी है। इसके बाद जब पार्टी के बड़े बड़े नेता उनके सामने बैठकर आदेश की बाट जोह रहे होंगे तब समझ पाएँगे दिल्ली में पार्टी कार्यकर्ताओं की पीड़ा !
              

ओबामा की कार देखने को भारत बेक़रार !
     ओबामा जी ! अपनी कार में बैठाकर हमारे नेताओं को भी घुमा देते एकबार !क्योंकि हमारे देश में ऐसी कारें खरीद पाना कैसे संभव है जहाँ के नेता देश के लिए नहीं अपितु केवल अपने एवं अपनों के लिए ही जीते और काम करते हों जिससे सारा पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता हो !

ओबामा जैसी कार अपने यहाँ क्यों नहीं हो सकती !
  चवन्नी अठन्नी के नेता जब राजनीति में घुसते हैं उस दिन से साइकिल छोड़कर जहाज पर चलने लगते हैं बिना किसी उद्योग व्यापार के भी सारी सुख सुविधापूर्ण जीवन जीते हुए भी वही चवन्नी अठन्नी की कीमत वाले  नेता करोड़ों अरबों के हो जाते हैं ये धन आता आखिर कहाँ से है !अपनी संपत्ति बढ़ाने के लिए राजनीति करने वाले लोग देश के लिए कोई काम क्यों करेंगे !




ओबामा जैसी कारें हमारे देश में क्यों नहीं बन सकतीं !

   हमारे देश के प्रतिभाशाली योग्य वैज्ञानिकों को उचित सम्मान नहीं मिल पाता कई बार उन्होंने ऊँची जातियों में जन्म लिया होता है इसलिए उनका बहिष्कार कर दिया जाता है इसलिए वो बाहर चले जाते हैं वहाँ उनकी योग्यता का सम्मान होता है !

कितनी अच्छी होगी ओबामा की वो कार !जिसकी प्रशंसा करते हमारा मीडिया थक नहीं रहा है !!!


यदि चुनाव लड़ना अपने बश का नहीं था तो भाजपा के लिए केजरीवाल क्या बुरे थे !
         किरन वेदी जी की अपेक्षा उनके पास तो सरकार चलाने का अनुभव भी है वाणी भी विनम्र है जनता से सीधे संपर्क करते हैं आँख मिलाकर बात भी करते हैं किरण जी की तरह अरविंद जी भी अन्नावादी हैं !यदि किरण जी अधिकारी रही  हैं तो अरविन्द जी भी अधिकारी रह चुके हैं किरण जी की अपेक्षा अरविन्द ने राजनीति में जाने का फैसला किरण जी से पहले कर लिया था  !किरण जी को राजनीति में औरों की इच्छा के अनुशार चलना होगा जबकि केजरीवाल अपनी पार्टी के सर्वे सर्वा हैं किरण जी उस पार्टी में हैं जहाँ एक बार असफल हो जाने के बाद दूसरी बार पार्टी अपने प्रत्याशी को मुख नहीं लगाती है ऐसे  प्रत्याशियों की लम्बी लाइन है जबकि केजरीवाल असफल होने के बाद भी डटे हैं ऐसे लोगों का आत्मबल बढ़ा रहता है ! दिल्ली वालों के लिए भी अच्छा होता कि एक चुनाव में ही सरकार बन जाती बार बार चुनाव नहीं करवाने पड़ते खर्च बचता !कांग्रेस का वजूद है ही नहीं दिल्ली में आराम से सरकार बन जाती !कार्यकर्ताओं में भी जोश होता क्योंकि केजरीवाल के अपने कार्यकर्त्ता भी थे ऐसे किरण जी के साथ अपना तो कोई नहीं आया वही खाली मूली आई हैं जबकि लोकतंत्र में शिर गिने जाते हैं ! किरण जी को दिल्ली की राजनीति में प्रमोट करने के लिए क्या भाजपा लड़ रही है चुनाव !
संघ के संस्कार अप्रासंगिक क्यों ? 
  संघ संस्कारी भाजपा को  किरन वेदी के सहारे ही यदि चुनाव लड़ना था तो अरविन्द क्या बुरे थे ! किरन वेदी हों या अरविन्द हैं तो दोनों अन्ना संस्कारी ही ,दोनों ही लोग बड़े अधिकारी रह चुके हैं दोनों ही भ्रष्टाचार भगाना चाह रहे हैं ! फिर चुनाव लड़ना यदि भाजपा के अपने बश में नहीं था तो जैसे किरण जी से समझौता किया  ही  गया वैसे अरविन्द से कर लेने में क्या बुराई थी जीवन के पैंसठ वर्ष बीत जाने के बाद किरन जी को भाजपा की याद आई और भाजपा ने उन्हें वो महत्त्व दे दिया जिसके लिए पार्टी की सेवा में जन्म जन्मान्तरों से समर्पित लोग सपने सँजोए हुए हर चुनावों में आश लगाते थे !वो लोग पार्टी को विजय दिलाने में बेशक सफल न हो पाए किंतु पार्टी के प्रति उनके समर्पण में संदेह नहीं है उनके हृदयों में भाजपा का नाम लिखा है किन्तु आज उन्हें पीछे करके जिन्हें आगे किया गया है वो अभी  तक भाजपा और काँग्रेस की राजनैतिक शैली को समान रूप से कोसती रही हैं जिनके जवाब भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं को देने पड़ते रहे हैं आज किरण जी को पार्टी में लेते समय उन वरिष्ठ लोगों को विश्वास में नहीं लिया गया जिन्होंने अपना बहुमूल्य जीवन भारतीय जनता पार्टी को दिया है अब उन्हें किरण जी का अनुगमन करना होगा !किंतु यह सब किस लिए और से सीखने होंगे चुनावी हें विशवास लोगों को पीछे किया गया जो हमेंशा ,हों में आईं भाजपा और संघ संस्कारों से सुपोषित नहीं है भाजपा है दिल्ली के चुनावों में अबकी काँग्रेस विलुप्त सी हो गई है ,ऐसे में संघ संस्कारों और अन्ना संस्कारों के बीच होना था अबकी बार दिल्ली का चुनाव !किंतु ने चहरे
     संघ के संस्कारों से सुसिंचित भाजपा अन्ना संस्कारों से जुड़े अरविंद से चुनाव लड़ रही है किन्तु इसका क्या मतलब

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दिल्ली को दुनिया के लिए मिसाल बनाएंगे: किरणवेदी -IBN -7 
किंतु ऐसे कैसे किरण जी ! जब दिल्ली वाले आपको कुछ बनाएँगे तभी तो आप दिल्ली को कुछ बना पाएँगे और ऐसा आप तब कर पाएँगे जब दिल्ली भाजपा के लोग आपको अपना बनाएँगे किन्तु वे ऐसा क्यों करेंगे दिल्ली के प्रदेश भाजपाइयों के अहंकार का पूजन किए बिना ही आपको जिस रूप में अपना लिया गया  है वो उनके लिए खुली चुनौती है की तरह है किन्तु जिन्होंने आपको इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी है ये तो उन्हें भी समझ आना चाहिए कि दिल्ली  भाजपा में स्थापित लोग खुद को विस्थापित करके किसी दूसरे व्यक्ति को अपनी जगह स्थापित क्यों कर देंगे !और आप इतनी जल्दी अपनी टीम खड़ी नहीं कर सकते !ये अब तो है कमान के भी बूते की बात नहीं रह गई है । अब तो गेंद उनके हाथ से भी निकल चुकी है अब तो दौड़ लगाने वाले ख़रगोश को धीरे धीरे  चलने वाले कछुए की निरंतरता का महत्त्व समझना होगा  दिल्ली भाजपा हमेंशा से झुठलाती रही है !
दूसरे लोकों की बातें बताकर और काल्पनिक सपने दिखाकर राजनीतिकरण कठिन होगा !

     दिल्ली के भाजपायी जिन्होंने आपको इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी है कि दिल्ली  भाजपा में स्थापित लोग खुद को विस्थापित करके किसी ऐसे व्यक्ति को अपनी जगह स्थापित क्यों करेंगे ! उनके लिए इससे अच्छा तो वो होगा कि वो राजनीति करना ही छोड़ दें अन्यथा उनके सामने संकट अब अपने वजूद का है और उन्हें ये दिखाना पड़ेगा कि हमारी उपेक्षा मतलब क्या होता है !
अगर वो लोग पार्टी निर्णय का विरोध प्रत्यक्ष नहीं करेंगे तो परोक्ष में यदि वो ऐसा करते भी हैं तो उन्हें रोका  भी कैसे जा सकता है !कोई रोकना चाहे भी  तो मानें क्यों !क्योंकि ये सब कुछ करा धरा ही उन लोगों का है जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पुराने लोगों को कैसे निष्क्रिय कर  दिया है ऐसे लोग दिल्ली भाजपा में वो फार्मूला क्यों नहीं अपनाएँगे !किरणवेदी जी !ऐसे लोगों की आत्मीयता को साथ लेकर चले बिना चुनाव जीतना कठिन होगा और यदि उन्हें समेटने के चक्कर में पड़ीं तो इतना समय अब नहीं हैं पहले  उन्हें समेटो फिर उनके साथ  मिलजुलकर प्रदेश वासियों को समेटो  तब तक केजरीवाल अपनी ट्रेन दौड़ा ले जाएँगे ! जाएगी और से मिलकर चले बिना हृदय को अपने
फारमू मूला
करने का प्रत्यक्ष अब जिसे सने जब आपको कुछ बनाएगी तब न आप कुछ बना पाएँगे दिल्ली को !और दिल्ली इतनी जल्दी किसी  पर  भरोसा नहीं करती !क्योंकि दिल्ली किया हुआ कुछ देखना चाहती है जो आपके शक्त मिजाज के बारे में तो समाज परिचित है किन्तु अपने आचारों विचारों व्यवहारों से  जनता में अपनापन भरना होगा जिसके लिए किरण जी आपके पास अब समय नहीं है चुनावों का समय बहुत पास है दिल्ली भाजपा के लोग आपका साथ कितना देंगे कहना कठिन है क्योंकि उनके अहंकार का पूजन किए बिना ही आपको लिया गया  है । 

Tuesday, 20 January 2015

किरणवेदी को लाकर दिल्ली भाजपा ने पहली बार एक बड़ा काम किया है !

     दिल्ली भाजपा का अपना खुद का वजूद क्या है ?और नहीं है तो क्यों नहीं है !जिसका वजूद चुनाव लड़ने लायक ही नहीं होगा वो सरकार चला लेगा इस पर भरोसा कैसे किया जाए ! 

     मोदी जी की रैली और अमितशाह जी की संगठन शैली से जीता जाएगा दिल्ली का चुनाव ! 

 "अमित शाह ने कहा कि अगली बार जब चुनावी रैली में मिलूँगा तो केजरीवाल का कच्चा चिट्ठा खोलूँगा! "

    इस प्रकार से अमितशाह जी सँभालेंगेपार्टी के दिल्ली चुनावों की कमान ! किरन वेदी के नेतृत्व में लड़ा जा सकता है  चुनाव ! साजिया इल्मी,जयाप्रदा एवं बिन्नी जैसे लोगों के भरोसे भाजपा जीतेगी दिल्ली का  चुनाव आखिर क्यों ? और यदि यही सच है तो दिल्ली भाजपा क्या करेगी !

  भाजपा का दिल्ली में अपना ऐसा वजूद क्यों नहीं है कि वो अपने बल पर चुनाव जीतने का साहस कर सके ! इतने लम्बे समय तक दिल्ली की सत्ता काँग्रेस के पास रही उसके बाद भी भाजपा उनसे  सत्ता छीनने का साहस नहीं कर सकी जबकि साल दो साल पुरानी आमआदमीपार्टी सत्ता के समीप तक पहुँच गई !

  भाजपा पुरानी पार्टी है उसके पास एक से एक बड़े नेता हैं उसके पास देश की सत्ता है उसका अतीत निष्कलंक एवं गौरवपूर्ण है स्वच्छ छवि का बेदाग़ नेतृत्व पाना भाजपा का हमेंशा से सौभाग्य रहा है संघ एवं उसके तमाम आनुषंगिक संगठनों के तपस्वियों का वरदहस्त जिसके शिर पर हो उस दिल्ली भाजपा के डग निहत्थे (सत्तारहित) केजरीवाल का सामना करने में डगमगा क्यों रहे हैं ! केजरीवाल को तो दिल्ली भाजपा जैसी सुविधाएँ नहीं प्राप्त हैं फिर भी केजरीवाल अकेले ललकार रहे हैं ये उनका साहस है जबकि उनके बहुत साथी उन्हें छोड़कर जा चुके हैं फिर भी केजरीवाल के उत्साह में कोई कमी नहीं है किन्तु भाजपा में बड़े से बड़े लोग केजरीवाल पर निशाना साधते दिख रहे हैं, दिल्ली में अभी हाल ही में हुई भाजपाई रैली में लोगों की उपस्थिति अपेक्षा से कम क्या रही भाजपा ने प्रसिद्ध पुरुषों के लिए न केवल अपने दरवाजे खोल दिए अपितु ऐसे लोगों की भर्ती धड़ाधड़ चालू कर रखी है ! कुछ लोग तो कलतक भाजपा को कोसते रहे किन्तु प्रसिद्ध हैं इसलिए उनकी भी भाजपा को आज जरूरत है ! 

    दशकों से समर्पित भाजपा के अपने पुराने कार्यकर्ता लोकरंजन के अभाव में जंगजर्जरित होने के कारण  चमक छोड़ते जा रहे हैं ! न वो भाजपा को छोड़ रहे हैं और न उन्हें भाजपा छोड़ रही है या यूँ कह लें कि वो भाजपा को ढो रहे हैं और भाजपा उन्हें ढो रही है ! उन्होंने भाजपा में घुसने वालों के लिए रास्ता जरूर रोक रखा है अर्थात किसी भले और योग्य आदमी को भाजपा में अब घुसने नहीं देंगे और किसी प्रकार से कोई यदि घुसने में सफल हो भी गया तो उसको कोई ऐसा काम देंगे जिससे उसकी पहचान न बन सके इसी आदत के कारण भाजपा के पास आज योग्य कार्यकर्ताओं का टोटा पड़ा है यही कारण है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को भी इस बात का ज्ञान हो गया है यदि पता लग ही  गया है कि अपने कार्यकर्ताओं के बल पर दिल्ली के चुनाव जीते नहीं जा सकते और न ही इनके बलपर केजरीवाल का सामना ही किया जा सकता है ! ऐसी परिस्थिति में ऐन चुनावों के समय विभिन्न क्षेत्रों के प्रसिद्ध लोगों को इम्पोर्ट करने से अच्छा है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अपनी कार्यकर्ता मैन्यूफैक्चरिंग पालसी में ऐसा सुधार करे जिससे जनसेवाव्रती सोर्स सिफारिस विहीन धनहीन कार्यकर्ताओं को भी अपनी प्रतिभा प्रदर्शन का उचित अवसर एवं मंच मिले और पार्टी को जनसेवा समर्पित कार्यकर्ता मिल सकें जो हर परिस्थिति से जूझने को तैयार रहें  समाज भी उनको अपना संपूर्ण समर्थन दे !अन्यथा इसप्रकार से इम्पोर्ट किए गए लोग जन सेवा के उद्देश्य से न कभी आते हैं और न ही करते हैं  केवल  शीर्ष नेतृत्व की विरुदावली बाँचते रहते हैं किन्तु कुछ कर पाना उनके बश का नहीं होता है।  

       आज लोगों में आज आम राय है कि ऐसी बातों के लिए दिल्ली भाजपा के लोगों का विश्वास नहीं है क्या ! वो लोग आखिर कर क्या रहे हैं जो जनता का विश्वास जीतने में सफल ही नहीं हुए और अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को भी विश्वास में नहीं ले पाए ! आज प्रान्त में पार्टी की पूरी टीम के मौजूद रहते हुए भी इसी राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टी के अध्यक्ष को केजरीवाल जैसे राजनैतिक विश्वसनीयता विहीन व्यक्ति का सामना करने के लिए स्वयं आगे आना पड़े ! इससे दिल्ली भाजपा का महत्व बढ़ता नहीं अपितु घटता है उचित तो ये है कि ऐसी बातों का सामना दिल्ली भाजपा को स्वयं करना चाहिए न कि केंद्रीय नेतृत्व को !

भाजपा की दिल्ली विजय पर भारी 4 विजयsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/4_25.html

अन्ना समर्थकों ने सँभाली दिल्ली चुनावों की कमान !दिल्ली के आगामी चुनावों से पहले ही अन्ना जी को बधाई !!!

     राजनैतिक दलों के पास संस्कारित नेताओं  अभाव आखिर क्यों ?

   नेता विहीन दिल्ली अब अन्ना हजारे के चेलों के हवाले!अन्ना हजारे की पाठशाला के भूतपूर्व  विद्यार्थियों ने सँभाली  दिल्ली चुनावों की कमान ! वहाँ तो कुछ कर नहीं पाए यहाँ कुछ कर पाएँगे क्या ?

  राजनीति से हमेंशा दूर रहने वाले अन्ना अब दिल्ली की राजनीति में अन्ना ही अन्ना हैं !अन्ना आंदोलन के समय राजनेताओं की निंदा करने वाले लोग उतरे राजनीति में ये वही लोग हैं जो नेताओं को अपने मंचों पर नहीं बैठने देते थे किन्तु आज ये राजनीति में खुशी खुशी नहा धो रहे हैं अब इनको कोई दिक्कत नहीं है राजनीति से ! इतना ही नहीं अब राजनीति में जाने के कारण पार्टित्वात् एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप भी करेंगे । कुल मिलाकर अब दिल्ली की राजनीति में पक्ष में अन्ना विपक्ष में अन्ना ,सरकार में अन्ना असरकार में अब सब जगह अन्ना ही अन्ना दिखेंगे । 

    संघ  विषय में तो अक्सर सुना जाता रहा है कि वो परदे के पीछे रहकर राजनीति करता है किन्तु अन्ना के विषय में कोई ऐसा नहीं सोचता था कि अन्ना जी के संस्कार दिल्ली को इतना प्रभावित कर जाएँगे !

    और कुछ हो न हो किन्तु इतना तो तय है कि आगामी चुनावों में दिल्ली में अब जिस किसी भी पार्टी को बहुमत मिलेगा  वो अन्ना हजारे की ही होगी अर्थात दिल्ली के आगामी चुनावों से पहले ही अन्ना जी को बधाई !

Sunday, 18 January 2015

प्रधानमंत्री की लहर पर दिल्लीभाजपा लड़ेगी चुनाव ! कहाँ गया दिल्लीभाजपा का अपना प्रभाव !

   दिल्ली भाजपा का अपना खुद का वजूद क्या है ?और नहीं है तो क्यों नहीं है !जिसका वजूद चुनाव लड़ने लायक ही नहीं होगा वो सरकार चला लेगा इस पर भरोसा कैसे किया जाए ! 

     मोदी जी की रैली और अमितशाह जी की संगठन शैली से जीता जाएगा दिल्ली का चुनाव ! 

 "अमित शाह ने कहा कि अगली बार जब चुनावी रैली में मिलूँगा तो केजरीवाल का कच्चा चिट्ठा खोलूँगा! "

    इस प्रकार से अमितशाह जी सँभालेंगेपार्टी के दिल्ली चुनावों की कमान ! किरन वेदी के नेतृत्व में लड़ा जा सकता है  चुनाव ! साजिया इल्मी,जयाप्रदा एवं बिन्नी जैसे लोगों के भरोसे भाजपा जीतेगी दिल्ली का  चुनाव आखिर क्यों ? और यदि यही सच है तो दिल्ली भाजपा क्या करेगी !

  भाजपा का दिल्ली में अपना ऐसा वजूद क्यों नहीं है कि वो अपने बल पर चुनाव जीतने का साहस कर सके ! इतने लम्बे समय तक दिल्ली की सत्ता काँग्रेस के पास रही उसके बाद भी भाजपा उनसे  सत्ता छीनने का साहस नहीं कर सकी जबकि साल दो साल पुरानी आमआदमीपार्टी सत्ता के समीप तक पहुँच गई !

  भाजपा पुरानी पार्टी है उसके पास एक से एक बड़े नेता हैं उसके पास देश की सत्ता है उसका अतीत निष्कलंक एवं गौरवपूर्ण है स्वच्छ छवि का बेदाग़ नेतृत्व पाना भाजपा का हमेंशा से सौभाग्य रहा है संघ एवं उसके तमाम आनुषंगिक संगठनों के तपस्वियों का वरदहस्त जिसके शिर पर हो उस दिल्ली भाजपा के डग निहत्थे (सत्तारहित) केजरीवाल का सामना करने में डगमगा क्यों रहे हैं ! केजरीवाल को तो दिल्ली भाजपा जैसी सुविधाएँ नहीं प्राप्त हैं फिर भी केजरीवाल अकेले ललकार रहे हैं ये उनका साहस है जबकि उनके बहुत साथी उन्हें छोड़कर जा चुके हैं फिर भी केजरीवाल के उत्साह में कोई कमी नहीं है किन्तु भाजपा में बड़े से बड़े लोग केजरीवाल पर निशाना साधते दिख रहे हैं, दिल्ली में अभी हाल ही में हुई भाजपाई रैली में लोगों की उपस्थिति अपेक्षा से कम क्या रही भाजपा ने प्रसिद्ध पुरुषों के लिए न केवल अपने दरवाजे खोल दिए अपितु ऐसे लोगों की भर्ती धड़ाधड़ चालू कर रखी है ! कुछ लोग तो कलतक भाजपा को कोसते रहे किन्तु प्रसिद्ध हैं इसलिए उनकी भी भाजपा को आज जरूरत है ! 

    दशकों से समर्पित भाजपा के अपने पुराने कार्यकर्ता लोकरंजन के अभाव में जंगजर्जरित होने के कारण  चमक छोड़ते जा रहे हैं ! न वो भाजपा को छोड़ रहे हैं और न उन्हें भाजपा छोड़ रही है या यूँ कह लें कि वो भाजपा को ढो रहे हैं और भाजपा उन्हें ढो रही है ! उन्होंने भाजपा में घुसने वालों के लिए रास्ता जरूर रोक रखा है अर्थात किसी भले और योग्य आदमी को भाजपा में अब घुसने नहीं देंगे और किसी प्रकार से कोई यदि घुसने में सफल हो भी गया तो उसको कोई ऐसा काम देंगे जिससे उसकी पहचान न बन सके इसी आदत के कारण भाजपा के पास आज योग्य कार्यकर्ताओं का टोटा पड़ा है यही कारण है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को भी इस बात का ज्ञान हो गया है यदि पता लग ही  गया है कि अपने कार्यकर्ताओं के बल पर दिल्ली के चुनाव जीते नहीं जा सकते और न ही इनके बलपर केजरीवाल का सामना ही किया जा सकता है ! ऐसी परिस्थिति में ऐन चुनावों के समय विभिन्न क्षेत्रों के प्रसिद्ध लोगों को इम्पोर्ट करने से अच्छा है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अपनी कार्यकर्ता मैन्यूफैक्चरिंग पालसी में ऐसा सुधार करे जिससे जनसेवाव्रती सोर्स सिफारिस विहीन धनहीन कार्यकर्ताओं को भी अपनी प्रतिभा प्रदर्शन का उचित अवसर एवं मंच मिले और पार्टी को जनसेवा समर्पित कार्यकर्ता मिल सकें जो हर परिस्थिति से जूझने को तैयार रहें  समाज भी उनको अपना संपूर्ण समर्थन दे !अन्यथा इसप्रकार से इम्पोर्ट किए गए लोग जन सेवा के उद्देश्य से न कभी आते हैं और न ही करते हैं  केवल  शीर्ष नेतृत्व की विरुदावली बाँचते रहते हैं किन्तु कुछ कर पाना उनके बश का नहीं होता है।  

       आज लोगों में आज आम राय है कि ऐसी बातों के लिए दिल्ली भाजपा के लोगों का विश्वास नहीं है क्या ! वो लोग आखिर कर क्या रहे हैं जो जनता का विश्वास जीतने में सफल ही नहीं हुए और अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को भी विश्वास में नहीं ले पाए ! आज प्रान्त में पार्टी की पूरी टीम के मौजूद रहते हुए भी इसी राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टी के अध्यक्ष को केजरीवाल जैसे राजनैतिक विश्वसनीयता विहीन व्यक्ति का सामना करने के लिए स्वयं आगे आना पड़े ! इससे दिल्ली भाजपा का महत्व बढ़ता नहीं अपितु घटता है उचित तो ये है कि ऐसी बातों का सामना दिल्ली भाजपा को स्वयं करना चाहिए न कि केंद्रीय नेतृत्व को !

भाजपा की दिल्ली विजय पर भारी 4 विजयsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/4_25.html

 

Friday, 16 January 2015

बाबाओं को भजने वाले लोग धार्मिक होते हैं क्या ?क्योंकि बाबा लोग उन्हें अपनी माया में ही भरमाए रहते हैं भगवान की ओर तो फटकने भी नहीं देते हैं !

    आज बाबाओं से करोड़ों लोग प्रभावित हैं किंतु बाबाओं के अनुयायियों की बढ़ती संख्या  का कारण उनके द्वारा किए जा रहे पुण्य हैं या पाप ! इसका मूल्यांकन कैसे हो !

       जो शास्त्रों के अनुशार चलें वे संत और जो शास्त्रों को अपने अनुशार चलावें वे बाबा !संत तो अभी भी समाज को दिशा देने  लगे हुए हैं किन्तु बाबाओं  ने  नरक फैला रखा है ।देखो निर्मल बाबा टाइप के लोगों को भाग्य बदलने की फ्रेंचायजी लिए घूम रहे हैं !

      आज किसी धन हीन आदमी का मन फ़िल्म बनाने का है तो बाया बाबा वो फ़िल्म बना  सकता है अर्थात पहले कुछ वर्ष तक धन इकठ्ठा करने के लिए उसे बबई करनी अर्थात बाबा बनना पड़ेगा !और इसप्रकार से धन संग्रह हो जाने के बाद वो फिल्में बना सकता है बेच सकता है दवा बेच सकता है ज्योतिष वास्तु योग आदि कुछ भी बेच सकता है और कितना भी धन जुटा सकता है उसके बाद कितने भी सुख साधन बना सकता है गाड़ी घोड़ा ट्रेन जहाज तक सब कुछ !वो टीवी चैनलों पर कुछ भी  बक या बया सकता है ऐसे लोग एक नहीं हजार विवाह कर लें किन्तु कोई क्या कर लेगा इनका !पैसा हो तब विवाह तो बुढ़ापे में भी हो जाता है और जैसा चाहो  वैसा हो जाता है ।बाबा बनने के बाद किए गए व्यापार में सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि इसमें घाटा होने पर किसी का कुछ देना नहीं होता है फिर नया शुरू किया जा सकता है जबकि कोई ईमानदार गृहस्थ व्यापारी यहीं पर टूट जाता है क्योंकि उसे मूल भी देना होता है और  ब्याज भी ! 

    समाज की स्थिति यह है कि अभ्यास न होने के कारण जप तप व्रत उपवास आदि के शास्त्रीय कठिन विधानों से भयभीत लोग चाहते हैं कि उन्हें कुछ छूट मिले किंतु छूट मिले कहाँ से शास्त्र लिखने वाले तो लिखकर चले गए अब छूट दे कौन !जबकि सनातन हिन्दू धर्म का मूल तो शास्त्र ही है जो वेद शास्त्र आदि में नहीं है वो धर्म कैसा !इसलिए यहाँ तो शास्त्रीय विधानों का पालन ही होता है इसलिए धार्मिक दृष्टि से आलसी लोग अपनी पुजास शांत करने के लिए अपना आचरण बदलने की अपेक्षा अपना भगवान बदल लेते हैं - ऐसे आलसी लोग तो श्री राम के स्थान पर साईंराम, आशाराम, कांशीराम, रामरहीम, रामदेव ,राम विलास आदि किसी को भी अपनी अपनी श्रद्धा विश्वास के अनुशार भगवान मानने लग जाते हैं

     यदि उनके पुण्य का प्रभाव होता तो समाज में भी उसका असर दिखाई देना चाहिए अर्थात अपराधों का ग्राफ घटना  चाहिए था समाज में सात्विकता का विस्तार होना चाहिए था किंतु रोज रोज हो रहे बलात्कार  जैसे और भी अनेकों अपराध धर्म के नाम पर किए जा रहे कलियुगी बाबाओं के हाईटेक आचरण के ही साइडइफेक्ट हैं !माना कि चीटियाँ मिठाई में अधिक होती हैं किन्तु हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि मिठाई से अधिक चीटियाँ गंदगी में भी होती हैं इस बात को झुठलाया कैसे जा सकता है !इसलिए जैसे सुगंध और दुर्गन्ध के द्वारा हम अच्छाई बुराई का ज्ञान कर लेते हैं उसी प्रकार से समाज में बढ़ती अच्छाइयों से भीड़ को अच्छी एवं बुराइयों से बाबाओं की भीडों को बुराई के लिए इकठ्ठा हुआ जन समूह समझना चाहिए !

    जो चीज  जितनी ज्यादा घटिया मिलावटी सस्ती सरल सहज ग्राह्य  होगी विस्तार उसी का उतना अधिक होगा ! जबकि हितकारी औषधि कड़वी होती है उसे लेने वालों की भीड़ कहाँ देखी जाती है भीड़ें तो जनरल कोच में होती हैं रिजर्वेशन में नहीं !रही बात धार्मिक लोगों के विदेशों तक प्रचारित होने की तो जहाँ लोग हिंदी भी न बोल पाते हों  वहां  योग जैसे शास्त्रीय विज्ञान को समझेगा कौन !वहां तो जो बक आओ  वह शास्त्र ही है !

     देव मंदिरों में लोग जाते हैं तो उन्हें पाप छोड़कर जाने की सीख दी जाती है इसपर साईं वालों ने नारा दिया कि कैसे भी कर्म करो साईं सब माफ कर देते हैं क्योंकि बाबा बड़े दयालू हैं !इससे पाप न छोड़कर धर्म करने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए धार्मिक डालडा के रूप में साईं की छत्रछाया मिल गई या यूँ कह लें कि पाप करते हुए धर्मात्मा कहलाने का लाइसेंस मिल गया !

Thursday, 15 January 2015

साईं वाले

                                                                                       

 साईं वाले भी साईं पर भरोसा नहीं करते हैं !
इसलिए वो न केवल श्री राम से भी चिपके रहना चाहते हैं अपितु साईं को भी श्री राम से चिपका कर रखना चाहते हैं इसीलए  तो  साईं के नाम में भी श्री राम के नामको बिल्डिंग करा रखा है ! ये साईं वाले धार्मिक मनोरंजन  तो साईं के साथ करना चाहते हैं किन्तु भरोसा  श्री राम पर ही करते हैं ।

     साईं वाले जिसको पूजते हैं उस पर विश्वास नहीं करते और जिस पर विश्वास करते उसे पूजते नहीं !  
 साईं वालों की अजीब दुविधा है जिसकी पूजा करते हैं उस पर भरोसा  नहीं करते और जिन  पर भरोसा करते हैं उन्हें पूजने से मन ऊभ गया है ।
साईं वालों की ऐसी मजबूरी क्या थी कि वे देवी देवताओं के रहते किसी बुड्ढे आदमी को पूजने लगे !
 क्योंकि वे देवी देवता कहते हैं कि चोरी छिनारा हत्या बलात्कार आदि पाप छोड़ कर हमारी पूजा करो तो लाभ मिलेगा तो साईं वालों ने कहा सब  कुछ करते रहे और बाबा के पास आते रहो क्योंकि बाबा बहुत दयालू  हैं यह सुनते ही पाप की कमाई से कालाधन  नीलाधन  हराधन गुलाबीधन आदि रखने वाले पापप्रिय लोग सारे अपराधों में संलिप्त रहते हुए भी साईं पत्थरों पर चढाने लगे सोने चंडी के मुकुट हार पादुकाएं आदि आदि और भी बहुत कुछ !ऊपर से  यहाँ तो चढ़ावा बहुत आता है किन्तु ऐसा आता है यह नहीं बताते देने वालों की संपत्ति स्रोतों की एक बार यदि ईमानदारी पूर्वक जाँच हो जाए तो न केवल सारे दाँत बाहर आ जाएँ अपितु काला,  नीला,  हरा और  गुलाबी आदि सभी प्रकार का धन मिनटों में खटाखट गिरने लगेगा !और सबको पता लग जाएगा कि बाबा कितने बड़े दयालू हैं !

      साईं वाले कहते हैं कि 'बाबा बड़े दयालू हैं !'  यदि ऐसा है तो वो देवी देवताओं को क्या मानते हैं !और यदि देवी देवताओं की दया पर भरोसा नहीं है तो क्या झख मारने जाते हैं देव मंदिरों में !
         बंधुओ ! ये भटके हुए लोग बुड्ढे की प्रशंसा और प्रचार प्रसार में ऐसे ऐसे तर्क देते हैं जो किसी जी भी जीवित व्यक्ति के गले नहीं उतरते हैं ,आप स्वयं सोचिए बाबा बड़े दयालू हैं तो कृपासिंधु श्री राम,श्री कृष्ण,श्री शिव जी एवं श्री दुर्गा आदि देवी देवता क्या दयालू नहीं हैं ! साईं वाले ये निरक्षर भट्टाचार्य लोग वेद शास्त्रअभी   सम्मत एवं वेद मन्त्रों के द्वारा पीढ़ियों से पुजते चले आ रहे श्री राम,श्री कृष्ण,श्री शिव जी एवं श्री दुर्गा आदि देवी देवताओं को सस्पेंड करना चाह रहे हैं और वहाँ साईं पत्थरों को फिट करना चाह रहे हैं !ऐसे टुच्चे लोगों की ऐसी वेद शास्त्र निन्दित घिनौनी हरकतों को क्या सह जाएगा सनातन धर्मी हिन्दू समाज !

 साईं वालों को यह नहीं सोचना चाहिए कि कलियुग के कारण भगवान को भूल जाएँगे लोग !
          साईं व्यापारियों को इस धोखे में नहीं रहना चाहिए कि कलियुग के प्रभाव के कारण लोग श्री राम कृष्ण आदि देवी देवताओं को भूल जाएँगे और साईं जैसे भूत प्रेतों को पूजने लगेंगे ! अपने देवी देवताओं के प्रति सनातन धर्मी हिन्दुओं का समर्पण इतना अधिक है कि जब जब उनके सम्मान स्वाभिमान पर आँच आती है तब तब हिंदू बेचैन हो उठता है अाखिर अभी अयोध्या आंदोलन को बहुत वर्ष नहीं बीते हैं सरकारों के छक्के छुड़ा दिए थे राम भक्तों ने ,सारा भारतवर्ष रोड़ों पर उमड़ पड़ा था विश्व के विराट फलक पर असंख्य बार प्रमाणित हो चुका है कि किसी भी कीमत में अपने देवी देवताओं की प्रतिष्ठा से समझौता सनातन धर्मी हिन्दू नहीं कर सकते ! जैसे अगर कोई अपना बाप बदल ले तो उसका खानदान अपने आप ही बदल जाता है वो अलग से बदलना नहीं पड़ता !ठीक इसी प्रकार से जो अपना ईश्वर बदल ले उसे अपना धर्म बदलना नहीं पड़ता है वो अपने आप ही बदल  जाता है ! इसलिए जो श्री राम को छोड़ कर साईंराम का हो  गया वो हिंदू किस बात का !


साईं नाम से शिरडी संस्थान में केवल दो ही काम होते हैं!
पहला काम केवल लड्डू बनाए और बेचे जाते हैं दूसरा काम चन्दा इकठ्ठा किया जाता है वहाँ धर्म जैसा आडम्बर करके धर्म का धंधा जरूर किया जाता है किन्तु धर्म नाम की कोई चीज  नहीं है !साईं के यहाँ धर्म को न किसी ने पढ़ा है और न समझा है केवल धन इकठ्ठा करने किए बिना शिर पैर वाले साईं जैसे काल्पनिक पात्रों की मूर्तियाँ बनवाकर मंदिरों में देवी देवताओं की तरह पुजने  पुजाने का ड्रामा करना ही साईं संस्थान का काम है जो ठीक नहीं है !
 

Wednesday, 14 January 2015

हिंदुओ सावधान ! भारतीय तिथि त्योहारों पर तारीखों का आक्रमण !!!

मकरसंक्रांति के नाम पर मनाई गई  14 जनवरी को धनुसंक्रांति ! 

    मकर संक्रांति लग रही है 14 और 15 जनवरी 2015 की रात12 बजे के बाद उसके बाद अगली सुबह अर्थात 15 जनवरी को उदित होगा मकर संक्रांति का पुण्यकाल तब मनाई जानी चाहिए 15 तारीख़ को मकर संक्रांति!किन्तु मकर संक्रांति की जगह 14 जनवरी मनाने वाले लोग मकर संक्रांति के नाम पर नदियों तालाबों में धोते घूम रहे हैं शरीर !काश वे भी समझ पाते मकर संक्रांति की शास्त्रीय अवधारणा एवं उसके पुण्यकाल की महिमा !      

     आधुनिकता की चपेट में भारतीय संस्कृति फँस गई है इसको बचाने के लिए भी आगे आना होगा, संगठित होना होगा एवं धार्मिकता  से सम्बंधित हर निर्णय धर्म शास्त्रीय विद्वानों से ही लेना उचित होगा और उसी को निष्ठा पूर्वक मानना उचित होगा अन्यथा आज हिंदुओं का हर त्यौहार दो दिन मनाया जाने लगा है जो उचित नहीं है अपितु ये तो त्योहारों की पवित्र  परंपरा का उपहास है ।

      हमारे यहाँ निर्णय सिंधु और धर्म सिंधु जैसे महान ग्रंथों में संगृहीत विभिन्न वेदों पुराणों स्मृतियों और ऋषियों के महान मंतव्यों के आधार पर तिथि त्योहारों व्रतों एवं विधि निषेधों की परिकल्पना की गई है जो अनंत काल से चली आ रही है । 

      आज संस्कृत भाषा कठिनाई एवं इसकी सामाजिक उपेक्षा के कारण लोग संस्कृत भाषा के अध्ययन से विमुख होने लगे  इससे संस्कृत ग्रंथों में छिपा ज्ञान विज्ञान तर्क संगत परंपराएँ लुप्त होने लगी हैं ।

      हिंदुओं के तिथि त्योहारों व्रतों एवं षोडश संस्कारों की सच्चाई को भ्रमित करने के लिए विधर्मियों ने इतने अधिक कुचाल चला रखे हैं कि हिन्दू लोग आधुनिकता के नाम पर भूल जाएँ अपना गौरवशाली इतिहास और विधर्मियों के कल्पित तिथि त्यौहार व्रत संस्कार मंदिर और वैसे ही देवता बना कर अपने द्वारा रचित षडयंत्रों  में फँसाते जा रहे हैं हिन्दुओं को ! ऐसे ही पापियों ने साईं बुड्ढे को न केवल देवता बता दिया अपितु मंदिरों में घुसा दिया !पूज रहा है बुड्ढा !ये सनातन धर्म का उपहास नहीं तो और क्या है ?

      हर त्यौहार दो मनाए जाने लगे,जन्मदिन में केक काटने और अपनी संतानों से दीप जलने के अवसर पर दीप बुझवाने लगे ऐसे हमारे संस्कारों को रूढ़िवादिता कहकर उनकी निंदा करके अपने कल्पित कुसंस्कार हम पर थोपने लगे। मित्रता जैसे पवित्र शब्द का प्रयोग मूत्रता के लिए करने लगे अर्थात जिससे सेक्स किया जा  सकता है वहीं  मित्रता हो सकती है उसका दुष्परिणाम यह हुआ कि माता पिता के अनुशासन से त्रस्त अवारा कुत्तों की तरह बेशर्म जोड़े पार्क आदि सार्वजनिक स्थलों पर बुझा रहे होते हैं अपनी सेक्स प्यास !जब तक सेक्स तब तक सम्बन्ध अन्यथा दुश्मनी वो कितनी भी बढ़ जाए ! ऐसे क्षणभंगुर संबंधों के लालची लोगों ने सतत सम्माननीया नारी जाति का प्रयोग  सेक्स पौशालाओं  की तरह 'यूज एंड थ्रो' करना सिखा दिया है !ऊपर से कहते हैं पवित्र प्रेम परमात्मा का स्वरूप होता है !आधुनिकता के नाम पर कितनी गंध घोल रहे हैं ये लोग !   

    दीवाली के पटाखों में घातक बारूद एवं  होली के रंगों में कीचड़ कालिख कैमिकल जैसे घातक प्रयोगों के द्वारा त्योहारों से घृणा पैदा करना सिखा रहे हैं ये लोग !त्योहारों की मस्ती के नाम  पर नशा करना सिखा रहे हैं ये लोग !इस प्रकार से समाज की सनातन धर्मी शास्त्रीय मान्य मान्यताओं को मिटाकर विदेशी ज्ञान विज्ञान को थोपा जा रहा है !आज हर ज्ञान विज्ञान के खोजकर्ता के रूप में किसी विदेशी का नाम रटाया जा रहा है सबसे पहले जगदीश चंद बसु ने बेतार के तार अर्थात रेडियो की खोज की थी किन्तु मार्कोनी पढ़ाया जा रहा है !

       अगर हिन्दू यों ही ढीला होता चला गया तो विधर्मी लोग तुम्हारे पास कुछ नहीं रहने देंगे सब कुछ छीन कर तुम्हें अपने आधीन कर लेंगे और जैसे नचाएंगे वैसे नाचेंगे हिन्दू !

     आज धर्म के नाम पर आम पंडितों पुजारियों के पास विवाह पद्धति ,सत्य नारायण व्रत कथा ,गरुड़ पुराण और पञ्चांग जैसी केवल ये चार चीजें होती हैं इसी बल पर वो  चारों वेदों पुराणों के विषय के बड़े बड़े निर्णय दे देते हैं यही स्थिति बाबा समाज की है जिस सुख भोग के महँगे महँगे संसाधन जुटाने के लिए भारी भरकम परिश्रम करना पड़ता फिर भी सुलभ होते या न होते किन्तु केवल वेष और बेशर्मी के आधार पर सैकड़ों के बाबा चूरन  चटनी बेचकर करोड़ों अरबों के हो गए !ऐसे लोगों के अशास्त्रीय कर्मों से शास्त्रीय संत समाज शर्मिंदा है किन्तु करे क्या ?

     ज्योतिष वास्तु के नाम पर कितनी धोखा धड़ी  चल रही है भागवत कथाओं के नाम  पर नाच गाना हो रहा है। रजस्वला अवस्था जैसी स्थिति में भी वो भागवत की पोथी पढ़ने का ड्रामा करती फिर रही हैं जिन्हें छूना भी शास्त्र ने निषेध किया है जिन्हें स्वतः शास्त्रीय बचनों पर भरोसा नहीं है वे किस मुख से औरों को समझा रहे या रही हैं भागवत !

 

 

Tuesday, 13 January 2015

काँग्रेस न रेस में न देश में बेकार पसोपेश में !

     दिल्ली के चुनावी स्वयंबर में घूँघट हटा कर सीधे सामने आने में शर्मा क्यों  रही है काँग्रेस ?
                               काँग्रेस न रेस  में न देश में बेकार पसोपेश में !
   उम्र बीत जाने एवं शरीर में झुर्रियाँ पड़ जाने के बाद भी स्वयंबर में भाग लेने के लिए उतावली कन्या की भाँति अकारण शर्माने जैसा है दिल्ली चुनावों में लजाते हुए धीरे धीरे काँग्रेस  बढ़ना !

कहाँ दिखता है अब ' पुलिस में पराक्रम '

 सरकारी कर्मचारियों पर प्राइवेट वाले भारी पड़ते हैं आखिर क्यों ?

    सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं सरकारी अस्पतालों में दवाई नहीं, डाककर्मियों में  सुनवाई नहीं ,सरकारी फोन या इंटरनेट की स्थिति डामाडोल है ! सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारियों में काम करने के प्रति न तो निष्ठा  होती है और न ही उत्साह ! न ही वो जनता की समस्याएँ सुनते हैं और यदि सुन लेते हैं तो बस सुन ही लेते हैं उस पर कार्यवाही भगवान भरोसे ही होती है !ऐसे लोग बस केवल जिए जा रहे हैं और जीने के कारण  आफिस चले आ रहे हैं घर चले जा रहे हैं आफिस वाले कोई काम करवा पाते हैं तो करवा लेते हैं और न करवा पावें तो न सही आखिर उनका कोई कर क्या लेगा ! सरकारी नौकरी का मतलब एक जिंदगी के लिए सरकार के मत्थे मढ़ जाना !

     सरकारी वालों का काम तो सैलरी लेना होता  है !काम से उनका कोई ख़ास मतलब नहीं होता है इसलिए उनका नाम भी उतना नहीं होता है जितना प्राइवेट का होता है ,प्राइवेट स्कूल, अस्पताल आदि  सेवाओं से अपना विश्वास जनता में जागते हैं अगर विश्वास टूटने लगता है तो जी जान लगा देते हैं पर विश्वास बचाकर रखते हैं किन्तु सरकारी वालों को इस बात का संकोच ही कहाँ होता है अपितु सरकारी शिक्षक भी अपने बच्चों को पढ़ने के लिए प्राइवेट स्कूलों में ही भेजने लगते हैं इतने स्वाभिमान विहीन होते हैं ये लोग !ये किस मुख से देंगे औरों को शिक्षा और जिसको देंगे उसके जीवन में क्या भर पाएँगे ईमानदारी के बहुमूल्य संस्कार !

   यही स्थिति सरकार के अन्य विभागों की है !

    पुलिस वाले  सरकारी होते हैं और अपराधी प्राइवेट , नाम तो प्राइवेट का ही होता है !क्योंकि काम तो प्राइवेट वाले ही करते हैं ! नाम भी उन्हीं का होता है अपराध की खबरों से अखवार भरे पड़े होते हैं जबकि  पुलिस का पराक्रम कहीं  झलक जाता है किन्तु जिस दिन पुलिस का पराक्रम खबरों में छा जाएगा उसदिन अपराधों पर नकेल लग जाएगी !

 

Sunday, 11 January 2015

राजनेताओं और सरकारी कर्मचारियों के बीच पीस रही है जनता !

  जो नेता लोग केवल  अपनी अपनी जाति ,धर्म ,क्षेत्र, जिला,प्रदेश आदि को ही आगे बढ़ते देखना चाहते हैं उनकी निष्ठा  देश के प्रति क्यों नहीं है !और देशवासी उनके बचनों  विश्वास कैसे करें !  

     नेताओं में ऐसी संकीर्णता नहीं होनी चाहिए ! जो नेता लोग राजनीति में प्रवेश करते समय एक एक पैसे को तरसते  थे वो आज बिना किसी ख़ास व्यापार के करोड़ों अरबों के आदमी हो गए हैं !आखिर कैसे ?जिनका व्यापार कोई दिखाई न पड़ा  हो,कंजूसी कभी की न हो,सुख सुविधाएँ जुटाने के लिए खुला खर्च किया जा रहा हो इसके बाद भी करोड़ों अरबों का संचय आखिर कैसे हो जाता है यदि देश और समाज के साथ गद्दारी नहीं की गई है तो !और संपत्ति यदि वास्तव में ईमानदारी से बढ़ती  है तो वही रास्ता देश के अन्य लोगों को क्यों नहीं बता दिया जाता है ! 

     आजकल नेता लोग छोटे बड़े किसी भी केस  में यदि फँस जाते हैं तो जब उनकी पार्टी की सरकार में आती है तो यह कहकर सारे केस वापस कर लिए जाते हैं कि उन्हें गलत फँसाया गया था !माना कि उनपर गलत केस विरोधी पार्टी की सरकार ने विद्वेषवश बनवा दिए होंगे किन्तु जिन अधिकारियों के माध्यम से बनवाए होंगे केस उनकी कोई जिम्मेदारी ही नहीं थी क्या ?आखिर उन्होंने क्यों बनाए इस विषय की जाँच क्यों नहीं की जाती है और इसके लिए उन्हें दण्डित क्यों नहीं किया जाता है !ऐसे केस आम जनता पर भी बनाए जाते हैं किन्तु वो न कभी सत्ता में आते हैं और न उनके केस वापस लिए जाते हैं पैसे न होने के कारण कई बार पैरवी ठीक से नहीं हो पाती है ऐसी परिस्थिति में उन्हें  सजा तक भोगनी पड़ती है ।

मोदी जी ! कई मामलों में U टर्न की खबरें क्यों आने लगी हैं !

नरेंद्र मोदी जी ! सब कुछ करना देशवासी यह समझकर सह जाएँगे कि अपने मोदी जी कर रहे हैं तो अच्छा ही होगा ! किन्तु इसकी इतनी सीमा जरूर बनाए रखना कि भारतीय जनता का आप पर बना विश्वास बचा रहे ! क्योंकि विश्वास टूटते ही आदमी केजरीवाल हो जाता है !यदि किसी मजबूरी से विश्वास बचते न  दिखे तो देस वासियों को बता जरूर देना  कि अब मैं विवश हूँ शायद तब भी आपके प्रिय देशवासी आपको क्षमा कर दें किन्तु विश्वास  मत तोड़ देना जो आपके सारे जीवन की साधना है और देश वासियों की महान संपत्ति है !आपके प्रिय देशवासी कभी अगर यह सुनेंगे कि मोदी जी अपने मुद्दों से भटक गए हैं या बदल गए हैं या सत्ता लोलुप हो गए हैं तो सह नहीं पाएँगे !

इस विषय में " स्वामी अखंडानंद जी ने भक्ति सूत्र   की टीका करते हुए लिखा है कि "किसी जंगल में एक  पेड़ के नीचे एक व्यक्ति अपने मित्र की गोद में शिर रख कर सो रहा था इसी बीच एक सर्प उस सोते हुए व्यक्ति को काटने आया तो मित्र के मना करने पर सर्प ने कहा कि इसने पूर्व जन्म में मुझे मारा था इसलिए मैंने इसके गले का रक्त पीने  की प्रतिज्ञा की है यदि आप इसके गले का रक्त हमें वैसे ही दे दें तो मैं इसे नहीं काटूँगा तो मित्र ने कहा कि ठीक है और उसने चाकू से हल्का सा कट मार कर सर्प को रक्त दे दिया सर्प चला गया किन्तु इससे वह सोता हुआ मित्र जाग गया  देखा कि मित्र के हाथ में चाकू है  और चाकू में खून लगा हुआ है उसने गले को काटा  है उससे खून बह रहा है यह सब कुछ देख कर वह फिर सो गया तो जिसकी गोद में लेटा  था उसे बड़ा आश्चर्य हुआ उसने पूछा तक नहीं कि क्या हुआ है !तो उसने अपने मित्र को फिर से जगाया और पूछा कि  तुमने देखा कि तुम्हारा गला काटा गया है और मित्र के हाथ में चाकू है  और चाकू में खून लगा हुआ है गले से खून बह रहा है यह सब कुछ देख कर भी तू सो गया क्यों ? तुझे कुछ पूछना नहीं चाहिए था क्या तो उसने हँसते हुए कहा कि मित्र यह सब कुछ तो डरावना था किन्तु चाकू मित्र के हाथ में था बस इसी विश्वास पर निश्चिन्त होकर दुबारा सो गया था कि मित्र से अनिष्ट नहीं हो सकता !"

     मोदी जी !चुनावों के समय आपके मुख से जनता ने महँगाई को भगाने की बात सुनी है किन्तु अब रेल किराया बढ़ाने की बात !कुछ कीजिए और बचा लीजिए भाजपा पर किए गए जनता के भारी विश्वास को ,यही परीक्षा की घड़ी है जिसमें केजरीवाल जनता का विश्वास बचा पाने में असफल रहे जिसकी भरपाई वो आज तक नहीं कर सके हैं इसलिए दूसरे कई काम रोककर महँगाई पर शीघ्र नियंत्रण बहुत आवश्यक है । 

     मोदी जी जरा सँभल के ! देश बड़ी आशा से आपकी ओर देख रहा है उस विश्वास को बचा कर रखना बहुत बहुत कठिन एवं बहुत जरूरी है ! 

    आज विवादित बयान भाजपा के लोग दे रहे हैं जिन्हें शांतिपूर्ण ढंग से सरकार चलाने की जिम्मेदारी जनता ने सौंपी है इस समय जो भी विवाद बढ़ेगा माना कि पूर्ण बहुमत की सरकार है गिरेगी नहीं किन्तु हमें याद ये भी रखना  चाहिए कि विवादित बयानों की तलाश में खाली बैठे विपक्ष को हर विवादित बयान अमृत जैसा लगता है जिसके सहारे वो सरकार का समय नष्ट करने में सफल हो जाता है !क्या भाजपा को भी इसकी चिंता नहीं होनी चाहिए ! 

    मोदी सरकार बने 6 महीने बीत चुके हैं इस कार्यकाल के मात्र साढ़े चार वर्ष बचे हैं किंतु मेरी समझ में कोई काम अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है जो सरकारी आंकड़ों से अलग जनता के जीवन को सरल कर सका हो ! डीजल तेल की कीमतें अंतर्राष्ट्रीय बाजार से गिरी हैं उसमें सरकार तटस्थ है किन्तु तेल की कीमतों के गिरने के साथ जिन अन्य वस्तुओं की कीमतें जिस तरह से गिरनी चाहिए वैसी नहीं गिर सकी हैं सरकार की  भूमिका यहाँ ठीक नहीं है, सब्जियों का प्रमुख सीजन होने के कारण उनकी कीमतें घटनी स्वाभाविक ही हैं इससे मोदी सरकार को सँभलने का मौका मिल गया है यह है दूसरी बात जनता के मन में अभी भी U.P.A. के प्रति आक्रोश थमा नहीं है   प्रदेशों में भाजपा की बढ़ती विजय का प्रमुख कारण  वही है इसलिए अभी तक जनता भाजपा से हिसाब नहीं माँग रही है जब माँगेगी तो बाबा जी की सिक्योरिटी के आलावा ऐसा क्या बताया जाएगा जो जनता के जीवन से जुड़ा हो उसमे भी सिक्योरिटी केवल बाबा जी की ही क्यों ?उन्हें इनाम दिया गया है क्या जनता से वोट दिलाने का !आखिर भाजपा ऐसा क्यों समझ रही है कि बाबा जी की मोहर मारे बिना जनता उन पर भरोसा नहीं करती है !खैर,और अधिक क्या कहना किन्तु भाजपा को इतना तो सोचना ही होगा कि आम जनता को सरकारी आंकड़े समझ में नहीं आते हैं और न ही उसे अधिक दिनों तक भटकाया जा सकता है इसलिए भाजपा यदि सरकार महोत्सव मना चुकी हो तो अब उसे विजय खुमारी से बाहर निकल कर घुसना चाहिए सरकारी कार्यालयों में जहाँ कर्मचारियों की लापरवाही से त्रस्त जनता आज भी बाबुओं से गिड़गिड़ाकर अपना काम करने पर मजबूर है यही पहली सरकारों में हो रहा था तो बदल क्या है केवल बड़ी बड़ी बातें यही न ! भाजपा को ऐसी गलत फहमी क्यों है कि मनमोहन सिंह जी बोलते नहीं थे इसलिए जनता परेशान थी इसलिए हमें केवल बोलना ही चाहिए !यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि जनता जितना उनके न बोलने से परेशान थी कहीं उतना आपके अधिक बोलने से न हो जाए !अभी तक बोल बोलकर इतने वायदे किए गए हैं जिनका पूरा हो पाना कठिन ही नहीं असंभव भी है फिर भी यदि मान ही लिया जाए कि परिश्रम पूर्वक किए जा सकते हैं तो अच्छी बात है किंतु अभी तक सरकार के कार्यकाल का दशवाँ भाग बीत चुका है हालातों में कोई बदलाव नहीं है !आज भी सरकारी या निगम स्कूलों में बच्चों की भविष्य रचना पर  किसी प्रकार की कोई हलचल नहीं है सरकारी चिकित्सा के क्षेत्र में भी पहले जैसी लापरवाही ही है ,डाक कर्मी उनके द्वारा हुए किसी नुक्सान की कम्प्लेन का जवाब तक देना जरूरी नहीं समझते क्यों जिम्मेदारी निभा रहे होंगे ये लोग!सरकारी फोन और इंटरनेट में जो हो जाए सो हो जाए किन्तु दूर संचार विभाग ही नहीं सरकार का हर विभाग पहले भी जिम्मेदारी मुक्त था आज भी है जिम्मेदारी किसी की नहीं है जो काम आराम आराम से हो जाए वो उसका भाग्य !बलात्कार पहले भी हो रहे थे आज भी हो रहे हैं !कुल मिलाकर देश की जनता को ये लगता ही नहीं है कि जिन सरकारी कर्मचारियों पर जनता का काम करने की जिम्मेदारी छोड़ी गई है उन्हें बेतन भी दिया जाता होगा क्योंकि काम करने का उनमें उत्साह नहीं होता  है इसी उत्साह को भरने के लिए जनता धन दिखाती है जिसे देखते ही वो लहलहा उठते हैं किन्तु जिनके पास इन्हें देने को धन नहीं है वो क्या करें और इनसे कैसे कराएँ अपने जरूरी काम ?घुस का रिवाज सरकार की अकर्मण्यता से प्रारम्भ हुआ है !

    मैंने सुना है कि विभिन्न आफिसों में यदि सरकार के जिम्मेदार लोग पहुंचते भी हैं तो केवल फोटो खिंचवा कर फेस बुक पर डालने के लिए उन्हें भय है कि यदि कोई काम करेंगे तो गलती होने की संभावना रहेगी ही इसलिए काम करना ही क्यों फोटो खिंचवा कर डालते रहो फेसबुक पर !

 

 

 

Thursday, 8 January 2015

जहाँ जहाँ सरकार है वहाँ वहाँ ढिलाई और जहाँ जहाँ प्राइवेट है वहाँ वहाँ चुस्ती आखिर कारण क्या है !

 सरकारी कर्मचारियों पर प्राइवेट वाले भारी पड़ते हैं आखिर क्यों ? 

    सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं सरकारी अस्पतालों में दवाई नहीं, डाककर्मियों में  सुनवाई नहीं ,सरकारी फोन या इंटरनेट की स्थिति डामाडोल है ! सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारियों में काम करने के प्रति न तो निष्ठा  होती है और न ही उत्साह ! न ही वो जनता की समस्याएँ सुनते हैं और यदि सुन लेते हैं तो बस सुन ही लेते हैं उस पर कार्यवाही भगवान भरोसे ही होती है !ऐसे लोग बस केवल जिए जा रहे हैं और जीने के कारण  आफिस चले आ रहे हैं घर चले जा रहे हैं आफिस वाले कोई काम करवा पाते हैं तो करवा लेते हैं और न करवा पावें तो न सही आखिर उनका कोई कर क्या लेगा ! सरकारी नौकरी का मतलब एक जिंदगी के लिए सरकार के मत्थे मढ़ जाना !

     सरकारी वालों का काम तो सैलरी लेना होता  है !काम से उनका कोई ख़ास मतलब नहीं होता है इसलिए उनका नाम भी उतना नहीं होता है जितना प्राइवेट का होता है ,प्राइवेट स्कूल, अस्पताल आदि  सेवाओं से अपना विश्वास जनता में जागते हैं अगर विश्वास टूटने लगता है तो जी जान लगा देते हैं पर विश्वास बचाकर रखते हैं किन्तु सरकारी वालों को इस बात का संकोच ही कहाँ होता है अपितु सरकारी शिक्षक भी अपने बच्चों को पढ़ने के लिए प्राइवेट स्कूलों में ही भेजने लगते हैं इतने स्वाभिमान विहीन होते हैं ये लोग !ये किस मुख से देंगे औरों को शिक्षा और जिसको देंगे उसके जीवन में क्या भर पाएँगे ईमानदारी के बहुमूल्य संस्कार !

   यही स्थिति सरकार के अन्य विभागों की है !

    पुलिस वाले  सरकारी होते हैं और अपराधी प्राइवेट , नाम तो प्राइवेट का ही होता है !क्योंकि काम तो प्राइवेट वाले ही करते हैं ! नाम भी उन्हीं का होता है अपराध की खबरों से अखवार भरे पड़े होते हैं जबकि  पुलिस का पराक्रम कहीं  झलक जाता है किन्तु जिस दिन पुलिस का पराक्रम खबरों में छा जाएगा उसदिन अपराधों पर नकेल लग जाएगी !

  जैसे वो लोग एक दिन किसी काम को करने के विषय में सोचते हैं विचार बनाते हैं कि कल से काम शुरू करेंगे किंतु कल काम करना चाहते हैं तब  उन्हें एक नई बात समझ में आती है कि इस काम से पहले तो वो काम होना चाहिए चलो कल पहले वो काम करेंगे फिर ये करेंगे ये करते करते वो कभी कुछ कर ही नहीं पाते हैं और कुछ ट्राँसफर होते हैं और रिटायर्ड हो जाते हैं उनका काम प्राइवेट वाले लोग किया करते हैं सैलरी केवल वो लिया करते हैं जैसे -सरकारी स्कूल वाले सैलरी लेते हैं और प्राइवेट स्कूल वाले पढ़ाते हैं ! सरकारी डाक्टर सैलरी लेते हैं प्राइवेट वाले चिकित्सा करते हैं डाक वाले सैलरी लेते हैं कोरियर वाले काम करते हैं दूरसंचार  वाले सैलरी लेते हैं प्राइवेट कम्पनियाँ काम सँभालती हैं !

          पुलिस जैसे विभागों में जहाँ काम सँभालने वाले प्राइवेट लोगों की सुविधा नहीं होती है वहाँ सैलरी पुलिस वाले लेते हैं अपराधी लोग काम सँभालते हैं यही कारण  है कि पुलिस का काम तो दिखाई पड़ता नहीं है किन्तु अपराधियों का काम दिखाई पड़ता है चूँकि वो प्राइवेट होते हैं और पुलिस के लोग सरकारी होते हैं और जो सरकारी कर्मचारी है वो काम क्यों करेगा ! पुलिस वाले  सरकारी कर्मचारी होते हैं और सरकारी तो केवल सैलरी लेने के लिए होते हैं काम तो प्राइवेट लोग ही करते हैं जैसे अपराधी लोग  प्राइवेट होते हैं ! जिसे इस बात पर भरोसा न हो वो किसी दिन अखवार उठाकर देख ले या टीवी समाचार ध्यान से सुन ले अपने आप पता लग जाएगा कि काम कर कौन रहा है पुलिस या अपराधी !जो काम करता है उसी का नाम होता है !

      इसलिए सब कुछ होना चाहिए किन्तु शुरुअात कहीं से तो करनी पड़ेगी ! सरकारी कर्मचारियों को हर काम के लिए हर जगह टाँग फँसा कर खड़ा होना तो ठीक नहीं है !न कुछ काम की जाँच सालों साल चला करती है !सरकारी आफिसों में अक्सर लंच ,नास्ता ,चाय पानी विदाई पार्टी स्वागत पार्टी और फिर इन सबका एकाउण्ट कैसे मेनटेन किया जाएगा इसके लिए मीटिंग बस इतने से काम के लिए बड़े बड़े पद लेकर बैठे हैं लोग !काम केवल उसी का होता है जिसका  तगड़ा सोर्स  फिर मुख माँगी घूँस देने की ताकत !बाकी को तो इस आफिस से उस आफिस,इस बाबू से उस बाबू के पास केवल दौड़ाया जाता है कोई स्वीकार ही नहीं करता है कि ये काम हमारा है क्योंकि स्वीकार कर ले तो करना पड़ेगा !