Tuesday, 30 September 2014

कुछ पुलिस वाले तो भिखारियों से भी माँग लेते हैं भीख !

         दिल्ली में तीस हजारी मेट्रो स्टेशन से उतर कर जब तीस हजारी की ओर चलने लगो तो वहाँ कुछ लंगड़े लूले भिखारी बैठे होते हैं एक दिन मैं वहाँ से निकल रहा था तो एक भिखारी  अपनी अधकटी टाँग बीच रास्ते तक फैलाए था लोग बचा बचा कर निकल रहे थे यह देखकर मैंने उससे कहा कि पैर समेट कर रख लो तो उसने कहा क्यों रख लूँ मैंने कहा कहीं चोट लग जाएगी तो वो कहने लगा ऐसे कैसे लग जाएगी मार के देखो तो सही मैंने कहा मैं मारने  को नहीं कह रहा हूँ मैं तो ये कह रहा हूँ कि लग सकती है खैर वो ज्यादा गरम हुआ तो मैंने कहा मैं अभी पुलिस बोलाता हूँ था तो उसने कहा बोला लो क्या कर लेगा वो रोज बीस रूपए हमसे लेता है दस रूपए बैठने के और दस रूपए ये घायल वाली टाँग आगे करके बैठने  के इसी टाँग को देखकर लोग पैसे देते हैं !यह सुनकर मुझे आश्चर्य जरूर हुआ किन्तु सच्चाई श्री राम जी जाने ! हाँ ,यदि ऐसा वास्तव में है  तो बहुत गलत है इस पर नियंत्रण किया जाना चाहिए !अन्यथा पुलिस का गौरव घटता जा रहा है !

आज देश की सबसे बड़ी आावश्यकता है सजीव समाज का निर्माण !

                               आज देश की सबसे बड़ी आावश्यकता है सजीव समाज का निर्माण !
        मान्यवर ! ये काम हम सब लोगों को ही करना है क्या हम सबलोग मिलकर एक जीवित समाज का सृजन नहीं कर सकते ! आखिर हम सब लोगों को जीवन की छोटी छोटी बातों के लिए सरकारों की ओर ही क्यों ताकना पड़ता है क्या समाज के हम सभी लोगों का आपस में कोई आपसी सम्बन्ध नहीं है क्या हमारा कोई आपसी दायित्व भी नहीं है क्या हमारे कोई निजी अधिकार नहीं हैं जो हम आपस में एक दूसरे को दे ले सकें अरकारें और राजनेता हमारी पंचायतें नहीं कर साते जो अपने गठबंधन नहीं सँभाल पाते हैं उनसे हम लोगों को क्या आशा करनी !

मोदी जी केवल गुजराती से ही नहीं अपितु हिन्दी से भी प्रसन्न हो सकते हैं !ओबामा साहब !!!

ओबामा ने मोदी से पूछा- 'केम छो मिस्टर प्राइम मिनिस्टर'-IBN-7 

    मोदी जी गुजरात के गुजरात मोदी जी का , मोदी जी के भाषणों में अक्सर गुजरात ,गुजरात के नेता,गुजरात के व्यापारी , गुजराती  भाषा और गुजराती महापुरुषों का जिक्र विशेष रहता है गुजरात की योजनाएँ गुजरात के कार्यक्रम आदि आदि!कहीं यही कारण तो नहीं है ओबामा के ऐसा करने का !

    खैर जो भी हो मोदी जी आज हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री हैं पूरे देश का प्रतिनिधित्व आज वो करते हैं तो पूरा देश उनकी ओर देख रहा है वैसे भी देश के अंदर वो गुजराती हैं किन्तु विश्व में उनकी पहचान हिंदुस्तानी की है और हिंदुस्तानी राष्ट्र भाषा हिंदी सर्व विदित है और बोलने में भी सुगम है किन्तु मोदी जी के कुशल क्षेम पूछने में ओबामा साहब ने गुजराती चुनी हिंदी नहीं !हिंदी और हिंदुस्तानी की पहचान में पूरा देश सम्मिलित है चूँकि हिंदी राष्ट्रभाषा है इसलिए प्रमुखता उसे मिलनी ही चाहिए बाक़ी गुजराती  समेत समस्त भारतीय भाषाएँ हमारे लिए उतनी ही सम्माननीय हैं । यद्यपि मोदी जी ने हिंदी में भाषण देकर हिन्दी को महान महत्त्व दिया है इसके लिए बहुत बहुत आभार । एक निवेदन अवश्य है कि अब ऐसा कुछ हो जिससे औरों को भी लगे कि मोदी जी केवल गुजराती से ही नहीं अपितु हिन्दी से भी प्रसन्न हो  सकते हैं !

Thursday, 25 September 2014

नशा मुक्त हो अपना देश ,मोदी जी का यह सन्देश !

                 मोदी जी के मन की बात । 
                 नशामुक्त हो भारतमात ॥
     नशा मुक्त  देश बनाने सम्बन्धी मोदी जी का सन्देश टीवी पर सुना तो हृदय गदगद हो गया और एक क्षण ऐसा लगा कि देश और समाज के प्रति कोई अपनेपन  से सोच रहा है अन्यथा सरकारी कामों में तो हर काम की फाइलें बनती हैं विज्ञापन दिए जाते हैं और प्रेस नोट जारी कर दिया जाता हैं आंकड़े पेश किए जाते हैं इन सभी चीजों पर आए भारी भरकम खर्च को जनता के मत्थे मढ़ दिया जाता है । 
  सरकारी स्कूलों आफिसों में नैतिक स्लोगन लिखवाकर लटका दिए जाते हैं कई बार इसमें भी घोटाले होते हैं यही नहीं जिन स्कूलों में ऐसे नैतिक स्लोगन लिखकर लटकाए जाते हैं वहाँ के शिक्षकों के द्वारा ही इनकी उड़ाई जा रही होती हैं धज्जियाँ !सरकारी और निगम स्कूलों  के शिक्षक स्वयं में इतने अनैतिक हैं कि सरकारी शिक्षा दिनोंदिन दम तोड़ती जा रही है मध्यान्ह भोजन में कीड़े मकोड़े आदि सब  कुछ निकल रहा है जिसमें  कोई अधिक सुधार होता  नहीं दिख रहा है वस्तुतः शिक्षक सुधरना ही नहीं चाह रहे हैं यदि उनकी भावना में कपट न होता तो अपने बच्चों को क्यों नहीं पढ़ाते हैं सरकारी स्कूलों में !

   यद्यपि  नरेंद्र मोदी जैसे धर्म प्रिय नैतिकता पसंद व्यक्ति का  प्रधानमंत्री होना देश के लिए गौरव की बात है  किन्तु मोदी जी नशे से लेकर बलात्कार तक जितनी भी मनोविकृतियाँ हैं वो सब प्रदूषित चिंतन से प्रारम्भ हो रही हैं किन्तु ये प्रदूषण रुके कैसे इस पर विचार हो और इसका कुछ स्थाई समाधान निकाला जाए तो अच्छा होगा !
       नैतिक शिक्षा देने का काम पहले शिक्षक ,प्रवचन कर्ता और साधू संत किया करते थे किंतु अब शिक्षकों  में दायित्व  पालन का अभाव होता जा रहा है ,प्रवचन कर्ता लोग सदशिक्षा एवं शास्त्रीय संस्कार देने की अपेक्षा मनोरंजन करते घूम रहे हैं साधू संत तो शांत हैं जबकि बाबा लोगों की व्यापारिक व्यस्तताएँ समझी जा सकती हैं बाबाओं को राजनैतिक हुल्लड़ मचाने से ही फुरसत नहीं है उन्हें संस्कार देने एवं सदाचरण सिखाने का समय ही कहाँ है !
     ऐसी परिस्थिति में मोदी जी आप देशहित  में बहुत कुछ करना चाह रहे हैं और बहुत कुछ कर भी रहे हैं किन्तु सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि अकेले आप  क्या क्या कर लेंगे ! माना कि साधू संतों  प्रवचन कर्ताओं से आप दबाव देकर अपनी बात नहीं कह सकते हैं किन्तु निवेदन तो कर ही सकते हैं कि वो समाज में संस्कार सृजन में सरकार का साथ दें किन्तु यदि इतना भी नहीं हो सकता है तो मोदी जी ईश्वर ने आज आपको जो पदात्मिका सामर्थ्य प्रदान की है उसका सदुपयोग कीजिए और जनता की गाढ़ी कमाई के धन से जिन शिक्षकों को मोटी  मोटी सैलरी दी जाती है उन्हें उनके दायित्व का बोध कराइए और उन्हें लगाइए संस्कार सृजन के पवित्र कार्य में जो आपकी भावनाओं का अपने शब्दों एवं शैली में प्रचार प्रसार करें !ईश्वर ने आपको ऐसे काम करने की अपेक्षा करवाने की जिम्मेदारी अधिक दी है इसलिए आप भी अपने दायित्व का निर्वाह करते हुए कम से कम शिक्षक जैसे लोगों को तो ऐसे कामों में लगाइए ही जिनकी आजीविका सरकार सँभालती है !अन्यथा सफाई भी आप करेंगे ,शिक्षा और प्रवचन भी आप ही कर लेंगे तो आखिर वो लोग क्या करेंगे जिनकी इन कामों को करने की जिम्मेदारी है । हमारे जैसे लोगों के लिए भी कोई सेवा है तो हम सादर तैयार हैं वैसे भी कर तो रहे ही हैं किन्तु हमारी बात समाज के उतने बड़े वर्ग तक नहीं पहुँच पा रही है उसका कारण प्रचार प्रसार का अभाव ही है फिर भी देश की नैतिक एवं आध्यात्मिक भूख मिटाने के लिए सरकार यदि कोई कार्यक्रम अपने स्तर पर चलाती है तो उसमें हम जैसे छोटे लोग भी अपना दायित्व निर्वाह करने को तैयार हैं यदि सरकार आवश्यकता समझे तो हम जैसे बहुसंख्य लोगों का उपयोग कर सकती है! see more... http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.com/2014/11/blog-post_24.html
    वैसे ये हम सब देश वासियों के लिए गर्व की बात है और मोदी जी की धर्म निष्ठा श्लाघनीय है, इसमें कोई संदेह नहीं है कि मोदी जी की दुर्गा उपासना से देश और समाज में बड़ा बदलाव हो सकता है ! नरेंद्र मोदी जी दुर्गा जी के ही अनन्य उपासक हैं ये बात अब तो विश्वफलक पर स्पष्ट हो ही चुकी है इसलिए उनके विषय में साईं आदि किसी और के उपासक होने की शंका नहीं होनी चाहिए, जहाँ तक बात साईं मंदिर जाने की है तो सार्वजनिक जीवन  में जनता ही जनार्दन होती है किसी भी सामाजिक कार्यकर्ता या सरकार के शीर्ष स्थान पर बैठे महत्वपूर्ण व्यक्ति को जनता के प्रत्येक व्यक्ति की उचित  इच्छा का यथासंभव सम्मान करना ही  पड़ता है इसलिए प्रजा प्रजा में भेद किया भी नहीं जा सकता और उचित भी नहीं है । 

       मोदी जी के लिए अपनी व्यस्ततम दिनचर्या में भी न केवल संपूर्ण नवरात्रों में व्रत रखना अपितु दुर्गा सप्तशती का पाठ भी नित्य करना ये बड़ी ही नहीं अपितु बहुत बड़ी बात है, एक बात की तो अब अपार खुशी है कि हमारे प्रधानमंत्री जी को धार्मिक कहलाने में शर्म नहीं लगती है ये हम सब लोगों के लिए गौरव की बात है।

   फैशन के नाम पर चोटी तक कटा देने वाले हिन्दुओं को मोदी जी से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है हमारी समाज का एक वर्ग पूजा पाठ धर्म कर्म व्रत उपवास जैसे आचरणों के लिए अंधविश्वास या पाखण्ड जैसे शब्दों का प्रयोग करने लगा था उनकी नक़ल करते करते देश का युवा वर्ग भटकने सा लगा था अर्थात अपने को हिन्दू कहने में नवरात्र व्रत करने में दुर्गा जी की सप्तशती का पाठ करने में या कोई भी पूजा पाठ करने में शर्म महसूस करने लगा था, भूत प्रेतों की मूर्तियाँ मंदिरों में रखकर उन्हें पूजने में फैशन समझने लगा था ऐसे वर्ग को यह समझना चाहिए कि जब अपनी सनातनी परम्पराओं के पालन करने में और उन्हें विश्वस्तर पर बता देने में हमारे प्रधान मंत्री को गर्व होता है तो आमआदमी फैशन के नाम पर इन्हें बताने में शर्म क्यों करता है उसे भी गर्व पूर्वक अपने धर्म का प्रकट रूप से पालन करना चाहिए । 

    रही बात साईं आदि पाखंडों को पूजने की तो उस विषय में भी अब भ्रम नहीं होना चाहिए कि टेस्ट बदलने के लिए पिकनिकी भावना से कोई कहीं जाए कुछ भी करे किन्तु बात जब धर्म की आवे तब अपनी जड़ों से जुड़े रहने में ही भलाई है अपने बाप दादे पुरखे पूर्वज जिन देवी देवताओं को अभी तक पूजते आए हैं उनपर संदेह मत करो !न अपने पूर्वजों पर और न ही उन देवी देवताओं पर अन्यथा यदि एक बार भटक गए तो दूसरी बार अपने धर्म में उस प्रकार से घुल मिल पाना बड़ा कठिन हो जाता है। 

     इसलिए जैसे टेस्ट बदलने के लिए किसी के संग साथ में पड़कर बाहर का खाना कोई एक आध दिन खाकर काम भले चला ले किन्तु पेट तो घर के खाने से ही भरता है उसी प्रकार से किसी के संग साथ में पड़कर कभी साईं वाईं के यहाँ यदि जाना भी पड़े तो भी व्रत नवरात्रों के आस्था माता दुर्गा पर और पाठ दुर्गा सप्तशती के ही करने हैं स्थाई भाव तो यही होना चाहिए व्यस्तता कितनी भी रहे जाना कहीं भी पड़े किन्तु अपने धर्म कर्म में समझौता नहीं करना ऐसे दृढ़ निश्चयी मोदी जी को बार बार बधाई !

      मोदी जी से इस मामले में उन सभी लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए जो स्वाभाविक रूप से ऐसा करने में प्रमाद करते हैं ,जो लोग मोदी जी की तरह से व्यस्त भी नहीं हैं स्वस्थ भी हैं मोदी जी की तरह किसी ऐसे महत्वपूर्ण मिशन पर यात्रा भी  नहीं करनी है फिर भी आलस्य और प्रमादवश नवरात्र जैसे महान पर्व पर नियम संयम पूर्वक भगवती की आराधना नहीं करते हैं उन्हें मोदी जी को देखकर ही सही अब प्रारम्भ कर देनी चाहिए । 

   हमें एक बात और ध्यान रखनी चाहिए कि आज समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार ,घूसखोरी ,चोरी, बलात्कार ,हत्या आदि जैसे जितने भी प्रकार के अपराध होते हैं वो सारे एकांत में ही होते हैं उसके लिए सरकार और पुलिस को पूरी तरह जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है आखिर हर आदमी को सुरक्षा कैसे दी जा सकती है! इसलिए मोदी जी से ही सही प्रेरित होकर सभी समाज धर्म अध्यात्म एवं संस्कारों के प्रति यदि समर्पित होने लगे तो समाज में दिनोंदिन बढ़ते अपराधों में विशेष कमी की जा सकती है । 

इसी विषय में पढ़ें हमारा यह लेख भी -  आश्विन नवरात्र  के पावन पर्व पर जगज्जननी माता दुर्गा को कोटिशः प्रणाम करते हुए हमारी ओर से आपको आपके पारिवारिक सदस्यों एवं समस्त स्वजनों को कोटि कोटि बधाई !अनंत अनंत  मंगल कामनाएँ , नितनूतन मंगलमय हो !   see more... http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/09/blog-post.html

 

Wednesday, 24 September 2014

फेस बुक पर जन्म दिन की बधाई देने के रीति रिवाज !

       अपने से बड़ों एवं श्रेष्ठों को प्रणाम करने वाले एवं समस्त स्वजनों का अभिवादन करने वाले के पास चार गुण स्वाभाविक रूप से बढ़ते हैं आयु, विद्या, यश और बल , यहाँ तक कि सामने वाला आशीर्वाद दे न दे तो भी विनम्र अभिवादन शील व्यक्ति आशीर्वाद का अधिकारी हो ही जाता है ! किन्तु सामने वाला ऐसा न करे और आशीर्वाद देने योग्य व्यक्ति पर  फोकट की शुभकामनाएँ व्यक्त करता जा रहा हो क्या लाभ ऐसे उलटे रीति रिवाजों का ?

     कई लोग अपने बच्चों के जन्मदिन पर बच्चों की फोटो अपनी  फेस बुक पर डाल कर और अपने फेस बुकी मित्रों के लिए लिखते  हैं कि हमारे बच्चे का आज जन्म दिन है !कुछ लोग इतना भी लिख देते हैं कि आशीर्वाद दीजिएगा !

       अजीब सी बात है आशीर्वाद किसी को भी  कभी भीख में नहीं मिलता है उसे विनम्रता पूर्वक आशीर्वाद पाने की मुद्रा में उपस्थित होना होता है । उसकी तरफ से अभिवादन के दो शब्द  लिखने चाहिए किन्तु यह ढंग ठीक नहीं है कि बेटे की फोटो तो शोफा पर जूता पहने टाँग उठाए लेटने की या अन्य प्रकार के हास परिहास की  डालकर और मित्रों को आशीर्वाद देने के लिए प्रेरित करते हैं !अरे सिखाना ही है तो संतानों को अभिवादन करना सिखाइए आशीर्वाद देने वालों को अपने दायित्व का एहसास होता ही है !

Tuesday, 23 September 2014

बंधुओ ! दुर्गासप्तशती से जन जन को जोड़ने में आपका भी चाहिए सहयोग !

    सरल हिंदी दोहा चौपाइयों में लिखी गई दुर्गासप्तशती को अब घर घर एवं जन जन तक पहुँचाने की पवित्र पहल में आप भी जुड़ें और करें इस कार्य के प्रचार प्रसार में सहयोग !  

      पंडित पुजारियों एवं हमारे जैसे हमारे और भी भाई बंधुओं समेत जब हम कुछ लोग ही यदि धर्म की सारी चौधराहट सँभाल लेंगे तो बाक़ी समाज भटकेगा ही, कहीं तो जाएगा ही, किसी को तो मानेगा ही, जो इन्हें सरल दिखेगा ये उसे मानेंगे, जो इन्हें मानेगा ये उसे मानेंगे!

     इसलिए उस आम समाज को धर्म से जोड़े रखने के लिए कोई पहल की जानी चाहिए उसी दिशा में की गई यह एक छोटी सी पहल ! आप सभी बंधुओं के सहयोग की अपेक्षा -

     बंधुओ !आप सबको पता है कि दुर्गा सप्तशती का पाठ नवरात्रों में करना होता है किन्तु दुर्गा सप्तशती संस्कृत भाषा में होने के कारण जो लोग संस्कृत जानते हैं वो तो कर लेते हैं संस्कृत में इसका पाठ किन्तु जो संस्कृत नहीं जानते हैं उनमें कुछ धनी वर्ग होता है वो पंडितों से अपने घर में पाठ करवा  लेता है किन्तु जो लोग संस्कृत भी नहीं जानते हैं और उनके पास धन भी नहीं होता है वो आखिर कैसे पूजा करें भगवती की ?

     उनके लिए कुछ लोगों ने हिंदी कविता में भी दुर्गा सप्तशती या दुर्गा स्तुति नाम से कुछ लिखने की कोशिश की है किन्तु उसमें  छंद भंग दोष तो है ही साथ ही विषय वस्तु भी आधी चौथाई ही ली गई है एवं कुछ ने तो हर पृष्ठ पर अपना नाम एवं अपना चित्र दिया हुआ है जो ठीक नहीं है बीच बीच में भी ऐसा ही किया गया है यह विधा ठीक न होने पर भी लोग इसका पाठ करते हैं क्योंकि उनके पास ऐसी चीजों के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं है कुछ लोग राम चरित मानस आदि का नवाह पाठ आदि करते देखे जाते हैं !कुछ लोग ऐसी ही परिस्थितियों को कैस करते हुए साईं देवी टाइप किसी पूजा स्तुति आदि को गाने बजाने लगते हैं और भोले भाले लोग ऐसा ही सब कुछ करने भी लगते हैं !

     यही सब कुछ देख कर मुझे कई मित्रों ने रामचरित मानस की शैली में अर्थात दोहा चौपाई में लिखने के लिए प्रेरित किया और मुझे भी इसकी आवश्यकता लगी तो मैंने प्रयास पूर्वक संस्कृत दुर्गा सप्तशती की प्रामाणिकता बनाए एवं बचाए रखते हुए श्री रामचरित मानस की शैली में अर्थात दोहा चौपाइयों  में श्री  दुर्गा सप्तशती को लिखा है और प्रकाशित किया है इस पुस्तक को तीन रूपों में अत्यंत उत्तम कागज, छपाई आदि का प्रयोग करते हुए प्रकाशित किया गया है। 

   इनमें से पहली दुर्गासप्तशती नाम से प्रकाशित की गई है इसमें गीताप्रेस की दुर्गासप्तशती की पुस्तक की तरह ही अर्थ सहित प्रकाशित किया गया है इसमें अंतर केवल इतना है कि संस्कृत श्लोकों की जगह उसी का भावार्थ लेकर हिंदी दोहा चौपाइयों में उन्हीं श्लोकों के अनुवाद के रूप में किया गया है इसका मूल्य 51रूपए रखा गया है। 

     दूसरी दुर्गापाठ नाम से प्रकाशित की गई है इसमें पहले की तरह ही संपूर्ण दुर्गासप्तशती ही है अंतर केवल इतना है कि इसमें हिन्दी अर्थ नहीं लिखे गए हैं बाक़ी सब कुछ वैसी ही संपूर्ण है इसकी लागत कम करने के लिए ऐसा किया गया है इसका मूल्य 31 रुपए रखा गया है ।

    तीसरी दुर्गास्तुति नाम से प्रकाशित है जिनके पास समय का अभाव होता है इसलिए वे वो संपूर्ण दुर्गासप्तशती का पाठ प्रतिदिन नहीं कर सकते हैं ऐसे व्यस्त लोगों के लिए दोहा चौपाइयों में ही नव देवियों के लिए नव स्तुतियाँ लिखी गई हैं जैसे नवरात्र के पहले दिन के लिए शैलपुत्री दूसरे दिन के लिए ब्रह्मचारिणी आदि की स्तुतियाँ हैं जिन्हें प्रतिदिन के हिसाब से लोग पढ़ सकते हैं ऐसा विचार  करके नव स्तुतियों को दोहा चौपाइयों   में ही लिखा गया है इसका मूल्य 21रूपए रखा गया है ।

     लागत मूल्य पर ये पुस्तकें  उपलब्ध करवाने के लिए इन तीन में से किसी भी एक पुस्तक की 100 प्रतियाँ मँगवाने पर 20 प्रतिशत डिस्काउंट काट दिया जाता है 250 या उससे अधिक प्रतियाँ मँगवाने पर 30 प्रतिशत डिस्काउंट काट दिया जाता है।

      बंधुओ ! ये पुस्तकें  आज देश के लगभग 200 शहरों कस्बों की दुकानों में उपलब्ध हैं किन्तु पुस्तकों की क्वालिटी अच्छी होने के कारण लागत अधिक आना स्वाभाविक है इससे दुकानदारों का उतना डिस्काउंट नहीं बन पाटा है जितना उन्हें चाहिए इसलिए वो इन्हें प्रचारित करने में रूचि  नहीं लेते हैं और समाज को पता नहीं है । 

     अतः आप सभी सनातन धर्मी बंधुओं से निवेदन है कि आप यदि हमारी सोच से सहमत हों एवं आपको भी उचित लगे और इन्हें प्रचारित करने में आप भी सहयोग करना चाहें तो आप इस लिंक को अपने मित्रों में शेयर कर सकते हैं या और जिस किसी भी प्रकार से सहयोग कर सकते हों उसके लिए आप सभी बंधुओं से सहयोग की अपेक्षा है । 

     मैंने कुछ जगहों पर इन्हीं के सामूहिक पाठ का कार्य क्रम भी चलवाया है जिसमें सभी स्त्री पुरुष मिलजुल कर बाजे गाजे से या वैसे इसी दुर्गा सप्तशती के 100 या 1000 पाठ नवरात्रों में या वैसे भी कर लेते हैं अंतिम में हवन कर लेते हैं भंडारा कर लेते हैं इससे सभी लोगों को पाठ करने में सम्मिलित होने का सौभाग्य तो मिलता ही है और बिना किसी विशेष खर्चे के हिंदी विधा से शतचंडी या सहस्र चंडी यज्ञ का विधान करने का लाभ भी होता है  इससे संस्कार सुधरते हैं साथ ही साथ समाज तरह तरह के पाखंडों में भ्रमित होने से बच जाता है । अगर कुछ मित्र इस प्रकार के आयोजन आयोजित करके भी हमारा सहयोग करना चाहें तो उनके लिए अग्रिम कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ । 

      वैसे भी सनातन धर्मियों पर साईंयों ईसाइयों इस्लामियों आदि सबकी निगाहें गड़ी हैं कोई शिक्षा कोई दीक्षा कोई चिकित्सा या कोई अन्य प्रकार के सेवा आदि कार्यों के माध्यम से भोले भाले सनातन धर्मियों को बहलाने फुसलाने की कोशिश कर रहा है ऐसे में बहुत आवश्यकता ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों को चलाने की है जिनमें जनता की सीधी भागीदारी हो जिससे किसी और की निंदा करने के बजाए सनातन धर्मियों का भटकाव रोका जा सके !

      इन पुस्तकों को प्राप्त करने के लिए आप सीधे हमारे राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान से संपर्क कर सकते हैं संस्थान के प्रचार कार्यों से जुड़ सकते हैं सुझाव दे सकते हैं आप हमारे मोबाइल 9811226973 पर संपर्क कर सकते हैं ।पुस्तकें मँगवाने के लिए अपेक्षित धनराशि भेजने या हमारे अकाउंट में जमा करने के बाद 10 दिनों के अंदर कभी भी पुस्तकें यहाँ से भेज दी जाती हैं । 

                                    अकाउंट डिटेल -

              शेष नारायण वाजपेयी , SBI,  खाता संख्या 10152713661

 see more....     दुर्गा सप्तशती को घर घर और जन जन तक पहुँचाने की पवित्र पहल में आप भी सहभागी बनें-   जो संस्कृत भाषा में दुर्गा  सप्तशती नहीं पढ़ सकते हैं वो अब हिंदी भाषा दोहा चौपाई में सुन्दर काण्ड की तरह पढ़ें वही दुर्गा  सप्तशती -see more...http://snvajpayee.blogspot.in/2013/10/blog-post_2.html
  अब दुर्गासप्तशती आदि भी रामचरितमानस एवं सुंदरकांड की ही  तरह हिंदी दोहा चौपाई में पढ़िए राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान की ओर से  शास्त्रीय ज्ञानविज्ञान  को घर घर जन जन तक पहुँचाने की पवित्र पहल में  आप भी सहयोगी बनें-

 राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान

k-71,Chhachhi Building Krishna Nagar  Delhi -51

         Ph.09811226973,011-22002689

   



 
                                            
इसी प्रकार से श्री हनुमत सुन्दर काण्ड भी-
 

Monday, 22 September 2014

नवरात्रों में साईंधर्मी लोग सनातन परंपराओं में कर सकते हैं कोई बड़ी घुसपैठ !

     नवरात्रि में साईंदेवी का पूजन कुछ इस प्रकार से किए जाने की तैयारी है सुना है कि बुड्ढे की अष्टभुजी मूर्ति को साड़ी ब्लाउज पहनाकर लाली लिपिस्टिक लगा कर बैठाया जाएगा शेर पर और इसके बाद उस साईं  पत्थर के सामने खड़े होकर पढ़े जाएँगे कुछ इस प्रकार के कल्पित पँवारे और खुश किया जाएगा उस पत्थर बुढ़िया को -  

        साईं  शैलपुत्री च साईं ब्रह्मचारिणी। 

       साईं  चन्द्रघण्टेति  साईं कूष्माण्डेति च ॥

        साईं स्कंधमातेति साईं कात्यायनी तथा ।

        साईं  कालरात्रीति साईं  महागौरिजा ॥

        साईं सिद्धिदात्री च साईं दुर्गा प्रकीर्तितः ॥

    आदि आदि ऐसे सभी पँवारों पाखंडों से साईँ संध्याओं कथा कीर्तनों से सनातन धर्मी समाज को सतर्क रहना होगा और अपनी सनातनी समाज को भगवती दुर्गा के पाठ के लिए प्रेरित करना हम सबका कर्तव्य है

    बंधुओ ! धर्म के मामलों में अपनी छोटी छोटी लापरवाहियों के कारण आज सनातन धर्मी समाज को एक ऐसे साईं संकट से जूझना पड़ रहा है कि जिसका कोई रास्ता निकलता दिखाई नहीं दे रहा है अभी तक मंदिरों में बुड्ढे की मूर्तियाँ यथावत स्थापित हैं यदि सनातन धर्मी समाज के कर्णधारों ने पहले से ही थोड़ी सतर्कता वरती होती तो शायद आज ये दिन नहीं देखना पड़ता । मित्रो! कहने को हम भले ही कुछ भी कह लें या अपने विषय में बड़ी बड़ी बातें कर लें किन्तु सच्चाई हमें स्वीकार करनी ही पड़ेगी कि सनातन धर्म पर साईं नामका यह बहुत बड़ा हमला है जो सनातन मंदिरों में धनबल से घुसकर सनातन धर्मशास्त्रों के विरुद्ध किया गया है सनातन धर्म के देवी देवता अवाक् हैं उन्हें यह नहीं पता है कि उन्हें उनके किस अपराध की सजा दी गई है आखिर क्यों किया गया है उन्हें सस्पेंड !        साईं समर्थकों के द्वारा कहा जा रहा है कि बाबा मनोकामनाएँ पूरी करते हैं वो हमारी बात बहुत जल्दी सुनते हैं इसका मतलब क्या हुआ कि सनातन धर्म के देवी देवता नहीं सुनते हैं अर्थात वो बहरे हैं और वो अकर्मण्य हो गए हैं अर्थात मनोकामनाएँ पूरी नहीं करते हैं क्या  इसीलिए इन टुच्चे लोगों ने सनातन धर्मी देवी देवताओं को साईँ नाम की सबक सिखाने की कोशिश की है इसीलिए उन्हें अपूज्य और साईं को पूज्य सिद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है इन पापियों के मन में तो इतनी कुटिलता होती है किन्तु ऊपरी मन से  अपने को हिन्दू भी कहते हैं सनातन धर्मियों और हिन्दुओं के समान चन्दन लगाए घूमते हैं ताकि इन्हें भी लोग हिन्दू मानते रहें किन्तु ये नहीं सोचते हैं कि अब इनके हिंदुत्व में बचा  क्या है !       जब सनातन धर्म शास्त्रों पर इनका विश्वास नहीं रहा सनातन देवी देवताओं को इन्होंने सस्पेंड ही कर दिया है उनके स्थान पर साईं की नियुक्ति कर ली गई है क्योंकि सनातन देवी देवता भिखारियों की सुनते नहीं हैं और साईं सुनते हैं !इसके बाद भी ये माथे में चन्दन चुपड़ चुपड़ कर कहते हैं कि सनातनधर्मी तो हम भी हैं श्री राम कृष्ण शिव दुर्गा आदि देवी देवताओं को तो हम भी मानते हैं !

    अरे धोखेबाजो ! लानत है तुम्हारे जैसे मानने वालों को ,मानते हो या बेइज्जती करते हो सनातन धर्मियों एवं उनके देवी  देवताओं की ! सनातनधर्मी देवी देवताओं का मोती जैसा पानी उत्तर दिया तुम लोगों ने, तुम उन्हें सबक सिखाने चले हो ! सनातन धर्म का जितना बुरा धर्म शत्रुओं ने नहीं किया था उससे अधिक उन लोगों ने किया है जो अपने को सनातन धर्मी कहते तो हैं किन्तु पूजते भूत प्रेतों को हैं इतनी बड़ी गद्दारी उन देवी देवताओं के साथ जिन्हें हमारे तुम्हारे पूर्वज मिलजुलकर अनंत काल से विश्वास पूर्वक पूजते रहे थे उन पर संदेह किया गया है !यह सोच सोचकर आत्मा रोती है और लज्जा आती है ऐसे लोगों को सनातन धर्मी  मानने में !ऊपर से कहते हैं कि सनातन धर्म विराट है सनातन धर्म सहिष्णु है उसमें सब कुछ पचाने की क्षमता है तो साईं पूजा को क्यों नहीं पचाया जा सकता ?अरे खाना की थाल में खाने वाली चीज रखी हो वही तो खाई और पचाई जाएगी न कि खाने के साथ गोबर या पत्थर रख दिया गया हो तो क्या वो भी खा लिया जाएगा !इसी प्रकार से जो पूजा जाने लायक होगा वही न पूजा जाएगा !जिसे जानते नहीं पहचानते नहीं जिसका कोई नाम गाँव पता ठिकाना ही नहीं है उसे भी पूजने लगें ! आखिर अजीब सी जबरदस्ती है !और न पूजें तो हम धार्मिक नहीं हैं यह कैसी अंधेर !

      आखिर क्यों देवी देवताओं के सामने देवी देवताओं की पूजा के लिए बनाए गए वेदमंत्रों का प्रयोग उनके लिए न करके अपितु उसके लिए किए जा रहे हैं जो इनका अधिकारी ही नहीं है उसी के मंदिर में सफाई हो रही है उसी के लिए गढ़ी गई झूठी स्तुतियों  के लाउडस्पीकर बजाए जा रहे हैं और जिन देवी देवताओं की स्तुतियों से सम्पूर्ण संस्कृत एवं हिन्दी वाङ्मय भरा पड़ा है उन्हें कोई पूछ नहीं रहा है । पूजा उसकी हो रही है जो अपूज्य है जो पूजने योग्य हैं उनकी पूजा करने की जगह काम चलाया जा रहा  है ! बड़े बड़े सुगंधित पुष्पों के हार उन पत्थरों को पहनाए जा रहे हैं जिनमें कुछ है ही नहीं, जिस बुड्ढे के प्राण यमराज के कब्जे में हैं उसकी प्राण प्रतिष्ठा का नाटक किया जा रहा है ।साईं समर्थक साईं के सामने खड़े होकर गिड़गिड़ाते हैं बाबा हमारी सुनो हमारी सुनो किन्तु बाबा यमराज के सामने गिड़गिड़ा रहे होंगे कि हमारी सुनो हमारी सुनो अब साईँ की अपनी जान जब वहाँ आफत में पड़ी होगी प्राण यमराज के कब्जे में होंगे तो साईं की प्राण प्रतिष्ठा के लिए प्राण कहाँ से आएँगे ?अब साईं की कौन सुने और साईं किसकी सुनें !

इसे भी देखें -

        दुर्गासप्तशती से जन जन को जोड़ने के अभियान में आपसे योगदान की अपेक्षा !
    सरल हिंदी दोहा चौपाइयों में लिखी गई दुर्गासप्तशती को अब घर घर एवं जन जन तक पहुँचाने की पवित्र पहल में आप भी जुड़ें और करें इस कार्य के प्रचार प्रसार में सहयोग !
      पंडित पुजारियों एवं हमारे जैसे हमारे और भी भाई बंधुओं समेत जब हम कुछ लोग ही यदि धर्म की सारी चौधराहट सँभाल लेंगे तो बाक़ी समाज भटकेगा ही, कहीं तो जाएगा ही, किसी को तो मानेगा ही, जो इन्हें सरल दिखेगा ये उसे मानेंगे, जो इन्हें मानेगा ये उसे see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/09/blog-post.html


 


   

  

                   

साईंयों ने मुझे कल धमकाया !

दो.  साईं बालों ने हमें धमकाया कई बार ।

      कल चेतावनी दे गए मुझे आखिरी बार ॥

दो. कहा सुधरने के लिए धन ले ले नादान । 

    साईं निंदा बंद कर यदि  तुझको प्रिय प्रान ॥ 

दो.द्रुपदसुता के कारन धाए द्वारिका नाथ । 

     गोपिन्ह की रक्षा करी ते कृष्ण हमारे साथ ॥ 

दो. जब चाहो तब मार दो यदि तुमको संतोष । 

     किन्तु हमें भी बल बड़ा हनुमत गदा भरोस ॥ 

दो. जो करना हो कीजिए किन्तु न जाना भूल ।  

      सबकी रक्षा के लिए शिव जी रखें त्रिशूल ॥ 

दो. माँ दुर्गा की कृपा से मैं हूँ नहीं अनाथ ।

     अष्ट भुजी माता मेरी सदा हमारे साथ ॥ 

सब देवी तथा सब देव गुरु शुचि संत कृपा 'कविशेष' पे ताता ।

 पूर्वज पुण्य हैं 'शेष' के शीश 'करपात्री' कृपा का प्रसाद हूँ भ्राता ॥ 

धर्म पे प्राण न्योछावर हों सौभाग्य भी ऐसा कहाँ मिल पाता । 

रघुनाथ के हाथ कि छाँह जहाँ तहाँ काह बिगारि सकैगो विधाता ॥ 

दो. राम कृष्ण शिव दुर्गा सुमिरौं प्रभु हनुमान ।

    साईं की औकात क्या वो कैसे भगवान ?

                निवेदक -डॉ.शेष नारायण वाजपेयी


Sunday, 21 September 2014

महिला शक्ति संगठन के सदस्यों की प्रशंसनीय पहल -"लड़के लड़कियों पर समान कार्यवाही"

" महिला शक्ति संगठन के सदस्यों का सही दिशा में देर से उठाया गया साहसिक कदम इससे रुकेंगे बलात्कार "

      पार्क में लड़कों संग बैठने पर लड़कियों को दी गई सजा ग्रेटर नोएडा के सिटी पार्क में महिला शक्ति संगठन के सदस्यों ने खुलेआम दिखाई दबंगई।-अमर उजाला 


इस विषय में हमारे इस लेख को पढ़ें -

लड़के लड़कियों की आपसी मित्रता में धोखा तो मिलता ही है अभी हो या आगे कम हो या ज्यादा ! धोखे बाज केवल पुरुष ही नहीं होते लड़कियाँ भी होती हैं फिर कानून के नाम पर प्रताड़ित केवल पुरुष ही क्यों किए जाते हैं ?मित्र की परीक्षा मुसीबत में होती है किन्तु आज की मित्रता मुशीबत तक चलती कहाँ है !उसकेsee more....http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/06/blog-post_10.html


मुशलमानों को राष्ट्र भक्त बता देने में बुराई क्या है ?मोदी जी का ऐसा मानना अपराध है क्या ?

    लवजिहादी  और आतंकवादी शब्द मुशलमान शब्द के पर्यायवाची शब्द तो नहीं ही हैं फिर मुशलमानों को राष्ट्र भक्त मानने में बुराई क्या है ?

    मोदी जी मुशलमानों को राष्ट्र भक्त भी बताते हैं और उनके विरुद्ध लव जिहाद को मुद्दा बनवाकर नफरत भी फैला रहे हैं -मायावती -IBN -7 

   किन्तु मायावती जी ये बात मोदी जी की यदि आपकी समझ में नहीं आ रही है तो इसमें मोदी जी का क्या दोष ! मोदी जी ने मुशलमानों को राष्ट्र भक्त माना है किन्तु लवजिहाद है आतंकवाद है इसका विरोध करने के लिए तो मुशलमान भी मोदी जी के साथ हैं आपको ऐसा क्यों लगता है कि  लवजिहादी  और आतंकवादी दोनों मुशलमान शब्द के ही पर्यायवाची शब्द हैं मोदी जी ने मुशलमानों को राष्ट्र भक्त माना है न कि लवजिहादियों या आतंकवादियों को उनसे तो देश का कानून स्वयं निपटेगा किन्तु भले मुशलमानों को शांति पूर्वक जीने का हक़ होना चाहिए उसी का एहसास मोदी जी उन्हें करवाना चाह रहे हैं इसमें बुरा क्या है ?

      मायावती जी !ये सब कुछ पढ़ना समझना तो आपको ही पड़ेगा अन्यथा  विगत चुनावों में क्यों होती आपकी पार्टी की दुर्दशा !जनता ने सबकी बात मानी सबपर भरोसा किया किंतु बसपा पर भरोसा नहीं किया क्योंकि जनता को पता है कि ये झूठी पार्टी है  कभी दलितों को कभी मुशलमानों को केवल डरवाकर ही राजनीति करना जानती है सवर्णों का हौआ दलितों को और हिन्दुओं का मुस्लिमों को दिखा दिखा कर वोट माँगा  करती हैं आप !आपका ये झूठ जनता आखिर कब तक सहे !इसीलिए सालभर पुरानी आम आदमी पार्टी का भरोसा तो जनता ने कर लिया किन्तु बसपा का भरोसा नहीं किया और इतनी पुरानी पार्टी को वो भी देश के सबसे बड़े प्रदेश की सत्ता सँभाल चुकने  वाली एवं बहुसंख्यक दलितों की हितैषी होने का दम्भ भरने वाली पार्टी इन चुनावों में किसी के द्वारा नहीं अपनायी गई सबने दुदकार दिया किसी ने मुख नहीं लगाया यहाँ तक कि दलित बंधुओं ने भी नहीं !इसलिए मायावती जी अब दलितों  और मुस्लिमों को डरा धमका कर वोट माँगने की आदत छोड़ दीजिए और बदल दीजिए अपनी पार्टी का चाल चरित्र और चेहरा !वैसे भी जब तक मोदी जी जनता का विश्वास जीत पाने में सफल हैं तब तक आपके वश  का कुछ नहीं है !


Saturday, 20 September 2014

साईं का ईसाई धर्म से भी कोई सम्बन्ध था क्या ? एक बुजुर्ग फादर ने खोले कुछ रहस्य !! और बताईं कुछ नई बातें !!!

  तीन बार साईं साईं कहो तो दो बार 'ईसा''ईसा'शब्द निकलता है  आखिर क्यों ?सा'ईंसा''ईंसा' ईं ! साईं साईं बार बार कहो  तो 'ईसा' 'ईसा' लगातार निकलता है ये साईं आखिर थे कौन ?और इनका नाम साईं रखा किसने !

     बंधुओ! साईं का जन्म कहाँ हुआ था ,ये किस धर्म को मानने वाले थे और यदि किसी धर्म को मानने वाले थे तो क्या उस धर्म के तीर्थ स्थलों में जाते थे! उसके धर्माचार्यों से मिलते थे! उसके धर्म ग्रंथों को पढ़ते थे! उनका उपदेश करते थे,इनका नाम साईं क्यों और किसने रखा, इतने कम समय में इनके प्रचारक इतने अधिक कैसे हो गए ! कैसे लुटाया जाने लगा इनपर अनाप सनाप पैसा!और जब इनसे जुड़े ही गरीब लोग थे उन्हीं के बीच ये काम करते थे तो उन गरीबों के पास साईं को मालामाल करने के लिए धन आता आखिर कहाँ से था ?

   आखिर पूरे देश के सनातन धर्म मंदिरों में साईं की प्रतिमा घुसेड़ देने की इतनी जल्दी इन्हें क्यों और किसे है साईं के प्रचार प्रसार में आखिर क्यों बहाया जा रहा है इतना धन ! साईं को भगवान बनाने की ही योजना पर क्यों बहाया जा रहा है पानी की तरह पैसा ! इनकी मजबूरी ऐसी आखिर क्या है ,साईं को घर घर गाँव गाँव फैलाना जरूरी आखिर क्यों है ?जब इनके पास इतना पैसा है तब तो ये अलग भी बनवा सकते थे साईं के मंदिर किन्तु सनातन धर्म के मंदिरों की मर्यादा को छिन्न भिन्न करने के पीछे इनका लक्ष्य आखिर क्या है सनातन धर्म के मंदिरों में सनातन धर्म शास्त्रों के अनुशार बनी प्राचीन परंपराओं के पालन में साईंयों के द्वारा व्यवधान आखिर क्यों पैदा किया जा रहा है, कहाँ से आ रहा है साईं मंदिरों में  चढ़ावा नाम का इतना चंदा ?साईं जब सभी धर्मों को मानते थे तो सभी धर्म साईं को क्यों नहीं मानते हैं सनातन धर्म से साईं का ऐसा क्या लगाव था जो कि सनातन धर्म पर ही आज थोपे जा रहे हैं साईं,आखिर साईं नाम की शरारत का बोझ सनातन धर्म ही अकेले क्यों ढोवे ?

   ईसाई धर्म से इनका कोई विशेष सम्बन्ध था क्या ?कहीं ये वास्तव में ईसाई धर्म के प्रचारक ही तो नहीं थे पिछले समय आजादी के आंदोलन को सफल बनाने में  धर्म एवं धर्माचार्यों की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी और उन लोगों को खदेड़ कर देश को स्वतन्त्र कराने में इसी सनातन धर्म के द्वारा लोगों को संगठित करने में विशेष  सफलता मिली थी कहीं उसी से भयभीत होकर ईसाई धर्म प्रचारकों के द्वारा इस साईं धर्म की स्थापना तो नहीं की गई है जिससे सनातन धर्मस्थलों को नष्ट भ्रष्ट करके वहाँ केवल साईं का बोलबाला हो, वहाँ साईं का गुणगान करते हुए लाउड स्पीकर ही बजाए जाएँ और उन सनातन मंदिरों की पहचान साईं के नाम से बनाई जाए!

    सनातन देवी देवताओं की उपेक्षा करते करते या उनका कद छोटा करते करते उनका आस्तित्व ही समाप्त कर दिया जाए !यदि ऐसा न होता तो इनका स्थान शिर्डी ही बना रहता जिसे जाना होता वो वहीँ शिर्डी ही चला जाता किन्तु साईं के प्रचार प्रसार की जल्दबाजी ,एवं उसके प्रचार प्रसार के लिए लुटाया जा रहा पैसा एवं चढ़ावा के नाम पर जुटाया जा रहा चंदा ये  सब  कुछ किसी विधर्मी की किसी अप्रिय योजना का कहीं हिस्सा तो नहीं है ! 

     आज दिल्ली रेलवे स्टेशन गया था वापस मेट्रो से आ रहा था तो हमारे पास ही कोई बुजुर्ग फादर (ईसाई धर्म प्रचारक) बैठे थे हमारा आपस में एक दूसरे से परिचय हुआ जब उन्हें पता लगा कि मैं लेखक हूँ तो उन्होंने कई सामाजिक ,राजनैतिक और शैक्षणिक आदि सार गर्भित विषय उठाए चर्चा चलती रही बाद में बात जब साईं पर आई तो उन्होंने कहा कि साईं पर लोग बेकार में शोर मचा रहे हैं वस्तुतः साईं ईसाई धर्म प्रचारक थे, साईं का जन्म भले ही किसी मुस्लिम परिवार में हुआ हो किन्तु वे वस्तुतः ईसाई धर्म प्रचारक ही थे इसीलिए इन्होंने देश की परतंत्रता के समय अंग्रेजों के विरुद्ध कभी कोई आवाज नहीं उठाई और न ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का कभी किसी प्रकार से कोई साथ ही दिया अन्यथा जो इतना सिद्ध व्यक्ति होता तो देश के लिए कुछ कर्तव्य तो उसका भी बनता था किन्तु आजादी के आंदोलन में उनके किसी प्रकार के सहयोग के प्रमाणित कोई साक्ष्य नहीं मिलते हैं आखिर क्यों ?

      भारत की आजादी की लड़ाई में सनातन धर्म से जुड़े लोगों ने सनातन धर्मी समाज को जब धार्मिक दृष्टि से संगठित करना प्रारम्भ कर दिया था  उस समय इसी की काट के लिए ईसाई धर्म प्रचारकों को सनातनी समाज को अपने पक्ष में संगठित करने का काम सौंपा गया था इनका काम था कि भारतीय समाज में प्रचलित समाज के सभी वर्गों को अपने साथ जोड़ें अपने आचरणों सेवा एवं सहयोग से उन्हें अपनी ओर प्रभावित करें और उन्हें साईं साईं कहना सिखावें क्योंकि तीन बार  साईं कहो तो दो बार 'ईसा 'निकलता है और बार बार साईं कहो तो 'ईसा' 'ईसा' ही निकलता है वस्तुतः साईं किसी व्यक्ति का नाम नहीं था शिरडी वालों का नाम भी साईं नहीं था उनका नाम कुछ और ही रहा होगा किन्तु उनमें से किसी के व्यक्तिगत नाम और पते का प्रचार करना अलाउड नहीं था हर किसी को अपने विषय की जानकारी गुप्त रखनी होती थी इन्हें सेवा कार्यों के लिए अक्सर गरीब जनता के समूह चुनने होते थे और गरीबों एवं अशिक्षितों को ही अपने साथ जोड़ना होता था । ये सच है और सबको पता भी है कि इनका वास्तविक नाम साईँ बाबा नहीं था और इनका वास्तविक नाम क्या था ये कभी किसी को बताते भी नहीं थे इनका धर्म क्या था वो भी कभी किसी को नहीं बताते थे चूँकि इन्हें ग़रीबों के बीच छिपकर ईसाई धर्म का प्रचार करना होता था ये चमत्कार करने के नाम पर लोगों की आवश्यकता की चीजें लोगों को बाँटा  करते थे जिन्हें पाकर गरीब लोग इन्हें अपना मसीहा  मानने लगे थे लोग पूछते थे कि बाबा आपके पास ये सामान कहाँ से आता है अर्थात कौन दे जाता है तो वे"सबका मालिक एक"जैसा कुछ कहकर किसी अज्ञात सत्ता की ओर इशारा कर देते थे यह सब रहस्यात्मक देख सुनकर भोले भाले लोग उन्हें धीरे धीरे सिद्ध साधू और भगवान आदि जिसे जो ठीक लगा सो कहने लगे उन्होंने अपने ऊपर किसी धर्म का लेवल नहीं लगने दिया अर्थात रहते मस्जिद में थे किन्तु उसे कहते द्वारका माई थे इससे हिन्दू मुशलमान दोनों ग्रुप खुश रहते थे इसी प्रकार से हिन्दुओं को पटाने के लिए  कुछ देवी देवताओं की मूर्तियाँ रख लेते थे और मुस्लिमों के लिए मजार बना रखी थी सभी वर्ग के लोग इनके यहाँ आते थे ये उन्हें अपने सेवा कार्यों से प्रभावित किया करते थे !ज्यादा किसी से कुछ बोलते नहीं थे किसी धर्म के धर्म स्थान में  जाते नहीं थे किसी धर्म ग्रन्थ को पढ़ते नहीं थे किसी धार्मिक महापुरुष से मिलते नहीं थे ये चुप चाप ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार में लगे रहते थे । 

     गरीब बस्तियों में ग़रीबों को प्रभावित करने के लिए अपने रहन सहन आचार व्यवहार से सबको खुश रखना ही होता है ग्रामीण गरीबों में बहुत लोग चिलम पीते थे तो उन्हें खुश करने के लिए बाबा चिलम भी पीने लगे धीरे धीरे लोगों को विश्वास में लेकर उन्हीं बाबा को समाज के किसी व्यक्ति के मुख से साईं शब्द पहली बार कहलाया गया अब तो उनके प्रति समर्पित सभी लोग उन्हें साईं साईं कहने लगे उससे सा'ईंसा''ईंसा' ईं  निकलने लगा ! किन्तु इसके बारे में वे कभी किसी को कुछ बताते  नहीं  थे ,इसी प्रकार से ये गरीब बस्तियों में गरीब लोगों के साथ जुड़कर उनसे हिल मिलकर पहले उनका मन जीतते थे इसके बाद उन्हें अपना बना लिया करते  थे !  इसी प्रकार से जगह जगह वेष बदल बदल कर ईसाई धर्म के अनेकों प्रचारक गरीब बस्तियों में या आदि वासी क्षेत्रों में ईसाई धर्म का विस्तार करने में सफल हुए हैं आज भी सेवाकार्य उसी प्रकार से चलाए जा रहे हैं !

     उन वृद्ध फादर ने कहा कि इसी प्रकार के धर्म प्रचार प्रसार के काम से अभी मैं उत्तर प्रदेश गया था वहीँ से आ रहा हूँ उन्होंने बताया कि जौनपुर जिले में , केराकत तहसील के - डोभी के भुङली गाँव में और गाजीपुर जिले मे सैदपुर तहसील के मौधा नामक गाँव  से शुरू होकर जौनपुर जिले तक अभी भी इसी प्रकार से बड़े जोर शोर से सेवाकार्यों के माध्यम से ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार अभियान बड़ी तेजी से चलाया जा रहा है हमें भी वहीँ पर बोलाया गया था वहीँ से अभी मैं आ रहूँ वहाँ काम संतोष जनक ढंग से चलाया जा रहा है ! हम लोग सेवा कार्यों से जनता का मन जीतते हैं जबरदस्ती नहीं सेवा करना हिन्दुओं के बश का नहीं है धर्म के नाम पर हिन्दू लोग बेकार का केवल शोर मचाते हैं  साईं ने गरीबों की सेवा की और उनका सभी प्रकार से सहयोग किया तब लोग उन्हें मानने लगे थे ऐसे ही कोई किसी को नहीं मानने लगता है । 

     आज हिन्दू लोग साईं को लेकर पागल हो रहे हैं आखिर ये भी तो देखना चाहिए कि ईसाई धर्म ने गरीब भारतीयों की कितनी मदद की है कितने सेवा प्रकल्प चला रखे हैं मदर टेरेसा किसी साईं बाबा से कम थीं क्या अभी भी इस देश में हजारों लोग भिन्न भिन्न क्षेत्रों में अलग अलग प्रकार से अभियान चलाए हुए हैं किसी भगवान ने लोगों की कोई मदद नहीं की है किन्तु यदि ईसा के उपासक सेवा कार्यों में लगे हैं तो उनकी पूजा प्रार्थना में क्या बुराई है ?

    बंधुओ !मैंने यह सब धैर्य पूर्वक सुना इसके बाद बिना किसी पूर्वाग्रह के आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ किन्तु यदि साईं का सच वास्तव में ईसा ही है तो कितना दुखद है और सनातन धर्मियों के साथ कितना बड़ा विश्वास घात है । दूसरी बात जो हिन्दू संगठन साईं के विषय में आखें बंद किए हुए बैठे हैं उन्हें अब सोच लेना चाहिए कि अब उनके हाथ से बहुत कुछ निकल  चुका है !वैसे भी यदि फादर की ये बातें सही मान ही ली जाएँ जिन्हें सत्यापित करने लायक मेरे पास कुछ नहीं है फिर भी यदि ये कुछ प्रतिशत भी  सच है तो  साईं  नाम का यह सनातन धर्मियों पर बड़ा धार्मिक हमला है जिससे समय रहते सचेत होना बहुत जरूरी है !और इन बातों पर गंभीरता पूर्वक विचार किया जाना चाहिए । 

   


Friday, 19 September 2014

साईं जीवन भर मस्जिद में रहे मरने के बाद मंदिरों  पर मधे जा

अगर साईं कि सेवा में ही मेवा मिल रही होती
   तो फटीचर साईं बुड्ढे के न लड्डू बेचते होते !
किसी को गर्ज होती तो वो ले आता चढ़ा लेता
मुनाफा लड्डुओं का ये चढ़ावा क्यों बताते हैं ?
                   लेखक - डॉ.शेष नारायण वाजपेयी


सुना है साईं पानी से जला देते थे दीपक भी
बिना घी तेल के केवल जलाकर रुई की बाती ।
अगर पेट्रोल मिल जाता तो दुनियाँ ही जला देते
न सुना है देवता कोई हुआ हो इतना उत्पाती ॥
           - लेखक - डॉ.शेष नारायण वाजपेयी


कहा है कोर्ट में जाकर कि देते लोग हैं गाली
अरे !साईं के अनुरक्तो बजावे कोई क्यों ताली !
मचाया मंदिरों में जो घिनाफन साईं बुड्ढे ने
उसे जो देख लेता है हृदय में हूक उठती है !!
- लेखक - डॉ.शेष नारायण वाजपेयी




जो अखंडकोटि ब्रह्मांड नायक साईं को कहते
वो सीताराम राधेश्याम शिव को मानते क्या हैं?
पराम्बा भगवती दुर्गा तथा वो वीर बजरंगी
को ध्याते राम भक्तों की भुजाएँ फड़क उठती हैं॥
- लेखक - डॉ.शेष नारायण वाजपेयी

Wednesday, 17 September 2014

क्या विद्वत्तामें ये सारे दोष और दुर्गुण ही हैं तथा मूर्खता में सारे गुण ही गुण हैं ?

  अज्ञानियों का ज्ञान मूर्खता प्रधान समाज ही आत्मज्ञानी ,ब्रह्मज्ञानी भक्त आदि बन सकता है !

     कोई कुछ पूछ न दे इस भय से कुछ अज्ञानी  लोग धर्म के नाम पर अशिक्षा को इस तरह से प्रचारित कर रहे हैं !जैसे वेदों शास्त्रों पुराणों में गालियाँ लिख कर रखी गई हों ऐसे इनसे समाज को दूर रहने की सलाह दिया करते हैं उन्हें लगता है कि यदि ये लोग पढ़ लेंगे तो हमसे प्रश्न पूछेंगे तो हमें भी पढ़ना पड़ेगा इससे अच्छा यही है कि वेदों शास्त्रों पुराणों से जनता को डरवाते ही रहो !इन्हें ऐसे प्रस्तुत करते हैं जैसे इन  वेदों शास्त्रों पुराणों में गालियाँ लिख कर रखी गई हों ।। इस लिए ऐसे लोग समाज को समझाते हैं कि -

  दो. पोथी पढ़ पढ़ जुग मुआ, पंडित भया न कोय।

      ढाई आँखर प्रेम का   पढ़ै  सो पण्डित होय।।

       किन्तु कभी ये लोग इस बात का विचार नहीं करते हैं कि यदि कबीर दास जी इस भावना से स्वयं ही सहमत होते तो वे खुद पोथी लिखकर क्यों जाते !इसका सीधा सा मतलब है कि कबीरदास जी स्वयं ही इस लाइन से सहमत नहीं थे किन्तु अशिक्षितों ने इस लाइन को अपने संप्रदाय का महामंत्र मान लिया है और दूसरों के दिमाग में भी यही कूड़ा करकट डालने का प्रयास कर रहे हैं अरे इन्हें सोचना चाहिए कि जो पढ़ सकता है उसे तो पढ़ना चाहिए अन्यथा ढाई अक्षर प्रेम का पढ़ कर खुश फहमी पालने वाले लोग अगले जन्म में आकर पढ़ेंगे !

दो.  पोथी देखे डरत जे मूरख प्रेम अधीर ।

     तिन्हैं सहारा देन को अस लिखि गए कबीर ॥

         दो. ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े जो पंडित होत ।

     तौ कबीर क्यों लिखि गए पोथी कठिन बहोत ॥

     आज कुछ बिना पढ़े लिखे लोग धार्मिक धंधे की तलाश में समाज को यह समझाया करते हैं कि भक्ति अध्यात्म आदि के लिए शिक्षा की आवश्यकता बिलकुल नहीं होती है तर्क वितर्क में बिलकुल नहीं जाना चाहिए जैसा मैं कहूँ बिलकुल वैसा करते जाना चाहिए और इसके समर्थन में ध्रुव प्रह्लाद मीरा रसखानादि के ढेर सारे उदाहरण खींच खाँच कर पकड़ लाते हैं अरे ! उन जन्म जन्मान्तर के शास्त्रीय साधकों को अपनी मूर्खता के समकक्ष मान कर बड़ा खुश हुआ करते हैं गोपिकाओं को भी अपनी मूर्खता की श्रेणी में  सम्मिलित कर लिया करते हैं अरे वो वेद की ऋचाएँ थीं श्री रामावतार में कोल भील आदि सब देवता थे उनसे किसी अज्ञानी की तुलना कैसे की जा सकती है ?   


   ब्रह्मविद्या और आत्मज्ञान जैसे बड़े बड़े शब्द प्रयोग करना तो आसान है किन्तु यहाँ तक पहुँचने का रास्ता वेदों शास्त्रों पुराणों से ही होकर जाता है यह बात भी समझनी चाहिए और यदि ये सब कुछ वेदों शास्त्रों पुराणों को छुवे बिना ही हो जाएगा तो कभी कल्पना करनी चाहिए कि आखिर इनमें और लिखा क्या होगा !अंतर इतना अवश्य हो सकता है कि इन महान ग्रंथों का अध्ययन स्वयं न किया जा सका हो किन्तु इनके  सार तत्व का  उपदेश किसी गुरू के द्वारा कर दिया गया होगा , इसका ये कतई मतलब नहीं है वेदों शास्त्रों पुराणोंकी उपेक्षा करके कोई सर्वज्ञ हो गया । "आत्मज्ञान" डिग्रियों, प्रमाणपत्रों आदि का मोहताज हो न हो किन्तु वेदों शास्त्रों पुराणों से प्रकट ज्ञान का मोहताज जरूर है जहाँ तक बात भक्ति की है भक्ति क्या है इसे समझने का आधार भी कुछ तो होना चाहिए यहाँ तक भक्ति जन्य अनुभव भी शास्त्र प्रक्षालित होना चाहिए अन्यथा मन गढंत बातें बता कर अज्ञानी लोग समाज को बरगलाया करते हैं और अपने अज्ञान को चतुराई पूर्वक छिपाने के लिए वेदों शास्त्रों पुराणों को ऐसे किनारे लगाया करते हैं जैसे उनमें गालियाँ लिख कर रखी गई हों । अपने अज्ञान के मंडन की अजीब सी पद्धति है कि सुनी सुनाई बातों को उद्धृत करते हुए कुछ बड़े बड़े नाम लेकर यह सिद्ध करना कि मूर्खता  विद्वत्ता की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि उसी मूर्खता में ब्रह्मविद्या आत्मज्ञान और भक्ति जैसे महत्वपूर्ण सारे तत्व विद्यमान  हैं और विद्वत्ता में ये सारे दोष दुर्गुण हैं।अरे! कभी किसी आत्मज्ञानी,ब्रह्मविद्या वाले या अन्य किसी भक्त से पूछा तो गया होता कि शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान की आवश्यकता आपको पड़ी या नहीं ?केवल कपोल  कल्पित बातों बयानों के आधार पर अज्ञानियों की अयोग्यता को महिमा मंडित नहीं किया जा सकता !

    हर कोई अपनी अपनी शिक्षा के हिसाब से ही समझ सकता है मैं हर किसी को कैसे समझा सकता हूँ जिसकी शास्त्रीय शिक्षा होती है उसे समझाना आसान होता है और जो पढ़ा लिखा कुछ और हो किन्तु अहंकारवश भक्ति के क्षेत्र में भी पैर फँसा कर रखना चाहता हो और फिर चाहे कि पढ़े लिखे लोग उसकी आधार हीन बातों को प्रेम और भक्ति के क्षेत्र में भी महत्त्व दें ऐसा कैसे संभव है ! शिक्षितों को भी इतना हक़ तो है कि वो अपने शैक्षणिक स्तर के लोगों से ही बात करें अन्यथा जिसे शास्त्रीय शिक्षा का स्वाद ही न पता हो ऐसा ज्ञान दुर्बल कोई व्यक्ति स्वाभाविक है कि अशिक्षा को  ही महिमा मंडित करेगा इसमें मुझे कोई आपत्ति भी इसलिए नहीं है क्योंकि पहले भी कई बार मुझे ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ चुका है मैंने  हर किसी से उसकी शास्त्रीय शिक्षा पूछी जो शिक्षित निकले उन्हें तो समझ में आ गया किन्तु जिनमें शास्त्रीय योग्यता नहीं थी वो सुनी सुनाई बातें बोलते रहे जिनका मेरे पास कोई जवाब नहीं होता है यदि व्यर्थ में ही चोंच लड़ाना हो तो क्या आवश्यकता है पढने लिखने की ! 

     अशिक्षत लोग  प्रेम और भक्ति के क्षेत्र में ही क्यों किसी भी क्षेत्र में वो हाथपैर तो मार ही सकते है क्या झोला छाप डाक्टर नहीं होते और वो भी ऐसा ही दम्भ भरते हैं ,कोई राजमिस्त्री यदि किसी इंजीनियर को महामूर्ख कहने लगे तो कह सकता है उसे भी भगवान ने मुख दिया है किन्तु इंजीनियर के आस्तित्व को वो चुनौती कैसे दे सकता है ?खैर ,जिसको जैसा ठीक लगे वो वैसा करे इससे अधिक समय मैं बर्बाद नहीं कर सकता

!

 

संन्यास या उपहास ये कैसा संन्यास ?

               ऐसे संन्यास का क्या विश्वास !

    संन्यास का भाव यह था कि माया मोह छोड़कर वैराग्य पथ पर दृढ़ निश्चयी होकर आगे बढ़ना !किन्तु आज तो संन्यास की हाइटेक और भी बड़ी सारी बरायटियां  मार्केट में आ गई हैं आप कैसे भी रहते हुए और कुछ भी करते हुए अपने को संन्यासी कह सकते हैं अब तो आप हर अच्छा बुरा काम संन्यासी होकर भी कर सकते हैं केवल उसके पीछे शुद्ध एवं स्वदेशी आदि लिखना पड़ेगा !जनता बश इतना ही पढ़ती है फिर तो कूद पड़ती है बहाव में , बाकी का कौन क्या देखता है और कौन पढ़ता है ।जब एक बुड्ढा अपना भगवान बन कर मंदिरों में बैठकर अपने को पुजवा सकता है फिर भी उसका पक्ष लेने वाले इसी दुनियाँ में उपस्थित हैं धिक्कार है ऐसे शास्त्र द्रोहियों को !अब कैसे उद्धार होगा सनातन धर्म का !अगर शास्त्रीय संत ऐसे पाखंडों का विरोध करते हैं तो उन पापियों से ज्यादा अपने अंदर का विरोध झेलना पड़ता है उन्हें !आखिर क्या किया जाए कितना पाखण्ड हो गया है आज धर्म में ?

   बंधुओ ! आज संन्यासी कितना भी बड़ा व्यापार आराम से कर सकते हैं वह शुद्ध के नाम पर कुछ भी बेच सकते हैं समाज सुधार के नाम पर कुछ भी कर सकते हैं , जैसे - कोई आदमी जो कुछ पाना चाहता है या पाकर जहाँ ठहरने लगता है मतलब साफ होता है कि इसका लक्ष्य यही था और अपने इसी लक्ष्य को पाने के लिए ही वह अभी तक सारी उछलकूद नाटक नौटंकी आदि करता रहा है इसलिए किसी व्यक्ति की मानसिकता का मूल्यांकन करने के लिए उसके ठहराव की प्रतीक्षा एवं उसका अध्ययन किया जाना चाहिए !

    एक किसान के बेटे का मन पढ़ने लिखने में नहीं लगता था तो घर वाले उसे भारी भरकम काम बताया करते थे इससे तंग आकर उसने सोचा कि कोई व्यापार करना चाहिए किन्तु व्यापार के लिए धन की आवश्यकता होती है अब धन कहाँ से मिले घर में तो था नहीं और होता भी तो ऐसे लोगों को कौन दे देता धन !फिर उसने विचार किया किसी से उधार ले लें किन्तु देगा कौन और क्यों देगा और यदि कोई दे भी दे तो उसका ब्याज कहाँ से देंगे और उसे लौटाएँगे कब ?और यदि व्यापार में घाटा हो गया तब तो और ख़राब बात होगी लोग मारेंगे पीटेंगे पैसे माँगेंगे और फिर कानून के हवाले कर देंगे ! 

      फिर खुराफाती दिमाग में एक आइडिया आया कि धन इकट्ठा करने के लिए संन्यास ही क्यों न ले लिया जाए ! जहाँ माँगने में लज्जा नहीं देने की चिंता नहीं न कोई ब्याज न बट्टा जब चाहो तब जितना चाहो उतना माँगते रहो व्यापार बढ़ाते जाओ,योग का नारा दो भोग का सहारा लो , योग का आश्रम बनाओ भोग की सुख सुविधाएँ जुटाओ व्यापार बढ़ाते जाओ कितना भी धन इकट्ठा कर लो कौन पूछता है । ये जुगत काम आई और बाबा जी व्यापारी हो गए ! संन्यासी वेष में होने के कारण लोगों ने उनकी ईमानदारी पर शक नहीं किया और बाबा जी उसका फायदा उठाते रहे और निकले थे संन्यासी बाना धरके और बाजार के व्यापारियों से माँग माँग कर व्यापार किया और फिर उन्हीं को चुनौती देने लगे उन्हीं के सौदा सामान को अशुद्ध बताने और अपना शुद्ध बता बता बता कर बेचने लगे सरकार ने आँखें दिखाईं और खोलने चाहे घपले घोटाले तो सरकार को ही शुद्ध करने का नारा देने लगे ,धीरे धीरे बाबा जी की शुद्धि की ख्याति इतनी बढ़ी कि बाबा जी एक शुद्ध सरकार बनाने का ढोल पीटने लगे। 

      बंधुओ ! सनातन धर्म में संन्यास की यह दुर्दशा और इस पर भी कोई कुछ बोले तो ऐसे व्यापारियों के अनुयायी तंग करते हैं और न बोले तो धर्म की जड़ें दिखने लगती हैं किया आखिर क्या जाए !क्या धर्म को अधार्मिकों या धर्म व्यापारियों के सहारे ही छोड़ दिया जाए ?

     यदि संन्यास का मतलब वास्तव में सब  कुछ छोड़ देना ही होता है तो कोई व्यक्ति सबकुछ छोड़ने का निश्चय करके घर से निकले और विभिन्न मठ मंदिरों में जाए हिमालय तक धक्के खाता फिरे और फिर जब कहीं मन न लगे तो राजनीति करने लगे !ये सब घालमेल कैसा ?संन्यास और राजनीति दोनों  परस्पर विरोधी ध्रुव हैं फिर किसी संन्यासी की मंजिल संन्यास के बाद सीधे राजनीति कैसे हो सकती है बीच में कहीं कोई पड़ाव नहीं !आखिर ऐसे लोगों को संन्यास जैसा पवित्र पद पसंद क्यों नहीं आता है और राजनीति में रमने लगता है मन फिर कैसा संन्यास ?

 

          

ये कैसा संत सम्मलेन ? न कोई श्लोक न कोई प्रमाण शेरो शायरी वाले संत ऊलजुलूल बयान !

अशास्त्रीय  साईँ पूजा का समर्थन  शास्त्रीय संत कैसे कर सकते हैं !

   चूँकि  साईं  पूजा का प्रमाण धर्म शास्त्रों में नहीं मिलता है अतः शास्त्र प्रमाणित न होने के कारण साईं पूजा पूर्ण रूप से अशास्त्रीय है और शास्त्र मान्यताओं के विरुद्ध कोई कार्य शास्त्रीय संत कैसे और किस लोभ में स्वीकार कर लेंगे । 

      सभी साधू संतों को भी कुछ पढ़ा लिखा तो होना ही चाहिए , जिन बाबाओं में कम पढ़े लिखे होने के कारण शास्त्रीय समझ नहीं होती  है, या जिन्हें श्री राम और श्री कृष्ण तथा श्री शिव ,श्री दुर्गा ,श्री गणेश जी आदि देवी देवताओं के विषय में शास्त्रीय जानकारी ही नहीं है और इनकी कृपा का एहसास भी नहीं है इनके प्रति श्रद्धा विश्वास नहीं है तथा शिक्षा साधना एवं तपस्या आदि न होने के कारण जिन्हें साईं एवं देवी देवताओं में अंतर नहीं पता है , अज्ञान और अशिक्षा के कारण जिन्हें प्राण प्रतिष्ठा की विधि का ज्ञान नहीं है ऐसे लोग साईंराम, कांशीराम जैसे आम मनुष्यों की मूर्तियों को और भगवानों की मूर्तियों को एक समान समझने लगते हैं जो गलत है । इसी प्रकार से गरीबत के कारण घर छोड़कर अर्थलाभ या लोभ की भावना से सधुअई करने वाले कुछ अकर्मण्य लोग साईंयों के धन दिखाते ही अपना मन बदल लेते हैं और श्री राम छोड़कर साईँराम साईँराम  करने लगते हैं धन के कारण सधुअई करने के कारण ऐसे लोग न श्री राम को मानते हैं और न ही साईँराम को ये तो जो धन दे उसी को भगवान मान लेते हैं ! ये तो सधुअई के नाम पर केवल तिलक लगाते हैं जो धन दे उसके नाम का तिलक लगा लेंगे । इसलिए ऐसे लोगों की ढुलमुल बातों को प्रमाण कैसे माना जा सकता है ? ऐसे लोग साईंं का समर्थन भी करने लगें तो क्या इनके कह देने मात्र से शास्त्रीय मर्यादाएँ छोड़  कैसे दी जाएँगी ? शास्त्रों का पालन हर संभव प्रयास करके किया जाएगा                                                                                     

     

 


      किसी नशेड़ी मनुष्य को पूजने से समाज तो नशेड़ी बनेगा ही  तथा श्री राम और श्री कृष्ण को पूजने से नशा मुक्त समाज का निर्माण होगा !
" धर्म के लिए साईं को नहीं नशे को ख़त्म करना जरूरी " -एक अखवार में प्रकाशित समाचार 
       किंतु नशे को समाप्त करने के लिए साईं जैसों की पूजा बंद करनी ही पड़ेगी , कोई गुड़  खाने वाला व्यक्ति किसी और को गुड़  खाने से कैसे रोक सकता है इसी प्रकार से साईं चिलम पीते थे तो साईंयों को चिलम पीने से कैसे रोका जा सकता है और चिलम पीने से  नशा तो होता ही होगा और नशे में आदमी कुछ भी कर सकता है इसलिए अपराध और भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने के लिए बंद करना होगा साईँ को पूजना अन्यथा इन चिलमियों की गिद्ध दृष्टि सनातन धर्म की  शास्त्रीय मान्यताओं को ध्वस्त करने पर लगी हुई है इसलिए यदि सनातन धर्म और समाज को बचाना है तो नशा और नशेड़ियों को तथा चिलम और चिलमियों का साथ करना छोड़ने का व्रत लेना होगा और बंद करना होगा साईं पत्थरों का पूजन ।


                     

Monday, 15 September 2014

मैं औरत हूं, इसलिए मेरे ब्रेस्ट तो होंगे ही, इसमें आपको क्या प्रॉब्लम है: दीपिका पादुकोण -zee news

   किन्तु   देवी !  बात कुछ होने या न होने की नहीं है बात दिखने या न दिखने की भी नहीं है बस बात तो केवल दिखाने और न दिखाने की है अपनी बातों से लोगों का ध्यान भटकाइए मत !जिसके पास जो है सब कोई सबकुछ  यदि दिखाने ही लगेगा फिर तो समाज उस तरफ चला जाएगा जिस तरफ जाने से रोकना है ! जहाँ तक बात 'मैं औरत हूं, इसलिए मेरे ब्रेस्ट तो होंगे ही," की है इसमें न किसी को शक है और न संदेह और न ही आपत्ति !और यदि किसी को हो भी तो सारा सभ्य समुदाय नारी समाज के सम्मान के लिए मर मिटने के लिए आज भी तैयार है किन्तु एक निवेदन नारी समाज से भी है कि कुछ आप भी सोचें कि आप में से कुछ लोगों को तो सुरक्षा मिल जाती है किन्तु आज बेचारी छोटी छोटी बच्चियों की जान पर भी बन आई है नर पिशाच उन्मत्त होकर घूम रहे हैं जब तक सरकार उन पर नियंत्रण  नहीं कर लेती तब तक हम सबको विशेष आत्म संयम पूर्वक बात व्यवहार करते हुए समाज का ताना बाना बना एवं बचाकर रखना  चाहिए !



गरबा कार्यक्रमों में मुस्लिमों को बिल्कुल नहीं आने देना चाहिए: प्रवीण तोगड़िया -zee news
    किन्तु  ये दोहरे मापदंड क्यों हैं तोगड़िया जी !अगर गरबा कार्यक्रमों में मुस्लिमों का जाना इतना ही गलत है तो साईं के नाम पर मंदिरों में अल्ला अकबर गाया  और गवाया जाना ठीक है क्या ? आखिर हिन्दू मुस्लिमों की एकता के प्रतीक बताए जा रहे साईं को हिन्दू धर्म पर बोझ क्यों बनने दिया जा रहा है !वो हिन्दू धर्म से इतनी अरुचि करते थे कि सारे जीवन एक मस्जिद में ही रहे न कि किसी मंदिर में !सारे जीवन चन्दन नहीं लगाया हिन्दुओं के धर्म ग्रन्थ नहीं पढ़े ,हिन्दुओं की वेष  भूूषा धारण नहीं की,हिन्दुओं के रीति रिवाज धारण नहीं किए ,शिर उस तरह से ढक कर रखा जैसे हिन्दू नहीं रहते हैं,माँस भोजन जैसा अपराध करने के बाद भी उन  साईं को देव मंदिरों में देवताओं के रूप में बैठाकर देवमंत्रों से देवपूजा विधि से उनकी पूजा किया जाना कितना लज्जास्पद है इसके बाद भी इस ज्वलंत विषय पर हिन्दू संगठनों का मौन रहना उससे अधिक लज्जास्पद है !यदि सनातन  मंदिरों में एक असनातन धर्मी को महिमा मंडित किया जा रहा है और हिन्दू नेता मौन हैं तो आप जैसे शब्द शूर आखिर सनातन धर्म के और किस काम आएँगे !

Sunday, 14 September 2014

लव जिहाद

र तुझसे शादी करले....और "शादी के बाद" तुझे पता चले के तेरा पति मुस्लिम है....
बोल, तेरे साथ धोखा हुआ है कि नहीं.....? तुझे कैसा लगेगा ...?
वो बोली "ये तो गलत है, धोखा है, Fraud है।"
फिर उस सहेली ने कुछ सवाल किये: "चल, लव जेहाद को छोड़....
तु Broad Minded है, Modern है, Secular है....और मान ले, तु एक मुस्लिम से शादी कर लेती है....Ok..?
(1) But क्या तू यह सहन कर पायेगी के तेरा पति तुझसे शादी के बाद और 3 बीवीयां लाये...?
क्यूंकि इस्लाम तो 4 शादी की इजाज़त देता है ना..!!
और सुन, मुस्लिम समाज में औरतों को अपने पति को तलाक देने का भी कोई अधिकार नहीं है, जबकि "वो" तुझे केवल 3 बार "तलाक तलाक तलाक" कहकर ही तलाक दे सकता है...!!
वो बोली "बिल्कुल नही मेरा पति सिर्फ मेरा होना चाहिए। यह तो सरासर मुस्लिम महिलाओं का शोषण....अत्याचार है।
(2) क्या तू चाहती है कि, तू हर साल गर्भवती हो ? और तुझे बच्चे पैदा करने वाली मशीन बना दिया जाये ?
वह बोली "मै.. और हर साल pregnent... हरगिज नहीं..."
(3) क्या तुझे यह पसंद आयेगा कि तेरा पति हफ्ते में सिर्फ जुम्मे (Friday) के दिन ही नहाये...और बाकी के दिनो मे सिर्फ इत्र लगा के घुमे?
"छी छी छी.......सिर्फ हफ्ते में एक दिन नहाये, तो उसे मैं अपने करीब भी ना आने दूं"
(4) क्य तुझे यह पसंद आयेगा की तेरे घर मे रोज किसी निर्दोष जानवर को मारके, काटके, उसका मांस मटन तुझे पकाना पडे....?
कभी कभी तो गाय भी मार के खाते उनके यहाँ...तो, क्या तू गाय खायेगी ?
वो बोली "बिल्कुल नही"
(5) रोज जींस पहन कर कोलेज आती है और शादी के बाद बुर्का पहनना पडे़, तो तू पहनेगी...?
वो बोली "ये तो औरतो को कैद करना जैसा हुआ !"
(6) तुझे पता है मुस्लिम औरत शादी के बाद नौकरी नहीं कर सकती, मौलवी का फतवा है....
और 90% मुस्लिम अपनी बीवी को बुरका के साथ घर की चार दीवारी मै कैद रखते है....चाहे उससे गर्मी में उनकी खाल जलती हो ।
वह बोली "यह कहां का न्याय है..? फिर मैंने जो पढाई की उसका कोई मेल ही नही रहेगा.... मै तो शादी के बाद भी जॉब करना चाहती हुं।
(7) और सुन, क्या तुझे यह पसंद आयेगा की तेरी बेटी का विवाह उसके चाचा, बुआ के बेटे के साथ हो.....?
वो बोली "चाचा और बुआ का लड़का तो भाई होता है...भाई के साथ शादी...?हरगिज नहीं..."
(8) क्या तु जानती है कि यह मुस्लिम शादी के पहले तो चिकने (Clean Shave) रहते है।
लेकिन 35 साल की उम्र के बाद ये दाढी रखते है...
तो क्या तुझे अच्छा लगेगा की तेरा पति बालों से भरा हुआ रीछ सा लगे ?
वो बोली "छी छी हरगिज नही"
(9) क्या तुझे पता है की मुस्लिम अपनी 10-12 साल की उम्र की लडकी को भी 50-55 साल के बुढ़े आदमी से शादी करवा देते हैं,....क्योकि उनके "अल्लाह मोहम्मद साहब" ने भी अपने दोस्त अबु बकर की 9 साल की बेटी आयशा से शादी की थी....इस्लाम मैं ये बुरा नहीं माना जाता।
वो चौंकी "क्या बात कर रहे हो...?"
चल अब बता कि क्या तुझे "लव जिहाद" का शिकार होना है ?
फिर वो बोली: "Sorry यारों, माना कि प्यार हो जाता है....लेकिन कोई अपने जेहाद (धर्म बढ़ाने की बड़ी योजना) के लिए प्यार जैसे पवित्र रिश्ते को भी बदनाम करे....और जिदंगी भर का दुख दे, तो यह मुझे स्वीकार नही,.....
शादी इन्सान के जीवन में बहुत महत्व रखती है शादी जैसा पवित्र रिश्ता तो बहुत सोच समझ कर करना चाहिए...
हमारे संस्कारों में तो शादी एक बार ही होती है बार बार नहीं....मैं तो समझ गई....
और अब मै मेरी और भी हिन्दू सहलियों को समझाऊगी.... Alert करुगी..... यह Msg Forward करुगी...."
सावधान: "लव जेहाद योजना" में बहुत सी हिन्दू लड़कियां को प्रेम के जाल में मुसलमान लड़के अपना हिन्दु नाम रख कर फँसा रहे है,...शादी कर रहे है । और फिर....भगवान मालिक ।
सही लगता है तो plz 2-4 को pForward करो....
और किसी हिन्दु बहन या बेटी की जिदंगी नरक बनने से बचाओ ।

Sunday, 7 September 2014

गंगा जी में साईं पत्थर कल प्रकट होने पर देवता बताए जाएँगे तब क्या होगा !

      आखिरकार सनातन धर्म के मंदिरों से उठा उठाकर नदियों में फेंके जाने लगे साईं पत्थर !
अथवा यूँ कह लिया जाए कि धोखे से सनातन धर्म मंदिरों में घुसे साईं निकाल बाहर किए जाने लगे मंदिरों से !     
       सनातन धर्म के जिम्मेदार लोगों की लापरवाही से सनातन धर्म एवं धर्म स्थलों के साथ कितना बड़ा खिलवाड़ हुआ कि एक अदना सा बुड्ढा सनातन धर्मियों का न केवल भगवान  बन बैठा अपितु सनातन धर्म के प्रतीक श्री राम कृष्ण शिव दुर्गा गणेश जैसे देवी देवताओं की बराबरी कर बैठा , यह भी स्वतंत्र  भारत में हुआ यह भी प्रेम पूर्वक हुआ सबके सामने हुआ ,और सनातन धर्मियों के जिम्मेदार लोगों के पूरे होश हवाश में हुआ आखिर अब तक कहाँ था ध्यान उन महापुरुषों का ! निस्संदेह चूक हुई है ,जरा से आलस्य से इतनी बड़ी दुर्घटना घटने जा रही थी सनातन धर्मियों के साथ ,जिसे श्रद्धेय शंकराचार्य जी की सजगता से रोका  जा सका !इसके लिए सनातनी समाज उनके इस पुरुषार्थ का अभिनन्दन करता है !
  
        गंगा जी में साईं पत्थर कल प्रकट होने पर देवता बताए जाएँगे तब क्या होगा !
          तब  इसके  साइड इफेक्ट और अधिक भयंकर होंगे !आज जो साईँ पत्थर मूर्ति के रूप में गंगा जी में फेंके जा रहे हैं कल इन पर बालू बैठ जाएगी और ये दब जाएँगे मिट्टी में ,इसके बाद इसकी क्या गारंटी कि ये दुबारा मिट्टी से निकलेंगे नहीं जब मिट्टी हटेगी और ये साईँ पत्थर  दिखेंगे तो साईंयों का जमघट फिर लगेगा और इसबात का दुष्प्रचार किया जाएगा कि साईं प्रकट हुए हैं तब वहीँ इनकी पूजा आरती होगी और वहीँ इनके मंदिर बनाए जाएँगे इस परिस्थिति में  समय ऐसा भी आ सकता है कि गंगा जी के किनारे देव मंदिर कम और साईं वृद्धाश्रम (मंदिर) अधिक दिखाई दें उसके विषय में भी आज ही सोचना होगा !

Thursday, 4 September 2014

साधू संत पंडे पुजारियों को भ्रष्ट मानकर साईं को पूजना ही एक मात्र विकल्प है क्या ?


 धर्म के विषय में आखिर कैसी कैसी दलीलें दे रहे हैं वे लोग जिन्होंने धर्म शास्त्रों को कभी खोल कर भी नहीं देखा है !

    बंधुओ ! यदि कानून बनाने वाले नेता ही भ्रष्ट हो जाएँ तो क्या कानून को मानना बंद  कर देना चाहिए, अदालतों के अंदर भ्रष्टाचार है तो क्या अपनी मनगढंत अदालतें बना लेनी चाहिए ! यदि डाक्टर ठीक वर्ताव न करने लगें तो क्या मोची से आपरेशन करा लेना चाहिए क्या ? मैं केवल यह पूछना चाहता हूँ कि श्री राम कृष्ण शिव दुर्गा आदि देवताओं के सम्मुख कहाँ ठहरते हैं साईं ? सनातन धर्म  की स्थिति आज यह है कि  धार्मिक दृष्टि से एक से एक बड़े अँगूठाटेक लोग भी धर्म के विषय में बड़े बड़े धर्मशास्त्रियों की तरह बहस करने लगते हैं !और कोई  पूछ दे कि धर्म शास्त्रों के विषय में आपका अध्ययन क्या है ?तो बोले मैं डॉक्टर हूँ , इंजीनियर  हूँ आदि आदि !आखिर ये कहाँ की सभ्यता है कि जिस चीज के विषय में आप का ठीक ठीक स्वाध्याय ही नहीं  है उस विषय को प्रमाणित रूप से रख सकने के लिए आप अधिकृत कैसे हो सकते हैं कुछ  इधर उधर से पढ़ लेने का मतलब विद्वत्ता नहीं हुआ करती  जब तक उसे सांग और सविधि   न पढ़ा जाए !

   मेरा निवेदन हर प्रबुद्ध व्यक्ति से है कि यदि स्वास्थ्य  के विषय में चिकित्सक प्रमाण माने जाते हैं , कानून  के विषय में कानूनविद  प्रमाण माने जाते हैं इतिहास के विषय में इतिहासविद प्रमाण माने जाते हैं तो धर्मशास्त्रों के विषय में धर्मशास्त्रविद क्यों नहीं ?  धर्मशास्त्रों के विषय को भी अन्य विषयों की  तरह संस्कृत विश्व विद्यालयों में सरकार पढ़वा रही है तो धर्म शास्त्रों के विषय में बहस करने की रूचि   रखने वाले हर व्यक्ति  पढ़ना चाहिए और फिर शास्त्रीय आधार पर बहस भी की जाए तर्क भी दिए जाएँ तो अच्छा भी लगता है और उचित भी है!अन्यथा कानून की पढ़ाई यदि हमने नहीं पढ़ी तो  कानून के विषय में अपनी टाँग हम नहीं अड़ाते ऐसी ही अपेक्षा और लोगों से भी है ।  

     वैसे भी  साईं पूजा का समर्थन करने वाला कोई भी व्यक्ति यदि योग्य है तो शास्त्रार्थ करे अयोग्य है तो चुप बैठे !अन्यथा  बेकार में निराधार बहस क्यों करनी !
    साईं पूजा के समर्थन में हर किसी ऐरे गैरे व्यक्ति के काल्पनिक तर्क प्रमाण कैसे माने जा सकते हैं इस विषय में हम हर उस शिक्षित समझदार व्यक्ति की सलाह मानने को तैयार हैं जिसने किसी भी संस्कृत यूनिवर्सिटी से धर्मं शास्त्रों के विषय में कोई अध्ययन किया हो और जो शिक्षित होगा उसे यह बात अपने आप समझ में आ जाएगी कि साईं को भगवान मानकर क्यों नहीं पूजा जा सकता और जिन्होंने किसी संस्कृत यूनिवर्सिटी से न भी पढ़ा हो फिर भी उन्हें प्रूफ तो करना होगा कि उनकी धार्मिक विषयों में अपनी योग्यता क्या है अन्यथा साईँ  के विषय में फ़ोकट की सलाह देने वाले एवं पण्डे पुजारियों की निराधार आलोचना करने वाली  बीमार मानसिकता  से चोंच लड़ाना अपना कर्तव्य नहीं है हम किसी भी ऐसे व्यक्ति के कुतर्कों के जवाब देने के लिए बाध्य नहीं हैं जो धार्मिक दृष्टि से अशिक्षित हो ! जिसको जो कुछ समझना हो समझे !किन्तु शिक्षित व्यक्ति से किसी भी मंच पर खुली बहस के लिए तैयार हैं कि साईं पूजा अशास्त्रीय है इसलिए नहीं की जा सकती !